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14.3.22

गोदन्ती भस्म के उपयोग:godanti bhasm

 


 
गोदंती भस्म एक सुरक्षित दर्द निवारक औषधि है | गोदंती भस्म को गोदंती हरताल , घाषान , कर्पूर शिला व अंग्रेजी में Gypsum(जिप्सम) भी कहते है | गोदंती एक प्रकार का खनिज है | इसका यह नाम गोदंती = गो + दंती , यहाँ गो का आशय गाय से है व दंती का दांत से | यह दिखने में बिल्कुल गाय के दांत के जैसा दिखाई प्रतीत होता है इसलिए इसका नाम गोदंती रखा गया है | आयुर्वेद में गोदंती भस्मका प्रयोग बहुत अधिक किया जाता है | गोदंती भस्म का प्रयोग ज्वर पीड़ा में , सिर दर्द में , कैल्शियम पूरक के रूप में , टाइफाइड बुखार में , हड्डियों के रोग और भी विभिन्न रोगों के उपचार में किया जाता है |

गोदंती भस्म बनाने की विधि :

गोदंती शोधन विधि : 

अच्छी गोदंती को गर्म पानी से धोकर साफ़ करके धुप में सुखाकर रख ले |

भस्म विधि :

जमीन में एक हाथ गहरा गड्डा बना उसका चौथाई भाग कंडों से भरकर उस पर गोदंती की टुकड़ों को अछि तरह बिछा दे और ऊपर कंडों से शेष भाग को भरकर आँच दे | स्वांगशीतल होने पर कंडों की राख को सावधानी से हटाकर गोदन्ती भस्म को निकाल चन्दानादि अर्क ( उत्तम चन्दन का चूर्ण, मौसमी गुलाब तथा केवड़ा, वेदमुश्क या मौलसरी और कमल के फूल सबको एकत्र कर उसमें आठ गुना पानी डालकर भबके से आधा अर्क खींचे ) इसमें या ग्वारपाठा(घीकुमारी) के रस में घोंट टिकियाँ बना धुप में सुखावें, जब टिकियाँ खूब सूख जाए तो सराव सम्पूट में बंद कर लघुपट में फूंक दे | यह स्वच्छ-सफेद और बहुत मुलायम भस्म तैयार होगी |

गोदन्ती भस्म के लाभ 

godanti bhasm ke fayde

आयुर्वेद में गोदन्ती भस्म को एक अच्छी दर्द निवारक औषधि के रूप में जाना गया है | जिसके प्रयोग से रोगी अपने दर्द से शीघ्र ही राहत पाता है |
हर प्रकार के ज्वर में शरीर का ताप कम करने में गोदन्ती भस्म का प्रयोग किया जाता है | ज्वर( बुखार) होने पर गोदंती भस्म पैरासिटामोल के रूप में कार्य करती है |
मलेरिया रोग में भी गोदंती भस्म का प्रयोग बड़े स्तर पर किया जाता है |
स्त्रियों के श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर, रक्तस्त्राव में गोदन्ती भस्म लाभ प्रदान करती है |

godanti bhasm ke fayde

सिर दर्द दूर करने में भी गोदंती भस्म का प्रयोग किया गया है |
शरीर में कैल्सियम की कमी को दूर करने में गोदंती भस्म उपयोगी है | हड्डियों की सूजन व हड्डियों की कमजोरी दूर करने में भी इसका प्रयोग बड़े स्तर पर किया गया है |
सूखी खांसी दूर करने में यह उपयोगी है
पेट में एसिड की समस्या या पेट का अल्सर दूर करने में भी इसका प्रयोग अन्य औषधियों के साथ में किया जाता है |
शरीर में कोई भी सामान्य दर्द व पीड़ा दूर करने में भी गोदंती भस्म का प्रयोग लाभप्रद सिद्ध होता है |
कब्ज व अजीर्ण आदि रोग दूर करने में भी इसका प्रयोग किया गया है |
रोगों के उपचार में गोदंती भस्म के प्रयोग :

गोदन्ती भस्म के उपयोग :

मलेरिया बुखार में गोदंती भस्म से उपचार : 

गोदंती भस्म 2 रत्ती , फिटकरी भस्म 2 रत्ती , सफ़ेद जीरे का चूर्ण 4 रत्ती – तीनों को तुलसीपत्र -रस और शहद में मिलाकर चटाने और ऊपर से सुदर्शन अर्क 5 तोला पिलाने से मलेरिया की गर्मी दूर होकर रोगी को आराम मिलता है |

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शीत ज्वर व पारी वाले बुखार में गोदंती भस्म से उपचार : 

गोदंती भस्म 6 रत्ती में एक चावल संखिया भस्म मिला शहद के साथ दे | इसके तुरंत बाद सुदर्शन चूर्ण का क्वाथ बनाकर अथवा सुदर्शन अर्क 5 तोला पिला देने से बहुत लाभ मिलता है |

सिरदर्द के उपचार में गोदन्ती भस्म का प्रयोग :

 3 रत्ती गोदन्ती भस्म और 1 माशा मिश्री तथा 1 तोला गोघृत सब को मिलाकर दिन में तीन बार देने से रोगी को विशेष लाभ मिलता है | इसी प्रकार सूर्यावर्त, अर्धावभेदक(अधकपारी) में सूर्योदय से एक -एक घंटा पहले दो मात्रा गोदन्ती भस्म शहद के साथ देने से अवश्य लाभ मिलता है |

स्त्रियों के श्वेत प्रदर में गोदन्ती भस्म का प्रयोग :

गोदंती भस्म 6 रत्ती तथा त्रिवंग भस्म 1 रत्ती मिला शर्बत बनप्सा या मधूकाद्य्वलेह के साथ देने से उत्तम लाभ होता है | रक्त प्रदर में पूर्व मिश्रण सहित देकर ऊपर से अशोकारिष्ट या पत्रांगासव पिलाने से बहुत शीघ्र लाभ मिलने लगता है |

मात्रा व सेवन विधि :

गोदन्ती भस्म के सेवन की मात्रा रोगी की उम्र व उसके वजन के अनुसार 125 मिलीग्राम से लेकर एक ग्राम तक हो सकती है | बच्चों के लिए 65 मिलीग्राम से लेकर 250मिलीग्राम तक इसकी मात्रा हो सकती है | व्यस्क के लिए 250 मिलीग्राम से 1 ग्राम तक हो सकती है |

ध्यान देने योग्य :

गोदन्ती भस्म के उपरोक्त सभी प्रयोग सिर्फ और सिर्फ आपकी जानकारी हेतु प्रस्तुत किये गये है | बिना उचित जानकारी के स्वयं से रोग का उपचार हानिकारक सिद्ध हो सकता है | गोदंती भस्म का प्रयोग एक सीमित अवधि के लिए ही किया जाना चाहिए | चिकित्सक की देख-रेख में ही इस औषधि का सेवन करना चाहिए |
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