काकजंघा आयुर्वेद में मानी हुई औषधि है किंतु वर्तमान में जानकारी न् होने के कारण लुप्त प्रायः और जंगली पौधा समझ के उखाड़ दी जाती है।
आयुर्वेद के अनुसार :-
काकजंघा स्नेहन (तैलीय) और संग्राहक (अर्थात इसके सेवन से व्यक्ति का मन प्रसन्न और शांत रहता है) होता है ।
यह पेट की जलन और त्वचा की सुन्नपन को दूर करता है। पाचन शक्ति, टी.बी. रोग से उत्पन्न घाव, पित्तज्वर, खुजली और सफेद कोढ़ में इसका उपयोग लाभकारी होता है।
विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. बहरापन:
काकजंघा का आधा किलो रस निकालकर, 250 मिलीलीटर तेल में मिलाकर पकाएं और जब यह पकते-पकते केवल तेल ही बाकी रह जाए तो उसे छानकर रख लें। इस तैयार तेल को सुबह-शाम कान में डालने से बहरापन दूर होता है।काकजंघा के पत्तों का रस निकालकर गर्म करके कान में डालने से बहरापन ठीक होता है।
2. जलोदर: काकजंघा व हींग को पीसकर पीने से जलोदर नष्ट होता है।
3. नींद न आना (अनिद्रा): काकजंघा की जड़ को सिर के बालों पर बांधने से नींद अच्छी आती है।
4. सफेद प्रदर में-
सफेद प्रदर की बीमारी से बचने के लिए चावल के पानी के साथ काकजंघा की जड़ के पेस्ट के साथ सेवन किया जाता है।
5. वात रोग में-
वात रोग में घी के साथ दस ग्राम काकजंघा के रस को मिलाकर सेवन करने से वात रोग से निजात मिलता है।
6. कान की समस्या-
यदि कान में कीड़ा चला गया हो तो आप काकजंघा के पत्ते से बने रस की कुछ बूंदे कान में टपकाएं आपको आराम मिलेगा।
7. खुजली व दाद में-
यदि दादए खाज व खुजली की समस्या हो रही हो तो आप काकजंघा के रस से शरीर की मालिश करें। आपको आराम मिलेगा।
8. खून की गंदगी होने पर-
यदि खून में विकार आ गया हो तो आप काकजंघा का काढ़ा बनाकर सेवन करें। यह खून की गंदगी को साफ करता है।
9. विष व जहरीले कीड़े के काटने पर-
यदि शरीर में किसी जहरीले कीड़े ने डंक या काट लिया हो तो आप काकजंघा के पेस्ट को लोहे के चाकू पर लगाकर उस जगह पर मलें जहां पर कीड़े ने काटा है।
इसके अलावा यह औषधिय पौधा फोड़े.फुंसी, गहरे घाव, कुष्ठ आदि रोगों को ठीक करता है। काकजंघा एक शीतल और खुश्क पौधा है। जो त्वचा से संबंधित रोगों को ठीक करता है। बुखार, गठिया और कृमि जैसी गंभीर बीमारियों से आपको बचाता है यह पौधा।
तन्त्रोक्त प्रयोग:-
वशीकरण :-
1. काले कमल, भवरें के दोनों पंख, पुष्कर मूल, काकजंघा – इन सबको पीसकर सुखाकर चूर्ण बनाकर जिसके भी सर या मस्तक पर डाले वह वशीभूत होगा।
2. काकजंघा, लजालू, महुआ, कमल की जड़ और स्ववीर्य को मिलाकर तिलक करने से किसी को भी वश में किया जा सकता है। ( सेल्स, प्रोपर्टी के काम के लिए उत्तम)
4. चन्दन, तगर, काकजंघा, कूठ, प्रियंगु, नागकेसर और काले धतूरे का पंचांग सम्भाग पीस कर एक सप्ताह तक अभिमंत्रित कर जिसे खिलादिया जायेगा वो सदा सेवक बना रहेगा।
स्त्री वशीकरण :-
1. काकजंघा, तगर, केसर, कमल केसर इन सबको पीसकर स्त्री के मस्तक पर तथा पैर के नीचे डालने पर वह वशीभूत होती है।
2. शनिवार को विधि पूर्वक निमंत्रण दे कर हस्त या पुनर्वसु नक्षत्र युत रविवार को कपित्थ कील से काकजंघा मूल निकाल लें, फिर उसे सुखा कर चूर्ण बनाकर स्ववीर्य, पंचमैल और मध्यमा उंगली के रक्त से मिश्रित कर छोटी छोटी गोलियां बना लें। इन्हें अभिमंत्रित कर ये जिस भी स्त्री को खिला दी जायेगी वो आजीवन वश में रहेगी।
3. तन्त्रोक्त विधि से रविवार युक्त हस्त या पुष्य नक्षत्र में उत्खनित श्वेत गुंजा एवं काकजंघा मूल के चूर्ण को गोरोचन, श्वेत चन्दन, रक्त चंदन , जटामांसी, केसर कपूर और गजमद संग गुटिका बनाकर अभिमंत्रित कर जो तिलक करेगा वो किसी भी स्त्री को इच्छित भाव से देखेगा तो प्रबल वशीकरण होगा।
उच्चाटन :-
1. ब्रह्मदंडी, काकजंघा, चिता भस्म और गोबर का क्षार मिलाकर जिस पर भी डालेंगे उस व्यक्ति का उच्चाटन हो जायेगा।
2. ब्रह्मदंडी, काकजंघा और सर्प की केंचुली की धूप शत्रु का स्मरण करते हुए देने से उसका शीघ्र उच्चाटन हो जाता है।
सर दर्द:-
काकजंघा के पौधे की जड़, द्रोण पुष्पी की जड़ या मजीठ के पौधे की जड़ लें।
जड़ को सफेद सूत के धागे में बाँध कर मन्त्र सिद्ध गंडा तैयार करें। इसे रोगी के माथे पर बाँध दें। ऐसा करने से सिर का दर्द चाहे जैसा हो और जितना भी पुराना हो, शीघ्र दूर हो जाएगा।