11.10.21

घुटनों के बीच गेप बढ़ना ग्रीस खत्म होना दर्द होने के उपचार :Knee gap herbal medicine


 

हमारे शरीर के हर भाग का अपना एक कार्य होता है और शरीर के उस भाग की अपनी ज़रुरतें भी होती हैं. जब हम बात घुटनों की कर रहे हैं तो आपको बता दें कि घुटने का प्रमुख कार्य होता है शरीर के वज़न को संतुलित कर हमारे चलने की क्रिया को बनाए रखना और इसके लिए घुटनों का कुछ सहयोगी अंग साथ देते हैं. इसलिए हमें यह ध्यान देना चाहिए कि ऐसा खानपान करें कि हमारे घुटनों को पोषण मिलता रहे और वह कमज़ोर न हो.

उम्र बढ़ने के साथ-साथ घुटनों की ग्रीस कम होने लगती है। लेकिन आजकल कम उम्र मे भी इस समस्‍या से जूझना पड़ता है। अगर किसी के घुटनों की ग्रीस खत्म हो चुकी हो और उनका चलना, उठना और सीढ़ी चढ़ना मुश्किल हो गया हो तो परेशान होने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि आज हम इस आर्टिकल में कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्‍हें रेगुलर खाने से आप अपने घुटनों की ग्रीस को आसानी से बढ़ा सकते हैं।
  दरअसल घुटनों में ग्रीस कहना एक अनपढ़ भाषा का उपयोग है, घुटनों में कोई ग्रीस ख़त्म नहीं होती, घुटनों में Synovial fluid की कमी हो जाती है, जो दो हड्डियों के बीच में Lubrication बनाये रखता है, जिस से उसकी Cartilage पर दबाव नहीं पड़ता, इसकी कमी होने के कारण घुटनों में उठते बैठते अत्यधिक दर्द होता है, घुटनों से आवाज़ भी आती है, फिर इसको लोग ये भी कह देते हैं के घुटनों में गैप बढ़ गया है. बॉडी में कैल्शियम की कमी

घुटने घिसने पर मरम्मत के उपचार -

                                 
हरसिंगार के पत्‍ते-

हरसिंगार जिसे पारिजात और नाइट जैस्मिन भी कहते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसके पौधे आपको अपने घर के आस-पास भी देखने को मिल जाएंगे। इस पेड़ के पत्‍ते जोड़ों के दर्द को दूर करने और घुटनों की ग्रीस बढ़ाने में मददगार होते हैं। इसके पत्तों में टेनिक एसिड, मैथिल सिलसिलेट और ग्लूकोसाइड होता है ये द्रव्य औषधीय गुणों से भरपूर हैं। घुटनों की ग्रीस बढ़ाने के लिए हरसिंगार के 3 पत्तों को पीसकर पेस्ट बना लें। फिर इस पेस्ट को 1 बड़े गिलास पानी में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी आधा से भी आधा रह जाये तब इसे छानकर हल्‍का ठंडा करके पियें। इस काढ़े का सेवन सुबह खाली पेट करें।

घुटनों की ग्रीस बढ़ाने के लिए अखरोट काफी फायदेमंद होता है। आप हर रोज दो अखरोट का सेवन जरूर कीजिये। ऐसा करने से घुटनों का ग्रीस बढ़ने लगता है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि अखरोट में प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ई, बी-6, कैल्शियम और मिनरल भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा अखरोट में एंटी-ऑक्‍सीडेंट के साथ-साथ ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है। यह एक प्रकार का फैट है जो सूजन को कम करने में हेल्‍प करता है।

नारियल पानी-

खाली पेट नारियल का पानी पीने से भी घुटनों में लचीलापन आता है। एक महीना इस उपाय को करके देखें। आपको बहुत फायदा मिलेगा! जरूरी विटामिन और मिनरल के अलावा यह मैग्नीज जैसे तत्वों से भरपूर है। सूखने के दौरान इसमें नेचुरल ऑयल बनने लगता है जो हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत करता है।

रात में न खाएं खट्टी चीज़ें 

 खानपान का घुटनों से सीधा संबंध है इसलिए क्या खाएं, यह जानने से ज़्यादा ज़रुरी है कि क्या न खाएं. रात्रि के समय खट्टी चीजें जैसे- दही, संतरा,मौसमी, नींबू, कीनू, छाछ, इमली और आम का सेवन न करें. रात के समय इनका सेवन आपके खुटनों के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

रोजाना करें व्यायाम 


कहावत है कि अगर नईं मशीन भी हो परंतु उससे काम न लिया जाए तो पड़े-पड़े उसमें भी जंग लग जाता है. ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी भीतर से एक मशीन की तरह ही है, जहां हर भाग का अपना एक काम होता है और यदि हाथ और पैर न चलाएं जाएं तो शरीर में जंग लग जाता है. इसलिए नित्य व्यायाम करें- दौड़ें, योगा करें.

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बार बार पेशाब आने के घरेलू उपचार :Frequent Urination



   

कई लोगों के साथ यह समस्या होती है कि उन्हें बार-बार पेशाब के लिए जाना होता है। अगर आपके साथ भी यह समस्या है तो इसका कारण और उपाय आपको जरूर पता होना चाहिए। पहले जानिए इसके यह 5 कारण -

1 बार-बार पेशाब आने का सबसे बड़ा कारण हो सकता है मूत्राशय की अत्यधिक सक्रियता। ऐसी स्थिति में सामान्य रूप से व्यक्ति बार-बार पेशाब करने के लिए प्रेरित होता है।
2 मधुमेह भी बार-बार पेशाब आने का एक प्रमुख कारण है। रक्त व शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ने पर यह समस्या बढ़ जाती है। 3 अगर आपको यूरीनल ट्रैक्ट इंफेक्शन है, तो आपको इस समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इस स्थिति में बार-बार पेशाब आने के साथ ही पेशाब में जलन भी होती है।
4 प्रोटेस्ट ग्रंथि के बढ़ने पर भी यह समस्या पैदा हो सकती है।
5 किडनी में संक्रमण होने पर भी बार-बार पेशाब आना बेहद आम बात है, इसलिए अगर आपको यह परेशानी है, तो इसकी जांच जरूर कराएं।
बहुत ज्‍यादा शराब या कैफीन के सेवन, किडनी प्रॉब्‍लम, मूत्राशय में समस्‍या, डायबिटीज मेलिटस, प्रेग्‍नेंसी, चिंता, मूत्रवर्द्धक दवाओं, स्‍ट्रोक, मस्तिष्‍क या तंत्रिका तंत्र से संबंधित स्थितियां, मूत्र मार्ग में संक्रमण, पेल्विक हिस्‍से में ट्यूमर, ओवरएक्टिव ब्‍लैडर सिंड्रोम, मूत्राशय कैंसर, किडनी या मूत्राशय में पथरी, पेशाब न रोक पाना, पेल्विक हिस्‍से में रेडिएशन जैसी ट्रीटमेंट लेना और क्‍लैमेडिया जैसे यौन संक्रमित रोग की वजह से बार-बार पेशाब आ सकता है।

बार-बार पेशाब आने के लक्षण

पेशाब करते समय दर्द होना, पेशाब में खून या अजीब रंग आना, पेशाब न रोक पाना या मूत्राशय का धीरे-धीरे कमजोर होना, पेशाब करने की इच्‍छा होना लेकिन पेशाब करने में दिक्‍कत आना, वजाइना या पेनिस से डिस्‍चार्ज होना, प्‍यास और भूख बढ़ना, बुखार, ठंड लगना, उल्‍टी, मतली और पीठ के निचले हिस्‍से में दर्द होना इसके प्रमुख लक्षण हैं।


उपाय -


*भरपूर मात्रा में पानी पिएं ताकि किसी प्रकार का इंफेक्शन हो, तो वह पेशाब के माध्यम से निकल जाए और बाद में आपको इस तरह की परेशान न झेलनी पड़े।
* दही, पालक, तिल, अलसी, मेथी की सब्जी आदि का रोजाना सेवन करना इस समस्या में फायदेमंद साबित होगा।
*सूखे आंवले को पीसकर इसका चूर्ण बना लें और इसमें गुड़ मिलाकर खाएं। इससे बार-बार पेशाब आने की समस्या में लाभ होगा। विटामिन सी से भरपूर चीजों का सेवन करें।4 अनार के छिलकों को सुखा लें और इसे पीसकर चूर्ण बना लें। अब सुबह-शाम इस चूर्ण का सेवन पानी के साथ करें। अगर चाहें तो इसका पेस्ट भी बना सकते हैं।
*मसूर की दाल, अंकुरित अनाज, गाजर का जूस एवं अंगूर का सेवन भी इस समस्या के लिए एक कारगर उपाय है।

बार-बार पेशाब आने का घरेलू इलाज है ग्रीन टी

ग्रीन टी भी आपको इस परेशानी से राहत दिला सकती है क्‍योंकि इसमें माइक्रोबियल-रोधी गुण होते हैं। एक कप गर्म पानी में 5 से 7 मिनट के लिए एक चम्‍मच ग्रीन टी डालकर रखें। इसमें स्‍वादानुसार शहद मिलाकर दिन में दो बार पिएं।

कुलथी का प्रयोग-

कुलथी में केल्शियम , आयरन और पॉलीफिनॉल होता है ,इसमे पर्याप्त एंटीऑक्‍सीडेंट होते हैं| थोड़ी सी कुलथी को गुड के साथ रोज सुबह लेने से मूत्राशय की खराबी दूर हो जाएगी।

अनार पेस्ट-


यह मूत्राशय की गर्मी शांत करता है। अनार के छिलके का पेस्ट बनाएँ और उसका छोटा भाग पानी के साथ दिन में दो बार खाइये। ऐसा 5 दिनों के लिये करें, आपको इससे आराम मिलेगा।

तिल के बीज-


तिल के दानों में एंटी ऑक्‍सीडेंट्स, खनिज तत्व और विटामीन्स होते हैं। आप इसे गुड या फिर अजवाइन के साथ सेवन कर सकते हैं।

दही 

दही को हर रोज खाने के साथ खाना चाहिये। इसमें मौजूद तत्व मूत्राशय में खतरनाक रोगाणुओं को बढ़ने से रोकते है।

मेथी पावडर 

मेथी पावडर को सूखी अदरक और शहद के साथ मिला कर पानी के साथ खाएं। ऐसा हर दो दिन पर करें। बार बार पेशान आने की समस्या मे लाभ होगा |

शहद और तुलसी

एक चम्‍मच शहद के साथ 3-4 तुलसी की पत्तियाँ मिलाएं और खाली पेट सुबह खाएं।

बार बार पेशाब आने का घरेलू उपचार है बेकिंग सोड़ा

ये एलकेलाइन होता है जो बार-बार पेशाब आने के लक्षणों को कम करता है और जिन स्थितियों के कारण ये समस्‍या होती है, उन्‍हें भी ठीक करता है। एक गिलास पानी में आधा चम्‍मच बेकिंग सोडा डालकर पी लें। दिन में एक बार इस पानी को पीने से फायदा होगा।


बार बार पेशाब आने का घरेलू नुस्खा है तुलसी

तुलसी एंटीऑक्‍सीडेंट की तरह काम करती है और शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को भी बाहर निकालती है। इसके एंटीमाइक्रोबियल गुण यूटीआई के इलाज में मददगार होते हैं। आपको बता दें कि यूटीआई बार-बार पेशाब आने का प्रमुख कारण होता है। 5 से 7 तुलसी की पत्तियां लें और उन्‍हें पीसकर रस निकाल लें। अब इस रस में दो चम्‍मच शहद मिलाकर पी लें। रोज सुबह खाली पेट ये उपाय करने से लाभ होगा।

नुस्खा-

500 ML. (आधा किलो) पानी में 100 ग्राम प्याज के टुकडे़ डालकर उबालें
जब अच्छी तरह से उबल जाये तो इसे छानकर शहद मिला लें
रोजाना 3 बार सुबह, दोपहर और शाम को लेने से पेशाब खुलकर, बिना कष्ट के आने लगता है
ये घरेलू नुस्खा बार बार पेशाब जाना ठीक करता है. यदि पेशाब बन्द भी हो गया हो तो वह भी आने लगता है.
गर्म दूध में गुड़ मिलाकर पीने से भी मूत्राषय के रोगों में लाभ होता है. पेशाब साफ और खुलकर आता है. रूकावट दूर होती है. यह रोज, एक गिलास दो बार पीयें.

बहुमूत्र और पेशाब में जलन का एक और उपाय

पिशाब में जलन होने पर आप अजवाइन को नमक के पानी में धोकर पीएं
दिनभर में कम से कम दो बार इस प्रक्रिया को करें
आपको ऐसा कुछ ही दिनों तक करना है. कुछ ही दिनों में आपकी बार बार पेशाब आने की परेशानी दूर हो जाएगी.
आंवला से बहुमूत्र का उपचार
आंवले का चूर्ण बनाकर गुड़ के साथ मिलाकर खाएं, आपको पेशाब खुलकर आने लगेगा.
बार बार पेशाब जाने की झंझट से मुक्ति मिल जाएगी
रोजाना अपने नाश्ते में दो पके हुए केले का सेवन करें
कुछ ही दिनों में आपकी बार बार पेशाब के लिए जाने की समस्या दूर हो जाएगी.

जीरा और चीनी

दोनों को समान मात्रा में पीसकर दो चम्मच तीन बार फँकी लेने से रुका हुआ पेशाब भी खुल जाता है.
नीबू के बीजों को पीसकर नाभि पर रखकर ठण्डा पानी डालें. इससे रुका हुआ पेशाब होने लगता है.
और एक बार में आपको आराम मिला जायेगा. और आपको बार बार पेशाब के लिए भागना नही पड़ेगा.
सूखे आंवले को पीसकर इसका चूर्ण बना लें और इसमें गुड़ मिलाकर खाएं.
इससे बार-बार पेशाब आने की समस्या में लाभ होगा.

अनार के छिलकों को सुखा लें और इसे पीसकर चूर्ण बना लें.
अब सुबह-शाम इस चूर्ण का सेवन पानी के साथ करें.अगर चाहें तो इसका पेस्ट भी बना सकते हैं

ये चीजें न खाएं

जिन लोगों को बार-बार पेशाब आने की समस्‍या है वो कार्बोनेटेड ड्रिंक्‍स, शराब, कॉफी, चाय, चॉकलेट, खट्टे फल, मसालेदार चीजों, टमाटर, चीनी, कच्‍ची प्‍याज आदि का सेवन न करें।

6.10.21

हथेली और तलवों मे पसीना आने के उपचार: sweaty hands & feet home remedies

 


 

 वैसे तो पसीना आना बॉडी के लिए बहुत अच्छा होता है और यह एक सामान्य प्रक्रिया भी है। पसीना आने से शरीर में मौजूद अवांछित एंव विषैले तत्व बड़ी आसानी से बाहर हो जाते हैं। गौरबतलब शरीर के कई सारे ऐसे खास अंग जहां अधिक पसीना आता है जैसे बांहे,पीठ और सिर। मगर आपको ऐसे बहुत कम लोग देखने को मिलेंगे जिन लोगों की हथेली और तलवों में भी पसीना आता होगा।
सामान्यत: शरीर के कुछ खास अंगों में अधि‍क पसीना आता है लेकिन हथेली और तलवों में हर किसी को पसीना नहीं आता। अगर आपको भी हथेली और पैर के तलवों में पसीना आता है, तो यह जानकारी आपके लिए है। समान्य तापमान पर भी हथेली और तलवों में पसीना आना बिल्कुल सामान्य प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह किसी स्वास्थ्य समस्या का सूचक भी हो सकता है।  
 दरअसल सामान्य या कम तापमान पर भी पसीना आना, और खास तौर से हथेली व पैर के तलवों में पसीना आने की यह समस्या हाइपरहाइड्रोसिस नामक बीमारी भी हो सकती है। कभी कभार ऐसा होना सामान्य हो सकता है, लेकिन अक्सर इस तरह से पसीना आना हाइपरहाइड्रोसिस की ओर इशारा करता है। केवल हथेली या तलवे ही नहीं पूरे शरीर में अत्यधि‍क पसीना आना भी इस समस्या को दर्शाता है।
पसीना आना भले ही शरीर से अवांछित तत्वों को बाहर निकालने की प्रक्रिया है जो त्वचा और शरीर की आंतरिक सफाई का एक हिस्सा है, लेकिन दूसरी ओर अधि‍क पसीना आना आपके स्वास्थ्य को बिगाड़ भी सकता है। ज्यादा पसीना नमी पैदा करता है, और इसमें पनपने वाले बैक्टीरिया आपके स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और कई बीमारियों को पैदा करने में महत्वपूर्ण भमिका निभाते हैं।

उपचार बेकिंग सोडा -

 गरम पानी में थोड़ा सा बेकिंग सोडा मिला कर उसमें अपने पसीनेदार हाथों को डुबोएं। ऐसा केवल कुछ मिनट के लिये कीजिये और फिर देखिये कि इस घोल से हाथ को निकालने के बाद कई घंटो तक आपके हाथों में पसीना नहीं आएगा।

 टैल्‍कम पाउडर- 

अगर हथेलियों में हल्‍का पसीना आता है तो, उस पर टैल्‍कम पाउडर लगाइये। आप अपने बैग में पाउडर रख भी सकती हैं जिससे जरुरत पड़ने पर इस्‍तमाल किया जा सकता है। 

टी बैग- 

एक कटोर में पानी डाल कर उसमें 4-5 टी बैग डालिये और उसमें अपनी हथेलियों को भिगो दीजिये। यह प्राकृतिक रूप से आपके हाथों का पसीना कंट्रोल करेगी। 


ध्‍यान- 

मेडिटेशन करने से आपके कई सारे रोग दूर हो सकते हैं। अत्‍यधिक पसीना तभी निकलता है जब आप स्‍ट्रेस में हों या आपको किसी बात की बेचैनी हो रही हो। लेकिन योग और ध्‍यान से आप अपने स्‍ट्रेस के लेवल को कम कर के पसीने को रोक सकते हैं। 

खान-पान में सुधार- 

ज्यादा पसीना रोकने के लिये अपनी डाइट में सुधार भी करना जरुरी है। इसके अलावा लहसुन, प्‍याज और अन्‍य मसालों को खाने से पसीना ज्‍यादा बहता है, इसलिये इनका सेवन कंट्रोल में रह कर करें। टमाटर का रस भी रोजाना पीसे से इस समस्‍या से राहत मिलती है क्‍योंकि यह शरीर को ठंडा रखता है।

भोजन:


अपने भोजन में मसालों का प्रयोग कम करें।

  • भोजन में लहसुन, प्याज और अदरक को भी कम ही शामिल करें।
  • यह सब पसीने के कारक होते है।
  • हो सके तो ठंडी तासीर वाली चीजों का सेवन करें।
  • टमाटर का रस पिए यह आपके शरीर को ठंडा रखेगा।

  • गुलाब जल पसीना आने की समस्या को करे कम

    गुलाब जल का इस्तेमाल चेहरे की त्वचा को खूबसूरत बनाने के लिए किया जाता है। यह हाथ-पैरों से निकलने वाले पसीने की समस्या को भी कम करता है। गुलाब जल को हथेलियों और तलवों पर लगाने से ठंडक मिलती है। पानी में गुलाब जल की बूंदों को मिलाकर इसमें तलवों को डुबाकर रखें। इससे त्वचा को ठंडक का अहसास होगा। ठंडे पानी में गुलाब जल की कुछ बूंदें डालकर उसमें हथेलियों और तलवों को डालकर रखें। 10 मिनट के लिए पानी में हाथ-पैरों को रखने से पसीना आना कम हो जाएगा।
  • *ज्यादा पसीना आने का संबंध केवल बाहरी नहीं बल्कि आपके शरीर के अंदर हो रही परेशानियों की वजह से भी हो सकता है। जैसे ज्यादा चिंता कर लेना,डर और तनाव के समय भी शरीर से ज्यादा पसीना खुद निकलने लगता है। यौवनावस्था शुरू होने पर बॉडी में होने वाले हॉर्मोनल बदलावों की वजह से शरीर में 30 लाख पसीने वाली ग्रंथियां सक्रिय हो जाती है। ऐसा किसी-किसी के साथ नहीं बल्कि सभी के साथ होता है,मगर हाइपरहाइड्रोसिस से पीडि़त लोगों को सामान्य लोगों से कई गुणा ज्यादा पसीना आता है। 

  • एप्पल साइडर वेनेगर से पसीना आने की समस्या करें दूर

    जब हद से ज्यादा पसीना आने लगता है, तो उस स्थिति को हाइपरहाइड्रोसिस कहते हैं। आमतौर पर ये समस्या गर्मी या अधिक एक्सरसाइज करने से संबंधित नहीं होती है। कुछ लोगों में अधिक पसीना आने से सोशल एंग्जायटी या शर्मिंदगी का कारण बन जाता है। आपके साथ भी ऐसा होता है, तो डॉक्टर से जरूर संपर्क करें। इसके अलावा इस समस्या को आप सेब के सिरका का इस्तेमाल करके दूर कर सकते हैं। सेब का सिरका शरीर में पीएच लेवल को बैलेंस करता है। पसीना अधिक आने की समस्या को भी दूर करता है। हथेलियों और तलवों में कॉटन की मदद से सेब का सिरका लगाएं। भोजन में भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। सलाद में डालें। पानी में एक चम्मच सिरका डालकर पी सकते हैं।
 हाइपरहाइड्रोसिस का इलाज सामान्यत: स्वेद ग्रंथि के ऑपरेशन द्वारा होता है लेकिन अत्यधि‍क पसीने की परेशानी को आप कुछ हद तक कम कर सकते हैं।इसके लिए आपको ऐसे कपड़ों का चुनाव करना चाहिए जो पसीने को आसानी से सोख ले और आपकी त्वचा सांस ले सके।   

नींबू का छिलका अधिक पसीना आने की समस्या से दिलाए छुटकारा

हथेलियों और तलवों में आपको पसीना अधिक आता है, तो आप इसे ठीक करने के लिए नींबू का इस्तेमाल करें। नींबू के छिलकों को तलवों और हथेलियों पर रगड़ें। नींबू का रस निचोड़कर उसमें चुटकी भर नमक मिलाएं। इसे हाथ और पैर में लगाकर नींबू के छिलकों से रगड़ें, थोड़ी देर सूखने दें फिर पानी से साफ कर लें। इससे हाथ-पैरों की त्वचा मुलायम भी होगी।
  इसके अलावा हथेली और पैर के तलवों में आने वाले पसीने से बचने के लिए उन्हें खुला रखना बेहद जरूरी है। दिनभर अगर आप ऑफिस में या बाहर, मोजे और जूतों से पैक रहते हैं, तो घर पर उन्हें पूरी तरह से खुला रखें। इसके अलावा जब भी संभव हो पैरों से जूते और मोजे निकाल दें। इससे पसीना कम आएगा और बैक्टीरिया भी नहीं पनपेंगे। 
   हाथों के लिए भी खुलापन बहुत जरूरी है और इसमें लगातार हवा लगती रहे इस बात का भी ध्यान रखें। हाथों को हमेशा साफ रखें और शरीर की सफाई का भी विशेष ध्यान रखें।
प्रतिदिन नहाएं और त्वचा को अच्छी तरह से पोंछकर साफ करें, इसके बाद डिओ या अन्य उत्पादों का प्रयोग करें। हो सके तो नहाने के पानी में एंटी बैक्टीरियल लिक्विड की कुछ बूंदे डाल दें।

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4.10.21

नींद शुरू होते वक्त सांस मे तकलीफ (sleep apnea) स्लीप एप्निया के कारण उपचार और परहेज




 क्‍या आपको रात में ठीक से नींद नहीं आती? या फिर एक बार नींद खुल जाने के बाद दोबारा सोना मुश्किल हो जाता हैं? तो हो सकता है कि आप ओएसए से ग्रस्‍त हो।
  पूरी रात सोने के बाद भी सुबह के समय थकान महसूस होना, दिनभर आलस बने रहना, मानसिक समस्याएं होना, डाइजेशन ठीक से ना होना, यादाश्त पर असर, कब्ज बने रहना इन सबकी एक वजह स्लीप एपनिया भी हो सकती है।स्लीप एपनिया एक ऐसी दिक्कत है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति की सांस उस समय कुछ देर के लिए रुक जाती है, जब वह सो रहा हो। इस दौरान उनके शरीर को पूरी ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। सांस टूटने से उनकी आंख खुल जाती है और उठते ही वह तेजी से हांफने लगता है। इस समस्या से ग्रस्त कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें जागने पर इस बात का अहसास भी नहीं होता कि सोते समय उन्हें सांस नहीं आ रही थी इसलिए वे तेजी से सांस ले रहे हैं और अजीब घबराहट महसूस कर रहे हैं।
  स्लीप एपनिया के पारंपरिक उपचार में रात में CPAP मास्क पहनना शामिल है। लेकिन कुछ लोग इस मास्क को लगाकर सोने में सहज नहीं होते। इन लोगों को अपनी रोजमर्रा की आदतों में बदलाव करना चाहिए। इनमें सबसे पहला नंबर आता है अपने वजन पर नियंत्रण रखना। हर रोज योग करना और हो सकते तो आधा घंटे की वॉक भी रोज करें। सोने की जगह और पॉश्चर बदल सकते हैं। एल्कोहॉल और स्मोकिंग से दूर रहें। अगर तब भी आराम महसूस ना हो तो डॉक्टर से जरूर मिलें।

उपचार क्या है?

स्लीप एप्निया एक गंभीर नींद विकार है, जो तब होता है जब नींद के दौरान किसी भी व्यक्ति का सांस लेने और श्वसन कार्य बाधित होता है। जो लोग इस बीमारी से अवगत नहीं हैं और बिना इलाज स्लीप एप्निया के साथ रहते हैं, उनकी नींद के दौरान कई बार सांस लेने से रोकते हैं, जो कभी-कभी सैकड़ों बार चलता है।
जब ऐसा होता है तो मस्तिष्क और बाकी स्लीप एप्निया रोगी के शरीर को उनकी नींद के दौरान पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलता है।
स्लीप एप्निया को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

ओएसए (अवरोधक स्लीप एप्निया): 

यह स्लीप एप्निया रोगी के वायुमार्ग में अवरोध के कारण होता है, और यह दो प्रकारों में अधिक आम है। यह लक्षण तब होता है जब नींद के दौरान रोगी के गले के पीछे सॉफ्ट टिश्यू कोलैप्स है।
सेंट्रल स्लीप एप्निया: यह एक गंभीर प्रकार की स्लीप एप्निया है, जहां वायुमार्ग ओएसए की तरह अवरुद्ध नहीं होता है, लेकिन रोगी का मस्तिष्क सांस लेने के लिए श्वसन मांसपेशियों को संकेत देने में विफल रहता है। यह इस बीमारी से पीड़ित रोगी के श्वसन नियंत्रण केंद्र में अस्थिरता के कारण होता है।
स्लीप एप्निया किसी भी उम्र के किसी भी व्यक्ति, यहां तक ​​कि बच्चों को भी प्रभावित कर सकती है। लेकिन जो लोग इस बीमारी के जोखिम में अधिक हैं वे हैं:
जो लोग अधिक वजन वाले हैं
पुरुष होने के कारण
40 साल से अधिक होने के कारण
बड़े आकर वाले गर्दन (महिलाओं में 16 इंच या उससे अधिक और पुरुषों के लिए 17 इंच या अधिक)
बड़ी जीभ, बड़े टन्सिल या उल्लेखनीय छोटी जबड़े की हड्डी
जीईआरडी या गैस्ट्रोसोफेजियल रिफ्लक्स रोग से पीड़ित लोग
एलर्जी, नाक या साइनस समस्याओं के विचलित सेप्टम के कारण नाक की बाधा

Obstructive sleep apnea क्‍या है?

ओएसए एक ऐसा disorders है, जिसमें नींद के दौरान सांस लेने में बार-बार रुकावट होती है। इसके कुछ कारणों में अधिक वजन, ऊपरी वायुमार्ग का छोटा होना, जीभ का बड़ा आकार और टॉन्सिल जैसी कई समस्‍याएं देखने को मिलती हैं। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष एवं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्‍टर के.के. अग्रवाल का कहना हैं कि ओएसए नींद का एक सबसे सामान्य प्रकार है, जिसका एक संकेत है खर्राटे आना। ओएसए की वजह से ब्‍लड में ऑक्सीजन का लेवल कम हो जाता है और नींद में बाधा पड़ने से हार्ट डिजीज का जोखिम पैदा हो जाता है। ओएसए से ग्रस्‍त आधे लोगों में high blood pressure भी होता है।
यह पुरुषों में अधिक आम है और बुढ़ापे के साथ इसकी संभावना बढ़ जाती है। यह आनुवांशिक भी हो सकता है। कुछ जातियों के लोग दूसरों की तुलना में इससे अधिक ग्रस्त पाए गए हैं। पुरुषों में 17 इंच से अधिक और महिलाओं में 15 इंच से अधिक चौड़ी गर्दन होने पर यह समस्या हो सकती है।

Obstructive के संकेत और लक्षण

दिन में नींद आना
जोर से खरार्टे लेना
नींद के दौरान सांस लेने में कठिनाई
अचानक नींद खुल जाना
गले में खराश
सुबह के समय सिरदर्द
फोकस करने में कठिनाई
मूड में परिवर्तन
हाई ब्‍लड प्रेशर
रात को पसीना आना
सेक्‍स इच्‍छा में कमी अदि प्रमुख हैं।

स्लीप एपनिया के कारण
मोटापा
बड़े आकार के टॉन्सिल
हार्मोन का अत्यधिक उत्पादन से संबंधी परेशानी (एंडोक्राइन डिसऑडर)
हाइपोथायरायडिज्म ( (थायराइड हार्मोन का स्तर कम होना)
एक्रोमिगेली (ग्रोथ हार्मोन का बढ़ा हुआ स्तर)
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (हार्मोन विकार)
न्यूरोमस्कुलर रोग यानी तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाली बीमारियां
किडनी संबंधी समस्या
आनुवंशिक सिंड्रोम, जैसे क्लेफ्ट लिप्स व डाउन सिंड्रोम आदि
समय से पहले जन्म
दिमागी संक्रमण
स्ट्रोक
रीढ़ की समस्या
दर्द निवारक दवाइयां

सोते समय सांस लेने में तकलीफ को यूं करें दूर

बदलें अपनी पोजिशन


सोते समय एक छोटा सा परिवर्तन आपकी नींद की स्थिति को बदलकर स्लीप एप्निया के लक्षणों को कम कर सकता है। मसलन, अगर आप सोते समय पीठ के बल सोते हैं तो इससे आपकी समस्या और भी अधिक बढ़ सकती है। वहीं एक साइड होकर सोने से आपको आराम मिल सकता है, हालांकि हर व्यक्ति के लिए स्लीप पोजिशन अलग हो सकती है। इसलिए आप भी अपनी समस्या से आराम पाने के लिए अपनी स्लीप पोजिशन को बदलकर देखें कि आपको किसमें सबसे अधिक आराम मिलता है।

ह्यूमिडिफायर का करें प्रयोग


अमूमन शुष्क हवा आपकी श्वसन प्रणाली को परेशान कर सकता है और इससे आपकी स्लीप एप्निया की समस्या बढ़ सकती है। वहीं ह्यूमिडिफायर एक ऐसा उपकरण है जो हवा में नमी जोड़ते हैं। ह्यूमिडिफायर का उपयोग करने से आपका वायुमार्ग खुल सकता है और ब्रीदिंग क्लीयर होती है।

मेंटेन करें हेल्दी वेट

स्लीप एप्निया से ग्रस्त व्यक्ति को एक हेल्दी वेट मेंटेंन करना चाहिए। मोटापा, विशेष रूप से शरीर के ऊपरी भाग में वायुमार्ग की बाधा का कारण बनता है। जिसके कारण सोते समय आपकी समस्या बढ़ सकती है। वहीं हेल्दी वेट मेंटेन करने से आपके वायुमार्ग को क्लीयर रहने में मदद मिलती है। जिससे स्लीप एप्निया के लक्षण कम होते हैं।

करें योगाभ्यास

नियमित व्यायाम आपके ऊर्जा स्तर को बढ़ा सकता है, आपके दिल को मजबूत कर सकता है, और स्लीप एपनिया में सुधार कर सकता है। योग विशेष रूप से आपकी श्वसन शक्ति में सुधार कर सकता है और ऑक्सीजन प्रवाह को प्रोत्साहित कर सकता है। स्लीप एपनिया आपके रक्त में ऑक्सीजन की कमी के साथ जुड़ा हुआ है। वहीं योगाभ्यास से आपके ऑक्सीजन के स्तर में सुधार होता है और आपको नींद संबंधी कई समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
रिस्क फैक्टर- पुरुष होना, ज्यादा वजनी होना, 40 वर्ष पार का होना, पुरुषों में 17 इंच या ज्यादा और महिलाओं में 16 इंच या ज्यादा गर्दन की आकार का होना, लंबी जुबान, जबड़े की छोटी हड्डी, परिवार में किसी का स्लीप एपनिया की हिस्ट्री या साइनस इसके प्रमुख रिस्क फैक्टर हैं।
अगर आप इसका इलाज करवा रहे हैं और इलाज बीच में ही छोड़ दिया है तो ये स्ट्रोक, हाइपरटेंशन, हार्ट फेल्योर, डायबिटीज, डिप्रेशन, सिर दर्द के जोखिम को बढ़ा सकता है।
स्लीप एपनिया का इलाज ज्‍यादा वजन को देखते हुए किया जाता है। पीड़ित लोगों को डॉक्टर अक्सर लगातार व्यायाम का हेल्दी डाइट का साथ सुझाव देते हैं। जैसे ही वजन कम होता है, स्लीप एपनिया के लक्षण दूर होने लगते हैं या कम होते हैं। मोटापा वायुमार्ग में रुकावट और नाक की तंग नली का जोखिम बढ़ा सकता है।
ये बाधा सोते समय अचानक आपकी सांस को रोक सकती है। हेल्दी वजन को बनाए रखकर आप वायुमार्ग को साफ रख सकते हैं और स्लीप एपनिया के लक्षणों को कम कर सकते हैं।
सोने के तरीके में मामूली बदलाव स्लीप एपनिया के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है और आपकी रात की नींद को सुधारता है। स्लीप एपनिया ज्यादा आम उन लोगों में है जो अपनी पीठ के बल सोते हैं। नींद के दौरान आपके सभी मसल आराम करते हैं।
योग- नियमित योग या व्यायाम आपके एनर्जी लेवल को बढ़ा सकता है, दिल को मजबूत कर सकता है और स्लीप एपनिया को सुधार सकता है। योग के कई अभ्यास सूजन को कम करने में मददगार और वायुमार्ग को खोलते हैं।
प्राणायाम यानि सांस की एक्‍सरसाइज से जुडे योगा मदद कर सकते हैं। स्लीप एपनिया की दिक्कतों को कम करने के लिए स्मोकिंग और अल्कोहल का सेवन भी छोड़ देना चाहिए।
1 रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन की समस्या होने पर डॉक्टर से मिलें। इसके इलाज में डॉक्टर आपको एंटीबायोटिक्स या एंटीवायरल दवाएं (breathing problem while sleeping) खाने के लिए दे सकता है।
2 वजन अधिक है, तो इसे एक दिन में तो कम किया नहीं जा सकता है। ऐसे में आप रात में पीठ के बल सोने की बजाय एक तरफ होकर सोएं। ऐसा करने से फेफड़ों पर अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ेगा। वजन कम करने के लिए एक्सरसाइज, वर्कआउट और वेट लॉस डाइट फॉलो करें।
3 क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज की समस्या (सीओपीडी) एक क्रॉनिक फेफड़ों की बीमारी है। इसमें सांस की नलियां सिकुड़ जाती हैं और उनमें सूजन आ जाती है। यदि आपको सीओपीडी है, तो भी रात में सांस लेने में तकलीफ (breathing problem while sleeping) हो सकती है। इस लक्षण को कम करने के लिए नाक से सांस लें और होंठ को पीछे करके मुंह से छोड़ें।
4 स्लीप एप्निया में भी सोते समय सांस लेने में दिक्कत (breathing problem while sleeping) होती है। स्लीप एप्निया एक गंभीर नींद से संबंधित विकार है। इसमें नींद के दौरान सांस लेने और श्वसन कार्य बाधित होते हैं। तनाव के कारण भी सोते समय सांस लेने में मुश्किल आती है। सबसे पहले तनाव से छुटकारा पाएं।

होमियोपैथी में छिपा है स्लीप एप्निया का आसान और कारगर इलाज

अक्सर नींद के दौरान सांस लेने में कई अवरोध आते हैं। यह एक ऐसी स्थिति जो आपकी नींद में बाधा डालती है। इस समस्या को "स्लीप एप्निया" (sleep apnea) कहते हैं। होमियोपैथी से स्लीप एप्निया का उपचार बिना किसी दुष्प्रभाव के बहुत ही कम समय में किया जा सकता है।
होमियोपैथिक (homeopathy) दवाओं से दूर करें समस्या
अर्सेनिकम: यह सांस संबंधी विकारों को दूर करने में सहायक होती है।
सल्फर: यह सांस लेने में आ रही रुकावट और उससे उत्पन्न घुटन दूर करती है।
स्पोंगिया: यह सीने की जकड़न को दूर कर आराम पहुंचाती है।
ओपियम: यह सांस द्वारा उत्पन्न उलझन को दूर करने में सहायक है।
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29.9.21

काला धतूरा के चमत्कारिक गुण उपयोग फ़ायदे:black datura plant



 

आयुर्वेदिक मत से धतूरा नशीला बुखार को दूर करने वाला कुष्ठ को नष्ट करने वाला, कसैला, मीठा, कड़वा, जुएं और लीख को मारने वाला, गरम, भारी तथा वर्ण, कफ, चर्म रोग, किर्मी और विष को नष्ट करने वाला है। यह कांति, जठराग्नि और वात को बढ़ाता है।
  धतूरे का पौधा सारे भारत में सर्वत्र सुगमता से बहुतायत में उपलब्ध होता है। आमतौर पर खेतों के किनारे, जंगलों में, गांवों, शहरों में यहां-वहां उगा हुआ दिख जाता है। भगवान शिव की पूजा के लिए लोग इसके फूल और फलों का उपयोग करते हैं। धतूरा सफेद, काला, नीला, पीला तथा लाल पुष्प वाला पांच जातियों का मिलता है, जिसमें काला धतूरा श्रेष्ठ माना जाता है।
 धतूरा को अन्य भाषाओं में मदन, उन्मत्त, शिवप्रिय, महामोही, कृष्ण धतूरा, खरदूषण, शिवशेखर, सविष, कनक, धुतूरा, सादा धुतूरा, धोत्रा, काला धतूरी, जन्जेलमापिल, ततूर, दतुरम, (stramonium) आदि नामो से जाना जाता है। ये एक क्षुप जाति की वनस्पति है। इसके पत्ते बड़े डंठल युक्त, नोकदार, अण्डाकृत होते है। इसके फूल घंटे के आकार के होते है, फूल का रंग बीच में सफ़ेद होता है। इनमे पांच पंखुडिया होती है।इसके फल गोल, कांटेदार और भीतर बहुत बीजो वाला होता है। इसके वनस्पति के सूखे पत्ते और बीज औषधि प्रयोग के काम आते है। इसके बीज कालेपन लिए भूरे रंग के, चपटे, खुरदरे और कड़वे होते है। इनमे कोई सुगंध नहीं होती, मगर कूटने पर एक प्रकार की उग्र गंध आती है। 
  काला धतूरा के पत्ते नोक दार ,डंठल युक्त और बड़े आकार के होते हैं। काला धतूरा के फूल घंटी के आकार के होते हैं इनका रंग सफेद होता है। काला धतूरा का फल गोल और ऊपर से कांटेदार होता है । काला धतूरा का बीज काले रंग के और बहुत अधिक मात्रा में फल में मिलते हैं।
काला धतूरा के बीज गंध रहित होते हैं।
काला धतूरा का वैज्ञानिक नाम धतूरा स्ट्रामोनियम DHATURA STRAMONIUM है ।
धतूरे के अंदर कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं। इसका इस्तेमाल करके हम स्वस्थ बने रह सकते हैं। आयुर्वेद की कई दवाओं में भी इसके पत्ते का इस्तेमाल किया जाता है।
धतूरा मस्तिक में सुस्ती पैदा करने वाला, पित्त की तेजी से होने वाले सिर दर्द को दूर करने वाला है। यह सूजन को पकाकर बिखेर देता है। खराब दोषो को सुखा देता है। स्तंभन पैदा करता है। पाचक है, उल्टी लगाता है, कफ की बुखार, कोढ़, फोड़े फुंसी और पेट के कीड़ों को नष्ट करता है। इसके रस को पिलाने से कुत्ते का विश्व शांत होता है। दूसरे जहरीले जानवरों के बीष पर भी यह लाभ पहुंचाता है। मासिक धर्म में भी यह लाभदायक है।
उदरशूल, पिताश्यमरी शुल और मूत्र पिंड के शुल में भी यह धतूरा दिया जाता है मगर इन कामों में अफीम और खुरासानी अजवायन धतूरे की अपेक्षा विशेष उत्तम होते हैं।यह आपकी चोट के दर्द को चुटकियों में दूर कर सकता है। इसके अलावा भी इसके कई फायदे हैं, जिनके बारे में नीचे पूरी जानकारी दी जा रही है। इस बात का विशेष ध्यान दें कि धतूरे को खाने के लिए बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं करना है। यह जानलेवा भी हो सकता है।


कान के किसी भी रोग में करें उपयोग

कान में दर्द और सूजन की स्थिति में आप धतूरे का प्रयोग कर सकते हैं। धतूरे में एंटी-इन्फेल्मेट्री और एंटी-सेप्टिक गुण पाया जाता है। इस कारण से यह कान की इस समस्या को खत्म करता है
धतूरे के अंदर कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं। इसका इस्तेमाल करके हम स्वस्थ बने रह सकते हैं। आयुर्वेद की कई दवाओं में भी इसके पत्ते का इस्तेमाल किया जाता है।
   यह आपकी चोट के दर्द को चुटकियों में दूर कर सकता है। इसके अलावा भी इसके कई फायदे हैं, जिनके बारे में नीचे पूरी जानकारी दी जा रही है। इस बात का विशेष ध्यान दें कि धतूरे को खाने के लिए बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं करना है। यह जानलेवा भी हो सकता है।

​रखें इस बात का ध्यान

फायदे जानने से पहले यह बात जान लें कि इसे केवल त्वचा पर इस्तेमाल करना है। इसे खाना नहीं है, क्योंकि इसमें कुछ जहरीले तत्व भी पाए जाते हैं। ओरल रूप में किया गया इनका सेवन जानलेवा भी हो सकता है। खासकर इसे बच्चों की पहुंच से दूर रखें।

धातू का बहना मे धतूरे के फायदे 

धतूरे के बीज और काली मिर्ची को पानी में पीसकर काली मिर्च के बराबर गोलियां बना लें इसमें से एक गोली सुबह-शाम सौंफ अर्क के साथ लेने से 21 रोज में पुरानी से पुरानी अनैच्छिक वीर्य स्राव की बीमारी दूर हो जाती है मगर खटाई और बादी की चीजों से परहेज करना चाहिए।

​गंजेपन की समस्या को करता है खत्म

गंजेपन से परेशान लोग इसके रस को प्रभावित जगह पर लगा सकते हैं। इसके रस में ऐसे विशेष गुण होते हैं, जो सीबम को स्वस्थ करते हैं और गंजेपन की समस्या को रोक देते हैं।
​हड्डियों के जोड़ बनाता है मजबूतहड्डियों को मजबूत बनाने के लिए भी धतूरे का उपयोग किया जाता है। धतूरे में कैल्शियम की अच्छी मात्रा पाई जाती है। इसका रस निकालकर हड्डियों के जोड़ पर मालिश करने से यह स्किन पोर से सोख लिया जाता है। जिससे हड्डियों को मजबूती मिलती है।

गठिया (आर्थराइटिस) रोग को जड़ से खत्म करे धतूरा

इसके पत्तो को पीसकर सूती कपडे में पुल्टिस बांधकर या पेस्ट बनाकर दर्द वाली जगह पर लेप करने से गठिया और हड्डी के दर्द में बहुत लाभ मिलता है।

दांत के दर्द में धतूरा के औषधीय प्रयोग

शिवशेखर के बीजो को पीसकर गोली बना ले। इसे दांत में हुए सूराख या दांत के दर्द वाले स्थान पर रखने से लाभ मिलता है।

चुटकियों में दूर होंगे कई दर्द

अगर आपको किसी प्रकार का दर्द है तो आप इसके जरिए उसे चुटकियों में दूर कर सकते हैं। धतूरे को पीसकर इसका पेस्ट बना लें और इसमें दो चार बूंद शहद की मिला लें। अब इसे दर्द वाले स्थान पर लगा लें। एंटीसेप्टिक गुण होने के कारण इसका पेस्ट आपके दर्द को ठीक कर देगा।

चोट की सूजन को करता है दूर

धतूरे के फल में एंटीइन्फ्लेट्री गुण पाया जाता है, जिसके कारण से यह चोट की या सामान्य रूप से हुई सूजन को कम कर देता है। चोट की सूजन को दूर करने के लिए इसके फलों को खूब अच्छी तरह कूट लें। पेस्ट बनाकर इसे सूजन वाली जगह पर लगाकर राहत पाई जा सकती है। प्राइवेट पार्ट में क्रिकेट आदि खेलने के दौरान होने वाली सूजन को दूर करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है

सेक्स पॉवर बढ़ाने में धतूरा उपयोगी –

धुतूरा के बीज, अकलकरा और लौंग इन तीनो चीजों की पीसकर गोलिया बना ले। इन गोलियों के खिलाने से कामशक्ति बढ़ती है।

वायरल बुखार में अपनाएं धतूरा के घरेलू उपाय –

काले धतूरे के बीज को पीसकर इसका चूर्ण बना ले। इसे आधी रत्ती के मात्रा में बुखार आने से पहले देते पर बुखार छूट जाता है और शरीर का तापमान सामान्य हो जाता है।

धतूरा के पत्तों की पोटली (घाव )

जिस घाव पर गहरा पीप या पपड़ी जम गया हो उसको गुनगुने पानी की धार से धोकर दिन में 3-4 बार धतूरा के पत्तों की पोटली बांधनी चाहिए।
धतूरे के पत्तों के रस को आग पर गाढ़ा करके, कान के पीछे की सूजन पर लगाने से आराम मिलता है।
• कान में यदि मवाद बहता हो तो 8 भाग सरसों का तेल, 1 भाग गंधक, 32 भाग धतूरा के पत्तों का रस मिलाकर गर्म कर लें, फिर इस तेल की एक बूंद कान में सुबह-शाम डालने से कान के दर्द में आराम आता है।
• धतूरे के पत्तों को गर्म करके 2-3 बूंदों को कान में टपकाने से कान दर्द से छुटकारा मिलता है।
• 400 ग्राम धतूरा का रस, धतूरा के रस में चटनी की तरह पिसी हुई हल्दी 25 ग्राम और तिल का तेल 100 ग्राम लेकर हल्की आग पर पका लेते हैं। तेल शेष रहने पर छान लेते हैं। यह कान के और नाड़ी के घाव के लिए लाभकारी होता है।
• जिस कान में दर्द हो उसके अन्दर धतूरे के ताजे पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस की 2 बूंदे कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।

बादी के दर्द में धतूरा के औषधीय प्रयोग


काले धतूरे का पंचांग का रस निकालकर उसको तिल्ली के तेल में पचा देना चाहिए, इस तेल को मालिश करके ऊपर धतूरे के पत्ते से बाँध देने से बादी का दर्द मिट जाता है।

हाथ – पैरों में पसीने की अधिकता में धतूरा के बीजों की राख

• धतूरे के बीजों की राख बनाते हैं। फिर इसे 1-1 ग्राम की मात्रा में 8-10 दिन रोजाना एक बार सेवन करने से हाथ-पैरों में अधिक पसीना आने का रोग दूर हो जाता है।
• लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग धतूरे के बीजों को खाने से हाथ-पैरों में पसीना आने वाले रोगी को लाभ मिलता है।
*धतूरा के बीज का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लेकर 1 ग्राम तक दही के साथ बुखार आने से पहले खिला दें तो बुखार दुबारा नहीं चढ़ता है। इस प्रयोग से पहले बीजों को लगभग 12 घंटे तक गाय के मूत्र में भिगोकर रख दें।

धतूरा का पीला पत्ता कान से कम सुनाई देना –

धतूरा का पीला पत्ता (बिना छेद वाला) को गर्म करके उसका रस निकाल लें। इस रस को लगातार 15 दिन तक कान में डालने से बहरापन ठीक हो जाता है।

पारम्परिक उपयोग:

काला धतूरा के बीज, पत्तियों और जड़ों का उपयोग पागलपन, बुखार, दस्त, मस्तिष्क संबंधी जटिलताओं, त्वचा रोगों में किया जाता है।
इसके पत्तों और बीज के रस को तेल में मिलाकर गठिया के सूजन, फोड़े और गांठों में दर्द को दूर करने के लिए उपयोग किया जाता है।
कफ को ठीक करने के लिए इसके पौधे की पत्तियों से धूम्रपान किया जाता है।
इसकी जड़ों का उपयोग दांत दर्द और दांतों को साफ करने में किया जाता है।
काला धतूरा को दूध में उबाल कर मक्खन के साथ पागलपन के इलाज में दिया जाता है।
असम में, इसकी चार-पाँच पत्तियों को सरसों के तेल के साथ गर्म करने के बाद महिलाओं के स्तन को कसने के लिए लगातार 10 दिनों तक स्तन के ऊपर बाँधा जाता है।
पश्चिम बंगाल के लोग इसके बीजों के रस को सरसों के तेल तथा अन्य सामग्री में मिलाकर कुष्ठ रोग में लगाते हैं।
आंध्र प्रदेश में थोड़े से चूने के साथ इसकी पत्तियों का पेस्ट खुजली के इलाज में इस्तेमाल होता है।
बुखार में 4 दिनों तक दिन में दो बार काली मिर्च और लहसुन के साथ पत्तियों को पीसकर बनाई गई गोली दिया जाता है।
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