कस्तूरी, एक बहुत लोकप्रिय लेकिन दुर्लभ चीज है. दुर्लभ इसलिए क्योंकि ये मृग से प्राप्त किया जाता है और मृगों में भी सबसे नहीं. कुछ नर मृगों के गुदा क्षेत्रों में स्थित एक ग्रंथि से इसे प्राप्त किया जाता है. इसकी जानकारी प्राचीनकाल से ही है. इसका इस्तेमाल एक महत्वपूर्ण रासायनिक पदार्थ की तरह किया जाता है. आपको बता दें की इसे विश्व के सार्वाधिक कीमती पशु उत्पादों में गिना जाता है. कस्तूरी को इत्र और इसी तरह के अन्य कई सुगंधित पदार्थों के निर्माण में किया जाता है. आइए इस लेख के माध्यम से हम कस्तुरी के विभिन्न फ़ायदों को जानें ताकि इसके बारे में लोगों को भी जानकारी प्राप्त हो सके.क्या है कस्तूरी?
“कस्तूरी” का नाम संस्कृत में प्रयुक्त “के” से हुआ है. हिन्दी में इसका तात्पर्य अंडकोष से है. आपको जानकार हैरानी हो सकती है कि कस्तुरी केवल हिरण से ही नहीं बल्कि अन्य कई जानवरों और पौधों से भी प्राप्त किया जाता है. स्पष्ट है कि तब कस्तुरी के कई प्रकार हो गए. इनमें से कई प्रकारों के रंग, गंध और संरचना में भिन्नता हो सकती है. कस्तूरी के ऊपरी सतह पर बाल होते हैं. इसके अंदुरुणी हिस्से में कलोंजी या इलायची के दाने जैसे ही दाने मौजूद होते हैं. कस्तूरी वयस्क नर हिरण में ही पाई जाती है. कहते है कि जब यह कस्तूरी मृग जवान हो जाता है तो इससे भी कस्तूरी की सुगंध आती है, जिसे ढूंढने के लिए यह इधर से उधर भागा फिरता है लेकिन कस्तूरी इसे कभी प्राप्त नहीं होता क्योंकि ये बाहर न होकर इसके अंदर ही मौजूद होता है. अपने देश में इसका ज्ञान लोगों को प्राचीन काल से ही था. न सिर्फ ज्ञान था बल्कि उस दौरान इसका इस्तेमाल भी किया जाता था. तब इसका इस्तेमाल सुगंधित पदार्थों के अलावा पूजा-पाठ में भी किया जाता था. इसके अलावा कई औरषधियों के निर्माण में भी इसे इस्तेमाल किया जाता था.
कस्तूरी की पहचान
यह मृग उत्तरी भारत, नेपाल, आसाम, कश्मीर, मध्य एशिया, तिब्बत, भूतान, चीन एवं रूस आदि स्थानों में २४००-२७०० मी. ऊँची पहाड़ी चोटियों पर सघन जंगलों में पाया जाता है।
कस्तूरी मृग विशेषकर तिब्बत में अधिक होते हैं। यह हिरन की जाति का बहुत सुहावना और सुन्दर मृग होता है किन्तु न इसके सींग होते हैं न दुम यह मृग करीब ५० से.मी. ऊँचा, लौह के समान गहरे धूसर वर्ण का अत्यन्त सशंक स्वभाव का प्राणी होता है। इसके ऊपरी जबड़े में दो लंबे दंष्ट्र यानि दांत होते हैं, जो बाहर नीचे की ओर हुक की तरह निकले रहते हैं।
कस्तूरी मृग का मुँह लंबा, पैर पतले तथा सीधे एवं बाल रूखे और लम्बे होते हैं। इसके लिंगेन्द्रिय के मणि को ढांकने वाले चमड़े के प्रवर्धन से बनी हुई एक थैली होती है जिसके सूखे हुये साव को 'कस्तूरी' कहते हैं।
कस्तूरी केवल नर हिरन में ही यह पायी जाती है। थैली नाभि के पास, नाभि एवं शिश्नावरण के बाँच में स्थित रहती है। यह अंडाकार, ३-७.५ से.मी. लम्बी एवं २.५-५ से.मी. चौड़ी होती है। इसके अग्रभाग में केशयुक्त एक छोटा सा छिद्र होता है तथा पिछले भाग में एक सिकुड़न सी होती है जो शिश्नाप्रचर्म के मुख से मिल जाती है। इसके अन्दर के चिकने आवरण की अनियमित तहों के कारण यह कई अपूर्ण विभागों में बँटी होती है।
कस्तूरी, युवावस्था के मृगों में उनके मदकाल (Rutting season) में अधिक मात्रा में होती है तथा उसी समय उसकी शक्ति एवं गन्ध अधिक रहती है। यह काल करीब १ महीने का होता है।
राजनिघन्टु. में भी लिखा है कि
'बाले जरति च हरिणे क्षीणे रोगिणि च मन्दगन्धयुता कामातुरे च तरुणे कस्तूरी बहलपरिमला भवति।'
अर्थात-बालक, वृद्ध, क्षीण और रोगी हिरन की कस्तूरी मन्द गन्ध वाली होती है तथा कामातुर और तरुण हिरन की कस्तूरी अत्यन्त सुगन्धित होती है। जब उक्त हिरन की नाभा में कस्तूरी बन जाती है तब उसमें से कस्तूरी की गन्ध आती है और वह मृग किसी दूसरे पदार्थ की गन्ध समझकर इधर-उधर घूम-घूमकर वृक्षों को सूंघा करता है जिससे बहेलिये आसानी से पहचान कर उसको मार डालते है।
१ साल के बच्चे में कस्तूरी नहीं होती तथा २ साल के बच्चे में करीब ६-७ मा होती है जो दुधिया रहती है। वृद्ध प्राणी में भी ७ प्रा. से अधिक नहीं होती।
कस्तूरी में सुगन्ध ही एक मनोहर गुण है जो बहुत तीव्र स्वतन्त्र प्रकार की और शीघ्र फैलने वाली होती है। इसका स्वाद सुगन्ध युक्त कड़वा होता है।
कस्तूरी के प्रकार—मृग के शिकार के बाद इन नाभों को निकालकर धूप एवं हवा में सुखाते हैं। फिर इन नाभों को मृग के बालों में लपेटकर चमड़े की थैलियों में बन्द किया जाता है तथा बाद में सौलबन्द डिब्बों में या अन्दर से टीन का अस्तर लगे हुये लकड़ी के बक्सों में बन्द कर बाहर भेजा जाता है।
व्यापार की कस्तूरी ३ प्रकार की होती है।
(१) रूस की कस्तूरी- इसमें गन्ध बहुत कम होती है। (२) आसाम की कस्तूरी यह बहुत अच्छी तथा तीव्र गन्ध युक्त होती है तथा इसका रंग काला होता है। सम्भवतः प्राचीनों ने कामरूप कस्तूरी इसी को कहा है।
(३) चीन की कस्तूरी यह सबसे महगी होती हैं क्योंकि अन्य हीन श्रेणी की कस्तूरी में जो कभी-कभी अमोनिया आदि की अप्रिय गन्ध होती है वह इसमें बिलकुल नहीं होती।
यह कस्तूरी तिब्बत से ही चीन को जाती है। एक अन्य तीक्ष्ण अप्रिय गन्ध वाली कस्तूरी कॅबइन् नामक होती है जो मंगोलिया एवं मंचूरिया के उत्तरी भाग तथा पूर्वी साइबेरिया से आती है।
उत्तम कस्तूरी-रक्ताभश्याम वर्ण की, गोल बड़े दाने वाली, तीक्ष्ण गन्ध वाली, स्वाद में तिक्त, हलकी एवं मुलायम कस्तूरी उत्तम होती है। इसकी गन्ध बहुत स्थायी रहती है तथा ३००० गुना विरल (Dilute) करने पर भी गन्ध मालूम हो जाती है।
यह कहा जाता है कि शिकार के समय इसकी तीव्र गन्ध से शिकारियों के वातनाडी संस्थान, आँख एवं कान पर बुरा असर पड़ता है। चीनी व्यापारियों का कहना है कि मदकाल में जब मृग में कस्तूरी की गन्ध तीव्र हो जाती है, तब उसके प्रक्षोभ के कारण वह अपने खुरों से उसे खुरचकर निकाल देता है। ऐसी कस्तूरी मृगों के आवास स्थानों में पड़ी हुई पाई जाती है। लेकिन ऐसी कस्तूरी बहुत कठिनाई से ही मिलती है।
जगत में असली कस्तूरी की पहचान-कस्तूरी की माँग बहुत होने के कारण तथा कठिनाई से मिलने के कारण इसमें मिलावट की जाती है।
असली कस्तूरी मिलना बहुत कठिन है। व्यापारी लोग सूखा हुआ रक्त, यकृत तथा दाल, गेहूँ एवं जी के दाने आदि मिला देते हैं। केवल गन्ध से कस्तूरी की पहचान करना कठिन है क्योंकि इसके सम्पर्क में आये पदार्थ को यह सुगन्धित कर देती है।
चीन तथा तिब्बती व्यापारियों के यहाँ पहचान की कुछ पद्धतियाँ प्रचलित है जो वैज्ञानिक न होते हुये भी कुछ हद तक उपयोगी है।
बुखार का इलाज करे लता कस्तूरी
बुखार के इलाज में भी लता कस्तूरी का उपयोग किया जा सकता है। लता कस्तूरी में ज्वरनाशक गुण होते हैं, जो बुखार में लाभकारी होता है। लता कस्तूरी के ताजे पत्र-स्वरस को पिलाने से बुखार ठीक हो सकता है। लेकिन अगर बुखार किसी बीमारी की वजह से है, तो डॉक्टर की सलाह पर ही इसका सेवन करें।
आंखों के लिए उपयोगी
लता कस्तूरी का उपयोग आंखों की समस्याओं को दूर करने के लिए भी किया जा सकता है। अगर आपको आंखों से जुड़ी कोई गंभीर समस्या है, तो आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह पर इसका उपयोग किया जा सकता है।
“कस्तूरी” का नाम संस्कृत में प्रयुक्त “के” से हुआ है. हिन्दी में इसका तात्पर्य अंडकोष से है. आपको जानकार हैरानी हो सकती है कि कस्तुरी केवल हिरण से ही नहीं बल्कि अन्य कई जानवरों और पौधों से भी प्राप्त किया जाता है. स्पष्ट है कि तब कस्तुरी के कई प्रकार हो गए. इनमें से कई प्रकारों के रंग, गंध और संरचना में भिन्नता हो सकती है. कस्तूरी के ऊपरी सतह पर बाल होते हैं. इसके अंदुरुणी हिस्से में कलोंजी या इलायची के दाने जैसे ही दाने मौजूद होते हैं. कस्तूरी वयस्क नर हिरण में ही पाई जाती है. कहते है कि जब यह कस्तूरी मृग जवान हो जाता है तो इससे भी कस्तूरी की सुगंध आती है, जिसे ढूंढने के लिए यह इधर से उधर भागा फिरता है लेकिन कस्तूरी इसे कभी प्राप्त नहीं होता क्योंकि ये बाहर न होकर इसके अंदर ही मौजूद होता है. अपने देश में इसका ज्ञान लोगों को प्राचीन काल से ही था. न सिर्फ ज्ञान था बल्कि उस दौरान इसका इस्तेमाल भी किया जाता था. तब इसका इस्तेमाल सुगंधित पदार्थों के अलावा पूजा-पाठ में भी किया जाता था. इसके अलावा कई औरषधियों के निर्माण में भी इसे इस्तेमाल किया जाता था.
कस्तूरी — वस्तुत: कस्तूरी एक जान्तव द्रव्य है जो एक विशेष प्रकार के हिरण से प्राप्त होती है | इस हिरण के नाभि के पास एक ग्रंथि होती है जो बहुत तीव्र गंध वाली होती है , इसी ग्रंथि से मृग कस्तूरी प्राप्त होती है | कस्तूरी व्यस्क नर हिरण में ही पाई जाती है | कहते है कि जब यह कस्तूरी मृग जवान हो जाता है तो इसे भी कस्तूरी की सुगंध आती है , जिसे ढूंढने के लिए यह इधर से उधर भागा फिरता है लेकिन कस्तूरी इसे कभी प्राप्त नहीं |
हिमालय में ऐसे कई जीव-जंतु हैं, जो बहुत ही दुर्लभ है। उनमें से एक दुनिया का सबसे दुर्लभ मृग है कस्तूरी मृग।
यह हिरण उत्तर पाकिस्तान, उत्तर भारत, चीन, तिब्बत, साइबेरिया, मंगोलिया में ही पाया जाता है। इस मृग की कस्तूरी बहुत ही सुगंधित और औषधीय गुणों से युक्त होती है। कस्तूरी मृग की कस्तूरी दुनिया में सबसे महंगे पशु उत्पादों में से एक है। यह कस्तूरी उसके शरीर के पिछले हिस्से की ग्रंथि में एक पदार्थ के रूप में होती है।
कस्तूरी चॉकलेटी रंग की होती है, जो एक थैली के अंदर द्रव रूप में पाई जाती है। इसे निकालकर व सुखाकर इस्तेमाल किया जाता है। कस्तूरी मृग से मिलने वाली कस्तूरी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत अनुमानित 30 लाख रुपए प्रति किलो है जिसके कारण इसका शिकार किया जाता रहा है। इसका इस्तेमाल इत्र बनाने में भी किया जाता है।
माना जाता है कि यह कस्तूरी कई चमत्कारिक धार्मिक और सांसारिक लाभ देने वाली औषधि है।
कस्तूरी के प्रकार
कस्तूरी को इसके उत्पति स्थान को देखते हुये प्रमुख रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता है.
नेपाली कस्तूरी – नेपाल के हिरणों से नील वर्ण की कस्तूरी प्राप्त की जाती है.
कामरूपी कस्तूरी –
कश्मीरी कस्तूरी –
कस्तूरी की पहचान
कस्तूरी में तीव्र गंद आती है. शुद्ध कस्तूरी को पानी में घोलकर सूंघने से सुगंध आती है और अगर नकली है तो पानी में डालने के बाद सूंघने पर कीचड़ की तरह या विकृत गंद आती है. शुद्ध कस्तूरी पानी में अविलेय होती है पानी का रंग भी मैला नही होता. अगर आप कस्तूरी को जलाएंगे तो यह चमड़े की तरह चिट – चिट की आवाज के साथ जलती है एवं गंद भी चमड़े के सामान आती है.
कस्तूरी के औषध योग – इसमें म्रिग्म्दादीवरी, वृहद् कस्तूरी भैरव रस और मृगमादासव इत्यादि के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है.
गर्भाशय रोग – जिन स्त्रियॉं का गर्भाशय अपने मूल स्थान से हट जाता है उसे पुनः उस स्था पर लाने के लिए आपको कस्तूरी और केशर की एक सामान मात्रा को लेकर पानी में पिस कर छोटी-छोटी गोलियां बना लें. अब इन गोलियों को मासिक धर्म के शुरू होने से पहले योनी मुख में रखें. तीन दिन तक ऐसा करने से इसमें काफी लाभ मिलेगा.
दांत दर्द – यदि आपको दाँत दर्द की समस्या है तो आप कस्तूरी को कुठ के साथ मिलाकर दांतों पर मलें. ऐसा करने से आपको शीघ्र ही दांत दर्द में आराम मिलेगा.
काली खांसी –
हिमालय में ऐसे कई जीव-जंतु हैं, जो बहुत ही दुर्लभ है। उनमें से एक दुनिया का सबसे दुर्लभ मृग है कस्तूरी मृग।
यह हिरण उत्तर पाकिस्तान, उत्तर भारत, चीन, तिब्बत, साइबेरिया, मंगोलिया में ही पाया जाता है। इस मृग की कस्तूरी बहुत ही सुगंधित और औषधीय गुणों से युक्त होती है। कस्तूरी मृग की कस्तूरी दुनिया में सबसे महंगे पशु उत्पादों में से एक है। यह कस्तूरी उसके शरीर के पिछले हिस्से की ग्रंथि में एक पदार्थ के रूप में होती है।
कस्तूरी चॉकलेटी रंग की होती है, जो एक थैली के अंदर द्रव रूप में पाई जाती है। इसे निकालकर व सुखाकर इस्तेमाल किया जाता है। कस्तूरी मृग से मिलने वाली कस्तूरी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत अनुमानित 30 लाख रुपए प्रति किलो है जिसके कारण इसका शिकार किया जाता रहा है। इसका इस्तेमाल इत्र बनाने में भी किया जाता है।
माना जाता है कि यह कस्तूरी कई चमत्कारिक धार्मिक और सांसारिक लाभ देने वाली औषधि है।
कस्तूरी को इसके उत्पति स्थान को देखते हुये प्रमुख रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता है.
नेपाली कस्तूरी – नेपाल के हिरणों से नील वर्ण की कस्तूरी प्राप्त की जाती है.
कामरूपी कस्तूरी –
आसाम क्षेत्र के हिरणों से जो कस्तूरी प्राप्त की जाती है उसका रंग काला होता है और उसे कामरूपी कस्तूरी भी कहते हैं.
कश्मीरी कस्तूरी –
भारत में कश्मीर के हिरणों से प्राप्त कस्तूरी पीले रंग की होती है. जबकि कश्मीरी कस्तूरी का रंग इससे अलग होता है.
गुणात्मक दृष्टि से इन तीनो प्रकारों में कामरूपी कस्तूरी श्रेष्ठ होती है, नेपाली कस्तूरी – माध्यम और कश्मीरी कस्तूरी सामान्य मानी जाती है.
गुणात्मक दृष्टि से इन तीनो प्रकारों में कामरूपी कस्तूरी श्रेष्ठ होती है, नेपाली कस्तूरी – माध्यम और कश्मीरी कस्तूरी सामान्य मानी जाती है.
कस्तूरी की पहचान
कस्तूरी में तीव्र गंद आती है. शुद्ध कस्तूरी को पानी में घोलकर सूंघने से सुगंध आती है और अगर नकली है तो पानी में डालने के बाद सूंघने पर कीचड़ की तरह या विकृत गंद आती है. शुद्ध कस्तूरी पानी में अविलेय होती है पानी का रंग भी मैला नही होता. अगर आप कस्तूरी को जलाएंगे तो यह चमड़े की तरह चिट – चिट की आवाज के साथ जलती है एवं गंद भी चमड़े के सामान आती है.
कस्तूरी के गुण धर्म –
रस में यह कटु और तिक्त , गुण में – लघु , रुक्ष और तीक्ष्ण, वीर्य – उष्ण और विपाक – कटु होता है |
कस्तूरी के रोग प्रभाव –
कस्तूरी के रोग प्रभाव –
वात एवं कफ नाशक |
द्रव्य प्रयोग – श्वसनक ज्वर, वात श्लेष्मिक ज्वर , लकवा, सन्निपातज ज्वर और ह्रदय रोगों में इस्तेमाल की जाती है |
कस्तूरी औषध उपयोग आयुर्वेद में कस्तूरी से टीबी, मिर्गी, हृदय संबंधी बीमारियां, आर्थराइटिस जैसी कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है।
द्रव्य प्रयोग – श्वसनक ज्वर, वात श्लेष्मिक ज्वर , लकवा, सन्निपातज ज्वर और ह्रदय रोगों में इस्तेमाल की जाती है |
कस्तूरी औषध उपयोग आयुर्वेद में कस्तूरी से टीबी, मिर्गी, हृदय संबंधी बीमारियां, आर्थराइटिस जैसी कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है।
कस्तूरी के फायदे
कस्तूरी के औषध योग – इसमें म्रिग्म्दादीवरी, वृहद् कस्तूरी भैरव रस और मृगमादासव इत्यादि के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है.
गर्भाशय रोग – जिन स्त्रियॉं का गर्भाशय अपने मूल स्थान से हट जाता है उसे पुनः उस स्था पर लाने के लिए आपको कस्तूरी और केशर की एक सामान मात्रा को लेकर पानी में पिस कर छोटी-छोटी गोलियां बना लें. अब इन गोलियों को मासिक धर्म के शुरू होने से पहले योनी मुख में रखें. तीन दिन तक ऐसा करने से इसमें काफी लाभ मिलेगा.
दांत दर्द – यदि आपको दाँत दर्द की समस्या है तो आप कस्तूरी को कुठ के साथ मिलाकर दांतों पर मलें. ऐसा करने से आपको शीघ्र ही दांत दर्द में आराम मिलेगा.
काली खांसी –
काली खांसी से परेशान व्यक्ति को सरसों के दाने के सामान कस्तूरी को मक्खन में मिश्रित करके देने से तुरंत लाभ मिलता है.
कस्तूरी में तीव्र गंध आती है | शुद्ध कस्तूरी को पानी में घोलकर सूंघने से सुगंध आती है और अगर नकली है तो पानी में डालने के बाद सूंघने पर कीचड़ की तरह या विकृत गंध आती है | शुद्ध कस्तूरी पानी में अविलेय होती है पानी का रंग भी मैला नही होता | अगर आप कस्तूरी को जलाएंगे तो यह चमड़े की तरह चिट – चिट की आवाज के साथ जलती है एवं गंध भी चमड़े के सामान आती है |
इसकी तासीर गर्म होती है और इसका इस्तेमाल मुख्यतः वात, पित्त और कफ से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है. वह बताती हैं कि कस्तूरी को कामेच्छा बढ़ाने वाली, धातु परिवर्तक, नेत्रों को लाभ पहुंचाने वाली, मुख रोग, दुर्गंध, वात, तृषा, मूर्छा, खांसी, विष और शीत का नाश करने वाली औषधि माना जाता है.11
कस्तूरी कैसे कहाँ मिलती है…हिरन की कई जातियाँ होती हैं किन्तु सब जाति के हिरनों से कस्तूरी नहीं निकलती। जिस हिरन से कस्तूरी निकलती है उसको संस्कृत में 'कस्तुरीमृग', यूनानी में 'हिनमुस्की' और लेटिन में मोस्कस् मोस्कीफेरस् (Moschus moschiferus; Fam. Cervidae) कहते हैं।यह मृग उत्तरी भारत, नेपाल, आसाम, कश्मीर, मध्य एशिया, तिब्बत, भूतान, चीन एवं रूस आदि स्थानों में २४००-२७०० मी. ऊँची पहाड़ी चोटियों पर सघन जंगलों में पाया जाता है।
कस्तूरी मृग विशेषकर तिब्बत में अधिक होते हैं। यह हिरन की जाति का बहुत सुहावना और सुन्दर मृग होता है किन्तु न इसके सींग होते हैं न दुम यह मृग करीब ५० से.मी. ऊँचा, लौह के समान गहरे धूसर वर्ण का अत्यन्त सशंक स्वभाव का प्राणी होता है। इसके ऊपरी जबड़े में दो लंबे दंष्ट्र यानि दांत होते हैं, जो बाहर नीचे की ओर हुक की तरह निकले रहते हैं।
कस्तूरी मृग का मुँह लंबा, पैर पतले तथा सीधे एवं बाल रूखे और लम्बे होते हैं। इसके लिंगेन्द्रिय के मणि को ढांकने वाले चमड़े के प्रवर्धन से बनी हुई एक थैली होती है जिसके सूखे हुये साव को 'कस्तूरी' कहते हैं।
कस्तूरी केवल नर हिरन में ही यह पायी जाती है। थैली नाभि के पास, नाभि एवं शिश्नावरण के बाँच में स्थित रहती है। यह अंडाकार, ३-७.५ से.मी. लम्बी एवं २.५-५ से.मी. चौड़ी होती है। इसके अग्रभाग में केशयुक्त एक छोटा सा छिद्र होता है तथा पिछले भाग में एक सिकुड़न सी होती है जो शिश्नाप्रचर्म के मुख से मिल जाती है। इसके अन्दर के चिकने आवरण की अनियमित तहों के कारण यह कई अपूर्ण विभागों में बँटी होती है।
कस्तूरी, युवावस्था के मृगों में उनके मदकाल (Rutting season) में अधिक मात्रा में होती है तथा उसी समय उसकी शक्ति एवं गन्ध अधिक रहती है। यह काल करीब १ महीने का होता है।
राजनिघन्टु. में भी लिखा है कि
'बाले जरति च हरिणे क्षीणे रोगिणि च मन्दगन्धयुता कामातुरे च तरुणे कस्तूरी बहलपरिमला भवति।'
अर्थात-बालक, वृद्ध, क्षीण और रोगी हिरन की कस्तूरी मन्द गन्ध वाली होती है तथा कामातुर और तरुण हिरन की कस्तूरी अत्यन्त सुगन्धित होती है। जब उक्त हिरन की नाभा में कस्तूरी बन जाती है तब उसमें से कस्तूरी की गन्ध आती है और वह मृग किसी दूसरे पदार्थ की गन्ध समझकर इधर-उधर घूम-घूमकर वृक्षों को सूंघा करता है जिससे बहेलिये आसानी से पहचान कर उसको मार डालते है।
१ साल के बच्चे में कस्तूरी नहीं होती तथा २ साल के बच्चे में करीब ६-७ मा होती है जो दुधिया रहती है। वृद्ध प्राणी में भी ७ प्रा. से अधिक नहीं होती।
कस्तूरी में सुगन्ध ही एक मनोहर गुण है जो बहुत तीव्र स्वतन्त्र प्रकार की और शीघ्र फैलने वाली होती है। इसका स्वाद सुगन्ध युक्त कड़वा होता है।
कस्तूरी के प्रकार—मृग के शिकार के बाद इन नाभों को निकालकर धूप एवं हवा में सुखाते हैं। फिर इन नाभों को मृग के बालों में लपेटकर चमड़े की थैलियों में बन्द किया जाता है तथा बाद में सौलबन्द डिब्बों में या अन्दर से टीन का अस्तर लगे हुये लकड़ी के बक्सों में बन्द कर बाहर भेजा जाता है।
व्यापार की कस्तूरी ३ प्रकार की होती है।
(१) रूस की कस्तूरी- इसमें गन्ध बहुत कम होती है। (२) आसाम की कस्तूरी यह बहुत अच्छी तथा तीव्र गन्ध युक्त होती है तथा इसका रंग काला होता है। सम्भवतः प्राचीनों ने कामरूप कस्तूरी इसी को कहा है।
(३) चीन की कस्तूरी यह सबसे महगी होती हैं क्योंकि अन्य हीन श्रेणी की कस्तूरी में जो कभी-कभी अमोनिया आदि की अप्रिय गन्ध होती है वह इसमें बिलकुल नहीं होती।
यह कस्तूरी तिब्बत से ही चीन को जाती है। एक अन्य तीक्ष्ण अप्रिय गन्ध वाली कस्तूरी कॅबइन् नामक होती है जो मंगोलिया एवं मंचूरिया के उत्तरी भाग तथा पूर्वी साइबेरिया से आती है।
उत्तम कस्तूरी-रक्ताभश्याम वर्ण की, गोल बड़े दाने वाली, तीक्ष्ण गन्ध वाली, स्वाद में तिक्त, हलकी एवं मुलायम कस्तूरी उत्तम होती है। इसकी गन्ध बहुत स्थायी रहती है तथा ३००० गुना विरल (Dilute) करने पर भी गन्ध मालूम हो जाती है।
यह कहा जाता है कि शिकार के समय इसकी तीव्र गन्ध से शिकारियों के वातनाडी संस्थान, आँख एवं कान पर बुरा असर पड़ता है। चीनी व्यापारियों का कहना है कि मदकाल में जब मृग में कस्तूरी की गन्ध तीव्र हो जाती है, तब उसके प्रक्षोभ के कारण वह अपने खुरों से उसे खुरचकर निकाल देता है। ऐसी कस्तूरी मृगों के आवास स्थानों में पड़ी हुई पाई जाती है। लेकिन ऐसी कस्तूरी बहुत कठिनाई से ही मिलती है।
जगत में असली कस्तूरी की पहचान-कस्तूरी की माँग बहुत होने के कारण तथा कठिनाई से मिलने के कारण इसमें मिलावट की जाती है।
असली कस्तूरी मिलना बहुत कठिन है। व्यापारी लोग सूखा हुआ रक्त, यकृत तथा दाल, गेहूँ एवं जी के दाने आदि मिला देते हैं। केवल गन्ध से कस्तूरी की पहचान करना कठिन है क्योंकि इसके सम्पर्क में आये पदार्थ को यह सुगन्धित कर देती है।
चीन तथा तिब्बती व्यापारियों के यहाँ पहचान की कुछ पद्धतियाँ प्रचलित है जो वैज्ञानिक न होते हुये भी कुछ हद तक उपयोगी है।
बुखार का इलाज करे लता कस्तूरी
बुखार के इलाज में भी लता कस्तूरी का उपयोग किया जा सकता है। लता कस्तूरी में ज्वरनाशक गुण होते हैं, जो बुखार में लाभकारी होता है। लता कस्तूरी के ताजे पत्र-स्वरस को पिलाने से बुखार ठीक हो सकता है। लेकिन अगर बुखार किसी बीमारी की वजह से है, तो डॉक्टर की सलाह पर ही इसका सेवन करें।
आंखों के लिए उपयोगी
लता कस्तूरी का उपयोग आंखों की समस्याओं को दूर करने के लिए भी किया जा सकता है। अगर आपको आंखों से जुड़ी कोई गंभीर समस्या है, तो आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह पर इसका उपयोग किया जा सकता है।
(१) कस्तूरी के दानों को जल में डालने पर यदि दाने वैसे ही रहें तो असली और यदि वे धुल जाये तो मिलावटी रा. नि. में भी लिखा है यदप्सु न्यस्ता नैव वैवर्ण्यमीयात्कस्तूरी सा राजभोग्या प्रशस्ता जिस कस्तूरी को जल में डालने पर उसके वर्ग में परिवर्तन नहीं होता वह उत्तम होती है।
(२) जलते लकड़ों के अंगारे पर कस्तूरी के दाने डालने पर यदि वह पिघलकर उसमें से बुदबुदे निकले तो असली और यदि वह एक दम कड़ी होकर कोयला बन जाय तो नकली रा. नि. में भी लिखा है कि
'दाहं या नैति वही शिमिसिमिति चिरं धर्मगन्धा हुताशे, सा कस्तूरी प्रशस्ता वरमृगतनुजा राजते राजभोग्या
(३) असली कस्तूरी को गाड़ दें तब भी उसकी गन्ध में कोई परिवर्तन नहीं होता।
(४) असली कस्तूरी मुलायम होती है तथा मिलावट होने पर वह कड़ी होती है।
(५) पंजाब की तरफ एक परीक्षा प्रचलित है कि होंग में एक तागे को डालकर निकालते हैं फिर उसे नाभे में डालकर निकालते हैं। यदि हींग की गन्ध उस तागे में रहे तो कस्तूरी नकली मानते हैं।
(६) कागज में रखने पर इससे कागज में पीला दाग पड़ जाता है तथा जलने पर इसमें मूत्र की गन्ध आती है।
(७) कपूर, डॅलेरियन, लहसुन, हाइड्रोसाइनिक एसिड एवं अर्गट का चूर्ण आदि के सम्पर्क में आने पर कस्तूरी को गन्ध नष्ट हो जाती है।
नकली या कृत्रिम कस्तूरी (Artificial or synthetic musk) – कस्तूरी की माँग बहुत होने के कारण तथा मृग का शिकार करते करते कहीं उनकी जाति हो नष्ट न हो जाय इस डर से कृत्रिम रूप से कस्तूरी बनाने की तरफ वैज्ञानिकों का ध्यान आकृष्ट हुआ तथा रासायनिक विधि से कृत्रिम कस्तूरी अब बनाई जाने लगी है।
सरकार ने इस मृग की शिकार पर भी प्रतिबंध लगाया है। कृत्रिम कस्तूरी पीताभश्वेत रंग की तथा वेदार होती है। इनमें बहुत तीव्र तथा स्थायी गन्ध होती है जो कस्तूरी से मिलती-जुलती होते हुये भी प्राकृतिक कस्तूरी से अलग मालूम होती है।
कस्तूरी मृग का शिकार उसकी नाभी में पाई जाने वाली कस्तूरी के लिए किया जाता है। केवल नर कस्तूरा में पाई जाने वाली एक ग्राम कस्तूरी की कीमत खुले बाजार में 25 से 30 हजार रुपये बताई जाती है(२) जलते लकड़ों के अंगारे पर कस्तूरी के दाने डालने पर यदि वह पिघलकर उसमें से बुदबुदे निकले तो असली और यदि वह एक दम कड़ी होकर कोयला बन जाय तो नकली रा. नि. में भी लिखा है कि
'दाहं या नैति वही शिमिसिमिति चिरं धर्मगन्धा हुताशे, सा कस्तूरी प्रशस्ता वरमृगतनुजा राजते राजभोग्या
(३) असली कस्तूरी को गाड़ दें तब भी उसकी गन्ध में कोई परिवर्तन नहीं होता।
(४) असली कस्तूरी मुलायम होती है तथा मिलावट होने पर वह कड़ी होती है।
(५) पंजाब की तरफ एक परीक्षा प्रचलित है कि होंग में एक तागे को डालकर निकालते हैं फिर उसे नाभे में डालकर निकालते हैं। यदि हींग की गन्ध उस तागे में रहे तो कस्तूरी नकली मानते हैं।
(६) कागज में रखने पर इससे कागज में पीला दाग पड़ जाता है तथा जलने पर इसमें मूत्र की गन्ध आती है।
(७) कपूर, डॅलेरियन, लहसुन, हाइड्रोसाइनिक एसिड एवं अर्गट का चूर्ण आदि के सम्पर्क में आने पर कस्तूरी को गन्ध नष्ट हो जाती है।
नकली या कृत्रिम कस्तूरी (Artificial or synthetic musk) – कस्तूरी की माँग बहुत होने के कारण तथा मृग का शिकार करते करते कहीं उनकी जाति हो नष्ट न हो जाय इस डर से कृत्रिम रूप से कस्तूरी बनाने की तरफ वैज्ञानिकों का ध्यान आकृष्ट हुआ तथा रासायनिक विधि से कृत्रिम कस्तूरी अब बनाई जाने लगी है।
सरकार ने इस मृग की शिकार पर भी प्रतिबंध लगाया है। कृत्रिम कस्तूरी पीताभश्वेत रंग की तथा वेदार होती है। इनमें बहुत तीव्र तथा स्थायी गन्ध होती है जो कस्तूरी से मिलती-जुलती होते हुये भी प्राकृतिक कस्तूरी से अलग मालूम होती है।
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