30.11.21

चमत्कारिक ,रहस्यपूर्ण जड़ी-बूटियाँ //wondrous mysterious herbs

 आयुर्वेद के अलावा भारत की स्थानीय संस्कृति में कई चमत्कारिक पौधों के बारे में पढ़ने और सुनने को मिलता है। एक ऐसी जड़ी है जिसको खाने से जब तक उसका असर रहता है, तब तक व्यक्ति गायब रहता है। एक ऐसी जड़ी-बूटी है जिसका सेवन करने से व्यक्ति को भूत-भविष्‍य का ज्ञान हो जाता है। कुछ ऐसे भी पौधे हैं जिनके बल पर स्वर्ण बनाया जा सकता है। इसी तरह कहा जाता है कि धन देने वाला पौधा जिनके भी पास है, वे धनवान ही नहीं बन सकते बल्कि वे कई तरह की चमत्कारिक सिद्धियां भी प्राप्त कर सकते हैं। सचमुच होते हैं इस तरह के पौधे व जड़ी-बूटियां और क्या आज भी पाए जाते हैं? हो सकता है कि आपके आसपास ही हो इसी तरह का पौधा या ढूंढने से मिल जाए आपको ये चमत्कारिक पौधे। तब तो आपको हर तरह की सुख और सुविधाएं प्राप्त हो सकती हैं। जड़ी-बूटियों के माध्यम से धन, यश, कीर्ति, सम्मान आदि सभी कुछ पाया जा सकता है।


1. सोमवल्ली :
प्राचीन ग्रंथों एवं वेदों में सोमवल्ली के महत्व एवं उपयोगिता का व्यापक उल्लेख मिलता है। अनादिकाल से देवी-देवताओं एवं मुनियों को चिरायु बनाने और उन्हें बल प्रदान करने वाला पौधा है सोमवल्ली। बताया जाता है कि रीवा जिले के घने जंगलों में यह पौधा आज भी पाया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम Sarcostemma acidum बताया जाता है। इसकी कई तरह की प्रजातियां होती हैं।प्राचीन ग्रंथों व वेद-पुराणों में सोमवल्ली पौधे के बारे में कहा गया है कि इस पौधे के सेवन से शरीर का कायाकल्प हो जाता है। देवी-देवता व मुनि इस पौधे के रस का सेवन अपने को चिरायु बनाने एवं बल सामर्थ्य एवं समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया करते थे। इस पौधे की खासियत है कि इसमें पत्ते नहीं होते। यह पौधा सिर्फ डंठल के आकार में लताओं के समान है। हरे रंग के डंठल वाले इस पौधे को सोमवल्ली लता भी कहा जाता है।ऋग्वेद में सोमरस के बारे में कई जगह वर्णन है। एक जगह पर सोम की इतनी उपलब्धता और प्रचलन दिखाया गया है कि इंसानों के साथ-साथ गायों तक को सोमरस भरपेट खिलाए और पिलाए जाने की बात कही गई है।सोम को स्वर्गीय लता का रस और आकाशीय चन्द्रमा का रस भी माना जाता है। ऋग्वेद अनुसार सोम की उत्पत्ति के दो प्रमुख स्थान हैं- 1. स्वर्ग और 2. पार्थिव पर्वत।सोम की लताओं से निकले रस को सोमरस कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि यह न तो भांग है और न ही किसी प्रकार की नशे की पत्तियां। सोम लताएं पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जाती हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेन्द्र गिरि, विंध्याचल, मलय आदि अनेक पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाए जाने के जिक्र है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह गहरे बादामी रंग का पौधा है।
इफेड्रा :

 कुछ वर्ष पहले ईरान में इफेड्रा नामक पौधे की पहचान कुछ लोग सोम से करते थे। इफेड्रा की छोटी-छोटी टहनियां बर्तनों में दक्षिण-पूर्वी तुर्कमेनिस्तान में तोगोलोक-21 नामक मंदिर परिसर में पाई गई हैं। इन बर्तनों का व्यवहार सोमपान के अनुष्ठान में होता था। यद्यपि इस निर्णायक साक्ष्य के लिए खोज जारी है। हालांकि लोग इसका इस्तेमाल यौनवर्धक दवाई के रूप में करते हैं।

2. तेलिया कंद :
इसकी जड़ों से तेल का रिसाव होता रहता है इसीलिए इसे तेलिया कंद कहते हैं। माना जाता है कि यह पौधा सोने के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कहते हैं कि यह किसी विशेष निर्माण विधि से पारे को सोने में बदल देता है, लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता। हालांकि माना जाता है कि इसका मुख्य गुण सांप के जहर को काटना है।पहले प्रकार को पुरुष और दूसरे को स्त्रैण तेलिया कंद कहते हैं। इसमें सिर्फ पुरुष प्रकार के तेलिया कंद में ही गुण होते हैं। इसकी पहचान यह है कि इसके कंद को सूई चुभो देने भर से ही तत्काल वह गलकर गिर जाता है। इसका कंद शलजम जैसा होता है। यह पौधा सर्पगंधा से मिलते-जुलते पत्ते जैसा होता है।माना जाता है कि तेलिया कंद का पौधा 12 वर्ष उपरांत अपने गुण दिखाता है। प्रत्येक वर्षाकाल में इसका पौधा जमीन से फूटता है और वर्षाकाल समाप्त होते ही समाप्त हो जाता है। इस दौरान इसका कंद जमीन में ही सुरक्षित बना रहता है। इस तरह जब 12 वर्षाकाल का चक्र पूरा हो जाता है, तब यह पौधा अपने चमत्कारिक गुणों से संपन्न हो जाता है। इसके आसपास की जमीन पूर्णत: तेल में लबरेज हो जाती है
3.‘संजीवनी बूटी’ :

 कुछ विद्वान इसे ही ‘संजीवनी बूटी’ कहते हैं। सोम को न पहचान पाने की विवशता का वर्णन रामायण में मिलता है। हनुमान दो बार हिमालय जाते हैं, एक बार राम और लक्ष्मण दोनों की मूर्छा पर और एक बार केवल लक्ष्मण की मूर्छा पर, मगर ‘सोम’ की पहचान न होने पर पूरा पर्वत ही उखाड़ लाते हैं। दोनों बार लंका के वैद्य सुषेण ही असली सोम की पहचान कर पाते हैं।

4. हत्था जोड़ी :
माना जाता है कि हत्था जोड़ी को अपने पास रखने से लोग आपको सम्मान देने लगते हैं। यह एक विशेष प्रकार का पौधा होता है जिसकी जड़ खोदने पर उसमें मानव भुजा जैसी दो शाखाएं निकलती हैं इसके सिरे पर पंजा जैसा बना होता है। यह पूर्णत: मानव हाथ के समान होता है इसीलिए इसे हत्था जोड़ी कहते हैं।दरअसल, अंगुलियों के रूप में उस पंजे की आकृति ठीक इस तरह की होती है, जैसे कोई मुट्ठी बांधे हो। जड़ निकलकर उसकी दोनों शाखाओं को मोड़कर परस्पर मिला देने से करबद्ध की स्थिति बनती है। इसके पौधे प्राय: मध्यप्रदेश के जंगलों में पाए जाते हैं।हत्था जोड़ी बहुत ही शक्तिशाली व प्रभावकारी है। यह एक जंगली पौधे की जड़ होती है। माना जाता है कि मुकदमा, शत्रु संघर्ष, दरिद्रता आदि के निवारण में इसके जैसा चमत्कारी पौधा कोई दूसरा नहीं। तांत्रिक विधि में इसके वशीकरण के उपयोग किए जाते हैं। हालांकि इसमें कितनी सचाई है, यह हम नहीं जानते।माना जाता है कि जिसके पास यह होती है उस पर मां चामुण्डा की असीम कृपा स्वत: ही होने लगती है और ऐसे व्यक्ति को किसी भी कार्य में सफलता मिलती रहती है। यह धन-संपत्ति देने वाली बहुत ही चमत्कारी जड़ी मानी गई है। कहा जाता है कि इसे जंगल में से लाने के पूर्व इसको किसी विशेष दिन जाकर निमंत्रण दिया जाता है, तब उक्त दिन जाकर उसको लाया जाता है फिर किसी खास मंत्र द्वारा इसे सिद्ध करने के बाद ही पास में रखा जाता है।सिद्ध करने के बाद इसे लाल रंग के कपड़े में बांधकर घर में किसी सुरक्षित स्थान में अथवा तिजोरी में रख दिया जाता है। इससे आय में वृद्घि होती है और सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है।
 

5. ब्राह्मी :
ब्राह्मी को बुद्धि और उम्र को बढ़ाने वाला माना गया है। ब्राह्मी तराई वाले स्थानों पर उगती है।यह बुखार, स्मृतिदोष, सफेद दाग, पीलिया, प्रमेह और खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन में भी लाभदायक है। ब्राह्मी का उपयोग दिल और दिमाग को संतुलित करने के लिए लिए भी किया जाता है।कहा जाता है कि इसका सही मात्रा के अनुसार सेवन करने से निर्बुद्ध, त्रिकालदर्शी यानी भूत, भविष्य और वर्तमान सब दिखाई देने लगता है।जटामासी, शंखपुष्पी, जपा, अखरोट की तरह ब्राह्मी भी दिमाग और नेत्र के लिए बहुत ही उपयोगी है। ब्राह्मी नाम से कई तरह के टॉनिक बनते हैं। ब्राह्मी दरअसल एक जड़ी है, जो दिमाग के लिए बहुत ही उपयोगी है। यह दिमाग को शांत कर स्थिरता प्रदान करती है, साथ ही यह याददाश्त बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।योग और आयुर्वेद के अनुसार बाह्मी से हमारे चक्र भी सक्रिय होते हैं। माना जाता है कि इससे दिमाग के बाएं और दाएं हेमिस्फियर संतुलित रहते हैं। ब्राह्मी में एंटी ऑक्सीडेंट तत्व होते हैं जिससे दिमाग की शक्ति बढ़ने लगती है।
सेवन : 

आधे चम्मच ब्राह्मी के पावडर को गरम पानी में मिला लें और स्वाद के लिए इसमें शहद मिला लें और मेडिटेशन से पहले इसे पीएं तो लाभ होगा। इसके 7 पत्ते चबाकर खाने से भी वही लाभ मिलता है।

6. पलाश:
पलाश के फूल को टेसू का फूल कहा जाता है। इसे ढाक भी कहा जाता है। यह बसंत ऋ‍तु में खिलता है। पलाश 3 प्रकार का होता है- एक वह जिसमें सफेद फूल उगते हैं और दूसरा वह जिसमें पीले फूल लगते हैं और तीसरा वह जिसमें लाल-नारंगी फूल लगते हैं। माना जाता है कि सफेद पलाश के फूल की एक गूटिका बनती है जिसे मुंह में रखने के बाद आदमी तब तक गायब रहता है जब तक की गूटिका पूर्णत: गल नहीं जाए।
 
तीनों ही तरह के पलाश के कई चमत्कारिक गुण हैं। माना जाता है कि सफेद पलाश के पत्तों से पुत्र की प्राप्ति की जा सकती है, जबकि इसके पौधे के घर में रहने से धन और समृद्धि बढ़ती है।पलाश के पत्ते, डंगाल, फल्ली तथा जड़ तक का बहुत ज्यादा महत्व है। पलाश के पत्तों का उपयोग ग्रामीण दोने-पत्तल बनाने के लिए करते हैं जबकि इसके फूलों से होली के रंग बनाए जाते हैं। हालांकि इसके फूलों को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक बढ़ती है। पलाश की फलियां कृमिनाशक का काम करती हैं। इसके उपयोग से बुढ़ापा भी दूर रहता है। इसके फूल के उपयोग से लू को भगाया जा सकता है, साथ ही त्वचा संबधी रोग में भी यह लाभदायक सिद्ध हुआ है।इसके  पांचों अंगों- तना, जड़, फल, फूल और बीज से दवाएं बनाने की विधियां दी गई हैं। इस पेड़ से गोंद भी मिलता है जिसे ‘कमरकस’ कहा जाता है। इससे वीर्यवान बना जा सकता है। पलाश पुष्प पीसकर दूध में मिलाकर गर्भवती माताओं को पिलाने से बलवान संतान का जन्म होता है।सफेद पलाश के फूल, चांदी की गणेश प्रतिमा व चांदी में मड़े हुए एकाक्षी नारियल को अभिमंत्रित कर तिजोरी में रखें। इससे धन-संपत्ति बढ़ती है। माना जाता है कि पलाश के पीले फूल से सोना बनाया जा सकता है। प्राचीन साहित्य में इसका उल्लेख मिलता है।

7. बांदा :
बांदा, वांदा अथवा बंदाल नाम की परोपजीवी वनस्पति प्रात: सभी बड़े वृक्षों पर उग जाती है, जैसे आम, पीपल, महुआ, 
जामुन आदि। इसके पतले, लाल गुच्छेदार फूल और मोटे कड़े पत्ते पीपल के पत्ते के बराबर होते हैं। हालांकि बहुत से अलग-अलग भी बांदा होते हैं, जैसे पीपल का पेड़ किसी भी दूसरे पेड़ पर उग आता है तो उसे पीपल का बांदा कहते हैं। इसी तरह नीम, जामुन आदि के बांदा भी होते हैं। तंत्रशास्त्र के अनुसार प्रत्येक पेड़ पर उगा बांधा एक विशेष फल देता है।
बांदा का धार्मिक और कई मामलों में तांत्रिक महत्व भी है। कहते हैं कि भरणी नक्षत्र में कुश का वांदा लाकर पूजा के स्थान पर रखने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं।
पुष्प नक्षत्र में इमली का वांदा लाकर दाहिने हाथ में बांधने से कंपन के रोग में आराम मिलेगा।
मघा नक्षत्र में हरसिंगार का वांदा लाकर घर में रखने से समृद्धि एवं संपन्नता में वृद्धि होती है।
विशाखा नक्षत्र में महुआ का वांदा लाकर गले में धारण करने से भय समाप्त हो जाता है। डरावने सपने नहीं आते हैं। शक्ति (पुरुषत्व) में वृद्धि होती है।
बरगद का बांदा बाजू में बांधने से हर कार्य में सफलता मिलती है और कोई आपको हानि नहीं पहुंचा सकता।
अनार का बांदा पूजा करने के बाद घर में रखने से किसी की बुरी नजर नहीं लगती और न ही भूत-प्रेत आदि नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश होता है।
बेर के बांदे को विधिवत तोड़कर लाने के पश्चात देव प्रतिमा की तरह इसको स्नान करवाएं व पूजा करें। इसके बाद इसे लाल कपड़े में बांधकर धारण कर लें। इस प्रकार आप जो भी इससे मांगेंगे, वह सब आपको प्राप्त होगा।हरसिंगार के बांदे को पूजा करने के बाद लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रखें तो आपको कभी धन की कमी नहीं होगी। आम के पेड़ के बांदे को भुजा पर धारण करने से कभी भी आपकी हार नहीं होती और विजय प्राप्त होती है।

8. श्वेत अपराजिता :

श्वेत अपराजिता का पौधा मिलना कठिन है। हालांकि नीले रंग का आसानी से मिल जाता है। श्वेत आंकड़ा और लक्ष्मणा का पौधा भी श्वेत अपराजिता के पौधे की तरह धनलक्ष्मी को आकर्षित करने में सक्षम है। इसके सफेद या नीले रंग के फूल होते हैं। अक्सर सुंदरता के लिए इसके पौधे को बगीचों में लगाया जाता है। इसमें बरसात के सीजन में फलियां और फूल लगते हैं।
संस्कृत में इसे आस्फोता, विष्णुकांता, विष्णुप्रिया, गिरीकर्णी, अश्वखुरा कहते हैं जबकि हिन्दी में कोयल और अपराजिता। बंगाली में भी अपराजिता, मराठी में गोकर्णी, काजली, काली, पग्ली सुपली आदि कहा जाता है। गुजराती में चोली गरणी, काली गरणी कहा जाता है। तेलुगु में नीलंगटुना दिटेन और अंग्रेजी में मेजरीन कहा जाता है।दोनों प्रकार की कोयल (अपराजिता), चरपरी (तीखी), बुद्धि बढ़ाने वाली, कंठ (गले) को शुद्ध करने वाली, आंखों के लिए उपयोगी होती है। यह बुद्धि या दिमाग और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली है तथा सफेद दाग (कोढ़), मूत्रदोष (पेशाब की बीमारी), आंवयुक्त दस्त, सूजन तथा जहर को दूर करने वाली है।

9. कीड़ा घास :

कीड़े जैसी दिखने के कारण उत्तराखंड के लोग इसे कीड़ा घास कहते हैं। तिब्बती भाषा में इसको ‘यारसाद्-गुम-बु’ कहा जाता है जिसका अर्थ होता है ग्रीष्म ऋतु में घास और शीत ऋतु में जंतु। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार यर्सी गंबा हिमालयी क्षेत्र की विशेष प्रकार एवं यहां पाए जाने वाले एक कीड़े के जीवनचक्र के अद्भुत संयोग का परिणाम है।
कहते हैं कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ एवं चमोली जिले के 3,500 मीटर की ऊंचाई के एल्पाइन बुग्यालों में यह घास पाई जाती है। तिब्बती साहित्य के अनुसार यहां के चरवाहों ने देखा कि जंगलों में चरने वाले उनके पशु एक विशेष प्रकार की घास, जो कीड़े के समान दिखाई देती है, को खाकर हृष्ट-पुष्ट एवं बलवान हो जाते हैं। धीरे-धीरे यह घास एक चमत्कारी औषधि के रूप में अनेक बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग होने लगी।
यह नारंगी रंग की एक पतली जड़ की तरह दिखाई देती है जिसका भीतरी भाग सफेद होता है। इसका ऊपरी भाग एक स्प्रिंग की भांति घुमावदार होता है जिस पर झुर्रियां होती हैं। इन झुर्रियों के कारण ही यह इल्लड़ जैसी लगती है। इन झुर्रियों की मुख्य रचना में 7-8 आकृतियां झुंड के रूप में मिलती हैं। इनमें बीच की रचनाएं बड़ी एवं महत्वपूर्ण होती हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार ये झुंड वस्तुत: कार्डिसेप्स नामक फफूंद के सूखे हुए अवशेष होते हैं। उनके अनुसार इस घास में एस्पार्टिक एसिड, ग्लूटेमिक एसिड, ग्लाईसीन जैसे महत्वपूर्ण एमीनो एसिड तथा कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम जैसे अनेक प्रकार के तत्व, अनेक प्रकार के विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसको एकत्रित करने के लिए अप्रैल से लेकर जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। अगस्त के महीने से धीरे-धीरे प्राकृतिक रूप से इसका क्षय होने लगता है और शरद ऋतु के आने तक यह पूर्णतया विलुप्त हो जाती है।यह औषधि हृदय, यकृत तथा गुर्दे संबंधी व्याधियों में उपयोगी सिद्ध हुई है। शरीर के जोड़ों में होने वाली सूजन एवं पीड़ा तथा जीर्ण रोगों जैसे अस्थमा एवं फेफड़े के रोगों में इसका प्रयोग लाभकारी होता है। इसका प्रयोग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। उम्र के साथ-साथ बढ़ने वाली हृदय एवं मस्तिष्क की रक्त वाहिनियों की कठोरता को भी यह कम करता है। कुल मिलाकर यह आपकी बढ़ती आयु को रोकने में सक्षम है।

10. सिद्धि देने वाली जड़ी-बूटी :
गुलतुरा (दिव्यता के लिए), तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक), शल (दरिद्रता नाशक), भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक), विष्णुकांता (शस्त्रु नाशक), मंगल्य (तांत्रिक क्रिया नाशक), गुल्बास (दिव्यता प्रदानकर्ता), जिवक (ऐश्वर्यदायिनी), गोरोचन (वशीकरण), गुग्गल (चामंडु सिद्धि), अगस्त (पितृदोष नाशक), अपमार्ग (बाजीकरण)।बांदा (चुम्बकीय शक्ति प्रदाता), श्‍वेत और काली गुंजा (भूत पिशाच नाशक), उटकटारी (राजयोग दाता), मयूर शिका (दुष्टात्मा नाशक) और काली हल्दी (तांत्रिक प्रयोग हेतु) आदि ऐसी अनेक जड़ी-बूटियां हैं, जो व्यक्ति के सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन को साधने में महत्वपूर्ण मानी गई हैं।

11. भूख-प्यास को रोके जड़ी :

वेदादि ग्रंथों के अलावा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जड़ी-बूटी, दूध आदि से निर्मित ऐसे आहार का विवरण है जिसके सेवन के बाद पूरे महीने भोजन की जरूरत नहीं पड़ती।
कहते हैं कि आंधीझाड़ा से अत्यधिक भूख लगने (भस्मक रोग) और अत्यधिक प्यास लगने का रोग समाप्त किया जा सकता है। अर्थात जो लोग ज्यादा खाने के शौकीन हैं और मोटापे से ग्रस्त हैं वे इस जड़ी का उपयोग कर भूख को समाप्त कर सकते हैं।इसे संस्कृत में अपामार्ग, हिन्दी में चिरचिटा, लटजीरा और आंधीझाड़ा कहते हैं। अंग्रेजी में इसे रफ चेफ ट्री नाम से जाना जाता है। यह पौधा 1 से 3 फुट ऊंचा होता है और भारत में सब जगह घास के साथ अन्य पौधों की तरह पैदा होता है। खेतों की बागड़ के पास, रास्तों के किनारे, झाड़ियों में इसे सरलता से पाया जा सकता है। 
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कंधा खिसकने के प्रभावी घरेलू उपचार:home remedies for dislocated shoulder





 कंधे खिसकने या कंधे उतरने की शिकायत अक्सर सुनने में आती है। आमतौर पर उम्रदराज़ लोगों में ये समस्या हड्डियों के कमज़ोर होने के कारण होती है थोड़ी से मेहनत या गलत ठंग से उठने-बैठने पर बुज़ुर्ग लोगों के कंधे उतर जाते हैं। लेकिन आजकल बच्चे और युवा पीढ़ी भी इस समस्या से अछुते नहीं हैं। अक्सर युवा पीढ़ी फिट व आकर्षक दिखने के लिए जिम में कड़ी मेहनत करती है जहां उन्हे भारी डंबल उठाने होते हैं जिसके कारण कंधे पर जोर पड़ता है और कंधा खिसक जाता है। इसके अलावा कई बार खेल-कूद, एक्सीडेंट या किसी चोट के दौरान हमारे कंधों को बड़ा नुकसान पहुंचता है जिससे हमारे कंधे अपनी जगह से खिसक जाते हैं।
 तकिया ( Pillow ) : अक्सर गर्दन और कंधे में दर्द का कारण इस्तेमाल किया जाने वाला तकिया भी होता है. कुछ लोग सख्त तकिया और करवट लेकर सोते है, जिससे उनकी गर्दन मुड जाती है और उनकी गर्दन व कंधे की नसे खिंच जाती है. इसलिए सोते वक़्त आपको नर्म तकिये को ही प्रयोग में लाना चाहियें और तकिये की ऊँचाई को भी सामान्य रखना चाहियें
 हर छोटी मोच या चोट के लिए डॉक्टर के पास जाना या एलोपैथिक ट्रीटमेंट करवाना ज़रूरी नहीं होता है। खासकर कंधे खिसकने जैसी समस्या को आप कुछ घरेलू इलाज से ही ठीक कर सकते हैं। क्योंकि एलोपैथिक दवाइयां बीमारी और चोट को दबाती है इसका इलाज नहीं करती है। लेकिन घरेलू उपाय बीमारी की जड़ पर काम करके रोग को जड़ से खत्म करने का प्रयास करती है घरेलू उपाय की एक और खासियत ये है कि इसे करने के लिए आपको एक पैसा भी बाहर खर्च करने की ज़रूरत नहीं है इसे आप अपने किचन में मौजूद कुछ चीज़ों की मदद से आसानी से ठीक कर सकते हैं।
अगर आपके कंधे भी खिसक जाते हैं या खिसक गए हैं तो घबराइए नहीं आज हम आपको कंधे खिसकने की समस्या से छुटकारा पाने के लिए के कुछ शानदार घरेलू नुस्खे बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं।

सरसों की तेल से मालिश करें

सरसों के तेल में 2 से 3 लहसुन की कलियों को तोड़कर डाल दें और इसे आग पर अच्छी तरह पका लें। ठंडा होने के बाद इससे कंधों की मालिश करें इससे कंधे का दर्द और सूजन की समस्या दूर होती है। साथ ही गर्म तेल से बॉडी की सिकाई भी होती है।

ओवर-दि-काउंटर का इस्तेमाल

कंधा खिसकने के बाद दर्द में आराम पाने के लिए ओवर-दि-काउंटर मेडिसिन्स का इस्तेमाल करें इससे दर्द में काफी आराम मिलता है। लेकिन ध्यान रहे हमेशा आपकी क्षमता के अनुसार ही दवा की सलाह दी जाती है इसलिए डॉक्टर की सलाह से ही किसी भी तरह की दवाइयों का इस्तेमाल करें।
कंधे के दर्द के लिए तेल ( Make Oil for Shoulder Pain ) : इस तेल को बनाने के लिए आपको कुछ सामग्री जैसे सरसों का 200 ग्राम तेल, 50 ग्राम लहसुन, 10 ग्राम लौंग और 25 ग्राम की मात्रा में अजवायन की आवश्यकता पड़ेगी.
सारी सामग्री के आने के बाद आप सरसों के तेल को धीमी आंच पर पकाएं और उसमें बाकी सारी सामग्री भी डाल लें, जब आपको लगे की तेल में पड़ी सामग्रियाँ काली होने लगी है तो आप तेल को आंच पर से उतारें और ठंडा होने के लिए रख दें. जब तेल ठंडा हो जाएँ तो आप उसे छानकर सुरक्षित किसी शीशी में रखें और जब भी कंधे में दर्द हो तो आप तेल को हाथों पर लगाकर हल्के हाथ से मालिश करें, आपको निश्चित रूप से आराम मिलेगा.

बर्फ लगाएं

कंधा उतरना एक बहुत ही खतरनाक स्थिति होती है। इस अवस्था में काफी दर्द होता है और पीड़ित व्यक्ति को चलने फिरने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में घायल कंधे पर बर्फ लगाकर सिकाई करें। ऐसा करने से दर्द और सूजन में कमी आती है। साथ ही ये कंधे के आसपास फ्लूड इक्कट्ठा होने को नियंत्रित करता है।
मसाज दें

कंधों पर किसी से हल्‍के हाथों से मसाज करवाएं। मसाज वाला तेल अगर हल्का गर्म हो तो ये ज़्यादा फायदेमंद होगा। ऐसा करने से मांसपेशियों को भी आराम मिलता है और रक्‍त का संचार ठीक ढ़ंग से होता है।

गर्म पानी और नमक से सिकाई

अगर आपके घर में बाथटब है तो उसे हल्के गर्म पानी से भर लें। अब इसमें दो कप सेंधा नमक डाल लें। इसमें 20 से 30 मिनट के लिए बैठ जाएं। अगर बाथ टब नहीं है तो बाल्टी में गुनगुना पानी लेकर उसमें नमक मिला लें और इसे धीरे-धीरे कंधे पर डालें। सेंधा नमक मैग्नीशियम सल्फेट से बना होता है जिससे कंधे के दर्द में आराम मिलता है।

एक्सरसाइज करें।

कंधे के रेंज ऑफ मोशन को बनाए रखें। इससे दर्द में आराम पहुंचेगा। रेंज ऑफ मोशन बनाए रखने के लिए हल्की एक्सरसाइज़ करें। ध्यान रहे अगर आपके कंधे में ज़्यादा दर्द है तो डॉक्टर की सलाह के बाद ही किसी भी प्रकार का योग या एक्सरसाइज करें। क्योंकि थोड़ी भी लापरवाही आपकी परेशानी को और अधिक बढ़ा सकती है।


कंधे को आराम दें

कंधा खिसकने के बाद असहनिय दर्द का सामना करना पड़ता है इस स्थिति में लापरवाही आपके दर्द को और अधिक बढ़ा सकती है इसलिए कंधे को आराम की स्थिति मे रखें कोई भी ऐसा मूवमेंट करने से बचें जिससे कंधे को नुकसान पहुंचता हो।

रोजमेरी का उपयोग

रोजमेरी का फूल कंधे के दर्द में बहुत फायदेमंद है। कंधे उतरने की स्थिति में इसे उबालकर इसका काढ़ा बना लें और इसे रोज़ाना पीएं। इससे कंधा उतरने की समस्या दूर होती है।

सावधानियां

कंधे में किसी भी तरह की परेशानी ना हो इसके लिए कुछ सावधानियों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है जैसे-
अधिक वज़न वाली चीज़ों को उठाने से बचें।
बराबर सतह पर सोएं।
चोट लगने पर डॉक्टर से सलाह लें।
जिम में आवश्यक्ता से अधिक भारी डंबल ना उठाएं।
कंधे खिसकने के बाद डॉक्टर द्वारा बताए गए सभी नियमों का पालन करें।
अगर आपका काम भारी सामान उठाने वाला है तो पहले कंधे पर मोटा कपड़ा रख लें।


29.11.21

मुह के छाले से छुटकारा पाने के उपाय :Mouth ulcers home remedies

 

 पेट साफ ना होने से अक्सर मुंह में छाले Mouth ulcer हो जाते हैं। इसके अलावा संतुलित आहार, पेट में दिक्कत, पान-मसालों का सेवन भी छालों का प्रमुख कारण है। दिखने में छोटे दिखने वाले ये छाले बहुत तकलीफ देते हैं। खासतौर से कुछ भी खाने-पीने में बेहद परेशानी होती है।
 अजीर्ण व पेट में कब्ज होने की अवस्था में अक्सर हमारे मुँह में छाले हो जाया करते हैं। अमाशय व आँतों में सूजन व घाव होने पर मुँह में छालों की उत्पत्ति हो जाया करती है। पेट की गर्मी की वजह से भी मुँह में छाले हो जाते हैं।

मुहं के छाले की घरेलू  चिकित्सा -,Mouth ulcer 

त्रिफला : त्रिफला मुंह के छालों के लिए रामबाण की तरह होती है। त्रिफला की राख शहद में मिलाकर लगाएं। थूक से मुंह भर जाने पर उससे ही कुल्ला करने से छालों से काफी राहत मिलती है।
कत्था : पान में लगाया जाने वाला कोरा कत्था छालों में काफी कारगर साबित होता है। इसे पानी में भिगोकर इसका लेप बनाएं और छालों के ऊपर लगाएं, फायदा मिलेगा।
सुहागा और शहद : सुहागा और शहद का मिश्रण भी छालों के लिए एक बेहतरीन उपाय है। सुहागा में शहद को मिलाकर छालों पर लगाने से काफी लाभ होता है।
त्रिफला : त्रिफला मुंह के छालों के लिए रामबाण की तरह होती है। त्रिफला की राख शहद में लाकर लगाएं। थूक से मुंह भर जाने पर उससे ही कुल्ला करने से छालों से काफी राहत मिलती है।
अमृतधारा : मुंह के छालों पर अमृतधारा में शहद मिलाकर फुरैरी से लगाएं। अमृतधारा में 3 द्रव्य होते हैं- पेपरमिंट, सत अजवाइन और कपूर। इन तीनों को एक शीशी में भरकर धूप में रख दें, पिघलकर अमृतधारा बन जाएगी।
नीम की छाल : मुनक्का, दालचीनी, नीम की छाल और इन्द्र जौ, इन सभी को एक समान भाग में मिलाकर काढ़ा बना लें। अब इस काढ़े में शहद मिलाकर पिएं।
*शरीर में vitamin B की कमी हो जाने पर भी यह तकलीफ हो जाती है।
*शरीर में iron की कमी भी मुंह में गर्मी लगने का बड़ा कारण हो सकता है।
अधिक मानसीक तनाव से भी यह तकलीफ हो सकती है।
*दाँत में से फंसा खाना निकालने से या सख्त ब्रश से दाँत साफ करने से ज़ख्म लग जाने से भी मुंह में छाले पड़ सकते हैं।
*अरहर दाल को एकदम बारीक पीस कर मुंह में पड़े छालों पर लगाया जाए तो दर्द में तुरंत राहत मिलेगी और कुछ दिन में मुंह के छाले ठीक भी हो जाएंगे। इस प्रक्रिया को दिन में दो से तीन बार करना चाहिए।
*गुनगुने पानी में एक चम्मच शुद्ध नमक मिला कर घोल बना लें। और फिर उस को थोड़ा थोड़ा कर के मुंह में घूमाये, और फिर बाहर उगल दें। इस प्रक्रिया को दिन में दो से तीन बार करें।
*नीम का दातुन करने से भी मुंह के छालों में राहत मिल जाती है। नीम के पत्तों का रस भी मुंह के छालों पर लगाया जा सकता है। (कड़वा नीम ईस्त्माल करें)
*बेर के पत्तों का काढ़ा बना कर उस से कुल्ला करने से मुंह की गर्मी दूर हो जाती है।
*शहद को मुंह के छालों में लगाने से भी मुंह को ठंडक मिलेगी और छाले दूर होंगे।
अपामार्ग की जड़ का काढ़ा सेंध नमक मिला कर तैयार कर के उस काढ़े से कुल्ला करने से मुंह के छाले मिट जाते हैं।
*नीम के पतों का रस मुंह के छालों  Mouth ulcer पर लगाने से भी आराम मिलेगा।
*Alovera का पेस्ट / रस मुंह के छालों पर लगाने दर्द कम होता है और मुंह को ठंडक मिलती है।
*बर्फ के छोटे टुकड़े मुंह के छालों पर लगा कर लार टपका देने से मुंह की गर्मी निकाल जाती है।
*बेकिंग सोडा में अंजुली भर पानी मिला कर पेस्ट बना लें, और छालों पर लगा दें। इस प्रक्रिया से भी मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
*हरे धनिये को पीस कर उसका रस निकाल कर उसे मुंह के छालों पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।
इलायची को पीस कर उसमे शहद मिला कर, मिश्रण तैयार कर के, उसे छालों पर लगाने से मुंह को आराम मिलता है।
*एक चम्मच हल्दी पावडर को एक गिलास गुनगुने पानी में मिला कर घोल तैयार कर के उसके गरारे करने से मुंह के छाले दूर हो जाते है।
*रात को सोते वक्त देसी घी मुंह के छालों Mouth ulcer पर लगा देने से सुबह तक उसमे राहत मिल जाती है।
गुड का पानी / गुड का शरबत भी गले की सूजन और मुंह के छालों का सटीक इलाज है। और इसके प्रयोग से पेट की गर्मी भी दूर होती है।
*चमेली के पत्तों को पीस कर उसका रस निकाल कर मुंह के छालों पर लगाने से मुंह के छाले मिट जाते हैं।
*अमरूद के ताजे मुलायम पत्तों को पीस कर उसका रस मुंह के छालों पर लगाने से भी मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
नारियेल पानी पीने से भी पेट की गर्मी मिट जाती है। और मुंह के छाले दूर होते हैं। नारियेल का दूध मुंह के छालों पर लगाने से मुंह को आराम मिल जाता है।
*नारियेल का दूध और शहद मिला कर भी छालों पर लगाया जा सकता है।
तुलसी के पत्तों का रस निकाल कर उसे मुंह के छालों पर लगाने से मुंह को आराम मिल जाता है।
*संतरे का रस Vitamin C से भरपूर होता है। अगर शरीर में विटामिन “सी” की कमी हो तो भी मुंह में छाले पड़ सकते हैं। इस किए संतरे का रस / जूस पियें।
*प्याच में सल्फर होता है। और सल्फर बेकटेरिया की छुट्टी कर देता है। इस लिए मुंह के छाले दूर करने के लिए प्याज खाना अच्छा रहता है।
*गुलकंद खाने से मुंह को ठंडक मिलती है, और मुंह के छाले मिट जाते हैं।
*मुलेठी का चूरन शहद में मिला कर मुंह के छालों पर लगाने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
*पान में इस्तेमाल होने वाला कत्था भी मुंह के छालों को दूर करने का सटीक उपाय है। दिन में तीन बार कत्था मुंह के छालों पर लगाना चाहिए। इस प्रक्रिया से तीन दिन में मुंह के छाले गायब हो जाते हैं।
*नींबू का रस गुनगुने पानी में मिला कर उस से कुल्ला / गरारे करने से मुंह के छाले मिट जाएंगे, तथा नींबू पानी रोज पीने से पेट की गर्मी दूर होगी।
*अर्जुन की जड़ का चूर्ण और मीठे तेल का मिश्रण तैयार कर के उस से कुल्ला करने से मुंह के रोग नष्ट हो जाते हैं।
*आलूबुखारे को मुंह में रखने से भी मुंह के छालों में राहत मिलती है।
खाने के साथ दही और छाछ का सेवन भी पेट की गर्मी दूर करता है, जिस के कारण मुंह की गर्मी दूर हो जाती है।
*काली मिर्च और किशमिश को मिला कर उसे चबाने से मुंह के छाले मिट जाते है।
*कच्ची फिटकरी पानी में मिला कर घोल तैयार करें और उस से कुल्ला करें। कच्ची फिटकरी और शहद मिला कर उसका पेस्ट मुंह के छालों पर लगाने से भी मुंह को आराम मिलता है।
*तीन भाग भुना हुआ सुहागा और एक भाग कपूर चूरा थोड़े से शहद में मिला कर मुंह में लगाने से भी मुंह के छाले Mouth ulcer दूर हो जाते हैं
*माजूफल, फिटकरी, और कत्था सामन मात्रा में मिला कर मिश्रित चूरन को कपड़े से छान लेना चाहिए और हर दिन इस चूरन को छालों पर लगाने से मुंह में आराम मिलता है।
*सरसों के तेल को मुंह में रख कर कुल्ला करने से मुंह की सारी परेशानीयां दूर हो जाती है। सरसों का तेल दांतों पर लगे कीड़ों का भी नाश कर देता है।
*बबूल की छाल को बारीक पीस कर पानी में उबाल कर घोल तैयार कर के उसके कुल्ले करने से भी मुंह के छाले और जीवा पर उबर आए दाने मिट जाते हैं।
*नीम, जांबुन, मालती, परवल और आम के पत्तों का काढ़ा बना कर उस पानी से कुल्ला करने पर मुंह की गर्मी मिट जाती है। और मुंह के छाले भी दूर हो जाते हैं।
इन्द्र जौ, कूठ, और काला जीरा मिला कर उसे चबाने से भी मुंह के छाले मिट जाते हैं।
गिलोय, धमास, जावित्री, हरड़े, आंबला, बहड़े और दाख को मिला कर काढ़ा बना लें और फिर उस काढ़े को थोड़ा ठंडा होने दें। फिर उसमे थोड़ा शहद मिला कर उसे पीने से मुंह के छाले दूर होते हैं।
बीजोरा के फल का छिलका मुंह रख कर चबाने से में जमे बेकटेरिया दूर होते है। और मुंह की दुर्गंध मिटती है।
एक गिलास गरम पानी में दो चम्मच अदरक का रस घोल कर उस पानी से गरारे करने से मुंह के छाले मिट जाते है।
*अलसी के तेल को मुंह के छालों पर लगाने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
*आठ से दस मुनक्का के दाने और थोड़े जांबुन के पत्तों को मिला कर उसका काढ़ा बना कर कुल्ला करने से मुंह के तमाम प्रकार के रोग मिटते हैं।
*हरीतकी का काढ़ा बना कर उस से गरारे करने से गले की तकलीफ और मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
चावल में थोड़ा घी और एक चम्मच चीनी मिला कर खाने से भी पेट की गर्मी दूर हो जाती है। और मुंह के छाले मिट जाते हैं।
* गुलाब के फूल,आंवला ,सौंफ तीनों बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनालें | आधा चम्मच चूर्ण नियमित रूप से सुबह -शाम पानी के साथ फक्की लेने से मुहं के छाले Mouth ulcer ठीक हो जाते हैं|
* एक गिलास गरम पानी में चुटकी भर काली मिर्च और आधा निम्बू का रस मिलाकर दिन में दो बार पीने से मुंह के चाले कुछ दिनों में ठीक हो जाते हैं|
* शहद में मुलहठी का चूर्ण मिलाकर इसका लेप मुँह के छालों पर करें और लार को मुँह से बाहर टपकने दें।
*अड़ूसा के 2-3 पत्ते भली प्रकार मूह मे चबाकर रस चूसने से मुख छाला रोग ठीक होता है|
*कत्था, मुलहठी का चूर्ण और शहद मिलाकर मुँह के छालों पर लगाना चाहिए।
* अमलतास की फली की मज्जा को धनिये के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर मुँह में रखने से अथवा केवल गूदे को मुँह में रखने से मुँह के छाले दूर हो जाते हैं।



* अमरूद के कोमल पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।
*अनार के 25 ग्राम पत्तों को 400 ग्राम पानी में ओंटाकर चौथाई भाग शेष रहने पर इस क्वाथ से कुल्ला करने से मुँह के छाले 
 दूर होते हैं।
* मुंह के छाले खत्म करने के लिए जामुन के पत्ते लें। इन्हें धोकर पीसें। छानें। इस पानी (रस) से कुल्ले करें।
 इस रोग से छुटकारा पाने के लिए टमाटर का रस निकालें। इस रस में इतनी ही मात्रा में पानी मिलाएं। इस पानी से कुल्ला करें। आराम होगा।


 *तुलसी की ताजा पांच पत्तियां लें। इन्हें धोएं। चबाएं। खूब बारीक चबाकर निगलें। इस पर पानी तीन-चार घूंट धीरे-धीरे पी लें। छाले से निजात मिलेगी|

*मुंह के छालों को हटाने के लिए बंसलोचन पीसें। छानें। इसे शहद में मिलाएं। मुंह के अंदर अंगुली से लगाएं।

* इस रोग के लिए आक के दूध की कुछ बूंदें निकालें। इसे एक चम्मच शहद में मिलाएं। मुंह में लगाने से जरूर लाभ होगा।
*मामूली मात्रा में पिसा कपूर तथा एक छोटा चम्मच पिसी मिश्री लें। दोनों को मिलाएं। मुंह में लगाने से फायदा होगा।


*थोड़ा-सा हरा पुदीना, इतना ही सूखा धनिया तथा समभाग मिश्री। तीनों को एक साथ मुंह में डालकर चबाएं। पूरा लाभ मिलेगा।

* मुंह के छालों से छुटकारा पाने के लिए भोजन करने के बाद छोटी हरड़ चूसें। छालें गायब होने लगेंगे।



* यदि तरबूज का मौसम हो तो इसके छिलके जलाएं। राख तैयार करें। इस राख को लगाने से छालें नहीं रहेंगे।
*थोड़ा-सा सुहागा फुला लेंबारीक पीसें। इसे दो चम्मच ग्लिसरीन में मिलाएं। इसको लगाने से छाले दूर हो जायेंगे।




*मुंह के छाले नष्ट करने के लिए सत्यानाशी की टहनी लें। इसे दातुन की तरह थोड़ा चबाएं। अवश्य आराम आयेगा। 

इनका भी रखें ध्यान

-तंबाकू का सेवन बिलकुल भी न करें
-दिन में दो बार टूथ पेस्ट या टूथ मंजन से दांतों को साफ करें
-हरी सब्जियों और फलों का सेवन भरपूर मात्रा में करें
-ज्यादा तला भुना और मसालेदार खाना न खाएं
-अपने पाचन तंत्र की ख्याल रखें -नीम का टूथ पेस्ट भी छालों के उपचार में सहायता करता है
-मट्ठा पीने से मुंह के छालों से बहुत आराम मिलता है
-दिन में कई बार पानी से गरारे करें 




28.11.21

गाय के घी के कमाल के फायदे:Benefits of Cow Ghee

 




 अध्यात्म और शारीरिक दोनों ही रूप से गाय के घी का बहुत ही महत्व है। शास्त्रों में और आयुर्वेद में इसको अमृत सामान माना गया है। इसको देवी देवता को खुश करने के लिए शुद्ध घृत की ज्योति एवं हवन में उपयोग किया जाता है। इसके सेवन से कमजोर व्यक्ति के कई रोग दूर होकर शरीर बलवान और शक्तिशाली बनता है। इससे त्वचा,सिर,पेट के रोगो में लाभ होता है। इसकी कुछ बुँदे नाक में डालने से, एनिमा लेने से पित्त और वात रोग का इलाज किया जाता है। घृत के सेवन के अनगिनत फायदे है।

स्त्री यौन रोग (श्वेत प्रदर) में

घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है।

गाय के घी के सेवन कमजोरी का इलाज

यह स्मरण रहे कि घृत के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।

आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए

एक चम्मच शुद्ध घृत में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।

यादाशत बढाएं

गाय के घी को नाक में डालने से यादाशत अच्छी होती है और बच्चों के लिए यह बहुत फायदेमंद है।

बलगम से छुटकारा

घी की झाती पर मालिस करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है।

फफोले का उपचार

फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है।

अच्छी नींद

रात को नींद नहीं आती तो रात को नाक में घी डालकर सोएं,नींद अच्छी आएगी और सारा दिन फ्रैश रहेगें।

पुराने जुखाम से राहत

लंबे समय से जुखाम से परेशान हैं और दवाइयों से भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा तो रात को रोजाना गाय का घी डालकर सोएं। इसके लगातार इस्तेमाल से जुखाम से राहत पाई जा सकती है।

उच्च कोलेस्ट्रॉल

उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है। आप घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करें।

खर्राटे गायब

रात को सोने से पहले हल्का गुनगुना करके एक-एक बूंद नाक में डाल कर सोमे से खर्राटों की परेशानी दूर हो जाएगी।

तनाव दूर

किसी भी तरह के मानसिक तनाव से दूर हैं तो गाय का शुद्ध घी रात को रोजाना नाक में डालकर सोएं। इससे तनाव दूर हो जाएगा और कोई नुकसान भी नहीं होगा।

गाय के घृत से सांप काटने पर उपचार

सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।

चर्म रोग का इलाज

चर्म रोग का घरेलू इलाज – गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर इसको पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है।

अन्य लाभ 

गाय के घी के नियमित सेवन से आपको कब्ज और एसिडिटी की समस्या नहीं होगी|
अगर आपके हाथ पैर में जलन हो रही है तो गाय के घी से तलवों की मालिश करें| ऐसा करने से हाथ पैरों की जलन समाप्त हो जाएगी|
शरीर में थकान या कमजोरी महसूस हो रही है तो आप दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री को मिलाकर पीएं, कमजोरी दूर हो जाएगी|
अगर आप माइग्रेन के दर्द से पीड़ित है तो गाय के घी की 2 बूंदे सुबह व शाम नाक में डालें| आपको आराम मिलेगा|
गाय के घी के इस्तेमाल से शरीर का मोटापा नहीं बढ़ता क्यूंकि इसके सेवन से कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता|
गाय के घी के प्रयोग से व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक ताकत बढ़ती है|
गाय के घी को नाम में डालने से एलर्जी की समस्या दूर हो जाती है|
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