एलर्जी या अति संवेदनशीलता आज की लाइफ में बहुत तेजी से बढ़ती हुई सेहत की बड़ी परेशानी है कभी कभी एलर्जी गंभीर परेशानी का भी सबब बन जाती है जब हमारा शरीर किसी पदार्थ के प्रति अति संवेदनशीलता दर्शाता है तो इसे एलर्जी कहा जाता है और जिस पदार्थ के प्रति प्रतिकिर्या दर्शाई जाती है उसे एलर्जन कहा जाता है lआमतौर पर जब कोई नाक, त्वचा, फेफड़ों एवं पेट का रोग पुराना हो जाता है। और उसका इलाज नहीं होता तो अकसर लोग उसे एलर्जी कह देते हैं। बहुत सारे ऐसे रोगी जीवा में उपचार के लिए आते हैं और यह बताते हैं कि उन्हें एलर्जी है, लेकिन क्या है यह एलर्जी इसका ज्ञान हमें अकसर नहीं होता। यदि रोग के बारे में ज्ञान नहीं है तो उसका उपचार कैसे होगा।
क्या है एलर्जी?
एलर्जी हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति की कुछ बाहरी तत्वों, जैसे पराग कण, धूल, भोजन इत्यादि के प्रति अस्वाभाविक प्रतिक्रिया का नाम है। पूरे विश्व में यह रोग तेजी से फैल रहा है। आजकल युवा अवस्था एवं बाल्यावस्था में भी एलर्जी रोग देखने में आता है। एलर्जी प्रतिक्रिया करने वाले तत्वों को एलरजेन कहा जाता है। ये एलरजेन या एलर्जी पैदा करने वाले तत्व वास्तव में कोई हानिकारक कीटाणु या विषाणु नहीं बल्कि अहानिकर तत्व होते हैं, जैसे गेहूं, बादाम, दूध, पराग कण या वातावरण में मौजूद कुछ प्राकृतिक तत्व। यही कारण है कि सभी लोगों को ये हानि नहीं पहुंचाते। एक ही घर में, एक ही प्रकार के वातावरण से एक व्यक्ति को एलर्जी होती है तो दूसरे को नहीं। आखिर क्या कारण होता है एलर्जी का? क्यों किसी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक शक्ति हानिकारक प्रतिक्रिया करती है?
एलर्जी के कारण
आयुर्वेद के अनुसार एक स्वस्थ व्यक्ति में धातुओं और दोषों की साम्यावस्था होती है। इसी कारण उनकी रोग प्रतिरोध शक्ति किसी एलरजेन के सम्पर्क में आकर भी प्रतिक्रिया (एलर्जी पैदा नहीं करती) धातु और दोष जब साम्य रहते हैं तो हमारे शरीर की ओज शाक्ति उत्तम होती है। उत्तम ओज, यानि उत्तम रोग प्रतिरोधक शक्ति हमारे शरीर से नियमित रूप से हानिकारक तत्वों को निष्कासित करती है और उसमें किसी प्रकार की प्रतिक्रिया भी नहीं होती।
आयुर्वेद के अनुसार एलर्जी का मूल कारण है असामान्य पाचक अग्नि, कमजोर ओज शक्ति, और दोषों एवं धातुओं की विषमता। इसमें भी अधिक महत्व पाचक अग्नि का माना गया है। जब पाचक अग्नि भोजन का सही रूप से पाक नहीं कर पाती है तो भोजन अपक्व रहता है। इस अपक्व भोजन से एक चिकना विषैला पदार्थ पैदा होता है जिसे ‘आम’ कहते हैं। यह आम ही एलर्जी का मूल कारण होता है। यदि समय रहते इस आम का उपचार नहीं किया जाए तो यह आतों में जमा होने लगता है और पूरे शरीर में भ्रमण करता है। जहां कहीं इसको कमजोर स्थान मिलता है वहां जाकर जमा हो जाता है और पुराना होने पर आमविष कहलाता है। आमविष हमारी ओज शक्ति को दूषित कर देता है। इसके कारण, जब कभी उस स्थान या अवयव का सम्पर्क एलरजेन से होता है तो वहां एलर्जी प्रतिक्रिया होती है।
यदि आमविष त्वचा में है तो एलरजन के सम्पर्क में आने से वहां पर खुजली, जलन, आदि लक्षण होते है, यदि आमविष श्वसन संस्थान में है तो श्वास कष्ट, छीकें आना, नाक से पानी गिरना, खांसी इत्यादि और यदि पाचन संस्थान में है तो अतिसार, पेट दर्द, अर्जीण आदि लक्षण होते हैं।
पाचक अग्नि के अतिरिक्त वात, पित्त, कफ के वैषम्य से भी ओज शक्ति क्षीण एवं दूषित होती है जिसकी वजह से एलर्जी हो सकती है। आजकल तनाव, नकारात्मक सोच, शोक, चिन्ता आदि भी हमारे पाचन पर असर डालते हैं, जिससे आम पैदा होता है। इसलिए कुछ लोगों में एलर्जी का मूल कारण मानसिक विकार भी माना गया है। इसके अतिरिक्त एलर्जी रोग को अनुवांशिक यानि हैरीडेटरी भी माना गया है। क्योंकि कुछ लोगों में जन्म से ही पाचक अग्नि एवं ओज शक्ति क्षीण या कमजोर होते है।
आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेद में एलर्जी का सफल इलाज है। आयुर्वेदिक उपचार रोग के मूल कारण को नष्ट करने में सक्षम होने के कारण रोग को जड़ से ठीक करता है। एलर्जी के उपचार में आमविष के निस्कासन के लिए औषधि दी जाती है। इसलिए सर्वप्रथम शोधन चिकित्सा करते हैं, जिससे शरीर में जमे आम विष को नष्ट किया जाता है। इसके अतिरिक्त दोषों एवं धातुओं को साम्यावस्था में लाकर ओज शक्ति को स्वस्थ बनाया जाता है। यदि रोगी मानसिक स्तर पर अस्वस्थ है तो उसका उपचार किया जाता है और एलर्जी के लक्षणों को शान्त करने के लिए भी औषधि दी जाती है।
उचित उपचार के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें और उनके द्वारा दी गई। औषधियों का नियमित रूप से सेवन करें। रोग पुराना एवं कष्ट साध्य होने के कारण ठीक होने में कुछ समय लेगा, इसलिए संयम के साथ चिकित्सक के परामर्शनुसार औषधियों एवं आहार-विहार का सेवन करें। यदि आप एलर्जी से पीड़ित हैं तो औषधियों के साथ-साथ निम्न उपचारों के प्रयोग से भी आपको लाभ मिलेगा।
घरेलू उपचार
पानी में ताजा अदरक, सोंफ एवं पौदीना उबालकर उसे गुनगुना होने पर पीयें।, इसे आप दिन में 2-3 बार पी सकते हैं। इससे शरीर के स्रोतसों की शुद्धि होती है एवं आम का पाचन होता है।
लघु एवं सुपाच्य भोजन करें जैसे लौकी, तुरई, मूंग दाल, खिचड़ी, पोहा, उपमा, सब्जियों के सूप, उबली हुई सब्जियां, ताजे फल, ताजे फलों का रस एवं सलाद इत्यादि। सप्ताह में एक दिन उपवास रखें, केवल फलाहार करें। नियमित रूप से योग और प्राणायाम करें। रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण लें और हर रोज और हर रोज एक बड़ा चम्मच च्यवनप्राश लें।एक बड़ा चम्मच च्यवनप्राश लें|
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