18.4.23

अनिद्रा की समस्या से निजात पायें जड़ी बूटियों से :Anidra ki jadi butiyan




नींद न आना एक बीमारी है जिसे मेडिकल भाषा में अनिद्रा (Insomnia) कहा जाता है। नींद आपके सेहत के लिए बहुत जरूरी है, इसलिए जब आप डॉक्टर के पास जाते हैं इसके उपचार के लिए जाते हैं तो वह दवा देते हैं। नींद के दवा के कई साइड इफेक्ट्स होते हैं। इसलिए जहां तक हो सके नींद न आने की समस्या का आयुर्वेदिक उपाय ही करना चाहिए।

नींद न आने की गंभीर है लेकिन आज के समय में बहुत आम होते जा रही है। अनिद्रा अचानक से शुरू होने वाली समस्या नहीं होती है, यह आपके असमय सोने, खराब खान-पान, जरूरत से ज्यादा चिंता, गतिहीन दिनचर्या का परिणाम होती है।
नींद न आने या खराब नींद की घटनाओं के कारण कुछ सबसे गंभीर संभावित समस्याएं उच्च रक्तचाप (High BP), मधुमेह (Diabetes), दिल का दौरा (Heart Attack), हार्ट फेल या स्ट्रोक हो सकती है। इसके अलावा मोटापा, अवसाद, कमजोर इम्यूनिटी और कम सेक्स ड्राइव का जोखिम भी होता है। ऐसे में नींद न आने की समस्या का वक्त पर उपचार करना जरूरी होता है।
अनिद्रा को ठीक करने के लिए आयुर्वेद में आसन और असरदार जड़ी-बूटियों को बताया गया है जिसके सेवन से कुछ ही दिन में बेड पर जाते ही झट से नींद आ जाएगी। चलिए जानते हैं क्या है नींद की आयुर्वेदिक दवाएं।

अनिद्रा की आयुर्वेदिक दवा

नींद की जरूरत व्यक्ति को उम्र के अनुसार अलग-अलग होती है। ऐसे में सबसे ज्यादा नवजात को 1 साल तक 12-16 घंटे नींद की जरूरत होती है। इसके अलावा 1-2 साल के बच्चे को 11-14 घंटे नींद, 3-5 साल के बच्चे को 10-13 घंटे नींद, 6-12 साले के बच्चे को 9-12 घंटे नींद, 13-18 साल के बच्चे को 8-10 घंटे नींद, और 18 से ज्यादा उम्र के वयस्क को 7-8 घंटे की नींद की आवश्यकता होती है।

अनिद्रा में फायदेमंद है शंखपुष्पी

शंखपुष्पी अपने वात संतुलन और मेध्य गुणों के कारण मन को शांत करने का काम करता है। साथ ही इसमें अनिद्रा को ठीक करने की भी क्षमता होती है।

​नींद न आने पर करें ब्राह्मी का सेवन

ब्राह्मी को बकोपा के नाम से भी जाना जाता है। यह रात की अच्छी नींद लाने के लिए बेहतरीन जड़ी बूटी है। यह न केवल आरामदायक नींद को बढ़ावा देता है बल्कि दिमाग को शांत करने में मदद करता है और आपकी एकाग्रता, सतर्कता को बेहतर बनाने का भी काम करता है। आयुर्वेद में ब्राह्मी को ब्रेन टॉनिक माना गया है।
​अनिद्रा की आयुर्वेदिक दवाई है जटामांसी
कई अध्ययनों से पता चला है कि जटामांसी अनिद्रा के इलाज में कारगर है। यह जड़ी बूटी मन और शरीर को शांत करने का काम करती है। जिससे आपकी नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है। जटामांसी का उपयोग अवसाद के लक्षणों को कम करने के लिए भी किया जाता है।

आपको अच्छी नींद लाने में मददगार यहां कुछ प्राकृतिक सुझाव दिए गए हैं।

▪रात को सोने से पहले गर्म दूध पीना नींद आने का आसान उपाय है। बादाम का दूध कैल्शियम का एक उत्कृष्ट स्रोत है, जिससे मस्तिष्क को मेलाटोनिन (वह हार्मोन जो निद्रावस्था /जागृतवस्था चक्र को नियंत्रित करने में मदद करता है) के निर्माण में मदद मिलती है।
▪कोल्ड प्रेस्सेड कार्बनिक तिल के तेल को अपने पैरों के तलवों पर लगा कर रगड़े , इससे पहले कि आप आराम से सुखपूर्वक चादर ओड़ कर आराम करने जाएं (सूती मोज़े पैरों पर चढ़ा लें, ताकि आपकी चादर पर तेल न लगे)।
▪3 ग्राम ताजा पोदीने के पत्ते या 1.5 ग्राम पोदीने के सूखे पाउडर को 1 कप पानी में 15-20 मिनट के लिए उबालें।
रात को सोते समय 1 चम्मच शहद के साथ गुनगुना लें।
▪एक कटे हुए केले पर 1 चम्मच जीरा छिड़कें। रात को नियमित रूप से खाएं।
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कौन सी जड़ी बूटियाँ हाई ब्लड प्रेशर में उपयोगी हैं?,Herbs used in High Blood Pressure




उच्च रक्तचाप क्या है?

हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप, धमनी की दीवारों के खिलाफ रक्त प्रवाह द्वारा लगाए गए दबाव की मात्रा है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति को उच्च रक्तचाप का निदान किया जाता है, तो इसका मतलब है कि उसके संचार तंत्र (धमनियों) की दीवारों पर लगातार बहुत अधिक दबाव पड़ रहा है। हृदय एक पेशीय अंग है जो हमारे पूरे शरीर में रक्त को तब तक पंप करता रहता है जब तक हम जीवित हैं।
ऑक्सीजन की कमी वाले रक्त को हृदय की ओर पंप किया जाता है, जहां इसकी ऑक्सीजन सामग्री को फिर से भर दिया जाता है। फिर से ऑक्सीजन युक्त रक्त को पूरे शरीर में हृदय द्वारा पंप किया जाता है ताकि हमारी चयापचय गतिविधियों को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियों और कोशिकाओं को महत्वपूर्ण पोषक तत्व और ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा सके। रक्त का यह पम्पिंग बनाता है- रक्तचाप।
   निम्न जड़ी बूटियां उच्च रक्त चाप को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है-

अजवायन

अजवायन भी आमतौर पर हम सब के घरों में मौजूद होती है। अधिकतर मसालों के साथ इसका भी उपयोग भारतीय व्यंजनों में किया जाता है। यह प्राकृतिक हर्ब ना सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाती है बल्कि कई बीमारियों का अचूक उपाय भी है। अजवायन आयरन,मैग्नीशियम, मैंगनीज़, कैल्शियम और फाइबर से भरपूर होती है। जानकार मानते हैं कि अजवायन के सेवन से हाई ब्लड प्रेशर को कम किया जा सकता है।
लहसुन

लहसुन के सेवन के एक नहीं बल्कि कई फायदे हैं। इसे पाचन के लिए अच्छा माना जाता है। इसके सेवन से हाई कोल्स्ट्राल में कमी आती है।गैस की समस्या दूर हो सकती है। इसमें मौजूद विभिन्न यौगिक आपके दिल को फायदा पहुंचा सकते है। लहसुन में एलिसिन जैसे सल्फर यौगिक होते हैं, जो रक्त के प्रवाह को बढ़ाने और रक्त वाहिकाओं को आराम देने में मदद कर सकते हैं।
शोध बताते हैं कि हाई ब्लड प्रेशर वाले लोगों ने लहसुन का सेवन किया तो उनका रक्तचाप काफी हद तक नियंत्रित हो गया।

तुलसी

अधिकतर घरों में तुलसी का पौधा लगा होता है । तुलसी में अनेक लाभकारी गुण होते हैं जो कई बीमारियों को दूर भगाने के काम आ सकते हैं। यह वैकल्पिक चिकित्सा में भी काफी लोकप्रिय है क्योंकि इसमें कई शक्तिशाली तत्व होते हैं। तुलसी में यूजेनॉल की मात्रा अधिक होती है। दरअसल यूजेनॉल एक प्राकृतिक कैल्शियम चैनल ब्लॉकर के रूप में काम करके ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद कर सकता है।
कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स हृदय और धमनियों की कोशिकाओं में कैल्शियम की गति को रोकते हैं, जिससे रक्त वाहिकाओं को आराम मिलता है

थाइम

थाइम एक ऐसी स्वादिष्ट जड़ी बूटी है जिसका व्यंजनों में काफी इस्तेमाल किया जाता है। थाइम में कई ऐसे यौगिक होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। मुख्य रूप से इसमें मौजूद रोज़मैरिनिक एसिड काफी प्रभावशाली होता है।ये शरीर की सूजन और ब्लड शुगर के साथ ही रक्त प्रवाह में वृद्धि करता है। यह रक्तचाप को कम करने में भी काफी मदद कर सकता है।
थाइम के इस्तेमाल से हृदय रोग से जुड़ी समस्याएं जैसे कोलेस्ट्रॉल, एलडीएल (खराब) कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स और हाई ब्लड प्रेशर सब में कमी आती है।

अदरक

अदरक अविश्वसनीय रूप से आयुर्वेदिक गुणों की खान है।प्राचीन काल से ही इसका इस्तेमाल कई रोगों के उपचार में किया जाता रहा है। इनमें से एक है हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करना।कई शोध बताते हैं कि अदरक का सेवन रक्तचाप को कई तरह से कम करता है। यह एक प्राकृतिक कैल्शियम चैनल अवरोधक औऱ एसीई इनहिबिटर के रूप में कार्य करता है।
रक्तचाप की दवाओं में भी कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स और एसीई इनहिबिटर मौजूद होते हैं। इसलिए खाने में या चाय में अदरक का इस्तेमाल करने से काफी लाभ होता है।

अलसी

अलसी ओमेगा -3 फैटी एसिड से भरपूर होती है जो हृदय के लिए बहुत लाभदायक है। यह कई रोगों के उपचार में मदद कर सकती है। इनमें शरीर में सूजन, आंतों के रोग, गठिया ,शुगर इत्यादि शामिल हैं।जानकार बताते हैं कि ओमेगा -3 फैटी एसिड से भरपूर आहार हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों में को लिए प्रभावशाली है। अलसी कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करके एथेरोस्क्लोरोटिक हृदय रोग से बचा सकती है।
नियमित रूप से करीब 15 से 50 ग्राम तक पिसी हुई अलसी का सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल और हाई ब्लड प्रेशर को कम किया जा सकता है।

दालचीनी

भोजन में इस्तेमाल किए जाने वाले खुशबूदार मसालों में दालचीनी भी एक है। पुराने समय से ही इसका इस्तेमाल पारंपरिक चिकित्सा में उच्च रक्तचाप और हृदय रोग के इलाज के लिए किया जाता रहा है।इसके सेवन से रक्त वाहिकाओं को फैलने और आराम करने में मदद मिलती है।इसके कारण ना सिर्फ यह हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करती है बल्कि ब्लड शुगर के स्तर पर भी असरदार है।

इलायची

इलायची भी एक स्वादिष्ट मसाला है जिसमें थोड़ा मीठा, तीखा स्वाद होता है। यह विभिन्न एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होता है जो हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में कारगर है। जानकारों का मानना है कि रोजाना करीब 3 ग्राम इलायची पाउडर लेने से रक्तचाप में काफी कमी आ सकती है और रक्तचाप सामान्य सीमा तक पहुंचाया जा सकता है।
इलायची में प्राकृतिक रूप से कैल्शियम चैनल ब्लॉकर और डाईयूरेटिक के गुण होते हैं जो रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकते हैं। इलायची का इस्तेमाल व्यंजनों में कर के आप आसानी से इसका सेवन कर सकते हैं।

ब्राह्मी

ब्राह्मी एक ऐसी जड़ी बूटी है जो आपके शरीर के कई अंगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है। आयुर्वेद के जानकार मानते हैं कि हाई ब्लड प्रेशर के इलाज के लिए काफी समय से इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है।
आंवला

आंवला एक सुपरफूड माना जाता है जो रक्त वाहिकाओं को चौड़ा करके उच्च रक्तचाप को कम करने में भी मदद करता है। दिल की बीमारियों से पीड़ित लोगों को सुबह खाली पेट कच्चा आंवला खाने की सलाह दी जाती है। आप चाहे तो बाज़ार में उपलब्ध आंवले के जूस का सेवन भी कर सकते हैं।

तिल


तिल के बीज भी काफी अधिक गुणों वाले होते हैं। इनमें कैल्शियम की अत्यधिक मात्रा होती है।इसके अलाव ये विटामिन ई से भरपूर होते हैं, जो हृदय स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक माना जाता है। शोध बताते हैं कि तिल से बनी चीज़ें या तिल का तेल खाने से रक्तचाप को कम करने में मदद मिल सकती है।

कस्टर्ड एप्पल या शरीफा

शरीफा एक मौसमी फल होता है जो सर्दियों की शुरुआत में मिलता है।इसमें कई ऐसे गुण होते हैं जो हाई ब्लड प्रेशर और टाइप 2 मधुमेह के प्रबंधन के लिए अचूक तरीका माने जाते हैं।

उच्च रक्तचाप के लिए किन खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए?

हम जिन खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, वे हमारे रक्तचाप को अलग-अलग तरह से प्रभावित करते हैं। हालांकि, कुछ खाने की आदतें हैं जिनका पालन करके हम आपके रक्तचाप को कम कर सकते हैं जो इस प्रकार है:ऐसे भोजन का सेवन जिसमें वसा, नमक और कैलोरी की मात्रा कम हो।
चिकन, त्वचा रहित टर्की और दुबले मांस का सेवन।
मलाई रहित दूध, दही और ग्रीक योगर्ट को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
ताजे फल और सब्जियों का सेवन करना चाहिए।
अन्य खाद्य पदार्थ जैसे सादा चावल, पास्ता, आलू की रोटी आदि।
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12.4.23

सायटिका रोग किस औषधि से ठीक होता है?Sciatica most effective herbal medicine

 


साइटिका ( sciatica ) नाडी, जिसका उपरी सिरा लगभग 1 इंच मोटा होता है, प्रत्येक नितंब के नीचे से शुरू होकर टाँग के पिछले भाग से गुजरती हुई पाँव की एडी पेर ख़त्म होती है| इस नाडी का नाम इंग्लीश में साइटिका नर्व है| इसी नाडी में जब सूजन ओर दर्द के कारण पीड़ा होती है तो इसे वात शूल अथवा साइटिका का दर्द कहते है| इस रोग का आरंभ अचानक ओर तेज दर्द के साथ होता है| 30 से 40 साल की उम्र के लोगो में ये समस्या आम होती है |साइटिका का दर्द एक समय मे सिर्फ़ एक ही टाँग मे होता है| सर्दियों के दिनो में ये दर्द और भी बढ़ जाता है |रोगी को चलने मे कठिनाई होती है| रोगी जब सोता या बैठता है तो टाँग की पूरी नस खींच जाती है ओर बहुत तकलीफ़ होती है|

आयुर्वेद में साइटिका को गृध्रसी रोग कहा गया है। पैर में होने वाली पीड़ा के कारण व्यक्ति के चलने का तरीका गिद्ध (Vulture) के समान हो जाता है इसलिए इसे गृध्रसी कहा गया है। आयुर्वेद में इसे वात रोगों के अन्तर्गत रखा गया है। यह बढ़े हुए वातदोष एवं दूषित कफदोष के कारण होता है।अत्यधिक वातप्रकोपक आहार जैसे- बीन्स, अंकुरित अनाज, डिब्बाबंद भोजन, शुष्क एवं शीतल पदार्थ, कटु तथा कषाय रसयुक्त द्रव्यों के अधिक सेवन करने से या फिर अत्यधिक उपवास करने से, बहुत देर खड़े रहने या बैठे रहने से वातदोष की वृद्धि होती है जिस कारण गृध्रसी और अन्य तरह के वात रोग शरीर में उत्पन्न होते हैं।

जब इस नस में सूजन या दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है तो इसे सायटिका (साईटिका) या फिर वात-शूल कहते हैं।
इसकी सबसे खास बात यह है कि सायटिका का दर्द एक समय में सिर्फ एक ही पैर में होता है।
यह रोग 30 – 50 साल के उम्र वाले लोगों को होता है। जब यह रोग होता है तो व्यक्ति के पैर में तेज दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
यह दर्द अत्यंत कष्टदायक होता है जिसमें व्यक्ति उठता बैठता या फिर सोता है तो उसके पैर की नसें खिंच जाती हैं।
साइटिका में कमर से संबंधित नसों में सूजन आ जाने के कारण पूरे पैर में असहनीय दर्द होता है। यह न्यूरलजिया (तंत्रिका शूल) तंत्रिका में होने वाले दर्द का एक प्रकार है जिसमें साइटिका नर्व (गृध्रसी तंत्रिका) में कुछ कारणों से दबाव पड़ने लगता है। साइटिका में पीड़ा नितंबसंधि (Hipoint) के पीछे से प्रारम्भ होकर धीरे-धीरे बढ़ती हुई साइटिका नर्व के अंगूठे तक फैलती है। घुटने और टखने के पीछे पीड़ा अधिक रहती है और पीड़ा के साथ शून्यता भी हो सकती है। इस रोग की गम्भीर अवस्था में असहनीय पीड़ा के कारण रोगी बिस्तर पर पड़ा रहता है। रोग पुराना होने के साथ पैर में क्षीणता और सिकुड़न आ जाती है।

कारण-

ज्यादा देर तक एक ही अवस्था में बैठने या फिर खड़े रहने के कारण।
ज्यादा टाइट कपड़े पहनने के कारण।
अपनी कार्यक्षमता से अधिक परिश्रम करने के कारण।
अधिक सहवास करने के कारण।
मिर्च मसालेदार व असंतुलित भोजन का सेवन करने के कारण।
रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण।
सायटिका नस के पास दूषित द्रव इकट्ठा होने के कारण।
सायटिका नस के दब जाने के कारण।
रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में आर्थराइटिस हो जाने के कारण।
तनाव या ओवरस्ट्रेस लेने के कारण।
हाई हील्स या असहज जूते पहनने के कारण।

साईटिका रोग का घरेलू और कुदरती पदार्थों से इलाज-


साइटिका का आयुर्वेदिक उपाय 

पहला प्रयोग : मीठी सुरंजन या सहजन 20 ग्राम + सनाय 20 ग्राम + सौंफ़ 20 ग्राम + शोधित गंधक 20 ग्राम + मेदा लकड़ी 20 ग्राम + छोटी हरड़ 20 ग्राम + सेंधा नमक 20 ग्राम इन सभी को लेकर मजबूत हाथों से घोंट लें व दिन में तीन बार तीन-तीन ग्राम गर्म जल से लीजिये।
दूसरा प्रयोग : लौहभस्म 20 ग्राम + रस सिंदूर 20 ग्राम + विषतिंदुक बटी 10 ग्राम + त्रिकटु चूर्ण 20 ग्राम इन सबको अदरक के रस के साथ घोंट कर 250 मिलीग्राम के वजन की गोलियां बना लीजिये और दो दो गोली दिन में तीन बार गर्म जल से लीजिये।
तीसरा प्रयोग : 50 पत्ते परिजात या हारसिंगार व 50 पत्ते निर्गुण्डी के पत्ते लाकर एक लीटर पानी में उबालें। जब यह पानी 750 मिली हो जाए तो इसमें एक ग्राम केसर मिलाकर उसे एक बोतल में भर लें। यह पानी सुबह शाम 3/4 कप मात्रा में दोनों टाइम पीएं। साथ ही दो-दो गोली वातविध्वंसक वटी की भी लें।
चौथा प्रयोग : साइटिका रोग में 20 ग्राम निर्गुण्डी के पत्तों को 375 मिलीलीटर पानी में मन्द आग पर पकायें तथा चौथाई पानी रह जाने पर छान लें। इस काढ़े को 2 सप्ताह तक पीने से रोगी को लाभ होता है।

इसका भी रखें ख्याल :

दर्द के समय गुनगुने पानी से नहायें ।आप सन बाथ भी ले सकते हैं, अपने आपको ठंड से बचाएं। सुबह व्यायाम करें या सैर पर जायें ।अधिक समय तक एक ही स्थिति में ना बैठें या खड़े हों। अगर आप आफिस में हैं तो बैठते समय अपने पैरों को हिलाते डुलाते रहें।

लहसुन के दूध से दूर होगा साइटिका का दर्द

लहसुन का दूध भी काफी फायदेमंद होता है। ज्यादातर लोगों को लहसुन के दूध के बारे में जानकारी नहीं होती, लेकिन हम आपको बता दें कि यह बहुत ज्यादा लाभकारी है। जानते हैं कि इसका इस्तेमाल हम किस प्रकार से कर सकते हैं। इसके लिए आपको 4 लहसुन की कलियां और 200 मि. ली. दूध चाहिए।

इस तरह से बनाएं लहसुन का दूध

लहसुन का दूध बनाने के लिए सबसे पहले दूध को गर्म कर लें। फिर उसमें तीन से चार लहसुन काे कद्दूकस कर के डालें। और फिर थोड़ी देर के लिए दूध को उबालें। लीजिए आपके लिए लहसुन का दूध तैयार है। इसके बाद दूध को अपनी सुविधानुसार गर्म या थोड़ा ठंडा करके पी लें।

पोषक तत्वों से भरपूर

ये दूध पोषक तत्वों से भरपूर होता है।
इसमें विटामिन ए, मिनरल, प्रोटीन, एंजाइम्स आदि होते हैं।
ये सभी बैक्टीरिया को अप्रभावी कर देता है। ऐसे में रोज इस दूध का सेवन करें और स्वस्थ बने रहें

दूर करता है साइटिका का दर्द

साइटिका एक ऐसा दर्द है, जिसमें कमर से लेकर पैर की नसों तक में दर्द होता है। इसे ही साइटिक नर्व कहते हैं। जब इस नर्व्स में सूजन हो जाती है तो दर्द देने लगता है जिसे साइटिका का दर्द कहते हैं। कभी-कभी तो यह दर्द इतना अधिक हो जाता है कि इससे चलने तक में समस्या होती है। ऐसी स्थिति में लहसुन का दूध रामबाण इलाज माना जाता है। लेकिन साइटिका का दर्द दूर करने के लिए आपको ये दूध रेग्युलर पीना होगा। इस दूध से साइटिक को नसों में आई सूजन कम हो जाती है जिससे आऱाम मिलता है और दर्द कम हो जाता है।*100 ग्राम नेगड़ के बीजों को कूटकर पीस लें। फिर इसके 10 भाग करके 10 पुड़ियां बना लें। इसके बाद शुद्ध घी में सूजी या आटे का हलवा बना लें और जितना हलवा खा सकते हैं उसको अलग निकाल लें। इस हलवे में एक पुड़िया नेगड़ के चूर्ण की डालकर इसे खा लें और मुंह धो लें। लेकिन रोगी व्यक्ति को पानी नहीं पीना चाहिए। इस हलवे का कम से कम 10 दिनों तक सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
*20 ग्राम आंवला, 20 ग्राम मेथी दाना, 20 ग्राम काला नमक, 10 ग्राम अजवाइन और 5 ग्राम नमक को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 1 चम्मच प्रतिदिन सेवन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*प्रतिदिन 2 लहसुन की कली तथा थोड़ी-सी अदरक खाने के साथ लेने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*तुलसी की 5 पत्तियां प्रतिदिन सुबह के समय में खाने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
*इस रोग से पीड़ित रोगी को उपचार कराते समय क्रोध तथा चिंता को बिल्कुल छोड़ देना चाहिए।
*रोगी को प्रतिदिन अपने पैरों पर सरसों के तेल से नीचे से ऊपर की ओर मालिश करनी चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*इस रोग से पीड़ित रोगी को गर्म पानी में आधे घण्टे के लिए अपने पैरों को डालकर बैठ जाना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को तुरंत आराम मिल जाता है। यह क्रिया प्रतिदिन करने से यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
*साईटिका रोग को ठीक करने के लिए आधी बाल्टी पानी में 40-50 नीम की पत्तियां डाल दें और पानी को उबालें। फिर उबलते हुए पानी में थोड़े से मेथी के दाने तथा काला नमक डाल दें। फिर इस पानी को छान लें। इसके बाद गर्म पानी को बाल्टी में दुबारा डाल दें और पानी को गुनगुना होने दे। जब पानी गुनगुना हो जाए तो उस पानी में अपने दोनों पैरों को डालकर बैठ जाएं तथा अपने शरीर के चारों ओर कंबल लपेट लें। रोगी व्यक्ति को कम से कम 15 मिनट के लिए इसी अवस्था में बैठना चाहिए। इसके बाद अपने पैरों को बाहर निकालकर पोंछ लें। इस प्रकार से 1 सप्ताह तक उपचार करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
*लगभग 250 ग्राम पारिजात (हारसिंगार) के पत्तों को 1 लीटर पानी में अच्छी तरह से उबाल लें और जब उबलते-उबलते पानी 700 मिलीलीटर बच जाए तब उसे छान लें। इस पानी में 1 ग्राम केसर पीसकर डाल दें और फिर इस पानी को ठंडा करके बोतल में भर दें।इस पानी को रोजाना 50-50 मिलीलीटर सुबह तथा शाम के समय पीने से यह रोग 30 दिनों में ठीक हो जाता है। अगर यह पानी खत्म हो जाए तो दुबारा बना लें।
*5 कालीमिर्चों को तवे पर सेंककर कर सुबह के समय में खाली पेट मक्खन के साथ सेवन करना चाहिए। इस प्रयोग को प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
करेला, लौकी, टिण्डे, पालक, बथुआ तथा हरी मेथी का अधिक सेवन करने से साईटिका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
*इस रोग से पीड़ित रोगी को पपीते तथा अंगूर का अधिक सेवन करना चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*सूखे मेवों में किशमिश, अखरोट, अंजीर, मुनक्का का सेवन करने से भी यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।
*फलों का रस दिन में 3 बार तथा आंवला का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से साईटिका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को सबसे पहले एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। इसके बाद रोगी को अपने पैरों पर मिट्टी की पट्टी का लेप करना चाहिए। इसके बाद रोगी को कटिस्नान करना चाहिए और फिर इसके बाद मेहनस्नान करना चाहिए। इसके बाद कुछ समय के लिए पैरों पर गर्म सिंकाई करनी चाहिए और गर्म पाद स्नान करना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से साईटिका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*सुबह के समय में सूर्यस्नान करने तथा इसके बाद पैरों पर तेल से मालिश करने और कुछ समय के बाद रीढ़ स्नान करने तथा शरीर पर गीली चादर लपेटने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।
*सूर्यतप्त लाल रंग की बोतल के तेल की मालिश करने से तथा नारंगी रंग की बोतल का पानी कुछ दिनों तक पीने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।

कायफल साइटिका के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद

कायफल एक पेड़ की छाल है, यह देखने में गहरे लाल रंग की खुरदुरी होती है। इसे लाकर कूट-पीसकर बारीक पीस लेना चाहिए। अब एक कड़ाही में 500 ग्राम सरसों का तेल लेकर गर्म करें। तेल गर्म हो जाने पर थोड़ा-थोड़ा करके 250 ग्राम कायफल का चूर्ण मिलाएं। पाँच मिनट तक पकने के बाद इस तेल को आँच से उतार कर कपड़े से छान लें। दर्द होने पर इस तेल से हल्का गर्म करके धीरे-धीरे मालिश करें। मालिश करते समय दबाव न बनाएँ और मालिश के बाद सिकाई जरूर करें।
 *मेथी के बीज साइटिका के दर्द से निजात दिलाने में मददगार होते हैं। साइटिका का दर्द होने पर सुबह एक चम्मच मेथीदाना पानी के साथ निगल लें अथवा 1 ग्राम मेथीदाना पाउडर और सोंठ पाउडर को मिलाकर गर्म पानी के साथ दिन में 2-3 बार लेने से दर्द में आराम मिलता है।
*एरंड काढ़ा खाली पेट पिएं, एरंड का तेल रात में दूध के साथ लें, एरंड के पत्तों का लेप करें।
*तुलसी के पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
*हार-सिंगार के पत्तों का काढ़ा सुबह के समय में प्रतिदिन खाली पेट पीने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।
सहिजन साइटिका के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद
*सहिजन (मुनगा) की पत्तियाँ 100 ग्राम, अशोक की छाल 100 ग्राम और अजवायन 25 ग्राम इन सब सामग्रियों को 2 लीटर पानी में उबाले। जब यह पानी 1 लीटर बच जाए तो उसे छान कर रख लें। इस काढ़े को 50-50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम लें। इसे 3 माह तक नियमित रूप से लेने से साइटिका की समस्या दूर हो जाती है।
*सुबह तथा शाम के समय में अपने पैरों पर प्रतिदिन 2 मिनट के लिए ताली बजाने से भी यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।

अजवाइन साइटिका के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद 

अजवायन में प्राकृतिक सूजनरोधी गुण मौजूद होते हैं। 10 ग्राम अजवायन को एक गिलास पानी में डालकर अच्छे से उबाल लें, उसके बाद इसे छानकर पानी को पियें।

हल्दी साइटिका के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद 

हल्दी में एंटी-इंफ्लैमटोरी गुण पाये जाते हैं और यह साइटिका के उपचार की बेहतरीन औषधि है। सोने से पहले दूध में एक चुटकी हल्दी डालकर पिएँ।

सेंधा नमक साइटिका के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद

साइटिका के दर्द से निजात पाने के लिए गर्म पानी के एक बाथ टब में दो कप सेंधा नमक मिलाकर बैठ जाएं। लगभग 20 मिनट तक अपने पैर और पीठ के निचले हिस्सों को पानी में डुबा कर रखें। हफ्ते में तीन बार इस प्रक्रिया को करें।

सरसों का तेल साइटिका के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद 

सरसों के तेल में 2-3 तेजपत्ते और 2-3 कली लहसुन डालकर तेल को पका लें। अब इसे गुनगुना करके कमर और पैर में हल्के हाथों से मालिश करें। इससे दर्द और सूजन दोनों में लाभ मिलता है।


कटिवस्ति के फायदे

ब्लड और नसों का सर्कुलेशन सही होगा, मांसपेशियों को आराम मिलेगा, स्टिफनेस कम होगी, दर्द कम होगा।


एरंड का प्रयोग

एरंड काढ़ा खाली पेट पिएं, एरंड का तेल रात में दूध के साथ लें, एरंड के पत्तों का लेप करें।

जरूरी हैं ये काढ़े

दशमूल का काढ़ा, महारास्नादि काढ़ा, रास्नासप्तक काढ़ा।

खाने के बाद करें प्रयोग

बालारिष्ट, दशमूलारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट, खाने के बाद लें। साथ में अश्वगंधा का चूर्ण, सिंहनाद गुग्गुल, योगराज गुग्गुल दर्द कम करने के लिए लें।

क्या करें

गुनगुना पानी पिएं, धूप लें, वजन कम करें, घर का खाना खाएं, गाय का घी, गाय का दूध, ओलिव ऑयल, तिल का तेल, मछली का तेल, गेहूं, लाल चावल, अखरोट, मुनक्का, किशमिश, सेब, अनार, आम, और इमली का प्रयोग करें।

क्या न करें

तैलीय खाना, मसालेदार खाना, ठंडा खाना, बासी खाना, अधिक व्यायाम, ओवर ईटिंग, दिन में सोना, रात में जागना, जामुन, सुपारी, अरहर की दाल, मूंग की दाल आदि से दूर रहें। ये आसन तथा योगासन इस प्रकार हैं-
इस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी को पीठ के बल सीधे लेट जाना चाहिए। फिर रोगी को अपने पैरों को बिना मोड़े ऊपर की ओर उठाना चाहिए। इस क्रिया को कम से कम 20 बार दोहराएं। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक व्यायाम करने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।
*रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को मोड़कर, अपने घुटने से नाभि को दबाना चाहिए। इस क्रिया को कई बार दोहराएं। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक व्यायाम करने से साईटिका रोग में बहुत लाभ मिलता है।
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विशिष्ट परामर्श-  


संधिवात,कमरदर्द,गठियासाईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है| बड़े अस्पताल के महंगे इलाज के बावजूद निराश रोगी इस औषधि से निरोग हुए हैं| बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं| 
औषधि के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं| 
 
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प्रोस्टेट बढ़ने से पेशाब में रूकावट की भरोसेमंद हर्बल औषधि :Enlarged prostate medicine,

  


 प्रोस्टेट पुरुषों की एक महत्वपूर्ण ग्रंथि होती है, जो वीर्य बनाती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ कई बार व्यक्ति की प्रोस्टेट ग्रंथियां बड़ी हो जाती हैं और परेशानी का कारण बनने लगती हैं। रात में 1-2 बार तेज पेशाब महसूस होना प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने का शुरुआती लक्षण है। इसके अलावा पेशाब करते समय परेशानी, बालों का सफेद होना, अंडकोष का बड़ा होना आदि भी प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने के संकेत हैं।
 
कुछ लोग प्रोस्टेट बढ़ने को कैंसर मान लेते हैं, मगर आपको बता दें कि ये प्रोस्टेट कैंसर नहीं है। 45-50 की उम्र के बाद इसका खतरा बढ़ जाता है, मगर ये किसी भी उम्र में हो सकता है।

सर्दियों में समस्‍या का बढ़ना -

सर्दियों में कम पानी पीने के कारण प्रोस्‍टेट ग्रंथि की समस्‍या बढ़ जाती है। सर्दियों में पानी कम पीने के कारण यूरीन की थैली में एकत्र यूरीन की मात्रा बढ़ जाती है। इसके कारण यूरीन की नली में संक्रमण या यूरीन रुकने की समस्‍या हो जाती है।

बढ़ती उम्र, आनुवांशिक और हार्मोनल प्रभाव जैसे कई कारण से प्रोस्‍टेट ग्रंथि बढ़ने लगती हैं। इसके साथ ही औद्योगिक कारखानों में काम करने वाले लोग भी इस समस्‍या से ग्रस्‍त हो सकते हैं। इस रोग के होने की आशकाएं ऐसे लोगों में विभिन्न रसायनों और विषैले तत्वों के सपर्क में आने के कारण बढ़ जाती हैं।

प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने पर बार-बार पेशाब लगना, रुक-रुक कर पेशाब आना, पेशाब लगना मगर बहुत कम मात्रा में पेशाब आना, कुछ देर से पेशाब निकलना तथा पेशाब की धार पतली होना शमिल हैं। साथ ही धार का बीच-बीच में टूटना, यूरीन का रुक जाना और यूरीन करने में दर्द का अनुभव होना इसके लक्षण होते हैं। शुरुआत में व्यक्ति को रात में 1-2 बार अक्सर पेशाब लगने का अनुभव होता है, जिससे उसकी नींद खराब होती है।

किडनी पर असर- 

प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने पर अगर यूरीन मूत्राशय के अंदर देर तक रुका रहता है तो कुछ समय के बाद किडनी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है। इसके कारण किडनी की यूरीन बनाने की क्षमता कम होने लगती है और किडनी यूरिया को पूरी तरह शरीर के बाहर निकाल नहीं पाती। इन सब के कारण ब्‍लड में यूरिया बढ़ने लगता है, जो शरीर के लिए नुकसानदेह होता है।

प्रोस्‍टेट ग्रंथि बढ़ने का इलाज -

प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने की समस्या का समाधान दो तरीकों से संभव होता है। पहला, टी.यू.आर.पी. सर्जरी और दूसरा, प्रोस्टेटिक आर्टरी इंबोलाइजेशन सर्जरी द्वारा। इस सर्जरी के बाद सभी दवाओं को बंद कर सिर्फ कुछ खास दवाएं ही दी जाती हैं।

दवाओं से इलाज- 

प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने पर मरीज को चिकित्सकीय उपचार की आवश्यकता होती है। यूरीन की थैली के लगातार भरे रहने से किडनी पर दबाव बढ़ जाता है, जिससे किडनी के खराब होने का खतरा पैदा हो जाता है। रोग की प्रारंभिक अवस्था में दवाओं द्वारा ग्रंथि को बढ़ने से रोकने का प्रयास किया जाता है। शल्यक्रिया कुछ लोगों को दवाइयों से कोई लाभ नहीं होता है इसलिए शल्‍यक्रिया के द्वारा प्रोस्टेट ग्रंथि को निकाला जाता है। आधुनिक तकनीक लेजर प्रोस्टेक्टॉमी से प्रोस्टेट ग्रंथि की चिकित्‍सा बहुत ही कम चीर-फाड़ व रक्त-स्राव द्वारा की जाती हैं।

लेजर प्रोस्टेक्टॉमी -

लेजर प्रोस्टेक्टॉमी में लेजर किरणों के द्वारा प्रोस्टेट ग्रंथि के उस हिस्से को काटकर अलग कर दिया जाता है जिससे यूरीन नली का मार्ग अवरूद्ध होता है। इस पद्वति से फाइबर ऑप्टिक टेलीस्कोप दूरबीन को रोगी के मूत्रद्वार से मूत्राशय की ओर डाला जाता है। यहां प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़े हुए हिस्से को काटकर निकाल दिया जाता है।

Enlarged prostate herbal medicine  

कच्‍चा लहसुन -

कच्‍चे लहसुन का सेवन करने से न सिर्फ प्रोस्टेट स्वास्थ्य बेहतर बनाता है, बल्कि यह पेट और हृदय के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है। लहसुन 20 प्रतिशत तक प्रोस्टेट कैंसर के विकास की संभावनाओं को कम कर सकता है। रोजाना लहसुन को कच्‍चा ही खाएं इससे आपकी प्रोस्टेट ग्रंथि स्वस्थ रहेगी।

भरपूर मात्रा में टमाटर खाएं-

शोधों के अनुसार फल और सब्जी भरपूर मात्रा में खाने वालों में भी कैंसर का जोखिम, सब्जी और फल आदि न खाने वालों की तुलना में 24 प्रतिशत तक कम पाया जाता है। पुरुषों पर हुए एक शोध में पाया गया कि नियमित रूप से टमाटर खाने वाले पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर होने का जोखिम 18 प्रतिशत तक कम हो जाता है। दरअसल टमाटर के अंदर कैंसर प्रतिरोधी गुण वाला लाइकोपेन होता है जो कि एक एंटीऑक्सीडेंट है और डीएनए और कोशिका को क्षति पहुंचाने से रोक सकता है।

खूब पानी पियें -

प्रोस्टेट ग्रंथि को स्वस्थ रखने के लिए आपको खूब सारा पानी पीना चाहिये। इससे न सिर्फ प्रोस्टेट स्वास्थ्य को बेहतर होता है बल्कि त्वचा भी स्वस्थ होती है और किडनी आदि से संबंधित समस्याएं भी नहीं होतीं। जब आप पर्याप्त पानी नहीं पीते हैं तो मूत्र की मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं, जिससे प्रोस्टेट ग्रंथि को नुकसान पहुंच सकता है।

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सीताफल के बीज -

सीताफल के बीज इस प्रोस्टेट संबंधी बीमारी में बेहद लाभदायक होते हैं। सीताफल के कच्चे बीज को अगर हर दिन भोजन में उपयोग किया जाए, तो यह काफी हद तक यह प्रोस्टेट की समस्या से बचाव करने में मददगार होता है। इन बीजों में ऐसे 'प्लांट केमिकल' होते हैं, जो शरीर में जाकर टेस्टोस्टेरोन को डिहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन में बदलने से रोकते हैं, जिससे प्रोस्टेट कोशिकाएं नहीं बन पातीं।

टमाटर और तरबूज : -

प्रोस्टेट की समस्या वाले व्यक्ति को अपने भोजन में टमाटर और तरबूज की जरूर शामिल करना चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार, नियंत्रित मात्रा में नियमित रूप से टमाटर, तरबूज का सेवन प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को बहुत कम कर देता है। ऐसा टमाटर, तरबूज में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट लाइकोपेन की वजह से होता है, जो कैंसर के खिलाफ काम करने के लिए जाना जाता है।

विटामिन डी वाले आहार -

विटामिन डी की कमी दूर करने और अपने प्रोस्‍टेट को बचाने के लिए ऐसे आहार का सेवन कीजिए जिसमें विटामिन डी भरपूर मात्रा में मौजूद हो। इसके लिए सालमन और टूना मछली खायें, मशरूम में भी विटामिन डी होता है। दूध, फलों, सेरेल्‍स में विटामिन डी पाया जाता है। इसके अलावा सूर्य की किरणों में भी पाया जाता है। अगर विटामिन डी की कमी पूरी न हो पाये तो विटामिन डी के सप्‍लीमेंट का सेवन करना चाहिए, यह पूरी तरह से सुरक्षित है। लेकिन सप्‍लीमेंट लेने से पहले अपने चिकित्‍सक से सलाह जरूर लीजिए।

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कद्दू के बीज : 

जर्मनी में प्रोस्टेट के बढ़ने और पेशाब में दिक्कत की समस्या का इलाज कद्दू के बीज से किया जाता है। कद्दू के बीज में डाइयूरिटिक (मूत्रवर्धक और मूत्र के बहाव को तेज करने की प्रवृति) गुण होता है। साथ ही इसमें भरपूर जिंक होता है, जो शरीर के रोग प्रतिरोधी तंत्र की मरम्मत करता है और उसे मजबूत बनाता है। इन बीजों को इनका खोल हटाकर सादा खाना ही सबसे अच्छा है। कद्दू के बीजों की चाय भी बनाई जा सकती है। इसके लिए मुट्ठी भर ताजा बीजों को कूटकर एक छोटे-से जार में डाल देते हैं। फिर जार को उबले हुए पानी से भर देते हैं और इस मिश्रण को ठंडा होने देते हैं। उसके बाद मिश्रण को छानकर पी लेते हैं। रोजाना एक बार ऐसी चाय पीने से काफी लाभ होता है। कद्दू के बीज में बीटा सिटीस्टीरॉल नाम का रसायन भी होता है।

प्रोस्टेट में परहेज : 

  क्या नहीं खाना चाहिए फैट और चिकनाई वाला भोजन कम-से-कम करें। रेड मीट का सेवन से भी जरुर परहेज करें | डिब्बा बंद टमाटर, सॉस, या अन्य डिब्बा बंद खाद्य पदार्थो से दूर रहें | जंक फ़ूड, चिप्स, अधिक चीनी, मैदा आदि का परहेज करें | ज्यादा शराब पीना भी नुकसानदायक होगा। कई अध्ययनों में पता चला है कि बियर शरीर में पिट्यूटरी ग्लैंड से निकलने वाले प्रोलेक्टिन हार्मोन का स्तर बढ़ा देती है, जिसका परिणाम अंततः प्रोस्टेट के बढ़ने के रूप में सामने आता है। अधिक कैल्शियम वाले खाने से परहेज रखें | कम मात्रा में दही ले सकते हैं | प्रोस्टेट ग्लैंड की समस्या में कैफीन (चाय, कॉफी, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक आदि) का सेवन भी नुकसान करेगा। बहुत ज्यादा तीखे, मसालेदार भोजन से भी बचना चाहिए ।


विशिष्ट परामर्श-




प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने मे हर्बल औषधि सर्वाधिक कारगर साबित हुई हैं| यहाँ तक कि लंबे समय से केथेटर नली लगी हुई मरीज को भी केथेटर मुक्त होकर स्वाभाविक तौर पर खुलकर पेशाब आने लगता है| प्रोस्टेट ग्रंथि के अन्य विकारों (मूत्र जलन , बूंद बूंद पेशाब टपकना, रात को बार -बार पेशाब आना,पेशाब दो फाड़) मे रामबाण औषधि है| केंसर की नौबत नहीं आती| आपरेशन से बचाने वाली औषधि हेतु वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं|
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गांधी के अमृत वचन हमें अब याद नहीं - डॉ॰दयाराम आलोक

4.4.23

पानी कितना कैसे पीयें?pani kitana kaise piyen?




शरीर से बैक्टीरिया और टॉक्सिन्स जैसी गंदगी निकालने के लिए पानी बहुत जरूरी है। यह सबसे हेल्दी ड्रिंक है, जो बॉडी में न्यूट्रिशन और ऑक्सीजन को फैलाने में मदद करती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक घंटे में कितना पानी पीना (water intake in an hour) चाहिए? क्योंकि, जरूरत से ज्यादा या कम पानी पीने से आपको कई समस्याएं हो सकती हैं।

सेहतमंद और तंदरुस्त रहने के लिए रोजाना पर्याप्त पानी पीना (water intake every hour) चाहिए। पानी शरीर को हाइड्रेट रखता है और गंदगी को निकालने में मदद करता है। लेकिन, शरीर को साफ करने के लिए कितना पानी पीना चाहिए? अधिकतर लोगों के पास इस सवाल का जवाब नहीं होगा। हम काफी खोजबीन के बाद आपके लिए यह हेल्थ टिप लेकर आए हैं।

पर्याप्त पानी पीने के फायदे


हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मुताबिक, पानी शरीर में कई काम करता है। जिन्हें पानी पीने के फायदे (Drinking water benefits) भी कह सकते हैं। जैसे-सेल्स तक पोषण और ऑक्सीजन पहुंचाना
ब्लैडर और शरीर से गंदगी (बैक्टीरिया व टॉक्सिन्स) निकालना
डायजेशन सही करना

कब्ज से बचाना
बीपी लेवल सही रखना
जोड़ों को सेहतमंद रखना
शारीरिक अंगों और टिश्यू को बचाना
शारीरिक तापमान को सामान्य बनाए रखना
शरीर में इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस रखना, आदि

कम या ज्यादा पानी पीने के नुकसान

कम पानी पीने से शरीर में डिहाइड्रेशन (dehydration symptoms) हो जाती है। जिसके कारण सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, कमजोरी, मुंह सूखना, सूखी खांसी, लो ब्लड प्रेशर, पैरों में सूजन, कब्ज, गहरे रंग का पेशाब आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

वहीं, अगर आप जरूरत से ज्यादा पानी (drinking too much water) पी रहे हैं, तो यह ओवरहाइड्रेशन की स्थिति पैदा कर सकती है। जिसके कारण बार-बार पेशाब जाना, शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी, उल्टी-जी मिचलाना, हाथ-पैर का रंग बदलना, मसल्स क्रैम्प होना, सिरदर्द और थकान शामिल है।

1 घंटे में कितना पानी पीना चाहिए?


हार्वर्ड मेडिकल स्कूल कहता है कि आपके लिए पानी की जरूरी मात्रा आपकी उम्र, फिजीकल एक्टिविटी, लिंग, तापमान और बॉडी वेट पर निर्भर करती है। लेकिन फिर भी एक्सपर्ट्स, हर घंटे 2 से 3 कप पानी पीने की सलाह देते हैं। अगर आप मौसम गर्म है या आप एक्सरसाइज कर रहे हैं, तो यह मात्रा बढ़ सकती है। वहीं, एक हेल्दी आदमी को 1 दिन में 2-3 लीटर पानी (how much water should drink everyday) पीना चाहिए। इसलिए अपने लिए पानी की सही मात्रा पता करने के लिए डॉक्टर से बात करें।

पेशाब के रंग से करें टेस्ट


पेशाब का रंग सेहत के बारे में कई राज खोलता है। जैसे- पेशाब का रंग (urine colour tells about health) देखकर आप पता लगा सकता हैं कि आप कम पानी पी रहे हैं या ज्यादा। अगर आपके पेशाब का रंग गहरा पीला है, तो यह डिहाइड्रेशन का लक्षण हो सकता है। वहीं, बार-बार सफेद रंग का पेशाब आना ओवर-हाइड्रेशन का लक्षण हो सकता है।

इन कामों को ना करें

शरीर में पानी का लेवल बैलेंस करने के लिए आपको कुछ काम नहीं करने चाहिए। क्योंकि यह डिहाइड्रेशन का कारण (dehydration reasons in hindi) बनते हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल कहता है कि शराब और कैफीन का सेवन करने से शरीर में पानी की कमी होती है। इसके अलावा, प्यास बुझाने के लिए शुगरी या कार्बोनेटेड ड्रिंक्स भी नहीं पीनी चाहिए। क्योंकि, यह ना सिर्फ ब्लड शुगर को हाई करती हैं, बल्कि पानी की कमी भी पैदा करती हैं।
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2.4.23

निर्गुंडी के सेहत के लिए क्या उपयोग हैं?Benefits of Nirgundi plant



सेहत के लिए निर्गुण्डी के फायदे क्या हो सकते हैं, इस पर एक नजर डाल लेते हैं।
निर्गुण्डी के फायदे

सेहत के लिए निर्गुण्डी के फायदे कई हैं, जिनके बारे में हम नीचे विस्तार से बता रहे हैं। बस ध्यान रहें कि निर्गुण्डी का उपयोग शारीरिक समस्या से बचाव के लिए किया जाना चाहिए। गंभीर बीमारी के इलाज के लिए इस पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। इसके लिए डॉक्टर से संपर्क करना आवश्यक है।
सूजन को कम करने के लिए

निर्गुण्डी का उपयोग सूजन की समस्या में फायदेमंद हो सकता है। एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर पब्लिश एक शोध के अनुसार, इसमें एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होता है। यह प्रभाव सूजन को कम करने में मददगार हो सकता है। साथ ही यह गठिया से राहत भी दिला सकता है । गठिया का एक लक्षण जोड़ों में सूजन भी है । इसी वजह से इसे सूजन के लिए प्रभावी माना जाता है।
मासिक धर्म में

निर्गुण्डी का उपयोग मासिकधर्म चक्र को नियमित करने के लिए भी किया जा सकता है। इस विषय में चूहाें पर हुए शोध के अनुसार, निर्गुण्डी की पत्तों में ओलिगोमेनोरिया (Oligomenorrhea) की स्थिति को ठीक करने का गुण होता है |
ऑलिगोमेनोरिया का मतलब है मासिक धर्म का अनियमित होना और रक्त का प्रवाह सामान्य न होना इसी वजह से मासिक धर्म को नियमित करने के लिए निर्गुण्डी का इस्तेमाल किया जाता है। फिलहाल, यह स्पष्ट नहीं है कि निर्गुण्डी में मौजूद कौन-सा तत्व इसमें मदद करता है।
महिलाओं की प्रजनन क्षमता के लिए

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) के कारण महिलाओं में प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है। इस समस्या में निर्गुण्डी का उपयोग फायदेमंद हो सकता है। चूहों पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार, निर्गुण्डी के अर्क में मौजूद फ्लेवोनॉइड्स में एंटीएंड्रोजेनिक प्रभाव होता है। यह फर्टिलिटी स्टेटस में सुधार कर सकता है। साथ ही एंटी पीसीओएस के रूप में कार्य करता है, जिससे महिलाओं की प्रजनन क्षमता में सुधार हो सकता है
सिरदर्द के लिए

सिरदर्द की समस्या को दूर करने के लिए भी निर्गुण्डी का उपयोग सालों से किया जाता रहा है। इस विषय पर हुए शोध से पता चलता है कि निर्गुण्डी की पत्तियों में एनाल्जेसिक यानी दर्द निवारक गुण होता है। इस प्रभाव के कारण यह सिरदर्द को कम कर सकता है |
घाव भरने के लिए

निर्गुण्डी घाव भरने में भी मददगार हो सकता है। इसके पौधे के लगभग सभी हिस्सों का इस्तेमाल घाव भरने के लिए किया जा सकता है । इसके अलावा, निर्गुण्डी का तेल भी पुराने घाव को ठीक कर सकता है। इसमें घाव को साफ करने और उसे भरने वाले गुण होते है। साथ ही यह एंटीबैक्टीरियल प्रभाव से भरपूर होता है, जो घाव में पनपने वाले बैक्टीरिया को खत्म कर सकता है|
छालों (ब्लिस्टर) के लिए

निर्गुण्डी का उपयोग छालों को ठीक करने के लिए भी किया जाता है। एक शोध में बताया गया है कि इसके पत्ते का इस्तेमाल सालों से छालों और फफलों से राहत पाने के लिए लोग करते रहे हैं । फिलहाल, यह स्पष्ट नहीं है कि इसका कौन-सा प्रभाव इसमें लाभदायक होता है।
गाउट

गाउट एक तरह का अर्थराइटिस है। इस समस्या को कम करने में भी निर्गुण्डी को फायदेमंद माना जाता है। दरअसल, गाउट इंफ्लेमेटरी बीमारी है। इससे राहत दिलाने में इसके पत्तों से बना तेल, निर्गुण्डी के बीज और पत्ते का जूस सभी मदद कर सकते हैं। माना जाता है कि इनमें एंटीइंफ्लेमेटरी प्रभाव होता है, जो गाउट और अर्थराइटिस दोनों से राहत दिला सकता है
यौन स्वास्थ्य

निर्गुण्डी का उपयोग यौन शक्ति को बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। रिसर्च से पता चलता है कि यह पुरुषों की यौन क्षमता और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को बेहतर कर सकता है। हालांकि, शोध में इस बात का भी जिक्र है कि इसकी पत्तियों का रस यौन भावनाओं को कम कर सकता है। इसी वजह से इसका इस्तेमाल विशेषज्ञ की सलाह पर ही करें|
स्तनपान के लिए

स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने के अलावा निर्गुण्डी स्तन का दूध बढ़ाने में भी सहायक हो सकता है। एक शोध में पाया गया है कि निर्गुण्डी को थोड़ी मात्रा में लेने पर यह स्तन के दूध को बढ़ा सकता है। वहीं, अगर इसका सेवन अधिक किया जाता है, तो यह दूध की मात्रा को कम कर सकता है निर्गुण्डी का कौन-सा गुण दूध के उत्पादन में मदद करता है, यह शोध का विषय है।
बालों के लिए

सेहत और त्वचा के साथ ही निर्गुण्डी का उपयोग बालों की ग्रोथ और मजबूती के लिए भी किया जा सकता है। दरअसल, निर्गुण्डी की पत्तियों का जूस हेयर टॉनिक की तरह काम कर सकता है। इसका उपयोग नारियल तेल के साथ करने पर यह गंजेपन और डेड्रफ की समस्या में भी फायदेमंद हो सकता है। इतना ही नहीं, निर्गुण्डी का पेस्ट बालों को बढ़ाने में भी सहायक माना जाता है । इसमें मौजूद कौन-सा तत्व इसमें मददगार है, यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है।
नसों से जुड़ी समस्या के लिए


निर्गुण्डी का उपयोग नसों से जुड़ी समस्या को दूर करने के लिए भी किया जा सकता है। शोध में पाया गया कि यह नसों की इंफ्लेमेशन को कम कर सकता है। साथ ही निर्गुण्डी से नस संबंधी साइटिका की समस्या में होने वाले दर्द और सूजन को भी कम किया जा सकता है |
त्वचा संबंधी समस्याओं में

सेहत के साथ ही निर्गुण्डी का उपयोग त्वचा के लिए भी किया जा सकता है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, निर्गुण्डी त्वचा संबंधी बीमारियों से बचाने में मदद कर सकता है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि स्किन कैंसर की वजह से दिखने वाले बढ़ती उम्र के लक्षणों में सुधार कर सकता है। इसके अलावा, यह स्किन अल्सर और एलर्जी को भी ठीक कर सकता है |
अच्छी सेहत के लिए निर्गुण्डी का उपयोग कई प्रकार से किया जा सकता है। यहां हम आपको इसके उपयोग और मात्रा के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।गठिया की समस्या होने पर एक टेबल स्पून निर्गुण्डी के पत्तों का पाउडर खा सकते हैं।
*गैस और दर्द को दूर करने के लिए इसकी पत्तियों का काढ़ा बनाकर पी सकते हैं।
*निर्गुण्डी के काढ़े का उपयोग प्रसव के बाद स्नान करने के लिए भी किया जा सकता है।
*फोड़े और फुंसी की समस्या होने पर निर्गुण्डी का लेप बनाकर लगा सकते हैं।
*पेशाब में जलन और गुर्दे की पथरी के लिए सप्ताह में दो बार नारियल पानी में लगभग दो चम्मच निर्गुण्डी के अर्क काे मिलाकर पी सकते हैं।
*सर्दी, खांसी, सिरदर्द, बुखार की स्थिति में निर्गुण्डी की पत्तियों को पानी में उबालकर इसकी भाप ले सकते हैं।
मात्रा: हम बता ही चुके हैं कि निर्गुण्डी के सभी हिस्सों में औषधीय गुण होते हैं। इसी वजह से इनका सेवन अलग-अलग मात्रा में किया जाता है, जिसकी जानकारी हम नीचे दे रहे हैं। अगर किसी को शारीरिक समस्या है, तो उसे इसकी खुराक की जानकारी विशेषज्ञ से लेनी चाहिए।रोजाना सूखे फल के रस की 40 मिलीग्राम मात्रा।
*सूखी पत्तियों के अर्क की 300 से 600 मिलीग्राम मात्रा दिन में दो बार ले सकते हैं।
*निर्गुण्डी के पत्तों से बना काढ़ा दिन में दो बार 50 से 100 ml पी सकते हैं ।
*दिन में दो बार इसकी पत्ती का 10 से 20ml रस का सेवन किया जा सकता है।
*निर्गुण्डी के पत्तों का 5 से 3 ग्राम पाउडर खा सकते हैं।
*दिनभर में दो बार इसके जड़ की छाल के पाउडर का 3 से 6 ग्राम तक सेवन किया जा सकता है।
*निर्गुण्डी के बीज का पाउडर का भी एक से तीन ग्राम तक सेवन कर सकते हैं।

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31.3.23

घाव जल्दी भरने के उपाय:Ghav bharne ke upay



जब किसी कारण चोट लग जाए तो उसे अनदेखा नहीं करना चाहिए। चोट छोटी बड़ी नहीं होती है, चोट चोट होती है। जिसका सही उपचार न करने पर वह गंभीर समस्या बन जाती है। चोट लगने या जलने से घाव हो जाता है। आप कोई उपचार करें या न करें, बॉडी चोट लगते ही घाव भरने का काम शुरु कर देती है। छोटी मोटी खरोंचे तो शरीर ख़ुद ठीक कर लेता है, लेकिन घाव अगर बड़ा हो जाए तो उसको भरने के लिए हमें कुछ उपाय करके अपने शरीर के काम में मदद करनी पड़ती है। आज हम घाव जल्दी भरने के लिए क्या करना चाहिए, इसके घरेलू उपाय जानेंगे।
घाव की गहराई की जांच

जब भी चोट लगे तो घाव की गहराई की जांच तुरंत कर लेनी चाहिए। जिससे आपको पता चलेगा कि घर पर ये ठी क हो सकेगी या फिर आपको डॉक्टर के पास जाना पड़ेगा। घाव गहरा होने पर उसमें टांके लगाने पड़ सकते हैं, इसलिए बड़ी चोटों के लिए डॉक्टर से ज़रूर मिलिए।
ख़ून रोकने के उपाय

चोट से अगर ख़ून बह रहा हो तो घाव पर रूई की पट्टी बांधकर उसे थोड़ी देर हल्का सा दबाकर रखें। ज़्यादा दबाने की ज़रूरत नहीं है, ख़ून बंद न हो तो एक पट्टी और रखिए। ख़ून न रुक रहा हो फ़ौरन डॉक्टर से मिलिए। ख़ून बंद होने के बाद ही घाव भरने के उपाय किए जा सकते हैं।
घाव की सफ़ाई

ख़ून रुक जाने के बाद घाव की सफ़ाई कीजिए। ध्यान रखें कि घाव की सफ़ाई से पहले अपने हाथ साबुन से अच्छे से धो लेने चाहिए। इससे इंफ़ेक्शन के चांसेज कम हो जाएंगे। चोट पर साबुन न लगने दें।
– घाव को साफ़ पानी से धुलना चाहिए, नल के ताज़े पानी से घाव की सफ़ाई करते समय नल का प्रेशर कम रखना चाहिए।
– घाव को रुई से थपथपाना चाहिए, न कि उसे पोंछना चाहिए। पोंछने से घाव खुल सकता है।
– घाव को धूल और मिट्टी से बचाना चाहिए। धूल मिट्टी के कण घाव में बैठ जाएँ तो घाव पक सकता है।
– घाव को सैलाइन घोल _ Saline Solution से साफ़ करना चाहिए। यह डिस्टिल्ड वाटर और सोडियम क्लोराइड का आइसोटोनिक घोल _ Isotonic Solution होता है।
घाव की मरहम पट्टी

घाव पर एंटी बैक्टीरियल ओइंमेंट लगाकर पट्टी बांधनी चाहिए। ये इंफ़ेक्शन की संभावना कम करके घाव भरने की दर बढ़ाता है।
घाव भरने के उपाय

आयुर्वेदिक तरीक़ों से भी घाव जल्दी भरे जा सकते हैं, इसके लिए हर्बल एंटीसेप्टिक और मरहम का इस्तेमाल किया जाता है। इन उपायों से घाव के निशान भी गायब हो जाते हैं।

1. एलो वेरा

– ज़ख़्म गहरा न हो तो एलो वेरा जेल का प्रयोग कीजिए। इससे घाव की सूजन कम हो जाती है, साथ ही ज़ख़्म को ज़रूरी नमी मिल जाती है।
– गहरे और खुली चोटों पर ऐलो वेरा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
– ऐलो वेरा से एलर्जी होने की संभावना बहुत ही कम है, लेकिन यदि त्वचा का रंग लाल हो जाए तो डॉक्टर से मिलें।
– कटे छिले पर ऐलो वेरा का रस बहुत फ़ायदेमंद है।
2. शहद

– शहद के प्राकृतिक एंटीबैक्टीरियल गुण घाव को पकने से बचाते हैं। जिससे घाव जल्दी भरता है।
– छोटी मोटी चोटों के लिए घाव साफ़ करने के लिए शहद लगाकर पट्टी से बांध दें।
– त्वचा में बढ़ने वाली सूजन शहद लगाने ठीक हो जाती है।
3. हल्दी

– एंटी सेप्टिक गुणों से युक्त हल्दी घाव को इंफ़ेक्शन से बचाती है।
– घाव को गोमूत्र से भी साफ़ किया जा सकता है, इसके बाद हल्दी का लेप लगा लीजिए।
4. सिरका

कटे छिले ज़ख़्म पर सिरका लगाने से आराम मिलता है। सिरका लगाने से आपको थोड़ी जलन होगी, लेकिन घाव जल्दी भर जाता है। सिरके की दो चार बूंदे ही रुई पर डालकर साफ़ करना चाहिए।
5. आइसपैक

– चोट की सूजन कम न हो तो आइसपैक प्रयोग करनी चाहिए। इससे ख़ून बहना कम हो जाता है और दर्द में भी आराम मिलता है।
– आइसपैक न हो तो एक रूमाल या तौलिए में बर्फ़ लपेटकर घाव पर लगाएँ।
– आइसपैक या बर्फ़ को चोट के सम्पर्क में सीधे नहीं लाना चाहिए।
6. योग और व्यायाम

हल्की एक्सरसाइज़ से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। योग, स्ट्रेचिंग, टहलना और साइकलिंग आदि कर सकते हैं।
घाव भरने के आयुर्वेदिक उपाय

– चोट पर गौमूत्र या अपना मूत्र इस्तेमाल करें।
– हल्दी वाला दूध ही पीना चाहिए।
– घाव होने पर भोजन कम करना चाहिए, इससे घाव जल्दी भर जाता है।
घाव जल्दी भरने के लिए आहार

शरीर में पोषक तत्वों की कमी से घाव भरने में देर लग सकती है। इसलिए प्रोटीन और विटामिन का सेवन करना चाहिए। प्रोटीन से घाव जल्दी भरता है और विटामिन स्किन को हेल्दी रखता है। विटामिन ए और सी पर्याप्त मात्रा में लेना चाहिए। साथ ही ज़िंक में भी घाव भरने की क्षमता होती है।
– शाकाहारी प्रोटीन के लिए दालें, सोयाबीन और चने का सेवन करें और मांसाहारी अंडे, मछली और चिकन खा सकते हैं।
– नींबू, संतरा, अन्नानास और ब्रोकोली

से विटामिन सी मिलता है। जबकि दूध, पनीर, गाजर और हरी सब्ज़ियों में विटामिन ए होता है।
– पानी में अनेक प्रकार के मिनिरल्स होते हैं, जिससे घाव जल्दी भरते हैं। साथ यह शरीर में डी-हाइड्रेशन नहीं होता है।
घाव भरने के अन्य उपाय

चोट लगने पर डायबिटीज़ के मरीज़ का ख़ून जल्दी नहीं रुकता है, और इससे घाव भरने दर भी धीमी हो जाती है। कभी कभी समस्या गैंगरीन बन जाती है, जिसमें मरीज़ का चोटिल अंग सड़ जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि उस भाग की सभी कोशिकाएँ मर जाती हैं और नई कोशिकाएँ विकसित नहीं होती हैं। ऐसी स्थिति में अंग को काटकर अलग करना पड़ता है।
आयुर्वेदिक औषधि बनाने की विधि

गैंगरीन के उपचार के लिए आप घर पर औषधि बना सकते हैं। जिसमें गाय का मूत्र, हल्दी और गेंदे के फूल चाहिए।
– गाय के मूत्र को साफ़ कपड़े से छानकर प्रयोग करना चाहिए।
– छने हुए गौ मूत्र में हल्दी और गेंदे की पत्तियाँ मिलाकर पीस लीजिए। इस लेप का प्रयोग घाव पर दिन में दो बार करें।
– दुबारा घाव पर यह लेप लगाने से पहले घाव को गौ मूत्र से धोना चाहिए, डेटॉल से नहीं।
– लेप को प्रयोग से तुरंत पहले बनाना चाहिए।
घाव भरने के लिए सावधानियाँ

– चोट लगने पर घाव को खुला छोड़ने की बजाय उसपर एंटी सेप्टिक लगाएँ।
– घाव छूने और पट्टी बदलने से पहले अपने हाथ ज़रूर धो लें।
– चोट पर ब्यूटी या कॉस्मेटिक क्रीम का प्रयोग न करें।
– ज़ख़्म भर जाने के बाद पपड़ी को ख़ुद झड़ने दें। अगर आप ज़बरदस्ती निकालेंगे तो चोट का निशान रह जाएगा।
– कुछ हफ़्ते में घाव ठीक न हो तो डॉक्टर को दिखाएँ।
– घाव को हमेशा ढककर रखना चाहिए, ताकि उस पर मक्खियाँ न लगें।
– घाव को धूप में न रखें, इससे उसके निशान रह जाते हैं।

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