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21.4.17

स्त्री बांझपन और गर्भ गिरने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार //mahila banjhpan ayurvedic upchar

  

  नपुंसक उस व्यक्ति को कहते हैं जिस पुरुष के वीर्य या लिंग में कमी होती है तथा वह सन्तान की उत्पत्ति के योग्य नहीं रहता है। इसी तरह वह महिला जिसके गर्भाशय में कुछ कमी हो या उसे मासिक धर्म ठीक समय पर नहीं आता है तथा वह संतान पैदा करने के लायक नहीं है उस महिला को नस्त्रीक कहा जा सकता है। बांझ उस स्त्री को कहते हैं जिस स्त्री के गर्भाशय नहीं होता या उसे मासिक धर्म नहीं आता हो। लेकिन इसके अलावा कई स्त्रियां ऐसी भी होती है जिन्हे मासिक धर्म होते हुए भी नास्त्रीक कहलाती है। कई लोग पूर्ण रुप से नपुंसक नहीं होते परंतु उनमें थोड़े-थोड़े गुण नपुंसक के भी मिलते हैं। यदि उनका अच्छी तरह से चिकित्सा की जाए तो उनमें स्त्रियों को गर्भवती करने की शक्ति पैदा हो जाती है और वे बच्चे पैदा करने का पुरुषत्व प्राप्त कर लेते हैं। इसी तरह से अनेक महिला भी ऐसी है जिनका ठीक समय पर इलाज न होने पर बांझपन रोग के लक्षण पैदा हो जाते हैं |

कितने प्रकार के बाँझपन-

*श्लेष्मा  - जिस स्त्री की योनि शीतल और चिकनी हो तथा खुजली रहती हो।
*षण्ढ - जिस स्त्री के स्तन बहुत छोटे हो, मासिक स्राव न होता हो, योनि खुरदरी हो, गर्भाशय ही न हो अगर हो तो काफी छोटा हो।
*अण्डभी - जिस स्त्री की योनि सेक्स करते समय या अधिकतर नीचे पैरों पर बैठते समय तथा अण्डकोषों की तरह निकल आए।
*वामनी - जिस स्त्री की योनि मनुष्य के वीर्य को तेजी के साथ उल्टी की तरह बाहर निकाल देती है।
*पुत्रध्नी - जिस स्त्री का गर्भ ठहर जाने के कुछ दिनों बाद खून का आना शुरु हो जाता है तथा गर्भ पात हो जाता है।
* जिस स्त्री की योनि से संभोग करते समय बहुत ज्यादा स्राव निकले और वह पुरुष से पहले ही स्खलित हो जाए।
*पित्तला - जिस स्त्री को योनि में मवाद और जलन महसूस होती हो।
*अत्यानंदा – जिस स्त्री का मन सदा सेक्स करने का करता हो।
*कर्णिका - जिस स्त्री की योनि में अधिक गांठे हो।
*अतिचरणा – जो स्त्री सेक्स करते समय पुरुष से पहले ही  स्खलित  हो जाती हो।

*शीतला – जो स्त्रियां शांत स्वभाव की होती है वह शीतला (नस्त्रिक) स्त्री कहलाती है। उन स्त्रियों में पुरुष से मिलने की चाह नहीं होती। जब वो शादी के बाद मजबूर होकर पति को खुश करने के लिए सेक्स में तल्लीन होती है तो उन्हें कोई मजा नहीं आता है। बस वह निर्जीव शरीर की तरह पड़ी रहती है। वे स्त्रियां बड़ी मुसीबत का कारण बनती है। अगर शादी के 1-2 महिनों के बाद भी सेक्स का आनन्द न ले तो उनकी अच्छे चिकित्सक से इलाज कराना चाहिए।
*विद्रूता - जिस स्त्री की योनि काफी अधिक खुली हुई हो।
*सूचीवक्त्रा- जिस स्त्री की योनि इतनी अधिक सख्त हो कि पुरुष का लिंग अंदर ही न जा सके।
*त्रिदोषजा - जिस स्त्री की योनि में सदा तेज दर्द तथा हमेशा खुजली होती रहे।
*उदावर्ता – जिस स्त्री की योनि में से झागदार मासिक धर्म बहुत ही दर्द के साथ निकलता हो।
*बंध्या – जिस स्त्री को कभी मासिक धर्म नहीं आता हो तथा वह सभी तरह से स्वस्थ रहती हो।
*परिप्लुता – वह स्त्री जिसकी योनि में सहवास के समय बहुत अधिक दर्द होता हो।

*बिप्लुता – जिस स्त्री की योनि में सदा दर्द रहता हो।
*लाहिताक्षरा - जिस स्त्री की योनि से बहुत तेज मासिक स्राव निकलता हो।
*प्रसंनी - जिस स्त्री की योनि अपने जगह से हट जाये।
*वातला – जिस स्त्री की योनि बहुत अधिक सख्त, खुर्दरी और दर्द करने वाली हो।



उपचार –

*लगभग 12 ग्राम खाने वाले सोडे को 2 लीटर गर्म पानी में मिलाकर स्त्री की योनी में पिचकारी मारे। इसके अलावा स्त्री की योनि में मूषक के तेल का फाहा रखना भी बांझपन के रोग में फायदेमंद होता है।
*3 ग्राम मालकांगनी के पत्ते, 1 ग्राम सज्जीखार, 2 ग्राम वर्च और 2 ग्राम विजयसार, इन सबको मिलाकर चूर्ण बनाकर आधा सुबह तथा आधा शाम के समय दूध के साथ लें। इस चूर्ण का सेवन करते समय रोगी को घी, तिल, कांजी, उड़द, छाछ, नारियल और छुहारे लेनी चाहिए।
*तगर, छोटी कंटकारी, कुठ, सेंधानमक और देवदार के बूरे में इन सबको पकाकर इनके तेल का फोहा लेकर यानि के अंदर रखना चाहिए। हरमल, सोया और मालकांगनी के बीज इन सबको मिलाकर कोयले के ऊपर रखकर तथा ऊपर से कपड़ा ढककर पैरो के बल बैठ जाए और स्त्री को योनि के अंदर धुआ लेना चाहिए तथा वे खुली हवा में बाहर न निकले।
*रोगी स्त्री को सोते समय घुटनों के बल बैठना चाहिए और फिर धरती पर इस तरह से लेटे कि उनकी छाती नीचे धरती से स्पर्श करती रहें। उनकी निचली कमर ज्यादा से ज्यादा ऊपर की तरफ उठी रहे। जब वे थक जाये तो वे दाई करवट लेट सकती है। अगर वे चारपाई पर भी इस क्रिया को कर सकती है। मूषक के तेल का फाहा योनि के अंदर रखना चाहिए। बांझपन के रोग में दूध की भार लेना भी अति उपयोगी और लाभदायक होता है।
*रोगी स्त्री को गर्भ ठहरने के शुरुआत में ही मोती-सीप की भस्म और फौलाद की भस्म 125-125 ग्राम सुबह-शाम मक्खन, गाजर या सेब के मुरब्बे के साथ लेना चाहिए। यदि स्राव आना शुरु हो जाए तो रसौंत आधा ग्राम 50 ग्राम पानी से या माखन के साथ लेना चाहिए तथा नाभि पर बड़ के मुलायम पत्ते, गेरु और हरी काई का लेप करना चाहिए। अगर ये तीनों चीजे न मिल सके तो काई भी एक चीज ले सकते है। स्त्री को पीठ के बल सीधा लेटना चाहिए।





*1 ग्राम नीम का रस, 1 ग्राम सज्जी और 1 ग्राम सौंठ इन सबको मिलाकर इलायची के अर्क के साथ लेना चाहिए। बांझपन के रोग में दशमूल के काढ़ा की पिचकारी करना भी लाभकारी होता है।
*मलमल के पतले बारिक कपड़े में पोटली बनाकर और उसे पानी में काफी ऊपर तक डुबो कर गर्भाशय के मुंह के अंदर रख दें। इसे सुबह और शाम दो बार रखना चाहिए। यदि इस तरह से भी खून का रुकना बंद ना हो तो किसी अच्छे लेडी चिकित्सक या वैध से इलाज कराना चाहिए।
*4-4 ग्राम समुद्र सोख, 3-3 ग्राम सूखे अनार का छिलका इन दोनों को मिलाकर सुबह के समय तीन बार खांड के कच्चे तथा पके शरबत या अनार के रस के साथ देने से बांझ स्त्री को बहुत ही फायदा तथा लाभ मिलता है।

*बांझपन से ग्रस्त रोगी स्त्री को दूध तथा चावल गर्म नहीं खाने चाहिए। बांझपन स्त्री को घीया, मूली, शलजम, कद्दू, ठंडी लस्सी, मक्खन, हरी तोरी या कुल्फे के साग से रोटी देनी चाहिए।
*अधिकतर गर्भपात खाना-पीना सही ढ़ग से न होना, बहुत ज्यादा मेहनत करने से, ज्यादा भारी सामान के उठाने से, टेढे-मेढे रास्ते पर कार या गाड़ी के सफर करने से, पेट के अंदर चोट लगने से, गलत तरीके से संभोग करने से, सूजाक के रोग होने से और बच्चेदानी के अंदर से बार-बार स्राव होने से गर्भपात हो जाता है। गर्भपात दो तरह का होता है-
*एक गर्भपात वह होता है जो सब तरह से ध्यान रखने और हर तरह से इलाज कराने से भी हो जाता है। गर्भपात होने का कारण है गर्भाशय का मुख बहुत अधिक खुल जाना। अगर इस तरह की कठिनाई आ जाये तो हस्पताल में जाकर पूर्ण रुप से गर्भाशय की सफाई करा लेना उचित होता है।
*दूसरा कारण होता है जब गर्भाशय का मुख (मुंह) अधिक नहीं खुलता है तथा उसके अंदर से केवल रक्त स्राव ही होता रहता है। यह R.O.D.E. होता है।
* विश्राम - रोगी स्त्री को अंधेरे कमरे में चारपाई पर लिटा कर आराम कराना चाहिए। चारपाई के चारों कोनों के नीचे 2-2 ईंट रखकर चारपाई को ऊंचा करना चाहिए और शरीर से तथा दिमाग से आराम कराना चाहिए। कमरे के अंदर सिर्फ एक या दो लोग ही होने चाहिए।
* अफीम – बांझ रोगी को डाक्टर अधिकतर ऐसी अवस्था में मोर्फिया का इंजेक्शन या आयुर्वेदिक डाक्टर अफीम से बना हुआ मिश्रण देते है।
* एनिमा – रोगी स्त्री को किसी दाई या नर्स से गुनगुने पानी से या ग्लिसरीन से भी एनिमा कराना चाहिए।
जब रोगी स्त्री को गर्भपात हो जाए तो होस्पिटल से सफाई करवानी चाहिए और सूजाक रोग का पूरी तरह से टेस्ट करवाकर उसका इलाज करवाना चाहिए।
* आहार – बांझपन से पीड़ित स्त्री को हल्के पचने वाले, शरीर को ताकत देने फल, फलों का रस, गाजर, टिण्डे, लौकी आदि हल्की सब्जियों का सेवन करना लाभदायक होता है।




*बांझपन स्त्री को योनि के अंदर शीतल जल या दूध के छींटे बार-बार मारने चाहिए। योनि के अंदर लोवान के तेल का फोहा रखना चाहिए। सफेद चंदन, बिरोजा शुद्ध, तबाशीर, छोटी इलायची तथा खांड बराबर भाग में मिलाकर आमले के पानी के साथ सुबह और शाम को 4-4 ग्राम की मात्रा में खाये।
*अगर पत्नी की संभोग करने की इच्छा करती है, परन्तु यह पति के मान और शरीर के लिए बहुत ही नुकसानदायक है। गेरु 2 ग्राम और 2 ग्राम काली मिर्च का चूर्ण रोजाना एक महिने तक सुबह तथा शाम पानी के साथ खिलाना चाहिए।
*बांझपन का इलाज आपरेशन से भी दूर किया जा सकता है।
* कुचले को घी में भूनकर उसका छिलका और अंदर का गुदा अलग कर दें। इसे 20 गुणा दूध में कूट-पीसकर उबाल लें, जब यह खोआ की तरह हो जाए तो इसे नीचे उतार लें। फिर इसमें समान मात्रा में लौंग का चूर्ण मिलाकर लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग के बराबर गोलियां बना लें। अतिचरणा स्त्री को भोजन करने के उपरांत 10-12 ग्राम मक्खन या दूध की मलाई के साथ मिलाकर 1-1 गोली रोजाना दें।
*– हींग 1 ग्राम, सुहागा लगभग एक ग्राम का चौथाई भाग इन दोनों को शहद के साथ मिलाकर संभोग करने से पहले अतिचरणा नस्त्रीक स्त्री अपनी योनि के अंदर लगा लें। इससे वह स्त्री संभोग क्रिया के समय जल्दी ही शांत हो जाती है।
*सबसे पहले अमलतास के गूदे के पतले काढ़े से योनि को धोना चाहिए तथा फिर कुठ और सेंधानमक, पिप्पली, काली मिर्च, उड़द, सोया इन सबको एक-एक ग्राम की मात्रा में लेकर तथा उसमें पानी मिलाकर लम्बी बत्ती बनाकर और उस बत्ती को सुखाकर योनि के भीतर रख लें। काली मिर्च से योनि के अंदर जलन नहीं होती है।
पेशरी छल्ला नाम का एक गोल तरह का रबड़ का कड़ा प्राय सभी मैडिकल की दूकानों पर मिल जाती है जिसे योनि के अंदर रखने से योनि का बहुत ही आराम मिलता है। जिससे योनि नीचे की ओर नहीं झुकती है। यह काम किसी अच्छी नर्स या किसी लेडी डाक्टर से ही कराना चाहीए।
*लौंग, जायफल, जावित्री, तीनों मिलाकर 12-12 ग्राम, स्वर्ण भस्म और कस्तूरी दोनों को एक-एक ग्राम बकरी के दूध में लगभग एक ग्राम के चौथाई भाग के बराबर गोलियां बना लें। इन गोलियों को सुबह और शाम के समय शहद के साथ मिलाकर एक-एक गोली लें।





*योनि के लिए सोडे की पिचकारी श्रेष्ठ है।
*रोजाना अनार का छिलका और माजूफल को पानी में काफी के साथ उबालकर उससे योनि पर पिचकारी करते रहे। माजूफल को कपड़े से छानकर थोड़ी सी (चुटकी भर) योनि में काफी अंदर तक लगाने से योनि सीध्र ही सिकुड़ कर छोटी हो जाएगी। तब कुछ समय पश्चात उस पैसरी छल्ले (कड़े) की जरुरत नहीं पड़ती है। कड़ा हमेशा लेड़ी डाक्टर से या समझदार नर्स से ही लगवाना चाहिए। मासिक स्राव आने के बाद पैसरी छल्ले को निकलवा कर, योनि में पिचकारी लगवा कर दुबारा से पैसरी छल्ला रखवाना चाहिए।
फल घृत-
फल घी स्त्री तथा पुरुष के अंदर पैदा होने वाले वीर्य और स्त्री के संतान पैदा करने वाले अंग अर्थात योनि के अंगों में होने वाले गुणों को दूर करता है। महाऋर्षि सुश्रुत के द्वारा प्रमाणित किया गया यह घी स्त्रियों को नया जीवन देने वाली एक महत्वपूर्ण औषधि है। यह घी सभी स्त्री के रोगों के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ है।
प्रयोगः –
फल घृत को 10-12 ग्राम की मात्रा में लेकर सुबह और शाम को दूध में डालकर या शहद बहुत अधिक मात्रा में मिलाकर अथवा रोटी का बिल्कुल चूरा बनाकर इस्तेमाल करना चाहिए।
संतान प्राप्ति के अन्य उपाय
१. मंत्रसिद्ध चैतन्य पीली कौड़ी को शुभ मुहूर्त में विधिपूर्वक बंध्या स्त्री की कमर में बाँधने से उस निःसंतान स्त्री की गोद शीघ्र ही भर जाती है।



२. बरगद के पत्ते पर कुमकुम द्वारा स्वास्तिक का निर्माण करके उस पर चावल एवं एक सुपारी रखकर किसी देवी मंदिर में चढ़ा दें। इससे भी संतान सुख की प्राप्ति यथाशीघ्र होती है।

३. घर से बाहर निकलते समय यदि काली गाय आपके सामने आ जाए तो उसके सिर पर हाथ अवश्य फेरें। इससे संतान सुख का लाभ प्राप्त होता है।
४. भिखरियन को गुड दान करने से भी संतान सुख प्राप्त होता है।
५. विवाहित स्त्रियों नियमित रूप से पीपल की परिक्रमा करने और दीपक जलाने से उन्हें संतान अवश्य प्राप्त होती है।
६. श्रवण नक्षत्र में प्राप्त किये गए काले एरंड की जड़ को विदिपूर्वक कमर में धारण करने से स्त्री को संतान सुख अवश्य मिलता है।
७. रविवार के दिन यदि विधिपूर्वक सुगन्धरा की जड़ लाकर गाय के दूध के साथ पीसकर की स्त्री खावें तो उसे अवश्य मिलता है।
८. संतान सुख प्राप्ति का एक उपाय यह भी है की गेंहू के आटे की गोलियां बनाकर उसमे चने की दाल एवं थोड़ी सी हल्दी मिलाकर गाय को गुरुवार के दिन खिलाये।



९. चावलों की धोबन मे नींबू की जड़ क बारीक पीसकर स्त्री को पीला देने के उपराण, यदि एक घंटे के भीतर स्त्री के साथ उसके पति द्वारा सहवास-क्रिया की जाए तो वो स्त्री निश्चित रूप से कन्या को ही जन्म देती है . यह प्रायग तब किया जाना चाहिए जब कन्या की चाहना बहुत अधिक हो
१०. यदि संतानहीन स्त्री ऋतुधर्म से पूर्व ही रेचक औषधियों (दस्तावर दवाओं) के द्वारा अपने उदार की शुद्धि कर लेने के पश्चात गूलर के बन्दाक को श्रद्धापूर्वक लाकर बकरी के दूध के साथ पीए और मासिक धर्म की शुद्धि के उपरान्त सेवन पुत्र रतन की ही प्राप्ति होगी।
११. पुष्य नक्षत्र में असगंध की जड़ को उखाड़कर गाय के दूध के साथ पीसकर पीने और दूध का ही आहार ऋतुकाल के उपरांत शुद्ध होने पर पीते रहने से उस स्त्री की पुत्र-प्राप्ति की अभिलाषा अवश्य ही पूरी हो जाती है .
१२. पुत्र की अभिलाषा रखने वाली स्त्री को चाहिए की वा ऋतु-स्नान से एक दिन पूर्व शिवलिंगी की बेल की जड़ मे तांबे का एक सिक्का ओर एक साबुत सुपारी रखकर निमंत्रण दे ओर दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व ही वहाँ जाकर हाथ ज्ड़कर प्रार्थना करे – हे विश्ववैद्या ! इस पुतरहीन की चिकित्सा आप स्वयम् ही करें! पुत्र च्चवि-विहीन इसकी कुटिया की संतान के मुखमंडल की आभा से आप ही दीप्त करें! ऐसा कहकर शिवलिंग की बेल की जड़ मे अपने आँचल सहित दोनों हाथों को फैलाकर घुटने के बल बैठ जाएँ ओर सिर को बेल की जड़ से स्पर्श कराकर प्रणाम करें! तत्पश्चात शिवलिंगी के पाँच पके हुए लाल फल तोड़कर अपने आँचल मे लपेट कर घर आ जाएँ . उसके बाद काली गाय के थोड़े से दूध मे शिवलिंगी के सभी दाने पीस-घोलकर इसी के दूध के साथ पी जावें तो पुत्र प्राप्ति होगी .
१३. रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक (मदार ) की जड़ बंध्या स्त्री की कमर में बाँध दे इससे गर्भधारण करके वह संतान को जन्म अवश्य ही देगी।



१४. पति-पत्नी दोनं अथवा दोनं में से की भी आस्था और श्रद्धाभाव से भगवान श्रीकृष्ण का एक बालरूपी चित्र अपने कक्ष में लगाकर प्रतिदिन १०८ बार निम्न मन्त्र का जप पुरे एक वर्ष तक करें। उसकी मनकामना अवश्य ही पूर्ण हो जायेगी। मन्त्र यह है –

देवकी सूत गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि में तनयं कृष्ण त्वामह शरणंगता।।
१५. गुरुवार या रविवार को पुष्य नक्षत्र में श्वेत पुष्प वाली कटेरी की जड़ उखाड़ लाएं। मासिक-धर्म से निवृत होकर,ऋतू-स्नान कर लेने पर चौथे या पांचवें दिन कटेरी की को लगभग दस गाय में (दूध बछड़े वाली गाय का हो) पीसकर पुत्र की अभिलषिणी उस स्त्री को पिला दें जिसके पहले से कोई संतान न हो (अर्थात विवाहोपरांत संतान का मुह भी जिसने न देखा हो)। जड़ी-सेवन के ठीक ( इससे पहले नहीं) स्त्री पति-समागम करे तो प्रथम संतान के रूप में पुत्र को ही जन्म देगी।
नोट – (कटेरी एक काँटेदार झड़ी जाती का पौधा होता है, जिस पर श्वेत डब्ल्यू पीत वार्णीय पुष्प लगते हैं| उक्त प्रयोग के लिए श्वेत पुष्प की कटेरी की जड़ ही प्रयुक्त होती है | उसे ही शुभ दिन, मुहूर्त अथवा शुभ पर्व या पुष्य नक्षत्र मे आमंत्रित करके लानी चाहिए |
१६. यदि किसी रजस्वला स्त्री को स्वप्न में नागदेवता के दर्शन हो जाएँ तो स्वयं को कृतार्थ समझना चाहिए | यह इस बात का संकेत है की उसके द्वारा की गई क्रिया सफल हुई है| उसे अवश्य तथा शीघ्र ही सुन्दर, यशस्वी और दीर्घायु संतान प्राप्त होगी |

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