3.11.19

प्रोस्टेट ग्रंथि वृद्धि से मूत्रबाधा का 100%सफल इलाज


प्रोस्टेट एक छोटी सी ग्रंथि होती है जिसका आकार अ्खरोट के बराबर होता है। यह पुरुष के मूत्राषय के नीचे और मूत्रनली के आस-पास होती है।50 % लोगो को 60 साल की उम्र में और 30 % लोगो को 40 साल की उम्र में प्रोस्टेट की समस्या होने लगती है| प्रोस्टेट ग्लैंड को पुरुषो का दूसरा दिल माना जाता है| पौरूष ग्रंथि का मुख्य कार्य प्रजनन के लिए सीमेन बनाना और यूरीन के बहाव को कंट्रोल करना है| प्रोस्टेट ग्लैंड उम्र के साथ साथ अपने आप बढ़ती जाती है| प्रोस्टेट ग्लैंड अपने आप बढ़ने के कारण अधिक लम्बी हो जाती है| अधिक लम्बी होने पर प्रोस्टेट ग्लैंड शरीर पर हानिकारक असर डालती है| इस समस्या को बीपीएच (बीनीग्न प्रोस्टेट हाइपरप्लेसिया) भी कहते है|इसमें पुरुष के सेक्स हार्मोन प्रमुख भूमिका होती है। जैसे ही प्रोस्टेट बढती है मूत्र नली पर दवाब बढता है और पेशाब में रुकावट की स्थिति बनने लगती है। पेशाब पतली धार में ,थोडी-थौडी मात्रा में लेकिन बार-बार आता है कभी-कभी पेशाब टपकता हुआ बूंद बूंद जलन के साथ भी आता है। कभी-कभी पेशाब दो फ़ाड हो जाता है। रोगी मूत्र रोक नहीं पाता है। रात को बार -बार पेशाब के लिये उठना पडता जिससे नीद में व्यवधान पडता है।
यह रोग 70 की आयु के बाद उग्र हो जाता है और पेशाब पूरी तरह रुक जाने के बाद डॉक्टर केथेटर की नली लगाकर यूरिन बेग मे मूत्र करने का इंतजाम कर देते हैं|
यह देखने मे आता है कि 60 के पार 50% पुरुषों मे इस रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं जबकि 70-80 की आयु के लोगों मे 90% पुरुषों मे यह रोग प्रबल रूप मे दिखाई देता है|

प्रोस्टेट वृद्धि के लक्षण -

1) पेशाब करने मे कठिनाई महसूस होती है|
2) थोड़ी-थोड़ी देर मे पेशाब की हाजत मालूम होती है| रात को कई बार पेशाब के लिए उठना पड़ता है
3) पेशाब की धार चालू होने मे विलंब होना|
4) मूत्राशय पूरी तरह खाली नहीं होता , मूत्र की कुछ मात्रा मूत्राशय मे शेष रह जाती है | इस शेष रहे मूत्र मे रोगाणु पनपते हैं| जो किडनी मे खराबी पैदा करते हैं|
5) ऐसा प्रतीत होता है कि पेशाब की जोरदार हाजत हो रही है लेकिन बाथरूम जाने पर पेशाब की कुछ बूंदे निकलती हैं या रूक - रूक कर पेशाब होता है |
6) पेशाब मे जलन लगती है|
7) पेशाब कर चुकने के बाद भी पेशाब की बूंदें टपकती रहती हैं| याने मूत्र पर कंट्रोल नहीं रहता |
8) अंडकोष मे दर्द उठता रहता है|
9) संभोग मे दर्द के साथ वीर्य छूटता है |




आधुनिक चिकित्सा में इस रोग को स्थाई तौर पर ठीक करने वाली कोई सफ़ल औषधि इजाद नहीं हुई है। इसलिये रोगी को आपरेशन कराने की सलाह दी जाती है। इस आपरेशन में लगभग 25-30 हजार का खर्च बैठता है। ऐसा भी देखने में आता है कि आपरेशन के कुछ साल बाद फ़िर मूत्र रूकावट के हालात बनने लगते हैं।
अपने दीर्घकालिक अनुभव के आधार पर बुजुर्गों को परेशान करने वाली इस बीमारी को नियंत्रित करने वाले कुछ घरेलू उपचार यहां प्रस्तुत कर रहा हूं जिनका समुचित प्रयोग करने से इस व्याधि से मुक्ति पाई जा सकती है।

१) दिन में ३-४ लिटर पानी पीने की आदत डालें। लेकिन शाम को ६ बजे बाद जरुरत मुताबिक ही पानी पियें ताकि रात को बार बार पेशाब के लिये न उठना पडे।.
२) अलसी को मिक्सर में चलाकर पावडर बनालें । यह पावडर 15 ग्राम की मात्रा में पानी में घोलकर दिन में दो बार पीयें। बहुत लाभदायक उपचार है।
३) कद्दू में जिन्क पाया जाता है जो इस रोग में लाभदायक है। कद्दू के बीज की गिरी निकालकर तवे पर सेक लें। इसे मिक्सर में पीसकर पावडर बनालें। यह चूर्ण २० से ३० ग्राम की मात्रा में नित्य पानी के साथ लेने से प्रोस्टेट सिकुडकर मूत्र खुलासा होने लगता है।
४) चर्बीयुक्त ,वसायुक्त पदार्थों का सेवन बंद कर दें। मांस खाने से भी परहेज करें।
५) हर साल प्रोस्टेट की जांच कराते रहें ताकि प्रोस्टेट केंसर को प्रारंभिक हालत में ही पकडा जा सके।
 6) चाय और काफ़ी में केफ़िन तत्व पाया जात है। केफ़िन मूत्राषय की ग्रीवा को कठोर करता है और प्रोस्टेट रोगी की तकलीफ़ बढा देता है। इसलिये केफ़िन तत्व वाली चीजें इस्तेमाल न करें।

७) सोयाबीन में फ़ायटोएस्टोजीन्स होते हैं जो शरीर मे टेस्टोस्टरोन का लेविल कम करते हैं। रोज ३० ग्राम सोयाबीन के बीज गलाकर खाना लाभदायक उपचार है।
८) विटामिन सी का प्रयोग रक्त नलियों के अच्छे स्वास्थ्य के लिये जरूरी है। ५०० एम जी की 2 गोली प्रतिदिन लेना हितकर माना गया है।
9) दों टमाटर प्रतिदिन या हफ्ते मे 3-4 बार खाने से प्रोस्टेट केन्सर का खतरा 50% तक कम हो जाता है| इसमे पाये जाने वाले लायकोपिन, और एंटीआक्सीडेंट्स केन्सर की रोक थाम कर सकते हैं|

विशिष्ट परामर्श-



प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने मे हर्बल औषधि सर्वाधिक कारगर साबित हुई हैं| यहाँ तक कि लंबे समय से केथेटर नली लगी हुई मरीज को भी केथेटर मुक्त होकर स्वाभाविक तौर पर खुलकर पेशाब आने लगता है| प्रोस्टेट ग्रंथि के अन्य विकारों (मूत्र    जलन , बूंद बूंद पेशाब टपकना, रात को बार -बार  पेशाब आना,पेशाब दो फाड़)  मे रामबाण औषधि है|  केंसर की नोबत  नहीं आती| आपरेशन  से बचाने वाली औषधि हेतु वैध्य श्री दामोदर से 
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 पर संपर्क कर सकते हैं|

लकवा रोग की आयुर्वेदिक व घरेलू चिकित्सा


आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के मतानुसार लकवा मस्तिष्क के रोग के कारण प्रकाश में आता है।इसमें अक्सर शरीर का दायां अथवा बायां हिस्सा प्रभावित होता है। मस्तिषक की नस में रक्त का थक्का जम जाता है या मस्तिष्क की किसी रक्त वाहिनी से रक्तस्राव होने लगता है। शरीर के किसी एक हिस्से का स्नायुमंडल अचानक काम करना बंद कर देता है याने उस भाग पर नियंत्रण नहीं रह जाता है।दिमाग में चक्कर आने और बेहोश होकर गिर पडने से अग क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
हाईब्लड प्रेशर भी लकवा का कारण हो सकता है। सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर २२० से ज्यादा होने पर लकवा की भूमिका तैयार हो सकती है।
पक्षाघात तब लगता है जब अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे रक्त आपूर्ति रुक जाती है या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आस-पास की जगह में खून भर जाता है। जिस तरह किसी व्यक्ति के हृदय में जब रक्त आपूर्ति का आभाव होता तो कहा जाता है कि उसे दिल का दौरा पड़ गया है उसी तरह जब मस्तिष्क में रक्त प्रवाह कम हो जाता है या मस्तिष्क में अचानक रक्तस्राव होने लगता है तो कहा जाता है कि आदमी को मस्तिष्क का दौरा पड़ गया है।
शरीर की सभी मांस पेशियों का नियंत्रण केंद्रीय तंत्रिकाकेंद्र (मस्तिष्क और मेरुरज्जु) की प्रेरक तंत्रिकाओं से, जो पेशियों तक जाकर उनमें प्रविष्ट होती हैं,से होता है। अत: स्पष्ट है कि मस्तिष्क से पेशी तक के नियंत्रणकारी अक्ष के किसी भाग में, या पेशी में हो, रोग हो जाने से पक्षाघात हो सकता है। सामान्य रूप में चोट, अर्बुद की दाब और नियंत्रणकारी अक्ष के किसी भाग के अपकर्ष आदि, किसी भी कारण से उत्पन्न प्रदाह का परिणाम आंशिक या पूर्ण पक्षाघात होता है।

लकवा के कारण-
लकवा हमेशा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र जिसमें मस्तिष्क एवं स्पाइरल कार्ड शामिल हैं में गड़बड़ी अथवा पेरिफेरल नर्वस सिस्टम में गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार है जिसके कारण होता है। निम्न कारण जो तंत्रिका की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार हैं जिसके कारण पक्षाघात होता है।
1: स्ट्रोक- स्ट्रोक लकवा का मुख्य कारण है। इसमें मस्तिष्क का निश्चित स्थान कार्य करना बंद कर देता है। जिससे शरीर को उचित संकेत भेज एवं प्राप्त नहीं कर पाते हैं। स्ट्रोक हाथ व पैर में लकवा की सम्भावना ज्यादा रहती है।
ट्यूमर: विभिन्न प्रकार के ट्यूमर मस्तिष्क अथवा स्पाइनल कार्ड में पाए जाते हैं वह वहां के रक्त प्रवाह को प्रभावित करके लकवा उत्पन्न करते हैं।
ट्रामा अथवा चोट: चोट के कारण अंदरूनी रक्त प्रवाह कारण मस्तिष्क एवं स्पाइनल कार्ड में रक्त प्रवाह कम हो जाता है जिससे लकवा हो सकता है।सिरेबरल पैल्सि : ये बच्चों में जन्म के समय होती हे जिसके कारण लकवा हो सकता है। इसके अतिरिक्त निम्न स्थितियां स्पाइनल कार्ड की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार हैं।

1: स्लिप डिस्क
2: न्यूरोडिजनरेटिक डिस्क
3:स्पोन्डोलाइसिस
इसके अतिरिक्त लकवा के अन्य कारण भी हो सकते हैं।
लकवा के प्रकार -
लकवा प्रमुख रूप से इतने प्रकार का हो सकता है।
*लकवा जिस अंग को प्रभावित करता है उसके अनुसार उसका विभाजन किया जाता है।
*मोनोप्लेजिया: इसमें शरीर का एक हाथ या पैर प्रभावित होता है।
*डिप्लेजिया: जिनमें शरीर के दोनों हाथ या पैर प्रभावित होते हैं।
*पैराप्लेजिया: जिसमें शरीर के दोनों धड़ प्रभावित हो जाते हैं।
*हेमिप्लेजिया: इसमें एक तरफ के अंग प्रभावित होते हैं।
*क्वाड्रिप्लेजिया: इसमें धड़ और चारों हाथ पैर प्रभावित होते हैं।
*लकवा का आक्रमण होने पर रोगी को किसी अच्छे अस्पताल में सघन चिकित्सा कक्ष में रखना उचित रहता है।इधर उधर देवी-देवता के चक्कर में समय नष्ट करना उचित नहीं है। अगर आपकी आस्था है तो कोई बात नहीं पहिले बडे अस्पताल का ईलाज करवाएं बाद में आस्थानुसार देवी-देवता का आशीर्वाद भी प्राप्त करलें।
*लकवा पडने के बाद अगर रोगी हृष्ट-पुष्ट है तो उसे ५ दिन का उपवास कराना चाहिये। कमजोर शरीर वाले के लिये ३ दिन के उपवास करना उत्तम है। उपवास की अवधि में रोगी को सिर्फ़ पानी में शहद मिलाकर देना चाहिये। एक गिलास जल में एक चम्मच शहद मिलाकर देना चाहिये। इस प्रक्रिया से रोगी के शरीर से विजातीय पदार्थों का निष्कासन होगा, और शरीर के अन्गों पर भोजन का भार नहीं पडने से नर्वस सिस्टम(नाडी मंडल) की ताकत पुन: लौटने में मदद मिलेगी।रोगी को सीलन रहित और तेज धूप रहित कमरे मे आरामदायक बिस्तर पर लिटाना चाहिये।
*उपवास के बाद रोगी को कबूतर का सूप देना चाहिये। कबूतर न मिले तो चिकन का सूप दे सकते हैं। शाकाहारी रोगी मूंग की दाल का पानी पियें। रोगी को कब्ज हो तो एनीमा दें।
*लहसुन की ३ कली पीसकर दो चम्मच शहद में मिलाकर रोगी को चटा दें।
*१० ग्राम सूखी अदरक और १० ग्राम बच पीसलें इसे ६० ग्राम शहद मिलावें। यह मिश्रण रोगी को ६ ग्राम रोज देते रहें।
*लकवा रोगी का ब्लड प्रेशर नियमित जांचते रहें। अगर रोगी के खून में कोलेस्ट्रोल का लेविल ज्यादा हो तो ईलाज करना वाहिये।रोगी तमाम नशीली चीजों से परहेज करे। भोजन में तेल,घी,मांस,मछली का उपयोग न करे।




बरसात में निकलने वाला लाल रंग का कीडा वीरबहूटी लकवा रोग में बेहद फ़ायदेमंद है। बीरबहूटी एकत्र करलें। छाया में सूखा लें। सरसों के तेल पकावें।इस तेल से लकवा रोगी की मालिश करें। कुछ ही हफ़्तों में रोगी ठीक हो जायेगा। इस तेल को तैयार करने मे निरगुन्डी की जड भी कूटकर डाल दी जावे तो दवा और शक्तिशाली बनेगी।एक बीरबहूटी केले में मिलाकर रोजाना देने से भी लकवा में अत्यन्त लाभ होता है।
सफ़ेद कनेर की जड की छाल और काला धतूरा के पत्ते बराबर वजन में लेकर सरसों के तेल में पकावें। यह तेल लकवाग्रस्त अंगों पर मालिश करें। अवश्य लाभ होगा।
लहसुन की 4 कली दूध में उबालकर लकवा रोगी को नित्य देते रहें। इससे ब्लडप्रेशर ठीक रहेगा और खून में थक्का भी नहीं जमेगा।
लकवा रोगी के परिजन का कर्तव्य है कि रोगी को सहारा देते हुए नियमित तौर पर चलने फ़िरने का व्यायाम कराते रहें। आधा-आधा घन्टे के लिये दिन में ३-४ बार रोगी को सहारा देकर चलाना चाहिये। थकावट ज्यादा मेहसूस होते ही विश्राम करने दें।

आयुर्वेदिक मत से लकवे की चिकित्सा-

अगर शरीर का कोई अंग या शरीर दायीं तरफ से लकवाग्रस्त है तो वृहतवातचिंतामणीरस अत्यंत उपयोगी औषधि है| उसमे से एक गोली सुबह ओर एक गोली साँय को शुद्ध शहद से लेवें।
अगर कोई बायीं तरफ से लकवाग्रस्त है उसको वीर-योगेन्द्र रस (वैदनाथ फार्मेसी) की सुबह साँय एक एक गोली शहद के साथ लेनी है।
गोली को शहद से कैसे ले? उसके लिए गोली को एक चम्मच मे रखकर दूसरे चम्मच से पीस ले, उसके बाद उसमे शहद मिलकर चाट लें। ये दवा निरंतर लेते रहना है, जब तक पीड़ित स्वस्थ न हो जाए।
पीड़ित व्यक्ति को मिस्सी रोटी (चने का आटा) और शुद्ध घी (मक्खन नहीं) का प्रयोग प्रचुर मात्र मे करना है। शहद का प्रयोग भी ज्यादा से ज्यादा अच्छा रहेगा।
लाल मिर्च, गुड़-शक्कर, कोई भी अचार, दही, छाछ, कोई भी सिरका, उड़द की दाल पूर्णतया वर्जित है। फल मे सिर्फ चीकू ओर पपीता ही लेना है, अन्य सभी फल वर्जित हैं।

लकवा से होने वाली जटिलताए और होम्योपैथी-

यदि लकवा लम्बे समय तक रहता है तो यह प्रभावित अंग को गम्भीर नुकसान पहुंचा सकता है। इसके कारण शरीर मात्र अस्थि का ढांचा बन जाता है। रोगी को देखने, सुनने व बोलने में परेशानी होने लगती है।
गम्भीर लकवाग्रस्त रोगी को चिकित्सालय में भर्ती कराना चाहिए। होम्योपैथी में लकवा का उपचार सम्भव है। होम्योपैथिक उपचार में रोगी के शारीरिक, मानसिक एवं अन्य लक्षणों को दृष्टिगत रखते हुए औषधि का चयन किया जाता है। कुछ दवाएं जो ज्यादा चलनमे है उनमें रस टॉस्क नाम की औषधि है जो शरीर के निचले हिस्से का लकवा इसके अतिरिक्त यदि लकवा गीला होने या नमी स्थानों में रहने से हो, यदि लकवा टाइफाइड के बुखार के बाद हो उसमें लाभकारी होती है। इसमें शरीर अंगों में जकडऩ में हो जाती तथा ये लकवा के पुराने मरीजों को बेहद लाभ पहुंचाता है। बच्चों में होने वाले लकवा में लाभकारी होता है।
क्रास्टिकम नाम की यह होम्योपैथी दवा ठंड के कारण लकवा मारने या सर्दियों के मौसम में पैरालिसिस का अटैक पडऩे पर प्रभावी हो सकती है। इसके अलावा जीभ चेहरा या गले पर अचानक पडऩे वाले लकवा में भी कारगर साबित होता है।
बेलाडोना नाम की औषधि से शरीर के सीधी तरफ का लकवा ठीक होता है। इस प्रकार के लकवा से प्रभावित व्यक्ति विक्षिप्त तक हो जाता है। इसमें इसी प्रकार नक्सवोमिका का प्रयोग तब लाभकारी होता है। शरीर का निचला हिस्सा लकवा से प्रभावित हो और उन अंगों हिलाने डुलाने में बहुत जोर लगाना पड़ता हो ऐसे लक्षणों में नक्सवोमिका रामबाण साबित हो सकती है।
लकवा के उपचार में प्रयुक्त होने वाली अन्य औषधियों में कॉस्टिकम, जैलसिमियम, पल्म्बम,डल्कामारा, सल्फर, काकुलस, नैट्रमम्योर, कैलमिया, अर्जेटम, नाइट्रिकम, एकोमाइट, एल्युमिना आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा लकवाग्रस्त रोगी को ताजा खाना देना चाहिए। इसके अतिरिक्त चावल और गेहूं के साथ ही मौसमी फल भी फायदा करते हैं|

  • पायरिया के घरेलू इलाज
  • चेहरे के तिल और मस्से इलाज
  • लाल मिर्च के औषधीय गुण
  • लाल प्याज से थायराईड का इलाज
  • जमालगोटा के औषधीय प्रयोग
  • एसिडिटी के घरेलू उपचार
  • नींबू व जीरा से वजन घटाएँ
  • सांस फूलने के उपचार
  • कत्था के चिकित्सा लाभ
  • गांठ गलाने के उपचार
  • चौलाई ,चंदलोई,खाटीभाजी सब्जी के स्वास्थ्य लाभ
  • मसूड़ों के सूजन के घरेलू उपचार
  • अनार खाने के स्वास्थ्य लाभ
  • इसबगोल के औषधीय उपयोग
  • अश्वगंधा के फायदे
  • लकवा की चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि वृहत वात चिंतामणि रस
  • मर्द को लंबी रेस का घोडा बनाने के अद्भुत नुस्खे
  • सदाबहार पौधे के चिकित्सा लाभ
  • कान बहने की समस्या के उपचार
  • पेट की सूजन गेस्ट्राईटिस के घरेलू उपचार
  • पैर के तलवों में जलन को दूर करने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • लकवा (पक्षाघात) के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे
  • डेंगूबुखार के आयुर्वेदिक नुस्खे
  • काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
  • हर्निया, आंत उतरना ,आंत्रवृद्धि के आयुर्वेदिक उपचार
  • पाइल्स (बवासीर) के घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
  • चिकनगुनिया के घरेलू उपचार
  • चिरायता के चिकित्सा -लाभ
  • ज्यादा पसीना होने के के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • पायरिया रोग के आयुर्वेदिक उपचार
  • व्हीटग्रास (गेहूं के जवारे) के रस और पाउडर के फायदे
  • घुटनों के दर्द को दूर करने के रामबाण उपाय
  • चेहरे के तिल और मस्से हटाने के उपचार
  • अस्थमा के कारण, लक्षण, उपचार और घरेलू नुस्खे
  • वृक्क अकर्मण्यता(kidney Failure) की रामबाण हर्बल औषधि
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  • खांसी रोगी का आहार ,क्या खाएं क्या न खाएं |


    खांसी में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। जो लोग इससे जागरूक नहीं है, वे अक्सर सर्दी-खांसी से परेशान रहते हैं। इसलिए खांसी में अपने खानपान का बेहद ख्याल रखना जरूरी है। खांसी एक बहुत आम समस्या है। परिवार में किसी न किसी को खांसी की समस्या बनी ही रहती है। किसी को मौसम बदलने पर, तो किसी को हमेशा खांसी की समस्या रहती है। लेकिन कुछ चीजें नियमित रूप से खाने से खांसी से तुरंत राहत पाई जा सकती है।
    विशेषज्ञों के अनुसार, खांसी सांस की नली के ऊपरी हिस्से में होने वाला संक्रमण होता है, जो लगभग गले के आसपास के हिस्से को प्रभावित करता है। संक्रमण की वजह से ऐसा लगता है, जैसे कि गले में कोई चीज अटक रही हो, या कभी-कभी इरीटेशन भी महसूस होता है। इसे बाहर निकालने के लिए हमारा शरीर कोशिश करता है। इसी को खांसी होना कहते हैं।
    खांसी में कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे गले में दर्द होना, बार-बार गला साफ करना, आवाज बैठ जाना आदि। बहुत ज्यादा खांसी होने पर सांस फूलने लगती है और अगर ये ज्यादा बढ़ जाएं, तो खांसी के साथ खून भी आने लगता है। कभी-कभी होने वाली खांसी प्राकृतिक है। इससे शरीर में मौजूद विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं।
    बच्चों और बड़ों में संक्रमण के कारण तो खांसी होती ही है, लेकिन खाने-पीने की गलत आदतें भी खांसी की मुख्य वजह हैं। खांसी को दवाओं से तो ठीक किया ही जा सकता है, लेकिन अगर आप अपने खान-पान को लेकर थोड़ी सावधानी बरतें, यानि खांसी हो, तो क्या खाएं क्या न खाएं, अगर ये पता हो, तो खांसी जैसी समस्या से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है। आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे, कि खांसी होने पर कौन-कौन से खाद्य पदार्थ खाने चाहिए और कौन से खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए।
    खांसी अगर एक बार शुरू हो जाए, तो बमुश्किल ठीक होती है। बेशक ही आप दवा क्यों न ले लें, लेकिन जब तक सही खाद्य पदार्थ नहीं खाएंगे, तब तक खांसी में कोई अंतर दिखाई नहीं देगा।
    अक्सर लोगों को कहते सुना है, कि खांसी हो तो केला नहीं खाना चाहिए। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार केला आपकी खांसी का बेहतर इलाज कर सकता है। इसमें भरपूर मात्रा में पोटेशियम पाया जाता है और यह शरीर में पानी की कमी को दूर करता है। एक केले में करीब 100 कैलोरी मौजूद होती है, जो हमें ऊर्जा देती है। इतना ही नहीं, केले में पर्याप्त मात्रा में इलेक्ट्रोलाइट पाए जाते हैं, जो शरीर का इम्यूनिटी लेवल बढ़ाने में मदद करते हैं। इसलिए कोई कुछ भी कहे, खांसी में केले का सेवन तो करना ही चाहिए।
    खांसी में जरूर खाएं दालचीनी
    खांसी में दालचीनी का सेवन बहुत फायदेमंद होता है। अगर शहद के साथ पिसी हुई दालचीनी खाएंगे, तो खांसी में बहुत आराम मिलेगा। अगर आप ये नहीं कर सकते, तो पहले शहद और दालचीनी को मिलाकर इनका पाउडर बना लें और फिर पानी में मिलाकर पी लें। इससे भी खांसी बहुत जल्दी सही हो जाती है।
    खांसी में खा सकते हैं दही
    खांसी हो जाए, तो कई लोग दही खाने से बचते हैं। जबकि ऐसा करना गलत है। विशेषज्ञों के अनुसार, सीजनल खांसी में दही का सेवन करना अच्छा होता है, क्योंकि इसमें मौजूद बैक्टीरिया खाना पचाने में आपकी मदद करते हैं। लेकिन जिन लोगों को हमेशा ही खांसी बनी रहती है, उन्हें दही नहीं खाना चाहिए। हां, रात में भी दही न खाएं, क्योंकि इससे आपको कफ की समस्या हो सकती है।
    खांसी में जरूर लें विटामिन सी
    विटामिन सी से भरपूर फल और सब्जियां शरीर में इम्यूनिटी लेवल को बढ़ाती हैं। इससे हड्डियों और मांसपेशियों में भी मजबूती आती है। विटामिन सी आपको टमाटर, संतरा, पपीता, अमरूद आदि से मिल जाता है।
    खांसी में खाना चाहिए कच्चा लहसुन
    लहसुन खांसी से बहुत बचाव करता है। पूरी तरह से खांसी को रोकने के लिए लहसुन जरूर खाएं। लहसुन में प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने वाले गुण होते हैं। यदि आप कर सकते हैं, तो नियमित रूप से कच्चे लहसुन का सेवन करें। आप चाहें, तो लहसुन के सप्लीमेंट भी ले सकते हैं। खांसी के लिए लहसुन सबसे अच्छा घरेलू उपाय है।
    खांसी में चबाकर खाएं तुलसी
    खांसी और सीने में जलन से तुंरत राहत पाने के लिए तुलसी बहुत फायदेमंद है। इसके लिए तुलसी के कुछ पत्तों का पेस्ट बनाकर इसे गर्म करें। अब इस पेस्ट को अपनी छाती पर लगाएं। खांसी से बहुत आराम मिलेगा। आप चाहें तो इसके पत्तों को चबाकर खा भी सकते हैं।
    खांसी में फायदेमंद लौंग
    लौंग बेशक दिखने में बहुत छोटी होती है, लेकिन खांसी जैसी समस्या में भी बहुत काम आती है। लौंग का उपयोग सदियों से जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता रहा है। इसमें एंटीफंगल, एंटीबैक्टीरियल, एंटीइंफ्लेमेट्री और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, जो खांसी से राहत दिलाने में मदद करते हैं। खांसी होने पर दो से तीन लौंग मुंह में रखें और चबाएं। इसका रस गले तक जाने दें। इससे गले में संक्रमण के साथ खांसी भी कम हो जाएगी
    खांसी में खाएं शहद
    चाय या गर्म नींबू पानी में शहद मिलाकर पीने से खांसी में काफी हद तक आराम मिलता है। शहद गले में खराश को शांत करने का अच्छा तरीका है। शहद में रोगाणुरोधी गुण होते हैं, जो गले में जलन और सूजन की समस्या से निजात दिलाने में मदद करते हैं। से छुटकारा पाने के लिए रोज एक से दो चम्मच शहद जरूर खाएं, इससे बहुत आराम मिलेगा और नींद भी अच्छी आएगी।
    खांसी ठीक करे काली मिर्च
    काली मिर्च किसी भी रेसिपी को तैयार करते समय सबसे आम और लोकप्रिय मसाला है। यह खांसी से राहत पाने का प्राकृतिक उपचार भी है। इसे आप शहद या चीनी जैसे स्वीटनर के साथ ले सकते हैं। इसके अलावा इसे लेने का एक अन्य तरीका भी है। पहले दो कप पानी लें और इसमें पिसी हुई काली मिर्च डालें। तब तक उबालें, जब तक यह उबल कर आधा न हो जाए। इसे ठंडा होने दें और रात को सोने से पहले पी लें। सुबह तक आपको खांसी में एक महत्वपूर्ण सुधार दिखाई देगा।
    खांसी होने पर खाएं गुड़
    अगर किसी को भी ज्यादा दिनों तक खांसी चल रही है, तो गुड़ खाना बहुत फायदेमंद है। खाने में भी चीनी के बजाए गुड़ का सेवन करें। इसके लिए गुड़ को अदरक के साथ गर्म करके खाने से गले की खराश और जलन में राहत मिलती है।
    प्याज में हैं खांसी रोकने के गुण
    प्याज में भी खांसी से राहत देने वाले गुण होते हैं। प्याज में नेचुरल एंटीबायोटिक और एक्सपेक्टोरेंट गुण होते हैं, जो फेफड़ों में जमे बलगम को बाहर निकालते हैं। यह सूखी और गीली खांसी में बेहद फायदेमंद है। आप चाहें, तो ताजा प्याज की स्लाइस काटकर खा सकते हैं या फिर एक छोटी प्याज को टुकड़ों में काटकर पीस लें और इसका रस निकालकर इसमें बराबर मात्रा में शहद मिलाएं। इस पेस्ट को रोजाना दिन में दो बार पीने से खांसी गायब हो जाएगी।
    खांसी से छुटकारा दिलाए हल्दी
    हल्दी प्रभावी रूप से खांसी से छुटकारा दिलाती है। हल्दी में प्रकिर्तिक चिकित्सा गुण होते हैं, जो खांसी से राहत दिलाने के लिए बहुत अच्छे हैं। एक चुटकी हल्दी में एक चम्मच शहद मिलाएं। इस पेस्ट को रोजाना दिन में दो बार लें। खांसी नियंत्रण में आ जाएगी।
    खांसी होने पर खाएं अजवाइन
    अजवाइन खांसी का अच्छा प्राकृतिक उपचार है। यह सूखी और गीली खांसी से राहत देने में बहुत उपयोगी है। थोड़े से पानी में अजवाइन को उबालकर ठंडा कर लें। इसका पानी पीएं और अजवाइन को चबा लें। खांसी से बहुत राहत मिलेगी।
    खांसी में पीएं अदरक की चाय
    खांसी होने पर अदरक की चाय पीना बहुत अच्छा होता है। इससे गले में कफ से आराम मिलता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है, जिससे संक्रमण से लड़ने की क्षमता प्रदान होती है। इसके अलावा अदरक में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं, जो श्वसन प्रणाली को संक्रमित करने वाले रोगाणुओं का नाश करने में बहुत मददगार होते हैं।
    खांसी में खाना चाहिए अनानास
    मेलीन, अनानास में स्वाभाविक रूप से पाए जाने वाले एंजाइमों का मिश्रण, जो खांसी और बलगम को दबाने में मदद कर सकता है। यदि आप खासी से जल्‍दी राहत पाना चाहते हैं तो अनानास खा सकते हैं।
    खांसी में दूध नहीं पीना चाहिए
    खांसी में दूध पीने से बचें, वो ही अच्छा है। क्योंकि दूध बलगम को बढ़ा सकता है। कोई भी डेयरी उत्पाद या दूध फेफड़े और गले सहित श्वसन पथ में बलगम का उत्पादन करता है। इसलिए खासी होने पर अपने आहार में दूध को शामिल नहीं करना चाहिए।
    खांसी होने पर खट्टे फल न खाएं
    खट्टे फल जैसे संतरा, नींबू आदि अगर आपको बेहद पसंद हैं, तो खांसी होने पर इनसे परहेज करें। क्योंकि इन फलों में साइट्रिक एसिड होता है, जो गले में जलन पैदा कर खांसी को और तेज करता है। इनकी बजाय आप उन फलों का सेवन करें, जिनमें पानी की मात्रा ज्यादा होती है, जैसे नाशपति, तरबूज, अनानास, आडू आदि खाएं।
    खांसी में कभी न पीएं जूस
    स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार खांसी होने पर भूल कर भी डिब्बाबंद जूस न पीएं। इनमें हाई शुगर इंग्रीडिएंट्स होते हैं, जो बीमारी से निपटने के लिए सफेद रक्त कोशिकाओं की क्षमता को और कम कर देते हैं। जूस में मौजूद एसिड खांसी में आपके गले को और इरीटेट कर देता है।
    खांसी में न खाएं नॉनवेज –
    अगर आपको कफ या खांसी की समस्या बढ़ गई है, तो नॉनवेज बिल्कुल न खाएं। नॉनवेज से संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। अगर लगातार खांसी हो रही है, तो जब तक यह ठीक न हो जाए, नॉनवेज से दूरी बनाए रखें।
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    सफ़ेद मूसली के आयुर्वेदिक उपयोग

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    तुलसी है कई रोगों मे उपयोगी औषधि

    27.10.19

    हाई बीपी कंट्रोल के लिए लहसुन इस तरह से खाएं




     

    अगर आपको भी इस बात की शिकायत है कि लहसुन खाने के बाद भी आपको हाई बीपी की समस्या रहती है तो आप लहसुन से शिकायत नहीं होनी चाहिए बल्कि इसे खाने के तरीके में सुधार करने की जरूरत है।
    पने अक्सर यह बात सुनी होगी कि हाई बीपी के मरीजों के लिए लहसुन खाना बहुत फायदेमंद होता है। लेकिन क्या आपको पता है कि लहसुन खाने का पूरा फायदा आपको नहीं मिल पाएगा अगर आप इसे सही तरीके से नहीं खाएंगे? जी हां, बीपी कंट्रोल में लहसुन मददगार जरूर होता है लेकिन आपको इस बात को जान लेना चाहिए कि आपको इसका इस्तेमाल कैसे करना है ताकि ब्लड प्रेशर हमेशा आपके कंट्रोल में रहे..
     अगर आपको भी इस बात की शिकायत है कि लहसुन खाने के बाद भी आपको हाई बीपी की समस्या रहती है तो आप लहसुन से शिकायत नहीं होनी चाहिए बल्कि इसे खाने के तरीके में सुधार करने की जरूरत है। लहसुन खाना शरीर के लिए फायदेमंद है, यह कई तरही की गंभीर बीमारियों से हमें बचाता है और खासतौर से हाई बीपी को कंट्रोल करता है, यह बात हम सभी जानते हैं। इसलिए गार्लिक हमारे फूड आइटम्स का अहम हिस्सा है। लेकिन अगर आप हाई बीपी को वाकई लहसुन के द्वारा कंट्रोल करना चाहते हैं तो लहसुन की एक कली को छीलकर तब तक चबाएं, जब तक वह पूरी तरह मुंह में घुल ना जाए। लहसुन की कली को यूं ही निगल लेने पर यह बीपी कंट्रोल में उतना प्रभावी नहीं रहता है, जितना मुंह में ही घुल जाने के बाद असर दिखाता है।
     इस बारे में साल 2017 में लखनऊ के केजीएमयू के फिजियॉलजी डिपार्टमेंट के डॉक्टर नरसिंह वर्मा की एक रिपोर्ट 'रिसर्च इंटर्नल मेडिसिन जर्नल ऑफ इंडिया' में पब्लिश की गई थी। इसमें डॉ. नरसिंह वर्मा ने अपने दस साल के शोध के बाद बीपी कंट्रोल करने के लिए लहसुन खाने का सही तरीका ढूंढ निकाला था। शोध में बताया गया था कि लहसुन चबाकर मुंह में ही घुल जाने दें। ऐसा एक साल तक रोज किया जाए तो ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल होगा और कोलेस्ट्रॉल लेवल भी।
     विशेषज्ञों के अनुसार, लहसुन के सेवन से शरीर में नाइट्रिक ऑक्साइड का प्रोडक्शन बढ़ जाता है। यह बॉडी मसल्स को स्मूद रखने और ब्लड को पतला रखने में मदद करता है। इससे हाईपर टेंशन कम होती है। हाईपर टेंशन के मरीजों को लहसुन बहुत अधिक फायदा पहुंचाता है। एक शोध में यह बात साबित हो चुकी है कि लहसुन के अर्क ने हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों में सिस्टोलिक और डायस्टोलिक दोनों तरह के रक्तचाप को कम जा सकता है।
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    22.10.19

    मोटापे का सबसे सुरक्षित ईलाज होमियोपेथी मे है





    ओबेसिटी, यानि मोटापे का सबसे सुरक्षित ईलाज हॉमिओपैथी है (होम्योपैथिक मेडिसिन फॉर वेट लॉस), और आसानी से घटाने का सरल नुस्के । शरीर मे चर्बी की मात्रा तेज़ी से बढ़ जाने के कारण वज़न बढ़ने लगता है। मोटापे के इस बिगड़े रूप को ओबेसिटी कहते हैं। भारत के 15% लोग मोटापा ग्रस्त हैं। ओबेसिटी शरीर रचना को बिगाड़ती है साथ साथ ये विभिन्न बीमारियों का कारण भी है। यदि आप के शरीर मे चर्बी की मात्रा अधिक है और वज़न ज्यादा है तो आपको होमियोपैथी द्वारा सुझाय गये ओबेसिटी के ईलाज पर विचार करना चहिये। ओबेसिटी के अनेक कारण हैं जैसे असंतुलित खान पान, व्यायाम ना करना, आयु, लिंग, आनुवंशिकी (genetics), मानसिक ऐवम पर्यावरण सम्बन्धी असंतुलन। ब्लड प्रेशर, डाईबिटीज,आर्थिराईटिस और दील की बीमारी जैसी अनेक बीमरीओ की जड़ मोटापा है।

    मोटापे से जुड़े तथ्य – सामान्य ईलाज vs हॉमिओपैथिक ईलाज।
    US FDA सामान्य मोटापा कम करने वाली दवाओं के सुरक्षित होने पर नकारात्मक टिप्पणी देता है।
    यूरोप की दवा कम्पनी ने अक्टूबर 2008 में रिमोनाबेंट (जो ईडोकैनाबोय्ड प्रणाली को खंड कर भूख मिटाती है) के बुरे प्रभाव देखते हुऐ, इसकी बिक्री पर रोक लगा दी।
    सिबूट्रामाइन (मेरीडिया ) दिमाग के न्यूरो ट्रांसमीटर को निष्क्रीय कर भूख मिटाती है। बाज़ारों में इसकी बिक्री पर कैनेडा और अमरीका ने रोक लगा दी है।
    और्लीस्टैट (जेनीकल या एललाई )वसा पाचन में बाधा कर उसे शरीर में जमा होने से रोकती है परंतु यह शरीर में कई ज़रूरी पोषक तत्वों के अवशोषण में बाधा करती है।
    मोटापा घटाने वाले कई OTC उत्पाद जो रेचक औषधि की तरह काम करते हैं, शरीर में पोटैशीयम के स्तर को गिरा देती है जिससे दिल और अन्य माँसपेशीओ की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
    होमिपैथिक उपचार औषधीय पौधों से बनी दवाओं पर आधारित है। यह दवाएँ शरीर के पाँच तंत्रों को ध्यान में रखकर अपना काम करती हैं। यह पाँच तंत्र हैं – भूख का संचार , पैंक्रियाटिक लाईपेज एनजाइम के प्रभाव को रोकना ,शरीर में गर्मी का संचार बढाना , लिपिड के चयापचय को बढाना , एपीडोजेनेसिस को रोकना और लाईपोसिस को बढाना।
    2015 की अंतर्रष्ट्रीय भोजन के गुण सम्बन्धी पत्रिका (International Journal of Food Properties of 2015) सुझाव देती है की औषधीय पौधों को एक निर्धारित मात्रा में लेने से मोटापे का सुरक्षित रूप से प्राकृतिक उपचार किया जा सकता है।
    होमिओपैथी द्वारा वज़न कम करने के प्रभावी तरीके
    मोटापा और वज़न घटाने का होमियोपैथिक उपचार अन्य उपचारों से अलग है। जहाँ अन्य उपचार शारीर से वसा जो पिघलाकर उसे ख़तम करते हैं, वहीँ होमियोपैथिक उपचार में शरीर के चयापचय को बढाके, भूख पे नियंत्रण कर, थाइरोइड को संतुलित कर मोटापे में सुधार लाता है।
    होमियोपैथिक उपचार शारीर के चायपचय को सुधार कर मोटापा कम करता है जिसमेशरीर अपने आप ही वसा को पिघलाकर ऊर्जा पैदा करता है।
    यह शारीर में पाचन क्रिया को सुधारता है जिससे वज़न कम होता है और शरीर सुडौल होने लगता है।
    होमियोपैथिक उपचार किसी मोटापा कम करने वाली खास डाइट के दौरान या उसके ख़तम होने के बाद तक भूख पे नियंत्रण रखता है।
    होमियोपैथिक उपचार वसा को जलाता या पिघलाता नहीं है। यदि आप वर्ज़िश के साथ साथ कम कार्बोहायड्रेट वाला आहार लेते हैं तो आप वज़न आसानी से घटा सकते हैं।
    होमिपैथी में आपका, आपके शरीर और स्वस्थ के अनुसार उपचार किया जाएगा।
    कुछ अच्छे और कारगर होमियोपैथिक उपचार हैं –
    फाईटोलाका बैरी – ऐसे होमिओपैथी में मोटापा और वज़न काम करने का एक बेजोड़ इलाज मन जाता है। यह वासा और शरीर की सूजन को कम करता है। ऐसे सिफिलिक रूमैटिज़्म के मरीज़ों के लिए सुजाया जाता है ।
    हिलैन्थुस ट्यूबेरोसुस – इस पौधे में इंसुलिन की मात्रा सामान्य से 20% अधिक है, यह ऑब्टिसपेशन को घुलने में मदद करता है।
    कैलसेरा कार्बोनिका – ये धीमें चयापचय को बढ़ाकर पेट पे जमी वसा को कम करता है। यह गोरी चमड़ी वाले मोटापा ग्रस्त मरीज़ों के लिए सुझाया गया है जिन्हें साँस लेने में दिक्कत और कब्ज़ से लेकर ज़्यादा पसीना आने तक शारीर की कमज़ोरी दर्शाने वाली सारी बीमारिया हैं। यह ऐसे मरीज़ों के लिए है जिनके खान पान की आदतें संतुलित नहीं होती है।
    नेट्रम मुर– विशेषज्ञों द्वारा ये औषदि ऐसे मरीज़ों के लिए सुझायी गयी है जिनके जांघ और कूल्हों पे अधिक वसा जमा है। ऐसे लोगो में खून की कमी, ज़्यादा गर्मी होने पर कम सेहेन्शीलता और अधिक भावुकता देखी जाती है।
    लाइकोपोडियम – यह दावा ऐसे लोगो के लिए बनाई गयी है जिन्हें गैस की दिक्कत है। ऐसे लोगो का वज़न जल्दी बर्द्धता है और उनका पेट फूल जाता है। ऐसे लोग असंतुलित और अत्यधिक आहार लेते हैं। मानसिक रूप से ऐसे इंसान का स्वभाव चिड़चिड़ा और गुस्सैल होता है। लाइकोपोडियम एक कारगर होमिपैथिक दवा है।
    फ्यूक्स वेसिकुलोसिस – थाईरॉइड ग्लैंड को उत्तेजित कर चायपचय को सुधारता है। यह उन महिलाओं, जिनके मासिक धर्म में दिक्कत है के लिए एक कारगर दावा है।
    स्पोन्जिया टोस्ता – यह अपने इओडिम को अथिरोमातेज़ वेसल के विरुद्ध कर थाइरोइड ग्लैंड को उत्तेजित करती है।
    अन्य ओबेसिटी उपचारो में शामिल है आर्जेन्टम निट्रीकम और ऐंटिमोनिम क्रूदम।
    मोटापा और वज़न काम करने के लिए होमियोपैथिक दवाई
    उत्पाद का नाम सूचित
    फिगूरिन स्लिम्मिँग ड्रॉप्स फिगूरिन , हर्बा मेड द्वारा बनायी गयी एक लोक्प्रीय दवा है, जिसे पौधों के उद्धरण से बनाया गया है. यह मोटापा का एक प्राकृतिक हॉमिओपैथिक ईलाज है | ब्रांड – बायो इंडिया आकार- 100ml, मूल्य – 1575/-
    फाइटोलाकाबेरी टैबलेट मोटापे से लड़ने का सुरक्षित और प्राकृतिक तरीका. मदद करता है प्रसव के बाद बढ़ जाने वाले वज़न को कम करने में | ब्रांड – डॉक्टर व्हिल्लमर स्च्वाबे जर्मनी, आकार- 20gms, मूल्य – 247/-
    डॉक्टर बक्शी बिना किसी परधानी वज़न कम | ब्रांड – बैकसन, आकार- 30ml, मूल्य – 125/-
    गो स्लिम A And B ड्रॉप्स यह चयापचय की गड़बड़ी को दूर करती है । थाइरोइड की गड़बड़ी या मासिक धर्म रुक जाने के बाद बढ़ने वाले वज़न को भी कम करती है | ब्रांड – व्हीज़ल्स, आकार- 30ml, मूल्य – 150/-
    फाइटोलाकाबेरी टैबलेट विनियमित करता है चयापचय को जिससे कम होता है वज़न और मोटापा | ब्रांड – भार्ग्वा, आकार- १० टॅबलेट का ब्लिस्टर पैक*3, मूल्य – 125/-
    फाइटोस्लिम ड्रॉप्स वज़न घटने का होमियोपैथिक नुस्खा | ब्रांड – फोउनट्स, आकार- 30ml, मूल्य – 120/-
    फाइटोफिट फोर्टे ड्रॉप्स इसका अनोखा फॉर्मूला चायपचय को तेज़ कर एड़ीपोज़ कोशिकाओं को ऑक्सीडाइज करता है। इससे सम्बया से ज़्यादा गति से वज़न काम होने लगता है। ब्रांड – मेडिसिन्थ, आकार- 30ml, मूल्य – 150/-
    फाइटोलाकाबेरी टैबलेट मोटापे और बढ़ते वज़न का ईलाज. यह शरीर की पचन क्रिया को भडाता है, खाना ठीक से हजम होता है और उचित मलत्याग होने से शरीर में चर्बी संचय का रोक्दाम होजाता है | ब्रांड – एस.बी.एल , आकार- 25gm/450gm, मूल्य – 125/875
    डॉक्टर रिक्वेग आर ५९ बूंदे,ओबेसिटी एंड ओवर वेट ट्रीटमंट वज़न घटने का जाना मन इलाज,गोइटर के इलाज में भी सहायक। ब्रांड – डॉक्टर रिक्वेग, आकार- 22ml, मूल्य – 200/-
    B- ट्रिम ड्रॉप्स एस.बी.एल बी-ट्रिम मोटापे से लड़ने वली नैदानीक रूप से सिद्ध की गयी दवा है जो बनी है संतुलित हॉमिओपैथी सामग्री से | ब्रांड – एस.बी.एल, आकार- 30ml, मूल्य – 145/-
    डी ३५ फिगुरेल ड्रॉप्स नियंत्रण करता है ज्यादा खाना खाने की चाह और कम करता है सुस्ती जैसी आदत को | ब्रांड – डोलिओसिस, आकार- 30ml, मूल्य – 120/-
    एलन ए ३९ ड्रॉप्स – अंटी ओबीसिटी गोइटर , ओबीसिटी , जल्दी मोटा होने की बीमारी, ग्लैन्डुलर सिक्रिषन की खराबी से | ब्रांड – एलेन, आकार- 30ml, मूल्य – 125/-
    बौलुमे 13-फैटोसैन ड्रॉप्स गौइटर , मोटापे और ठंड से जल्दी बीमार पड़ जाने वाले वाले लोगो में जिगर की बेमरीओ से लड़ के मोटापा कम करती है | ब्रांड – बायो फोर्स Ag स्व्हिटज़रलैण्ड, आकार- 30ml, मूल्य – 100/-
    स्लिमेर्क्स स्लिम्मिँग ड्रॉप्स आदर्श है प्रसव के बाद आने वाले मोटापे ,सुस्ती और बेडौल बदन से परेशान लोगों | ब्रांड – लॉर्ड्स, आकार- 30ml, मूल्य – 165/-
    आईसोट्रोपिन डाईट ओरल स्प्रे एक नयी और क्रांतिकारी हॉमिओपैथिक दवा है जिसमे ह्यूमन ग्रोथ हॉरमोंन यानि HGH है | यह मोटापे को शीघ्र कम करने में मदद करता है.यह मनोदशा को ठीक करता है और ऊर्जा को बढाता है. यह मँस्पेशिओ के आकार को भी बढ़ाता है | ब्रांड – न्यूटन एव्रेट्ट बायोटेक, आकार- 30ml, मूल्य – 3036/-
    फैटेक्स ड्रॉप्स अडेल फैटेक्स ड्रॉप्स ओबीसिटी ईलाज अडेल 13 (सहायक है मोटापा ग्रस्त मरीजों का चयापचय ठीक करने के लिये ) ब्रांड -अडेल, आकार- 20ml, मूल्य – 215/-
    वज़न कम करने के लिए व्हीजल फिटोलाका बेरी टेबलेट्स वज़न कम करने के लिए व्हीजल फिटोलाका बेरी होम्योपैथिक टेबलेट्स मोटापा की जांच के लिए एक इष्टतम सहायता पोस्ट वितरण वजन है। इसमें फिटोलाका बेरी क्यू शामिल हैं। खुराक: १ से २ गोलियां, भोजन से पहले दिन में ३-४ बार या चिकित्सक द्वारा निर्धारित अनुसार।
    हॅनमेन फार्मा स्लिम ट्रिम ड्रॉप्स मोटापा अधिक वजन के लिए यह स्पष्ट शरीर के वजन, आकार उभरा, सुस्त स्वभाव और आलसी व्यवहार, आसानी से थका हुआ है और थोड़े से प्रयास में थके हुए को भी कम कर देता है। इसमें फुकस वेसिकुलस २x १०%, फिटोलाका बेरी ३x १५%, अमोनियम ब्रोम २x २%, पल्सेटिला क्यू ५%, थायरॉइडिनम ६x २%, डीएम वॉटर एंड एक्सीपीएन्ट्स q.s. १००% v/v, शराब सामग्री १६.६५%। खुराक: १५-२० बूंदों को आधे कप पानी के साथ, भोजन से २० मिनट पहले दिन में तीन बार। या चिकित्सक द्वारा निर्देशित अनुसार।
    डॉ राज फिटोट्रिम ड्रॉप्स, होम्योपैथिक स्लिमिंग ड्रॉप्स डॉ. राज फिटोट्रिम स्लिमिंग ड्रॉप्स, मोटापे के लिए रुक जाती हैं थकान के बिना वजन कम करता है और स्वस्थ वजन रखता है। इसमें फिटोलाका बेरी क्यू, काली कार्ब. ३०, फुकस वी. क्यू, ग्राफिट्स ३० शामिल हैं। खुराक: वयस्क २०-३० बूंदों को १/४ कप पानी के साथ दिन में ३-४ बार या चिकित्सक द्वारा निर्देशित अनुसार।
    भार्गव फिटोलाका बेरी टेबलेट शारीरिक वजन को नियंत्रित करता है यह शरीर कि एडीएमई (अवशोषण, पाचन, चयापचय और उत्सर्जन) प्रक्रिया को प्रभावित और नियंत्रित करके शरीर के वजन को कम करता है। चयापचय को उत्तेजित करता है। एक विषहारी एजेंट के रूप में कार्य करता है। वजन को कम करने और उसे बनाए रखने में मदद करता है। इसमें फिटोलाका बेरी क्यू शामिल है। खुराक: १ गोली, दिन में २ बार या चिकित्सक द्वारा निर्देशितअनुसार।
    वशिष्ठ फिटोलाका बेरी १एक्स टेबलेट्स मोटापा: दर्द, पीड़ा, बेचैनी, सताएं गर्मी और सूजन के साथ ग्लैंडुलर सूज। ओसेअस और रेशेदार ऊतकों पर एक शक्तिशाली प्रभाव है पुरानी गठिया भार १०० टेबलेट्स कम करें, एमआरपी: १२०/-
    मोटापा और उसे घटाने से जुड़े सवाल (FAQ)
    मिथक सच्चाई
    नाश्ता और रात का भोजन ना करने से वज़न कम होता है. रात का भोजन या नाश्ता ना करने से वज़न कम नहीँ होता है. भोजन ना करने से हमारे शरीर का चयापचय बिगड़ जाता है और वज़न और भी तेज़ी से बढ़ने लगता है.
    क्या चावल खाने से वज़न बढ़ता है ? चावल का मोटापे से कोई सम्बन्ध नहीँ है. हमें ज्यादातर स्थानीय स्तर पर उगाये जाने वाले अनाज का सेवन करना चहिये. दक्षिण भारत के राज्य जैसे कर्नाटक ऐवम आंध्रप्रदेश में चावल भारी मात्रा में खाया जाता है.जब्कि उत्तर भारत के राज्य जैसे पंजाब और लखनऊ में चावल से ज्यादा गेहूँ का सेवन होता है.
    हमारे शरीर को 70% तक कार्बोहाईड्रेट की आवश्यकता होती है. चावल कार्बोहाईड्रेट का एक अच्छा स्रोत है और यह शरीर में आसानी से पच जाता है.
    टी.एस.एच होर्मोन की कमी मोटापे को बढ़ावा देती है. यह एक बहुत बड़ा मिथक है. टी.एस.एच का गिरा हुआ स्तर वज़न नहीँ बढ़ाता है. होर्मोन के स्तर में गिरावट या बढ़ोत्री एक सामान्य सी बात है. होर्मोन का स्तर शारीरिक कारकों की वजह से घटता और बढ़ता है. कई मरीजों की टी.एस.एच संख्या 150 के आंकड़े को पार कर जाती है परंतु उनके वज़न में कोई बढोत्रि नहीँ हुई
    मूँगफली का तेल सेहत के लिये हानिकारक है और तेल भरा भोजन खाने से कोलेस्ट्रोल बढ़ता है. मूँगफली का तेल बायो फ्लैविनॉइड्ज से भरपूर है. मूँगफली का तेल असल में कोलेसट्राल घटाता है. रिफाइन किये हुए तेल के प्रयोग से शरीर में कोलेसट्राल का स्तर बढ़ता है.
    भारत में जैतून और सोया बीन से ज्यादा तेल निकालने के लिये मूँगफली की खेती होती है. मूँगफली का तेल प्रोटीन , वसा और कई विटामिन से भरपूर होता है.
    जिम जाना या ट्रेडमिल पे वर्जिश करना चलने की तुलना में ज्यादा वज़न घटाता है. सुबह की सैर ना केवल कैलोरि घटाति है बल्कि मन्न को चिन्ता मुक्त्त कर होर्मोन के स्तरों को भी ठीक करती है.
    सुबह की सैर पर जाकर हम ऑक्सीजन भरी वायु में साँस लेते है, यह हमारे अंतर मन में भरी चिंताओं को दूर कर मोटापे को कम करने में मदद करता है.
    क्या दूध,अंडे और मेवों के सेवन से वज़न बढ़ता है ? दूध कैलशियम, प्रोटीन और विटामिन B12 का एक मुख्य स्रोत है. दूध में वसा होती है जो हमारे शरीर के लिये ज़रूरी है. मेवों में रेशा, प्रोटीन और आवश्यक वसा होती है. पोषण प्राकृतिक आहार से लें ना की बाज़ार में आने वाले सप्प्लीमेन्ट्स से.
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    14.10.19

    इलेक्ट्रोपैथी को सरकार ने दी मान्यता/Electropathy recognised




    इलेक्ट्रोपैथी को सरकार ने दी मान्यता विधेयक पारित, डाॅक्टर कर सकेंगे इलाज /
     इलेक्ट्रोपैथी को सरकार ने दी मान्यता विधेयक पारित, डाॅक्टर कर सकेंगे इलाज

    Kishangarh News - भास्कर न्यूज| मदनगंज-किशनगढ़ आयुर्वेदिक ऐलोपैथिक चिकित्सा की तरह अब इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सा पद्धति से जुड़े...

    Bhaskar News Network

    Apr 02, 2018, 05:05 AM IST
    इलेक्ट्रोपैथी को सरकार ने दी मान्यता िवधेयक पारित, डाॅक्टर कर सकेंगे इलाज

    भास्कर न्यूज| मदनगंज-किशनगढ़
    आयुर्वेदिक ऐलोपैथिक चिकित्सा की तरह अब इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सा पद्धति से जुड़े चिकित्सक इलाज कर सकेंगे। सालों से चली आ रही इस चिकित्सा पद्धति को अब तक मान्यता नहीं थी। हाल ही में इस चिकित्सा पद्धति को राजस्थान सरकार ने आयुर्वेद, एलोपैथी, होम्याेपैथी, यूनानी के समकक्ष मानते हुए मान्यता दी है। विधानसभा में इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सा पद्धति विधेयक 2018 पारित किया है। इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सा परिषद के डॉ. देवराज पुरोहित, डॉ. योगेंद्र पुरोहित ने बताया कि इसके लिए राजस्थान इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सा पद्धति बोर्ड का गठन किया जाएगा। जो चिकित्सा पद्धति के विकास, शिक्षा, चिकित्सा व रिसर्च की दिशा में कार्य करेगा। राजस्थान पहला ऐसा प्रदेश है जहां इस चिकित्सा पद्धति को मान्यता मिली है।
    25 से ज्यादा इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सक: इस पद्धति से इलाज करने वाले चिकित्सक उपखंड में 25 से ज्यादा और प्रदेश में दो से ढ़ाई हजार है। ये चिकित्सक 16 साल से मान्यता के लिए प्रयास कर रहे हैं।
    क्या है चिकित्सा पद्धति: डॉ. देवराज पुरोहित के अनुसार इलेक्ट्रोपैथी में दवाओं का निर्माण नॉन पॉइजन वनस्पति से किया जाता है, करीब 114 पौधों से इसकी दवा बनती है। इलेक्ट्रो का अर्थ शरीर में पाए जाने वाली धनात्मक व ऋणात्मक शक्ति है, होम्यो का अर्थ समानता एव पैथी का अर्थ चिकित्सा व सिद्धांत से है। अत: इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से मनुष्य में असामान्य शक्ति को पेड़-पौधों से प्राप्त रस में उपस्थित धनात्मक व ऋणात्मक शक्तियों के द्वारा समान किया जाता है।
    सरकार ने बनाई कमेटी: इस चिकित्सा पद्धति की मान्यता के लिए सरकार के द्वारा वैज्ञानिक एवं विधिक विश्लेषण कमेटी का गठन किया था। विशेषज्ञों ने इसका इतिहास, पद्धति का परिचय, सिद्धांत गुण, अवगुण, इलेक्ट्रोपैथी साहित्य पर जांच के बाद कमेटी ने मत रखा कि यह चिकित्सा पद्धति सरल, सुलभ है जिसका साइड इफेक्ट नहीं है।
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