15.8.19

दारुहरिद्रा है गुणों का खजाना-daru haridra benefits




  दारुहल्दी एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है | इसे दारुहरिद्रा भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है हल्दी के समान पिली लकड़ी | इसका वृक्ष अधिकतर भारत और नेपाल के हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते है | इसके वृक्ष की लम्बाई 6 से 18 फीट तक होती है | पेड़ का तना 8 से 9 इंच के व्यास का होता है | भारत में दारूहल्दी के वृक्ष अधिकतर समुद्रतल से 6 – 10 हजार फीट की ऊंचाई पर जैसे – हिमाचल प्रदेश, बिहार, निलगिरी की पहाड़ियां आदि जगह पाए जाते है |

दारुहरिद्रा (वानस्पतिक नाम:Berberis aristata) एक औषधीय जड़ी बूटी है। दारुहरिद्रा के फायदे जानकर आप हैरान हो जाएगें। इसे दारू हल्दी के नाम से भी जाना जाता हैं । यह मधुमेह की चिकित्सा में बहुत उपयोगी है। यह ऐसी जड़ी बूटी है जो कई असाध्‍य स्‍वास्‍थ्‍य सस्‍याओं को प्रभावी रूप से दूर कर सकती है। दारू हल्दी का पौधा भारत और नेपाल के पर्वतीय हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह श्रीलंका के कुछ स्थानों में भी पाया जाता है। दारुहरिद्रा के फायदे होने के साथ ही कुछ सामान्‍य नुकसान भी होते हैं। दारुहरिद्रा को इंडियन बारबेरी (Indian barberry) या ट्री हल्‍दी (tree turmeric) के नाम से भी जाना जाता है। यह बार्बरीदासी परिवार से संबंधित जड़ी बूटी है। इस जड़ी बूटी को प्राचीन समय से ही आयुर्वेदिक चिकित्‍सा प्रणाली में उपयोग किया जा रहा है।
दारुहरिद्रा के फायदे लीवर सिरोसिस, सूजन कम करने, पीलिया, दस्‍त का इलाज करने, मधुमेह को नियंत्रित करने, कैंसर को रोकने, बवासीर का इलाज करने, मासिक धर्म की समस्‍याओं को रोकने आदि में होते हैं। 
आयुर्वेदिक मतानुसार दारुहल्दी गुण में लघु , स्वाद में कटु कषाय, तिक्त तासीर में गर्म, अग्निवद्धक, पौष्टिक, रक्तशोधक, यकृत उत्तेजक, कफ नाशक, व्रण शोधक, पीड़ा, शोथ नाशक होती है। यह ज्वर, श्वेत व रक्त प्रदर, नेत्र रोग, त्वचा विकार, गर्भाशय के रोग, पीलिया, पेट के कृमि, मुख रोग, दांतों और मसूड़ों के रोग, गर्भावस्था की जी मिचलाहट आदि में गुणकारी है।
यूनानी चिकित्सा पद्धति में दारुहल्दी दूसरे दर्जे की सर्द और खुश्क तथा जड़ की छाल पहले दर्जे की गर्म और खुश्क मानी गई है। इसके फल जरिश्क, यूनानी में एक उत्तम औषधि मानी गई है। यह आमाशय, जिगर और हृदय के लिए बलवर्द्धक है। इसके सेवन से जिगर और मेदे की खराबी से दस्त लगना, मासिक धर्म की अधिकता, सूजन, बवासीर के कष्टों में आराम मिलता है।

दारुहरिद्रा की तासीर

दारुहरिद्रा की तासीर गर्म होती है जिसके कारण यह हमारे पाचन तंत्र के अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य में मदद करता है। इसके अलावा दारुहरिद्रा में अन्‍य पोषक तत्‍वों और खनिज पदार्थों की भी उच्‍च मात्रा होती है। जिसके कारण यह हमारे शरीर को कई स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से बचाता है।

दारुहरिद्रा के अन्‍य नाम

दारुहरिद्रा एक प्रभावी जड़ी बूटी है जिसे अलग-अलग स्‍थानों पर कई नामों से जाना जाता है। दारुहरिद्रा का वान‍स्‍पतिक नाम बर्बेरिस एरिस्‍टाटा डीसी (Berberis aristata Dc) है जो कि बरबरीदासी (Berberidaceae) परिवार से संब‍ंधित है। दारुहरिद्रा के अन्‍य भाषाओं में नाम इस प्रकार हैं :
अंग्रेजी नाम – इंडियन बारबेरी (Indian berberi)
हिंदी नाम – दारु हल्‍दी (Daru Haldi)
तमिल नाम – मारा मंजल (Mara Manjal)
बंगाली नाम – दारुहरिद्रा (Daruharidra)
पंजाबी नाम – दारू हल्‍दी (Daru Haldi)
मराठी नाम – दारुहलद (Daruhalad)
गुजराती नाम – दारु हलधर (Daru Haldar)
फारसी नाम – दारचोबा (Darchoba)
तेलुगु नाम – कस्‍तूरीपुष्‍पा (Kasturipushpa)

दारुहरिद्रा के फायदे

पोषक तत्वों और खनिज पदार्थों की उच्‍च मात्रा होने के कारण दारुहरिद्रा के फायदे हमारे बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य के लिए होते हैं। यह ऐसी जड़ी बूटी है जो उपयोग करने पर कई जटिल स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को आसानी से दूर कर सकती है। आइए विस्‍तार से समझें दारुहरिद्रा के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ और उपयोग करने का तरीका क्‍या है।

रसौत के लाभ बवासीर के लिए

दारुहरिद्रा या रसौत के फायदे बवासीर के लिए भी होते हैं। बवासीर की समस्‍या किसी भी व्‍यक्ति के लिए बहुत ही कष्‍टदायक होती है। इसके अलावा रोगी इस बीमारी के कारण बहुत ही कमजोर हो जाता है। क्‍योंकि इस दौरान उनके शरीर में रक्‍त की कमी हो सकती है। लेकिन इस समस्‍या से बचने के लिए दारुहरिद्रा के फायदे होते हैं। दारुहरिद्रा में ब्‍लीडिंग पाइल्‍स का उपचार करने की क्षमता होती है। बवासीर रोगी को नियमित रूप से इस जड़ी बूटी को मक्‍खन के साथ 40-100 मिलीग्राम मात्रा का सेवन करना चाहिए। दारुहरिद्रा के यह लाभ इसमें मौजूद एंटीआक्‍सीडेंट, जीवाणुरोधी, एंटीफंगल और एंटीवायरल गुणों के कारण होते हैं। ये सभी गुण बवासीर के लक्षणों को कम करने और शरीर को अन्‍य प्रकार के संक्रमण से बचाने में सहायक होते हैं।

आंखों के लिए

आप अपनी आंखों को स्‍वस्‍थ्‍य रखने और देखने की क्षमता को बढ़ाने के लिए दारु हल्‍दी का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। औषधीय गुणों से भरपूर दारुहरिद्रा को आंखों के संक्रमण दूर करने में प्रभावी पाया गया। इसके लिए आप दारुहरिद्रा को मक्‍खन, दही या चूने के साथ मिलाएं और आंखों की ऊपरी क्षेत्र में बाहृ रूप से लगाएं। यह आंखों की बहुत सी समस्‍याओं को दूर कर सकता है। यदि आप आंख आना या कंजंक्टिवाइटिस से परेशान हैं तो दूध के साथ इस जड़ी बूटी को मिलकार लगाएं। यह आंख के संक्रमण को प्रभावी रूप से दूर कर नेत्रश्‍लेष्‍म को कम करने में मदद करती है।

दारुहरिद्रा के फायदे मधुमेह के लिए

यदि आप मधुमेह रोगी हैं तो दारुहरिद्रा जड़ी बूटी आपके लिए बहुत ही फायदेमंद हो सकती है। क्‍योंकि इस पौधे के फलों में रक्‍त शर्करा को कम करने की क्षमता होती है। नियमित रूप से उपयोग करने पर यह आपके शरीर में चयापचय एंजाइमों को सक्रिय करता है। जिससे आपके रक्‍त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है। आप भी अपने आहार में दारुहरिद्रा और इसके फल को शामिल कर मधुमेह के लक्षणों को कम कर सकते हैं।

बुखार ठीक करे

जब शरीर का तापमान अधिक होता है या बुखार की संभावना होती है तो दारुहरिद्रा का उपयोग लाभकारी होता है। इस दौरान इस जड़ी बूटी का सेवन करने से शरीर के तापमान को कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा यह शरीर में पसीने को प्रेरित भी करता है। पसीना निकलना शरीर में तापमान को अनुकूलित करने का एक तरीका होता है। साथ ही पसीने के द्वारा शरीर में मौजूद संक्रमण और विषाक्‍तता को बाहर निकालने में भी मदद मिलती है। इस तरह से दारुहरिद्रा का उपयोग बुखार को ठीक करने में मदद करता है। रोगी को दारुहरिद्रा के पौधे की छाल और जड़ की छाल को मिलाकर एक काढ़ा तैयार करें। इस काढ़े को नियमित रूप से दिन में 2 बार सेवन करें। यह बुखार को कम करने का सबसे बेहतरीन तरीका हो सकता है।

दस्‍त के इलाज में

आयुर्वेद और अध्‍ययनों दोनों से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि दारुहरिद्रा जड़ी बूटी दस्‍त जैसी गंभीर समस्‍या का निदान कर सकती है। शोध के अनुसार इस जड़ी बूटी में ऐसे घटक मौजूद होते हैं जो पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर कर सकते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद एंटीबैक्‍टीरियल और एंटीमाइक्रोबियल गुण पेट में मौजूद संक्रामक जीवाणुओं के विकास और प्रभाव को कम करते हैं। जिससे दस्‍त और पेचिश जैसी समस्‍याओं को रोकने में मदद मिलती है। आप सभी जानते हैं कि दूषित भोजन और दूषित पानी पीने के कारण ही दस्‍त और पेचिश जैसी समस्‍याएं होती है। लेकिन इन समस्‍याओं से बचने के लिए दारुहरिद्रा जड़ी बूटी फायदेमंद होती है। दस्‍त का उपचार करने के लिए इस जड़ी बूटी को पीसकर शहद के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करना चाहिए।
बेनिफिट्स फॉर स्किन
अध्‍ययनों से पता चलता है कि दारुहरिद्रा में त्‍वचा समस्‍याओं को दूर करने की क्षमता भी होती है। आप अपनी 

त्वचा समस्‍याओं जैसे मुंहासे

, घाव, अल्‍सर आदि का इलाज करने के लिए दारुहरिद्रा जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। ऐसी स्थितियों का उपचार करने के लिए आप इस पौधे की जड़ का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

सूजन के लिए

अध्‍ययनों से पता चलता है कि सूजन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए दारुहरिद्रा फायदेमंद होती है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में एंटीऑक्‍सीडेंट और एंटी-इंफ्लामेटरी गुण होते हैं। जिनके कारण यह सूजन और इससे होने वाले दर्द को प्रभावी रूप से कम कर सकता है। अध्‍ययनों से यह भी पता चलता है कि यह गठिया की सूजन को दूर करने में सक्षम होता है। सूजन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए आप दारू हल्‍दी का पेस्‍ट बनाएं और प्रभावित जगह पर लगाएं। ऐसा करने से आपको सूजन और दर्द से राहत मिल सकती है।

कैंसर से बचाव

दारुहरिद्रा या रसौत में कैंसर कोशिकाओं को रोकने और नष्‍ट करने की क्षमता होती है। क्‍योंकि यह जड़ी बूटी एंटीऑक्‍सीडेंट से भरपूर होती है। कैंसर का उपचार अब तक संभव नहीं है लेकिन आप इसके लक्षणों को कम कर सकते हैं। कैंसर के मरीज को नियमित रूप से दारुहरिद्रा और हल्‍दी के मिश्रण का सेवन करना चाहिए। क्‍योंकि इन दोनो ही उत्‍पादों में कैंसर विरोधी गुण होते हैं। जो ट्यूमर के विकास को रोकने में सहायक होते हैं। इस तरह से दारुहरिद्रा का सेवन करने के फायदे कैंसर के लिए प्रभावी उपचार होते हैं।
ऊपर बताए गए लाभों के अलावा भी इस जड़ी बूटी के अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य लाभ होते हैं जो इस प्रकार हैं :
और भी स्वास्थ्य लाभ हैं दारूहरिद्रा के-
इसका उपयोग घावों की त्‍वरित चिकित्‍सा के लिए भी किया जाता है। इस औषधीय जड़ी बूटी के पेस्‍ट को फोड़ों, अल्सर आदि में उपयोग किये जाते हैं।
शारीरिक मांसपेशियों के दर्द को कम करने के लिए भी इस जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल किया जाता है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में दर्द निवारक गुण होते हैं जो ल्‍यूकोरिया (leucorrhoea) और मेनोरेजिया (menorrhagia) जैसी समस्‍याओं के लिए लाभकारी होते हैं।
पीलिया के उपचार में भी यह जड़ी बूटी आंशिक रूप से मददगार होती है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी का उपयोग करने से शरीर में मौजूद विषाक्‍तता को दूर करने में मदद मिलती है। यह यकृत को भी विषाक्‍तता मुक्‍त रखती है और पीलिया के लक्षणों और संभावना को कम करती है।
दारुहरिद्रा में कैंसर के लक्षणों को कम करने की क्षमता होती है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में एंटीकैंसर गुण होते हैं। जिसके कारण इसका नियमित सेवन करने से पेट संबंधी कैंसर की संभावना को कम किया जा सकता है।
कान के दर्द को कम करने के लिए भी दारू हल्‍दी लाभकारी होती है। इसके अलावा यह कान से होने वाले स्राव को भी नियंत्रित कर सकती है।
पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए इस औषधी का नियमित सेवन किया जाना चाहिए। यह आपकी भूख को बढ़ाने और पाचन तंत्र को मजबूत करने में प्रभावी होती है।
कब्‍ज जैसी पेट संबंधी समस्‍या के लिए दारुहरिद्रा का इस्‍तेमाल फायदेमंद होता है।
बुखार होने पर इसकी जड़ से बनाये गए काढ़े को इस्तेमाल करने से जल्द ही बुखार से छुटकारा मिलता है |
दालचीनी के साथ दारू हल्दी को मिलाकर चूर्ण बना ले | इस चूर्ण को नित्य सुबह – शाम 1 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ उपयोग करने से महिलाओं की सफ़ेद पानी की समस्या दूर हो जाती है |
अगर शरीर में कहीं सुजन होतो इसकी जड़ को पानी में घिसकर इसका लेप प्रभावित अंग पर करने से सुजन दूर हो जाती है एवं साथ ही दर्द अगर होतो उसमे भी लाभ मिलता है | इस प्रयोग को आप घाव या फोड़े – फुंसियों पर भी कर सकते है , इससे जल्दी ही घाब भर जाता है |
इसका लेप आँखों पर करने से आँखों की जलन दूर होती है |
दारुहल्दी के फलों में विभिन्न प्रकार के पूरक तत्व होते है | यह वृक्ष जहाँ पाया जाता है वहां के लोग इनका इस्तेमाल करते है , जिससे उन्हें विभिन्न प्रकार के पौषक तत्वों के सेवन से विभिन स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते है 
पीलिया रोग में भी इसका उपयोग लाभ देता है | इसके फांट को शहद के साथ गृहण लाभ देता है |
मधुमेह रोग में इसका क्वाथ बना कर प्रयोग करने से काफी लाभ मिलता है |
इससे बनाये जाने वाले रसांजन से विभिन्न रोगों में लाभ मिलता है
************

13.8.19

पेट में गैस के आयुर्वेदिक ,घरेलू समाधान



पेट से संबंधित कई तरह की समस्याओं में पेट में गैस बनना एक आम समस्या है। छोटी उम्र से लेकर युवाओं और बुजुर्गों तक, हर उम्र के व्यक्ति को कभी न कभी इस समस्या का सामना करना पड़ा है। पेट में गैस बनने के कई कारण हो सकते हैं जैसे अत्यधिक भोजन करना, ज्यादा देर तक भूखे रहने, तीखा या चटपटा भोजन करना, ऐसा भोजन करना जो पचने में कठि‍न हो, ठीक तरीके से चबाकर न खाना, ज्यादा चिंता करना, शराब पीना, कुछ बीमारियों व दवाओं के सेवन के कारण भी पेट में गैस सकती है।
अस्वस्थ खान-पान और गलत दिनचर्या की वजह से पेट में गैस बनने की समस्या लगभग हर किसी को है। आए दिन लोगों को पेट में गैस बनने लगती है। विशेषज्ञों के अनुसार गैस बनना या पेट फूलना एक सामान्य बात है। ज्यादातर लोगों के साथ यह समस्या है। लेकिन अगर आप नियमित रूप से इससे पीडि़त हैं, तो यह लैक्टोज असहिष्णुता, हार्मोनल असंतुलन या किसी प्रकार की आंत्र रूकावट जैसे गंभीर विकार का संकेत भी हो सकता है। पेट में गैस की समस्या से बचने के लिए दवाओं के बजाय प्राकृतिक व आयुर्वेदिक उपायों का सहारा लेना अच्छा होता है। 
पेट में गैस या अपच कोई बीमारी नहीं है, बल्कि ये पाचन क्रिया का ही एक हिस्सा है। यह एक ऐसी स्थिति है, जहां आपके पाचन तंत्र में अतिरिक्त गैस जमा हो जाती है। पेट में गैस बनने की समस्या से निपटने के लिए ये समझना जरूरी है कि ऐसा होता क्यों है। गैस आपके पाचन तंत्र में दो तरह से जमा हो सकती है। भोजन करते या पीते समय आप हवा को निगलते हैं, जिससे ऑक्सीजन और नाइट्रोजन आपके शरीर में प्रवेश करती है। दूसरा महत्वपूर्ण कारण है, जब आप भोजन को पचाते हैं, तब हाइड्रोजन, मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें उत्सर्जित होती हैं और पेट में जमा हो जाती हैं। यदि यह ज्यादा मात्रा में है, तो बहुत असुविधा पैदा कर सकती है।
पेट में गैस या अपच होना काफी कुछ आपके दैनिक भोजन विकल्पों पर भी निर्भर करता है। खासतौर से सेम, पत्तागोभी, छोले या दाल जैसे खाद्य पदार्थ आसानी से पच नहीं पाते हैं। ये बृहदांत्र से गुजरते हैं, जिसमें बहुत सारे बैक्टीरिया होते हैं, जो गैसों को जारी करते समय भोजन को तोड़ने में मदद करते हैं, जिससे आप असहज महसूस कर सकते हैं। कुछ मामलों में गैस गुदा से होकर गुजरती है, तो उस पर मौजूद बैक्टीरिया सल्फर मिलाते हैं, जिससे गैस में गंध बढ़ जाती है। पेट में गैस कभी-कभी दर्द के साथ हो सकती है या नहीं भी हो सकती। 
पेट की गैस की समस्या से बचने के लिए दवा लेना सही है, लेकिन इससे समस्या जड़ से खत्म नहीं होगी। इसके लिए अच्छा है कि आप घरेलू उपायों को अपनाएं। इसके दो फायदे हैं। एक तो यह आपके घर में ही मौजूद हैं, जिससे आपका जेब खर्च नहीं बढ़ेगा, वहीं अन्य दवाओं की तरह इसके कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है। तो नीचे जानते हैं पेट की गैस को भगाने के कुछ असरदार घरेलू नुस्खों के बारे में।


जीरे का पानी

जीरा पानी गैस्ट्रिक या गैस की समस्या को जड़ से खत्म करने का सबसे अच्छा आयुर्वेदिक उपाय है। दरअसल, जीरे में मौजूद आवश्यक तेल, लार ग्रंथियों को उत्तेजित कर भोजन के बेहतर पाचन में मददगार होता है। इसके साथ ही यह अतिरिक्त गैस बनने से रोकता भी है। अगर आप पेट की गैस से राहत पाना चाहते हैं, तो 1 चम्मच जीरा को दो कप पानी में 10-15 मिनट के लिए उबालें। इसे ठंडा होने दें और खाना खाने के बाद इस पानी को पीएं। ऐसा करने से पेट में गैस की समस्या का समाधान जल्दी हो जाएगा।
अजवाइन
आयुर्वेद में अजवाइन को बहुत असरदार बताया गया है। पेट की गैस के लिए अजवाइन बहुत अच्छा आयुर्वेदिक उपचार है। अगर आपके पेट में गैस बन जाती है, तो गर्म पानी के साथ एक चम्मच अजवाइन लें, इससे एसिडिटी से तुरंत राहत मिल जाएगी। दरअसल, अजवाइन में थाइमोल नामक एक यौगिक होता है, जो गैस्ट्रिक रस को स्त्रावित करता है, जो पाचन में आपकी मदद करता है। अगर आपको गैस की समस्या अक्सर ही रहती है, तो आप रोजाना दिन में कभी भी एक बार इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। आप पहले से बेहतर महसूस करेंगे।
अदरक
अगर आपके पास में जब चाहे गैस बनती है, तो अदरक एक बेहतर आयुर्वेदिक दवा है। पेट में गैस की समस्या से बचने के लिए एक चम्मच ताजा अदरक को किस लें और इसे एक चम्मच नीम्बू के रस के साथ खाना खाने के बाद लें। गैस से राहत पाने के लिए अदरक की चाय पीना भी एक प्रभावी घरेलू उपाय है। आपको बता दें कि अदरक एक नेचुरल कार्मिनेटिव एजेंट (पेट फूलने से राहत देने वाला एजेंट के रूप में कार्य करता है) है। इसलिए पेट में गैस से बचने के लिए अपनी दिनचर्या में भी आप अदरक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
नींबू का रस
पेट में बनने वाली ज्यादा गैस को कम करने के लिए नींबू का रस और बेकिंग सोडा एक सरल उपाय है। गैस की समस्या से राहत पाने के लिए 1 चम्मच नींबू का रस और आधा चम्मच बेकिंग सोडा को एक कप पानी में घोलें। खाना खाने के बाद इसे पीएं। बता दें कि यह कार्बन डाईऑक्साइड बनाने में आपकी मदद करता है, जिससे पाचन प्रक्रिया भी सुगम बनती है।
इलायची
कई लोगों को खाना खाने के तुरंत बाद गैस बनने लगती है, जिससे उनका पेट फूलने लगता है। कई लोगों को इस दौरान बेचैनी भी होने लगती है। गैस को चुटकियों में भगाने के लिए इलायची बेहतर आयुर्वेदिक व घरेलू उपाय है। इसका इस्तेमाल करने के लिए एक पिसी हुई इलायची को हींग, सूखे अदरक और काले नमक के साथ पांच ग्राम के बराबर अनुपात में मिलाएं। अगर आपको पेट में गैस अक्सर बनती है, तो इस मिश्रण को दिन में दो से तीन बार गुनगुने पानी के साथ लें। गैस बनने से रूक जाएगी और आपको राहत महसूस होगी।
पुदीना
पेट में यदि गैस बन रही हो, तो तुरंत पुदीने का देसी नुस्खा अपना लें। ये तो सभी जानते हैं कि पुदीना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसका सेवन कर लिया जाए, तो बहुत सी परेशानियों से निजात पाई जा सकती है। अगर आपके पेट में गैस बनती है, तो पुदीने का जूस या पुदीने की चटनी खाएं। बहुत आराम मिलेगा।
सेब का सिरका
सही समय पर खाना न खाने से भी पेट में गैस की समस्या बनी रहती है। इसके लिए सेब का सिरका बेहतर घरेलू उपचार माना जाता है। इसका इस्तेमाल करने के लिए गुनगुने पानी में दो चम्मच सेब का सिरका मिलाकर पीएं। स्वाद में थोड़ा खट्टा जरूर लगेगा, लेकिन गैस से तुरंत आराम दिलाने के लिए ये बहुत अच्छा उपाय है।
हींग
आपके किचन में मौजूद हींग गैस की समस्या से निपटने का रामबाण इलाज है। पेट में गैस बनने पर आधा चम्मच हींग को गर्म पानी के साथ मिलाएं और पी लें। हींग एक एंटी फ्लैटुलैंट के रूप में कार्य करता है, जो पेट में अतिरिक्त गैस उत्पन्न करने वाले आंत बैक्टीरिया के विकास को रोकता है। आयुर्वेद के अनुसार हींग, शरीर के वात दोष (वायु से उत्पन्न होने वाला दोष) को संतुलित करने में मदद करता है। जब कोलोन में वात बढ़ जाता है, तो गैस का निर्माण होता है।


छाछ

पेट में गैस बनना यूं तो आम समस्या, लेकिन नियमित रूप से अगर ये समस्या हो, तो आप छाछ पीकर घर में इसका इलाज कर सकते हैं। दोपहर के खाने के बाद एक गिलास छाछ में भुना हुआ जीरा और सूखा हुआ अदरक पाउडर मिलाकर पीने से इस बीमारी को ठीक करने में मदद मिलेगी।
सौंफ के बीज चबाएं
आपने देखा होगा कि हर इंडियन रेस्टोरेंट में खाने के बाद सौंफ सर्व की जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि सौंफ के बीजों को पेट में गैस को बनने से रोकने और पाचन में सुधार करने के लिए जाना जाता है। इसलिए खाने के बाद हमेशा एक से दो चुटकी सौंफ का सेवन जरूर करें। पेट में गैस कभी नहीं बनेगी।
हींग, काली मिर्च का पेस्ट
पेट में गैस या एसिडिटी होने पर कई बार सबके सामने शर्मिंदा भी होना पड़ता है। अब आप इस समस्या से जल्द से जल्द निजात चाहते हैं, तो हींग और काली मिर्च एसिडिटी या कब्ज की समस्या से राहत पाने की घरेलू मेडिसिन है। इसे बनाने के लिए काली मिर्च, सोंठ लें। दोनों को पीसकर एक बारीक चूर्ण बना लें। मिश्रण में एक ग्राम हींग और दो ग्राम सेंधा नमक मिलाएं। इसमें पानी की कुछ बूंद डालें और पतला सा पेस्ट बनाएं। इस पेस्ट को पैन में डालकर थोड़ा गर्म करें और पेट पर लगाएं। दो घंटे तक इसे पेट पर लगा रहने दें और फिर पानी से साफ कर लें। इस पेस्ट को आप गैस बनने पर कभी भी लगा सकते हैं। तुरंत आराम मिलेगा।
त्रिफला
हर्बल पाउडर त्रिफला भी कब्ज या गैस की समस्या से निपटने में काफी मददगार है। जब भी आपको गैस की शिकायत हो, आधा चम्मच त्रिफला को पानी में 5-10 मिनट के लिए उबालें और सोने से पहले इसे पी लें। इस मिश्रण के सेवन की मात्रा का बेहद ध्यान रखें, क्योंकि इसमें हाई फाइबर होता है। अगर आप इसे अधिक मात्रा में ले लेते हैं, तो यह सूजन का कारण भी बन सकता है।
लहसुन
लहसुन पेट में गैस बनने की समस्या का समाधान आसानी से कर सकता है। इसे कई तरह से उपयोग लाया जा सकता है। आप चाहें तो इसे आग में भूनकर या फिर जूस बनाकर या फिर खाने में डालकर भी खा सकते हैं। जिन लोगों की कब्ज की समस्या आए दिन बनी रहती है, उन्हें कच्चा लहसुन खाना चाहिए। ऐसा करने से बहुत जल्दी आराम मिलता है और कब्ज की समस्या बार-बार नहीं होती।
लौंग
पेट में गैस की समस्या कितनी भी पुरानी क्यों न हो, लौंग इसके लिए बहुत फायदेमंद है। लौंग को अगर शहद के साथ लिया जाए, तो इससे कब्ज की समस्या से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा आप चाहें, तो लौंग को चूसने से भी गैस की परेशानी आपको नहीं होगी।
दालचीनी
दालचीनी पेट को हल्का करती है और गैस की समस्या से राहत दिलाती है। बता दें कि दालचीनी गैस्ट्रिक एसिड और पेप्सिन के स्त्राव को पेट की वॉल्स से दूर करती है, जिससे गैस नहीं बनती। दालचीनी का इस्तेमाल आप दो तरह से कर सकते हैं। पहला तो एक कप गर्म दूध में आधा चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाएं और पी जाएं। आप चाहें तो स्वाद के लिए इसमें शहद मिला सकते हैं। इसके अलावा आप चाहें तो दालचीनी की चाय बनाकर पी सकते हैं। इसे बनाने के लिए एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाएं। पांच मिनट तक इसे पानी में उबलने दें। उबलने के बाद मिश्रण को ठंडा होने दें और फिर पी लें। गैस बनना तुरंत बंद हो जाएगी।


और भी उपाय हैं पेट की गैस के

1. नीबू के रस में 1 चम्मच बेकिंग सोडा मिलाकर सुबह के वक्त खाली पेट पिएं।
2. काली मिर्च का सेवन करने पर पेट में हाजमे की समस्या दूर हो जाती है।
3. आप दूध में काली मिर्च मिलाकर भी पी सकते हैं।
4. छाछ में काला नमक और अजवाइन मिलाकर पीने से भी गैस की समस्या में काफी लाभ मिलता है।
5. दालचीनी को पानी मे उबालकर, ठंडा कर लें और सुबह खाली पेट पिएं। इसमें शहद मिलाकर पिया जा सकता है।
6. लहसुन भी गैस की समस्या से निजात दिलाता है। लहसुन को जीरा, खड़ा धनिया के साथ उबालकर इसका काढ़ा पीने से काफी फादा मिलता है। इसे दिन में 2 बार पी सकते हैं।
7. दिनभर में दो से तीन बार इलायची का सेवन पाचन क्रिया में सहायक होता है और गैस की समस्या नहीं होने देता।
8. रोज अदरक का टुकड़ा चबाने से भी पेट की गैस में लाभ होता है।
9. पुदीने की पत्तियों को उबाल कर पीने से गैस से निजात मिलती है।
10. रोजाना नारियल पानी सेवन करना गैस का फायदेमंद उपचार है।
11. इसके अलावा सेब का सिरका भी गर्म पानी में मिलाकर पीने से लाभ होगा।
12. इस सभी उपचार के अलावा सप्ताह में एक दिन उपवास रखने से भी पेट साफ रहता है और गैस की समस्या पैदा नहीं होती।

पुरुष ग्रंथि (प्रोस्टेट) बढ़ने से मूत्र - बाधा का अचूक इलाज 

*किडनी फेल(गुर्दे खराब ) रोग की जानकारी और उपचार*

गठिया ,घुटनों का दर्द,कमर दर्द ,सायटिका के अचूक उपचार 

गुर्दे की पथरी कितनी भी बड़ी हो ,अचूक हर्बल औषधि

पित्त पथरी (gallstone) की अचूक औषधि







12.8.19

मखाना सूखा मेवा है गुणों का खजाना,makhana ke fayde


मखाना एक हल्का-फुल्का स्नैक्स है जिसे हम सूखे मेवों में शामिल करते हैं। अगर इसे नियमित तौर पर सही तरीके से अपनी डाइट में शामिल किया जाए, तो इसके अगगिनत सेहत लाभ पाए जा सकते हैं।
ड्रायफ्रूट्स हर सीजन में खूब खाएं जाते हैं। ये पोषक तत्‍वों से भरे होते हैं जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं। वैसे तो सारे सूखे मूवे गुणों से भरपूर होते है लेक‍िन हल्के-फुल्के से द‍िखने वाले मखाने खाने के भारी भरकम फायदे जानने के बाद आप इसे डाइट में शामिल कर लेंगे। अगर आप जल्द से जल्द मधुमेह को खत्म करना चाहते है और सेहत के अन्य लाभ पाना चाहते हैं, तो सुबह खाली पेट चार मखाने खाएं। इनका सेवन कुछ दिनों तक लगातार करें।

जोड़ों का दर्द दूर

मखाने में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है। इनका सेवन जोड़ों के दर्द, गठिया जैसे मरीजों के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है।


मधुमेह के मरीजों के ल‍िए है अमृत

अगर आप जल्द से जल्द मधुमेह को खत्म करना चाहते है और सेहत के अन्य लाभ पाना चाहते हैं, तो सुबह खाली पेट चार मखाने खाएं। इनका सेवन कुछ दिनों तक लगातार करें। 1 आप मखाने के चार दानों का सेवन करके शुगर से हमेशा के लिए निजात पा सकते है। इसके सेवन से शरीर में इंसुलिन बनने लगता है और शुगर की मात्रा कम हो जाती है। फिर धीरे-धीरे शुगर रोग भी खत्म हो जाता है।

पाचन में सुधार

मखाना एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होता है जो सभी आयु वर्ग के लोगों को आसानी से पच जाता है। इसके अलावा फूल मखाने में एस्‍ट्रीजन गुण भी होते हैं जिससे यह दस्त से राहत देता है और भूख में सुधार करने के लिए मददगार है

तनाव कम -

मखाने के सेवन से तनाव दूर होता है और अनिद्रा की समस्या भी दूर रहती है। रात को सोने से पहले दूध के साथ मखानों का सेवन करें और खुद फर्क महसूस करें।

दिल के लिए फायदेमंद

मखाना केवल शुगर के मरीज के लिए ही नहीं बल्कि हार्ट अटैक जैसी गंभीर बीमारियों में भी फायदेमंद है। इनके सेवन से दिल स्वस्थ रहता है और पाचन क्रिया भी दुरूस्त रहती है।


किडनी को मजबूत

फूल मखाने में मीठा बहुत कम होने के कारण यह स्प्लीन को डिटॉक्‍सीफाइ करता है। किडनी को मजबूत बनाने और ब्‍लड को बेहतर रखने के लिए खानों का नियमित सेवन करें।

प्रेगनेंसी के दौरान

प्रेगनेंसी के दौरान अगर गर्भवती महिला मखाने का सेवन करे तो वो काफी फायदेमंद होता है|मखाना में कैल्शियम और आयरन पाया जाता है. ये गर्भ में पल रहे शिशु के लिए लाभकारी होते हैं. गर्भवती महिला एक कप मखाना का सेवन रोज़ करें.
*अगर सही मात्रा और सही समय पर इन्हें डायट में शामिल किया जाए तो वजन घटाने में लाभकारी हो सकते हैं.
* मखाना में सोडियम की मात्रा कम होती है. वहीं दूसरी ओर इनमें पोटैशियम और मैग्नीशियम काफी ज्यादा होता है जो उच्च रक्तचाप की समस्या को खत्म करता है.
*कैल्शियम की मात्रा पाई जाने के कारण ये हड्डियों और दांतों के लिए लाभकारी होते हैं.
  1. पायरिया के घरेलू इलाज
  2. चेहरे के तिल और मस्से इलाज
  3. लाल मिर्च के औषधीय गुण
  4. लाल प्याज से थायराईड का इलाज
  5. जमालगोटा के औषधीय प्रयोग
  6. एसिडिटी के घरेलू उपचार
  7. नींबू व जीरा से वजन घटाएँ
  8. सांस फूलने के उपचार
  9. कत्था के चिकित्सा लाभ
  10. गांठ गलाने के उपचार
  11. चौलाई ,चंदलोई,खाटीभाजी सब्जी के स्वास्थ्य लाभ
  12. मसूड़ों के सूजन के घरेलू उपचार
  13. अनार खाने के स्वास्थ्य लाभ
  14. इसबगोल के औषधीय उपयोग
  15. अश्वगंधा के फायदे
  16. लकवा की चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि वृहत वात चिंतामणि रस
  17. मर्द को लंबी रेस का घोडा बनाने के अद्भुत नुस्खे
  18. सदाबहार पौधे के चिकित्सा लाभ
  19. कान बहने की समस्या के उपचार
  20. पेट की सूजन गेस्ट्राईटिस के घरेलू उपचार
  21. पैर के तलवों में जलन को दूर करने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  22. लकवा (पक्षाघात) के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे
  23. डेंगूबुखार के आयुर्वेदिक नुस्खे
  24. काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
  25. कालमेघ जड़ी बूटी लीवर रोगों की महोषधि
  26. हर्निया, आंत उतरना ,आंत्रवृद्धि के आयुर्वेदिक उपचार
  27. पाइल्स (बवासीर) के घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
  28. चिकनगुनिया के घरेलू उपचार
  29. चिरायता के चिकित्सा -लाभ
  30. ज्यादा पसीना होने के के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  31. पायरिया रोग के आयुर्वेदिक उपचार
  32. व्हीटग्रास (गेहूं के जवारे) के रस और पाउडर के फायदे
  33. घुटनों के दर्द को दूर करने के रामबाण उपाय
  34. चेहरे के तिल और मस्से हटाने के उपचार
  35. अस्थमा के कारण, लक्षण, उपचार और घरेलू नुस्खे
  36. वृक्क अकर्मण्यता(kidney Failure) की रामबाण हर्बल औषधि
  37. शहद के इतने सारे फायदे नहीं जानते होंगे आप!
  38. वजन कम करने के उपचार
  39. केले के स्वास्थ्य लाभ
  40. लीवर रोगों की महौषधि भुई आंवला के फायदे
  41. हरड़ के गुण व फायदे
  42. कान मे मेल जमने से बहरापन होने पर करें ये उपचार
  43. पेट की खराबी के घरेलू उपचार
  44. शिवलिंगी बीज के चिकित्सा उपयोग
  45. दालचीनी के फायदे
  46. बवासीर के खास नुखे
  47. भूलने की बीमारी के उपचार
  48. आम खाने के स्वास्थ्य लाभ
  49. सोरायसीस के उपचार
  50. गुर्दे की सूजन के घरेलू उपचार


पुरुष ग्रंथि (प्रोस्टेट) बढ़ने से मूत्र - बाधा का अचूक इलाज 

*किडनी फेल(गुर्दे खराब ) रोग की जानकारी और उपचार*

गठिया ,घुटनों का दर्द,कमर दर्द ,सायटिका के अचूक उपचार 

गुर्दे की पथरी कितनी भी बड़ी हो ,अचूक हर्बल औषधि

पित्त पथरी (gallstone) की अचूक औषधि





7.8.19

पित्तपापड़ा (गाजर घास)के औषधीय गुण और उपयोग





पित्तपापड़ा को सर्दियों में गेंहू और चने आदि के खेतों में आसानी से देखा जा सकता है | हमारे देश में इसे अलग – अलग प्रान्तों में अलग – अलग नामो से पुकारा जाता है | संस्कृत में इसे पर्पट , पांशु एवं कवच वाचक आदि नामो से पुकारा जाता है |
राजस्थान , हरियाणा और पंजाब में इसे गजरा घास या गाजर घास आदि नामों से जाना जाता है | हिंदी में इसे पितपापड़ा , शाहतरा एवं धमगजरा आदि कहा जाता है |


गुण – धर्म एवं रोग प्रभाव

पित्तपापड़ा का रस कटु एवं तिक्त होता है | गुणों में यह लघु एवं इसका वीर्य शीत होता है | पचने के बाद इसका विपाक कटु प्राप्त होता है | यह कफ एवं पित का शमन करने में कारगर होता है | सीके साथ ही मूत्रल, रक्तशोधन, रक्तपित शामक, दाहशामक, यकृदूतेजक एवं कामला, मूत्रकृच्छ, भ्रम और मूर्च्छा जैसी समस्याओं में लाभकारी होता है |
दोषों के हरण के लिए इसके पंचाग का इस्तेमाल किया जाता है | आयुर्वेद में इसके प्रयोग से षडंगपानीय, पर्पटादी क्वाथ , पञ्चतिक्त घृत आदि औषधियां तैयार की जाती है |
रक्तशोधक एवं टोक्सिन नाशक
पित्तपापड़ा रक्तशोधक होता है | यह दूषित रक्त हो शुद्ध करता है एवं शरीर से टोक्सिन को बाहर निकालता है | अंग्रेजी दवाइयों के इस्तेमाल से होने वाले साइड इफेक्ट्स को दूर करने के लिए पापड़ा का प्रयोग करना चाहिए | इसके इस्तेमाल से दवाइयों के गंभीर साइड इफेक्ट्स को भी कम किया जा सकता है |
ताजे पित्तपापड़ा को कुचल कर इसका दो चम्मच रस निकाल ले और कुच्छ दिनों तक नियमित सेवन करे , इससे रक्त शुद्ध होता है एवं साथ ही शरीर से टोक्सिन भी बाहर निकलते है | दवाइयों के साइड इफेक्ट्स में भी इसके रस का सेवन करना चाहिए |
पेट के कीड़े
पेट के कीड़ों में भी यह चमत्कारिक लाभ देता है | अगर पेट में कीड़े पड़ गए हो तो पितपापड़ा के साथ वाय – विडंग को मिलाकर इनका काढ़ा तैयार कर ले | इस काढ़े के सेवन से जल्द ही पेट के कीड़े नष्ट होने लगते है |भारत में यह 2600 मी की ऊँचाई तक पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड आदि प्रान्तों में गेहूँ के खेतों में पाया जाता है। चरक-संहिता के तृष्णानिग्रहण दशेमानि में इसका उल्लेख है तथा ज्वर, रक्तपित्त, दाह, कुष्ठ, मदात्यय, ग्रहण, पाण्डु, अतिसार आदि रोगों के प्रयोगों में इसकी योजना की गई है। सुश्रुत में भी पित्त प्रधान अतिसार की चिकित्सा में इसका प्रयोग किया गया है। पर्पट के संदर्भ में कहा गया है कि – एक पर्पटक श्रेष्ठ पित्त ज्वर विनाशन। अर्थात् पर्पट पित्तज्वर की श्रेष्ठ औषधि है।
यह 5-25 सेमी ऊँचा, हरित वर्ण का, चमकीले, कोमल शाखाओं से युक्त, वर्षायु शाकीय पौधा होता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
पर्पट कटु, तिक्त, शीत, लघु; कफपित्तशामक तथा वातकारक होता है।
यह संग्राही, रुचिकारक, वर्ण्य, अग्निदीपक तथा तृष्णाशामक होता है।
पर्पट रक्तपित्त, भम, तृष्णा, ज्वर, दाह, अरुचि, ग्लानि, मद, हृद्रोग, भम, अतिसार, कुष्ठ तथा कण्डूनाशक होता है।
लाल पुष्प वाला पर्पट अतिसार तथा ज्वरशामक होता है।
पर्पट का शाक संग्राही, तिक्त, कटु, शीत, वातकारक, शूल, ज्वर, तृष्णाशामक तथा कफपित्त शामक होता है।
इसमें आक्षेपरोधी प्रभाव दृष्टिगत होता है।



प्रयोग मात्रा एवं विधि

पर्पट स्वरस का नेत्रों में अंजन करने से नेत्र के विकारों का शमन होता है।
पर्पट का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुख दौर्गन्ध्य तथा दंतशूल आदि विकारों का शमन होता है।
गण्डमाला-पर्पट पञ्चाङ्ग को पीसकर गले में लगाने से गण्डमाला (गले की गाँठ) में लाभ होता है।
कास-10-20 मिली पर्पट क्वाथ को पीने से दोषों का पाचन होकर विबन्ध, पित्तज कास तथा प्रतिश्याय (जुकाम) में लाभ होता है।
ज्वर में पितपापड़ा का उपयोग
गर्मी के कारण बुखार हो तो पित्तपापड़ा , गिलोय एवं तुलसी को मिलाकर इसका काढा बना ले | गर्मी जन्य बुखार में लाभ मिलेगा |
पितज्र में पापड़ा, आंवला और गिलोय इन तीनो का क्वाथ तैयार कर के इस्तेमा करने से लाभ मिलेगा |
अगर बुखार सर्दी के कारण है तो पित्तपापड़ा के साथ कालीमिर्च मिलकर इसका काढ़ा तैयार करे जल्द ही सर्दी के कारण आई बुखार उतर जायेगी |


तृष्णा

बार – बार प्यास लगती अर्थात तृष्णा से पीड़ित हो तो पित्तपापड़ा, रक्त चन्दन, नागरमोथा और खस इन तीनो का चूर्ण बना ले और इसमें मिश्री मिलाकर इसकी चटनी तैयार करले | इसका इस्तेमाल करने से तृष्णा खत्म होती है |
गर्भावस्था जन्य विकार
पित्तपापड़ा, अतिस, सुगंधबाला, धनिया, गिलोय, नागरमोथा, खस, जवासा, लज्जालु, रक्तचन्दन और खिरैटी – इन सबका काढ़ा बनाकर पीने से गर्भावस्था जन्य सभी विकार दूर होते है |छर्दि (उलटी)-
10-20 मिली पर्पट क्वाथ में मधु मिलाकर सेवन करने से उल्टी बंद होती है।
अतिसार-समभाग नागरमोथा तथा पित्तपापड़ा के 50 ग्राम चूर्ण को 3 लीटर जल में, आधा शेष रहने तक पका कर शीतल कर 10-20 मिली मात्रा में पीने से तथा भोजन में प्रयोग करने से आमपाचन होता है तथा अतिसार का शमन होता है।
कृमिरोग-
पित्तपापड़ा तथा विडंग का क्वाथ बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पिलाने से उदरकृमि नष्ट होते हैं।
यकृत्-विकार-
2-4 ग्राम पर्पट पञ्चाङ्ग चूर्ण के सेवन से यकृत् की कार्य क्षमता बढ़ती है तथा खून की कमी आदि व्याधियों का शमन होता है।
मूत्रकृच्छ्र-
10-20 मिली पञ्चाङ्ग क्वाथ का सेवन करने से मूत्र की वृद्धि होकर मूत्र मार्गगत विकृति तथा मूत्र त्याग के समय होने वाले कष्ट का शमन होता है।
फिरंग-
फिरंगजन्य व्रण पर पर्पट-स्वरस का लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता है।
वातरक्त-
10-20 मिली पर्पट पञ्चाङ्ग क्वाथ का सेवन करने से वातरक्त (गठिया) में लाभ होता है।
इन्फेक्शन अर्थात संक्रमण
पित्तपापड़ा सभी प्रकार के इन्फेक्शन को ठीक करता है | जैसे अगर शरीर के अन्दर कोई इन्फेक्शन है या कोई घाव है तो इसका प्रयोग क्वाथ के रूप में करे | लीवर, किडनी, फेफड़े आदि के संक्रमण एवं आंतरिक घाव को भरने में भी यह चमत्कारिक परिणाम देता है | इन सभी में पित्तपापड़ा के काढ़ेका इस्तेमाल करना चाहिए |
एसिडिटी जैसी समस्याओं में ताजे धमगजरा को दांतों से कुचल कर खाने से तुरंत आराम मिलता है , साथ ही दांतों एवं मसूड़ों के सुजन में भी आराम मिलता है |हथेली की दाह-
5 मिली पर्पट पत्र-स्वरस का सेवन करने से हथेली की जलन मिटती है।
कण्डू (खुजली)-
पित्तपापड़ा का अवलेह बनाकर 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से कण्डू का शमन होता है।
मदात्यय-
नागरमोथा तथा पित्तपापड़ा का षडङ्गपानीयविधि से बनाए गए क्वाथ को 10-20 मिली मात्रा में पीने से मदात्यय (अधिक मात्रा में मदिरापान से उत्पन्न रोग) का शमन होता है।
अपस्मार-
10-20 मिली पर्पट-क्वाथ का सेवन करने से अपस्मार जन्य आक्षेपों, प्रमेह, पित्तज्ज्वर का शमन होता है।
ज्वर-पित्तपापड़ा के 10-20 मिली क्वाथ में 500 मिग्रा सोंठ चूर्ण मिलाकर अथवा पित्तपापड़ा तथा अगस्त पुष्प के 10-20 मिली क्वाथ में 500 मिग्रा सोंठ मिला कर सेवन करने से ज्वर का शमन होता है।
समभाग नागरमोथा, पित्तपापड़ा, खस, लाल चंदन, सुंधबाला तथा सोंठ चूर्ण को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनायें, 10-20 मिली क्वाथ को पीने से ज्वर तथा ज्वर के कारण उत्पन्न तृष्णा, दाह तथा स्वेदाधिक्य का शमन होता है।


* समभाग गुडूची, आँवला तथा पित्तपापड़ा अथवा केवल पित्तपापड़ा से निर्मित 10-20 मिली क्वाथ का सेवन करने से दाह तथा भमयुक्त पित्तज्वर का शमन होता है।

*समभाग गुडूची, हरीतकी तथा पर्पट का क्वाथ बनाकर 20-30 मिली मात्रा में सेवन करने से पित्तज्वर में लाभ होता है।
* पित्तपापड़ा से निर्मित क्वाथ (10-20 मिली) अथवा पित्तपापड़ा, लाल चंदन, सुंधबाला तथा सोंठ का क्वाथ (10-20 मिली) अथवा चंदन, खस, सुंधबालायुक्त तथा पित्तपापड़ा से निर्मित क्वाथ (10-20 मिली) का सेवन करने से पित्तजज्वर का शमन होता है।
* समभाग द्राक्षा, पित्तपापड़ा, अमलतास, कुटकी, नागरमोथा तथा हरीतकी का क्वाथ बनाकर (10-30 मिली क्वाथ) सेवन करने से मल का भेदन होता है तथा शोष, स्वेदाधिक्य तृष्णा, रक्तपित्त, भान्ति एवं वेदनायुक्त पित्तज्वर में लाभ होता है।
* समभाग गुडूची, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, चिरायता तथा सोंठ का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से वात-पित्तज्वर का शमन होता है।
* जवासा, मेंहदी, चिरायता, कुटकी, वासा तथा पित्तपापड़ा के 10-20 मिली क्वाथ में शर्करा मिला कर पीने से तृष्णा, दाह तथा रक्तपित्त युक्त पित्तज्वर में लाभ प्राप्त होता है।
* समभाग खस, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, सोंठ तथा श्रीखण्ड चंदन से निर्मित क्वाथ का सेवन करने से पित्त ज्वर का शमन होता है।
*पर्पट, वासा, कुटकी, चिरायता, जवासा तथा प्रियंगु आदि द्रव्यों से निर्मित (10-20 मिली) क्वाथ में एक तोला शर्करा मिलाकर पान करने से अत्यधिक तृष्णा, दाह तथा रक्तपित्त युक्त ज्वर में लाभ होता है।
*पर्पट, नागरमोथा, गुडूची, शुण्ठी तथा चिरायता इन द्रव्यों का क्वाथ बनाकर (10-20 मिली क्वाथ) सेवन करने से वातपित्तजयुक्त ज्वर में लाभ होता है।
सर्वांग शूल-

1 ग्राम बीज चूर्ण अथवा 10-20 मिली क्वाथ को पीने से सर्वांङ्गशूल (वेदना) का शमन होता है।
पित्तपापड़ा के (10 मिली) स्वरस का शर्बत बनाकर पिलाने से दाह का शमन होता है।
*ताजे पर्पट के पत्र-स्वरस को बर्रे और मधुमक्खी के डंक स्थान पर लगाने से वेदना, दाह आदि का शमन होता है।
प्रयोज्याङ्ग : पञ्चाङ्ग।
मात्रा : क्वाथ-10-30 मिली, स्वरस-5-10 मिली, चूर्ण-1-3 ग्राम, कल्क-2-4 ग्राम या चिकित्सक के परामर्शानुसार।


  • मसूड़ों के सूजन के घरेलू उपचार
  • अनार खाने के स्वास्थ्य लाभ
  • इसबगोल के औषधीय उपयोग
  • अश्वगंधा के फायदे
  • लकवा की चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि वृहत वात चिंतामणि रस
  • मर्द को लंबी रेस का घोडा बनाने के अद्भुत नुस्खे
  • सदाबहार पौधे के चिकित्सा लाभ
  • कान बहने की समस्या के उपचार
  • पेट की सूजन गेस्ट्राईटिस के घरेलू उपचार
  • पैर के तलवों में जलन को दूर करने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • लकवा (पक्षाघात) के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे
  • डेंगूबुखार के आयुर्वेदिक नुस्खे
  • काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
  • कालमेघ जड़ी बूटी लीवर रोगों की महोषधि
  • हर्निया, आंत उतरना ,आंत्रवृद्धि के आयुर्वेदिक उपचार
  • पाइल्स (बवासीर) के घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
  • चिकनगुनिया के घरेलू उपचार
  • चिरायता के चिकित्सा -लाभ
  • ज्यादा पसीना होने के के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • पायरिया रोग के आयुर्वेदिक उपचार
  •  व्हीटग्रास (गेहूं के जवारे) के रस और पाउडर के फायदे
  • घुटनों के दर्द को दूर करने के रामबाण उपाय
  • चेहरे के तिल और मस्से हटाने के उपचार
  • अस्थमा के कारण, लक्षण, उपचार और घरेलू नुस्खे
  • वृक्क अकर्मण्यता(kidney Failure) की रामबाण हर्बल औषधि
  • शहद के इतने सारे फायदे नहीं जानते होंगे आप!
  • वजन कम करने के उपचार
  • केले के स्वास्थ्य लाभ
  • लीवर रोगों की महौषधि भुई आंवला के फायदे
  • हरड़ के गुण व फायदे
  • कान मे मेल जमने से बहरापन होने पर करें ये उपचार
  • पेट की खराबी के घरेलू उपचार
  • शिवलिंगी बीज के चिकित्सा उपयोग
  • दालचीनी के फायदे
  • बवासीर के खास नुखे
  • भूलने की बीमारी के उपचार
  • आम खाने के स्वास्थ्य लाभ
  • सोरायसीस के उपचार
  • गुर्दे की सूजन के घरेलू उपचार
  • रोग के अनुसार आयुर्वेदिक उपचार
  • कमर दर्द के उपचार
  • कड़ी पत्ता के उपयोग और फायदे
  • ग्वार फली के फायदे
  • सीने और पसली मे दर्द के कारण और उपचार
  • जायफल के फायदे
  • गीली पट्टी से त्वचा रोग का इलाज
  • मैदा खाने से होती हैं जानलेवा बीमारियां
  • थेलिसिमिया रोग के उपचार
  •  दालचीनी के फायदे
  • भूलने की बीमारी का होम्योपैथिक इलाज
  • गोमूत्र और हल्दी से केन्सर का इयाल्ज़
  • कमल के पौधे के औषधीय उपयोग
  • चेलिडोनियम मेजस के लक्षण और उपयोग
  • शिशु रोगों के घरेलू उपाय
  • वॉटर थेरेपी से रोगों की चिकित्सा
  • काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
  • दालचीनी के अद्भुत लाभ
  • वीर्य बढ़ाने और गाढ़ा करने के आयुर्वेदिक उपाय
  • लंबाई ,हाईट बढ़ाने के अचूक उपाय
  • टेस्टेटरोन याने मर्दानगी बढ़ाने के उपाय