8.3.24

हार्ट में ब्लॉकेज दूर करने के उपाय Heart blockage upay




  पूरी दुनिया में दिल से जुड़ी बीमारी के मरीज में लगातार वृद्धि हो रही है. आजकल खराब लाइफस्टाइल की वजह से किसी को बीपी की समस्या होती है तो किसी का कोलेस्ट्रॉल लेवल हाई रहता है. इसके साथ ही कई लोगों में हार्ट अटैक के लक्षण भी दिखाई देते हैं. आजकल खराब लाइफस्टाइल और गलत खानपान की वजह से दिल की बीमारी ज्यादातर लोगों को हो रही है. अगर दिल की बीमारी का पता सही समय पर चल जाए तो वक्त रहते इसका इलाज किया जा सकता है. नहीं तो स्थिति बेहद गंभीर हो सकती है. इसलिए आपको कभी भी दिल की बीमारी से जुड़ी किसी भी तरह के लक्षण महसूस होता है तो आपको तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए. खासकर हार्ट ब्लॉकेज की समस्या तो बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें. दरअसल, हार्ट ब्लॉकेज की दिक्कत दिन पर दिन बढ़ती जा रही है. इसलिए आज आपको इस आर्टिकल के जरिए बताएंगे कि किस तरह से हार्ट ब्लॉकेज की समस्या को दूर किया जा सकता है? हमारा दिल शरीर का सबसे महत्वपूर्ण भाग है, जिसका कार्य हमारे शरीर को जीवित रखना है। क्या आप जानते हैं कि एक स्वस्थ दिल हर मिनट में लगभग 5 लीटर रक्त पंप करता है! यह रक्त पूरे शरीर में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों का वितरण करता है, जिससे हमारे शरीर के सभी अंग ठीक से कार्य करते हैं। क्या होगा यदि दिल की धड़कन रुक जाए या धीरे चले? इस स्थिति को हर्ट ब्लॉकेज कहा जाता है। दिल से संबंधित इलाज के लिए आप हमारे विशेषज्ञों से परामर्श कर सकते हैं। चलिए इस ब्लॉग के माध्यम से हार्ट में ब्लॉकेज के संबंध में पूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं।

ब्लड फ्लो धीमा होने के नुकसान क्या हैं? 

ब्लड फ्लो धीमा या खराब होने से कई गंभीर लक्षण पैदा हो सकते हैं। इससे आपको दर्द, मांसपेशियों में ऐंठन, सुन्नता, पाचन संबंधी समस्याएं और हाथो-पैरों में ठंड महसूस होना जैसे लक्षण पैदा हो सकते हैं।
हार्ट में ब्लॉकेज या हार्ट का ब्लॉक होना बहुत ही गंभीर बीमारी है। क्युकि इस बीमारी में दिल की धड़कन बहुत धीरे-धीरे चलने लगती है। जिसके कारण व्यक्ति को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। तो वही इस समस्या के उत्पन होने के क्या कारण है और इसके लक्षण कितने खतरनाक हो सकते है और इस समस्या से हम कैसे खुद का बचाव कर सकते है इसके बारे में बात करेंगे इसलिए अगर आप भी इस समस्या से जूझ रहे है तो इससे कैसे निजात पाना है इसके बारे में जानने के लिए आर्टिकल के साथ अंत तक जरूर से बने रहें ; धमनियां, यानी आपकी आर्टरी बैड कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड के बढ़ने से ब्लॉक हो सकती हैं। इससे ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है, दिल पर प्रेशर पड़ता है और आप हाई बीपी के शिकार हो सकते हैं। लंबे समय तक ये स्थिति बनी रहने पर आपको हार्ट अटैक आ सकता है या भी आप अन्य किसी गंभीर बीमारी के शिकार हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में धमनियों में जमा बैड कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड को साफ करने में ये ड्रिंक कई प्रकार से मददगार है। तो, आइए जानते हैं क्या है ये ड्रिंक, इसे बनाने का तरीका और इसे पीने के फायदे।

धमनियों को साफ करने वाला हर्बल डिटॉक्स वॉटर-How can I detox my arteries naturally

धमनियों को साफ करने के लिए आपको इन 5 चीजों की जरुरत है। जैसे कि अदरक, लहसुन, नींबू, एप्पल साइडर विनेगर और शहद। आपको करना (artery cleansing drink recipe) ये है 2 कप पानी में थोड़ा सा अदरक और 2 कली लहसुन को पका कर इसे 1 कप जितना पानी बना लें। इसके बाद इस डिटॉक्स वॉटर में 1 चम्मच एप्पल साइडर विनेगर मिलाएं। थोड़ा सा नींबू और 1 चम्मच शहद मिलाएं। अब रोजाना खाली पेट इस डिटॉक्स वॉटर का सेवन करें। महीने में इसे सिर्फ 2 हफ्तों के लिए करें, बीच-बीच में गैप लेते रहें।हार्ट ब्लॉक का सबसे प्रमुख और सामान्य कारण “हार्ट अटैक” है। वही इसके अन्य कारणों की बात करें तो दिल की मांशपेशी संबंधित बीमारियां भी इसमें शामिल हैं।
हार्ट ब्लॉक सर्जरी के दौरान होने वाली किसी ऊंच-नीच की वजह से भी हार्ट ब्लॉक हो सकता है। और ऐसा किसी दवाई के साइडइफेक्ट के कारण होता है। वही आनुवांशिक होने पर भी हार्ट ब्लॉक की समस्या हो सकती है।
क्या है हार्ट ब्लॉकेज की समस्या ?दिल के इलेक्ट्रिकल सिस्टम में आने वाली दिक्कत हार्ट ब्लॉकेज कहलाती है।
जब हृदय में स्थित धमनियों की दीवारों में कफ जम जाता है, तो उससे पैदा होने वाले विकार को हार्ट ब्लॉकेज कहते हैं। वही आधुनिक रहन-सहन और खाने-पीने में लापरवाही की आदतों के चलते अधिकांश लोगों में हार्ट ब्लॉकेज की समस्या आम होती जा रही है।

हार्ट में ब्लॉकेज के लक्षण क्या है ?

बार-बार सिरदर्द होना।
चक्कर आना ।
छाती में दर्द का होना।
सांस फूलना।
गर्दन, ऊपरी पेट, जबड़े, गले या पीठ में दर्द होना आदि।
हार्ट में ब्लॉकेज को खोलने के लिए कौन-से घरेलू इलाज है कारगर ?अनार से हार्ट के ब्लॉकेज को खोले।
दालचीनी से करें हार्ट के ब्लॉकेज को खोलने के उपाय।
लाल मिर्च भी आपके हार्ट ब्लॉकेज को खोलने में मदद कर सकता है।
लहसुन का सेवन करके भी आप हार्ट ब्लॉकेज की समस्या से निजात पा सकते है।
हल्दी के सेवन भी हार्ट ब्लॉकेज को खोलने के बेहतरीन उपाय है।
तुलसी से करें हार्ट ब्लॉकेज समस्या का हल।
अदरक भी बेहतरीन उपाय है हार्ट ब्लॉकेज को खोलने का, आदि।
परहेज क्या है हार्ट ब्लॉकेज से बचाव का ?वही इस समस्या से निजात पाने के लिए आपको पूड़ी, पराठा, समोसा, पकौड़ी जैसी तेल में तली चीजें, फ्रेंच फ्राईज, बर्गर, रेड मीट को डाइट में शामिल नहीं करना है।

हार्ट ब्लॉकेज के कारण

हार्ट ब्लॉकेज के कारण की बात करें, तो उनकी सूची बहुत बड़ी है। अलग-अलग कारक हार्ट ब्लॉकेज के लिए जिम्मेदार होते हैं। उनमें से कुछ को नीचे विस्तार से बताया गया है - हाई ब्लड प्रेशर: अनियंत्रित उच्च रक्तचाप आपकी नसों पर अतिरिक्त दबाव डालता है, जिससे नसों में संकुचन की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और रक्त के बहाव में रुकावट आती है।

हाई कोलेस्ट्रॉल लेवल: 

एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के उच्च स्तर को "खराब" कोलेस्ट्रॉल के रूप में भी जाना जाता है। यदि यह समस्या आपको परेशान कर रही है, तो आपकी नसों में प्लाक का गठन होता है, जिससे धमनियों में रुकावट आती है।

धूम्रपान और तंबाकू का सेवन: 

धूम्रपान और तंबाकू का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यह रक्त वाहिकाओं को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है, जिसमें वह सिकुड जाते हैं।

मोटापा और गतिहीन जीवन शैली: 

अधिक वजन, मोटापा और गतिहीन जीवन शैली हृदय की रुकावट के लिए जिम्मेदार होते हैं।

हार्ट ब्लॉकेज कैसे पता करे

यदि आपको हार्ट ब्लॉकेज के लक्षण दिखते हैं, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से मिलने की सलाह दी जाती है। मेडिकल टीम आपकी स्थिति के आधार पर कुछ टेस्ट का सुझाव दे सकते हैं। निम्नलिखित परीक्षण आपके डॉक्टर करवा सकते हैं - इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम या ईसीजी में विद्युत का प्रयोग होता है, जिससे हृदय की गति की जांच हो पाती है।
इसके अतिरिक्त एमआरआई का प्रयोग कर हृदय के आसपास की रक्त प्रवाह की गति की पहचान होती है।
कार्डियक कैथीटेराइजेशन के द्वारा डॉक्टर आपके दिल के आसपास के क्षेत्र का निरीक्षण करते हैं और प्लाक के स्थान या संभावित स्थान का पता लगाते हैं।
कोरोनरी कैल्शियम स्कैन के द्वारा नसों में कैल्शियम या कैल्शियम कैल्सीफिकेशन को मापा जाता है।
कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स, और लिपोप्रोटीन की जांच के लिए रक्त परीक्षण का सुझाव दिया जाता है।
नसों में रक्त के प्रवाह की पहचान के लिए स्ट्रेस टेस्ट का भी सुझाव दिया जा सकता है।

हार्ट ब्लॉकेज का इलाज

यदि आपके दिल में किसी भी प्रकार की रुकावट है, तो डॉक्टर कुछ जीवनशैली में बदलाव के साथ दवाओं का सुझाव दे सकते हैं। वहीं कुछ मामलों में सर्जरी की सलाह भी डॉक्टर देते हैं। कुछ मामलों में डॉक्टर निम्नलिखित बदलाव का सुझाव देते हैं - स्वस्थ आहार लें
नियमित व्यायाम करें
धूम्रपान छोड़ दें और इससे दूरी बनाएं
शराब का सेवन सीमित करें
तनाव को कम करने का प्रयास करें
अच्छी गुणवत्ता वाली नींद लें
इसके अतिरिक्त कुछ दवाओं का सुझाव डॉक्टर देते हैंब्लड प्रेशर को कम करने के लिए बीटा-ब्लॉकर्स, कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, या एसीई ब्लॉकर्स का सुझाव दिया जाता है।
एंटी क्लोटिंग और एंटीप्लेटलेट दवाएं डॉक्टर देते हैं।
सीने में दर्द के इलाज के लिए नाइट्रेट दवाएं।
स्टैटिन और अन्य कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाली दवाएं।
रक्त के थक्कों को घोलने की दवाएं।
कुछ प्रकार के ब्लॉकेज बहुत ज्यादा गंभीर होते हैं और उनको ठीक करने के लिए सर्जिकल प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है। इस संबंध में डॉक्टर एंजियोप्लास्टी और स्टेंट प्लेसमेंट का विचार कर सकते हैं। बाईपास सर्जरी भी हार्ट ब्लॉकेज के इलाज का एक विकल्प है।

हार्ट ब्लॉकेज खोलने के लिए क्या खाएं

हार्ट ब्लॉकेज की स्थिति से निपटने के लिए आपका आहार और दैनिक जीवन बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होता है। हार्ट ब्लॉकेज खोलने में निम्नलिखित खाद्य पदार्थ बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होतै हैं - अनार से हार्ट ब्लॉकेज की स्थिति में सुधार होता है।
दालचीनी है आपके लिए लाभदायक।
लहसुन रक्त के बहाव को तेज करता है, जिससे हार्ट ब्लॉकेज को खोलने में मदद मिलती है।
हल्दी दिल के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
तुलसी के औषधीय गुणों के कारण इसके सेवन से लाभ मिलता है।
खाने में अदरक का सेवन हार्ट ब्लॉकेज की स्थिति को ठीक करने में लाभकारी साबित होगा।


हार्ट ब्लॉकेज क्यों होता है?

हार्ट ब्लॉकेज की समस्या तब होती है, जब हृदय की धमनियों में वसा, कोलेस्ट्रॉल, और अन्य पदार्थ जम जाते हैं। इससे धमनियां संकुचित हो जाती हैं और रक्त का प्रवाह भी कम हो जाता है। इससे हृदय में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की कमी आती है, जिससे सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, और यहां तक ​​कि दिल का दौरा भी पड़ सकता है।

हार्ट ब्लॉकेज में क्या नहीं खाना चाहिए?

हार्ट ब्लॉकेज में निम्नलिखित खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए:तला हुआ भोजन
मीठे पेय पदार्थ
पैकेटबंद खाद्य पदार्थ
प्रोसेस्ड मीट
फास्ट फूड
इन खाद्य पदार्थों में फैट, कोलेस्ट्रॉल, और अन्य तत्व होते हैं, जो हृदय रोग के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।

हार्ट में ब्लॉकेज के कितने स्टेज होते हैं?

हार्ट ब्लॉकेज के अलग-अलग स्टेज होते हैं। शुरुआती चरण में लक्षण नहीं होते हैं। दूसरे स्टेज में दिल की धड़कन असामान्य रहती है। तीसरे स्टेज में हृदय रुक-रुक कर कार्य करता है। दूसरे या तीसरे चरण में दिल का दौरा भी आ सकता है। यही कारण है कि दूसरे चरण से ही इलाज की आवश्यकता होती है।
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7.3.24

नीम के औषधीय उपयोग ,Benefits of neem tree




नीम का पेड़ उन चुनिंदा पौधों में से है जिसके लगभग हर भाग का हम इस्तेमाल कर सकते हैं। नीम के फायदे सैंकड़ों हैं और इसका हर भाग आप इस्तेमाल में ला सकते हैं। जहां नीम की पत्तियां त्वचा को स्वस्थ रखने और खून को साफ करके का काम करती हैं तो वहीं इसकी छालें पाचन तंत्र को बेहतर करती हैं। इसके अलावा इसका तेल, बीज और फूल भी कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है।
इसे आप प्रकृति का वरदान कह सकते हैं जो आसानी से उपलब्ध भी हो जाता है, खासकर कि ग्रामीण इलाकों में। इसकी खासियत और फायदों को देखते हुए ही इसका नाम Wonder Tree यानि अद्भुत वृक्ष भी रखा गया है। प्राचीन समय से ही इस औषधीय पौधे का इस्तेमाल विभिन्न रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता रहा है और आज की आधुनिक दवाओं में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
नीम की सबसे अच्छी बात यह है कि इसके सभी भाग यानी इसकी जड़, तना, पत्ते, गोंद, बीज और तेल का इस्‍तेमाल स्वास्थ्य के लिए किया जा सकता है। यह स्वाद में कड़वा और कसैला, प्रकृति में सूखा और हल्का और कूलिंग गुणों से भरपूर होता है। इसलिए पेट से जुड़ी समस्‍याओं, यूरिन और त्वचा रोगों के लिए फायदेमंद होता है।
गठिया और सूजन के इलाज में मदद करता है
कई अध्ययनों से पता चला है कि नीम आसानी से सूजन और गठिया का इलाज कर सकता है। इस पौधे में "निंबिडिनी" नामक एक रसायन होता है, जिसमें गठिया-रोधी और सूजन-रोधी गतिविधियाँ होती हैं। निंबिडिन "न्यूट्रोफिल" और "मैक्रोफेज" की भड़काऊ क्रियाओं को रोक सकता है।
यह सूजन को कम करने में भी सहायता कर सकता है और दर्द और सूजन दोनों को भी कम कर सकता है। नीम उन लोगों के लिए भी बेहद फायदेमंद है जो "रुमेटीइड गठिया" से पीड़ित हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जो ऑटो-इम्यून रिएक्शन के कारण मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और सूजन का कारण बनती है।
नीम संक्रमण का इलाज कर सकता है
*नीम उन लोगों की मदद कर सकता है जो डेंगू बुखार से पीड़ित हैं क्योंकि यह डेंगू वायरस के विकास को रोक देगा। यह "कॉक्ससेकी बी वायरस" की प्रतिकृति में भी हस्तक्षेप करेगा। यह विषाणुओं का एक समूह है जो मनुष्यों में पूर्ण संक्रमण से लेकर पेट दर्द तक कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है।
आप नीम का उपयोग वायरल रोगों, जैसे कि चेचक और चिकनपॉक्स के लिए भी कर सकते हैं और उनके लक्षणों को कम कर सकते हैं। इसके अलावा, नीम त्वचा और जीवाणु संक्रमण का भी इलाज कर सकता है। हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि इस पौधे में जीवाणुरोधी गतिविधियां होती हैं, जो दांतों की कैविटी और मसूड़ों की समस्याओं के इलाज में मदद करती हैं।
*विशेषज्ञों का कहना है कि नीम का उपयोग स्कैबीज के प्रबंधन के लिए भी किया जा सकता है, लेकिन मानव अध्ययन के लिए इस पर बहुत अधिक वैज्ञानिक डेटा नहीं है। इस पौधे में "रोगाणुरोधी गुण" भी होते हैं, जो त्वचा से संबंधित कई बीमारियों और मुद्दों, जैसे एक्जिमा, मुँहासे और कई अन्य के इलाज में सहायक होते हैं।
*आप सोरायसिस के लक्षणों को कम करने के लिए नीम के तेल का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन इन दावों का समर्थन करने के लिए और अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है। नीम का उपयोग फंगल संक्रमण के इलाज में भी किया जा सकता है क्योंकि इसमें एंटीफंगल गुण होते हैं।
यह कैंडिडा [इसे थ्रश पैदा करने वाले जीव या खमीर संक्रमण भी कहा जाता है], दाद, और एथलीट फुट जैसे फंगल संक्रमण से राहत पाने में आपकी मदद कर सकता है।

यह कैंसर के इलाज के लिए अच्छा है

नीम में "फ्लेवोनोइड्स" जैसे रसायन होते हैं, जो कैंसर से लड़ सकते हैं। कई अध्ययनों ने प्रमाण दिया है कि फ्लेवोनोइड्स का उच्च स्तर कैंसर के विकास को रोक सकता है। नीम में मानव में कैंसर कोशिकाओं की एक विविध श्रेणी की संभावित क्रिया है।
इसका मतलब यह है कि यह व्यक्ति को प्रोस्टेट, कोलन, लिवर, पेट, मुंह, फेफड़े, स्तन और त्वचा के कैंसर से राहत दिला सकता है। लेकिन इसके संभावित उपयोग को साबित करने के लिए बहुत अधिक व्यापक शोध किया जाना है।

नीम प्रतिरक्षा को बढ़ा सकता है

नीम के सबसे बड़े लाभों में से एक यह है कि इसमें प्रतिरक्षा-उत्तेजक गुण होते हैं। यह लिम्फोसाइटिक और कोशिका-मध्यस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली दोनों में मदद करेगा, जिसमें "किलर टी" कोशिकाएं शामिल हैं। ये कोशिकाएं उन पर जहरीले रसायन छोड़ कर सभी वायरस, रोगाणुओं आदि को खत्म करने के लिए जानी जाती हैं।

 यह मस्तिष्क के लिए अच्छा है

नीम में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो मस्तिष्क-सुरक्षात्मक गुण दिखा सकते हैं। स्ट्रोक से पीड़ित मरीजों को निश्चित रूप से नीम से लाभ होगा क्योंकि यह मस्तिष्क क्षति के खिलाफ मदद कर सकता है। यह विटामिन सी [एस्कॉर्बिक एसिड] के स्तर को बढ़ाकर मस्तिष्क की मदद करेगा और लिपिड पेरोक्सीडेशन में भी सहायता करेगा।

इसका उपयोग मधुमेह के लिए किया जाता है

विशेषज्ञों ने दावा किया है कि नीम में मधुमेह से पीड़ित लोगों में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने की शक्ति है। हालांकि सटीक तंत्र अभी तक ज्ञात नहीं है, प्रभाव काफी हद तक दिखाई दे रहे हैं। कृपया मधुमेह के ठीक से इलाज के लिए चिकित्सक से बात करें।

नीम लीवर के लिए अच्छा है

नीम लीवर को विभिन्न स्थितियों से बचा सकता है और बदले में रक्त को शुद्ध करता है। नीम की पत्तियां सीरम मार्कर एंजाइम के स्तर को स्थिर करके रसायनों के कारण होने वाले लीवर के नुकसान को कम कर सकती हैं। यह विटामिन ई और सी और प्राकृतिक कैरोटीनॉयड में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट स्तर को भी बढ़ा सकता है।

बाहरी रूप से नीम का इस्‍तेमाल (लेपा)

पेस्ट के रूप में- त्वचा से जुड़ी समस्‍याओं या घाव के लिए नीम पाउडर (अन्य जड़ी बूटियों के साथ मिक्‍स करके) को पानी या शहद के साथ मिक्‍स करके पेस्ट बनाकर लगाएं।
नहाने के लिए - 

नीम के पाउडर या पत्तों को गर्म पानी में मिलाकर नहाने के लिए इस्तेमाल करें।
मुंहासों के लिए- नीम के पाउडर को अन्य एंटी एक्ने हर्ब्स जैसे चंदन, गुलाब, हल्दी, मंजिष्ठा, मुलेठी के साथ मिलाकर फेस पैक के रूप में चेहरे पर लगाया जा सकता है।

नीम का सेवन कैसे करें?

डिटॉक्सिफिकेशन के लिए 

2 हफ्ते तक 7-8 नीम के पत्ते चबाएं या 2-3 सप्ताह तक 10-15 मिलीलीटर नीम का रस पिएं।

डैंड्रफ के लिए-

 नीम को पानी में उबालकर ठंडा होने दें। फिर इस पानी से बालों को धोएं। बालों को धोने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

हर्बल पानी - 

हाथों को धोने के लिए नीम के पानी का इस्तेमाल करें। इसका इस्‍तेमाल एनल फिस्टुला या बवासीर में सिट्ज़ बाथ के लिए भी किया जा सकता है।

नीम मुंह की देखभाल के लिए आदर्श है

भारत के ग्रामीण इलाकों में बहुत से लोग अपने दांतों को साफ करने के लिए नीम का इस्तेमाल करते हैं। इस पौधे में रोगाणुरोधी गुण होते हैं, जो पट्टिका और मसूड़े की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। नीम में एंटीसेप्टिक गुण भी होते हैं जो मौखिक स्वच्छता बनाए रखने में आपकी मदद कर सकते हैं।
अपने मौखिक और दंत चिकित्सा देखभाल के लिए नीम का उपयोग करने से ठीक पहले चिकित्सक से बात करना सुनिश्चित करें।

यह पेट की समस्याओं से निपट सकता है

कई अध्ययनों ने प्रमाण दिया है कि नीम की छाल पेट में मौजूद एसिड के स्राव को 77 प्रतिशत कम कर सकती है। यह पेट के स्राव की मात्रा को भी 63 प्रतिशत तक नियंत्रित कर सकता है। इसके अलावा नीम पेट के एंजाइम पेप्सिन की गतिविधि को भी 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
एक बार जब आप नीम-आधारित उत्पादों का उपयोग करना शुरू कर देंगे, तो यह पेट के ऊतकों को होने वाले नुकसान को रोकेगा/कम करेगा और पेट की सूजन से भी निपटेगा। आपको नीम उत्पादों के साथ स्वयं औषधि नहीं लेनी चाहिए और पेट के मुद्दों के इलाज के लिए नीम सही विकल्प है या नहीं, यह जानने के लिए चिकित्सक से बात करें।

दिल के लिए अच्छा है नीम

अत्यधिक कोलेस्ट्रॉल का स्तर, रक्त के थक्के, अनियमित दिल की धड़कन और उच्च रक्तचाप सभी दिल के दौरे के प्राथमिक कारण हैं। लेकिन नीम की पत्ती के अर्क की मदद से आप संचार प्रणाली पर रक्तचाप, थक्के और तनाव को आसानी से कम कर सकते हैं।
यह निश्चित रूप से अनियमित दिल की धड़कन में मदद करेगा और खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम करेगा। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि दिल के लिए नीम के इस्तेमाल को साबित करने के लिए अभी और अध्ययन किए जाने की जरूरत है। यदि आप दिल से संबंधित किसी भी समस्या से पीड़ित हैं, तो इसका निदान और इलाज डॉक्टर से करवाना सुनिश्चित करें। जड़ी-बूटियों के साथ स्व-चिकित्सा करने के बारे में न सोचें, क्योंकि इससे आपकी स्थिति और खराब हो सकती है।

 यह मलेरिया को ठीक कर देगा


मलेरिया एक ऐसी बीमारी है जो आमतौर पर भारत में होती है, और वयस्कों और बच्चों दोनों को यह विकसित होती है। लेकिन मलेरिया वायरस से निपटने वाले नीम आधारित उत्पादों या नीम के पत्ते के अर्क से आप इस स्थिति से राहत पा सकते हैं।
यह पौधा निश्चित रूप से इस वायरस को ले जाने वाले परजीवियों को प्रभावित करेगा और इसे शरीर से खत्म कर देगा। आप नीम की पत्तियों को जलाकर इस्तेमाल कर सकते हैं और फिर उन्हें मच्छर भगाने के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

यह विटिलिगो के साथ मदद करता है

नीम का उपयोग त्वचा से संबंधित मुद्दों जैसे कि विटिलिगो से निपटने के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प है। विटिलिगो एक ऑटोइम्यून स्थिति है जिसके कारण त्वचा अपना रंग खो देती है और सफेद हो जाती है। इससे पहले कि आप इस स्थिति के लिए नीम आधारित किसी भी उत्पाद का उपयोग करें

सावधानी


इन लोगों को नीम का सेवन नहीं करना चाहिए-प्रेग्‍नेंट महिलाएं
शिशु या बच्चे
कोई भी गर्भधारण करने की कोशिश कर रहा है- पुरुष या महिला।
नीम को खाने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श जरूर करें।
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5.3.24

हाथों और पैरों में झुनझुनी के कारण ? क्या हैं उपाय ?




कई बार छोटी-मोटी समस्याओं को हम नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन आपको ध्यान में रखना चाहिए कि शरीर इस तरह से संकेत तभी देता है, जब चीजें गंभीर होने लगी हों। अगर इन पर ध्यान नहीं दिया और समय रहते इनका इलाज नहीं किया, तो शरीर अंदर से खोखला होने लगता है और फिर ये बड़ी बीमारी बनकर उभरती है। खास तौर पर विटामिन की कमी से होनेवाली बीमारियों के लक्षण ऐसे ही सामान्य से होते हैं, लेकिन लंबे समय तक नजरअंदाज करने से शरीर को भारी नुकसान पहुंचता है
हाथ-पैर या किसी अंग में बार-बार झुनझुनी की समस्या एक खास तरह की विटामिन की कमी की वजह से होती है. जब शरीर में इस विटामिन की कमी होती है तो न्यूरोन की एक्टिविटी प्रभावित हो जाती है.
हमारा शरीर, विटामिन, कैल्शियम, प्रोटीन, खनिज आदि पोषक तत्वों से मिलकर बना है। इन सभी का शरीर में पर्याप्त मात्रा में होना बहुत जरूरी है, तभी जाकर हमारा शरीर अच्छे ढंग से काम कर पाएगा। इसमें से किसी भी एक की कमी होती है तो सेहत संबंधी तमाम परेशानियां शुरु हो जाती हैं। अगर आपके हाथों या पैरों में झनझनाहट होने लगी है, तो ये विटामिन की कमी का संकेत है।आईये जानते हैं इसकी वजह और इलाज-


पिएं हल्दी वाला दूध

कोरोना वायरस के प्रकोप से खुद को बचाने के लिए और इम्यूनिटी बूस्ट करने के लिए हल्दी वाले दूध का सेवन बीते कुछ वक्त से लोग ज्यादा करने लगे हैं। लेकिन क्या आपको पता है हल्दी वाला दूध भी आपकी झुनझुनाहट की समस्या को दूर करने में असरदार है। हल्दी वाले दूध में एंटी ऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में होते हैं। ये ब्लड को शरीर में सर्कुलेट करने में मदद करता है। जिसकी वजह से नसों में हमेशा प्रवाह बना रहता है।
क्या आपको कभी अपने हाथों और पैरों में चुभन और सुइयों का अहसास होता है? ऐसा महसूस होता है जैसे आपका हाथ या पैर सो गया हो। कई बार, ऐसा केवल इसलिए हो सकता है क्योंकि आप बहुत लंबे समय तक एक ही स्थिति में थे।
लेकिन अगर आप इस भावना को आसानी से या सामान्य से अधिक बार नोटिस करते हैं, तो इसका कारण कुछ और हो सकता है। विटामिन की कमी एक संभावना है। हम विभिन्न विटामिन की कमी के बारे में जानेंगे जो हाथों और पैरों में झुनझुनी पैदा कर सकती है ताकि आपको यह पता लगाने में मदद मिल सके कि क्या आपके साथ भी ऐसा हो सकता है।

हाथों और पैरों में झुनझुनी (पेरेस्टेसिया) का क्या कारण है?

पेरेस्टेसिया किसी भी असामान्य अनुभूति के लिए चिकित्सा शब्द है जो तब होता है जब आपकी तंत्रिका अंत संकुचित या क्षतिग्रस्त हो जाती है। यह दर्दनाक महसूस हो सकता है - जैसे जलन या चुभन - या यह सिर्फ सुन्नता जैसा महसूस हो सकता है।
पेरेस्टेसिया अस्थायी हो सकता है और अपने आप ठीक हो सकता है। ऐसा अक्सर तब होता है जब तंत्रिका संपीड़न इसका कारण होता है - जैसे जब आप लेटे हुए हों या एक ही स्थिति में बहुत देर तक बैठे हों। लेकिन अगर यह बार-बार वापस आता है या अधिक बार हो रहा है, तो यह क्रोनिक (दीर्घकालिक) पेरेस्टेसिया हो सकता है।

क्रोनिक पेरेस्टेसिया तंत्रिकाओं में किसी गड़बड़ी का संकेत हो सकता है। 

कारणों में शामिल हैं:
न्यूरोलॉजिकल विकार, जैसे गुइलेन-बैरे सिंड्रोम, या रीढ़ की हड्डी की समस्याएं
संक्रमण , जैसे एचआईवी, हर्पीस, या कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी
आघात या चोटें जो आस-पास की नसों को नुकसान पहुंचाती हैं
मधुमेह, जो परिधीय न्यूरोपैथी का कारण बन सकता है
और कई अलग-अलग विटामिन की कमीएं हैं जो पेरेस्टेसिया का कारण बन सकती हैं।
विटामिन और खनिज की कमी के कारण आपके हाथों और पैरों में झुनझुनी हो सकती है
हाथों और पैरों में झुनझुनी का कारण बनने वाली विटामिन की कमी अलग-अलग कारणों से हो सकती है। हो सकता है कि कुछ लोगों को अपने आहार से पर्याप्त भोजन न मिल रहा हो। अन्य लोगों के लिए, उनकी आंत एक विशिष्ट विटामिन को अच्छी तरह से अवशोषित नहीं कर पाती है। आइए विशिष्ट विटामिन और खनिजों के विवरण पर चलें।

विटामिन बी6 (पाइरिडोक्सिन)

विटामिन बी और ई (vitamin B & E) हमारे नर्वस सिस्टम को सुचारू रूप से चलाने में सहयोग करते हैं। इनमें कमी आने से पैरों और हाथों में झनझनाहट होने लगती है।
कभी-कभी किसी दवा के साइड इफेक्ट की वजह से भी आपको झनझनाहट महसूस हो सकती है।
हाई ब्लड प्रेशर या ट्यूबरक्लोसिस की बीमारी में भी ऐसा महसूस हो सकता है।
बहुत ज्यादा शराब पीने से शरीर में विटामिन बी12 फोलेट की कमी हो जाती है। इससे भी हाथ और पैर में झनझनाहट होती है।
थायराइड (Thyroid) की समस्या में भी आपके हाथ और पैर में झनझनाहट हो सकती है।
अगर आपको हाथ या पैर में लगातार झनझनाहट महसूस हो रहा हो, तो फौरन अपने डॉक्टर से मिलें और लक्षणों के आधार पर उचित विटामिन्स लेना शुरु कर दें। इसे इग्नोर करने से स्थिति गंभीर हो सकती है। इसके अलावा अगर आपको एक ही स्थिति में बिना करवट बदले सोने काी आदत है, तो उसे बदलें। क्योंकि इस वजह से भी पैर और हाथ में झनझनाहट हो सकती है। इसके अलावा रोजाना टहलना शुरु करें और हाथ-पैरों से जुड़े हल्के व्यायाम करें। इससे भी राहत मिलती है।
विटामिन बी6 दिलचस्प है क्योंकि बहुत अधिक और बहुत कम बी6 दोनों पेरेस्टेसिया का कारण बन सकते हैं। आमतौर पर झुनझुनी आपके पैरों से शुरू होती है और आपके पैरों और आपकी बाहों तक जाती है। कुछ लोग जलन की भी शिकायत करते हैं। शिशुओं में, बी6 की कमी से दौरे भी पड़ सकते हैं।
बी6 की कमी निम्न से जुड़ी है:
बी6 का कम सेवन और कुपोषण (अत्यधिक शराब पीने वाले लोगों में आम)
जो लोग डायलिसिस पर हैं
कुछ दवा पारस्परिक क्रिया, जैसे हाइड्रैलाज़िन और आइसोनियाज़िड
बी6 की कमी का इलाज मौखिक पूरकों से किया जाता है। बी6 स्तर की मात्रा ठीक करने के बाद लक्षणों में सुधार होता है।
विटामिन बी12 (कोबालामिन)
विटामिन बी12 का निम्न स्तर एक ही समय में दोनों हाथों और पैरों में पेरेस्टेसिया का कारण बन सकता है। कमजोरी और दृष्टि परिवर्तन जैसी अन्य न्यूरोलॉजिकल समस्याएं भी हो सकती हैं।
बी12 नई रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी महत्वपूर्ण है, इसलिए निम्न स्तर से एनीमिया (कम रक्त गणना) हो सकता है। इससे आपको कमजोरी और थकान भी महसूस हो सकती है।
विटामिन बी12 की कमी के कारणों में शामिल हैं:
कम सेवन (कभी-कभी शाकाहारी आहार के साथ ऐसा होता है)
दवाएं ( मेटफॉर्मिन और पीपीआई बी12 के अवशोषण को बाधित कर सकती हैं)
हाल ही में हुई गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी, जो अवशोषण को भी प्रभावित कर सकती है

हानिकारक रक्तहीनता

बी12 की कमी का इलाज मौखिक, नाक या बी12 के इंजेक्शन से किया जा सकता है। बी12 की कमी के प्रभावों को उलटने के लिए त्वरित निदान और उपचार महत्वपूर्ण है।

बायोटिन

बायोटिन एक अन्य बी विटामिन है। हाथों और पैरों में झुनझुनी के अलावा, बायोटिन की कमी का कारण बन सकता है:
बालों का पतला होना और बालों का झड़ना
त्वचा में संक्रमण और चकत्ते
दु: स्वप्न
बरामदगी
बायोटिन की कमी काफी दुर्लभ है। यह गर्भावस्था/स्तनपान, पुरानी शराब की लत और बायोटिनिडेज़ एंजाइम की कमी से जुड़ा है। मौखिक बायोटिन की खुराक बायोटिन के स्तर को नियंत्रित करने और लक्षणों को उलटने में मदद करती है।

विटामिन ई

विटामिन ई की कमी से पेरेस्टेसिया के साथ-साथ टेढ़ी चाल (गतिभंग) भी हो जाती है। विटामिन ई को इसके साथ अवशोषित होने के लिए वसा की आवश्यकता होती है। कमी के कारण होता है:
वसा अवशोषण से जुड़ी समस्याएं, जैसे सिस्टिक फ़ाइब्रोसिस
आनुवंशिक विकार, जैसे एबेटालिपोप्रोटीनेमिया
मौखिक अनुपूरक विटामिन ई के स्तर को ठीक कर सकते हैं। कभी-कभी शरीर में वसा के अवशोषण में सुधार करना भी सहायक होता है। सौभाग्य से, विटामिन ई अनुपूरण तंत्रिका संबंधी लक्षणों को उलट सकता है।

कैल्शियम

कैल्शियम की कमी हल्की या बहुत गंभीर हो सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि यह कितनी जल्दी विकसित होती है। लक्षणों में शामिल हैं:
मुंह और/या हाथों और पैरों के आसपास पेरेस्टेसिया
मांसपेशियों में ऐंठन
असामान्य हृदय क्रिया, जिससे हृदय विफलता हो सकती है
भ्रम और मतिभ्रम
बरामदगी
कैल्शियम के निम्न स्तर के कारणों में शामिल हो सकते हैं:
विटामिन डी का निम्न स्तर, जो कैल्शियम अवशोषण में मदद करता है
जिगर और गुर्दे की बीमारी
कम पैराथाइरॉइड स्तर, जो पैराथाइरॉइड को शल्य चिकित्सा द्वारा हटाने या कम उत्पादन के कारण हो सकता है
अन्य इलेक्ट्रोलाइट असामान्यताएं, जैसे कम मैग्नीशियम या उच्च फॉस्फेट स्तर
कु दवाएँ, जैसे बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स

अग्नाशयशोथ

कैल्शियम के स्तर को IV (अंतःशिरा) या मौखिक अनुपूरण के साथ ठीक करने की आवश्यकता है। कभी-कभी, किसी अंतर्निहित कारण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है। पेरेस्टेसिया आमतौर पर कैल्शियम का स्तर सामान्य होने पर ठीक हो जाता है।

मैगनीशियम

मैग्नीशियम शरीर में कई काम करता है, जैसे पोटेशियम और कैल्शियम को विनियमित करना। इसलिए मैग्नीशियम का निम्न स्तर कैल्शियम के निम्न स्तर के समान लक्षण पैदा कर सकता है - जैसे चेहरे और मुंह के आसपास झुनझुनी। मैग्नीशियम की कमी से कमजोरी, मांसपेशियों में ऐंठन और असामान्य हृदय ताल भी हो सकती है।

मैग्नीशियम के निम्न स्तर के कारणों में शामिल हैं:

लगातार शराब का सेवन

जीर्ण दस्त

दवाएं, जैसे एमिनोग्लाइकोसाइड एंटीबायोटिक्स ( जेंटामाइसिन ) और मूत्रवर्धक ( फ़्यूरोसेमाइड )

सौभाग्य से, मैग्नीशियम अनुपूरण मैग्नीशियम के स्तर को तुरंत ठीक कर सकता है और पोटेशियम और कैल्शियम के स्तर में सुधार कर सकता है। इलेक्ट्रोलाइट्स सामान्य हो जाने पर आमतौर पर लक्षणों में सुधार होता है।

ताँबा

तांबे की कमी से पैरों में पेरेस्टेसिया और चलने में कठिनाई हो सकती है। तांबे की कमी दुर्लभ है लेकिन बहुत अधिक जस्ता लेने या पेट की सर्जरी से जुड़ी है, जिससे तांबे का अवशोषण खराब हो जाता है। उपचार में तांबे की खुराक लेना और जिंक का सेवन कम करना शामिल है। दुर्भाग्य से, तांबे का स्तर ठीक होने के बाद भी लक्षण हमेशा प्रतिवर्ती नहीं होते हैं।
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गठिया ,सायटिका ,घुटनों  के दर्द के प्रभावी उपचार 








2.3.24

लीवर की सूजन फैटी लीवर सिर्होसिस के प्रभावी उपचार ,Liver ke rog ke upchar

 



लिवर क्या है ?

लिवर,त्वचा के बाद शरीर का दूसरा सबसे बड़ा अंग है जो फेफड़ों के ठीक नीचे दाहिनी तरफ होता है। इसका मुख्य काम पित्त और एल्बुमिन का निर्माण करना, रक्त साफ करना, अमीनो एसिड और खून के थक्के ( ब्लड क्लॉटिंग ) को रेगुलेट करना, इन्फेक्शन से बचाना, विटामिन और खनिज ( मिनरल ) को स्टोर करना, ग्लूकोज की प्रक्रिया करना और ऐसे ही कई अन्य कार्य करना होता है। इसलिए लिवर का स्वस्थ होना आवश्यक होता है।

लिवर रोग क्या है?

जब लिवर में किसी प्रकार का संक्रमण, अधिक चर्बी का जमाव या शराब के कारण लिवर के ऊतक खराब होने लगते हैं तो यह लिवर रोग को उत्पन्न करते हैं। लंबे समय तक इन बीमारियों का उपचार न होने पर लिवर सिरोसिस जैसी गंभीर स्थिति देखने को मिलती है। अंततः लिवर रोग के कारण लिवर कैंसर और लिवर फेल भी हो सकता है।

लिवर रोग के लक्षण

लिवर रोग होने पर कुछ लक्षण देखने को मिल सकते हैं। इन लक्षणों के दिखने पर लिवर रोग की आशंका रहती है। लिवर रोग के मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं: आंखों और त्वचा का रंग पीला हो जाना
पेशाब का रंग गहरा होना
मल का रंग हल्का होना
पेट में सूजन होने लगती है और इसके अलावा पैरों और एड़ियों में भी सूजन की समस्या बनी रहती है
जी मिचलाना
उल्टी होना
पेट में तेज या हल्का दर्द होना
भूख में कमी आना और कुछ भी खाने पीने की इच्छा न होना
हाथों, पैरों, पीठ और पेट की त्वचा में खुजली होना

फैटी लिवर एक ऐसी बीमारी है जिसमें मरीजों के लिवर में फैट जमा होने लगता है। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण है गलत खानपान और खराब लाइफस्टाइल। लिवर का काम शरीर में खाना पचाने, पित्त बनाने और इसे इंफेक्शन फ्री रखने का होता है। लिवर शरीर का वो अंग है, जहां दिखाई न देने वाली चर्बी जमा होने का डर रहता है। इसकी वजह से लिवर में सूजन आना, और लीवर का ठीक से काम न करने जैसी समस्या हो सकती है। कुछ मामलों में तो लीवर फेलियर का भी खतरा हो सकता है। ऐसे में लिवर को हेल्दी रखना बेहद जरूरी होता है।
आजकल के जीवनशैली के कारण लिवर की बीमारी अब अक्सर लोगों को हो रही है। लिवर की बीमारी की खास बात ये है कि व्यक्ति को इसका पता काफी समय बाद चलता है।
आज के समय फैटी लिवर की समस्या काफी आम हो गई है। खराब जीवनशैली और गलत खानपान के कारण फैटी लिवर की समस्या होती है। जब लिवर की कोशिकाओं में ज्यादा मात्रा में फैट इकट्ठा हो जाता है, तब फैटी लिवर की समस्या होती है। जो लोग शराब का बहुत अधिक सेवन करते हैं, उन्हें यह बीमारी ज्यादा होती है। हालांकि, जो लोग शराब नहीं पीते हैं, उन्हें भी फैटी लिवर हो सकता है। इस बीमारी में लिवर में सूजन बढ़ने लगती है, जिससे लिवर खराब होने का भी खतरा रहता है। फैटी लिवर की समस्या का सही समय पर उपचार न करने से मरीज की जान भी जा सकती है। सही खानपान और जीवनशैली में कुछ बदलाव करके फैटी लिवर की समस्या से निजात पाया जा सकता है। इसके अलावा, आप आयुर्वेद की मदद से फैटी लिवर की समस्या को ठीक कर सकते हैं।
फैटी लिवर के मरीजों को एलोवेरा का सेवन करना चाहिए। एलोवेरा हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है। एलोवेरा एक प्राकृतिक ब्लड प्यूरीफायर है। एलोवेरा लिवर की कार्यक्षमता को बढ़ाता है और फैटी लिवर की बीमारी के इलाज में मदद कर सकता है। एलोवेरा का जूस पीने से शरीर में जमा विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद मिलती है। इसके लिए आप सुबह खाली पेट एक गिलास गर्म पानी के साथ एक चम्मच एलोवेरा जूस का सेवा कर सकते हैं।

*लीवर को स्वस्थ रखती है भुंई आंवला या भूम्यामलकी (Bhumi Amla keeps your Liver Healthy in Hindi)

भूम्यामलकी एक प्रमुख आयुर्वेदिक औषधि है जो कि आसानी से घर के आस-पास छोटे पौधे के रूप मिल जाती है. यह जड़ी-बूटी लीवर को कई तरह के संक्रमण से बचाती है और लीवर की सेहत को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती है. लीवर से जुड़े रोगों से पीड़ित मरीजों को चिकित्सक की सलाह के अनुसार भुंई आंवला का सेवन करना चाहिए.

भुंई आंवला या भूम्यामलकी के उपयोग का तरीका (How to take Bhumi Amla)

लीवर के लिए भूम्यामलकी का उपयोग आप चूर्ण, कैप्सूल या टेबलेट के रूप में कर सकते हैं. आजकल इसका जूस भी बाजार में मिलता है. खुराक संबंधित जानकारी के लिए चिकित्सक से परामर्श लें.

*लीवर की क्षमता को बढ़ाती है कुटकी (Kutki improves Liver Performance in Hindi)

कुटकी एक जड़ी-बूटी है जिसका उपयोग लीवर के रोगों में प्रमुख रूप से किया जाता है. आयुर्वेदिक विशेसज्ञों के अनुसार कुटकी लीवर की सूजन को कम करती है साथ ही लीवर की कार्य क्षमता भी बढ़ाती है. जो लोग लीवर में सूजन की समस्या से पीड़ित हैं उन्हें चिकित्सक से सलाह लेकर कुटकी का सेवन करना चाहिए.

कुटकी के सेवन का तरीका (How to take Kutki)

आजकल कुटकी का कैप्सूल या चूर्ण बाज़ार में आसानी से उपलब्ध है. आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही इसका सेवन करें.

*लीवर के लिए बेहद फायदेमंद है आंवला (Amla for Healthy Liver in Hindi)

आंवला आयुर्वेद में उपयोग की जाने वाली जानीमानी औषधि है. यह लीवर को डिटॉक्स करने का काम करती है. आंवला में पाए जाने वाले फायटो नुट्रिएंट्स लीवर की कार्य क्षमता को बढ़ाते हैं. एक्सपर्ट के अनुसार, आंवले में हेप्टो प्रोटेक्टिव क्षमताएं होती हैं जो लीवर की कोशिकाओं को स्वस्थ बनाए रखती हैं.

आंवला के सेवन का तरीका (How to take Amla)

आंवले का उपयोग आप कई तरह से कर सकते हैं. सबसे आसान और कारगर तरीका है कि आप कच्चे आंवले का सेवन करें. इसके अलावा आज कल बाजार में आंवले के जूस, टेबलेट, कैप्सूल्स और कैंडी आसानी से मिल जाते हैं. आप रोजाना सीमित मात्रा में इनमें से किसी का भी सेवन कर सकते हैं.

* लीवर को संक्रमण से बचाती है एलोवेरा (Aloevera protects Liver from infections in Hindi)
एलोवेरा में भरपूर मात्रा में फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं, जो लीवर को फ्री रेडिकल्स के कारण होने वाले कई तरह के नुकसान और संक्रमण से बचाते हैं. रोजाना सीमित मात्रा में एलोवेरा का सेवन करने से लीवर लंबे समय तक स्वस्थ रहता है.

एलोवेरा का सेवन कैसे करे (How to take Aloevera)

एलोवेरा का उपयोग सबसे ज्यादा जूस के रूप में किया जाता है. रोजाना सुबह खाली पेट दो तीन छोटी चम्मच एलोवेरा जूस में इतनी ही मात्रा में पानी मिलाकर पिएं.

*लीवर की सूजन को घटाती है पुनर्नवा (Punarnava helps in reducing Liver Swelling in Hindi)

आज के समय में अधिकांश लोग लीवर में सूजन की समस्या से परेशान रहते हैं. अगर आप भी उनमें से एक हैं तो पुनर्नवा आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकती है. पुनर्नवा एक जड़ी-बूटी है जिसका इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है. यह लीवर की सूजन घटाती है साथ ही लीवर से जुड़े अन्य रोगों के खतरे को भी कम करती है.

पुनर्नवा के सेवन का तरीका (How to Take Punarnava)

पुनर्नवा चूर्ण, कैप्सूल, टेबलेट और सिरप के रूप में उपलब्ध है. आप किसी भी रूप में इसका सेवन कर सकते हैं. इसे कितनी मात्रा में लेना है इसके लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें.

लीवर को स्वस्थ रखने के लिए आयुर्वेदिक दवा (Ayurvedic Medicine for Liver in Hindi)

अगर आप फैटी लीवर या लीवर में संक्रमण की समस्या से पीड़ित हैं या इनसे बचना चाहते हैं तो ऐसी आयुर्वेदिक औषधि चुनें जिसमें यहां बताई गई जड़ी-बूटियां मौजूद हों. टाटा 1mg तेजस्या लीवर केयर सिरप में भुंई आंवला, पुनर्नवा, आंवला के अलावा भृंगराज, हरीतकी और चित्रक जैसी जड़ी-बूटियां भी शामिल हैं, जो लीवर को हर तरह के संक्रमण से बचाती हैं. इस सिरप को पीने से लीवर स्वस्थ रहता है, मेटाबोलिज़्म मजबूत होता है और पाचन तंत्र में सुधार होता है.


लीवर को स्वस्थ रखने के लाइफस्टाइल में लाएं ये बदलाव (Lifestyle Changes for Healthy Liver in Hindi)

अगर आप अपनी जीवनशैली में थोड़ा बदलाव लाएं तो लीवर को लंबे समय तक स्वस्थ और निरोग रख सकते हैं. इसलिए यहां बताए गए इन नियमों का गंभीरता से पालन करें: रोजाना कम से कम 8-10 गिलास पानी पिएं. इससे लीवर का स्वास्थ्य ठीक रहता है और शरीर से टॉक्सिक तत्व भी आसानी से बाहर निकल जाते हैं.
अपनी डाइट में अधिक से अधक पौष्टिक चीजें शामिल करें. लीवर के लिए हरी सब्जियां, फल, साबुत अनाज, दालें, मूली, गाजर और लौकी खाएं.
शराब लीवर को बहुत नुकसान पहुंचाता है. इसलिए शराब का सेवन कम से कम मात्रा में या बिल्कुल ना करें.
नियमित व्यायाम करने से लीवर की कार्यक्षमता में सुधार होता है. रोजाना आधे घंटे व्यायाम, योग या प्राणायाम करें.
बहुत ज्यादा स्ट्रेस भी लीवर के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है. स्ट्रेस से दूर रहें और रोजाना कुछ देर ध्यान करें साथ ही परिवार के साथ समय बिताएं.

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1.3.24

भुने चने को गुड के साथ खाना किसी औषधि से कम नहीं ,Roasted Chana And Jaggery Benefits





ऐसे कई खाद्य पदार्थ हैं जो शरीर को मजबूत बनाने और रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को बढ़ाने में मदद करते हैं और अगर आप ऐसे दो पौष्टिक खाद्य पदार्थों को मिलाते हैं, तो आप एक सुपर स्वस्थ और शक्तिशाली उपचार के लिए तैयार हैं। ऐसे में सुबह के समय गुड़ और चना खाना सबसे फायदेमंद माना जा सकता है। यह न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि भूख की लालसा को कम करने और शरीर को मजबूत करने का भी एक शानदार तरीका है।
 गुड़ और चने में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की अपनी-अपनी खूबियां हैं। वैसे क्या आप दोनों को साथ में खाने के फायदे जानते हैं? अगर नहीं, तो इस लेख में हम विस्तार से इन दोनों को एक साथ खाने के फायदे बताएंगे। बता दें कि गुड़ और चने का साथ में सेवन सेहत के लिए फायदेमंद हो सकता है। ये दोनों कई शारीरिक समस्याओं से बचाव और उनके प्रभाव को कम करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। यही वजह है कि लंबे समय से एक हेल्दी स्नैक्स के रूप में इनका इस्तेमाल किया जा रहा है।
 भुना चना (Roasted Chana) सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होता है. अगर भुने चने के साथ गुड़ को खाया जाए तो सर्दियों में ये सोने पर सुहागा जैसा हो जाता है. गुड़ और चना दोनों ही सेहत के लिए काफी लाभदायक होते हैं. इसके साथ ही गुड़ चना प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्स का पावर हाउस भी होता है. भुने हुए चने के साथ गुड़ (Jaggery) को खाने से ये न सिर्फ इम्यूनिटी को बूस्ट करता है बल्कि कैल्शियम से भरपूर होने की वजह से हड्डियों में भी मजबूती लाता है. गुड़-चना साथ खाने से मेटाबॉलिज्म बेहतर होने के साथ ही मेमोरी में भी सुधार आता है.

इम्यूनिटी बूस्टर –

 भुना हुआ चना हो या फिर सादा चना दोनों ही सेहत को बराबर फायदा पहुंचाते हैं. विंटर में रोस्टेड चने के साथ गुड़ को भी खाया जाए तो ये शरीर की एनर्जी को बढ़ाने के साथ ही इम्यूनिटी भी बूस्ट करते हैं. गुड़-चना एंटीऑक्सीडेंट्स और मिनरल्स जैसे जिंक, सेलेनियम से भी भरपूर होते हैं जो फ्री रेडिकल डेमैज को रोकते हैं और संक्रमण के खिलाफ प्रतिरोधकता को बढ़ाते हैं.

पाचन के लिए चना और गुड़ खाने के फायदे-


खाना खाने के बाद अक्सर लोगों को मीठा खाने की चाह होती है। ऐसे में गुड़ चने का सेवन किया जा सकता है। दरअसल, गुड़ न सिर्फ मीठे की क्रेविंग को शांत करेगा बल्कि खाने को पचाने में भी मदद कर सकता है। दरअसल, गुड़ शरीर में जाकर डाइजेस्टिव एजेंट की तरह काम कर पाचन क्रिया को मजबूत रखने में मदद कर सकता है । बात करें चने की, तो इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर होता है, जो पाचन तंत्र को मजबूत बनाने के साथ कब्ज से बचाव में मदद कर सकता है ( इस आधार पर गुड़ और चने के फायदे में पाचन को भी गिना जा सकता है।

औषधि से कम नहीं है गुड़-चने

यह तो सभी जानते हैं कि भुने चने खाना सेहत के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन अगर भुने चने के साथ थोड़ा सा गुड़ भी खाया जाए तो यह शरीर के लिए औषधि की तरह काम करता है और शरीर को कई पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जो इससे पूरी होती है। अगर रोजाना कम मात्रा में गुड़ और चने का सेवन किया जाए तो कई 

गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है-

कब्ज –

 गुड़ और चना साथ खाने से ये हमारे शरीर में डाइजेस्टिव एंजाइम को सक्रिय कर देते हैं, जिससे खाने का सही पाचन होता है. यही वजह है कि बड़े-बुजुर्ग खाने के बाद गुड़ खाते रहे हैं. ये डिटॉक्स का भी काम करते हैं और लिवर को साफ करने में मदद करते हैं.

हृदय के लिए-

चना और गुड़ खाने के फायदे में हृदय को स्वस्थ रखना भी शामिल है। दरअसल, गुड़ में मौजूद पोटैशियम, मैग्नीशियम, सेलेनियम, मैंगनीज और जिंक ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के साथ हृदय को स्वस्थ रखने में मदद कर सकते हैं । वहीं, एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) पर उपलब्ध एक शोध के मुताबिक, चने का सेवन हृदय रोग के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है। इस प्रकार हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखने में गुड़ चना खाने के फायदे देखे जा सकते हैं।

दांतों के लिए फायदेमंद (Beneficial for teeth)

गुड़ और चने का नियमित सेवन दांतों की सड़न को रोकने में मदद करता है क्योंकि इसमें फास्फोरस की मात्रा अधिक होती है।

वजन कम करने में सहायक

वजन कम करने के लिए भी गुड़ और चने का सेवन किया जा सकता है। दरअसल, चने की गिनती लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) फूड में होती और इसमें प्रोटीन की मात्रा भी पाई जाती है । बता दें, ग्लाइसेमिक इंडेक्स एक तरह का माप है, जिससे यह मालूम होता है कि कोई खाद्य पदार्थ शरीर में कितनी जल्दी रक्त शर्करा को बढ़ा सकता है। बता दें कि सिर्फ कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थों को जीआई में शामिल किया जाता है। विशेषज्ञ की मानें, तो लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स फूड वजन कम करने में सहायक हो सकते हैं वहीं, इसमें मौजूद प्रोटीन भूख को नियंत्रित कर 
वजन कम करने में मदद कर सकता है

हड्डियों की मजबूती – चना और गुड़ में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और कैल्शियम होता है जो कि मसल्स को स्ट्रांग करने के साथ ही हड्डियां भी मजबूत करते हैं. अगर गुड़ और चने का नियमित सेवन किया जाए तो हड्डियों से संबंधित कई बीमारियों से बचा जा सकता है.

याददाश्त तेज़ करे (Sharpen memory)

यह भी माना जाता है कि गुड़ चना का नियमित सेवन विटामिन B6 की उपस्थिति के कारण याददाश्त को तेज करने में मदद करता है।

त्वचा के लिए फायदेमंद

त्वचा के लिए भी गुड़ और चने के फायदे देखे जा सकते हैं। दरअसल, गुड़ में एंटीऑक्सीडेंट क्षमता पाई जाती है और एंटीऑक्सीडेंट चेहरे पर एंजिग के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है। दरअसल, फ्री रेडिकल प्रभाव एजिंग को बढ़ाने का काम कर सकते हैं और वहीं, एंटीऑक्सीडेंट गुण फ्री रेडिकल प्रभाव को कम कर एजिंग से बचाव का काम कर सकता है.इसके अलावा, चने में विटामिन-ए और विटामिन-सी भी मौजूद होते हैं . विटामिन ए एंटी-रिंकल की तरह काम कर सकता है, जो त्वचा को जवां रखने में मदद कर सकता है . वहीं, विटामिन-सी कोलेजन का उत्पादन कर त्वचा को रिपेयर कर उसे स्वस्थ बनाए रखने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, विटामिन-सी जख्मों को भरने, सूरज की हानिकारक किरणों व एजिंग से बचाव में मदद कर सकता है (

UTI का इलाज करे (Treats UTI)

बार-बार पेशाब आने की समस्या हो या UTI की समस्या हो तो भुने हुए चने को गुड़ के साथ खाने से लाभ होता है।

करे मांसपेशियों को मजबूत

गुड़ और चने में भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जो आपकी मांसपेशियों को मजबूत बनाने में काफी मदद करता है। अगर आप वर्कआउट करते हैं तो इसका सेवन जरूर करें, इससे मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
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वसंत ऋतू में आहार -विहार और दिन चर्या | Vasant ritu Aahar Vihar





14 मार्च से 14 मई तक रहेगी वसंत ऋतु, इसे क्यों कहते हैं ऋतुराज?


वसंत ऋतु, या वसंत ऋतु, कायाकल्प, नए जन्म और नई शुरुआत का मौसम है क्योंकि पेड़ और पौधे फूलों के साथ खिलते हैं जो पृथ्वी को सुंदर और आकर्षक बनाते हैं। वसंत ऋतु में, हालांकि मौसम सुहावना होता है, हमारे शरीर और दोषों में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। चूँकि कफ दोष शिशिरा ऋतु (ठंड के मौसम) में प्रबल हो जाता है, वसंत ऋतु के दौरान यह द्रवित हो जाता है। यह पाचन अग्नि को और भी कम कर देता है और कई बीमारियों को जन्म देता है। जैसा कि आयुर्वेद सुझाव देता है, प्रत्येक ऋतु का मानव शरीर पर अपना अनूठा प्रभाव होता है, और इस प्रकार, ऋतु के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए व्यक्ति को अपने आहार और समग्र दिनचर्या में बदलाव करना चाहिए।
वसंत ऋतु, या वसंत, सबसे सुंदर और सुखद मौसमों में से एक है। कड़ाके की ठंड और कड़ाके की सर्दी के बाद प्रकृति अपने सबसे रंगीन रूप में होती है। आयुर्वेद के अनुसार, वसंत ऋतु विषहरण के लिए आदर्श समय है।
वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा गया है। यह शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के मध्य का संधिकाल होता है। इसमे मौसम समशीतोष्ण होता है, प्रकृति में सर्वत्र उल्लास और मादकता विद्यमान रहती है। इस समय नये नये कोपलों, रंग बिरंगे फूलों की सुंदरता और सुगंध के माध्यम से प्रकृति मानो अपनी प्रसन्नता प्रकट कर रही होती है। कुल मिलाकर वसंत का मौसम बहुत ही मनोरम और सुहावना होता है। लेकिन यदि समुचित आहार विहार का ध्यान न रखा जाय तो इस मौसम में स्वास्थ्य से जुड़ी अनेक प्रकार की समस्यायें भी उत्पन्न हो सकती हैं।

शरीर पर मौसम का प्रभाव

वसंत ऋतु में सूर्य की किरणें तेज होने लगती हैं जिसके कारण शीतकाल (हेमंत और शिशिर ऋतु) में संचित कफ कुपित होने लगता है। इसके कारण लोगों में सर्दी, खांसी, दमा, नजला, जुकाम, साइनोसाइटिस, टांसलाइटिस, गले में खराश, पाचन शक्ति की कमी, व जी मिचलाने जैसे अनेक प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं।
इस काल में खसरा, मीजल्स व एन्फ्लूएन्जा, जैसे कई प्रकार के वायरल इनफेक्शंस का भी प्रकोप देखने को मिलता है। इस समय वातावरण में सूर्य का बल बढ़ता है, चंद्रमा का बल क्षीण होता है, जलीय अंश और स्निग्धता की कमी होती है। इसके परिणाम स्वरूप हमारे शरीर में आलस्य और दुर्बलता की वृद्धि होती है। अतः इस मौसम में खान-पान का विशेष ध्यान रखें। बासी, गरिष्ठ और कफवर्धक पदार्थों का सेवन तो भूलकर भी न करें।
  वसंत ऋतु में आयुर्वेद ने खान-पान में संयम की बात कहकर व्यक्ति एवं समाज की नीरोगता का ध्यान रखा है। इस ऋतु में लाई, भूने हुए चने, ताजी हल्दी, ताजी मूली, अदरक, पुरानी जौ, पुराने गेहूँ की चीजें खाने के लिए कहा गया है। इसके अलावा मूँग बनाकर खाना भी उत्तम है। नागरमोथ अथवा सोंठ डालकर उबाला हुआ पानी पीने से कफ का नाश होता है। मन को प्रसन्न करें एवं हृदय के लिए हितकारी हों ऐसे आसव, अरिष्ट जैसे कि मध्वारिष्ट, द्राक्षारिष्ट, गन्ने का रस, सिरका आदि पीना लाभदायक है। वसंत ऋतु में आने वाला होली का त्यौहार इस ओर संकेत करता है कि शरीर को थोड़ा सूखा सेंक देना चाहिए जिससे कफ पिघलकर बाहर निकल जाय। 
   सुबह जल्दी उठकर थोड़ा व्यायाम करना, दौडऩा अथवा गुलाटियाँ खाने का अभ्यास लाभदायक होता है। मालिश करके सूखे द्रव्य आँवले, त्रिफला अथवा चने के आटे आदि का उबटन लगाकर गर्म पानी से स्नान करना हितकर है।
इन दिनों बबूल या नीम का दातुन अवश्य ही करना चाहिए। इस ऋतु में बड़ी हरड़ का चूर्ण 3 से 5 ग्राम मात्रा में थोड़े शहद के साथ मिलाकर प्रात: काल चाट लेना चाहिए। मौसमी फलों का सेवन करना भी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है। इसलिए इस ऋतु में फल का सेवन अवश्य ही करना चाहिए।
इस मौसम में कभी ठंडक लगती है तो कभी गर्मी का अनुभव होता है इसलिए व्यक्ति को खान-पान और रहन    सहन के मामले में सामंजस्य बनाये रखना चाहिए। इस मौसम में गले की खराश, टांसिल्स का दर्द और कफ की शिकायत आदि रहती है। घरेलू इलाज के रूप में गरारे, गले को ठंडी हवा से बचाना, गले को गरम आग से सेंकना और रात को सोते समय आधी चम्मच, पिसी हुई हल्दी दूध में घोलकर 3-5 दिन तक पीना तथा तुलसी का काढ़ा पीने से काफी हद तक लाभ मिलता है।
गले की खराश, हल्की खांसी, टांसिल्स आदि में तकलीफ होने पर 1 गिलास गरम पानी में आधा-आधा छोटा चम्मच खाने का सोडा व खाने का नमक और 1.2 ग्राम पिसी हुई फिटकरी घोलकर दिन में 4-5 बार गरारे अवश्य करने चाहिए। सुबह के समय और सोते समय गरारे करने से काफी लाभ मिलता है।
 कहावत है कि आती और जाती हुई सर्दी में सावधानी रखनी चाहिए। नहीं तो वे जकड़ सकती हैं। वसंत ऋतु को वैसे तो ऋतुओं की राजा कहा जाता है। बहुत से लोगों की यह पसंदीदा ऋतु है क्योंकि इस ऋतु में ना तो ठिठुरती ठंड होती है, ना ही बेहाल कर देने वाली गर्मी। पर इस ऋतु में जाती हुई सर्दी की वजह से विशेष सावधानी रखना जरुरी हो जाता है। क्योंकि वसंत ऋतु में दिन बड़े होने लगते है जिससे सर्दी का प्रभाव कम होने लगता है, लेकिन पश्चिमी विक्षोभ की वजह से बारिश, आंधी इत्यादि से अचानक से सर्दी बढ़ने से थोड़ी सी लापरवाही भी सेहत पर भार पड़ सकती है।

आहार का रखें विशेष ध्यान

इस मौसम में खान-पान का विशेष ध्यान रखें क्योंकि इस मौसम में जठराग्नि भी मंद रहती है। चूंकि इस मौसम में कफ कुपित हो जाता है, इसलिए बासे, गरिष्ठ और कफवर्धक पदार्थों का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। सभी तरह के फास्ट फूड यथा आइसक्रीम, केक, पिज्जा, बर्गर, चॉकलेट से परहेज करें। चिकनाई युक्त पदार्थ जैसे कि रबड़ी, मलाई, कचौरी, दही बड़ा, पूरी, उड़द, आदि का भी यथा संभव उपयोग नहीं करें तो बेहतर होगा। इमली, अमचूर इत्यादि की खटाई का उपयोग भी हानिकारक हो सकता है। ठडे पानी, शर्बत, लस्सी, कोल्ड ड्रिंक्स के सेवन से भी बचना चाहिए। वहीं खुले में सोना, धूप भ्रमण, रात जागरण व दिन में शयन भी इस मौसम में वर्जित हैं।


ये करें-

बसंत ऋतु में वमन आदि पंचकर्म करवाने चाहिए। व्यायाम, उबटन, कवल ग्रह, अंजन, सुखोष्ण जल से स्नान भी विशेष लाभकारी होता है। भोजन में जौ, गेहूं, शहद से बनी माध्वीक, सौंठ के साथ उबला पानी, नागरमोथा से सिद्ध पानी भी पीना लाभकारी है। अगर इस मौसम में शहद और गुनगुने पानी का सेवन किया जाए तो इससे भी कफ दोष बढ़ने से रोका जा सकता है और सर्दी-खांसी में राहत मिलती है। इस बात का भी ध्यान रखें कि गरिष्ठ भोजन के बजाय इस मौसम में हल्का खाना खाएं, जिसे पचाना आसान हो जैसे कि मूंगदाल, खिचड़ी, दलिया आदि। इसके अलावा पौष्टिक तत्वों से युक्त लौकी, पत्ता गोभी, गाजर, पालक, मटर जैसी सब्जियां भी अपनी डाइट में शामिल करनी चाहिए।

आयुर्वेद के अनुसार वसंत ऋतु में हमें क्या खाना चाहिए?

वसंत ऋतु के दौरान स्वस्थ भोजन करने का लक्ष्य कफ दोष को कम करना है। कोई व्यक्ति कड़वा (टिकिता), कषाय (कसैला), तीखा (कटु) रस खाकर ऐसा कर सकता है। आपको खट्टे (अमला), नमकीन (लवण), और मीठे (मधुर) रस से भी बचना चाहिए क्योंकि ये कफ दोष को बढ़ाते हैं। यहां कुछ खाद्य पदार्थ हैं जिन्हें आप अपने वसंत ऋतुचर्या में शामिल कर सकते हैं:
लहसुन
अदरक
प्याज
नीम के पत्ते
धनिया
जीरा
प्याज
हल्दी
अनाज
पुराना जौ
गेहूँ
चावल
दाल-दलहन
शहद का पानी
सोंठ का पानी
छाछ

पथ्य / लाभदायक

कटु, तीक्ष्ण, व कषाय रस युक्त ताजा हल्का और सुपाच्य भोजन। चना, मूँग, अरहर, जौ, गेहूँ, चावल, आदि अनाजों से बने भोज्य पदार्थ। सभी प्रकार की हरी सब्जियां तथा उनका सूप। करेला, लहसुन, अदरक, पालक, जमींकंद, केले के फूल व कच्चे केले की सब्जी, कच्ची मूली, गाजर व मौसमी फल। नीम की नई कोपलें, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आँवला, नीबू और शहद। इस समय भोजन बनाने में सरसों के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
कुछ खाद्य पदार्थ जिनसे आपको वसंत ऋतु (आयुर्वेद) के दौरान बचना चाहिए उनमें शामिल हैं:ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें कैलोरी अधिक होती है और पचने में अधिक समय लगता है
गहरा तला हुआ भोजन

अपथ्य / हानिकारक

पचने में भारी, ठंढे व अधिक चिकानाई युक्त भोजन, जैसे- नया अनाज, उड़द, दही बड़ा, पूरी, कचौड़ी, रबड़ी, मलाई, मिठाई, आइसक्रीम, केक, पिज्जा, बर्गर, चकलेट, गुड़, शक्कर, खजूर, व खटाई (इमली, अमचूर) आदि। शीत प्रकृति वाले पेय पदार्थ, जैसे- ठंढा पानी, ठंढी लस्सी, ठंढाई शर्बत, व कोल्डड्रिंक्स आदि। खुले आसमान में सोना, ठंढ में रहना, धूप में घूमना, रात में जागना व दिन में सोना।
बसंत ऋतु ऋतु में नियमित रूप से हल्का व्यायाम या योगासन सभी के लिए अनिवार्य है। सूर्योदय से पहले उठकर भ्रमण करें। रात्रि में देर तक जागरण और सुबह देर तक शयन हानिकारक है। दिन में तो बिल्कुल भी नहीं सोना चाहिए क्योंकि इससे कफ दोष और बढ़ेगा। शरीर में तेल मालिश करके गुनगुने पानी से स्नान करें। जो लोग यौगिक षट्कर्म जानते हों उन्हें इस समय वमनधौति और जलनेती का अभ्यास करना चाहिए।

सम्भावित रोग


श्वास, खांसी, बदनदर्द, ज्वर, वमन, अरुचि, भारीपन, भूख कम लगना, कब्ज, पेट दर्द, कृमिजन्य विकार आदि होते हैं।
प्रयोग करेंशरीर संशोधन हेतु वमन, विरेचन नस्य, कुंजल आदि।
रूखा, कड़वा तीखा, कसैले रस वाले पदार्थों का सेवन।
सुबह खाली पेट बड़ी हरड़ का 3-4 ग्राम चूर्ण शहद के साथ रसायन के समान लाभ पहुंचाता है।
शुद्ध घी, मधु और दूध की असमान मात्रा में मिश्रण का सेवन करने से शरीर में जमा कफ बाहर निकल आता है।
एक वर्ष पुराना जौ, गेहुं व चावल का उपयोग करना उचित है।
इस ऋतु में ज्वर बाजरा मक्का आदि रूखे धानों का आहार श्रेष्ठ है।
मूंग, मसूर, अरहर, चना की दाल उपयोगी है।
मूली, घीया, गाजर, बथुआ, चौलाई ,परवल, सरसों, मैथी, पत्तापालक, धनिया, अदरक आदि का सेवन करना हितकर है।
हल्दी से पीला किया गया भोजन स्वास्थ के लिए बहुत उपयोगी होता है क्योंकि हल्दी भी कफनाशक है।
सूर्योदय से पूर्व उठकर शौचादि से निवृत होकर योगासन करना चाहिए।
तेल की मालिश करना उत्तम है।

प्रयोग न करें

नए- अन्न, शीतल, चिकनाई युक्त, भारी, खट्टे एवं मीठे द्रव्य, उड़द, आलू, प्याज, गन्ना, नए गुड़, भैंस का दूध व सिंघाड़े का सेवन मना है।

दिन में सोना, एक स्थान पर लम्बे समय तक बैठे रहना उचित नहीं है।
ठंडे पेय, आइसक्रीम, बर्फ के गोले चॉकलेट, मैदे की चीजें, खमीरवाली चीजें, दही आदि पदार्थ बिल्कुल त्याग देने चाहिए।
पचने में भारी पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
चावल खाना ही हो तो दिन में खाना चाहिए, रात में नहीं।
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प्रकृति के वरदान अश्वगंधा के अनमोल फायदे




यूं तो हमारे आसपास कई दिव्य औषधि पौधे पाए जाते हैं। लेकिन इनकी पहचान व सही जानकारी न होने के कारण। हम इनके गुणों से अनजान रहते हैं। इनसे मिलने वाले लाभकारी फायदों से वंचित रह जाते हैं। ऐसी ही एक दिव्य औषधि है – अश्वगंधा।
इसको एक रसायन औषधि माना जाता है। जो बच्चों में टॉनिक का काम करती है। तो वही बड़े-बुजुर्गों को दीर्घायु प्रदान करती है। इसे सात्विक कफ रसायन भी कहा जाता है। जो हमारे नर्वस सिस्टम को मजबूत बनाती है। यह इंद्रिय दुर्बलता या लिंग कमजोरी में भी बहुत फायदेमंद है।
यह हमारे stress को कम करके, मानसिक शांति प्रदान करती है। यह कैंसर होने की दशा में, Tumor Cells को भी खत्म करती है। यह कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को भी कम करती है। अश्वगंधा दो शब्दों से मिलकर बना है। अश्व + गंधा अर्थात जिसकी जड़ों से या कच्चे मूल से, अश्व के समान गंध आती है।
इसका दूसरा अर्थ यह भी है। इसके सेवन से अश्व या घोड़े के समान ताकत व यौन शक्ति मिलती है। घोड़े जैसा stamina मिलता है। इससे उत्साह प्राप्त होता है। इसे एक शक्ति वर्धक पौधे के रूप में मान्यता मिली हुई है।
अश्वगंधा पुरुषों के लिए एक बहुत उपयुक्त और गुणकारी जड़ी बूटी है। अश्वगंधा के फायदे आयुर्वेद में कई है जिसे हम ट्राया में उपयोग करते हैं। यह प्राकृतिक वृद्धि और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है जो शारीरिक और मानसिक तनाव को कम करने में सहायक होता है। अश्वगंधा में पाये जाने वाले विशेष तत्व पुरुषों के प्रजनन स्वास्थ्य को समर्थित करते हैं और सेक्सुअल प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, अश्वगंधा पुरुषों के मानसिक तनाव को कम करके उन्हें सकारात्मक मानसिक स्थिति में रखता है और उनकी ऊर्जा स्तर को बढ़ाने में मदद करता है। इसलिए, अश्वगंधा का नियमित सेवन पुरुषों के सामान्य स्वास्थ्य और विकास के लिए बहुत लाभकारी साबित हो सकता है।

मस्तिष्क कार्य और स्मृति में मदद (Assistance in brain function and memory)

अश्वगंधा पुरुषों के लिए आपकी स्मृति को बढ़ा सकती है और एंटीऑक्सिडेंट गतिविधि को प्रोत्साहित करती है जो हानिकारक मुक्त रेडिकल से न्यूरॉन कोशिकाओं को बचाती है। अध्ययन भी सुझाव देते हैं कि यह मस्तिष्क शक्ति के अन्य पहलुओं को बढ़ाने की शक्ति रखता है। जड़ की 300 मिलीग्राम दो बार प्रतिदिन लेने से स्मृति स्वास्थ्य, कार्य दक्षता और कार्य प्रदर्शन में महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है।

शोथ को कम करता है और प्रतिरक्षा बढ़ाता है (Reduces inflammation and enhances immunity)

अश्वगंधा में शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो मुक्त रेडिकल्स के कारण हुए नुकसान को ठीक कर सकते हैं। इस जड़ी बूटी को प्रतिदिन सिर्फ 10 मिलीलीटर लेने से संक्रमण से लड़ने वाले प्रतिरक्षा कोशिकाओं के स्तर में वृद्धि होती है। हाल ही में पोर्टलैंड में आयोजित एक अध्ययन में यह जड़ी बूटी शोथ को कम करने में भी मददगार साबित हुई है।

शुक्राणु को ताकतवर बनाता है (Strengthens sperm)

अश्वगंधा पुरुषों की यौन क्षमता और इच्छाशक्ति बढ़ाने के लिए पारंपरिक रूप से उपयोग किया जाता है। इस जड़ी बूटी का प्रयोग विभिन्न अध्ययनों में फर्टिलिटी बढ़ाने वाली गुणों को बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। इसे प्रतिदिन 5 ग्राम लेने से शुक्राणु संख्या और गति बढ़ जाती है और T-लेवल में भी विशेष बढ़ोत्तरी देखी जाती है।

समय से पहले बालों का सफेद होना -

 लोगों को अपने बालों से बहुत प्यार होता है। अगर किसी के बाल समय से पहले सफेद होने लग जाते हैं तो इसके लिए लोग तरह- तरह के उपाय अपनाते रहते हैं। ऐसे में अश्वगंधा लाभकारी हो सकता है। यह आयुर्वेदिक औषधि बालों में मेलानिन के उत्पाद को बढ़ाती है। मेलेनिन एक प्रकार का पिगमेंट होता है, जो बालों के प्राकृतिक रंग को बनाए रखने में मदद करता है

बालों के झड़ने से राहत देता है

कॉर्टिसोल या तनाव स्तर में वृद्धि बाल फोलिकल के सही कामकाज पर असर डालती है, जिससे बालों का झड़ना होता है। अश्वगंधा बालों के झड़ने को रोकने में मदद करता है और शरीर के तनाव स्तर को नियंत्रित करने में उपयोगी हो सकता है।

शुक्राणु गतिशीलता में वृद्धि (Improves Sperm Mobility)

अश्वगंधा से शुक्राणु की सक्रिय गति में सुधार हो सकता है, जो कि फर्टिलिटी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। गतिशील शुक्राणु अधिक सक्षम होते हैं अंडाणु तक पहुँचने और निषेचन की प्रक्रिया को पूरा करने में। अश्वगंधा के एंटीऑक्सीडेंट गुण शुक्राणु कोशिकाओं की सुरक्षा करते हैं और उनकी गतिशीलता और जीवित रहने की क्षमता में वृद्धि होती है।

यौन इच्छा बढ़ाए - 

अश्वगंधा का सेवन करने से स्ट्रेस, चिंता जैसी मानसिक परेशानियां दूर होती हैं। साथ ही इससे टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन की कमी दूर होती है, जिससे पुरुषों में यौन इच्छाओं को बढ़ाया जा सकता है। अगर आपकी यौन इच्छाएं कम हो रही हैं, तो डॉक्टर की सलाह पर नियमित रूप से अश्वगंधा कैप्सूल और चूर्ण का सेवन कर सकते हैं। यह कामोत्तेजना को बढ़ाने में प्रभावी हो सकता है।

उच्चतर टेस्टोस्टेरोन (Increases testosterone)

अश्वगंधा बूटी टेस्टोस्टेरोन के स्तर को काफी बढ़ाती है। पुरुषों में उम्र बढ़ने के साथ-साथ इस हार्मोन की उत्पादन भी उनके शरीर में काफी कम हो जाती है। इसके अलावा, कहा जाता है कि इस हार्मोन का स्तर प्रति वर्ष 30 साल की उम्र पर पुरुषों में 0.4 से 2 प्रतिशत तक गिरना शुरू हो जाता है। पुरुषों को बालों का झडना, मांसपेशियों का नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। अश्वगंधा टेस्टोस्टेरोन उत्पादन में मदद करता है और टेस्टोस्टेरोन और लुटिनाइजिंग हार्मोन के सीरम स्तर में वृद्धि करता है। अश्वगंधा पुरुषों में सेक्सुअल हार्मोनों के प्राकृतिक संतुलन को पुनर्स्थापित कर सकती है।

घाव भरने के लिए - 

अश्वगंधा घाव में बैक्टीरिया को पनपने से रोकता है। दरअसल, इसमें मौजूद एंटीमाइक्रोबियल प्रभाव घाव में पनपने वाले जीवाणुओं को खत्म करके इंफेक्शन के खतरे को रोक सकता हैं।

चिंता और तनाव को कम करना (Reduces stress and tension)

अनुचित तनाव और तनाव विकारों "चुपचाप मारने वाले" परेशानियाँ है, जो सेहत से जुड़ी विभिन्न समस्याओं का कारण बन सकते हैं, जो आपके प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, मस्तिष्क पर असर डाल सकते हैं और आपके जीवाश्म तंत्र के प्राकृतिक काम को भी अस्तव्यस्त कर सकते हैं। अश्वगंधा महिलाओं और पुरुषों के लिए अध्ययनों में इसके तनाव स्तर को कम करने के सबूत हैं। ट्राया के हेयर रस जैसे उत्पाद में अश्वगंधा है जो तनाव और नींद के दो मुख्य कारणों पर ध्यान केंद्रित करता है, जो बालों का झड़ना का प्रमुख कारण हो सकते हैं।

मांसपेशियों की ताकत और विकास को बढ़ावा देना (Increasing muscle strength and development)

अश्वगंधा में मांसपेशियों की मात्रा को बढ़ाने, शरीर की चर्बी कम करने और पुरुषोंमें ताकत बढ़ाने के साथ-साथ मदद करने के दस्तावेजों हैं। अध्ययनों के अनुसार, इस जड़ी-बूटी का सेवन ताकत और मांसपेशियों की मात्रा में एक महत्वपूर्ण वृद्धि लाता है और उनके शरीर की चर्बी की मात्रा को कम करता है। एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि उन पुरुषों को जिन्होंने एक ग्राम इस जड़ी-बूटी का सेवन प्रतिदिन किया, सिर्फ 30 दिनों में काफी मांसपेशियों की ताकत में वृद्धि हुई।

वजन कम करने के लिए - 

अश्वगंधा की जड़ के अर्क का सेवन करने से भूख और वजन में कमी पाई गई। अश्वगंधा की जड़ का अर्क तनाव के मनोवैज्ञानिक लक्षणों में सुधार कर सकता है। यह तनाव और चिंता को कम कर भोजन की तीव्र इच्छा में कमी लाकर वजन को कम करने में सहायक हो सकता है।

थायराइड के लिए:

अश्वगंधा जैसे अनुकूली औषधि के बारे में सबसे अविश्वसनीय पहलुओं में से एक यह है कि यह लोगों को हाइपो और हाइपर थाइरोइड दोनों मुद्दों के साथ मदद कर सकता है.
यह हाशिमोटोस से पीड़ित लोगों के लिए थाइरोइड की मंदगति का समर्थन करता है और अतिरक्त थायरॉयड या ग्रेव्स रोग वाले लोगों के स्वास्थ्य में भी सुधार करता है.
इसके अलावा यह बहुत से मुक्त कणों की सफाई का प्रचार करके लिपिड पेरोक्सीडेशन को कम कर देता है जिससे सेलुलर क्षति होती है.

हृदय रोग से बचाव के लिए - 

अश्वगंधा में कार्डियोप्रोटेक्टिव प्रभाव होता है, जो हृदय को स्वस्थ रखने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, अश्वगंधा में मौजूद हाइपोलिपिडेमिक प्रभाव कोलेस्ट्रॉल को कम करके हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है।

मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए -

 अश्वगंधा व्यक्ति के मस्तिष्क के विकार चिंता, अवसाद और तनाव को कम करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, यह किस तरह से याददाश्त को बेहतर रखने में सहायक हो सकता है। इतना ही नहीं, मस्तिष्क के संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अश्वगंधा लाभकारी है।

एजिंग से बचाने में - 

अश्वगंधा में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते है। इस लिहाज से यह त्वचा के लिए भी लाभकारी हो सकता है। एंटीऑक्सीडेंट गुण शरीर में बनने वाले फ्री रेडिकल्स से लड़कर बढ़ती उम्र (एजिंग) के लक्षणों जैसे झुर्रियां व ढीली त्वचा से बचा सकता है।

संक्रमण से बचाव के लिए - 

अश्वगंधा संक्रमण से भी निपटने में मदद कर सकता है। अश्वगंधा में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। यह गुण रोग जनक बैक्टीरिया के खिलाफ लड़ने में मदद कर सकता है। अश्वगंधा की जड़ और पत्तों का रस साल्मोनेला (Salmonella) और ई.कॉली (Escherichia coli) नामक बैक्टीरिया के प्रभाव को कम कर सकता है।

कैंसर के लिए:

कुछ अध्ययनों में यह पाया गया कि अश्वगंधा में शक्तिशाली विरोधी ट्यूमर प्रभाव है.
यह भी पाया गया है की इसका रस कैंसर कोशिकाओं के प्रसार को रोकता है - विशेष रूप से स्तन, फेफड़े, पेट और पेट के कैंसर कोशिकाएँ.
ऐसा माना जाता है कि मुख्य रूप से इसकी प्रतिरक्षा बूस्टिंग और एंटीऑक्सीडेंट क्षमता कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकने में मदद करती करती है.
मौजूदा कैंसर के इलाज में कीमोथेरेपी के अतिरिक्त अश्वगंधा एक बहुत उपयोगी हो सकता है. इसका रस कीमोथेरेपी के दौरान प्रतिरक्षा प्रणाली पे दबाव पड़ने से रोकता है.
अश्वगंधा, कीमोथेरेपी से जुड़ी सबसे बड़ी चिंताओं में से एक- शरीर में सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या में कमी, का सामना करने में सक्षम है.

अश्वगंधा के दुष्प्रभाव - Side Effects of Ashwagandha in Hindi

अश्वगंधा के स्वास्थ्य लाभ अनन्त हैं, लेकिन अगर अतिरिक्त या लंबे समय तक उपयोग किया जाता है तो आपके शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है.थायरॉयड दवाओं के साथ लेने से अतिरिक्त थायरॉयड हार्मोन पैदा हो सकता है, जो रोगी के लिए समस्या पैदा कर सकता है.
गर्भधारण के दौरान अश्वगंधा का उपयोग गर्भपात का कारण बन सकता है. यह भ्रूण को भी नुकसान पहुंचा सकता है इसलिए, गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को अश्वगंधा लेने से बचना चाहिए.
पेट में जलन होना इसका सबसे आम साइड इफेक्ट है.
पेट मे अल्सर हैं तो इसका उपयोग ना करें.
अतिरिक्त सेवन पर यह नींद और उनींदापन का कारण हो सकता है.
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