24.4.23

हड्डियों के जोड़ मजबूत कैसे करें?Haddiyon ko kaise majbut banayen

 




अगर आप सोंचते हैं कि आप जवान हैं और आपकी हड्डी अभी कमजोर नहीं हो सकती, तो आप बिल्कुल गलत हैं। जाने माने हड्डी के सर्जन का कहना है कि आज कल लोगों को कम ही उम्र में ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डी विकार) होने का खतरा पहले की तुलना में ज्यादा बढ गया है।
अगर आप अपने भोजन में कैल्शियम युक्त भोजन नहीं लेते तो आपके घुटने कुछ ही दिनों में कमजोर हो जाएंगे। अगर घुटना किसी भी प्रकार से क्षतिग्रस्त हो गया तो उसे ठीक करना बहुत मुश्किल है।अच्छा है कि आप अपने भोजन में कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ शामिल करें, जो आपके घुटनों के लिये अच्छे हों।

हमारी हड्डियां कैल्शियम, फॉस्फोरस, प्रोटीन व अन्य कई प्रकार के मिनरल से मिलकर बनी होती हैं। किंतु अनियमित जीवनशैली, खान-पान व शारीरिक निष्क्रीयता की वजह से ये मिनरल खत्म होने लगते हैं, जिससे हड्डियों का घनत्व (बोन डेंसिटी) कम होने लगता है और धीरे-धीरे वो घिसने और कमजोर होने लगती हैं। कई बार हड्डीयों में यह कमजोरी इतनी हो जाती है कि मामूली सी चोट लगने पर भी फ्रैक्चर हो जाता है।
जॉइंट्स यानी हड्डियों का जोड़ हमें मजबूती देने के साथ-साथ ईजी मोबिलिटी में भी मदद करते हैं। ऐसे में अगर जॉइंट्स स्मूथली काम न करे तो हमें कई तरह की परेशानियों और दर्द का सामना करना पड़ सकता है। लिहाजा ये बेहद जरूरी है कि जॉइंट्स के साथ हमारा अच्छा रिश्ता बना रहे।
भारत मे आज कल हड्डियों से जुड़ी समस्या बहुत आम बात हो गई है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, हड्डी, जोड़ और कमर का दर्द जीवन का अभिन्न अंग बन जाता है। आज हर दस में से लगभग चार स्त्रियों और चार में से एक पुरुष को हड्डी से जुड़ी कोई न कोई समस्या घेरे रहती है। पर ध्यान रहे, हड्डियां रातों-रात कमजोर नहीं होतीं। यह प्रक्रिया सालों-साल चलती है। डॉक्टरों का मानना है कि 15-25 वर्ष तक की उम्र में हड्डियों का मास यानी द्रव्यमान पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है। ऐसे में बचपन और युवावस्था के समय का खान-पान, पोषण, जीवनशैली और व्यायाम आगे चल कर हड्डियों की सेहत को निर्धारित करने वाले कारक बनते हैं।हड्डियों कमजोर होने के कारण और हड्डियों का खोखलापन होने से सिल्पडिकस, थोड़ी सी चोट से टुट जाना, हड्डियों का दर्द होना, हड्डी भूरभरी होना आदि|

हड्डियों से जुड़ी समस्या के उपचार -

पिस्ता, अखरोट और बादाम-

ये कुछ ऐसे ड्राई फ्रूट्स हैं जिनमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटमिन ई, प्रोटीन और अल्फा-लिनोलेनिक भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद करता है। खासकर अखरोट में ओमेगा 3 फैटी ऐसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो ऑस्टियोआर्थराइटिस और रूमेटाइड आर्थराइटिस से छुटकारा पाने में मदद करता है।


पालक

ऐंटिऑक्सिडेंट्स से भरपूर पालक ऑस्टियोआर्थराइटिस को कम करने में मदद करने के साथ ही सूजन, जलन और दर्द को भी कम करता है। आप चाहें तो पालक का सूप, जूस, पालक की सब्जी या फिर कई अलग-अलग तरीकों से पालक को अपनी डायट में शामिल कर सकते हैं।

पपीता : 

पपीते में ढेर सारा विटामिन सी होता है। रिसर्च में पाया गया है कि जिन लोगों के अदंर विटामिन सी की कमी होती है उनमें जोड़ो का दर्द आम बात है।

*ब्रॉकली

*ब्रॉकली मे सल्फोराफेन पाया जाता है जो जोड़ों के दर्द की तकलीफ को कम करने के साथ ही रूमेटाइड आर्थराइटिस के लक्षणों को भी कम करने में मदद करता है। ब्रॉकली खाने का ढेरों फायदा आपको मिले इसके लिए इसे अपने सलाद या फिर स्टर-फ्राई सब्जी में यूज करें।

मछली

साल्मन, ट्यूना और ट्रॉट जैसी मछलियों की वरायटी में ओमेगा 3 फैटी ऐसिड भरपूर मात्रा में होता है जो सूजन-जलन और उत्तेजना से लड़कर जोड़ों के दर्द को तुरंत कम करने में मदद करता है। इन मछलियों में विटमिन डी की मात्रा भी काफी अधिक होती है जो आर्थराइटिस और उस जैसी कई बीमारियों के लक्षणों को कम करता है।

गुड़ और तिल :

20 ग्राम तिल थोडे से गुड के साथ मिक्सर में चलाकर तिलकुट्टा बनालें। रोजाना सुबह उपयोग करने से अस्थि मृदुता निवारण में मदद मिलती है।

जोड़ मजबूत करने के निम्न उपाय भी बहुत महत्व पूर्ण है-

१) रिफाईनड तेल खाना छोड दें । रिफाइंड तेल में ज्यादा लाईपो कैमिकल होता है और यह शरीर के केल्सियम को मूत्र के जरिये बाहर निकालता है। केल्शियम अल्पता से अस्थि-भंगुरता होती है। रिफाइंड की बजाय कच्ची घाणी का तेल प्रचुरता से उपयोग करें।
२) प्रतिदिन बाजरा और तिल का तेल उपयोग करें। यह ओस्टियो पोरोसिस( अस्थि मृदुता) का उम्दा इलाज है।खोखली और कमजोर अस्थि-रोगी को यह उपचार अति उपादेय है।
३) एक चम्मच शहद नियमित तौर पर लेते रहें। यह आपको अस्थि भंगुरता से बचाने का बेहद उपयोगी नुस्खा है।
४) दूध केल्सियम की आपूर्ति के लिये श्रेष्ठ है। इससे हड्डिया ताकतवर बनती हैं। गाय या बकरी का दूध भी लाभकारी है।
५) विटामिन “डी ” अस्थि मृदुता में परम उपकारी माना गया है। विटामिन डी की प्राप्ति सुबह के समय धूपमें बैठने से हो सकती है। विटामिन ’डी” शरीर में केल्सियम संश्लेशित करने में सहायक होता है।शरीर का २५ प्रतिशत भाग खुला रखकर २० मिनिट धूपमें बैठने की आदत डालें।
६) एक गेहूं के दाने के समान चूना तरल पदार्थ में मिलाकर खाये, यह कैल्शियम का अच्छा स्रोत हैं ।(पथरी का रोगी चुना ना खाये)
७) तिल के उत्पाद अस्थि मृदुता निवारण में महत्वपूर्ण हैं। इससे औरतों में एस्ट्रोजिन हार्मोन का संतुलन बना रहता है। एस्ट्रोजिन हार्मोन की कमी महिलाओं में अस्थि मृदुता पैदा करती है।तिल का तेल उत्तम फ़लकारक होता है।
८) केफ़िन तत्व की अधिकता वाले पदार्थ के उपयोग में सावधानी बरतें। चाय और काफ़ी में अधिक केफ़िन तत्व होता है। दिन में बस एक या दो बार चाय या काफ़ी ले सकते हैं।
९) बादाम अस्थि मृदुता निवारण में उपयोगी है। ११ बादाम रात को पानी में गलादें। छिलके उतारकर गाय के २५० मिलि दूध के साथ मिक्सर या ब्लेन्डर में चलावें। नियमित उपयोग से हड्डियों को भरपूर केल्शियम मिलेगा और अस्थि भंगुरता का निवारण करने में मदद मिलेगी।
१०) बन्द गोभी में बोरोन तत्व पाया जाता है। हड्डियों की मजबूती में इसका अहम योगदान होता है। इससे खून में एस्ट्रोजीन का स्तर बढता है जो महिलाओं मे अस्थियों की मजबूती बढाता है। पत्ता गोभी की सलाद और सब्जी प्रचुरता से इस्तेमाल करें।
११) नये अनुसंधान में जानकारी मिली है कि मेंगनीज तत्व अस्थि मृदुता में अति उपयोगी है। यह तत्व साबुत गेहूं,पालक,अनानास,तिल और सूखे मेवों में पाया जाता है। इन्हें भोजन में शामिल करें।
१२) विटामिन “के” रोजाना ५० मायक्रोग्राम की मात्रा में लेना हितकर है। यह अस्थि भंगुरता में लाभकारी है।
१३) सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हड्डियों की मजबूती के लिये नियमित व्यायाम करें और स्वयं को घर के कामों में लगाये रखें।
१४) भोजन में नमक की मात्रा कम कर दें। भोजन में नमक ज्यादा होने से सोडियम अधिक मात्रा मे उत्सर्जित होगा और इसके साथ ही केल्शियम भी बाहर निकलेगा।
१५) २० ग्राम तिल थोडे से गुड के साथ मिक्सर में चलाकर तिलकुट्टा बनालें। रोजाना सुबह उपयोग करने से अस्थि मृदुता निवारण में मदद मिलती है।
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20.4.23

लम्बी उम्र तक हड्डियों की मजबूती के उपाय ,Haddiyon ko kaise majbut banayen?




एक मजबूत शरीर के लिए, बाकी अंगों के साथ हड्डियों का मजबूत (Strong Bones) होना भी ज़रूरी होता है। हमारी हडियां कैल्शियम (Calcium), प्रोटीन (Protein), फॉस्फोरस (Phosphorus) के अलावा अन्य मिनरल (Other Minerals) से बानी हुई होती हैं। खराब लाइफस्टाइल, पोषण की कमी से यह मिनरल ख़तम होने लगते हैं और धीरे-धीरे हडियों कमजोर हो जाती हैं। इसी कारण से चोट या एक्सीडेंट होने पर फ्रैक्चर (Fracture) हो जाता है। स्‍वाभाविक है कि हमारे शरीर को पोषण और ताकत केवल आहार के माध्‍यम से ही प्राप्‍त हो सकता है। लेकिन जब हड्डीयों की बात आती है तो दो प्रमुख पोषक तत्‍व कैल्शियम और विटामिन D बहुत ही आवश्‍यक होते हैं। यदि आप अपनी हड्डियों को मजबूत रखना चाहते हैं तो कैल्शियम और विटामिन-D आधारित खाद्य पदार्थों पर ध्‍यान दें। इस लेख में बुढ़ापे तक साथ निभाने वाली हड्डियों को मजबूत कैसे बनाए रखने के उपाय बताए गए हैं।

दूध-

दूध कैल्शियम का हाई सोर्स है जिससे आपकी हड्डियों को सेहतमंद रखने में काफी मदद मिलती है। यदि आप रोज एक कप दूध (250-300 Ml) पीते हैं तो उससे रोजाना कैल्शियम की जरुरत का एक तिहाई हिस्सा मिल जाता है।
दूध में पोटेशियम (Potassium), विटामिन बी (Vitamin B), विटामिन ए (Vitamin A) और प्रोटीन (Protein) काफी मात्रा में होता है। यदि आप लो कैलोरी चाहते हैं तो लो या बिना-फैट वाले दूध (Low Or Non-Fat Milk) का उपयोग कर सकते हैं।

बाजरा (Bajra)

रोज़ाना बाजरा और तिलके तेल का उपयोग करेने से यह हड्डियों की बिमारी से बचाएगा जैसे ऑस्टियोपोरोसिस।

काजू-

काजू काफी टेस्टी और हेल्दी ड्रायफ्रूट है। इसमें मौजूद मैग्नीशियम (Magnesium) और खनिज (Minerals) हड्डियों को मजबूती प्रदान करते हैं।
साथ ही साथ इसमें हाई मात्रा में कॉपर (Copper) होता है। काजू के एक औंस (28.34 Gm) में 622 Mg कॉपर होता है। 19 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों के लिए रोजाना 900 Mg कॉपर की जरुरत होती है।(3)

कच्ची घानी तेल (Kacchi ghani ka tel)

रिफाइंड तेल का सेवन करना छोड़ दें, इसमें मौजूद लिपो केमिकल हड्डियों को शांति पहुंचता हैं। यह शरीर के कैल्शियम को मूत्र के जरिए बाहर निकालता हैं। रिफाइंड तेल के स्थान पर कच्ची घानी तेल का उपयोग करें।

टमाटर का जूस-

टमाटर का जूस मिटामिन और मिनरल्स में काफी हाई होता है। इसमें मैग्नीशियम, विटामिन ए (Vitamins A ), विटामिन सी (Vitamins C) काफी मात्रा में पाया जाता है। साथ ही साथ कैल्शियम और विटामिन के (Vitamins K) भी कुछ मात्रा में पाया जाता है।
इसलिए ताजे टमाटर का जूस पीना हड्डियों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

सूरज से मिलने वाली धुप (Having Sunlight Or Sunbathing)

विटामिन D की प्राप्ति सुबह के समय धूप में बैठने से हो सकती हैं। विटामिन D शरीर में कैल्शियम संष्लेशित करने में सहायक होता है। शरीर का 25% भाग खुला रखकर 20 मिनट धुप में बैठने की आदत डालें।

चुना (Chuna)

गेहूं के दाने के समान चुना तरल पदार्थ में मिलाकर खाए, यह कैल्शियम का अच्छा स्रोत है। (पथरी में चुना ना खाएं)

अखरोट-


अखरोट टेस्ट के साथ-साथ गुणों में भी काफी अच्छा होता है। ये कैल्शियम, प्रोटीन और मैग्नीशियममें काफी हाई होता है। साथ ही साथ ये ओमेगा-3 (Omega-3) फैटी एसिड का भी मुख्य सोर्स होता है।
ये कॉपर का अच्छा सोर्स है और ये बात तो आप जानते ही हैं कि कॉपर की कमी से बोन डेंसिटी कम होने और ऑस्टियोपोरोसिस का जोखिम बढ़ सकता है।
सभी नट्स की तरह इसमें भी अधिक कैलोरी होती है। लेकिन इसकी कुछ मात्रा खाने से आपको काफी लंबे समय तक भूख नहीं लगती।

बादाम (Almonds)

4-5 बादाम रात को पानी में भिगो के रख दें। छिलके उतारकर गाय के 240 ml दूध के साथ मिक्सर में ब्लेंड करके सेवन करे। यह अस्थि मृदुता निवारण में उपयोगी है।

गोभी (Gobhi)

गोभी में बोरोन तत्व पाया जाता है। हड्डियों की मजबूती में इसका अहम योगदान होता है। इससे खून में एस्ट्रोजीन का स्तर बढ़ता है जो महिलाओं में अस्थियों की मजबूती बढ़ता है। पत्ता गोभी की सलाद और सब्ज़ी प्रचुरता से इस्तेमाल करें।

दही -

दही में हाई मात्रा में कैल्शियम और प्रोटीन पाया जाता है। एक कप दही से आपको 450 Mg कैल्शियम और 12 Gm प्रोटीन मिल सकता है।
साथ ही साथ इसमें हड्डियों की हेल्थ के लिए कुछ महत्वपूर्ण पोषक तत्व पाए जाते हैं, जैसे: कैल्शियम (Calcium), प्रोटीन (Protein), पोटेशियम (Potassium), फॉस्फोरस (Phosphorus) और विटामिन डी (vitamin D)।

अनाज (Whole Grains)

मेंगनीज तत्व अस्थि मृदुता में अति उपयोगी है। यह तत्व साबुत गेहूं, पालक, अनानास, टिल और सूखे मेवों में पाया जाता है।

व्यायाम (Exercise)

सबसे ज़रूरी बात यह है की हड्डियों की मजबूती की मजबूती के लिए नियमित व्यायाम करें और स्वयं को घर के कामों में लगाए रखें।
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19.4.23

बवासीर कैसे ठीक करें?Bawasir ke karan aur upchar




Bawasir ka ilaaj: बवासीर बीमारी के बारे में आप सब परिचित होंगे. यह एक बहुत ही कष्ट-पीड़ा वाला गंभीर बीमारी है. जिसको बवासीर की बीमारी हो जाती है वो बहुत ही परेशान हो जाता है. उठने बैठने और टहलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. आज इस पोस्ट में बवासीर के लक्षण और बवासीर का इलाज ( Bawasir ka ilaaj ) के बारे में जानेंगे. इसके साथ ही बवासीर के कारण और इससे बचाव भी जानेंगे.
बवासीर क्या है
बवासीर एक बीमारी है जो लोगों के मल द्वार के रास्ते में मांसपेशियों के बढ़ने के कारण होता है. ये बढ़े हुए मांसपेशियां मल द्वार के रक्त वाहिकाओं और उत्तकों से जुड़े रहते हैं जिसके कारण इस बीमारी में पीड़ित व्यक्ति को मल द्वार से खून भी निकलता है और दर्द भी होता है. बहुत से लोगों को बवासीर होता है, लेकिन लक्षण हमेशा स्पष्ट नहीं होते हैं. बवासीर गुदा क्षेत्र यानी मल द्वार में ऊतक में सूजन है. इनके कई आकार हो सकते हैं, और ये गुदा के आंतरिक या बाहरी हो सकते हैं. आंतरिक बवासीर आम तौर पर गुदा के ऊपर 2 और 4 सेंटीमीटर (सेमी) के बीच स्थित होते हैं, और वे अधिक सामान्य प्रकार के होते हैं. जबकि बाहरी बवासीर गुदा के बाहरी किनारे पर होती है.

बवासीर के लक्षण

Symptoms of Piles: आपको बता दें कि ज्यादातर मामलों में, बवासीर के लक्षण गंभीर नहीं होते हैं. बवासीर से पीड़ित व्यक्ति निम्नलिखित लक्षणों का अनुभव कर सकता है…गुदा के आसपास एक कठोर दर्दनाक गांठ महसूस की जा सकती है. इसमें जमा हुआ रक्त हो सकता है. बवासीर जिसमें रक्त होता है, उसे थ्रोम्बोस्ड बाहरी बवासीर कहा जाता है.
मॉल त्यागने के बाद, बवासीर वाले व्यक्ति को अनुभव हो सकता है कि आंत्र अभी भी भरा हुआ है.
मल त्याग के बाद चमकदार लाल रक्त दिखाई देता है.
गुदा के आसपास का क्षेत्र खुजली, लाल और गिला होता है.
मल त्यागने के दौरान दर्द महसूस होता है.

बवासीर होने के कारण

Cause of Piles: बवासीर बीमारी होने के कई कारण है. दिन भर कठोर कुर्सी या बिस्तर पर बैठने या ज्यादा प्रेशर के साथ मॉल त्याग से बवासीर होता है. बवासीर के कारण ( Bawasir ke karan ) ये भी है कि जब निचले मलाशय में बढ़ते दबाव बढ़ता है तो पाइल्स होता है. गुदा के आसपास और मलाशय में रक्त वाहिकाएं दबाव में खिंचाव करेंगी और बवासीर का कारण बन सकती हैं. इसकी वजह यह हो सकती है…पुराना कब्ज
पुरानी डायरिया
भारी वजन उठाना
लम्बी देर तक कठोर वस्तुओं या बिस्तर पर बैठना
गर्भावस्था
मल त्याग करते समय तनाव
उम्र के साथ बवासीर बढ़ जाती है.

बवासीर का इलाज

आपको बता दें कि ज्यादातर मामलों में बवासीर का इलाज ( Bawasir Ka ilaaj ) की आवश्यकता नहीं होती. ये अपने आप ठीक हो सकती है. लेकिन बवासीर का घरेलु उपचार ( Bawasir ka gharelu upay ) अपना कर इसे कम किया जा सकता है. हालांकि, बवासीर के उपचार ( Bawasir ke Upchar ) से दर्द-पीड़ा और खुजली को कम करने में मदद कर सकते हैं. बवासीर को ख़त्म करने में निम्नलिखित उपचार अपना सकते हैं…

जीवन शैली में परिवर्तन:



उच्च फाइबर आहार खाने से स्थिति को रोकने और इलाज करने में मदद मिल सकती है. एक डॉक्टर शुरू में बवासीर के इलाज ( Bawasir ke ilaaj ) जीवन शैली में बदलाव की करने की हिदायत देती है.
आहार: मल त्याग के दौरान तनाव के कारण पाइल्स हो सकता है. अत्यधिक तनाव कब्ज का परिणाम है. आहार में बदलाव मल को नियमित और नरम रखने में मदद कर सकता है. इसमें अधिक फाइबर खाना शामिल है, जैसे कि फल और सब्जियां, या मुख्य रूप से चोकर आधारित नाश्ता अनाज. ज्यादा से ज्यादा पानी पीना और कैफीन से बचना बवासीर के इलाज में सहायक है.

शरीर का वजन:

अगर आपका वजन बढ़ गया है तो वजन कम करने से बवासीर की घटनाओं और गंभीरता को कम करने में मदद मिल सकती है. बवासीर को रोकने के लिए, डॉक्टर मल को पास करने के लिए व्यायाम करने और तनाव से बचने की सलाह भी देते हैं। बवासीर के लिए व्यायाम मुख्य उपचारों में से एक है।
जुलाब: यदि बवासीर से पीड़ित व्यक्ति कब्ज से पीड़ित हो तो डॉक्टर जुलाब लिख सकता है. ये व्यक्ति को अधिक आसानी से मल पास करने में मदद कर सकते हैं और निचले कोलन पर दबाव कम कर सकते हैं.

बवासीर के प्रकार

Types of Pilesग्रेड I: इस तरह की बवासीर छोटे सूजन होते हैं, आमतौर पर गुदा के अस्तर के अंदर होते हैं जो दिखाई नहीं देते हैं.
ग्रेड II: यह ग्रेड I बवासीर से बड़े होते हैं, लेकिन गुदा के अंदर भी रहते हैं. मल के गुजरने के दौरान उन्हें धक्का लग सकता है, लेकिन वे बिना रुके वापस लौट आएंगे.
ग्रेड III: इन्हें प्रोलैप्सड बवासीर के रूप में भी जाना जाता है, और गुदा के बाहर दिखाई देता है. व्यक्ति उन्हें मलाशय से लटका हुआ महसूस कर सकता है, लेकिन उन्हें आसानी से डाला जा सकता है.
ग्रेड IV: बवासीर की यह सबसे गंभीर अवस्था होती है. इन्हें वापस नहीं धकेला जा सकता है और उपचार की आवश्यकता होती है. ये बड़े होते हैं और गुदा के बाहर रहते हैं.

बवासीर के उपचार

खुनी बवासीर होने पर दही या लस्सी के साथ कच्चा प्याज खाने से फायदा मिलता है।
कैसी भी बवासीर हो कच्ची मूली खाने या उसका रस पीना चाहिए। एक बार में मूली का रस 25 से 50 ग्राम तक ही ले।
आम और जामुन की गुठली के अंदर वाले हिस्से को सुख कर पीस लें और इसका चूर्ण बना ले। रोजाना 1 चम्मच चूर्ण पानी या लस्सी के साथ लेने से खुनी बवासीर में आराम मिलता है।
शरीर में कब्ज़ रहती हो और पेट ठीक से साफ़ न होता हो तो इसबगोल की भूसी का प्रयोग करे।
50 से 60 ग्राम बड़ी इलायची तवे पर भून ले और ठंडी होने के बाद इसे पीस कर चूर्ण बना ले। रोजाना सुबह खाली पेट इस चूर्ण को पानी के साथ लेने से पाइल्स ठीक होती है।
100 ग्राम किशमिश रात को सोने से पहले पानी में भिगो कर रखे और सुबह उस पानी में किशमिश को मसल कर इस पानी का सेवन करें। कुछ दिन निरंतर इस उपाय को करने से बवासीर ठीक होने लगती है।
10 से 12 ग्राम धुले हुए काले तिल ताजा मक्खन के साथ खाने से खूनी बवासीर में खून का आना बंद होता है। एक चौथाई चम्मच दालचीनी 1 चम्मच शहद में मिला कर खाने से भी पाइल्स में राहत मिलती है।
अगर आप को बवासीर बार बार होती है तो दोपहर के खाने के बाद लस्सी (छाछ) का सेवन करे। लस्सी में थोड़ा सा सेंधा नमक और अजवाइन मिला कर पिये।

बवासीर की अचूक दवा- हल्दी

हल्दी एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसका इस्तेमाल रसोई घर में मसालों के रूप में किया जाता है. हल्दी में कईं तरह के एंटीसेप्टिक गुण मौजूद होते हैं जो जख्मों को ठीक करते हैं. ऐसे में यदि आप बवासीर से पीड़ित हैं तो हल्दी आपके लिए रामबाण साबित हो सकती है. इसके लिए आप एक चम्मच देसी घी में आधा चम्मच हल्दी मिला लें और मस्सों पर मलहम की तरह लगा लें. आप इसमें घी की जगह एलोवेरा जेल का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. हल्दी से बवासीर के मस्से की दवा के रूप मैं भी इस्तेमाल की जाती है

बवासीर की अचूक दवा- केला

केले में कईं तरह के पौषक तत्व मौजूद होते हैं जो कब्ज़ और बवासीर के लिए उपयोगी साबित होते हैं. इसके लिए आप एक पका हुआ केला लें और उसको बीच से काट लें. अब इस पर थोड़ी मात्रा में कत्था छिडकें अर रात भर इसे खुले आसमान के नीचे पड़ा रहने दें. अगली सुबह इस केले को खाने के 5 से 7 दिन तक आपको बवासीर से राहत मिलेगी.

बवासीर के मस्सों का रामबाण इलाज

80 ग्राम अरंडी के तेल को गरम कर ले फिर इसमें 10 ग्राम कपूर मिला कर रखे। मस्सों को साफ़ पानी से धो कर इसे किसी कपड़े से पोंछ ले और अरंडी के इस तेल से मस्सों पर हलके हाथों से मालिश करे। इस देसी नुस्खे को दिन में 2 बार करने से मस्सों की सूजन, दर्द, खारिश और जलन में आराम मिलता है।
थोड़ी सी हल्दी को सेहुंड के दूध में मिलाकर इसकी 1 बूंद मस्से पर लगाने से मस्सा ठीक हो जाता है। .
सहजन के पत्ते और आक के पत्तों का लेप लगाने से भी मस्सों से जल्दी छुटकारा मिलता है।
कड़वी तोरई के रस में हल्दी और नीम का तेल मिला कर एक लेप बना ले और मस्सों पर लगाये। इस उपाय के निरंतर प्रयोग से हर तरह के मस्से ख़तम हो जाते है।
खूनी और बादी बवासीर का आयुर्वेदिक उपायअंजीर का सेवन पाइल्स के इलाज में बेहद लाभकारी है। रात को सोने से पहले 2 सूखे अंजीर पानी में भिगो कर रखे और सुबह खाएं और 2 अंजीर सुबह भिगो कर रख दे जिसे आप शाम को खाये। अंजीर खाने के आधे से पौना घंटा पहले और बाद में कुछ खाये पिये नहीं। 10 से 12 दिन लगातार इस नुस्खे को करने से खुनी और बादी हर तरीके की बवासीर से राहत मिलती है।

बवासीर की अचूक दवा- लहसुन

लहसुन पेट के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है. यह भोजन पचाने में सहायक है और पेट के रोगों से राहत दिलाता है. इसके इलावा यदि आपको पाइल्स की समस्या है तो आप रात में सोने से पहले लहसुन की एक कली को चील कर गुदा के रास्ते से अंदर डाले. हालाँकि यह उपाय शुरू में आपको थोडा दर्द दे सकता है लेकिन इससे आपको जल्दी ही राहत मिलेगी.

बवासीर की अचूक दवा- छाछ

मस्सों वाली बवासीर की अचूक दवा के रूप में छाछ के सेवन का विशेष महत्व है. दरअसल, छाछ की तासीर ठंडी होती है इसलिए इसके सेवन से बवासीर के मस्से जल्दी ठीक होने लगते हैं. इसके सेवन के लिए आप दो लीटर छाछ में 50 ग्राम पिसा हुआ जीरा व नमक मिला कर रख दें और जब भी प्यास लगे तो पानी की जगह इसे पी लें. लगातार एक हफ्ते तक इसके सेवन से आपके मस्से ठीक हो जाएंगे और बवासीर से आपको हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा.

बवासीर की अचूक दवा- त्रिफला चूर्ण

आयुर्वेद ग्रंथ में त्रिफला चूर्ण को रामबाण औषधि माना गया है. त्रिफला चूर्ण कईं रोगों में असरदायक माना गया है. वहीँ बवासीर की अचूक दवा के रूप में त्रिफला चूर्ण का इस्तेमाल सदियों से किया जा रहा है. इसके लिए आप रात में सोने से पहले एक चम्मच त्रिफला चूर्ण का सेवन करें. इससे आपको बहुत जल्द बवासीर के दर्द व मस्सों से राहत मिलेगी. त्रिफला चूर्ण बवासीर के मस्से की दवा के रूप मैं इस्तेमाल किया जाता है.

बवासीर में क्या खाये

करेले का रस, लस्सी, पानी।
दलिया, दही चावल, मूंग दाल की खिचड़ी, देशी घी।
खाना खाने के बाद अमरूद खाना भी फायदेमंद है।
फलों में केला, कच्चा नारियल, आंवला, अंजीर, अनार, पपीता खाये।
सब्जियों में पालक, गाजर, चुकंदर, टमाटर, तोरई, जिमीकंद, मूली खाये।

बवासीर में परहेज क्या करे


बवासीर का उपचार में जितना जरूरी ये जानना है की क्या खाये उससे जादा जरुरी इस बात की जानकारी होना है कि क्या नहीं खाये।तेज मिर्च मसालेदार चटपटे खाने से परहेज करें।
मांस मछली, उड़द की दाल, बासी खाना, खटाई न खाएं।
डिब्बा बंद भोजन, आलू, बैंगन।
शराब, तम्बाकू।
जादा चाय और कॉफ़ी के सेवन से भी बचे।

बवासीर से बचने के उपाय

दोस्तों बहुत से लोग इस बीमारी से प्रभावित है पर हम कुछ बातों का ध्यान रख कर इससे बच सकते है।खाने पीने की बुरी आदतों से परहेज करे जैसे धूम्रपान और शराब।
खाने में मसालेदार और तेज मिर्च वाली चीजें न खाये।
पेट से जुड़ी बीमारियों से बचे।
कब्ज़ की समस्या बवासीर का प्रमुख कारण है इसलिए शरीर में कब्ज़ न होने दे।
गर्मियों के मौसम में दोपहर को पानी की टंकी का पानी गर्म हो जाता है, उसे पानी से गुदा को धोने से बचें।
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18.4.23

अनिद्रा की समस्या से निजात पायें जड़ी बूटियों से :Anidra ki jadi butiyan




नींद न आना एक बीमारी है जिसे मेडिकल भाषा में अनिद्रा (Insomnia) कहा जाता है। नींद आपके सेहत के लिए बहुत जरूरी है, इसलिए जब आप डॉक्टर के पास जाते हैं इसके उपचार के लिए जाते हैं तो वह दवा देते हैं। नींद के दवा के कई साइड इफेक्ट्स होते हैं। इसलिए जहां तक हो सके नींद न आने की समस्या का आयुर्वेदिक उपाय ही करना चाहिए।

नींद न आने की गंभीर है लेकिन आज के समय में बहुत आम होते जा रही है। अनिद्रा अचानक से शुरू होने वाली समस्या नहीं होती है, यह आपके असमय सोने, खराब खान-पान, जरूरत से ज्यादा चिंता, गतिहीन दिनचर्या का परिणाम होती है।
नींद न आने या खराब नींद की घटनाओं के कारण कुछ सबसे गंभीर संभावित समस्याएं उच्च रक्तचाप (High BP), मधुमेह (Diabetes), दिल का दौरा (Heart Attack), हार्ट फेल या स्ट्रोक हो सकती है। इसके अलावा मोटापा, अवसाद, कमजोर इम्यूनिटी और कम सेक्स ड्राइव का जोखिम भी होता है। ऐसे में नींद न आने की समस्या का वक्त पर उपचार करना जरूरी होता है।
अनिद्रा को ठीक करने के लिए आयुर्वेद में आसन और असरदार जड़ी-बूटियों को बताया गया है जिसके सेवन से कुछ ही दिन में बेड पर जाते ही झट से नींद आ जाएगी। चलिए जानते हैं क्या है नींद की आयुर्वेदिक दवाएं।

अनिद्रा की आयुर्वेदिक दवा

नींद की जरूरत व्यक्ति को उम्र के अनुसार अलग-अलग होती है। ऐसे में सबसे ज्यादा नवजात को 1 साल तक 12-16 घंटे नींद की जरूरत होती है। इसके अलावा 1-2 साल के बच्चे को 11-14 घंटे नींद, 3-5 साल के बच्चे को 10-13 घंटे नींद, 6-12 साले के बच्चे को 9-12 घंटे नींद, 13-18 साल के बच्चे को 8-10 घंटे नींद, और 18 से ज्यादा उम्र के वयस्क को 7-8 घंटे की नींद की आवश्यकता होती है।

अनिद्रा में फायदेमंद है शंखपुष्पी

शंखपुष्पी अपने वात संतुलन और मेध्य गुणों के कारण मन को शांत करने का काम करता है। साथ ही इसमें अनिद्रा को ठीक करने की भी क्षमता होती है।

​नींद न आने पर करें ब्राह्मी का सेवन

ब्राह्मी को बकोपा के नाम से भी जाना जाता है। यह रात की अच्छी नींद लाने के लिए बेहतरीन जड़ी बूटी है। यह न केवल आरामदायक नींद को बढ़ावा देता है बल्कि दिमाग को शांत करने में मदद करता है और आपकी एकाग्रता, सतर्कता को बेहतर बनाने का भी काम करता है। आयुर्वेद में ब्राह्मी को ब्रेन टॉनिक माना गया है।
​अनिद्रा की आयुर्वेदिक दवाई है जटामांसी
कई अध्ययनों से पता चला है कि जटामांसी अनिद्रा के इलाज में कारगर है। यह जड़ी बूटी मन और शरीर को शांत करने का काम करती है। जिससे आपकी नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है। जटामांसी का उपयोग अवसाद के लक्षणों को कम करने के लिए भी किया जाता है।

आपको अच्छी नींद लाने में मददगार यहां कुछ प्राकृतिक सुझाव दिए गए हैं।

▪रात को सोने से पहले गर्म दूध पीना नींद आने का आसान उपाय है। बादाम का दूध कैल्शियम का एक उत्कृष्ट स्रोत है, जिससे मस्तिष्क को मेलाटोनिन (वह हार्मोन जो निद्रावस्था /जागृतवस्था चक्र को नियंत्रित करने में मदद करता है) के निर्माण में मदद मिलती है।
▪कोल्ड प्रेस्सेड कार्बनिक तिल के तेल को अपने पैरों के तलवों पर लगा कर रगड़े , इससे पहले कि आप आराम से सुखपूर्वक चादर ओड़ कर आराम करने जाएं (सूती मोज़े पैरों पर चढ़ा लें, ताकि आपकी चादर पर तेल न लगे)।
▪3 ग्राम ताजा पोदीने के पत्ते या 1.5 ग्राम पोदीने के सूखे पाउडर को 1 कप पानी में 15-20 मिनट के लिए उबालें।
रात को सोते समय 1 चम्मच शहद के साथ गुनगुना लें।
▪एक कटे हुए केले पर 1 चम्मच जीरा छिड़कें। रात को नियमित रूप से खाएं।
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12.4.23

प्रोस्टेट बढ़ने से पेशाब में रूकावट की भरोसेमंद हर्बल औषधि :Enlarged prostate medicine,

  


 प्रोस्टेट पुरुषों की एक महत्वपूर्ण ग्रंथि होती है, जो वीर्य बनाती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ कई बार व्यक्ति की प्रोस्टेट ग्रंथियां बड़ी हो जाती हैं और परेशानी का कारण बनने लगती हैं। रात में 1-2 बार तेज पेशाब महसूस होना प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने का शुरुआती लक्षण है। इसके अलावा पेशाब करते समय परेशानी, बालों का सफेद होना, अंडकोष का बड़ा होना आदि भी प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने के संकेत हैं।
 
कुछ लोग प्रोस्टेट बढ़ने को कैंसर मान लेते हैं, मगर आपको बता दें कि ये प्रोस्टेट कैंसर नहीं है। 45-50 की उम्र के बाद इसका खतरा बढ़ जाता है, मगर ये किसी भी उम्र में हो सकता है।

सर्दियों में समस्‍या का बढ़ना -

सर्दियों में कम पानी पीने के कारण प्रोस्‍टेट ग्रंथि की समस्‍या बढ़ जाती है। सर्दियों में पानी कम पीने के कारण यूरीन की थैली में एकत्र यूरीन की मात्रा बढ़ जाती है। इसके कारण यूरीन की नली में संक्रमण या यूरीन रुकने की समस्‍या हो जाती है।

बढ़ती उम्र, आनुवांशिक और हार्मोनल प्रभाव जैसे कई कारण से प्रोस्‍टेट ग्रंथि बढ़ने लगती हैं। इसके साथ ही औद्योगिक कारखानों में काम करने वाले लोग भी इस समस्‍या से ग्रस्‍त हो सकते हैं। इस रोग के होने की आशकाएं ऐसे लोगों में विभिन्न रसायनों और विषैले तत्वों के सपर्क में आने के कारण बढ़ जाती हैं।

प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने पर बार-बार पेशाब लगना, रुक-रुक कर पेशाब आना, पेशाब लगना मगर बहुत कम मात्रा में पेशाब आना, कुछ देर से पेशाब निकलना तथा पेशाब की धार पतली होना शमिल हैं। साथ ही धार का बीच-बीच में टूटना, यूरीन का रुक जाना और यूरीन करने में दर्द का अनुभव होना इसके लक्षण होते हैं। शुरुआत में व्यक्ति को रात में 1-2 बार अक्सर पेशाब लगने का अनुभव होता है, जिससे उसकी नींद खराब होती है।

किडनी पर असर- 

प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने पर अगर यूरीन मूत्राशय के अंदर देर तक रुका रहता है तो कुछ समय के बाद किडनी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है। इसके कारण किडनी की यूरीन बनाने की क्षमता कम होने लगती है और किडनी यूरिया को पूरी तरह शरीर के बाहर निकाल नहीं पाती। इन सब के कारण ब्‍लड में यूरिया बढ़ने लगता है, जो शरीर के लिए नुकसानदेह होता है।

प्रोस्‍टेट ग्रंथि बढ़ने का इलाज -

प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने की समस्या का समाधान दो तरीकों से संभव होता है। पहला, टी.यू.आर.पी. सर्जरी और दूसरा, प्रोस्टेटिक आर्टरी इंबोलाइजेशन सर्जरी द्वारा। इस सर्जरी के बाद सभी दवाओं को बंद कर सिर्फ कुछ खास दवाएं ही दी जाती हैं।

दवाओं से इलाज- 

प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने पर मरीज को चिकित्सकीय उपचार की आवश्यकता होती है। यूरीन की थैली के लगातार भरे रहने से किडनी पर दबाव बढ़ जाता है, जिससे किडनी के खराब होने का खतरा पैदा हो जाता है। रोग की प्रारंभिक अवस्था में दवाओं द्वारा ग्रंथि को बढ़ने से रोकने का प्रयास किया जाता है। शल्यक्रिया कुछ लोगों को दवाइयों से कोई लाभ नहीं होता है इसलिए शल्‍यक्रिया के द्वारा प्रोस्टेट ग्रंथि को निकाला जाता है। आधुनिक तकनीक लेजर प्रोस्टेक्टॉमी से प्रोस्टेट ग्रंथि की चिकित्‍सा बहुत ही कम चीर-फाड़ व रक्त-स्राव द्वारा की जाती हैं।

लेजर प्रोस्टेक्टॉमी -

लेजर प्रोस्टेक्टॉमी में लेजर किरणों के द्वारा प्रोस्टेट ग्रंथि के उस हिस्से को काटकर अलग कर दिया जाता है जिससे यूरीन नली का मार्ग अवरूद्ध होता है। इस पद्वति से फाइबर ऑप्टिक टेलीस्कोप दूरबीन को रोगी के मूत्रद्वार से मूत्राशय की ओर डाला जाता है। यहां प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़े हुए हिस्से को काटकर निकाल दिया जाता है।

Enlarged prostate herbal medicine  

कच्‍चा लहसुन -

कच्‍चे लहसुन का सेवन करने से न सिर्फ प्रोस्टेट स्वास्थ्य बेहतर बनाता है, बल्कि यह पेट और हृदय के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है। लहसुन 20 प्रतिशत तक प्रोस्टेट कैंसर के विकास की संभावनाओं को कम कर सकता है। रोजाना लहसुन को कच्‍चा ही खाएं इससे आपकी प्रोस्टेट ग्रंथि स्वस्थ रहेगी।

भरपूर मात्रा में टमाटर खाएं-

शोधों के अनुसार फल और सब्जी भरपूर मात्रा में खाने वालों में भी कैंसर का जोखिम, सब्जी और फल आदि न खाने वालों की तुलना में 24 प्रतिशत तक कम पाया जाता है। पुरुषों पर हुए एक शोध में पाया गया कि नियमित रूप से टमाटर खाने वाले पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर होने का जोखिम 18 प्रतिशत तक कम हो जाता है। दरअसल टमाटर के अंदर कैंसर प्रतिरोधी गुण वाला लाइकोपेन होता है जो कि एक एंटीऑक्सीडेंट है और डीएनए और कोशिका को क्षति पहुंचाने से रोक सकता है।

खूब पानी पियें -

प्रोस्टेट ग्रंथि को स्वस्थ रखने के लिए आपको खूब सारा पानी पीना चाहिये। इससे न सिर्फ प्रोस्टेट स्वास्थ्य को बेहतर होता है बल्कि त्वचा भी स्वस्थ होती है और किडनी आदि से संबंधित समस्याएं भी नहीं होतीं। जब आप पर्याप्त पानी नहीं पीते हैं तो मूत्र की मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं, जिससे प्रोस्टेट ग्रंथि को नुकसान पहुंच सकता है।

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सीताफल के बीज -

सीताफल के बीज इस प्रोस्टेट संबंधी बीमारी में बेहद लाभदायक होते हैं। सीताफल के कच्चे बीज को अगर हर दिन भोजन में उपयोग किया जाए, तो यह काफी हद तक यह प्रोस्टेट की समस्या से बचाव करने में मददगार होता है। इन बीजों में ऐसे 'प्लांट केमिकल' होते हैं, जो शरीर में जाकर टेस्टोस्टेरोन को डिहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन में बदलने से रोकते हैं, जिससे प्रोस्टेट कोशिकाएं नहीं बन पातीं।

टमाटर और तरबूज : -

प्रोस्टेट की समस्या वाले व्यक्ति को अपने भोजन में टमाटर और तरबूज की जरूर शामिल करना चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार, नियंत्रित मात्रा में नियमित रूप से टमाटर, तरबूज का सेवन प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को बहुत कम कर देता है। ऐसा टमाटर, तरबूज में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट लाइकोपेन की वजह से होता है, जो कैंसर के खिलाफ काम करने के लिए जाना जाता है।

विटामिन डी वाले आहार -

विटामिन डी की कमी दूर करने और अपने प्रोस्‍टेट को बचाने के लिए ऐसे आहार का सेवन कीजिए जिसमें विटामिन डी भरपूर मात्रा में मौजूद हो। इसके लिए सालमन और टूना मछली खायें, मशरूम में भी विटामिन डी होता है। दूध, फलों, सेरेल्‍स में विटामिन डी पाया जाता है। इसके अलावा सूर्य की किरणों में भी पाया जाता है। अगर विटामिन डी की कमी पूरी न हो पाये तो विटामिन डी के सप्‍लीमेंट का सेवन करना चाहिए, यह पूरी तरह से सुरक्षित है। लेकिन सप्‍लीमेंट लेने से पहले अपने चिकित्‍सक से सलाह जरूर लीजिए।

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कद्दू के बीज : 

जर्मनी में प्रोस्टेट के बढ़ने और पेशाब में दिक्कत की समस्या का इलाज कद्दू के बीज से किया जाता है। कद्दू के बीज में डाइयूरिटिक (मूत्रवर्धक और मूत्र के बहाव को तेज करने की प्रवृति) गुण होता है। साथ ही इसमें भरपूर जिंक होता है, जो शरीर के रोग प्रतिरोधी तंत्र की मरम्मत करता है और उसे मजबूत बनाता है। इन बीजों को इनका खोल हटाकर सादा खाना ही सबसे अच्छा है। कद्दू के बीजों की चाय भी बनाई जा सकती है। इसके लिए मुट्ठी भर ताजा बीजों को कूटकर एक छोटे-से जार में डाल देते हैं। फिर जार को उबले हुए पानी से भर देते हैं और इस मिश्रण को ठंडा होने देते हैं। उसके बाद मिश्रण को छानकर पी लेते हैं। रोजाना एक बार ऐसी चाय पीने से काफी लाभ होता है। कद्दू के बीज में बीटा सिटीस्टीरॉल नाम का रसायन भी होता है।

प्रोस्टेट में परहेज : 

  क्या नहीं खाना चाहिए फैट और चिकनाई वाला भोजन कम-से-कम करें। रेड मीट का सेवन से भी जरुर परहेज करें | डिब्बा बंद टमाटर, सॉस, या अन्य डिब्बा बंद खाद्य पदार्थो से दूर रहें | जंक फ़ूड, चिप्स, अधिक चीनी, मैदा आदि का परहेज करें | ज्यादा शराब पीना भी नुकसानदायक होगा। कई अध्ययनों में पता चला है कि बियर शरीर में पिट्यूटरी ग्लैंड से निकलने वाले प्रोलेक्टिन हार्मोन का स्तर बढ़ा देती है, जिसका परिणाम अंततः प्रोस्टेट के बढ़ने के रूप में सामने आता है। अधिक कैल्शियम वाले खाने से परहेज रखें | कम मात्रा में दही ले सकते हैं | प्रोस्टेट ग्लैंड की समस्या में कैफीन (चाय, कॉफी, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक आदि) का सेवन भी नुकसान करेगा। बहुत ज्यादा तीखे, मसालेदार भोजन से भी बचना चाहिए ।


विशिष्ट परामर्श-




प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने मे हर्बल औषधि सर्वाधिक कारगर साबित हुई हैं| यहाँ तक कि लंबे समय से केथेटर नली लगी हुई मरीज को भी केथेटर मुक्त होकर स्वाभाविक तौर पर खुलकर पेशाब आने लगता है| प्रोस्टेट ग्रंथि के अन्य विकारों (मूत्र जलन , बूंद बूंद पेशाब टपकना, रात को बार -बार पेशाब आना,पेशाब दो फाड़) मे रामबाण औषधि है| केंसर की नौबत नहीं आती| आपरेशन से बचाने वाली औषधि हेतु वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं|
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4.4.23

पानी कितना कैसे पीयें?pani kitana kaise piyen?




शरीर से बैक्टीरिया और टॉक्सिन्स जैसी गंदगी निकालने के लिए पानी बहुत जरूरी है। यह सबसे हेल्दी ड्रिंक है, जो बॉडी में न्यूट्रिशन और ऑक्सीजन को फैलाने में मदद करती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक घंटे में कितना पानी पीना (water intake in an hour) चाहिए? क्योंकि, जरूरत से ज्यादा या कम पानी पीने से आपको कई समस्याएं हो सकती हैं।

सेहतमंद और तंदरुस्त रहने के लिए रोजाना पर्याप्त पानी पीना (water intake every hour) चाहिए। पानी शरीर को हाइड्रेट रखता है और गंदगी को निकालने में मदद करता है। लेकिन, शरीर को साफ करने के लिए कितना पानी पीना चाहिए? अधिकतर लोगों के पास इस सवाल का जवाब नहीं होगा। हम काफी खोजबीन के बाद आपके लिए यह हेल्थ टिप लेकर आए हैं।

पर्याप्त पानी पीने के फायदे


हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मुताबिक, पानी शरीर में कई काम करता है। जिन्हें पानी पीने के फायदे (Drinking water benefits) भी कह सकते हैं। जैसे-सेल्स तक पोषण और ऑक्सीजन पहुंचाना
ब्लैडर और शरीर से गंदगी (बैक्टीरिया व टॉक्सिन्स) निकालना
डायजेशन सही करना

कब्ज से बचाना
बीपी लेवल सही रखना
जोड़ों को सेहतमंद रखना
शारीरिक अंगों और टिश्यू को बचाना
शारीरिक तापमान को सामान्य बनाए रखना
शरीर में इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस रखना, आदि

कम या ज्यादा पानी पीने के नुकसान

कम पानी पीने से शरीर में डिहाइड्रेशन (dehydration symptoms) हो जाती है। जिसके कारण सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, कमजोरी, मुंह सूखना, सूखी खांसी, लो ब्लड प्रेशर, पैरों में सूजन, कब्ज, गहरे रंग का पेशाब आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

वहीं, अगर आप जरूरत से ज्यादा पानी (drinking too much water) पी रहे हैं, तो यह ओवरहाइड्रेशन की स्थिति पैदा कर सकती है। जिसके कारण बार-बार पेशाब जाना, शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी, उल्टी-जी मिचलाना, हाथ-पैर का रंग बदलना, मसल्स क्रैम्प होना, सिरदर्द और थकान शामिल है।

1 घंटे में कितना पानी पीना चाहिए?


हार्वर्ड मेडिकल स्कूल कहता है कि आपके लिए पानी की जरूरी मात्रा आपकी उम्र, फिजीकल एक्टिविटी, लिंग, तापमान और बॉडी वेट पर निर्भर करती है। लेकिन फिर भी एक्सपर्ट्स, हर घंटे 2 से 3 कप पानी पीने की सलाह देते हैं। अगर आप मौसम गर्म है या आप एक्सरसाइज कर रहे हैं, तो यह मात्रा बढ़ सकती है। वहीं, एक हेल्दी आदमी को 1 दिन में 2-3 लीटर पानी (how much water should drink everyday) पीना चाहिए। इसलिए अपने लिए पानी की सही मात्रा पता करने के लिए डॉक्टर से बात करें।

पेशाब के रंग से करें टेस्ट


पेशाब का रंग सेहत के बारे में कई राज खोलता है। जैसे- पेशाब का रंग (urine colour tells about health) देखकर आप पता लगा सकता हैं कि आप कम पानी पी रहे हैं या ज्यादा। अगर आपके पेशाब का रंग गहरा पीला है, तो यह डिहाइड्रेशन का लक्षण हो सकता है। वहीं, बार-बार सफेद रंग का पेशाब आना ओवर-हाइड्रेशन का लक्षण हो सकता है।

इन कामों को ना करें

शरीर में पानी का लेवल बैलेंस करने के लिए आपको कुछ काम नहीं करने चाहिए। क्योंकि यह डिहाइड्रेशन का कारण (dehydration reasons in hindi) बनते हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल कहता है कि शराब और कैफीन का सेवन करने से शरीर में पानी की कमी होती है। इसके अलावा, प्यास बुझाने के लिए शुगरी या कार्बोनेटेड ड्रिंक्स भी नहीं पीनी चाहिए। क्योंकि, यह ना सिर्फ ब्लड शुगर को हाई करती हैं, बल्कि पानी की कमी भी पैदा करती हैं।
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