लसोड़ा को हिन्दी में ‘गोंदी’ और ‘निसोरा’ भी कहते हैं। इसके फल सुपारी के बराबर होते हैं। कच्चा लसोड़़ा का साग और आचार भी बनाया जाता है। पके हुए लसोड़े मीठे होते हैं और इसके अन्दर गोंद की तरह चिकना और मीठा रस होता है। लसोड़ा मध्यभारत के वनों में देखा जा सकता है, यह एक विशाल पेड़ होता है जिसके पत्ते चिकने होते है, आदिवासी अक्सर इसके पत्तों को पान की तरह चबाते हैं।
इसकी लकड़ी इमारती उपयोग की होती है। इसे रेठु के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि इसका वानस्पतिक नाम कार्डिया डाईकोटोमा है। आदिवासी लसोड़ा का इस्तेमाल अनेक रोगनिवारणों के लिए करते हैं।
लसोड़ा के फायदें..
👉लसोड़ा की छाल को पानी में घिसकर प्राप्त रस को अतिसार से पीड़ित व्यक्ति को पिलाया जाए तो आराम मिलता है।
👉छाल के रस को अधिक मात्रा में लेकर इसे उबाला जाए और काढ़ा बनाकर पिया जाए तो गले की तमाम समस्याएं खत्म हो जाती है।
👉लसोड़े की छाल को पानी में उबालकर छान लें| इस पानी से गरारे करने से गले की आवाज खुल जाती है|
👉इसके बीजों को पीसकर दाद-खाज और खुजली वाले अंगो पर लगाया जाए, आराम मिलता है।
👉लसोड़ा के फलों को सुखाकर चूर्ण बनाया जाता है। इस चूर्ण को मैदा, बेसन और घी के साथ मिलाकर लड्डू बनाते हैं। इस लड्डू के सेवन शरीर को ताकत और स्फूर्ती मिलती है।
लसोड़ा के पत्तों का रस प्रमेह और प्रदर दोनों रोगों के लिए कारगर होता है। लसोड़ा की छाल का काढा तैयार कर माहवारी की समस्याओं से परेशान महिला को दिया जाए तो आराम मिलता है।
👉इसकी छाल की पानी के साथ उबाला जाए और जब पानी एक चौथाई शेष रहे तो इससे कुल्ला करने से मसूड़ों की सूजन, दांतो का दर्द और मुंह के छालों में आराम मिल जाता है।
👉छाल का काढ़ा और कपूर का मिश्रण तैयार कर सूजन वाले हिस्सों में मालिश की जाए तो फायदा होता है।
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