यह एक ऐसी औषधि है जो महिलाओं के लिए काफी लाभदायी है। महिलाओं को होने वाली कई समस्याओं में यह औषधि एक रामबाण इलाज करती है।
दशमूलारिष्ट जिन औषधियों से मिलकर बना है वह मुख्य रूप से यह से वात संबंधी विकारों, उदर रोग और मूत्र रोगों में लाभ देती है। इसके साथ ही यह प्रसूता स्त्रियों के लिए अमृत के समान गुण देने वाली औषधि है। इस औषधि का सेवन महिलाओं को संतान प्राप्ति में सहायक होता है। यह औषधि गर्भाशय की शुद्धि करती है और निर्बलों को बल, तेज और वीर्य प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त यह औषधि अन्य बहुत रोगों में भी लाभदायी होती है। तो चलिए इस पोस्ट के जरिये हम आपको बताते हैं इस औषधि के बारे में।
दशमूलारिष्ट में पाए जाने वाले तत्व
दशमूल 200 तोला या लगभग 2400 ग्राम
चित्रक छाल 100 तोला या लगभग 1200 ग्राम
लोध 80 तोला या लगभग 960 ग्राम
गिलोय 80 तोला या लगभग 960 ग्राम
आंवला 64 तोला या लगभग 768 ग्राम
धमासा 48 तोला या लगभग 576 ग्राम
खेर की छाल 32 तोला या लगभग 384 ग्राम
विजयसार की छाल 32 तोला या लगभग 384 ग्राम
हरड़ की छाल 32 तोला या लगभग 384 ग्राम
कूठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
मजीठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
देवदारु 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
बायबिडंग 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
मुलेठी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
भारंगी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
कबीठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
बहेड़ा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
सांठी की जड़ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
चव्य 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
जटामांसी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
गेऊँला 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
अनंतमूल 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
स्याह जीरा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
निसोत 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
रेणुक बीज 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
रास्र 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
पीपल 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
सुपारी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
कचूर 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
हल्दी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
सूवा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
पद्म 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
काष्ठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
नागकेसर 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
नागर मोथा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
इन्द्र जौ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
काकड़ासिंगी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
बिदारी कंद 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
असगंध 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
मुलेठी 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
वाराही कंद 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
दशमूलारिष्ट के बनाने की विधि
1. ऊपर दिए गए सभी घटकों को अच्छी तरह से पीस कर इनका मिश्रण बना लें। इसके पश्चात इस मिश्रण को आठ गुना पानी (मिश्रण की मात्रा से आठ गुना पानी) में मिलाकर इसको गर्म करने के लिए रखें। इस मिश्रण को तब तक उबालें जब तक यह अपने कुल मिश्रण का एक चौथाई शेष ना रह जाए।
2. 3 किलो मुनक्का को लगभग 12 लीटर पानी में डालकर उबाल लें और इसको तब तक उबालें जब तक ये अपने कुल मिश्रण का एक चौथाई ना हो जाए।
3. इसके पश्चात इन दोनों काढ़ों को अच्छी तरह मिला कर इनकों छान लें।
4. शहद लगभग 1560 ग्राम, गुड़ लगभग 19 किलो 200 ग्राम, धाय के फूल लगभग 1440 ग्राम और शीतल मिर्च, नेत्रबाला, सफ़ेद चन्दन, जायफल, लौंग, दालचीनी, इलायची, तेजपत्ता, पीपल, नागकेशर प्रत्येक को लगभग 96 ग्राम लें। फिर इन सभी को काढे को छानने के बाद बची हुई सामग्री के साथ मिलाकर इनका चूर्ण बना लें।
5. इस चूर्ण में लगभग 3 ग्राम कस्तूरी मिलाकर 1 महीने के लिए रख दें।
6. इसके पश्चात इसे छान लें और थोड़े से निर्मली के बीज मिलाकर दशमूलारिष्ट (dashmularishta) को स्वच्छ बना लें।
दशमूलारिष्ट के फायदे
दशमूलारिष्ट महिलाओ के लिए बहुत गुणकारी माना जाता हैं। दशमूलारिष्ट हमारे शरीर के बहुत से विकारो को दूर करता हैं। और हमारे शरीर में नई सी जान देता हैं। दशमूलारिष्ट (dashmularishta) औषधि के महत्वपूर्ण लाभ एवं प्रयोग निम्नलिखित है:
प्रसूता स्त्रियों के लिए दशमूलारिष्ट के लाभ
दशमूलारिष्ट में प्रयोग किए गए तत्व शरीर की प्रतिरोधक क्षमताओं को बढ़ाती है। जब कोई स्त्री शिशु को जन्म देने के बाद दशमूलारिष्ट का सेवन करती है तो वह कई रोगों का शिकार होने से बच जाती है। क्योकि इसमें उपयोग किए गए तत्व शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता हैं। इसका सेवन आम का पाचन करता है जिस से ज्वर, जीर्णज्वर, आम और वात सम्बंधित बीमारियां नहीं होती है। यह प्रसूता के कास और श्वास में भी काफी लाभदायक है। इसमें उपयुक्त तत्व शरीर में प्रसव के बाद आने वाली निर्बलता को दूर करती है।
गर्भपात और गर्भस्राव होने में में दशमूलारिष्ट का उपयोग
स्त्रियों में गर्भाशय की शिथिलता गर्भपात अथवा गर्भस्त्राव का कारण बनता है। गर्भाशय की शिथिलता को दूर करने के लिए दशमूलारिष्ट एक उतकृष्ट औषधि है। इस औषधि में जिन तत्वों का उपयोग होता है वह स्त्री के गर्भाशय को ताकत देते हैं। यह बार बार होने वाले गर्भस्त्राव का इलाज करता है साथ ही एक स्वस्थ संतान की प्राप्ति भी होती है। यदि किसी भी स्त्री को ऐसी कोई भी समस्या है तो इस औषधि का प्रयोग कम से कम 3 महीने तक करना चाहिए। साथ ही संतान प्राप्ति के प्रयास भी करते रहने चाहिए।
पूयशुक्र बीमारी में दशमूलारिष्ट का उपयोग
दशमूलारिष्ट एक ऐसी औषधि है जिसमें शुक्र शोधक पाया जाता है। इस औषधि का उपयोग रौप्य भस्म और त्रिफला चूर्ण के साथ सेवन करने से शुक्रशुद्धि होती है। साथ ही वीर्यन(स्पर्म) में आ रही पस सेल्स को भी कम करता है।
दर्द निवारक और शोथहर में दशमूलारिष्ट का उपयोग
दशमूलारिष्ट के सेवन से वात का शमन होता है। इसमें कुछ तत्व ऐसे होते हैं जो दर्द निवारक होते हैं। इसी कारण इस औषधि का उपयोग दर्द से निवारण करने में होता है। यह स्त्रियों में होने वाली पीठ दर्द, गर्भाशय के दर्द, तीव्र शिर: शूल और पेट के दर्द का उपचार करने में सहायक होती है।
श्वास रोग में दशमूलारिष्ट के उपयोग
श्वास संबंधी रोगो में दशमूलारिष्टएक चमत्कारी औषधि है। यदि रोगी को जोर से खांसी आती हो, कफ निकलता हो, बैचेनी होती हो, सांस लेने में हाफन आना, नाड़ी की गति का तेज होना यदि इनमें से कोई भी परेशानी है तो आपके लिए ये औषधि अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगी।
बढ़ती उम्र को रोकन में दशमूलारिष्ट के उपयोग
दशमूलारिष्ट एक ऐसी आर्युवेदिक औषधि है जो कई बीमारियों का प्राभावी इलाज करने में सक्षम होती है। इसके कई फायदे हैं जिनमें से एक ऐसा फायदा है जिसे जानकर आप इसका सेवन करने में जरा भी देरी नहीं करेंगे। इसमें कई ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो आपको युवा बनाए रखने में मदद करते हैं और बढ़ती उम्र के प्रभावों को कम कर देते हैं।
शारीरिक-मानसिक रूप से मजबूत बनाने में दशमूलारिष्ट के उपयोग
दशमूलारिष्ट में उपयोग की गई औषधियां शरीर को मजबूती प्रदान करने में भी काफी लाभदायी होती है। यह शारिरिक और मानसिक दोनों तरह की कमजोरी को दूर करने के लिए एक अच्छा उपाय है।
पाचन क्रिया को सुधारने में दशमूलारिष्ट के उपयोग
दशमूलारिष्ट का सेवन करने से शरीर की पाचन क्रिया पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। यदि आपका पाचन तंत्र सही नहीं है तो ऐसे में यह शरीर को कई बीमारियों के लिए न्यौता देता है और बीमारियों का घर बन जाता है। ऐसे में दशमूलारिष्ट का उपयोग करने से पाचन तंत्र सही रहता है जिससे आप कई अनावश्यक बीमारी का शिकार होने से बच सकते हैं।
स्टेमिना बढ़ाने में दशमूलारिष्ट के उपयोग
दशमूलारिष्ट का सेवन नियमित रूप से करने से यह स्टेमिना को भी बढ़ाता है। जिससे आप में शारीरिक ताकत और सहनशक्ति में प्रभावी रूप से वृद्धि होती है।
त्वचा के लिए दशमूलारिष्ट के उपयोग
शारीरिक और मानसिक रूप से ही नहीं बल्कि इसका सेवन हमारी त्वचा के लिए भी काफी लाभकारी होता है। इसके सेवन से त्वचा में चमक आती है।
दशमूलारिष्ट का सेवन और मात्रा विधि
औषधीय मात्रा
बच्चे 5 से 10 मिलीमीटर
वय्स्क 10 से 25 मिलीमीटर
सेवन
दवा लेने का उचित समय सुबह और रात में भोजन के बाद
दिन में कितनी बार लें? 2 बार
किसके साथ लें? बराबर मात्रा में गुनगुना पानी मिला कर
कितने समय के लिए लें? चिकित्सक की सलाह से
दशमूलारिष्ट से होने वाले दुष्प्रभाव
पूरी तरह से आर्युवेदिक है दशमूलारिष्ट, ऐसे में इसके साइड इफेक्ट नहीं होते हैं लेकिन इसकी मात्रा और सेवन चिकित्सक की सलाह से ही करें।
(नोट: दशमूलारिष्ट वात और कफ प्रधान रोगों और लक्षणों में प्रभावशाली है। यदि प्रसूता स्त्रियों में पित्तप्रधान लक्षण जैसे कि मुँह में छाले, दाह, गरम जल, सामान पतले दस्त, अधिक प्यास आदि लक्षण हों तो दशमूलारिष्ट का प्रयोग नहीं करना चाहिए।)
दशमूलारिष्ट प्राचीन आयुर्वेदिक औषधियों में से एक है, जो एक ऐसी औषधि है जों महिलाओं के लिए एक गुणकारी और चमत्कारी है। महिला के शरीर को समय-समय पर कई तरह के बदलाव झेलने पड़ते हैं। जिस वजह से उसका शरीर काफी कमजोर हो जाता है। ऐसे में यह औषधि महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखती है।
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