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1.3.24

वसंत ऋतू में आहार -विहार और दिन चर्या | Vasant ritu Aahar Vihar





14 मार्च से 14 मई तक रहेगी वसंत ऋतु, इसे क्यों कहते हैं ऋतुराज?


वसंत ऋतु, या वसंत ऋतु, कायाकल्प, नए जन्म और नई शुरुआत का मौसम है क्योंकि पेड़ और पौधे फूलों के साथ खिलते हैं जो पृथ्वी को सुंदर और आकर्षक बनाते हैं। वसंत ऋतु में, हालांकि मौसम सुहावना होता है, हमारे शरीर और दोषों में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। चूँकि कफ दोष शिशिरा ऋतु (ठंड के मौसम) में प्रबल हो जाता है, वसंत ऋतु के दौरान यह द्रवित हो जाता है। यह पाचन अग्नि को और भी कम कर देता है और कई बीमारियों को जन्म देता है। जैसा कि आयुर्वेद सुझाव देता है, प्रत्येक ऋतु का मानव शरीर पर अपना अनूठा प्रभाव होता है, और इस प्रकार, ऋतु के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए व्यक्ति को अपने आहार और समग्र दिनचर्या में बदलाव करना चाहिए।
वसंत ऋतु, या वसंत, सबसे सुंदर और सुखद मौसमों में से एक है। कड़ाके की ठंड और कड़ाके की सर्दी के बाद प्रकृति अपने सबसे रंगीन रूप में होती है। आयुर्वेद के अनुसार, वसंत ऋतु विषहरण के लिए आदर्श समय है।
वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा गया है। यह शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के मध्य का संधिकाल होता है। इसमे मौसम समशीतोष्ण होता है, प्रकृति में सर्वत्र उल्लास और मादकता विद्यमान रहती है। इस समय नये नये कोपलों, रंग बिरंगे फूलों की सुंदरता और सुगंध के माध्यम से प्रकृति मानो अपनी प्रसन्नता प्रकट कर रही होती है। कुल मिलाकर वसंत का मौसम बहुत ही मनोरम और सुहावना होता है। लेकिन यदि समुचित आहार विहार का ध्यान न रखा जाय तो इस मौसम में स्वास्थ्य से जुड़ी अनेक प्रकार की समस्यायें भी उत्पन्न हो सकती हैं।

शरीर पर मौसम का प्रभाव

वसंत ऋतु में सूर्य की किरणें तेज होने लगती हैं जिसके कारण शीतकाल (हेमंत और शिशिर ऋतु) में संचित कफ कुपित होने लगता है। इसके कारण लोगों में सर्दी, खांसी, दमा, नजला, जुकाम, साइनोसाइटिस, टांसलाइटिस, गले में खराश, पाचन शक्ति की कमी, व जी मिचलाने जैसे अनेक प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं।
इस काल में खसरा, मीजल्स व एन्फ्लूएन्जा, जैसे कई प्रकार के वायरल इनफेक्शंस का भी प्रकोप देखने को मिलता है। इस समय वातावरण में सूर्य का बल बढ़ता है, चंद्रमा का बल क्षीण होता है, जलीय अंश और स्निग्धता की कमी होती है। इसके परिणाम स्वरूप हमारे शरीर में आलस्य और दुर्बलता की वृद्धि होती है। अतः इस मौसम में खान-पान का विशेष ध्यान रखें। बासी, गरिष्ठ और कफवर्धक पदार्थों का सेवन तो भूलकर भी न करें।
  वसंत ऋतु में आयुर्वेद ने खान-पान में संयम की बात कहकर व्यक्ति एवं समाज की नीरोगता का ध्यान रखा है। इस ऋतु में लाई, भूने हुए चने, ताजी हल्दी, ताजी मूली, अदरक, पुरानी जौ, पुराने गेहूँ की चीजें खाने के लिए कहा गया है। इसके अलावा मूँग बनाकर खाना भी उत्तम है। नागरमोथ अथवा सोंठ डालकर उबाला हुआ पानी पीने से कफ का नाश होता है। मन को प्रसन्न करें एवं हृदय के लिए हितकारी हों ऐसे आसव, अरिष्ट जैसे कि मध्वारिष्ट, द्राक्षारिष्ट, गन्ने का रस, सिरका आदि पीना लाभदायक है। वसंत ऋतु में आने वाला होली का त्यौहार इस ओर संकेत करता है कि शरीर को थोड़ा सूखा सेंक देना चाहिए जिससे कफ पिघलकर बाहर निकल जाय। 
   सुबह जल्दी उठकर थोड़ा व्यायाम करना, दौडऩा अथवा गुलाटियाँ खाने का अभ्यास लाभदायक होता है। मालिश करके सूखे द्रव्य आँवले, त्रिफला अथवा चने के आटे आदि का उबटन लगाकर गर्म पानी से स्नान करना हितकर है।
इन दिनों बबूल या नीम का दातुन अवश्य ही करना चाहिए। इस ऋतु में बड़ी हरड़ का चूर्ण 3 से 5 ग्राम मात्रा में थोड़े शहद के साथ मिलाकर प्रात: काल चाट लेना चाहिए। मौसमी फलों का सेवन करना भी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है। इसलिए इस ऋतु में फल का सेवन अवश्य ही करना चाहिए।
इस मौसम में कभी ठंडक लगती है तो कभी गर्मी का अनुभव होता है इसलिए व्यक्ति को खान-पान और रहन    सहन के मामले में सामंजस्य बनाये रखना चाहिए। इस मौसम में गले की खराश, टांसिल्स का दर्द और कफ की शिकायत आदि रहती है। घरेलू इलाज के रूप में गरारे, गले को ठंडी हवा से बचाना, गले को गरम आग से सेंकना और रात को सोते समय आधी चम्मच, पिसी हुई हल्दी दूध में घोलकर 3-5 दिन तक पीना तथा तुलसी का काढ़ा पीने से काफी हद तक लाभ मिलता है।
गले की खराश, हल्की खांसी, टांसिल्स आदि में तकलीफ होने पर 1 गिलास गरम पानी में आधा-आधा छोटा चम्मच खाने का सोडा व खाने का नमक और 1.2 ग्राम पिसी हुई फिटकरी घोलकर दिन में 4-5 बार गरारे अवश्य करने चाहिए। सुबह के समय और सोते समय गरारे करने से काफी लाभ मिलता है।
 कहावत है कि आती और जाती हुई सर्दी में सावधानी रखनी चाहिए। नहीं तो वे जकड़ सकती हैं। वसंत ऋतु को वैसे तो ऋतुओं की राजा कहा जाता है। बहुत से लोगों की यह पसंदीदा ऋतु है क्योंकि इस ऋतु में ना तो ठिठुरती ठंड होती है, ना ही बेहाल कर देने वाली गर्मी। पर इस ऋतु में जाती हुई सर्दी की वजह से विशेष सावधानी रखना जरुरी हो जाता है। क्योंकि वसंत ऋतु में दिन बड़े होने लगते है जिससे सर्दी का प्रभाव कम होने लगता है, लेकिन पश्चिमी विक्षोभ की वजह से बारिश, आंधी इत्यादि से अचानक से सर्दी बढ़ने से थोड़ी सी लापरवाही भी सेहत पर भार पड़ सकती है।

आहार का रखें विशेष ध्यान

इस मौसम में खान-पान का विशेष ध्यान रखें क्योंकि इस मौसम में जठराग्नि भी मंद रहती है। चूंकि इस मौसम में कफ कुपित हो जाता है, इसलिए बासे, गरिष्ठ और कफवर्धक पदार्थों का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। सभी तरह के फास्ट फूड यथा आइसक्रीम, केक, पिज्जा, बर्गर, चॉकलेट से परहेज करें। चिकनाई युक्त पदार्थ जैसे कि रबड़ी, मलाई, कचौरी, दही बड़ा, पूरी, उड़द, आदि का भी यथा संभव उपयोग नहीं करें तो बेहतर होगा। इमली, अमचूर इत्यादि की खटाई का उपयोग भी हानिकारक हो सकता है। ठडे पानी, शर्बत, लस्सी, कोल्ड ड्रिंक्स के सेवन से भी बचना चाहिए। वहीं खुले में सोना, धूप भ्रमण, रात जागरण व दिन में शयन भी इस मौसम में वर्जित हैं।


ये करें-

बसंत ऋतु में वमन आदि पंचकर्म करवाने चाहिए। व्यायाम, उबटन, कवल ग्रह, अंजन, सुखोष्ण जल से स्नान भी विशेष लाभकारी होता है। भोजन में जौ, गेहूं, शहद से बनी माध्वीक, सौंठ के साथ उबला पानी, नागरमोथा से सिद्ध पानी भी पीना लाभकारी है। अगर इस मौसम में शहद और गुनगुने पानी का सेवन किया जाए तो इससे भी कफ दोष बढ़ने से रोका जा सकता है और सर्दी-खांसी में राहत मिलती है। इस बात का भी ध्यान रखें कि गरिष्ठ भोजन के बजाय इस मौसम में हल्का खाना खाएं, जिसे पचाना आसान हो जैसे कि मूंगदाल, खिचड़ी, दलिया आदि। इसके अलावा पौष्टिक तत्वों से युक्त लौकी, पत्ता गोभी, गाजर, पालक, मटर जैसी सब्जियां भी अपनी डाइट में शामिल करनी चाहिए।

आयुर्वेद के अनुसार वसंत ऋतु में हमें क्या खाना चाहिए?

वसंत ऋतु के दौरान स्वस्थ भोजन करने का लक्ष्य कफ दोष को कम करना है। कोई व्यक्ति कड़वा (टिकिता), कषाय (कसैला), तीखा (कटु) रस खाकर ऐसा कर सकता है। आपको खट्टे (अमला), नमकीन (लवण), और मीठे (मधुर) रस से भी बचना चाहिए क्योंकि ये कफ दोष को बढ़ाते हैं। यहां कुछ खाद्य पदार्थ हैं जिन्हें आप अपने वसंत ऋतुचर्या में शामिल कर सकते हैं:
लहसुन
अदरक
प्याज
नीम के पत्ते
धनिया
जीरा
प्याज
हल्दी
अनाज
पुराना जौ
गेहूँ
चावल
दाल-दलहन
शहद का पानी
सोंठ का पानी
छाछ

पथ्य / लाभदायक

कटु, तीक्ष्ण, व कषाय रस युक्त ताजा हल्का और सुपाच्य भोजन। चना, मूँग, अरहर, जौ, गेहूँ, चावल, आदि अनाजों से बने भोज्य पदार्थ। सभी प्रकार की हरी सब्जियां तथा उनका सूप। करेला, लहसुन, अदरक, पालक, जमींकंद, केले के फूल व कच्चे केले की सब्जी, कच्ची मूली, गाजर व मौसमी फल। नीम की नई कोपलें, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आँवला, नीबू और शहद। इस समय भोजन बनाने में सरसों के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
कुछ खाद्य पदार्थ जिनसे आपको वसंत ऋतु (आयुर्वेद) के दौरान बचना चाहिए उनमें शामिल हैं:ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें कैलोरी अधिक होती है और पचने में अधिक समय लगता है
गहरा तला हुआ भोजन

अपथ्य / हानिकारक

पचने में भारी, ठंढे व अधिक चिकानाई युक्त भोजन, जैसे- नया अनाज, उड़द, दही बड़ा, पूरी, कचौड़ी, रबड़ी, मलाई, मिठाई, आइसक्रीम, केक, पिज्जा, बर्गर, चकलेट, गुड़, शक्कर, खजूर, व खटाई (इमली, अमचूर) आदि। शीत प्रकृति वाले पेय पदार्थ, जैसे- ठंढा पानी, ठंढी लस्सी, ठंढाई शर्बत, व कोल्डड्रिंक्स आदि। खुले आसमान में सोना, ठंढ में रहना, धूप में घूमना, रात में जागना व दिन में सोना।
बसंत ऋतु ऋतु में नियमित रूप से हल्का व्यायाम या योगासन सभी के लिए अनिवार्य है। सूर्योदय से पहले उठकर भ्रमण करें। रात्रि में देर तक जागरण और सुबह देर तक शयन हानिकारक है। दिन में तो बिल्कुल भी नहीं सोना चाहिए क्योंकि इससे कफ दोष और बढ़ेगा। शरीर में तेल मालिश करके गुनगुने पानी से स्नान करें। जो लोग यौगिक षट्कर्म जानते हों उन्हें इस समय वमनधौति और जलनेती का अभ्यास करना चाहिए।

सम्भावित रोग


श्वास, खांसी, बदनदर्द, ज्वर, वमन, अरुचि, भारीपन, भूख कम लगना, कब्ज, पेट दर्द, कृमिजन्य विकार आदि होते हैं।
प्रयोग करेंशरीर संशोधन हेतु वमन, विरेचन नस्य, कुंजल आदि।
रूखा, कड़वा तीखा, कसैले रस वाले पदार्थों का सेवन।
सुबह खाली पेट बड़ी हरड़ का 3-4 ग्राम चूर्ण शहद के साथ रसायन के समान लाभ पहुंचाता है।
शुद्ध घी, मधु और दूध की असमान मात्रा में मिश्रण का सेवन करने से शरीर में जमा कफ बाहर निकल आता है।
एक वर्ष पुराना जौ, गेहुं व चावल का उपयोग करना उचित है।
इस ऋतु में ज्वर बाजरा मक्का आदि रूखे धानों का आहार श्रेष्ठ है।
मूंग, मसूर, अरहर, चना की दाल उपयोगी है।
मूली, घीया, गाजर, बथुआ, चौलाई ,परवल, सरसों, मैथी, पत्तापालक, धनिया, अदरक आदि का सेवन करना हितकर है।
हल्दी से पीला किया गया भोजन स्वास्थ के लिए बहुत उपयोगी होता है क्योंकि हल्दी भी कफनाशक है।
सूर्योदय से पूर्व उठकर शौचादि से निवृत होकर योगासन करना चाहिए।
तेल की मालिश करना उत्तम है।

प्रयोग न करें

नए- अन्न, शीतल, चिकनाई युक्त, भारी, खट्टे एवं मीठे द्रव्य, उड़द, आलू, प्याज, गन्ना, नए गुड़, भैंस का दूध व सिंघाड़े का सेवन मना है।

दिन में सोना, एक स्थान पर लम्बे समय तक बैठे रहना उचित नहीं है।
ठंडे पेय, आइसक्रीम, बर्फ के गोले चॉकलेट, मैदे की चीजें, खमीरवाली चीजें, दही आदि पदार्थ बिल्कुल त्याग देने चाहिए।
पचने में भारी पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
चावल खाना ही हो तो दिन में खाना चाहिए, रात में नहीं।
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