22.11.21

भटकटैया (कंटकारी)के गुण,लाभ,उपचार Gorse (wild egg plant)

पथरी, लिवर का बढ़ना और माइग्रेन जैसे अनेक रोगों का नाश करती है 'कटेरी'




कटेरी का पौधा औषधीय गुणों से युक्‍त होता है। यह कई जीर्ण विकारों को ठीक करने में सक्षम है। इसका प्रयोग आप कई गंभीर रोगों के उपचार में कर सकते हैं।
कटेरी, जिसे कंटकारी और भटकटैया भी कहते हैं। हिंदी में इसके कई नाम है जैसे- छोटी कटाई, भटकटैया, रेंगनी, रिगणी, कटाली, कटयाली आदि। यह कांटेदार एक पौधा है जो जमीन पर उगता है। कटेरी अक्‍सर जंगलों और झाड़ियों में बहुतायत रूप से पाया जाता है। आमतौर पर कटेरी की तीन प्रजातियां पाई जाती हैं। छोटी कटेरी (Solanum virginiannumLinn), बड़ी कटेरी (Solanum anguivi Lam) और श्‍वेत कंटकारी (Solanum lasiocarpum Dunal)। जिनका प्रयोग रोगों को दूर करने के लिए औषधि के तौर पर किया जाता है।

 भटकटैया दो प्रकार की होती हैं : 
(1) क्षुद्र यानी छोटी भटकटैया और
 (2) बृहती यानी बड़ी भटकटैया। 
दोनों के परिचय, गुणादि निम्नलिखित हैं :

छोटी भटकटैया : 
1. इसे कण्टकारी क्षुद्रा (संस्कृत), छोटी कटेली भटकटैया (हिन्दी), कण्टिकारी (बंगला), मुईरिंगणी (मराठी), भोयरिंगणी (गुजराती), कान्दनकांटिरी (तमिल), कूदा (तेलुगु), बांद जान बर्री (अरबी) तथा सोलेनम जेम्थोकार्पम (लैटिन) कहते हैं।भटकटैया का पौधा जमीन पर कुछ फैला हुआ, काँटों से भरा होता है। भटकटैया के पत्ते 3-8 इंच तक लम्बे, 1-2 इंच तक चौड़े, किनारे काफी कटे तथा पत्र में नीचे का भाग तेज काँटों से युक्त होता है। 
भटकटैया के फूल नीले रंग के तथा फल छोटे, गोल कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने पर पीले रंग की सफेद रेखाओं सहित होते हैं।
* यह प्राय: समस्त भारत में होती है। विशेषत: रेतीली भूमि तथा बंगाल, असम, पंजाब, दक्षिण भारत में मिलती है।
* भटकटैया के दो प्रकार होते हैं : 
(क) नीलपुष्पा भटकटैया (नीले फूलोंवाली, अधिक प्राप्य) ।
 (ख) श्वेतपुष्पा भटकटैया (सफेद फूलोंवाली, दुर्लभ)
 भटकटैया एक छोटा कांटेदार पौधा जिसके पत्तों पर भी कांटे होते हैं। इसके फूल नीले रंग के होते हैं और कच्‍चे फल हरित रंग के लेकिन पकने के बाद पीले रंग के हो जाते हैं। बीज छोटे और चिकने होते हैं। भटकटैया की जड़ औषध के रूप में काम आती है। यह तीखी, पाचनशक्तिवर्द्धक और सूजननाशक होती है और पेट के रोगों को दूर करने में मदद करती है। यह प्राय पश्चिमोत्तर भारत में शुष्क स्थानों पर पाई जाती है। यह पेट के अलावा कई प्रकार की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं में उपयोगी होती है। 
  मुख्‍य रूप से कटेरी का उपयोग स्‍वास संबंधी समस्‍या जैसे अस्‍थमा, खांसी, हिचकी आदि का इलाज करने में किया जाता है। इसके अलावा अपने औषधीय गुणों के कारण कटेरी बुखार, सूजन आदि का भी प्रभावी उपचार कर सकता है। आयुर्वेद में में इसे दवा के रूप में सीधे ही उपयोग किया जाता है। इसके अलावा इसे कई अन्‍य जड़ी बूटीयों के साथ मिलाकर भी इस्‍तेमाल किया जाता है।
 आयुर्वेदीय चिकित्सा में कटेरी के मूल, फल तथा पंचाग का व्यवहार होता है। प्रसिद्ध औषधिगण 'दशमूल' और उसमें भी 'लंघुपंचमूल' का यह एक अंग है। स्वेदजनक, ज्वरघ्न, कफ-वात-नाशक तथा शोथहर आदि गुणों के कारण आयुर्वेदिक चिकित्साके कासश्वास, प्रतिश्याय तथा ज्वरादि में विभिन्न रूपों में इसका प्रचुर उपयोग किया जाता है। बीजों में वेदनास्थापन का गुण होने से दंतशूल तथा अर्श की शोथयुक्त वेदना में इनका धुआँ दिया जाता है।

अस्‍थमा में फायदेमंद-

भटकटैया अस्‍थमा रोगियों के लिए फायदेमंद होता है। 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में भटकटैया की जड़ का काढ़ा या इसके पत्तों का रस 2 से 5 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह शाम रोगी को देने से अस्‍थमा ठीक हो जाता है। या भटकटैया के पंचांग को छाया में सुखाकर और फिर पीसकर छान लें। अब इस चूर्ण को 4 से 6 ग्राम की मात्रा में लेकर इसे 6 ग्राम शहद में मिलाकर चांटे। इस प्रकार दोनों समय सेवन करते रहने से अस्‍थमा में बहुत लाभ होता है।

*खांसी दूर करें-

भटकटैया की जड़ के साथ गुडूचू का काढ़ा बनाकर पीना, खांसी में लाभकारी सिद्ध होता है। इसे दिन में दो बार रोगी को देने से कफ ढीला होकर निकल जाता है। यदि काढे़ में काला नमक और शहद मिला दिया जाए, फिर तो इसकी कार्यक्षमता और अधिक बढ़ जाती है। या भटकटैया के 14-28 मिलीलीटर काढ़े को 3 बार कालीमिर्च के चूर्ण के साथ सेवन करने से खांसी में लाभ मिलता है। इसके अलावा बलगम की पुरानी समस्‍या को दूर करने के लिए 2 से 5 मिलीलीटर भटकटैया के पत्तों के काढ़े में छोटी पीपल और शहद मिलाकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से खांसी मे आराम आता है


*ब्रेन ट्यूमर के उपचार में सहायक-

भटकटैया का पौधा ब्रेन ट्यूमर के उपचार मे सहायक होता है। वैज्ञानिक के अनुसार पौधे का सार तत्व मस्तिष्क में ट्यूमर द्वारा होने वाले कुशिंग बीमारी के लक्षणों से राहत दिलाता है। मस्तिष्क में पिट्युटरी ग्रंथि में ट्यूमर की वजह से कुशिंग बीमारी होती है। कांटेदार पौधे भटकटैया के दुग्ध युक्त बीज में सिलिबिनिन नामक प्रमुख एक्टिव पदार्थ पाया जाता है, जिसका इसका उपयोग ट्यूमर के उपचार में किया जाता हैं।
*प्रेगनेंसी में उल्‍टी और मतली को रोकने के लिए 5 ग्राम कटेरी पंचांग और 5-6 मुनक्‍का लें और इसे पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े का नियमित रूप से सेवन करें।
*लिवर की समस्‍या में कटेरी का उपयोग कर सकते हैं। नियमित रूप से कटेरी के काढ़े का सेवन लिवर में मौजूद संक्रमण और सूजन को कम करने में मदद करता है।

*दर्द व सूजन दूर करें

    भटकटैया दर्दनाशक गुण से युक्त औषधि है। दर्द दूर करने के लिए 20 से 40 मिलीलीटर भटकटैया की जड़ का काढ़ा या पत्ते का रस चौथाई से 5 मिलीलीटर सुबह शाम सेवन करने से शरीर का दर्द कम होता है। साथ ही यह आर्थराइटिस में होने वाले दर्द में भी लाभकारी होता है। समस्‍या होने पर 25 से 50 मिलीलीटर भटकटैया के पत्तों के रस में कालीमिर्च मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है। इसके अलावा सिर में दर्द होने पर भटकटैया के फलों का रस माथे पर लेप करने से सिर दर्द दूर हो जाता|

* पथरी :

 दोनों भटकटैयों को पीसकर उनका रस मीठे दही के साथ सप्ताहभर सेवन करने से पथरी निकल जाती तथा मूत्र साफ आने लगता है।

भटकटैया के फायदे दांत दर्द में

दांतों का दर्द भी एक गंभीर समस्‍या है। लेकिन आयुर्वेद में दांत के दर्द को दूर करने के लिए भटकटैया का उपयोग प्राचीन समय से किया जा रहा है। यदि आप भी दांत के दर्द से परेशान हैं तो भटकटैया के पत्‍तों के रस का उपयोग करें। कटेरी की ताजा पत्तियों को मसलकर रस निकालें। इस रस को दर्द प्रभावित दांतों में लगाएं। यह आपको दांत के दर्द से तुरंत ही राहत दिलाता है।

माइग्रेन मे 

माइग्रेन, और सिरदर्द में कंटकरी का प्रयोग काफी फायदेमंद है। इसके अलावा अस्‍थमा में छोटी कटेरी के 2-4 ग्राम कल्क में 500 मिग्रा हींग और 2 ग्राम शहद मिलाकर, सेवन करने से लाभ मिलता है।

गंजापन में फायदेमंद

गंजापन के रोग मैं कटेरी के पत्तों के 20 से 30 एमएल रस में थोड़ा-सा शहद मिलाकर सिर पर मालिश करें। इससे सिर की त्वचा मुलायम होती है और नए बाल आने शुरू हो सकते हैं।

* फुन्सियाँ :


सिर पर छोटी-छोटी फुन्सियाँ होने पर भटकटैया का रस शहद में मिलाकर लगायें।

आंखों के लिए फायदेमंद

आंखों से संबंधित बीमारियां बहुत तरह के होते हैं। जैसे सामान्य आंख में दर्द, आंखों का लाल होना इन सभी तरह के समस्याओं में कटेरी से बना घरेलू नुस्खा बहुत ही काम आता है। इसके लिए कटेरी के 20 से 30 पत्ते को पीसकर पेस्ट बना लीजिए। और इसे आंखों पर लगाएं इससे आंखों से संबंधित समस्याओं में आराम मिलेगा।
*कटेरी की जड़ का पेस्ट सांप और बिच्छू के काटने के इलाज में नींबू के साथ मिलाकर इस्‍तेमाल किया जाता है।
इसके तने, फूल और फल, कड़वे होने के कारण, पैरों में होने वाली जलन से राहत दिलाने में मदद करते हैं।
*कंटकारी के फल वीर्य स्खलन को रोकते हैं। इससे सेक्‍स लाइफ बेहतर होती है। फल पुरुषों में कामोत्तेजक के रूप में काम करता है।
*महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म और दर्द के इलाज के लिए इसके बीज मददगार हैं।
*यह जड़ी-बूटी एडिमा से जुड़ी हृदय रोगों के उपचार में फायदेमंद है, क्योंकि यह हृदय और रक्त शोधक के लिए उत्तेजक का काम करती है।
*शारीरिक कमजोरी में दिन में दो बार कटेरी के ताजे पत्तों का रस पीना चाहिए। इसमें आप मिश्री मिलाकर उपयोग कर सकते हैं।
*कंटकारी का प्रयोग खूनी बवासीर में सहायक है।
*गठिया में दर्द और सूजन को कम करने के लिए कटेरी का पेस्‍ट जोड़ों पर लगाया जाता है।




21.11.21

शरीर की ब्लॉक नसों को खोलने के लिए आजमाएं ये घरेलू उपाय :open the block veins



नसों की ब्लॉकेज का इलाज : 

नसों में दर्द बहुत परेशान करने वाली समस्या है। इसके चलते इंसान
चलने फिरने में भी तकलीफ महसूस करता है। इसके अलावा जब रक्त में अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा
बढ़ जाती है तो इससे नसों में खून के स्राव में रुकावट आने लगती है। जिससे हार्ट अटैक और लकवा
का खतरा भी बढ़ जाता है।
आजकल लोगों का खान-पान इतना बिगड़ गया है कि इसके कारण वो किसी ना किसी बीमारी की चपेट में हैं। इन्हीं में से एक समस्या है नस ब्लॉकेज की, जो युवाओं में भी काफी देखने को मिल रही थी। हालांकि इसका एक कारण काफी हद तक बढ़ता प्रदूषण भी है। पहले जहां यह समस्या 60-70 की उम्र में दिखाई देती थी वहीं आजकल लोग 30-35 की उम्र में भी इस परेशानी को झेल रहे हैं। नस ब्लॉकेज होने पर धमनी रोग, परिधीय धमनी रोग, लकवा, और हार्ट अटैक का खतरा काफी बढ़ जाता है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि इस समस्या को समय रहते दूर किया जाए।
नसों में ब्लॉकेज समस्या से 60% भारतीय है परेशान
शोध के अनुसार, करीब 40-60% लोगों की धमनियां कमजोर है। वहीं 20% महिलाओं को गर्भावस्था के बाद यह परेशानी होती है। इसकी पहचान सही समय पर नहीं हो पाती, जिसका असर वैरिकाज वेंस (varicose veins) के रूप में सामने आता है। दरअसल, बुरे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने से नसों में खून का प्रवाह अच्छे से नहीं होता, जिससे पैरों में सूजन व नसों के गुच्छे बनने शुरू हो जाते हैं, जो बाद में ब्लॉकेज का रूप ले लेता है।

किन लोगों को होती है ब्लाकेज की परेशानी

वेन ब्लॉकेज की परेशानी तब होती है जब खून संचारित होकर दिल तक नहीं पहुंचता जो बाद में गांठों और गुच्छे के रूप में हमारे सामने आता है।
यह परेशानी उन लोगों को होती हैं जो लगातार कई घटों रोजाना एक ही पोस्चर में बैठकर काम करते हैं। वैरिकॉज की परेशानी पैरों की धमनियों में अधिक होती हैं क्योंकि यहां खून के प्रवाह का भार अधिक होता है।
आहार जो करते हैं धमनियों की नैचुरल सफाई
मेडिटेरेनियन डाइट प्लान जिसमें कम मात्रा में कोलेस्ट्रॉल हो लेकिन फाइबर की मात्रा भरपूर हो। शुगर व नमक का कम सेवन करें और मक्खन की जगह आलिव ऑयल वसा का इस्तेमाल करें।
धमनियों के अनुकूल खाद्य पदार्थ व हर्ब जैसे चने, अनार, जई, एवाकाडो, लहसुन, केसर, हल्दी, कैलामस, हरी सब्जियों व फलों का सेवन करें।
नसों में ब्लॉकेज से होने वाली समस्याएं
नसों में खून के थक्के बनने लगते हैं।
कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना।
स्ट्रोक व हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता है।
कोरोनरी और अन्य धमनी रोगों का खतरा बढ़ता है।
अगर आप को भी एसी परेशानी है तो डॉक्टरी जांच जरुर करवानी चाहिए लेकिन इसके साथ-साथ आप
हार्ट अटैक और लकवे की समस्या से छुटकारा – किसी भी नस में ब्लॉकेज नहीं रहने देगा यह रामबाण उपाय
जब शरीर की नसें ब्लॉक हो जाती है तो हार्ट ब्लॉकेज की संभावना बहुत बढ़ जाती है। इसके अलावा लकवा भी अपने चरम सीमा पर पहुंच जाता है। ऐसी स्थिति आ जाने पर, देरी करके, आपके जान पर बन सकती है। ऐसी अवस्था में ऊपर बताए गए नुस्खे को प्रयोग में लाना चाहिए। यह शरीर कि, प्रत्येक ब्लॉक नसों को खोलकर हार्ट अटैक और लकवे के खतरे को कम कर देता है।

किन कारणों से होती है नसों में ब्लॉकेज

खून का गाढ़ा होना।
चोट लगने।
खराब ब्लड सर्कुलेशन।
खराब खान-पान की आदत।
घंटो तक बैठे रहना।
शारीरिक गतिविधियां न करना।
मोटापा।
शरीर में पोषक तत्वों की कमी।

नस ब्लॉकेज के लक्षण

-जब नसों में ब्लॉकेज की समस्या होती हैं तो व्यक्ति के हाथ पैर सुन्न होने लगते हैं
-हाथों-पैरों में झुनझुनाहट, सूजन रहने लगती हैं।
-साँस फूलना, चक्कर आने लगते हैं।
-कब्ज की शिकायत रहने लगती हैं
-चलने फिरने में दिक्कत आती है
नसों का नीला पड़ जाना।
एक जगह पर नसों का रस्सियों की तरह मुड़ना।
पैरों में भारीपन महसूस होना।
मांसपेशियों में ऐंठन रहना।
पैरों के निचले हिस्से में सूजन और दर्द रहना।
एक जगह पर जमा नसों के आसपास खुजली होना।
टखने के पास त्वचा का अल्सर।

बंद नसें खोलने के उपाय-

हल्दी

एक गिलास गुनगुने दूध में 1 चम्‍मच हल्‍दी पाउडर और थोड़ा-सा शहद मिलाकर पीने से भी बंद नसें खुल जाती है।


लहसुन

बंद धमनियों की समस्या होने पर 3 लहसुन की कली को 1 कप दूध में उबाल कर पीएं। इसके अलावा अपने आहार में लहसुन का सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल और हार्ट स्टोक का खतरा कम हो जाता है।

अनार का जूस

एंटीऑक्सीडेंट, नाइट्रिक और ऑक्साइड के गुणों से भरपूर अनार के 1 गिलास जूस का रोजाना सेवन आपको धमनियों की ब्लोकेज के साथ कई हेल्थ प्रॉब्लम से दूर रखता है।

ओट्स : 

ओट्स का रोजाना सुबह नाश्ते में सेवन भी ब्लाकेज की समस्या को दूर करता है। इसमें फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है।

अनार : 

एंटीऑक्सीडेंट, नाइट्रिक और ऑक्साइड के गुणों से भरपूर अनार के 1 गिलास जूस का रोजाना सेवन आपको धमनियों की ब्लोकेज के साथ कई हेल्थ प्रॉब्लम से दूर रखता है।

ड्राई फ्रूट्स : 

रोजाना कम से कम 50-100 ग्राम बादाम, अखरोट  का सेवन आपकी रक्त कोशिकाओं में कोलेस्ट्रॉल जमा नहीं होने देता। इससे आप ब्लाकेज की समस्या से बचे रहते है।

अलसी के बीजः 

अलसी के बीजों में अल्फा लिनोलेनिक एसिड भरपूर मात्रा में मौजूद होता हैजो बंद नसों को खोलने में मदद करता है। ये बीज नसों में मौजूद कोलेस्ट्रॉल को बाहर निकालता है जिससे ब्लड सर्कुलेशन सही ढंग से होता है। रातभर इन बीजों को भिगो दें और सुबह इसका काढ़ा बनाकर पीएं। आप 1 छोटा चम्मच अलसी पानी के साथ भी ले सकते हैं। 3 महीने लगातार करें फायदा मिलेगा।
  नसों की ब्लॉकेज खोलने के लिए रोज सुबह अनार जरूर खाएं। गर्म गुनगुना पानी, ग्रीन टी आदि का सेवन करते रहें। इसके अलावा चुकंदर, पत्तेदार सब्जियां, अखरोट, बैरीज, एवाकाडो, टमाटर, प्याज अदरक आदि का सेवन करें। मसालों में दालचीनी, काली मिर्च भी लें।

निम्न  घरेलू उपाय अपनाकर नसों की ब्लॉकेज से छु़टकारा पा सकते है-

सामग्री
1 ग्राम दाल चीनी
10 ग्राम काली मिर्च साबुत
10 ग्राम तेज पत्ता
10 ग्राम मगज
10 ग्राम मिश्री
10 ग्राम अखरोट
10 ग्राम अलसी

विधि-

1. सबसे पहले इन सबको मिक्सी में बारीक पीस लें।
2. फिर इसकी 10 पुडियां बना लें।
3. इसे हर रोज सुबह खाली पेट खाएं और ध्यान रहें इसे खाने के बाद 1 घंटे तक कुछ न खाएं।
अगर आपको एंजिओयोप्लास्टिक की समस्या से जूझ रहे हैं तो, यह नुस्खा आपके काफी काम आ सकता है। अगर आप की बाई पास सर्जरी हुई है तो स्टंट डलवाने के बाद स्टंट के अगल-बगल कैल्शियम का जमाव होने लगता है जिसके कारण नसें ब्लॉक हो जाती है। कैल्शियम के अलावा कोलेस्ट्रॉल भी हमारी नसों को बहुत अधिक प्रभावित करता है।
  ऐसी अवस्था हो जाने पर हमारे दोबारा ऑपरेशन करके स्टंट डलवाने की जरूरत होती है। बार-बार ऑपरेशन करवाने से खर्चा तो आता ही है साथ ही यह हमारे शरीर के मेंटल और फिजिकल कार्यों में भी अपना बुरा नुकसान पहुंचाता है। मगर ऊपर बताए गए नुस्खे को प्रयोग में लाने से, जिन नसों में कैल्शियम और कोलेस्ट्रॉल का जमाव हुआ था वह 10 दिन के भीतर बिल्कुल खत्म हो जाएगा और आपकी ब्लॉक नसें पहले जैसे काम करने लगेंगी।
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वाटर थेरेपी के फायदे:water therapy




 

जापानी जल चिकित्सा (Japanese water therapy) जापान की एक प्रसिद्ध चिकित्सा पद्धति है, जो जापानी लोगों के बीच व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इसमें पाचन तंत्र को साफ करने और पेट के स्वास्थ्य को विनियमित करने के लिए सुबह उठने के बाद रूम टेंपरेचर के तापमान का पानी खाली पेट पीना होता है। वहीं इस नार्मल तापमान के पानी के अलावा आप गर्म पानी भी पी सकते हैं। वहीं जापानी वॉटर थेरेपी के अधिवक्ताओं की मानें, तो ठंडा पानी हर तरीके से हानिकारक है क्योंकि यह आपके भोजन में फैट और तेल को आपके पाचन तंत्र में कठोर कर सकता है। इस वजह से आपका पाचन धीमा कर हो जाता है और ये कई बीमारी का कारण बन सकता है।

क्या है वाटर थैरेपी- 

वाटर थैरेपी में कुछ खास नहीं होता है, बस इस थैरेपी में आपको अधिक से अधिक मात्रा में पानी पीना होता है। जब आप ये थैरेपी लेते हैं तो आपको 10 से 15 गिलास पानी पीना होता है। दरअसल पानी आपके शरीर के हर भाग में मौजूद होता है और यह आपको हेल्दी रखता है और कई तरीकों से आपकी मदद करता है। इस थैरेपी में आपको अधिक से अधिक पानी पीते हुए करीब 3 से चार लीटर पानी पीना होता है, क्योंकि आपके शरीर को करीब डेढ़ लीटर पानी की जरुरत होती है और अधिक मात्रा में पानी आपके शरीर से निकल जाता है।
 जापानी वॉटर थेरेपी में जागने पर और ब्रश करने से पहले आपको खाली पेट पानी पीना है। इसे करने के लिए खाली पेट कमरे के तापमान के पानी के चार से पांच गिलास पिएं यानी (160-मिलीलीटर) जितना पानी। ध्यान में रखें कि ये पानी नार्मल टेंपरेचर का या हल्का गर्म हो। इसे नाश्ता खाने से 45 मिनट पहले करें। वहीं इसमें ये भी बताया गया है कि प्रत्येक भोजन में, केवल 15 मिनट के लिए ही खाएं और कुछ भी खाने या पीने से कम में कम 2 घंटे का गैप रखें।

वॉटर थैरेपी के फायदे-

स्किन में लाता है निखार- इससे आपकी स्किन में कुछ ही दिनों में हमेशा के लिए निखार आना शुरू हो जाता है। कई उम्र के लोगों ने इसकी कोशिश की है और इस थैरेपी को आजमाया है और यह काम भी करती है। यह आपकी स्किन को हेल्दी रखता है और फ्रेश रखता है। बता दें कि यह थैरेपी एक दम से काम करना शुरू नहीं करती है और काफी समय बाद इसका असर देखने को मिलता है।
हानिकारक विषाणु होते हैं दूर- हमारे शरीर में 70 से 80 फीसदी तक पानी होता है और इसलिए शरीर में पानी की मात्रा को बरकरार रखना बहुत जरुरी होता है। नियमित रुप से पानी पीने से आपके शरीर से कई विषाक्त कण दूर होते हैं और आपकी स्किन से दाग धब्बे दूर होने लगते हैं। इससे पेट और किडनी से संबंधी दिक्कतें भी नहीं होती है और ब्लड ठीक रहता है जो कि आपकी स्किन के लिए भी ठीक है।

ड्राइनेस कम होती है- 

बीमारियों से बचने के लिए और हमेशा हेल्दी रहने के लिए आपके शरीर को हमेशा हाइड्रेट होना चाहिए। ठीक उसी तरह आपकी स्किन को भी हाइड्रेट होते रहना जरुरी है, क्योंकि इससे आपकी स्किन की ड्राईनेस कम होती है और स्किन की कई दिक्कतें दूर होनी चाहिए।

कैसे देते हैं यह थेरेपी

आथ्र्राइटिस के मरीज थोड़े-से गुनगुने पानी में कच्ची हल्दी का पेस्ट मिला लें। इस पानी को सुबह खाली पेट पिएं औैर शाम को डिनर से एक घंटा पहले पिएं। इससे जोड़ों के अंदर की अकड़न दूर होगी।
थाइरॉइड पीड़ित व्यक्ति रात को एक चम्मच साबुत धनिया एक गिलास पानी में भिगो दें। सुबह खाली पेट पानी को आधा रह जाने तक उबालें। इसे गुनगुना होने पर पी लें।
 हाइपर एसिडिटी के मरीज को दिन भर में कम से कम 6 गिलास गर्म पानी पीने के लिए कहा जाता है। गुनगुना पानी पेट में जाकर इकट्ठी एसिडिटी को घोल देता है और 30 से 45 मिनट के भीतर एसिडिटी से आराम देता है।
मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति को दिन में कम से कम 10-12 गिलास गर्म पानी पीना चाहिए। उसमें नीबू, कच्ची हल्दी का पेस्ट, आंवले का रस, शुद्ध शहद भी मिला सकते हैं। मरीज डायबिटिक है तो उसे शहद नहीं देते। किडनी के मरीजों को पानी थोड़ा-थोड़ा करके देते हैं।
 त्वचा की समस्या से पीड़ित मरीज को गुनगुने पानी में नीबू मिलाकर पीने के लिए दिया जाता है और नीम के पत्तों का पेस्ट नहाने के पानी में मिलाकर नहाने के लिए कहा जाता है।
 उल्टी, खट्टी डकार आ रही हो, भूख नहीं लग रही हो, आंतों में सूजन हो तो पीड़ित व्यक्ति को गर्म पानी पिलाया जाता है।
 पानी प्रयोग की विधि क्या है सुबह उठकर बिस्तर में बैठ जाएं और चार बड़े ग्लास भरकर (लगभग एक लीटर) पानी एक ही समय एक साथ पी जाएं। ध्यान रहे कि पानी पीने के पहले मुंह न धोएं, न ब्रश करें तथा शौचकर्म भी न करें। पानी पीने के बाद थूकें नहीं। >
 पानी पीने के पौन घंटे बाद आप ब्रश/दातून, मुंह धोना, शौचकर्म इत्यादि नित्यकर्म कर सकते हैं। जो व्यक्ति बीमार या कमजोर काया के हैं और वे एक साथ चार ग्लास पानी नहीं पी सकते तो उन्हें शुरूआत एक-दो ग्लास पानी से करना चाहिए तथा धीरे-धीरे चार ग्लास तक बढ़ाना चाहिए। साथ ही भोजन करने के बाद लगभग दो घंटे पानी न पिया जाए तो अति उत्तम रहेगा।
 चार ग्लास पानी पीने की यह विधि स्वस्थ या बीमार, सभी के लिए अति लाभदायक सिद्ध हुई है। सकनीरा एसोसिएशन के अनुभव द्वारा यह सिद्ध किया गया है कि कई बीमारियां इस प्रयोग से निम्नलिखित समय में दूर होती जाती हैं।
* मधुमेह एक माह के लगभग।
* उच्च रक्तचाप एक माह के लगभग। * गैस दो सप्ताह के लगभग।
* टी.बी. छः माह के लगभग।
* कब्जीयत- दो सप्ताह के लगभग।

बिस्‍तर से उठने के बाद सुबह - 

सुबह आप लगभग 1.5 लीटर पानी पिएं, जो कि लगभग 5 से 6 गिलास होता है। इस पानी को खाली पेट पीना होता है। इसके बाद आप अपना चेहरा धोएं। यह प्रक्रिया वॉटर थेरेपी ट्रीटमेंट कहलाती है। इस ट्रीटमेंट को करने से पहले आप समझ लें कि पानी पीने से एक घंटे पहले और पानी पीने के एक घंटे के बाद तक कुछ भी न खाएं और पीएं, ठोस आ‍हार भूल से भी न खाएं। अगर आप वाकई में कायदे से इस ट्रीटमेंट को करना चाहते हैं तो रात को सोते समय एल्‍कोहल पीना छोड़ दें।
जापानी वॉटर थेरेपी तनाव को दर करने में मदद करती है। इसके साथ ही यह वजन को नियंत्रित रखती है और पाचन तंत्र को मजबूत बनाती है। सिर्फ यही नहीं, यह थेरेपी पूरे दिन आपको एनर्जेटिक रखती है। पर्याप्त पानी पीने से मेटाबोलिज्म भी बेहतर होता है।
पानी पीने के बाद दांतों को ब्रश से साफ करें। 45 मिनट तक कुछ भी खाने या पीने से बचें। इसके बाद आप अपनी नियमित दिनचर्या शुरू कर सकते हैं।
दिन के प्रत्येक भोजन के कम से कम दो घंटे बाद तक कुछ भी खाना या पीना नहीं चाहिए।
बीमारियों से ग्रसित बूढ़े लोगों को इस थेरेपी की शुरूआत में एक गिलास पानी पीना चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे पानी की मात्रा बढ़ानी चाहिए।
यदि आप एक बार में चार गिलास पानी नहीं पी सकते हैं तो हर गिलास के बाद कुछ देर रुकें ताकि आपके पेट को आराम मिल सके।
जापानी वॉटर थेरेपी रोगों से मुक्ति देती है और शरीर को स्वस्थ रखती है। इस थेरेपी का नियमित पालन करना चाहिए।
इसके अलावा, ठंडे पानी का सेवन करने से भी बचना चाहिए। ठंडा पानी आपके गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल तापमान को कम करता है और कुछ लोगों में रक्तचाप को थोड़ा बढ़ा सकता है। इससे पहले कि आप किसी स्थिति या बीमारी के इलाज के लिए इस वॉटर थेरेपी के उपयोग करने पर विचार करें, आपको अपने डॉक्‍टर से जरूर संपर्क करना चाहिए।
स्वस्थ जीवन के लिए जापानी वॉटर थेरेपी बहुत फायदेमंद है। इसका अभ्यास करने से विभिन्न तरह की बीमारियां दूर हो जाती हैं।अगर जरूरी हो तो पानी को फिल्‍टर करके और हल्‍का गुनगुना पिएं, वॉटर थेरेपी के लिए ऐसा पानी की सबसे अच्‍छा होता है। शुरूआत में 1.5 लीटर पानी पीने में तकलीफ हो सकती है लेकिन हर दिन पानी पीने से आपकी आदत पड़ जाएगी। इसके लिए शुरूआत में ज्‍यादा से ज्‍यादा पानी पीने की कोशिश करें, लगभग 4 गिलास पानी कम से कम पी जाएं
 एकदम से पानी न पिएं, पहले दो गिलास पिएं, इसके बाद दो मिनट का रेस्‍ट लें और फिर दो गिलास पिएं। जब आप शुरूआत में पानी पीना शुरू करेंगे तो शायद आपको एक घंटे में दो से तीन बार पेशाब के लिए जाना पड़ें, लेकिन कुछ समय आपकी आदत में इतना सारा पानी पीना शामिल हो जाएगा।
 ताजगी महसूस होगी अगर आप वॉटर थेरेपी की लगातार प्रैक्टिस करते रहेगें, तो दिन भर आपको ताजगी महसूस होती रहेगी और पूरा दिन आप ताजातरीन महसूस करते रहेगें।
मोटापा घटाए वॉटर थेरेपी, वजन को घटाने में भी लाभकारी होती है।
 शरीर से विषैले पदार्थ दूर हो इस थेरेपी से पसीने व मूत्र की सहायता से शरीर के विषैले तत्‍व बाहर निकल जाते हैं।
सिर दर्द, शरीर में दर्द, गठिया दूर करे वॉटर थेरेपी से सिर दर्द, शरीर में दर्द, गठिया, दिल की धड़कन तेज बढ़ना, मिरगी, ब्रोंकाइटिस, मोटापा, दमा, टीबी, मेनि‍नजाइटिस, गुर्दे और मूत्र रोग, उल्‍टी, जठरशोथ, दस्‍त, बवासीर, डायबटीज, सभी नेत्र रोगों, मासिक धर्म संबधी विकार, कान, नाक और गले के रोगों का उपचार संभव है।
त्‍वचा चमकाए इसकी सहायता से आपके शरीर की त्‍वचा दमकदार हो जाती है।
शरीर का तापमान सामान्‍य रखे वॉटर थेरेपी, शरीर का तापमान सामान्‍य रखती है।
कॉन्‍स्‍टीपेशन, एसीडिटी, डायबटीज और कैंसर दूर हो अगर वॉटर थेरेपी को प्रतिदिन कायदे से किया जाएं, तो इससे 1 दिन में कॉन्‍स्‍टीपेशन, 
2 दिन में एसीडिटी, 
7 दिन में डायबटीज, 
4 हफ्ते में कैंसर, 
3 महीने में पल्‍मोनरी टीबी, 
10 दिनों में गैस्ट्रिक और 
4 हफ्तों में बीपी और हाइपरटेंशन दूर हो जाती है।
 ज्यादातर बीमारियां पेट की खराबी के कारण होती हैं। जापानी वॉटर थेरेपी आंत को साफ करती है और पाचन तंत्र को मजबूत रखती है। जापानी पारंपरिक चिकित्सा में सुबह जल्दी उठने के बाद पानी पीने की सलाह दी जाती है। सुबह के शुरुआती घंटों को गोल्डेन ऑवर कहा जाता है। माना जाता है कि इस अवधि के दौरान पानी पीने से न केवल आपके पाचन तंत्र ठीक रहता है और वजन घटता है, बल्कि विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज करने में भी मदद मिल सकती है।
 वास्तव में बहुत सारे रोगों के लिए की जाने वाली उपचार प्रणाली है जल चिकित्सा। इसमें शीतल और ऊष्ण पानी के प्रयोग के द्वारा इलाज़ किया जाता है। शरीर के अंदरूनी और बाहरी अंगों पर आवश्यकता के अनुसार गर्म और ठंडे पानी का उपयोग किया जाता है। इस चिकित्सा को अंग्रेज़ी में हाइड्रोथेरेपी (Hydrotherapy) कहा जाता है। इस चिकित्सा पद्धति का इतिहास बहुत अधिक पुराना है। लेकिन समय के साथ इसमें बहुत सारे बदलाव देखने को मिल रहे हैं।
 जापान जैसे देशों में तो इस तरह की चिकित्सा पद्धति काफी प्रचलित है। दुनिया में जितनी भी चिकित्सा पद्धति पाई जाती हैं उनमें सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति वॉटर थेरेपी ही है। प्राकृतिक चिकित्सा के अलावा आयुर्वेद और यूनानी उपचार विधियों में भी जल चिकित्सा को काफी महत्वपूर्ण माना गया है।
हाइड्रोथेरेपी (HYDROTHERAPY) के लाभ
• ऐसा दर्द जो लंबे समय के लिए आपके शरीर में बना हुआ है। इस दर्द को दूर करने के लिए जल चिकित्सा एक रामबाण उपचार है।
• यह पद्धति कोशिकाओं को हाइड्रेट रखती है। इसके अलावा इससे मांसपेशियों और त्वचा की रंगत में सुधार आता है।
• इस उपचार प्रणाली से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मदद मिलती है।
• इसके माध्यम से हमारे शरीर के आंतरिक अंगों में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है।
• तनावपूर्ण और अकड़ी हुई मांसपेशियों को सही करने में जल चिकित्सा से मदद मिलती है।
• इससे मेटाबोलिज्म और पाचन क्रिया को अच्छा रखा जा सकता है।
• वॉटर थेरेपी की सहायता से प्रसव पीड़ा तक को कम किया जा सकता है।
• शरीर में होने वाली किसी भी सूजन को कम करने के लिए भी वॉटर थेरेपी का सहारा लिया जा सकता है।
• बुखार दूर करने के इसके लिए वॉटर ट्रीटमेंट थेरेपी (Water Treatment Therapy) का सहारा लिया जा सकता है।
कैसे पानी वजन घटाने में करता है मदद
 अध्ययन के मुताबिक, पानी वजन घटाने (water therapy to lose weight) में आपकी कई रूप से मदद कर सकता है। वजन कम करने के लिए आपको करना ये है कि भोजन से 30 मिनट पहले 500 एमएल पानी पीना है। अध्ययन के मुताबिक, जो लोग खाना खाने से पहले ऐसा करते हैं वह अन्य लोगों की तुलना में 13 फीसदी तक कम खाते हैं। एक अन्य अध्ययन में ये पाया गया कि अगर आप खाना खाने के बाद कुछ मीठा खाने के बजाए पानी पीते हैं तो आप कैलोरी इनटेक को कम कर सकते हैं। इस बात को जान लें कि खाना खाने के बाद मीठा खाने से वजन बढ़ता है ।
 ऐसा माना जाता है कि पानी में मौजूद हाइड्रेशन कॉम्पोनेंट वजन घटाने में अहम भूमिका निभाते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पानी पेट भरने का भी काम करता है। अगर आप भोजन से पहले एक गिलास पानी पी लेते हैं तो आप ज्यादा खाने से बच सकते हैं और दूसरी अनहेल्दी चीजों के सेवन से आप बच सकते हैं। यह आपको जरूरत से ज्यादा कैलोरी इनटेक पर अंकुश लगाता है और वजन बढ़ने से रोकने में मदद कर सकता है। न सिर्फ पानी पीने से बल्कि आप खाने का एक रूटीन बनाकर भी कैलोरी इनटेक में कमी ला सकते हैं। ये सभी चीजें वजन घटाने की प्रक्रिया को तेज करती हैं और आपको सही शेप में रहने में मदद करती हैं।
 कुछ भी खाने के बीच का अंतर सिर्फ 15 मिनट तक सीमित है। इसके अलावा आपके भोजन के बीच कम से कम 2 घंटे का अंतर होना चाहिए। सबसे जरूरी बात आप जो भी चाहें खा सकते हैं। किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं है। हां, आप जो भी खाएं बस वो हेल्दी होना चाहिए।

सावधानी-

सुरक्षित होने के लिए, प्रति घंटे लगभग 4 कप (1 लीटर) से अधिक तरल नहीं पीना चाहिए, क्योंकि यह अधिकतम राशि है, जो एक स्वस्थ व्यक्ति की किडनी एक ही बार में संभाल सकती है।