21.6.17

याददाश्त बढ़ाने में कारगर है "त्राटक योग"



  दिमाग हमारे शरीर को वो हिस्सा है जिसके संकेत के बिना शरीर का कोई भी अंग काम नहीं कर सकता। अपने आहार में कुछ विशेष जड़ी-बूटियों को शमिल करके आप अपने दिमाग को तेज कर सकते हैं। उम्र बढ़ने के साथ साथ याददाश्त भी कमजोर होती जाती है, लेकिन याददाश्त कमजोर होने की समस्या केवल बुढ़ापे में ही नहीं आती है।
    आजकल की लाइफ स्टाइल में देर से सोना, तनाव, जंक फूड जैसी कई आदतों के चलते कम उम्र में भी याददाश्त कमजोर होने लगती है। दिमाग तेज करने के लिए मेंटल एक्सरसाइज करना बहुत जरूरी है। योग न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक एक्सरसाइज भी है। इसका शरीर को स्वस्थ्य रखने में काफी महत्व होता है।
    जीवन में सफलता के लिए अहम तत्व है एकाग्रता क्योंकि इससे हम अपने काम में ध्यान केन्द्रित कर पाते हैं। आज से लगभग 5000 ई.पू. महर्षि पतंजलि ने एकाग्रता बढ़ाने की विधि की खोज की थी।
  

त्राटकयोग इस विधि एक प्रचलित नाम 'त्राटक' है। योगी और संत इसका अभ्यास परा-मनोवैज्ञानिक शक्ति के विकास के लिये भी करते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक शोधों ने यह सिद्ध कर दिया है कि इससे आत्मविश्वास पैदा होता है। 
   योग्यता बढ़ती है, और मस्तिष्क की शक्तियों का विकास कई प्रकार से होता है। यह विधि स्मरण-शक्ति को तीक्ष्ण बनाती है। प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रयोग की गई यह बहुत ही उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण पद्धति है।
अभ्यास का समय- 
योग की इस विधि का अभ्यास करने के सूर्योदय का समय सबसे उत्तम होता है। किन्तु यदि अन्य समय में भी इसका अभ्यास करें तो कोई हानि नहीं है।
स्थान- 

    किसी शान्त स्थान में बैठकर अभ्यास करें। जिससे कोई अन्य व्यक्ति आपको बाधा न पहुँचाए।
प्रथम चरण-
स्क्रीन पर बने पीले बिंदु को आरामपूर्वक देखें।
द्वितीय चरण-
जब भी आप बिन्दु को देखें, हमेशा सोचिये मेरे विचार पीत बिन्दु के पीछे जा रहे हैं इस अभ्यास के मध्य आँखों में पानी आ सकता है, चिन्ता न करें। आँखों को बन्द करें, अभ्यास स्थगित कर दें।
यदि पुन अभ्यास करना चाहें, तो आँखों को धीरे-से खोलें। आप इसे कुछ मिनट के लिये और दोहरा सकते हैं। अन्त में, आँखों पर ठंडे पानी के छींटे मारकर इन्हें धो लें।



एक बात का ध्यान रखें, आपका पेट खाली भी न हो और अधिक भरा भी न हो। यदि आप चश्मे का उपयोग करते हैं तो अभ्यास के समय चश्मा न लगाएँ।
यदि आप पीत बिन्दु को नहीं देख पाते हैं तो अपनी आँखें बन्द करें एवं भौंहों के मध्य में चित्त एकाग्र करें। इसे अन्त: त्राटक कहते हैं।
कम-से-कम तीन सप्ताह तक इसका अभ्यास करें। परन्तु, यदि आप इससे अधिक लाभ पाना चाहते हैं तो निरन्तर अपनी सुविधानुसार करते रहें।
अन्य योग स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए -
पद्मासन योग

यदि आपको स्मरण शक्ति बढ़ाना है तो नियमित रूप से पद्मासन कीजिए। यह ध्यान का आसन प्राचीन काल से ही भारत में प्रचलित है। यह एक ऐसा आसन है जिससे आप न केवल खुद के मन को शांत रख पाएंगे बल्कि इसके जरिए आप अपने आत्मविश्वास में भी बढ़ोत्तरी कर पाएंगे। इतिहास में बड़े-बड़े विद्वान इस आसन को करके अपने मन को शांत रखते थे।
पश्चिमोत्तानासन योग




स्मरण शक्ति बढ़ाने की इच्छा रखने वाले लोग पश्चिमोत्तानासन का सहारा ले सकते हैं। इस आसन के करने से न केवल याददाश्त बढ़ेगा बल्कि ये तनाव से राहत भी पहुंचाता है। हैमस्ट्रिंग, रीढ़ की हड्डी और पीठ के निचले हिस्से में सुधार, पाचन में सुधार, थकान को कम करना, गुर्दे को स्वस्थ रखना आदि में भी यह आसन काम करता है।
सर्वांगासन योग

ऐसा माना जाता है कि सर्वांगासन शरीर के लिए एक पूरा व्यायाम है। अगर आप इस आसन को नियमित रूप से करते हैं तो कई तरह की बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं। इस आसन के करने से मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह तेजी से होता है। इसलिए जो मानसिक रूप से कमजोर हैं उनकी एकाग्रता और बुद्धिमत्ता में यह आसन वृद्धि करता है।
वज्रासन योग

योग में वज्रासन की बहुत बड़ी भूमिका है। यह एक ऐसा आसन है जिसे करने में कोई मेहनत नहीं लगती है। आप इसे कभी भी और किसी भी समय असानी से कर सकते हैं। खाना खाने के बाद यदि इस आसन को करते हैं तो आपके पाचन तंत्र के लिए बहुत ही फायदेमंद रहेगा। आइए इस आसन के बारे में और जानने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा ध्यान और सांस लेने के व्यायाम आम तौर पर वज्रासन की अवस्था में किया जाता है। इस अवस्था में आप सांस भी गहरी ले सकते हैं और अच्छी तरह से ध्यान भी लगा सकते हैं।
उत्तानासन योग

इस आसन के जरिए सिर, कमर पैर एवं मेरूदंड का व्यायाम होता है। लेकिन इस आसन के करने से याददाश्त भी बढ़ती है। हालांकि जिन लोगों को पीठ या गर्दन की समस्या है उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए।
सुखासन  योग

सुखासन तनाव को दूर करने का अच्छा उपाय है। योग के इस अवस्था को मेडिटेशन का भी नाम दिया जाता है। यह एक ऐसा योग है जिसके जरिए आप मानसिक और शारीरिक थकावट को दूर कर सकते हैं। इसके साथ ही यह आसन हमें शांति और आत्मानंद का अनुभव देता है और एकाग्र होने में सहायता करता है।
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15.6.17

बरसात मे होने वाले चर्म रोगों से बचाव और उपचार





बरसात का मौसम जहां एक तरफ लोगों को गर्मी से राहत देता है तो वहीं दूसरी तरफ कई प्रकार की बिमारियों का कारण भी बन जाता है। इस मौसम में दूषित परिवेश के कारण त्वचा से संबंधी बिमारियां बहुत तेजी से फैलती हैं। बारिश में बच्चे भीगना, खेलना बहुत ज्यादा पसंद करते हैं इसलिए इनमें त्वचा संबंधी रोगों का खतरा अधिक होता है। इसमें अधिकतर फोड़े-फुंसी, घमौरियां, खुजली, स्किन फंगस, कील-मुंहासे जैसी त्वचा संबंधी बिमारियां शामिल हैं।
बारिश में त्वचा संबंधी रोग के मुख्य कारण 
बारिश के मौसम में बहने वाली हवाओं में बैक्टीरिया और रोगजनित कीटाणु होते हैं। इनके संपर्क में आने से त्वचा संबंधी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। बारिश में भीगने, गंदा पानी, पसीना न सूखने और काफी देर तक गीला रहने पर, नमी के कारण फफूंद का संक्रमण हो जाता है। जिससे खुजली, चकते और फोड़े हो जाते हैं।
बारिश में त्वचा संबंधी रोगों से कैसे बचें? (Precautions for Skin Problems in Rainy Season)
बारिश के दिनों में त्वचा संबंधी रोग एक दूसरे से फैलने वाले होते हैं। यदि ये रोग परिवार के किसी एक सदस्य को हो जाएं तो उनसे अन्य सदस्यों को फैलने का खतरा बढ़ जाता है। त्वचा संबंधी रोगों से बचने के लिए जरूरी है कि हम बरसात के मौसम में कुछ बातों का ध्यान रखें।
बारिश में ज्यादा भीगने से बचना चाहिए।
बहुत देर तक गीले कपड़े या जूते पहने हुए नहीं रहना चाहिए।
इससे बचने के लिये भीड़भाड़ वाले स्थानों में जाने से बचना चाहिये।
जहां गंदा पानी जमा हो वहां जाने से बचना चाहिए।
नहाने के पानी में डेटॉल, नींबू या उबले हुए नीम के पत्तों का रस मिलाकर नहाएं।



शरीर के बगलों (Under Arms) में ‘एंटी फंगल आइंटमेंट’ का प्रयोग करना चाहिए जहां फंगस का खतरा ज्यादा होता है।

ज्वेलरी और रंग छोड़ने वाले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए।
पैरों को फंगस से बचाने के लिए जूतों की बजाय चप्पल या सैंडल का इस्तेमाल करना चाहिए।
खान-पान का विशेष ध्यान रखें और ज्यादा तला हुआ न खाएं।
त्वचा से जुड़ी समस्याओं के लक्षण (Symptoms of Skin Problems in Rainy Season)
शरीर पर खुजली होना।
छोटे-छोटे व लाल रंग के दाने होना।
हाथ और पैरों की उंगलियों के बीच खुजली होना और त्वचा का लाल पड़ना।
घाव होना और उनसे मवाद आना।
त्वचा का लाल हो जाना
कपड़े पहनने पर चुभन महसूस होना।
अधिकतर समय धूप में बिताने वाले लोगों को चर्म रोग होने का खतरा ज्यादा होता है।
किसी एंटीबायोटिक दवा के खाने से साइड एफेट्स होने पर भी त्वचा रोग हो सकता है।
महिलाओं में मासिक चक्र अनियमितता की समस्या हो जाने पर भी उन्हे चर्म रोग होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।
शरीर में ज़्यादा गैस जमा होने से खुश्की का रोग हो सकता है।
अधिक कसे हुए कपड़े पहेनने पर और नाइलोन के वस्त्र पहनने पर भी चमड़ी के विकार ग्रस्त होने का खतरा होता है।
नहाने के साबुन में अधिक मात्रा में सोडा होने से भी यह रोग हो सकता है।
खुजली का रोग ज़्यादातर शरीर में खून की खराबी के कारण उत्पन्न होता है।
गरम और तीखीं चिज़े खाने पर फुंसी और फोड़े निकल आ सकते हैं।
आहार ग्रहण करने के तुरंत बाद व्यायाम करने से भी चर्म रोग होने की संभावना रहती है।
उल्टी, छींक, डकार, वाहर (Fart), पिशाब, और टट्टी इन सब आवेगों को रोकने से चर्म रोग होने का खतरा रहता है।
शरीर पर लंबे समय तक धूल मिट्टी और पसीना जमें रहने से भी चर्म रोग हो सकता है।
और भोजन के बाद विपरीत प्रकृति का भोजन खाने से कोढ़ का रोग होता है। (उदाहरण – आम का रस और छाछ साथ पीना)
विशिष्ट परामर्श -


त्वचा संबंधित रोगों के प्रभावी नियंत्रण और जड़  से उखाड़ने मे जड़ी बूटियों से निर्मित औषधि सर्वाधिक कारगर सिद्ध हुई हैं। दाद ,खाज,एक्जिमा ,फोड़े फुंसी ,रक्त विकार आदि चमड़ी के रोगों मे आशातीत  लाभकारी "दामोदर चर्म  रोग नाशक "हर्बल मेडिसन की उपयोगिता निर्विवाद है। औषधि के लिए 9826795656 पर संपर्क कर सकते हैं। 


लक्षण होने पर घरेलू आयुर्वेदिक इलाज

बारिश के दिनों में त्वचा से जुड़े रोगों, जैसे खुजली, फोड़े -फुंसी, फंगस न सिर्फ व्यक्ति को तकलीफ देते हैं, बल्कि शरीर के कई अंगों पर गंदे और भद्दे दाग छोड़ जाते हैं। जिसके कारण हमारी त्वचा बहुत ही बदसूरत दिखने लगती है। यदि आपके शरीर के किसी भी हिस्से में खुजली है या लाल रैशेस हैं तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
बारिश के दिनों में संक्रमण जनित रोग स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकते हैं। इनसे बचने के लिए जरूरी है कि संक्रमण से एहतियात बरता जाए और कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत जांच एवं इलाज करवाया जाए। साथ ही, गैर-संक्रमणजनित रोगों, जैसे हृदय रोग, डायबिटीज, कैंसर जैसी जानलेवा बिमारियों की समय रहते पहचान बहुत जरूरी है।
*त्वचा रोग होने पर बीड़ी, सिगरेट, शराब, बीयर, खैनी, चाय, कॉफी, भांग, गांजा या अन्य किसी भी दूसरे नशीले पदार्थों का सेवन ना करें।
*बाजरे और ज्वार की रोटी बिलकुल ना खाएं। शरीर की शुद्धता का खास खयाल रक्खे।
*त्वचा रोग हो जाने पर, समय पर सोना, समय पर उठना, रोज़ नहाना, और धूप की सीधी किरणों के संपर्क से दूर रहेना अत्यंत आवश्यक है।
*भोजन में अचार, नींबू, नमक, मिर्च, टमाटर तैली वस्तुएं, आदि चीज़ों का सेवन बिलकुल बंद कर देना चाहिए। (चर्म रोग में कोई भी खट्टी चीज़ खाने से रोग तेज़ी से पूरे शरीर में फ़ेल जाता है।)।
अगर खाना पचने में परेशानी रहती हों, या पेट में गैस जमा होती हों तो उसका उपचार तुरंत करना चाहिए। और जब यह परेशानी ठीक हो जाए तब कुछ दिनों तक हल्का भोजन खाना चाहिए।
*खराब पाचनतत्र वाले व्यक्ति को चर्म रोग होने के अधिक chances होते हैं।
*त्वचा की किसी भी प्रकार की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को हररोज़ रात को सोने से पूर्व एक गिलास हल्के *गुनगुने गरम दूध में, एक चम्मच हल्दी मिला कर दूध पीना चाहिए।
*नहाते समय नीम के पत्तों को पानी के साथ गरम कर के, फिर उस पानी को नहाने के पानी के साथ मिला कर नहाने से चर्म रोग से मुक्ति मिलती है।
*नीम की कोपलों (नए हरे पत्ते) को सुबह खाली पेट खाने से भी त्वचा रोग दूर हो जाते हैं।
*त्वचा के घाव ठीक करने के लिए नीम के पत्तों का रस निकाल कर घाव पर लगा कर उस पर पट्टी बांध लेने से घाव मिट जाते हैं। (पट्टी समय समय पर बदलते रहना चाहिए)।
*मूली के पत्तों का रस त्वचा पर लगाने से किसी भी प्रकार के त्वचा रोग में राहत हो जाती है।
*प्रति दिन तिल और मूली खाने से त्वचा के भीतर जमा हुआ पानी सूख जाता है, और सूजन खत्म खत्म हो जाती है।
*मूली का गंधकीय तत्व त्वचा रोगों से मुक्ति दिलाता है।
*मूली में क्लोरीन और सोडियम तत्व होते है, यह दोनों तत्व पेट में मल जमने नहीं देते हैं और इस कारण गैस या अपचा नहीं होता है।
*मूली में मेग्नेशियम की मात्रा भी मौजूद होती है, यह तत्व पाचन क्रिया नियमन में सहायक होता है। जब पेट साफ होगा तो चमड़ी के रोग होने की नौबत ही नहीं होगी।

परामर्श-


दामोदर चर्म रोग हर्बल औषधि
त्वचा के विभिन्न रोगों में रामबाण औषधि की तरह उपयोगी है. रक्त की गन्दगी दूर कर चमड़ी की बीमारियों -दाद खाज,खुजली,एक्जीमा ,सोरायसिस,फोड़े फुंसी को जड़ मूल से खत्म करने के लिए जानी मानी दवा के रूप में व्यवहार होती है.


12.6.17

लेसिक आई सर्जरी के फायदे और नुकसान




  आंखें कुदरत की ओर से दी गई सबसे कीमती उपहार हैं। ये जितनी कीमती हैं, उतनी ही संवेदनशील भी हैं। इसलिए तो लोग आंखों का विशेष ख्याल रखते हैं और थोड़ा भी सरदर्द होने पर तुरंत डॉक्टर से जांच करवाते हैं। पहले लोग आंखों की समस्या से निज़ात पाने के लिए चश्मा पहनते थे। लेकिन चश्मा एक बार चढ़ गया तो जिंदगी भर लगाना पड़ता है। लेकिन विकसित होती तकनीक ने आंखों के उपचार को आसान कर दिया है। आजकल डॉक्टर चश्मा लगाने वाले को लेसिक सर्जरी करने की हिदायत देते हैं और लोग लेसिक सर्जरी का फायदा भी उठा रहे हैं।
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आंखों के विकार
लेसिक आई सर्जरी के फायदे और नुकसान
लेसिक आई सर्जरी से दूर होती हैं आंखों की समस्‍यायें।
अन्य सर्जरी की तुलना में लेसिक सर्जरी कम खतरनाक।
यह आसान है और मात्र 30 मिनट में ही हो जाती है।
इसे एक बार कराने के बाद दोबारा नहीं करा सकते हैं।
अन्य सर्जरी की तुलना में लेसिक सर्जरी कम खतरनाक।
यह आसान है और मात्र 30 मिनट में ही हो जाती है।
इसे एक बार कराने के बाद दोबारा नहीं करा सकते हैं।
आंखें कुदरत की ओर से दी गई सबसे कीमती उपहार हैं। ये जितनी कीमती हैं, उतनी ही संवेदनशील भी हैं। इसलिए तो लोग आंखों का विशेष ख्याल रखते हैं और थोड़ा भी सरदर्द होने पर तुरंत डॉक्टर से जांच करवाते हैं। पहले लोग आंखों की समस्या से निज़ात पाने के लिए चश्मा पहनते थे। लेकिन चश्मा एक बार चढ़ गया तो जिंदगी भर लगाना पड़ता है। लेकिन विकसित होती तकनीक ने आंखों के उपचार को आसान कर दिया है। आजकल डॉक्टर चश्मा लगाने वाले को लेसिक सर्जरी करने की हिदायत देते हैं और लोग लेसिक सर्जरी का फायदा भी उठा रहे हैं। लेसिक सर्जरी कराने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लें। आइए इस लेख में लेसिक सर्जरी के फायदे और नुकसान के बारे में जानते हैं।



क्‍या है लेसिक सर्जरी

जो लोग चश्मा पहनते हैं और जिनका पावर -1 से -10 के बीच है, उन्हें तुरंत आंखों की लेसिक सर्जरी करवानी चाहिए। जांच में देख लें कि आपके कॉर्निया की थिकनेस कैसी है। जितनी अधिक थिकनेस होगी इस सर्जरी का फायदा उतना अधिक होगा। साथ ही लेसिक सर्जरी की सबसे अच्छी बात है कि ये अन्य दूसरी सर्जरी की तुलना में ज्यादा आसान और बेहतर है। यह सस्ती होती है और इसमें कॉर्निया को नुकसान पहुंचने का खतरा न के बराबर होता है। जबकि दूसरी सर्जरी में कॉर्निया पर खतरा ज्यादा रहता है। 

लेसिक सर्जरी के फायदे
लेसिक सर्जरी 30 मिनट या उससे कम समय में हो जाती है। साथ ही यह सर्जरी आंखों के लिए काफी प्रभावी और कारगार मानी गई है, जिस कारण अधिकतर लोग आंखों के लिए लेसिक सर्जरी करने की हिदायत देते हैं।
92-98% लोग आंखों की समस्या से निजात पाने के लिए लेसिक सर्जरी का ही सहारा लेते हैं, क्योंकि ये आंखों की दृष्टि के लिए काफी फायदेमंद होती है और किसी भी अन्य सर्जरी की तुलना में आसान और किफायती होती है।
लेसिक सर्जरी दृष्टि से जुड़ी सभी समस्याओं और खतरों को काफी हद तक दूर कर देती है।
लेसिक सर्जरी के नुकसान
लेसिक सर्जरी आंखों के सबसे संवेदनशील हिस्से में की जाती है और इसे दोबारा नहीं किया जा सकता है।
लेसिक सर्जरी के कुछ दिनों के बाद ही लोगों को पढ़ने के लिए तो चश्मे की जरूरत पड़ती ही है।
सबसे बड़ा खतरा लेसिक सर्जरी का ये है कि, ये आपकी इंश्योरेंस पॉलिसी का हिस्सा नहीं होता। मतलब की इस सर्जरी के दौरान अगर आपकी आंखों को कुछ होता है तो इसकी जिम्मेदारी न डॉक्टर की और न इंश्योरेंस विभाग की होगी।


आंखें अनमोल हैं, इसलिए इससे जुड़ी किसी भी तरह की सर्जरी कराने से पहले चिकित्‍सक की सलाह जरूर लें।
आंखें कुदरत की ओर से दी गई सबसे कीमती उपहार हैं। ये जितनी कीमती हैं, उतनी ही संवेदनशील भी हैं। इसलिए तो लोग आंखों का विशेष ख्याल रखते हैं और थोड़ा भी सरदर्द होने पर तुरंत डॉक्टर से जांच करवाते हैं। पहले लोग आंखों की समस्या से निज़ात पाने के लिए चश्मा पहनते थे। लेकिन चश्मा एक बार चढ़ गया तो जिंदगी भर लगाना पड़ता है। लेकिन विकसित होती तकनीक ने आंखों के उपचार को आसान कर दिया है। आजकल डॉक्टर चश्मा लगाने वाले को लेसिक सर्जरी करने की हिदायत देते हैं और लोग लेसिक सर्जरी का फायदा भी उठा रहे हैं। लेसिक सर्जरी कराने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लें। आइए इस लेख में लेसिक सर्जरी के फायदे और नुकसान के बारे में जानते हैं।
क्‍या है लेसिक सर्जरी
जो लोग चश्मा पहनते हैं और जिनका पावर -1 से -10 के बीच है, उन्हें तुरंत आंखों की लेसिक सर्जरी करवानी चाहिए। जांच में देख लें कि आपके कॉर्निया की थिकनेस कैसी है। जितनी अधिक थिकनेस होगी इस सर्जरी का फायदा उतना अधिक होगा। साथ ही लेसिक सर्जरी की सबसे अच्छी बात है कि ये अन्य दूसरी सर्जरी की तुलना में ज्यादा आसान और बेहतर है। यह सस्ती होती है और इसमें कॉर्निया को नुकसान पहुंचने का खतरा न के बराबर होता है। जबकि दूसरी सर्जरी में कॉर्निया पर खतरा ज्यादा रहता है।
लेसिक सर्जरी के फायदे
लेसिक सर्जरी 30 मिनट या उससे कम समय में हो जाती है। साथ ही यह सर्जरी आंखों के लिए काफी प्रभावी और कारगार मानी गई है, जिस कारण अधिकतर लोग आंखों के लिए लेसिक सर्जरी करने की हिदायत देते हैं।
92-98% लोग आंखों की समस्या से निजात पाने के लिए लेसिक सर्जरी का ही सहारा लेते हैं, क्योंकि ये आंखों की दृष्टि के लिए काफी फायदेमंद होती है और किसी भी अन्य सर्जरी की तुलना में आसान और किफायती होती है।
लेसिक सर्जरी दृष्टि से जुड़ी सभी समस्याओं और खतरों को काफी हद तक दूर कर देती है।
रूर लें। आइए इस लेख में लेसिक सर्जरी के फायदे और नुकसान के बारे में जानते हैं।
लेसिक सर्जरी के नुकसान
लेसिक सर्जरी आंखों के सबसे संवेदनशील हिस्से में की जाती है और इसे दोबारा नहीं किया जा सकता है।
लेसिक सर्जरी के कुछ दिनों के बाद ही लोगों को पढ़ने के लिए तो चश्मे की जरूरत पड़ती ही है।
सबसे बड़ा खतरा लेसिक सर्जरी का ये है कि, ये आपकी इंश्योरेंस पॉलिसी का हिस्सा नहीं होता। मतलब की इस सर्जरी के दौरान अगर आपकी आंखों को कुछ होता है तो इसकी जिम्मेदारी न डॉक्टर की और न इंश्योरेंस विभाग की होगी।

आंखों से चश्मा हटवाने या कांटैक्ट लेन्स से छुटकारा पाने के लिए आंखों की लेजर सर्जरी आज एक प्रभावी विकल्प है लेकिन इसे करवाने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए इससे जुड़े हर पहलू की जानकारी जरूरी है।
जानिए, लेजर आइ सर्जरी से जुड़े कुछ अहम पहलू।
लेजर सर्जरी की सही उम्र
आंखों की लेजर सर्जरी हर उम्र में नहीं हो सकती है। इसके लिए कम से कम 18 से लेकर 21 तक की उम्र का इंतेजार करना होगा।
चूंकि इससे पहले हमारी दृष्टि में बदलाव होता रहता है और हमारी दृष्टि 18 साल या कुछ मामलों में 21 साल के बाद ही स्थिर होती है, इसलिए इससे पहले लेजर सर्जरी नहीं हो सकती है।







कहां है फायदेमंद

लेजर सर्जरी के दौरान आंखों के कॉर्निया पर एक फ्लैप चढ़ाकर उसके आकार में हल्का परिवर्तन किया जाता है जिससे फोकस सही रहे।
यह उन लोगों के लिए फायदेमंद हो सकती है जिनके साथ ये स्थितियां बहुत अधिक बिगड़ी न हों -
- पास की नजर कमजोर हो (मायोपिया)।
- दूर की नजर कमजोर हो (हाइपरोपिया)।
- धुंधला दिखाई देता हो (अस्ट‌िगमाटिज्म)।
ये रिस्क भी हैं
- लेजर सर्जरी आंखों के बहुत संवेदनशील हिस्से पर की जाती है इसलिए इसके बाद इसमें कोई सुधार नहीं हो सकता।
- जरूरी नहीं कि यह सर्जरी आपको पूरी तरह चश्मे से छुटकारा दिला दे। बहुत अधिक पावर वाले लोगों को फिर भी चश्मा लगाना पड़ सकता है।
- गर्भवती महिलाओं के लिए यह सर्जरी नहीं है।
- इसके पहले आप अपनी मेडिकल हिस्ट्री सही तरह डॉक्टर को बताएं क्योंकि ऐसी कई दवाएं हैं जिनका सेवन इस सर्जरी के पहले नहीं कर सकते हैं।
- लेजर सर्जरी करवाने से पहले कम से कम दो बार डॉक्टरी सलाह ले लें।
सर्जरी के पहले



- आंखों का परीक्षण।

- कुछ समय के लिए कांटैक्ट लेंस नहीं पहनें।
- आंखों पर कोई मेकअप न करें।
- परफ्यूम और लोशन जैसी चीजों का इस्तेमाल कुछ समय के ल‌िए न करें।
सर्जरी के दौरान
- यह सर्जरी एनेस्थीसिया के बाद ही होती है इसलिए इसमें बहुत दर्द नहीं होता है।
- एक आंख में 10 से 15 मिनट तक का वक्त लगता है।
- चूं‌कि इलाज पूरी तरह से लेजर किरणों से होता है इसलिए किसी तरह का चीरा नहीं लगता है।
सर्जरी के बाद
- सर्जरी के बाद कई बार दो से तीन दिनों तक अस्पताल में पूरा आराम करना होता है।
- इसके बाद कम से कम एक महीने तक आंखों का खास ध्यान रखना पड़ता है।
- आंखों में जलन हो तो हर्गिज न मलें।
- समय पर टेस्ट कराते रहें।
- नहाते वक्त आंखों में पानी न आने दें।
- धूप में निकलने से बचें।

किडनी फेल (गुर्दे खराब) की अमृत औषधि 

प्रोस्टेट ग्रंथि बढ्ने से मूत्र बाधा की हर्बल औषधि

सिर्फ आपरेशन नहीं ,पथरी की 100% सफल हर्बल औषधि

आर्थराइटिस(संधिवात)के घरेलू ,आयुर्वेदिक उपचार

        








23.5.17

नासूर,पुराने घाव के घरेलु आयुर्वेदिक उपचार / Ayurvedic treatment of canker, old wound




  जो व्यक्ति अपने पके हुए फोड़े को कच्चा समझकर उसके मवाद को निकलने का मुंह नही खोलता है अथवा बहुत मवाद वाले पके हुए व्रण को कच्चा सामझ कर,उसे शोधन पदार्थो से शुद्ध नही करता तथा अहितकारी आहार विहार सेवन करता है उसकी यह बढ़ी हुई मवाद -चमडा,मांस,शिरा स्नायु,सन्धि,हड्डी,कोठे और मर्म स्थानों के छेद में होकर चमड़े और मांस में घुस जाती है।चूँकि यह भीतर ही भीतर बहुत दूर तक घुस जाती है,अतः यह मवाद सदैव बहा करती है।इसलिए इसे ‘नाडी व्रण’ या “नासूर” कहते हैं ।
इस व्रण का मवाद निकले के लिए एक राह रास्ता बना लेता है और उसी राह से होकर बहा करता है ।
आइये अब आपको बताते है नासूर की घरेलु नुस्खो द्वारा चिकित्सा कैसे करे’
* अमलताश,हल्दी,निशोथ को गो मूत्र के साथ पीसकर शहद में मिलाकर बत्ती बनाकर इसको नासूर में रखने से वह शुद्ध होकर ठीक हो जाता है।
* पुराना कम्बल जलाकर राख बना लें और तुतिया पीसकर छानलें,फिर दोनों को बराबर मात्रा में मिलाकर नासूर पर छिड़के ।इस प्रयोग से नासूर जल्द ही ठीक हो जाता है ।
* गुलर के दूध में फाहा (रुई) भिगोकर तर करके नासूर पर लगातार कुच्छ दिनों तक रखने से नासूर ठीक हो जाता है ।इस प्रयोग से भगंदर में भी लाभ होता है ।

* समंदर शोख की राख नासूर में भरने से नासूर में अतिशीघ्र लाभ होता है ।
* मकड़ी का जाला साफ करके और शराब में भिगोकर नासूर पर लगाने से भी लाभ होता है |
*छोटी कटेरी के फल को कूट पीसकर रस निकाल लीजिए अब इसमें फाहा भरकर भिगोकर नासूर में लगाने से बहुत ज्यादा फायदा होता है ।
*थूहर का दूध,आक का दूध,और दारू हल्दी – इन तीनो की बत्ती बना कर घाव  में रखने   समस्त प्रकार नासूर ठीक हो जाते हैं ।
*शहद और सेंधे नमक कि बत्ती बनाकर वर्ण में रखने से नासूर ठीक हो जाता है।
जानकारी- शहद और सेंधा नमक बराबर मात्रा मे मिलाकर सूत पर लपेटने से बत्ती बनती है 




घाव भरने के लिए एन्टीबायोटिक्स अंग्रेजी दवाइयां लेने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि अधिकांश अंग्रेजी दवाइयों के हानिकारक साइड इफेक्ट्स होते हैं। किसी भी प्रकार का घाव हुआ हो, टांके लगवाये हों या शल्यक्रिया (ऑपरेशन) का घाव हो, अंदरूनी घाव हो या बाहरी हो,घाव पका हो या न पका हो लेकिन आपको प्रतिजैविक लेकर जठरा, आंतों, यकृत एवं गुर्दों को साइड इफेक्ट द्वारा बिगाडऩे की कोई जरूरत नहीं है बल्कि नीचे दिये जा रहे आसान घरेलू उपायों को अपनाकर किभी भी तरह के गहरे से गहरे घाव को जड़ से मिटाया जा सकता है-
*घाव को साफ करने के लिए ताजे गोमूत्र का उपयोग करें। बाद में घाव पर हल्दी का लेप करें।
* एक से दो दिन तक उपवास रखें। ध्यान रखें कि उपवास के दौरान केवल उबालकर ठंडा किया हुआ या गुनगुना गर्म पानी ही पीना है, अन्य कोई भी वस्तु खानी-पीनी नहीं है। दूध भी नहीं लेना है।
* उपवास के बाद जितने दिन उपवास किया हो उतने दिन केवल मूंग को उबाल कर जो पानी बचता है वही पानी पीना है। मूंग का पानी धीरे-धीरे गाढ़ा करके लिया जा सकता है।
* मूंग के पानी के बाद धीरे-धीरे मूंग, खिचड़ी, दाल-चावल, रोटी-सब्जी इस प्रकार सामान्य खुराक पर आना चाहिये।
*कब्ज की शिकायत हो तो रोज 1 चम्मच हरड़ का चूर्ण सुबह अथवा रात को पानी के साथ लें।
*जिनके शरीर की प्रकृति ऐसी हो कि घाव होने पर तुरंत पक जाता हो, उन्हें त्रिफल गूगल नामक 3-3 गोलीदिन में 3 बार पानी के साथ लेनी चाहिए।
*सुबह 50 ग्राम गोमूत्र तथा दिन में 2 बार 3-3 ग्राम हल्दी के चूर्ण का सेवन करने से बहुत जल्दी लाभ होता है।
*पुराने घाव में चन्द्रप्रभा वटी की 2-2 गोलियां दिन में 2 बार लें।
*जात्यादि तेल अथवा मलहम घाव पर लगाएं इससे घाव शीघ्र ही भरने लगेगा।


  
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22.5.17

थायरायड (Thyroid Disorder) की बीमारी के घरेलू आयुर्वेदीक उपचार -डॉ॰आलोक




हायपोथायरॉइडिज़म (Hypothyroidism) की बीमारी ज़्यादातर स्त्रीयों में पाई जाती है जिससे कि उनका आंतरिक चयपचय (metabolism) औसत से काफ़ी कम हो जाता है. आयुर्वेदीय चिकित्सा द्वारा इस रोग का निवारण भली-भाँति प्रकार किया जा सकता है. चयपचय की क्रिया को नियंत्रित करना थायराइड ग्रंथि का कार्य होता है और इसके द्वारा ही हम शरीर में लिया गया भोजन, जल और प्राण वायु कोशिकायों में सही रूप से चयपचय होकर उर्जा का स्रोत बनता है. छोटी अवशेषों में बाँटने के उपरांत उनका पुनर्संगठित होकर नवनिर्माण करना भी इस ग्रंथि के द्वारा स्रावित हॉर्मोन से संतुलित किया जाता है. जिस प्रक्रिया द्वारा शरीर में सुगठित तत्वों का निर्माण होता है उसे एनाबोलीज़म या चय कहा जाता है जबकि विघटन करने वाली प्रक्रिया को कॅटबॉलिज़म या पचय कहा जाता है. इन दोनो प्रक्रियायों के मिलन से उत्पन्न कार्य को मेटाबोलीज़म (metabolism) या चयपचय कहा जाता है.

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जब व्यक्ति पूर्णतयः विश्राम की स्थिति में होता है तब आधारिक चयपचायी मान (Basal Metabolic Rate)- BMR की दर को लेना संभव है. यह व्यक्ति की स्वास्थ का माप है और यह प्राणवायु में प्रयोग हुई ऑक्सिजन एवं निकली हुई कार्बन–डाई ऑक्साइड के दर को निर्धारित करता है. अन्तःस्राविय ग्रंथियों के अच्छी तरह से चलने पर रक्त या लिंफ में रसायनिक परिवर्तन होते हैं जिसमें मुख्य अंतः स्राविय ग्रंथियों का विशेष कार्य समन्वित है. थायरॉइड नामक ग्रंथि का कार्य इनमें सबसे महत्वपूर्ण है. यह गले के अग्र भाग में मौजूद होता है और इससे थायरॉक्सीन(thyroxine) नामक महत्वपूर्ण हॉर्मोन का स्राव होता है. जब यह ग्रंथि ठीक से कार्य न करती हो, जैसे कि मयक्सेडीमा(myxedema) में या फिर क्रीटीनिज़म(cretinism) नामक अवस्था में. जब इस ग्रंथि से थिरॉक्साइन हॉर्मोन अधिकता में बनने लगे उसे एक्शोफ्ताल्मीक गायटर (Exophthalmic goitre) या ग्रेव के रोग के नाम से जान जाता है.



विभिन्न प्रकार के थायरॉइड रोग
Various Types Of Diseases Of Thyroid In Hindi
हाइपरथायरॉइदिस्म(Hyperthyroidism): इस अवस्था में व्यक्ति के शरीर में थिरॉक्साइन की स्राव आवश्यकता से बहुत अधिक होता है. यह 30 से 40 वर्ष की उमर के व्यक्तियों में अधिक पाया जाता है. पीड़ित व्यक्ति के शरीर में कंपन, चिड़चिड़ापन, घबराहट और इस प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं. बार-बार होने वाले दस्त , गर्मी का अधिक लगना, मासिक धर्म में अनियमितता और कभी-कभार आँखों की पुतलियों का बाहर को निकलना. ऐसे लोग प्रायः जब बाहर निकलते हैं तो खुद को अजीबोगरीब स्थिति में पाते हैं जहाँ पर वे बात करना चाहते हैं पर स्वयं को शक्तिहीन महसूस करते हैं. वे ज़्यादातर चिड़े हुए रहते हैं और छोटी सी बात आर अत्यधिक क्रुद्ध हो जाते हैं.
हाइपोथायरिडिसम (Hyperthyroidism): इस स्थिति में में थायरॉक्साइन का स्राव सामान्य से कम पाया जाता है. ज़्यादातर रोगी उस कगार पर पाए जाते हैं जिसमें जाँच द्वारा पता किया जान मुश्किल होता है. परंतु इनके कारण रोगी के शरीर में प्रायः अप्रत्याशित रूप से थकावट, कमज़ोरी और मुख्य कार्यों में अवरोध पाया जाता है.
लंबी अवधि में मयक्षेदेमा नमक बीमारी का जन्म होता है जिससे आँखों में सूजन, त्वचा और पिंदलियों और शरीर के काई अंगों में सूजन पाई जाती है. त्वचा का सूखापन, पीलापन, भवों के बालों का टूटना, शरीर के तापमान का कम रहना, हृदय की धड़कन का कम होना, भूख का कम लगना, कब्ज़ीयत और रक्ताल्पता (अनेमिया).



थायरायड के रोगों में उपचार विधि
(Line of Treatment In Thyroid Diseases As Per Ayurveda In Hindi)
महर्षि चरक के अनुसार थायरॉइड का रोग अधिक मात्रा में दूध पीने वालों को नही होता. इसके अलावा साबुत मूँग, पुराने चावल, जौ, सफेद चने, खीरा, गन्ने का जूस और दुग्ध पदार्थों का सेवन करना भी अत्यंत आवश्यक है. इसके विपरीत खट्टे और भारी पदार्थों का सेवन नही करना चाहिए
कचनार का प्रयोग इस ग्रंथि के अच्छी प्रकार से सक्रिय रहने के लिए आवश्यक है. इसके अलावा , ब्राहमी, गुग्गूल, शिलाजीत भी लाभदायक है. गोक्शुर और पुनर्नव भी इस रोग में फ़ायदा देते हैं.



आसान घरेलू प्रयोग
Simple Ayurvedic Home Remedy For Revitalizing Thyroid In Hindi
11 से 22 ग्राम जलकुंभी का पेस्ट बनाकर थायरॉइड के क्षेत्र में लगाने से इस स्थिति में लाभ मिलता है. यह आयोडीन की कमी को पूरा करता है. यह तो सर्वविदित हैं की नारियल तेल में पाए जाने वाले फैटी एसिडस से बहुत से लाभ मिलते हैं. यह शरीर के अंगों, मस्तिष्क को विशिष्ट लाभ प्रदान करने में सहायक है. और यह हयपोथेरॉडिज़ॅम नामक रोग को ठीक करने में सहायक है.
योग द्वारा थायरॉइड ग्रंथि के रोगों का उपचार (Treatment Of Thyroid Problems With Yogasanas And Pranayam In Hindi)
*सर्वांगसन करने से थायरॉइड ग्रंथि के क्षेत्र में दबाव पड़ता है और इससे थायरॉकसीन के स्राव में सुधार पाया जाता है. इसमें शरीर के स्थाई पड़े हुए अंतः स्रावीय ग्रंथि तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. परंतु अत्यंत गंभीर थायरो-टोक्सीकोसिस(Thyrotoxicosis), शारीरिक कमज़ोरी तथा जहाँ पर थायरॉइड बहुत बढ़ गया हो. उस स्थिति में इन आसनों को नही करना चाहिए. अपितु पहले चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार रोग का निवारण करें. परंतु सूर्य नमस्कार, पवन्मुक्तासन जो की मस्तिष्क और गर्दन के क्षेत्र में अधिक प्रभावशाली हों, उनका अभ्यास होना चाहिए. सुप्त्वाज्रासन, योग मुद्रा और पीछे की और झुक के करने वाले आसन अत्यंत लाभदायक हैं.
*इस रोग में उज्जयी प्राणायाम लाभदायक है. यह गले के क्षेत्र में प्रभावशाली होता है. यह हायपोथॅलमस और दिमाग़ के निचले क्षेत्र को उर्जावान बनाकर सीधे-सीधे लाभ देता है और चयपचय की क्रिया को भी नियंत्रित करता है. साथ ही नाड़ी शोधन प्राणायाम का भी विशेष लाभ इसमें पाया जाता है.









21.5.17

जानें गर्भ में लड़का होने के लक्षण




  अक्सर वे लोग जो जल्द ही माता-पिता बनने वाले होते हैं, वह बच्चे के लिंग को लेकर बहुत उत्साहित रहते हैं। इसके लिए वो लिंग परीक्षण भी करवा डालते हैं, परंतु सेक्स रेशियो में आ रहे बड़े अंतर की वजह से यूं तो सरकार द्वारा गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग परीक्षण करना कानूनन अपराध घोषित किया जा चुका है
लेकिन हमारी पारंपरिक पद्धति में गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग जानने की अन्य भी कई विधाएं बहुत चर्चित और प्रचलित हैं। भारतीय पद्धति की बात करें तो अक्सर गर्भवती स्त्री के खानपान, उसके गर्भ के आकार और उसकी चाल को देखकर अनुमान पहले ही लगा लिया जाता है कि वह लड़के को जन्म देगी या लड़की को।
जब भी एक महिला माँ बनने वाली होती हैं तो उनके घर और बाहर के सब लोग ही पूर्वानुमान करने लग जाते हैं कि वो महिला एक लड़के को जन्म देगी या फिर लड़की को. जन्म से पहले जेंडर ( Gender ) पता लगवाना गैर क़ानूनी होता हैं, जिसके लिए सख्त कानून और पकड़े जाने पर दोषियों को सजा व जुर्माने का भी प्रावधान हैं. लेकिन सभी लोग अपने तजुर्बे से होने वाले बच्चे के बारे में अनुमान लगाते हैं. बहुत सी ऐसी बातें होती हैं कि जिससे आप पता लगा सकते हैं कि होने वाला बच्चा लड़का होगा या लड़की



इन लक्षणों से पहचाने की पेट में लड़का है

1. मतली लगना-
कई माताएं मानती हैं कि जब पेट में लड़की होती है, तो उल्‍टी होने का बिल्‍कुल भी एहसास नहीं होता। पर अगर पेट में लड़का है, तो आप बाल्‍टी भर उल्‍टी करने के लिए बिल्‍कुल तैयार हो जाइये। सुबह की शुरुआत में मतली जैसा महसूस होना आम बात होती है इसमें।

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2. पेट ज्‍यादा निकलना-
अगर पेट में लड़का है, तो गर्भावस्‍था के दौरान यह साफ पता चलता है। क्‍योंकि इसमें लड़की के मुकाबले पेट ज्‍यादा निकलता है। इसके अलावा शरीर पर कहीं भी चर्बी नहीं दिखेगी, पर पेट निकला होगा।
3. वजन नहीं बढ़ना-
जिस तरह लड़की के पेट में होने से वजन बढ़ता है, वैसे ही लड़के के पेट में होने से शरीर पर चर्बी बिल्‍कुल भी नहीं बढ़ेगी। न ही आपका चेहरा चमकेगा और न ही गाल गुलाबी लगेगें।
4. खट्टा खाने का मन-
इस दौरान तरह तरह की चीजें खाने का मन करेगा। लड़की अगर पेट में हैं तो मीठा और लड़का लगर पेट में हैं तो खट्टा खाने का मन करता है। बच्‍चे का जिस तरह के पोषक तत्‍व की जरुरत होती है, मां को वही खाने का मन करने लगता है।
*लंदन के चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसंधान का निष्कर्ष है कि गर्भ में अगर बालक भ्रूण हो तो प्रसव ज्यादा जटिल होता है और महिलाओं को इस दौरान ज्यादा परेशानी होती है। इसके उलट बालिका भ्रूण होने की स्थिति में परेशानी कम होती है और खतरा भी कम होता है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है।



*तेल अवीव युनिवर्सिटी (टीएयू) के स्कूल ऑफ मेडिसिन में स्त्रीरोग विशेषज्ञ मारेक ग्लेजरमैन ने यारिव योगेव और निर मेलामेड के साथ मिल कर 66,000 प्रसव के मामलों का अध्ययन किया। इस दौरान इन्होंने पाया कि जब गर्भ में बालक भ्रूण पल रहा होता है तो महिलाओं में गर्भाशय के सीमित विकास का खतरा बढ़ जाता है।

*ग्लेजरमैन ने कहा है कि गर्भ में बालक भ्रूण का होना ज्यादा जटिल मामला हो जाता है। ऐसी स्थिति में अविकसित प्रसव की संभावना बढ़ जाती है। ग्लैजरमैन ने कहा कि जिन बालक भ्रूणों का गर्भाशय में अधिक विकास हो जाता है, वैसी स्थिति में प्रसव बहुत कठिन हो जाता है और अक्सर ऑपरेशन के जरिए प्रसव कराना पड़ता है।
*इजरायल सोसायटी फॉर जेंडर बेस्ड मेडिसिन को प्रस्तुत किए गए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि बालक भ्रूण के साथ खतरे ज्यादा होते हैं। लेकिन शोधकर्ताओं ने कहा कि इन निष्कर्षो को समुचित आलोक में देखा जाना चाहिए
उपरोक्त जानकारी का आशय ये कतई नहीं है कि आप इसके आधार पर गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग जानने की कोशिश करें। उपरोक्त जानकारी केवल शास्त्रीय पद्धतियों, मान्यताओं को आप तक पहुंचाने की कोशिश भर है।पाठक अपनी समझ और सुझबुझ से काम ले यह एक सलाह मात्र है|

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19.5.17

एडी के दर्द के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार



  आधुनिक जीवन शैली ने कई ऐसे रोगों को जन्म दिया है जो पहले नहीं होते थे। उनमें से एक है एड़ी का दर्द जो अक्सर महिलाओं को सुबह बिस्तर से उठते ही परेशान करता है। इसकी वजह है सख्त फर्श और सख्त तले के जूते|एड़ी में चोट अथवा मोच लगने पर सही समय पर उसका इलाज करना जरूरी है। अगर इसकी सही देखभाल न की जाए, तो यह समस्‍या काफी लंबे समय तक परेशान कर सकती है और कई बार विकृतियां भी बनी रहती हैं।
    एड़ी के एक या उससे अधिक स्‍नायुबंधों में खिंचाव अथवा मांस फटना, एड़ी में मोच कहलाता है। एड़ी के स्‍नायुबंध लोचदार उत्तकों का समूह होते हैं, जो एड़ी की हड्डियों को अपने स्‍थान पर बांधे रखने का काम करते हैं। छोटे जोड़ों के आकार एडि़यों में मोच आना आम बात है क्‍योंकि पैदल चलते हुए, दौड़ते हुए और कूदते समय एडि़यों पर काफी भार पड़ता है। अगर धरातल असमतल हो, तो यह खतरा और बढ़ जाता है।
चोट की गंभीरत को देखते हुए एड़ी में मोच में तीन भागों में बांटा जाता है
ग्रेड 1 - इसमें एड़ी में दर्द होता है, लेकिन स्‍नायुबंधों को कम नुकसान पहुंचा होता है।
ग्रेड 2 - इसमें स्‍नायुबंधों में मध्‍यम क्षति पहुंची होती है, और एड़ी के जोड़ को कुछ नुकसान पहुंचा होता है।
ग्रेड 3 - स्‍नायुबंध फट जाते हैं और एड़ी का जोड़ बुरी तरह ढीला और अस्थिर हो जाता है।
कैसे बचें
एड़ी में मोच के खतरे को कम करने के लिए आप ये उपाय आजमा सकते हैं-
जिस स्‍थान पर आप पैदल चल, दौड़ अथवा कूद रहे हैं, उस धरातल को अच्‍छी तरह देख लें। और उसी के अनुसार अपना संतुलन बनाकर व्‍यवहार करें।
किसी भी एथलीट एक्टिविटी से पहले स्‍ट्रेचिंग व्‍यायाम जरूर करें।
संतुलन बनाये रखने के लिए जरूरी व्‍यायाम आपकी मदद कर सकते हैं।
अच्‍छी क्‍वालिटी के जूते पहनें जो आपके खेल और पैरों के लिहाज से अनुकूल हों।
अचानक तेज गति से न मुड़ें
दौड़, साइक्लिंग और स्‍वमिंग आदि से पैरों और टांगों को मजबूती प्रदान करने वाले व्‍यायाम करें।
अगर आपको एड़ी में कई बार मोच आ चुकी है, तो आपको स्‍ट्रेंथनिंग और बैलेंस एक्‍सरसाइज करनी होंगी।
आपको एड़ी को चोट से बचाने तथा उसे जल्‍द रिकवर करने के लिए ब्रेस बांधने की जरूरत होती है।
इलाज



एड़ी के दर्द का इलाज तीन तरह से किया जा सकता है। पहला है दर्द निवारक और सूजन उतारने वाली गोलियां। दूसरा है दर्द के स्थान पर स्टेरायड का इंजेक्शन। तीसरा है जूतों में ऐसा बदलाव जिससे दर्द वाली जगह पर कम से कम दबाव पड़े और घर्षण भी न्यूनतम रहे। जूतों में हील कप, स्कूप्ड हील पैड्स, साफ्ट कुशंड स्पंजी शू सोल अंदर से लगाए जाते हैं। बाजार में सिलिकॉन के बने शू इंसर्ट भी मिलते हैं। किसी मरीज की

किन्हीं विशेष परिस्थितियों में सर्जरी भी करना पड़ती है।
क्या करें-
पैरों के तले को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए जो कर सकते हैं वो करें। फर्श पर नंगे पैर चलने से बचें। घर में हमेशा नर्म स्पंजी चप्पलें पहनें। खेलकूद के वक्त हमेशा स्पोर्ट्स शूज पहनें।
एडी के दर्द का रामबाण इलाज-
एडी का दर्द अति कष्टकारी होता है, अक्सर ये दर्द महिलाओ को अधिक होता है. सारा दिन खड़ा रहना या ऊंची एड़ी की सैंडल पहनना या हड्डी का बढ़ना इसके मुख्य कारण हैं. ऐसे में ये रामबाण उपचार सौ फीसदी असरकारक हो सकता है. आइये जाने.
आवश्यक सामग्री.-
नौशादर – एक चौथाई छोटा चम्मच. (ये आपको किसी भी पंसारी से मिल जाएगी)
ग्वार पाठा (एलो वेरा ) – आधा चम्मच.
हल्दी – आधा चम्मच.
बनाने और लगाने की विधि-



नौशादर एक पीस (एक चौथाई छोटा चम्मच) , गवार पाठा – आधा चम्मच, और आधा चम्मच हल्दी। एक बर्तन में गवार पाठा धीमी आंच पर गरम करे, उस में नौशादर और हल्दी डाले, जब गवार पाठा पानी छोड़ने लगे तब उसे एक कॉटन के टुकड़े पर रख ले और थोड़ा ठंडा करे। जितना गरम सह सके, उसे एक कपडे पर रख कर एड़ी पर पट्टी की तरह बांध लीजिये, ये प्रयोग सोते समय करे क्योंकि इसे बाँध कर चलना नहीं है। ये प्रयोग कम से कम ३० दिन तक पुरे धैर्य से करे। ये प्रयोग बिलकुल सरल और सर्वश्रेष्ठ है, एड़ी के दर्द वाले व्यक्ति को इसे ज़रूर आज़माना चाहिए. जल्दी आराम के लिए आप साथ में एलो वेरा की सब्जी या घर पर बना हुआ जूस भी पी सकते हैं.

एड़ी में दर्द ऐसे करें उपाय -

कसरत करें – पैरो की उंगलियो को पॉइंट करने की एक कसरत होती है जो आपके लिए बेहद फायदे वाली हो सकती है ऐसे में आपको कुछ अधिक नहीं करना है आपको केवल अपनी टांग उठानी है और अपने पैरों को तब तक घुमाना है जब तक इनकी उँगलियाँ नीचे की और पॉइंट नहीं करने लगे फिर आप थोड़ी देर का ब्रेक लेकर एक बार फिर दूसरे पैर के साथ इसे दोहराईये इस से आपके पैर की मसल्स में खिंचाव बनता है और आपको एड़ी में दर्द से भी राहत मिलती है |
गेंद वाला व्यायाम – 
इसके अलावा पैर ने नीचे एक गेंद को घुमाकर भी आप एक साधारण सा उपाय कर सकते है यह एक मसाज की तरह आपके लिए काम करता है आप किसी हलकी या टेनिस वाली गेंद लेकर इसे अपने पैर के नीचे तीन मिनट तक घुमाएँ और फिर अपने दूसरे पैर के साथ भी ऐसा ही करें इस से आपको आपके पैर और एड़ी में दर्द में बड़ी वाली राहत मिलती है और सूकून भरा अहसास होता है आपको इस से |
शोर्ट फुलिंग करें -



आप इसके अलावा शोर्ट फुलिंग कसरत भी अपना सकते है जो एक तरह की साधारण कसरत है और आप बड़ी आसानी से इसे कर सकते है इसके लिए आपको केवल जूते खोलकर अपने पैरो की उँगलियों को नीचे की और खींचकर अपने पैर के ऑर्च को सिकोड़ना होता है इस से भी आपके पेरों की मसल्स को आराम मिलता है और आपके एड़ी में दर्द को इस से आराम मिलता है |
आराम फरमाएं -
किसी ऊँची जगह पर बैठकर आराम फरमाएं और कोई अपनी पसंद का गाना सुनते हुए अपने पैरो को लटका कर गोल गोल घुमाएँ और अपने पैरो की उंगलियो को अपनी तरफ खीचे और उसे बाद उसकी विपरीत दिशा में |
सुबह की करें अच्छी शुरुआत – 
सुबह की शुरुआत अच्छे से करें और सुबह की शुरुआत कैसे करें ये जानने के लिए आप यंहा क्लिक कर सकते है और साथ हर सुबह “काफ स्ट्रेचेज” करे जो इस तरह किया जाता है – दीवार के सामने सीधे खड़े हो जाएँ
एक्युप्रेशर की लें मदद – 
एक्युप्रेशर तकनीक का उपयोग करते हुए भी आप अपने पैरो में रक्तसंचार को सामान्य कर सकते है और एड़ी में दर्द से आराम पा सकते है और गर्म पानी से अपने पैरो को सेकने से भी आपको राहत मिल सकती है|



16.5.17

नसों में होने वाले दर्द से निजात पाने के तरीके


नर्व पेन या न्यूरॉल्जिया किसी खास नर्व में होता है। न्यूरॉल्जिया में जलन, संवेदनहीनता या एक से अधिक नर्व में दर्द फैलने की समस्या हो सकती है। न्यूरॉल्जिया से कोई भी नर्व प्रभावित हो सकती है।

नर्व के दर्द के कारण

ड्रग्स, रसायनों के कारण परेशानी, क्रॉनिक रिनल इनसफिशिएंशी, मधुमेह, संक्रमण, जैसे-शिंगल्स, सिफलिस और लाइम डिजीज, पॉरफाइरिया, नजदीकी अंगों (ट्यूमर या रक्त नलिकाएं) से नर्व पर दबाव पड़ना, नर्व में सूजन या तकलीफ, नर्व के लिए खतरे या गंभीर समस्याएं(इसमें शल्यक्रिया शामिल है), अधिकतर मामलों में कारण का पता नहीं चलता।
नर्व पेन एक जटिल और क्रॉनिक तकलीफदेह स्थिति है, जिसमें वास्तविक समस्या समाप्त हो जाने के बाद भी दर्द स्थायी रूप से बना रहता है। नर्व पेन में दर्द शुरू होने और रोग की पहचान होने में कुछ दिन से लेकर कुछ महीने लग सकते हैं। नर्व को थोड़ा सा भी नुकसान पहुंचने पर या पुराने चोट ठीक हो जाने पर भी दर्द शुरू हो सकता है।गर्दन, पीठ, हाथ या शरीर के किसी अन्य हिस्से की नस के दबने से होने वाला दर्द थोडा पीड़ादायक होता है | इससे आपके रोज़मर्रा के कामों में भी बाधा आ सकती है | जब चारों ओर उपस्थित ऊतक जैसे हड्डियाँ, कार्टिलेज, टेंडॉन्स या मांसपेशियां, नस को असामान्य रूप से दबाती हैं या फंस जाती हैं तब नस दबने पर दर्द होता है | 

नसों में दर्द होने वाले रोग का लक्षण:-

*नसों में दर्द होना और नसों में जलन होना|
*जिस भाग में दर्द हो रहा है उस भाग के मांसपेशियों में कमजोरी होना|
*अचानक नसों में दर्द होना|
*दबाने से या छूने से प्रभावित क्षेत्र में बहुत दर्द होना|
बार बार नसों में दर्द होना|नस दबने की या नसों में होने वाले दर्द की पहचान करें: जब कोई नस किसी प्रकार से क्षतिग्रस्त हो जाती है और अपने पूरे सिग्नल भेजने में असमर्थ हो जाती है तब नस में दर्द होता है | यह नस के दबने के कारण होता है जो हर्नियेटेड डिस्क, आर्थराइटिस या बोन स्पर (bone spur) के कारण हो सकता है | चोट लगने, गलत तरीके के पोस्चर से, बार-बार की गतिविधियों से, खेल और मोटापे जैसी स्थितियों और गतिविधियों से भी नसों में दर्द हो सकता है | पूरे शरीर में किसी भी जगह की नस दबाने से पीड़ा हो सकती है लेकिन ये आमतौर पर रीढ़ (स्पाइन), गर्दन, कलाई और कोहनियों में पाई जाती है |
इन स्थितियों के कारण सूजन आ जाती है जो आपकी नसों को संकुचित कर देती है और इससे नस दबने से दर्द होने लगता है |
*पोषक तत्वों की कमी और कमज़ोर स्वास्थ्य नस दबने के दर्द को और बढ़ा देते हैं |
केस की गंभीरता के आधार पर यह स्थिति परिवर्तनीय (रिवर्सेबल) या अपरिवर्तनीय (इर्रेवेर्सिबल) हो सकती है
लक्षणों को नोटिस करें: नस दबने से होने वाला दर्द अनिवार्य रूप से शरीर की तार प्रणाली में होने वाली शारीरिक बाधा है | नस दबने से होने वाले लक्षणों में सुन्नपन, हल्की सूजन, तेज़ दर्द, झुनझुनी, मांसपेशीय ऐंठन और मांसपेशीय दुर्बलता शामिल हैं | आमतौर पर नस के दबने का सम्बन्ध प्रभावित स्थान पर होने वाले तीव्र दर्द से होता है |
*


नस में अवरोध या दबाव होने के कारण नस शरीर से प्रभावी रूप से सिग्नल नहीं भेज पाती इसीलिए ये लक्षण उत्पन्न होते हैं

*पर्याप्त नींद लें: अपने शरीर के नुकसान की मरम्मत के लिए कुछ घंटे अतिरिक्त रूप से सोना एक प्राकृतिक तरीका है | अगर ज़रूरत हो तो दर्द के कम होने या बेहतर अनुभव होने तक हर रात कुछ अतिरिक्त घंटे सोयें | कुछ घंटे अतिरिक्त रूप से आराम करने से आपके शरीर और चोटिल हिस्से को लक्षणों को कम करने में मदद मिलेगी |
*प्रभावित हिस्से का अत्यधिक उपयोग न करने से यह सीधा प्रभाव दिखाता है | अगर आप ज्यादा सोते हैं तो कम हिलते-डुलते हैं | इससे न सिर्फ आप प्रभावित हिस्से का उपयोग कम कर पाएंगे बल्कि सोने से आपके शरीर को खुद को ठीक करने के लिए अधिक समय भी मिल जायेगा |

प्रभावित स्थान का अत्यधिक उपयोग न करें: 

जब आपकी नस में होने वाले दर्द की डायग्नोसिस हो जाए तो आपको अपनी देखभाल करना शुरू कर देना चाहिए | आपको प्रभावित हिस्से से कोई काम नहीं लेना चाहिए | मांसपेशियों, जोड़ों और टेंडॉन्स के बार-बार उपयोग से नस में होने वाले दर्द की स्थिति और खराब हो जाएगी क्योंकि प्रभावित हिस्से लगातार सूजे रहते हैं और नस को दबाते रहते हैं | किसिस भी दबी हुई नस के दर्द में तुरंत थोडा आराम पाने का सबसे आसान तरीका यह है कि प्रभावित नस और उसके चारों और के हिस्सों को सूजन और दबाव पूरी तरह से शांत होने तक आराम दिया जाये |
*नस में पीड़ा वाले स्थान को मोड़ना या हिलाना नहीं चाहिए अन्यथा नस में और अधिक दर्द हो सकता है | विशेष प्रकार की गतियों से आपके लक्षण तुरंत और अधिक ख़राब हो सकते हैं इसलिए यथासंभव प्रभावित स्थान को हिलाने या मोड़ने से बचना चाहिए |
*अगर किसी विशेष गति या स्थिति के कारण लक्षण और दर्द और अधिक बढ़ जाए तो चोटिल स्थान को अलग रखें और उसे हिलाने से बचें |
*कार्पल टनल (carpal tunnel) के केस में, जो कि एक आम चोट होती है जो नस के दबने के कारण होती है, सोते समय अपनी कलाई सीधी रखें और जोड़ों को मोड़ें नहीं, इससे हर प्रकार के संकुचन में बहुत आराम मिलेगा
एक ब्रेस (brace) या स्पलिंट (splint) का उपयोग करें: कई बार आप चाह कर भी अपने काम, स्कूल या अन्य जिम्मेदारियों के कारण प्रभावित नस को पर्याप्त आराम नहीं दे पाते | अगर आपके साथ भी यही स्थिति हो तो आप प्रभावित हिस्से को स्थिर रखने के लिए ब्रेस या स्पलिंट पहन सकते हैं | इससे आप अपने बुनियादी कामों को आसानी से कर सकेंगे |
उदाहरण के लिए, अगर आपकी गर्दन की नस के पीड़ा हो तो एक नैक-ब्रेस (neck-brace) के उपयोग से पूरे दिन मांसपेशियों को स्थिर रखने में मदद मिलेगी |
*अगर आपकी नस में दर्द कार्पल टनल सिंड्रोम के कारण है तो कलाई या कोहनी के ब्रेस का उपयोग करें जिन्हें वोलर कार्पल स्पलिंट भी कहा जाता है जिससे आप अनावश्यक हिलने से बचते हैं |[६]
ब्रेसेस कई थोक दवाओं की दुकानों पर मिल जाते हैं | ब्रेस के साथ दिए गये निर्देशों का पालन करें | अगर आपको इस विषय में कोई शंका या सवाल हो तो सहयता के लिए डॉक्टर से सलाह लें
दवाएं लें: आमतौर पर पाई जाने वाली कई दर्द निवारक दवाएं नस के दबे होने से होने वाले दर्दको ठीक करने के लिए उपयुक्त होती हैं | सूजन और दर्द को कम करने के लिए नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) जैसे इबुप्रोफेन (ibuprofen) और एस्पिरिन (aspirin) लें |

आइस और हीट का उपयोग करें: 

नस दबने से अक्सर सूजन आ जाती है और सूजन नस को और दबाती है | सूजन कम करने के लिए और प्रवाह को बढाने के लिए प्रभावित हिस्से पर आइस और हीट का उपयोग बारी-बारी से करें, इस विधि को हाइड्रोथेरेपी कहते हैं | दिन में 3-4 बार 15 मिनट के लिए आइस लगाने से सूजन को कम करने में मद मिलती है | इसके बाद, प्रभावित हिस्से पर सप्ताह में 4-5 रातों तक 1 घंटे हीट पैड लगाने पर लक्षणों में सुधार आता है |
प्रभावित हिस्से पर या तो स्टोर से ख़रीदे हुए आइस पैक को रखें या घर पर बनाये आइस पैक का उपयोग हल्के दबाव के साथ करें | हल्का दबाव प्रभावित हिस्से को ठंडक देने में मदद करेगा | अपनी स्किन और आइस पैक के बीच एक नर्म कपडा रखें जिससे ठण्ड से स्किन को नुकसान नहीं पहुंचेगा | इसे 15 मिनट से ज्यादा देर उपयोग न करें अन्यथा रक्त प्रवाह धीमा हो जाता है जिससे दर्द देर से ठीक होता है |
आइस पैक के उपयोग के बाद रक्त प्रवाह को बढाने के लिए हॉट वाटर बोतल या एक हीट पैड का उपयोग करें जिससे नसों को जल्दी ठीक करने में मदद मिल सकती है | एक घंटे से अधिक हीट का उपयोग न करें अन्यथा सूजन और बढ़ सकती है |
*आप गर्म पानी से स्नान कर सकते हैं या फिर प्रभावित हिस्से को गर्म पानी में डुबाकर रख सकते हैं जिससे प्रभावित हिस्से की मांसपेशियों को आराम मिलता है और रक्त प्रवाह बढ़ जाता है|
*मालिश करें: नस के होने वाले दर्द पर दबाव डालने से तनाव को मुक्त करने और दर्द कम करने में मदद मिल सकती है | पूरे शरीर की मालिश कराने से सभी मांसपेशियों को शिथिलता को बढाने में और साथ ही प्रभावित हिस्से को आराम देने में मदद मिलती हैं | आप प्रभावित नस के नजदीकी हिस्से को टारगेट करके भी हल्की मालिश कर सकते हैं | इससे विशेषरूप से अधिक लाभ मिलेगा और नस को ठीक करने में भी मदद मिलेगी |
थोडा आराम पाने के लिए आप प्रभावित हिस्से की मालिश खुद भी कर सकते हैं | रक्त प्रवाह को बढाने और नस में दबाव या संकुचन उत्पन्न करने वाली मांसपेशियों को ढीला करने के लिए अपनी अँगुलियों से प्रभावित हिस्से को धीरे-धीरे दबाएँ |
*तीव्र डीप-टिश्यू मसाज या अधिक दबाव डालने से बचें क्योंकि इससे अनावश्यक दबाव पड़ेगा और नसों का दर्द और बढ़ जायेगा

कम प्रभाव डालने वाली एक्सरसाइज करें: 

आप पानी दबी हुई नस को आराम दे सकते हैं और रक्त के प्रवाह को सुचारू बनाये रख सकते हैं | अच्छे रक्त और ऑक्सीजन के प्रवाह और मांसपेशियों के टोन होने से सच में दबी हुई नस से होने वाले दर्द को ठीक करने में मदद मिल सकती है | आपको दैनिक गतिविधियाँ सावधानीपूर्वक करना चाहिए और केवल तभी करना चाहिए जब ये गतिविधियाँ आपके लिए आरामदायक हों | तैरने या थोडा टहलने की कोशिश करें | इससे आपको मांसपेशियों को स्वाभाविक रूप से हिलाने में मदद मिलेगी जबकि प्रभावित नस के आस-पास के जोड़ों और टेंडन पर बहुत कम मात्रा में दबाव डाला जाता है |
असक्रियता, मांसपेशियों की शक्ति को कम कर देती है और प्रभावित नस के ठीक होने की प्रक्रिया के समय को और बढ़ा देती है 
*एक्सरसाइज या आराम करते समय सही पोस्चर बनाये रखें | इससे प्रभावित नस की वास्तविक स्थिति पर तनाव को कम करने में मदद मिलेगी |
*एक स्वस्थ वज़न बनाये रखने से नस दबने से होने वाली पीड़ा से बचा जा सकता है
*कैल्शियम अंतर्ग्रहण को बढायें: नस दबने से होने वाली परेशानी का एक मुख्य कारण कैल्शियम की कमी होता है | आपको कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे दूध, पनीर, दही और हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, केल खाना शुरू कर देना चाहिए | इससे न सिर्फ आपकी नस के दर्द में लाभ मिलेगा बल्कि आपके सम्पूर्ण स्वास्थ्य में सुधार आएगा |



*आप कैल्शियम को सप्लीमेंट के रूप में भी ले सकते हैं | इन्हें आप की हेल्थ फ़ूड स्टोर्स, जनरल स्टोर्स या फार्मेसी से खरीद सकते हैं | अगर आपको कैल्शियम के डोज़ के बारे में शंका हो तो पैकेज पर लिखे निर्देशों का पालन करें या डॉक्टर से सलाह लें | सिफारिश किये गये डोज़ से अधिक मात्रा न लें |

पैकेज्ड फूड्स के लेवल चेक करें कि वे कैल्शियम फोर्टीफाइड हैं या नहीं | कई ब्रांड्स अपने सामान्य प्रोडक्ट्स के साथ ही कैल्शियम से भरपूर प्रोडक्ट्स भी प्रदान करते हैं |

पोटैशियम से भरपूर खाद्य पदार्थ खाएं: 

पोटैशियम सेल मेटाबोलिज्म में प्रमुख भूमिका निभाते हैं | चूँकि इसकी कमी से नसों के बीच के बंधन कमज़ोर हो जाते हैं इसलिए कभी-कभी पोटैशियम की कमी नस दबने से होने वाले लक्षणों में योगदान दे सकती है | डाइट में पोटैशियम की मात्रा बढाने से नसों को सही संतुलन के साथ काम करने और लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है |
अखरोट, केला और नट्स पोटैशियम से भरपूर होते हैं | स्किम मिल्क और ऑरेंज जूस जैसे पेय पदार्थ पीने से पोटैशियम के अवशोषण को बढाने में मदद मिल सकती है |
एक स्वस्थ डाइट के साथ ही कैल्शियम के समान पोटैशियम सप्लीमेंट भी नियमित रूप से लिए जा सकते हैं | अगर आप कोई अन्य दवा लेते हों या आपको कोई मेडिकल प्रॉब्लम हो (विशेषरूप से किडनी से सम्बंधित) तो पोटैशियम सप्लीमेंट लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लें | इन सप्लीमेंट को लेने की सिफारिश करने से पहले आपके डॉक्टर आपके रक्त में पोटैशियम के लेवल को चेक कर सकते हैं |
पोटैशियम की कमी डॉक्टर द्वारा डायग्नोज़ की जाती है | पोटैशियम की कमी को दूर करने के लिए डॉक्टर इसकी कमी के कारण का मूल्यांकन करके पोटैशियम बढाने वाली डाइट लेने की सिफारिश कर सकते हैं | अगर आपको इससे कोई परेशानी होने लगे तो डॉक्टर से सलाह लें

नसों के दर्द के देसी घरेलू उपचार 



पुदीने के तेल से नसों के दर्द का इलाज
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यदि आपके नसों में बहुत दर्द होता है तो आपको अपने दर्द से प्रभावित क्षेत्र में पुदीने के तेल से मालिश करे| इससे आपको नसों के दर्द में बहुत लाभ होगा|

*सरसो के तेल से नसों के दर्द का इलाज:-

सरसों के तेल से नसों के दर्द से छुटकरा पा सकते है| सरसों के तेल को गरम करके इससे मालिश करे| ऐसा करने से आपको निश्चित ही अभ होगा|
*लेवेंडर के फुल तथा सुइया को नहाने के पानी में मिला कर नहने से बहुत ही लाभ होता है|
*यदि आपकी नसों में बहुत दर्द होता है तो आपको नियमित व्यायाम करना चाहिए जिससे नसों को बहुत लाभ होता है और इसमें पड़ी हुई गांठ भी धीरे -2 ठीक हो जाती है|
*भ्रस्तिका प्राणायाम करने से भी नसों के रोगी को बहुत लाभ होता है|
*अनुलोम विलोम प्राणायाम करने से भी नसों में होने वाली दिक्कत को एक दम से दूर किया जा सकता है और बहुत दिनों तक करेंगे तो ये बीमारी जड़ से ख़त्म हो जाएगी|
*यदि आप बाबा रामदेव के बताये गये व्यायाम को रोज करेंगे तो आपको निश्चित ही फायदा होगा| इसी लिए आपको बाबा रामदेव के बताये हुए नसों से रिलेटेड व्यायाम को रोज करना चाहिए| पुदीने के तेल को नसों में ज़रूर लगाना चाहिए क्युकी पुदीना इसका रामबाण इलाज है|