7.3.24

नीम के औषधीय उपयोग ,Benefits of neem tree




नीम का पेड़ उन चुनिंदा पौधों में से है जिसके लगभग हर भाग का हम इस्तेमाल कर सकते हैं। नीम के फायदे सैंकड़ों हैं और इसका हर भाग आप इस्तेमाल में ला सकते हैं। जहां नीम की पत्तियां त्वचा को स्वस्थ रखने और खून को साफ करके का काम करती हैं तो वहीं इसकी छालें पाचन तंत्र को बेहतर करती हैं। इसके अलावा इसका तेल, बीज और फूल भी कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है।
इसे आप प्रकृति का वरदान कह सकते हैं जो आसानी से उपलब्ध भी हो जाता है, खासकर कि ग्रामीण इलाकों में। इसकी खासियत और फायदों को देखते हुए ही इसका नाम Wonder Tree यानि अद्भुत वृक्ष भी रखा गया है। प्राचीन समय से ही इस औषधीय पौधे का इस्तेमाल विभिन्न रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता रहा है और आज की आधुनिक दवाओं में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
नीम की सबसे अच्छी बात यह है कि इसके सभी भाग यानी इसकी जड़, तना, पत्ते, गोंद, बीज और तेल का इस्‍तेमाल स्वास्थ्य के लिए किया जा सकता है। यह स्वाद में कड़वा और कसैला, प्रकृति में सूखा और हल्का और कूलिंग गुणों से भरपूर होता है। इसलिए पेट से जुड़ी समस्‍याओं, यूरिन और त्वचा रोगों के लिए फायदेमंद होता है।
गठिया और सूजन के इलाज में मदद करता है
कई अध्ययनों से पता चला है कि नीम आसानी से सूजन और गठिया का इलाज कर सकता है। इस पौधे में "निंबिडिनी" नामक एक रसायन होता है, जिसमें गठिया-रोधी और सूजन-रोधी गतिविधियाँ होती हैं। निंबिडिन "न्यूट्रोफिल" और "मैक्रोफेज" की भड़काऊ क्रियाओं को रोक सकता है।
यह सूजन को कम करने में भी सहायता कर सकता है और दर्द और सूजन दोनों को भी कम कर सकता है। नीम उन लोगों के लिए भी बेहद फायदेमंद है जो "रुमेटीइड गठिया" से पीड़ित हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जो ऑटो-इम्यून रिएक्शन के कारण मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और सूजन का कारण बनती है।
नीम संक्रमण का इलाज कर सकता है
*नीम उन लोगों की मदद कर सकता है जो डेंगू बुखार से पीड़ित हैं क्योंकि यह डेंगू वायरस के विकास को रोक देगा। यह "कॉक्ससेकी बी वायरस" की प्रतिकृति में भी हस्तक्षेप करेगा। यह विषाणुओं का एक समूह है जो मनुष्यों में पूर्ण संक्रमण से लेकर पेट दर्द तक कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है।
आप नीम का उपयोग वायरल रोगों, जैसे कि चेचक और चिकनपॉक्स के लिए भी कर सकते हैं और उनके लक्षणों को कम कर सकते हैं। इसके अलावा, नीम त्वचा और जीवाणु संक्रमण का भी इलाज कर सकता है। हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि इस पौधे में जीवाणुरोधी गतिविधियां होती हैं, जो दांतों की कैविटी और मसूड़ों की समस्याओं के इलाज में मदद करती हैं।
*विशेषज्ञों का कहना है कि नीम का उपयोग स्कैबीज के प्रबंधन के लिए भी किया जा सकता है, लेकिन मानव अध्ययन के लिए इस पर बहुत अधिक वैज्ञानिक डेटा नहीं है। इस पौधे में "रोगाणुरोधी गुण" भी होते हैं, जो त्वचा से संबंधित कई बीमारियों और मुद्दों, जैसे एक्जिमा, मुँहासे और कई अन्य के इलाज में सहायक होते हैं।
*आप सोरायसिस के लक्षणों को कम करने के लिए नीम के तेल का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन इन दावों का समर्थन करने के लिए और अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है। नीम का उपयोग फंगल संक्रमण के इलाज में भी किया जा सकता है क्योंकि इसमें एंटीफंगल गुण होते हैं।
यह कैंडिडा [इसे थ्रश पैदा करने वाले जीव या खमीर संक्रमण भी कहा जाता है], दाद, और एथलीट फुट जैसे फंगल संक्रमण से राहत पाने में आपकी मदद कर सकता है।

यह कैंसर के इलाज के लिए अच्छा है

नीम में "फ्लेवोनोइड्स" जैसे रसायन होते हैं, जो कैंसर से लड़ सकते हैं। कई अध्ययनों ने प्रमाण दिया है कि फ्लेवोनोइड्स का उच्च स्तर कैंसर के विकास को रोक सकता है। नीम में मानव में कैंसर कोशिकाओं की एक विविध श्रेणी की संभावित क्रिया है।
इसका मतलब यह है कि यह व्यक्ति को प्रोस्टेट, कोलन, लिवर, पेट, मुंह, फेफड़े, स्तन और त्वचा के कैंसर से राहत दिला सकता है। लेकिन इसके संभावित उपयोग को साबित करने के लिए बहुत अधिक व्यापक शोध किया जाना है।

नीम प्रतिरक्षा को बढ़ा सकता है

नीम के सबसे बड़े लाभों में से एक यह है कि इसमें प्रतिरक्षा-उत्तेजक गुण होते हैं। यह लिम्फोसाइटिक और कोशिका-मध्यस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली दोनों में मदद करेगा, जिसमें "किलर टी" कोशिकाएं शामिल हैं। ये कोशिकाएं उन पर जहरीले रसायन छोड़ कर सभी वायरस, रोगाणुओं आदि को खत्म करने के लिए जानी जाती हैं।

 यह मस्तिष्क के लिए अच्छा है

नीम में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो मस्तिष्क-सुरक्षात्मक गुण दिखा सकते हैं। स्ट्रोक से पीड़ित मरीजों को निश्चित रूप से नीम से लाभ होगा क्योंकि यह मस्तिष्क क्षति के खिलाफ मदद कर सकता है। यह विटामिन सी [एस्कॉर्बिक एसिड] के स्तर को बढ़ाकर मस्तिष्क की मदद करेगा और लिपिड पेरोक्सीडेशन में भी सहायता करेगा।

इसका उपयोग मधुमेह के लिए किया जाता है

विशेषज्ञों ने दावा किया है कि नीम में मधुमेह से पीड़ित लोगों में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने की शक्ति है। हालांकि सटीक तंत्र अभी तक ज्ञात नहीं है, प्रभाव काफी हद तक दिखाई दे रहे हैं। कृपया मधुमेह के ठीक से इलाज के लिए चिकित्सक से बात करें।

नीम लीवर के लिए अच्छा है

नीम लीवर को विभिन्न स्थितियों से बचा सकता है और बदले में रक्त को शुद्ध करता है। नीम की पत्तियां सीरम मार्कर एंजाइम के स्तर को स्थिर करके रसायनों के कारण होने वाले लीवर के नुकसान को कम कर सकती हैं। यह विटामिन ई और सी और प्राकृतिक कैरोटीनॉयड में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट स्तर को भी बढ़ा सकता है।

बाहरी रूप से नीम का इस्‍तेमाल (लेपा)

पेस्ट के रूप में- त्वचा से जुड़ी समस्‍याओं या घाव के लिए नीम पाउडर (अन्य जड़ी बूटियों के साथ मिक्‍स करके) को पानी या शहद के साथ मिक्‍स करके पेस्ट बनाकर लगाएं।
नहाने के लिए - नीम के पाउडर या पत्तों को गर्म पानी में मिलाकर नहाने के लिए इस्तेमाल करें।
मुंहासों के लिए- नीम के पाउडर को अन्य एंटी एक्ने हर्ब्स जैसे चंदन, गुलाब, हल्दी, मंजिष्ठा, मुलेठी के साथ मिलाकर फेस पैक के रूप में चेहरे पर लगाया जा सकता है।

नीम का सेवन कैसे करें?

डिटॉक्सिफिकेशन के लिए 2 हफ्ते तक 7-8 नीम के पत्ते चबाएं या 2-3 सप्ताह तक 10-15 मिलीलीटर नीम का रस पिएं।

डैंड्रफ के लिए- नीम को पानी में उबालकर ठंडा होने दें। फिर इस पानी से बालों को धोएं। बालों को धोने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
हर्बल पानी - हाथों को धोने के लिए नीम के पानी का इस्तेमाल करें। इसका इस्‍तेमाल एनल फिस्टुला या बवासीर में सिट्ज़ बाथ के लिए भी किया जा सकता है।

नीम मुंह की देखभाल के लिए आदर्श है

भारत के ग्रामीण इलाकों में बहुत से लोग अपने दांतों को साफ करने के लिए नीम का इस्तेमाल करते हैं। इस पौधे में रोगाणुरोधी गुण होते हैं, जो पट्टिका और मसूड़े की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। नीम में एंटीसेप्टिक गुण भी होते हैं जो मौखिक स्वच्छता बनाए रखने में आपकी मदद कर सकते हैं।
अपने मौखिक और दंत चिकित्सा देखभाल के लिए नीम का उपयोग करने से ठीक पहले चिकित्सक से बात करना सुनिश्चित करें।

यह पेट की समस्याओं से निपट सकता है

कई अध्ययनों ने प्रमाण दिया है कि नीम की छाल पेट में मौजूद एसिड के स्राव को 77 प्रतिशत कम कर सकती है। यह पेट के स्राव की मात्रा को भी 63 प्रतिशत तक नियंत्रित कर सकता है। इसके अलावा नीम पेट के एंजाइम पेप्सिन की गतिविधि को भी 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
एक बार जब आप नीम-आधारित उत्पादों का उपयोग करना शुरू कर देंगे, तो यह पेट के ऊतकों को होने वाले नुकसान को रोकेगा/कम करेगा और पेट की सूजन से भी निपटेगा। आपको नीम उत्पादों के साथ स्वयं औषधि नहीं लेनी चाहिए और पेट के मुद्दों के इलाज के लिए नीम सही विकल्प है या नहीं, यह जानने के लिए चिकित्सक से बात करें।

दिल के लिए अच्छा है नीम

अत्यधिक कोलेस्ट्रॉल का स्तर, रक्त के थक्के, अनियमित दिल की धड़कन और उच्च रक्तचाप सभी दिल के दौरे के प्राथमिक कारण हैं। लेकिन नीम की पत्ती के अर्क की मदद से आप संचार प्रणाली पर रक्तचाप, थक्के और तनाव को आसानी से कम कर सकते हैं।
यह निश्चित रूप से अनियमित दिल की धड़कन में मदद करेगा और खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम करेगा। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि दिल के लिए नीम के इस्तेमाल को साबित करने के लिए अभी और अध्ययन किए जाने की जरूरत है। यदि आप दिल से संबंधित किसी भी समस्या से पीड़ित हैं, तो इसका निदान और इलाज डॉक्टर से करवाना सुनिश्चित करें। जड़ी-बूटियों के साथ स्व-चिकित्सा करने के बारे में न सोचें, क्योंकि इससे आपकी स्थिति और खराब हो सकती है।

. यह मलेरिया को ठीक कर देगा


मलेरिया एक ऐसी बीमारी है जो आमतौर पर भारत में होती है, और वयस्कों और बच्चों दोनों को यह विकसित होती है। लेकिन मलेरिया वायरस से निपटने वाले नीम आधारित उत्पादों या नीम के पत्ते के अर्क से आप इस स्थिति से राहत पा सकते हैं।
यह पौधा निश्चित रूप से इस वायरस को ले जाने वाले परजीवियों को प्रभावित करेगा और इसे शरीर से खत्म कर देगा। आप नीम की पत्तियों को जलाकर इस्तेमाल कर सकते हैं और फिर उन्हें मच्छर भगाने के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

यह विटिलिगो के साथ मदद करता है

नीम का उपयोग त्वचा से संबंधित मुद्दों जैसे कि विटिलिगो से निपटने के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प है। विटिलिगो एक ऑटोइम्यून स्थिति है जिसके कारण त्वचा अपना रंग खो देती है और सफेद हो जाती है। इससे पहले कि आप इस स्थिति के लिए नीम आधारित किसी भी उत्पाद का उपयोग करें

सावधानी


इन लोगों को नीम का सेवन नहीं करना चाहिए-प्रेग्‍नेंट महिलाएं
शिशु या बच्चे
कोई भी गर्भधारण करने की कोशिश कर रहा है- पुरुष या महिला।
नीम को खाने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श जरूर करें।

2.3.24

लीवर की सूजन फैटी लीवर सिर्होसिस के प्रभावी उपचार ,Liver ke rog ke upchar

 



लिवर क्या है ?

लिवर,त्वचा के बाद शरीर का दूसरा सबसे बड़ा अंग है जो फेफड़ों के ठीक नीचे दाहिनी तरफ होता है। इसका मुख्य काम पित्त और एल्बुमिन का निर्माण करना, रक्त साफ करना, अमीनो एसिड और खून के थक्के ( ब्लड क्लॉटिंग ) को रेगुलेट करना, इन्फेक्शन से बचाना, विटामिन और खनिज ( मिनरल ) को स्टोर करना, ग्लूकोज की प्रक्रिया करना और ऐसे ही कई अन्य कार्य करना होता है। इसलिए लिवर का स्वस्थ होना आवश्यक होता है।

लिवर रोग क्या है?

जब लिवर में किसी प्रकार का संक्रमण, अधिक चर्बी का जमाव या शराब के कारण लिवर के ऊतक खराब होने लगते हैं तो यह लिवर रोग को उत्पन्न करते हैं। लंबे समय तक इन बीमारियों का उपचार न होने पर लिवर सिरोसिस जैसी गंभीर स्थिति देखने को मिलती है। अंततः लिवर रोग के कारण लिवर कैंसर और लिवर फेल भी हो सकता है।

लिवर रोग के लक्षण

लिवर रोग होने पर कुछ लक्षण देखने को मिल सकते हैं। इन लक्षणों के दिखने पर लिवर रोग की आशंका रहती है। लिवर रोग के मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं: आंखों और त्वचा का रंग पीला हो जाना
पेशाब का रंग गहरा होना
मल का रंग हल्का होना
पेट में सूजन होने लगती है और इसके अलावा पैरों और एड़ियों में भी सूजन की समस्या बनी रहती है
जी मिचलाना
उल्टी होना
पेट में तेज या हल्का दर्द होना
भूख में कमी आना और कुछ भी खाने पीने की इच्छा न होना
हाथों, पैरों, पीठ और पेट की त्वचा में खुजली होना

फैटी लिवर एक ऐसी बीमारी है जिसमें मरीजों के लिवर में फैट जमा होने लगता है। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण है गलत खानपान और खराब लाइफस्टाइल। लिवर का काम शरीर में खाना पचाने, पित्त बनाने और इसे इंफेक्शन फ्री रखने का होता है। लिवर शरीर का वो अंग है, जहां दिखाई न देने वाली चर्बी जमा होने का डर रहता है। इसकी वजह से लिवर में सूजन आना, और लीवर का ठीक से काम न करने जैसी समस्या हो सकती है। कुछ मामलों में तो लीवर फेलियर का भी खतरा हो सकता है। ऐसे में लिवर को हेल्दी रखना बेहद जरूरी होता है।
आजकल के जीवनशैली के कारण लिवर की बीमारी अब अक्सर लोगों को हो रही है। लिवर की बीमारी की खास बात ये है कि व्यक्ति को इसका पता काफी समय बाद चलता है।
आज के समय फैटी लिवर की समस्या काफी आम हो गई है। खराब जीवनशैली और गलत खानपान के कारण फैटी लिवर की समस्या होती है। जब लिवर की कोशिकाओं में ज्यादा मात्रा में फैट इकट्ठा हो जाता है, तब फैटी लिवर की समस्या होती है। जो लोग शराब का बहुत अधिक सेवन करते हैं, उन्हें यह बीमारी ज्यादा होती है। हालांकि, जो लोग शराब नहीं पीते हैं, उन्हें भी फैटी लिवर हो सकता है। इस बीमारी में लिवर में सूजन बढ़ने लगती है, जिससे लिवर खराब होने का भी खतरा रहता है। फैटी लिवर की समस्या का सही समय पर उपचार न करने से मरीज की जान भी जा सकती है। सही खानपान और जीवनशैली में कुछ बदलाव करके फैटी लिवर की समस्या से निजात पाया जा सकता है। इसके अलावा, आप आयुर्वेद की मदद से फैटी लिवर की समस्या को ठीक कर सकते हैं।
फैटी लिवर के मरीजों को एलोवेरा का सेवन करना चाहिए। एलोवेरा हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है। एलोवेरा एक प्राकृतिक ब्लड प्यूरीफायर है। एलोवेरा लिवर की कार्यक्षमता को बढ़ाता है और फैटी लिवर की बीमारी के इलाज में मदद कर सकता है। एलोवेरा का जूस पीने से शरीर में जमा विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद मिलती है। इसके लिए आप सुबह खाली पेट एक गिलास गर्म पानी के साथ एक चम्मच एलोवेरा जूस का सेवा कर सकते हैं।

*लीवर को स्वस्थ रखती है भुंई आंवला या भूम्यामलकी (Bhumi Amla keeps your Liver Healthy in Hindi)

भूम्यामलकी एक प्रमुख आयुर्वेदिक औषधि है जो कि आसानी से घर के आस-पास छोटे पौधे के रूप मिल जाती है. यह जड़ी-बूटी लीवर को कई तरह के संक्रमण से बचाती है और लीवर की सेहत को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती है. लीवर से जुड़े रोगों से पीड़ित मरीजों को चिकित्सक की सलाह के अनुसार भुंई आंवला का सेवन करना चाहिए.

भुंई आंवला या भूम्यामलकी के उपयोग का तरीका (How to take Bhumi Amla)

लीवर के लिए भूम्यामलकी का उपयोग आप चूर्ण, कैप्सूल या टेबलेट के रूप में कर सकते हैं. आजकल इसका जूस भी बाजार में मिलता है. खुराक संबंधित जानकारी के लिए चिकित्सक से परामर्श लें.

*लीवर की क्षमता को बढ़ाती है कुटकी (Kutki improves Liver Performance in Hindi)

कुटकी एक जड़ी-बूटी है जिसका उपयोग लीवर के रोगों में प्रमुख रूप से किया जाता है. आयुर्वेदिक विशेसज्ञों के अनुसार कुटकी लीवर की सूजन को कम करती है साथ ही लीवर की कार्य क्षमता भी बढ़ाती है. जो लोग लीवर में सूजन की समस्या से पीड़ित हैं उन्हें चिकित्सक से सलाह लेकर कुटकी का सेवन करना चाहिए.

कुटकी के सेवन का तरीका (How to take Kutki)

आजकल कुटकी का कैप्सूल या चूर्ण बाज़ार में आसानी से उपलब्ध है. आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही इसका सेवन करें.

*लीवर के लिए बेहद फायदेमंद है आंवला (Amla for Healthy Liver in Hindi)

आंवला आयुर्वेद में उपयोग की जाने वाली जानीमानी औषधि है. यह लीवर को डिटॉक्स करने का काम करती है. आंवला में पाए जाने वाले फायटो नुट्रिएंट्स लीवर की कार्य क्षमता को बढ़ाते हैं. एक्सपर्ट के अनुसार, आंवले में हेप्टो प्रोटेक्टिव क्षमताएं होती हैं जो लीवर की कोशिकाओं को स्वस्थ बनाए रखती हैं.

आंवला के सेवन का तरीका (How to take Amla)

आंवले का उपयोग आप कई तरह से कर सकते हैं. सबसे आसान और कारगर तरीका है कि आप कच्चे आंवले का सेवन करें. इसके अलावा आज कल बाजार में आंवले के जूस, टेबलेट, कैप्सूल्स और कैंडी आसानी से मिल जाते हैं. आप रोजाना सीमित मात्रा में इनमें से किसी का भी सेवन कर सकते हैं.

* लीवर को संक्रमण से बचाती है एलोवेरा (Aloevera protects Liver from infections in Hindi)
एलोवेरा में भरपूर मात्रा में फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं, जो लीवर को फ्री रेडिकल्स के कारण होने वाले कई तरह के नुकसान और संक्रमण से बचाते हैं. रोजाना सीमित मात्रा में एलोवेरा का सेवन करने से लीवर लंबे समय तक स्वस्थ रहता है.

एलोवेरा का सेवन कैसे करे (How to take Aloevera)

एलोवेरा का उपयोग सबसे ज्यादा जूस के रूप में किया जाता है. रोजाना सुबह खाली पेट दो तीन छोटी चम्मच एलोवेरा जूस में इतनी ही मात्रा में पानी मिलाकर पिएं.

*लीवर की सूजन को घटाती है पुनर्नवा (Punarnava helps in reducing Liver Swelling in Hindi)

आज के समय में अधिकांश लोग लीवर में सूजन की समस्या से परेशान रहते हैं. अगर आप भी उनमें से एक हैं तो पुनर्नवा आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकती है. पुनर्नवा एक जड़ी-बूटी है जिसका इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है. यह लीवर की सूजन घटाती है साथ ही लीवर से जुड़े अन्य रोगों के खतरे को भी कम करती है.

पुनर्नवा के सेवन का तरीका (How to Take Punarnava)

पुनर्नवा चूर्ण, कैप्सूल, टेबलेट और सिरप के रूप में उपलब्ध है. आप किसी भी रूप में इसका सेवन कर सकते हैं. इसे कितनी मात्रा में लेना है इसके लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें.

लीवर को स्वस्थ रखने के लिए आयुर्वेदिक दवा (Ayurvedic Medicine for Liver in Hindi)

अगर आप फैटी लीवर या लीवर में संक्रमण की समस्या से पीड़ित हैं या इनसे बचना चाहते हैं तो ऐसी आयुर्वेदिक औषधि चुनें जिसमें यहां बताई गई जड़ी-बूटियां मौजूद हों. टाटा 1mg तेजस्या लीवर केयर सिरप में भुंई आंवला, पुनर्नवा, आंवला के अलावा भृंगराज, हरीतकी और चित्रक जैसी जड़ी-बूटियां भी शामिल हैं, जो लीवर को हर तरह के संक्रमण से बचाती हैं. इस सिरप को पीने से लीवर स्वस्थ रहता है, मेटाबोलिज़्म मजबूत होता है और पाचन तंत्र में सुधार होता है.


लीवर को स्वस्थ रखने के लाइफस्टाइल में लाएं ये बदलाव (Lifestyle Changes for Healthy Liver in Hindi)

अगर आप अपनी जीवनशैली में थोड़ा बदलाव लाएं तो लीवर को लंबे समय तक स्वस्थ और निरोग रख सकते हैं. इसलिए यहां बताए गए इन नियमों का गंभीरता से पालन करें: रोजाना कम से कम 8-10 गिलास पानी पिएं. इससे लीवर का स्वास्थ्य ठीक रहता है और शरीर से टॉक्सिक तत्व भी आसानी से बाहर निकल जाते हैं.
अपनी डाइट में अधिक से अधक पौष्टिक चीजें शामिल करें. लीवर के लिए हरी सब्जियां, फल, साबुत अनाज, दालें, मूली, गाजर और लौकी खाएं.
शराब लीवर को बहुत नुकसान पहुंचाता है. इसलिए शराब का सेवन कम से कम मात्रा में या बिल्कुल ना करें.
नियमित व्यायाम करने से लीवर की कार्यक्षमता में सुधार होता है. रोजाना आधे घंटे व्यायाम, योग या प्राणायाम करें.
बहुत ज्यादा स्ट्रेस भी लीवर के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है. स्ट्रेस से दूर रहें और रोजाना कुछ देर ध्यान करें साथ ही परिवार के साथ समय बिताएं.

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1.3.24

वसंत ऋतू में आहार -विहार और दिन चर्या | Vasant ritu Aahar Vihar





14 मार्च से 14 मई तक रहेगी वसंत ऋतु, इसे क्यों कहते हैं ऋतुराज?


वसंत ऋतु, या वसंत ऋतु, कायाकल्प, नए जन्म और नई शुरुआत का मौसम है क्योंकि पेड़ और पौधे फूलों के साथ खिलते हैं जो पृथ्वी को सुंदर और आकर्षक बनाते हैं। वसंत ऋतु में, हालांकि मौसम सुहावना होता है, हमारे शरीर और दोषों में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। चूँकि कफ दोष शिशिरा ऋतु (ठंड के मौसम) में प्रबल हो जाता है, वसंत ऋतु के दौरान यह द्रवित हो जाता है। यह पाचन अग्नि को और भी कम कर देता है और कई बीमारियों को जन्म देता है। जैसा कि आयुर्वेद सुझाव देता है, प्रत्येक ऋतु का मानव शरीर पर अपना अनूठा प्रभाव होता है, और इस प्रकार, ऋतु के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए व्यक्ति को अपने आहार और समग्र दिनचर्या में बदलाव करना चाहिए।
वसंत ऋतु, या वसंत, सबसे सुंदर और सुखद मौसमों में से एक है। कड़ाके की ठंड और कड़ाके की सर्दी के बाद प्रकृति अपने सबसे रंगीन रूप में होती है। आयुर्वेद के अनुसार, वसंत ऋतु विषहरण के लिए आदर्श समय है।
वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा गया है। यह शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के मध्य का संधिकाल होता है। इसमे मौसम समशीतोष्ण होता है, प्रकृति में सर्वत्र उल्लास और मादकता विद्यमान रहती है। इस समय नये नये कोपलों, रंग बिरंगे फूलों की सुंदरता और सुगंध के माध्यम से प्रकृति मानो अपनी प्रसन्नता प्रकट कर रही होती है। कुल मिलाकर वसंत का मौसम बहुत ही मनोरम और सुहावना होता है। लेकिन यदि समुचित आहार विहार का ध्यान न रखा जाय तो इस मौसम में स्वास्थ्य से जुड़ी अनेक प्रकार की समस्यायें भी उत्पन्न हो सकती हैं।

शरीर पर मौसम का प्रभाव

वसंत ऋतु में सूर्य की किरणें तेज होने लगती हैं जिसके कारण शीतकाल (हेमंत और शिशिर ऋतु) में संचित कफ कुपित होने लगता है। इसके कारण लोगों में सर्दी, खांसी, दमा, नजला, जुकाम, साइनोसाइटिस, टांसलाइटिस, गले में खराश, पाचन शक्ति की कमी, व जी मिचलाने जैसे अनेक प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं।
इस काल में खसरा, मीजल्स व एन्फ्लूएन्जा, जैसे कई प्रकार के वायरल इनफेक्शंस का भी प्रकोप देखने को मिलता है। इस समय वातावरण में सूर्य का बल बढ़ता है, चंद्रमा का बल क्षीण होता है, जलीय अंश और स्निग्धता की कमी होती है। इसके परिणाम स्वरूप हमारे शरीर में आलस्य और दुर्बलता की वृद्धि होती है। अतः इस मौसम में खान-पान का विशेष ध्यान रखें। बासी, गरिष्ठ और कफवर्धक पदार्थों का सेवन तो भूलकर भी न करें।
  वसंत ऋतु में आयुर्वेद ने खान-पान में संयम की बात कहकर व्यक्ति एवं समाज की नीरोगता का ध्यान रखा है। इस ऋतु में लाई, भूने हुए चने, ताजी हल्दी, ताजी मूली, अदरक, पुरानी जौ, पुराने गेहूँ की चीजें खाने के लिए कहा गया है। इसके अलावा मूँग बनाकर खाना भी उत्तम है। नागरमोथ अथवा सोंठ डालकर उबाला हुआ पानी पीने से कफ का नाश होता है। मन को प्रसन्न करें एवं हृदय के लिए हितकारी हों ऐसे आसव, अरिष्ट जैसे कि मध्वारिष्ट, द्राक्षारिष्ट, गन्ने का रस, सिरका आदि पीना लाभदायक है। वसंत ऋतु में आने वाला होली का त्यौहार इस ओर संकेत करता है कि शरीर को थोड़ा सूखा सेंक देना चाहिए जिससे कफ पिघलकर बाहर निकल जाय। 
   सुबह जल्दी उठकर थोड़ा व्यायाम करना, दौडऩा अथवा गुलाटियाँ खाने का अभ्यास लाभदायक होता है। मालिश करके सूखे द्रव्य आँवले, त्रिफला अथवा चने के आटे आदि का उबटन लगाकर गर्म पानी से स्नान करना हितकर है।
इन दिनों बबूल या नीम का दातुन अवश्य ही करना चाहिए। इस ऋतु में बड़ी हरड़ का चूर्ण 3 से 5 ग्राम मात्रा में थोड़े शहद के साथ मिलाकर प्रात: काल चाट लेना चाहिए। मौसमी फलों का सेवन करना भी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है। इसलिए इस ऋतु में फल का सेवन अवश्य ही करना चाहिए।
इस मौसम में कभी ठंडक लगती है तो कभी गर्मी का अनुभव होता है इसलिए व्यक्ति को खान-पान और रहन    सहन के मामले में सामंजस्य बनाये रखना चाहिए। इस मौसम में गले की खराश, टांसिल्स का दर्द और कफ की शिकायत आदि रहती है। घरेलू इलाज के रूप में गरारे, गले को ठंडी हवा से बचाना, गले को गरम आग से सेंकना और रात को सोते समय आधी चम्मच, पिसी हुई हल्दी दूध में घोलकर 3-5 दिन तक पीना तथा तुलसी का काढ़ा पीने से काफी हद तक लाभ मिलता है।
गले की खराश, हल्की खांसी, टांसिल्स आदि में तकलीफ होने पर 1 गिलास गरम पानी में आधा-आधा छोटा चम्मच खाने का सोडा व खाने का नमक और 1.2 ग्राम पिसी हुई फिटकरी घोलकर दिन में 4-5 बार गरारे अवश्य करने चाहिए। सुबह के समय और सोते समय गरारे करने से काफी लाभ मिलता है।
 कहावत है कि आती और जाती हुई सर्दी में सावधानी रखनी चाहिए। नहीं तो वे जकड़ सकती हैं। वसंत ऋतु को वैसे तो ऋतुओं की राजा कहा जाता है। बहुत से लोगों की यह पसंदीदा ऋतु है क्योंकि इस ऋतु में ना तो ठिठुरती ठंड होती है, ना ही बेहाल कर देने वाली गर्मी। पर इस ऋतु में जाती हुई सर्दी की वजह से विशेष सावधानी रखना जरुरी हो जाता है। क्योंकि वसंत ऋतु में दिन बड़े होने लगते है जिससे सर्दी का प्रभाव कम होने लगता है, लेकिन पश्चिमी विक्षोभ की वजह से बारिश, आंधी इत्यादि से अचानक से सर्दी बढ़ने से थोड़ी सी लापरवाही भी सेहत पर भार पड़ सकती है।

आहार का रखें विशेष ध्यान

इस मौसम में खान-पान का विशेष ध्यान रखें क्योंकि इस मौसम में जठराग्नि भी मंद रहती है। चूंकि इस मौसम में कफ कुपित हो जाता है, इसलिए बासे, गरिष्ठ और कफवर्धक पदार्थों का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। सभी तरह के फास्ट फूड यथा आइसक्रीम, केक, पिज्जा, बर्गर, चॉकलेट से परहेज करें। चिकनाई युक्त पदार्थ जैसे कि रबड़ी, मलाई, कचौरी, दही बड़ा, पूरी, उड़द, आदि का भी यथा संभव उपयोग नहीं करें तो बेहतर होगा। इमली, अमचूर इत्यादि की खटाई का उपयोग भी हानिकारक हो सकता है। ठडे पानी, शर्बत, लस्सी, कोल्ड ड्रिंक्स के सेवन से भी बचना चाहिए। वहीं खुले में सोना, धूप भ्रमण, रात जागरण व दिन में शयन भी इस मौसम में वर्जित हैं।


ये करें-

बसंत ऋतु में वमन आदि पंचकर्म करवाने चाहिए। व्यायाम, उबटन, कवल ग्रह, अंजन, सुखोष्ण जल से स्नान भी विशेष लाभकारी होता है। भोजन में जौ, गेहूं, शहद से बनी माध्वीक, सौंठ के साथ उबला पानी, नागरमोथा से सिद्ध पानी भी पीना लाभकारी है। अगर इस मौसम में शहद और गुनगुने पानी का सेवन किया जाए तो इससे भी कफ दोष बढ़ने से रोका जा सकता है और सर्दी-खांसी में राहत मिलती है। इस बात का भी ध्यान रखें कि गरिष्ठ भोजन के बजाय इस मौसम में हल्का खाना खाएं, जिसे पचाना आसान हो जैसे कि मूंगदाल, खिचड़ी, दलिया आदि। इसके अलावा पौष्टिक तत्वों से युक्त लौकी, पत्ता गोभी, गाजर, पालक, मटर जैसी सब्जियां भी अपनी डाइट में शामिल करनी चाहिए।

आयुर्वेद के अनुसार वसंत ऋतु में हमें क्या खाना चाहिए?

वसंत ऋतु के दौरान स्वस्थ भोजन करने का लक्ष्य कफ दोष को कम करना है। कोई व्यक्ति कड़वा (टिकिता), कषाय (कसैला), तीखा (कटु) रस खाकर ऐसा कर सकता है। आपको खट्टे (अमला), नमकीन (लवण), और मीठे (मधुर) रस से भी बचना चाहिए क्योंकि ये कफ दोष को बढ़ाते हैं। यहां कुछ खाद्य पदार्थ हैं जिन्हें आप अपने वसंत ऋतुचर्या में शामिल कर सकते हैं:
लहसुन
अदरक
प्याज
नीम के पत्ते
धनिया
जीरा
प्याज
हल्दी
अनाज
पुराना जौ
गेहूँ
चावल
दाल-दलहन
शहद का पानी
सोंठ का पानी
छाछ

पथ्य / लाभदायक

कटु, तीक्ष्ण, व कषाय रस युक्त ताजा हल्का और सुपाच्य भोजन। चना, मूँग, अरहर, जौ, गेहूँ, चावल, आदि अनाजों से बने भोज्य पदार्थ। सभी प्रकार की हरी सब्जियां तथा उनका सूप। करेला, लहसुन, अदरक, पालक, जमींकंद, केले के फूल व कच्चे केले की सब्जी, कच्ची मूली, गाजर व मौसमी फल। नीम की नई कोपलें, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आँवला, नीबू और शहद। इस समय भोजन बनाने में सरसों के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
कुछ खाद्य पदार्थ जिनसे आपको वसंत ऋतु (आयुर्वेद) के दौरान बचना चाहिए उनमें शामिल हैं:ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें कैलोरी अधिक होती है और पचने में अधिक समय लगता है
गहरा तला हुआ भोजन

अपथ्य / हानिकारक

पचने में भारी, ठंढे व अधिक चिकानाई युक्त भोजन, जैसे- नया अनाज, उड़द, दही बड़ा, पूरी, कचौड़ी, रबड़ी, मलाई, मिठाई, आइसक्रीम, केक, पिज्जा, बर्गर, चकलेट, गुड़, शक्कर, खजूर, व खटाई (इमली, अमचूर) आदि। शीत प्रकृति वाले पेय पदार्थ, जैसे- ठंढा पानी, ठंढी लस्सी, ठंढाई शर्बत, व कोल्डड्रिंक्स आदि। खुले आसमान में सोना, ठंढ में रहना, धूप में घूमना, रात में जागना व दिन में सोना।
बसंत ऋतु ऋतु में नियमित रूप से हल्का व्यायाम या योगासन सभी के लिए अनिवार्य है। सूर्योदय से पहले उठकर भ्रमण करें। रात्रि में देर तक जागरण और सुबह देर तक शयन हानिकारक है। दिन में तो बिल्कुल भी नहीं सोना चाहिए क्योंकि इससे कफ दोष और बढ़ेगा। शरीर में तेल मालिश करके गुनगुने पानी से स्नान करें। जो लोग यौगिक षट्कर्म जानते हों उन्हें इस समय वमनधौति और जलनेती का अभ्यास करना चाहिए।

सम्भावित रोग


श्वास, खांसी, बदनदर्द, ज्वर, वमन, अरुचि, भारीपन, भूख कम लगना, कब्ज, पेट दर्द, कृमिजन्य विकार आदि होते हैं।
प्रयोग करेंशरीर संशोधन हेतु वमन, विरेचन नस्य, कुंजल आदि।
रूखा, कड़वा तीखा, कसैले रस वाले पदार्थों का सेवन।
सुबह खाली पेट बड़ी हरड़ का 3-4 ग्राम चूर्ण शहद के साथ रसायन के समान लाभ पहुंचाता है।
शुद्ध घी, मधु और दूध की असमान मात्रा में मिश्रण का सेवन करने से शरीर में जमा कफ बाहर निकल आता है।
एक वर्ष पुराना जौ, गेहुं व चावल का उपयोग करना उचित है।
इस ऋतु में ज्वर बाजरा मक्का आदि रूखे धानों का आहार श्रेष्ठ है।
मूंग, मसूर, अरहर, चना की दाल उपयोगी है।
मूली, घीया, गाजर, बथुआ, चौलाई ,परवल, सरसों, मैथी, पत्तापालक, धनिया, अदरक आदि का सेवन करना हितकर है।
हल्दी से पीला किया गया भोजन स्वास्थ के लिए बहुत उपयोगी होता है क्योंकि हल्दी भी कफनाशक है।
सूर्योदय से पूर्व उठकर शौचादि से निवृत होकर योगासन करना चाहिए।
तेल की मालिश करना उत्तम है।

प्रयोग न करें

नए- अन्न, शीतल, चिकनाई युक्त, भारी, खट्टे एवं मीठे द्रव्य, उड़द, आलू, प्याज, गन्ना, नए गुड़, भैंस का दूध व सिंघाड़े का सेवन मना है।

दिन में सोना, एक स्थान पर लम्बे समय तक बैठे रहना उचित नहीं है।
ठंडे पेय, आइसक्रीम, बर्फ के गोले चॉकलेट, मैदे की चीजें, खमीरवाली चीजें, दही आदि पदार्थ बिल्कुल त्याग देने चाहिए।
पचने में भारी पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
चावल खाना ही हो तो दिन में खाना चाहिए, रात में नहीं।

29.1.24

नियमित मालिश से रहें अनगिनत रोगों से दूर -क्या है मसाज की विधि -Body massage benefits



बॉडी में कहीं पेन रहता है अकड़न फील होती है या फिर डाइजेशन खराब रहता है तो इन सारी परेशानियों को दूर करने के लिए आप नियमित रूप से तेल मालिश करवा सकते हैं। बॉडी मसाज से बॉडी के कई सारे अंग अपना काम सही तरीके से कर पाते हैं।
आजकल लोगों को तनाव, असंतुलित लाइफस्टाइल और भागदौड़ भरी जिंदगी के चलते खुलकर सांस लेना मुश्किल हो गया है। बढ़ती स्पर्धा (competition) के कारण हर समय थकान का रहना रोजमर्रा की बात हो गयी है। दैनिक जीवन से जुड़ी इन समस्याओं के लिए लोग कई प्रकार के उपाय खोज रहे हैं। ऐसे में मसाज एक ऐसा उपाय है, जो व्यक्ति को राहत प्रदान करता है। यह शरीर में ऊर्जा का संचार करती है।
शरीर की तेल से मालिश करवाते रहने से सेहत को कई सारे लाभ होते हैं। हममें से ज्यादातर लोग इसके फायदों से वाकिफ नहीं हैं, लेकिन आपको बता दें कि नियमित रूप से मालिश सेहत के साथ-साथ आपकी स्किन और बालों के लिए भी फायदेमंद है।
आयुर्वेदिक मसाज थेरेपी एक प्राचीन थेरेपी है। इसमें आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और तेल के माध्यम से शरीर की मालिश की जाती है। जो शरीर को तरोताजा रखती है। इसलिए थकान और तमाम बीमारियों के लिए यह एक बेहतर विकल्प है।

क्या है मसाज थेरेपी?

जितना महत्व आधुनिक दिनचर्या में किए जाने वाले कार्यों, व्यायाम और आहार का है। उतना ही महत्व मसाज का भी है। तेल, क्रीम या किसी अन्य चिकने पदार्थ (Greasy substance) को बॉडी पर हल्के हाथ से रगड़ना या मलना, मसाज (मालिश) कहलाता है। इस चिकित्सा में शरीर की मांशपेशियों और नरम ऊतकों को हाथों से आराम दिया जाता है। मालिश करने से मांशपेशियों के दर्द में आराम मिलता है और रक्त परिसंचरण में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त मसाज करने से त्वचा और मस्तिष्क संबंधित बीमारियां कम होती हैं।

मसाज के प्रकार;

मसाज या मालिश के निम्नलिखित प्रकार हैं-सिर की मालिश।
बालों की मालिश।
आंखों की मालिश।
गालों की मालिश।
कनपटी की मालिश।
ठोड़ी (chin) की मालिश।
हाथों की मालिश।
पैरों की मालिश।
बॉडी की मालिश।

मसाज करने की विधि;

सर्वप्रथम सिर में गुनगुना तेल लगाकर उंगलियों से धीरे-धीरे मालिश करें। मालिश करते समय कान के पीछे और ऊपरी भाग पर (कनपटी वाले स्थान) पर विशेष रूप से मालिश करें।
गर्दन की मालिश ऊपर से नीचे और पीछे से आगे की ओर करें।
चेहरे की मालिश करते समय विशेष ध्यान देना आवश्यक है। इसलिए पूरे चेहरे पर अच्छी तरह से तेल लगा लें। अब दोनों हाथों की तर्जनियों को नाक के आसपास रखकर दबाव के साथ धीरे-धीरे कान की ओर ले जाएं। कुछ समय बाद पुनः उंगलियों को घुमाते हुए कान के नीचे जबड़े की हड्डी (jaw bone) तक लाएं। इस क्रिया को दो से तीन बार दोहराएं।
गाल एवं ठोड़ी (chin) की मालिश हथेलियों के द्वारा नीचे से ऊपर की ओर करनी चाहिए। गाल और आंखों के चारों ओर पलकों पर गोलाकार मालिश करें।
इसके बाद छाती, पेट तथा पीठ की मालिश करें।
छाती एवं पेट की मालिश ऊपर से नीचे (अनुलोम दिशा) की ओर हल्के हाथों से मालिश करें।
दोनों भुजाओं (हाथों) पर ऊपर से नीचे समान गति से मालिश करें। साथ ही बाजुओं के विभिन्न भाग- जैसे कोहनी, कलाई इत्यादि परगोलाई में मालिश करें।
इसी तरह से पैरों की मालिश करें। तलवों और हथेलियों की मालिश करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है।
मसाज के फायदें;
ये भी जान लें कि महीने दो महीने या 4-5 महीने में तेल मालिश कराने से और हफ्ते में 1-2 बार मालिश कराने में काफी फर्क होता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जिस तरह से टाइम पर खाना, सोना, पर्याप्त मात्रा में पानी पीना और फिजिकल एक्टिविटी जरूरी है उतना ही जरूरी मसाज भी है। इससे आप लंबे समय तक निरोग बने रह सकते हैं।
मसाज करने से शरीर को मिलने वाले लाभ निम्नलिखित हैं-
मसाज थेरेपी से पूरे शरीर में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है।
इससेपाचन शक्ति तेज होती है और पेट साफ रहता है।
मालिश करने से शरीर के विभिन्न अंग जैसे दिल, आंते, फेफड़े और यकृत आदि शक्तिवान होते हैं।
इस चिकित्सा के प्रयोग से अपच, वायु, अनिद्रा, बवासीर, उच्च रक्तचाप और पित्त विकार जैसे रोगों में फायदा मिलता है।
मालिश करने से त्वचा के बंद रोम क्षिद्र (Hair follicle) खुलने लगतें है। साथ ही त्वचा के रक्त संचारमें भी सुधार होता है।
इस चिकित्सा से त्वचा की मृत कोशिकाएं स्वच्छ होती हैं और उन्हें जरूरी पोषण तत्व मिलता है। जिससे त्वचा में चमक आती है।

ब्लड प्रेशर पर कंट्रोल

अगर हाई ब्लड प्रेशर की परेशानी है, तो नियमित रूप से मालिश करवाते रहने से यह परेशानी भी कंट्रोल हो सकती है। इतना ही नहीं, यह कार्डिएक हेल्थ में सुधार लाने में भी मदद करती है।

पाचन रहता है सही

बॉडी मसाज में पेट की मालिश भी शामिल होती है, तो पेट की मालिश होने से नाभि की एक्टिविटी बढ़ती है। पेट के निचले भाग की मालिश से पीरियड पेन में राहत मिलती है। मालिश से बड़ी आंत, लिवर, पैंक्रियाज सभी बॉडी पार्ट्स अपना काम सही तरीके से कर पाते हैं, जिससे आंतों में गैस्ट्रिक जूस पर्याप्त मात्रा में निकलता है और लिवर का फंक्शन दुरुस्त रहता है।

बढ़ाती है इम्युनिटी

रिसर्च के मुताबिक, रेगुलर मसाज से बॉडी की इम्युनिटी बढ़ती है, जिससे शरीर कई सारी बीमारियों का सामना बिना दवाइयों के ही कर पाता है।

रिलैक्स होती है मसल्स

नियमित रूप से मालिश करवाते रहने से कार्टिसोल के लेवल में कमी आती है, जिससे मूड अच्छा रहता है। बॉडी के साथ माइंड रिलैक्स होता है। मालिश एक तरह से थेरेपी का काम करती है, जो न सिर्फ मानसिक तनाव दूर करती है, बल्कि जोड़ों के दर्द को भी कम करती है। मालिश से शरीर में ब्लड का सर्कुलेशन सही तरह से हो पाता है। यह फ्लेक्सिबिलिटी को बेहतर बनाती है। मालिश से खराब पोस्चर भी धीरे-धीरे ठीक होने लगता है।इस थेरेपी से शरीर में लचीलापन आता है। जिससे मूवमेंट बेहतर होता है।
मालिश करने से शरीर में रक्तचाप सामान्य रहता है और इंसुलिन रेजिस्टेंस अच्छा होने से मधुमेह में भी फायेदा मिलता है।
मसाज थेरेपी का प्रयोगकरने से मांसपेशियों की सिकुड़ने और फैलने की क्षमता बढ़ती है। साथ ही उनमें मेटाबॉलिज्म का कार्य निश्चित रूप से होने लगता है। जिससे शरीर में बन रहे मुक्त कण (free redicles) को भी हटाया जा सकता है।
मसाज करते वक्त ध्यान रखें यह सावधानियां;मालिश के तुरंत बाद न नहाएं। हमेशा मालिश के कम से कम आधे घंटे बाद स्नान करें।
मालिश के तुरंत बाद भोजन न करें। भोजन और मसाज के बीच लगभग तीन घंटे का अंतर होना चाहिए। इसलिए सूर्योदय के समय मालिश कराना सबसे अच्छा होता है।
सर्दियों में खुली धूप में और गर्मियों के समय छाया में मालिश कराएं।
प्रत्येक अंग पर कम से कम पांच मिनट तक मालिश अवश्य कराएं।
जिस हिस्से पर मालिश करानी है, वह हिस्सा साफ होना चाहिए।
चोट, घाव, फ्रैक्चर जैसी समस्याओं में भूलकर भी मालिश न कराएं।
बुखार इत्यादि जैसे रोगों से पीड़ित लोगों को मालिश नहीं करानी चाहिए।
प्रतिदिन संपूर्ण शरीर पर कम से कम10-20 मिनट तक ही मालिश करनी चाहिए।

2.1.24

दुनिया में सबसे शक्तिशाली मर्दाना ताकत बढ़ाने वाली दवा कौन सी है?

 


दुनिया में सबसे शक्तिशाली मर्दाना ताकत बढ़ाने वाली दवा चाहिए तो आपको थोड़ा मेहनत करने की जरुरत है
मै आपको तरीका बता देता हूँ और आप इस दवा को खुद अपने घर में ही बना सकते हैं

आपको क्या क्या चाहिये :

मिट्टी का बर्तन (05 किलोग्राम साइज) - 01 नग
मध्यम साइज के देसी सफेद प्याज - 60 नग
देसी शहद - 2.5 किलोग्राम



आपको करना क्या है :सबसे पहले प्याजों को छील लें और किसी नुकीले सुये या सलाई की सहायता से उसमे आडे टेढ़े छेद कर ले.
अब मिटटी के बर्तन में इन प्याजों को डाल कर शहद से भर दें ताकि सभी प्याज शहद में डूब जायें.
अब इस बर्तन को ढक्कन लगा कर और मिटटी का लेप लगा कर अच्छे से हवारहित तरीके से बंद कर दें
अब आप खेत या किसी भी कच्ची जगह में कम से कम तीन फ़ीट गहरा खडडा खोद कर इस बर्तन को 60 दिन के लिए जमीन में दबा दे.
अब 60 दिन में यह नुस्खा तैयार हो जाएगा.

आपको सेवन कैसे करना है
:

सूबह के समय शौच से मुक्त होकर खाली पेट एक प्याज और थोड़ा शहद खाना है

आपको क्या फायदा मिलेंगा :

इस दवा से आपका शारीरिक और मर्दाना ताकत बढ़ जाएगी और वीर्य शहद की तरह ही गाढ़ा हो जायेगा

आपको कब तक लेना है :

आपको यह दवा केवल और केवल 60 दिन तक ही लेना है

यह दवा कौन ले सकता है :

यह दवा 15 वर्ष से लेकर 75 वर्ष तक का मर्द ले सकता है जो डायबिटीज से पीड़ित नहीं है.


16.12.23

हल्दी और सरसों के तेल के फायदे,लिवर और किडनी को रखे सुरक्षित


भारतीय किचन में अधिकतर लोग हल्दी और सरसों के तेल का इस्तेमाल करते हैं। आमतौर पर इसका इस्तेमाल खाना तैयार करने में किया जाता है। इनमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्, एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण स्वास्थ्य के जुड़ी कई समस्याओं को दूर कर सकता है। रोजाना हल्दी और सरसों के तेल का इस्तेमाल करने से कई तरह की बीमारियों को दूर किया जा सकता है। यह स्किन संबंधी परेशानियों को दूर कर सकता है। साथ ही मोटापा भी कंट्रोल करने में प्रभावी है. इतना ही नहीं, हल्दी और सरसों तेल का इस्तेमाल करने से शरीर की सूजन को कम की जा सकती है। आज हम इस लेख में हल्दी और सरसों तेल के फायदों के बारे में जानेंगे।
हल्दी और सरसों के तेल का सेवन करने से सेहत को कई तरह के लाभ मिलते हैं। हल्दी और सरसों के तेल में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरियल और एंटीवायरल के गुण पाए जाते है, जो स्वास्थ्य के जुड़ी कई समस्याओं को दूर करते है। साथ ही नियमित रूप से हल्दी और सरसों के तेल का इस्तेमाल करने से कई तरह की बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। दर्द को कम करने के लिए हल्दी और सरसों के तेल का सेवन करना फायदेमंद होता है। साथ ही ये हार्ट को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करते हैं। तो आइए जानते हैं हल्दी और सरसों के तेल के फायदे के बारे में

हल्दी और सरसों के तेल के फायदे

हार्ट के लिए हेल्दी

हल्दी, सरसों तेल और नमक का एक साथ इस्तेमाल करने से आप हार्ट को स्वस्थ रख सकते हैं। दरअसल, हल्दी और सरसों तेल में खून को साफ करने का गुण होता है। साथ ही यह ब्लड सर्कुलेशन को भी बेहतर कर सकता है, जिसकी मदद से आप हार्ट डिजीज के खतरों को कम कर सकते हैं।
हार्ट को स्वस्थ बनाए रखने के लिए हल्दी और सरसों के तेल का एक साथ सेवन करना बहुत ही फायदेमंद माना जाता है। क्योंकि हल्दी और सरसों के तेल एक साथ मिलाकर खाने से ब्लड प्यूरीफाय होता है और क्लॉटिंग की आशंका कम होती है। जिससे ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है और हार्ट डिजीज का खतरा भी कम होता है।

लिवर और किडनी को रखे सुरक्षित 

हल्दी और सरसों के तेल का खाने से शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाला जा सकता है। इससे शरीर के संक्रमण को भी दूर कर सकते हैं। साथ ही किडनी इंफेक्शन की समस्या को दूर करने में भी हल्दी और सरसों तेल काफी फायदेमंद हो सकता है। हल्दी और सरसों तेल का सेवन आप खाने में शामिल करके कर सकते हैं।

कब्ज से राहत 

कब्ज की परेशानी को दूर करने के लिए हल्दी और सरसों तेल का इस्तेमाल करें। यह आपके पाचन के लिए हेल्दी हो सकता है। इसके सेवन से आप गैस, कब्ज जैसी परेशानियों को कम कर सकते हैं

दर्द और सूजन को कम करने में फायदेमंद

दर्द और सूजन को कम करने के लिए हल्दी और सरसों का तेल इस्तेमाल करना बहुत ही फायदेमंद माना जाता है। क्योंकि हल्दी में एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट्स के गुण पाए जाते हैं, जो शरीर की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। साथ ही हल्दी में करक्यूमिन गुण पाए जाते हैं, जो शरीर के दर्द से राहत दिलाने में मदद करते हैं। इसलिए हल्दी और सरसों के तेल का इस्तेमाल करने से शरीर में दर्द और सूजन की समस्या दूर रहती है।

दांतों की बढ़ाए चमक

हल्दी, नमक और सरसों तेल का एक साथ इस्तेमाल करने से आप अपने दांतों को स्वस्थ रख सकते हैं। यह दांतों की चमक को बढ़ाने में प्रभावी होता है। इसका प्रयोग करने के लिए 1 चम्मच सरसों तेल लें। इसमें 1 चुटकी नमक और हल्दी मिक्स करें। अब इस मिश्रण को उंगलियों की मदद से अपने दांतों को साफ करें। इससे दांतों की चमक बढ़ेगी।

स्किन को स्वस्थ बनाए रखने में फायदेमंद

स्किन को स्वस्थ बनाए रखने के लिए हल्दी और सरसों के तेल इस्तेमाल करना बहुत ही फायदेमंद माना जाता है। क्योंकि इनका इस्तेमाल करने से स्किन को स्वस्थ रखा जा सकता है। इसलिए रोजाना स्किन और चेहरे पर हल्दी और सरसों का तेल लगाने से स्किन इंफेक्शन और स्किन से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है।

मुंह की बदबू से राहत


मुंह की बदबू को कम करने के लिए आप सरसों तेल, हल्दी और नमक के मिश्रण से मंजन कर सकते हैं। यह मुंह में मौजूद बैक्टीरिया को खत्म करने में मददगार हो सकता है। सुबह ब्रश करने के बाद आप इस मिश्रण से कुछ मिनटों तक मंजन करें। इससे लाभ मिलेगा।


10.12.23

मोटा पेट और लटकती तोंद को काबू में लाने वाली सब्जियां






वजन कम करने के लिए लिए अपने खानपान में बदलाव करना सबसे ज्यादा जरूरी माना जाता है. अगर आप पेट की चर्बी या पेट के मोटापे से परेशान हैं और चाहते हैं कि आप भी दूसरों की तरह स्लिम और फिट दिखें तो आपको अपने खाने में कुछ चीजों को शामिल करने की जरूरत है. आप अगर प्रोपर वेट लॉस डाइट भी फॉलो नहीं करते हैं तो भी सामान्य चीजों को खाकर फैट बर्न कर सकते हैं. पेट कम कैसे करें? मोटापा घटाने के तरीके सबके लिए एक जैसा काम नहीं करते हैं, लेकिन कैलोरी का ध्यान रखना जरूरी है. ये आप भी जानते हैं कि हम जाने अनजाने में हाई कैलोरी वाली चीजें खा लेते हैं, लेकिन हम इसे आसानी से रोक सकते हैं. आपको बस अपनी डाइट में कुछ हाई फाइबर वाली सब्जियों को शामिल करना और रात के खाने में डेली इन्हें बदल-बदलकर खाना है. कुछ ही दिनों में आपको फर्क नजर आने लगेगा. चलिए जानते हैं कौन सी सब्जियां वजन घटाने में मददगार साबित हो सकती हैं.

लौकी

लौकी, वेट लॉस करने वालों के लिए परफेक्ट सब्जी है। इस सब्जी में 90 प्रतिशत तक पानी होता है। इसके अलावा इसमें फाइबर की अच्छी मात्रा होती है जो कि मेटाबोलिज्म को तेज करता है और पाचन क्रिया में तेजी लाता है। इसके अलावा ये शरीर को डिटॉक्सीफाई करने में तेजी से काम करता है जिससे वेट लॉस में मदद मिलती है।

गाजर

गाजर में प्रचुर मात्रा में घुलनशील फाइबर होता है. ये कैरोटीनॉयड और ल्यूटिन जैसे प्लांट कंपाउंड का भी एक बड़ा स्रोत है. कैरोटीनॉयड इम्यून फंक्शन को बेहतर बनाने में भी मदद कर सकता है. साथ ही वजन घटाने में भी कारगर साबित हो सकता है.

पालक

पालक खा कर आप सच में अपना वजन घटा सकते हैं। इसका प्रोटीन वेट लॉस में तेजी से मदद करता है और मेटाबोलिक रेट बढ़ाता है। इसके अलावा इसका फाइबर बॉवेल मूवमेंट को तेज करने में भी मददगार है। तो, वेट लॉस के लिए पालक की स्मूदी पिएं या फिर इसे ऐसे ही सलाद में खाएं।

चुकंदर

चुकंदर जड़ वाली सब्जी है जो घुलनशील और अघुलनशील दोनों तरह के फाइबर प्रदान करती हैं. चुकंदर भी नाइट्रेट का एक अच्छा स्रोत है, जो आपकी ब्लड वेसल्स को चौड़ा करने और ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद कर सकता है. साथ ही वजन घटाने में भी लाभकारी है.

खीरा

वेट लॉस में खीरा काफी कारगर तरीके से आपकी मदद कर सकता है। दरअसल, खीरे में पानी की अच्छी मात्रा होती है जो कि शरीर में हाइड्रेशन लेवल को बढ़ाता है और बॉवेल मूवमेंट को तेज करता है। साथ ही ये पेट को भरा रखता है और भूख कंट्रोल करता है। इसके अलावा इसका फाइबर, मेटाबोलिज्म बढ़ता है और आंतों में चिपके फैट को बाहर निकालते हुए वेट लॉस में तेजी से मदद करता है।

फूलगोभी

फूलगोभी कम कार्ब वाली और हाई फाइबर वाली सब्जी है. अपने फाइबर सेवन को बढ़ाने के लिए चावल, स्टेक और चिकन विंग्स की जगह फूलगोभी लें. इसे रात के खाने में शामिल कर वजन घटाने में आसानी होती है.

बैंगन

बैंगन में घुलनशील और अघुलनशील दोनों तरह के फाइबर होते हैं. इसके साथ ही ये एंटीऑक्सीडेंट, एंथोसायनिन का शक्तिशाली स्रोत है. यही चीज बैंगन को उनका गहरा बैंगनी रंग प्रदान करती है. ये सभी तत्व वजन लॉस में मददगार माने जाते हैं.

करेला

यह एक लो कैलोरी वाली सब्जी है जो अच्छी मात्रा में घुलनशील फाइबर देती है. अपना फैट कम करना चाहते हैं तो इस सब्जी को डाइट में शामिल करना तो बनता है. वजन घटाने के लिए करेला को कई तरीके से डाइट में शामिल किया जा सकता है.

पत्ता गोभी

पत्ता गोभी को आप वेट लॉस डाइट में कई प्रकार से शामिल कर सकते हैं। आप इसे कच्चा खा सकते हैं। आप इसका सूप पी सकते हैं। यानी कि आप पत्ता गोभी का कई प्रकार से सेवन कर सकते हैं और इसका फाइबर और रफेज शरीर में जमा चर्बी को साफ करने में मदद करेगा।

ब्रोकली

ब्रोकली में प्रोटीन की अच्छी मात्रा होने के साथ हाई कैलोरी भी होती है। यानी कि इसे खा कर आपका पेट लंबे समय तक के लिए भरा रह सकता है। साथ ही इसके माइक्रोन्यूट्रीएंट्स वेट लॉस में काफी मदद करते हैं और इसलिए इसे वेट लॉस डाइट का हिस्सा बनाया जाता है।

9.12.23

सेहत के गुणों से भरपूर ड्रेगन फ्रूट रखता है कई बीमारियों को दूर


 


ड्रैगन फ्रूट में प्रोटीन, फाइबर, आयरन, मैग्नीशियम और विटामिन्स की मात्रा भरपूर होती है, जो सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं.ड्रैगन फ्रूट में एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा काफी ज्यादा होती है. इस वजह से अगर आप रोज इसका सेवन करते हैं तो इससे आपके शरीर को फ्री रेडिकल से होने वाले नुकसान से सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी.इससे ह्रदय रोगों के जोखिम को भी कम किया जा सकता है.
ड्रैगन फ्रूट में फाइबर की अधिकता होती है जिस वजह से यह आपके पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है और वजन को कंट्रोल करने में भी आपकी मदद करता है.
ड्रैगन फ्रूट - चमकीले छिलके वाला फल जिसका गूदा काले बीजों से युक्त होता है - फिटनेस प्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गया है। विदेशी फल, जिसे कैक्टस फल, ड्रैगन पर्ल फल और पिटाया भी कहा जाता है, अपने अनोखे रूप और स्वाद के लिए पसंद किया जाता है। हाल ही में, शेफ कुणाल कपूर ने भी इस उष्णकटिबंधीय फल के बारे में इंस्टाग्राम पर साझा करते हुए लिखा: “हालांकि लोग मुख्य रूप से इसके अनूठे रूप और स्वाद के लिए इसका आनंद लेते हैं

इम्यूनिटी-

ड्रैगन फ्रूट में मौजूद विटामिन सी और कैरोटीनॉयड आपके इम्यून सिस्टम को बढ़ा देने में मदद कर सकते हैं. इम्यूनिटी को मजबूत बनाने के लिए आप ड्रैगन फ्रूट का सेवन कर सकते हैं.

. आयरन-

ड्रैगन फ्रूट को आयरन से भरपूर माना जाता है. अगर आपके अंदर खून की कमी है तो आप ड्रैगन फ्रूट का सेवन कर सकते हैं. रोजाना इसे खाने से एनीमिया की कमी को दूर कर सकते हैं.एनीमिया के लक्षणों को भी कम करने में मदद मिलेगी. रोजाना ड्रैगन फ्रूट खाने से हिमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है.

स्किन-

ड्रैगन फ्रूट में मौजूद विटामिन सी त्वचा में कोलेजन का उत्पादन करने, बालों को मजबूत बनाने और टूटने से बचाने में मदद कर सकता है.

हार्ट-

ड्रैगन फ्रूट में ओमेगा-3 और ओमेगा-9 फैटी एसिड्स होते हैं, जो हार्ट को हेल्दी रखने में मदद कर सकते हैं.

डायबिटीज-

ड्रैगन फ्रूट को लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स फ्रूट माना जाता है. ड्रैगन फ्रूट को डायबिटीज के मरीजों के लिए लाभकारी फल माना जाता है.

पाचन-

ड्रैगन फ्रूट में डाइटरी फाइबर की भरपूर मात्रा होती है, जो हमारे पाचन को बेहतर रखने में मदद कर सकते हैं. आंतों की सेहत को भी सुधारने के लिए आप खाली पेट इस फल को खा सकते हैं. इसमें प्रोबायोटिक होता है जो खाना पचाने में मदद करते हैं और आंतों से जुड़ी समस्याओं को कम करते हैं.

सर्दी जुखाम

ड्रैगन फ्रूट में विटामिन सी की मात्रा होती है जो आपके इम्यूनिटी को बढ़ाने में मदद कर सकती है. इसके सेवन से मौसमी बीमारियों से बचाव होगा. सर्दी जुखाम जैसी समस्याएं भी नहीं होगी.

ड्रैगन फ्रूट को कब खाना चाहिए?

ड्रैगन फ्रूट में फाइबर की अधिकता होती है जिस वजह से यह आपके पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है और वजन को कंट्रोल करने में भी आपकी मदद करता है. आंतों की सेहत को भी सुधारने के लिए आप खाली पेट इस फल को खा सकते हैं. इसमें प्रोबायोटिक होता है जो खाना पचाने में मदद करते हैं और आंतों से जुड़ी समस्याओं को कम करते हैं
बाहर से गुलाबी और काटने पर सफेद, लाल, छोटे-छोटे काले बीजों वाले इस फल के बारे में आज भी बहुत कम लोग जानते या खाते होंगे. पोषक तत्वों से भरपूर ड्रैगन फ्रूट की तासीर ठंडी होती है, इसलिए गर्मी में इसे खाना बेस्ट है.

क्या हम खाली पेट ड्रैगन फ्रूट खा सकते हैं?

इसे लेने का सबसे अच्छा समय कब है? जबकि फलों का सेवन करने के लिए सुबह का समय सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि पाचन तंत्र फलों की चीनी को जल्दी से तोड़ देता है और उन्हें सभी पोषक तत्व प्रदान
करता है, ड्रैगन फ्रूट को मध्य भोजन के रूप में या रात में भी खाया जा सकता है

क्या मैं एक दिन में 1 ड्रैगन फ्रूट खा सकता हूं?

इस फल में विटामिन C भरपूर मात्रा में होता है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को बढ़ाता है और आपको स्वस्थ रहने में मदद करता है। विटामिन C ज़्यादा होने का मतलब है कि आपका शरीर घातक संक्रमणों से लड़ने में सक्षम है। आपको बस इतना करना है कि रोज़ाना 1 कप (200 ग्राम) ड्रैगन फ्रूट खाएं और स्वस्थ रहें

ड्रैगन फ्रूट कौन सी बीमारी में खाया जाता है?

चर्बी कम करना: इसमें लो-कैलोरी और हाई-फाइबर होता है, जिससे यह वजन घटाने में मदद कर सकता है. ट्वाइप 2 मधुमेह: कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि ड्रेगन फ्रूट मधुमेह के प्रभाव को नियंत्रित कर सकता है. हृदय के लिए लाभकारी: इसमें ओमेगा-3 और ओमेगा-9 फैटी एसिड्स होते हैं जो हृदय की सेहत के लिए अच्छे होते हैं.

ड्रैगन फूड का दूसरा नाम क्या है?

ड्रैगन फ्रूट को स्ट्रॉबेरी नाशपाती और पिताया के नाम से भी जाना जाता है। सफेद, लाल और गुलाबी रंग के गूदे वाले इस फल का स्वाद हल्का खट्टा-मीठा और रसीला होता है। यह दक्षिण अमेरिका का फल है जिसे अब दुनिया भर में उगाया जा रहा है।