11.6.20

सिफ़लिस का होम्योपथिक उपचार:homeopathic treatment of syphilis


 

इस रोग में रोगी के लिंग पर फुसी हो जाती है जो धीरे-धीरे बढ़कर घाव का रूप ले लेती है । इस घाव में से मवाद आती है, खुजली मचती है और जलन होती है । यह घाव ठीक नहीं हो पाता, जिससे लिंग नष्ट होने लगता है । इस रोग में सविराम ज्वर आना, गले में घाव, सिर में भारीपन, होठों पर फुन्सियाँ हो जाना, सिर के बाल उड़ना, हड्डियों में दर्द रहना आदि लक्षण प्रकटते हैं । रोग की अन्तिम अवस्था में पूरे शरीर पर चकते से निकल आते हैं ।


काली आयोड 200-

यह रोग की तीसरी अवस्था में लाभप्रद है ।

सिफिलिनम 200-

यह अन्य दवाओं के साथ में सहायक दवा के रूप में प्रयोग की जाती है। रोग की तीनों अवस्थाओं में इसे देना चाहिये । पहले तीन माह तक प्रति सप्ताह एक बार के हिसाब से दें और फिर प्रत्येक पन्द्रह दिनों में एक बार के हिसाब से रोग के ठीक होने तक दें ।

मर्ककॉर 3- 

कठिन उपदंश में लाभकर है जबकि मुँह व गले में घाव, मुँह से लार गिरना आदि लक्षण प्रकट हों ।

ऑरम मेट 30, 6x-

उपदंश के कारण हड्डियों की बीमारी हो जाना, नाक व तालु की हड्डी में घाव हो जाना और उनसे सड़ा हुआ मवाद आना, रोगाक्रान्त स्थान पर दर्द, दर्द का रात को बढ़ जाना- इन लक्षणों में यह दवा लाभ करती है ।

स्टैफिसेग्रिया 3x-

लिंग पर तर दाने हो गये हों, दर्द हो, सूजन भी रहे, पारे का अपव्यवहार हुआ हो- इन लक्षणों में देवें ।

साइलीशिया 30-

लिंग के जख्मों में मवाद पड़ जाये और वह ठीक न हो पा रहे हों तो यह दवा दें ।

हिपर सल्फर 30-

उपदंश में मसूढ़े के रोग, हड्डियों में दर्द, घाव से बदबूदार मवाद आना, कभी-कभी खून भी आना, खुजली मचना, रोगग्रस्त अंग को छू न पाना, सुबह-शाम तकलीफ बढ़ना आदि लक्षण होने पर देनी चाहिये । यह पारे के अपव्यवहार के कारण रोग-विकृति में भी अत्यन्त लाभकर सिद्ध हुई है ।

कूप्रम सल्फ 6x-



मार्टिन का विचार था कि- यह दवा धातुगत उपदंश में अत्यन्त उपयोगी है ।

कैलोट्रोपिस जाइगैण्टिया 30- पारे के अपव्यवहार से उत्पन्न विकृतियों में लाभप्रद है । उपदंश की रक्तहीनता में भी उपयोगी है ।

मर्कसॉल 3x, 6- 

यह इस रोग की पहली व दूसरी अवस्था में लाभकर है। जैसे ही मालूम चले कि उपदंश हुआ है, रोगी को तुरन्त इस दवा को देना आरंभ कर देना चाहिये । इस दवा से रोग बढ़ नहीं पायेगा और आराम महसूस होने लगेगा । यह इस रोग मे अत्यंत उपयोगी औषधि  होम्योपैथी से  हैं ।

मर्क प्रोटो आयोड 3x- 

यह रोग की दूसरी अवस्था में लाभप्रद है । अगर रोग भयानक मालूम पड़े तो मर्कसॉल के स्थान पर इसी दवा का सेवन कराना चाहिये ।

****************



10.6.20

स्वर्ण भस्म के आयुर्वेदिक गुण कर्म / Swarna Bhasma

स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma को आयुर्वेद में हजारों सालों से दवाई के रूप में प्रयोग किया जा रहा है आयुर्वेद में स्वर्ण भस्म का अपना एक विशेष स्थान है. यह शरीर में ताक़त देने के साथ साथ मानसिक शक्ति में सुधार करने वाली औषधी कहलाती है. यह हृदय (Heart) और मस्तिष्क (Mind) को विशेष रूप से ताक़त प्रदान करती है. आयुर्वेद में हृदय रोगों और मस्तिष्क की निर्बलता जैसे रोगों में स्वर्ण भस्म को सर्वोत्तम माना गया है.स्वर्ण भस्म कैसे बनायी जाती है
स्वर्ण को आभूषण बनाने के साथ साथ औषधी की तरह भी प्रयोग किया जाता रहा हैं. आयुर्वेद में स्वर्ण जैसी मूल्यवान धातु की रासयनिक विधि से भस्म बनाई जाती है जो की सोने की ही तरह बहुत मूल्यवान है. सोने की भस्म को स्वर्ण भस्म कहते हैं.
स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma को आयुर्वेद (रसतरंगिणी) में बताये विस्तृत विवरण अनुसार ही बनाया जाता है. स्वर्ण भस्म को बनाने के लिए शुद्ध सोने को शोधन और मारण प्रक्रिया से गुजारा जाता है तब कही जा कर स्वर्ण भस्म बनती है
स्वर्ण के शोधन के लिए : तिल तेल, तक्र, कांजी, गो मूत्र और कुल्थी के काढ़े का प्रयोग किया जाता है.
स्वर्ण के मारण के लिए : पारद, गंधक अथवा मल्ल, कचनार और तुलसी को मर्दन के लिए प्रयोग किया जाता है.
स्वर्ण भस्म में सोने की कितनी मात्रा होती है
सोने को जब विभिन्न रासायनिक प्रक्रिया से गुजारा जाता है तो स्वर्ण की भस्म बनती है इसमें सोना बहुत ही सूक्ष्म रूप में (नैनो मीटर 10-9) विभक्त होता है. इसके अतिरिक्त इसके शोधन और मारण में बहुत सी वनस्पतियाँ का भी प्रयोग किया जाता हैं. जिस कारणों से स्वर्ण भस्म शरीर की कोशिकायों में सरलता से प्रवेश कर जाती हैं और बहुत से रोगों में लाभ भी देती है क्योंकि वनस्पतियाँ के गुण धर्म मिलने का बाद यह शरीर का हिस्सा बन जाती हैं.
चरक, शुश्रुत, कश्यप सभी ने स्वर्ण भस्म के लिए अत्यंत हितकर बताया है. छोटे बच्चों को स्वर्ण प्राशन , Swarna Bindu Prashana कराने की भी परम्परा रही है जो की आज भी जारी है. महाराष्ट्र, गोवा, कर्णाटक में नवजात शिशु से लेकर 16 वर्ष की आयु के बच्चों को स्वर्ण का प्राशन कराया जाता है.
स्वर्ण भस्म शरीर में क्या काम करता है
स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma को बल (शारीरिक, मानसिक, यौन) बढ़ाने के लिए एक टॉनिक की तरह दिया जाता रहा है. यह रसायन, बल्य, ओजवर्धक, और जीर्ण व्याधि को दूर करने में उपयोगी है. स्वर्ण भस्म का सेवन पुराने रोगों को दूर करता है. यह जीर्ण ज्वर(Fever) , खांसी (Cough), दमा (Asthma) , मूत्र विकार (Urinary disorders), अनिद्रा (insomnia), कमजोर पाचन (poor digestion) , मांसपेशियों की कमजोरी (muscle weakness), तपेदिक (tuberculosis), प्रमेह (gonorrhea), रक्ताल्पता (anemia), सूजन (inflammation), अपस्मार(epilepsy),त्वचा रोग(skin disease), सामान्य दुर्बलता(general debility), जैसे अनेक रोगों में उपयोगी है.
स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma एक स्वस्थ विकल्प है जोकि आप को यों शक्ति प्रदान करता है इसका आयुर्वेदिक चिकित्सा में सेक्स समस्यों के इलाज के लियें सर्वोपरी स्थान है तथा यह बेहद कमजोर व्यक्ति को भी मज़बूत सेक्स शक्ति Sexual power प्रदान करता है. यह विशेष रूप से सेक्स कमजोरी और लिंग में बिलकुल भी उतेजना न आने कि समस्या में बहुत अधिक लाभदायक होता है स्वर्ण भस्म भी कार्डियक टॉनिक है जो रक्त शुद्धता और दिल को मजबूत करता है. यह बुद्धि में सुधार, यौन शक्ति Sexual power बढ़ाने के लिए, और पेट, त्वचा और गुर्दे की गतिविधि को उत्तेजित करता है.

Sexual power


यह एक टॉनिक है जिसका सेवन यौन शक्ति (Sexual power) को बढ़ाता है. स्वर्ण भस्म शरीर से खून की कमी (Anemic) को दूर करता है, पित्त की अधिकता (Excess bile) को कम करता है, हृदय और मस्तिष्क को बल देता है और पुराने रोगों को नष्ट करता है.
स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma का वृद्धावस्था में प्रयोग शरीर के सभी अंगों को ताकत देता है.
स्वर्ण भस्म आयुष्य है और बुढ़ापे को दूर करती है. यह भय(Fear) , शोक(Grief), चिंता(anxiety), मानसिक क्षोभ (mental anguish) के कारण हुई वातिक दुर्बलता (pneumatic weakness) को दूर करती है. बुढ़ापे के प्रभाव को दूर करने के लिए स्वर्ण भस्म को मकरध्वज के साथ दिया जाता है.
हृदय की दुर्बलता (Weakness of the heart) में स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma का सेवन आंवले के रस अथवा आंवले और अर्जुन की छाल के काढ़े अथवा मक्खन दूध के साथ किया जाता है.
स्वर्ण भस्म से बनी दवाएं पुराने अतिसार(Chronic diarrhea), ग्रहणी (duodenum) , खून की कमी (Blood loss) में बहुत लाभदायक है. शरीर में बहुत तेज बुखार और संक्रामक ज्वरों के बाद होने वाली विकृति को इसके सेवन से नष्ट किया जा सकता है. यदि शरीर में किसी भी प्रकार का विष चला गया हो तो स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma को को मधु अथवा आंवले के साथ दिया जाना चाहिए.
प्रमुख उपयोग: यौन दुर्बलता, धातुक्षीणता, नपुंसकता, प्रमेह, स्नायु दुर्बलता, यक्ष्मा/तपेदिक, जीर्ण ज्वर, जीर्ण कास-श्वास, मस्तिष्क दुर्बलता, उन्माद, त्रिदोषज रोग, पित्त रोग

स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

स्वर्ण भस्म, स्वाद में यह मधुर, तिक्त, कषाय , गुण में लघु और स्निग्ध है. बहुत से लोग समझते हैं की स्वर्ण भस्म स्वभाव से गर्म है. लेकिन यह सत्य नहीं है. स्वभाव से स्वर्ण भस्म शीतल है और मधुर विपाक है. विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस. इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है. शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है.
मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है. यह कफ या चिकनाई का पोषक है. शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है. इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं.
रस (taste on tongue): मधुर, तिक्त, कषाय
गुण (Pharmacological Action): लघु, स्निग्ध
वीर्य (Potency): शीत
विपाक (transformed state aft मधुर
कर्म:
वाजीकारक aphrodisiac
वीर्यवर्धक improves semen
हृदय cardiac stimulant
रसायन immunomodulator
कान्तिकारक complexion improving
आयुषकर longevity
मेद्य intellect promoting
विष नाशना antidote

स्वर्ण भस्म के फायदेस्वर्ण की भस्म, स्निग्ध, मेद्य, विषविकारहर और उत्तम वृष्य है. यह तपेदिक, उन्माद शिजोफ्रेनिया, मस्तिष्क की कमजोरी, व शारीरिक बल की कमी में विशेष लाभप्रद है. आयुर्वेद में इसे शरीर के सभी रोगों को नष्ट करने वाली औषधि बताया गया है.
स्वर्ण भस्म बुद्धि, मेधा, स्मरण शक्ति को पुष्ट करती है. यह शीतल, सुखदायक, तथा त्रिदोष के कारण उत्पन्न रोगों को नष्ट करती है. यह रुचिकारक, अग्निदीपक, वात पीड़ा शामक और विषहर है.
यह खून की कमी को दूर करती है और शरीर में खून की कमी से होने वाले प्रभावों को नष्ट करती है.
यह शरीर में हार्मोनल संतुलन करती है .
यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं के दोषों को दूर करती है.
यह शरीर की सहज शरीर प्रतिक्रियाओं में सुधार लाती है.
यह शरीर से दूषित पदार्थों को दूर करती है.
यह प्रक्रियाओं को उत्तेजित करती है.
यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को ठीक करती है.
यह एनीमिया और जीर्ण ज्वर के इलाज में उत्कृष्ट है.
यह त्वचा की रंगत में सुधार लाती है.
पुराने रोगों में इसका सेवन विशेष लाभप्रद है.
यह क्षय रोग के इलाज के लिए उत्कृष्ट है.
यह यौन शक्ति को बढ़ाती है.
यह एंटीएजिंग है और बुढ़ापा दूर रखती है.
यह झुर्रियों, त्वचा के ढीलेपन, सुस्ती, दुर्बलता, थकान , आदि में फायेमंद है.
यह जोश, ऊर्जा और शक्ति को बनाए रखने में अत्यधिक प्रभावी है.
स्वर्ण भस्म के चिकित्सीय उपयोग
अवसाद
अस्थमा, श्वास, कास
अस्थिक्षय, अस्थि शोथ, अस्थि विकृति
असाध्य रोग
अरुचि
कृमि रोग
बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करने के लिए
विष का प्रभाव
तंत्रिका तंत्र के रोग
मनोवैज्ञानिक विकार, उन्माद, शिजोफ्रेनिया
मिर्गी
शरीर में कमजोरी कम करने के लिए
रुमेटी गठिया
यौन दुर्बलता, वीर्य की कमी, इरेक्टाइल डिसफंक्शन
यक्ष्मा / तपेदिक
स्वर्ण भस्म के सेवन विधि और मात्रा
स्वर्ण भस्म को बहुत ही कम मात्रा में चिकित्सक की देख-रेख में लिया जाना चाहिए. सेवन की मात्रा 15-30 मिली ग्राम, दिन में दो बार है. इसे दूध, शहद, घी, आंवले के चूर्ण, वच के चूर्ण या रोग के अनुसार बताये अनुपान के साथ लेना चाहिए.
*****************
***************

9.6.20

कुलथी के पथरी नाशक उपयोग//kulthi se pathri kaa ilaaj




 पथरी की समस्या अब हर घर की समस्या बनती जा रही है। ये रोग कष्टदायी रोग है। जिसमें रोगी को भंयकर दर्द से गुजरना पड़ता है। पहले यह समस्या 30 से 60 वर्ष की आयु के लोगों में पाई जाती थी लेकिन अब कम उम्र के लोगों को भी पथरी की समस्या होने लगी है। जिसके कई कारण हैं। महिलाओं की उपेक्षा पुरूषों में पथरी की समस्या अधिक होती है। वैसे तो इस रोग में कई आयुवेर्दिक उपाय हैं लेकिन सबसे ज्यादा कारगर उपाय है कुलथी की दाल जिसे गैथ भी कहा जाता है। उत्तराखंड में इस दाल का काफी प्रचलन है। यह दाल पथरी को खत्म करने का एक कारगर औषधि है।कई लोगो को अक्सर ही (पत्थरी) स्टोन की समस्या आम ही रहती हैं। बार बार ऑपरेशन करवाने के बाद भी उनको ये समस्या दोबारा हो जाती हैं। ऐसा इसलिए होता हैं क्युकी उनका शरीर भोजन द्वारा ग्रहण किये हुए कैल्शियम को पचा नहीं पाता। और किडनी भी शरीर की गंदगी की सफाई करते समय इसको साफ़ करने में असक्षम हो जाती हैं और यही से ये हमारे मूत्राशय को भी प्रभावित करती हैं।

कुलथी दाल क्या है?
यह दाल पथरीनाशक है। कथुली की दाल में विटामिन ए पाया जाता है जो शरीर में पथरी को गलाने में सहायक है। गुर्दे की पथरी और पित्ताशय की पथरी को खत्म करने में फायदेमंद होती है।
कुथली की दाल आपको किसी भी दुकान में मिल जाती है। यदि नहीं मिलती है तो यह दाल आप किसी उत्तराखंड निवासी से मंगवा सकते हैं। पहाड़ों में यह दाल काफी मात्रा में पाई जाती है।

कैसे करें कुथली का इस्तेमाल

कुथली की दाल को 250 ग्राम मात्रा में लें और इसे अच्छे से साफ कर लें। और रात को 3 लीटर पानी में भिगों कर रख दें। सुबह होते ही इस भीगी हुई दाल को पानी सहित हल्की आग में 4 घंटे तक पकाएं। और जब पानी 1 लीटर रह जाए तब उसमें 30 ग्राम देशी घी का छोंक लगा दें। और उसमें काली मिर्च, सेंधा नमक, जीरा और हल्दी डाल सकते हो।

कब करें कुलथी का सेवन

कुथली के पानी को दिन में दोपहर के खाने की जगह ले सकते हो। इसे सूप की तरह पीएं। 1 से 2 सप्ताह तक नियमित एैसा करने से मूत्राशय और गुर्दे की पथरी गल कर बाहर आ जाती है।
गुर्दे में यदि सूजन हो तो कुथली के इस पानी को अधिक से अधिक पीएं।
सूप के साथ रोटी का सेवन भी कर सकते हो।
कुथली की दाल का सेवन करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।

पथरी में और क्या खांए

पथरी में कुल्थी के अलावा आप खरबूजे के बीज, मूली, आंवला, जौ, मूंग की दाल और चोलाई की सब्जी भी खा सकते हो। साथ ही रोज 5 से 8 गिलास सादा पानी रोज पीएं।
किस चीज से परहेज करें
पथरी के रोगी को उड़द की दाल, मेवे, चाकलेट, मांसाहार, चाय, बैगन, टमाटर और चावल नहीं खाने चाहिए।

कुथली का पानी बनाने का तरीका

250 ग्राम पानी में 20 ग्राम कुथली की दाल को डालें। और रात में ढक कर रख लें। सुबह इस पानी को अच्छे से मिलाकर खाली पेट पी लें।
जिस इंसान को पथरी एक बार हो जाती है, उसे दोबारा होने का खतरा होता है । इसलिए पथरी निकालने के बाद भी रोगी को कुथली का कभी-कभी सेवन करते रहना चाहिए । कुलथी पथरी में औषधि के समान है।
गुर्दे से जुड़ी कई समस्याएं हैं, मसलन गुर्दे में दर्द, मूत्र में जलन या मूत्र का अधिक या कम आना आदि।
इन्हीं समस्याओं में से एक समस्या, जिसके पीडि़तों की संख्या लगातार बढ़ रही है, वह है किडनी में पथरी।
आयुर्वेद व घरेलू चिकित्सा में किडनी की पथरी में कुलथी को फायदेमंद माना गया है। गुणों की दृष्टि से कुल्थी पथरी एवं शर्करानाशक है। वात एवं कफ का शमन करती है और शरीर में उसका संचय रोकती है। कुल्थी में पथरी का भेदन तथा मूत्रल दोनों गुण होने से यह पथरी बनने की प्रवृत्ति और पुनरावृत्ति रोकती है। इसके अतिरिक्त यह यकृत व पलीहा के दोष में लाभदायक है। मोटापा भी दूर होता है।
250 ग्राम कुल्थी कंकड़-पत्थर निकाल कर साफ कर लें। रात में तीन लिटर पानी में भिगो दें। सवेरे भीगी हुई कुल्थी उसी पानी सहित धीमी आग पर चार घंटे पकाएं। जब एक लिटर पानी रह जाए (जो काले चनों के सूप की तरह होता है) तब नीचे उतार लें। फिर तीस ग्राम से पचास ग्राम (पाचन शक्ति के अनुसार) देशी घी का उसमें छोंक लगाएं। छोंक में थोड़ा-सा सेंधा नमक, काली मिर्च, जीरा, हल्दी डाल सकते हैं। पथरीनाशक औषधि तैयार है।
आप दिन में कम-से-कम एक बार दोपहर के भोजन के स्थान पर यह सारा सूप पी जाएं। 250 ग्राम पानी अवश्य पिएं।
एक-दो सप्ताह में गुर्दे तथा मूत्राशय की पथरी गल कर बिना ऑपरेशन के बाहर आ जाती है, लगातार सेवन करते रहना राहत देता है।
यदि भोजन के बिना कोई व्यक्ति रह न सके तो सूप के साथ एकाध रोटी लेने में कोई हानि नहीं है।
गुर्दे में सूजन की स्थिति में जितना पानी पी सकें, पीने से दस दिन में गुर्दे का प्रदाह ठीक होता है।
यह कमर-दर्द की भी रामबाण दवा है। कुल्थी की दाल साधारण दालों की तरह पका कर रोटी के साथ प्रतिदिन खाने से भी पथरी पेशाब के रास्ते टुकड़े-टुकड़े होकर निकल जाती है। यह दाल मज्जा (हड्डियों के अंदर की चिकनाई) बढ़ाने वाली है।
पथरी में ये खाएं
कुल्थी के अलावा खीरा, तरबूज के बीज, खरबूजे के बीज, चौलाई का साग, मूली, आंवला, अनन्नास, बथुआ, जौ, मूंग की दाल, गोखरु आदि खाएं। कुल्थी के सेवन के साथ दिन में 6 से 8 गिलास सादा पानी पीना, खासकर गुर्दे की बीमारियों में बहुत हितकारी सिद्ध होता है।

ये न खाएं

पालक, टमाटर, बैंगन, चावल, उड़द, लेसदार पदार्थ, सूखे मेवे, चॉकलेट, चाय, मद्यपान, मांसाहार आदि। मूत्र को रोकना नहीं चाहिए। लगातार एक घंटे से अधिक एक आसन पर न बैठें।

कुल्थी का पानी भी लाभदायक

कुल्थी का पानी विधिवत लेने से गुर्दे और मूत्रशय की पथरी निकल जाती है और नयी पथरी बनना भी रुक जाता है। किसी साफ सूखे, मुलायम कपड़े से कुल्थी के दानों को साफ कर लें। किसी पॉलीथिन की थैली में डाल कर किसी टिन में या कांच के मर्तबान में सुरक्षित रख लें।

कुल्थी का पानी बनाने की विधि:

किसी कांच के गिलास में 250 ग्राम पानी में 20 ग्राम कुल्थी डाल कर ढक कर रात भर भीगने दें। प्रात: इस पानी को अच्छी तरह मिला कर खाली पेट पी लें। फिर उतना ही नया पानी उसी कुल्थी के गिलास में और डाल दें, जिसे दोपहर में पी लें। दोपहर में कुल्थी का पानी पीने के बाद पुन: उतना ही नया पानी शाम को पीने के लिए डाल दें।
इस प्रकार रात में भिगोई गई कुल्थी का पानी अगले दिन तीन बार सुबह, दोपहर, शाम पीने के बाद उन कुल्थी के दानों को फेंक दें और अगले दिन यही प्रक्रिया अपनाएं। महीने भर इस तरह पानी पीने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी धीरे-धीरे गल कर निकल जाती है।
कुलथी को कई रोगों के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है और कुछ का विवरण नीचे दिया गया है –
श्वेत प्रदर– थोड़ी सी कुल्थी लेकर उसका दस गुना पानी लेकर उसमें कुल्थी उबाले। उसे छानकर आवश्यकतानुसार यह पानी पीना लाभकारी है।

मोटापा-

100 ग्राम कुल्थी की दाल प्रतिदिन खाने से मोटापा घटता है।

वात ज्वर-

 लगभग 50-60 ग्राम कुल्थी लगभग 1 किलो जल में चैथाई (250 ग्राम) पानी रहने तक उबालें। फिर उसे छान लें और आवश्यकतानुसार सेंधा नमक व लगभग 1/2 चम्मच पिसी सौंठ लें। इसे पीने से वात ज्वर में लाभ होगा।

 विशिष्ट  परामर्श- 
      
वैध्य श्री दामोदर 9826795656  की जड़ी बूटी - निर्मित औषधि से 30 एम एम तक के आकार की बड़ी  पथरी  भी  आसानी से नष्ट हो जाती है|  पथरी के भयंकर दर्द और गुर्दे की सूजन,पेशाब मे दिक्कत,जलन को तुरंत समाप्त करने मे यह  औषधि  रामबाण की तरह असरदार है|जो पथरी का दर्द महंगे इंजेक्शन से भी काबू मे नहीं आता ,इस औषधि की कुछ ही खुराक लेने से आराम लग जाता है|  आपरेशन की जरूरत ही नहीं पड़ती|औषधि मनी बेक गारंटी युक्त है|





सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस(गर्दन का दर्द) के उपचार

वजन कम करने के लिए कितना पानी कैसे पीएं?

प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब रुकावट की कारगर हर्बल औषधि

सेक्स का महारथी बनाने वाले आयुर्वेदिक नुस्खे


आर्थराइटिस(संधिवात),गठियावात ,सायटिका की तुरंत असर हर्बल औषधि

खीरा ककड़ी खाने के जबर्दस्त फायदे

महिलाओं मे कामेच्छा बढ़ाने के उपाय

मुँह सूखने की समस्या के उपचार

गिलोय के जबर्दस्त फायदे

इसब गोल की भूसी के हैं अनगिनत फ़ायदे

कान मे तरह तरह की आवाज आने की बीमारी

छाती मे दर्द Chest Pain के उपचार

सिर्फ आपरेशन नहीं ,किडनी की पथरी की १००% सफल हर्बल औषधि

किडनी फेल रोगी का डाईट चार्ट और इलाज

तिल्ली बढ़ जाने के आयुर्वेदिक नुस्खे

यौन शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय/sex power

कई बीमारियों से मुक्ति द‍िलाने वाला है गिलोय


किडनी स्टोन के अचूक हर्बल उपचार

स्तनों की कसावट और सुडौल बनाने के उपाय

लीवर रोगों के अचूक हर्बल इलाज

सफ़ेद मूसली के आयुर्वेदिक उपयोग

दामोदर चिकित्सालय शामगढ़ के आशु लाभकारी उत्पाद

मेथी का पानी पीने के जबर्दस्त फायदे

पीलिया ( jaundice ) रोग के आयुर्वेदिक नुस्खे:piliya chikitsa



 पीलिया ( jaundice ) अपने आप में कोई बीमारी नहीं है बल्कि ये शरीर में होने वाली गलत हलचल का एक संकेत है। यह रोग सूक्ष्म 
वायरस के कारण होता है। ये वायरस मुख्यतः वायरल हेपेटाइटिस ए , हेपेटाइटिस बी व हेपेटाइटिस सी होते है। इनमें से हेपेटाइटिस बी के प्रभाव सबसे अधिक घातक हो सकते है। शुरू में जब ये रोग मामूली होता है तो पता नहीं चलता। जब ये उग्र रूप धारण कर लेता है तब इस रोग का शरीर पर प्रत्यक्ष प्रभाव नजर आने लगता है । त्वचा का रंग पीला हो जाता है। आँखें पीली दिखती है। नाखून पीले नजर आते है। पेशाब गहरा पीला आता है। इसी से इसकी पहली पहचान हो जाती है। इन सब लक्षणों का कारण खून में बिलरुबिन की मात्रा का बढ़ जाना होता है।
 लाल रक्त कणो के टूटने से बिलरुबिन बनता है जिसका निस्तारण लिवर द्वारा और मल व पेशाब द्वारा होता रहता है। पीलिया होने पर बिलरुबिन का निस्तारण सही तरीके से नहीं हो पाता तो खून में इसकी मात्रा बढ़ जाती है इसलिए शरीर में पीलापन दिखाई देता है।
खून की जाँच कराने से निश्चय हो जाता है।

जाच और परीक्षण

डॉक्टर रोग का निर्धारण रोगी के शारीरिक परीक्षण और चिकित्सीय इतिहास के आधार पर करता है। पीलिया की गंभीरता कई जाँचों से पता चलती है: लिवर फंक्शन टेस्ट
रक्त परीक्षण जिसमें बिलीरुबिन की जाँच, सम्पूर्ण रक्त परीक्षण (सीबीसी), हेपेटाइटिस ए, बी, सी की जाँच।
आकृति आधारित जाँचें-पेट का अल्ट्रासाउंड, कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन, और/या मैग्नेटिक रेजोनेंस कोलेंजियोपेन्क्रिएटोग्राफी (एमआरसीपी) जाँचें।

बिलीरुबिन क्या है?

बिलीरुबिन (जिसे पहले हीमेटोइडिन कहा जाता था), हीम के विखंडन मेटाबोलिस्म से उत्पन्न पीले रंग का पदार्थ है। हीम, हेमोग्लोबिन में पाया जाता है, जो कि लाल रक्त कणिकाओं का मुख्य घटक है। आमतौर पर पुरानी और क्षतिग्रस्त आरबीसी तिल्ली में विखंडित होती हैं और इस प्रकार उत्पन्न हुआ हीम बिलीरुबिन में बदल जाता है।
पीलिया का सर्वव्यापी लक्षण है त्वचा और आँखों के सफ़ेद हिस्से (स्क्लेरा) पर पीलापन होना। आमतौर पर इस पीलेपन की शुरुआत सिर से होती है और पूरे शरीर पर फ़ैल जाती है। पीलिया के अन्य लक्षणों में हैं: खुजली होना (प्रुराइटस), थकावट, पेट में दर्द, वजन में गिरावट, उल्टी, बुखार, सामान्य से अधिक पीला मल और गहरे रंग का मूत्र।
आँखों का सफ़ेद हिस्सा (स्क्लेरा) पीला क्यों हो जाता है?
सीरम बिलीरुबिन का आँख के स्क्लेरा में अधिक मात्रा में उपस्थित इलास्टिन नामक प्रोटीन के प्रति आकर्षण होता है। स्क्लेरा में इक्टेरस की उपस्थिति कम से कम (3 ग्राम/डेसीलिटर) मात्रा के सीरम बिलीरुबिन को सूचित करती है।

   तले और वसायुक्त आहार, अत्यधिक मक्खन और सफाईयुक्त मक्खन, माँस, चाय, कॉफ़ी, अचार, मसाले और दालें तथा सभी प्रकार की वसा जैसे घी, क्रीम और तेल का त्याग करना चाहिए क्योंकि इनमें कोलेस्ट्रॉल और फैटी एसिड होते हैं जिनका चयापचय लिवर में होता है। 
*चूंकि पीलिया के दौरान लिवर पर दबाव या जोर होता है, इसलिए रेशेयुक्त आहार, फलों का रस और सादा भोजन ही लिया जाना चाहिए।

लक्षण

पीलिया का सर्वव्यापी लक्षण है त्वचा और आँखों के सफ़ेद हिस्से (स्क्लेरा) पर पीलापन होना। आमतौर पर इस पीलेपन की शुरुआत सिर से होती है और पूरे शरीर पर फ़ैल जाती है।
पीलिया के अन्य लक्षणों में हैं:
खुजली होना (प्रुराइटस)।
थकावट
पेटदर्द
वजन में कमी।
उल्टी
बुखार
सामान्य से अधिक पीला मल।

गहरे रंग का मूत्र।
पीलिया के कारण
यह रोग गन्दगी के कारण फैलता है। मल के निस्तारण की पर्याप्त व्यवस्था ना होने वाली जगहों पर पर अधिक फैलता है। मक्खी इसे फैलाने में मदद करती है। खुले में बिकने वाले सामान पर मक्खियां बैठती है तो उनके साथ इस रोग के वायरस खाने पीने के सामान पर फेल जाते है।ऐसे सामान को खाने पर पीलिया हो जाता है। अगस्त , सितम्बर महीने में इसीलिये ये रोग अधिक होता है। पीलिया ग्रस्त रोगी के झूठे भोजन ,
पानी आदि के कारण भी ये हो सकता है। 

रोग ग्रस्त व्यक्ति का रक्त दुसरे व्यक्ति को चढ़ जाने से हेपेटाइटिस बी नामक पीलिया हो जाता है। रोगग्रस्त व्यक्ति को लगी सीरिंज , ब्लेड या ऐसे व्यक्ति के साथ यौन क्रिया करने से भी ये हो सकता है।
पीलिया तब होता है जब सामान्य मेटाबोलिज्म की कार्यक्षमता में अवरोध हो या बिलीरुबिन का उत्सर्जन हो।
वयस्कों का पीलिया अक्सर निम्न का सूचक होता है:
अत्यधिक शराब पीना।
संक्रमण।
लिवर का कैंसर।
सिरोसिस (लिवर पर घाव होना)।
पित्ताशय की पथरी (सख्त वसा से निर्मित कोलेस्ट्रॉल की पथरी या बिलीरुबिन द्वारा निर्मित पिगमेंट की पथरी)।
हेपेटाइटिस (लिवर की सूजन जो इसकी कार्यक्षमता घटाती है)।
पैंक्रियास का कैंसर।
लिवर में परजीवियों की उपस्थिति।
रक्त विकार, जैसे कि हीमोलायटिक एनीमिया (शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की कम हुई मात्रा, जो थकावट और कमजोरी उत्पन्न करती है)।
किसी औषधि या उसकी अधिक मात्रा से विपरीत प्रतिक्रिया, जैसे कि एसिटामिनोफेन।

परहेज और आहार 


सब्जियों का ताजा निकला रस (चुकंदर, मूली, गाजर, और पालक), फलों का रस (संतरा, नाशपाती, अंगूर और नीबू) और सब्जियों का शोरबा।
*ताजे फल, जैसे सेब, अन्नानास, अंगूर, नाशपाती, संतरे, केले, पपीता, आदि। खासकर अन्नानास विशेष रूप से उपयोगी होता है।
*पीलिया के उपचार हेतु जौ का पानी, नारियल का पानी अत्यंत प्रभावी होते हैं।
*नीबू के रस के साथ अधिक मात्रा में पानी पीने से लिवर की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की रक्षा होती है।
*पीलिया की चिकित्सा हेतु लिए जाने वाले प्रभावी आहारों में फलों के रस का विशेष स्थान है। गन्ने, नीबू, मूली, टमाटर आदि का रस लिवर के लिए अत्यंत सहायक होता है।
*आँवला भी विटामिन सी का उत्तम स्रोत है। आप अपने लिवर की कोशिकाओं को स्वच्छ करने हेतु कच्चा, धूप में सुखाया हुआ या रस के रूप में आँवला ले सकते हैं।
*अनाज जैसे ब्रेड, चपाती, सूजी, जई का आटा, गेहूँ का दलिया, चावल आदि कार्बोहायड्रेट के बढ़िया स्रोत हैं और पीलिया से पीड़ित व्यक्ति को दिये जा सकते हैं।

पीलिया होने पर क्या नहीं खाएं

*चिकनाई ( घी , तेल ) , तेज मिर्च मसाले , उड़द व चने की दाल , बेसन , तिल , हींग , राई *, मैदा से बने सामान , तली वस्तु आदि।
*अशुद्ध व बासी खाना , मांस , शराब , चाय कॉफी भी न लें। तेज गर्मी से और अधिक शारीरिक मेहनत से बचना चाहिए।

पीलिया होने पर क्या खाएं

*साफ सुथरा गन्ने का रस , नारियल पानी , नारंगी या संतरे का रस , मीठे अनार का रस ,फालसे का जूस , फलों में चीकू , पपीता , खरबूजा , आलूबुखारा , पतली छाछ । चपाती बिना घी लगी खा सकते है। दलिया , जौ की चपाती या सत्तू , मूंग की दाल का पानी थोड़ा सा काला नमक व काली मिर्च डालकर ले सकते है। सब्जी में लौकी तोरई , टिण्डे , करेला , परवल , पालक आदि ले सकते है।
*रोज सात दिनों तक जौ का सत्तू खाकर ऊपर से गन्ने का रस पीने से Piliya ठीक हो जाता है।
* नाश्ते में अंगूर ,सेवफल पपीता ,नाशपती तथा गेहूं का दलिया लें । दलिया की जगह एक रोटी खा सकते हैं।
* मुख्य भोजन में उबली हुई पालक, मैथी ,गाजर , दो गेहूं की चपाती और ऐक गिलास छाछ लें।
* करीब दो बजे नारियल का पानी और सेवफल का जूस लेना चाहिये।
* रात के भोजन में एक कप उबली सब्जी का सूप , गेहूं की दो चपाती ,उबले आलू और उबली पत्तेदार सब्जी जैसे मेथी ,पालक ।
* रात को सोते वक्त एक गिलास मलाई निकला दूध दो चम्मच शहद मिलाकर लें।
* दही में हल्दी मिलाकर खाने से पीलिया में आराम मिलता है।
.* थोड़ा सा खाने का चूना ( चने बराबर ) पके हुए केले के साथ सुबह खाली पेट चार पांच दिन खाने से ठीक होता है।
* टमाटर में विटामिन सी पाया जाता है, इसलिये यह लाइकोपीन में रिच होता है, जो कि एक प्रभावशाली एंटीऑक्‍सीडेंट हेाता है। इसलिये टमाटर का रस लीवर को स्‍वस्‍थ्‍य बनाने में लाभदायक होता है।
* तीन चम्मच प्याज के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह खाली पेट लेने से आराम मिलता है।
* एक गिलास पानी में एक बड़ा चम्मच पिसा हुआ त्रिफला रात भर के लिए भिगोकर रख दें। सुबह इस पानी को छान कर पी जाएँ। ऐसा 12 दिनों तक करें।
* लौकी को भून ले। इसमें पिसी हुई मिश्री मिलाकर खाएँ। साथ ही लौकी का रस आधा कप मिश्री मिलाकर पीएं। दिन में तीन बार पांच सात दिन लेने से पीलिया ठीक हो जाता है।
* धनिया के बीज को रातभर पानी में भिगो दीजिये और फिर उसे सुबह पी लीजिये। धनिया के बीज वाले पानी को पीने से लीवर से गंदगी साफ होती है।
*संतरे का रस सुबह खाली पेट रोज पीने से पीलिया में आराम मिलता है।
* एक गिलास गन्ने के रस में चौथाई कप आंवले का रस मिलाकर पीने से पीलिया ठीक होता है।
* पीलिया का आयुर्वेद में अचूक इलाज है। आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार यदि
मकोय की पत्तियोंको गरम पानी में उबालकर उसका सेवन करें तो रोग से जल्द राहत मिलती है। मकोय पीलिया की अचूक दवा है और इसका सेवन किसी भी रूप में किया जाए स्वास्थ्य के लिए लाभदायक ही होता है।
*मूली का वो हिस्सा जहाँ से पत्ते शुरू होते है यानि टहनी और पत्ते दोनों को पीसकर रस निकाल लें। आधा कप इस रस में एक चम्मच मिश्री मिलाकर सुबह खाली पेट पांच सात दिन पीने से पीलिया ठीक हो जाता है।
*दालों का उपयोग बिल्कुल न करें क्योंकि दालों से आंतों में फुलाव और सडांध पैदा हो सकती है। लिवर के सेल्स की सुरक्षा की दॄष्टि से दिन में ३-४ बार निंबू का रस पानी में मिलाकर पीना चाहिये।
*पीपल के कोमल पत्ते पीलिया में बहुत फायदेमंद साबित होते है। चार पांच पीपल के नए पत्ते ( कोंपल ) एक चम्मच मिश्री या शक्कर के साथ बारीक पीस लें इसे एक गिलास पानी में डालकर हिला लें। बारीक चलनी से छान ले। ये शरबत सुबह और शाम को दो बार पिएं। चार पांच दिन पीने से जरूर फायदा नजर आएगा। सात दिन तक पी सकते है।
* इस रोग से पीड़ित रोगियों को नींबू बहुत फायदा पहुंचाता है। रोगी को 20 ml नींबू का रस पानी के साथ दिन में 2 से तीन बार लेना चाहिए।
*जब आप पीलिया से तड़प रहे हों तो, आपको गन्‍ने का रस जरुर पीना चाहिये। इससे पीलिया को ठीक होने में तुरंत सहायता मिलती है।
* पीलिया के रोगी को लहसुन की पांच कलियाँ एक गिलास दूध में उबालकर दूध पीना चाहिए , लहसुन की कलियाँ भी खा लें। इससे बहुत लाभ मिलेगा।

    


विशिष्ट परामर्श-




यकृत,प्लीहा,आंतों के रोगों मे अचूक असर हर्बल औषधि "उदर रोग हर्बल " चिकित्सकीय  गुणों  के लिए प्रसिद्ध है|पेट के रोग,लीवर ,तिल्ली की बीमारियाँ ,पीलिया रोग,कब्ज  और गैस होना,सायटिका रोग ,मोटापा,भूख न लगना,मिचली होना ,जी घबराना ज्यादा शराब पीने से लीवर खराब होना इत्यादि रोगों मे प्रभावशाली  है|
बड़े अस्पतालों के महंगे इलाज के बाद भी  निराश रोगी  इस औषधि से ठीक हुए हैं| औषधि के लिए वैध्य दामोदर से 9826795656 पर संपर्क करें|
****************

5.6.20

डायस्टोलिक हृदय विफलता


डायस्टोलिक हृदय विफलता तब होता है जब बांया वेंट्रिकल मे पूरी तरह से रक्त नहीं भर पाता और हृदय से शरीर में रक्त की पम्पिंग कम हो जाती है।
हृदय पर प्रभाव
   डायस्टोलिक, हृदय की एक ऐसी स्थिति है, जब हृदय आराम की स्थिति में होता है और रक्त से भर रहा होता है। वहीं जब डायस्टोलिक शिथिलता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, तो उसमें हृदय सहज नहीं हो पाता और आराम नहीं कर पाता। नतीजा यह होता है कि वेंट्रिकल में रक्त नहीं भर पाता और इसी कारण आगे उचित मात्रा में रक्त भी नहीं पहुंच पाता। यदि डायस्टोलिक शिथिलता अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाती है तो इसका नतीजा हृदय विफलता होता है।
डायस्टोलिक हृदय विफलता तब होता है, जब बाएं वेंट्रिकल की पेशी कठोर या मोटी हो जाती है। इसके कारण हृदय को रक्त को वेंट्रिकल में भरने के लिए और ज्यादा ताकत लगानी पड़ती है। धीरे-धीरे यह स्थिति और ज्यादा बढ़ती जाती है, दायें वेंट्रिकल समेत फेफड़ों में रक्त इकठ्ठा होता चला जाता है जिसके कारण वेंट्रिक और फेफड़ों में तरल पदार्थ की भीड़ सी हो जाती है और इसका सीधा नतीजा हृदय विफलता होता है। हो सकता है कि डायस्टोलिक हृदय घात से इंजेक्शन फ्रैक्शन में कमी न आए। इंजेक्शन फ्रैक्शन उस पैमाने को कहा जाता है जिसमें हृदय के सामान्य तौर पर पम्पिंग करने या न करने की जांच की जाती है। सिस्टोलिक हृदयघात वाले लोगों में यह इंजेक्शन फ्रैक्शन कम होता है। हो सकता है कि सिस्टोलिक हृदय घात के दौरान बांया वेंट्रिकल ठीक से पम्प करें। लेकिन डायस्टोलिक की स्थिति में यह ठीक से काम नहीं करता। 

कारण
  डायस्टोलिक हृदय विफलता का सबसे सामान्य कारण उम्र का बढ़ना होता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वैसे वैसे हृदय की मांशपेशियां कठोर होना शुरू हो जाती हैं। जिसके कारण हृदय पूरी तरह से रक्त नही भर पाता और इसका नतीजा डायस्टोलिक हृदय विफलता होता है। लेकिन उम्र बढ़ने के अलावा और भी ऐसे कई कारण होते हैं जिनके कारण दांया वेंट्रिकल पूरी तरह से रक्त नहीं भर पाता।
हृदय विफलता के लिए कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स कैसे काम करती हैं ये दवाएं
कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, हृदय की दर को धीमी और रक्तचाप को कम करता है । हृदय की मांशपेशियों के संकुचन से, हृदय रक्त पंप करता है जिससे विद्युत संवेग उत्पन होते है। 


चैनल ब्लॉकर्स, इन विद्युत संवेग को ब्लॉक करके हृदय की दर को कम करता है। कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, रक्त वाहिकाओं की मांसपेशियों के ऊतकों को शिथिल करके रक्तचाप को कम करता है । इससे रक्त आसानी से वाहिकाओं में प्रवाहित होता है।


क्यों प्रयोग की जाती हैं ये दवाएं
   कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, डायस्टोलिक हृदय विफलता के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है।डायस्टोलिक के चरण में, जब हृदय के निचले बायें कक्ष में पूरी तरह से रक्त न भरा हो तो डायस्टोलिक हृदय विफलता होती है। डायस्टोल, हृदय की दर का एक ऐसा चरण होता है जब हृदय शिथिल अवस्था में है और उसमे पूरी तरह रक्त भरा है।
कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स हृदय की दर और रक्तचाप को कम करके ह्रदय में अधिक आसानी से रक्त भरता हैं। जब हृदय की दर कम होती है तो हृदय में रक्त भरने के लिए ज्यादा समय मिल जाता है। कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, हृदय की मांसपेशियों को शिथिल करके, रक्त भरने में सहायता करता है। निम्न रक्तचाप, डायस्टोलिक हृदय विफलता के इलाज में मदद करता है क्योकि हृदय को रक्त पंप करने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती है।
कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, सिस्टोलिक हृदय विफलता के लिए इस्तेमाल नहीं की जाती हैं क्योकि इसमें हृदय पर्याप्त बल के साथ रक्त को पंप नहीं कर पता है।
कितनी अच्छी तरह से काम करती हैं ये दवाएं
कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, डायस्टोलिक हृदय विफलता के लक्षणों को कम करने में मदद करता हैं। यह अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में भी प्रयोग होता है जैसे उच्च रक्तचाप।



दुष्प्रभाव

सभी दवाओं के साइड इफेक्ट होते है। लेकिन कई लोगों को दुष्प्रभाव महसूस नहीं होता है या उनका शरीर उस दुष्प्रभाव को झेलने में सक्षम होता है। प्रत्येक दवा जो आप ले रहे है उसके साइड इफेक्ट के बारे में फार्मासिस्ट से पूछें। दवा के साथ मिलने वाली जानकारी में भी साइड इफेक्ट सूचीबद्ध होते हैं, जिनसे आपको उस दवा से होने वाले साइडइफ़ेक्ट के बारे में पता चल सकता हैं।
यहाँ कुछ ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बातें हैं –
आमतौर पर दवा का लाभ, किसी भी मामूली दुष्प्रभाव से अधिक महत्वपूर्ण होता हैं। कुछ दिनों के लिए दवा लेने से दुष्प्रभाव को दूर किया जा सकता हैं।

  अगर दुष्प्रभाव से आपको बहुत परेशानी हो रही हैं और आप अपनी दवा आगे जारी रखना चाहते है तो अपने डॉक्टर से सलाह लें। वह आपकी खुराक कम या आपकी दवा को बदल सकता है। अचानक से अपनी दवा ना छोड़े जब तक की आपके डॉक्टर आपको ऐसा करने के लिए ना कहें।
कब आपातकालीन सेवाओं को कॉल करें –अगर-
साँस लेने में तकलीफ़।
चेहरे, होंठ, जीभ, या गले में सूजन।
अगर आपको लगे की हृदय विफलता, बदतर हो रही है तो तुरंत अपने डॉक्टर को बुलाएं। हृदय विफलता के बदतर होने के लक्षण हैं –
पैरों के नीचे के भागों , टखनों, या पैर में सूजन।
और अधिक सांस की तकलीफ।
अचानक वजन बढ़ाना।
अपने डॉक्टर को बुलायें अगर आपको लगे कि –
खराश
इन दवाओं के दुष्प्रभाव हैं –
हृदय की दर कम होना।
कब्ज या दस्त।चक्कर आना या हल्कापन लगना।
निस्तब्धता या गरमाहट महसूस होना।
ठीक से दवाइयाँ लें
दवाइयाँ, आपके इलाज के लिए एक महत्वपूर्ण तरीका होता है जिसे आपका चिकित्सक आपके स्वास्थ्य में सुधार और भविष्य की समस्याओं को रोकने के लिए प्रयोग करता हैं।अगर आप ठीक ढंग से अपनी दवाएं नहीं लेते हैं, तो आप अपने स्वास्थ को जोखिम में (और शायद अपने जीवन को भी ) डालते हैं।

कई वजहों से लोगों को दवाइयाँ लेने में परेशानी होती हैं। लेकिन ज्यादातर मामलों में, आप कुछ तरीको के द्वारा अपनी समस्याओं को दूर कर सकते है और डॉक्टर द्वारा दिए निर्देशों का पालन करके अपने इलाज को कारगार बना सकते है।
महिलाओं के लिए सुझाव
अगर आप गर्भवती हैं, स्तनपान करा रही हैं या गर्भधारण की कोशिश कर रही है, तो बिना अपने डॉक्टर के सलाह के, किसी भी दवाई का प्रयोग ना करें । कुछ दवायें आपके बच्चे को नुकसान पहुँचा सकती हैं, जैसे कुछ डॉक्टर द्वारा बताई हुईं दवायें , विटामिन की गोलियाँ, जड़ी बूटी, और पूरक आहार । यह सबसे ज्यादा जरूरी है की आप अपने डॉक्टर को यह बता दें की आप गर्भवती हैं, स्तनपान करा रही हैं या गर्भधारण की कोशिश कर रही है।
डॉक्टर से जाँच कराते रहें
अगर आप को सिस्टोलिक हृदय विफलता है और आप कैल्शियम चैनल ब्लॉकर ले रहे है तो डॉक्टर से जाँच करायें। कभी कभी इन दवाओं के कारण हृदय विफलता बदतर हो सकती है क्योकि इसमें हृदय पर्याप्त बल के साथ रक्त को पंप नहीं कर पता है। नियमित जाँच और अनुवर्ती देखभाल अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
अनुवर्ती देखभाल इलाज और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। नियमित रूप से डॉक्टर के पास अपनी जाँच के लिए जाएं और अगर कभी कोई समस्या लगे तो तुरंत अपने डॉक्टर से बात करें। अपने परीक्षण के परिणाम को जानने का, यह एक अच्छा तरीका हो सकता है। जो भी दवाइयाँ आप ले रहे है उनकी एक सूची बना कर रखें, तो यह आपकी सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।
उदाहरण
सामान्य नाम
ब्रांड नाम
amlodipine
Norvasc
diltiazem
Cardizem, Dilacor, Taztia, Tiazac
felodipine
nifedipine
Procardia
nisoldipine
Sular
verapamil
Calan, Verelan
******************