11.1.22

मूत्र चिकित्सा (यूरिन थेरेपी) से रोग निवारण:mutra chikitsa



परिचय-
मूत्र चिकित्सा Urine therapy  के बारे मे जहा बाइबिल मे जिक्र है वही आयुर्वेद मे इसका विस्तृत विवरण और रोगो का निदान है आयुर्वेद मे 9 प्रकार के मूत्र के बारे मे जिक्र है वर्तमान मे गोमूत्र का प्रचलन बड़ी तेजी से बढने का मुख्य कारण इससे उन रोगो का निदान भी हो रहा है जिनका प्रचलित किसी भी पद्धति मे इलाज नही है ,परन्तु यह लेख स्वमूत्र चिकित्सा के बारे मे और अनुभव के बाद लिखा हुआ है सामान्यतः स्वमूत्र चिकित्सा का सिद्धांत ,प्राकृतिक भोजन मे ही पूर्ण स्वास्थ्य के तत्व होते है के आधार पर है जैसे जैसे शरीर की आयु बढ़ती है वैसे-वैसे शारारिक क्षमता घटने के कारण स्वास्थ्य के मुख्य तत्व मूत्र मे विसर्जित होने लगते है यदि इन्ही तत्वो को पुनः लिया जाए तो शरीर स्वस्थ्य होने लगता है चिकित्सा मे स्वमूत्र का मुख्य तीन प्रकार से प्रयोग किया जाता है
1.बाह्य रूप से -इसमे शरीर पर मालिश इत्यादि है
2.अतः करण रूप से -इसमे स्वमूत्र को पिया जाता है
3.गंध द्वारा- स्वमूत्र की गंध को सुंघकर चिकित्सा की जाती है


स्वमूत्र का प्रयोग -

स्वमूत्र चिकित्सा निम्न छह प्रकार से की जाती है-
1. स्वमूत्र से सारे शरीर की मालिश
2. स्वमूत्रपान
3. केवल स्वमूत्र और पानी के साथ उपवास
4. स्वमूत्र की पट्टी रखना
5. स्वमूत्र के साथ अन्य प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग
6. स्वमूत्र को सूर्य किरण देकर

बड़े फोड़े, चमड़ी की सूजन, चीरे, जख्म, फफोले और आग के घाव आदि को छोड़कर शेष सभी रोगों के उपचार का आरंभ स्वमूत्र मालिश से करना चाहिए। मालिश के लिए 36 घंटे से सात-आठ दिन का पुराना स्वमूत्र ही अत्यधिक फायदेमंद सिद्ध होता है। पुराना होने पर इसमें अमोनिया नामक द्रव्य बढ़ जाता है। अमोनिया के कारण यह मूत्र शरीर के लाखोंलाख छिद्रों में जल्दी से और ज्यादा परिमाण में दाखिल हो जाता है।
प्रत्येक व्यक्ति को मालिश के लिए प्रतिदिन करीब आधा सेर स्वमूत्र की आवश्यकता होती है। सात बड़ी शीशियों में सात दिन के पुराने स्वमूत्र का संग्रह क्रम में रखा जाए। शीशियों का मुँह हमेशा बन्द रखा जाए, ताकि उसमें कोई भी जीव-जन्तु मरने न पाए। मानव मूत्र कृमिनाशक है। उसमें कीड़े नहीं पड़ते। शीशियाँ इस क्रम में रखी जाएँ, ताकि जो शीशी खाली हो जाए वह भरती जाए। सर्दी की ऋतु में या मनुष्य की प्रकृति के अनुसार रखा हुआ मूत्र थोड़ा गरम भी किया जा सकता है।
 पहले रखे हुए स्वमूत्र में से एक पाव मूत्र एक कटोरी में डालकर तलवे से कमर तक मालिश करके सुखा दें और जो गंदा अंश कटोरी में बचे उसे गिरा दें। फिर एक पाव लेकर कमर से सिर तक मालिश करनी चाहिए। मालिश हलके हाथ से करनी चाहिए, ताकि रोगी या मालिश कराने वाले को कष्ट न हो। हाथ ऊपर-नीचे ले जाना चाहिए। मालिश कितनी देर की जाए यह आवश्यकतानुसार तय किया जा सकता है। अगर मालिश के लिए अपना मूत्र पर्याप्त न हो, तो दूसरे स्वस्थ व्यक्ति का (जो उसी प्रकार का आहार लेता हो) मूत्र ले सकते हैं।
 किसी भी रोग में, स्वमूत्र Urine therapy का प्रयोग मालिश से प्रारंभ किया जाए तो पहले सप्ताह में ही फायदा झलकने लगता है। चार-पाँच दिन की मालिश के बाद शरीर की गरमी बाहर आने लगती है और शरीर पर लाल रंग की सफेद मुँह वाली फुंसियाँ निकल आती हैं। कभी-कभी इनमें खुजली बढ़ जाती है। कभी-कभी खुजलाने से बड़े-बड़े फोड़े निकल आते हैं। लेकिन इससे न तो घबराना चाहिए और न ही उसका बाहरी इलाज ही इलाज करना चाहिए। मूत्र मालिश का क्रम जारी रखना चाहिए। जरा जोर से मालिश कर देने पर वे फुंसियाँ फूट जाएँगी और जहाँ उनमें मूत्र दाखिल हुआ वहाँ वे शांत हो जाएँगी। बड़े फोड़े होने पर गरम मूत्र से दो-तीन बार सेंक कर दें।
 ऐसा इसलिए होता है कि मालिश से शरीर के छिद्रों द्वारा मूत्र जब अन्दर जाता है, तो छोटे-छोटे रोग भागने लगते हैं, जिसकी यह पहली प्रतिक्रिया है। खुलजी, दाद, एक्जिमा आदि तथा शरीर के अन्य सामान्य रोग केवल दस-पन्द्रह दिन की मालिश से दूर होने लगते हैं, किन्तु यदि गंभीर और जीर्ण रोग हों, जिसे सूई लेकर या दवा की पुड़िया खाकर हटाया नहीं जा सका है, उस असाध्य से असाध्य रोग को मिटाने के लिए स्वमूत्र और निर्मल पानी के साथ उपवास करना ही होगा।
 मालिश करने के दो घंटे बाद गुनगुने या ठंडे जल से स्नान करना चाहिए। किसी प्रकार के साबुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मालिश करने के बाद धूप स्नान लिया जा सकता है। मेहनत भी की जा सकती है। स्वमूत्र चिकित्सा में मूत्र मालिश Urine therapy का एक अद्वितीय महत्वपूर्ण स्थान है। उपवास में यदि नियमित मूत्र मालिश न की गई, तो उपवास का सारा असर जाता रहता है और वह निष्फल सिद्ध होता है।

परिचय

स्वमूत्र चिकित्सा का अर्थ है स्वयं के मूत्र द्वारा विभिन्न बीमारियों का उपचार। इस पद्धति में न तो रोगी की नाड़ी देखने की आवश्यकता है, न एक्स-रे लेने की। न थर्मामीटर लगाना है, न सूई की जरूरत। न दवा और पथ्य का सिरदर्द है और न धन या समय खर्च करने की अनिवार्यता। इसमें स्वमूत्र ही निदानकर्ता, चिकित्सक एवं दवा है। रोगी स्वयं बिना खर्च और बिना किसी परिश्रम के स्वमूत्र सेवन कर रोगमुक्त हो सकता है। स्वमूत्र चिकित्सा के माध्यम से कई असाध्य बीमारियों का उपचार भी संभव है।

इतिहास
स्वमूत्र चिकित्सा का इतिहास काफी पुराना है। भगवान शंकर के डामरतंत्रान्तर्गत शिवाम्बुकल्प की अमरौली मुद्रा का परिचायक एक श्लोक है जिसमें कहा गया है-
शिवाम्बु चामृतं दिव्यं जरारोगविनाशनम्‌।
तदादाय महायोगी कुर्याद्वै निजसाधनम्‌॥1॥
शिवाम्बु दिव्य अमृत है, बुढ़ापे एवं रोग का नाशक है। महायोगी उसका पान करके अपनी साधना करें।
इसी प्रकार दूसरा श्लोक है-
द्वादशाब्दप्रयोगेण जीवेदाचन्द्रतारकम्‌।
बाध्यते नैव सर्पाद्यैर्विषाद्यैर्न विहिंस्यते॥
न दह्येताऽग्निना क्वापि जलं तरति काष्ठवत्‌।2
बारह वर्ष तक शिवाम्बु का सेवन करने वाला चाँद-तारों की तरह दीर्घ अवधि तक जीता है। उसे सर्प आदि विषैले प्राणी पीड़ा नहीं पहुँचाते और न उस पर विष का असर होता है। वह आग से कभी नहीं जलता और पानी पर लकड़ी की तरह तैरने लगता है।
उपलब्ध ग्रंथों में प्राप्त उद्धरणों से यह स्पष्ट है कि आदिकालीन जम्बूदीप में मानव-मूत्र की चिकित्सा पद्धति प्रचलित थी और इसके आचार्य भगवान शंकर थे। कालान्तर में अरण्यांचलों में रहने तथा अपने निरन्तर अन्वेषणों के कारण ऋषि-कुल स्वमूत्र चिकित्सा के बजाय प्राकृतिक चिकित्सा की ओर झुका। 'जल, अग्नि, आकाश, मिट्टी और हवा' के विभिन्न प्रयोग कर उसने रोग से मुक्त होने की नई विधि बनाई। उसमें मूत्र चिकित्सा जैसी चमत्कारिता, पवित्रता तथा उपादेयता का अभाव रहा, इसलिए प्रकृति प्रदत्त जड़ी-बूटियों, खनिज पदार्थों आदि के गुणकारी तत्वों में पंचभूतों की खोज की गई, जिससे 'भेषज चिकित्सा' प्रणाली अविर्भूत हुई, जो आज आयुर्वेद के नाम से जानी जाती है।
भावप्रकाश में स्वमूत्र की चर्चा करते हुए इसे रसायन, निर्दोष और विषघ्न बताया गया है। डामरतन्त्र में प्राप्त उद्धरणों के अनुसार भगवान शंकर ने माता पार्वती को इसकी महिमा समझाई और कहा कि स्वशरीर के लिए स्वमूत्र अमृत है। इसके प्राशन से मनुष्य निरोग, तेजस्वी, बलिष्ठ, कांतिवान, निरापद तथा दीर्घायु को प्राप्त होता है। अथर्ववेद, हठयोगप्रदीपिका, हारीत, वृद्धवाग्भट्ट, योगरत्नाकर, जैन, बौद्ध, ईसाई आदि धर्मों के अनेक ग्रंथों में स्वमूत्र चिकित्सा की चर्चा है।
अघोरपंथी अवधूतों तथा तांत्रिकों की परम्परागत स्वमूत्र प्राशन विधि तथा स्वमूत्र मालिश क्रिया ने स्वमूत्र चिकित्सा को आज तक जीवित रखकर न केवल मानव जाति का उपकार किया है, वरन चिन्तकों के समक्ष यह यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया है कि वे इस चिकित्सा प्रणाली को पुनः प्रतिष्ठित करने की अगुआई करें।
सोलहवीं शताब्दी के सूफी कवियों और एशिया तथा यूरोप के कुछ वैज्ञानिकों ने स्वमूत्र चिकित्सा को लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया, मगर उन्हें सफलता नहीं मिली। मगर इतना निर्विवाद है कि आज भी शीत प्रदेश तथा पीत प्रदेश में रहने वाले लोग बड़ी संख्या में हैं, जो स्वमूत्र प्राशन से अपने को निरोग रखते हुए दीर्घ जीवन जीते हैं।
तिरुवनंतपुरम स्थित गवर्नमेंट आयुर्वेद कॉलेज द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक आयुर्वेदिक नारियल चटाई से लैस कमरों में रहने से कई बीमारियाँ दूर हो जाती हैं। इस शोध के अंतर्गत शोधकर्ताओं ने लोगों को दो समूहों में बाँटा। कुछ लोगों को आयुर्वेदिक तत्वों से युक्त नारियल रेशों से बनी चटाइयों से फिट कमरों में रखा गया, जबकि कुछ को साधारण कमरों में।
कुछ कमरों की आंतरिक दीवारों और फर्श को इन चटाइयों से लैस किया गया, जबकि दूसरे कमरों को इससे वंचित रखा गया। 36 रोगियों पर यह शोध किया गया। 19 रोगियों को आयुर्वेदिक चटाइयों वाले कमरों में रखा गया जबकि शेष को सामान्य कमरों में।
 इन चटाइयों को कई तरह के आयुर्वेदिक तत्वों के घोल में डालकर सुखाया गया था। यहाँ तक कि बिस्तर और तकियों को भी कुछ खास तरह की जड़ी-बूटियों के घोल में डुबोकर सुखाया गया। फिर उन पर रोगियों को सोने के लिए कहा गया। दोनों तरह के रोगियों को एक ही तरह की दवाई और भोजन दिया गया। जिन रोगियों को आयुर्वेदिक कमरों में रखा गया, उनमें कई सकारात्मक बदलाव देखे गए।
आयुर्वेद के एक डॉक्टर एन. विश्वनाथन ने दावा किया कि जो रोगी चर्मरोग से ग्रस्त थे और जिन्हें आयुर्वेदिक कमरों में रखा या था, वे गैर-आयुर्वेदिक कमरों में रहने वाले लोगों की तुलना में काफी कम समय में चंगे हो गए। वे इन आयुर्वेदिक कमरों में दो सप्ताह रहने के बाद स्वस्थ हो गए, जबकि सामान्य आहार और दवा लेने वाले दूसरे रोगियों को और 26 दिनों तक स्वस्थ होने के लिए इंतजार करना पड़ा। उनके मुताबिक गठिया, उच्च रक्तचाप आदि जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों पर यह आयुर्वेदिक तकनीकी अधिक असर दिखाती है।
 अतः करण रूप मे इसका प्रयोग जहा इसको तुरंत विसर्जित वाले का सेवन किया जाता है वही बाह्य रूप मे इसका प्रयोग तुरंत विसर्जित से लेकर 9 दिन तक पुराने वाले का प्रयोग किया जाता है इसमे प्रतिदिन एक बोतल भरतेहुए 9 बोतल भर लेते हैं 10 वे दिन ,पहली दिन वाली बोतल अर्थात 9 दिन पुराने मूत्र से शरीर पर चर्म रोग ,अन्य दर्दों वाले स्थानो पर मालिश लगातार 15-20 दिन की जाए तो चर्म व अन्य रोग दूर हो जाते हैं वही तुरंत विसर्जित वाले मूत्र को आंख,कान दर्द, जैसे अनेक रोगो मे इसकी बूंद डालकर इसका प्रयोग किया जा सकता है 
  यदि बॉल झडते है तब इससे इनको धोया जाए तो उनका झड़ना बंद हो जाता है परहेज के नाम पर मात्र साबुन शेम्पू का प्रयोग नही करना है खाने के नाम पर मात्र सात्विक भोजन करना है ये तो मात्र कुछ उदहारण है मात्र उपरोक्त सरल विधि विधान से स्वमूत्र चिकित्सा द्वारा लगभग सभी रोगों का इलाज है इस पद्धति मे पहले रोग अपने चरम अवस्था मे आकर धीमे-धीमे उसका शमन होने लगता है यदि सामान्य अवस्था मे स्वमूत्र चिकित्सा को किया जाए तो तो शरीर उत्तम स्वास्थ्य को प्राप्त करता जाता है तब स्वमूत्र को जिसे हम सबसे घ्रृणित व त्याज्य मानते है वह तो हमारी सभी रोगो की रामवाण दवा है अर्थात एक अनार( स्वमूत्र),सौ बीमार की दवा है यह स्वमूत्र चिकित्सा मानव के लिए ही नही ,पशुयों के लिए भी उतनी उपयोगी है जितनी मानव के लिए .वैसे दवा दवे(रहस्य) की होती है और प्राण के मूल्य पर ,औषधि का हर रूप स्वीकार होता है तब क्या समाज मे स्वमूत्र का औषधि रूप प्रचलित हो पाएगा ? जिसको कभी हमारे भूतपूर्व प्रधान मंत्री मोरार जी देसाई ने जीवन जल का नाम दिया था अर्थात कलियुग का गंगाजल.
 स्वमूत्र चिकित्सा का अर्थ है स्वयं के मूत्र द्वारा विभिन्न बीमारियों का उपचार। इस पद्धति में न तो रोगी की नाड़ी देखने की आवश्यकता है, न एक्स-रे लेने की। न थर्मामीटर लगाना है, न सूई की जरूरत। न दवा और पथ्य का सिरदर्द है और न धन या समय खर्च करने की अनिवार्यता। इसमें स्वमूत्र ही निदानकर्ता, चिकित्सक एवं दवा है। रोगी स्वयं बिना खर्च और बिना किसी परिश्रम के स्वमूत्र सेवन कर रोगमुक्त हो सकता है।
 स्वमूत्र चिकित्सा के माध्यम से कई असाध्य बीमारियों का उपचार भी संभव है।स्वमूत्र चिकित्सा निम्न छह प्रकार से की जाती है|स्वमूत्र से सारे शरीर की मालिश स्वमूत्रपान,केवल स्वमूत्र और पानी के साथ उपवास,स्वमूत्र की पट्टी रखना,स्वमूत्र के साथ अन्य प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग|स्वमूत्र को सूर्य किरण देकर प्रावीष्ठ बड़े फोड़े, चमड़ी की सूजन, चीरे, जख्म, फफोले और आग के घाव आदि को छोड़कर शेष सभी रोगों के उपचार का आरंभ स्वमूत्र मालिश से करना चाहिए। मालिश के लिए 36 घंटे से सात-आठ दिन का पुराना स्वमूत्र ही अत्यधिक फायदेमंद सिद्ध होता है। पुराना होने पर इसमें अमोनिया नामक द्रव्य बढ़ जाता है। अमोनिया के कारण यह मूत्र शरीर के लाखों लाख छिद्रों में जल्दी से और ज्यादा परिमाण में प्रविष्ठ>हो जाता है।
 प्रत्येक व्यक्ति को मालिश के लिए प्रतिदिन करीब आधा लीटर स्वमूत्र की आवश्यकता होती है। सात बड़ी शीशियों में सात दिन के पुराने स्वमूत्र का संग्रह क्रम में रखा जाए। शीशियों का मुँह हमेशा बन्द रखा जाए, ताकि उसमें कोई भी जीव-जन्तु मरने न पाए। मानव मूत्र कृमिनाशक है। उसमें कीड़े नहीं पड़ते। शीशियाँ इस क्रम में रखी जाएँ, ताकि जो शीशी खाली हो जाए वह भरती जाए। सर्दी की ऋतु में या मनुष्य की प्रकृति के अनुसार रखा हुआ मूत्र थोड़ा गरम भी किया जा सकता है।पहले रखे हुए स्वमूत्र में से एक पाव मूत्र एक कटोरी में डालकर तलवे से कमर तक मालिश करके सुखा दें और जो गंदा अंश कटोरी में बचे उसे गिरा दें। फिर एक पाव लेकर कमर से सिर तक मालिश करनी चाहिए। मालिश हलके हाथ से करनी चाहिए, ताकि रोगी या मालिश कराने वाले को कष्ट न हो। हाथ ऊपर-नीचे ले जाना चाहिए। मालिश कितनी देर की जाए यह आवश्यकतानुसार तय किया जा सकता है। अगर मालिश के लिए अपना मूत्र पर्याप्त न हो, तो दूसरे स्वस्थ व्यक्ति का (जो उसी प्रकार का आहार लेता हो) मूत्र ले सकते हैं।सभी रोग में, स्वमूत्र का प्रयोग मालिश से प्रारंभ किया जाए तो पहले सप्ताह में ही फायदा झलकने लगता है।
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10.1.22

गोखरू है किडनी रोगों की महोषधि:Gokhru herb

 


किड्नी के लिए राम बाण औषधि है गोखरू Gokhru herb  | बंद किड्नी को चालू करता है| किड्नी मे स्टोन को टुकड़े टुकड़े करके पेशाब के रास्ते बाहर निकल देता है| क्रिएटिन ,यूरिया को तेजी से नीचे लाता है ,पेशाब मे जलन हो पेशाब ना होती है ,इसके लिए भी यह काम करता है इसके बारे मे आयुर्वेद के जनक आचार्य श्रुशूत ने भी लिखा इसके अलावा कई विद्वानो ने इसके बारे मे लिखा है इसका प्रयोग हर्बल दवाओं मे भी होता है आयुर्वेद की दवाओं मे भी होता है यह स्त्रियो के बंध्यत्व मे तथा पुरुषों के नपुंसकता मे भी बहुत उपयोगी होता है इस दवा का सेवन कई लोगो ने किया है जिनका क्रिएटिन 10 पाईंट से भी अधिक था उन्हे भी 15 दिनो मे संतोषप्रद लाभ हुआ |अत: जिन लोगो को किडनी की प्राब्लम है वो इसका सेवन करे तो लाभ होना निश्चित है|
गोखरू  Gokhru herb  की दो जातियां होती हैं बड़ा गोखरू और छोटा गोखरू। औषधि के रूप में छोटा गोखरू प्रयोग होता है। औषधि के रूप में पौधे की जड़ और फल का प्रयोग होता है।

गोखरू के आयुर्वेदिक गुण Gokhru herb 

गोखरू के गुणकर्म संबंधी मत-
*आचार्य चरक ने गोक्षुर को मूत्र विरेचन द्रव्यों में प्रधान मानते हुए लिखा है-गोक्षुर को मूत्रकृच्छानिलहराणाम् अर्थात् यह मूत्र कृच्छ (डिसयूरिया) विसर्जन के समय होने वाले कष्ट में उपयोगी एक महत्त्वपूर्ण औषधि है । आचार्य सुश्रुत ने लघुपंचकमूल, कण्टक पंचमूल गणों में गोखरू का उल्लेख किया है । अश्मरी भेदन (पथरी को तोड़ना, मूत्र मार्ग से ही बाहर निकाल देना) हेतु भी इसे उपयोगी माना है ।
श्री भाव मिश्र गोक्षुर को मूत्राशय का शोधन करने वाला, अश्मरी भेदक बताते हैं व लिखते हैं कि पेट के समस्त रोगों की गोखरू सर्वश्रेष्ठ दवा है । वनौषधि चन्द्रोदय के विद्वान् लेखक के अनुसार गोक्षरू Gokhru herb  मूत्र पिण्ड को उत्तेजना देता है, वेदना नाशक और बलदायक है ।


गोखरू के औषधीय उपयोग-

*पथरी रोग :- 

पथरी रोग में गोक्षुर Gokhru herb  के फलों का चूर्ण शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम दिया जाता है । महर्षि सुश्रुत के अनुसार सात दिन तक गौदुग्ध के साथ गोक्षुर पंचांग का सेवन कराने में पथरी टूट-टूट कर शरीर से बाहर चली जाती है । मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी हो तो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं ।पथरी की चिकित्सा में सबसे महत्वपूर्ण औषधी है गोखरू :- पथरी के रोगी को इसके बीजो का चूर्ण दिया जाता है तथा पत्तों का पानी बना के पिलाया जाता है | इसके पत्तों को पानी में कुछ देर के लिए भिगो देते है | उसके बाद पतो को १५ बीस बार उसी पानी में डुबोते है और निकालते है इस प्रक्रिया में पानी चिकना गाढा लार युक्त हो जाता है | यह पानी रोगी को पिलाया जाता है स्वाद हेतु इसमे चीनी या नमक थोड़ी मात्रा में मिलाया जा सकता है | यह पानी स्त्रीयों में श्वेत प्रदर ,रक्त प्रदर पेशाब में जलन आदि रोगों की राम बाण औषधी है | यह मूत्राशय में पडी हुयी पथरी को टुकड़ों में बाट कर पेशाब के रास्ते से बाहर निकाल देता है |

*सुजाक रोग :-

 सुजाक रोग (गनोरिया) में गोक्षुर को घंटे पानी में भिगोकर और उसे अच्छी तरह छानकर दिन में चार बार 5-5 ग्राम की मात्रा में देते हैं । किसी भी कारण से यदि पेशाब की जलन हो तो गोखरु के फल और पत्तों का रस 20 से 50 मिलीलीटर दिन में दो-तीन बार पिलाने से वह तुरंत मिटती है । प्रमेह शुक्रमेह में गोखरू चूर्ण को 5 से 6 ग्राम मिश्री के साथ दो बार देते हैं । तुरंत लाभ मिलता है ।

*प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने में :-

 मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना (युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं ।

*प्रदर में, 

अतिरिक्त स्राव में, स्री जनन अंगों के सामान्य संक्रमणों में गोखरू एक प्रति संक्रामक का काम करता है । स्री रोगों के लिए 15 ग्राम चूर्ण नित्य घी व मिश्री के साथ देते हैं ।
गोक्षुर चूर्ण प्रोस्टेट बढ़ने से मूत्र मार्ग में आए अवरोध को मिटाता है, उस स्थान विशेष में रक्त संचय को रोकती तथा यूरेथ्रा के द्वारों को उत्तेजित कर मूत्र को निकाल बाहर करता है । बहुसंख्य व्यक्तियों में गोक्षुर Gokhru herb  के प्रयोग के बाद ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं रह जाती । इसे योग के रूप न देकर अकेले अनुपान भेद के माध्यम से ही दिया जाए, यही उचित है, ऐसा वैज्ञानिकों का व सारे अध्ययनों का अभिमत है ।

*नपुंसकता 

में, बराबर मात्रा में गोखरू के बीज का चूर्ण और तिल के बीज sesame seeds powder के चूर्ण, को बकरी के दूध और शहद के साथ दिया जाता है।
*धातु की कमजोरी में इसके ताजे फल का रस 7-14 मिलीलीटर या 14-28 मिलीलीटर सूखे फल के काढ़े, को दिन में दो बार दूध के साथ लें।

*मूत्रकृच्छ painful urination

 में 5g गोखरू चूर्ण Gokhru herb  को दूध में उबाल कर पीने से आराम मिलता है। यह मूत्र की मात्रा बढ़ाने में मदद करता है और सूजन कम करता है।
*मूत्रघात urinary retention में 3-6 ग्राम फल का पाउडर, पानी के साथ दिन में दो बार लें।
रक्तपित्त में गोखरू के फल को 100-200 मिलीलीटर दूध में उबाल कर दिन में दो बार लें।
*धातुस्राव, स्वप्नदोष nocturnal fall, प्रमेह, कमजोरी weakness, और यौन विकारों sexual disorders में 5 ग्राम गोखरू चूर्ण को बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करें।
*यौन शक्ति को बढ़ाने के लिए, गोखरू, शतावर, नागबला, खिरैटी, असगंध, को बराबर मात्रा में कूट कर, कपड़छन कर लें और रोज़ १ छोटा चम्मच दूध के साथ ले। इसको ४० दिन तक लगातार लें।
*अश्मरी urinary stones में 5 ग्राम गोखरू चूर्ण (फल का पाउडर) शहद के साथ दिन में दो बार, पीछे से गाय का दूध लें।

गोखरू Gokhru herb  का काढ़ा बनाने की विधि:

250 ग्राम गोखरू लेकर 4 लीटर पानी मे उबालिए जब पानी एक लीटर रह जाए तो पानी छानकर एक बोतल मे रख लीजिए|इस काढे को सुबह शाम हल्का सा गुनगुना करके 100 ग्राम के करीब पीजिए शाम को खाली पेट का मतलब है दोपहर के भोजन के 5, 6 घंटे के बाद काढ़ा पीने के एक घंटे के बाद ही कुछ खाइए और अपनी पहले की दवाई ख़ान पान का रूटीन पूर्ववत ही रखिए 15 दिन के अंदर यदि आपके अंदर अभूतपूर्व परिवर्तन हो जाए तो चिकित्सक की सलाह लेकर धीरे धीरे दवा बंद कर दीजिए| जैसे जैसे आपके अंदर सुधार होगा काढे की मात्रा कम कर सकते है या दो बार की बजाए एक बार भी कर सकते है |मेरा निवेदन है कि खराब किडनी रोगी को किडनी ट्रांसप्लांट करवाने के पहिले यह औषधि जरूर सेवन करके चमत्कारिक परिणाम की उम्मीद करनी चाहिए|

विशिष्ट परामर्श-


किडनी फेल रोगी के बढे हुए क्रिएटनिन के लेविल को नीचे लाने और गुर्दे की क्षमता बढ़ाने में हर्बल औषधि सर्वाधिक सफल होती हैं| किडनी ख़राब होने के लक्षण जैसे युरिनरी फंक्शन में बदलाव,शरीर में सूजन आना ,चक्कर आना और कमजोरी,स्किन खुरदुरी हो जाना और खुजली होना,हीमोग्लोबिन की कमी,उल्टियां आना,रक्त में यूरिया बढना आदि  में दुर्लभ जड़ी-बूटियों से निर्मित यह औषधि रामबाण की तरह असरदार सिद्ध होती है|डायलिसिस  पर   आश्रित रोगी भी लाभान्वित हुए हैं| औषधि हेतु  वैध्य दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क किया जा सकता है|

9.1.22

हीमोग्लोबिन बढ़ाने के घरेलू उपाय: Increase Hemoglobin

 


हीमोग्‍लोबिन लाल रक्‍त कोशिकाओं में मौजूद लौह समृद्ध प्रोटीन है जो पूरे शरीर में आक्‍सीजन पहुंचाने का काम करता है। वयस्‍क पुरुषों के शरीर में 14 से 18 ग्राम / डीएल और वयस्‍क महिलाओं के लिए 12 से 16 ग्राम / डीएल तक हीमोग्‍लोबिन को बनाए रखने की आवश्‍यकता होती है। अगर आपका शरीर जरूरत के अनुसार लौह तत्व यानी आयरन नहीं ले रहा है तो यह आपकी पूरी सेहत पर असर डालता है. इससे एनिमिया (Anaemia)  khoon ki kami  की शिकायत हो सकती है. एनिमिया के लक्षणों (Anaemia Symptoms) में आलस, चक्कर आना, सिरदर्द रहना वगैरह शामिल हैं. आइए जाने हीमोग्‍लोबिन कैसे बढ़ाएं और खून बढ़ाने के लिए क्या खाना चाहिए।

हीमोग्लोबिन बढ़ाने के घरेलू उपाय

जब हमारे शरीर में फोलिक एसिड की कमी हो जाती है तो शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा भी कम हो जाती है. इसकी कमी को पूरा करने के लिए हमें खाने में दाल, मटर, बंदगोभी, बादाम और केले का अवश्य इस्तेमाल करना चाहिए.
अमरुद, पपीता, संतरा और अंगूर विटामिन सी की कमी को पूरा करते हैं. विटामिन सी की कमी पूरी होते ही आपके हीमोग्लोबिन की कमी  khoon ki kami  भी पूरी हो जाती है.
किशमिश, बादाम, मांस और मछली आयरन के सबसे प्रमुख स्रोत होते हैं. इसके सेवन से हम जल्द ही खून की कमी को दूर कर सकते हैं.
मेथी, पालक, चावल, दाल, बाजरा, मकई आदि जैसे खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल करके हम हीमोग्लोबिन की कमी को दूर कर सकते हैं.

अनार- 

गर्भावस्‍था के दौरान महिलाओं में खूनी की कमी अक्‍सर देखी जाती है जो कि सीधे ही हीमोग्‍लोबिन की कमी को बताता है। इस स्थिति में महिलाओं के शरीर में कैल्शियम और आयरन दोनो की कमी होती है। लेकिन आप अनार का सेवन कर इस समस्‍या का समाधान कर सकते हैं। अनार के पौष्टिक तत्‍व रक्‍त में हीमोग्‍लोबिन को बढ़ावा देने में मदद करते है। एक मध्‍यम आकार के अनार को आप अपने भोजन के साथ शामिल कर सकते हैं या फिर आप इसे अपने नाश्‍ते के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं। आप अपने नियमित दूध के गिलास में अनार (Pomegranate) के सूखे दाने के 2 चम्‍मच पाउडर को मिलाकर भी उपयोग कर सकते हैं। यह आपके शरीर में हीमोग्‍लोबिन के स्‍तर को बढ़ाने में मदद करता है।

 सेब- 

प्रतिदिन यदि एक सेव का सेवन किया जाता है तो यह आपके शरीर में हीमोग्‍लोबिन की उचित मात्रा को बनाए रखने में मदद करता है। शरीर में हीमोग्‍लोबिन बढ़ाने के लिए आयरन की आवश्‍यकता होती है जो कि सेब (Apple) में पर्याप्‍त मात्रा में उपलब्‍ध रहता है। यदि संभव हो पाये तो आपको प्रतिदिन 1 हरे सेब का उपभोग करना चाहिए। आप सेब के जूस के साथ चुकंदर के जूस का भी उपयोग कर सकते हैं। इस मिश्रण को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए आप इसमें अदरक और नींबू के रस को मिलाकर भी सेवन कर सकते हैं। यह ध्‍यान रखें कि हीमोग्‍लोबिन आपके स्‍वस्‍थ्‍य शरीर के लिए बहुत ही आवश्‍यक है। इसलिए शरीर में हीमोग्‍लोबिन बढ़ाने  khoon badhana का हर संभव प्रयास जरूरी है। 

खाएं फलियां- 

अगर आप मांसाहार (non-veg) का उपयोग नहीं करते हैं तो आपको अपने भोजन में दूसरे लौह तत्‍व से भरपूर भोजन को शामिल करना आवश्‍यक है। इसके लिए आपके पास बहुत सारे विकल्‍प हैं जिनमें फलियां भी शामिल हैं जो आपके शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं। आप सोयाबीन, राजमा, चने, मटर मूंगफली और जितनी भी फलियां होती हैं उनका सेवन कर सकते हैं। इनमें आपके शरीर को स्‍वस्‍थ्‍य रखने वाले सभी पोषक तत्‍व शामिल होते हैं। जैसे यदि सोयाबीन की बात की जाए तो 100 ग्राम सोयाबीन में 15.7 मिलीग्राम आयरन, 375 मिलीग्राम फोलेट और 6 मिलीग्राम विटामिन सी होता है।
 

चुकंदर- 

चुकंदर भी एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जिसमें आयरन की भरपूर मात्रा होती है साथ ही इसमें फोलिक एसिड के साथ फाइबर और पोटेशियम भी भरपूर मात्रा में होते हैं जो हमारे शरीर के लिए अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण होते हैं। ये पोषक तत्‍व हमारे शरीर में हीमोग्‍लोबिन की मात्रा को बढ़ाने  khoon badhana में मदद करते हैं। आप चुकंदर का उपयोग अपनी सलाद या विभिन्‍न प्रकार के व्‍यंजनों में कर सकते हैं। आप चाहें तो इसका जूस (Beet root juice) भी ले सकते हैं जो आपके शरीर में लाल रक्‍तकोशिकाओं के उत्‍पादन और उनकी संख्‍या को बढ़ाने में मदद कर सकता है। 

आयरन रिच फूड्स- 

कई अध्‍ययनों से यह साबित हो चुका है कि लोहे की कमी (Iron deficiency) के कारण ही होमोग्‍लोबिन के स्‍तर में कमी आती है। हीमोग्‍लोबिन के स्‍तर को बढ़ाने के लिए आयरन एक महत्‍वपूर्ण तत्‍व है। आप अपने और अपने बच्‍चों में खून की कमी को दूर करने के लिए कुछ अच्‍छे लौह आधारित खाद्य पदार्थ जैसे कि मांस, झींगा, टोफू, पालक, बादाम, शतावरी (Asparagus) आदि का उपयोग कर सकते हैं। इनके अलावा आप लौह पूरक भी ले सकते हैं। इनका उचित मात्रा में सेवन करने के लिए आप अपने डॉक्‍टर से सलाह लें, क्‍योंकि जरूरत से ज्‍यादा लोहे की मात्रा (Excess iron) आपके शरीर के लिए नुकसान दायक भी हो सकती है। 

खाएं स्‍टार्च और अनाज-

आप अपने शरीर में हीमोग्‍लोबिन स्‍तर बढ़ाने के पौष्टिक खाद्य पदार्थों का चुनाव कर सकते हैं जिनमें चोकर युक्‍त चावल (Rice bran), गेंहू और जई जो कि स्‍टार्च के अच्‍छे स्रोत माने जाते हैं। इनके अलावा आप पूरे अनाजों (Whole grains) का भी सेवन कर सकते हैं जो आपके शरीर में खून बढ़ाने  khoon badhana में सहायक होते हैं इनमें आप सभी प्रकार की दालों को शामिल कर सकते हैं। शरीर में लोहे की कमी को दूर करने के लिए आप ब्राउन राइस (Brown rice) का भी उपयोग कर सकते हैं।
 सब्जियां – 

शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य (Physical health) को बनाए रखने और शरीर में हीमोग्‍लोबिन के स्‍तर को बढ़ाने के लिए सब्जियों का चुनाव करना बहुत ही आसान है। क्‍योंकि लगभग सभी सब्जियों में पर्याप्‍त मात्रा में पोषक तत्‍व मौजूद रहते हैं। शरीर में खून बढ़ाने के लिए आप पालक, ब्रोकोली (Broccoli), आलू, समुद्री शैवाल और चुकंदर आदि का उपयोग कर सकते हैं जो आसानी से उपलब्‍ध भी हो जाते हैं। शरीर में हीमोग्‍लोबिन बढ़ाने के लिए पालक सबसे अच्‍छा विकल्‍प होता है क्‍योंकि इसमें आयरन (Iron) बहुत ही अच्‍छी मात्रा में होता है। 
   
जड़ी बूटियां – 

कुछ विशेष प्रकार की जड़ी-बूटियों का उपयोग करके भी शरीर में हीमोग्‍लोबिन के स्‍तर को बढ़ाया जा सकता है। यद्यपि कुछ मसाले जैसे अजवायन, पुदीना और जीरा आदि भी आयरन के अच्‍छे स्रोत माने जाते हैं जिनका नियमित सेवन करने से आपके शरीर में लोहे की दैनिक जरूरत को पूरा किया जा सकता है। इसके अलावा भी आप कुछ अन्‍य जड़ी बूटियों (Herbs) का इस्‍तेमाल कर सकते हैं जो आपके लिए बहुत ही फायदेमंद हो सकते हैं जैसे कि शतावरी या बिच्छू बूटी (Nettle Leaf) आदि। ये जड़ी बूटियां आपके हीमोग्‍लोबिन के स्‍तर को बढ़ाने में मदद करती हैं। नेटल (बिच्छू बूटी) के पत्‍तों में लोहा, विटामिन बी और सी के साथ बहुत से विटामिन होते हैं जो लाल रक्‍त कोशिकाओं को बढ़ाने में मदद करते हैं। 
 


व्‍यायाम करें – 

आप अपनी दिनचर्या में कुछ प्रकार के व्‍यायाम शामिल करें। जब आप व्‍यायाम करते हैं, तो आपके पूरे शरीर में ऑक्‍सीजन की ज्‍यादा आवश्‍यकता होती है जिसे पूरा करने के लिए शरीर द्वारा अधिक लाल रक्‍त कोशिकाओं का उत्‍पादन किया जाता है। आप व्‍यायाम अपके शरीर को तंदुस्‍त और क्रियाशील बनाए रखने में मदद करता है। इसलिए अपने शरीर मे हीमोग्‍लोबिन के स्‍तर को बढ़ाने के लिए आप नियमित व्‍यायाम शुरु करें। 

आयरन अवरोधकों से बचें- 

यदि आपके शरीर में हीमोग्‍लोबिन की कमी है तो आपको ऐसे खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए जो आपके शरीर में लोहे के अवशोषण को रोकने का काम करते हैं। यदि आप ऐसे खाद्य पदार्थों का नियमित रूप से सेवन करते हैं तो यह आपके शरीर में हीमोग्‍लोबिन के स्‍तर को कम कर सकता है। ऐसे कुछ खाद्य पदार्थों में शामिल हैं : कॉफी चाय शीतल कार्बनिक पेये जैसे कोला आदि वाइन बीयर आदि .
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आंतों की कमजोरी के घरेलू उपाय:Anton ki kamjori

 


आंत हमारे शरीर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. हम जो भी खाते हैं वो पचने के बाद हमारे आंतों से होकर ही गुजरता है. हमारे पचे हुए भोजन का अंतिम हिस्सा आंत में अवशिष्ट पदार्थ के रूप में तब तक जमा रहता हैं जब तक उसे मल के रूप में शरीर से निकाल नहीं दिया जाता. यही कारण है कि आंतों का स्‍वस्‍थ होना बेहद आवश्यक है. अब तक आप ये समझ ही चुके होंगे कि हमारे शरीर में आंत आहार नली का ही एक भाग है जो कि पेट से गुदा तक फैली होती है. इसलिए इसके अस्‍वस्‍थ होने का सीधा असर हमारे स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ता है.

 हमारी पाचन प्रणाली या शरीर के आंतरिक अंगों में आंतों का विशेष स्‍थान है। आंतों की कमजोरी  anton ki kamjori  का सीधा प्रभाव हमारे स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ता है क्‍योंकि यह पाचन तंत्र का अभिन्‍न अंग है। हमारे द्वारा खाए जाने वाले सभी खाद्य पदार्थ पाचन प्रक्रिया के द्वारा इन्‍हीं आंतों से होकर गुजरते हैं। पाचन प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद अपशिष्‍ट पदार्थ आंतों में तब तक जमा रहता है जब तक इसे मल के रूप में बाहर नहीं कर दिया जाता है। इससे स्‍पष्‍ट होता है कि आंत हमारी आहार प्रणाली का एक हिस्‍सा है जो पेट और गुदा से जुड़ा हुआ है। लेकिन जब हमारी आंत अस्‍वस्‍थ होती है तब हमें कई प्रकार की पाचन संबंधी समस्‍याओं का सामना करना पड़ सकता है।
आंतों का सही तरीके से काम न करना या अस्‍वस्‍थ रहना ही आंतों की कमजोरी कहलाता है। यह एक बहुत ही आम समस्‍या है जो लगभग हर व्‍यक्ति की बड़ी आंता को प्रभावित करता है। आंतों की कमजोरी होने के कारण कब्‍ज, दस्‍त, गैस, पेट की सूजन, पेट दर्द और ऐंठन जैसी समस्‍याएं होती हैं। 
  आंतों का कमजोर होना  anton ki kamjori  ऐसी समस्‍या है जो व्‍यक्ति को लंबे समय तक प्रभावित करता है। यदि इस प्रकार की समस्‍या किसी व्‍यक्ति को लंबे समय तक बनी रहती है तो आप इसे घरेलू उपाय और कुछ जीवनशैली परिवर्तन के माध्‍यम से दूर कर सकते हैं। कुछ मामलों में आपको डॉक्‍टरी परामर्श और दवाओं की भी आवश्‍यकता हो सकती है।
 आंतों के कमजोर anton ki kamjori   होने या अस्‍वस्‍थ रहने के सही और सटीक कारणों के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। लेकिन अध्‍ययनों से पता चलता है कि आंतों के खराब स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बहुत से कारक जिम्‍मेदार होते हैं। आंतों की कमजोरी का प्रमुख कारण सुस्‍त और निष्क्रिय जीवन शैली होती है। क्‍योंकि ऐसी स्थिति में भोजन करने के बाद शारीरिक परिश्रम की कमी के कारण भोजन देर से पचता है जिससे आंतों की कार्य क्षमता में कमी आती है। लेकिन यदि आप अपने दैनिक जीवन नियमित योग और व्‍यायाम करते हैं तो इस प्रकार की समस्‍या से बच सकते हैं। आइए जाने आंतों को स्‍वस्‍थ रखने और आंतों की कार्य क्षमता को बढ़ाने के घरेलू उपाय क्‍या हैं। 

आंतों की कमजोरी anton ki kamjori  के घरेलू उपाय 

यदि आप भी पाचन संबंधी समस्‍याओं से परेशान हैं तो यह आपकी आंतों की कमजोरी का कारण हो सकता है। लेकिन आपको घबराने की आवश्‍यकता नहीं है लेकिन इस समस्‍या का समय पर इलाज किया जाना आवश्‍यक है। आंतों का कमजोर होना या पाचन समस्याओं का होना आपके खराब खान-पान, गंदी जीवनशैली और सुस्‍त दिनचर्या होता है। लेकिन आप कुछ आसान से टिप्‍स और घरेलू उपाय को अपना कर अपनी आंतों को मजबूती दिला सकते हैं। ऐसा करने के लिए आपको आंत की सफाई करने वाले खाद्य पदार्थों की जानकारी होना आवश्‍यक है। आइए जाने हम अपनी आंतों की कमजोरी को दूर करने के लिए किन घरेलू उपाय को अपना सकते हैं।

पर्याप्‍त पानी पिएं

पाचन संबंधी समस्‍याओं या आंत की कमजोरी  anton ki kamjori  का प्रमुख कारण पानी की कमी होता है। यदि आप अपनी आंतों की मजबूती या आंतों का बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य चाहते हैं तो पर्याप्‍त मात्रा में पानी का सेवन करें। पानी की उचित मात्रा पाचन संबंधी समस्‍याओं का सबसे अच्‍छा घरेलू उपाय है। क्‍योंकि शरीर को खाद्य पदार्थ पचाने और उनसे पोषक तत्‍वों की प्राप्‍त करने में पानी अहम भूमिका निभाता है। शरीर में पानी की कमी के कारण मल के कड़े होने और अन्‍य पाचन संबंधी समस्‍याओं की संभावना बढ़ जाती है।
लेकिन शा‍रीरिक गतिविधि, उचित व्‍यायाम, पौष्टिक भोजन और पर्याप्‍त पानी का नियमित सेवन आपकी आंतों को स्‍वस्‍थ रखता है।

अदरक

प्राचीन समय से ही पाचन संबंधी समस्‍याओं के इलाज में अदरक का उपयोग किया जा रहा है। यदि आप कमजोर आंत वाले  intestinal weakness रोगी हैं तब भी अदरक आपके लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। क्‍योंकि अदरक में ऐसे गुण होते हैं जो आंतों की उचित सफाई में सहायक होते हैं। अदरक में जिंजेरोल (gingerols) नामक एक घटक होता है। यह पेट के संकुचन को गति देने में सहायक होता है। जिससे उन खाद्य पदार्थों को स्‍थानां‍तरित करने में मदद मिली है जो पेट के माध्‍यम से अधिक तेजी से अपच पैदा करते हैं। इसके अलावा अदरक में ऐसे घटक भी होते हैं जो मतली, उल्‍टी और दस्‍त जैसे लक्षणों को भी कम कर सकते हैं। आप भी अपनी आंतों की कमजोरी के इलाज के लिए अदरक का उपयोग कर सकते हैं।

पुदीना

मुंह की बदबू दूर करने के साथ ही पुदीना आपके बेहतर पाचन के लिए भी अच्‍छा होता है। आप अपनी कमजोर आंतों के घरेलू उपचार के रूप में पुदीना का भी उपयोग कर सकते हैं। पुदीना का इस्‍तेमाल उल्‍टी और दस्‍त को रोकने में भी किया जाता है। शोध के अनुसार पुदीना आंतों में मांसपेशीय ऐंठन को और आंतों की सूजन को कम करने में सहायक होता है। इसके अलावा यह गैस, अपच और पेट दर्द जैसी समस्‍याओं को ठीक कर सकता है।

फाइबर युक्‍त खाद्य

पेट संबंधी समस्‍याओं के दौरान रोगी को वसायुक्‍त और संसाधित खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। क्‍योंकि इस प्रकार के खाद्य पदार्थ कब्‍ज और अन्‍य समस्‍याओं को बढ़ा सकते हैं। इस प्रकार की समस्‍याओं से बचने के लिए आप अपने आहार में अधिक से अधिक फाइबर युक्‍त खाद्य पदार्थों को शामिल करें।
युक्‍त खाद्य पदार्थों में अधिक से अधिक हरी सब्‍जीयां, ताजे और मौसमी फल साबुत अनाज आदि का सेवन किया जा सकता है। इस प्रकार के भोजन को करने से आंतों के स्‍वस्‍थ्‍य को बेहतर बनाने में मदद मिलती है।

धूम्रपान और शराब से बचें

अधिक मात्रा में धूम्रपान और शराब का सेवन करना भी आपकी आंतों को नुकसान पहुंचा सकता है। धूम्रपान करने से गले की परेशानीयां बढ़ सकती है जिससे पेट संबंधी समस्‍याएं हो सकती हैं। इसके अलावा अधिक मात्रा में शराब का सेवन करने से आपके पाचन तंत्र में भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है। क्‍योंकि यह आपके यकृत और पेट की आंतरिक परत को नुकसान पहुंचा सकता है। यही कारण है कि आंतों की कमजोरी वाले रोगी को धूम्रपान और शराब का सेवन न करने की सलाह दी जाती है।

दही-

अध्‍ययनों के अनुसार आंत्र संबंधी रोगों का उपचार करने में दही एक अच्‍छा उपाय है। हमारी आतों में अच्‍छे और बुरे दोनों प्रकार के बैक्‍टीरिया होते हैं। लेकिन आंतों में खराब बैक्‍टीरिया की मात्रा अधिक हो जाने के कारण आंतों को नुकसान हो सकता है। ऐसी स्थिति में प्रोबायोटिक आंतों में अच्‍छे बैक्‍टीरिया के स्‍तर को बढ़ाने में सहायक होते हैं। जिससे अच्‍छे और खराब बैक्‍टीरिया में संतुलन बनता है। इसके अलावा प्रोबायोटिक में मौजूद अच्‍छे बैक्‍टीरिया पाचन संबंधी समस्‍याओं को भी आसानी से दूर कर सकते हैं। यदि आप भी आंतों के कमजोर  intestinal weakness होने या आंतों के चिपकने जैसी समस्‍या से परेशान हैं तो प्रोबायोटिक आधारित खाद्य पदार्थों का सेवन करें।

अधिक भोजन न करें

पाचन संबंधी समस्‍याओं का प्रमुख कारण आंतों की कमजोरी  intestinal weakness होती है। ऐसी स्थिति में रोगी को पर्याप्‍त मात्रा में पौष्टिक आहार लेना चाहिए। लेकिन उन्‍हें इस बात का ध्‍यान रखना चाहिए कि अधिक मात्रा में और दिन में कई बार भोजन नहीं करना चाहिए। क्‍योंकि ऐसा करने पर आपकी पाचन प्रणाली में दबाव बढ़ता है जिससे भोजन पचाने की क्षमता में कमी आ सकती है। परिणाम स्‍वरूप अपशिष्‍ट पदार्थ लंबे समय तक आंतों में रूका रहता है। जो आंतों के संक्रमण और उन्‍हें कमजोर कर सकता है।

नियमित रूप से खाओ, लेकिन लगातार नहीं

हर समय खाते रहने की आदत आंतों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अच्‍छी नहीं होती है. क्‍योंकि आंतों को साफ, बैक्‍टीरिया और अपशिष्ट मुक्त करने के लिए, पाचन को आराम देने की जरूरत होती है. हर दो घंटे के बाद कुछ मिनट के लिए आपकी आंतें, मौजूद चिकनी मसल्‍स पाचन तंत्र के माध्‍यम से बैक्‍टीरिया और अपशिष्‍ट को बाहर निकालती है. लेकिन खाते समय यह प्रक्रिया रूक जाती है. इसलिए आंतों को स्‍वस्‍थ रखने के लिए दो भोजन के बीच थोड़ा सा अंतराल होना जरूरी होता है.
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8.1.22

मखाने के फायदे:Makhne khane ke fayde

 


मखाना वजन में जितना हल्का होता है, इसके फायदे उतने ही वजनदार होते हैं. वैसे तो इसकी गिनती ड्राई फ्रूट्स के तौर पर होती है, लेकिन आजकल ये लोगों को फेवरेट स्नैक्स भी बन चुका है. लोग इसे घी में भूनकर, खीर बनाकर, मिठाइयों में ड्राई फ्रूट्स के तौर पर डालकर इस्तेमाल करते हैं. कुछ लोग मखाने को सब्जियों में भी डालते हैं.
 'मखाना' जिसे 'कमल का बीज' भी कहा जाता है। व्रत उपवास के दिन फलाहारी थाली में खाये जाने वाले मखाने से मिठाई, नमकीन और खीर भी बनाई जाती है। मखाना पौष्टिकता से भरपूर होता है क्योंकि इसमें मैगनेशियम, पोटैशियम, फाइबर, आयरन जिंक भरपूर मात्रा में होते हैं।
 मखाने की तासीर ठंडी होती है, लेकिन इसे सर्दी और गर्मी दोनों मौसम में खाया जाता है. इसमें कोलेस्ट्रॉल, फैट और सोडियम की मात्रा कम होती है, जबकि मैग्नेशियम, कैल्शियम, कार्ब्स और अच्छे प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. इसके अलावा मखाना ग्लूटेन फ्री होता है. आयुर्वेद विशेषज्ञों का मानना है कि यदि 4 से 5 मखाने रोजाना खाली पेट खा लिए जाएं तो शरीर को कई तरह के फायदे मिलते हैं .
 सेहत के लिए ड्राई फूट्स काफी जरूरी होते हैं. यह हमारे शरीर को कई पोषक तत्व प्रदान करते हैं. भारत में कई तरह के ड्राई फूट्स होते हैं. लेकिन सिर्फ मखाने का सेवन कर आपकी सेहत को कई तरह के फायदे मिलते हैं. यह सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी होते हैं. रोजाना सुबह खाली पेट 4-5 मखानों का सेवन करने से कई तरह के फायदे मिलते हैं


दिल की बीमारी के लिए- 

सुबह खाली पेट मखाना खाने से आपका दिल मजबूत रहता है. अगर आप को हार्ट से संबंधित कोई भी बीमारी है तो आपको मखाना जरूर खाना चाहिए यह आपके दिल को स्वस्थ्य रखता है.

स्ट्रेस से राहत- 

रोज सुबह उठते ही मखाने का सेवन जरूर करना चाहिए. मखाना खाने से आपका तनाव दूर हो जाता है. साथ ही इससे नींद की समस्या भी ठीक हो जाती है.

जोड़ों में दर्द- makhna ke fayde,

उम्र के बढ़ने के साथ जोड़ों में ग्रीस खत्म होने लगता है. ऐसे में यदि कैल्शियम की उचित मात्रा शरीर में न पहुंचे तो शरीर के हर जोड़ में दर्द होना शुरू हो जाता है. ऐसे में आपको रोजाना मखाने का सेवन करना चाहिए.

किडनी के लिए फायदेमंद- makhna ke fayde,

कई लोगों की किडनियां बहुत कम उम्र में ही खराब हो जाती हैं. मगर, इससे बचा जा सकता है अगर आप रोज मखाने खाती हैं तो इससे आपकी किडनी डिटॉक्सी फाई होती रहती है और मजबूत बनी रहती है.
*कई कारणों से कान के दर्द की समस्या हो जाती है। ये बीमारी बच्चों में ज्यादातर देखा जाता है। कान के दर्द से राहत पाने के लिए मखाना के बीज का प्रयोग कर सकते हैं। मखाना के बीजों को पानी में उबालकर काढ़ा जैसा बना लें। इस काढ़ा को एक या दो बूंद कान में डालें। इससे कान दर्द कम होता है।
-मखानों का प्रयोग मसूढ़ों से होने वाली ब्लीडिंग और सूजन को दूर करने में कर सकते है क्योंकि मखानों में कषाय और शीत का गुण पाया जाता है जो कि खून को आने से रोकता है।
-गठिया से निजात पाने के लिए भी आप इसका इस्तेमाल कर सकते हो। गठिया के कारण शरीर के जोड़ों, जैसे-पैर और हाथ आदि अंगों में बहुत दर्द होता है। इसके लिए मखाना पेड़ के पत्तों को पीसकर दर्द वाले जगह पर लगाएं। इससे आराम  मिलता है।
-कई लोगों को शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों, जैसे- पैर या पैर के तलवे आदि में जलन की समस्या रहती है। मखाने को दूध में मिलाकर पीने से इस परेशानी में आराम मिलता है।
-मखाने में अच्छी मात्रा में प्रोटीन और हेल्दी कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं, जो मसल्स बनाने में मदद करते हैं। जिन लोगों का शरीर कमजोर है या शरीर में मांस कम है, वो लोग रोजाना मखाना खाएं, मखाने की खीर खाएं या सब्जी बनाकर खाएं तो उनको लाभ मिलता है।
- इसका सेवन केलेस्ट्रोल नही बढ्ने देता और यह आपका पाचन और आपके ब्लड शुगर को भी अच्छा रखता है।
-आमतौर पर दस्त की परेशानी खान-पान में बदलाव या फूड प्वाइजनिंग की वजह से होता है। इसके लिए आहार में बदलाव लाने के साथ-साथ मखाना का सेवन करें। इससे दस्त पर रोक लगती है।

दूध और मखाने खाने के फायदे

  दूध मखाने को कई लोग इसको खीले के नाम से भी जानते हैं । मखाने में प्रोटीन, एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन, कैल्शियम, मिनरल्स और फास्फोरस का गुण पाया जाता है। इसका सेवन हमारे शरीर के लिए बहुत ही अच्छा होता है यह वह तत्व हैं जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही जरूरी है है हमारे शरीर को बीमारियों से भी बचाते हैं। मखाने को दूध में भिगो कर उसका पेस्ट बना लें और इस पेस्ट को रोज रात को सोने से पहले एक चम्मच पेस्ट को 1 ग्लास गरम दूध में केसर के साथ मिला कर इसका सेवन करें यह आपको अच्छी नींद देगा। मखाने का सेवन दूध में उबाल कर काजू बादाम किशमिश डालकर सेवन करना भी आपको लाभ देता है। मखाने की खीर भी बनाई जाती है आप इसका सेवन भी कर सकते हैं यह भी आपको उतना ही पोषण देगी जितना की दूध में उबाल कर सेवन करना।

नपुंसकता से बचाएगा मखाना makhna ke fayde,

इसका सबसे बड़ा कारण हैं यौन अंग में ब्लड सर्कुलेशन सही से ना होना। लेकिन मखाने का सेवन रेगुलर करने से आप इस समस्या से निजात पा सकते हैं, क्योंकि इसमें वृष्य यानि अंदरूनी शक्ति बढ़ाने का गुण होता हैं जो पुरुषों के अंदर नपुंसक का खतरा कम कर देते हैं। अच्छे स्पर्म काउंट और हेल्दी स्पर्म के लिए आपको रोजाना मखाना खाना चाहिए।

खाली पेट मखाने खाने के फायदे  makhna ke fayde,

सुबह उठते ही खाली पेट पांच से सात मखाने खाने चाहिए। दिल की बीमारी के लिए सुबह खाली पेट मखाने खाने से आपका दिल मजबूत रहता है। स्ट्रेस से राहत- रोज सुबह उठते ही मखाने का सेवन जरूर करना चाहिए।

डायबिटीज के मरीजों के लिए makhna ke fayde,

डायबिटीज के मरीजों के लिए मखाना खाना बेहद फायदेमंद होता है। आप इसे अपनी डाइट में अलग-अलग तरह से शामिल कर सकते हैं। मखाने की शर्करा रहित खीर बनाएं। इसमें सालम मिश्री का चूर्ण डालकर खिलाएं। इसे नियमित खाने पर ब्‍लड शुगर का लेवल काफी कंट्रोल में रहता है।
-सुबह खाली पेट 8-10 मखाने खाएं। इनका सेवन कुछ दिनों तक लगातार करें। इसके सेवन से शरीर में इंसुलिन बनने लगता है और शुगर की मात्रा कम हो जाती है। फिर धीरे-धीरे शुगर रोग भी खत्म हो जाता है।

मखाने खाने का सही तरीका

आप मखानों को पकाकर या कच्‍चा खा सकते हैं। आप इसमें मक्‍खन, नमक या शहद डालकर भी खा सकते हैं। मखानों को घी में भूनकर खाने से भी इनका स्‍वाद बढ़ जाता है। आप दलिये या खीरे में भी मखाने डाल सकते हैं। मखाने का सेवन सलाद में नियंत्रित मात्रा में किया जा सकता है। इन्हे भून कर या फिर चूर्ण बनाकर भी प्रयोग में लाया जा सकता है।

हार्ट के लिए फायदेमंद makhna ke fayde,

माना जाता है कि अगर आपको हार्ट से संबन्धित बीमारी है तो आपको मखाने का सेवन जरूर करना चाहिए. मखान दिल की सेहत को दुरुस्त करता है और बीपी को नियंत्रित करता है. लेकिन अगर आपको हाई बीपी की समस्या है तो नमक डालकर इसका सेवन न करें.

प्रेगनेंट महिला और शिशु के लिए सेहतमंद

प्रेगनेंट महिला को मखाने की खीर बनाकर खानी चाहिए. इससे मां की सेहत बेहतर होती है, साथ ही शिशु को भी पोषण मिलता है और उसकी हड्डियां मजबूत होती हैं.

हड्डियों को करता मजबूत

मखाने में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम होता है, इसलिए ये हड्डियों को मजबूत करने का काम करता है. गठिया के मरीजों के लिए मखाने बहुत फायदेमंद हैं.
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