न्यूरो से पैदा होता है हिस्टीरिया
यह एक ऐसा रोग है, जिसमें बिना किसी शारीरिक कमी के रोगी को रह-रह कर बार-बार न्यूरो व मस्तिष्क से जुड़े गंभीर लक्षण पैदा होते हैं। चूंकि रोगी शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है। इसलिए लक्षणों व तकलीफ से जुड़ी सभी प्रकार की जांचें जैसे कैट स्केन, सीने का एक्स रे, ईसीजी, आंख या गले से जुड़ी जांचों में कोई भी कमी नहीं निकलती है। हिस्टीरिया रोग अमूमन अविवाहित लड़कियों और स्त्रियों को होता है और इसके होने के पीछे कई मनोवैज्ञानिक कारण भी है | हिस्टीरिया रोग होने पर रोगी को मिर्गी के समान दौरे पढ़ते है और यह काफी तकलीफदेह भी होता है |
हिस्टीरिया होने के कारण –
किसी भी वजह से मन में पैदा हुआ डर , प्रेम में असफल होना , आरामदायक जीवनशैली ,शारीरिक और मानसिक मेहनत नहीं करना ,active नहीं रहना ,यौन इच्छाएं पूर्ण नहीं होना ,अश्लील (जो कि एक लिमिट में अश्लील कुछ नहीं होता ) साहित्य पढना नाड़ियों की कमजोरी , अधिक इमोशनल होना और सही आयु में विवाह नहीं होना (जिसके कुछ सामाजिक कारण है ) और असुरक्षा की भावना हिस्टीरिया होने के मुख्य कारण है |
अक्सर तनाव से बाहर निकलने का रोगी के पास जब कोई रास्ता शेष नहीं रह जाता, तब ही उसे रह -रह कर हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगते हैं। यह रोग दस में से नौ बार महिलाओं में होता है, विशेषकर उन महिलाओं में जिन्हें तनाव से निपटने के लिए सामाजिक या पारिवारिक सहयोग नहीं मिलता।
कमजोर व्यक्तित्व: प्राय: स्वभाव से ऐसे रोगी बहुत जिद्दी होते हैं और जब इनके मन के अनुरूप कोई बात नहीं होती तब वे बहुत परेशान होते हैं, जिद्द पकड़ लेते हैं व आवेश में आकर चीजें फेंकते हैं व स्वयं को नुकसान पहुंचाते हैं। वे विपरीत परिस्थिति में बदहवास हो जाते हैं। उनकी सांस उखड़ने लगती है व अचेत हो सकते हैं।
हिस्टीरिय के लक्षण –
अक्सर तनाव से बाहर निकलने का रोगी के पास जब कोई रास्ता शेष नहीं रह जाता, तब ही उसे रह -रह कर हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगते हैं। यह रोग दस में से नौ बार महिलाओं में होता है, विशेषकर उन महिलाओं में जिन्हें तनाव से निपटने के लिए सामाजिक या पारिवारिक सहयोग नहीं मिलता।
कमजोर व्यक्तित्व: प्राय: स्वभाव से ऐसे रोगी बहुत जिद्दी होते हैं और जब इनके मन के अनुरूप कोई बात नहीं होती तब वे बहुत परेशान होते हैं, जिद्द पकड़ लेते हैं व आवेश में आकर चीजें फेंकते हैं व स्वयं को नुकसान पहुंचाते हैं। वे विपरीत परिस्थिति में बदहवास हो जाते हैं। उनकी सांस उखड़ने लगती है व अचेत हो सकते हैं।
हिस्टीरिय के लक्षण –
इस रोग में रोगी को दौरा पड़ने से पहले ही आभास हो जाता है लेकिन दौरा पड़ जाने के बाद रोगी स्त्री अपना होश खो देती है | बेहोशी का यह दौरा 24 से 48 घंटे तक रह सकता है | इस तरह के दौरे में साँस लेने में काफी दिक्कत होती है और मुठी और दांत भींच जाते है
दौरे पड़ना: रह-रह कर हाथ, पैरों व शरीर में झटके आना, ऐंठन होना व बेहोश हो जाना।
अचेत हो जाना: रोगी अचानक या धीरे -धीरे अचेत हो सकता है। इस दौरान उसकी सांसें चलती रहती हैं, शरीर बिल्कुल ढीला हो जाता है लेकिन दांत कसकर भिंच जाते हैं। यह अचेतन अवस्था कुछ मिनटों से लेकर कछ घंटों तक बनीं रह सकती है। उसके बाद रोगी स्वयं उठकर बैठ जाता है और ऐसे व्यवहार करता है जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं।
उल्टी सांसें चलना: रोगी जोर-जोर से गहरी-गहरी सांसें लेता है। रह-रह कर छाती व गला पकड़ता है और ऐसा प्रतीत होता है कि रोगी को सांस आ ही नहीं रही है और उसका दम घुट जायेगा।
हाथ पैर न चलना: कभी-कभी रोगी के हाथ व पैर फालिज की तरह ढीले पड़ जाते हैं व रोगी कुछ समय (घंटों) के लिए चल फिर नहीं पाता है।
अचानक गले से आवाज निकलना बन्द हो जाना: ऐसे में रोगी इशारों से या फुसफुसा के बातें करने लगता है। कभी कभी हिस्टीरिया से ग्रस्त रोगी को अचानक दिखाई देना भी बंद हो जाता है।
उपरोक्त लक्षण दौरे के रूप में एक साथ या बदल-बदल कर कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक रहते हैं फिर स्वत: ठीक हो जाते हैं। इलाज के अभाव में यही दौरे दिन भर में दस-दस बार पड़ पड़ते हैं, तो कभी 2-3 महीनों में एक दो बार ही हिस्टीरिया के दौरे पड़ते हैं।
हिस्टीरिया के फायदेमंद उपचार –
दौरे पड़ना: रह-रह कर हाथ, पैरों व शरीर में झटके आना, ऐंठन होना व बेहोश हो जाना।
अचेत हो जाना: रोगी अचानक या धीरे -धीरे अचेत हो सकता है। इस दौरान उसकी सांसें चलती रहती हैं, शरीर बिल्कुल ढीला हो जाता है लेकिन दांत कसकर भिंच जाते हैं। यह अचेतन अवस्था कुछ मिनटों से लेकर कछ घंटों तक बनीं रह सकती है। उसके बाद रोगी स्वयं उठकर बैठ जाता है और ऐसे व्यवहार करता है जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं।
उल्टी सांसें चलना: रोगी जोर-जोर से गहरी-गहरी सांसें लेता है। रह-रह कर छाती व गला पकड़ता है और ऐसा प्रतीत होता है कि रोगी को सांस आ ही नहीं रही है और उसका दम घुट जायेगा।
हाथ पैर न चलना: कभी-कभी रोगी के हाथ व पैर फालिज की तरह ढीले पड़ जाते हैं व रोगी कुछ समय (घंटों) के लिए चल फिर नहीं पाता है।
अचानक गले से आवाज निकलना बन्द हो जाना: ऐसे में रोगी इशारों से या फुसफुसा के बातें करने लगता है। कभी कभी हिस्टीरिया से ग्रस्त रोगी को अचानक दिखाई देना भी बंद हो जाता है।
उपरोक्त लक्षण दौरे के रूप में एक साथ या बदल-बदल कर कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक रहते हैं फिर स्वत: ठीक हो जाते हैं। इलाज के अभाव में यही दौरे दिन भर में दस-दस बार पड़ पड़ते हैं, तो कभी 2-3 महीनों में एक दो बार ही हिस्टीरिया के दौरे पड़ते हैं।
हिस्टीरिया के फायदेमंद उपचार –
हिस्टीरिया का इलाज और रोकथाम खान पान को संतुलित करने से भी संभव है और रोगी अपनी खानपान की आदतों में बदलाव कर इसे संयमित कर सकती है |
गाय का दूध ,नारियल का पानी और मठा और छाछ का उपयोग खाने के दौरान अधिक से अधिक करें |
दूध पीते समय उसमे जितना आपको अच्छा लगे उतनी मात्र में शहद मिलकर उसके साथ किशमिश का सेवन करें | यह काफी लाभप्रद है
आंवले का मुरब्बा सुबह शाम भोजन के साथ खाना सुनिश्चित करें |
गेंहू की रोटी ,दलिया और मूंग मसूर की दाल को भोजन में शामिल करें |
चूंकि हिस्टीरिया के सभी लक्षण किसी न किसी मस्तिष्क या न्यूरो की गंभीर बीमारी जैसे प्रतीत होते हैं। ऐसे में रोगी का किसी कुशल डॉक्टर की सहायता से जांच करना जरूरी होता है। जांचों में जब कोई कमी नहीं निकलती तब मनोचिकित्सक की सहायता से इस रोग का इलाज कराना चाहिए।
-इस रोग का सीधा संबंध चेतन व अचेतन मन में चल रहे तनाव से होता है। ऐसे में दवा के विपरीत इलाज में मनोचिकित्सा का प्रमुख स्थान है।
-मनोचिकित्सा के दौरान रोगी में व्याप्त तनाव की पहचान व उससे निपटने के लिए सही विधियां बतायी जाती हैं।क्या नहीं खाएं हिस्टीरिया में –
भारी गरिष्ठ (देर से पचने वाला ) भोजन नहीं खाएं |
फास्टफूड तली हुई चीज़े और मिर्च मसाले वाली चीजों के सेवन से यथासंभव बचे |
मास मछली और अंडे का पूर्ण रूप से त्याग कर दें |
चाय भी कम से कम पिए या छोड़ दें |
शराब गुटखा आदि का सेवन नहीं करें |
गुड तेल और लाल और हरी मिर्च और अचार और अन्य खट्टी चीजों से परहेज करें |
गाय का दूध ,नारियल का पानी और मठा और छाछ का उपयोग खाने के दौरान अधिक से अधिक करें |
दूध पीते समय उसमे जितना आपको अच्छा लगे उतनी मात्र में शहद मिलकर उसके साथ किशमिश का सेवन करें | यह काफी लाभप्रद है
आंवले का मुरब्बा सुबह शाम भोजन के साथ खाना सुनिश्चित करें |
गेंहू की रोटी ,दलिया और मूंग मसूर की दाल को भोजन में शामिल करें |
चूंकि हिस्टीरिया के सभी लक्षण किसी न किसी मस्तिष्क या न्यूरो की गंभीर बीमारी जैसे प्रतीत होते हैं। ऐसे में रोगी का किसी कुशल डॉक्टर की सहायता से जांच करना जरूरी होता है। जांचों में जब कोई कमी नहीं निकलती तब मनोचिकित्सक की सहायता से इस रोग का इलाज कराना चाहिए।
-इस रोग का सीधा संबंध चेतन व अचेतन मन में चल रहे तनाव से होता है। ऐसे में दवा के विपरीत इलाज में मनोचिकित्सा का प्रमुख स्थान है।
-मनोचिकित्सा के दौरान रोगी में व्याप्त तनाव की पहचान व उससे निपटने के लिए सही विधियां बतायी जाती हैं।क्या नहीं खाएं हिस्टीरिया में –
भारी गरिष्ठ (देर से पचने वाला ) भोजन नहीं खाएं |
फास्टफूड तली हुई चीज़े और मिर्च मसाले वाली चीजों के सेवन से यथासंभव बचे |
मास मछली और अंडे का पूर्ण रूप से त्याग कर दें |
चाय भी कम से कम पिए या छोड़ दें |
शराब गुटखा आदि का सेवन नहीं करें |
गुड तेल और लाल और हरी मिर्च और अचार और अन्य खट्टी चीजों से परहेज करें |