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22.8.23

रोगों का इलाज फूलो-पत्तियों से : क्या है तरीका?

 




भारतीय आयुर्वेद (Ayurveda) में विभिन्न प्राकर के फूलों का इस्तेमाल बहुत पहले से ही होता रहा है. कहते हैं कि कुछ खास प्रकार के फूल (Special Flowers) बीमारियों को ठीक करने में सक्षम होते हैं. इन फूलों का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है. फूल हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग हैं और यह न केवल आपके आसपास की सुंदरता को बढ़ाते हैं बल्कि पोषण और औषधीय उपयोग के लिए भी इस्तेमाल होते हैं. सुंदर से दिखने वाले कई तरह के फूलों में त्वचा की समस्याओं से लेकर कई तरह के संक्रमण (Infection) तक को ठीक करने की शक्ति होती है. आपको बता दें कि कुंभी फूल, गुलाब और केसर के फूल का औषधीय प्रयोजनों के लिए इस्‍तेमाल किया जाता है. इनका सेवन पंखुड़ियों के रूप में या जूस और काढ़े के रूप में भी किया जा सकता है. इसे टिंचर के रूप में शरीर पर लगाया जा सकता है. यदि आपको घाव हो जाए या कहीं चोट लग जाए तो आपको गेंदे के फूल का रस वहां लगाना चाहिए। ये एंटीसेप्टिक होता है और घाव भरने में करागर होता है। फोड़े-फुंसी हो जाए तो गेंदे कि पत्तियों को पीस कर वहां लगा दें।
गुलाब स्कर्वी के उपचार और गुर्दे से जुड़ी समस्याओं पर बेहद कारगर होता है। गुलाब का फूल विटामिन सी की कमी को पूरा करने में भी सहायक है। इसे आप किसी भी रूप में लें ये आपके शरीर को डिटॉक्स भी करता है।
गुलाब की कलियों का अर्क यूरिन से जुड़ी बीमारियों को दूर करता है। साथ ही पेट की जलन को शांत भी करता है।
गुलाब की पंखुड़ियां को पीस कर अगर पीएं या शरीर पर लगा लें तो गर्मी के कारण हो रहे सिर दर्द और बुखार को ठीक किया जा सकता है। साथ ही ये झाइयों को दूर करने में भी कारगर है।

पुष्पों के औषधीय प्रयोग-

पुष्प शीत-गरमी-वर्षा पूरे वर्ष रंग-बिरंगे, परस्पर प्रतिस्पर्धा करते हुए, विभिन्न आकार-प्रकार में दृष्टिगोचर होते हैं। फूलों को शरीर पर धारण करने से शोभा, कांति, सौंदर्य और श्री की वृद्धि होती है। इनको प्राचीनकाल से रानी-महारानी अपनी त्वचा को कोमल बनाने में तथा शृंगार में उपयोग करती रही हैं। जंगली आदिवासी आभूषण बनाने तथा केश सज्जा में करते हैं। फूलों की सुगंध रोग नाशक भी है। इनके सुगंधित परमाणु वातावरण में घुलकर नासिका की झिल्ली में पहुँचकर अपनी सुगंध का एहसास कराते हैं, जिससे मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्सों पर प्रभाव दिखाकर उत्तेजना-सी अनुभव कराते हैं। जिनका मस्तिष्क, हृदय, आँख, कान, पाचन क्रिया, रति क्रिया पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। थकान को तुरंत दूर करते हैं। इसकी सुगंध से की गयी उपचार-प्रणाली को ‘ऐरोमा थैरेपी’ कहते हैं। पुष्पों के कुछ औषधीय प्रयोग निम्न हैं-


कमल-

कमल और लक्ष्मी का संबंध अविभाज्य है। कमल सृष्टि की वृद्धि का द्योतक है। इसके पराग से मधुमक्खी शहद तो बनाती ही है, इसके फूलों के गुलकंद का प्रत्येक प्रकार के रोगों में, कब्ज निवारण के लिए उपयोग किया जाता है। फूल के अदंर हरे रंग के दाने-से निकलते हैं जिन्हें भूनकर मखाने बनाये जाते हैं, लेकिन उनको कच्चा छीलकर खाना स्तंभन में उपनयोगी होता है। इसका गुण शीत वीर्य है। इसका प्रयोग सबसे अधिक अंजन की भांति नेत्रों में ज्योति बढ़ाने के लिए, शहद में मिलाकर किया जाता है। इसी कारण आँख को ‘कमल नयन’ भी कहते हैं। पंखुड़ियों को पीसकर उबटन में मिलाकर मलने से चेहरे की सुंदरता बढ़ती है।


केवड़ा-

इसकी गंध कस्तूरी-जैसी मादक होती है। इसके पुष्प दुर्गन्धनाशक मदनोन्मादक हैं। इसका तेल उत्तेजक श्वास विकार में लाभकारी है। सिरदर्द और गठिया में इसका इत्र उपयोगी है। इसकी मंजरी का उपयोग पानी में उबालकर कुष्ठ, चेचक, खुजली, हृदय रोगों में स्नान करके किया जा सकता है। इसका अर्क पानी में डालकर पीने से सिरदर्द तथा थकान दूर होती है। बुखार में एक बूँद देने से पसीना बाहर आता है। इत्र की दो बूँद कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है।


गुलाब-

आशिक मिजाजी, प्रेम का प्रतीक गुलाब है। इसका गुलकंद रेचक है, जो पेट व आँतों की गरमी शांत कर हृदय को प्रसन्नता प्रदान करता है। गुलाब जल से आँखें धोने से आँखों की लाली, सूजन कम होती है। इसका इत्र कामोत्तेजक है। इसका तेल मस्तिष्क को ठंडा रखता है। गुलाब का अर्क मिठाइयों में प्रयोग किया जाता है। गर्मी में इसका प्रयोग शीतवर्द्धक है।


चंपा-

इसके फूलों को पीसकर कुष्ठ रोग के घाव में लगाया जा सकता है। इसका अर्क रक्त के कृमि को नष्ट करता है। फूलों को सुखाकर चूर्ण खुजली में उपयोगी है। ज्वरहर, मूत्रल, नेत्र ज्योति वर्द्धक तथा पुरुषों को रतिदायक उत्तेजना प्रदान करता है। कहावत है ‘चंपा एक चमेली सौ’ अर्थात सौ चमेली पुष्पों के बराबर एक चंपा पुष्प होता है।


सौंफ (शतपुष्पा)-

सौंफ के पुष्पों को पानी में डालकर उबालें, साथ में एक बड़ी इलायची तथा कुछ पोदीना के पत्ते भी लें। अच्छा यह रहेगा कि मिट्टी के बर्तन में उबालें। पानी को ठंडा करके दाँत निकलने वाले बच्चे या छोटे बच्चे जो गर्मी से पीड़ित हों, एक-एक चम्मच कई बार दें, तो उनको पेट में पीड़ा इत्यादि शांत होगी तथा दाँत भी ठीक प्रकार निकलेंगे।


धतूरा-

यह मादक तथा विषैला पौधा है, जिनको उन्माद रोग के कारण अनिद्रा रोग हो, उन्हें फूलों को एकत्रित करके बारीक कपड़े में बाँधकर सिरहाने रखने से निद्रा आना शुरू हो जाती है।


गैंदा-

मलेरिया के मच्छरों का प्रकोप सारे देश में है, लेकिन इनकी खेती यदि गंदे नालों और घर के आसपास की जाए, तो इसकी गंध से मच्छर दूर भागते हैं। यह जंगली फूलों वाला पौधा है, जो आसानी से एक बार बोने पर लग जाता है। लीवर की सूजन, पथरी-नाशक, चर्मरोगों में इसका प्रयोग किया जा सकता है।


बेला-

अत्यधिक सुगंध का गर्मी में अधिकता से फूलने वाला पौधा है, लेकिन आजकल घरों में इसे कम लगाते हैं। गर्मी में इसके हार या पुष्पों को अपने पास रखने से पसीने में गंध नहीं आती है। महिलाएँ इसको केश-सज्जा में बहुत प्रयोग करती हैं। इसकी सुगंध प्रदाह नाशक है। स्त्रियों के गर्भाशय में उत्तेजना को प्रदान करने वाला एकमात्र पुष्प है, रतिदायक है। इसकी कलियाँ चबाने से मासिक खुलकर आता है।


रात की रानी-

इसकी गंध इतनी तीव्र होती है कि पड़ोसियों तक को लुभायमान कर देती है। यह सायं ७ से ११ बजे रात्रि तक खुशबू अधिक देता है। इसके बाद सुप्त हो जाता है। इसकी गंध में मच्छर नहीं आते। इसकी गंध मादकता और निद्रादायक है।


सूरजमुखी-

विटामिन ए/डी होता है। सूर्य की रोशनी न मिलने के कारण होने वाले रोगों को रोकता है। इसकी खेती व्यापारिक स्तर पर लाभकर है। इसका तेल हृदय रोगों में कोलेस्ट्रोल को कम करता है।


चमेली-

चर्म रोगों की औषधि, पायरिया, दंतशूल, घाव, नेत्ररोगों और फोड़ों-फुंसियों में इसका तेल बनाकर उपयोग किया जाता है। इसका तेल बाजीकरण में मालिश के योग्य है। शरीर में रक्त संचार की मात्रा बढ़ाकर स्फूर्तिदायक बन जाता है। इसके पत्ते चबाने से मुँह के छाले तुरंत दूर होते हैं। इसकी माला रति इच्छा बढ़ाने में सहायक है।


केसर-

मन को प्रसन्न करता है। चेहरे को कांतिवान बनाता है। रज दोषों का नाशक, शक्तिवर्द्धक, वमन को रोककर वात, पित्त, कफ (त्रिदोषों का) नाशक है। तंत्रिकाओं में व्याप्त उद्विगन्ता एवं तनाव को केसर शांत रखता है, इसलिए इसे प्रकृति प्रदत्त ‘ट्रैंकुलाइजर’ भी कहा जाता है। यह काम तथा रति में उद्दीपन का कार्य करता है, अतः दूध या पान के साथ सेवन योग्य है।


अशोक-

यह मदन वृक्ष भी कहलाता है। इसके फूल, छाल, पत्तियों का स्त्रियों की औषधि में उपयोग किया जा सकता है। अशोक का अर्थ है जिसको पाकर शोक न रहे। छाल का आसव बनाकर पीने से स्त्रियों की अधिकांश बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं।


ढाक (पलाश)-

इसको अप्रतिम सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि इसके गुच्छेदार फूल बहुत दूर से ही आकर्षित करते हैं। इसी आकर्षण के कारण वन की ज्योति भी कहते हैं। इसका चूर्ण पेट के किसी भी प्रकार के कृमि का हनन करने में सहायक है। इसके पुष्पों को पानी के साथ पीसकर लुगदी बनाकर पेडू पर रखने से पथरी के कारण दर्द होने या मूत्र न उतरने पर मूत्रल का कार्य करता है।


गुड़हल (जवा)-

गणेश एवं काली देवी का प्रिय है। इसका पूर्ण संबंध गर्भाशय से है। ऋतु काल के बाद यदि फूल को घी में भूनकर महिलाएँ सेवन करें, तो उन्हें ‘गर्भ-निरोध’ हो सकता है। मुँह के छाले दूर हो जाते हैं। इसके फूलों को पीसकर बालों में लेप लगाने से बालों का गंजापन मिटता है। यह उन्माद को दूर करने वाला एकमात्र पुष्प है। शीतवर्द्धक, वाजीकारक, रक्तशोधक, सूजाक रोग में गुलकंद या शरबत बनाकर दिया जा सकता है। शरबत हृदय को फूल की भाँति प्रफुल्लित करने वाला रुचिकर है।

गुलमोहर से इलाज 

आयुर्वेद में असरदार औषधि माने जाने वाले गुलमोहर में तमाम औषधीय गुण पाए जाते हैं। यही कारण है कि इनका इस्तेमाल पुराने समय से लोग बीमारियों के इलाज में करते आ रहे हैं। गुलमोहर के इस्तेमाल से बवासीर की बीमारी और गठिया जैसी गंभीर समस्या का भी इलाज किया जाता है। इसकी पत्तियों और फूल में तमाम औषधीय गुण मौजूद होते हैं। खासतौर से इसमें एंटी-डायबिटिक, एंटी-बैक्टीरियल, एंटीऑक्सीडेंट्स, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-डायरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं जो शरीर के लिए कई तरह से उपयोगी होते हैं। गुलमोहर के फूल, फल, पत्तियों और तने में ये औषधीय गुण मौजूद होते हैं।फूल - एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीमाइरियल, एंटीमाइक्रोबियल, एंटीऑक्सिडेंट, कार्डियो-प्रोटेक्टिव, गैस्ट्रो-प्रोटेक्टिव और घाव भरने के औषधीय गुण पाए जाते हैं।
पत्तियां - गुलमोहर की पत्तियों में अतिसार-रोधी, हेपेटोप्रोटेक्शन, फ्लेवोनोइड्स और एंटी डायबिटिक गुण मौजूद होते हैं।
तने - गुलमोहर के तने की छाल में खून को बहने से रोकने के गुण, मूत्र और सूजन से जुड़ी समस्याओं को खत्म करने के गुण पाए जाते हैं।
गुलमोहर के पेड़ तो तरह के होते हैं, एक पीला गुलमोहर और दूसरा लाल गुलमोहर। दोनों तरह के पेड़ के फूल और पत्तियों का औषधीय इस्तेमाल किया जाता है। इसके इस्तेमाल से गठिया, बवासीर जैसी बीमारियों समेत स्किन और बालों से जुड़ी कई समस्याएं भी दूर की जाती हैं। गुलमोहर के पत्तों का इस्तेमाल बालों की समस्या में बहुत फायदेमंद माना जाता है। आप इसके इस्तेमाल से बाल झड़ने की समस्या में भी फायदा पा सकते हैं। आइये जानते हैं गुलमोहर के फायदे और आयुर्वेद के मुताबिक इसके इस्तेमाल के तरीके के बारे में।
गुलमोहर फूल को सुखाकर इसका चूर्ण बना लें। अब रोजाना इसके 2 से 4 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलकर खाएं। ऐसा करने से पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द (Menstrual Cramp) और इससे जुड़ी अन्य समस्याओं में फायदा होगा।
 बाल झड़ने की समस्या में गुलमोहर की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है। गुलमोहर के पत्तों को सुखाकर इसे पीसकर चूर्ण बना लें। अब इसे गर्म पानी में मि
अगर किसी को भी दस्त या डायरिया की समस्या हो रही है तो उसे गुलमोहर के तने की छाल का सेवन करना चाहिए। आप गुलमोहर के पेड़ के तने की छाल का चूर्ण बना लें और इसका 2 ग्राम चूर्ण डायरिया की समस्या में खाएं। पेचिश और दस्त या डायरिया में इसके सेवन से बहुत फायदा मिलता है।
 पीले गुलमोहर के पत्तों को पीसकर गठिया की दर्द वाली जगह पर लगाने से दर्द की समस्या से छुटकारा मिलता है। गठिया की समस्या में आप इसके पत्तों का का काढ़ा बनाकर उसका भाप दें, इससे भी दर्द से आराम मिलता है।
बवासीर (Piles) की समस्या में गुलमोहर का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद माना जाता है। बवासीर की समस्या होने पर आप इसके पत्तों का इस्तेमाल कर सकते हैं। पीले गुलमोहर के पत्ते को दूध के साथ पीसकर बवासीर के मस्सों पर लगाएं। ऐसा करने से दर्द और बवासीर की समस्या से आराम मिलता है।

शंखपुष्पी (विष्णुकांत)-

गर्मियों में इसकी उत्पत्ति अधिक होती है। यह घास की तरह है। फूल-पत्ते तथा डंठल तीनों को उखाड़कर पीसकर पानी में मिलाकर छान लें, इसमें शहद या मिश्री मिलाकर पीने से शाम तक मस्तिष्क में ताजगी रहती है। कार्यालयों में बैठकर काम करने पर सुस्ती नहीं आएगी इसका सेवन विद्यार्थियों को अवश्य करना चाहिए।


बबूल (कीकर)-

फूलों को पीसकर सिर में लगाने से सिरदर्द गायब हो जाता है। इसका लेप दाद और एग्जिमा पर लगाने से चर्म रोग दूर होता है। इसके अर्क के सेवन से रक्त विकार दूर होते हैं। यह खाँसी और श्वास रोग में लाभकारी है। इसके कुल्ले दंतक्षय को रोकते हैं।


नीम-

फूलों को पीसकर लुग्दी बनाकर फोड़े-फुंसी पर रखने से जलन व गर्मी दूर होती है। इनको शरीर पर मलकर स्नान करने से दाद दूर हो जाता है। फूलों को पीसकर पानी में घोलकर छान दें। इसमें शहद मिलाकर पीयें, तो वजन कम होता है तथा रक्त साफ होता है। यह संक्रामक रोगों से रक्षा कारक है।


लौंग-

आमाशय और आँतों में रहने वाले उन सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट करते हैं जिसके कारण मनुष्य का पेट फूलता है। रक्त के श्वेत कणों में वृद्धि करके शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति की वृद्धि करते हैं, शरीर तथा मुँह की दुर्गंध का नाश करती हैं। शरीर के किसी भी हिस्से पर घिसकर लगाने से दर्दनाशक का काम करते हैं। दाढ़ या दंतशूल में मुख में डालकर चूसा जाता है। यज्ञ द्वारा इसका प्रयोग करने से शरीर में अनावश्यक जमा तत्वों को पसीने द्वारा बाहर निकाल देते हैं।


जूही-

फूलों का चूर्ण या गुलकंद अम्लपित्त को नष्ट कर पेट के अल्सर व छाले को दूर करता है। इसके निरंतर सानिध्य में रहने से क्षय रोग नहीं होता।


माधवी-

चर्म रोगों के निवारण के लिए इसके चूर्ण का लेप किया जाता है। गठिया रोग में प्रातःकाल फूलों को चबाने से आराम मिलता है। इसके फूल श्वास रोग भी हरते हैं।


कुसुम-

इस फूल की कलियाँ मासिक धर्म के बाद खाने से गर्भ निरोध होते देखा गया है।


हरसिंगार (पारिजात)-
गठिया रोगों का नाशक, इसका लेप चेहरे की कांति को बढ़ाता है। इसकी सुगंध ही रात्रि को मादकता प्रदान करती है।

आक-

इसका फूल कफ नाशक है। प्रदाह कारक भी है। यदि पीलिया में पान में रखकर एक या दो कली तीन दिन तक दी जाए, तो काफी हद तक आराम होगा।

गुड़हल का फूल-


गुड़हल का फूल सिर्फ देखने में सुंदर नहीं है बल्कि इसके सेहत को अनगिनत फायदे मिलते हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि इस फूल का रस ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में सहायक हो सकता है।
ब्रेस्ट कैंसर का घरेलू इलाज? ब्रेस्ट कैंसर के कई लक्षण हैं और लक्षणों की गंभीरता कम करने के लिए आप दवाओं के साथ कुछ घरेलू या प्राकृतिक उपचार भी आजमा सकते हैं। ब्रेस्ट कैंसर का एक जबरदस्त प्राकृतिक उपचार गुड़हल का फूल भी है
शोधकर्ताओं का मानना है कि नेचुरल चीजें स्वास्थ्य पर साइड इफेक्ट्स नहीं डालती हैं। गुड़हल के फूल का रस लंबे समय तक खपत के लिए सुरक्षित है और इसे औषधीय रूप से सक्रिय माना गया है जिसमें कई बायोएक्टिव यौगिक शामिल हैं, जो कैंसर में कई कमजोरियों को निशाना बना सकते हैं।

कदंब-

पार्वती एवं कृष्ण प्रिय वृक्ष है। रसिक लोगों का मदन वृक्ष यही कहलाता है। कदंब वृक्ष पुराण वृक्ष है। इसको कल्प वृक्ष की संज्ञा भी प्राप्त है। यह कामोत्तेजक वृक्ष है। गाय की बीमारी में इसकी फूल-पत्ती वाली टहनी लेकर गौशाला में लगा देने से बीमारी दूर होती है। मदिरा या वारुणी बनाने में इसका प्रयोग है। वर्षा ऋतु में पल्लवित होने वाला गोपी प्रिय वृक्ष है जिसकी वृंदावन में बहुतायत है।

गुलमोहर के पेड़, फूलों की वजह से देखने में बहुत खूबसूरत लगते हैं। भारत में सबसे ज्यादा उगाए जाने वाले सबसे पुराने पेड़ों में से एक गुलमोहर है। गुलमोहर को डेलोनिक्स रेजिया, रॉयल पॉइंसियाना, फ्लेम ट्री या फायर ट्री के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में गुलमोहर के फूल को काफी असरदार औषधि माना जाता है और इसके पेड़ की छाल, पत्तियां और फल को भी औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। गुलमोहर के पेड़ में फूल अप्रैल और मई के महीने में लगते हैं और नवंबर के आसपास इसकी पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं। कई आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में भी गुलमोहर के फूल, तने, पत्तियों और फल का इस्तेमाल किया जाता है। गुलमोहर के इस्तेमाल से आप कई बीमारियों को दूर कर सकते हैं। आयुर्वेद में गुलमोहर के औषधीय इस्तेमाल के बारे में विस्तार से बताया गया है, जिसका इस्तेमाल लोग पुराने समय से करते आ रहे हैं।

कचनार-

इसकी कली शरद ऋतु में आती है तथा इसका उपयोग सब्जी व अचार बनाने हेतु होता है। इसकी कलियाँ बार-बार मल त्याग की प्रवृत्ति को रोकती हैं। छाल एवं फूल को जल के साथ मिलाकर पुलटिस तैयार की जाती है, जो जले घाव एवं फोड़े के उपचार में उपयोगी है।


शिरीष-

यह जंगली, तेज सुगंध वाला वृक्ष है। इसकी सुगंध जब तेज हवा के साथ आती है, तो आदमी मस्त-सा हो जाता है। खुजली में फूल पीसकर लगाना चाहिए, शिरीष के फूलों के काढ़े से नेत्र धोने से किसी भी प्रकार के विकारों को लाभ मिलेगा।


नागकेशर-

यह कौंकण और गोवा में होता है। यह खुजली नाशक है। यह लौंग-जैसी लंबी डंठी में लगा रहता है। इसके (फूलों) का चूर्ण बनाकर मक्खन में साथ या दही के साथ खाने से रक्तार्श में लाभ होता है। इसका चूर्ण गर्भ धारण में भी सहायक है।


मौलसिरी (बकुल)-

इसका प्रसिद्ध नाम मौलसिरी है। आदिवासी स्त्रियाँ इसका प्रयोग श्रृंगार में फूलों के आभूषण बनाकर प्रयोग करती हैं। इसके पुष्प तेल में मिलाकर इत्र बनाते हैं। इसके फूलों का चूर्ण बनाकर त्वचा पर लेप करने से त्वचा अधिक कोमल हो जाती है। इसके फूलों का शर्बत स्त्रियों के बाँझपन को दूर कर सकने में समर्थ है।


अमलतास-

ग्रीष्म में फूलने वाला गहरे पीले रंग के गुच्छेदार पुष्पों का पेड़ दूर से देखने में ही आँखों को प्रिय लगता है। फूलों का गुलकंद बनाकर खाने से कब्ज दूर होता है। लेकिन अधिक मात्रा में सेवन करने से दस्तावर, जी मिचलाना एवं पेट में ऐंठन उत्पन्न करता है।

अनार-

शरीर में पित्ती होने पर, अनार के फूलों का रस मिश्री मिलाकर पीना चाहिए। मुँह के छालों में फूल रखकर चूसना चाहिए। आँख आने पर कली का रस आँख में डालना चाहिए।
इन फूलों के पौधों की भीतरी कोशिकाओं में विशेष प्रकार के प्रदव्यी झिल्लियों के आवरण वाले कण कहलाते हैं इन्हें लवक (प्लास्टिड्स) कहते हैं। यह कण जीवित रहते हैं, जब तक फूलों का रंग समाप्त न हो जाए। यह लवक दो प्रकार के होते हैं। इनमें रंगीन लवकों को ‘वर्णी लवक’ कहते हैं। वर्णी लवक ही फूल पौधों को विभिन्न रंग प्रदान करते हैं। वर्णी लवक का आकार निश्चित नहीं होता, बल्कि लवक विभिन्न पौधों में अलग-अलग रचना वाले होते हैं। पौधों में सबसे महत्वपूर्ण लवक है हरित लवक (क्लोरोप्लास्ट), हरा लवक पौधों में हरा रंग ही नहीं देता, बल्कि पौधों में भोजन का निर्माण भी करता है। हरित लवक कार्बन डाइऑक्साइड, गैस, जल और सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ग्लूकोस-जैसे कार्बोहाइड्रेट पदार्थ का निर्माण करते हैं।

कमल-

कमल के बीज को गर्म पानी में डालें और जब ये फूल जाए तो इसमें काला नमक और चायपत्ती डाल कर उबाल लें। इसें आप दिन में कई बार पीएं।
कमल की पत्तियों को पीस कर जली या झुलसी त्वचा पर लगाने से उसकी जलन खत्म होने लगती है। साथ ही इससे जले का निशान भी धीरे-धीरे जला जाता है।
कमल कि पत्तियों को पीस कर इसका रस पीने से शरीर की वसा भी पिघलने लगती है।
एग्जिमा, दाग-धब्बे के साथ ही अगर आग से जल जाएं तो आप इस पर गेंदे और तुलसी की पत्तियों को पीस कर लगाएं। लगातार लगाने से ये समस्याएं दूर हो जाएंगी