1.1.21

अगर वृक्ष के आयुर्वेदिक उपचार




अगर के पेड़ असम, मालाबार, चीन की सीमा के निकटवर्ती क्षेत्रों, बंगाल के दक्षिण की ओर के उष्णकटिबन्ध के ऊपर के प्रदेश में और सिलहट जिले के आसपास ‘जातिया’ पर्वत पर अधिक मात्रा में होता है।


व्यवहारिक नाम:

‌‌‌अंगेजी: ईगलवुड (Eaglewood)।

अरबी: ऊदगर की।

कर्नाटकी: अगर।

गुजराती: अगरू।

ग्रीक: अगेलोकन।

तमिल: अगर।

तेलुगु: अगरू चेट्टु।

फारसी: कसबेबवा।

बंगाली: अगर।

मराठी: अगर।

मलयालम: आकेल।

लैटिन: एक्वीलारिया (Aquilaria sp.)

‌‌‌संस्कृत: स्वाद्वगरू।

हिन्दी: अगर।

स्वाद: ‌‌‌अगर तेज, कड़वा और सुगन्ध मिश्रित होता है।
‌‌‌पौधे का स्वरूप: ‌‌‌
अगर एक पेड़ की लकड़ी है। वैसे तो यह कई प्रकार की होती है परन्तु इनमें काली अगर ही श्रेष्ठ होती है। अगर का पेड़ बहुत बड़ा होता है और हमेशा हरा रहता है। अगर का पेड़ ऊबड़-खाबड़ होता है। ‌‌‌इसमें मार्च-अप्रैल मास में फूल आते हैं, अगर के बीज जुलाई में पकते हैं। इसकी लकड़ी नर्म होती है। इसके छिद्रों में राल की तरह कोमल और सुगन्धित पदार्थ भरा रहता है। लोग उसे चाकू से कुतरकर रख लेते हैं, अगर की अगरबत्ती बनाने और शरीर पर मलने के काम में लाया जाता है, अगर की सुगन्ध से मन प्रसन्न होता ‌‌‌है। ‌‌‌अगर का रंग काला और भूरा होता है। इसकी लकड़ी जलाने में ‌‌‌सुगन्ध देती है।
‌‌‌विशेष: ‌‌‌
अगर पित्त प्रकृति वालों के लिए हानिकारक होता है। ‌‌‌कपूर और गुलाब के फूल अगर के दोषों को दूर करते हैं और इसके गुणों में सहायक होते हैं।
स्वभाव: ‌‌‌
अगर खुष्क और गर्म प्रकृति का होता है।
‌‌‌औषधीय गुण: ‌‌‌
अगर गर्म, चरपरी, त्वचा को हितकारी, कड़वी, तीक्ष्ण, शीत, वात और कफनाशक और मन को प्रसन्न करती है, शरीर में स्फूर्ति लाती है, स्मरण शक्ति को बढ़ाती है, मस्तिष्क को ताजा करती है और गर्भाशय की सर्दी को दूर करती है।
अगर के पेड़ असम, मालाबार, चीन की सीमा के निकटवर्ती क्षेत्रों, बंगाल के दक्षिण की ओर के उष्ण कटिबन्ध के ऊपर के प्रदेश में और सिलहट जिले के आस-पास ‘जातिया’ पर्वत पर अधिक मात्रा में होता है

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