पार्किंसंस दिमाग से जुड़ी बीमारी है। इसमें दिमाग की कोशिकाएं बनना बंद हो जाती हैं। शुरुआती सालों में इसके लक्षण काफी धीमे होते हैं जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। विशेषज्ञ आम लक्षणों से इस बीमारी की पहचान करते हैं जिसमें कांपना, शारीरिक गतिविधियों का धीरे होना (ब्राडिकिनेसिया), मांसपेशियों में अकडऩ, पलकें न झपका पाना, बोलने व लिखने में दिक्कत होना शामिल हैं। यह बीमारी कुछ साल पहले तक बुजुर्गों में देखने को मिलती थी, आजकल युवाओं में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं।यह एक दिमागी बीमारी है इसमें व्यक्ति को कंपकंपी महसूस होती है साथ ही मांसपेशियों में कठोरता और धीमापन होने की शिकायत होती है | जानकारों कहते है कि यह दिमाग के हिस्से बेंसल गेंगिला में विकृति के चलते पैदा होती है और न्यूरोट्रांसमीटर डोपामीन में कमी के चलते पैदा होती है और आंकड़े बताते है कि दुनियाभर में 6.3 मिलियन लोग इस बीमारी से पीडित है और आपको बता दें वैसे तो यह बीमारी अमूमन 60 साल के बाद की उम्र में ही होती है और महिलाओं के मुकाबले पुरुषो को यह निशाना अधिक बनाती है
प्रमुख लक्षण-
प्रमुख लक्षण-
हाथ-पैरों में कंपन
पार्किंसंस बीमारी का प्रमुख लक्षण हाथ-पैरों में कंपन होना है। लेकिन बीस प्रतिशत रोगियों में ये दिखाई नहीं देते। फोर्टीस अस्पताल की कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुषमा शर्मा के अनुसार, यह बीमारी शारीरिक व मानसिक रूप से रोगी को प्रभावित करती है। अक्सर डिप्रेशन, दिमागी रूप से ठीक न होना, चिंता व मानसिकता को इस बीमारी से जोड़कर देखा जाता है। इसके कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हुए हैं लेकिन इसका कारण आनुवांशिक हो सकता है।
कीटनाशकों (Insecticide) के सम्पर्क में आने के कारण भी यह हो सकती है – एक पत्रिका में छपे लेख के अनुसार कई रोगी जो पार्किंसन बीमारी (parkinson disease )से ग्रस्त मिले उनमे से ज्यादा संख्या उन लोगो की थी जो कभी न कभी कीटनाशकों के साथ लम्बे समय तक सम्पर्क में रहे थे और अमेरिका की एक अकादमी ने इस बात का समर्थन भी किया है इसलिए तो हर जगह सलाह दी जाती है कि जब भी आप बाजार से कभी भी सब्जी या फल लेकर आते है तो उन्हें अच्छे से पानी में धो लेना आवश्यक है क्योंकि न धोने पर हम कीटनाशकों के सम्पर्क में आते है और हो सकता है हम भी आगे जाकर पार्किंसन बीमारी (parkinson disease ) का शिकार हो जाएँ हाँ ऐसा अगर संभव हो तो बेहतर है कि हम आर्गेनिक फल और सब्जियों का उपयोग करना शुरू कर दें जो कि समय और मांग के अनुसार अभी तो हमारे लिए महंगा होता है अगर हम एक मिडिल क्लास फॅमिली से बिलोंग करते है तो क्योंकि आमतौर पर आर्गेनिक फल सब्जियां बाजार भाव से महंगी मिलती है क्योंकि वो कंही अधिक शुद्ध और प्राकृतिक तरीके से पैदा की गयी होती है इसलिए उनकी पैदावार कम होती है फलस्वरूप वो तुलनात्मक रूप से महंगी भी होती है |
पार्किन्संस बीमारी को अक्सर डिप्रेशन या दिमागी रूप से ठीक न होने की स्थिति से जोड़ा जाता है, लेकिन इस संदर्भ में यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि इस बीमारी से पीडि़त रोगी मानसिक रूप से विकलांग नहीं होते हंै। उन्हें समाज से अलग नहीं देखना चाहिए।
शुरुआती स्टेज पर डॉक्टर लक्षणों को मैनेज करने के लिए दवाओं का सहारा लेते है, लेकिन दवाओं के प्रभावी न होने और इनके साइड इफेक्ट के सामने आने पर अंत में डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (डीबीएस) थेरेपी काफी कारगर साबित हुई है।
पार्किंसंस के लिए आयुर्वेदिक उपचार
पार्किंसन रोग केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कंपन करते रहते हैं। पार्किंसन का आरम्भ आहिस्ता-आहिस्ता होता है। पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन घबराइए नहीं क्योंकि आयुर्वेदिक की मदद से पार्किंसंस के प्राकृतिक उपचार में मदद मिलती है, जिससे बीमारी से छुटकारा पाकर आपका शरीर पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है। यह एक ऐसा इलाज है जिसमें पूरे शरीर का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार तथ्य पर आधारित होता है, जिसमें अधिकतर समस्याएं त्रिदोष में असंतुलन यानी कफ, वात और पित्त के कारण उत्पन्न होती है।
दिमाग का टॉनिक ब्राह्मी
पार्किसन के लिए ब्राह्मी को वरदान माना जाता है। यह दिमाग के टॉनिक की तरह काम करती है। भारत में सदियों से कुछ चिकित्सक इसका उपयोग स्मृति वृद्धि के रूप में करते आ रहे हैं। मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के मेडिकल सेंटर के अध्ययन के अनुसार, ब्राह्मी मस्तिष्क में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करने के साथ मस्तिष्क कोशिकाओं की रक्षा करती है। पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन के द्वारा किए एक अन्य अध्ययन के अनुसार, ब्राह्मी के बीज का पाउडर पार्किंसंस के लिए बहुत बढि़या इलाज है। यह रोग को दूर करने और मस्तिष्क की नुकसान से रक्षा करने करने का दावा करती है।
लोकप्रिय जड़ी-बूटी काऊहेग (Cowhage)
भारत में लोकप्रिय जड़ी बूटी काऊहेग या कपिकछु देश भर में तराई के जंगलों की झाड़ियों में पाया जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड मेडिकल सेंटर ने काऊहेग के बारे में बताते हुए कहा कि इसमें लेवोडोपा या एल-डोपा, दवा में मौजूद एल-डोपा की तुलना में पार्किसंस रोग के उपचार में बेहतर तरीके से काम करता है।
पार्किंसन रोग केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कंपन करते रहते हैं। पार्किंसन का आरम्भ आहिस्ता-आहिस्ता होता है। पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन घबराइए नहीं क्योंकि आयुर्वेदिक की मदद से पार्किंसंस के प्राकृतिक उपचार में मदद मिलती है, जिससे बीमारी से छुटकारा पाकर आपका शरीर पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है। यह एक ऐसा इलाज है जिसमें पूरे शरीर का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार तथ्य पर आधारित होता है, जिसमें अधिकतर समस्याएं त्रिदोष में असंतुलन यानी कफ, वात और पित्त के कारण उत्पन्न होती है।
हल्दी का प्रयोग
हल्दी एक ऐसा हर्ब है, जिसमें मौजूद स्वास्थ्य गुणों के कारण हम इसे कभी अनदेखा नहीं कर पाते। मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता बसीर अहमद भी इसके बहुत बड़े प्रशंसक है। उन्होंने एक ऐसी शोधकर्ताओं की टीम का नेत्तृव भी किया, जिन्होंने पाया कि हल्दी में मौजूद करक्यूमिन नामक तत्व पार्किंसंस रोग को दूर करने में मदद करता है। ऐसा वह इस रोग के लिए जिम्मेदार प्रोटीन को तोड़कर और इस प्रोटीन को एकत्र होने से रोकने के द्वारा करता है।
जिन्कगो बिलोबा
जिन्कगो बिलोबा को पार्किंसंस से ग्रस्त मरीजों के लिए एक लाभकारी जड़ी-बूटी माना जाता है। मेक्सिको में न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी के राष्ट्रीय संस्थान में 2012 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, जिन्कगो पत्तियों के सत्त पार्किंसंस के रोगी के लिए फायदेमंद होता है।
दालचीनी से ईलाज
एक नए अध्ययन से पता चला है कि भोजन बनाने में इस्तेमाल होने वाली दालचीनी
पार्किंसन के रोग को बढ़ने से रोकने में मददगार हो सकती है।
अमेरिका में रश यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर यह पता लगाया है कि दालचीनी का इस्तेमाल इस बीमारी के दौरान बायोकेमिकल, कोशिकीय और संरचनात्मक परिवर्तनों को बदल सकता है। इस अध्ययन के दौरान दालचीनी के इस्तेमाल से चूहे के दिमाग में इस तरह के परिवर्तन हुए।
अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता कलिपदा पहन और रश में न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर डेविस ने कहा, सदियों से दालचीनी का इस्तेमाल व्यापक रूप से एक मसाले के रूप में दुनिया भर में होता रहा है। उन्होंने कहा, पार्किंसन से ग्रस्त रोगियों में इस बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए संभवत यह सबसे सुरक्षित तरीकों में से एक हो सकता है।11 अप्रैल को हम वर्ल्ड पार्किंसंस डिज़ीज़ डे के तौर पर भी जानते हैं। आँकड़े बताते हैं कि भारत में पार्किंसन के क़रीब 25 फीसदी मरीज़ 40 साल से कम उम्र के हैं, इसलिए इस रोग के प्रति सचेत रहना बहुत जरूरी है।
आमतौर पर पार्किंसन की बीमारी 50 की उम्र से अधिक के लोगों में ही होती है, लेकिन एम्स के मुताबिक, भारत में 25% मामलों में यह 40 से कम उम्र के लोगों में देखी गई है।
अगर रास्ता चलते हुए आपको झटका-सा लगता है और आप अपना बैलेंस नहीं बना पाते। आप आराम से बैठे हैं और हाथों में स्टिफनेस महसूस करने लगते हैं या फिर अचानक ही आपकी आवाज भी धीमी होने लगती है, तो आपको फिक्रमंद होना चाहिए। ये लक्षण पार्किंसन के हो सकते हैं। हालांकि विशेषज्ञों की मानें तो, पार्किंसन में आदमी थोड़ा स्लो हो जाता है, लेकिन कोई भारी खतरा नहीं होता है। सही इलाज और नियमित व्यायाम काफ़ी कारगर साबित होते हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि यह अजीब किस्म की बीमारी हजार में से किसी एक को ही हो सकती है। दरअसल, इसमें शरीर को जितनी डोपामिन की जरूरत है, उससे कम बनने लगता है। इसकी वजह से 80% सेल्स का जब लॉस हो जाता है, तब जाकर बीमारी का पहला सिंपटम दिखाई देता है। जाहिर है कि जब लक्षण ही देर से पता लगेंगे, तो समस्या स्वाभाविक है।
न्यूरोलोजिस्ट्स की मानें तो इस रोग के लिए सबसे बड़ी समस्या, लोगों में जागरूकता की कमी है। मरीज़ जब किसी फिजिशियन के पास स्पीड के स्लो होने जैसी प्रॉब्लम लेकर जाते हैं, तो उन्हें विटामिंस लेने का सुझाव दे दिया जाता है जबकि विटामिन और प्रोटीन की डोज इस बीमारी में दवाइयों के प्रभाव को कम करता है। इसलिए जो न्यूरॉलॉजिस्ट पार्किंसन के इलाज का विशेषज्ञ हो, वही सही ट्रीटमेंट दे सकता है।
डॉक्टर्स के मुताबिक अगर आप शारीरिक और मानसिक रूप से फिट हैं, तो पार्किंसन का सामना अच्छी तरह से कर सकते हैं। ऐसा देखा गया है कि, डिप्रेशन और एंग्जाइटी का भी इसमें निगेटिव रोल होता है। कई रोगियों में पार्किंसन के अटैक से पहले सूंघने की क्षमता खत्म हो जाती है। ऐसा भी देखा गया है कि यह रोग होने से 5-10 साल पहले लोगों को नींद में अधिक बड़बड़ाने या हाथ-पैर चलाने की शिकायत होती है।
पार्किंसन की जाँच हर जगह नहीं हो सकती। इसे आप न्यूरोलॉजिस्ट से ही करा सकते हैं। जितनी जल्दी मरीज़ का इलाज शुरू हो जाए, असर भी उसी के अनुसार जल्दी होता है। ज़रूरी है कि इलाज के दौरान दवाइयों में लापरवाही बिल्कुल न की जाए । पार्किंसन के रोगी को योग और व्यायाम किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही करना चाहिए।
पार्किंसंस बीमारी का प्रमुख लक्षण हाथ-पैरों में कंपन होना है। लेकिन बीस प्रतिशत रोगियों में ये दिखाई नहीं देते। फोर्टीस अस्पताल की कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुषमा शर्मा के अनुसार, यह बीमारी शारीरिक व मानसिक रूप से रोगी को प्रभावित करती है। अक्सर डिप्रेशन, दिमागी रूप से ठीक न होना, चिंता व मानसिकता को इस बीमारी से जोड़कर देखा जाता है। इसके कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हुए हैं लेकिन इसका कारण आनुवांशिक हो सकता है।
कीटनाशकों (Insecticide) के सम्पर्क में आने के कारण भी यह हो सकती है – एक पत्रिका में छपे लेख के अनुसार कई रोगी जो पार्किंसन बीमारी (parkinson disease )से ग्रस्त मिले उनमे से ज्यादा संख्या उन लोगो की थी जो कभी न कभी कीटनाशकों के साथ लम्बे समय तक सम्पर्क में रहे थे और अमेरिका की एक अकादमी ने इस बात का समर्थन भी किया है इसलिए तो हर जगह सलाह दी जाती है कि जब भी आप बाजार से कभी भी सब्जी या फल लेकर आते है तो उन्हें अच्छे से पानी में धो लेना आवश्यक है क्योंकि न धोने पर हम कीटनाशकों के सम्पर्क में आते है और हो सकता है हम भी आगे जाकर पार्किंसन बीमारी (parkinson disease ) का शिकार हो जाएँ हाँ ऐसा अगर संभव हो तो बेहतर है कि हम आर्गेनिक फल और सब्जियों का उपयोग करना शुरू कर दें जो कि समय और मांग के अनुसार अभी तो हमारे लिए महंगा होता है अगर हम एक मिडिल क्लास फॅमिली से बिलोंग करते है तो क्योंकि आमतौर पर आर्गेनिक फल सब्जियां बाजार भाव से महंगी मिलती है क्योंकि वो कंही अधिक शुद्ध और प्राकृतिक तरीके से पैदा की गयी होती है इसलिए उनकी पैदावार कम होती है फलस्वरूप वो तुलनात्मक रूप से महंगी भी होती है |
पार्किन्संस बीमारी को अक्सर डिप्रेशन या दिमागी रूप से ठीक न होने की स्थिति से जोड़ा जाता है, लेकिन इस संदर्भ में यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि इस बीमारी से पीडि़त रोगी मानसिक रूप से विकलांग नहीं होते हंै। उन्हें समाज से अलग नहीं देखना चाहिए।
शुरुआती स्टेज पर डॉक्टर लक्षणों को मैनेज करने के लिए दवाओं का सहारा लेते है, लेकिन दवाओं के प्रभावी न होने और इनके साइड इफेक्ट के सामने आने पर अंत में डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (डीबीएस) थेरेपी काफी कारगर साबित हुई है।
पार्किंसंस के लिए आयुर्वेदिक उपचार
पार्किंसन रोग केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कंपन करते रहते हैं। पार्किंसन का आरम्भ आहिस्ता-आहिस्ता होता है। पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन घबराइए नहीं क्योंकि आयुर्वेदिक की मदद से पार्किंसंस के प्राकृतिक उपचार में मदद मिलती है, जिससे बीमारी से छुटकारा पाकर आपका शरीर पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है। यह एक ऐसा इलाज है जिसमें पूरे शरीर का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार तथ्य पर आधारित होता है, जिसमें अधिकतर समस्याएं त्रिदोष में असंतुलन यानी कफ, वात और पित्त के कारण उत्पन्न होती है।
दिमाग का टॉनिक ब्राह्मी
पार्किसन के लिए ब्राह्मी को वरदान माना जाता है। यह दिमाग के टॉनिक की तरह काम करती है। भारत में सदियों से कुछ चिकित्सक इसका उपयोग स्मृति वृद्धि के रूप में करते आ रहे हैं। मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के मेडिकल सेंटर के अध्ययन के अनुसार, ब्राह्मी मस्तिष्क में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करने के साथ मस्तिष्क कोशिकाओं की रक्षा करती है। पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन के द्वारा किए एक अन्य अध्ययन के अनुसार, ब्राह्मी के बीज का पाउडर पार्किंसंस के लिए बहुत बढि़या इलाज है। यह रोग को दूर करने और मस्तिष्क की नुकसान से रक्षा करने करने का दावा करती है।
लोकप्रिय जड़ी-बूटी काऊहेग (Cowhage)
भारत में लोकप्रिय जड़ी बूटी काऊहेग या कपिकछु देश भर में तराई के जंगलों की झाड़ियों में पाया जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड मेडिकल सेंटर ने काऊहेग के बारे में बताते हुए कहा कि इसमें लेवोडोपा या एल-डोपा, दवा में मौजूद एल-डोपा की तुलना में पार्किसंस रोग के उपचार में बेहतर तरीके से काम करता है।
पार्किंसन रोग केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कंपन करते रहते हैं। पार्किंसन का आरम्भ आहिस्ता-आहिस्ता होता है। पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन घबराइए नहीं क्योंकि आयुर्वेदिक की मदद से पार्किंसंस के प्राकृतिक उपचार में मदद मिलती है, जिससे बीमारी से छुटकारा पाकर आपका शरीर पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है। यह एक ऐसा इलाज है जिसमें पूरे शरीर का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार तथ्य पर आधारित होता है, जिसमें अधिकतर समस्याएं त्रिदोष में असंतुलन यानी कफ, वात और पित्त के कारण उत्पन्न होती है।
हल्दी का प्रयोग
हल्दी एक ऐसा हर्ब है, जिसमें मौजूद स्वास्थ्य गुणों के कारण हम इसे कभी अनदेखा नहीं कर पाते। मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता बसीर अहमद भी इसके बहुत बड़े प्रशंसक है। उन्होंने एक ऐसी शोधकर्ताओं की टीम का नेत्तृव भी किया, जिन्होंने पाया कि हल्दी में मौजूद करक्यूमिन नामक तत्व पार्किंसंस रोग को दूर करने में मदद करता है। ऐसा वह इस रोग के लिए जिम्मेदार प्रोटीन को तोड़कर और इस प्रोटीन को एकत्र होने से रोकने के द्वारा करता है।
जिन्कगो बिलोबा
जिन्कगो बिलोबा को पार्किंसंस से ग्रस्त मरीजों के लिए एक लाभकारी जड़ी-बूटी माना जाता है। मेक्सिको में न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी के राष्ट्रीय संस्थान में 2012 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, जिन्कगो पत्तियों के सत्त पार्किंसंस के रोगी के लिए फायदेमंद होता है।
दालचीनी से ईलाज
एक नए अध्ययन से पता चला है कि भोजन बनाने में इस्तेमाल होने वाली दालचीनी
पार्किंसन के रोग को बढ़ने से रोकने में मददगार हो सकती है।
अमेरिका में रश यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर यह पता लगाया है कि दालचीनी का इस्तेमाल इस बीमारी के दौरान बायोकेमिकल, कोशिकीय और संरचनात्मक परिवर्तनों को बदल सकता है। इस अध्ययन के दौरान दालचीनी के इस्तेमाल से चूहे के दिमाग में इस तरह के परिवर्तन हुए।
अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता कलिपदा पहन और रश में न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर डेविस ने कहा, सदियों से दालचीनी का इस्तेमाल व्यापक रूप से एक मसाले के रूप में दुनिया भर में होता रहा है। उन्होंने कहा, पार्किंसन से ग्रस्त रोगियों में इस बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए संभवत यह सबसे सुरक्षित तरीकों में से एक हो सकता है।11 अप्रैल को हम वर्ल्ड पार्किंसंस डिज़ीज़ डे के तौर पर भी जानते हैं। आँकड़े बताते हैं कि भारत में पार्किंसन के क़रीब 25 फीसदी मरीज़ 40 साल से कम उम्र के हैं, इसलिए इस रोग के प्रति सचेत रहना बहुत जरूरी है।
आमतौर पर पार्किंसन की बीमारी 50 की उम्र से अधिक के लोगों में ही होती है, लेकिन एम्स के मुताबिक, भारत में 25% मामलों में यह 40 से कम उम्र के लोगों में देखी गई है।
अगर रास्ता चलते हुए आपको झटका-सा लगता है और आप अपना बैलेंस नहीं बना पाते। आप आराम से बैठे हैं और हाथों में स्टिफनेस महसूस करने लगते हैं या फिर अचानक ही आपकी आवाज भी धीमी होने लगती है, तो आपको फिक्रमंद होना चाहिए। ये लक्षण पार्किंसन के हो सकते हैं। हालांकि विशेषज्ञों की मानें तो, पार्किंसन में आदमी थोड़ा स्लो हो जाता है, लेकिन कोई भारी खतरा नहीं होता है। सही इलाज और नियमित व्यायाम काफ़ी कारगर साबित होते हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि यह अजीब किस्म की बीमारी हजार में से किसी एक को ही हो सकती है। दरअसल, इसमें शरीर को जितनी डोपामिन की जरूरत है, उससे कम बनने लगता है। इसकी वजह से 80% सेल्स का जब लॉस हो जाता है, तब जाकर बीमारी का पहला सिंपटम दिखाई देता है। जाहिर है कि जब लक्षण ही देर से पता लगेंगे, तो समस्या स्वाभाविक है।
न्यूरोलोजिस्ट्स की मानें तो इस रोग के लिए सबसे बड़ी समस्या, लोगों में जागरूकता की कमी है। मरीज़ जब किसी फिजिशियन के पास स्पीड के स्लो होने जैसी प्रॉब्लम लेकर जाते हैं, तो उन्हें विटामिंस लेने का सुझाव दे दिया जाता है जबकि विटामिन और प्रोटीन की डोज इस बीमारी में दवाइयों के प्रभाव को कम करता है। इसलिए जो न्यूरॉलॉजिस्ट पार्किंसन के इलाज का विशेषज्ञ हो, वही सही ट्रीटमेंट दे सकता है।
डॉक्टर्स के मुताबिक अगर आप शारीरिक और मानसिक रूप से फिट हैं, तो पार्किंसन का सामना अच्छी तरह से कर सकते हैं। ऐसा देखा गया है कि, डिप्रेशन और एंग्जाइटी का भी इसमें निगेटिव रोल होता है। कई रोगियों में पार्किंसन के अटैक से पहले सूंघने की क्षमता खत्म हो जाती है। ऐसा भी देखा गया है कि यह रोग होने से 5-10 साल पहले लोगों को नींद में अधिक बड़बड़ाने या हाथ-पैर चलाने की शिकायत होती है।
पार्किंसन की जाँच हर जगह नहीं हो सकती। इसे आप न्यूरोलॉजिस्ट से ही करा सकते हैं। जितनी जल्दी मरीज़ का इलाज शुरू हो जाए, असर भी उसी के अनुसार जल्दी होता है। ज़रूरी है कि इलाज के दौरान दवाइयों में लापरवाही बिल्कुल न की जाए । पार्किंसन के रोगी को योग और व्यायाम किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही करना चाहिए।