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22.11.21

भटकटैया (कंटकारी)के गुण,लाभ,उपचार Gorse (wild egg plant)

पथरी, लिवर का बढ़ना और माइग्रेन जैसे अनेक रोगों का नाश करती है 'कटेरी'




कटेरी का पौधा औषधीय गुणों से युक्‍त होता है। यह कई जीर्ण विकारों को ठीक करने में सक्षम है। इसका प्रयोग आप कई गंभीर रोगों के उपचार में कर सकते हैं।
कटेरी, जिसे कंटकारी और भटकटैया भी कहते हैं। हिंदी में इसके कई नाम है जैसे- छोटी कटाई, भटकटैया, रेंगनी, रिगणी, कटाली, कटयाली आदि। यह कांटेदार एक पौधा है जो जमीन पर उगता है। कटेरी अक्‍सर जंगलों और झाड़ियों में बहुतायत रूप से पाया जाता है। आमतौर पर कटेरी की तीन प्रजातियां पाई जाती हैं। छोटी कटेरी (Solanum virginiannumLinn), बड़ी कटेरी (Solanum anguivi Lam) और श्‍वेत कंटकारी (Solanum lasiocarpum Dunal)। जिनका प्रयोग रोगों को दूर करने के लिए औषधि के तौर पर किया जाता है।

 भटकटैया दो प्रकार की होती हैं : 
(1) क्षुद्र यानी छोटी भटकटैया और
 (2) बृहती यानी बड़ी भटकटैया। 
दोनों के परिचय, गुणादि निम्नलिखित हैं :

छोटी भटकटैया : 
1. इसे कण्टकारी क्षुद्रा (संस्कृत), छोटी कटेली भटकटैया (हिन्दी), कण्टिकारी (बंगला), मुईरिंगणी (मराठी), भोयरिंगणी (गुजराती), कान्दनकांटिरी (तमिल), कूदा (तेलुगु), बांद जान बर्री (अरबी) तथा सोलेनम जेम्थोकार्पम (लैटिन) कहते हैं।भटकटैया का पौधा जमीन पर कुछ फैला हुआ, काँटों से भरा होता है। भटकटैया के पत्ते 3-8 इंच तक लम्बे, 1-2 इंच तक चौड़े, किनारे काफी कटे तथा पत्र में नीचे का भाग तेज काँटों से युक्त होता है। 
भटकटैया के फूल नीले रंग के तथा फल छोटे, गोल कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने पर पीले रंग की सफेद रेखाओं सहित होते हैं।
* यह प्राय: समस्त भारत में होती है। विशेषत: रेतीली भूमि तथा बंगाल, असम, पंजाब, दक्षिण भारत में मिलती है।
* भटकटैया के दो प्रकार होते हैं : 
(क) नीलपुष्पा भटकटैया (नीले फूलोंवाली, अधिक प्राप्य) ।
 (ख) श्वेतपुष्पा भटकटैया (सफेद फूलोंवाली, दुर्लभ)
 भटकटैया एक छोटा कांटेदार पौधा जिसके पत्तों पर भी कांटे होते हैं। इसके फूल नीले रंग के होते हैं और कच्‍चे फल हरित रंग के लेकिन पकने के बाद पीले रंग के हो जाते हैं। बीज छोटे और चिकने होते हैं। भटकटैया की जड़ औषध के रूप में काम आती है। यह तीखी, पाचनशक्तिवर्द्धक और सूजननाशक होती है और पेट के रोगों को दूर करने में मदद करती है। यह प्राय पश्चिमोत्तर भारत में शुष्क स्थानों पर पाई जाती है। यह पेट के अलावा कई प्रकार की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं में उपयोगी होती है। 
  मुख्‍य रूप से कटेरी का उपयोग स्‍वास संबंधी समस्‍या जैसे अस्‍थमा, खांसी, हिचकी आदि का इलाज करने में किया जाता है। इसके अलावा अपने औषधीय गुणों के कारण कटेरी बुखार, सूजन आदि का भी प्रभावी उपचार कर सकता है। आयुर्वेद में में इसे दवा के रूप में सीधे ही उपयोग किया जाता है। इसके अलावा इसे कई अन्‍य जड़ी बूटीयों के साथ मिलाकर भी इस्‍तेमाल किया जाता है।
 आयुर्वेदीय चिकित्सा में कटेरी के मूल, फल तथा पंचाग का व्यवहार होता है। प्रसिद्ध औषधिगण 'दशमूल' और उसमें भी 'लंघुपंचमूल' का यह एक अंग है। स्वेदजनक, ज्वरघ्न, कफ-वात-नाशक तथा शोथहर आदि गुणों के कारण आयुर्वेदिक चिकित्साके कासश्वास, प्रतिश्याय तथा ज्वरादि में विभिन्न रूपों में इसका प्रचुर उपयोग किया जाता है। बीजों में वेदनास्थापन का गुण होने से दंतशूल तथा अर्श की शोथयुक्त वेदना में इनका धुआँ दिया जाता है।

अस्‍थमा में फायदेमंद-

भटकटैया अस्‍थमा रोगियों के लिए फायदेमंद होता है। 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में भटकटैया की जड़ का काढ़ा या इसके पत्तों का रस 2 से 5 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह शाम रोगी को देने से अस्‍थमा ठीक हो जाता है। या भटकटैया के पंचांग को छाया में सुखाकर और फिर पीसकर छान लें। अब इस चूर्ण को 4 से 6 ग्राम की मात्रा में लेकर इसे 6 ग्राम शहद में मिलाकर चांटे। इस प्रकार दोनों समय सेवन करते रहने से अस्‍थमा में बहुत लाभ होता है।

*खांसी दूर करें-

भटकटैया की जड़ के साथ गुडूचू का काढ़ा बनाकर पीना, खांसी में लाभकारी सिद्ध होता है। इसे दिन में दो बार रोगी को देने से कफ ढीला होकर निकल जाता है। यदि काढे़ में काला नमक और शहद मिला दिया जाए, फिर तो इसकी कार्यक्षमता और अधिक बढ़ जाती है। या भटकटैया के 14-28 मिलीलीटर काढ़े को 3 बार कालीमिर्च के चूर्ण के साथ सेवन करने से खांसी में लाभ मिलता है। इसके अलावा बलगम की पुरानी समस्‍या को दूर करने के लिए 2 से 5 मिलीलीटर भटकटैया के पत्तों के काढ़े में छोटी पीपल और शहद मिलाकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से खांसी मे आराम आता है


*ब्रेन ट्यूमर के उपचार में सहायक-

भटकटैया का पौधा ब्रेन ट्यूमर के उपचार मे सहायक होता है। वैज्ञानिक के अनुसार पौधे का सार तत्व मस्तिष्क में ट्यूमर द्वारा होने वाले कुशिंग बीमारी के लक्षणों से राहत दिलाता है। मस्तिष्क में पिट्युटरी ग्रंथि में ट्यूमर की वजह से कुशिंग बीमारी होती है। कांटेदार पौधे भटकटैया के दुग्ध युक्त बीज में सिलिबिनिन नामक प्रमुख एक्टिव पदार्थ पाया जाता है, जिसका इसका उपयोग ट्यूमर के उपचार में किया जाता हैं।
*प्रेगनेंसी में उल्‍टी और मतली को रोकने के लिए 5 ग्राम कटेरी पंचांग और 5-6 मुनक्‍का लें और इसे पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े का नियमित रूप से सेवन करें।
*लिवर की समस्‍या में कटेरी का उपयोग कर सकते हैं। नियमित रूप से कटेरी के काढ़े का सेवन लिवर में मौजूद संक्रमण और सूजन को कम करने में मदद करता है।

*दर्द व सूजन दूर करें

    भटकटैया दर्दनाशक गुण से युक्त औषधि है। दर्द दूर करने के लिए 20 से 40 मिलीलीटर भटकटैया की जड़ का काढ़ा या पत्ते का रस चौथाई से 5 मिलीलीटर सुबह शाम सेवन करने से शरीर का दर्द कम होता है। साथ ही यह आर्थराइटिस में होने वाले दर्द में भी लाभकारी होता है। समस्‍या होने पर 25 से 50 मिलीलीटर भटकटैया के पत्तों के रस में कालीमिर्च मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है। इसके अलावा सिर में दर्द होने पर भटकटैया के फलों का रस माथे पर लेप करने से सिर दर्द दूर हो जाता|

* पथरी :

 दोनों भटकटैयों को पीसकर उनका रस मीठे दही के साथ सप्ताहभर सेवन करने से पथरी निकल जाती तथा मूत्र साफ आने लगता है।

भटकटैया के फायदे दांत दर्द में

दांतों का दर्द भी एक गंभीर समस्‍या है। लेकिन आयुर्वेद में दांत के दर्द को दूर करने के लिए भटकटैया का उपयोग प्राचीन समय से किया जा रहा है। यदि आप भी दांत के दर्द से परेशान हैं तो भटकटैया के पत्‍तों के रस का उपयोग करें। कटेरी की ताजा पत्तियों को मसलकर रस निकालें। इस रस को दर्द प्रभावित दांतों में लगाएं। यह आपको दांत के दर्द से तुरंत ही राहत दिलाता है।

माइग्रेन मे 

माइग्रेन, और सिरदर्द में कंटकरी का प्रयोग काफी फायदेमंद है। इसके अलावा अस्‍थमा में छोटी कटेरी के 2-4 ग्राम कल्क में 500 मिग्रा हींग और 2 ग्राम शहद मिलाकर, सेवन करने से लाभ मिलता है।

गंजापन में फायदेमंद

गंजापन के रोग मैं कटेरी के पत्तों के 20 से 30 एमएल रस में थोड़ा-सा शहद मिलाकर सिर पर मालिश करें। इससे सिर की त्वचा मुलायम होती है और नए बाल आने शुरू हो सकते हैं।

* फुन्सियाँ :


सिर पर छोटी-छोटी फुन्सियाँ होने पर भटकटैया का रस शहद में मिलाकर लगायें।

आंखों के लिए फायदेमंद

आंखों से संबंधित बीमारियां बहुत तरह के होते हैं। जैसे सामान्य आंख में दर्द, आंखों का लाल होना इन सभी तरह के समस्याओं में कटेरी से बना घरेलू नुस्खा बहुत ही काम आता है। इसके लिए कटेरी के 20 से 30 पत्ते को पीसकर पेस्ट बना लीजिए। और इसे आंखों पर लगाएं इससे आंखों से संबंधित समस्याओं में आराम मिलेगा।
*कटेरी की जड़ का पेस्ट सांप और बिच्छू के काटने के इलाज में नींबू के साथ मिलाकर इस्‍तेमाल किया जाता है।
इसके तने, फूल और फल, कड़वे होने के कारण, पैरों में होने वाली जलन से राहत दिलाने में मदद करते हैं।
*कंटकारी के फल वीर्य स्खलन को रोकते हैं। इससे सेक्‍स लाइफ बेहतर होती है। फल पुरुषों में कामोत्तेजक के रूप में काम करता है।
*महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म और दर्द के इलाज के लिए इसके बीज मददगार हैं।
*यह जड़ी-बूटी एडिमा से जुड़ी हृदय रोगों के उपचार में फायदेमंद है, क्योंकि यह हृदय और रक्त शोधक के लिए उत्तेजक का काम करती है।
*शारीरिक कमजोरी में दिन में दो बार कटेरी के ताजे पत्तों का रस पीना चाहिए। इसमें आप मिश्री मिलाकर उपयोग कर सकते हैं।
*कंटकारी का प्रयोग खूनी बवासीर में सहायक है।
*गठिया में दर्द और सूजन को कम करने के लिए कटेरी का पेस्‍ट जोड़ों पर लगाया जाता है।