29.10.21

नमक के पानी से नहाने से होते हैं कई रोग दूर :Salt Water Bath

 

अगर आप अपने नहाने के पानी में नमक डालकर नहाएं तो आप कई बीमारियों और इंफेक्शन से बच सकते हैं। जी हां, नमक के पानी से नहाने से कई रोग दूर हो जाते हैं। जब आपको तेज बुखार हो तो ऐसे में आप गुनगुने पानी में एक से दो चम्मच नमक और कुछ बूंद नारियल का तेल डालकर नहाने से आपको जुकाम और सर्दी में राहत मिलती है।

नमक का शरीर में योगदान – 

  सोडियम और क्लोराइड का कॉम्बिनेशन यह प्राकृतिक मिनरल सीधे धरती से क्रिस्टल के रूप में हमारे पास आता है। सुमद्री नमक में यह प्राकृतिक तौर पर पाया जाता है। नमक एक ऐसा प्राकृतिक खजाना है, जिसमें कई पोषक तत्व छिपे होते हैं जो हमारे जीवन के लिए बहुत जरूरी हैं। नमक हमें सल्फर, कैल्शियम, सोडियम, मैग्नीशियम, सिलिकन, बोरोन, पोटैशियम, ब्राोमाइन और स्ट्रोन्शियम जैसे जरूरी मिनरल्स प्रदान करता है। अपने बेहतरीन मिनरल कंटेंट के कारण नमक वजन कम करने, स्किन को खूबसूरत बनाने, अस्थमा के लक्षण कम करने, ब्लड शुगर स्तर दुरुस्त करने, शरीर के दर्द को कम करने और दिल को सेहतमंद रखने में भी मददगार है। नमक के पानी से नहाने के लिए आपका बीमार होना जरूरी नहीं है। यह क्लींजिंग और स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए भी बहुत अच्छा होता है।
नमक के पानी में मौजूद तत्व फंगल इंफेक्शन बढ़ने से रोकते हैं। रोज इससे नहाने पर डैंड्रफ में काफी आराम मिलता है।   यह आपकी त्वचा के लिए अच्छा है यदि अपने प्राकृतिक और शुद्ध रूप से इस्तेमाल किया जाए तो नमक के   पानी में कई मिनरल्स और पोषक तत्व होते हैं जो आपकी त्वचा को जवां बनाते हैं| मैग्नीशियम, कैल्शियम, ब्रोमाइड, सोडियम जैसे मिनरल्स त्वचा के रोम छिद्रों में प्रवेश करते हैं| ये त्वचा की सतह को साफ़ कर इसे स्वस्थ और चमकदार बनाते हैं|
  इतना ही नहीं मांशपेशियों का दर्द भी नमक वाले पानी से नहाने से दूर हो जाता है। इसके साथ ही यह आपके शरीर में कैल्शियम की कमी भी दूर करता है और आपके नाखून को मजबूत बनाए रखता है। नमक के पानी से नहाने से खुजली की समस्या दूर होती हैं और आपको नींद भी अच्छी आती है, व आपका दिमाग तरोजाजा रहता है। लगातार नमक के पानी से नहाने से आप खुद को पहले से ज्यादा अच्छा महसूस करते हैं।

यह त्वचा को जवां बनाये रखता है 

नियमित रूप से नमक के पानी से नहाने से दाग और झुर्रियां कम होती हैं| त्वचा नरम और मुलायम बनती है| यह त्वचा को फुलावट भरा बनाता है और स्किन मॉइस्चर का संतुलन बनाये रखता है|

यह डिटॉक्सीफिकेशन बढ़ाता है 

नमक के पानी से नहाने से त्वचा से जहरीले तत्व बाहर निकलते हैं| गर्म पानी त्वचा के रोम छिद्रों को खोलता है| इससे मिनरल्स त्वचा के अंदर जाकर गहराई तक सफाई करते हैं| नमक का पानी जहरीले और नुकसानकारी पदार्थों और बैक्टीरिया को त्वचा से बाहर निकालता है और इसे जवां बनाता है|
 यह कई समस्याओं का समाधान करता है| यह ऑस्टियोआर्थराइटिस और टेन्डीनिटिस के इलाज में भी कारगर है| ऑस्टियोआर्थराइटिस हड्डियों की खराबी से सम्बंधित बीमारी है और टेन्डीनिटिस नसों की सूजन से सम्बंधित बीमारी है| नमक के पानी से नहाने से खुजली और अनिद्रा का ईलाज भी होता है|

एसिडिटी के ईलाज में कारगर

एसिडिटी एक ऐसी समस्या है जिससे आजकल अधिकतर लोग ग्रसित हैं| इसके ईलाज के लिए महँगी और साइड इफ़ेक्ट करने वाली दवाइयों की बजाय आप नमक के पानी से नहाने के नुस्खे को आजमा सकते हैं| क्षारीय प्रकृति के कारण यह अम्ल की मात्रा को कम करने में मददगार है|

मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है

नमक के पानी से स्नान शारीरिक के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है| इस पानी से स्नान करने के बाद आप ज्यादा शांत, खुश और आराम महसूस करेंगे| यह एक शानदार स्ट्रेस बस्टर है| यह मानसिक शांति भी बढ़ाता है|
*यह मांसपेशियों में दर्द और ऐंठनको भी ठीक करता है नमक के पानी से नियमित स्नान कर ऐंठन को भी ठीक किया जा सकता है| यह गठिया, शुगर या अन्य किसी चोट के कारण हुए मांसपेशियों में दर्द और ऐंठन को भी ठीक कर देता है|

अच्छी नींद आती है

नमक के पानी से नहाने पर थकान और स्ट्रेस दूर हो जाता है। इससे दिमाग को शांति मिलती है और रात में अच्छी नींद आती है। यह पैरों की मांसपेशियों के लिए भी लाभकारी है
पैरों पर शरीर में सबसे ज्यादा दबाव पड़ता है| ये अधिकतर समय मूव करते हैं और शरीर को सपोर्ट प्रदान करते हैं| इससे यहाँ की मांसपेशियां मुलायम हो जाती है और इनमे जूते चप्पलों के कारण छाले भी हो जाते हैं| नमक के पानी से नहाने से मांसपेशियों में दर्द और जकड़न से निजात मिलती है| यह पैरों की दुर्गन्ध को भी दूर करता है |
  
इंफेक्शन

नमक के पानी में भरपूर मात्रा में मैग्नीशियम, कैल्शियम, सोडियम जैसे मिनरल्स होते हैं। ये स्किन के पोर्स में जाकर सफाई करते हैं। इससे स्किन इंफेक्शन का खतरा कम हो जाता है।   यह स्किन को मॉइस्चराइज करता है
त्वचा के लिए मॉइस्चराइजिंग बहुत जरूरी है| नमक के पानी में मौजूद मैग्नीशियम त्वचा में पानी को ज्यादा देर तक रोकता है| इससे त्वचा मॉइस्चराइज होती है और त्वचा की कोशिकाओं की ग्रोथ भी ज्यादा होती है

हेल्दी हो जाते हैं बाल

इसके पानी से नहाने पर ब्लड सर्कुलेशन अच्छा हो जाता है। साथ ही बालों के बैक्टीरिया भी खत्म होते हैं। इसलिए नमक के पानी से सिर धोने पर बाल हेल्दी और शाइनी हो रहते हैं। ध्यान रहे नमक की मात्रा संतुलित होनी चाहिए। इतना नमक न मिलाएं कि पानी खारा हो जाए।
   नमक के पानी से नहाने पर हड्डियों में होने वाले दर्द से राहत मिलती है। इससे ऑस्टियोऑर्थराइटिस और टेंडीनिटिस जैसी जॉइंट पेन की समस्या में आराम मिलता है।

झुर्रियां करे दूर –

नमक वाले पानी में व्याप्त मिनरल्स इतने गुणवान हैं कि ये स्किन पर आने वाली झुर्रियों को रोकने में सहायक है। यही नहीं स्किन के दाग- धब्बे भी धीरे- धीरे कम होते जाते हैं।

फेयरनेस

   नमक का पानी स्किन की डेड सेल्स को निकालने में मदद करता है। रोज इसके पानी से नहाएंगे तो स्किन सॉफ्ट और ग्लोइंग बनेगी। रंग भी खिलेगा|

जोड़ों के दर्द में राहत

जोड़ों के दर्द की समस्या में भी नमक के पानी से नहाने के फायदे देखे गए हैं। एक रिसर्च के मुताबिक गर्म पानी में एप्सम साल्ट मिलाकर प्रयोग करने से घुटने के दर्द और गठिया रोगियों में होने वाले जोड़ों के दर्द में राहत मिल सकती है। इसके साथ ही शोध में इस बात का भी जिक्र है कि बाथ साल्ट पुरानी सूजन को कम करने में भी प्रभावी हो सकता है । इस आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि जोड़ों के दर्द के घरेलू उपाय के तौर पर नमक के पानी से नहाना कुछ हद तक राहत दिला सकता है।

स्किन में नमी –


नमक वाले पानी से नियमित स्नान स्किन को साफ करके नरम और कोमल भी बनाता है। नमक में निहित मैग्नीशियम स्किन में पानी को देर तक बनाए रखता है। इससे स्किन में नमी का संतुलन बना रहता है और स्किन में कसावट भी आती है।
                                
मांसपेशियों में दर्द और ऐंठन के लिए फायदेमंद –

यदि आपकी मांसपेशियों में अकसर दर्द और ऐंठन रहती है तो आप आज से ही नमक के पानी से नहाना शुरू कर दें। इससे मांसपेशियां मुलायम होने के साथ ही रिलैक्स भी होती हैं। साथ ही नमक के पानी से नहाने से शरीर की बदबू भी दूर होती है। किसी सर्जरी या चोट के बाद भी नमक युक्त पानी का स्नान शरीर को तेजी से ठीक होने में मदद करता है। गुनगुने पानी में मैग्नीशियम युक्त नमक मिलाकर नहाने से मसल स्पैस्म्स और पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द से भी काफी राहत मिलती है। दिन भर की थकान के बाद होने वाले शारीरिक दर्द से भी यह छुटकारा दिलाता है।
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26.10.21

खून का थक्का जमने का विकार और उपचार:Blood Clotting




 

अमूमन लोगों से पैर या शरीर के किसी अंग में सुन्‍नता की शिकायत सुनने को मिलती है, जिसके बारे में लोगों को बहुत कम ही पता चल पाता है। विशेषज्ञों की मानें तो ये समस्‍या खून के थक्‍के होने के कारण होता है। खून के थक्‍के ज्‍यादातर पैरों में यानी पैर की नसों में पाए जाते हैं। चलने में समस्‍या, सुन्‍नता, दर्द आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। खून के थक्‍के की समस्‍या की अनदेखी करना खतरनाक हो सकता है। पैरों की जब कोई नस काम करना बंद कर देती है तो ए‍क चेन रिएक्‍शन होता है जिसके अंत में खून के थक्‍के जमने लगते हैं, जिसके कारण रक्‍त का बहाव रूक जाता है और शरीर में रक्‍त को जमाने वाले फार्मेंटर की मात्रा बढ़ जाती है।

हालांकि खून का थक्का यानी ब्लड क्लॉट अपने आप बनता है और यह सामान्य प्रक्रिया में क्षतिग्रस्त नलिकाओं की मरम्मत करने का भी काम करता है। ऐसा न हो तो चोट लगने पर शरीर में खून का बहाव रोकना बहुत ही मुश्किल हो जायेगा। हमारे प्लाज्मा में मौजूद प्लेटलेट्स और प्रोटीन, चोट की जगह पर रक्त के थक्के का निर्माण करके रक्त के बहाव को रोकते हैं। आमतौर पर चोट के ठीक होने पर खून का थक्का अपने आप घुल जाता है। लेकिन खून के थक्के के न घुलने और लंबे समय तक बने रहने पर सेहत के लिए खतरनाक होता है, जिसके लिये सही जांच एवं उपचार की जरूरत होती है। बिना उपचार लंबे समय तक रहने पर रक्त के थक्के धमनियों या नसों में चले जाते हैं और शरीर के किसी भी हिस्से जैसे आंख, हृदय, मस्तिष्क, फेफड़े और गुर्दे आदि में पहुंच उन अंगों के काम को बाधित कर देते हैं।
खून का गाढ़ा होने का मतलब स्वस्थ शरीर की निशानी नहीं|इससे छोटे थक्के बनना, हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक का खतरागलत खानपान और बिगड़ता लाइफस्टाइल भी जिम्मेदार, अक्सर लोग सोचते हैं कि खून का गाढ़ा होना मतलब स्वस्थ शरीर की निशानी है। आपको बता दें कि खून का गाढ़ा होना कई कई गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकता है। इससे आपको छोटे-छोटे थक्के बनना, हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक का खतरा हो सकता है।शरीर के सभी हिस्सों को सही से कार्य करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। शरीर के सभी हिस्सों में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम खून करता है। ऐसे में खून के गाढ़ा होने से कई परेशानियां हो सकती हैं।
आजकल बहुत से लोगों में खून के गाढ़ेपन की समस्या आम सुनने को मिल रही है। इसके लिए कहीं न कहीं हमारा गलत खानपान और बिगड़ता लाइफस्टाइल भी जिम्मेदार है।

खून में थक्‍के के कारण-

सारा दिन किसी एक स्‍थान या दफ्तर में लगातर बैठ कर काम करने से खून में थक्के की समस्‍या होती है। इसके अलावा इसके स्वभाविक कारणों में बुढ़ापा, मोटापा, धूम्रपान की लत, वैरिकॉज वेन्स (कुछ मामलों में), लंबे समय लेटे रहने पर (हड्डी जोड़ने के लिये प्लास्टर लगने के कारण, कोई ऑप्रेशन होने के कारण, लंबे सफर में, इत्यादि) तथा हार्मोंन असंतुलन के कारण (कुछ मामलों में) भी खून में थक्‍के की समस्या हो सकती है। एक नए शोध के अनुसार, जो लोग लगातार 10 घंटे तक काम करते हैं और इस दौरान कोई विराम नहीं लेते तो उनमें खून के थक्के जमने का खतरा दोगुना हो जाता है। यह अध्‍ययन काम के बीच लिए जाने वाले विराम के महत्त्‍व को दिखाता है।
आपके हाथ या पैर की गहरी नसों में बनने वाले थक्के को डीप वेन थ्रोम्बोसिस (DVT) कहा जाता है। इस तरह के थक्के काफी खतरनाक होते हैं क्योंकि ये आसानी से आपके दिल या फेफड़ों तक जा सकते हैं। जिस जगह आपको थक्के बनते हैं वहां आपको सूजन, दर्द, ऐंठन, सनसनी और खुजली हो सकती है।
इसके अलावा त्वचा का रंग गहरा लाल या नीला पड़ जाए तो यह भी ब्लड क्लॉट का संकेत हो सकता है।
चक्कर आना आँखों के आगे अँधेरा छा जाना या किसी भी शरीर के किसी अंग में सुन्नपन ये सब शरीर के किसी भी भाग में (Blood) खून के थक्के होने के कारण होता है डीप वेन थ्रोमबोसिस (डीवीटी) बीमारी है शरीर की नसों में (Blood) खून जमने की. ये ब्लड क्लॉट आम तौर पर पैरों की नसों में पाए जाते हैं. हालांकि ये एक बहुत ही आम बीमारी है लेकिन अनदेखी करने पर थ्रोमबोसिस जानलेवा भी हो सकती है.जब कोई नस काम करना बंद कर देती है तो हमारे शरीर में एक चेन रियेक्शन होता है जिसके अंत में खून के थक्के जमने लगते हैं जिससे इंसान का  खून बहना बंद हो जाता है. जिसे थ्रौमबोसिस नाम की ये बीमारी होती है उसके शरीर में खून को जमाने वाले इस किण्वक की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है.

खून का थक्का जमने के लक्षण

खून का थक्का जमने के जो शुरुआती लक्षण होते हैं उनका पता कर पाना संभव नहीं होता है। असल में शुरुआत में जो प्रभावित हिस्सा होता है वो लाल पड़ जाता है और पैरों में हल्का दर्द होता है जिसे लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं पर उन लक्षणों को अनदेखा करने से ही व्यक्ति को आगे चलकर बहुत बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। खून के थक्के जमने के और भी कई लक्षण हैं जो निम्न हैं–
पसीना आना और इसके साथ ही हरदम घबराहट होना।
अचानक से कमज़ोरी महसूस करना।
चेहरे या हाथों–पैरों का अचानक से सुन्न हो जाना।
चलने में समस्या आना।
मस्तिष्क पर प्रभावी पड़ना जैसे कि सुनने समझने में दिक्कत महसूस करना।
संतुलन बनाने में दिक्कत होना।
जो प्रभावित हिस्सा होता है उसमें सूजन, दर्द और गरमाई महसूस करना।
बार–बार सिर चकराना।
गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से भी इसकी समस्या हो जाती है।
मोटापे की वजह से खून के थक्के जम जाते हैं।
मोनोपॉज़ यानी कि जिनकी मासिक धर्म की क्रिया समाप्त हो जाती है उन्हें भी इस समस्या से जूझना पड़ सकता है।
हल्दी
हल्दी में कुदरती औषधिय गुण होते हैं। यह ब्लड क्लॉटिग रोकने में भी बहुत कारगर है। हफ्ते में 2 या 3 बार हल्दी वाला दूध पीएं। कच्ची हल्दी का सेवन भी खून के गाढ़ेपन को ठीक करने का काम करती है।
लहसुन
लहसुन के एंटीऑक्सीडेंट गुण शरीर में जमा फ्री रेडिकल को खत्म करने का काम करते हैंश जिससे ब्लड प्रैशर सामान्य रहता है और यह खून के प्रवाह को संतुलित करने के साथ खून को पतला करने में भी मददगार है।
फाइबर फूड
खून तो पतला करने के लिए आहार में फाइबर युक्त आहार को जरूर शामिल करें। ब्राउन राइस, होव वीट, मक्का, गाजर, ब्रोकली, मूली, सेब, शलजम, ओट्स आदि का सेवन करें।
फिश ऑयल
फिश ऑयल खून को पतला करने में मददगार है। चिकन,मटन को छोड़कर मछली के तेल का सेवन करें। डॉक्टर की सलाह से फिश फिश ऑयल के टैबलेट्स भी ले सकते हैं।
केयेन मिर्च
मसालेदार खाना खाने के शौकीन हैं तो केयेन मिर्च को खाने में शामिल करें। इसमें खून को पतला करने के लिए उच्च मात्रा में सेलिसिलेट होता है। जो ब्लड प्रेशर को सामान्य रखकर ब्लड सर्कुलेशन नियमित करने के साथ खून को भी पतला करता है।
यह भी हैं कुछ उपाय
पसीना आना जरूरी
खून को साफ और गाढ़ा होने से बचाने के लिए शरीर से पसीना बहाना बहुत जरूरी है। एक्सरसाइज या फिर योग के लिए समय जरूर निकालें।
गहरी सांस लें
सुबह के समय शुद्ध ऑक्सीजन सेहत के लिए बहुत अच्छी है। गहरी सांस लेने से फेफड़ों को ऑक्सीजन मिलती है। जिससे रक्त संचार सही रहता है।
डेड स्किन निकालें
त्वचा पर जमा डेड स्किन रोम छिद्रों को बंद कर देती है। जिससे रक्त संचार भी प्रभावित होता है। महीने में 1-2 बार मैनी क्योर और पैडी क्योर जरूर करवाएं। इससे डैड स्किन सैल निकल जाते हैं और खून की दौरा भी बेहतर हो जाता है।
सेंधा नमक डालकर स्नान करें
अगर आप इस मौसम में बार बार नहाने का बहाना ढूंढते हैं तो यह एक फायदेमंद बहाना है। सेंधा नमक स्वस्थ ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। अगली बार जब भी आप आरामदायक स्नान के बारे में सोचे तो बबल बाथ की जगह सेंधा नमक को पानी में डालकर नहाएं।
सुबह की सैर
हेल्दी रहना है तो जब सूरज उगता है उस समय वॉक पर जाएं। सुबह के समय शुद्ध ऑक्सीजन का स्तर थोड़ा ज्यादा होता है, ये सेहत के लिए बहुत अच्छी मानी गई है। गहरी सांसें लें, इससे आपके फेफड़ों को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मिलती हे, जिससे आपकी बॉडी का ब्लड फ्लो सही बना रहता है। सुबह सवेरे वॉक करने से आप तरोतजा महसूस करते हैं।
*काली चाय यानी ब्लैक टी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होती है लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि काली चाय खून को गाढ़ा बनने से रोकती है जिस वजह से धमनियों में खून का थक्का जमने से रूकता है। यह नसों में खून के प्रभाव को सरल बनाती है जिस वजह से ब्लडप्रेशर भी नियंत्रित रहता है।
अगर आप रोजाना एक सेब या संतरा खाते हैं तो भी आपको खून के थक्के जमने की समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
नियमित रूप से व्यायाम करें।
वजन को नियंत्रित करें।
फल, सब्जियों और अनाज का सेवन अधिक और नमक और फैट का सेवन कम करें।
धूम्रपान छोड़े और कम मात्रा में शराब का सेवन करें।
ब्‍लड प्रेशर की नियमित जांच करवायें।
अगर आप रोजाना एक सेब या संतरा खाते हैं तो आपको ब्लड क्लॉट यानी (Blood) खून के थक्के जमने की समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
हावर्ड मेडिकल स्कूल की एक टीम ने पाया है कि सेब, संतरा और प्याज में ‘रूटिन’ नामक रसायन धमनियों और शिराओं में (Blood) खून के थक्के जमने से रोक सकता है। उनका मानना है कि ‘रूटिन’ ब्लैक और ग्रीन टी में भी हो सकता है। इसका इस्तेमाल भविष्य में दिल का दौरा पडऩे से बचाने के लिए इलाज के तौर पर हो सकता है।
शरीर के इन 5 अंगों में खून का थक्का बनने पर जा सकती है जान
फेफड़े
शरीर के अलग-अलग अंगों में थक्का बनने पर आपको अलग-अलग लक्षण दिखाई दे सकते हैं। फेफड़े में खून का थक्का (blood clot) बनने से आपकी धड़कन तेज हो सकती है, सीने में दर्द हो सकता है, खांसी में खून आ सकता और सांस की तकलीफ हो सकती है। ऐसी स्थिति में तुरंत अस्पताल पहुंचें।
दिल
दिल में खून का थक्का बनने पर आपको फेफड़ों में थक्के के समान लक्षण महसूस हो सकते हैं। लेकिन अगर आपको दिल का दौरा पड़ा है, तो आपको सीने में दर्द के साथ मतली और उल्टी भी महसूस हो सकती है। किसी भी तरह की परेशानी होने पर तुरंत अस्पताल पहुंचे।
मस्तिष्क
जब रक्त सामान्य रूप से प्रवाहित नहीं हो पाता है तो मस्तिष्क पर दबाव बनना शुरू हो जाता है। खून का थक्का बनने से मस्तिष्क में गंभीर रुकावट पैदा हो सकती है, और कभी-कभी स्ट्रोक का कारण भी बन सकता है। रक्त से ऑक्सीजन के बिना आपके मस्तिष्क की कोशिकाएं मिनटों में मरना शुरू हो जाती हैं। आपके मस्तिष्क में मौजूद थक्का सिर के एक हिस्से में दर्द, भ्रम, दौरे, बोलने में परेशानी और कमजोरी का कारण बन सकता है।
पेट
अक्सर इसके कोई खास लक्षण सामने नहीं आते हैं। पेट और भोजन नली की नसों में थक्का बनने से कट लग सकता है, जिससे ब्लड निकल सकता है। ये आपको बहुत ज्यादा परेशान कर सकता है। आपको खून की उल्टी हो सकती है या फिर आपको मलत्याग में कालापन और बहुत ज्यादा बदबू आ सकती है।
किडनी
खून के थक्के किडनी में आमतौर पर बहुत धीरे-धीरे बढ़ते हैं और ये समस्या ज्यादातर व्यस्कों में देखने को मिलती है। इसके लक्षणों का पता आपको तब तक नहीं लगता है जब तक इसका एक टुकड़ा टूटकर आपके फेफड़ों में नहीं फंस जाता है। दुर्लभ मामलों में ये बच्चों में होते हैं और इसके कारण बच्चों तो मतली, बुखार और उल्टी हो सकती है। आपको पेशाब में भी खून दिखाई दे सकता है।
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23.10.21

मरुआ पौधे के औषधीय गुण और फायदे:Marua ke fayde




  मरुआ का पौधा सम्पूर्ण भारत में सभी जगह आसानी से उगाया जा सकता है इसका पौधा तुलसी के जैसा ही होता है इसका पौधा अत्यंत ही सुगन्धित होता हे इसके फूल सफ़ेद और बैंगनी कलर का होता है जो तुलसी के पौधे के सम्मान ही होता हे
 बारीश के मौसम और सर्दी के मौसम में मच्छर और कीड़े मकोड़ों का प्रभाव बहुत ही बढ़ जाता हे जिसके कारण लोग बीमारियों का शिकार होने लगते हे जब मरुआ का पौधा आप घर के अंदर लगाते हे तब घर के अंदर मच्छर और कीड़े का प्रभाव कम होने लगता हे
 मरुआ के पौधे का घरेलु दवाओं में आसानी से जड़ , पत्तो ,फूलो , फलो ,जड़ का चूर्ण ,टहनियों , पत्तियों , पौधे का चूर्ण का उपयोग घेरलू दवाओं में किया जाता हे
 मरुआ के पौधे का उपयोग रोग में – गठिया रोग में , मासिक धर्म , पैट दर्द में , सरदर्द में दस्त में , पेचिस में , चोट-मोच में , दर्द में , कब्ज में , सूजन में ,घर में कीड़े मकोड़े और मछर में मरुआ के पौधे का उपयोग , जोड़ो के दर्द में घेरलू और ओषधिय चिकित्सा में प्रयोग किया जाता हे
घर में कीड़े मकोड़े और मछर में मरुआ के पौधे का उपयोग
 बारिश के मौसम में बहुत से कीड़े मकोड़े और मछर की संख्या बहुत जयादा हो जाती हे बारिश के मौसम में घर में एक मरुआ का पौधा लगाने से घर में कीड़े मकोड़े – मछर का प्रभाव कम हो जाता हे और घर में सोंधी महक फैलाता रहेगा
 मरुआ के पौधे को घर के बिच या गमले में लगा कर घर के किसी भी कोने में रख सकते हे इसकी साइज भी तुलसी के जितनी ही होती हे जिस घर में मरुआ का पौधा होता हे वहा डेंगू और मलेरिया का खतरा बहुत कम होता हे और वातावरण शुद्ध होता हे

सूजन में मरुआ 


मरुआ के पौधे की पत्तियों और टहनियों को पानी उबाल कर सूजन वाली जगह बफारा देने से और गर्म पानी से मालिस करने से भी शरीर में सूजन कम होगा और सूजन के दर्द में भी फायदा होता हे

पेचिस में मरुआ 

मरुआ के पौधे की पत्तियों को मलकर पेट पर मालिस करने के बाद हलकी सिकाई करने से तीव्र पेचिस में भी फायदा होता हे

दर्द में मरुआ 

मरुआ के पौधे की पत्तियों और टहनियों को पानी उबाल कर सूजन की जगह गर्म पानी से मालिस करने से दर्द में भी फायदा होता हे

खुनी दस्त में मरुआ 

मरुआ के पौधे की पत्तियों का काढ़ा बना कर सुबह-शाम-दोपहर रोजाना पिलाने से खुनी दस्त में भी फायदा होता हे

सिर दर्द में मरुआ 

मरुआ की ताजा पत्तियों का शीत निर्यास बनाकर सेवन करने से सिर दर्द में बहुत ही फायदा होगा

TB [ टी.बी ] रोग में

टी.बी रोग में मरुआ की ताजा जड़ का 5 ग्राम रस को सुबह – शाम सेवन करने से रोग में बहुत ही जल्दी फायदा होगा

पेट दर्द में मरुआ 

पेट दर्द में मरुआ की पत्तियों और बीजो का चूर्ण बना कर 5 ग्राम चूर्ण को गर्म पानी के साथ मिला कर सुबह – शाम उपयोग करने से पेट दर्द में फायदा होता हे

मासिक धर्म में 

मासिक धर्म में मरुआ का 20 ग्राम का फाट बना कर नियमित रूप से सेवन करने से रज विकारो में फायदा होता हे

चोट- मोच में

मरुआ के तेल की मालिस सुबह -शाम चोट वाली जगह पर लगाने से चोट – मोच में आश्चर्य जनक फायदा होगा

कब्ज में मरुआ के फायदे

कब्ज में मरुआ का 20 ग्राम के लगभग का फाट बना कर पीने से कब्ज में जबरदस्त फायदा होगा

गठिया रोग में मरुआ

गठिया के रोगी को मरुआ के पंचांग [ पत्ती , टहनिया , फूल , जड़ ,बीज ] का काढ़ा 20-30 मिली के लगभग बनाकर रोगी को दिन में 2 से 3 बार पिलाने से गठिया के रोग में फायदा होता
मरुआ की चटनी बहुत ही आसानी से आप बना सकते हे इसके लिए आप को इन चीजों की आवश्यकता होगी
एक कप मरुआ की पत्तिया
एक निम्बू
एक नमक की चमच
1 से 2 हरी मिर्च
इन सभी की मात्रा आप अपनी आवश्यकता के अनुसार बड़ा सकते हे
चटनी बनाने की विधि
सभी पत्तियों और निम्बू , मिर्च को सबसे पहले धो ले
अब आप इन सभी सामान को मिक्सी में दाल दे
इसमें आप 1 कप पानी मिला सकते हे
अब आप इनको मिक्सी में अच्छी तरह पीस ले
अब पूरी तरह चटनी तैयार हे
आप चटनी को पत्थर पर भी पीस सकते हे
मरुआ का पौधा घर में रहता हे तो घर में सांप कीड़े – मकोड़े मछर नहीं आते हे जिससे घर का वातावरण सुगन्धित रहता हे और घर महकता रहता हे मरुआ के पौधे के चमत्कारी और आयुर्वेदिक गुण बहुत से हे|
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    22.10.21

    ब्लड प्लेटलेट्स बढ़ाने के घरेलू उपाय,increase blood platelets





    डेंगू का संक्रमण होने पर रोगी के प्लेटलेट्स लगातार कम होने लगते हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति में सामान्य रूप से ब्लड में एक लाख पचास हजार से 4 लाख पचास हजार प्लेटलेट्स प्रति माइक्रोलीटर होते हैं। जब इनकी संख्या एक लाख पचास हजार से कम होती है तो ऐसा माना जाता है कि संबंधित व्यक्ति में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो गई है। डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों में प्लेटलेट्स की संख्या बड़ी तेजी से घटती है। ऐसे में अगर इनके कम होने को नियंत्रित न किया जाए तो स्थित गंभीर हो सकती है। प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाने में कुछ आहार आपकी मदद कर सकते हैं। ये प्राकृतिक रूप से प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाने में मददगार होते हैं।

    बुखार आने पर क्या करें


    इसका उपाय एक ही है, ऐसी स्थिति में बुखार के समय मरीजों को उनका प्लेटलेट काउंट समय-समय पर चैक करवाते रहना चाहिए। जिससे आप अपने प्लेटलेट्स को कम होने से रोक सकें। इसके साथ-साथ आपको अपने आहार में प्लेटलेट्स बढ़ाने वाले पौष्टिक आहार को शामिल करना चाहिए।

    क्‍या हैं प्लेटलेट्स

    प्लेटलेट्स छोटी रक्त कोशिकाएं होती हैं, जो खासतौर पर बोनमैरो में पाई जाती हैं। हमारे शरीर में प्लेटलेट्स की कमी इस बात को दिखाती है कि खून में बीमारियों से लड़ने की ताकत कम हो रही है। प्लेटलेट्स कम होने की इस स्थिति को थ्रोम्बोसाइटोपेनिया कहा जाता है।

    एक स्वस्थ व्यक्ति में प्लेटलेट्स की संख्या कितनी होनी चाहिए?

    एक स्वस्थ व्यक्ति में सामान्य प्लेटलेट काउंट 150 हजार से 450 हजार प्रति माइक्रोलीटर होता है। जब ये काउंट 150 हजार प्रति माइक्रोलीटर से नीचे चला जाता है, तो इसे लो प्लेटलेट माना जाता है।

    प्लेटलेट्स कम होने का कारण


    दवाओं के सेवन से
    आनुवंशिक रोगों
    कुछ प्रकार के कैंसर
    कीमोथेरेपी ट्रीटमेंट
    बुखार जैसे डेंगू, मलेरिया व चिकनगुनिया

    चुकंदर –

    चुकंदर प्राकृतिक एंटीऑक्‍सीडेंट और हेमोस्टैटिक गुणों से भरपूर होता है। अगर दो से तीन चम्मच चुकंदर के रस को एक गिलास गाजर के रस में मिलाकर पिया जाये तो ब्लड प्लेटलेट्स तेजी से बढ़ते हैं। साथ ही साथ इसमें मौजूद एंटी-ऑक्‍सीडेंट्स शरीर की प्रतिरोधी क्षमता भी बढ़ाते हैं।

    पपीता – 

    पपीते के फल और पत्तियां दोनों ही प्‍लेटलेट्स बढ़ाने में मददगार हैं। डेंगू बुखार में गिरने वाले प्‍लेटलेट्स को पपीता के पत्ते के रस के सेवन से तेजी से बढ़ाया जा सकता है। आप चाहें तो पपीते की पत्तियों को चाय की तरह भी पानी में उबालकर पी सकते हैं।

    आंवला

    ये एक आयुर्वेदिक उपचार है। आंवले में मौजूद विटामिन-सी शरीर में प्लेटलेट्स का उत्पादन बढ़ाता है, इससे शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है। इसका नियमित सेवन करना बेहद जरूरी है। इसके लिए हर दिन सुबह खाली पेट 3 से 4 आंवला खाएं। आप इसका सेवन चुकंदर के जूस में डालकर भी कर सकती हैं।

    पालक –

    दो कप पानी में 4 से 5 ताजा पालक के पत्तों को डालकर कुछ मिनट के लिए उबाल लें। इसे ठंडा होने के लिए रख दें। फिर इसमें आधा गिलास टमाटर मिला दें। इसे मिश्रण को दिन में तीन बार पिएं।

    गिलोय –

     गिलोय का जूस प्‍लेटलेट्स को बढ़ाने का सर्वोत्तम उपाय है। इससे आपकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है। दो चुटकी गिलोय के सत्व को एक चम्मच शहद के साथ दिन में दो बार लें या फिर गिलोय की डंडी को रात भर पानी में भिगो कर सुबह उसका छना हुआ पानी पी लें। ब्‍लड में प्‍लेटलेट्स बढ़ने लगेंगे।
    इसके अलावा आप पालक का सेवन सूप, सलाद, स्‍मूदी या सब्‍जी के रूप में भी कर सकते हैं।

    नारियल पानी – 

    नारियल पानी में इलेक्ट्रोलाइट्स अच्छी मात्रा में होते हैं। इसके अलावा यह मिनिरल्स का भी अच्छा स्रोत है जो शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स की कमी को पूरा करने में मदद करते हैं।
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    जुनूनी बाध्यकारी विकार के लक्षण और होम्योपैथिक उपचार|Obsessive-Compulsive Disorder






       कुछ लोगों को किसी काम या आदत की धुन इस कदर सवार होती है कि वह सनक बन जाती है और बीमारी का रूप ले लेती है। इससे उनकी लाइफ पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे लोग ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसॉर्डर (ओसीडी) से पीड़ित होते हैं। दिक्कत यह है कि ज्यादातर लोग यह मानने को तैयार नहीं होते कि उन्हें ऐसी कोई समस्या है। हालांकि अगर वे वास्तविकता को स्वीकार कर लें, तो इलाज काफी आसान हो जाता है।

    क्या है ओसीडी

      यह एक चिंता करने वाली बीमारी है, जिसमें पीड़ित शख्स किसी बात की जरूरत-से-ज्यादा चिंता करने लगता है। एक ही जैसे अनचाहे ख्याल उसे बार- बार आते हैं और एक ही काम को बार-बार दोहराना चाहता है। ऐसे लोगों को सनक वाले ख्याल आते हैं और अपने बिहेवियर पर कोई कंट्रोल नहीं होता। ऐसे मरीज न खुद को रोक पाते हैं, न ही बेफिक्र रह पाते हैं। जैसे कोई सूई पुराने रेकॉर्ड पर अटक जाती है, वैसे ही ओसीडी से दिमाग किसी एक ख्याल या काम पर अटक जाता है। मसलन, यह कन्फर्म करने के लिए कि गैस बंद है या नहीं, आप 20 बार स्टोव की नॉब चेक करते हैं। तब तक हाथ धोते रहते हैं, जब तक कि वह छिल न जाए या आप तब तक गाड़ी भगाते रहते हैं, जब तक कि आपको यह संतुष्टि न हो जाए कि जिस शख्स ने पीछे से हॉर्न दिया था, वह पीछा तो नहीं कर रहा।

    ओसीडी के दौरान नजर आने वाले कुछ आम ऑब्सेशन

    गंदगी: इसमें व्यक्ति एचआईवी जैसी बीमारियों से डरता है या उसे एनवायरमेंट को खराब करने वाली चीजें, जैसे- रेडिएशन और घर में मौजूद कैमिकल्स और धूल को लेकर चिंता बनी रहती है।
    नियंत्रण खोना: खुद को या किसी दूसरे व्यक्ति को चोट पहुंचाना, चोरी और हिंसा का डर जैसी चीजें शामिल होती हैं।
    नुकसान: व्यक्ति को डर बना रहता है कि वो चोरी या आगजनी जैसी किसी गंभीर घटना का जिम्मेदार है या उसकी लापरवाही के कारण किसी और को नुकसान पहुंचा है।
    पर्फेक्शन से जुड़े ऑब्सेशन्स: किसी भी चीज को पूरी या सही तरीके से करने की चिंता या कुछ याद रखने की चिंता रहती है। किसी भी चीज को फेकते वक्त जरूरी जानकारी के बारे में भूल जाने का डर रहता है। चीजों को फेकने या रखने को लेकर फैसला नहीं कर पाते हैं या किसी भी चीज को खोने का डर।
    दूसरे ऑब्सेशन्स: किसी भी गंभीर बीमारी की चपेट में आने का डर बना रहता है। इसके अलावा लकी या अनलकी नंबर और रंगों लेकर अंधविश्वास वाले आइडिया आते हैं।
    कंपल्शन
    ये कुछ ऐसे व्यवहार होते हैं जहां व्यक्ति अपने ऑब्सेशन को खत्म करने के प्रयास करता है। ओसीडी से जूझ रहे लोगों को यह पता होता है कि यह केवल अस्थाई उपाय है, लेकिन इससे बचने का सही तरीका खोजने के बजाए वे कंपल्शन पर निर्भर रहते हैं।

    ओसीडी के दौरान नजर आने वाले कुछ आम कंपल्शन

    धुलाई और सफाई: इसमें एक ही तरीके से बार-बार हाथों को धोना, हद से ज्यादा देर तक नहाना, दांत साफ करना या सफाई से जुड़ी चीजों को करते रहना शामिल है।
    चैकिंग: यह जानने के लिए कि आप खुद को या किसी और को नुकसान तो नहीं पहुंचा रहे। बार-बार किसी चीज की जांच करना। यह पता करते रहना कि कुछ बुरा तो नहीं हुआ या आपसे कोई गलती तो नहीं हुई। शरीर के कुछ हिस्सों को बार-बार चैक करना।
    दोहराना: बार-बार किसी चीज को पढ़ना-लिखना या किसी भी बॉडी मूवमेंट्स को दोहराते रहना।

    OCD के क्या सिम्पटम्स होते हैं?

    किसी भी चीज को बार-बार दोहराना, मूड पर असर पड़ना, प्रोडक्टिविटी कम होना। डॉ. छिब्बर ने बताया कि अगर किसी भी इंसान को मेंटल हेल्थ बीमारी है तो वह काफी तनाव में नजर आएगा। ओसीडी से जूझ रहे व्यक्ति को डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए।

    OCD से कैसे उबर सकते हैं?

    अगर आपको लक्षण नजर आ रहे हैं तो, सबसे पहले हेल्थ को मॉनिटर करें। साइकेट्रिस्ट या थैरेपिस्ट जैसे एक्सपर्ट्स की सलाह लें। क्योंकि, आपके विचार या व्यवहार को जानने के तरीके सीखने की जरूरत है। यह तरीके आपको एक्सपर्ट्स बता सकते हैं, क्योंकि वे आपकी स्थिति को देखकर उपाय तैयार करेंगे, ताकि आप असहज न हों।
    अगर आप अपने स्तर पर इस बीमारी पर काम करना चाहते हैं तो ऐसी छोटी सोच जो आपको तकलीफ न दें, उन्हें नजरअंदाज करें। व्यवहार में बदलाव लाने पर चिंता कम करें। बार-बार आ रहे विचारों से बचने की कोशिश करें और खुद को टेस्ट करें कि क्या आप ऐसा कर पा रहे हैं या नहीं। धीरे-धीरे इसका स्तर बढ़ाएं।
    इसे खुद ट्रीट करना मुश्किल होता है। क्योंकि, यह एक बीमारी है और यह डर, भय और घबराहट की वजह बनती है। ऐसे में एक्सपर्ट्स से बात करना जरूरी है। लक्षण नजर आ रहे हैं तो परिवार या दोस्तों से इसके बारे में बात करें। इसमें फैमिली सपोर्ट बहुत जरूरी होता है।

    आम तरह के ओसीडी


    ओसीडी के ज्यादातर मरीज इनमें से किसी कैटिगरी में आते हैं :
    - बार-बार सफाई करने वाले गंदगी से डरते हैं। उन्हें आमतौर पर सफाई और बार-बार हाथ धोने का कंपल्शन होता है।
    - कुछ लोग बार-बार चीजों की जांच करते हैं (अवन बंद किया या नहीं, दरवाजा बंद किया या नहीं आदि)। उनके मन में इनके खतरे का डर होता है।
    - शंकालु और पाप से डरने वाले लोग यह सोचते हैं कि अगर सब कुछ ठीक ढंग से नहीं हुआ तो कुछ बुरा हो जाएगा या वे सजा के भागी बन जाएंगे।
    - गिनती करने वाले और चीजों को व्यवस्थित करने वाले क्रम और समानता से ऑब्सेस्ड होते हैं। उनमें से कुछ निश्चित संख्याओं, रंगों और अरेंजमेंट को लेकर अंधविश्वास हो सकता है।
    - चीजों को संभालकर रखने वाले इस बात से डरे होते हैं कि अगर उन्होंने कुछ बाहर फेंका तो कुछ बुरा होगा। अपने इसी डर की वजह से वे गैरजरूरी चीजों को भी संभालकर रखते हैं।
    नोट: लेकिन सिर्फ ऑब्सेसिव विचार और कंपल्शन की आदत होने का यह मतलब नहीं कि आपको ओसीडी है। ओसीडी में ये विचार और बिहेवियर गंभीर तनाव की वजह बन जाते हैं। व्यक्ति इसमें अपना ज्यादा-से-ज्यादा समय लगाने लगता है और ये काम उसके रुटीन और पारिवारिक संबंधों पर भी असर करने लगते हैं।
    कैसे पहचानें- इस समस्या से पीड़ित ज्यादातर लोगों में ऑब्सेशन और कंपल्शन दोनों देखा जाता है, लेकिन कुछ लोगों में सिर्फ एक ही समस्या भी हो सकती है।

    लक्षण और पहचान


    सिमेट्री – किसी चीज को बार-बार सही लाइन में रखना या ठीक क्रम में रहने के बावजूद उसको बार-बार ठीक करने की आदत। इनमें शामिल है:
    बार-बार किसी चीज को जांचना-
    अपने सामान या अन्य वस्तुओं को तब तक व्यवस्थित करने की मजबूरी जब तक वे बिल्कुल सही हैं ऐसा महसूस न करें।
    बार-बार किसी वस्तु की गिनती करना।
    बार-बार चेक करना कि दरवाजा ठीक तरह से बंद है या नहीं।
    सामग्री का खुद के अनुसार व्यवस्थित नहीं होने पर मन को ठेस पहुंचना। क्लिनिंग और कंटामिनेशन – बार-बार साफ सफाई करना या साफ चीजों को भी बार-बार गंदा समझकर साफ करना। ये लक्षण कुछ इस प्रकार हैं:

    बीमारी के बारे में लगातार चिंता

    शारीरिक या मानसिक रूप से खुद को गंदा महसूस करने का विचार।

    विषाक्त पदार्थों, वायरस या गंदगी के संपर्क में आने की लगातार चिंता।
    उन वस्तुओं से छुटकारा पाने की मजबूरी जिन्हें मन में गंदा मानते हैं भले ही वे गंदे न हों।
    दूषित वस्तुओं को धोने या साफ करने की मजबूरी महसूस होना।
    अपने हाथों और अन्य सामग्री को बार-बार साफ करना।
    होर्डिंग – ऐसी वस्तुओं को जमा करने की आदत जिसकी जरूरत न हो (5)। इसके अलावा, अपनी चीजों को खोने का डर या यह मानना कि अगर कोई चीज खो जाए तो कुछ बुरा हो सकता है। इनमें शामिल है
    लगातार चिंता करना कि कुछ फेंकने से खुद को या किसी और को नुकसान हो सकता है।
    अपने आप को या किसी और को नुकसान से बचाने के लिए एक निश्चित संख्या में वस्तुओं को इकट्ठा करने की आवश्यकता।
    दुर्घटनावश किसी महत्वपूर्ण या आवश्यक वस्तु को फेंकने का अत्यधिक भय, जैसे- संवेदनशील या आवश्यक जानकारी वाला मेल।
    एक ही वस्तु को बार-बार खरीदने की मजबूरी, जबकि उस वस्तु की आवश्यकता भी न हो।
    चीजों को फेंकने में कठिनाई क्योंकि उन्हें छूने से दूसरों को संक्रमण हो सकता है इस प्रकर से विचार आना।
    अपनी संपत्ति की बार-बार जांच करने की बाध्यता।
    अपनी मदद खुद करें

    1. ओसीडी के ख्यालों को नजरअंदाज करने के लिए अपना ध्यान कहीं और लगाएं। मसलन एक्सरसाइज, जॉगिंग, वॉकिंग, स्टडी, म्यूजिक सुनना, इंटरनेट सर्फिंग, विडियोगेम खेलना, किसी को फोन करना आदि। इसका मकसद है खुद को कम-से-कम 15 मिनट तक किसी ऐसे काम में बिजी रखना, जिससे आपको खुशी मिलती हो। ऐसा करने से आप कंपल्सिव बिहेवियर करने से खुद को रोक सकते हैं। यह देखा गया है कि आप जितनी ज्यादा देर तक खुद को ऐसा करने से रोक पाते हैं, उतनी जल्दी आपकी आदतों में बदलाव आता है।

    2. जब भी ऑब्सेसिव ख्याल आएं और कंप्लसिव बिहेवियर का मन कहे, आप इसे डायरी में नोट कर लें। ऐसा करने से आपको यह पता लगेगा कि आप इन बेकार की बातों में अपना कितना समय गंवा रहे हैं। एक ही बात बार-बार लिखने से आपकी नजरों में उसकी अहमियत कम होने लगेगी। चूंकि कोर्इ भी बात लिखना उस बारे में सोचने से ज्यादा मुश्किल काम है। ऐसे में थककर आप उसके बारे में सोचने से ही बचेंगे और धीरे-धीरे ये ख्याल आपके दिमाग में आने कम हो जाएंगे।
    3. ओसीडी की चिंता का समय तय करें। इसके लिए 10 मिनट का समय और जगह तय करें और अपने सारे ऑब्सेसिव ख्यालों को उस पीरियड के लिए टालें। उदाहरण के तौर पर शाम 8 बजे से 8:10 मिनट तक के समय को वरी पीरियड तय करें और इसके लिए लिविंग रूम की जगह तय करें। इस पीरियड में शांति से बैठें और सिर्फ अपने नेगेटिव विचारों पर ध्यान लगाएं। इन्हें ठीक करने की चिंता बिल्कुल न करें। वरी पीरियड के आखिर में कुछ गहरी सांस लें। ऑब्सेसिव ख्यालों को अपने मन से निकल जाने दें और अपने सामान्य कामों में लग जाएं। ऐसा करके आप दिन के बाकी समय और रात को नींद के दौरान अपने आप को नेगेटिव विचारों से बचा सकते हैं।
    4. अपने ओसीडी ऑब्सेशन का टेप बनाएं। इसे टेप रिकॉर्डर, लैपटॉप या स्मार्ट फोन में टेप करें। आपके दिमाग में आने वाले ऑब्सेसिव ख्यालों, लाइनों या कहानियों की गिनती करें। इस टेप को रोजाना 45 मिनट के लिए सुनें। बार-बार एक ही तरह के ऑब्सेशन के बारे में सुनकर आपको यह बात समझ आ जाएगी कि इसकी वजह ओसीडी है और कुछ ही दिनों में आपको ये बातें परेशान करना बंद कर देंगी।
    5. अपना ध्यान रखें। एक स्वस्थ और संतुलित लाइफस्टाइल आपको ओसीडी बिहेवियर, डर और चिंताओं से दूर रखने में सहायक साबित होगी। इसके लिए रिलैक्सेशन तकनीक सीखें। ध्यान, योग और डीप ब्रीदिंग तकनीक अपनाएं। ऐसा दिन में कम-से-कम 30 मिनट के लिए करें।
    6. बेहतर खान-पान की आदत डालें। खाने में साबुत अनाज, फल, सब्जियां आदि शामिल करें। इससे न सिर्फ आपका ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहेगा, बल्कि आपके शरीर में सेरोटोनिन बढ़ेगा, जो एक न्यूरोट्रांसमीटर है और दिमाग को शांत करता है।
    7. रेग्युलर एक्सरसाइज करें। एरोबिक एक्सरसाइज से तनाव कम होता है और शारीरिक व मानसिक एनर्जी बढ़ती है। एंडॉर्फिन आपके दिमाग को खुशी का अहसास कराता है। रोजाना 30 मिनट एक्सरसाइज करें।
    8. अल्कोहल और निकोटिन से दूर रहें और भरपूर नींद लें। 
    9. परिवार और दोस्तों के कॉन्टैक्ट में रहें।

    जुनूनी बाध्यकारी विकार के लिए शीर्ष  होम्योपैथिक उपचार

    1. आर्सेनिकम एल्बम: मौत के लगातार विचारों के लिए

    आर्सेनिकम एल्बम मृत्यु के लगातार विचारों के साथ जुनूनी बाध्यकारी विकार के लिए शीर्ष प्राकृतिक दवा है। आर्सेनिकम एल्बम ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के रोगियों के लिए बहुत मददगार है, जिनके पास मौत के लगातार विचार हैं और इस तरह कोई दवा नहीं लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी मृत्यु बहुत निकट है और इस स्तर पर कोई भी दवा लेने का कोई फायदा नहीं है। ऐसे रोगियों को अपने आस-पास के लोगों की आवश्यकता होती है और वे अकेले नहीं रह सकते क्योंकि वे अकेले होने पर बुरा महसूस करते हैं। मृत्यु के विचार साथअत्यधिक बेचैनी, जहां रोगी बिस्तर से कूद जाता है और चिंता के साथ इधर-उधर चला जाता है, प्राकृतिक होम्योपैथिक दवा आर्सेनम एल्बम के साथ भी इलाज किया जा सकता है।

    2. अर्जेंटीना नाइट्रिकम: इंपल्सिव विचार के लिए

    अर्जेन्टम नाइट्रिकम ओब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर के रोगियों के इलाज के लिए सबसे अच्छी प्राकृतिक दवा है, जो लगातार आवेगी विचार रखते हैं। इन आवेगी विचारों में अलग-अलग लक्षण प्रस्तुतियां हो सकती हैं जैसे ट्रेन में यात्रा करते समय लगातार आवेगी विचार खिड़की से बाहर कूदना है; एक नदी पर एक पुल को पार करते समय, निरंतर विचार नदी में कूदना है या ऊंची इमारतों पर खड़े होने पर नीचे कूदने का भयावह विचार है। जुनूनी बाध्यकारी विकार के रोगियों के लिए प्राकृतिक होम्योपैथी उपाय Argentum Nitricum की सिफारिश करने के लिए एक और उल्लेखनीय विशेषता यह है कि आवेगी विचार रोगी को बहुत चिंतित और बेचैन करते हैं। इससे ऐसे आवेगपूर्ण विचारों से छुटकारा पाने के लिए अत्यधिक और निरंतर चलना पड़ता है और व्यक्ति तब तक चलता है जब तक कि शरीर की सारी ताकत खो नहीं जाती।

    3. जहां हर चीज को ऑर्डर देने की प्रवृत्ति हो

    तीनोजुनूनी बाध्यकारी विकार के लिए सबसे अच्छा उपचारउन रोगियों को प्राकृतिक उपचार प्रदान करते हैं जिनके पास सब कुछ डालने की मजबूरी है, नक्स वोमिका, आर्सेनिकम एल्बम औरCarcinosinum। जिन रोगियों को प्राकृतिक चिकित्सा नक्स वोमिका की आवश्यकता होती है, वे सतर्क और गुस्सैल स्वभाव के होते हैं, जो आदेश के अनुसार सभी चीजों की मांग करते हैं और आसानी से क्रोधित हो जाते हैं यदि आदेश का पालन नहीं किया जाता है। आर्सेनिकम एल्बम जुनूनी बाध्यकारी विकार के उन रोगियों के लिए बहुत लाभ का एक प्राकृतिक होम्योपैथिक उपाय है जो चीजों के क्रम के बारे में बहुत सचेत हैं और अगर चीजें उनके उचित स्थान पर नहीं हैं तो वे आराम नहीं कर सकते हैं। यह मजबूरी इस हद तक जा सकती है कि भले ही दीवार पर लटकी हुई कोई पेंटिंग थोड़ी झुकी हो, मन तब तक आराम नहीं करता जब तक कि उसे ठीक से रखा न जाए और मरीज इसके लिए हर दूसरे काम को छोड़ दे। ऐसे मरीज कपड़ों में भी साफ-सफाई की मांग करते हैं। कार्सिनोसिनम जुनूनी बाध्यकारी विकार के रोगियों के लिए प्राकृतिक होम्योपैथिक उपाय है जो स्वच्छता के बारे में बहुत चिंतित हैं और चाहते हैं कि न केवल चीजों को रखने में, बल्कि उनकी ड्रेसिंग शैली में भी एक विशिष्ट पैटर्न का पालन किया जाए। उदाहरण के लिए, वे हमेशा ड्रेस अप करते समय रंग मिलान पसंद करते हैं और कमरे को सजाते समय भी। वे इस हद तक किए गए हर काम में पूर्णता की मांग करते हैं कि यह सामान्य प्रतीत नहीं होता है या नहीं दिखता है।

    4. नेट्रम मुरीआटिकम – बार-बार बंद दरवाजों की जांच करने की मजबूरी

    नैट्रम म्युरेटिकम ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के उन रोगियों के लिए सबसे अच्छा प्राकृतिक उपचार है जो इस विचार से ग्रस्त हैं कि चोर हड़ताल कर सकते हैं और बार-बार दरवाजों के ताले की जांच कर सकते हैं। जुनून इतना लगातार है कि रोगी घर में भी चोरों के सपने देखता है और बार-बार दरवाजे की जांच करने के लिए उठता है।

    5. सिफलिनम और मेदोरिन्हिनम – जहाँ हाथ धोने की मजबूरी है

    जुनूनी बाध्यकारी विकार के रोगियों के लिए सिफलिनम और मेडोरिनिनम बहुत अच्छी प्राकृतिक दवाएं हैं जो किसी भी वस्तु को छूने से अपने हाथों को दूषित या गंदा होने के लगातार विचार के कारण बार-बार अपने हाथों को धोने की मजबूरी महसूस करते हैं। ऐसे रोगियों को लगता है कि कीटाणु हर एक वस्तु पर मौजूद होते हैं और बहुत कम अंतराल पर हाथ धोने की आदत डाल लेते हैं, बिना अपने जीवन के अन्य महत्वपूर्ण काम पर ध्यान दिए बिना।

    6. कैल्केरिया कार्बोनिका – पागल या पागल होने के लगातार विचार के लिए

    कैल्केरिया कार्बोनिका, जुनूनी बाध्यकारी विकार के रोगियों के लिए बड़ी मदद की एक प्राकृतिक दवा है, जो मानसिक रूप से थक चुके हैं और लगातार पागल या पागल होने के बारे में सोचते हैं। पागल होने की यह सोच दिन-रात रोगी के मन में बनी रहती है और वह नींद के दौरान भी इसे नहीं लगा पाता है। पागल हो जाने के इस डर से बड़ी तकलीफ होती है और इसे दूर करने के लिए, रोगी सभी लंबित कामों को एक तरफ छोड़ देता है और खुद को या खुद को लाठी तोड़ने या झुकने में व्यस्त रखता है।

    7. लगातार धार्मिक विचारों के साथ

    प्राकृतिक दवाएँ स्ट्रैमोनियम और पल्सेटिला ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर के रोगियों में लगातार धार्मिक विचारों से निपटने में समान रूप से अच्छी हैं जहाँ मरीज लगातार धर्म के बारे में सोचता है और हर समय पवित्र पुस्तकों को पढ़ता है और लगभग हमेशा प्रार्थना करता है।

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