2.1.21

नाक में तेल डालने के फायदे:putting oil into nose




नाक में तेल डालना हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। यह न केवल नाक में होने वाली परेशानी को दूर करता बल्कि अन्य शारीरिक समस्याओं को भी दूर करने में सहायक होता है।

नाक में तेल डालने से यह मौसमी बीमारियों जैसे कि सर्दी, जुकाम, फ्लू, फंगल इंफेक्शन और बैक्टीरियल इंफेक्शन के खतरे को कम करता है। यह गले और फेफड़े में होने वाले इंफेक्शन और खुजली, रैशेज और फंगस जैसी दिक्कतें को दूर करने में सहायक होता है।

सरसों का तेल
सबसे लोकप्रिय तेलों में से एक माना जाता है। इसका उपयोग बहुत सारे आयुर्वेदिक उपचारों में किया जाता है। सरसों का तेल एंटी बैक्टीरियल, एंटीफंगल और एंटीइंफ्लेमेटरी गुणों से समृद्ध होता है। नाक में सरसों का तेल डालने से कई प्रकार के लाभ होते है। इसमें मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी एजेंट सूजन संबंधी समस्याओं से निजात दिलाने का काम कर सकता है।
नाक में सरसों का तेल डालने से यह यह मौसमी बीमारियों जैसे कि सर्दी, जुकाम, छींक आना और साँस लेने में परेशान होना आदि समस्यों को दूर करने में मददगार होता है। इसके लिए आप दिन में 3 बार सरसों के तेल को अपनी नाक के दोनों नॉस्टल्स में डालें। यह ड्राईनेस को दूर करके खुजली को खत्म करता है।


बादाम तेल नाक में डालने के फायदे

बादाम की तरह बादाम का तेल भी बहुत ही लाभकारी होता है। बादाम का तेल त्वचा संबंधी बीमारियों एवं संक्रमण के इलाज में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह त्वचा की जलन एवं खुजलाहट को कम करके त्वचा को आराम देता है।
नाक में बादाम का तेल डालने से यह आपको कई प्रकार की बीमारियों से दूर रखता है। यह बाल झड़ने से रोकने, सिर दर्द ठीक करने, याददाश्त बढ़ाने और साइनस की समस्या को दूर करने मदद करता है। दिन में 2 बार बादाम तेल को नाक में जरूर डालें।


नाक में नारियल तेल डालने के फायदे

सर्दियों के मौसम में जुकाम होना और फिर नाक का बंद होना आम बात है। आप इसके लिए नारियल के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। जब भी आपको सर्दी हो जाएं और नाक बंद हो जाएं तो आप नारियल तेल की कुछ बूंदों को अपनी नाक में डालें। इससे आपकी बंद नाक खुल जाएंगी और सर्दी भी ठीक हो जाएगी।
इसके अलावा नारियल का तेल एक प्राकृतिक मॉश्चराइजर की तरह कार्य करता है। यह ड्राई स्किन को मॉश्चराइज करके नाक में होने वाली खुजली को भी दूर करता है।


नाक में तिल का तेल डालने के फायदे

तिल के तेल को इसके औषधीय गुणों के कारण जाने जाते है। इस तेल में एक जीवाणुरोधी गुण होते है जो सामान्य त्वचा रोगजनकों जैसे स्‍ट्रेप्‍टोकोकस और स्‍टाफिलोकोकस और एथलीट पैर जैसी त्वचा कवक को ठीक करता है। यह एक प्राकृतिक एंटीवायरल, एंटी इंफ्लामेंट्री  होता है।
नाक में तिल का तेल डालने से बालों का सफ़ेद होना और झड़ना, नाक की खुश्की, दांत दर्द ,सेंसिटिविटी और मसूड़ों की समस्या आदि में लाभ मिलता है। इसके लिए आप रोज रात में सोने से पहले तिल के तेल की दो बूंदों को नाक में डालें।

जैतून के तेल
में भरपूर मात्रा में विटामिन E और एंटीऑक्सीडेंट होता है जो त्वचा को इन्फेक्शन से बचाये रखता है। जैतून के तेल का उपयोग मोइस्चराइजर के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। आप अपनी नाक में जैतून का तेल की कुछ बूंदों को रात में सोने से पहले डालें। इससे साइनस और साँस लेने में होने परेशानी में राहत मिलेगी।
नाक में तेल डालने से कफ जमने की समस्या दूर होती है।
आँखों की रोशनी बढ़ाने के लिए आप रात में सोते समय नाक में दो बूंद तेल डालें।
नाक में तेल डालने से वात, पित्त और कफ दोष को संतुलित किया जा सकता है।
नाक में तेल डालना तनाव दूर करने में सहायक होता है।
रात में सोने से पहले नाक में तेल की दो बूंद डालने से अनिद्रा की समस्या दूर होती है।

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दिव्य हृदयामृत वटी के फायदे और नुकसान:Hridayamrit vati




दिव्य हृदयामृत वटी का उपयोग ह्रदय रोगों में किया जाता है। यह एक आयुर्वेदिक औषधि है। आइये इस ड्रग के बारे में और अधिक विस्तार से जानते हैं कि यह कहाँ इस्तेमाल होती है, कैसे काम करती है और इसके क्या साइड इफेक्ट्स होते हैं। नीचे के लेख में आप जानेगे Divya Hridyamrit Vati के लाभ, उपयोग करने के तरीके, खुराक और साइड इफेक्ट्स, नुकसान के बारें में।
दिव्य हृदयामृत वटी में इस्तेमाल होने वाली सामग्री
अर्जुन छाल – Terminalia Arjuna 157.61 मिलीग्राम
निर्गुन्डी – Vitex Negundo 11 मिलीग्राम
रासना – Pluchea Lanceolata 11 मिलीग्राम
मकोय (काकमाची) – Solanum Nigrum 11 मिलीग्राम
गिलोय – Tinospora Cordifolia 11 मिलीग्राम
पुनर्नवा – Boerhavia Diffusa 11 मिलीग्राम
चित्रक – Plumbago Zeylanica 11 मिलीग्राम
नागरमोथा – Cyperus Rotundus 11 मिलीग्राम
वायविडंग – Embelia Ribes 11 मिलीग्राम
हरीतकी (हरड़ छोटी) – Terminalia Chebula 11 मिलीग्राम
अश्वगंधा – Withania Somnifera 11 मिलीग्राम
शुद्ध शिलाजीत – Asphaltum 11 मिलीग्राम
शुद्ध गुग्गुलु – Commiphora Mukul 21 मिलीग्राम
संजयस्व पिष्टी 0.1 मिलीग्राम
अकीक पिष्टी 0.1 मिलीग्राम
मुक्ता पिष्टी 0.05 मिलीग्राम
हीरक भस्म 0.005 मिलीग्राम
रजत भस्म 0.03 मिलीग्राम
जहरमोहरा पिष्टी 0.005 मिलीग्राम

दिव्य हृदयामृत वटी कैसे काम करती है


यह औषधि मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करती हैं और दिल से सम्बंधित रोगो की कठिनाईयों को दूर करती हैं। इसके अतिरिक्त यह उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने का भी कार्य करती है।

दिव्य हृदयामृत वटी के सेवन की विधि –

यह दवा बच्चों को एक बार में 1 गोली लेनी चाहिए एवं वयस्कों को 2 गोली लेनी चाहिए, और अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
यह दवा सुबह – शाम ( दिन में 2 बार) लेनी चाहिए, और अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
इस दवा को गुनगुने पानी से या फिर दूध से या फिर अर्जुन क्षीर पाक से लेना चाहिए।
इस दवा बेहतर परिणाम के लिए कम से कम 3 माह तक सेवन करना चाहिए। और इस बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।


दिव्य हृदयामृत वटी के साइड इफेक्ट्स और नुकसान

दिव्य हृदयामृत वटी का इस्तेमाल करने से आपको कई सारे साइड इफ़ेक्ट हो सकते हैं लेकिन ये साइड इफेक्ट्स आपको हमेशा महसूस नहीं होंगे। जब भी आपको नीचे बताये गये साइड इफेक्ट्स महसूस हों तो आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
उलटी होना
कब्ज
अनिद्रा
थकान
चक्कर आना
पेट खराब होना
मितली
सिर दर्द
दस्त

हृदयामृत वटी की पारस्परिक क्रिया

अगर आप इस टैबलेट के साथ कोई अन्य दूसरी ड्रग इस्तेमाल करना चाहते हैं तो हो सकता है कि इसके साइड इफेक्ट्स बढ़ जाएं या फिर इसका प्रभाव कुछ कम हो जाए। अगर इसके इस्तेमाल से ऐसी स्थिति उत्पन्न हो रही है तो आप तुरंत डॉक्टर से सलाह लें जिससे कि आपको कोई गंभीर समस्या ना हो। निम्नलिखित ड्रग के साथ पारस्परिक क्रिया हो सकती है।
Corticosteroids
Clonazepam
Basiliximab
Antibiotics
Cortisol
Azathioprine
Cyclosporine

हृदयामृत वटी के इस्तेमाल में सावधानियां

यदि आप अतिसंवेदनशीलता से पीड़ित हैं, तो इस दवा का प्रयोग न करें।
यदि आप अस्थमा से पीड़ित हैं, तो इस दवा का प्रयोग न करें।
इस दवा को 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को इस्तेमाल में नहीं लाया जाना चाहिए।
अगर आपको इसमें मौजूद सामग्री से एलर्जी है तो इसका इस्तेमाल ना करें या फिर डॉक्टर से सलाह लें।
स्तनपान के समय इस टैबलेट का इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरुर लें।
प्रेगनेंसी के दौरान इसका इस्तेमाल करने के लिए डॉक्टर से सलाह जरुर लें।
अगर आप पहले से ही कोई विटामिन ले रहें हैं तो इस टैबलेट का इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
इस ड्रग को ऐल्कोहल के साथ इस्तेमाल न लें।
हृदयामृत वटी अधिक मात्रा में इस्तेमाल करने पर होने वाले लक्षण
यदि आप बहुत अधिक मात्रा में इस टैबलेट इस्तेमाल करते हैं, तो आपके शरीर में दवा के खतरनाक स्तर हो सकते हैं। ओवरडोज के लक्षणों में निम्न दुष्प्रभाव शामिल हो सकते हैं, जैसे
उलटी होना
कब्ज
अनिद्रा
थकान
चक्कर आना
पेट खराब होना
मितली
सिर दर्द
दस्त
बेहतर परिणाम के लिए इस दवा को कितने समय तक उपयोग किया जा सकता है?
बेहतर परिणाम के लिए इस दवा को कम से कम 3 महीने तक उपयोग किया जाना चाहिए, इस बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
क्या इस ड्रग को लेने के बाद वाहन चलाना सुरक्षित है?
जी नही इस दवा को वाहन चलाते समय लेना सुरक्षित नही है, क्योंकि इसको लेने के बाद नींद आना, चक्कर आना, फोकस करने में कमी और सिर दर्द आदि समस्याओं का खतरा बना रहता है।
इस दवा को दिन में कितनी बार सेवन करना चाहिए?
इस दवा दिन में 2 बार सेवन करने की सलाह दी जाती है, और अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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1.1.21

अगर वृक्ष के आयुर्वेदिक उपचार




अगर के पेड़ असम, मालाबार, चीन की सीमा के निकटवर्ती क्षेत्रों, बंगाल के दक्षिण की ओर के उष्णकटिबन्ध के ऊपर के प्रदेश में और सिलहट जिले के आसपास ‘जातिया’ पर्वत पर अधिक मात्रा में होता है।


व्यवहारिक नाम:

‌‌‌अंगेजी: ईगलवुड (Eaglewood)।

अरबी: ऊदगर की।

कर्नाटकी: अगर।

गुजराती: अगरू।

ग्रीक: अगेलोकन।

तमिल: अगर।

तेलुगु: अगरू चेट्टु।

फारसी: कसबेबवा।

बंगाली: अगर।

मराठी: अगर।

मलयालम: आकेल।

लैटिन: एक्वीलारिया (Aquilaria sp.)

‌‌‌संस्कृत: स्वाद्वगरू।

हिन्दी: अगर।

स्वाद: ‌‌‌अगर तेज, कड़वा और सुगन्ध मिश्रित होता है।
‌‌‌पौधे का स्वरूप: ‌‌‌
अगर एक पेड़ की लकड़ी है। वैसे तो यह कई प्रकार की होती है परन्तु इनमें काली अगर ही श्रेष्ठ होती है। अगर का पेड़ बहुत बड़ा होता है और हमेशा हरा रहता है। अगर का पेड़ ऊबड़-खाबड़ होता है। ‌‌‌इसमें मार्च-अप्रैल मास में फूल आते हैं, अगर के बीज जुलाई में पकते हैं। इसकी लकड़ी नर्म होती है। इसके छिद्रों में राल की तरह कोमल और सुगन्धित पदार्थ भरा रहता है। लोग उसे चाकू से कुतरकर रख लेते हैं, अगर की अगरबत्ती बनाने और शरीर पर मलने के काम में लाया जाता है, अगर की सुगन्ध से मन प्रसन्न होता ‌‌‌है। ‌‌‌अगर का रंग काला और भूरा होता है। इसकी लकड़ी जलाने में ‌‌‌सुगन्ध देती है।
‌‌‌विशेष: ‌‌‌
अगर पित्त प्रकृति वालों के लिए हानिकारक होता है। ‌‌‌कपूर और गुलाब के फूल अगर के दोषों को दूर करते हैं और इसके गुणों में सहायक होते हैं।
स्वभाव: ‌‌‌
अगर खुष्क और गर्म प्रकृति का होता है।
‌‌‌औषधीय गुण: ‌‌‌
अगर गर्म, चरपरी, त्वचा को हितकारी, कड़वी, तीक्ष्ण, शीत, वात और कफनाशक और मन को प्रसन्न करती है, शरीर में स्फूर्ति लाती है, स्मरण शक्ति को बढ़ाती है, मस्तिष्क को ताजा करती है और गर्भाशय की सर्दी को दूर करती है।
अगर के पेड़ असम, मालाबार, चीन की सीमा के निकटवर्ती क्षेत्रों, बंगाल के दक्षिण की ओर के उष्ण कटिबन्ध के ऊपर के प्रदेश में और सिलहट जिले के आस-पास ‘जातिया’ पर्वत पर अधिक मात्रा में होता है

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पुनर्नवादि मंडूर के फायदे उपयोग:punarnavadi mandoor fayade



पुनर्नवादि मंडूर क्या है?

पुनर्नवादि मंडूर एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसका उपयोग शरीर में आयरन के स्तर को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह एनीमिया, पीलिया, हेपेटाइटिस, कोलाइटिस, गठिया जैसे रोगों का इलाज करने में मदद करता है। इसमें होग्वीड (पुनर्नवा), सूखी अदरक, ट्रिविट, काली मिर्च, लंबी काली मिर्च, देवदार, हल्दी, हरीतकी, बिभीत्की, आंवला, कैरम और कैरावे सहित कई तत्व होते हैं। ये सारी चीज़ें स्वस्थ शरीर और स्वस्थ दिमाग में योगदान करती हैं। इस दवा के लाभों के बारे में जानने के लिए आगे पढ़ें।

पुनर्नवादि मण्डूर के फायदे

जैसा कि पुनर्नवादि मंडूर कई महत्वपूर्ण सामग्रियों का एक पॉली हर्बल रूप है जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं। इनमे से कुछ नीचे दिए गये हैं:—
जिगर की समस्याएं
अध्ययनों से यह पता चला है कि पुनर्नवादि मंडूर का सेवन करने से हेपेटोसाइट्स या जिगर की कोशिकाओं के बनने से जिगर की खराबी ठीक हो जाती है। यह लीवर की कोशिकाओं में फैट के इकठ्ठे होने को भी कम करता है जो कि फैटी लिवर जैसे रोगों और फॉस्टर लिवर के कार्य को रोकता है।
आयरन की कमी को रोकता है
यह मुख्य रूप से आयरन की कमी को रोकने के लिए दी जाती है। पुनर्नवादि मंडूर को नियमित रूप से लेने से हीमोग्लोबिन के स्तर में सुधार होता है और एनीमिया, क्रोनिक कोलाइटिस, वर्म के इन्फेक्शन आदि रोगों की घटना को कम किया जा सकता है।
हृदय संबंधी विकार
इसकी कार्डियो प्रोटेक्टिव प्रॉपर्टी ड्यूरेसिस को बढ़ावा देती है और फ्लूड रिटेंशन को खत्म कर देती है जो बदले में दिल से जुड़ी बीमारियों को कम करता है। यह पंपिंग की दर को बढ़ाकर हार्ट फेल होने से रोकता है, जिससे आपका दिल स्वस्थ रहता है।
गुर्दे से संबंधित समस्याएं
यह अपने औषधीय गुणों के कारण किडनी के काम को बढ़ा देता है और किडनी को फूलने से रोकता है जो कि किडनी से संबंधित सबसे अधिक समस्याओं में से एक है।
महिलाओं के लिए लाभ
एक महिला मासिक धर्म के दौरान लगभग 10 मि.ली. से 35 मि.ली. खून खो देती है। पुनर्नवादि मंडूर का सेवन करने से शरीर में आयरन के बनने की क्षमता में सुधार करता है जिससे महिलाओं को शीघ्र स्वस्थ होने में मदद मिलती है।
पुनर्नवादि मंडूर के उपयोग
पुनर्नवादि मंडूर में बहुत से उपयोग और लाभ हैं जो कई समस्याओं का हल कर सकते हैं। कुछ सर्वोत्तम उपयोग नीचे सूचीबद्ध हैं:
हेमेटोजेनिक प्रकृति
पुनर्नवादि मंडूर विशेष रूप से आयरन टॉनिक के रूप में उपयोग किया जाता है क्योंकि इसमें आयरन ऑक्साइड होता है। इसके हेमेटोजेनिक गुण लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) बनाते हैं जो मासिक धर्म चक्र के दौरान खोए हुए खून की मात्रा को कम करने में मदद करता है और एनीमिया, जलोदर, पुराने बुखार जैसी समस्याओं से बचाता है।
एंटी इंफ्लेमेटरी
इसका उपयोग इसके तीव्र रूप में त्वचा की सूजन को ठीक करने के लिए भी किया जाता है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो त्वचा को ठंडा करने में मदद करती है। 1 से 2 महीने के लिए इसका उपयोग करना अच्छे परिणाम देता है|
आयुर्वेदिक दवा
इसमें शुंती, मरिचा, पुर्नवा, त्रिवृत, दंती, अमलकी आदि आयुर्वेदिक तत्व पाए जाते हैं जो पीलिया, बवासीर, पुराने बुखार, मलबासर्शन सिंड्रोम जैसे रोगों से लड़ने में बहुत प्रभावी तरीके से मदद करता है।
पुनर्नवादि मंडूर का उपयोग कैसे करें?
पुनर्नवादि मंडूर में उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक तत्व होते हैं जो विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य मुद्दों को पूरा करते हैं। पुनर्नवादि मंडूर का सेवन छाछ, गुड़ या दूध के साथ किया जा सकता है। हर रोज़ 500 मि.ग्रा. से ज्यादा का सेवन न करें। पुनर्नवादि मंडूर के सेवन से संबंधित कुछ प्रश्न नीचे दिए गए हैं:
क्या इसका सेवन भोजन से पहले या बाद में किया जा सकता है?
पुनर्नवादि मंडूर एक आयुर्वेदिक दवा है जिसका सेवन भोजन करने से पहले या बाद में किया जाना चाहिए। इसे डॉक्टर द्वारा तय किये अनुसार 500 मि.ग्रा. से 1 ग्रा. के अनुपात में लेना चाहिए।
क्या पुनर्नवादि मंडूर को खाली पेट लिया जा सकता है?
भोजन के बाद पानी, छाछ या गुड़ के साथ इसका सेवन करना सबसे फायदेमंद है।
क्या पुनर्नवादि मंडूर को पानी के साथ लिया जा सकता है?
हाँ। पुनर्नवादि मंडूर पानी के साथ लेने पर प्रभावी होता है। इसका सेवन छाछ या गुड़ के साथ भी लिया जा सकता है।
पुनर्नवादि की खुराक
इसका उपयोग शरीर में आयरन के स्तर को बढ़ाता है। पुनर्नवादि मंडूर को रोगी की समस्या की ऊंचाई, आयु, वजन और गंभीरता जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया गया है।
आयु मात्रा समय
वयस्क 500 मि.ग्रा. से 1 ग्रा. भोजन के बाद
बच्चे अधिकतम 250 मि.ग्रा. एक दिन में
भोजन के बाद
इसका सेवन भोजन से पहले किया जाता है लेकिन यह सबसे अच्छा काम तब करता है जब इसका सेवन भोजन के बाद किया जाता है।
इसे सबसे प्रभावी बनाने के लिए, इसे पानी, छाछ या गुड़ के साथ लेना चाहिए।
पुनर्नवादि मंडूर के साइड इफेक्ट्स
पुनर्नवादि मंडूर कई बीमारियों से निपटने के लिए उपयोगी है। इसके सेवन से कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं। लेकिन कुछ मामलों में इसके तत्वों के कारण इसका कुछ लोगों पर निम्न तरीकों से प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है:
उच्च रक्तचाप: उच्च रक्तचाप से पीड़ित रोगियों में रक्तचाप में वृद्धि देखी जा सकती है जो तनाव, अपर्याप्त नींद, थकान जैसे कई कारकों का परिणाम है।
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रभाव: यह पाचन तंत्र में रुकावट या अत्यधिक गैस का कारण हो सकता है जिससे गैसट्रोइंटेस्टिनल समस्याएं हो सकती हैं।
पुनर्नवादि मंडूर को लेने से कई अन्य दुष्प्रभाव जैसे रेस्पिरेटरी अरेस्ट, ऑप्टिक अट्रोफी, मतली, पेट में जलन, खुजली, खराश आदि होते हैं।
ऊपर पूरी सूची नहीं है। ये पुनर्नवादि मंडूर के कुछ सबसे ज्यादा ध्यान देने लायक दुष्प्रभाव हैं जो ज्यादातर लोगों में देखे जाते हैं। ऊपर बताये गये दुष्प्रभावों से ज्यादा और भी कई हो सकते हैं जो मेटाबोलिज्म पर डिपेंड होता है।
पुनर्नवादि मंडूर से बचाव और चेतावनी
क्या गाड़ी चलाने से पहले इसका सेवन किया जा सकता है?
ज्यादातर रोगियों को यह प्रभावित नहीं करता लेकिन यदि किसी को उनींदापन, सिरदर्द आदि हों तो डॉक्टर को बताएं|ऐसी स्थिति में ड्राइव करने से पहले पुनर्नवादि मंडूर ना लें|
क्या इसे शराब के साथ लिया जा सकता है?
नहीं, शराब शरीर में उनींदापन लाती है जो किसी पर भी निगेटिव प्रभाव डालती है। इसलिए इस दवा को शराब के साथ नहीं लिया जाना चाहिए।
क्या इसकी लत लग सकती है?
नहीं, इसकी तय की गयी मात्रा में लेने से नशा नहीं होता| यह आयुर्वेदिक तत्वों से भरपूर है|
क्या यह मदहोश कर सकता है?
पुनर्नवादि मंडूर लेने वाले दुष्प्रभावों में से एक उनींदापन है। यदि आपको किसी भी प्रकार की परेशानी हो तो तुरंत अपने डॉक्टर को सूचित करें|
क्या पुनर्नवादि मंडूर को ज्यादा मात्रा में ले सकते हैं?
नहीं, अधिक मात्रा में इसे लेने से आपकी बीमारी ठीक नहीं होगी। बल्कि यह गंभीर दुष्प्रभाव को जन्म देता है| इसलिए आयुर्वेदिक डॉक्टर द्वारा तय की गयी मात्रा से ज्यादा इस दवा को नहीं लेना चाहिए।
पुनर्नवादि मंडूर के बारे में पूछे गए महत्वपूर्ण सवाल
यह किस चीज से बना है?
यह काली मिर्च, चित्रक मूल, वैदिंग, सोंठ, आंवला, दंती की जड़ें, कुटकी, मस्ताक, काला जीरा जैसी हर्बल सामग्री से बना है। इन सभी चीज़ों का मेल इसे एक रोग से लड़ने वाली दवा बनाता है।
भंडारण?
इसे कमरे के तापमान पर और सूखी जगह पर रखा जाना चाहिए। एक बार खोलने के बाद इसे बच्चों की पहुंच से दूर रखें|
जब तक हालत में सुधार ना दिखे क्या तब तक पुनर्नवादि मंडूर का उपयोग करने की जरूरत है?
आम तौर पर यह आयुर्वेदिक दवा पूरी तरह से 4 से 8 हफ्ते में परिणाम दिखाना शुरू कर देती है। इस दवा को नियमित रूप से लेना चाहिए और इसे तय की गयी मात्रा में ही लेना चाहिए।
पुनर्नवादि मंडूर को दिन में कितनी बार लेने की जरूरत है?
इसे दिन में दो बार लेना चाहिए। यह सबसे अच्छा काम तब करता है जब इसे गुनगुने पानी और भोजन के बाद लिया जाता है| इसे दिन में 2 से 3 ग्रा. से ज्यादा नहीं लेना चाहिए|
क्या इसका स्तनपान पर कोई असर पड़ता है?
हाँ, यदि आप स्तनपान करा रही हैं तो पुनर्नवादि को लेना उचित नहीं है। इसका दुष्प्रभाव आपको थका हुआ महसूस कराता है।
क्या यह बच्चों के लिए सुरक्षित है?
यह बच्चों के लिए सुरक्षित माना जाता है। लेकिन बच्चों को इसे तय की गयी मात्रा में ही दिया जाना चाहिए|  
यदि इसे तय की गयी मात्रा से ज्यादा दिया जाता है तो कई नकारात्मक प्रभाव को जन्म दे सकता है।
क्या गर्भधारण पर इसका कोई असर पड़ता है?
यह गर्भवती या स्तनपान कराने वाली माताओं पर नेगेटिव प्रभाव डाल सकता है क्योंकि यह रक्तचाप को बढ़ा सकता है| कुछ मामलों में यह सिरदर्द या मरोड़ पैदा कर सकता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं के लिए यह उचित नहीं है।
क्या इसमें शुगर होती है?
हाँ, इसमें चीनी होती है और इस प्रकार यह मधुमेह से पीड़ित रोगियों के लिए सही नहीं है।

दशमूलारिष्ट के फायदे और उपयोग: Dashmularisht ke fayde,


 

यह एक ऐसी औषधि है जो महिलाओं के लिए काफी लाभदायी है। महिलाओं को होने वाली कई समस्याओं में यह औषधि एक रामबाण इलाज करती है।

दशमूलारिष्ट  जिन औषधियों से मिलकर बना है वह मुख्य रूप से यह से वात संबंधी विकारों, उदर रोग और मूत्र रोगों में लाभ देती है। इसके साथ ही यह प्रसूता स्त्रियों के लिए अमृत के समान गुण देने वाली औषधि है। इस औषधि का सेवन महिलाओं को संतान प्राप्ति में सहायक होता है। यह औषधि गर्भाशय की शुद्धि करती है और निर्बलों को बल, तेज और वीर्य प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त यह औषधि अन्य बहुत रोगों में भी लाभदायी होती है। तो चलिए इस पोस्ट के जरिये हम आपको बताते हैं इस औषधि के बारे में।
दशमूलारिष्ट  में पाए जाने वाले तत्व
दशमूल 200 तोला या लगभग 2400 ग्राम
चित्रक छाल 100 तोला या लगभग 1200 ग्राम
लोध 80 तोला या लगभग 960 ग्राम
गिलोय 80 तोला या लगभग 960 ग्राम
आंवला 64 तोला या लगभग 768 ग्राम
धमासा 48 तोला या लगभग 576 ग्राम
खेर की छाल 32 तोला या लगभग 384 ग्राम
विजयसार की छाल 32 तोला या लगभग 384 ग्राम
हरड़ की छाल 32 तोला या लगभग 384 ग्राम
कूठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
मजीठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
देवदारु 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
बायबिडंग 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
मुलेठी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
भारंगी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
कबीठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
बहेड़ा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
सांठी की जड़ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
चव्य 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
जटामांसी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
गेऊँला 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
अनंतमूल 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
स्याह जीरा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
निसोत 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
रेणुक बीज 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
रास्र 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
पीपल 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
सुपारी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
कचूर 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
हल्दी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
सूवा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
पद्म 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
काष्ठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
नागकेसर 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
नागर मोथा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
इन्द्र जौ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
काकड़ासिंगी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
बिदारी कंद 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
असगंध 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
मुलेठी 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
वाराही कंद 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
दशमूलारिष्ट के बनाने की विधि
1. ऊपर दिए गए सभी घटकों को अच्छी तरह से पीस कर इनका मिश्रण बना लें। इसके पश्चात इस मिश्रण को आठ गुना पानी (मिश्रण की मात्रा से आठ गुना पानी) में मिलाकर इसको गर्म करने के लिए रखें। इस मिश्रण को तब तक उबालें जब तक यह अपने कुल मिश्रण का एक चौथाई शेष ना रह जाए।
2. 3 किलो मुनक्का को लगभग 12 लीटर पानी में डालकर उबाल लें और इसको तब तक उबालें जब तक ये अपने कुल मिश्रण का एक चौथाई ना हो जाए।
3. इसके पश्चात इन दोनों काढ़ों को अच्छी तरह मिला कर इनकों छान लें।
4. शहद लगभग 1560 ग्राम, गुड़ लगभग 19 किलो 200 ग्राम, धाय के फूल लगभग 1440 ग्राम और शीतल मिर्च, नेत्रबाला, सफ़ेद चन्दन, जायफल, लौंग, दालचीनी, इलायची, तेजपत्ता, पीपल, नागकेशर प्रत्येक को लगभग 96 ग्राम लें। फिर इन सभी को काढे को छानने के बाद बची हुई सामग्री के साथ मिलाकर इनका चूर्ण बना लें।
5. इस चूर्ण में लगभग 3 ग्राम कस्तूरी मिलाकर 1 महीने के लिए रख दें।
6. इसके पश्चात इसे छान लें और थोड़े से निर्मली के बीज मिलाकर दशमूलारिष्ट (dashmularishta) को स्वच्छ बना लें।
दशमूलारिष्ट के फायदे
दशमूलारिष्ट महिलाओ के लिए बहुत गुणकारी माना जाता हैं। दशमूलारिष्ट हमारे शरीर के बहुत से विकारो को दूर करता हैं। और हमारे शरीर में नई सी जान देता हैं। दशमूलारिष्ट (dashmularishta) औषधि के महत्वपूर्ण लाभ एवं प्रयोग निम्नलिखित है:
प्रसूता स्त्रियों के लिए दशमूलारिष्ट के लाभ
दशमूलारिष्ट में प्रयोग किए गए तत्व शरीर की प्रतिरोधक क्षमताओं को बढ़ाती है। जब कोई स्त्री शिशु को जन्म देने के बाद दशमूलारिष्ट का सेवन करती है तो वह कई रोगों का शिकार होने से बच जाती है। क्योकि इसमें उपयोग किए गए तत्व शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता हैं। इसका सेवन आम का पाचन करता है जिस से ज्वर, जीर्णज्वर, आम और वात सम्बंधित बीमारियां नहीं होती है। यह प्रसूता के कास और श्वास में भी काफी लाभदायक है। इसमें उपयुक्त तत्व शरीर में प्रसव के बाद आने वाली निर्बलता को दूर करती है।
गर्भपात और गर्भस्राव होने में में दशमूलारिष्ट का उपयोग
स्त्रियों में गर्भाशय की शिथिलता गर्भपात अथवा गर्भस्त्राव का कारण बनता है। गर्भाशय की शिथिलता को दूर करने के लिए दशमूलारिष्ट एक उतकृष्ट औषधि है। इस औषधि में जिन तत्वों का उपयोग होता है वह स्त्री के गर्भाशय को ताकत देते हैं। यह बार बार होने वाले गर्भस्त्राव का इलाज करता है साथ ही एक स्वस्थ संतान की प्राप्ति भी होती है। यदि किसी भी स्त्री को ऐसी कोई भी समस्या है तो इस औषधि का प्रयोग कम से कम 3 महीने तक करना चाहिए। साथ ही संतान प्राप्ति के प्रयास भी करते रहने चाहिए।
पूयशुक्र बीमारी में दशमूलारिष्ट का उपयोग
दशमूलारिष्ट एक ऐसी औषधि है जिसमें शुक्र शोधक पाया जाता है। इस औषधि का उपयोग रौप्य भस्म और त्रिफला चूर्ण के साथ सेवन करने से शुक्रशुद्धि होती है। साथ ही वीर्यन(स्पर्म) में आ रही पस सेल्स को भी कम करता है।
दर्द निवारक और शोथहर में दशमूलारिष्ट का उपयोग
दशमूलारिष्ट के सेवन से वात का शमन होता है। इसमें कुछ तत्व ऐसे होते हैं जो दर्द निवारक होते हैं। इसी कारण इस औषधि का उपयोग दर्द से निवारण करने में होता है। यह स्त्रियों में होने वाली पीठ दर्द, गर्भाशय के दर्द, तीव्र शिर: शूल और पेट के दर्द का उपचार करने में सहायक होती है।
श्वास रोग में दशमूलारिष्ट के उपयोग
श्वास संबंधी रोगो में दशमूलारिष्टएक चमत्कारी औषधि है। यदि रोगी को जोर से खांसी आती हो, कफ निकलता हो, बैचेनी होती हो, सांस लेने में हाफन आना, नाड़ी की गति का तेज होना यदि इनमें से कोई भी परेशानी है तो आपके लिए ये औषधि अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगी।
बढ़ती उम्र को रोकन में दशमूलारिष्ट के उपयोग
दशमूलारिष्ट एक ऐसी आर्युवेदिक औषधि है जो कई बीमारियों का प्राभावी इलाज करने में सक्षम होती है। इसके कई फायदे हैं जिनमें से एक ऐसा फायदा है जिसे जानकर आप इसका सेवन करने में जरा भी देरी नहीं करेंगे। इसमें कई ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो आपको युवा बनाए रखने में मदद करते हैं और बढ़ती उम्र के प्रभावों को कम कर देते हैं।
शारीरिक-मानसिक रूप से मजबूत बनाने में दशमूलारिष्ट के उपयोग
दशमूलारिष्ट में उपयोग की गई औषधियां शरीर को मजबूती प्रदान करने में भी काफी लाभदायी होती है। यह शारिरिक और मानसिक दोनों तरह की कमजोरी को दूर करने के लिए एक अच्छा उपाय है।
पाचन क्रिया को सुधारने में दशमूलारिष्ट के उपयोग
दशमूलारिष्ट का सेवन करने से शरीर की पाचन क्रिया पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। यदि आपका पाचन तंत्र सही नहीं है तो ऐसे में यह शरीर को कई बीमारियों के लिए न्यौता देता है और बीमारियों का घर बन जाता है। ऐसे में दशमूलारिष्ट का उपयोग करने से पाचन तंत्र सही रहता है जिससे आप कई अनावश्यक बीमारी का शिकार होने से बच सकते हैं।
स्टेमिना बढ़ाने में दशमूलारिष्ट के उपयोग
दशमूलारिष्ट का सेवन नियमित रूप से करने से यह स्टेमिना को भी बढ़ाता है। जिससे आप में शारीरिक ताकत और सहनशक्ति में प्रभावी रूप से वृद्धि होती है।
त्वचा के लिए दशमूलारिष्ट के उपयोग
शारीरिक और मानसिक रूप से ही नहीं बल्कि इसका सेवन हमारी त्वचा के लिए भी काफी लाभकारी होता है। इसके सेवन से त्वचा में चमक आती है।
दशमूलारिष्ट का सेवन और मात्रा विधि
औषधीय मात्रा
बच्चे 5 से 10 मिलीमीटर
वय्स्क 10 से 25 मिलीमीटर
सेवन
दवा लेने का उचित समय सुबह और रात में भोजन के बाद
दिन में कितनी बार लें? 2 बार
किसके साथ लें? बराबर मात्रा में गुनगुना पानी मिला कर
कितने समय के लिए लें? चिकित्सक की सलाह से
दशमूलारिष्ट से होने वाले दुष्प्रभाव
पूरी तरह से आर्युवेदिक है दशमूलारिष्ट, ऐसे में इसके साइड इफेक्ट नहीं होते हैं लेकिन इसकी मात्रा और सेवन चिकित्सक की सलाह से ही करें।
(नोट: दशमूलारिष्ट वात और कफ प्रधान रोगों और लक्षणों में प्रभावशाली है। यदि प्रसूता स्त्रियों में पित्तप्रधान लक्षण जैसे कि मुँह में छाले, दाह, गरम जल, सामान पतले दस्त, अधिक प्यास आदि लक्षण हों तो दशमूलारिष्ट का प्रयोग नहीं करना चाहिए।)
दशमूलारिष्ट प्राचीन आयुर्वेदिक औषधियों में से एक है, जो एक ऐसी औषधि है जों महिलाओं के लिए एक गुणकारी और चमत्कारी है। महिला के शरीर को समय-समय पर कई तरह के बदलाव झेलने पड़ते हैं। जिस वजह से उसका शरीर काफी कमजोर हो जाता है। ऐसे में यह औषधि महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखती है।
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द्राक्षासव सिरप के फायदे और उपयोग:Drakshasav ke fayde




द्राक्षासव सिरप शुद्ध हर्बल तत्वों से बनी एक चिकित्सीय आयुर्वेदिक दवा हैं। इस दवा को ज्यादा प्रभावी और असरदार बनाने का कार्य इसमें उपस्थित प्राकृतिक एल्कोहोल करता हैं। द्राक्षासव सिरप उत्पाद का निर्माण बहुत सारी कंपनिया करती है, जिसमें डाबर, पतंजलि, बैद्यनाथ और झंडू सबसे ऊपर है।
द्राक्षासव सिरप का उपयोग विशेष रूप से पेट की बीमारियों से निपटने हेतु किया जाता हैं। यह दवा भोजन के पाचन हेतु आवश्यक एंजाइमों का स्राव नियंत्रित कर पाचन क्रियाओं का सुचारू रूप से संचालन करती हैं और पाचन तंत्र को मजबूती प्रदान करती हैं।
इसके साथ ही यह दवा रक्त की समस्याओं, दिल की परेशानियों और मानसिक विकारों के खिलाफ भी अच्छे से कार्य करती हैं।बिगड़े हालातों की वजह से आई शारीरिक कमजोरी और थकावट का अंत भी इस दवा द्वारा आसानी से किया जा सकता हैं। मधुमेह और एलर्जी के मामलों में इस दवा के सेवन से पूरी तरह परहेज किया जाना चाहिए।
द्राक्षासव सिरप की संरचना –
द्राक्षासव सिरप को प्रभावी बनाने के लिए कुछ अनुकूल सक्रिय घटकों की आवश्यकता होती हैं। इस दवा को बनाने में लगे हर्बल तत्वों की सूची निम्नलिखित हैं।द्राक्षा + नागकेशर + पिप्पली + धातकी पुष्प + मरिच (कालीमिर्च) + इलायची + तेजपता + विडंग + प्रियंगु
+ दालचीनी + गुड़
द्राक्षासव सिरप के घटक मिलकर एक रेचक का कार्य करते हैं। ये पेट में जमा हुए मल को चिकना बनाकर मलमार्ग से निष्कासित करने का कार्य करते हैं और पेट की अच्छे से सफाई कर पेट की समस्याओं (गैस, अपच, भूख में कमी, पेट दर्द आदि) का निपटारा करते हैं।
यह दवा पाचन तंत्र को सुधारकर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर कार्य करती हैं, जिससे शरीर को रोगों के प्रति लड़ने हेतु ताकत मिल सकें।
इस दवा के घटक मानसिक विकारों के प्रति अच्छे से कार्य करते हैं और चिंता, अवसाद, तनाव, निष्क्रियता, नींद न आना जैसे लक्षणों का इलाज करते हैं।
कुछ स्थितियों में चोंट लगने पर खून का रुकाव नहीं होता हैं और खून लगातार बहता रहता हैं। यह दवा प्रभावित क्षेत्र में रक्त का थक्का जल्दी बनाकर रक्त की अनावश्यक हानि को बचाती हैं।
द्राक्षासव सिरप के नियमित सही सेवन के निम्न उपयोग व फायदे है।

बवासीर में फायदेमंद
आंतों में फैले संक्रमण का इलाज
भूख में बढ़ोतरी
पाचन में सुधार
रक्त का थक्का जल्दी बनाने में सहायक
मासिक धर्म में अत्यधिक रक्तस्राव की रोकथाम
कब्ज, अपच, गैस से छुटकारा
लीवर को सुरक्षा प्रदान करना
हृदय की दक्षता में सुधार
उच्च रक्तचाप की मुश्किलों को दूर करना
खून में क्षति की भरपाई
तनाव, अवसाद और चिंता से मुक्ति
एपिस्टैक्सिस (नाक से खून बहने) का इलाज
अरुचि और आलस दूर करना
शारीरिक ऊर्जा का संरक्षण
पुरानी कमजोरी और थकावट मिटाना
मलशुद्धि पर ध्यान देना
अच्छी नींद आना
द्राक्षासव सिरप को स्वास्थ्य सुधारक के रूप में देखते हुए इसको निर्मित किया जाता हैं और इसकी कुशलता तथा शुद्धता का पूरा ध्यान रखा जाता हैं। इसलिए इस दवा के कोई दुष्प्रभाव या नुकसान देखने को नहीं मिलते हैं।
कुछ मामलों में इस दवा की ज्यादा खुराक से थोड़ी-सी शारीरिक पीड़ा महसूस की जा सकती हैं। अगर इस दवा की खुराक से छेड़खानी करते हुए इसका अनियंत्रित सेवन किया जायें, तो पेट में जलन तथा सूजन पैदा हो सकती हैं और कभी-कभी पेट खराब होने की संभावना भी रहती हैं।
मरीज में द्राक्षासव सिरप की खुराक का अध्ययन एक अच्छे आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा किया जाना चाहिए। इसका का कॉर्स लंबा हो सकता हैं, इसलिए इससे जुड़ी सारी जानकारी डॉक्टर से लेते रहें ।
इस दवा की खुराक को लक्षणों के आधार पर कम या ज्यादा किया जा सकता हैं।
10 साल से अधिक आयु के बच्चों में इसकी खुराक दिन में 10-15ml सुरक्षित तय की गई हैं। इस विषय में बाल रोग विशेषज्ञ को प्राथमिकता देवें।
द्राक्षासव सिरप को भोजन के बाद सुबह-शाम दो टाइम गुनगुने पानी के साथ लेने की सलाह दी जाती हैं।
दो खुराकों के बीच तय एक सख्त समय अंतराल का पालन करें, जिससे दवा की मौजूदगी शरीर में बनी रहें।
इसकी छुटी हुई खुराक याद आने पर जल्द से जल्द लेने का प्रयास करें।
ओवरडोज़ महसूस होने पर खुराक बंदकर तुरुंत नजदीकी चिकित्सा सुविधा तलाश करें।
निम्न सावधानियों के बारे में द्राक्षासव सिरप के सेवन से पहले जानना जरूरी है।
इसे लेने से पहले एक बार अच्छे डॉक्टर को जरूर सूचित कर देवें।
दवा को रोजाना एक निश्चित समय और एक नियत समय अंतराल में लेवें।
इस दवा की ज्यादा खुराक लेने से बचें।

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