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18.9.19

नागफनी के गुण व औषधीय उपयोग





  नागफनी (nagfani tree) स्वाद में कड़वी, पचने पर मधुर और प्रकृति में बहुत गर्म होती है। नागफनी कफ को निकालती है, हृदय के लिए लाभकारी होती है, खून को साफ करती है, दर्द तथा जलन में आराम देती है और खून का बहना रोकती है। नागफनी खाँसी, पेट के रोगों और जोड़ों की सूजन तथा दर्द में लाभ पहुँचाती है। इसके फूल (nagfani flower) कसैले होते हैं। इसका तना तासीर में ठंडा और स्वाद में कसैला होता है। तना हल्का विरेचक (Purgative), भूख बढ़ाने वाला और बुखार तथा विष को नष्ट करने वाला होता है।

   नागफनी कैक्‍टस समुदाय की एक प्रजाति या प्रकार है। जिसका तना पत्ते के सामान और गूदेदार होता है। नागफनी एक ऐसा पौधा है जिसकी पत्तियां काँटों का रूप ले लेती हैं सामान्‍य रूप से नागफनी को एक अनुपयोगी कटीली झाड़ी के रूप में जाना जाता है। क्योंकि लोग नागफनी के फायदे नहीं जानते है। कैक्‍टस या नागफनी के लाभ मानव शरीर को कई स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से बचा सकते हैं। नागफनी का फायदा विशेष रूप से सूजन, अनिद्रा, वजन कम करना जैसी समस्‍याओं में होता है। इसके अलावा नागफनी के गुण हड्डियों को मजबूत करने और हृदय संबंधी कुछ समस्याओं का इलाज करने में भी प्रभावी होते हैं। नागफनी का यह पौधा सबसे पहले मैक्सिको में उगाया गया था है लेकिन यह अब भारत में भी बहुत आसानी से मिल जाता है।
नागफनी स्वाद में कड़वी और प्रकृति में बहुत गर्म होती है। आप नागफनी का उपयोग आहार और अन्‍य रूप जैसे तेल और जूस के रूप में अपने दैनिक जीवन में कर सकते हैं।
  नागफनी एक कांटेदार झाड़ीनुमा पौधा है जिसे नेपल्‍स (Nopales) के नाम से भी जाना जाता है जो कैक्‍टस की एक प्रजाति है। यह मूल रूप से संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका और मेक्सिको में पाया जाता है। जब यह पौधा युवावस्‍था में होता है तब यह खाने योग्‍य होता है। लेकिन नागफनी की युवावस्‍था गुजरने के बाद इसे खाना मुश्किल होता है। इसके अलावा अपने स्‍वास्‍थ्‍य लाभ और खाने योग्‍य होने के कारण नागफनी का उपयोग कई प्रकार की जेली और कैंडीज बनाने में भी किया जाता है। नागफनी के सभी स्‍वास्‍थ्‍य लाभ इसमें मौजूद पोषक तत्‍वों की मौजूदगी के कारण होते हैं।
  कुछ विशेष स्‍वास्‍थ्‍य लाभों को प्राप्‍त करने के लिए नागफनी का व्‍यापक उपयोग किया जाता है। नागफनी से प्राप्‍त स्‍वास्‍थ्‍य लाभ इसमें मौजूद पोषक तत्‍वों की मौजूदगी के कारण होते हैं। नागफनी को विटामिन और अन्‍य खनिज पदार्थों का अच्‍छा स्रोत माना जाता है। नागफनी में कुछ फाइटोकेमिकल्‍स (phytochemicals) और पॉलीसेकेराइड (polysaccharides) की उच्‍च मात्रा होती है। इसके अलावा नागफनी में पोटेशियम, मैंगनीज, मैग्‍नीशियम और कैल्शियम भी अच्‍छी मात्रा में होता है। यदि विटामिन की बात की जाये तो यह विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन K, विटामिन बी6 आदि से भरपूर है। नागफनी में खनिज पदार्थ के रूप में तांबा, आयरन और फाइबर जैसे घटक भी मौजूद रहते हैं। जिनके कारण नागफनी का सेवन हमें स्‍वास्‍थ्‍य लाभ दिलाता है। 

नागफनी के सेवन से दमा-खाँसी का इलाज

खाँसी और दम फूलने यानी दमा जैसे रोगों में नागफनी का प्रयोग काफी लाभदायक है। 10 मिली नागफनी के फल के रस में दोगुना मधु तथा 350 मिग्रा टंकण मिला कर सेवन करें। इससे खाँसी और दम फूलने की परेशानी में लाभ होता है।

हृदय स्‍वस्‍थ रखे

हृदय संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए नागफनी का इस्‍तेमाल किया जा सकता है। नागफनी में मौजूद फाइबर की उचित मात्रा शरीर में कोलेस्‍ट्रॉल के स्‍तर को नियंत्रित करता है। जिसके परिणाम स्‍वरूप शरीर में खराब कोलेस्‍ट्रॉल के स्‍तर को कम करने और अच्‍छे कोलेस्‍ट्रॉल के स्‍तर को बढ़ाने में मदद मिलती है। शरीर में स्‍वस्‍थ कोलेस्‍ट्रॉल स्‍तर के बने रहने से रक्‍तचाप को नियंत्रित रखा जा सकता है। नागफनी का सेवन करना उच्‍च रक्‍तचाप को भी नियंत्रित करने में सहायक होता है। जिससे हृदय आघात या हार्ट अटैक जैसी संभावनाओं से बचा जा सकता है।
इसके अलावा नागफनी में फ्लेवोनोइड्स की मौजूदगी प्‍लेटलेट्स को सामान्‍य करने में मदद करती है जिससे हृदय स्‍वास्‍थ्‍य को बेहतर बनाया जा सकता है। यदि आप भी भविष्‍य में हृदय संबंधी समस्‍याओं से बचना चाहते हैं तो अपने आहार में नागफनी का उपयोग कर सकते हैं।

सूजन दूर करे

अध्‍ययनों के अनुसार नागफनी का उपयोग करना आपको सूजन से राहत दिला सकता है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि नागफनी में एंटी-इंफ्लामेटी गुण होते हैं। जिसके कारण यह शरीर के किसी भी हिस्‍से में आने वाली सूजन के प्रभाव को कम करने में सहायक होता है। इसके अलावा शोध से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार नागफनी से निकाले गए तेल में फेनोलिक और बीटैलेंस (phenolic and betalains) की मौजूदगी होती है। जिसके कारण इस तेल को प्रभावित त्‍वचा में लगाने से सूजन कम करने में मदद मिलती है। नागफनी तेल के फायदे चोट और कीड़े काटने जैसी स्थिति में आने वाली सूजन को दूर करने में प्रभावी होता है। नागफनी तेल का उपयोग डर्मेटाइटिस और सोराइसिस जैसी त्‍वचा स्थितियों को भी ठीक कर सकता है।

लिवर के लिए

लीवर हमारे शरीर के जरूरी अंगों में से एक है। यदि हम स्‍वस्‍थ रहना चाहते हैं तो लीवर को भी स्‍वस्‍थ रखना अनिवार्य है। लिवर को स्‍वस्‍थ रखने और अन्‍य प्रकार के गंभीर संक्रमण से बचाने के लिए आपको विशेष खाद्य पदार्थ या दवाओं की आवश्‍यकता होती है। लेकिन शायद आपकी तलाश नागफनी पर आकर खत्‍म हो जाये। क्‍योंकि नागफनी के औषधीय गुण लीवर को स्‍वस्‍थ रखने और इसे संक्रमण क्षति से बचाने में सहायक होते हैं। हमारे द्वारा खाये जाने वाले उच्‍च वसा युक्‍त और अधिक मसालेदार भोजन यकृत पर तनाव बढ़ा सकते हैं जिससे आक्‍सीडेटिव तनाव आ सकता है। इस प्रकार की समस्‍या से बचने के लिए आप नागफनी के जूस का सेवन कर सकते हैं। इसमें मौजूद एंटी-इंफ्लामेटरी और एंटीऑक्‍सीडेंट लीवर को स्‍वस्‍थ रखने में सहायक होते हैं।

वजन कम करे

दुनिया में अधिकांश लोग अपने वजन को घटाने के लिए कई प्रकार के प्रयास करते हैं। जिनमें कई प्रकार के घरेलू उपाय, दवाएं और व्‍यायाम आदि शामिल हैं। लेकिन उन्‍हें शायद नहीं पता कि जिस नागफनी को वे अनुपयोगी खरपतवार समझते हैं वह उनके वजन को घटाने में मदद कर सकती है। नागफनी को फाइबर का बैंक माना जाता है। इसलिए नागफनी का सेवन करने से आपको लंबे समय तक भोजन करने की आवश्‍यकता नहीं होती है साथ ही यह आपके शरीर में मौजूद अतिरिक्त वसा को भी कम करने में सहायक होता है। यदि आप भी अपना वजन नियंत्रित करना चाहते हैं तो नागफनी और इससे बने अन्‍य उत्‍पादों का उपभोग कर सकते हैं।

हड्डियों के लिए

हमारे दांतों और हड्डियों की सुरक्षा के लिए कैल्शियम का पर्याप्त स्तर बहुत आवश्यक है। इसलिए हमारे आहार में कैल्शियम की एक निश्चित मात्रा शामिल करने की आवश्यकता है। अध्ययन से पता चलता है कि एक कप नागफनी में हमारी हड्डियों और दांतों को मजबूत करने और बढ़ाने के लिए दैनिक कैल्शियम की आवश्यक मात्रा होती है।

मधुमेह के लिए

मधमेह रोगियों के लिए रक्‍त शर्करा के स्‍तर को नियंत्रित रखना चुनौतीपूर्ण कार्य है। लेकिन आप अपने रक्‍त में शर्करा के उचित स्‍तर को बनाए रखने के लिए नागफनी का प्रयोग कर सकते हैं। अध्‍ययनों से पता चलता है कि नागफनी में मौजूद पोषक तत्व और अन्‍य घटक रक्‍त शर्करा के स्‍तर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

कैंसर से बचाये

नेपल्‍स (Nopales) या नागफनी कैंसर जैसी गंभीर स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से बचने में मदद कर सकती है। नागफनी में फ्लेवोनाइड (flavonoid) यौगिकों की अच्‍छी मात्रा होती है जिसके कारण यह प्रोस्‍टेट कैंसर, स्‍तन कैंसर, फेफड़ों के कैंसर, अग्नाशय के कैंसर और अन्‍य प्रकार के कैंसरों के जोखिम को कम करने में मदद करती है। नागफनी पर किये गए कुछ अध्‍ययनों से पता चलता है कि नागफनी मे कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकने और इन्‍हें नष्‍ट करने की क्षमता होती है। इसमें मौजूद एंटीऑक्‍सीडेंट शरीर को फ्री रेडिकल्‍स के प्रभाव से बचाने और इन्‍हें हटाने में सहायक होते हैं। ये फ्री रेडिकल्‍स ही कैंसर का मुख्‍य कारण होते हैं। यदि समय रहते नियमित रूप से नागफनी का सेवन किया जाये तो यह कैंसर रोगी और सामान्‍य लोगों को कैंसर से बचाने में मदद करता है।

बालों के लिए उपयोगी

नागफनी में विटामिन, खनिज और विभिन्‍न प्रकार के फैटी एसिड की अच्‍छी मात्रा होती है। इन पोषक तत्‍वों की मौजूदगी आपके बालों के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। आप अपने बालों को स्‍वस्‍थ बनाने के लिए नागफनी का उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए आप नागफनी के तेल को बालों की जड़ में लगाएं और बालों की मालिश करें। इसमें मौजूद विटामिन ई बालों को कंडीशनिंग करने और उन्‍हें मजबूत बनाने में सहायक होता है।

मासिक धर्म के लिए

महिलाओं को मासिक धर्म चक्र के दौरान कई प्रकार की समस्‍याओं का सामना करना पड़ता है। महिलाओं को प्रीमेन्स्ट्रुअल सिंड्रोम जैसे सिरदर्द, स्‍तनों में सूजन, ऐंठन और अन्‍य कई बीमारियां हो सकती हैं। इस प्रकार की समस्‍याओं का प्रमुख कारण महिलाओं में प्रोस्‍टाग्‍लैंडिंस के स्‍तर में वृद्धि को माना जाता है। लेकिन महिलाएं इस प्रकार की समस्‍याओं से बचने के लिए नागफनी का इस्‍तेमाल कर सकती हैं। क्‍योंकि नागफनी में प्रोस्‍टाग्‍लैंडिंस के संश्‍लेषण या विकास को रोकने की क्षमता होती है।

घाव ठीक करे

कैक्‍टस या नागफनी में फेनोलिक यौगिकों की अच्‍छी मात्रा होती है। जिसके कारण यह खुले हुए घावों और चोट के घाव आदि का तेजी से उपचार करता है। आप घाव उपचार के लिए नागफनी से निकाले गए तेल का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा नागफनी के तेल का उपयोग अन्‍य त्‍वचा संक्रमणों जैसे खुजली, मुंहासे आदि के इलाज में भी किया जा सकता है। यदि आप भी त्‍वचा संबंधी ऐसी ही किसी समस्‍या से परेशान हैं तो नागफनी के तेल के फायदे प्राप्‍त कर सकते हैं।

त्‍वचा स्‍वस्‍थ रखे

त्‍वचा को स्‍वस्‍थ रखने और त्‍वचा संक्रमण का इलाज करने में नागफनी का तेल फायदेमंद होता है। इसके अलावा यह त्‍वचा की चमक को बढ़ाने में भी सहायक होता है। आप अपनी त्‍वचा में नागफनी के तेल का इस्‍तेमाल कर त्‍वचा को हानिकारक यूवी किरणों से बचा सकते हैं।
स्‍वास्‍थ्‍य लाभ प्राप्‍त करने और आहार के रूप में उपभोग करने के लिए नागफनी पूरी तरह सुरक्षित है। यदि इसका बहुत ही कम मात्रा में सेवन किया जाये। आप अपने आहार में नागफनी को कई प्रकार से शामिल कर सकते हैं। लेकिन सामान्‍य रूप से अधिकांश लोग अपने भोजन के साथ नागफनी को सलाद के रूप में अधिक पसंद करते हैं।

उपयोग के तरीके

नागफनी की सलाद बनाने के लिए आप सावधानी से युवा नागफनी के पत्‍ते को तोड़ें और इसमें मौजूद कांटों को साफ कर लें। इसके बाद इसे अच्‍छी तरह से धो लें। फिर नागफनी की हरे रंग की ऊपरी परत को निकाल कर अलग कर दें। क्‍योंकि इस ऊपरी प‍रत का स्‍वाद कड़वा होता है। इसके बाद आप नागफनी के आंतरिक अवशेष जो सफेद रंग का होता है उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। अब आप इनका सेवन अपनी इच्‍छानुसार कर सकते हैं।

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26.8.19

स्‍टीविया जड़ी बूटी में हैं कमाल के औषधीय गुण




स्टीविया जिसे मधुरगुणा के नाम से भी जाना जाता है। इसमें डायबिटीज को दूर करने के गुण होते है। स्टेविया नाम की जड़ी बूटी चीनी का स्थान ले सकती है और खास बात ये कि इसे घर की बगिया में भी उगाया जा सकता है। यह शून्य कैलोरी स्वीटनर है और इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है। इसे हर जगह चीनी के बदले इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे तैयार उत्पाद न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि दिल के रोग और मोटापे से पीड़ित लोगों के लिए भी फायदेमंद हैं। स्टीविया न केवल शुगर बल्कि ब्लड प्रेशर, हाईपरटेंशन, दांतों, वजन कम करने, गैस, पेट की जलन, त्‍वचा रोग और सुंदरता बढ़ाने के लिए भी उपयोगी होती है। यही नहीं इसके पौधे में कई औषधीय व जीवाणुरोधी गुण भी होते हैं।

   स्टेविया’ यानीं मीठी तुलसी, स्‍टीविया की पत्तियों में चीनी से तीन सौ गुना अधिक मीठास होती है। क्‍या आप स्‍टीविया ओषधीय गुणों से परिचित हैं अगर नहीं तो हम आपको इसके बारे में बताते हैं। मानव स्‍वास्‍थ्‍य को बनाए रखने के लिए सदियों से स्‍टीविया (stevia) नामक जड़ी बूटी का उपयोग किया जा रहा है। स्‍टीविया के फायदे स्‍वास्थ्‍य संबंधी कुछ विशेष समस्‍याओं को दूर करने के लिए प्रभावी माने जाते हैं। स्‍टीविया एक आयुर्वेदिक हर्ब है जो कि औषधीय गुणों के कारण विभिन्‍न प्रकार की दवाओं में व्‍यापक रूप से इस्‍‍तेमाल की जाती है। स्‍टीविया के लाभ में डाय‍िबिटीज को नियंत्रित करना, मोटापा कम करना, एलर्जी समस्‍या को रोकना, कैंसर के लक्षणों को रोकना, हृदय और रक्‍तचाप को स्‍वस्‍थ रखना आदि शामिल हैं। स्‍टीविया जड़ी बूटी को खाद्य रूप से लिया जाता है।
स्‍टीविया एक प्राकृतिक मिठास के रूप में उपयोग किया जाने वाला पौधा है। स्‍टीविया का वानस्‍पतिक नाम स्‍टीविया रेबाउडियाना (Stevia Rebaudiana) है। हालांकि कई जगहों पर स्‍टीविया को बहुत से नामों से जाना जाता है जैसे कि मीठे खरपतवार (Sweet weed), मीठे पत्‍ते और शहद की पत्‍ती आदि। स्‍टाविया पौधे की लगभग 150-300 प्रजातियां होती हैं। यह एक बारहमासी झाड़ी है। प्राकृतिक रूप से मिठास प्राप्‍त करने का यह सबसे अच्‍छा तरीका है। अन्‍य कृत्रिम स्‍वीटनर की तुलना में स्‍टीविया में कैलोरी की मात्रा बहुत ही कम होती है। स्‍टीविया शक्‍कर की तुलना में 2 सौ गुना अधिक मीठा होता है। यह पौधा ऊषणकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
भारत में स्‍टीविया को मीठी तुलसी के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा भारत के अन्‍य राज्‍यों में भी इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे कि
असम में मऊ तुलसी, मराठी में मधु परणी, पंजाबी में गुर्मार, तमिल में सीनि तुलसी, तेलुगु में मधु पत्री आदि। इसे संस्‍कृत भाषा में मधु पत्र के नाम से भी जाना जाता है।
स्‍टीविया के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ इसमें मौजूद पोषक तत्‍वों के कारण होते हैं। हालांकि स्‍टीविया की मिठास सामान्‍य चीनी की अपेक्षा 300 गुना अधिक होती है। लेकिन इस मिठास का स्‍वास्‍थ्‍य में किसी प्रकार का साइड इफैक्‍ट नहीं होता है। इसके अलावा यह शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित (Absorbed) हो जाता है। यही कारण है कि स्‍टीविया का उपयोग मधुमेह रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी होता है।
अधिक वजन या मोटापा होने के बहुत से कारण होते हैं जैसे कि शारीरिक परिश्रम की कमी, अधिक मीठा और अधिक फैट वाले खाद्य पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करना आदि। एक अध्‍ययन के अनुसार शरीर की आवश्‍यकता से अधिक मात्रा में चीनी का सेवन करने से लगभग 16 प्रतिशत कैलोरी अधिक प्राप्‍त होती है। जिससे शरीर का वजन अधिक तेजी से बढ़ सकता है। हालांकि ऐसी स्थिति में स्‍टीविया का सेवन करना फायदेमंद होता है। क्‍योंकि स्‍टीविया में कैलोरी बहुत ही कम होती है साथ ही यह शरीर में शुगर लेवल को प्रभावित भी नहीं करता है। इसका मतलब यह है कि जो लोग अपना वजन कम करना चाहते हैं वे स्‍टीविया का नियमित सेवन कर सकते हैं।
मोटापा कम करें
आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार स्टीविया से शुगर के अलावा मोटापे से भी निजात पाई जा सकती है। मोटापे के शिकार व्यक्तियों के लिए भी यह पौधा किसी वरदान से कम नहीं है। शुगर ही मोटापे का कारण बनती दिखाई दे रही है, यदि शुगर न भी हो और इसका सेवन किया जाए तो न ही शुगर होने की नौबत बन पाएगी और न ही मोटापा होगा। आज कैलोरी की समस्या भी काफी बढ़ने लगी है ऐसे में भले ही स्टीविया चीनी से अधिक मीठा हो किंतु इसमें ग्लूकोस की मात्रा न होने के कारण इससे कैलोरी के अनियंत्रित होने की संभावना नहीं रहती।
मधुमेह के लिए
विभिन्‍न स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को दूर करने के अलावा मुख्‍य रूप से स्‍टीविया के लाभ डायबिटीज के लिए होते हैं। स्‍टीविया की उचित मात्रा का सेवन करने से खून में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। स्‍टीविया लीफ का सेवन करने से डायबिटिक रोगी के मीठा खाने की लालसा को कम किया जा सकता है। स्‍टीविया में स्‍टीविओसाइड (stevioside) होता है जो कि ग्‍लाइकोसाइड यौगिक है। जिसके कारण स्‍टीविया मधुमेह रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद होती है। मधुमेह रोगी इस औषधी का सेवन डॉक्टर की सलाह पर बिना किसी परेशानी के कर सकते हैं क्‍योंकि यह ब्‍लड शुगर के स्‍तर को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।
कैंसर को रोके
कैंसर एक गंभीर स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या है जिसका शायद अब तक इलाज संभव नहीं है। लेकिन स्‍टीविया के फायदे कैंसर के लक्षणों को कम करने में मदद करते हैं। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि स्‍टीविया में कई प्रकार के एंटीऑक्‍सीडेंट की अच्‍छी मात्रा होती है। जिसके कारण स्‍टीविया के गुण कैंसर को रोकने में प्रभावी होते हैं। स्टेविया में मौजूद क्वेरसेटिन, केम्पफेरोल और अन्य ग्लाइकोसाइड यौगिक शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले फ्री रेडिकल्‍स (Free radicals) को खत्म करने में मदद करते हैं। जिससे स्‍वस्‍थ कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं में बदलने से रोका जा सकता है। इसलिए कैंसर के लक्षणों को कम करने और उपचार को गति देने में स्‍टीविया (Stevia) के फायदे होते हैं।
रक्‍तचाप नियंत्रित करे
रक्‍तचाप संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए स्‍टीविया एक प्रभावी औषधी मानी जाती है। स्‍टेविओसाइड एक प्रकार का ग्‍लाइकोसाइड है लेकिन स्टीविया में अन्‍य ग्‍लाइकोसाइड भी होते हैं। जो वास्‍तव में रक्‍त वाहिकाओं को आराम दिलाने में भी सहायक होते हैं। इसके अलावा स्‍टीविया के पोषक तत्‍वों में पोटेशियम भी शामिल होता है। जिसके कारण रक्‍त वाहिकाओं की दीवारों को स्‍वस्‍थ रखने में मदद मिलती है। नियमित रूप से स्‍टीविया का सेवन करने से यह मूत्र वर्धक का काम करता है जिससे शरीर में सोडियम की अतिरिक्‍त मात्रा को विनियमित करने में मदद मिलती है। इन सभी का सीधा संबंध आपके हृदय स्‍वास्‍थ्‍य से होता है।
जिसके कारण स्‍टीविया का सेवन करने से हृदय में तनाव को कम किया जा सकता है जिससे रक्‍तचाप को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। यदि आप भी रक्‍तचाप संबंधी परेशानियों से बचना चाहते हैं स्‍टीविया के औषधीय गुणों का उपभोग कर सकते हैं।
ड्रैंडफ और मुंहासों को दूर करें
एंटी-बैक्‍टीरियल, एंटी-फंगल और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुणों से भरपूर होने के कारण, स्‍टीविया मुंहासों और रूसी की समस्‍या से छुटकारा पाने में मदद करता है। इसके अलावा यह ड्राई और डैमेज बालों को ठीक करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। बालों में ड्रैंडफ को दूर करने के लिए इसके स्‍टीविया के सत्‍त की कुछ बूंदों को शैम्‍पू में मिलाकर नियमित रूप से उपयोग करें। और मुंहासों की समस्‍या होने पर स्‍टीविया की पत्तियों को पेस्‍ट बनाकर इसे प्रभावित त्‍वचा पर लगाये या इसके सत्‍त को सीधा मुंहासों पर लगाकर, रातभर के लिए छोड़ दें। अच्‍छे परिणाम पाने के लिए इस उपाय को नियमित रूप से करें।
दांत स्‍वस्‍थ रखे
अधिक मीठे खाद्य पदार्थो का सेवन करना दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है। क्‍योंकि ज्यादा मीठे खाद्य पदार्थ खाने से दांतों में कैविटी (Cavity) और सड़न जैसी समस्‍याओं की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन स्‍टीविया पाउडर का उपयोग शुगर के प्रभाव से उल्‍टा होता है। यह शक्‍कर से भी अधिक मीठा होने के बाद भी दांतों को किसी प्रकार का साइड इफैक्‍ट नहीं पहुंचाता है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि स्‍टीविया में दांतों के सुरक्षा कवच को नुकसान पहुंचाने वाले गुण बहुत ही कम मात्रा में होते हैं। इसके अलावा चीनी में सुक्रोज होता है जो दांतों की समस्‍या का प्रमुख कारण होता है। जबकि स्‍टीविया में स्‍टेवियोसाइड होता है जो दांतों के लिए सुरक्षित है। आप भी अपने दांतों को स्‍वस्‍थ्‍य रखने के लिए स्‍टीविया और स्‍टीविया के पत्‍तों का उपयोग कर सकते हैं।
हड्डियों के लिए
इस मामले में कोई प्रमाणि सबूत नहीं हैं फिर भी कुछ अध्‍ययन बताते हैं स्‍टीविया के लाभ हड्डियों को मजबूत बनानेमें सहायक होते हैं। एक पशु अध्‍ययन के अनुसार मुर्गियों को स्‍टीविया आधारित आहार खिलाया गया। जिसके परिणाम स्‍वरूप यह पाया गया कि मुर्गियों के अंड़ों में कैल्शियम की मात्रा अन्‍य मुर्गियों से ज्‍यादा है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि नियमित रूप से स्‍टीविया की पत्तियों का सेवन करने से कैल्शियम की कमी को दूर किया जा सकता है। जिससे हड्डियों घनत्‍व औरऔर उत्‍पादन दोनों को बढ़ाने में मदद मिल सकती है। यदि आप भी अपनी हड्डियों को स्‍वस्‍थ बनाए रखना चाहते हैं तो दैनिक आहार में स्‍टीविया को शामिल कर सकते हैं।
पेट को स्‍वस्‍थ रखे
पेट और पाचन समस्‍याओं को दूर करने के लिए स्‍टीविया का इस्‍तेमाल बहुत ही फायदेमंद होता है। यदि पेट की खराबी, बदहजमी, अपच आदि समस्‍याओं से परेशान हैं तो स्‍टीविया के अर्क (Extract) का सेवन कर सकते हैं। इसके लिए आप पानी में स्‍टीविया की पत्तियों को उबालें और अर्क तैयार करें। इस अर्क का सेवन करने से आपको पेट संबंधी समस्‍याओं से छुटकारा मिल सकता है।
हार्टबर्न और अपच कम करने में मददगार
स्‍टीविया में विशिष्‍ट संयंत्र ग्‍लाइकोसाइड की उपस्थिति, पेट के अस्‍तर में होने वाली जलन को दूर करने में मदद करता है। इस तरह से अपच और हार्टबर्न के उपचार में मदद करता है। अपच की समस्‍या से बचने के लिए स्‍टीविया की एक प्‍याली गर्म चाय ही काफी है। जबकि हार्टबर्न से बचने के लिए आपको स्‍टीविया से बनी ठंडी चाय पीनी चाहिए।
लिवर को स्‍वस्‍थ रखे
स्‍टीविया का सेवन नियमित आहार के रूप में करना यकृत स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने में सहायक होता है। एक अध्‍ययन के अनुसार नियमित रूप से स्‍टीविया पाउडर का सेवन करने से यृकत कोशिकाओं (Lutein cells) की क्षति और सिरोसिस जैसी समस्‍याओं को रोका जा सकता है। इसके अलावा अधिक मात्रा में शराब का सेवन करने से यकृत को होने नुकसान को भी कम करने में स्‍टीविया का उपयोग लाभकारी होता है।
एलर्जी दूर करे
सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ लोगों के लिए पौष्टिक और लाभकारी होते हैं। लेकिन यही खाद्य पदार्थ कुछ लोगों एलर्जी का कारण भी हो सकती है। लेकिन औषधीय गुणों से भरपूर स्‍टीविया का इस्‍तेमाल करने से किसी प्रकार की एलर्जी नहीं होती है
स्‍टीविया का उपयोग कैसे करें
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि स्‍वास्‍थ्‍य लाभ होने के कारण स्‍टीविया का उपयोग दवा या जड़ी बूटी के रूप में किया जाता है। स्‍टीविया का उपयोग आपके पसंदीदा खाद्य पदार्थों ड्रिंक के रूप में चीनी के विकल्‍प में किया जा सकता है। स्‍टीविया पाउडर की 1 चुटकी मात्रा लगभग 1 चम्‍मच शक्कर के बराबर मीठा होता है। स्‍टीविया का उपयोग निम्‍न तरीके से किया जा सकता है।
दूध या दही (curd) आदि के साथ स्‍टीविया पाउडर का सेवन।
लगभग सभी मीठे खाद्य पदार्थों में आवश्‍यकता के अनुसार स्‍टीविया का उपयोग फायदेमंद होता है।
कॉफी या चाय के साथ स्‍टीविया पाउडर का उपयोग।
नींबू पानी बनाने के दौरान चीनी की जगह स्‍टीविया का रस या पाउडर।
अपने खाद्य आहार को स्‍वादिष्‍ट बनाने के लिए उपर से स्‍टीविया की पत्‍ती या पाउडर (Stevia powder) का उपयोग।
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15.8.19

दारुहरिद्रा है गुणों का खजाना-daru haridra benefits




  दारुहल्दी एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है | इसे दारुहरिद्रा भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है हल्दी के समान पिली लकड़ी | इसका वृक्ष अधिकतर भारत और नेपाल के हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते है | इसके वृक्ष की लम्बाई 6 से 18 फीट तक होती है | पेड़ का तना 8 से 9 इंच के व्यास का होता है | भारत में दारूहल्दी के वृक्ष अधिकतर समुद्रतल से 6 – 10 हजार फीट की ऊंचाई पर जैसे – हिमाचल प्रदेश, बिहार, निलगिरी की पहाड़ियां आदि जगह पाए जाते है |

दारुहरिद्रा (वानस्पतिक नाम:Berberis aristata) एक औषधीय जड़ी बूटी है। दारुहरिद्रा के फायदे जानकर आप हैरान हो जाएगें। इसे दारू हल्दी के नाम से भी जाना जाता हैं । यह मधुमेह की चिकित्सा में बहुत उपयोगी है। यह ऐसी जड़ी बूटी है जो कई असाध्‍य स्‍वास्‍थ्‍य सस्‍याओं को प्रभावी रूप से दूर कर सकती है। दारू हल्दी का पौधा भारत और नेपाल के पर्वतीय हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह श्रीलंका के कुछ स्थानों में भी पाया जाता है। दारुहरिद्रा के फायदे होने के साथ ही कुछ सामान्‍य नुकसान भी होते हैं। दारुहरिद्रा को इंडियन बारबेरी (Indian barberry) या ट्री हल्‍दी (tree turmeric) के नाम से भी जाना जाता है। यह बार्बरीदासी परिवार से संबंधित जड़ी बूटी है। इस जड़ी बूटी को प्राचीन समय से ही आयुर्वेदिक चिकित्‍सा प्रणाली में उपयोग किया जा रहा है।
दारुहरिद्रा के फायदे लीवर सिरोसिस, सूजन कम करने, पीलिया, दस्‍त का इलाज करने, मधुमेह को नियंत्रित करने, कैंसर को रोकने, बवासीर का इलाज करने, मासिक धर्म की समस्‍याओं को रोकने आदि में होते हैं। 
आयुर्वेदिक मतानुसार दारुहल्दी गुण में लघु , स्वाद में कटु कषाय, तिक्त तासीर में गर्म, अग्निवद्धक, पौष्टिक, रक्तशोधक, यकृत उत्तेजक, कफ नाशक, व्रण शोधक, पीड़ा, शोथ नाशक होती है। यह ज्वर, श्वेत व रक्त प्रदर, नेत्र रोग, त्वचा विकार, गर्भाशय के रोग, पीलिया, पेट के कृमि, मुख रोग, दांतों और मसूड़ों के रोग, गर्भावस्था की जी मिचलाहट आदि में गुणकारी है।
यूनानी चिकित्सा पद्धति में दारुहल्दी दूसरे दर्जे की सर्द और खुश्क तथा जड़ की छाल पहले दर्जे की गर्म और खुश्क मानी गई है। इसके फल जरिश्क, यूनानी में एक उत्तम औषधि मानी गई है। यह आमाशय, जिगर और हृदय के लिए बलवर्द्धक है। इसके सेवन से जिगर और मेदे की खराबी से दस्त लगना, मासिक धर्म की अधिकता, सूजन, बवासीर के कष्टों में आराम मिलता है।

दारुहरिद्रा की तासीर

दारुहरिद्रा की तासीर गर्म होती है जिसके कारण यह हमारे पाचन तंत्र के अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य में मदद करता है। इसके अलावा दारुहरिद्रा में अन्‍य पोषक तत्‍वों और खनिज पदार्थों की भी उच्‍च मात्रा होती है। जिसके कारण यह हमारे शरीर को कई स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से बचाता है।

दारुहरिद्रा के अन्‍य नाम

दारुहरिद्रा एक प्रभावी जड़ी बूटी है जिसे अलग-अलग स्‍थानों पर कई नामों से जाना जाता है। दारुहरिद्रा का वान‍स्‍पतिक नाम बर्बेरिस एरिस्‍टाटा डीसी (Berberis aristata Dc) है जो कि बरबरीदासी (Berberidaceae) परिवार से संब‍ंधित है। दारुहरिद्रा के अन्‍य भाषाओं में नाम इस प्रकार हैं :
अंग्रेजी नाम – इंडियन बारबेरी (Indian berberi)
हिंदी नाम – दारु हल्‍दी (Daru Haldi)
तमिल नाम – मारा मंजल (Mara Manjal)
बंगाली नाम – दारुहरिद्रा (Daruharidra)
पंजाबी नाम – दारू हल्‍दी (Daru Haldi)
मराठी नाम – दारुहलद (Daruhalad)
गुजराती नाम – दारु हलधर (Daru Haldar)
फारसी नाम – दारचोबा (Darchoba)
तेलुगु नाम – कस्‍तूरीपुष्‍पा (Kasturipushpa)

दारुहरिद्रा के फायदे

पोषक तत्वों और खनिज पदार्थों की उच्‍च मात्रा होने के कारण दारुहरिद्रा के फायदे हमारे बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य के लिए होते हैं। यह ऐसी जड़ी बूटी है जो उपयोग करने पर कई जटिल स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को आसानी से दूर कर सकती है। आइए विस्‍तार से समझें दारुहरिद्रा के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ और उपयोग करने का तरीका क्‍या है।

रसौत के लाभ बवासीर के लिए

दारुहरिद्रा या रसौत के फायदे बवासीर के लिए भी होते हैं। बवासीर की समस्‍या किसी भी व्‍यक्ति के लिए बहुत ही कष्‍टदायक होती है। इसके अलावा रोगी इस बीमारी के कारण बहुत ही कमजोर हो जाता है। क्‍योंकि इस दौरान उनके शरीर में रक्‍त की कमी हो सकती है। लेकिन इस समस्‍या से बचने के लिए दारुहरिद्रा के फायदे होते हैं। दारुहरिद्रा में ब्‍लीडिंग पाइल्‍स का उपचार करने की क्षमता होती है। बवासीर रोगी को नियमित रूप से इस जड़ी बूटी को मक्‍खन के साथ 40-100 मिलीग्राम मात्रा का सेवन करना चाहिए। दारुहरिद्रा के यह लाभ इसमें मौजूद एंटीआक्‍सीडेंट, जीवाणुरोधी, एंटीफंगल और एंटीवायरल गुणों के कारण होते हैं। ये सभी गुण बवासीर के लक्षणों को कम करने और शरीर को अन्‍य प्रकार के संक्रमण से बचाने में सहायक होते हैं।

आंखों के लिए

आप अपनी आंखों को स्‍वस्‍थ्‍य रखने और देखने की क्षमता को बढ़ाने के लिए दारु हल्‍दी का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। औषधीय गुणों से भरपूर दारुहरिद्रा को आंखों के संक्रमण दूर करने में प्रभावी पाया गया। इसके लिए आप दारुहरिद्रा को मक्‍खन, दही या चूने के साथ मिलाएं और आंखों की ऊपरी क्षेत्र में बाहृ रूप से लगाएं। यह आंखों की बहुत सी समस्‍याओं को दूर कर सकता है। यदि आप आंख आना या कंजंक्टिवाइटिस से परेशान हैं तो दूध के साथ इस जड़ी बूटी को मिलकार लगाएं। यह आंख के संक्रमण को प्रभावी रूप से दूर कर नेत्रश्‍लेष्‍म को कम करने में मदद करती है।

दारुहरिद्रा के फायदे मधुमेह के लिए

यदि आप मधुमेह रोगी हैं तो दारुहरिद्रा जड़ी बूटी आपके लिए बहुत ही फायदेमंद हो सकती है। क्‍योंकि इस पौधे के फलों में रक्‍त शर्करा को कम करने की क्षमता होती है। नियमित रूप से उपयोग करने पर यह आपके शरीर में चयापचय एंजाइमों को सक्रिय करता है। जिससे आपके रक्‍त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है। आप भी अपने आहार में दारुहरिद्रा और इसके फल को शामिल कर मधुमेह के लक्षणों को कम कर सकते हैं।

बुखार ठीक करे

जब शरीर का तापमान अधिक होता है या बुखार की संभावना होती है तो दारुहरिद्रा का उपयोग लाभकारी होता है। इस दौरान इस जड़ी बूटी का सेवन करने से शरीर के तापमान को कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा यह शरीर में पसीने को प्रेरित भी करता है। पसीना निकलना शरीर में तापमान को अनुकूलित करने का एक तरीका होता है। साथ ही पसीने के द्वारा शरीर में मौजूद संक्रमण और विषाक्‍तता को बाहर निकालने में भी मदद मिलती है। इस तरह से दारुहरिद्रा का उपयोग बुखार को ठीक करने में मदद करता है। रोगी को दारुहरिद्रा के पौधे की छाल और जड़ की छाल को मिलाकर एक काढ़ा तैयार करें। इस काढ़े को नियमित रूप से दिन में 2 बार सेवन करें। यह बुखार को कम करने का सबसे बेहतरीन तरीका हो सकता है।

दस्‍त के इलाज में

आयुर्वेद और अध्‍ययनों दोनों से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि दारुहरिद्रा जड़ी बूटी दस्‍त जैसी गंभीर समस्‍या का निदान कर सकती है। शोध के अनुसार इस जड़ी बूटी में ऐसे घटक मौजूद होते हैं जो पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर कर सकते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद एंटीबैक्‍टीरियल और एंटीमाइक्रोबियल गुण पेट में मौजूद संक्रामक जीवाणुओं के विकास और प्रभाव को कम करते हैं। जिससे दस्‍त और पेचिश जैसी समस्‍याओं को रोकने में मदद मिलती है। आप सभी जानते हैं कि दूषित भोजन और दूषित पानी पीने के कारण ही दस्‍त और पेचिश जैसी समस्‍याएं होती है। लेकिन इन समस्‍याओं से बचने के लिए दारुहरिद्रा जड़ी बूटी फायदेमंद होती है। दस्‍त का उपचार करने के लिए इस जड़ी बूटी को पीसकर शहद के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करना चाहिए।
बेनिफिट्स फॉर स्किन
अध्‍ययनों से पता चलता है कि दारुहरिद्रा में त्‍वचा समस्‍याओं को दूर करने की क्षमता भी होती है। आप अपनी 

त्वचा समस्‍याओं जैसे मुंहासे

, घाव, अल्‍सर आदि का इलाज करने के लिए दारुहरिद्रा जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। ऐसी स्थितियों का उपचार करने के लिए आप इस पौधे की जड़ का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

सूजन के लिए

अध्‍ययनों से पता चलता है कि सूजन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए दारुहरिद्रा फायदेमंद होती है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में एंटीऑक्‍सीडेंट और एंटी-इंफ्लामेटरी गुण होते हैं। जिनके कारण यह सूजन और इससे होने वाले दर्द को प्रभावी रूप से कम कर सकता है। अध्‍ययनों से यह भी पता चलता है कि यह गठिया की सूजन को दूर करने में सक्षम होता है। सूजन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए आप दारू हल्‍दी का पेस्‍ट बनाएं और प्रभावित जगह पर लगाएं। ऐसा करने से आपको सूजन और दर्द से राहत मिल सकती है।

कैंसर से बचाव

दारुहरिद्रा या रसौत में कैंसर कोशिकाओं को रोकने और नष्‍ट करने की क्षमता होती है। क्‍योंकि यह जड़ी बूटी एंटीऑक्‍सीडेंट से भरपूर होती है। कैंसर का उपचार अब तक संभव नहीं है लेकिन आप इसके लक्षणों को कम कर सकते हैं। कैंसर के मरीज को नियमित रूप से दारुहरिद्रा और हल्‍दी के मिश्रण का सेवन करना चाहिए। क्‍योंकि इन दोनो ही उत्‍पादों में कैंसर विरोधी गुण होते हैं। जो ट्यूमर के विकास को रोकने में सहायक होते हैं। इस तरह से दारुहरिद्रा का सेवन करने के फायदे कैंसर के लिए प्रभावी उपचार होते हैं।
ऊपर बताए गए लाभों के अलावा भी इस जड़ी बूटी के अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य लाभ होते हैं जो इस प्रकार हैं :
और भी स्वास्थ्य लाभ हैं दारूहरिद्रा के-
इसका उपयोग घावों की त्‍वरित चिकित्‍सा के लिए भी किया जाता है। इस औषधीय जड़ी बूटी के पेस्‍ट को फोड़ों, अल्सर आदि में उपयोग किये जाते हैं।
शारीरिक मांसपेशियों के दर्द को कम करने के लिए भी इस जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल किया जाता है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में दर्द निवारक गुण होते हैं जो ल्‍यूकोरिया (leucorrhoea) और मेनोरेजिया (menorrhagia) जैसी समस्‍याओं के लिए लाभकारी होते हैं।
पीलिया के उपचार में भी यह जड़ी बूटी आंशिक रूप से मददगार होती है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी का उपयोग करने से शरीर में मौजूद विषाक्‍तता को दूर करने में मदद मिलती है। यह यकृत को भी विषाक्‍तता मुक्‍त रखती है और पीलिया के लक्षणों और संभावना को कम करती है।
दारुहरिद्रा में कैंसर के लक्षणों को कम करने की क्षमता होती है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में एंटीकैंसर गुण होते हैं। जिसके कारण इसका नियमित सेवन करने से पेट संबंधी कैंसर की संभावना को कम किया जा सकता है।
कान के दर्द को कम करने के लिए भी दारू हल्‍दी लाभकारी होती है। इसके अलावा यह कान से होने वाले स्राव को भी नियंत्रित कर सकती है।
पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए इस औषधी का नियमित सेवन किया जाना चाहिए। यह आपकी भूख को बढ़ाने और पाचन तंत्र को मजबूत करने में प्रभावी होती है।
कब्‍ज जैसी पेट संबंधी समस्‍या के लिए दारुहरिद्रा का इस्‍तेमाल फायदेमंद होता है।
बुखार होने पर इसकी जड़ से बनाये गए काढ़े को इस्तेमाल करने से जल्द ही बुखार से छुटकारा मिलता है |
दालचीनी के साथ दारू हल्दी को मिलाकर चूर्ण बना ले | इस चूर्ण को नित्य सुबह – शाम 1 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ उपयोग करने से महिलाओं की सफ़ेद पानी की समस्या दूर हो जाती है |
अगर शरीर में कहीं सुजन होतो इसकी जड़ को पानी में घिसकर इसका लेप प्रभावित अंग पर करने से सुजन दूर हो जाती है एवं साथ ही दर्द अगर होतो उसमे भी लाभ मिलता है | इस प्रयोग को आप घाव या फोड़े – फुंसियों पर भी कर सकते है , इससे जल्दी ही घाब भर जाता है |
इसका लेप आँखों पर करने से आँखों की जलन दूर होती है |
दारुहल्दी के फलों में विभिन्न प्रकार के पूरक तत्व होते है | यह वृक्ष जहाँ पाया जाता है वहां के लोग इनका इस्तेमाल करते है , जिससे उन्हें विभिन्न प्रकार के पौषक तत्वों के सेवन से विभिन स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते है 
पीलिया रोग में भी इसका उपयोग लाभ देता है | इसके फांट को शहद के साथ गृहण लाभ देता है |
मधुमेह रोग में इसका क्वाथ बना कर प्रयोग करने से काफी लाभ मिलता है |
इससे बनाये जाने वाले रसांजन से विभिन्न रोगों में लाभ मिलता है
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