5.6.20

डायस्टोलिक हृदय विफलता


डायस्टोलिक हृदय विफलता तब होता है जब बांया वेंट्रिकल मे पूरी तरह से रक्त नहीं भर पाता और हृदय से शरीर में रक्त की पम्पिंग कम हो जाती है।
हृदय पर प्रभाव
   डायस्टोलिक, हृदय की एक ऐसी स्थिति है, जब हृदय आराम की स्थिति में होता है और रक्त से भर रहा होता है। वहीं जब डायस्टोलिक शिथिलता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, तो उसमें हृदय सहज नहीं हो पाता और आराम नहीं कर पाता। नतीजा यह होता है कि वेंट्रिकल में रक्त नहीं भर पाता और इसी कारण आगे उचित मात्रा में रक्त भी नहीं पहुंच पाता। यदि डायस्टोलिक शिथिलता अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाती है तो इसका नतीजा हृदय विफलता होता है।
डायस्टोलिक हृदय विफलता तब होता है, जब बाएं वेंट्रिकल की पेशी कठोर या मोटी हो जाती है। इसके कारण हृदय को रक्त को वेंट्रिकल में भरने के लिए और ज्यादा ताकत लगानी पड़ती है। धीरे-धीरे यह स्थिति और ज्यादा बढ़ती जाती है, दायें वेंट्रिकल समेत फेफड़ों में रक्त इकठ्ठा होता चला जाता है जिसके कारण वेंट्रिक और फेफड़ों में तरल पदार्थ की भीड़ सी हो जाती है और इसका सीधा नतीजा हृदय विफलता होता है। हो सकता है कि डायस्टोलिक हृदय घात से इंजेक्शन फ्रैक्शन में कमी न आए। इंजेक्शन फ्रैक्शन उस पैमाने को कहा जाता है जिसमें हृदय के सामान्य तौर पर पम्पिंग करने या न करने की जांच की जाती है। सिस्टोलिक हृदयघात वाले लोगों में यह इंजेक्शन फ्रैक्शन कम होता है। हो सकता है कि सिस्टोलिक हृदय घात के दौरान बांया वेंट्रिकल ठीक से पम्प करें। लेकिन डायस्टोलिक की स्थिति में यह ठीक से काम नहीं करता। 

कारण
  डायस्टोलिक हृदय विफलता का सबसे सामान्य कारण उम्र का बढ़ना होता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वैसे वैसे हृदय की मांशपेशियां कठोर होना शुरू हो जाती हैं। जिसके कारण हृदय पूरी तरह से रक्त नही भर पाता और इसका नतीजा डायस्टोलिक हृदय विफलता होता है। लेकिन उम्र बढ़ने के अलावा और भी ऐसे कई कारण होते हैं जिनके कारण दांया वेंट्रिकल पूरी तरह से रक्त नहीं भर पाता।
हृदय विफलता के लिए कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स कैसे काम करती हैं ये दवाएं
कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, हृदय की दर को धीमी और रक्तचाप को कम करता है । हृदय की मांशपेशियों के संकुचन से, हृदय रक्त पंप करता है जिससे विद्युत संवेग उत्पन होते है। 


चैनल ब्लॉकर्स, इन विद्युत संवेग को ब्लॉक करके हृदय की दर को कम करता है। कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, रक्त वाहिकाओं की मांसपेशियों के ऊतकों को शिथिल करके रक्तचाप को कम करता है । इससे रक्त आसानी से वाहिकाओं में प्रवाहित होता है।


क्यों प्रयोग की जाती हैं ये दवाएं
   कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, डायस्टोलिक हृदय विफलता के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है।डायस्टोलिक के चरण में, जब हृदय के निचले बायें कक्ष में पूरी तरह से रक्त न भरा हो तो डायस्टोलिक हृदय विफलता होती है। डायस्टोल, हृदय की दर का एक ऐसा चरण होता है जब हृदय शिथिल अवस्था में है और उसमे पूरी तरह रक्त भरा है।
कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स हृदय की दर और रक्तचाप को कम करके ह्रदय में अधिक आसानी से रक्त भरता हैं। जब हृदय की दर कम होती है तो हृदय में रक्त भरने के लिए ज्यादा समय मिल जाता है। कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, हृदय की मांसपेशियों को शिथिल करके, रक्त भरने में सहायता करता है। निम्न रक्तचाप, डायस्टोलिक हृदय विफलता के इलाज में मदद करता है क्योकि हृदय को रक्त पंप करने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती है।
कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, सिस्टोलिक हृदय विफलता के लिए इस्तेमाल नहीं की जाती हैं क्योकि इसमें हृदय पर्याप्त बल के साथ रक्त को पंप नहीं कर पता है।
कितनी अच्छी तरह से काम करती हैं ये दवाएं
कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, डायस्टोलिक हृदय विफलता के लक्षणों को कम करने में मदद करता हैं। यह अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में भी प्रयोग होता है जैसे उच्च रक्तचाप।



दुष्प्रभाव

सभी दवाओं के साइड इफेक्ट होते है। लेकिन कई लोगों को दुष्प्रभाव महसूस नहीं होता है या उनका शरीर उस दुष्प्रभाव को झेलने में सक्षम होता है। प्रत्येक दवा जो आप ले रहे है उसके साइड इफेक्ट के बारे में फार्मासिस्ट से पूछें। दवा के साथ मिलने वाली जानकारी में भी साइड इफेक्ट सूचीबद्ध होते हैं, जिनसे आपको उस दवा से होने वाले साइडइफ़ेक्ट के बारे में पता चल सकता हैं।
यहाँ कुछ ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बातें हैं –
आमतौर पर दवा का लाभ, किसी भी मामूली दुष्प्रभाव से अधिक महत्वपूर्ण होता हैं। कुछ दिनों के लिए दवा लेने से दुष्प्रभाव को दूर किया जा सकता हैं।

  अगर दुष्प्रभाव से आपको बहुत परेशानी हो रही हैं और आप अपनी दवा आगे जारी रखना चाहते है तो अपने डॉक्टर से सलाह लें। वह आपकी खुराक कम या आपकी दवा को बदल सकता है। अचानक से अपनी दवा ना छोड़े जब तक की आपके डॉक्टर आपको ऐसा करने के लिए ना कहें।
कब आपातकालीन सेवाओं को कॉल करें –अगर-
साँस लेने में तकलीफ़।
चेहरे, होंठ, जीभ, या गले में सूजन।
अगर आपको लगे की हृदय विफलता, बदतर हो रही है तो तुरंत अपने डॉक्टर को बुलाएं। हृदय विफलता के बदतर होने के लक्षण हैं –
पैरों के नीचे के भागों , टखनों, या पैर में सूजन।
और अधिक सांस की तकलीफ।
अचानक वजन बढ़ाना।
अपने डॉक्टर को बुलायें अगर आपको लगे कि –
खराश
इन दवाओं के दुष्प्रभाव हैं –
हृदय की दर कम होना।
कब्ज या दस्त।चक्कर आना या हल्कापन लगना।
निस्तब्धता या गरमाहट महसूस होना।
ठीक से दवाइयाँ लें
दवाइयाँ, आपके इलाज के लिए एक महत्वपूर्ण तरीका होता है जिसे आपका चिकित्सक आपके स्वास्थ्य में सुधार और भविष्य की समस्याओं को रोकने के लिए प्रयोग करता हैं।अगर आप ठीक ढंग से अपनी दवाएं नहीं लेते हैं, तो आप अपने स्वास्थ को जोखिम में (और शायद अपने जीवन को भी ) डालते हैं।

कई वजहों से लोगों को दवाइयाँ लेने में परेशानी होती हैं। लेकिन ज्यादातर मामलों में, आप कुछ तरीको के द्वारा अपनी समस्याओं को दूर कर सकते है और डॉक्टर द्वारा दिए निर्देशों का पालन करके अपने इलाज को कारगार बना सकते है।
महिलाओं के लिए सुझाव
अगर आप गर्भवती हैं, स्तनपान करा रही हैं या गर्भधारण की कोशिश कर रही है, तो बिना अपने डॉक्टर के सलाह के, किसी भी दवाई का प्रयोग ना करें । कुछ दवायें आपके बच्चे को नुकसान पहुँचा सकती हैं, जैसे कुछ डॉक्टर द्वारा बताई हुईं दवायें , विटामिन की गोलियाँ, जड़ी बूटी, और पूरक आहार । यह सबसे ज्यादा जरूरी है की आप अपने डॉक्टर को यह बता दें की आप गर्भवती हैं, स्तनपान करा रही हैं या गर्भधारण की कोशिश कर रही है।
डॉक्टर से जाँच कराते रहें
अगर आप को सिस्टोलिक हृदय विफलता है और आप कैल्शियम चैनल ब्लॉकर ले रहे है तो डॉक्टर से जाँच करायें। कभी कभी इन दवाओं के कारण हृदय विफलता बदतर हो सकती है क्योकि इसमें हृदय पर्याप्त बल के साथ रक्त को पंप नहीं कर पता है। नियमित जाँच और अनुवर्ती देखभाल अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
अनुवर्ती देखभाल इलाज और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। नियमित रूप से डॉक्टर के पास अपनी जाँच के लिए जाएं और अगर कभी कोई समस्या लगे तो तुरंत अपने डॉक्टर से बात करें। अपने परीक्षण के परिणाम को जानने का, यह एक अच्छा तरीका हो सकता है। जो भी दवाइयाँ आप ले रहे है उनकी एक सूची बना कर रखें, तो यह आपकी सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।
उदाहरण
सामान्य नाम
ब्रांड नाम
amlodipine
Norvasc
diltiazem
Cardizem, Dilacor, Taztia, Tiazac
felodipine
nifedipine
Procardia
nisoldipine
Sular
verapamil
Calan, Verelan
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गुग्‍गुल एक चमत्कारिक आयुर्वेदिक औषधि:Guggul ke fayde


  

 कई तरह की बीमारियों को खत्म करने की सबसे बेहतर और कारगर औषघि है गुग्गुल। यह एक पेड़ की प्रजाती है। जिसके छाल से जो गोंद निकलता है उसे गुग्गुल कहा जाता है। इस गोंद के इस्तेमाल से आप कई तरह की बीमारियों से बच सकते हो। गुग्गुल एक तरह का छोटा पेड है इसकी कुल उंचाई 3 से 4 मीटर तक होती है। और इसके तने से सफेद रंग का दूध निकलता है जो सेहत के लिए बेहद उपयोगी होता है।गुग्गल एक वृक्ष है। गुग्गल ब्रूसेरेसी कुल का एक बहुशाकीय झाड़ीनुमा पौधा है। अग्रेंजी में इसे इण्डियन बेदेलिया भी कहते हैं। रेजिन का रंग हल्का पीला होता है परन्तु शुद्ध रेजिन पारदर्शी होता है। यह पेड़ पूरे भारत के सूखे क्षेत्रों में पाया जाता है। यह पौधा छोटा होता है एवं शीतकाल और गीष्मकाल में धीमी गति से बढ़ता है। इसके विकास के लिए वर्षा ऋतु उत्तम रहती है। इस पेड़ के गोंद को गुग्गुलु, गम गुग्गुलु या गुग्गल के नाम से जाना जाता है। गोंद को पेड़ के तने से चीरा लगा के निकाला जाता है। गुग्गुलु सुगंधित पीले-सुनहरे रंग का जमा हुआ लेटेक्स होता है। अधिक कटाई होने से यह आसानी से प्राप्त नहीं होता है। आयुर्वेद में दवा की तरह नए गोंद का ही प्रयोग होता है।

  गुग्‍गुल दिखने में काले और लाल रंग का होता है जिसका स्‍वाद कणुआ होता है। इसकी प्रवृत्‍ति गर्म होती है। इसके प्रयोग से आप पेट की गैस, सूजन, दर्द, पथरी, बवासीर ,पुरानी खांसी, यौन शक्‍ति में बढौत्‍तरी, दमा, जोडों का दर्द, फेफड़े की सूजन आदि रोगों को दूर कर सकते हैं।

Guggul an  Ayurvedic medicine

 सुश्रुत संहिता, में गुग्गुलु का प्रयोग मेद रोग के उपचार (उच्च रक्त कोलेस्ट्रॉल, धमनियों का सख्त होना) के लिए निर्धारित किया गया है। यह वसा के स्तर को सामान्य रखने और शरीर में सूजन कम करने में लाभकारी है। इससे प्राप्त राल जैसे पदार्थ को भी ‘गुग्गल’ कहा जाता है। इसमें मीठी महक रहती है। इसको अग्नि में डालने पर स्थान सुंगध से भर जाता है। इसलिये इसका धूप में उपयोग किया जाता है। 
यह कटुतिक्त तथा उष्ण है और कफ, बात, कास, कृमि, क्लेद, शोथ और अर्शनाशक है।मुंह स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बेहद उपयोगी
मुंह से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्‍या में गुग्‍गुल का सेवन करना अच्‍छा रहता है। गुग्गुल को मुंह में रखने से या गर्म पानी में घोलकर दिन में 3 से 4 बार इससे कुल्ला व गरारे करने से मुंह के अन्दर के घाव, छाले व जलन ठीक हो जाते हैं।

थायराइड से छुटकारा
 

यह थायराइड ग्रंथि के कार्य में सुधार करता है, शरीर में वसा को जलाने की गतिविधियों को बढ़ाता है और गर्मी की उत्‍पत्‍ति करता है।

*जोड़ों के दर्द में लाभकारी 

जब जोड़ों में विषाक्त अवशेषों का जमाव हो जाता है और उसकी वजह से जोड़ों में दर्द होने लगता है, तब गुग्‍गुल का सेवन करने से लाभ मिलता है। यह जोड़ों से उन अवशेषों को निकाल देता है और साथ ही जोड़ों के मूवमेंट को ठीक भी करता है।

*हड्डियों से जुड़ी समस्‍याओं का समाधान करें


हड्डियों में किसी भी प्रकार की परेशानी में गुग्गुल बहुत उपयोगी होता है। हड्डियों में सूजन, चोट के बाद होने वाले दर्द और टूटी हड्डियों को जोड़ने एवं रक्त के जमाव को दूर करने में बहुत लाभकारी होती है।

*कब्‍ज की शिकायत दूर करें

अगर आपको कब्‍ज की शिकायत रहती हैं तो आपके लिए गुग्‍गुल का चूर्ण फायदेमंद हो सकता है। इसके लिए लगभग 5 ग्राम गुग्गुल में सामान मात्रा में त्रिफला चूर्ण को मिलाकर रात में हल्का गर्म पानी के साथ सेवन करने से लम्बे समय से बनी हुई कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है तथा शरीर में होने वाले सूजन भी दूर हो जाते हैं।
*कोलेस्‍ट्रॉल में सुधार यह कोलेस्‍ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स को कम करता है। यह तीन महीने में 30% तक कोलेस्‍ट्रॉल घटा सकता है।

*गर्भाशय में करें इसका गुड़ के साथ सेवन:Guggul ke fayde

गर्भाशय से जुड़ें रोगों के लिए गुग्‍गुल का सेवन बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए गुग्गुल को सुबह-शाम गुड़ के साथ सेवन करने से कई प्रकार के गर्भाशय के रोग ठीक हो जाते हैं। अगर रोग बहुत जटिल है तो 4 से 6 घंटे के अन्तर पर इसका सेवन करते रहना चाहिए।
दिल के लिये फायदेमंद यह खून में प्‍लेटलेट्स को चिपकने से रोकता है तथा दिल की बीमारी और स्‍ट्रोक से बचाता है|

*दर्द और सूजन से राहत दें:Guggul ke fayde

गुग्‍गुल में मौजूद इन्फ्लमेशन गुण दर्द और सूजन में राहत देने में मदद करता है। इसके अलावा यह शरीर के तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाने में भी बहुत मदद करता है।

त्‍वचा की समस्‍याओं में फायदेमंद गुग्‍गुल:Guggul ke fayde

खून की खराबी के कारण शरीर में होने वाले फोड़े, फुंसी व चकत्ते आदि के कारण गुग्‍गुल बहुत लाभकारी होता है। क्‍योंकि इसके सेवन से खून साफ होता है। त्‍वचा संबंधी समस्‍या होने पर इसके चूर्ण को सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें।
आमतौर पर उल्‍टा-सीधा या अधिक मिर्च मसाले युक्त आहार लेने से अम्‍लपित्त यानि खट्टी डकारों की समस्‍या हो जाती है। इस समस्‍या से बचने के लिए आप गुग्‍गुल का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए 1 चम्मच गुग्गुल का चूर्ण एक कप पानी में मिलाकर रख दें। लगभग एक घंटे के बाद छान लें। भोजन के बाद दोनों समय इस मिश्रण का सेवन करने से अम्लपित्त की समस्‍या से छुटकारा मिल जाता है।

मोटापा दूर करे :Guggul ke fayde

इसके प्रयोग से शरीर का मेटाबॉलिज्‍म तेज होता है और मोटापा दूर होता है। इसके साथ ही अगर गैस बनने की बीमारी है तो वह भी ठीक हो जाती है।

*. फोड़ा-फुन्सी Guggul ke fayde


फोड़ा-फुन्सी में जब सड़न और पीव हो, तो त्रिफला के काढ़े के साथ 4 रत्ती गुग्गुल लेना चाहिए। अथवा सायं 5 तोला पानी में त्रिफलाचूर्ण 6 माशा भिगोकर प्रात: गर्म कर छानकर पीने से लाभ होता है।

*घुटने का दर्द

घुटने के दर्द को दूर करने के लिए 20 ग्राम गुड़ में 10 ग्राम गुग्गुल को मिलाकर अच्छे से पीस लें और इसकी छोटी-छोटी गोलियां बना लें। कुछ दिनों तक 1-1 गोली सुबह शाम घी के साथ लें।

*गंजापन दूर करें:Guggul ke fayde

आधुनिक जीवनशैली और गलत खान-पान के कारण आजकल बढ़ी उम्र के लोग हीं नहीं बल्कि युवा भी गंजेपन का शिकार हो रहे हैं। अगर आपकी भी यहीं समस्‍या हैं तो आप गुग्गुल को सिरके में मिलाकर सुबह-शाम नियमित रूप से सिर पर गंजेपन वाले स्थान पर लगाएं इससे आपको लाभ मिलेगा।

*हाई ब्‍लड प्रेशर को कम करें


रक्तचाप के स्तर को कम और सामान्य स्तर पर बनाए रखने में गुग्‍गुल बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा गुग्‍गुल दिल को मजबूत रखता है और दिल के टॉनिक के रूप में जाना जाता है।

*दमा रोग में

दमा से परेशान लोगों को घी के साथ एक ग्राम गुग्गुल को मिलाकर सुबह-शाम लेने से फायदा मिलता है।

*पेट की सूजन

गुड़ के साथ गुग्गुल मिलाकर दिन में तीन बार रोज खाएं। एैसा नियमित करने से पेट की सूजन ठीक होने लगती है।

*गर्भ संबंधी फायदे

गुड के साथ गुग्गुल को खाने से गर्भ से संबंधित समस्याएं जैसे गर्भशाय के रोग ठीक होते हैं।

सावधानी

गुग्‍गुल की प्रकृति गर्म होने के कारण इसका ज्‍यादा इस्‍तेमाल करने पर इसे गाय के दूध या घी के साथ सेवन करे। साथ ही इसका प्रयोग करते समय तेज और मसालेदार भोजन, अत्याधिक भोजन, या खट्टे खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
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4.6.20

अड़ूसा के औषधीय गुण उपयोग Adusa ke fayde





परिचय :


   सारे भारत में अडूसा के झाड़ीदार पौधे आसानी से मिल जाते हैं। ये 120 से 240 सेमी ऊंचे होते हैं। अडूसा के पत्ते 7.5 से 20 सेमी तक लंबे और 4 से साढ़े 6 सेमी चौडे़ अमरूद के पत्तों जैसे होते हैं। ये नोकदार, तेज गंधयुक्त, कुछ खुरदरे, हरे रंग केअडूसा एक आयुर्वेदिक औषधी है जो 120 से 240 सेमी ऊंचे होते हैं। अडूसा के पत्तों, अमरूद के पत्ते के समान 7.5 से 20 सेमी तक लंबे और 4 से साढ़े 6 सेमी चौडे़ होते हैं। होते हैं। अडूसा के पत्तों को कपड़ों और पुस्तकों में रखने पर कीड़ों से नुकसान नहीं पहुंचता। इसके फूल सफेद रंग के 5 से 7.5 सेमी लंबे और हमेशा गुच्छों में लगते हैं। लगभग 2.5 सेमी लंबी इसकी फली रोम सहित कुछ चपटी होती है, जिसमें चार बीज होते हैं। तने पर पीले रंग की छाल होती है। अडूसा की लकड़ी में पानी नहीं घुसने के कारण वह सड़ती नहीं है।

अड़ूसा के विभिन्न नाम -
• संस्कृत : वासा, वासक, अडूसा, विसौटा, अरूष।
• हिंदी : अडूसा, विसौटा, अरूष।
• मराठी : अडूलसा, आडुसोगे।
• गुजराती : अरडूसों, अडूसा, अल्डुसो।
• बंगाली : वासक, बसाका, बासक।
• तेलगू : पैद्यामानु, अद्दासारामू।
• तमिल : एधाडड।
• अरबी : हूफारीन, कून।
• पंजाबी : वांसा।
• अंग्रेजी : मलाबार नट।
• लैटिन : अधाटोडा वासिका
• रंग : अडूसा के फूल का रंग सफेद तथा पत्ते हरे रंग के होते हैं।
• स्वाद : अडूसा के फूल का स्वाद कुछ-कुछ मीठा और फीका होता है। पत्ते और जड़ का स्वाद कडुवा होता है।
स्वरूप :
• पेड़ : 
अडूसा के पौधे भारतवर्ष में कंकरीली भूमि में स्वयं ही झाड़ियों के समूह में उगते हैं। अडूसा का पेड़ मनुष्य की ऊंचाई के बराबर का होता है।


• पत्ते :


 पत्ते 7.5 से 20 सेमी लम्बे रोमश, अभिमुखी, दोनों और से नोकदार होते हैं।
• फूल :

श्वेतवर्ण 5 से 7.5 सेमी लंबे लम्बी मंजरियों में फरवरी-मार्च में आते हैं।
• फली : 

लगभग 2.5 सेमी लम्बी, रोमश, प्रत्येक फली में चार बीज होते है।
 अडूसा खुश्क तथा गर्म प्रकृति का होता है। परन्तु फूल शीतल प्रकृति का होता है।
• स्वभाव :
• मात्रा : फूल और पत्तों का ताजा रस 10 से 20 मिलीलीटर (2 से 4 चम्मच), जड़ का काढ़ा 30 से 60 मिलीलीटर तक तथा पत्तों, फूलों और जड़ों का चूर्ण 10 से 20 ग्राम तक ले सकते हैं।
*आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार अडूसा पेड़ के फल, फूल, पत्ते तथा जड़ को रोग-विकारों के निवारण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अडूसा ने केवल खांसी श्वास, रक्तपित्त और कफ के लिए गुणकारी है बल्कि इसके पत्ते से बना काढ़ा कब्ज और शारीरिक निर्बलता के लिए एक दवा का काम करता है।

 अड़ूसा का गुणकारी औषधि के रूप में प्रयोग


*अडूसा का प्रयोग अधिकतर औषधि के रूप ही किया जाता है. यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा की पद्धतियों में अडूसा का उल्लेख एक प्रसिद्ध औषधि के रूप में किया गया है. अडूसा का प्रयोग खासतौर पर ख़ासी और साँस से सम्बंधित रोगों के ईलाज के लिए किया जाता है.रोगों को नष्ट करने की दृष्टि से अडूसा एक बेहद ही उपयोगी औषधि है.

टीबी रोग की खांसी 

में पचीस ग्राम अडूसा की जड़ और पचीस ग्राम गिलोय को दो सौ मिली लीटर पानी में देर तक उबालें और इसका काढ़ा बना लें। प्रतिदिन पचास ग्राम काढ़े में शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से टीबी रोग की खांसी नष्ट होती है और कफ सरलता से निकल जाता है।

Adusa ke fayde

मुंह के छाले -

अडूसा की जड़ को पानी में उबालकर, छानकर उस पानी से कुल्ले करने पर मुंह के छाले दूर होते हैं।

गुर्दे का शूल-

अडूसा के पत्तों के पांच ग्राम रस में शहद मिलाकर चाटकर खाने से गुर्दे का शूल नष्ट होता है।

*अस्थमा -

 अडूसा के सूखे पत्ते चिलम में जलाकर हुक्का पीने से अस्थमा रोगी को आराम मिलता है। इसके अलावा श्वास में होने वाली समस्या को भी दूर किया जा सकता है।

* प्रदर रोग

की समस्या में अडूसा के जड़ को कूटकर उसका रस निकालकर शहद के साथ रोजाना लेने से प्रदर रोग दूर होता है।अडूसा के स्वरस का मधु के साथ शर्बत बनाकर देने से प्रदर ठीक होता है।

*मासिक धर्म में अधिक खून निकलने की समस्या होने पर स्त्रियों को अडूसा के हरे पत्तों का दस ग्राम रस मिश्री मिलाकर सेवन करने से बहुत लाभ होता है।

*पैत्तिक ज्वर:

    यदि घर में किसी को पैत्तिक ज्वर की समस्या है तो अडूसा के पत्ते और आंवला बराबर मात्रा में लेकर पानी में डालकर रखें और सुबह दोनों को पीसकर रस निकालें तथा उसमें दस ग्राम मिश्री मिलाकर पीलाने से लाभ मिलता है।
*. अडूसा के दस ग्राम पत्तों को पानी में उबालकर काढ़ा बना लें और शहद और मिश्री मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से जुकाम के कारण उत्पन्न सिरदर्द तुरंत दूर होता है।

अस्थमा रोग:

अडूसा और शहद मिलाकर दिन में तीन-चार बार चाटने से अस्थमा रोग से उत्पन्न खांसी से निजात पाया जा सकता है। इससे कफ को रोका जा सकता है।

Adusa ke fayde

रक्तपित्त-श्वास-कास :

अडूसा के पत्ते अथवा फूलों का स्वरस 1 पाव लेकर 3 पाव चीनी की चाशनी कर शर्बत बना लें। इसके सेवन से श्वास और रक्तपित्त में लाभ होता है
*अडूसा के पत्तों को पीसकर, किसी कपड़े में बांधकर निचोड़कर रस निकालें। बीस-बीस ग्राम रस दिन में दो-तीन बार पीने से नाक, मुंह और मलद्वार से होने वाली ब्लीडिंग बंद हो जाती है।

पित्तकफ-ज्वर :

अडूसा के पत्ते और पुष्पों का स्वरस मिश्री और शहद मिलाकर देने से पित्तकफ-ज्वर तथा अम्लपित्त में लाभ करता है।

खाज-खुजली:

अडूसा के पत्तों में हल्दी मिलाकर गोमूत्र के साथ पीसकर शरीर पर लेप करने से खाज-खुजली शीघ्र नष्ट होती है।

बिच्छू का जहर : 

काले अडूसा की जड़ को पानी में घिसकर बिच्छू द्वारा काटे हुए स्थान पर लगाने से जहर बेअसर हो जाता है।

खून रोकने के लिए :

अडूसा की जड़ और फूलों का काढ़ा करके घी में पका शहद मिलाकर खाने से यदि कहीं से रक्त आता हो, तो वह बन्द हो जाता है।

*अर्श में ब्लीडिंग -

अडूसा के पत्ते और सफेद चन्दन का चूर्ण मिलाकर रखें। प्रतिदिन पानी के साथ तीन ग्राम चूर्ण सेवन करने से अर्श में ब्लीडिंग की समस्या से निजात मिलता है।

टाइफस ज्वर -

अडूसा के पत्तों का रस निकालकर उसमें तुलसी और अदरक का रस तथा मुलहठी का चूर्ण और शहद मिलाकर सेवन करने से टाइफस ज्वर से निजात मिलता है।


सिर दर्द में आराम : 

अडूसा के फूलों को सुखाकर उसे कूट-पीस लें। उसके साथ थोड़ी सी मात्रा में गुड़ मिलाकर उसकी छोटी छोटी गोलियाँ बना लें। रोजाना एक गोली के सेवन से सिर दर्द की समस्या खत्म हो जाती है।

ज्वर :

अडूसा के मूल का क्वाथ देने से ज्वर को लाभ होता है

*मासिक धर्म में अवरोध-

लड़कियों को मासिक धर्म में अवरोध होने पर अडूसा के पत्ते दस ग्राम और मूली के बीज तीन ग्राम, गाजर के बीज तीन ग्राम मिलाकर पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर छानकर कुछ दिन तक सेवन करने से बहुत लाभ होता है।

जोड़ों का दर्द : 

अडूसा के पत्तियों को गर्म करके दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द फ़ौरन चला जाता है।

गुदा के मस्सों का दर्द :

वासा के पत्तों को पुटपाक की रीति से उबालकर सेंक करने से गुदा के मस्सों का दर्द मिट जाता है।

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मुनक्का खाने के स्वास्थ्य लाभ:Munakka khane ke 12 fayde



   

सूखे मेवे बहुत शक्तिवर्द्धक होते हैं। प्रोटीन से भरपूर सूखे मेवों में फाइबर, फाइटो न्यूट्रियंट्स एवं एन्टी ऑक्सीडेण्ट्स जैसे विटामिन ई एवं सेलेनियम की बहुलता होती है। मुनक्के, बादाम, किशमिश, काजू, मूंगफली, अखरोठ आदि मेवे नॉन वेज फूड का एक अच्छा ऑप्शन भी माने जाते हैं। मुनक्का खाने में जितना स्वादिष्ट है। उतना ही सेहत के लिए फायदेमंद भी है। साथ ही ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढाता है। इसमें फाइबर के गुण अधिक पाये जाते हैं।


( Raisin )

   मुनक्का जिसको हम बड़ी दाख के नाम से भी जानते हैं. किशमिश को पानी में कुछ देर भिगोकर रखने और फिर उसे सुखाने के बाद किशमिश की स्थिति को ही मुनक्का का नाम दिया गया है. इसकी प्रकृति या तासीर गर्म होती है किन्तु ये कई रोगों की दवाई के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इसीलिए इसका औषध में विशेष स्थान माना जाता है. इसमें पाए जाने वाले अनेक गुण हमें बिमारियों से दूर रखने और शरीर को रोगमुक्त बनाने में लाभकारी सिद्ध होते है. मुन्नका के लाभ ( Benefits of Raisins ) :

सर्दी जुकाम में ( Cure Cold ) 

जिन व्यक्तियों को लगातार सर्दी और जुकाम बना रहता है, वे 3 से 4 मुनक्का ठंडे पानी में भिगोकर रख दें और सुबह उठकर अच्छे से चबाकर खायें. रोगी का पुराना जुकाम दूर हो जाएगा और इस तरह सर्दी भी नही लगती है. इस उपाय को दिन में दो से तीन बार अपनाएँ.

खून बढ़ाने में ( Increase Blood ) : 

   रात को सोने से पहले 10 मुनक्का पानी में भिगोकर रख दें. सुबह इसको दूध के साथ मुनक्का उबाल लें. हल्का ठंडा करके पियें खून बढ़ जाता है. मुनक्का को अच्छे से चबा चबाकर खायें इससे खून बढ़ने लगता है. अच्छा परिणाम पाने के लिए एक से दो हफ्ते तक खायें.
. कब्ज :
   प्रतिदिन सोने से एक घंटा पहले दूध में उबाली गई 11 मुनक्का खूब चबा-चबाकर खाएं और दूध को भी पी लें। इस प्रयोग से कब्ज की समस्या में तत्काल फायदा होता है।
शरीर पुष्ट बनाने के लिए ( For Healthy Body ) : दिन में 8 से 10 मुनक्का का सेवन रोज़ करें. ऐसा करने से शरीर हष्ट पुष्ट बना रहता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है.

शरीर बलवान, ब्लड प्रेशर :

    12 मुनक्का, 5 छुहारे, 6 फूलमखाने दूध में मिलाकर खीर बनाकर सेवन करने से शरीर पुष्ट होता है।
जिनका ब्लडप्रेशर कम रहता है, उन्हें हमेशा अपने पास नमक वाले मुनक्का रखना चाहिए। यह ब्लडप्रेशर को सामान्य करने का सबसे आसान उपाय है।

गले के लिए ( Good For Throat ) :

 8 से 10 मुनक्का रात को पानी में भिगोकर रख दें. अगले दिन सुबह भीगे हुए मुनक्का को नाश्ते में लें. इसके अलावा सुबह और शाम 5 से 6 मुनक्का खायें. इसके लगातार प्रयोग से गले की खराश और नजले से आराम मिलता है. इस उपाय को आप हफ्ते में दो से तीन दिन अवश्य अपनाएँ.

 पेट के विकार ( For Stomach Diseases 

   मुनक्का को सुबह दूध में अच्छे से उबालकर दूध को पीजिये. मुनक्का में उपस्थित फाइबर पेट में उपस्थित ज़हरीले पदार्थो को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है. इसके अलावा मुनक्का खाने से कब्ज़ की समस्या से भी छुटकारा मिलता है. एक हफ्ते तक सेवन करके देखें. जल्द ही आराम मिलेगा.

आंखों की रौशनी, नाख़ून, सफ़ेद दाग, गर्भाशय :

  आंखों की ज्योति बढाने, नाखूनों की बीमारी होने पर, सफेद दाग, महिलाओं में गर्भाशय की समस्या में मुनक्का को दूध में उबालकर थोड़ा घी व मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है।
   जितना पच सके उतने मुनक्का रोज खाने से सातों धातुओं का पोषण होता है|मुनक्का को नमक के पानी में भिगोकर रखें और फिर सुखा लें. जिनका ब्लडप्रेशर कम होता है उनको लाभ मिलेगा.
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एलर्जी ( Remove Allergy ) : 

  जो व्यक्ति जुकाम से पीड़ित रहते है, गले में खराश या खुश्की बनी रहती है और गले में खुजली होती रहती है, उन रोगियों को मुनक्का का नित्य रूप से सेवन करना चाहिए. मुनक्का खाने से गले का हर रोग दूर होता है साथ ही मुनक्का कब्ज़ भगाने में भी लाभकारी सिद्ध होता है.

बच्चों की बिस्तर गिला करने की समस्या :

जो बच्चे रात्रि में बिस्तर गीला करते हों, उन्हें दो मुनक्का बीज निकालकर रात को एक सप्ताह तक खिलाएं।

पुराना बुखार ( Fever ) :

दस मुनक्का एक अंजीर के साथ सुबह पानी में भिगोकर रख दें।रात में सोने से पहले मुनक्का और अंजीर को दूध के साथ उबालकर इसका सेवन करें। ऐसा तीन दिन करें। कितना भी पुराना बुखार हो, ठीक हो जाएगा
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पोषण ( As a Nutrition ) :

 मुनक्का के अन्दर सातों धातुओं का पोषण होता है इसलिए मुनक्का का सेवन करना चाहिए. इससे शरीर को भरपूर पोषण प्रदान होता है और शरीर रोगों से दूर रहता है.

· आँखों की रौशनी ( Improve Eyesight ) : 

मुनक्का खाने से आँखों की रौशनी तेज़ होती है. मुनक्का को पानी में भिगोकर रख दें और सुबह उठकर अच्छे से चबायें. आँखों की रौशनी को तेज़ करता है और जलन भी दूर होती है.

वीर्य, ह्रदय और आंतो के विकार, नजला एलर्जी :

250 ग्राम दूध में 10 मुनक्का उबालें फिर दूध में एक चम्मच घी व खांड मिलाकर सुबह पीएं। इससे वीर्य के विकार दूर होते हैं। इसके उपयोग से हृदय, आंतों और खून के विकार दूर हो जाते हैं। यह कब्जनाशक है।
जिन व्यक्तियों के गले में निरंतर खराश रहती है या नजला एलर्जी के कारण गले में तकलीफ बनी रहती है, उन्हें सुबह-शाम दोनों वक्त चार-पांच मुनक्का बीजों को खूब चबाकर खा ला लें, लेकिन ऊपर से पानी ना पिएं। दस दिनों तक निरंतर ऐसा करें।
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26.5.20

सफ़ेद दाग जड़ से मिटाने के रामबाण नुस्खे:safed daag white spot




सफेद दाग एक तरह का त्वचा रोग है, जो किसी एलर्जी या त्वचा की समस्या के कारण होता है। कई बार ये जेनेटिक भी होता हे। पूरी दुनिया के दो प्रतिशत लोग इस बीमारी के शिकार हैं और भारत में तो चार प्रतिशत लोग इस से पीड़ित हैं। भारतीय समाज में तो इसे छुआ-छूत की बीमारी के तौर पर माना जाता है। इसे ठीक करने के लिए काफी धैर्य की जरूरत है। इसलिए डॉक्टर को दिखाने के साथ-साथ कुछ घरेलू उपायों से इस प्रॉब्लम को जल्द दूर किया जा सकता है। 
सफेद दाग को अंग्रेजी में ल्यूकोडरमा कहा जाता है। यह एक प्रकार का त्वचा का रोग है जिसमें त्वचा के रंग में सफेद चकते पड़ जाते हैं। ल्योकोडरमा यानी की सफेद दाग। यह शरीर के जिस हिस्से में होता है उसी जगह सफेद रंग के दाग बनने लगते हैं। धीरे-धीरे यह दाग बढ़ने लगते हैं। भारत में 2 फीसदी आबादी इस समस्या से परेशान है। समाज में यह धारण बन गई है की यह कुष्ठ रोग है पर यह कुष्ठ रोग नहीं होता। यह न तो कैंसर है, न ही कोढ़ रोग है |
सफेद दाग के मुख्य कारण है-
1. अत्याधिक चिंता करना और तनाव लेना
2. पेट में गैस की समस्या
3. लीवर की समस्या
4. विपरीत भोजन की वजह से जैसे मछली के साथ दूध का सेवन करना
5. आनुवंशिक समस्या
6. जलने या चोट लगना
7. पाचन तंत्र में कीड़े होना
8. कैलिश्यम की कमी
9. खून में खराबी
10. पेट में कीड़े होना आदि

सफेद दाग होना एक आम समस्या है यह दाग हाथों, पैरों, चेहरे, होठों आदि पर छोटे रूप में होते हैं फिर ये बडे़ सफेद दाग का रूप ले लेते हैं।यह संक्रामक रोग छोटे बच्चों को भी हो सकता है। सफेद दाग का इलाज आयुर्वेद में उपल्ब्ध है। अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। आयुर्वेद के अनुसार पित्त दोष की वजह से सफेद दाग की समस्या होती है।

 सफेद दाग के कारगर रामबाण इलाज इस प्रकार है-
सफेद धब्बों  को दूर करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है अपनी जीवन शैली और खान पान में परिवर्तन लाना।


:*करेले की सब्जी का सेवन अधिक से अधिक करना-

*खट्टे पादार्थ, ज्यादा नमक, मछली और दही आदि का परहेज करें|इनकी मनाही है|

अनार का प्रयोग -

अनार त्वचा रोग से संबंधित रोगों के लिए फायदेमंद होता है। सफेद दाग की समस्या से छुटकारा पाने के लिए आप अनार की पत्तियों को तोड़कर सुखा लें और उसका चूर्ण बना लें। इसके बाद इस चूर्ण की एक फंकी एक गिलास पानी मे मिलाकर पीने से सफेद दाग से जल्द ही राहत मिलती है।

शरीर को साफ रखें-

कई बार लोग यूरीन को रोक कर रखते हैं, जो कि बहुत गलत है। इससे शरीर के अंदर गंदे पदार्थों का जमावड़ा बन जाता है जिससे शरीर को नुकसान होता है। इसलिए हमेशा शरीर के विषैले तत्व को बाहर निकालें और शरीर को शुद्ध रखें।

हरड़ -

हरड़ को घिसकर लहसुन के रस में मिलाकर इसके पेस्ट को सफेद दाग पर लगाएं। एैसा करने से सफेद दाग ठीक हो जाते हैं।

उड़द की दाल -

रात में आप उड़द की दाल को पानी में भिगों लें और उसे दरदरा पीसकर नियमित कम से कम पाच महीनों तक सफेद दाग वाले हिस्से पर लगाएं इस उपाय से आपको सफेद दाग से मुक्ति मिलेगी।

तांबे में रखा हुआ पानी-

सफेद दाग safed daag  की समस्या को ठीक करने के लिए आप रात के समय में तांबे के लोटे में साफ पानी भर दें। और सुबह के समय एकदम खाली पेट इस पानी को पीएं। इस उपाय को लगातार कुछ महीनों तक करें। आपको इससे फायदा मिलेगा।
*नदी घाटी में मिलने वाली लाल मिट्टी और अदरक लाल मिट्टी जो नदी के किनारे मिलती है इसके प्रयोग से भी सफेद दाग से मुक्ति पाई जा सकती है। लाल मिट्टी में काॅपर पाया जाता है जो शरीर से सफेद दाग को खत्म करता है।

कैसे बनाएं लाल मिट्टी का पेस्ट-

सबसे पहले आप अदरक का पेस्ट बना लें कम से  कम पचास ग्राम। अब आप इस पेस्ट में लाल मिट्टी दो चम्मच डालकर इसे अच्छी तरह से मिलाकर पुनः पेस्ट बना लें। और इस लाल मिट्टी के बने पेस्ट को सफेद दाग वाली जगह पर लगाएं।

तुलसी तेल -

तुलसी के तेल से भी सफेद दाग ठीक होता है। आप रोज तुलसी के तेल से सफेद दाग के उपर मालिश करें।

सरसों तेल-

सरसों तेल स्किन से लेकर बालों तक के लिए फायदेमंद है। इस तेल में हल्दी पाउडर मिलाकर उसे सफेद दाग पर लगाएं। सूखने के बाद ठंडे पानी से धो लें। साबुन का इस्तेमाल कम से कम करें। चिकनाहट मिटाने के लिए बेसन का इस्तेमाल करें।
*गर्म दूध में पीसी हल्दी को डालकर दिन में 2 बार पीने से 5 महीने में सफेद दाग  safed daag से मुक्ति मिल जाती है।
*1 चम्मच हल्दी पाउडर, 2 चम्मच सरसों का तेल को मिलाएं फिर इस पेस्ट को सफेद चक्तों वाली जगह पर लगाएं और 15 मिनट तक रखने के बाद उस जगह को धो लें एैसा दिन में 3 से 4 बारी करते रहें।

अदरक की पत्तियां -

अदरक की पत्तियों से बने पेस्ट को पानी के साथ मिलाकर लेप तैयार करें। और फिर इस लेप को सफेद दाग वाली जगह पर सुबह और शाम में समय लगाएं।

बथुआ

ज्यादा से ज्यादा अपने खाने में बथुआ शामिल करें। रोज बथुआ उबाल कर उसके पानी से शरीर के सफेद दाग को धोएं। कच्चे बथुआ का रस दो कप निकाल कर, उसमें आधा कप तिल का तेल मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। जब केवल तेल रह जाएं तो उसे उतार लें। अब इसे रोज दाग पर लगाएं।

नारियल का तेल -

सफेद दाग दूर करने के लिए नारियल तेल से दिन में तीन बार मालिश करें। इससे शरीर में सफेद चकते कम होने लगते हैं।
*2 चम्मच अखरोट का पाउडर उसमें थोड़ा सा पानी मिलाकर पेस्ट बनाएं और इसे 20 मिनट तक लगा कर रखें दिन में 3 से 4 बार  एैसा करें।
साबुन और डिटरजेंट का इस्तेमाल न करें।
*मूली और मांस के साथ दूध न पीएं।
* नींद पूरी लें, कम से कम 8 घंटे की नींद लें।
*गाजर, लौकी और दालें अधिक से अधिक सेवन करें। 
*एलोवेरा का जूस पीएं।
 *7 बादाम नित्य सेवन करें। 
*सफेद तिल को खाने में इस्तेमाल करें।
* पालक, गाय का घी, खजूर का इस्तेमाल करते रहें।
*नीम की पत्तीयों का पेस्ट बनाएं उसे छननी में डालकर उसका रस निकाल लें फिर उसमें 1 चम्मच शहद डालें और मिलाकर दिन में 3 बार पीएं।

टमाटर का सेवन न करें -

सफेद दाग safed daag  की समस्या से ग्रसित लोगों को टमाटर और टमाटर से संबंधित किसी भी तरह की चीज का सेवन नहीं करना चाहिए। यानि की आपको कच्चा पका टमाटर और टमाटर की चटनी से भी परहेज करना चाहिए।
सफेद दाग की समस्या कोई लाइलाज बीमारी नहीं है। आयुर्वेदिक उपायों के जरिए इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। साथ ही यह बीमारी छूने से किसी से हाथ मिलाने से, या फिर शारीरिक संबंध बनाने से भी नहीं फैलती है।
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24.5.20

लसोड़ा (गुंदी)के स्वास्थ्य लाभ


लसोड़ा को हिन्दी में ‘गोंदी’ और ‘निसोरा’ भी कहते हैं। इसके फल सुपारी के बराबर होते हैं। कच्चा लसोड़़ा का साग और आचार भी बनाया जाता है। पके हुए लसोड़े मीठे होते हैं और इसके अन्दर गोंद की तरह चिकना और मीठा रस होता है। लसोड़ा मध्यभारत के वनों में देखा जा सकता है, यह एक विशाल पेड़ होता है जिसके पत्ते चिकने होते है, आदिवासी अक्सर इसके पत्तों को पान की तरह चबाते हैं।
इसकी लकड़ी इमारती उपयोग की होती है। इसे रेठु के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि इसका वानस्पतिक नाम कार्डिया डाईकोटोमा है। आदिवासी लसोड़ा का इस्तेमाल अनेक रोगनिवारणों के लिए करते हैं।

लसोड़ा के फायदें..

👉लसोड़ा की छाल को पानी में घिसकर प्राप्त रस को अतिसार से पीड़ित व्यक्ति को पिलाया जाए तो आराम मिलता है।
👉छाल के रस को अधिक मात्रा में लेकर इसे उबाला जाए और काढ़ा बनाकर पिया जाए तो गले की तमाम समस्याएं खत्म हो जाती है।
👉लसोड़े की छाल को पानी में उबालकर छान लें| इस पानी से गरारे करने से गले की आवाज खुल जाती है|
👉इसके बीजों को पीसकर दाद-खाज और खुजली वाले अंगो पर लगाया जाए, आराम मिलता है।
👉लसोड़ा के फलों को सुखाकर चूर्ण बनाया जाता है। इस चूर्ण को मैदा, बेसन और घी के साथ मिलाकर लड्डू बनाते हैं। इस लड्डू के सेवन शरीर को ताकत और स्फूर्ती मिलती है।
लसोड़ा के पत्तों का रस प्रमेह और प्रदर दोनों रोगों के लिए कारगर होता है। लसोड़ा की छाल का काढा तैयार कर माहवारी की समस्याओं से परेशान महिला को दिया जाए तो आराम मिलता है।
👉इसकी छाल की पानी के साथ उबाला जाए और जब पानी एक चौथाई शेष रहे तो इससे कुल्ला करने से मसूड़ों की सूजन, दांतो का दर्द और मुंह के छालों में आराम मिल जाता है।
👉छाल का काढ़ा और कपूर का मिश्रण तैयार कर सूजन वाले हिस्सों में मालिश की जाए तो फायदा होता है।

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