23.10.21

मरुआ पौधे के औषधीय गुण और फायदे:Marua ke fayde




  मरुआ का पौधा सम्पूर्ण भारत में सभी जगह आसानी से उगाया जा सकता है इसका पौधा तुलसी के जैसा ही होता है इसका पौधा अत्यंत ही सुगन्धित होता हे इसके फूल सफ़ेद और बैंगनी कलर का होता है जो तुलसी के पौधे के सम्मान ही होता हे
 बारीश के मौसम और सर्दी के मौसम में मच्छर और कीड़े मकोड़ों का प्रभाव बहुत ही बढ़ जाता हे जिसके कारण लोग बीमारियों का शिकार होने लगते हे जब मरुआ का पौधा आप घर के अंदर लगाते हे तब घर के अंदर मच्छर और कीड़े का प्रभाव कम होने लगता हे
 मरुआ के पौधे का घरेलु दवाओं में आसानी से जड़ , पत्तो ,फूलो , फलो ,जड़ का चूर्ण ,टहनियों , पत्तियों , पौधे का चूर्ण का उपयोग घेरलू दवाओं में किया जाता हे
 मरुआ के पौधे का उपयोग रोग में – गठिया रोग में , मासिक धर्म , पैट दर्द में , सरदर्द में दस्त में , पेचिस में , चोट-मोच में , दर्द में , कब्ज में , सूजन में ,घर में कीड़े मकोड़े और मछर में मरुआ के पौधे का उपयोग , जोड़ो के दर्द में घेरलू और ओषधिय चिकित्सा में प्रयोग किया जाता हे
घर में कीड़े मकोड़े और मछर में मरुआ के पौधे का उपयोग
 बारिश के मौसम में बहुत से कीड़े मकोड़े और मछर की संख्या बहुत जयादा हो जाती हे बारिश के मौसम में घर में एक मरुआ का पौधा लगाने से घर में कीड़े मकोड़े – मछर का प्रभाव कम हो जाता हे और घर में सोंधी महक फैलाता रहेगा
 मरुआ के पौधे को घर के बिच या गमले में लगा कर घर के किसी भी कोने में रख सकते हे इसकी साइज भी तुलसी के जितनी ही होती हे जिस घर में मरुआ का पौधा होता हे वहा डेंगू और मलेरिया का खतरा बहुत कम होता हे और वातावरण शुद्ध होता हे

सूजन में मरुआ 


मरुआ के पौधे की पत्तियों और टहनियों को पानी उबाल कर सूजन वाली जगह बफारा देने से और गर्म पानी से मालिस करने से भी शरीर में सूजन कम होगा और सूजन के दर्द में भी फायदा होता हे

पेचिस में मरुआ 

मरुआ के पौधे की पत्तियों को मलकर पेट पर मालिस करने के बाद हलकी सिकाई करने से तीव्र पेचिस में भी फायदा होता हे

दर्द में मरुआ 

मरुआ के पौधे की पत्तियों और टहनियों को पानी उबाल कर सूजन की जगह गर्म पानी से मालिस करने से दर्द में भी फायदा होता हे

खुनी दस्त में मरुआ 

मरुआ के पौधे की पत्तियों का काढ़ा बना कर सुबह-शाम-दोपहर रोजाना पिलाने से खुनी दस्त में भी फायदा होता हे

सिर दर्द में मरुआ 

मरुआ की ताजा पत्तियों का शीत निर्यास बनाकर सेवन करने से सिर दर्द में बहुत ही फायदा होगा

TB [ टी.बी ] रोग में

टी.बी रोग में मरुआ की ताजा जड़ का 5 ग्राम रस को सुबह – शाम सेवन करने से रोग में बहुत ही जल्दी फायदा होगा

पेट दर्द में मरुआ 

पेट दर्द में मरुआ की पत्तियों और बीजो का चूर्ण बना कर 5 ग्राम चूर्ण को गर्म पानी के साथ मिला कर सुबह – शाम उपयोग करने से पेट दर्द में फायदा होता हे

मासिक धर्म में 

मासिक धर्म में मरुआ का 20 ग्राम का फाट बना कर नियमित रूप से सेवन करने से रज विकारो में फायदा होता हे

चोट- मोच में

मरुआ के तेल की मालिस सुबह -शाम चोट वाली जगह पर लगाने से चोट – मोच में आश्चर्य जनक फायदा होगा

कब्ज में मरुआ के फायदे

कब्ज में मरुआ का 20 ग्राम के लगभग का फाट बना कर पीने से कब्ज में जबरदस्त फायदा होगा

गठिया रोग में मरुआ

गठिया के रोगी को मरुआ के पंचांग [ पत्ती , टहनिया , फूल , जड़ ,बीज ] का काढ़ा 20-30 मिली के लगभग बनाकर रोगी को दिन में 2 से 3 बार पिलाने से गठिया के रोग में फायदा होता
मरुआ की चटनी बहुत ही आसानी से आप बना सकते हे इसके लिए आप को इन चीजों की आवश्यकता होगी
एक कप मरुआ की पत्तिया
एक निम्बू
एक नमक की चमच
1 से 2 हरी मिर्च
इन सभी की मात्रा आप अपनी आवश्यकता के अनुसार बड़ा सकते हे
चटनी बनाने की विधि
सभी पत्तियों और निम्बू , मिर्च को सबसे पहले धो ले
अब आप इन सभी सामान को मिक्सी में दाल दे
इसमें आप 1 कप पानी मिला सकते हे
अब आप इनको मिक्सी में अच्छी तरह पीस ले
अब पूरी तरह चटनी तैयार हे
आप चटनी को पत्थर पर भी पीस सकते हे
मरुआ का पौधा घर में रहता हे तो घर में सांप कीड़े – मकोड़े मछर नहीं आते हे जिससे घर का वातावरण सुगन्धित रहता हे और घर महकता रहता हे मरुआ के पौधे के चमत्कारी और आयुर्वेदिक गुण बहुत से हे|
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    22.10.21

    जुनूनी बाध्यकारी विकार के लक्षण और होम्योपैथिक उपचार|Obsessive-Compulsive Disorder






       कुछ लोगों को किसी काम या आदत की धुन इस कदर सवार होती है कि वह सनक बन जाती है और बीमारी का रूप ले लेती है। इससे उनकी लाइफ पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे लोग ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसॉर्डर (ओसीडी) से पीड़ित होते हैं। दिक्कत यह है कि ज्यादातर लोग यह मानने को तैयार नहीं होते कि उन्हें ऐसी कोई समस्या है। हालांकि अगर वे वास्तविकता को स्वीकार कर लें, तो इलाज काफी आसान हो जाता है।

    क्या है ओसीडी

      यह एक चिंता करने वाली बीमारी है, जिसमें पीड़ित शख्स किसी बात की जरूरत-से-ज्यादा चिंता करने लगता है। एक ही जैसे अनचाहे ख्याल उसे बार- बार आते हैं और एक ही काम को बार-बार दोहराना चाहता है। ऐसे लोगों को सनक वाले ख्याल आते हैं और अपने बिहेवियर पर कोई कंट्रोल नहीं होता। ऐसे मरीज न खुद को रोक पाते हैं, न ही बेफिक्र रह पाते हैं। जैसे कोई सूई पुराने रेकॉर्ड पर अटक जाती है, वैसे ही ओसीडी से दिमाग किसी एक ख्याल या काम पर अटक जाता है। मसलन, यह कन्फर्म करने के लिए कि गैस बंद है या नहीं, आप 20 बार स्टोव की नॉब चेक करते हैं। तब तक हाथ धोते रहते हैं, जब तक कि वह छिल न जाए या आप तब तक गाड़ी भगाते रहते हैं, जब तक कि आपको यह संतुष्टि न हो जाए कि जिस शख्स ने पीछे से हॉर्न दिया था, वह पीछा तो नहीं कर रहा।

    ओसीडी के दौरान नजर आने वाले कुछ आम ऑब्सेशन

    गंदगी: इसमें व्यक्ति एचआईवी जैसी बीमारियों से डरता है या उसे एनवायरमेंट को खराब करने वाली चीजें, जैसे- रेडिएशन और घर में मौजूद कैमिकल्स और धूल को लेकर चिंता बनी रहती है।
    नियंत्रण खोना: खुद को या किसी दूसरे व्यक्ति को चोट पहुंचाना, चोरी और हिंसा का डर जैसी चीजें शामिल होती हैं।
    नुकसान: व्यक्ति को डर बना रहता है कि वो चोरी या आगजनी जैसी किसी गंभीर घटना का जिम्मेदार है या उसकी लापरवाही के कारण किसी और को नुकसान पहुंचा है।
    पर्फेक्शन से जुड़े ऑब्सेशन्स: किसी भी चीज को पूरी या सही तरीके से करने की चिंता या कुछ याद रखने की चिंता रहती है। किसी भी चीज को फेकते वक्त जरूरी जानकारी के बारे में भूल जाने का डर रहता है। चीजों को फेकने या रखने को लेकर फैसला नहीं कर पाते हैं या किसी भी चीज को खोने का डर।
    दूसरे ऑब्सेशन्स: किसी भी गंभीर बीमारी की चपेट में आने का डर बना रहता है। इसके अलावा लकी या अनलकी नंबर और रंगों लेकर अंधविश्वास वाले आइडिया आते हैं।
    कंपल्शन
    ये कुछ ऐसे व्यवहार होते हैं जहां व्यक्ति अपने ऑब्सेशन को खत्म करने के प्रयास करता है। ओसीडी से जूझ रहे लोगों को यह पता होता है कि यह केवल अस्थाई उपाय है, लेकिन इससे बचने का सही तरीका खोजने के बजाए वे कंपल्शन पर निर्भर रहते हैं।

    ओसीडी के दौरान नजर आने वाले कुछ आम कंपल्शन

    धुलाई और सफाई: इसमें एक ही तरीके से बार-बार हाथों को धोना, हद से ज्यादा देर तक नहाना, दांत साफ करना या सफाई से जुड़ी चीजों को करते रहना शामिल है।
    चैकिंग: यह जानने के लिए कि आप खुद को या किसी और को नुकसान तो नहीं पहुंचा रहे। बार-बार किसी चीज की जांच करना। यह पता करते रहना कि कुछ बुरा तो नहीं हुआ या आपसे कोई गलती तो नहीं हुई। शरीर के कुछ हिस्सों को बार-बार चैक करना।
    दोहराना: बार-बार किसी चीज को पढ़ना-लिखना या किसी भी बॉडी मूवमेंट्स को दोहराते रहना।

    OCD के क्या सिम्पटम्स होते हैं?

    किसी भी चीज को बार-बार दोहराना, मूड पर असर पड़ना, प्रोडक्टिविटी कम होना। डॉ. छिब्बर ने बताया कि अगर किसी भी इंसान को मेंटल हेल्थ बीमारी है तो वह काफी तनाव में नजर आएगा। ओसीडी से जूझ रहे व्यक्ति को डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए।

    OCD से कैसे उबर सकते हैं?

    अगर आपको लक्षण नजर आ रहे हैं तो, सबसे पहले हेल्थ को मॉनिटर करें। साइकेट्रिस्ट या थैरेपिस्ट जैसे एक्सपर्ट्स की सलाह लें। क्योंकि, आपके विचार या व्यवहार को जानने के तरीके सीखने की जरूरत है। यह तरीके आपको एक्सपर्ट्स बता सकते हैं, क्योंकि वे आपकी स्थिति को देखकर उपाय तैयार करेंगे, ताकि आप असहज न हों।
    अगर आप अपने स्तर पर इस बीमारी पर काम करना चाहते हैं तो ऐसी छोटी सोच जो आपको तकलीफ न दें, उन्हें नजरअंदाज करें। व्यवहार में बदलाव लाने पर चिंता कम करें। बार-बार आ रहे विचारों से बचने की कोशिश करें और खुद को टेस्ट करें कि क्या आप ऐसा कर पा रहे हैं या नहीं। धीरे-धीरे इसका स्तर बढ़ाएं।
    इसे खुद ट्रीट करना मुश्किल होता है। क्योंकि, यह एक बीमारी है और यह डर, भय और घबराहट की वजह बनती है। ऐसे में एक्सपर्ट्स से बात करना जरूरी है। लक्षण नजर आ रहे हैं तो परिवार या दोस्तों से इसके बारे में बात करें। इसमें फैमिली सपोर्ट बहुत जरूरी होता है।

    आम तरह के ओसीडी


    ओसीडी के ज्यादातर मरीज इनमें से किसी कैटिगरी में आते हैं :
    - बार-बार सफाई करने वाले गंदगी से डरते हैं। उन्हें आमतौर पर सफाई और बार-बार हाथ धोने का कंपल्शन होता है।
    - कुछ लोग बार-बार चीजों की जांच करते हैं (अवन बंद किया या नहीं, दरवाजा बंद किया या नहीं आदि)। उनके मन में इनके खतरे का डर होता है।
    - शंकालु और पाप से डरने वाले लोग यह सोचते हैं कि अगर सब कुछ ठीक ढंग से नहीं हुआ तो कुछ बुरा हो जाएगा या वे सजा के भागी बन जाएंगे।
    - गिनती करने वाले और चीजों को व्यवस्थित करने वाले क्रम और समानता से ऑब्सेस्ड होते हैं। उनमें से कुछ निश्चित संख्याओं, रंगों और अरेंजमेंट को लेकर अंधविश्वास हो सकता है।
    - चीजों को संभालकर रखने वाले इस बात से डरे होते हैं कि अगर उन्होंने कुछ बाहर फेंका तो कुछ बुरा होगा। अपने इसी डर की वजह से वे गैरजरूरी चीजों को भी संभालकर रखते हैं।
    नोट: लेकिन सिर्फ ऑब्सेसिव विचार और कंपल्शन की आदत होने का यह मतलब नहीं कि आपको ओसीडी है। ओसीडी में ये विचार और बिहेवियर गंभीर तनाव की वजह बन जाते हैं। व्यक्ति इसमें अपना ज्यादा-से-ज्यादा समय लगाने लगता है और ये काम उसके रुटीन और पारिवारिक संबंधों पर भी असर करने लगते हैं।
    कैसे पहचानें- इस समस्या से पीड़ित ज्यादातर लोगों में ऑब्सेशन और कंपल्शन दोनों देखा जाता है, लेकिन कुछ लोगों में सिर्फ एक ही समस्या भी हो सकती है।

    लक्षण और पहचान


    सिमेट्री – किसी चीज को बार-बार सही लाइन में रखना या ठीक क्रम में रहने के बावजूद उसको बार-बार ठीक करने की आदत। इनमें शामिल है:
    बार-बार किसी चीज को जांचना-
    अपने सामान या अन्य वस्तुओं को तब तक व्यवस्थित करने की मजबूरी जब तक वे बिल्कुल सही हैं ऐसा महसूस न करें।
    बार-बार किसी वस्तु की गिनती करना।
    बार-बार चेक करना कि दरवाजा ठीक तरह से बंद है या नहीं।
    सामग्री का खुद के अनुसार व्यवस्थित नहीं होने पर मन को ठेस पहुंचना। क्लिनिंग और कंटामिनेशन – बार-बार साफ सफाई करना या साफ चीजों को भी बार-बार गंदा समझकर साफ करना। ये लक्षण कुछ इस प्रकार हैं:

    बीमारी के बारे में लगातार चिंता

    शारीरिक या मानसिक रूप से खुद को गंदा महसूस करने का विचार।

    विषाक्त पदार्थों, वायरस या गंदगी के संपर्क में आने की लगातार चिंता।
    उन वस्तुओं से छुटकारा पाने की मजबूरी जिन्हें मन में गंदा मानते हैं भले ही वे गंदे न हों।
    दूषित वस्तुओं को धोने या साफ करने की मजबूरी महसूस होना।
    अपने हाथों और अन्य सामग्री को बार-बार साफ करना।
    होर्डिंग – ऐसी वस्तुओं को जमा करने की आदत जिसकी जरूरत न हो (5)। इसके अलावा, अपनी चीजों को खोने का डर या यह मानना कि अगर कोई चीज खो जाए तो कुछ बुरा हो सकता है। इनमें शामिल है
    लगातार चिंता करना कि कुछ फेंकने से खुद को या किसी और को नुकसान हो सकता है।
    अपने आप को या किसी और को नुकसान से बचाने के लिए एक निश्चित संख्या में वस्तुओं को इकट्ठा करने की आवश्यकता।
    दुर्घटनावश किसी महत्वपूर्ण या आवश्यक वस्तु को फेंकने का अत्यधिक भय, जैसे- संवेदनशील या आवश्यक जानकारी वाला मेल।
    एक ही वस्तु को बार-बार खरीदने की मजबूरी, जबकि उस वस्तु की आवश्यकता भी न हो।
    चीजों को फेंकने में कठिनाई क्योंकि उन्हें छूने से दूसरों को संक्रमण हो सकता है इस प्रकर से विचार आना।
    अपनी संपत्ति की बार-बार जांच करने की बाध्यता।
    अपनी मदद खुद करें

    1. ओसीडी के ख्यालों को नजरअंदाज करने के लिए अपना ध्यान कहीं और लगाएं। मसलन एक्सरसाइज, जॉगिंग, वॉकिंग, स्टडी, म्यूजिक सुनना, इंटरनेट सर्फिंग, विडियोगेम खेलना, किसी को फोन करना आदि। इसका मकसद है खुद को कम-से-कम 15 मिनट तक किसी ऐसे काम में बिजी रखना, जिससे आपको खुशी मिलती हो। ऐसा करने से आप कंपल्सिव बिहेवियर करने से खुद को रोक सकते हैं। यह देखा गया है कि आप जितनी ज्यादा देर तक खुद को ऐसा करने से रोक पाते हैं, उतनी जल्दी आपकी आदतों में बदलाव आता है।

    2. जब भी ऑब्सेसिव ख्याल आएं और कंप्लसिव बिहेवियर का मन कहे, आप इसे डायरी में नोट कर लें। ऐसा करने से आपको यह पता लगेगा कि आप इन बेकार की बातों में अपना कितना समय गंवा रहे हैं। एक ही बात बार-बार लिखने से आपकी नजरों में उसकी अहमियत कम होने लगेगी। चूंकि कोर्इ भी बात लिखना उस बारे में सोचने से ज्यादा मुश्किल काम है। ऐसे में थककर आप उसके बारे में सोचने से ही बचेंगे और धीरे-धीरे ये ख्याल आपके दिमाग में आने कम हो जाएंगे।
    3. ओसीडी की चिंता का समय तय करें। इसके लिए 10 मिनट का समय और जगह तय करें और अपने सारे ऑब्सेसिव ख्यालों को उस पीरियड के लिए टालें। उदाहरण के तौर पर शाम 8 बजे से 8:10 मिनट तक के समय को वरी पीरियड तय करें और इसके लिए लिविंग रूम की जगह तय करें। इस पीरियड में शांति से बैठें और सिर्फ अपने नेगेटिव विचारों पर ध्यान लगाएं। इन्हें ठीक करने की चिंता बिल्कुल न करें। वरी पीरियड के आखिर में कुछ गहरी सांस लें। ऑब्सेसिव ख्यालों को अपने मन से निकल जाने दें और अपने सामान्य कामों में लग जाएं। ऐसा करके आप दिन के बाकी समय और रात को नींद के दौरान अपने आप को नेगेटिव विचारों से बचा सकते हैं।
    4. अपने ओसीडी ऑब्सेशन का टेप बनाएं। इसे टेप रिकॉर्डर, लैपटॉप या स्मार्ट फोन में टेप करें। आपके दिमाग में आने वाले ऑब्सेसिव ख्यालों, लाइनों या कहानियों की गिनती करें। इस टेप को रोजाना 45 मिनट के लिए सुनें। बार-बार एक ही तरह के ऑब्सेशन के बारे में सुनकर आपको यह बात समझ आ जाएगी कि इसकी वजह ओसीडी है और कुछ ही दिनों में आपको ये बातें परेशान करना बंद कर देंगी।
    5. अपना ध्यान रखें। एक स्वस्थ और संतुलित लाइफस्टाइल आपको ओसीडी बिहेवियर, डर और चिंताओं से दूर रखने में सहायक साबित होगी। इसके लिए रिलैक्सेशन तकनीक सीखें। ध्यान, योग और डीप ब्रीदिंग तकनीक अपनाएं। ऐसा दिन में कम-से-कम 30 मिनट के लिए करें।
    6. बेहतर खान-पान की आदत डालें। खाने में साबुत अनाज, फल, सब्जियां आदि शामिल करें। इससे न सिर्फ आपका ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहेगा, बल्कि आपके शरीर में सेरोटोनिन बढ़ेगा, जो एक न्यूरोट्रांसमीटर है और दिमाग को शांत करता है।
    7. रेग्युलर एक्सरसाइज करें। एरोबिक एक्सरसाइज से तनाव कम होता है और शारीरिक व मानसिक एनर्जी बढ़ती है। एंडॉर्फिन आपके दिमाग को खुशी का अहसास कराता है। रोजाना 30 मिनट एक्सरसाइज करें।
    8. अल्कोहल और निकोटिन से दूर रहें और भरपूर नींद लें। 
    9. परिवार और दोस्तों के कॉन्टैक्ट में रहें।

    जुनूनी बाध्यकारी विकार के लिए शीर्ष  होम्योपैथिक उपचार

    1. आर्सेनिकम एल्बम: मौत के लगातार विचारों के लिए

    आर्सेनिकम एल्बम मृत्यु के लगातार विचारों के साथ जुनूनी बाध्यकारी विकार के लिए शीर्ष प्राकृतिक दवा है। आर्सेनिकम एल्बम ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के रोगियों के लिए बहुत मददगार है, जिनके पास मौत के लगातार विचार हैं और इस तरह कोई दवा नहीं लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी मृत्यु बहुत निकट है और इस स्तर पर कोई भी दवा लेने का कोई फायदा नहीं है। ऐसे रोगियों को अपने आस-पास के लोगों की आवश्यकता होती है और वे अकेले नहीं रह सकते क्योंकि वे अकेले होने पर बुरा महसूस करते हैं। मृत्यु के विचार साथअत्यधिक बेचैनी, जहां रोगी बिस्तर से कूद जाता है और चिंता के साथ इधर-उधर चला जाता है, प्राकृतिक होम्योपैथिक दवा आर्सेनम एल्बम के साथ भी इलाज किया जा सकता है।

    2. अर्जेंटीना नाइट्रिकम: इंपल्सिव विचार के लिए

    अर्जेन्टम नाइट्रिकम ओब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर के रोगियों के इलाज के लिए सबसे अच्छी प्राकृतिक दवा है, जो लगातार आवेगी विचार रखते हैं। इन आवेगी विचारों में अलग-अलग लक्षण प्रस्तुतियां हो सकती हैं जैसे ट्रेन में यात्रा करते समय लगातार आवेगी विचार खिड़की से बाहर कूदना है; एक नदी पर एक पुल को पार करते समय, निरंतर विचार नदी में कूदना है या ऊंची इमारतों पर खड़े होने पर नीचे कूदने का भयावह विचार है। जुनूनी बाध्यकारी विकार के रोगियों के लिए प्राकृतिक होम्योपैथी उपाय Argentum Nitricum की सिफारिश करने के लिए एक और उल्लेखनीय विशेषता यह है कि आवेगी विचार रोगी को बहुत चिंतित और बेचैन करते हैं। इससे ऐसे आवेगपूर्ण विचारों से छुटकारा पाने के लिए अत्यधिक और निरंतर चलना पड़ता है और व्यक्ति तब तक चलता है जब तक कि शरीर की सारी ताकत खो नहीं जाती।

    3. जहां हर चीज को ऑर्डर देने की प्रवृत्ति हो

    तीनोजुनूनी बाध्यकारी विकार के लिए सबसे अच्छा उपचारउन रोगियों को प्राकृतिक उपचार प्रदान करते हैं जिनके पास सब कुछ डालने की मजबूरी है, नक्स वोमिका, आर्सेनिकम एल्बम औरCarcinosinum। जिन रोगियों को प्राकृतिक चिकित्सा नक्स वोमिका की आवश्यकता होती है, वे सतर्क और गुस्सैल स्वभाव के होते हैं, जो आदेश के अनुसार सभी चीजों की मांग करते हैं और आसानी से क्रोधित हो जाते हैं यदि आदेश का पालन नहीं किया जाता है। आर्सेनिकम एल्बम जुनूनी बाध्यकारी विकार के उन रोगियों के लिए बहुत लाभ का एक प्राकृतिक होम्योपैथिक उपाय है जो चीजों के क्रम के बारे में बहुत सचेत हैं और अगर चीजें उनके उचित स्थान पर नहीं हैं तो वे आराम नहीं कर सकते हैं। यह मजबूरी इस हद तक जा सकती है कि भले ही दीवार पर लटकी हुई कोई पेंटिंग थोड़ी झुकी हो, मन तब तक आराम नहीं करता जब तक कि उसे ठीक से रखा न जाए और मरीज इसके लिए हर दूसरे काम को छोड़ दे। ऐसे मरीज कपड़ों में भी साफ-सफाई की मांग करते हैं। कार्सिनोसिनम जुनूनी बाध्यकारी विकार के रोगियों के लिए प्राकृतिक होम्योपैथिक उपाय है जो स्वच्छता के बारे में बहुत चिंतित हैं और चाहते हैं कि न केवल चीजों को रखने में, बल्कि उनकी ड्रेसिंग शैली में भी एक विशिष्ट पैटर्न का पालन किया जाए। उदाहरण के लिए, वे हमेशा ड्रेस अप करते समय रंग मिलान पसंद करते हैं और कमरे को सजाते समय भी। वे इस हद तक किए गए हर काम में पूर्णता की मांग करते हैं कि यह सामान्य प्रतीत नहीं होता है या नहीं दिखता है।

    4. नेट्रम मुरीआटिकम – बार-बार बंद दरवाजों की जांच करने की मजबूरी

    नैट्रम म्युरेटिकम ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के उन रोगियों के लिए सबसे अच्छा प्राकृतिक उपचार है जो इस विचार से ग्रस्त हैं कि चोर हड़ताल कर सकते हैं और बार-बार दरवाजों के ताले की जांच कर सकते हैं। जुनून इतना लगातार है कि रोगी घर में भी चोरों के सपने देखता है और बार-बार दरवाजे की जांच करने के लिए उठता है।

    5. सिफलिनम और मेदोरिन्हिनम – जहाँ हाथ धोने की मजबूरी है

    जुनूनी बाध्यकारी विकार के रोगियों के लिए सिफलिनम और मेडोरिनिनम बहुत अच्छी प्राकृतिक दवाएं हैं जो किसी भी वस्तु को छूने से अपने हाथों को दूषित या गंदा होने के लगातार विचार के कारण बार-बार अपने हाथों को धोने की मजबूरी महसूस करते हैं। ऐसे रोगियों को लगता है कि कीटाणु हर एक वस्तु पर मौजूद होते हैं और बहुत कम अंतराल पर हाथ धोने की आदत डाल लेते हैं, बिना अपने जीवन के अन्य महत्वपूर्ण काम पर ध्यान दिए बिना।

    6. कैल्केरिया कार्बोनिका – पागल या पागल होने के लगातार विचार के लिए

    कैल्केरिया कार्बोनिका, जुनूनी बाध्यकारी विकार के रोगियों के लिए बड़ी मदद की एक प्राकृतिक दवा है, जो मानसिक रूप से थक चुके हैं और लगातार पागल या पागल होने के बारे में सोचते हैं। पागल होने की यह सोच दिन-रात रोगी के मन में बनी रहती है और वह नींद के दौरान भी इसे नहीं लगा पाता है। पागल हो जाने के इस डर से बड़ी तकलीफ होती है और इसे दूर करने के लिए, रोगी सभी लंबित कामों को एक तरफ छोड़ देता है और खुद को या खुद को लाठी तोड़ने या झुकने में व्यस्त रखता है।

    7. लगातार धार्मिक विचारों के साथ

    प्राकृतिक दवाएँ स्ट्रैमोनियम और पल्सेटिला ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर के रोगियों में लगातार धार्मिक विचारों से निपटने में समान रूप से अच्छी हैं जहाँ मरीज लगातार धर्म के बारे में सोचता है और हर समय पवित्र पुस्तकों को पढ़ता है और लगभग हमेशा प्रार्थना करता है।

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    14.10.21

    कैन्सर रोगी क्या खाएं क्या न खाएं :how what to reat a cancer patient



       

    सारी बीमारी एक तरफ और कैंसर एक तरफ. कैंसर का नाम सुनते ही लोग डर और असुरक्षा की भावनाओं से घिर जाते हैं. सूरज की रोशनी से होने वाली क्षति से लेकर धूम्रपान और संक्रमण तक, ऐसे कई कारक हैं जो कैंसर का कारण बन सकते हैं. स्वस्थ आहार न केवल कैंसर को दूर रखने के लिए ज़रूरी है, बल्कि ये 5 फल आपको कैंसर से दूर रखने में मदद करते हैं-

      ऐसे फलों का सेवन करें जो खाने में आसान, ताजा और उच्च पानी की मात्रा वाले होते हैं, इनमें जामुन, खरबूजा, केला, अनानास, नाशपाती आदि शामिल हैं। ब्लूबेरी में कई फाइटोकेमिकल्स और पोषक तत्व होते हैं, जो कैंसर विरोधी प्रभाव, एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि और डीएनए को नुकसान से बचाने की क्षमता दिखाते हैं।
    रसभरी और स्ट्रॉबेरी विटामिन सी, फाइटोकेमिकल्स और फ्लेवोनोइड जैसे एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं।
    टमाटर में लाइकोपीन नामक एक फाइटोकेमिकल होता है, जो एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है और प्रोस्टेट कैंसर के कम जोखिम से जुड़ा हो सकता है। टमाटर विटामिन सी का अच्छा स्रोत होने के साथ-साथ जैविक सोडीयम, फासफोरस, कैल्शीयम, पोटैशीयम, मैगनेशीयम और सल्फर का अच्छा स्रोत है। टमाटर में मौजूद ग्लूटाथीयोन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और प्रास्ट्रेट कैंसर से भी शरीर की सुरक्षा करता है।

    गहरे रंग की पत्तेदार सब्जियाँ


    पत्तेदार सब्जियाँ जैसे कि गोभी और पालक कैंसर से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे फाइबर और फोलेट से समृद्ध होते हैं, जो कुछ कैंसर के जोखिम को कम कर सकते हैं। फोलेट नई कोशिकाओं का उत्पादन करने और डीएनए की मरम्मत करने में मदद करता है।
    गोभी में कैरोटेनॉइड होते हैं, जो एंटीऑक्सिडेंट के रूप में कार्य करते हैं और शरीर के एंटीऑक्सिडेंट सुरक्षा को बढ़ाते हैं। ये बचाव डीएनए को नुकसान पहुंचाने वाले मुक्त कणों को रोकते हैं।
    केले में विटामिन सी भी होता है, जो एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है और कार्सिनोजन के निर्माण को रोकता है।
    पालक ज़ेक्सैंथिन और ल्यूटिन जैसे कैरोटिनॉइड में समृद्ध है, जो शरीर से मुक्त कणों को हटाते हैं। हरी पत्ते वाली सब्जियों में जैसे सलाद और पालक को हर रोज भोजन में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि वे एंटीऑक्सीडेंट बीटा कैरोटीन और ल्यूटेन जो कैंसर कोशिकाओं के विकास को कम करने में मदद करता है का एक अच्छा स्रोत हैं।
    कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका मरीज के सामान्य स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पडता है. इतना ही नहीं, कैंसर के इलाज के चलते मरीज के आहार पर भी बुरा असर पडता है. इलाज पूरी तरह असरदार हो, इसके लिए जरूरी है कि आहार में कुछ सावधानियां बरती जाएं.

    कैंसर में हो जाती है पोषण की कमी

    कैंसर कई तरह से मरीज के आहार पर बुरा प्रभाव डालती है. आम तौर पर कैंसर के मरीजों की भूख मिट जाती है. यह सबसे सामान्य समस्या है. इसके परिणामस्वरूप आहार की मात्रा और आवश्यक पोषक पदार्थो जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा और खनिज लवण आदि की कमी आ जाती है.
    कैंसर के बहुत से मरीजों का आहार इसलिए भी कम हो जाता है, क्योंकि बीमारी उनके पाचन तंत्र के विभिन्न अंगों जैसे इसोफैगस, पेट, छोटी या बडी आंत, लीवर, गाल ब्लैडर या पैंक्रियाज को प्रभावित कर देती है.

    कैंसर के दौरान क्या खाएं

    ऐसे मरीजों को पोषक आहार लेना चाहिए ताकि पोषण संबंधी जरूरतें पूरी हों. कार्बोहाइड्रेट से भरपूर आहार एक अच्छा उपाय है.अनाज, फल एवं साग-सब्जियां मसलन आलू कार्बोहाइड्रेट के अच्छे स्रोत हैं. मीठे खाद्य पदार्थ भी कार्बोहाइड्रेट के स्रोत होते हैं. हालांकि इनका सीमित मात्रा में सेवन करना चाहिए और डायबिटीज की समस्या से पीडित लोगों को इनसे परहेज करना चाहिए.

    प्रोटीन

    मांसपेशियों के विकास और काम के लिए ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रोटीन बहुत जरूरी है. इसके अलावा घाव भरने, बीमारी से लडने और खून का थक्का जमने आदि विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के लिए भी प्रोटीन अनिवार्य है. अंडा, मीट, मसूर की दाल, मटर, बींस, सोया और नट्स आदि प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं.

    विटमिंस व मिनरल्स


    ऐसे मरीजों में विटमिंस और मिनरल्स की कमी आम समस्या है, क्योंकि इन दोनों तत्वों की मांग अधिक और आपूर्ति कम होती है. इसलिए उचित आहार के साथ बेहतर पोषण के लिए विटमिन और मिनरल की अतिरिक्त खुराक जरूरी है.

    तरल पदार्थ

    कैंसर के मरीजों को पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करना जरूरी है.तली-भुनी, बहुत मसालेदार या फिर अधिक ठोस आहार न लें. कम मात्रा में अधिक बार खाने से पाचन आसान हो जाता है और पेट भी भारी नहीं लगता.

    कीमोथेरेपी के मरीज

    कैंसर के मरीजों के लिए कीमोथेरेपी एक आम उपचार है, जो चार से छह महीने तक चलता है. इस दौरान आहार संबंधी कई महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना जरूरी है.
    कीमोथेरेपी के पहले दिन और उससे एक-दो दिन बाद तक भूख कम लगती है. मितली और कई बार उल्टी भी आती है. उल्टी से बचने की दवाइयां दी जाती हैं. इस अवधि में आहार में अधिक मात्रा में ऐसे तरल और नर्म खाद्य पदार्थो का सेवन करना चाहिए जिनसे एनर्जी तुरंत मिल जाए और इसके बाद मरीज को सामान्य ठोस आहार या आधा ठोस आहार लेना चाहिए.फल-सब्जियों को अच्छी तरह धोकर खाना चाहिए. दूध हमेशा उबाल कर पीना चाहिए.

    रेडियोथेरेपी के मरीज

    चेहरे और गर्दन की रेडियोथेरपी कराने वालों में सेंसिटिविटी और अल्सरेशन (फोडे) का खतरा रहता है. जिसके कारण निगलने में दिक्कत होती है. इसलिए ऐसे लोगों को लिक्विड और लाइट डाइट लेने की सलाह दी जाती है. इन्हें तले-भुने, मसालेदार और गर्म खाद्य पदार्थो से परहेज करना चाहिए. यदि बहुत दर्द हो तो नियमित रूप से दर्द दूर करने की दवा ली जा सकती है. इससे दर्द बेकाबू नहीं होता.

    सर्जरी के मरीज

    सर्जरी के बाद मरीज को अधिक कैलरी, प्रोटीन, विटमिंस और मिनरल्स चाहिए ताकि जख्म जल्दी भर सकें. सर्जरी के बाद जितनी जल्दी संभव हो मुंह से आहार देना शुरू कर दिया जाता है.

    जामुन और अन्य फल:

    ऐसे फल जो खाने में आसान होते हैं, ताज़ा होते हैं और पानी की मात्रा अधिक होती है वे फल कैंसर के लिए सबसे अच्छे फल हैं। इनमें जामुन, खरबूजे, केले, अनानास, नाशपाती आदि शामिल हैं।

    यदि कैंसर के मरीज अपनी डाइट में एक निश्चित मात्रा में सुपर फूड शामिल करते हैं तो ये सुपर फूड उनके सेहत को काफी अच्छा बना सकते हैं।
    ब्लूबेरी में कई फाइटोकेमिकल्स और पोषक तत्व होते हैं, जो कैंसर रोधी प्रभाव, एंटीऑक्सिडेंट गतिविधि और डीएनए को नुकसान से बचाने की क्षमता दिखाते हैं। ब्लूबेरी में विटामिन सी और के, मैंगनीज और भरपूर फाइबर होते हैं, जो कैंसर के खतरे को कम करने में भी मदद करते हैं।

    रसभरी और स्ट्रॉबेरी विटामिन सी, फाइटोकेमिकल्स और फ्लेवोनोइड्स जैसे एंटीऑक्सिडेंट में समृद्ध हैं।

    टमाटर में लाइकोपीन नामक एक फाइटोकेमिकल होता है, जो कैंसर रोधी गुणों से भरपूर माना जाता है। कई अध्ययनों में भी यह बात सामने आ चुकी है कि टमाटर के सेवन से कैंसर का खतरा कम हो सकता है

    हरे पत्तेदार सब्जियां:

    पत्तेदार सब्जियां जैसे कि पालक कैंसर से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे फाइबर और फोलेट से समृद्ध होते हैं, जो कुछ कैंसर के जोखिम को कम कर सकते हैं। फोलेट नई कोशिकाओं का उत्पादन करने और डीएनए की मरम्मत करने में मदद करता है।
    पालक में कैरोटीन और क्लोरोफिल होते हैं। जो कैंसर के खतरे को कम करने में मददगार माने जाते हैं।
    पालक में विटामिन सी भी होता है, जो एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है और कार्सिनोजेन्स के निर्माण को रोकता है।
    पालक ज़ीकैन्थिन और ल्यूटिन जैसे कैरोटीनॉयड में समृद्ध है, जो शरीर से मुक्त कणों को हटाते हैं।
    हरी बीन्स फाइबर से भरपूर होती हैं। बीन्स खाने से कोलोरेक्टल कैंसर से बचाव संभव होता है। कैंसर रोगी को हफ्ते में 3-4 बार बीन्स की सब्जी अवश्य खानी चाहिए। इसके अलावा सलाद और अन्य डिशेज में आप कच्चे बीन्स खा सकते हैं।

    गाजर:

    गाजर बीटा-कैरोटीन (एक एंटीऑक्सीडेंट), विटामिन और फाइटोकेमिकल्स युक्त गैर-स्टार्च वाली सब्जियां हैं जो विभिन्न कैंसर से बचा सकती हैं। इसके अलावा, गाजर में एक प्राकृतिक कीटनाशक होता है, जिसे फाल्सीरोनॉल कहा जाता है, जो कैंसर के प्रभाव को कम कर देता है।
    जर्नल ऑफ एग्रीकल्चर एंड फूड केमिस्ट्री की एक रिपोर्ट बताती है कि पकी हुई गाजर कच्चे की तुलना में अधिक एंटीऑक्सीडेंट की आपूर्ति करती है। पूरे गाजर को उबाल लें और पक जाने के बाद उन्हें काट लें; यह गाजर के पोषक तत्वों को बरकरार रखता है, जिसमें फाल्कारिनॉल भी शामिल है।

    साबुत अनाज:

    साबुत अनाज पाचन स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं क्योंकि वे फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, फाइटोकेमिकल्स, विटामिन और खनिजों से भरपूर होते हैं। साबुत अनाज में कैंसर से लड़ने वाले कुछ पदार्थ होते हैं, जिसमें सैपोनिन भी शामिल है, जो कैंसर कोशिकाओं के गुणन को रोक सकता है, और लिग्नान, जो एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है।
    चीन के सूझोऊ में सोकोव विश्वविद्यालय के एक अध्ययन से पता चलता है कि उच्च फाइबर सामग्री हार्मोन-निर्भर कैंसर के हार्मोनल कार्यों को बदल सकती है। आप उन उत्पादों को प्राथमिकता दें जिसपर 100% ‘साबुत अनाज’ का लेबल लगा हो।

    मांस और मछलियां:

    प्रोटीन के अच्छे स्रोत मांसपेशियों को प्राप्त करने और शरीर के स्वस्थ वजन को बनाए रखने में मदद करते हैं। मुर्गी, मांस, मछली सभी प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं। इसके अलावा, ठीक से पके हुए अंडे और मांस का सेवन करें, किसी भी तरह के कच्चे सेवन से बचें।


    ब्रोकली

    ब्रोकली को दुनिया की सबसे हेल्दी सब्जियों में माना जाता है। ब्रोकली को कैंसररोधी सब्जी कहा जाता है। ब्रोकली में आइसोथायोसायनेट तत्व पाया जाता है, जो आपके शरीर में कैंसर सेल्स को पनपने से रोकता है और शरीर में मौजूद गंदगी को साफ करता है। इसके साथ ही इसमें ऑक्सिडेटिव गुण पाए जाते हैं, जो स्ट्रेस को घटाने में मददगार होते हैं। ब्रोकली कई प्रकार के कैंसर के जोखिम को कम करने में मदद करता है।


    दही:

    दही का अगर प्रतिदिन सेवन किया जाए तो महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के रिस्क को काफी हद तक कम किया जा सकता है। दही में मौजूद गुड बैक्टीरिया, शरीर में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया को हटाने में मदद करता है। इसके अलावा दही के साथ 
    दालचीनी, जामुन, या कटे हुए बादाम स्वाद के लिए लिए जा सकते हैं।

    सोयाबीन:

    सोयाबीन में आइसोफ्लेवोन्स नामक एक फाइटोन्यूट्रिएंट होता है, सोयाबीन में पाया जाने वाला प्रोटीन, कई तरह के कैंसर को रोकने में सहयता करता है, अत: सोयाबीन को कैंसर निरोधक भी कहा जाता है।

    एक शोध के अनुसार इसमें पाया जाने वाला जेनेस्टीन, स्तन कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर को रोकने में सहायक होता है। जेनेस्टीन, कैंसर की किसी भी स्थि‍ति में आंतरिक रूप से सक्रिय होकर उसे बढ़ने से रोकता है। यह एन्जाइना को नष्ट कर देता है, जो बाद में कैंसर जीन में परिवर्तित हो जाते हैं।
    अंत में यह समझना महत्वपूर्ण है कि हमें उच्च पोषक तत्वों वाले खाद्य पदार्थों के उपयोग में एक संतुलित दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है और एक ’सुपरप्लेट’ आहार जिसमें कई खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाता है जिसमें अच्छे पोषक तत्व होते हैं, अतः ‘सुपरफूड’ कैंसर के रोगियों के लाभकारी साबित हो सकता है।

    कैंसर के मरीज जरूर खाएं ये फल

    कैंसर का इलाज कराने के दौरान आप केला, स्ट्रॉबेरी, आड़ू, कीवी, संतरा, आम, नाशपाती जैसे फलों का सेवन करना चाहिए। ये सभी विटामिन और फाइबर से भरपूर होते हैं। साथ ही अमरूद, एवोकाडो, अंजीर, खुबानी भी शरीर की खोई हुई एनर्जी को वापस पाने के लिए खा सकते हैं।

    कैंसर के मरीज जरूर खाएं ये सब्जियां

    यदि आपका कैंसर का इलाज चल रहा है, तो आप अपनी डाइट में कुछ खास सब्जियों को जरूर (Anti cancer foods) शामिल करें। गाजर, कद्दू, टमाटर, मटर, शलजम आदि सब्जियों को जरूर खाएं। टमाटर, शलजम, गाजर को तो आप कच्चा सलाद के तौर पर भी सेवन कर सकते हैं। टमाटर में मौजूद खास पोषक तत्व प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसके अलावा ब्रोकली, पत्तागोभी, फूलगोभी भी कैंसर के मरीज खा (anti cancer foods in hindi) सकते हैं। इन सभी सब्जियों में प्लांट केमिकल्स होते हैं, जो खराब एस्ट्रोजन को अच्छे एस्ट्रोजन में तब्दील कर देते हैं। इससे कैंसर के दोबारा होने की संभावना कम हो जाती है।

    डाइट में शामिल करें गुड कार्ब्स

    आप खाना पीना ना छोड़ें। जब भी आपको इच्छा ना हो जबरदस्ती ना खाएं, लेकिन थोड़े-थोड़े गैप में जरूर कुछ ना कुछ हेल्दी चीजें खाएं। आप चावल, रोटी, साबुत अनाज, पास्ता का सेवन करें, इनमें गुड कार्ब्स होते हैं। साथ ही नाश्ते में ओट्स, दलिया, कॉर्न, आलू, बीन्स, डेयरी प्रोडक्ट्स भी खाएं। वो फूड्स खाएं जिनमें एंटीबैक्टीरियल और एंटी-फंगल प्रॉपर्टीज होती हैं जैसे शहद। इससे संक्रमण होने की संभावना कम होती है।

    जरूरी है प्रोटीन का सेवन भरपूर

    कैंसर के इलाज के दौरान अच्छा महसूस करने के लिए आपको प्रोटीन से भरपूर चीजों का सेवन करना चाहिए। नट्स, ड्राइड बीन्स, काबुली चना, अंडा, मछली, चर्बी रहित मीट, दूध से बने उत्पाद आपकी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकते हैं। जिन मरीजों को प्रोस्टेट कैंसर है उन्हें मछली और सोया से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। कैंसर होने पर तली-भुनी चीजें, मसालेदार चीजें, बाहर के प्रोसेस्ड फूड, जंक फूड, पैकेज्ड फूड बिल्कुल खाना कम कर दें। साथ ही नमक और चीनी का सेवन भी सीमित मात्रा में करें। शराब ना पिएं। स्मोकिंग ना करें। नाइट्राइट्स से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे जैम, अचार भी ना खाएं।
    कैंसर के फैलने और पनपने के पीछे वातावरण का प्रदूषण और बदलती जीवन शैली जिम्मेदार है। नित नए शोध बता रहे हैं कि समय बचाने के लिए हम जो डिब्बाबंद और माइक्रोवेव सामग्री इस्तेमाल कर रहे हैं वह भी घातक होती जा रही है। जानिए 7 कौन सी ऐसी चीजें है जिन्हें खाने से हमें बचना चाहिए वरना भविष्य में कैंसर की संभावना के लिए तैयार रहना चाहिए।
    माइक्रोवेव पॉपकॉर्न : माइक्रोवेव में बनाया गया पॉपकॉर्न कैंसर की वजह बन रहा है। क्योंकि माइक्रोवेव में पॉपकॉर्न डालने से परफ्यूरोक्टानोइक एसिड बनता है। इससे कैंसर पनपता है। इसीलिए अमेरिका में पॉपकॉर्न बनाने के लिए सोयाबीन का तेल इस्तेमाल किया जाता है।
    नॉन ऑर्गेनिक फल : जो फल लंबे समय से कोल्डस्टोरेज में रखे रहते हैं,लाख सफाई के बावजूद उन पर केमिकल की परत चढ़ी ही रहती है। इसकी वजह से कैंसर होता है। निश्चित समय के बाद स्टोर किए हुए फलों को नष्ट कर दिया जाना चाहिए। यह कैंसर की वजह बन रहे हैं।
    डिब्बाबंद टमाटर : टमाटर को लंबे समय तक डिब्बाबंद रखने से बिसफेनॉल-ए नाम का केमिकल बनता है। जो कैंसर को बढ़ावा देता है। इसके बावजूद हम इसका उपयोग कर रहे हैं और कैंसर का खतरा मोल ले रहे हैं।
    प्रोसेस्ड मीट : प्रोसेस्ड मीट खाने से कैंसर होता है। मीट को सुरक्षित रखने के लिए जो केमिकल प्रयुक्त होते हैं, उसमें सोडियम का इस्तेमाल होता है। सोडियम से सोडियम नाइट्रेट बनने की वजह से कैंसर फैलता है।
    आलू चिप्स : हमारे देश में एक तरफ आलू के चिप्स को तमाम कंपनियां पैक कर के बेचती हैं, जबकि आलू चिप्स में सोडियम, नकली रंग का इस्तेमाल आसानी से किया जाता है। जिसकी वजह से कैंसर फैलता है।
    कैंसर रोगी के लिए अधिक कैलोरी और प्रोटीन प्राप्त करने के लिए कुछ सुझाव:
    दिनभर की तीन टाइम लिए जाने वाले भोजन को आप छोटे-छोटे भोजन में विभाजित करें, जिन्हें आप कुछ अंतराल में खा सकते हैं।
    कुछ घंटों के अंतराल पर अपने छोटे भोजन का सेवन करें, जब तक आपको भूख नहीं लगती तब तक प्रतीक्षा न करें।
    अपने सलाद या मिठाई पर कुछ सूखी अखरोट या फाइबर युक्त बीज लें।
    जब आपको बहुत भूख लगती है, तो अपना सबसे बड़ा भोजन करें। उदाहरण के लिए, अगर आपको सुबह सबसे ज्यादा भूख लगती है तो नाश्ते के जगह पर पूर्ण भोजन कर सकते हैं।
    अधिक उच्च कैलोरी, उच्च प्रोटीन वाले पेय लें।
    अपने भोजन के साथ भोजन करने के बजाय भोजन के बीच तरल पदार्थ पिएं। भोजन के साथ तरल पदार्थ लेने से आप भरा हुआ महसूस कर सकते हैं।
    अपनी भूख को सुधारने के लिए भोजन से पहले थोड़ा टहलें या हल्का व्यायाम करें।
    अगर आपको ऐसा लगता है कि आपका पसंदीदा भोजन है, तो उसे खाएं, अपने खानपान का विरोध न करें।
    घर में बनें ताजें भोजन का ही प्रयोग करें। कच्चा, बासी और स्टोर्ड फूड से बचना चाहिए, क्योंकि इनसे संक्रमण का अधिक खतरा रहता है।
    ***

    13.10.21

    कब्ज पेचिश ,पाखाना की हाजत बनी रहने की होम्योपैथिक रेमेडीज़:Constipation



    कब्ज किसे कहते हैं? हम लोग नित्य जो खाते हैं, उसका सार अंश रक्त और असार अंश मल में परिणत होकर रोज निकल जाता है, यही स्वाभाविक नियम है। जब ऐसा न होकर वही मल बहुत दिनों तक आंतों में रुका रह जाए, रोज निकल न जाए या कष्ट से निकलता हो, तो उसे कब्ज या कोष्ठबद्धता कहते हैं।

     कब्ज निम्न कारणों से होता है-

    (1) नित्य अधिक परिमाण में गरिष्ठ चीजें खाने पर और जिनमें जलीय अंश कम होता है, ऐसे सूखे पदार्थ – जैसे मोटी रोटी इत्यादि रोज खाने पर मल सूख जाता है और कष्ट से निकलता है, इससे कब्ज होता है।
    (2) गरम और मसाले वाली चीजों में पानी का अंश कम रहता है, अतः ऐसी चीजें और नित्य मांसादि खाने से कब्ज होता है।
    (3) उपवास करने अथवा किसी एक ही तरह की चीज रोज खाने से और केवल गाय का दूध पीकर रहने से भी कब्ज रहता है।
    (4) पाखाना लगने पर ठीक उसी समय न जाकर असमय में जाया जाय, तो कुछ दिन बाद कब्ज हो जाता है (बवासीर के रोगी कष्ट से बचने के लिए ऐसा किया करते हैं)।
    (5) बहुत दिनों तक पतले दस्त आने के बाद अथवा जुलाब लेने का अभ्यास होने पर कब्ज होता है। रक्ताल्पता (एनीमिया), हरित्पाण्डु-रोग (क्लोरोसिस), पक्षाघात आदि रोगों में आंतों की पेशी कमजोर पड़ जाती है, उससे तथा बहुत अधिक मानसिक परिश्रम करने और शारीरिक परिश्रम न करने पर, बहुत पसीना और बहुमूत्र आदि रोगों में अधिक मात्रा में पेशाब होने के कारण फेफड़े के किसी रोग में बहुत अधिक श्लेष्मा निकलने से तथा मस्तिष्क और मेरुमज्जा के रोग इत्यादि में कब्ज होता है।
    (6) आंतों में बहुत थोड़ा पाचक रस निकलने और पित्त-कोष से बहुत थोड़ा पित्त निकलने पर कब्ज होता है।
    आंतों के भीतर बहुत दिनों तक मल अड़ा रहने से वह सड़ना आरंभ हो जाता है, जिस कारण एक प्रकार का विषैला पदार्थ उत्पन्न होकर रक्त में मिल जाता है, इस कारण सिरदर्द, आँखों में ऐसा दिखाई देना मानो सामने कुछ उड़ रहा है, पाचन-शक्ति का नाश, अरुचि, भूख न लगना, मुंह बेस्वाद, जिह्वा मैली, पेट तना, कलेजे में धड़कन, चिड़चिड़ा मिजाज, रक्तहीनता, नींद न आना, ज्वर इत्यादि का सामना व्यक्ति को करना पड़ता है। यदि मल बहुत दिनों तक आंतों में पड़ा रहे, तो आंत की पेशी की वृद्धि, आंत के भीतर का आयतन बढ़ जाना और सूखा मल जमा रहता है, तो आंतों का प्रदाह, आंतों का घाव और बहुधा आंतों में छिद्र हो जाता है। आंतों में मल अड़ा रहने से बवासीर होती है, वीर्यक्षय होता है, पैर का तलवा फूलता है और स्नायविक-दर्द और शियाटिका हो जाता है।
      कब्ज के कष्ट से छुटकारा पाने के लिए बहुत से अनजान लोग प्रायः जुलाब लिया करते हैं, उससे पहले तो सामयिक लाभ हो जाता है, पर अंत में कुछ भी लाभ नहीं होता, रोगी क्रमशः जुलाब की मात्रा और परिमाण बढ़ाता जाता है, किंतु उससे लाभ के स्थान पर हानि ही अधिक होती है। जिस दिन जुलाब लिया जाता है, उस दिन किसी तरह दो-चार बार दस्त हो जाता है, लेकिन दूसरे दिन से और भी अधिक कब्ज के लक्षण प्रकट होने लगते हैं, इसलिए यह क्रिया बंद कर देनी चाहिए।
     जिन्हें बहुत अधिक कब्ज रहता है, जिनको प्रायः जुलाब लेना पड़ता है, औषधियों से स्थायी लाभ नहीं होता, वे 
    *बड़ी हरड़, सोंठ-सनाय की पत्ती और सौंफ ये कई चीजें अलग-अलग कूटकर, कपड़छन करके सबको समान वजन में मिलाकर एक शीशी में भर कर रखें और नित्य भोजन के बाद आधा चम्मच की मात्रा में पानी के साथ सेवन करें।

     अथवा-

    *छिलका उतारा तिल, मक्खन, ताल मिश्री-सबको एक साथ पीसकर नित्य सवेरे खाने से कोठा साफ होता है। इससे पेट ठंडा रहता है और पौष्टिक भी है। 
    इसके अलावा 
    *गुलाब की सूखी कली 2 तोला, मिश्री 4 तोला को एक साथ अच्छी तरह पीसकर एक पाव गरम दूध के साथ लेने से दस्त होकर पेट साफ हो जाता है। यह यूनानी गुलकंद का जुलाब है।
    कब्ज के रोग में जब औषधियों के सेवन से लाभ नहीं होता, उस समय नित्य नियमित रूप से कुछ समय के लिए कुछ दिनों तक व्यायाम करने से विशेष लाभ होता है। बहुत अधिक पढ़ना-लिखना, एक ही ढंग से बहुत देर तक बैठे रहकर काम करना मना है। रोज सुबह-शाम घूमना लाभ करता है।

    कब्ज़ से जुड़ी कुछ जरूरी बातें:

    कब्ज़, आमतौर पर आंतों द्वारा भोजन से ज्यादा पानी सोखे जाने के कारण होता है।
    कब्ज़, शारीरिक रूप से एक्टिव न होने, कुछ दवाइयों और बड़ी उम्र के कारण भी हो सकता है।
    कब्ज़ की समस्या को अपनी लाइफस्टाइल को बदलकर भी दूर किया जा सकता है।
    जुलाब, जमालगोटा, रेचक औषधियों या फिर पेट साफ करने की दवाइयों को आखिरी इलाज के तौर पर ही लिया जाना चाहिए।

    आहार –

     सवेरे भात, तीसरे पहर फल, रात में चक्की के पिसे आटे की रोटी। भात खूब सिझाकर और नरम बनाकर अच्छी तरह चबा-चबाकर खाना चाहिए। फल-ताजे और पके ही लाभ करते हैं। पका पपीता, केला, आम, जामुन, बेल, अंगूर, नाशपाती, सेब, मेहताबी नींबू, संतरे, खजूर और अमरूद इच्छापूर्ण खाये जा सकते हैं। इनमें अमरूद सबसे ज्यादा दस्तावर है, पर अमरूद खाने के समय उसके बीजों को साबुत ही निगलना चाहिए। तरकारियों में साग-सब्जी उपकारी और विरेचक हैं। इसलिए बथुआ, पालक, कलमी, परवल के पत्ते आदि नित्य एकेक सागा खाना चाहिए। केले का गामा, केले का फूल, गूलर, कच्चू और ओल भी लाभ करते हैं। मूंग की दाल खाना मना नहीं है। मछली-मांस हानि करते हैं, विशेष इच्छा हो तो मछली सप्ताह में केवल एक बार खाई जा सकती है। तीसरे पहर रोटी के साथ थोड़ा गुड़ खाना चाहिए।
      डॉ० जहार का कथन है कि होम्योपैथिक चिकित्सकों के लिए कब्ज का उपचार करना बहुत ही कठिन कार्य है। यदि किसी रोगी को एक सप्ताह तक मल न हो, एनीमा या पिचकारी देकर भी कोई लाभ न हो, तो ऐसे रोगी के लिए वे पहले ओपियम प्रयोग करते थे। यदि 24 घंटों में ओपियम से कोई लाभ नहीं होता, तो उसके बाद प्लम्बम 30 या एल्यूमिना का प्रयोग करते थे। चेष्टा करने पर बहुत थोड़ा मल निकलने का लक्षण रहने पर प्लैटिना और जिन व्यक्तियों को बवासीर का रोग है, उनके उक्त लक्षण में नक्सवोमिका या सल्फर लाभ करती है। पाकस्थली में बहुत अधिक दबाव मालूम होना, मल बहुत कड़ा होना, इन दोनों लक्षणों में लैकेसिस देनी चाहिए।
      गर्मी के दिनों के कब्ज में ब्रायोनिया, लाभ न हो, तो कार्बोवेज या एण्टिम क्रूड, सर्दी के दिनों के कब्ज में वेरेट्रम एल्बम, जो बैठे-बैठ काम किया करते हैं, शारीरिक परिश्रम नहीं करते, उनकी कब्जियत में नक्सवोमिका, ब्रायोनिया या काक्युलस, जो बच्चे घुटनों के बल चलते हैं, चलना नहीं सीख पाए हैं, उनकी कब्जियत में नक्सवोमिका, ब्रायोनिया, गर्भवती स्त्रियों की कब्जियत में सिपिया, नक्सवोमिका, ब्रायोनिया, ऐल्यूमिना, प्रसूता स्त्री के कब्ज में प्लैटिना, ओपियम, गाड़ी में घूमने से या पैदल चलने से कब्ज होने पर ऐल्यूमिना, प्लैटिना, वृद्धों के कब्ज में एण्टिम क्रूड, फासफोरस, ब्रायोनिया, लैकेसिस, शराबियों के कब्ज में नक्सवोमिका, कैल्केरिया, सल्फर और लैकेसिस उपयोगी है।

    पानी का एनीमा – 

    डॉ० हेरिंग का कथन है कि जिन लोगों को अधिक समय से कब्ज की शिकायत है, वे यदि रात को सोते समय ठंडे पानी का एनीमा लेते रहें, तो दो-एक सप्ताह में ही आंतें ठीक काम करने लगती हैं और कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। कभी-कभी कब्ज किसी अन्य रोग के साथ जुड़ा होता है। यदि उस रोग का उपचार हो, तो कब्ज अपने आप दूर हो जाता है। उदाहरण के लिए, हृदय-रोग में स्पाइजेलिया, माइग्रेन में आइरिस तथा सिरदर्द में जेल्सीमियम के लक्षण पाए जाते हैं। इन रोगों का उपचार करते हुए यदि कब्ज हो, तो हृदय-रोग में स्पाइजेलिया से, माइग्रेन में आइरिस से और सिरदर्द में जेल्सीमियम से हृदय-रोग, माइग्रेन और सिरदर्द ही नहीं जाएगा, कब्ज भी जाता रहेगा।
    कई स्टडीज में ऐसा पाया गया है कि कब्ज़ का होम्योपैथिक दवाओं से इलाज करने पर सफलता की दर खासी अच्छी रही है।
    कब्ज़ की आम होम्योपैथिक दवाओं में
     कैलकेरिया calcarea carbonica
    नक्स वोमिका (nux vomica),
     सिलिका (silica), 
    ब्रायोनिया (bryonia) 
    और 
    lycopodium

    कब्ज की होम्योपथिक रेमेडीज़ के लक्षण 

    हाइड्रेस्टिस 2x, 30 – 

    यह औषधि नक्सवोमिका से भी अच्छा काम करती है। प्रातः काल का जलपान से पहले इसके मूल-अर्क की 1 बूंद कई दिनों तक लेते रहने से कब्ज में लाभ होता है। अधिकतर होम्योपैथ कब्ज में नक्सवोमिका दिया करते हैं। यदि रोगी को केवल कब्ज की ही शिकायत हो, तब हाइड्रेस्टिस सर्वोत्तम औषधि है। उनके कथनानुसार 2x शक्ति में भी यह बहुत अच्छा काम करती है। कब्ज और दस्त के पर्यायक्रम में भी यह उपयुक्त है। प्रायः दस्तावर औषधियों के लेने के बाद कब्ज की शिकायत हो जाती है, तब यह तथा नक्सवोमिका उपयोगी होती हैं। हाइड्रेस्टिस के कब्ज में पेट अंदर को धंसता-सा अनुभव होता है जो लक्षण नक्सवोमिका में नहीं है।

    नक्सवोमिका 200, 1M –

     जब मल-निष्काशन के लिए बार-बार जाना पड़े, किंतु हर बार पेट साफ न हो और पुनः जाना पड़े, तो इसे नक्सवोमिका का लक्षण नहीं समझना चाहिए, क्योंकि यह लक्षण लाइकोपोडियम में भी पाया जाता है, किंतु इन दोनों के कब्ज में भेद यह है कि नक्सवोमिका में आंतों की अनियमित-गति के कारण कब्ज होता है और लाइकोपोडियम में गुदा की संकोचक-पेशी के कारण कब्ज होता है; रोगी को ऐसा लगता है कि गुदा में डाट लग गया है, वहां का मल को बाहर नहीं निकलने देता। डॉ० कार्टियर का कहना है कि कब्ज दूर करने के लिए नक्सवोमिका को निम्न शक्ति में नहीं देना चाहिए, न ही बार-बार देना चाहिए।

    एलू-3 – 

    यह औषधि एलूमिना से उल्टी है। हर समय हाजत बनी रहती है, अनजाने में सख्त मल भी निकल पड़ता है।

    सीपिया 30, 200 –

     मल निकलने के बाद भी गुदा में डाट-सी लगी महसूस होती है। ध्यान रहे, इसके कब्जे में कोई न कोई जरायु-संबंधी रोग शामिल रहता है, इसलिए यह औषध प्रायः स्त्रियों के कब्ज में हितकर है।

    ग्रैफाइटिस 30, 200 –

     स्त्रियों में ऋतु-धर्म के विलम्ब से होने के साथ ऐसा मल, जिस पर आंव चिपटी रहे, कठिनाई से निकले, कई दिन मल न आए, तब यह औषध देनी चाहिए। सख्त मल आने से गुदा में चीर पड़ जाता है, जिससे मल आने में बहुत तकलीफ होती है। इस प्रकार के चीर में नाइट्रिक एसिड भी उपयोगी है।

    मैग्नेशिया म्यूर 30 – 

    बच्चों के दांत निकलते समय के कब्ज में यह औषधि हितकर है।

    सल्फर 30 – 

    इस औषधि में नक्सवोमिका और लाइकोपोडियम की तरह पेट पूरी तरह से साफ नहीं होता। यों इसमें कई अन्य लक्षण भी पाए जाते हैं, जैसे कि रोगी को कोई त्वचा का रोग हो, खाज, छाले, फुसियां हों, बेहोशी के दौरे पड़ते हों, सिर की तरफ गर्मी की झलें उठती हों, 11 बजे जी डूबता-सा लगता हो, कमजोरी का अनुभव होता हो, तो सल्फर उपयोगी है। नक्सवोमिका से लाभ न हो, तो सल्फर उसकी कमी को पूरा कर देती है। बहुत से होम्योपैथ कब्ज की चिकित्सा सल्फर से प्रारंभ करते हैं।

    मर्क डलसिस 1x – 

    बोरिक का कथन है कि मल न आ रहा हो, किसी भी प्रकार उसे लाना हो, तो इस औषधि का 1.x विचूर्ण 2 से 3 ग्रेन की मात्रा में हर घंटे देते रहने से पेट खुलकर साफ हो जाता है।

    ब्रायोनिया 30, 200 –

     आंतें काम न करती हों, मल खुश्क आता हो, लंबा, सख्त, सूखा हुआ, अंतड़ियों का स्राव न बनता हो, इसी सूखेपन के कारण बहुत प्यास लगी हो। ब्रायोनिया का रोगी सूर्य की गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर सकता।

    ओपियम 30, 200 – 

    इसमें भी ब्रायोनिया की तरह आंतें खुश्क होती हैं, वे काम नहीं करतीं, उनमें से स्राव नहीं रिसता। यही कारण है कि रोगी को मल कठोर मार्बल की तरह होता है। ब्रायोनिया, ओपियम तथा एलूमिना-इन तीनों में मल की हाजत नहीं पाई जाती। ओपियम के रोगी को कुछ औंघाई भी रहती है, किंतु मल की हाजत बिल्कुल नहीं होती।

    एलूमिना 30, 200 – 

    पाखाना जाने की इच्छा नहीं होती। कई दिन का मल जब तक जमा नहीं हो जाता, तब तक व्यक्ति मल-त्याग के लिए नहीं जाता। गुदा काम ही नहीं करती, मल-त्याग के लिए गुदा पर बहुत जोर लगाना पड़ता है। गुदा के काम न करने की हालत यहां तक होती है कि नरम मल भी आसानी से नहीं आता, उसके लिए भी बहुत जोर लगाना, कांखना पड़ता है। ओपियम, एलूमिना, प्लम्बम और ब्रायोनिया में मल बहुत सख्त होता है। सिलेनियम देने से गुदा को ताकत मिलती है, जिससे वह कार्य-सक्षम हो जाती है।

    लाइकोपोडियम 30 – 

    कब्जियत या बड़े कष्ट से सूखा, कड़ा मल थोड़ा-सा निकलना, पेट फूल जाना, पेट में गर्मी मालूम होना, पेट में आवाज होना, भोजन के बाद ही तलपेट का फूलना, पाखाना लगना, पर न होना, मुंह में पानी भर आना आदि लक्षणों में यह औषध दें।


    ऐनाकार्डियम 3, 6 – 

    पाखाने की हाजत, किंतु पाखाना निकालने की चेष्टा करते ही उसका बंद हो जाना।

    कालिंसोनिया 3 –

     यदि कब्जियत के साथ बवासीर भी हो, तो इससे लाभ होता है।

    पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा नैट्रम म्यूरिएटिकम


    पुरानी कब्ज की शिकायत जिसमें सख्त और सूखा मल आता हो उसके लिए नैट्रम म्यूरिएटिकम सबसे उत्तम होम्योपैथिक दवा है | रोगी के मुहं में छालें हो जाते है और मुहं का स्वाद कड़वा रहता हो, रोगी भूख कम लगती है और पाचन-क्रिया ठीक प्रकार से काम नही करती इस तरह के लक्षण दिखने पर होम्योपैथिक दवा नैट्रम म्यूरिएटिकम का उपयोग किया जा सकता है |


    पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा कार्बो वैज

    कब्ज की शिकायत में अगर मल त्याग के बाद दर्द हो, बदबूदार हवा निकले, रात के समय मलद्वार में खुजली और उसके साथ दर्द हो, डकार आये और रोगी को पेट में भारीपन लगे, इस प्रकार के लक्षण आने पर कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा कार्बो वेज का उपयोग कर सकते है |


    पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा लाइकोपोडियम


    रोगी जब सुबह जगता है तो मुहं से गन्दी बदबू आती है, गले में सुजन आ जाती है, शाम के समय लक्षण बढ़ जाते है, मुहं सूखना और मुहं के छालें आदि लक्षण दिखने पर कब्ज के लिए होमियोपैथी की दवा लाइकोपोडियम का उपयोग कर सकते है |

    पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा ब्रायोनिया अल्बा


    रोगी की जीभ पर सफ़ेद और पीलेपन की मैल जमा हो जाती है, मुहं सुखना, रोगी के पेट में उसको दवाब महसूस होता है, उसके पेट से हाथ लगाने पर दर्द होता है, रोगी जब मल त्याग के लिए जाता है तो उसको सख्त और बड़े-बड़े टुकड़ों के रूप में मल आता है, गर्मी के मौसम में रोगी के लक्षण बढ़ जाते है, इस प्रकार के लक्षण कब्ज में देखने पर ब्रायोनिया एल्बा का उपयोग कब्ज में लाभ देता है |


    पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा कैल्केरिया कार्बोनिका


    रोगी को मलत्याग बहुत ही कम हो पाता है, मल करते समय उसके मस्सों में सूजन आ जाती है, रोगी का पेट फूला हुआ रहता है और उसके साथ पेट में ठंडक महसूस करता है, पेट ऐठन होती है जो रात के समय अधिक बढ़ जाती है, लगातार भूक लगती रहती है और खाने के बाद मुहं का में कड़वाहट महसूस होती है, इस प्रकार के लक्षण दिखने पर कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा कैल्केरिया कार्बोनिका का उयोग कर सकते है |
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