‘कपाल’ का अर्थ है खोपड़ी (सिर) तथा भाति का अर्थ है चमकना। चूंकि इस क्रिया से सिर चमकदार बनता है अतः इसे कपालभाति कहते हैं। कपालभाति एक ऐसी सांस की प्रक्रिया है जो सिर तथा मस्तिष्क की क्रियाओं को नई जान प्रदान करता है। घेरंडसंहिता में इसे भालभाति कहा गया है, भाल और कपाल का अर्थ है ‘खोपड़ी’ अथवा माथा। भाति का अर्थ है प्रकाश अथवा तेज, इसे ‘ज्ञान की प्राप्ति’ भी कहते हैं।
कपालभाति को प्राणायाम एवं आसान से पहले किया जाता है। यह समूचे मस्तिष्क को तेजी प्रदान करती है तथा निष्क्रिया पड़े उन मस्तिष्क केंद्रों को जागृत करती है जो सूक्ष्म ज्ञान के लिए उत्तरदायी होते हैं। कपालभाति में सांस उसी प्रकार ली जाती है, जैसे धौंकनी चलती है। सांस तो स्वतः ही ले ली जाती है किंतु उसे छोड़ा पूरे बल के साथ
कपालभाति करने की विधि
किसी ध्यान की मुद्रा में बैठें, आँखें बंद करें एवं संपूर्ण शरीर को ढीला छोड़ दें।
दोनों नोस्ट्रिल से सांस लें, जिससे पेट फूल जाए और पेट की पेशियों को बल के साथ सिकोड़ते हुए सांस छोड़ दें।
अगली बार सांस स्वतः ही खींच ली जाएगी और पेट की पेशियां भी स्वतः ही फैल जाएंगी। सांस खींचने में किसी प्रकार के बल का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
सांस धौंकनी के समान चलनी चाहिए।
इस क्रिया को तेजी से कई बार दोहराएं। यह क्रिया करते समय पेट फूलना और सिकुड़ना चाहिए।
शुरुवाती दौर इसे 30 बार करें और धीरे धीरे इसे 100-200 तक करें।
आप इसको 500 बार तक कर सकते हैं।
अगर आपके पास समय है तो रुक रुक कर इसे आप 5 से 10 मिनट तक कर सकते हैं।
कपालभाति के लाभसे तो कापलभाति के बहुत सारे लाभ है -
दोनों नोस्ट्रिल से सांस लें, जिससे पेट फूल जाए और पेट की पेशियों को बल के साथ सिकोड़ते हुए सांस छोड़ दें।
अगली बार सांस स्वतः ही खींच ली जाएगी और पेट की पेशियां भी स्वतः ही फैल जाएंगी। सांस खींचने में किसी प्रकार के बल का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
सांस धौंकनी के समान चलनी चाहिए।
इस क्रिया को तेजी से कई बार दोहराएं। यह क्रिया करते समय पेट फूलना और सिकुड़ना चाहिए।
शुरुवाती दौर इसे 30 बार करें और धीरे धीरे इसे 100-200 तक करें।
आप इसको 500 बार तक कर सकते हैं।
अगर आपके पास समय है तो रुक रुक कर इसे आप 5 से 10 मिनट तक कर सकते हैं।
कपालभाति के लाभसे तो कापलभाति के बहुत सारे लाभ है -
यह कब्ज की शिकायत को दूर करने के लिए बहुत लाभप्रद योगाभ्यास है
यह क्रिया अस्थमा के रोगियों के लिए एक तरह रामबाण है। इसके नियमित अभ्यास से अस्थमा को बहुत हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।
कपालभाति लगभग हर बिमारियों को किसी न किसी तरह से रोकता है।
कपालभाति लगभग हर बिमारियों को किसी न किसी तरह से रोकता है।
यह उदर में तंत्रिकाओं को सक्रिय करती है, उदरांगों की मालिश करती है तथा पाचन क्रिया को सुधारती है।
यह फेफड़ों की क्षमता में वृद्धि करती है।
कपालभाति को नियमित रूप से करने पर वजन घटता है और मोटापा में बहुत हद तक फर्क देखा जा सकता है।
इसके अभ्यास से त्वचा में ग्लोइंग और निखार देखा जा सकता है।
यह आपके बालों के लिए बहुत अच्छा है।
कपालभाति से श्वसन मार्ग के अवरोध दूर होते हैं तथा इसकी अशुद्धियां एवं बलगम की अधिकता दूर होती है।
यह शीत, राइनिटिस (नाक की श्लेष्मा झिल्ली का सूजना), साइनसाइटिस तथा श्वास नली के संक्रमण के उपचार में उपयोगी है।
यह साइनस को शुद्ध करती है तथा मस्तिष्क को सक्रिय करती है।
यह पाचन क्रिया को स्वस्थ बनाता है।
माथे के क्षेत्र में यह विशेष प्रकार की जागरुकता उत्पन्न करती है तथा भ्रूमध्य दृष्टि के प्रभावों को बढ़ाती है।
यह कुंडलिनीशक्ति को जागृत करने में सहायक होती है।
बरतें ये सावधानियाँ-
यह फेफड़ों की क्षमता में वृद्धि करती है।
कपालभाति को नियमित रूप से करने पर वजन घटता है और मोटापा में बहुत हद तक फर्क देखा जा सकता है।
इसके अभ्यास से त्वचा में ग्लोइंग और निखार देखा जा सकता है।
यह आपके बालों के लिए बहुत अच्छा है।
कपालभाति से श्वसन मार्ग के अवरोध दूर होते हैं तथा इसकी अशुद्धियां एवं बलगम की अधिकता दूर होती है।
यह शीत, राइनिटिस (नाक की श्लेष्मा झिल्ली का सूजना), साइनसाइटिस तथा श्वास नली के संक्रमण के उपचार में उपयोगी है।
यह साइनस को शुद्ध करती है तथा मस्तिष्क को सक्रिय करती है।
यह पाचन क्रिया को स्वस्थ बनाता है।
माथे के क्षेत्र में यह विशेष प्रकार की जागरुकता उत्पन्न करती है तथा भ्रूमध्य दृष्टि के प्रभावों को बढ़ाती है।
यह कुंडलिनीशक्ति को जागृत करने में सहायक होती है।
बरतें ये सावधानियाँ-
हृदय रोग, चक्कर की समस्या, उच्च रक्तचाप, मिर्गी, दौरे, हर्निया तथा आमाशाय के अल्सर से पीड़ित व्यक्तियों को यह क्रिया नहीं करनी चाहिए।
इसे ध्यान लगाने से पूर्व एवं आसन तथा नेति क्रिया के उपरांत करना चाहिए।
सांस भीतर स्वतः ही अर्थात् बल प्रयोग के बगैर ली जानी चाहिए तथा उसे बल के साथ छोड़ा जाना चाहिए किंतु व्यक्ति को इससे दम घुटने जैसी अनुभूति नहीं होनी चाहिए।
कपालभाति के बाद वैसे योग करनी चाहिए जिससे शरीर शांत जाए।
इसे ध्यान लगाने से पूर्व एवं आसन तथा नेति क्रिया के उपरांत करना चाहिए।
सांस भीतर स्वतः ही अर्थात् बल प्रयोग के बगैर ली जानी चाहिए तथा उसे बल के साथ छोड़ा जाना चाहिए किंतु व्यक्ति को इससे दम घुटने जैसी अनुभूति नहीं होनी चाहिए।
कपालभाति के बाद वैसे योग करनी चाहिए जिससे शरीर शांत जाए।