22.6.21

बवासीर के आयुर्वेदिक घरेलू उपचार:piles herbal medicine

 


बवासीर क्या हैं?




बवासीर को आमतौर पर पाइल्स के रूप में जाना जाता है। यह पुरानी कब्ज और टाईट दस्त के कारण होता है। जब इन क्षेत्रों की दीवारों को फैलाया जाता है तो यह गुदा और मलाशय के निचले क्षेत्रों में संलग्न नसों की सूजन और जलन होती है। विभिन्न कारण होते हैं, हालांकि कारणों के अधिकांश समय ज्ञात नहीं रहता है। यह नतीजा हो सकता है कि गर्भावस्था के दौरान इन नसों पर बढ़े हुए वजन या ठोस निर्वहन के कारण तनाव हो सकता है। वे मलाशय के अंदर स्थित हो सकते हैं, या वे गुदा के पास की त्वचा के नीचे हो सकते हैं।
चार वयस्कों में से लगभग तीन को एक बार होता है। कभी-कभी ये अलग-अलग मौके पर दुष्प्रभावों का कारण नहीं बनते हैं, ये झुनझुनी, संकट और मरने का कारण बनते हैं। रक्तस्राव बवासीर में फ्रेम कर सकता है। ये खतरनाक नहीं हैं, बल्कि अविश्वसनीय रूप से दर्दनाक हो सकते हैं और कुछ समय के लिए असुविधा हो सकती है। सौभाग्य से, कई सफल विकल्प उनके इलाज के लिए सुलभ हैं। घरेलू उपचार और जीवन में बदलाव के साथ कई लोग साइड इफेक्ट से राहत पा सकते हैं।

बवासीर के प्रकार क्या हैं?

इन्हें निम्नलीखित दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
आंतरिक बवासीर: यह आमतौर पर मलाशय के अंदर पाया जाता है। अक्सर, प्रमुख संकेत मलाशय से खून बहना होता है। मल के दौरान तनाव आंतरिक रूप से धक्का देने से होता है क्योंकि यह गुदा से गुजरता है। यह एक विकृत या लम्बी अवस्था के रूप में जाना जाता है और यह दर्दनाक हो सकता है।
बाहरी बवासीर: आम तौर पर यह गुदा के पीछे-छोर के आसपास की त्वचा के नीचे पाया जाता है। स्टूल पास करते समय दबाव डालना, नसों में बहुत अधिक दबाव के कारण रक्तस्राव हो सकता है।

बवासीर के लक्षण क्या हैं?

मल त्याग के दौरान दर्द रहित रक्तस्राव - आप अपने टॉयलेट टिशू पर या लैट्रीन में सीमित लाल रक्त देख सकते हैं
आपके रियर-एंड के पास मस्सा या गांठ, जो संवेदनशील या दर्दनाक हो सकती है
आपके गुदा में झुनझुनी या जलन
दर्द या असुविधा
आपके गुदा के आसपास सूजन

बवासीर का कारण क्या है?

रियर-एंड के आसपास नसों का विकास बवासीर का कारण बनता है। यह कारणों से हो सकता है:
गर्भावस्था: वे गर्भवती महिलाओं में अधिक नियमित रूप से होते हैं, जैसा कि गर्भाशय का फैलाव होता है, यह बृहदान्त्र में नस पर धक्का बनाता है, जिससे इसमें सूजन हो जाता है।
एजिंग: ये बड़े होकर दिखाई देते हैं। आयु वर्ग को 45 से 65 वर्ष में वर्गीकृत किया जा सकता है। इसका मतलब यह नहीं है कि, किसी भी मामले में, कि युवा और बच्चे में नहीं होता हैं।
डायरिया: ये रन के निरंतर होने के बाद हो सकते हैं।

पुरानी कब्ज: 

मल को स्थानांतरित करने के लिए दबाव डालना नसों के डिवाइडर पर अतिरिक्त भार डालता है।

सिटिंग रिस्क: 

लंबे समय तक एक ही स्थिति में बैठे रहना। मामलों को विशेष रूप से ड्राइविंग, टेलरिंग और आईटी के व्यवसायों वाले लोगों के साथ यह देखा जाता है।

भारी उठाना: 

बार-बार पर्याप्त मात्रा में सामान उठाना।

गुदा संभोग: 

इस प्रकार का संभोग नए का कारण बन सकता है या मौजूदा को उत्तेजित कर सकता है।

वजन: 

आहार संबंधी कोरपुलेंस।

आनुवांशिकी:

कुछ व्यक्ति इन्क्लनेशन रूप जीन प्राप्त करते हैं।

बवासीर का निदान कैसे किया जाता है?

यदि आपका कोई बाहरी होता है तो आपका विशेषज्ञ मौके को देखकर ही जाँच कर सकता है। आंतरिक विश्लेषण करने के लिए परीक्षण और तकनीक आपके बट-केंद्रित ट्रेंच और मलाशय की टेस्ट को शामिल कर सकते हैं:

कम्प्यूटरीकृत परीक्षण: 

कम्प्यूटरीकृत रेक्टल परीक्षण के दौरान, आपका विशेषज्ञ आपके मलाशय में ग्लव्ड, मॉइस्चराइज्ड उंगली को एम्बेड करता है। रोगी को कुछ भी विचित्र यानी घटनाक्रम के लिए महसूस करने के लिए ऐसा करता है। यह परीक्षण किसी अन्य परीक्षण के लिए विशेषज्ञ की सिफारिश कर सकता है।

दृश्य समीक्षा: 

गुदा परीक्षण के दौरान, आंतरिक लोगों को आमतौर पर महसूस किया जाना मुश्किल होता है। आपका विशेषज्ञ इसी तरह एक प्रोक्टोस्कोप और कुंडली के साथ आपके मलाशय और बृहदान्त्र के अंतिम भाग को देख सकता है। आपके विशेषज्ञ को आपके पूरे बृहदान्त्र को कोलोनोस्कोपी के उपयोग से देखने की आवश्यकता हो सकती है।

बवासीर का इलाज कैसे करें?

इसके बढ़ने की गंभीरता और स्थिति के अनुसार उपचार करने के लिए कई सर्जिकल और नॉन-सर्जिकल तरीके हैं। वे इस प्रकार सूचीबद्ध हैं:
बवासीर के इलाज के लिए नॉन-सर्जिकल तरीके:
व्यायाम करना।
उचित आहार का पालन करना।
स्टूल सॉफ्टनर का उपयोग करना।
वार्म सिट्ज बाथ लेना।
क्रीम, मलहम और सपोसिटरी।
बवासीर के इलाज के लिए सर्जिकल तरीके:
उस क्षेत्र को काटने के लिए स्केलपेल का उपयोग करना।
धीरे-धीरे उन्हें लगातार दबाव के साथ धक्का देना।
छोटे से चीरा के साथ रक्तस्राव को हटा देना।
क्या दवाएं और अन्य उत्पाद बवासीर का इलाज करते हैं?
बवासीर के इलाज के लिए डॉक्टरों द्वारा निर्धारित कई उत्पाद हैं। सबसे आम उत्पादों में से कुछ सूचीबद्ध हैं:
डॉक्टर बटलर: जलन, खुजली, रक्तस्राव को कम करने में मदद करता है।
थेना नेचुरल वेलनेस: इस सोक का उपयोग करके सिट्ज स्नान किया जाता है।
हेम नियंत्रण कैप्सूल: यह क्रीम, मलहम या अन्य उपचार का एक विकल्प है।
ट्रोनोलेन हेमोर्रोइड्स क्रिम: यह अच्छा करने और दर्द, खुजली और दर्द को कम करने के लिए कसैले के रूप में काम करता है।
मदरलव ओरगेनिक र्होइड बाम: यह गर्भवती महिलाओं के लिए मरहम के रूप में एक विशेष उपयोगी है।
डोनट टेलबोन कुशन: यह कुशन विशेष रूप से बवासीर से पीड़ित लोगों के लिए बनाया गया है।
क्या सर्जरी से बवासीर ठीक होता है?
चिकित्सा प्रक्रिया के दौरान, ज्यादातर समय मुद्दे तय होते हैं। सफल दीर्घकालिक चिकित्सा प्रक्रिया बाधा
और तनाव से बचने के लिए कब्ज को रोकना आंत्र की आदतों पर निर्भर करता है। केवल 5% व्यक्तियों में चिकित्सा प्रक्रिया के बाद भी पुनरावृत्ति होती है।
खुनी बवासीर होने पर दही या लस्सी के साथ कच्चा प्याज खाने से फायदा मिलता है।
कैसी भी बवासीर हो कच्ची मूली खाने या उसका रस पीना चाहिए। एक बार में मूली का रस 25 से 50 ग्राम तक ही ले।
आम और जामुन की गुठली के अंदर वाले हिस्से को सुखा कर पीस लें और इसका चूर्ण बना ले। रोजाना 1 चम्मच चूर्ण पानी या लस्सी के साथ लेने से खुनी बवासीर में आराम मिलता है।
शरीर में कब्ज़ रहती हो और पेट ठीक से साफ़ न होता हो तो इसबगोल की भूसी का प्रयोग करे।
50 से 60 ग्राम बड़ी इलायची तवे पर भून ले और ठंडी होने के बाद इसे पीस कर चूर्ण बना ले। रोजाना सुबह खाली पेट इस चूर्ण को पानी के साथ लेने से पाइल्स ठीक होती है।
100 ग्राम किशमिश रात को सोने से पहले पानी में भिगो कर रखे और सुबह उस पानी में किशमिश को मसल कर इस पानी का सेवन करें। कुछ दिन निरंतर इस उपाय को करने से बवासीर ठीक होने लगती है।
10 से 12 ग्राम धुले हुए काले तिल ताजा मक्खन के साथ खाने से खूनी बवासीर में खून का आना बंद होता है। 
एक चौथाई चम्मच दालचीनी 1 चम्मच शहद में मिला कर खाने से भी पाइल्स में राहत मिलती है।
अगर आप को बवासीर बार बार होती है तो दोपहर के खाने के बाद लस्सी (छाछ) का सेवन करे। लस्सी में थोड़ा सा सेंधा नमक और अजवाइन मिला कर पिये।

बवासीर के मस्सों का रामबाण इलाज

80 ग्राम अरंडी के तेल को गरम कर ले फिर इसमें 10 ग्राम कपूर मिला कर रखे। मस्सों को साफ़ पानी से धो कर इसे किसी कपड़े से पोंछ ले और अरंडी के इस तेल से मस्सों पर हलके हाथों से मालिश करे। इस देसी नुस्खे को दिन में 2 बार करने से मस्सों की सूजन, दर्द, खारिश और जलन में आराम मिलता है।
थोड़ी सी हल्दी को सेहुंड के दूध में मिलाकर इसकी 1 बूंद मस्से पर लगाने से मस्सा ठीक हो जाता है। .
सहजन के पत्ते और आक के पत्तों का लेप लगाने से भी मस्सों से जल्दी छुटकारा मिलता है।
कड़वी तोरई के रस में हल्दी और नीम का तेल मिला कर एक लेप बना ले और मस्सों पर लगाये। इस उपाय के निरंतर प्रयोग से हर तरह के मस्से ख़तम हो जाते है।

खूनी और बादी बवासीर का आयुर्वेदिक उपाय

अंजीर का सेवन पाइल्स के इलाज में बेहद लाभकारी है। रात को सोने से पहले 2 सूखे अंजीर पानी में भिगो कर रखे और सुबह खाएं और 2 अंजीर सुबह भिगो कर रख दे जिसे आप शाम को खाये। अंजीर खाने के आधे से पौना घंटा पहले और बाद में कुछ खाये पिये नहीं। 10 से 12 दिन लगातार इस नुस्खे को करने से खुनी और बादी हर तरीके की बवासीर से राहत मिलती है।

जाने कब्ज़ का इलाज के देसी नुस्खे

बवासीर का इलाज बाबा रामदेव मेडिसिन
बवासीर के मस्सों से छुटकारा पाने के लिए अगर आप आयुर्वेदिक मेडिसिन लेना चाहे तो बाबा रामदेव पतंजलि स्टोर से आप दिव्य अर्शकल्प वटी ले सकते है। इस दवा की 1 से 2 गोली दिन में दो बार पानी या लस्सी के साथ ले।
योग से बवासीर का उपचार कैसे करे?

शरीर को स्वस्थ रखने और बीमारियों से जल्दी राहत पाने में योग करना अच्छा उपाय है। बवासीर के योग में अनुलोम – विलोम और कपालभाति प्राणायाम दिन में 2 बार करें। अगर आप प्राणायाम करने की सही प्रक्रिया नहीं जानते तो आप किसी योग गुरु की मदद ले।
जाने खून की कमी कैसे दूर करें

बवासीर में क्या खाये?

करेले का रस, लस्सी, पानी।
दलिया, दही चावल, मूंग दाल की खिचड़ी, देशी घी।
खाना खाने के बाद अमरूद खाना भी फायदेमंद है।
फलों में केला, कच्चा नारियल, आंवला, अंजीर, अनार, पपीता खाये।
सब्जियों में पालक, गाजर, चुकंदर, टमाटर, तोरई, जिमीकंद, मूली खाये।

बवासीर में परहेज क्या करे

बवासीर का उपचार में जितना जरूरी ये जानना है की क्या खाये उससे जादा जरुरी इस बात की जानकारी होना है कि क्या नहीं खाये।
तेज मिर्च मसालेदार चटपटे खाने से परहेज करें।
मांस मछली, उड़द की दाल, बासी खाना, खटाई न खाएं।
डिब्बा बंद भोजन, आलू, बैंगन।
शराब, तम्बाकू।
जादा चाय और कॉफ़ी के सेवन से भी बचे।

बवासीर से बचने के उपाय

बहुत से लोग इस बीमारी से प्रभावित है पर हम कुछ बातों का ध्यान रख कर इससे बच सकते है।
खाने पीने की बुरी आदतों से परहेज करे जैसे धूम्रपान और शराब।
खाने में मसालेदार और तेज मिर्च वाली चीजें न खाये।
पेट से जुड़ी बीमारियों से बचे।
कब्ज़ की समस्या बवासीर का प्रमुख कारण है इसलिए शरीर में कब्ज़ न होने दे।
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  • 6.6.21

    दिव्य श्वासारि क्वाथ के स्वास्थ्य लाभ:shwasari kwath ke fayde




    दिव्य श्वासारि क्वाथ एक ऐसी आयुर्वेदिक औषधि हैं जो खासी और जुकाम को ठीक करने में उपयोगी हैं,इसके अलावा साँस से सम्बंधित समस्याओ को दूर करने के लिए भी यह एक असरकारक दवा हैं। दिव्य स्वशरी क्वाथ प्रकृतिक जड़ी-बूटियों का एक मिश्रण हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक हैं। साँस लेने से सम्बंधित बिमारियों का कारण धूम्रपान, धूल-मिटटी या किसी और चीज़ से एलर्जी या फिर कमजोर इम्युनिटी का होना हो सकता हैं। यह औषधि फेफड़े की कोमल मांसपेशियो का उचित उपचार करके फेफड़ों को उसका उचित काम करने में मदद करती हैं।हर 5 ग्राम दिव्य श्वासारि क्वाथ में यह घटक बराबर मात्रा में होते है:-
    छोटी कटेली
    काला वासा
    सफ़ेद वासा
    बनफ्शा
    तुलसी
    तेजपत्र
    भारंगी
    लिसोररा
    अमलतास
    मुलेठी
    छोटी पीपल
    दालचीनी
    लौंग
    सोंठ
    दिव्य श्वासारि क्वाथ लाभ एवं उपयोग
    यह औषधि बिभिन्न रोगों में इस तरह से उपयोगी हैं:-

    जुकाम और खांसी

    दिव्य श्वासारि क्वाथ खासी और जुकाम के लिए अत्यधिक लाभकारी हैं। इस औषधि का काढ़ा बना कर कुछ दिन सेवन करने से जुकाम में होने वाली समस्याओ जैसे सिरदर्द ,बदनदर्द,नाक का बहना में रहत मिलती हैं।

    साँस सम्बन्धी रोग

    यह औषधि साँस संबंधी रोगों में जैसे दमा में लाभदायक हैं।

    फेफड़ो के रोगों में लाभदायक

    दिव्य श्वासारि क्वाथ फेफड़ों में होने वाली तकलीफो को कम करता हैं और इनमे से अत्यधिक कफ को दूर करता हैं।

    अस्थमा में राहत

    इसके अलावा यह औषधि अस्थमा या एलर्जी के रोगियों के लिए भी एक सर्वोत्तम औषधि हैं। इसका सेवन करने किसी भी तरह की एलर्जी से राहत मिलती हैं।
    इम्युनिटी में बढ़ोतरी
    दिव्य श्वासारि क्वाथ इम्युनिटी को बढ़ाता हैं जिससे सर्दी-खांसी या साँस सम्बंधित रोगों से छुटकारा मिलता हैं इसके अलावा यह साँस लेने और साँस छोड़ने की प्रक्रिया को भी सुचारू रूप से काम करने के लिए सुधारता हैं।

    औषधीय मात्रा निर्धारण एवं व्यवस्था

    दिव्य श्वासारि क्वाथ की 500 मिलीग्राम से लेकर 1 ग्राम तक की मात्रा एक दिन में दो से तीन बार ली जा सकती हैं। इसे खाने से आधा घंटे पहले ले सकते हैं या फिर खाने के बाद भी इसका सेवन किया जा सकता हैं। दिव्य श्वासारि क्वाथ को शहद या गर्म पानी से साथ लेना बेहतर परिणाम देता हैं। डॉक्टर के निर्देश के अनुसार भी इसका सेवन किया जा सकता हैं।

    दुष्प्रभाव

    दिव्य श्वासारि क्वाथ पूरी तरह से आयुर्वेदिक और कुदरती जड़ी-बूटियों से बनाई औषधि हैं और इसका कोई दुष्प्रभाव नही हैं ,अगर इसके सेवन से कोई समस्या होती हैं तो डॉक्टर से सलाह लेनी आवश्यक हैं।
    बच्चे के होने के बाद भी महिलाये इसका प्रयोग आसानी से कर सकती हैं क्योंकि पूरी तरह से आयुर्वेदिक होने के कारण इससे कोई नुकसान नही होता।

    पूर्वोपाय

    धूम्रपान से बचना चाहिए।
    कसरत और योग नियमित रूप से करने चाहिए, इनसे इम्युनिटी बढ़ती हैं।
    3 ) पीने के लिए हमेशा गर्म पानी का ही प्रयोग करे, ठंडा पानी भी ऐसी बीमारियों को बढ़ाता हैं।
    तल-भुना और वसा से भरा खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, जितना हो सके इनका सेवन न करे इसकी जगह संतुलित और स्वास्थ्यबर्धक खाने का सेवन करें।
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    26.4.21

    वजन कम करने के लिए इंडियन डायट चार्ट:vajan kam karna


    इसे सुनें
    मोटापा घटाना है तो विटामिन को आहार में शामिल कीजिए। नट्स, फल और पत्तेदार सब्जियां खाएं। विटामिन सी जैसे नीबू, अमरूद, संतरा पपीते का सेवन उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो कि वजन कम करना चाहते हैं। यह फैट बर्न करता है।
    वजन घटाने की बात आते ही लोग विदेशी डायट और नुस्खों की तरफ ध्यान देने लगते हैं, लेकिन ताजा रिपोर्ट आपको चौंका सकती है। भारतीय डायट वजन कम करने में ज्यादा प्रभावी मानी जा रही है और अब लोगों की मानसिकता बदलने लगी है। शिल्पा शेट्टी से लेकर बाबा रामदेव हों या रु​जुता दिवेकर हर कोई भारतीय डायट का महत्व लोगों तक पहुंचा रहा है। यही कारण है कि भारतीय लोग ही नहीं विदेशी भी वेट लॉस के लिए इंडियन वेट लॉस डायट चार्ट को फॉलो करने लगे हैं।

    इंडियन डायट पोषक तत्वों से भरपूर होती है
    इंडियन डायट चार्ट पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें अनाज, फल, सब्जियां, डेयरी प्रोडक्ट आदि सबकुछ शामिल होता है। भारतीय खाने में जिन मसालों का इस्तेमाल किया जाता है वह सेहतमंद तो होते ही हैं साथ ही उनके शरीर में गुणकारी फायदे भी हैं। उदाहरण के तौर पर हल्दी का ही लें तो हल्दी कई बीमारियों को दूर करने में मददगार होती है। भारतीय डायट में 70 प्रतिशत सब्जियों का इस्तेमाल किया जाता है।
    भारतीय खाने की एक और खासियत यह भी कि इनमें कम फैट वाला खाना भी होता है। जैसे सलाद, दाल सब्जियांं। पाश्चात्य खाने की तरह भारतीय खाने में चीज या क्रीम की मात्रा बहुत ज्यादा नहीं होती है। भारतीय खाने के बारे में कहा जाता है कि इसमें बहुत सारे विकल्प वह भी विभिन्न स्वाद से भरपूर होते हैं। इसलिए इसे खाने में बोरियत नहीं होती। सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक आप नाना प्रकार के पकवान खा सकते हैं।

    इंडियन वेट लॉस डायट टिप्स 

    डायट में सभी प्रकार के फल, सब्जियां और अनाज आदि को ​शामिल करें।
    उठने के आधे घंटे के अंदर नाश्ता कर लें।
    लंच में दाल, सब्जी, रोटी व दही का मेल हो तो अच्छा है।
    रात के खाने को हल्का ही रखें।
    सोने के कम से कम दो घंटे पहले रात का खाना खा लें।
    वेट लॉस के लिए भूखा न रहें।
    वेट लॉस डायट चार्ट हर किसी के लिए अलग होती है चाहे बच्चा हो, महिला हो या पुरुष हो। यह भारतीय वेट लॉस डायट चार्ट भूगोल पर भी निर्भर करता है। उत्तर प्रांत से लेकर दक्षिण तक हर जगह का खानपान मौसम के अनुरूप बदल जाता है। यह डायट प्लान मांसाहारी व शाकाहारी के हिसाब से बदल सकता है। अपने भोजन में कुछ अन्य चीजों को शामिल करके आप अपने वेट लॉस डायट चार्ट में शामिल कर के वजन कम कर सकते हैं।

    वेट लॉस डायट चार्ट (weight Loss Diet Chart) में इन चीजों के करें शामिल

    सब्जियां (Green Vegetable) : 

    हरी पत्तेदार सब्जियां, टमाटर, बैंगन, सरसों का साग, प्याज, फूलगोभी, पत्तागोभी, मशरूम, करेला आदि सब्जियां खाने से वेट लॉस होता है।

    जड़ें : 

    कुछ सब्जियों की जड़े खाने से भी वेट लॉस होता है। इसलिए अपने वेट लॉस डायट चार्ट में इन्हें जरूर शामिल करें। आलू, गाजर, स्वीट पोटैटो या शकरकंद, शलजम, चुकंदर, सूरन या जिमीकंद

    नट्स और बीज (Nuts & Seeds) : 

    काजू, बादाम, मूंगफली, पिस्ता, कद्दू का बीज, सीसम बीज, तरबूजे का बीज को अपने वेट लॉस डायट चार्ट का हिस्सा बनाएं।

    दाल (lentils) : 

    मूंग दाल, काला चना, सेम के बीज, लोबिया, मसूर दाल, राजमा और अन्य दालें आपके वेट लॉस डायट चार्ट में चार चांद लगा सकती हैं।

    फल (Fruit) :

    वेट लॉस डायट चार्ट के लिए मौसमी फल बहुत जरूरी है। इसलिए आप मौसमी फलों का अधिक से अधिक सेवन करें। आप वेट लॉस डायट चार्ट में पपीता, आम, अनार, अमरूद, संतरा, इमली, लीची, सेब, सीताफल, केला, आड़ू, तरबूज, खरबूज आदि फलों को जोड़ लें।

    अनाज(Grain): 

    ब्राउन राइस, बासमती चावल, किनोवा, बाजरा, मक्का, बकव्हीट, जौ आदि खाएं।

    डेयरी (Dairy) :

    चीज, योगर्ट, दूध, घी आदि की एक नियमित मात्रा लेने से आप वेट लॉस कर सकते हैं।

    मसाले और हर्ब्स (Herbs):

    लहसुन, अदरक, दालचीनी, जीरा, धनिया, गरम मसाला, हल्दी, काली मिर्च, मेथी, तुलसी और सब्जा बीज आदि का सेवन करने से आपके वेट लॉस डायट चार्ट का बैलेंस बना रहेगा।

    फैट्स (Fats) : 

    फैट्स का नाम सुनते ही ज्यादातर लोगों के मन में ‘मोटापा बढ़ जाएगा’ ऐसी बातें आती रहती है। लेकिन, मोटापा तब होता है, जब आप बैड फैट्स लेते हैं। इसलिए आप अपने वेट लॉस डायट चार्ट के लिए गुड फैट्स को चुनें। जैसे- कोकोनट मिल्क, एवोकैडो, कोकोनट ऑयल, सरसों का तेल, जैतून का तेल, मूंगफली का तेल, सीसम ऑयल, घी का सेवन कर सकते हैं।

    वेट लॉस डायट चार्ट से हट के करें ये काम

    वेट लॉस डायट चार्ट तो तैयार कर लिया आपने, लेकिन अब इसके साथ-साथ आपको क्या करना है ये मुद्दे की बात है। वेट लॉस डायट चार्ट के अलावा आपको अपने खाने-पीने के तरीकों पर भी ध्यान देना होगा।

    अपना खाना खुद ही घर पर बनाएं

    आपका भोजन तभी हेल्दी और पौष्टिक हो सकता है। जब आप उसे सही मात्रा में खुद से ही बनाएं। जब आप खाना खुद बनाएंगी तो आप उसमें अपने वेट लॉस डायट चार्ट के अनुसार बना सकते हैं और फॉलो कर सकते हैं। साथ ही आप अपने कैलोरी को भी नियंत्रित रख सकते हैं।

    खुद की थाली में डालें छोटा हिस्सा

    आप जब भी खाने बैठें तो अपने बर्तनों का चुनाव छोटा कर लें। इसका मतलब यह है कि आप खाना खाने के लिए छोटे प्लेट्स, कटोरियां और कप का ही प्रयोग करें। इससे आपको वेट लॉस डायट चार्ट को फॉलो करने में मदद मिलेगी। अगर आप ज्यादा बड़े बर्तन लेंगे तो ज्यादा खाना खा जाते हैं। इसलिए छोटा बर्तन रहेगा तो आप नियंत्रित मात्रा में ही खाएंगे।

    ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं 

    पानी हर मर्ज की दवा हैं। इसलिए अगर वेट लॉस डायट चार्ट को फॉलो करना है तो पानी उसके लिए सोने पर सुहागा जैसा होगा। आप खूब पानी पिएं, लगभग दिन में 10 गिलास पानी तो जरूर पिएं।

    डिनर से ज्यादा ब्रेकफास्ट पर दें ध्यान

    अध्ययन बताते हैं कि नाश्ते में ज्यादा और डिनर में कम कैलोरी लेने से आप जल्दी वेट लॉस कर सकते हैं। इसके लिए आप नाश्ते में ही ज्यादा कैलोरी को लेने की कोशिश करें। वहीं, रात में बहुत हल्का और कम कैलोरी का सेवन करें।
    रोजाना 14 घंटे का व्रत रखें
    आप अपने डिनर और ब्रेकफास्ट में लगभग 14 घंटे का अतर रखें। ऐसा करने से आपका पाचन तंत्र दुरुस्त रहेगा। साथ ही आपका वजन भी घटेगा। वेट लॉस डायट चार्ट के नियम में लगभग 14 घंटे के व्रत का नियम भी जोड़ लें।

    रोजाना का वर्कआउट करेगा वेट लॉस

    वेट लॉस डायट चार्ट को फॉलो करते हुए अगर आप रोजाना वर्कआउट करते हैं तो और जल्दी वजन घटेगा। इसलिए आप कोशिश करें कि साइकलिंग, वॉकिंग, जॉगिंग आदि करें। साथ ही प्लैंक्स, स्क्वैट्स, पुशअप्स आदि करने से ज्यादा फायदा होगा।

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    17.4.21

    किडनी फेल्योर के मरीजों का आहार विहार खान-पान






    हम जानते हैं कि किडनी शरीर के अधिक पानी, नमक और अन्य क्षार को पेशाब द्वारा दूर करके शरीर में इन पदार्थो का संतुलन बनाने का महत्वपूर्ण कार्य करती है। किडनी फेल्योर में यह नियंत्रण का कार्य ठीक तरह से नहीं होता है। परिणामस्वरूप किडनी फेल्योर के मरीजों में पानी, नमक, पोटैशियमयुक्त खाध्य पदार्थ आदि सामान्य मात्र में लेने पर भी कई बार गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है। किडनी फेल्योर के मरीजों में कम कार्यक्षम किडनी को अधिक बोझ से बचाने के लिए तथा शरीर में पानी, नमक और क्षारयुक्त पदार्थ कि उचित मात्रा बनाये रखने के लिये आहार में जरुरी परिवर्तन करना आवश्यक है। क्रोनिक किडनी फेल्योर के सफल उपचार में आहार के इस महत्व को ध्यान में रखकर यहाँ आहार संबंधी विस्तृत जानकारी और मार्गदर्शन देना उचित समझा गया है। लेकिन आपको अपने डॉक्टर के परामर्श अनुसार आहार निश्चित करना अनिवार्य है।
    सी. के. डी. रोगियों में आहार चिकित्सा के क्या लाभ हैं?
    क्रोनिक किडनी डिजीज की प्रगति को धीमा करना और स्थगित करना।
    डायालिसिस की आवश्यकता को लम्बे समय तक टालना।
    रक्त में अतिरिक्त यूरिया के ज़हरीले प्रभाव को कम करना।
    उच्च पोषण की स्थिति बनाए रखना और शरीर के द्रव्य के नुकसान को रोकना।
    तरल और इलेक्ट्रोलाइट की गड़बड़ी का खतरा कम करना।
    ह्रदय रोग का खतरा कम करना।
    आहार योजना के सिद्धान्त
    क्रोनिक किडनी फेल्योर के अधिकांश मरीजों को सामान्यतः निम्नलिखित आहार लेने कि सलाह दी जाती है
    पानी और तरल पदार्थ निर्देशानुसार कम मात्रा में लेना ।
    आहार में सोडियम पोटैशियम और फॉस्फोरस कि मात्रा कम होनी चाहिए ।
    प्रोटीन कि मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिए। सामान्यतः 0.8 से 1.0 ग्राम / किलोग्राम शरीर के वजन के बराबर प्रोटीन प्रतिदिन लेने कि सलाह दी जाती है ।
    जो मरीज पहले से ही डायालिसिस पर हों उन्हें प्रोटीन की मात्रा में वृध्दि की आवश्यकता होती है (1.0-1.2 gm/kg body wt/day)। इस प्रतिक्रिया के दौरान जो प्रोटीन का नुकसान होता है, उसकी भरपाई करने के लिए यह आवश्यक है।
    कार्बोहाइड्रेट पूरी मात्रा में (35-40 कैलोरी / किलोग्राम शरीर के वजन के बराबर प्रतिदिन ) लेने कि सलाह दी जाती हैं । घी, तेल , मक्खन और चर्बीवाले आहार कम मात्रा में लेने कि सलाह दी जाती है ।
    विटामिन्स की आपूर्ति करें और पर्याप्त मात्रा में आवश्यक तत्वों की पूर्ति करें। उच्च मात्रा का फाइबर आहार लेने की सलाह भी दी जाती है।
    उच्च कैलोरी का सेवन
    शरीर के तापमान, विकास, दैनिक गतिविधियों और शरीर के वजन को बनाये रखने के लिए पर्याप्त कैलोरी की आवश्यकता होती है। मुख्यतः कैलोरी की आपूर्ति वसा और कार्बोहाइड्रेट से की जाती है।
    सामान्यतः 35 -40 कैलोरी/किलोग्राम की आवश्यकता क्रोनिक किडनी डिजीज (सी. के. डी.) के मरीज को प्रतिदिन होती है। अगर कैलोरी का सेवन अपर्याप्त हो तो शरीर में कैलोरी प्रदान करने के लिए शरीर द्वारा प्रोटीन का इस्तेमाल किया जाता है। प्रोटीन के इस विघटन से हानिकारक प्रभाव हो सकता है। जैसे कुपोषण और अपशिष्ट उत्पादों का अधिक से अधिक उत्पादन होना। इसलिए सी. के. डी. के रोगियों के लिए कैलोरी की गणना करना महत्वपूर्ण है, साथ ही वर्तमान वजन को ध्यान में रखना चाहिए।

    कार्बोहाइड्रेट-

    कार्बोहाइड्रेट शरीर के लिए कैलोरी का प्राथमिक स्त्रोत है। गेहूँ, दाल, चावल, आलू, फल, सब्जी, शक्कर, मधु, केक, बिस्कुट, मिठाई और पेय पदार्थ से कार्बोहाइड्रेट मिलता है। इसलिए मधुमेह और मोटापे से ग्रस्त मरीज को कार्बोहाइड्रेट का सीमित मात्रा में सेवन करना चाहिए। अच्छा हो यदि मरीज चोकर युक्त गेहूँ, बिना पोलिश किया गया चावल, जैसे जटिल कार्बोहाइड्रेट का उपयोग करे क्योंकि इससे फाइबर (रेशयुक्त) आहार मिलता है। यह शरीर के लिए लाभदायक होता है। कार्बोहाइड्रेट के लिए इन खाघ पदार्थों का एक बड़ा हिस्सा आहार में होना चाहिए। विशेष रूप से मधुमेह के रोगियों में अन्य सभी साधारण चीनी युक्त पदार्थों का कुल 20% से अधिक का सेवन नहीं होना चाहिए। जिन मरीजों में मधुमेह नहीं हैं वे अपने आहार में कैलोरी की मात्रा उन प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों से ले सकते हैं जिसमें कार्बोहाइड्रेट है, जैसे फल, केक, कुकीज, जेली, मधु सीमित मात्रा में चाकलेट, बादाम, केला, मिठाई आदि।

    फैट/वसा -

    वसा शरीर के लिए कैलोरी का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की तुलना में वसा दुगनी मात्रा में कैलोरी प्रदान करती है। असंतृप्त या अच्छी वसा, के कुछ स्त्रोत है जैतून के तेल, मूंगफली का तेल, कनोला तेल, कुसुम तेल, मछली और बादाम का तेल आदि। संतृप्त या बुरी वसा के कुछ स्त्रोत है लाल मांस, अंडा, दूध्र, मक्खन, गहि, पनीर, और चर्बी की तुलना में बेहतर है। सी. के. डी. के मरीज को अपने आहार में संतृप्त या बुरी वसा और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम रखनी चाहिए क्योंकि यह ह्रदय रोग पैदा कर सकती है।

    असंतृप्त वसा (Unsaturated) -

    इस दौरान मोनोअनसेचुरेटेड और पॉली अनसेचुरेटेड के अनुपात को ध्यान में रखना जरुरी है। ज्यादा मात्रा में ओमेगा 6 पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (वसा अम्ल) लेने और ज्यादा ओमेगा 6 : ओमेगा 3 का अनुपात भी हानिकारक होता है, जबकि कम मात्रा का ओमेगा 6 : ओमेगा 3 का अनुपात लाभकारी प्रभाव डालता है। एकल तेल के उपयोग के बजाय अलग-अलग वनस्पति तेल का उपयोग करने से उस उद्देश्य को प्राप्त करना संभव है। आलू के चिप्स, डोनट्स, व्यवसाहिक तौर पर तैयार कुकीज और केक जैसे वसा के खाघ पदार्थ संभावित हानिकारक है और उनका कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए या उपयोग में लाने से बचना चाहिए।
    प्रोटीन की मात्रा को सीमित रखना

    शरीर के उतकों की मरम्मत और रख रखाव के लिए प्रोटीन आवश्यक है। यह संक्रमण से लड़ने और घाव भरने में भी सहायता करता है। सी. के. डी. के रोगी जो डायालिसिस पर नहीं हैं उन्हें 20.8 gm/ kg शरीर के वजन/दिन के हिसाब से प्रोटीन लेना चाहिए। यह किडनी के कार्यों में गिरावट की दर और किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत को आगे टाल देता है। प्रोटीन पर तीव्र प्रतिबंध से बचना चाहिए, क्योंकि इससे कुपोषण का खतरा हो सकता है।
    सी. के. डी. के मरीज में अपर्याप्त भूख का होना आम बात हैं। अपर्याप्त भूख और प्रोटीन सख्त प्रतिबंध, दोनों के कारण रोगी में कुपोषण, वजन घटना, शरीर में उर्जा की कमी और शरीर में प्रतिरोधक क्षमता में कमी हो जाती है, जो भविष्य में मृत्यु के खतरे को बढ़ा सकता है। वे प्रोटीन जिनमें जैविक मूल्यों की मात्रा ज्यादा होती हैं जैसे पशु प्रोटीन (मांस, अंडा, मछली) ऐसे खाघ पदार्थों को प्राथमिकता दी जाती है। सी. के. डी. मरीज को उच्च प्रोटीन आहार जैसे अटकिन्स आहार (Atkins Diet) से परहेज करना चाहिए। इसी तरह उन प्रोटीन की खुराक एवं वे दवाइयाँ जो मांसपेशियों के विकास के लिए इस्तेमाल की जाती हैं उनसे परहेज करना चाहिए और उनका सेवन चिकित्सक या आहार विशेषज्ञ की सलाह पर ही करना चाहिए। किन्तु यदि एक बार मरीज डायलिसिस पर चला जाता हैं तो प्रोटीन की मात्रा में 1.0-1.2 ग्राम प्रतिकिलो शरीर का वजन प्रतिदिन के हिसाब से बढ़ा देना चाहिए जिससे इस प्रक्रिया के दौरान जो प्रोटीन में आती है उसकी भरपाई हो सके।
    पानी तथा पेय पदार्थ
    किडनी फेल्योर के मरीजों को पानी या अन्य पेय पदार्थ ( द्रव ) लेने में सावधानी क्यों जरुरी हैं ?
    किडनी की कार्यक्षमता कम होने के साथ साथ अधिकतर मरीजों में पेशाब कि मात्रा भी कम होने लगती हैं। इस अवस्था में अगर पानी का खुलकर प्रयोग किया जाये, तो शरीर में पानी की मात्रा बढ़ने से सूजन और साँस लेने की तकलीफ हो सकती हैं, जो ज्यादा बढ़ने से प्राणघातक भी हो सकती हैं
    शरीर में पानी की मात्रा बढ़ गई हैं, यह कैसे जाना जा सकता हैं?
    सूजन आना, पेट फूलना, साँस चढ़ना, खून का दबाव बढ़ना, कम समय में वजन में वृद्धि होना इत्यादि लक्षणों की मदद से शरीर में पानी की मात्रा बढ़ गई हैं, यह जाना जा सकता हैं ।
    किडनी फेल्योर के मरीजों को कितना पानी लेना चाहिए?
    किडनी फेल्योर के मरीजों को कितना पानी लेना हैं , यह मरीज को होनेवाली पेशाब और शरीर में आई सूजन को ध्यान में रखते हुए तय किया जाता है। जिस मरीज को पेशाब पूरी मात्रा में होता है, एवं शरीर में सूजन भी नहीं आ रही हो , तो ऐसे मरीजों को उनकी इच्छा के अनुसार पानी - पय पदार्थ की छूट दी जाती है .
    जिन मरीजों को पेशाब कम मात्रा में होता हो, साथ ही शरीर में सूजन भी आ रही हो, ऐसे मरीजों को पानी कम लेने की सलाह दी जाती हैं । सामान्यतः 24 घंटे में होनेवाले कुल पेशाब के मात्रा के बराबर पानी लेने की छूट देने से सूजन को बढ़ने से रोका जा सकता है।

    सी. के. डी. के रोगियों को क्यों अपने दैनिक वजन का रिकार्ड बना कर रखना चाहिए?

    रोगियों को अपने शरीर के तरल पदार्थ की मात्रा पर नजर रखने के लिए और तरल पदार्थ के लाभ या नुकसान का पता लगाने के लिए अपने दैनिक वजन का एक रिकार्ड रखना चाहिए। जब तरल पदार्थ के सेवन के बारे में दिए गए निर्देशों का सख्ती से पालन किया जाता है तब शरीर का वजन लगातार सही बना रहता है। अचानक वजन में वृध्दि रोगी को चेतावनी है की द्रव पर अधिक प्रतिबंध की आवश्यकता है। आमतौर पर वजन का घटना, तरल पदार्थ पर प्रतिबंध और अधिक पेशाब निष्कासन का संयुक्त प्रभाव होता है।

    पानी कम मात्रा में लेने के लिए सहायक उपाय:
    प्रतिदिन वजन नापना: निर्देशानुसार कम पानी लेने से , वजन स्थिर रहता है । यदि वजन में अचानक वृद्धि होने लगे तो यह दर्शाता है की पानी ज्यादा मात्र में लिया गया है । ऐसे मरीजों को पानी कम लेने की सलाह दी जाती है।
    जब बहुत ज्यादा प्यास लगे तब भी कम मात्रा में पानी पीना चाहिए अथवा मुह में बर्फ का छोटा टुकड़ा रखकर उसे चूसना चाहिए । जितना पानी रोज पिने की छूट दी गई हो, उतनी मात्रा में बर्फ के छोटे टुकड़े चूसने से प्यास को बहुत संतुष्टि मिलती है।
    आहार में नमक की मात्रा कम करने से प्यास घटाई जा सकती है। जब मुँह सूखने लगे, तब पानी के कुल्ले करके मुँह को गीला करना चाहिए एवं पानी नहीं पीना चाहिए। च्युइंगम चबाकर मुँह का सूखना कम किया जा सकता है।
    चाय पीने के लिए छोटा कप तथा पानी पीने के लिए छोटा गिलास उपयोग में लेना चाहिये।
    भोजन के बाद जब पानी पिया जाये, तभी दवा ले लेनी चाहिए, जिससे दवा लेते समय अलग से पानी नहीं पीना पड़े।
    डॉक्टरों द्वारा 24 घंटे में कुल कितना तरल पदार्थ (द्रव) लेना चाहिए, इसकी सुचना भी मरीज को दी जाती है। यह मात्रा केवल पानी की नहीं है। इसमें पानी के अलावा चाय, दूध, दही, मट्ठा (छाछ), जूस, बर्फ, आइसक्रीम, शरबत, दाल का पानी इत्यादि सभी पेय पदार्थों का समावेश होता है। 24 घंटे में लिये जानेवाले पेय की गणना उपरोक्त सभी तरल पदार्थ एवं पानी की मात्रा को जोड़कर किया जाता है।
    मरीज को किसी न किसी कार्य में संलग्न रहना चाहिए। खाली निकम्मे बैठने से प्यास की इच्छा ज्यादा एवं बार-बार होती है।
    डायाबिटीज के मरीजों के खून में ग्लूकोज (शर्करा ) की मात्रा ज्यादा होने से प्यास ज्यादा लगती है। इसलिए डायाबिटीज के मरीजों में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रण में रखने से प्यास कम लगती है, जो पानी कम लेने में सहायक होती है।
    गर्मी के मौसम में प्यास बढ़ जाती है, अतः मरीज को ए.सी. या कूलर में रहना आवश्यक होता है।
    सी. के. डी. के रोगी को तरल पदार्थों के सेवन को नियंत्रित करने के लिए क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
    तरल पदार्थ की कमी से बचने के लिए तरल पदार्थ की मात्रा दर्ज करनी चाहिए और डॉक्टर की सलाह के अनुसार उसका पालन करना चाहिए। हर सी. के. डी. के मरीज के लिए तरल पदार्थ की मात्रा भिन्न-भिन्न हो सकती है और यह प्रत्येक रोग के पेशाब उत्पादन और तरल पदार्थ की स्थिति के आधार पर तय की जाती है।
    मरीज नापकर उचित मात्रा में ही पानी/तरल पदार्थ ले सके इसके लिये कौन सी पध्दति अपनाने की सलाह दी जाती है?
    मरीज को जितना पानी लेने की सलाह दी गई हो, उतना पानी एक जग में रोज भर लेना चाहिए।
    जितनी मात्रा में मरीज कप, गिलास या कटोरी में पानी पिए उतना ही पानी जग में से उसी बर्तन की सहायता से निकालकर फेंक देना चाहिए।
    दूसरे दिन फिर माप के अनुसार जग में पानी भर कर उतनी ही मात्रा में पानी लेने की छूट दी जाती है।
    इस प्रकार मरीज सरलता से डॉक्टर द्वारा बताई गई मात्रा में पानी और पेय पदार्थ ले सकता है।
    कम नमक (सोडियम) वाला आहार :
    किडनी फेल्योर के मरीजों को आहार में कम मात्रा में नमक (सोडियम) लेने की सलाह क्यों दी जाती है?
    शरीर में सोडियम (नमक) पानी को और खून के दबाव को उचित मात्रा में कायम रखने में सहायक होता है। शरीर में सोडियम की उचित मात्रा का नियमन किडनी करती है। जब किडनी की कार्यक्षमता में कमी होती है, तब शरीर से, किडनी द्वारा ज्यादा सोडियम निकलना बंद हो जाता है और इसलिए शरीर में सोडियम की मात्रा बढ़ने लगती है।
    शरीर में ज्यादा सोडियम के कारण होनेवाली समस्याओं में प्यास ज्यादा लगना, सूजन बढ़ना, साँस फूलना, खून का दबाव बढ़ना इत्यादि का समावेश होता है। इन समस्याओं को रोकने अथवा कम करने के लिए किडनी फेल्योर के मरीजों को नमक का उपयोग कम करना अनिवार्य है।
    सोडियम और नमक में क्या अंतर है?
    सोडियम और नमक दोनों को नियमित रूप से समानार्थ शब्द के रूप से इस्तेमाल किया जाता हैं। साधारण नमक या टेबल नमक सोडियम क्लोराइड है और इसमें 40 प्रतिशत सोडियम रहता है। हमारे आहार में सोडियम का प्रमुख स्त्रोत नमक है। लेकिन नमक, सोडियम का एकमात्र स्त्रोत नहीं है। उपर वर्णित कई खाघ पदार्थों में सोडियम शामिल होता है पर वे स्वाद में खारे नहीं होते है। सोडियम इन यौगिकों में छुपा रहता है।
    आहार में कितनी मात्रा में नमक लेना चाहिए?
    अपने देश में सामन्य व्यक्ति के आहार में पुरे दिन के लिये जानेवाले नमक की मात्रा 6 से 8 ग्राम तक होती है। किडनी फेल्योर के मरीजों को, डॉक्टर की सलाह के अनुसार नमक लेना चाहिए। अधिकांश उच्च रक्तचाप और सूजन वाले किडनी फेल्योर के मरीजों को रोज 3 ग्राम नमक लेने की सलाह दी जाती है।

    किस आहार में नमक (सोडियम) की मात्रा ज्यादा होती है?

    ज्यादा नमक (सोडियम) युक्त वाले आहार का विवरण
    नमक, खाने का सोडा, चाट मसाला
    पापड़, आचार, कचूमर, चटनी
    खाने का सोडा या बेकिंग पाउडर वाले खाध्य पदार्थ जैसे बिस्कुट, ब्रेड, केक, पिज़्ज़ा, गांठिया, पकौड़ा, ढोकला, हांडवा इत्यादि
    तैयार नास्ते जैसे नमकीन ( सेव, चेवड़ा, चक्री, मठरी, इत्यादि ) वेफर्स , पॉपकॉर्न, नमक लगा मूंगफली का दाना, चना, काजू, पिस्ता वगैरह
    तैयार मिलने वाला नमकीन मक्खन और चीज़
    सॉस, कोर्नफ्लेक्स, स्पेगेटी, मैक्रोनी वगैरह
    साग सब्जी में मेथी, पालक, हरा धनिया, बंदगोभी, फूलगोबी, मूली, चुकंदर ( बिट ) वगैरह
    नमकीन लस्सी , मसाला सोडा, नींबू शरबत, नारियल का पानी
    दवायें - सोडियम बाइकार्बोनेट की गोलियां एंटासिड लेकसेटिव वगैरह
    कलेगी, किडनी, भेजा, मटन
    शल्कोवाली मछली और तेलवाली मछली जैसे कोलंबी, करंगी, केकड़ा, बांगड़ वगैरह और सूखी मछली
    खाने में सोडियम की मात्रा कम करने के उपाय:
    प्रतिदिन भोजन में नमक का कम प्रयोग करना तथा साथ ही भोजन में नमक उपर से नहीं छिड़कना चाहिये। यघपि श्रेष्ठ पध्दति तो बिना नमक के खाना बनाना है। ऐसे खाने में मरीज डॉक्टर की सुचना अनुसार मात्रा में ही नमक अलग से डाले। इस विधि से निश्चित रूप से निर्धारित मात्रा में नमक लिया जा सकता है।
    खाने में रोटी, भाखरी, भात जैसी चीजों में नमक नहीं डालना चाहिए।
    पूर्व में बताई गई अधिक सोडियम की मात्रा वाली वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए अथवा कम मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। ज्यादा सोडियम वाली साग-सब्जी को पानी से धोकर, एवं उबालकर, उबाला हुआ पानी फेंक देने से साग-सब्जी में सोडियम की मात्रा कम हो जाती है।
    कम नमकवाले आहार को स्वादिष्ट बनाने के लिए प्याज, लहसुन, नींबू, तेजपत्ता, इलायची, जीरा, कोकम, लौंग, दालचीनी, मिर्ची व केसर का उपयोग किया जा सकता है।
    नमक की जगह कम सोडियम वाला नमक (लोना) नहीं लेना चाहिए। लोना में पोटैशियम की मात्रा ज्यादा होने से वह किडनी फेल्योर वाले मरीजों के लिए जानलेवा हो सकता है।
    नरम (Soft) पानी नहीं पीना चाहिए क्योंकि पानी को नरम बनाने की प्रक्रिया में कैल्शियम की जगह सोडियम लगता है। रिवर्स ओसमोसिस की प्रक्रिया शुध्द पानी में सोडियम सहित सभी खनिजों को कम कर देती है। अतः यह पीने के लिए उपयुक्त होता है। रेस्त्रां में खाते समय उन खाघ सामग्री का चयन करें जिनमें सोडियम की मात्रा कम हो।
    कम पोटैशियम वाला आहार:
    किडनी फेल्योर के मरीजों को सामान्यतः आहार में कम पोटैशियम लेने की सलाह क्यों दी जाती है?
    शरीर हृदय और स्नायु के उचित रूप से कार्य के लिए पोटैशियम की सामान्य मात्रा जरुरी होती है। किडनी फेल्योर के मरीजों में खून में पोटैशियम बढ़ने का खतरा रहता है। क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज के खून में से किडनी द्वारा पौटेशियम को हटाना अपर्याप्त हो सकता है और इससे आगे चलकर खून में पौटेशियम की मात्रा बढ़ सकती है। इस परिस्थिति को "हाइपरकेलेमिया" कहते हैं। हीमोडायलिसिस की तुलना में वे मरीज जो पेरिटोनियल डायलिसिस के दौरे से गुजर रहे हैं उन्हें हाइपरकेलेमिया का खतरा कम रहता है। दोनों समूहों में खतरा अलग-अलग होता है क्योंकि पेरिटोनियल डायलिसिस की प्रक्रिया लगातार होती हैं जबकि हीमोडायलिसिस रुक रुक कर होता है।
    खून में पोटैशियम की ज्यादा मात्रा हृदय और शरीर के स्नायुओं की कार्यक्षमता पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। पोटैशियम की मात्रा ज्यादा बढ़ने से होनेवाले जानलेवा खतरों में ह्रदय की गति घटते-घटते एकाएक रुक जाना और फेफड़ों के स्नायु काम नहीं कर सकने के कारण साँस का बंद हो जाना है।
    शरीर में पोटैशियम की मात्रा बढ़ने की समस्या जानलेवा साबित हो सकती है, फिर भी इसके कोई विशेष लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। इसलिए इसे 'साइलेन्ट किलर' कहते हैं।
    खून में सामान्यतः कितना पोटैशियम होता है? यह मात्रा कितनी बढ़ने पर चिंताजनक होती है?
    सामान्यतः शरीर में पोटैशियम की मात्रा 3.5 से 5.0 mEq/L होती है। जब यह मात्रा 5 से 6 mEq/L हो जाये तो खाने पीने में सतर्कता जरुरी हो जाती है। जब यह 6.5 mEq/L से ज्यादा बढ़ती है, तब यह भयसूचक होती है और जब पोटैशियम की मात्रा 7 mEq/L से ज्यादा हो जाए, तो यह किसी भी समय जानलेवा हो सकती है।
    पोटैशियम की मात्रा के अनुसार खाघ पदार्थ का वर्गीकरण?
    किडनी फेल्योर के मरीजों में, खून में पोटैशियम नहीं बढ़े, इसके लिए डॉक्टरों की सुचना के अनुसार आहार लेना चाहिए। पोटैशियम की मात्रा को ध्यान में रखते हुए खाघ पदार्थ का वर्गीकरण तीन भाग में किया गया है। ज्यादा, मध्यम और कम पोटैशियम वाले खाघ पदार्थ।
    सामान्य रूप से ज्यादा पोटैशियम वाले खाघ पदार्थ पर निषेध, मध्यम पोटैशियमवाले खाघ पदार्थ मर्यादित मात्रा में और कम पोटैशियमवाले खाघ पदार्थ पर्याप्त मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है। 100 ग्राम खाघ पदार्थ में पोटैशियम की मात्रा के आधार पर ज्यादा, मध्यम और कम पोटैशियम वाले आहार का वर्गीकरण नीचे किया गया है:
    ज्यादा पोटैशियम = 200 मि. ग्रा. से अधिक
    मध्यम पोटैशियम = 100 - 200 मि. ग्रा. के बीच
    कम पोटैशियम = 0 - 100 मि. ग्रा.
    समूह - 1: अधिक पोटैशियम वाले आहार
    फल - केला, चीकू, पका हुआ आम, मोसंबी, शरीफा, खरबूजा, अन्नानास, आँवला, जरदालू, पीच, आलू, अमरूद, संतरा, पपीता, अनार
    साग-सब्जी - अरबी के पत्ते, शकरकंद, सहजन की फली, हरा धनिया, सूजन, पालक, गुवार की फली, मशरूम, कद्दू और टमाटर
    सूखा मेवा - खजूर, किशमिश, काजू, बादाम, अंजीर, अखरोट
    दालें - अरहर की दाल, मूंग की दाल, चना, चने की दाल, उड़द की दाल
    मसाले - सूखी मिर्च, धनिया, जीरा, मेथी
    पेय - नारियल का पानी, ताजे फलों का रस, उबाला हुआ डिब्बाबंद गाढ़ा दूध, सूप, बोर्नबीटा, बीयर, ड्रिंकिंग चोकलेट, शराब, भैंस का दूध, गाय का दूध
    अन्य - लोना साल्ट, चोकलेट, कैडबरी, चोकलेट केक, चॉक्लेट आइसक्रीम इत्यादि

    समूह - 2. मध्यम पोटैशियम आहार
    फल - चेरी, अंगूर, नाशपाती, तरबूज, लीची
    साग-सब्जी - बैंगन, बंदगोभी, गाजर, प्यास, मूली, करेला, भिण्डी, फूलगोभी, टमाटर, कच्चे आम, हरी मटर
    अनाज - मैदा, ज्वार, पौआ (चिउडा), मक्का, गेहूं की सेव
    पेय - दही
    समूह - 3. कम पोटैशियम आहार
    फल - सेब, जामुन, बेर, निम्बू, अनानास और स्ट्रॉबेरी
    साग-सब्जी - घीया, ककडी, अमियां (टिकोरा), तोरई, परवल, चुकंदर, मेंथी की सब्जी, लहसुन
    अनाज - सूजी, चावल
    पेय - कॉफी, नींबू पानी, कोको कोला, फेंटा, लिम्का, सोडा
    अन्य - शहद, जायफल, राई, सोंठ, पुदीने के पत्ते, सिरका (Vinegar), लौंग, काली मिर्च
    भोजन में पौटेशियम कम करने के लिए व्यवहारिक सुझाव?
    जिसमे कम मात्रा में पौटेशियम हो ऐसे दल का सेवन कर सकते हैं।
    प्रतिदिन एक कप चाय या कॉफी लें।
    जिन सब्जियों में पौटेशियम होता है उनकी मात्रा कम कर देनी चाहिए।
    नारियल पानी, फलों का रस और वह खाघ सामग्री जिसमें पौटेशियम की मात्रा ज्यादा हो उनका परहेज करना चाहिए। जहां तक हो सके वह खाघ सामग्री चुनें जिसमें कम मात्रा में पौटेशियम हो।
    डायलिसिस के पूर्व सी. के. डी. के मरीजों के लिए ही पौटेशियम का प्रतिबंध नहीं होता है, यह डायलिसिस की शुरुआत के बाद भी आवश्यक होता है।
    साग-सब्जी में पाया जानेवाला पोटैशियम किस प्रकार कम किया जा सकता है?
    साग-सब्जी बारीक काटने के बाद उनके छोटे-छोटे टुकडे करना चाहिए एवं छिलकेवाली सब्जी (आलू, सुरन इत्यादि के छिलके निकाल लेना चाहिए।
    गुनगुने पानी में से धोकर साग-सब्जी को गरम पानी में एक घंटे तक रखना चाहिए। पानी की मात्रा साग-सब्जी से 5 से 10 गुनी ज्यादा होनी चाहिए।
    दो घंटे बाद, फिर से गुनगुने पानी में 2 से 3 बार सब्जी को धोकर, सब्जी को ज्यादा पानी डालकर उबालना चाहिए।
    जिस पानी में सब्जी उबाली गई हो, उस पानी को फेंक देना चाहिए और साग भाजी को स्वादानुसार बनाना चाहिए।
    इस प्रकार साग सब्जी में उपस्थित पोटैशियम की मात्रा को घटाया / कम किया जा सकता है। परन्तु पोटैशियम को पूरी तरह दूर नहीं किया जा सकता है। इसलिए ज्यादा पोटैशियम वाली साग सब्जी कम या बिलकुल नहीं खाने की सलाह दी जाती है।
    इस तरह से बनाए गए खाने में पोटैशियम के साथ-साथ विटामिन्स भी नष्ट हो जाते हैं, इसलिए डॉक्टर की सलाह लेकर विटामिन की गोली लेना जरुरी है।
    1. फॉस्फोरस कम लेना किडनी फेल्योर के मरीजों को फॉस्फोरस वाला आहार क्यों कम लेना चाहिए?
    शरीर में फॉस्फोरस और कैल्सियम की सामान्य मात्रा हडिड्यों के विकास, तंदुरुस्ती और मजबूती के लिए जरुरी होती है। सामान्यतः आहार में उपस्थित ज्यादा फॉस्फोरस को किडनी पेशाब के रास्ते बाहर निकालकर उचित मात्रा मेंउ से खून में स्थिर रखती है।
    सामान्यतः खून में फॉस्फोरस की मात्रा 4.5 से 5.5 मि. ग्रा. प्रतिशत होती है। किडनी फेल्योर के मरीजों में ज्यादा फॉस्फोरस का पेशाब के साथ निष्कासन नहीं होने से उस की मात्रा खून में बढ़ती जाती है। खून में उपस्थित फॉस्फोरस की अधिक मात्रा हडिड्यों में से कैल्सियम खींच लेता है, जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
    शरीर में फॉस्फोरस बढ़ने के कारण होनेवाली मुख्य समस्याओं में खुजली होना, स्नायु का कमजोर होना, हडिड्यों में दर्द होना, हडिड्यों का कमजोर होना और सख्त हो जाने के कारण फ्रैक्चर होने की संभावना का बढ़ना इत्यादि है।
    किस आहार में ज्यादा फॉस्फोरस होने के कारण उसे कम लेना चाहिए या नहीं लेना चाहिए?
    ज्यादा फॉस्फोरस वाले आहार का विवरण इस प्रकार है:
    दूध की बनी वस्तुएं - पनीर, आइसक्रीम, मिल्कशेक, चॉकलेट
    काजू, बादाम, पिस्ता, अखरोट, सुखा नारियल
    शीतल पेय (Cold Drinks) - कोकाकोला, फेंटा, माजा, फ्रूटी
    मूंगफली का दाना, गाजर, अरबी के पत्ते, शकरकंद, मक्के के दाने, हरा मटर
    उच्च विटामिन और फाइबर का सेवन
    कम भूख लगने के कारण सी. के. डी. के रोगी आमतौर पर विटामिन की अपर्याप्त आपूर्ति की वजह से पीड़ित रहते हैं। आहार पर एक प्रतिबंध रहता है ताकि किडनी की बीमारी न बढ़े। डायलिसिस के दौरान कुछ विटामिन्स विशेष रूप से पानी में घुलनशील विटामिन B, विटामिन C, और फोलिक एसिड लुप्त हो जाते हैं। अपर्याप्त सेवन एवं इन विटामिनों के नुकसान की भरपाई करने के लिए सी. के. डी. रोगियों को पानी में घुलनशील विटामिन्स और तत्वों के पूरक की आवश्यकता होती है।
    सी. के. डी. के मरीजों के लिए उच्च फाइबर का सेवन फायदेमंद है। इसलिए रोगियों को ताजी सब्जी और फल जिसमें विटामिन और फाइबर की मात्रा अधिक हो, लेने की सलाह दी जाती है। पर उन फल और सब्जियों से जिनमें ज्यादा मात्रा में पौटेशियम हो, परहेज रखना चाहिए।
    दैनिक आहार की रचना
    किडनी फेल्योर के मरीजों को प्रतिदिन किस प्रकार का और कितनी मात्रा में आहार एवं पानी लेना चाहिए, यह चार्ट नेफ्रोलॉजिस्ट की सूचना के अनुसार डायटीशियन द्वारा तैयार किया जाता है। परन्तु, आहार के लिए सामान्य सूचना इस प्रकार है:

    1. पानी और तरल पदार्थ :

    डॉक्टर द्वारा दी गई सुचना के अनुसार इतनी ही मात्रा में पेय पदार्थ लेना चाहिए। रोज वजन करके चार्ट रखना चाहिये। यदि वजन में एकाएक बढ़ोतरी होने लगे, तो समझना चाहिए की ज्यादा पानी लिया गया है।

    2. कार्बोहाइड्रेटस:

    शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैलोरी मिले उसके लिए अनाज एवं दालों के साथ (यदि डायाबिटीज नहीं हो, तो) चीनी अथवा ग्लूकोज की अधिक मात्रा वाले आहार का उपयोग किया जा सकता है।

    3. प्रोटीन :

    प्रोटीन मुख्यतः दूध, दलहन, अनाज, अण्डा, मुर्गी में ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। जब डायालिसिस की जरूरत नहीं हो, उस अवस्था के किडनी फेल्योर के मरीजों को थोड़ा कम प्रोटीन (0.8 ग्राम/किलोग्राम शरीर के वजन के बराबर) लेने की सलाह दी जाती है। जबकि नियमित हीमोडायालिसिस एवं सी.ऐ.पी.डी. (C.A.P.D) कराने वाले मरीजों में ज्यादा प्रोटीन लेना अत्यंत आवश्यक होता है। सी.ऐ.पी.डी. का द्रव जब पेट से बहार निकलता है तभी उसी द्रव के साथ प्रोटीन निकल जाता है, जिससे यदि भोजन में ज्यादा प्रोटीन नहीं दिया जाये, तो शरीर में प्रोटीन कम हो जाता है, जो हानिकारक होता है।

    4. चर्बीवाले पदार्थ (वसायुक्त पदार्थ):

    चर्बीवाले पदार्थों को कम लेना चाहिए। घी, मक्खन इत्यादि खाने में कम लेना चाहिए। परन्तु इनको बिलकुल बंद कर देना भी हानिकारक है। तेलों में सामान्यतः मूंगफली का तेल या सोयाबीन का तेल दोनों शरीर के लिए फायदेमंद हैं, फिर भी उन्हें कम मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है।

    5. नमक:

    अधिकांश मरीजों को नमक कम लेने की सलाह दी जाती है। उपर से नमक नहीं छिड़कना चाहिये। खाने का सोडा - बेकिंग पाउडर वाली वस्तुएं कम लेनी चाहिए अथवा नहीं लेना चाहिए। नमक के बदले सेंधा नमक और लोन (कम सोडियम वालानमक - low sodium salt) कम लेना चाहिए या नहीं लेना चाहिए।

    6. अनाज:

    अनाज में चावल या उससे बने पौआ (चिउड़ा), मुरी (फरही) जैसी चीजों का उपयोग करना चाहिए। हर रोज एक ही अनाज लेने की जगह गेहूं, चावल, पौआ, साबूदाना, सूजी, मैदा, ताजा मक्का, कार्नफ्लेक्स इत्यादि चीजें ली जाती सकती हैं। ज्वार, मकई तथा बाजार कम लेना चाहिए।

    7. दालें :

    अलग-अलग तरह की दालें सही मात्रा में ली जा सकती हैं, जिससे खाने में विविधता बनी रहती है। दाल के साथ पानी की मात्रा कम लेनी चाहिए। जहाँ तक हो सके, दाल गाढ़ी लेनी चाहिए। दाल की मात्रा डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही लेनी चाहिए। दालों में से पोटैशियम कम करने के लिए उसे ज्यादा पानी से धोने के बाद गरम पानी में भिगो कर उस पानी को फेक देना चाहिए। ज्यादा पानी में दाल को उबालने के बाद पानी को फेंक कर स्वादानुसार बनाना चाहिए। दाल और चावल के स्थान पर उनसे बनी खिचडी, डोसा वगैरह भी खाये जा सकते हैं।

    8. साग-सब्जी :

    पूर्व में बताये अनुसार कम पोटैशियमवाली साग-सब्जी बिना किसी परेशानी के उपयोग की जा सकती हैं। ज्यादा पोटैशियम वाली साग-सब्जी पूर्व में बताये अनुसार पोटैशियम की मात्रा में ही बनाई जानी चाहिए तथा स्वाद के लिए दाल सब्जी में नींबू निचोड़ा जा सकता है।

    9. फल :

    कम पोटैशियमवाले फल जैसे सेब, पपीता, अमरुद, बेर, वगैरह दिन में एक बार से ज्यादा नहीं खाना चाहिए। डायालिसिस वाले दिन डायालिसिस से पहले कोई भी एक फल खाया जा सकता है। नारियल का पानी या फलों का रस नहीं लेना चाहिए।

    10. दूध और उससे बनी वस्तुएं:

    हर रोज 300 से 350 मिली लीटर दूध या दूध से बनी अन्य चीजें जैसे खीर, आइसक्रीम, दही, मट्ठा इत्यादि लिया जा सकता है। साथ ही पानी कम लेने के निर्देश को ध्यान में रखते हुए मट्ठा कम मात्रा में लेना चाहिए।

    11. शीतलपेय:

    पेप्सी, फेंटा, फ्रूटी जैसे शीतल पेय नहीं लेने चाहिए। फलों का रस एवं नारियल का पानी भी नहीं लेना चाहिए।

    12. सूखामेवा :

    सूखा मेवा, मूंगफली के दाने, तिल, हरा या सूखा नारियल नहीं लेना चाहिए।

    विशिष्ट परामर्श-

    किडनी फेल रोगी के बढे हुए क्रिएटनिन के लेविल को नीचे लाने और गुर्दे की क्षमता  बढ़ाने  में हर्बल औषधि सर्वाधिक सफल होती हैं| इस हेतु वैध्य दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क किया जा सकता है| दुर्लभ जड़ी-बूटियों से निर्मित यह औषधि कितनी आश्चर्यजनक रूप से फलदायी है ,इसकी कुछ केस रिपोर्ट पाठकों की सेवा मे प्रस्तुत कर रहा हूँ -




    लेटेस्ट  केस रिपोर्ट -26/10/2020

    नाम किडनी फेल रोगी : अमरसिंगजी -जुझारसिंगजी यादव   
    स्थान : टाटका तहसील -सीतामऊ,जिला मंदसौर,मध्य प्रदेश 
    इलाज से पहिले की टेस्ट रिपोर्ट 26/10/2020 के अनुसार 

    serum Creatinine :7.18mg/dl

    Urea                    :129mg/dl 


     यह औषधि पीने के 20 दिन बाद की स्थिति-

    दिनांक-  15 /11/2020 की रिपोर्ट 

    Serum creatinine :     2.18 mg/dl

    urea:                          69  mg/dl  

    तेजी से सुधार होते हुए स्थिति नॉर्मल होती जा रही है|
    अभी इलाज जारी है| 





    इस औषधि के चमत्कारिक प्रभाव की एक लेटेस्ट  केस रिपोर्ट प्रस्तुत है-

    रोगी का नाम -     राजेन्द्र द्विवेदी  
    पता-मुन्नालाल मिल्स स्टोर ,नगर निगम के सामने वेंकेट रोड रीवा मध्यप्रदेश 
    इलाज से पूर्व की जांच रिपोर्ट -
    जांच रिपोर्ट  दिनांक- 2/9/2017 
    ब्लड यूरिया-   181.9/ mg/dl
    S.Creatinine -  10.9mg/dl






    हर्बल औषधि प्रारंभ करने के 12 दिन बाद 
    जांच रिपोर्ट  दिनांक - 14/9/2017 
    ब्लड यूरिया -     31mg/dl
    S.Creatinine  1.6mg/dl








    जांच रिपोर्ट -
     दिनांक -22/9/2017
     हेमोग्लोबिन-  12.4 ग्राम 
    blood urea - 30 mg/dl 

    सीरम क्रिएटिनिन- 1.0 mg/dl
    Conclusion- All  investigations normal 







     केस रिपोर्ट 2-

    रोगी का नाम - Awdhesh 

    निवासी - कानपुर 

    ईलाज से पूर्व की रिपोर्ट






    दिनांक - 26/4/2016

    Urea- 55.14   mg/dl

    creatinine-13.5   mg/dl 


    यह हर्बल औषधि प्रयोग करने के 23 दिन बाद 17/5/2016 की सोनोग्राफी  रिपोर्ट  यूरिया और क्रेयटिनिन  नार्मल -




    creatinine 1.34 
    mg/dl

    urea 22  mg/dl
















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