29.8.19

रजोनिवृत्ति की समस्याओं के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार //menopause




मेनोपॉज या रजोनिवृति
मेनोपॉज महिला के शरीर की उस अवस्था को कहते हैं. जिस अवस्था में महिला को मासिक धर्म होने बंद हो जाते हैं. मेनोपॉज होने का मतलब हैं महिला के शरीर में प्रजनन क्षमता का खत्म हो जाना. इस अवस्था में पहुंचकर महिला के अंडाशय में अंडाणुओं के बनने की क्रिया समाप्त हो जाती हैं. महिला में मेनोपॉज की अवस्था 40 से 50 वर्ष के बीच की हो सकती हैं.

जैसे आजकल कुछ महिलाओं में समय से पहले यह समस्या उत्पन्न हो रही है की उनका अंडाशय कम एस्ट्रोजन का उत्पादन कर रहा है जिससे उनके शरीर में एस्ट्रोजन की कमी हो रही है और जिसकी वजह से उनकी माहवारी भी अनियमित हो जाती है जिसे प्रीमेनोपॉज (perimenopause) कहा जाता है और जब पूरे एक साल तक माहवारी ना आने की स्थिति बनी रहे तो उसे फुल मेनोपॉज (full menopause) कहा जाता है।
रजोनिवृत्ति की स्थिति आने के बाद महिलाओं में कई तरह की परेशानियां उत्पन्न होने लगती है जैसे नींद ना आना, मूड स्विंग्स होना, चिड़चिड़ापन, थकान, तनाव आदि होना। इसके अलावा रजोनिवृत्त महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis), मोटापा, हृदय रोग और टाइप 2 डायबिटीज सहित कई अन्य बीमारियों का खतरा भी होता है।
रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली समस्या को कैसे कम करें
आप रजोनिवृत्ति या मीनोपॉज की समस्या को आसानी से कुछ घरेलू उपाय या घरेलू नुस्खे अपना कर या अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव करके कम कर सकती है। अगर आप मीनोपॉज के बाद भी स्वस्थ और खुशहाल जीवन चाहती है तो बहुत से घरेलू तरीके आपके काम आ सकते है और आपको रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली कई गंभीर बीमारियों से भी बचा सकते है।
घरेलू उपचार
कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थ
कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थ रजोनिवृत्ति को जल्दी आने से रोकने का एक अच्छा घरेलू उपाय है। रजोनिवृत्ति या मीनोपॉज के दौरान हार्मोनल परिवर्तन की वजह से हड्डियाँ कमजोर हो सकती है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ सकता है। कैल्शियम और विटामिन डी मजबूत हड्डियों के लिए अच्छे स्रोत होते हैं, इसलिए आपके आहार में इन पोषक तत्वों का पर्याप्त मात्रा में होना महत्वपूर्ण होता है। पोस्टमेनोपॉज़ल (postmenopausal) वाली महिलाओं द्वारा पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी का सेवन करने से कमजोर हड्डियों के कारण होने वाले हिप फ्रैक्चर के जोखिम को भी कम किया जा सकता है।
कई खाद्य पदार्थ कैल्शियम से भरपूर होते हैं, जिसमें कई डेयरी उत्पाद भी शामिल है जैसे दही, दूध और पनीर।
रजोनिवृत्ति के घरेलू उपाय के रूप में आप हरी, पत्तेदार सब्जियाँ जैसे पालक, पत्तागोभी में भी बहुत सारा कैल्शियम होता है तो आप इनका भी सेवन कर सकती है। टोफू, बीन्स जैसे अन्य खाद्य पदार्थों में भी भरपूर मात्रा में कैल्शियम और विटामिन डी होता है। इसके अतिरिक्त, शरीर में कैल्शियम बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे अनाज, फलों का रस या दूध के विकल्प को भी शामिल किया जा सकता है और यह इसके बहुत अच्छे स्रोत भी हैं।
विटामिन डी का सेवन
सूर्य का प्रकाश विटामिन डी का मुख्य स्रोत माना जाता है, क्योंकि जब आपकी त्वचा सूर्य के संपर्क में आती है तब वह इसका उत्पादन करती है जिससे हमारे शरीर को विटामिन डी मिलता है। हालाँकि, जैसे-जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, हमारी त्वचा इसे बनाने में कम कुशल हो जाती है। इसलिए यदि आप धूप में ज्यादा बाहर नहीं निकलती हैं या अपने आप को पूरा ढंक कर चलती हैं, तो आपको विटामिन डी के सप्लीमेंट या खाद्य पदार्थ लेना बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है। विटामिन डी के समृद्ध आहार स्रोतों में शामिल है ऑयली फिश, अंडे, मशरुम, सोया मिल्क आदि।
मेनोपॉज का आयुर्वेदिक इलाज
सही वजन को बनाये रखना रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) के लक्षणों को कम करने का अचूक घरेलू उपाय माना जाता है रजोनिवृत्ति के दौरान वजन बढ़ना एक आम बात है। वजन बढ़ने का कारण बदलते हार्मोन, बढ़ती उम्र, अनियमित जीवन शैली और आनुवांशिक भी हो सकता है।
रजोनिवृत्ति के दौरान शरीर की अतिरिक्त चर्बी, विशेषकर कमर के आस-पास की चर्बी से हृदय रोग और मधुमेहजैसी बीमारियों के होने का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा, आपके शरीर का वजन आपके रजोनिवृत्ति के लक्षणों की वजह से भी प्रभावित हो सकता है।
फल और सब्जियां
मीनोपॉज की समस्या के लिए एक अच्छा घरेलू तरीका है फल और सब्जियों का सेवन करना क्योकि फलों और सब्जियों का भरपूर आहार लेने से रजोनिवृत्ति के बाद उत्पन्न होने वाले कई लक्षणों और समस्याओं को रोका जा सकता है।
फल और सब्जियों में कैलोरी की मात्रा कम होती हैं इसलिए इनके सेवन से आसानी से वजन घटाया जा सकता हैं। फल और सब्जियों का आहार लेने से हृदय रोग सहित कई बीमारियों को होने से भी रोका जा सकता हैं। ऐसा करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि रजोनिवृत्ति के बाद हृदय रोग का जोखिम बढ़ जाता है। यह बीमारी उम्र बढ़ने, वजन बढ़ने या संभवतः एस्ट्रोजन के स्तर को कम करने जैसे कारकों के कारण होती है।
जल्दी रजोनिवृत्ति के लक्षणों को रोकने के लिए फल और सब्जियों के सेवन से हड्डियों को होने वाले नुकसान को रोकने में मदद मिल सकती हैं। एक शोध में यह पाया गया है की 50-59 आयु वर्ग की महिलाओं का फल और सब्जियों के आहार अधिक लेने से हड्डियों के टूटने की समस्या को कम किया जा सकता है।
भरपूर पानी पीना
रजोनिवृत्ति या मीनोपॉज के दौरान, महिलाओं को अक्सर सूखापन का अनुभव होता है। यह एस्ट्रोजन के स्तर में कमी के कारण हो सकता है। इसलिए दिन में 8-12 गिलास पानी पीने से इन लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है।
भरपूर पानी पीने से हार्मोनल परिवर्तन के साथ शरीर में होने वाली सूजन को भी कम किया जा सकता है। जो मेनोपॉज को रोकने में है लाभकारी साबित हो सकता है इसके अलावा ज्यादा पानी पीने से आपको वजन कम करने
में भी सहायता मिल सकती है और आप अपने मेटाबोलिज्म को भी मजबूत कर सकती हैं।
ऐसा माना गया है की भोजन से 30 मिनट पहले 500 मिली पानी पीने से आप भोजन के दौरान 13% कम कैलोरी का उपभोग कर सकती हैं।
रिफाइंड शुगर और प्रोसेस्ड फूड से बचें-
रिफाइंड कार्ब्स (refined carbs) और चीनी का उच्च आहार लेने से ब्लड शुगर का स्तर तेजी से बढ़ और घट सकता है जिससे आप रजोनिवृत्ति के दौरान थका हुआ और चिड़चिड़ा महसूस कर सकती हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि रिफाइंड कार्ब्स का उच्च आहार लेने से पोस्टमेनोपॉज़ल (postmenopausal) महिलाओं में अवसाद का जोखिम बढ़ सकता हैं। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (processed food) का उच्च आहार लेने से हड्डियां भी प्रभावित हो सकती है।
प्रोटीन युक्त आहार
नियमित रूप से दिन भर प्रोटीन युक्त आहार लेने से कमजोर मांसपेशियों को नुकसान पहुँचने से बचाया जा सकता है, क्योकि रजोनिवृत्ति की यह समस्या उम्र के साथ बढ़ती है इसलिए हमेशा कोशिश करें की आप ज्यादा से ज्यादा मात्रा में प्रोटीन युक्त भोजन ले पाएं। मांसपेशियों के नुकसान को रोकने में मदद करने के अलावा, उच्च-प्रोटीन आहार वजन घटाने में भी मदद कर सकते हैं क्योंकि वह शरीर में कैलोरी की मात्रा को कम करते हैं। मेनोपॉज के लक्षणों को रोकने के लिए प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थों में शामिल है मांस, मछली, अंडे, फलियां, नट और डेयरी प्रोडक्ट। इन सभी घरेलू उपचारों से आप रजोनिवृत्ति या मेनोपॉज की समस्या से आसानी से उभर सकती है और स्वस्थ रह सकती है।
फाइटोएस्ट्रोजेन से भरपूर आहार
फाइटोएस्ट्रोजेन (phytoestrogen) स्वाभाविक रूप से पैदा हुए पौधे के यौगिक (compound) होते हैं जो शरीर में एस्ट्रोजेन के प्रभाव की नकल करते हैं। इसलिए यह फाइटोएस्ट्रोजेन हार्मोन को संतुलित करने में मदद करते हैं।
फाइटोएस्ट्रोजेन से भरपूर खाद्य पदार्थों में शामिल है सोयाबीन और सोया उत्पाद जैसे टोफू, अलसी, तिल और सेम।
कई शोध से यह पता चला है कि रजोनिवृत्ति के दौरान फाइटोएस्ट्रोजेन से भरे खाद्य पदार्थ, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (processed food) जिनमें सोया प्रोटीन होता है और बहुत से सप्लीमेंट्स से बेहतर होता हैं।
मेनोपॉज के उपचार
1. मेनोपॉज से होने वाली किसी भी समस्या से छुटकारा पाने के लिए महिलाएं भोजन में कुछ विशेष पदार्थों का सेवन कर सकती हैं. मेनोपॉज की अवस्था में बंदगोभी, फलीदार सब्जियों की तथा दलों का सेवन करना चाहियें. इससे मेनोपॉज से होने वाली शरीर की सारी बिमारियां ठीक हो जाती हैं.
2. मेनोपॉज की अवस्था में महिलाओं को फाइटो एस्ट्रोजन लेना आरम्भ कर देना चाहिए. फाइटो एस्ट्रोजन हमें सोयाबीन से, सोया से, पनीर से, सोया मिल्क से, सोया आटा से तथा सोयाबीन की बड़ियों से मिलता हैं. इस लिए 50 साल की तथा इससे ज्यादा उम्र की महिलाओं को इन सभी खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए.
3. मेनोपॉज में महिला अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दूध और तिल का प्रयोग कर सकती हैं. मेनोपॉज की अवस्था में महिला को प्रतिदिन एक गिलास दूध में तिल को मिलाकर पीना चाहिए. इस दूध को पीने से महिला का शरीर स्वस्थ रहता हैं.
4. मेनोपॉज के कारण अगर किसी महिला के शरीर के अंगों में दर्द रहता हैं तो वह गाजर के बीजों का उपयोग कर सकती हैं. इसके लिए गाजर के बीजों को दूध में डालकर कुछ देर उबाल लें.
उबालने के बाद इस दूध को हल्का ठंडा कर लें. फिर इस दूध का सेवन करें. आपको मेनोपॉज में लाभ मिलेगा.

28.8.19

बच्चों के लिए फ्रूट जूस के फायदे नुकसान



वैसे तो फलों के सेवन के साथ-साथ फ्रूट जूस भी कई फायदों वाला होता है और सेहत के लिए लाभदायक माना जाता है लेकिन सिर्फ फ्रेश जूस। मार्केट में बिकने वाला पैक्ड फ्रूट जूस बच्चों को बीमार बना सकता है। इन पैक्ड फ्रूट जूसेज में न तो फाइबर या कोई प्राकृतिक गुण होता और ना ही किसी तरह के पोषक तत्व। इस तरह के फ्रूट जूस बच्चों की सेहत के लिए कितने खतरनाक हैं यहां जानें.
मार्केट में बिकने वाले पैक्ड और फ्लेवर्ड फ्रूट जूस में कैडमियम, कार्बनिक, आर्सेनिक और मरकरी या लेड पाया जाता है, जो बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य पर बहुत ही बुरा असर डालता है। पैक्ड जूस में पाए जाने वाले मेटल बच्‍चों के नवर्स सिस्‍टम पर बुरा प्रभाव डालते हैं जिससे बच्‍चे के विकासशील ब्रेन को भी नुकसान पहुंचता है। ट्रेटा पैक में बंद जूस में फलों का हिस्सा सिर्फ 25 फीसदी ही होता है।

अगर कोई फलों के रस का सेवन करता है, तो यह दो से पांच साल के बच्चों के लिए 125 मिलीलीटर प्रति दिन (आधा कप) तक सीमित होना चाहिए, पांच से ऊपर के लोगों के लिए 250 मिलीलीटर प्रति दिन। लेकिन ये ताजे फलों का रस होना चाहिए।


इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (IAP) के अनुसार, दो साल से कम उम्र के बच्चों को फ्रूट जूस नहीं देना चाहिए, चाहे ताजा हो या पैक्‍ड। क्‍योंकि वे कैलोरी और शुगर की मात्रा में अधिक होते हैं।

बाल विशेषज्ञों की एक शीर्ष इकाई ने फास्‍ट फूड, एनर्जी ड्रिंक्‍स और मीठे पेय से जुड़ी नई गाइडलाइन लेकर आई है। इसके अनुसार, दो से 18 साल की उम्र के लोगों को भी बाजार में बिकने वाले डिब्‍बाबंद फलों के रस, फलों के पेय या शुगर से बने पेय पदार्थों को पीने से रोकना चाहिए।
यहां तक कि अगर कोई फलों के रस का सेवन करता है, तो यह दो से पांच साल के बच्चों के लिए 125 मिलीलीटर प्रति दिन (आधा कप) तक सीमित होना चाहिए, पांच साल से ऊपर के लोगों के लिए 250 मिलीलीटर प्रति दिन। लेकिन ये ताजे फलों का रस होना चाहिए। वास्तव में, पोषण विशेषज्ञों के अनुसार, फलों का रस सॉफ्ट ड्रिंक के रूप में हानिकारक हो सकते हैं, क्योंकि इसमें फाइबर की मात्रा कम और चीनी की मात्रा अधिक होती है। हालांकि, आपके फलों में विटामिन और खनिज होते हैं जो आपके बच्चे को अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक होते हैं।
IAP दिशानिर्देश यह भी उल्लेख करते हैं कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों को चाय, कॉफी और कार्बोनेटेड पेय नहीं दिया जाना चाहिए। पांच से नौ साल की उम्र के स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए, चाय और कॉफी अधिकतम 100 मिलीलीटर प्रति दिन और 18 साल तक के लोगों के लिए 200 मिलीलीटर प्रति दिन तक सीमित होनी चाहिए।


सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अनुसार, 9 और 14 साल की उम्र के बीच लगभग 93 फीसदी बच्चों ने कथित तौर पर पैकेज्ड फूड खाया, जबकि 68 फीसदी लोग हफ्ते में एक बार से ज्यादा शक्कर वाले पेय पदार्थों का सेवन करते हैं। और लगभग 53 फीसदी लोग दिन में एक बार इनका सेवन करते हैं।
जंक फूड खाने से बच्चों में मोटापा, उच्च रक्तचाप, दंत और व्यवहार संबंधी मुद्दों का खतरा बढ़ जाता है। जर्नल इंडियन पेडियाट्रिक्स में प्रकाशित दिशानिर्देशों के अनुसार, "इन खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों का सेवन उच्च शरीर द्रव्यमान सूचकांक (higher body mass index) और संभवतः बच्चों और किशोरों में प्रतिकूल कार्डियो-मेटाबॉलिक परिणामों से जुड़ा हुआ है। कैफीन युक्त पेय का सेवन नींद की गड़बड़ी से जुड़ा हो सकता है।"
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27.8.19

च्यवनप्राश है सेहत की संजीवनी जानें इसके फायदे




आज के प्रदूषण भरे जीवन में स्वस्थ रहना हम सबके लिए एक चुनौती बन गया है। एक ऐसा शरीर जो हर बीमारी से लड़ने की क्षमता रखता हो हर किसी का सपना होता है। पुराने समय में जब जीवन के ज़्यादातर पहलू आयुर्वेद पर आधारित जीवनशैली से जुड़े हुए होते थे सर्दियों का मौसन आते ही सभी लोग च्यवनप्राश खाना शुरू कर देते थे। यहाँ तक कि च्यवनप्राश घर पर भी बनाया जाता था और बच्चों से ले कर बूढ़ों तक की रोजाना की खुराक में शामिल था। आप में से कई लोगों ने शायद यह कहानी सुनी होगी कि प्राचीन काल में इस अद्भुद आयुर्वेदिक फ़ौर्मूले का सेवन करके एक बहुत वृद्ध ऋषि जिनका नाम च्यवन था ने दोबारा युवावस्था प्राप्त की और उन्हीं के नाम पर इसे च्यवनप्राश नाम दिया गया।
 
च्यवनप्राश आंवला एवं विभिन्न तरह की जड़ी-बूटियों एवं अन्य सामग्री को मिलाकर बना एक जैम है। यह रंग में काला या भूरा जैम की तरह दिखता है। सर्दियों में विशेषरूप से लोग च्यवनप्राश खाते हैं क्योंकि यह सर्दियों में च्यवनप्राश शरीर को गर्म रखता है, साथ ही सेहत को भी कई मायनों में फायदा पहुंचाता है। च्यवनप्राश का नियमित सेवन करने से महिलाओं के साथ पुरूषों के स्वास्थ्य को भी बहुत लाभ पहुंचता है। च्यवनप्राश स्वाद में मीठा, हल्का खट्टा और कुछ मसालेदार सा होता है।
च्यवनप्राश कई औषधीय गुणों से युक्त जड़ी-बूटियों, आंवला और विभिन्न पौधों के अर्क से बनाया जाता है। च्यवनप्राश बनाने में उपयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियों में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने और ऊर्जा प्रदान करने के गुण मौजूद होते हैं। आजकल बाजारों में पतंजलि से लेकर हिमालया, झंड़ु और डाबर आदि ब्रांडों के च्यवनप्राश उपलब्ध हैं। च्यवनप्राश बनाने में आंवला, अश्वगंधा, नीम, पिप्पली, सफेद चंदन पावडर, तुलसी, सौंफ, दालचीनी, इलायची, अर्जुन, ब्राह्मी, शुद्ध शहद एवं घी का इस्तेमाल किया जाता है।
च्यवनप्राश के सेवन की मात्रा प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न होती है। च्यवनप्राश का लंबे समय तक सेवन करने से यह शरीर की इम्युनिटी को सुधारता है और शरीर को निरोगी बनाता है।
च्यवनप्राश बनाने वाली कुछ कंपनियां इसका सेवन दूध के साथ करने की सलाह देती हैं। लेकिन च्यवनप्राश बिना दूध के सुबह खाली पेट भी खाया जा सकता है। इसके अलावा च्यवनप्राश को गुनगुने पानी के साथ भी खाया जा सकता है।
गर्भवती महिलाओं को एक चम्मच सुबह और एक चम्मच रात को सोते समय नियमित च्यवनप्राश का सेवन करना चाहिए।
एक से पांच वर्ष तक के बच्चों को ढाई ग्राम या आधा चम्मच च्यवनप्राश का सेवन करना चाहिए।
छह से बाहर वर्ष तक के बच्चों को पांच ग्राम या एक चम्मच च्यवनप्राश खाना चाहिए।
बारह वर्ष से अधिक उम्र के लोग एक से चार चम्मच च्यवनप्राश का सेवन कर सकते हैं।
लेकिन किसी भी परिस्थिति में बीस ग्राम से अधिक च्यवनप्राश का सेवन नहीं करना चाहिए।
च्यवनप्राश के फायदे मौसमी संक्रमण से बचने में
सर्दियां शुरू होते ही मौसम में नमी बढ़ जाती है और लगातार मौसम में परिवर्तन होता रहता है। ऐसे में मौसम में नमी के कारण हवा में नए तरह के बैक्टीरिया पैदा होते रहते हैं। इस कारण से लोग बहुत जल्दी ही संक्रमण के चपेट में आ जाते हैं और संक्रमण के कारण व्यक्ति को बुखार की भी समस्या होने लगती है। इस परिस्थिति में च्यवनप्राश हमारे शरीर को फंगल एवं बैक्टीरियल संक्रमण से लड़ने के लिए मजबूत बनाता है। इसलिए जाड़े के दिनों में ज्यादातर लोग च्यवनप्राश का सेवन बैक्टीरियल इंफेक्शन से बचने के लिए करते है।

रक्त शोधक

ऐसे लोग जो काम का ज्यादा दबाव लेते हैं और काम को निपटाने के चक्कर में भरपूर नींद नहीं ले पाते या संतुलित भोजन की जगह जंक फूड खाकर पेट भर लेते हैं, ऐसे व्यक्तियों के शरीर में पर्याप्त विषाक्त जम जाता है। शरीर में इन हानिकारक पदार्थों के जमा हो जाने से व्यक्ति का शरीर धीरे-धीरे बीमारियों की चपेट में आने लगता है। इसकी वजह से शरीर के खून की प्राकृतिक तरीके से सफाई होने में भी बाधा उत्पन्न होती है। ऐसी स्थिति में रोजाना च्यवनप्राश खाने से सही तरीके से ब्लड प्यूरीफाई हो जाता है और शरीर में जमा हानिकारक पदार्थों की वजह से उत्पन्न बीमारियों से भी लड़ने के लिए हमारा शरीर सशक्त हो जाता है।

याददाश्त बढ़ाने में

भूलने की बीमारी ज्यादातर लोगों में एक आम समस्या होती है। उम्र बढ़ने के साथ ही एक समय के बाद हम सभी को बहुत सी बातें भूलने लगती हैं। ऐसे में च्यवनप्राश का सेवन करने से इसमें मौजूद जड़ी-बूटियां दिमाग के कार्य करने की क्षमता को बेहतर करती हैं और व्यक्ति के यादाश्त को भी सुधारने में मदद करती हैं। वयस्कों के अलावा च्यवनप्राश का सेवन करने से बच्चों में भी आत्मकेंद्रण की शक्ति बढ़ती है और उनका पढ़ाई में ज्यादा मन लगता है। च्यवनप्राश का सेवन करने से स्वास्थ्य को और भी कई फायदे होते हैं। यह दिमाग के तंत्रिका तंत्र को बेहतर रखता है जिससे की व्यक्ति को किसी भी तरह का स्ट्रेस नहीं होता है।

यौन शक्ति बढ़ाने में

ज्यादातर लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि च्यवनप्राश का नियमित सेवन करने से व्यक्ति की यौन शक्ति बढ़ती है और यौन संबंधी बीमारियों से भी निजात दिलाने में च्यवनप्राश काफी फायदेमंद होता है। च्यवनप्राश में मौजूद जड़ी-बूटियां महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म की समस्या को भी दूर करने में बहुत लाभकारी साबित होती हैं।

पाचन क्रिया बढ़ाने में

यदि आप ऐसे व्यक्ति हैं जिसका पाचन तंत्र बहुत कमजोर है तो नियमित च्यवनप्राश का सेवन करने से आपका बहुत फायदा होगा। च्यवनप्राश पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में सहायक होता है। यह आंत की क्रियायों को सुव्यवस्थित बनाता है जिससे कि पेट में भोजन को पचने में काफी आसानी होती है। च्यवनप्राश में दालचीनी और आंवला होता है जिसमें अग्निवर्धक गुण मौजूद होता है जो पेट फूलने या उदर स्फीति की समस्या से छुटकारा दिलाने में मदद करता है। इसके अलावा च्यवनप्राश का नियमित सेवन करने से कब्ज से पीड़ित व्यक्ति को बहुत राहत मिलती है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता 

यह अद्भुद फॉर्मूला शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को जबर्दस्त तरीके से बढाता है। आंवले से भरपूर च्यवनप्राश विटामिन सी का बढ़िया स्रोत है और यही इम्यूनिटी पावर को बढ़ाता है जिससे किसी भी तरह के संक्रमण या बीमारी के प्रति शरीर की रेसिस्टेंस पावर बढ़ जाती है।

श्वसन रोग-

च्यवनप्राश रेस्पाइरेटरी बीमारियों का रामबाण इलाज़ करता है। इसमें मौजूद औषधियाँ फेफड़ों को काम करने में मदद करती हैं और शरीर में नमी के स्तर को संतुलित रखती हैं। दमे की बीमारी वाले लोगों को अक्सर वैद्यों द्वारा च्वनप्राश खाने की सलाह दी जाती है।
  चेहरे पर झुर्रियां 
*खूब सारे एंटीओक्सीडेंट्स  होने के कारण ये फॉर्मूला त्वचा को फ्री रैडिकल्स से होने वाले नुकसान से बचाता है। यदि इसका नियमित सेवन किया जाए तो चेहरे पर झुर्रियां और बारीक रेखाएं कम आती हैं। विटामिन सी होने के कारण त्वचा की रंगत और इलास्टिसिटी भी लंबे समय तक बनी रहती है।

 हृदय और मस्तिष्क

*आंवला, ब्राह्मी, बादाम तथा घी जैसे तत्वों से भरपूर होने के कारण यह आपके हृदय और मस्तिष्क पर जादू जैसा असर डालता है और नियमित रूप से सेवन करने पर यादाश्त को बढ़ाने के साथ साथ नयी चीजों को सीखने की क्षमता को उन्नत करने और अच्छी ब्रेन पावर को बनाए रखने की क्षमता को बढ़ाता है।

विशिष्ट परामर्श-

नपुंसकता एक ऐसी समस्या है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. किसी भी पुरुष के एक पिता बनने में असमर्थ होने को पुरुष बांझपन या नपुंसकता कहा जाता है।यह तब होता है जब कोई पुरुष संभोग के लिए पर्याप्त इरेक्शन प्राप्त नहीं कर पाता या उसे मजबूत नहीं रख पाता. दामोदर चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र 
9826795656 द्वारा विकसित "नपुंसकता नाशक हर्बल औषधि" से सैंकड़ों व्यक्ति लाभान्वित हुए हैं। स्तंभन दोष दूर करने मे यह औषधि रामबाण सिद्ध होती है।

26.8.19

थायराइड की समस्या का जड़ से इलाज


                         


थायराइड, जिसे लोग एक प्रकार की बीमारी समझते हैं मौजूदा वक्त में उससे बहुत से लोग परेशान हैं। लोगों में थायराइड की समस्या आम हो गई है, जिसे कंट्रोल रखने के लिए निरंतर दवाओं का सेवन बढ़ रहा है। लेकिन सबसे पहले आपको बता दें कि थायराइड कोई बीमारी नहीं बल्कि एक प्रकार की तितली के आकार की ग्रंथि होती है, जो हमारे गले में आगे की तरफ होती है। यह ग्रंथि थायराइड हार्मोन का निर्माण करती है, जो हमारे शरीर में मेटाबॉलिज्म के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद करती है। हालांकि जब हार्मोन असंतुलित होने लगते हैं तब लोगों को थायराइड की समस्या होने लगती है। थायराइड का बढ़ना लोगों में मोटापे, थकान, पीठ दर्द जैसी समस्याओं का कारण बनता है।

सामान्य तौर पर थायराइड को नियंत्रित रखने के लिए लोग दवा का सेवन करते हैं जबकि कुछ प्राकृतिक तरीके ऐसे भी हैं, जिसके जरिए आप इस बीमारी को जड़ से खत्म कर सकते हैं। अगर आप भी थायराइड की समस्या से निजात पाना चाहते हैं तो आप अपनी डाइट में इन चीजों को शामिल कर थायराइड की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। हम आपको ऐसी पांच चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके सेवन से आप थायराइड की समस्या से दूर रहेंगे।
मुलेठी
थायराइड की समस्या से छुटकारा पाने के लिए मुलेठी को एक बेहद ही लाभकारी औषधि माना गया है। मुलेठी थायराइड ग्रंथि से हार्मोन्स के रिसाव को बढ़ाती है और शरीर में हार्मोन्स के संतुलन को ठीक रखने में मदद करती है। नियमित रूप से मुलेठी का सेवन थायराइड की समस्या को दूर करने में फायदेमंद साबित होता है। मुलेठी का सेवन आपके शरीर में हमेशा हार्मोन का संतुलन नियंत्रित रखता है, जिसके कारण आपको थायराइड की समस्या नहीं होती। इसके अलावा मुलेठी के सेवन से आपका लिवर भी फिट रहता है और आपको पेट संबंधी समस्याएं भी नहीं होतीं।
अलसी के बीज
थायराइड की समस्या से छुटकारा दिलाने में जितना फायदेमंद अलसी है उतने ही अलसी के बीज भी इस समस्या को दूर करने में लाभकारी हैं। इसके लिए आपको करना ये है कि एक चम्मच अलसी के पाउडर को 1 गिलास दूध या फिर फलों के रस में मिलाना है और अच्छी से तरह से इसका मिश्रण कर दिन में 1 से 2 बार पीना है। नियमित रूप से ऐसा करने से थायराइड की समस्या से छुटकारा मिलता है।
हरा धनिया बेहद फायदेमंद
थायराइड की समस्या से छुटकारा पाने में बाजार में बिकने वाला मामूली सा हरा धनिया बेहद फायदेमंद है। आप इसको पीसकर चटनी बना लें और सुबह-शाम इस चटनी का सेवन करें। ऐसा करने से आप थायराइड जैसी समस्या से घरेलू उपचार के जरिए निजात पा सकते हैं। आप इस चटनी को 1 गिलास पानी में घोलकर भी पी सकते हैं। इस घोल को रोजाना पीने से आपका थायराइड कंट्रोल भी रहेगा। इसके अलावा आप खाना-खाने के दौरान भी चटनी का सेवन करें। इससे आपको इस समस्या से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी।
एलोवेरा
एलोवेरा के फायदों के बारे में आपने जरूर सुना होगा। दरअसल इस प्राकतिक औषधि में 8 प्रकार के एमिनो एसिड और 12 विटामिन्स पाए जाते हैं, जो हमारे शरीर के गले में मौजूद थायराइड ग्रंथि को डिटॉक्स कर सारे विषैले पदार्थ बाहर निकालने का काम करते हैं। थायराइड को नियंत्रित या फिर इस समस्या को खत्म करने के लिए आप रोजाना सुबह इसका जूस पीएं। नियमित रूप से ऐसा करने से आपको जल्द ही इस समस्या से छुटकारा मिलेगा।
आज मैं आपको एक ऐसा उपचार बताने जा रहा हूँ जो दोनों तरह की थायराइड को सिर्फ 10 दिन में जड़ से समाप्त कर देगा।
आवश्यक सामग्री - 
कांचनार छाल चूर्ण 50 ग्राम, सहजन पत्र चूर्ण 50 ग्राम, मुलेटी चूर्ण 50 ग्राम, ग़म्बरी फल चूर्ण 50 ग्राम और गौमूत्र 250 ग्राम।
बनाने और सेवन विधि -
सबसे पहले इन सभी सामग्रियों को आपस में अच्छी तरह से सुखा कर पीस लें और पाउडर बना कर किसी कांच की शीशी में रख लें। अब आप हर रोज एक चम्मच औषधि और आधा चम्मच गोमूत्र अर्क के साथ लें। ऐसा सिर्फ 10 दिन करने से आपको किसी प्रकार की थायराइड जड़ से समाप्त हो जायेगी। इस औषधि के सेवन के आधा घंटा तक कुछ न लें।
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स्‍टीविया जड़ी बूटी में हैं कमाल के औषधीय गुण




स्टीविया जिसे मधुरगुणा के नाम से भी जाना जाता है। इसमें डायबिटीज को दूर करने के गुण होते है। स्टेविया नाम की जड़ी बूटी चीनी का स्थान ले सकती है और खास बात ये कि इसे घर की बगिया में भी उगाया जा सकता है। यह शून्य कैलोरी स्वीटनर है और इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है। इसे हर जगह चीनी के बदले इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे तैयार उत्पाद न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि दिल के रोग और मोटापे से पीड़ित लोगों के लिए भी फायदेमंद हैं। स्टीविया न केवल शुगर बल्कि ब्लड प्रेशर, हाईपरटेंशन, दांतों, वजन कम करने, गैस, पेट की जलन, त्‍वचा रोग और सुंदरता बढ़ाने के लिए भी उपयोगी होती है। यही नहीं इसके पौधे में कई औषधीय व जीवाणुरोधी गुण भी होते हैं।

   स्टेविया’ यानीं मीठी तुलसी, स्‍टीविया की पत्तियों में चीनी से तीन सौ गुना अधिक मीठास होती है। क्‍या आप स्‍टीविया ओषधीय गुणों से परिचित हैं अगर नहीं तो हम आपको इसके बारे में बताते हैं। मानव स्‍वास्‍थ्‍य को बनाए रखने के लिए सदियों से स्‍टीविया (stevia) नामक जड़ी बूटी का उपयोग किया जा रहा है। स्‍टीविया के फायदे स्‍वास्थ्‍य संबंधी कुछ विशेष समस्‍याओं को दूर करने के लिए प्रभावी माने जाते हैं। स्‍टीविया एक आयुर्वेदिक हर्ब है जो कि औषधीय गुणों के कारण विभिन्‍न प्रकार की दवाओं में व्‍यापक रूप से इस्‍‍तेमाल की जाती है। स्‍टीविया के लाभ में डाय‍िबिटीज को नियंत्रित करना, मोटापा कम करना, एलर्जी समस्‍या को रोकना, कैंसर के लक्षणों को रोकना, हृदय और रक्‍तचाप को स्‍वस्‍थ रखना आदि शामिल हैं। स्‍टीविया जड़ी बूटी को खाद्य रूप से लिया जाता है।
स्‍टीविया एक प्राकृतिक मिठास के रूप में उपयोग किया जाने वाला पौधा है। स्‍टीविया का वानस्‍पतिक नाम स्‍टीविया रेबाउडियाना (Stevia Rebaudiana) है। हालांकि कई जगहों पर स्‍टीविया को बहुत से नामों से जाना जाता है जैसे कि मीठे खरपतवार (Sweet weed), मीठे पत्‍ते और शहद की पत्‍ती आदि। स्‍टाविया पौधे की लगभग 150-300 प्रजातियां होती हैं। यह एक बारहमासी झाड़ी है। प्राकृतिक रूप से मिठास प्राप्‍त करने का यह सबसे अच्‍छा तरीका है। अन्‍य कृत्रिम स्‍वीटनर की तुलना में स्‍टीविया में कैलोरी की मात्रा बहुत ही कम होती है। स्‍टीविया शक्‍कर की तुलना में 2 सौ गुना अधिक मीठा होता है। यह पौधा ऊषणकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
भारत में स्‍टीविया को मीठी तुलसी के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा भारत के अन्‍य राज्‍यों में भी इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे कि
असम में मऊ तुलसी, मराठी में मधु परणी, पंजाबी में गुर्मार, तमिल में सीनि तुलसी, तेलुगु में मधु पत्री आदि। इसे संस्‍कृत भाषा में मधु पत्र के नाम से भी जाना जाता है।
स्‍टीविया के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ इसमें मौजूद पोषक तत्‍वों के कारण होते हैं। हालांकि स्‍टीविया की मिठास सामान्‍य चीनी की अपेक्षा 300 गुना अधिक होती है। लेकिन इस मिठास का स्‍वास्‍थ्‍य में किसी प्रकार का साइड इफैक्‍ट नहीं होता है। इसके अलावा यह शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित (Absorbed) हो जाता है। यही कारण है कि स्‍टीविया का उपयोग मधुमेह रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी होता है।
अधिक वजन या मोटापा होने के बहुत से कारण होते हैं जैसे कि शारीरिक परिश्रम की कमी, अधिक मीठा और अधिक फैट वाले खाद्य पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करना आदि। एक अध्‍ययन के अनुसार शरीर की आवश्‍यकता से अधिक मात्रा में चीनी का सेवन करने से लगभग 16 प्रतिशत कैलोरी अधिक प्राप्‍त होती है। जिससे शरीर का वजन अधिक तेजी से बढ़ सकता है। हालांकि ऐसी स्थिति में स्‍टीविया का सेवन करना फायदेमंद होता है। क्‍योंकि स्‍टीविया में कैलोरी बहुत ही कम होती है साथ ही यह शरीर में शुगर लेवल को प्रभावित भी नहीं करता है। इसका मतलब यह है कि जो लोग अपना वजन कम करना चाहते हैं वे स्‍टीविया का नियमित सेवन कर सकते हैं।
मोटापा कम करें
आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार स्टीविया से शुगर के अलावा मोटापे से भी निजात पाई जा सकती है। मोटापे के शिकार व्यक्तियों के लिए भी यह पौधा किसी वरदान से कम नहीं है। शुगर ही मोटापे का कारण बनती दिखाई दे रही है, यदि शुगर न भी हो और इसका सेवन किया जाए तो न ही शुगर होने की नौबत बन पाएगी और न ही मोटापा होगा। आज कैलोरी की समस्या भी काफी बढ़ने लगी है ऐसे में भले ही स्टीविया चीनी से अधिक मीठा हो किंतु इसमें ग्लूकोस की मात्रा न होने के कारण इससे कैलोरी के अनियंत्रित होने की संभावना नहीं रहती।
मधुमेह के लिए
विभिन्‍न स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को दूर करने के अलावा मुख्‍य रूप से स्‍टीविया के लाभ डायबिटीज के लिए होते हैं। स्‍टीविया की उचित मात्रा का सेवन करने से खून में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। स्‍टीविया लीफ का सेवन करने से डायबिटिक रोगी के मीठा खाने की लालसा को कम किया जा सकता है। स्‍टीविया में स्‍टीविओसाइड (stevioside) होता है जो कि ग्‍लाइकोसाइड यौगिक है। जिसके कारण स्‍टीविया मधुमेह रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद होती है। मधुमेह रोगी इस औषधी का सेवन डॉक्टर की सलाह पर बिना किसी परेशानी के कर सकते हैं क्‍योंकि यह ब्‍लड शुगर के स्‍तर को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।
कैंसर को रोके
कैंसर एक गंभीर स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या है जिसका शायद अब तक इलाज संभव नहीं है। लेकिन स्‍टीविया के फायदे कैंसर के लक्षणों को कम करने में मदद करते हैं। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि स्‍टीविया में कई प्रकार के एंटीऑक्‍सीडेंट की अच्‍छी मात्रा होती है। जिसके कारण स्‍टीविया के गुण कैंसर को रोकने में प्रभावी होते हैं। स्टेविया में मौजूद क्वेरसेटिन, केम्पफेरोल और अन्य ग्लाइकोसाइड यौगिक शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले फ्री रेडिकल्‍स (Free radicals) को खत्म करने में मदद करते हैं। जिससे स्‍वस्‍थ कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं में बदलने से रोका जा सकता है। इसलिए कैंसर के लक्षणों को कम करने और उपचार को गति देने में स्‍टीविया (Stevia) के फायदे होते हैं।
रक्‍तचाप नियंत्रित करे
रक्‍तचाप संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए स्‍टीविया एक प्रभावी औषधी मानी जाती है। स्‍टेविओसाइड एक प्रकार का ग्‍लाइकोसाइड है लेकिन स्टीविया में अन्‍य ग्‍लाइकोसाइड भी होते हैं। जो वास्‍तव में रक्‍त वाहिकाओं को आराम दिलाने में भी सहायक होते हैं। इसके अलावा स्‍टीविया के पोषक तत्‍वों में पोटेशियम भी शामिल होता है। जिसके कारण रक्‍त वाहिकाओं की दीवारों को स्‍वस्‍थ रखने में मदद मिलती है। नियमित रूप से स्‍टीविया का सेवन करने से यह मूत्र वर्धक का काम करता है जिससे शरीर में सोडियम की अतिरिक्‍त मात्रा को विनियमित करने में मदद मिलती है। इन सभी का सीधा संबंध आपके हृदय स्‍वास्‍थ्‍य से होता है।
जिसके कारण स्‍टीविया का सेवन करने से हृदय में तनाव को कम किया जा सकता है जिससे रक्‍तचाप को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। यदि आप भी रक्‍तचाप संबंधी परेशानियों से बचना चाहते हैं स्‍टीविया के औषधीय गुणों का उपभोग कर सकते हैं।
ड्रैंडफ और मुंहासों को दूर करें
एंटी-बैक्‍टीरियल, एंटी-फंगल और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुणों से भरपूर होने के कारण, स्‍टीविया मुंहासों और रूसी की समस्‍या से छुटकारा पाने में मदद करता है। इसके अलावा यह ड्राई और डैमेज बालों को ठीक करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। बालों में ड्रैंडफ को दूर करने के लिए इसके स्‍टीविया के सत्‍त की कुछ बूंदों को शैम्‍पू में मिलाकर नियमित रूप से उपयोग करें। और मुंहासों की समस्‍या होने पर स्‍टीविया की पत्तियों को पेस्‍ट बनाकर इसे प्रभावित त्‍वचा पर लगाये या इसके सत्‍त को सीधा मुंहासों पर लगाकर, रातभर के लिए छोड़ दें। अच्‍छे परिणाम पाने के लिए इस उपाय को नियमित रूप से करें।
दांत स्‍वस्‍थ रखे
अधिक मीठे खाद्य पदार्थो का सेवन करना दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है। क्‍योंकि ज्यादा मीठे खाद्य पदार्थ खाने से दांतों में कैविटी (Cavity) और सड़न जैसी समस्‍याओं की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन स्‍टीविया पाउडर का उपयोग शुगर के प्रभाव से उल्‍टा होता है। यह शक्‍कर से भी अधिक मीठा होने के बाद भी दांतों को किसी प्रकार का साइड इफैक्‍ट नहीं पहुंचाता है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि स्‍टीविया में दांतों के सुरक्षा कवच को नुकसान पहुंचाने वाले गुण बहुत ही कम मात्रा में होते हैं। इसके अलावा चीनी में सुक्रोज होता है जो दांतों की समस्‍या का प्रमुख कारण होता है। जबकि स्‍टीविया में स्‍टेवियोसाइड होता है जो दांतों के लिए सुरक्षित है। आप भी अपने दांतों को स्‍वस्‍थ्‍य रखने के लिए स्‍टीविया और स्‍टीविया के पत्‍तों का उपयोग कर सकते हैं।
हड्डियों के लिए
इस मामले में कोई प्रमाणि सबूत नहीं हैं फिर भी कुछ अध्‍ययन बताते हैं स्‍टीविया के लाभ हड्डियों को मजबूत बनानेमें सहायक होते हैं। एक पशु अध्‍ययन के अनुसार मुर्गियों को स्‍टीविया आधारित आहार खिलाया गया। जिसके परिणाम स्‍वरूप यह पाया गया कि मुर्गियों के अंड़ों में कैल्शियम की मात्रा अन्‍य मुर्गियों से ज्‍यादा है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि नियमित रूप से स्‍टीविया की पत्तियों का सेवन करने से कैल्शियम की कमी को दूर किया जा सकता है। जिससे हड्डियों घनत्‍व औरऔर उत्‍पादन दोनों को बढ़ाने में मदद मिल सकती है। यदि आप भी अपनी हड्डियों को स्‍वस्‍थ बनाए रखना चाहते हैं तो दैनिक आहार में स्‍टीविया को शामिल कर सकते हैं।
पेट को स्‍वस्‍थ रखे
पेट और पाचन समस्‍याओं को दूर करने के लिए स्‍टीविया का इस्‍तेमाल बहुत ही फायदेमंद होता है। यदि पेट की खराबी, बदहजमी, अपच आदि समस्‍याओं से परेशान हैं तो स्‍टीविया के अर्क (Extract) का सेवन कर सकते हैं। इसके लिए आप पानी में स्‍टीविया की पत्तियों को उबालें और अर्क तैयार करें। इस अर्क का सेवन करने से आपको पेट संबंधी समस्‍याओं से छुटकारा मिल सकता है।
हार्टबर्न और अपच कम करने में मददगार
स्‍टीविया में विशिष्‍ट संयंत्र ग्‍लाइकोसाइड की उपस्थिति, पेट के अस्‍तर में होने वाली जलन को दूर करने में मदद करता है। इस तरह से अपच और हार्टबर्न के उपचार में मदद करता है। अपच की समस्‍या से बचने के लिए स्‍टीविया की एक प्‍याली गर्म चाय ही काफी है। जबकि हार्टबर्न से बचने के लिए आपको स्‍टीविया से बनी ठंडी चाय पीनी चाहिए।
लिवर को स्‍वस्‍थ रखे
स्‍टीविया का सेवन नियमित आहार के रूप में करना यकृत स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने में सहायक होता है। एक अध्‍ययन के अनुसार नियमित रूप से स्‍टीविया पाउडर का सेवन करने से यृकत कोशिकाओं (Lutein cells) की क्षति और सिरोसिस जैसी समस्‍याओं को रोका जा सकता है। इसके अलावा अधिक मात्रा में शराब का सेवन करने से यकृत को होने नुकसान को भी कम करने में स्‍टीविया का उपयोग लाभकारी होता है।
एलर्जी दूर करे
सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ लोगों के लिए पौष्टिक और लाभकारी होते हैं। लेकिन यही खाद्य पदार्थ कुछ लोगों एलर्जी का कारण भी हो सकती है। लेकिन औषधीय गुणों से भरपूर स्‍टीविया का इस्‍तेमाल करने से किसी प्रकार की एलर्जी नहीं होती है
स्‍टीविया का उपयोग कैसे करें
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि स्‍वास्‍थ्‍य लाभ होने के कारण स्‍टीविया का उपयोग दवा या जड़ी बूटी के रूप में किया जाता है। स्‍टीविया का उपयोग आपके पसंदीदा खाद्य पदार्थों ड्रिंक के रूप में चीनी के विकल्‍प में किया जा सकता है। स्‍टीविया पाउडर की 1 चुटकी मात्रा लगभग 1 चम्‍मच शक्कर के बराबर मीठा होता है। स्‍टीविया का उपयोग निम्‍न तरीके से किया जा सकता है।
दूध या दही (curd) आदि के साथ स्‍टीविया पाउडर का सेवन।
लगभग सभी मीठे खाद्य पदार्थों में आवश्‍यकता के अनुसार स्‍टीविया का उपयोग फायदेमंद होता है।
कॉफी या चाय के साथ स्‍टीविया पाउडर का उपयोग।
नींबू पानी बनाने के दौरान चीनी की जगह स्‍टीविया का रस या पाउडर।
अपने खाद्य आहार को स्‍वादिष्‍ट बनाने के लिए उपर से स्‍टीविया की पत्‍ती या पाउडर (Stevia powder) का उपयोग।
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24.8.19

पार्किंसंस रोग के कारण ,लक्षण ,उपचार


हाथ पैर में कम्पन (Parkinson’s Desease) एक दिमाग की बिमारी है. यह लम्बे समय तक दिमाग में पलती है. यह रोग अपना असर बहुत धीरे धीरे दिखाता है. रोगी को पता भी नहीं चल पाता की कब उसे इस रोग ने जकड़ लिया है. रोग के लक्षण जब काफी अधिक हो जाते है. तब एहसास होता है कि शायद कोई प्रॉब्लम है. इस रोग के लग जाने पर रोगी के हाथ पैर कंपकंपाने लगते है.
पार्किंसंस रोग नर्वस सिस्टम से जुड़ी एक बीमारी है जिसमें हाथों की हथेलियों में लगातार और तेज कंपन होता है। इस बीमारी की शुरूआत में केवल एक हथेली में कंपन होता है लेकिन धीरे-धीरे यह दूसरी हथेली को भी प्रभावित करने लगती है। पार्किंसन्स रोग होने पर हथेली अक्सर झुकी रहती है और हथेलियों में कंपन होता रहता है। शुरूआती स्टेज में इस बीमारी का जल्दी पता नहीं चल पाता है। इसके अलावा काम करते या टहलते समय भी हाथों की क्रिया में कोई खास परिवर्तन नहीं दिखता है।
जैसे-जैसे समय बीतता है पार्किंसंस रोग के लक्षण और खतरनाक होने लगते हैं। आमतौर पार्किंसन्स रोग को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है लेकिन कुछ दवाओं के जरिए इस बीमारी के लक्षणों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।


पार्किंसंस रोग के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं। इसके शुरूआती लक्षण इतने मामूली होते हैं कि जल्दी इसपर किसी का ध्यान नहीं जाता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को शुरू में सिर्फ एक हाथ में कंपन होता है लेकिन बाद में दूसरे हाथ में भी वैसा ही कंपन होने लगता है।

यह बीमारी आमतौर पर हाथ या उंगलियों में कंपन से शुरू होती है। आप अपने हाथ के अंगूठे को तर्जनी उंगली पर रगड़कर इसे महसूस कर सकते हैं। इस बीमारी का एक संकेत यह भी है कि आपके हाथों में हमेशा बेचैनी सी महसूस होगी।
पार्किंसंस रोग होने पर हाथों की गति कम हो जाती है और हाथ कम हिलते-डुलते हैं जिसे ब्रैडीकाइनेसिया कहते हैं। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति को हाथ से खाना खाने में भी परेशानी होती है। इसके अलावा टहलते समय कदमों की गति धीमी हो जाती है और पीड़ित व्यक्ति को कुर्सी से उठने में दिक्कत होती है।
यदि रोगी व्यक्ति लिखने का काम करता है तो उसके लिखे अक्षर टेढ़े मेढ़े हो जाते हैं. रोगी को हाथ से चीजों को पकड़ने तथा उठाने में परेशानी महसूस होती है. इस रोग से पीड़ित रोगी के जीभ, जबड़े तथा कभी कभी आंखे भी कंपकंपाने लगती है. कुछ मरीज़ों में यह ‍कम्पन शुरु में कम रहता है. बाद में ज्यादा देर रहने लगता है.
पार्किंसंस रोग होने पर शरीर के किसी भी हिस्से की मांसपेशियां कठोर हो सकती हैं। इससे आपको हिलने डुलने में परेशानी और दर्द का अनुभव होगा।

पार्किंसन्स रोग होने पर आपको उठने-बैठने में अधिक तकलीफ होती है और आपकी बैठने की मुद्रा भी बदल जाती है। इसके अलावा बार-बार पलकें झपकना, मुस्कुराना और चलते समय हाथों को झटकने जैसे लक्षण भी देखे जाते हैं।


इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को बोलने में भी परेशानी होती है। मरीज जल्दी-जल्दी बोलता है या बोलने से पहले संकोच करता है। व्यक्ति की आवाज भी कर्कश हो सकती है जो सुनने में असामान्य सी लगेगी। आपको लिखने में भी दिक्कत होगी और आपको अपना लिखा छोटा दिखेगा।
व्यक्ति में पार्किंसंस रोग होने पर दिमाग की कुछ तंत्रिका कोशिकाएं या न्यूरॉन धीरे-धीरे टूट जाती हैं या मृत हो जाती हैं। न्यूरॉन के टूटने पर यह दिमाग में एक रासायनिक संकेत पैदा करता है जो डोपामिन कहलाता है। जब डोपामिन का लेवल घटने लगता है तो मस्तिष्क असामान्य तरीके से काम करने लगता है जिससे हमें पार्किंसंस रोग होने का संकेत मिलता है। ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से पर्किंसन रोग होता है
शोधकर्ताओं ने पार्किंसन्स रोग होने के पीछे जेनेटिक म्यूटेशन को जिम्मेदार माना है। इसका मतलब यह है कि अगर आपके घर का कोई सदस्य पार्किंसन्स रोग से पीड़ित है तो आपको भी यह बीमारी होने की संभावना बनी रहती है। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर मामले में पार्किंसंस रोग के पीछे जीन ही कारण हो।
दूषित पर्यावरण और विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने से भी पार्किंसंस रोग होने की संभावना होती है। हालांकि इससे कम ही लोग प्रभावित होते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया है कि पार्किंसन्स बीमारी होने मरीज के दिमाग में कई तरह के बदलाव होने लगते हैं लेकिन यह पता नहीं चल पाया है कि ये बदलाव किस वजह से होते हैं।
पार्किंसन्स रोग एक खास आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित करता है। जिन लोगों में पर्किंसन रोग पाया जाता है उनमें ज्यादातर लोगों की उम्र साठ वर्ष या इससे ज्यादा होती है।
पुरूषों में 
यह पार्किंसंस बीमारी महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों में यह पार्किंसंस बीमारी होने का खतरा डेढ़ से दो गुना अधिक होती है।
अगर परिवार में किसी व्यक्ति को पार्किंसंस रोग हो तो अन्य सदस्यों को भी यह बीमारी होने का डर बना रहता है। पहले हाथ सुन्न होने के लक्षण दिखते हैं फिर हाथों में तेज कंपन शुरू हो जाता है।
सिर में घाव लगने या दूषित वातावरण में मौजूद हानिकारक पदार्थों और कीटनाशकों और जड़ी-बूटियों के प्रभाव से भी यह बीमारी हो जाती है।
पार्किंसन्स रोग से पीड़ित व्यक्ति को सोचने समझने और याद रखने में परेशानी होती है। यह लक्षण काफी देरी से दिखता है। इस तरह की समस्या को ठीक करने में दवाएं भी ज्यादा कारगर नहीं होती है।


डिप्रेशन

पार्किंसन्स रोग होने पर व्यक्ति को अधिक डिप्रेशन होता है। इस स्थिति में डिप्रेशन
का इलाज कराने से पार्किंसन्स की बीमारी से आसानी से लड़ने में मदद मिलती है। इसके अलावा कुछ भावनात्मक बदलाव भी होते हैं जैसे अचानक से आप डर, चिंता और आत्मविश्वास में कमी महसूस होने लगती है। डॉक्टर ऐसे मरीज को कुछ दवाएं देकर पार्किंसन्स रोग के लक्षणों को कम करते हैं।
पेशाब करने में परेशानी
 पार्किंसन्स रोग से पीड़ित व्यक्ति को थोड़ी देर तक भी पेशाब रोककर रखने में परेशानी होती है। इसके अलावा उसे पेशाब करने में भी दिक्कत होती है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति की पाचन क्रिया धीमी हो जाती है जिससे उसे कब्ज की भी समस्या हो जाती है।


नींद की समस्या

 पार्किंसन्स की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को नींद की समस्या हो जाती है। रात में बार-बार मरीज की नींद खुल जाती है। वह सुबह जल्दी उठ जाता है और पूरे दिन उसे नींद नहीं आती है। इसके अलावा इस रोग से पीड़ित व्यक्ति नींद में बार-बार अपनी पलकें सिकोड़ता और फैलाता है जैसे वह कोई सपना देख रहा हो। दवाओं के जरिए इस समस्या को ठीक किया जा सकता है।
पार्किंसंस रोग में होती है भोजन निगलने में परेशानी
पार्किंसन्स रोग से पीड़ित मरीज को भोजन निगलने में भी परेशानी होती है। भोजन निगलने में परेशानी होने की वजह से लार मुंह में जमा हो जाता है और फिर मुंह से बाहर टपकने लगता है।
पार्किंसंस रोग से बचाव
अभी तक पार्किंसन्स रोग होने की सही वजह नहीं पता चल पायी है। यह लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है। लेकिन रिसर्च में पाया गया है कि कॉफी में मौजूद कैफीन और चाय तथा कोला पार्किंसन्स की बीमारी के खतरे को बढ़ने से रोकते हैं। इसके अलावा ग्रीन टी भी पर्किंसन की बीमारी को बढ़ने से रोकने में मदद करती है। कुछ रिसर्च यह भी दावा करते हैं कि एरोबिक एक्सरसाइज से पर्किंसन बीमारी के खतरे को कम किया जा सकता है।
हाथ पैर में कम्पन (Parkinson’s Disease) का घरेलू उपचार
*इस रोग में 4-5 दिनों तक पानी में नीबू पीना तथा नारियल का पानी पीना चाहिए.
*फलों तथा सब्जियों का रस पीना चाहिये. लगभग 10 दिनों तक बिना पका हुआ भोजन लेना चाहिए.
*सोयाबीन या तिल को दूध में मिलाकर या फिर बकरी का दूध पीने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है.
हरी पत्तेदार सब्जियों का सलाद खाना चाहिए.
*विटामिन E की मात्रा अधिक वाले भोजन का अधिक सेवन करना चाहिए.
* विटामिन B :
शरीर में विटामिन Bकी कमी होने के कारण आपको हाथों पैरों में कम्पन और आपके दिमाग द्वारा किये जाने वाले कार्यो में बाधा उत्त्पन्न हो सकती है, इसीलिए आपको हरी सब्जियों, फलों, दालें, बीन्स, अंडा आदि का सेवन करने से विटामिन और अन्य मिनरल्स की कमी को पूरा करने में मदद मिलती है, जिसके कारण आपको हाथों पैरों में होने वाली कम्पन की समस्या से भी राहत पाने में मदद मिलती है।
* चाय :
कुछ चाय जैसे chamomile, laung और lavandula आदि पीने से आपके दिमाग में शान्ति बनती है और दिमाग की तंत्रिकाओं को आराम मिलता है इसके फलसवरूप मानसिक तनाव में कमी आती है। यदि आपको मानसिक तनाव और टेंशन के कारण हाथ कांपने की शिकायत है तो आज से ही इन चाय का सेवन करना शुरू कर दीजिये।
* जटामांसी :
हाथ-पैर कांपने पर या किसी दूसरे अंग के अपने आप हिलने पर जटामांसी का काढ़ा 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करना चाहिए।
*कॉफी, चाय, नशीले पदार्थ, नमक, चीनी, डिब्बा बंद पदार्थ नहीं खाने चाहिए.
*हर रोज व्यायाम करने से यह रोग जल्दी ठीक हो जाता है.
*विचारों को हमेशा सकरात्मक रखना चाहिए तथा हमेशा खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए.
* तगार :
तगार की जड़ भी हाथों और पैरों में होने वाली कम्पन की समस्या से आपको आराम दिलाने में मदद करती है, क्योंकि इसमें आपको मांसपेशियों, दिमाग को शांत और अनिंद्रा की समस्या को दूर करने के गुण होते है, इसके इस्तेमाल के लिए आप दिन में दो से तीन बार इसकी चाय बना कर इसका सेवन करें, आपको आराम महसूस होगा।
* लहसुन :


शरीर का कम्पन दूर करने के लिए बायविडंग एवं लहसुन के रस को पकाकर सेवन करने से रोगी को लाभ मिलता है। लहसुन के रस से शरीर पर मालिश करने से रोगी का कंपन दूर होता है। 4 जावा (कली) लहसुन छिलका हटाकर पीस लें। इसे गाय के दूध में मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से कम्पन के रोगी का रोग ठीक हो जाता है।
* ध्यान व योगा :
इस समस्या से बचने के आसान उपचार है की आप नियमित सुबह उठ कर ध्यान व योगा करें, ऐसा करने से आपके दिमाग को रिलैक्स रहने में मदद मिलती है, साथ ही मानसिक तनाव व् अनिंद्रा की समस्या से भी राहत मिलती है, और आपको शाम के समय भी पार्क आदि में वॉक या जॉगिंग के लिए जरूर जाना चाहिए।
* निर्गुण्डी :
निर्गुण्डी की ताजी जड़ एवं हरे पत्तों का रस निकाल कर उसमें पाव भाग तिल का तेल मिलाकर गर्म करके सुबह-शाम 1-1 चम्मच पीने से तथा मालिश करते रहने से कंपवात, संधियों का दर्द एवं वायु का दर्द मिटता है। स्वर्णमालती की 1 गोली अथवा 1 ग्राम कौंच का पाउडर दूध के साथ लेने से लाभ होता है।
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मजबूत दांत पाचन, स्पीच और आपको स्वस्थ रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसका स्वस्थ और मजबूत रहना बहुत ही जरूरी है। आज हम जानेंगे कि अपनी मुस्कान को भी तरोताजा रखने के लिए अपने दांतों की सफाई और मजबूती का ख्याल कैसे रखा जाए।
दांत हमारे शरीर का एक अभिन्‍न और अनिवार्य हिस्‍सा हैं। इसलिए दांतों को मजबूत करने के उपाय, तरीके और नुस्‍खे आपको पता होना चाहिए। दांतों का स्‍वस्‍थ होना आपके चेहरे की सुंदरता को भी परिभाषित करता है। कल्‍पना करें कि यदि आपके दांत न हों तो आप कैसा महसूस करेंगे। आप अपनी इच्‍छानुसार भोजन का सेवन नहीं कर पायेंगे साथ ही आपका चेहरा बुजुर्गों की तरह दिखाई देगा। हालांकि यह मात्र एक कल्‍पना है। लेकिन यदि आपके दांत स्‍वस्‍थ और मजबूत नहीं होगें तो ऐसी स्थिति आने में समय नहीं लगेगा। आपको घबराने की आवश्‍यकता नहीं है क्‍योंकि दांतों को मजबूत करने के उपाय भी मौजूद हैं। आप अपनी जीवनशैली में कुछ परिवर्तन करके और कुछ विशेष खाद्य पदार्थों का सेवन कर दांतों को मजबूत बना सकते हैं।
अक्‍सर हम देखते हैं कि छोटे बच्‍चों और बुजुर्गों के दांतों में दर्द बना रहता है। हालांकि कमजोर दांत के लक्षण किसी भी उम्र में दिखाई दे सकते हैं। कमजोर दांत के लक्षण में ढीले दांत, खाने के दौरान दर्द या असुविधा, दांतों के आसपास मसूड़ों की सूजन या लालिमा, मसूड़ों से खून आना आदि शामिल हैं। स्‍वाभाविक रूप से दांतों को मजबूत करने के उपाय और तरीके अपनाकर आप भी अपने दांतों को स्‍वस्‍थ रख सकते हैं।
आपके दांत आपके स्‍वस्‍थ रहने का एक प्रमुख साधन है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि बिना दांतों के आप उचित आहार का सेवन नहीं कर सकते हैं। जिससे आपको पर्याप्‍त पोषक तत्‍व प्राप्‍त होते हैं। यदि आपके दांत कमजोर हैं या उनमें किसी प्रकार की समस्‍या है तो आपको तुरंत ही दांतों को मबजूत बनाने के उपाय अपनाना चाहिए। इसके लिए आप कुछ औषधीय जड़ी-बूटीयों, खाद्य पदार्थों और अच्‍छी आदतों को शामिल कर सकते हैं। आइए विस्‍तार से जाने दांतों को मजबूत करने के उपाय क्‍या हैं।



कैल्शियम है जरूरी

कैल्शियम, विटामिन डी और फास्फोरस बच्चों और वयस्कों में स्वस्थ दांतों और मसूड़ों के गठन और रखरखाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| आपकी हड्डियों और दांतों को मजबूत रखने में कैल्शियम बहुत मदद करता है। इसलिए अपने आहार कैल्शियम को शामिल कीजिए। इसके अलावा दांतो को मजबूत रखने के लिए ऐसे उत्पाद का इस्तेमाल करें जिसमें फ्लोराइड मौजूद हों।
खूब पानी पिएं
दांतों को मजबूत बनाने के सबसे प्रभावी उपाय में पर्याप्‍त पानी पीना भी शामिल है। पानी पीना आपके दांतों में मौजूद भोजन के अवशेष और बैक्‍टीरिया आदि को साफ करने का काम करता है। इसके अलावा पानी पीना एसिडिटीके लक्षणों को भी बेअसर करता है जो दांतों के सुरक्षा आवरण को नुकसान पहुंचाते हैं। आप भी अपने दांतों को मजबूत बनाने के लिए भोजन के बाद कुल्‍ला करने की आदत बनाएं। जिससे भोजन के बाद मुंह में बचे हुए भोजन के टुकड़ों को बाहर किया जा सके। जिससे दांतों की सड़न और अन्‍य समस्‍याओं से छुटकारा मिल सकता है। आप भी अपने दांतों को मजबूत बनाने के लिए बहुत सारा पानी पीना सुनिश्चित करें।
लहसुन
लहसुन भी शरीर और दांतों के लिए अच्छा माना गया है। लहसुन एंटी-बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होता है। इसमें एलिसिन नामक तत्व होते हैं, जो एंटीफंगल, एंटीवायरल और एंटी-बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होता है। यह खराब बैक्टीरिया को नियंत्रित करता है, जो कैविटी और मसूड़े के रोग की समस्याओं का कारण बनते हैं।
काली मिर्च और हल्‍दी
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि कालीमिर्च और हल्‍दी को मसाले के रूप में भी उपयोग किया जाता है जो कि वास्‍तव में जड़ी बूटीयां हैं। इनका उपयोग करने से मसूड़ों को मजबूत बनाने में मदद मिलती है। जिसके कारण आप अपने दांतों को मजबूत बना सकते हैं। इसके लिए आप कालीमिर्च और हल्‍दी के पाउडर का पेस्‍ट बनाएं और इससे अपने दांतों और मसूड़ों की हल्‍की मालिश करें। इसके बाद आप लगभग 30 मिनिट तक कुछ भी ना खाएं और न ही कुछ पिएं। ऐसा करने से आपको मसूड़ों की सूजन से राहत मिलेगी साथ ही हल्‍दी और कालीमिर्च के पोषक तत्‍व आपके दांतों को मजबूत करेंगे।
नमक
आप अपने आहार में नमक का नियमित सेवन करते हैं। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि नमक का उपयोग आपके दांतों को मजबूत बना सकता है। आप अपने दांतों को स्‍ट्रोग बनाने के लिए भी नमक का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए आप सरसों के तेल में थोड़ा सा नमक लें और इससे अपने दांतों की मालिश करें। ऐसा करने से आपके मसूड़े स्‍वस्‍थ रहेंगे। जिससे स्‍वाभाविक रूप से दांतों को मजबूत बनाया जा सकता है।
मालिश करें
दांतों को सेहतमंद बनाने के लिए केवल ब्रश करना ही काफी नहीं है। इन्हें मजबूत और सफेद बनाने के लिए दांतों की मालिश करना भी बहुत आवश्यक है। इसके लिए नींबू बहुत ही फायदेमंद है। आप नींबू के रस से दिन में दो बार दांतों की मालिश करें ,जिससे दांत चमक उंठेगे। आप चाहे तो सरसों के तेल में थोड़ा-सा नमक मिलाकर भी दांतों और मसूढ़ों की मालिश कर सकते हैं जिससे दांत मजबूत बनेंगे।पुदीने का तेल
पुदीने का तेल आपके दांतों को मजबूत करने का सबसे अच्‍छा तरीका हो सकता है। यह मसूड़ों के दर्द और सूजन को दूर करने में मदद करता है। यदि आपके दांत कमजोर हैं और हिल रहे हैं तब भी आप पुदीने के तेल का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। दांतों के दर्द से राहत पानी के लिए आप पुदीने के तेल से मसूड़ों की मालिश करें। पुदीने में मौजूद दर्द नाशक और सूजन विरोधी गुण मसूड़ों को आराम दिलाने और दांतों को मजबूत करने में सहायक होते हैं।
नीम
दांतों को मजबूत करने के लिए एक और आयुर्वेदिक उपाय नीम है। नीम में जीवाणुरोधी गुण होते हैं जो दांतों को स्वस्थ रखने और मसूड़ों को मजबूत करने में मदद करता है। एक अध्‍ययन के अनुसार दांतों के पारंपरिक उपचार के लिए नीम के पत्‍तों का उपयोग किया जा सकता है। अध्‍ययन के अनुसार नीम, आम या क्‍लोरहेक्सिडाइन (chlorhexidine) युक्‍त माउथवॉश का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। क्‍योंकि इनमें कई प्रकार के एंटीसेप्टिक गुण मौजूद होते हैं। यदि आप दांतों को मजबूत करना चाहते हैं तो नियमित रूप से 3 स्‍प्‍ताह तक दिन में दो बार नीम से बने माउथवॉस का उपयोग करें। यह आपके दांतों को मजबूत करने के साथ ही मसूड़ों को भी स्‍वस्‍थ रखने में सहायक होता है।
आंवला
आंवला में विटामिन सी की अच्‍छी मात्रा होती है। सभी लोग यह जानते भी हैं कि आंवले का सेवन दांतों के लिए अच्‍छा होता है। लेकिन अधिकांश लोग जानने के बाद भी इसे अनदेखा कर देते हैं। आंवले में मौजूद विटामिन सी दांतों और मसूड़ो से जुड़ी समस्‍याओं को प्रभावी रूप से दूर करने और इन्‍हें मजबूत बनाने में मदद करता है। आप आंवले का सेवन करने के साथ ही आंवले के रस से दिन में कई बार कुल्‍ला कर सकते हैं। ऐसा करना भी आपके दांतों के लिए फायदेमंद होता है।


लौंग तेल

प्राचीन समय से ही दांत के दर्द को कम करने और दांतों को मजबूत बनाने के उपाय में लौंग के तेल का उपयोग किया जा रहा है। मसूड़ों में सूजन और दर्द होने की स्थिति में लौंग तेल बहुत ही प्रभावी होता है। लौंग में विभिन्‍न प्रकार के एंटीऑक्‍सीडेंट, एंटी-इंफ्लामेटरी और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं। जो दांतों को कमजोर करने वाले बैक्‍टीरिया को नष्‍ट करने में सहायक होते हैं। अपने दांतों को मजबूत करने के लिए आप नियमित रूप से दिन में दो लौंग के तेल से दांतों और मसूड़ों की मालिश कर सकते हैं। लौंग का तेल दांत मजबूत करने का घरेलू नुस्‍खा है जो कि बहुत ही प्रभावी होता है।
मुलैठी
मुलैठी एक औषधीय जड़ी बूटी है जो आपके दांतों को मजबूत करने का तरीका हो सकती है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि मुलैठी में लिकोरीसीडिन और लिकोरीसोफ्लैवन ए मौजूद होता है। ये घटक दांतों को नुकसान पहुंचाने वाले बैक्‍टीरिया के विकास को रोकने और उन्‍हें नष्‍ट करने में सहायक होते हैं। इसलिए आप अपने दांतों को मजबूत और स्‍वस्‍थ बनाने के लिए मुलैठी युक्‍त टूथ पेस्‍ट का उपयोग कर सकते हैं।
दही का उपयोग
प्राकृतिक रूप से प्रोबायोटिक्‍स प्राप्‍त करने का सबसे अच्‍छा तरीका ताजे दही का सेवन करना है। प्रोबायोटिक्‍स हमारे शरीर के अच्‍छे बैक्‍टीरिया होते हैं। दही का सेवन करने से आप अपने शरीर में अच्‍छे बैक्‍टीरिया की संख्‍या को बढ़ाकर खराब बैक्‍टीरिया की संख्‍या को संतुलित कर सकते हैं। दांतों का कमजोर होना और अन्‍य दांतों से संबंधी समस्‍याएं इन खराब बैक्‍टीरिया की अधिक मात्रा के कारण होती हैं। इसलिए दांतों को मजबूत करने के लिए दही का सेवन अच्‍छा होता है। इसके अलावा नियमित रूप से दही का सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है।
खट्टे फलों से बचें
खट्टे फल स्‍वास्‍थ्‍य के लिए फायदेमंद होते हैं। लेकिन अधिक मात्रा में इनका सेवन करना आपके दांतों के लिए हानिकारक हो सकता है। नींबू जैसे अन्‍य खट्टे फलों में अम्‍ल की अधिक मात्रा होती है जो दांतों के सुरक्षा कवच या तामचीनी (enamel) को नुकसान पहुंचा सकता है। जिससे आपके दांत कमजोर और क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। इसलिए अधिक मात्रा में इस प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए।

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