16.11.19

मूत्र चिकित्सा (यूरिन थेरेपी) से रोग निवारण/self urine therapy




परिचय-
मूत्र चिकित्सा Urine therapy  के बारे मे जहा बाइबिल मे जिक्र है वही आयुर्वेद मे इसका विस्तृत विवरण और रोगो का निदान है आयुर्वेद मे 9 प्रकार के मूत्र के बारे मे जिक्र है वर्तमान मे गोमूत्र का प्रचलन बड़ी तेजी से बढने का मुख्य कारण इससे उन रोगो का निदान भी हो रहा है जिनका प्रचलित किसी भी पद्धति मे इलाज नही है ,परन्तु यह लेख स्वमूत्र चिकित्सा के बारे मे और अनुभव के बाद लिखा हुआ है सामान्यतः स्वमूत्र चिकित्सा का सिद्धांत ,प्राकृतिक भोजन मे ही पूर्ण स्वास्थ्य के तत्व होते है के आधार पर है जैसे जैसे शरीर की आयु बढ़ती है वैसे-वैसे शारारिक क्षमता घटने के कारण स्वास्थ्य के मुख्य तत्व मूत्र मे विसर्जित होने लगते है यदि इन्ही तत्वो को पुनः लिया जाए तो शरीर स्वस्थ्य होने लगता है चिकित्सा मे स्वमूत्र का मुख्य तीन प्रकार से प्रयोग किया जाता है
1.बाह्य रूप से -इसमे शरीर पर मालिश इत्यादि है
2.अतः करण रूप से -इसमे स्वमूत्र को पिया जाता है
3.गंध द्वारा- स्वमूत्र की गंध को सुंघकर चिकित्सा की जाती है


स्वमूत्र का प्रयोग -

स्वमूत्र चिकित्सा निम्न छह प्रकार से की जाती है-
1. स्वमूत्र से सारे शरीर की मालिश
2. स्वमूत्रपान
3. केवल स्वमूत्र और पानी के साथ उपवास
4. स्वमूत्र की पट्टी रखना
5. स्वमूत्र के साथ अन्य प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग
6. स्वमूत्र को सूर्य किरण देकर

(1) स्वमूत्र से मालिश

बड़े फोड़े, चमड़ी की सूजन, चीरे, जख्म, फफोले और आग के घाव आदि को छोड़कर शेष सभी रोगों के उपचार का आरंभ स्वमूत्र मालिश से करना चाहिए। मालिश के लिए 36 घंटे से सात-आठ दिन का पुराना स्वमूत्र ही अत्यधिक फायदेमंद सिद्ध होता है। पुराना होने पर इसमें अमोनिया नामक द्रव्य बढ़ जाता है। अमोनिया के कारण यह मूत्र शरीर के लाखोंलाख छिद्रों में जल्दी से और ज्यादा परिमाण में दाखिल हो जाता है।
प्रत्येक व्यक्ति को मालिश के लिए प्रतिदिन करीब आधा सेर स्वमूत्र की आवश्यकता होती है। सात बड़ी शीशियों में सात दिन के पुराने स्वमूत्र का संग्रह क्रम में रखा जाए। शीशियों का मुँह हमेशा बन्द रखा जाए, ताकि उसमें कोई भी जीव-जन्तु मरने न पाए। मानव मूत्र कृमिनाशक है। उसमें कीड़े नहीं पड़ते। शीशियाँ इस क्रम में रखी जाएँ, ताकि जो शीशी खाली हो जाए वह भरती जाए। सर्दी की ऋतु में या मनुष्य की प्रकृति के अनुसार रखा हुआ मूत्र थोड़ा गरम भी किया जा सकता है।
 पहले रखे हुए स्वमूत्र में से एक पाव मूत्र एक कटोरी में डालकर तलवे से कमर तक मालिश करके सुखा दें और जो गंदा अंश कटोरी में बचे उसे गिरा दें। फिर एक पाव लेकर कमर से सिर तक मालिश करनी चाहिए। मालिश हलके हाथ से करनी चाहिए, ताकि रोगी या मालिश कराने वाले को कष्ट न हो। हाथ ऊपर-नीचे ले जाना चाहिए। मालिश कितनी देर की जाए यह आवश्यकतानुसार तय किया जा सकता है। अगर मालिश के लिए अपना मूत्र पर्याप्त न हो, तो दूसरे स्वस्थ व्यक्ति का (जो उसी प्रकार का आहार लेता हो) मूत्र ले सकते हैं।
 किसी भी रोग में, स्वमूत्र का प्रयोग मालिश से प्रारंभ किया जाए तो पहले सप्ताह में ही फायदा झलकने लगता है। चार-पाँच दिन की मालिश के बाद शरीर की गरमी बाहर आने लगती है और शरीर पर लाल रंग की सफेद मुँह वाली फुंसियाँ निकल आती हैं। कभी-कभी इनमें खुजली बढ़ जाती है। कभी-कभी खुजलाने से बड़े-बड़े फोड़े निकल आते हैं। लेकिन इससे न तो घबराना चाहिए और न ही उसका बाहरी इलाज ही इलाज करना चाहिए। मूत्र मालिश का क्रम जारी रखना चाहिए। जरा जोर से मालिश कर देने पर वे फुंसियाँ फूट जाएँगी और जहाँ उनमें मूत्र दाखिल हुआ वहाँ वे शांत हो जाएँगी। बड़े फोड़े होने पर गरम मूत्र से दो-तीन बार सेंक कर दें।
 ऐसा इसलिए होता है कि मालिश से शरीर के छिद्रों द्वारा मूत्र जब अन्दर जाता है, तो छोटे-छोटे रोग भागने लगते हैं, जिसकी यह पहली प्रतिक्रिया है। खुलजी, दाद, एक्जिमा आदि तथा शरीर के अन्य सामान्य रोग केवल दस-पन्द्रह दिन की मालिश से दूर होने लगते हैं, किन्तु यदि गंभीर और जीर्ण रोग हों, जिसे सूई लेकर या दवा की पुड़िया खाकर हटाया नहीं जा सका है, उस असाध्य से असाध्य रोग को मिटाने के लिए स्वमूत्र और निर्मल पानी के साथ उपवास करना ही होगा।
 मालिश करने के दो घंटे बाद गुनगुने या ठंडे जल से स्नान करना चाहिए। किसी प्रकार के साबुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मालिश करने के बाद धूप स्नान लिया जा सकता है। मेहनत भी की जा सकती है। स्वमूत्र चिकित्सा में मूत्र मालिश का एक अद्वितीय महत्वपूर्ण स्थान है। उपवास में यदि नियमित मूत्र मालिश न की गई, तो उपवास का सारा असर जाता रहता है और वह निष्फल सिद्ध होता है।

परिचय

स्वमूत्र चिकित्सा का अर्थ है स्वयं के मूत्र द्वारा विभिन्न बीमारियों का उपचार। इस पद्धति में न तो रोगी की नाड़ी देखने की आवश्यकता है, न एक्स-रे लेने की। न थर्मामीटर लगाना है, न सूई की जरूरत। न दवा और पथ्य का सिरदर्द है और न धन या समय खर्च करने की अनिवार्यता। इसमें स्वमूत्र ही निदानकर्ता, चिकित्सक एवं दवा है। रोगी स्वयं बिना खर्च और बिना किसी परिश्रम के स्वमूत्र सेवन कर रोगमुक्त हो सकता है। स्वमूत्र चिकित्सा के माध्यम से कई असाध्य बीमारियों का उपचार भी संभव है।

इतिहास
स्वमूत्र चिकित्सा का इतिहास काफी पुराना है। भगवान शंकर के डामरतंत्रान्तर्गत शिवाम्बुकल्प की अमरौली मुद्रा का परिचायक एक श्लोक है जिसमें कहा गया है-
शिवाम्बु चामृतं दिव्यं जरारोगविनाशनम्‌।
तदादाय महायोगी कुर्याद्वै निजसाधनम्‌॥1॥
शिवाम्बु दिव्य अमृत है, बुढ़ापे एवं रोग का नाशक है। महायोगी उसका पान करके अपनी साधना करें।
इसी प्रकार दूसरा श्लोक है-
द्वादशाब्दप्रयोगेण जीवेदाचन्द्रतारकम्‌।
बाध्यते नैव सर्पाद्यैर्विषाद्यैर्न विहिंस्यते॥
न दह्येताऽग्निना क्वापि जलं तरति काष्ठवत्‌।2
बारह वर्ष तक शिवाम्बु का सेवन करने वाला चाँद-तारों की तरह दीर्घ अवधि तक जीता है। उसे सर्प आदि विषैले प्राणी पीड़ा नहीं पहुँचाते और न उस पर विष का असर होता है। वह आग से कभी नहीं जलता और पानी पर लकड़ी की तरह तैरने लगता है।
उपलब्ध ग्रंथों में प्राप्त उद्धरणों से यह स्पष्ट है कि आदिकालीन जम्बूदीप में मानव-मूत्र की चिकित्सा पद्धति प्रचलित थी और इसके आचार्य भगवान शंकर थे। कालान्तर में अरण्यांचलों में रहने तथा अपने निरन्तर अन्वेषणों के कारण ऋषि-कुल स्वमूत्र चिकित्सा के बजाय प्राकृतिक चिकित्सा की ओर झुका। 'जल, अग्नि, आकाश, मिट्टी और हवा' के विभिन्न प्रयोग कर उसने रोग से मुक्त होने की नई विधि बनाई। उसमें मूत्र चिकित्सा जैसी चमत्कारिता, पवित्रता तथा उपादेयता का अभाव रहा, इसलिए प्रकृति प्रदत्त जड़ी-बूटियों, खनिज पदार्थों आदि के गुणकारी तत्वों में पंचभूतों की खोज की गई, जिससे 'भेषज चिकित्सा' प्रणाली अविर्भूत हुई, जो आज आयुर्वेद के नाम से जानी जाती है।
भावप्रकाश में स्वमूत्र की चर्चा करते हुए इसे रसायन, निर्दोष और विषघ्न बताया गया है। डामरतन्त्र में प्राप्त उद्धरणों के अनुसार भगवान शंकर ने माता पार्वती को इसकी महिमा समझाई और कहा कि स्वशरीर के लिए स्वमूत्र अमृत है। इसके प्राशन से मनुष्य निरोग, तेजस्वी, बलिष्ठ, कांतिवान, निरापद तथा दीर्घायु को प्राप्त होता है। अथर्ववेद, हठयोगप्रदीपिका, हारीत, वृद्धवाग्भट्ट, योगरत्नाकर, जैन, बौद्ध, ईसाई आदि धर्मों के अनेक ग्रंथों में स्वमूत्र चिकित्सा की चर्चा है।
अघोरपंथी अवधूतों तथा तांत्रिकों की परम्परागत स्वमूत्र प्राशन विधि तथा स्वमूत्र मालिश क्रिया ने स्वमूत्र चिकित्सा को आज तक जीवित रखकर न केवल मानव जाति का उपकार किया है, वरन चिन्तकों के समक्ष यह यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया है कि वे इस चिकित्सा प्रणाली को पुनः प्रतिष्ठित करने की अगुआई करें।
सोलहवीं शताब्दी के सूफी कवियों और एशिया तथा यूरोप के कुछ वैज्ञानिकों ने स्वमूत्र चिकित्सा को लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया, मगर उन्हें सफलता नहीं मिली। मगर इतना निर्विवाद है कि आज भी शीत प्रदेश तथा पीत प्रदेश में रहने वाले लोग बड़ी संख्या में हैं, जो स्वमूत्र प्राशन से अपने को निरोग रखते हुए दीर्घ जीवन जीते हैं।
तिरुवनंतपुरम स्थित गवर्नमेंट आयुर्वेद कॉलेज द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक आयुर्वेदिक नारियल चटाई से लैस कमरों में रहने से कई बीमारियाँ दूर हो जाती हैं। इस शोध के अंतर्गत शोधकर्ताओं ने लोगों को दो समूहों में बाँटा। कुछ लोगों को आयुर्वेदिक तत्वों से युक्त नारियल रेशों से बनी चटाइयों से फिट कमरों में रखा गया, जबकि कुछ को साधारण कमरों में।
कुछ कमरों की आंतरिक दीवारों और फर्श को इन चटाइयों से लैस किया गया, जबकि दूसरे कमरों को इससे वंचित रखा गया। 36 रोगियों पर यह शोध किया गया। 19 रोगियों को आयुर्वेदिक चटाइयों वाले कमरों में रखा गया जबकि शेष को सामान्य कमरों में।
इन चटाइयों को कई तरह के आयुर्वेदिक तत्वों के घोल में डालकर सुखाया गया था। यहाँ तक कि बिस्तर और तकियों को भी कुछ खास तरह की जड़ी-बूटियों के घोल में डुबोकर सुखाया गया। फिर उन पर रोगियों को सोने के लिए कहा गया। दोनों तरह के रोगियों को एक ही तरह की दवाई और भोजन दिया गया। जिन रोगियों को आयुर्वेदिक कमरों में रखा गया, उनमें कई सकारात्मक बदलाव देखे गए।
आयुर्वेद के एक डॉक्टर एन. विश्वनाथन ने दावा किया कि जो रोगी चर्मरोग से ग्रस्त थे और जिन्हें आयुर्वेदिक कमरों में रखा या था, वे गैर-आयुर्वेदिक कमरों में रहने वाले लोगों की तुलना में काफी कम समय में चंगे हो गए। वे इन आयुर्वेदिक कमरों में दो सप्ताह रहने के बाद स्वस्थ हो गए, जबकि सामान्य आहार और दवा लेने वाले दूसरे रोगियों को और 26 दिनों तक स्वस्थ होने के लिए इंतजार करना पड़ा। उनके मुताबिक गठिया, उच्च रक्तचाप आदि जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों पर यह आयुर्वेदिक तकनीकी अधिक असर दिखाती है।
 अतः करण रूप मे इसका प्रयोग जहा इसको तुरंत विसर्जित वाले का सेवन किया जाता है वही बाह्य रूप मे इसका प्रयोग तुरंत विसर्जित से लेकर 9 दिन तक पुराने वाले का प्रयोग किया जाता है इसमे प्रतिदिन एक बोतल भरतेहुए 9 बोतल भर लेते हैं 10 वे दिन ,पहली दिन वाली बोतल अर्थात 9 दिन पुराने मूत्र से शरीर पर चर्म रोग ,अन्य दर्दों वाले स्थानो पर मालिश लगातार 15-20 दिन की जाए तो चर्म व अन्य रोग दूर हो जाते हैं वही तुरंत विसर्जित वाले मूत्र को आंख,कान दर्द, जैसे अनेक रोगो मे इसकी बूंद डालकर इसका प्रयोग किया जा सकता है 
  यदि बॉल झडते है तब इससे इनको धोया जाए तो उनका झड़ना बंद हो जाता है परहेज के नाम पर मात्र साबुन शेम्पू का प्रयोग नही करना है खाने के नाम पर मात्र सात्विक भोजन करना है ये तो मात्र कुछ उदहारण है मात्र उपरोक्त सरल विधि विधान से स्वमूत्र चिकित्सा द्वारा लगभग सभी रोगों का इलाज है इस पद्धति मे पहले रोग अपने चरम अवस्था मे आकर धीमे-धीमे उसका शमन होने लगता है यदि सामान्य अवस्था मे स्वमूत्र चिकित्सा को किया जाए तो तो शरीर उत्तम स्वास्थ्य को प्राप्त करता जाता है तब स्वमूत्र को जिसे हम सबसे घ्रृणित व त्याज्य मानते है वह तो हमारी सभी रोगो की रामवाण दवा है अर्थात एक अनार( स्वमूत्र),सौ बीमार की दवा है यह स्वमूत्र चिकित्सा मानव के लिए ही नही ,पशुयों के लिए भी उतनी उपयोगी है जितनी मानव के लिए .वैसे दवा दवे(रहस्य) की होती है और प्राण के मूल्य पर ,औषधि का हर रूप स्वीकार होता है तब क्या समाज मे स्वमूत्र का औषधि रूप प्रचलित हो पाएगा ? जिसको कभी हमारे भूतपूर्व प्रधान मंत्री मोरार जी देसाई ने जीवन जल का नाम दिया था अर्थात कलियुग का गंगाजल.
 स्वमूत्र चिकित्सा का अर्थ है स्वयं के मूत्र द्वारा विभिन्न बीमारियों का उपचार। इस पद्धति में न तो रोगी की नाड़ी देखने की आवश्यकता है, न एक्स-रे लेने की। न थर्मामीटर लगाना है, न सूई की जरूरत। न दवा और पथ्य का सिरदर्द है और न धन या समय खर्च करने की अनिवार्यता। इसमें स्वमूत्र ही निदानकर्ता, चिकित्सक एवं दवा है। रोगी स्वयं बिना खर्च और बिना किसी परिश्रम के स्वमूत्र सेवन कर रोगमुक्त हो सकता है।
 स्वमूत्र चिकित्सा के माध्यम से कई असाध्य बीमारियों का उपचार भी संभव है।स्वमूत्र चिकित्सा निम्न छह प्रकार से की जाती है|स्वमूत्र से सारे शरीर की मालिश स्वमूत्रपान,केवल स्वमूत्र और पानी के साथ उपवास,स्वमूत्र की पट्टी रखना,स्वमूत्र के साथ अन्य प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग|स्वमूत्र को सूर्य किरण देकर प्रावीष्ठ बड़े फोड़े, चमड़ी की सूजन, चीरे, जख्म, फफोले और आग के घाव आदि को छोड़कर शेष सभी रोगों के उपचार का आरंभ स्वमूत्र मालिश से करना चाहिए। मालिश के लिए 36 घंटे से सात-आठ दिन का पुराना स्वमूत्र ही अत्यधिक फायदेमंद सिद्ध होता है। पुराना होने पर इसमें अमोनिया नामक द्रव्य बढ़ जाता है। अमोनिया के कारण यह मूत्र शरीर के लाखों लाख छिद्रों में जल्दी से और ज्यादा परिमाण में प्रविष्ठ>हो जाता है।
 प्रत्येक व्यक्ति को मालिश के लिए प्रतिदिन करीब आधा लीटर स्वमूत्र की आवश्यकता होती है। सात बड़ी शीशियों में सात दिन के पुराने स्वमूत्र का संग्रह क्रम में रखा जाए। शीशियों का मुँह हमेशा बन्द रखा जाए, ताकि उसमें कोई भी जीव-जन्तु मरने न पाए। मानव मूत्र कृमिनाशक है। उसमें कीड़े नहीं पड़ते। शीशियाँ इस क्रम में रखी जाएँ, ताकि जो शीशी खाली हो जाए वह भरती जाए। सर्दी की ऋतु में या मनुष्य की प्रकृति के अनुसार रखा हुआ मूत्र थोड़ा गरम भी किया जा सकता है।पहले रखे हुए स्वमूत्र में से एक पाव मूत्र एक कटोरी में डालकर तलवे से कमर तक मालिश करके सुखा दें और जो गंदा अंश कटोरी में बचे उसे गिरा दें। फिर एक पाव लेकर कमर से सिर तक मालिश करनी चाहिए। मालिश हलके हाथ से करनी चाहिए, ताकि रोगी या मालिश कराने वाले को कष्ट न हो। हाथ ऊपर-नीचे ले जाना चाहिए। मालिश कितनी देर की जाए यह आवश्यकतानुसार तय किया जा सकता है। अगर मालिश के लिए अपना मूत्र पर्याप्त न हो, तो दूसरे स्वस्थ व्यक्ति का (जो उसी प्रकार का आहार लेता हो) मूत्र ले सकते हैं।सभी रोग में, स्वमूत्र का प्रयोग मालिश से प्रारंभ किया जाए तो पहले सप्ताह में ही फायदा झलकने लगता है।

15.11.19

चक्कर आना(Vertigo) के आयुर्वेदिक उपचार



आपने कभी न कभी महसूस किया ही होगा कि अचानक से आपकी आंखों के आगे अंधेरा-सा छा गया हो, फिर चाहे आप बैठे हों या खड़े हों। साथ ही कभी न कभी आपको ऐसा भी लगा होगा कि अचानक आपका सिर घूमने लगा है। अगर हां, तो यह चक्कर आने के लक्षण हैं। अगर आपको भी बार बार चक्कर आना या सिर चकराने जैसी समस्या हुई है, तो स्टाइलक्रेज का यह लेख खास आपके लिए है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि चक्कर किन कारणों से आते हैं, इसके लक्षण क्या हैं और इनसे राहत पाने के लिए क्या किया जा सकता है।क्‍या आपके साथ भी कभी ऐसा होता है, कि अचानक से आसपास रखी सारी चीजें मानों घूमने लगती हों या आपकी आंखों के सामने एक तेज रौशनी के बाद अंधेरा सा होने लगता हो। आपके आसपास की आवजे आपको सुनाई देना बंद होने लगता हो और आप जमीन पर गिर पड़ते हों। जी हां ऐसा ही कुछ होता है अचानक जब आपको चक्‍कर आ जाता है। अचानक चक्‍कर आने के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि ज्‍यादा समय भूखे पेट रहना, कमजोरी या अन्‍य कोई वजह जिसकी वजह से आप अचानक बेहोश गिर पड़ते हैं। वैसे कई बार तो चक्‍कर ज्‍यादा देर बैठे रहने के बाद अचानक उठने पर भी आते हैं, जिसमें आपको लगता है मानो पूरी धरती गोल-गोल घूम रही हो। यह सब मस्तिष्‍क में रक्‍त की पूर्ति की कमी होने के कारण या रक्‍तचाप कम होने के कारण होता है। लेकिन अचानक व बार-बार चक्‍कर आने की स्थिति को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इस स्थिति में आप अपने घर पर रखी कुछ चीजों का इस्‍तेमाल उपचार के तौर पर कर सकते हैं।वर्टिगो सबसे आम बीमारियों में से एक है। वर्टिगो का अर्थ है चक्कर आने की भावना। इस बीमारी में आपको अपने आस पास की चीजे घूमती हुई लगती हें। इस बीमारी में व्यक्ति को उल्टी और मितली हो सकती हैं। वर्टिगो के कुछ गंभीर मामलों में व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है, लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता है। वर्टिगो में अक्सर चक्कर आने के कारण मालूम नहीं हो पाते हें। वर्टिगो, प्रकाशस्तंभ के समान नहीं है। वैसे तो यह बीमारी अपने आप ही ठीक हो जाती ही । वर्टिगो का उपचार कारण पर निर्भर करता है। लोकप्रिय उपचारों में कुछ शारीरिक आभ्यास शामिल हैं और यदि आवश्यक हो, तो विशेष दवाएं जिन्हें वेस्टिबुलर ब्लॉकिंग एजेंट (vestibular blocking agents) कहा जाता है दी जातीं हैं।
वर्टिगो का अर्थ है चलते-चलते या अचानक खड़े होने पर चक्कर आना। इसमें व्यक्ति को शारीरिक संतुलन बनाए रखने में समस्या होती है। यह कई स्थितियों का लक्षण है। यह तब हो सकता है जब आंतरिक कान, मस्तिष्क या संवेदी तंत्रिका मार्ग के साथ कोई समस्या उत्पन्न हो रही हो। हम आपको बता दें कि ऊंचाई के डर (fear of heights) को वर्टिगो नहीं कहते। इसे एक्रोफोबिया (Acrophobia) कहा जाता है और वह वर्टिगो से बहुत अलग होता है।
यह अक्सर अधिक ऊंचाई से नीचे देखने के साथ जुड़ा हुआ है लेकिन ऊंचाई से नीचे देखने पर चक्कर आना किसी भी अस्थायी आंतरिक कान या मस्तिष्क में समस्याओं के कारण हो सकता है।
इस बीमारी के कारणों में मिनियर रोग (Meniere’s disease) आंतरिक कान का बिकार (बेनाइन पैरॉक्सिज्मल पोजिशनल वर्टिगो) और तंत्रिका कि सूजन सहित और भी रोग हो सकते हें।
चक्कर आने का कारण –
चक्कर आने के कई कारण हो सकते हैं, नीचे हम इसके कुछ सामान्य कारण बता रहे हैं, जिस वजह से यह समस्या हो सकती है
माइग्रेन : यह ऐसा विकार है, जिसमें गंभीर सिरदर्द होता है। माइग्रेन होने पर सिरदर्द के पहले या सिरदर्द के बाद चक्कर आ सकते हैं।
चिंता या तनाव : चिंता या तनाव भी चक्कर आने का कारण बन सकता है। ऐसे में आपको असामान्य रूप से सांस लेने की समस्या हो सकती है।
लो ब्लड शुगर : सिर में चक्कर आना लो ब्लड प्रेशर के कारण भी हो सकता है। यह आमतौर पर डायबिटीज के मरीजों में देखने को मिलता है।
लो ब्लड प्रेशर : लो ब्लड प्रेशर यानी कम रक्तचाप के कारण चक्कर आना आम है। कम रक्तचाप होने से मस्तिष्क में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती, जिस कारण चक्कर आने लगते हैं।
अचानक से रक्त प्रवाह होना : जब आप काफी देर से बैठे हो और अचानक से उठो, तो रक्त प्रवाह में तेजी से बदलाव आता है, जिस कारण कभी-कभी चक्कर आ सकते हैं।
डिहाइड्रेशन, गर्मी या थकान : तेज गर्मी में, शरीर में पानी की कमी होने पर या फिर थकान होने पर भी चक्कर आ सकते हैं।
वर्टिगो के लक्षण
वर्टिगो वाले व्यक्ति को यह महसूस होगा कि उनका सिर, या उनके आसपास का वातावरण घूम रहा है या चल रहा है।
वर्टिगो की अन्य स्थितियों का यह एक लक्षण हो सकता है, और इससे संबंधित कई लक्षण एक साथ भी हो सकते है। जिनसे आप वर्टिगो का पता लगा सकते हैं, इसमें शामिल है:
संतुलन बनाने में समस्या
मोशन सिकनेस की भावना
मतली और उल्टी
ठीक से सुनाई न देना
टिनिटस (किसी एक कान में सीटी जैसी आवाज आना)
कान में किसी चीज के होने की भावना
आंखों को नियंत्रित करने में समस्या
सिरदर्द
जी मिचलाना
वर्टिगो बेहोशी की सामान्य भावना नहीं है। यह एक घूर्णी चक्कर जैसा होता है।
कारण के आधार पर, वर्टिगो विभिन्न प्रकार के होते हैं। वर्टिगो के दो मुख्य प्रकार निम्न हैं।
पेरिफेरल वर्टिगो आमतौर पर तब होता है जब आंतरिक कान के संतुलन अंगों में गड़बड़ी होती है। आंतरिक कान या वेस्टिबुलर तंत्रिका (कान का आंतरिक हिस्सा, जो शरीर के संतुलन को नियंत्रित करता है) में एक समस्या के कारण पेरिफेरल वर्टिगो होता है। वेस्टिबुलर तंत्रिका आंतरिक कान को मस्तिष्क से जोड़ती है। ऐसे में, व्यक्ति को अपना संतुलन बनाये रखने में परेशानी होती है।
सेंट्रल वर्टिगो तब होता है जब मस्तिष्क में कोई समस्या होती है, विशेष रूप से सेरिबैलम या मध्य मस्तिष्क में सेरिबैलम हिंदब्रेन (मस्तिस्क का पिछला हिस्सा) है जो मूवमेंट और संतुलन के समन्वय को नियंत्रित करता है। सेंट्रल वर्टिगो मस्तिष्क के एक या एक से अधिक हिस्सों में गड़बड़ी के परिणामस्वरूप होता है, जिसे संवेदी तंत्रिका मार्ग के रूप में जाना जाता है।
परिधीय वर्टिगो
लगभग 93 प्रतिशत वर्टिगो के मामले परिधीय वर्टिगो हैं, जो निम्न में से एक के कारण होता है:
सौम्य पैरॉक्सिस्मल पॉसिबल वर्टिगो आपके सिर की स्थिति में होने वाले परिवर्तनों के कारण होता है। कान के अन्दर के घुमे हुये भाग में तैरते कैल्शियम क्रिस्टल की वजह से यह बीमारी होती हैं।
मिनियर रोग (Meniere) एक आंतरिक कान का विकार है जो शरीर के संतुलन और हमारी सुनने कि क्षमता को प्रभावित करता है।
तीव्र परिधीय वेस्टिबुलोपैथी (एपीवी) आंतरिक कान की सूजन है, जो अचानक चक्कर की शुरुआत का कारण बनती हैं।
एक और प्रकार का वर्टिगो होता है, जिसे सेंट्रल वर्टिगो (central vertigo) कहा जाता है। यह दिमाग के निचले या पिछले हिस्से (सेरिबैलम) में समस्या होने पर होता है। इसके कारण पेरिफेरल वर्टिगो (Peripheral Vertigo) के कारण से कुछ अलग हो सकते हैं, जैसे
केंद्रीय वर्टिगो के कारण
आघात
दिमाग के मध्य भाग में एक ट्यूमर
माइग्रेन
मल्टीपल स्क्लेरोसिस
वर्टिगो को मोशन सिकनेस के समान लगता है, या जैसे कमरा घूम रहा है।
सिर से जुड़ी बीमारी के कारण वर्टिगो के निम्न लक्षण हो सकते हैं
जी मिचलाना
उल्टी
सरदर्द
चलते समय ठोकर खाना
वर्टिगो का निदान
वर्टिगो के प्रकार को निर्धारित करने के लिए टेस्ट
हेड-थ्रस्ट टेस्ट( Head-thrust test): आप परीक्षार्थी की नाक पर नज़र डालते हैं, और परीक्षार्थी एक त्वरित सिर की तरफ गति करता है और आँख की गति को देखता है।
रोमबर्ग परीक्षण (Romberg test): आप एक जगह पैरों के बल खड़े होते हैं और आँखें खुली होती हैं, फिर अपनी आँखें बंद करें और संतुलन बनाए रखने की कोशिश करें।
फुकुदा-ऊंटबर्गर परीक्षण (Fukuda-Unterberger tes)t: आप से अपनी आंखों को बंद कर के जगह-जगह मार्च करने के लिए कहा जाता है।
डिक्स-हिलपाइक परीक्षण: आप एक कुर्सी पर बेठ कर अपनी दाएं तथा बाए झुकते हें अब एक डॉक्टर आपके चक्कर के बारे में अधिक जानने के लिए आपकी आंख की चाल को देखेगा जिससे यह पता चलता हें आप को वर्टिगो कि समस्या हें कि नहीं।
वर्टिगो के लिए इमेजिंग परीक्षणों में शामिल हैं
सीटी स्कैन
एमआरआई
वर्टिगो का इलाज
वर्टिगो का उपचार कारण पर निर्भर करता है। कुछ प्रकार के वर्टिगो बिना उपचार के टीक हो जाते हैं, लेकिन किसी भी अंतर्निहित समस्या के कारण वर्टिगो होने पर चिकित्सा ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है, उदाहरण के लिए, एक जीवाणु संक्रमण जिसमें एंटीबायोटिक चिकित्सा की आवश्यकता होगी।
ड्रग्स कुछ लक्षणों को राहत दे सकता है, उदाहरण के लिए, मोशन सिकनेस और मतली को कम करने के लिए एंटीहिस्टामाइन या एंटी-इमीटिक्स (antihistamines or anti-emetics) दवाएं शामिल हो सकतीं हैं।
मध्य कान के संक्रमण से जुड़े एक तीव्र वेस्टिबुलर विकार वाले मरीजों को स्टेरॉयड, एंटीवायरल ड्रग्स या एंटीबायोटिक दवाइयां दी जा सकती हैं।
न्यस्टागमस एक अनियंत्रित आंख मूवमेंट है, आमतौर पर एक साइड से दसरी साइड की ओर। यह तब हो सकता है जब किसी व्यक्ति को मस्तिष्क या आंतरिक कान की शिथिलता के कारण चक्कर आता है।
कभी-कभी, अंतरंगनीय सौम्य पैरॉक्सिस्मल पोजीटिअल वर्टिगो (BPPV) के रोगियों के इलाज के लिए आंतरिक सर्जरी की जाती है। सर्जन उस क्षेत्र को अवरुद्ध करने के लिए आंतरिक कान में एक हड्डी प्लग (bone plug) लगाता है जहां से वर्टिगो (सिर का चक्कर) को उत्पन्न किया जाता है।
वेस्टिबुलर ब्लॉकिंग एजेंट (VBA) सबसे लोकप्रिय प्रकार की दवा है। वेस्टिबुलर ब्लॉकिंग एजेंटों में शामिल हैं:
एंटीहिस्टामाइन (प्रोमेथाज़िन, बिटाहिस्टिन)
बेंज़ोडायजेपाइन (डायजेपाम, लॉराज़ेपम)
एंटीमेटिक्स (प्रोक्लोरेरज़ीन, मेटोक्लोप्रमाइड)
वर्टिगो के जोखिम कारक
वर्टिगो के जोखिम को बढ़ाने वाले कारकों में शामिल हैं:
हृदय रोगों, विशेष रूप से पुराने वयस्कों में
हाल ही में कान के संक्रमण, जो भीतरी कान में असंतुलन का कारण बनता है
सिर का आघात
एंटीडिप्रेसेंट्स और एंटीसाइकोटिक्स जैसी दवाएं
सावधानियां
जो कोई भी वर्टिगो या अन्य प्रकार के चक्कर का अनुभव करता है, उसे ड्राइविंग या सीढ़ी का उपयोग नहीं करना चाहिए। गिरने से बचने के लिए घर में अनुकूलन करना एक अच्छा विचार हो सकता है। धीरे-धीरे उठने से समस्या दूर हो सकती है। लोगों को ऊपर की ओर देखते समय ध्यान रखना चाहिए और सिर की स्थिति में अचानक बदलाव नहीं करना चाहिए।
वर्टिगो के घरेलू उपचार
तुलसी और साइप्रस का तेल
वर्टिगो के लक्षण जैसे सिरदर्द से छुटकारा दिलाने में तुलसी मदद कर सकती है। तुलसी और साइप्रस के तेल कि दो –दो बुँदे ले मलें और माथे में रख दे क्योंकि तुलसी एक दर्द निवारक ओषधि हैं। इसलिए यह सिर दर्द से छुटकारा दिलाने में मदद करती है।
*पकने के बाद सूखी हुई लौकी को डण्ठल की तरफ से काट दें, ताकि अन्दर का खोखलापन दिखाई दे। अगर सूखा गूदा हो तो उसे निकाल दें। अब इसमें ऊपर तक पानी भर कर 12 घण्टे तक रखें फिर हिलाकर पानी निकाल कर साफ कपड़े छान लें। इस पानी को ऐसे बर्तन में भरें, जिसमें आप अपनी नाक डुबो सकें। नाक डुबोकर जोर से सांस खींचें, ताकि पानी नाक से अन्दर चढ़ जाए। पानी खींचने के बाद नाक नीची करके आराम करें। इस उपाय से चक्कर आने की समस्या सदा के लिए खत्म हो जाती है।
पेपरमिंट ऑयल
तीन से चार बूंद पेपर मेंट ऑयल ओर एक चम्मस बादाम का तेल ले अब दोनों को मिला ले और फिर इसे अपनी गर्दन तथा माथे पर लगाये इससे आपको सिर दर्द ठीक हो जायेगा।
अदरक
वर्टिगो के घरेलू उपचार में अदरक बहुत लाभदायक होता है। अदरक का एक टुकड़ा, शक्कर, आधा चम्मच चाय पत्ती और एक कप दूध इन सभी को एक वर्तन में लेकर गरम करे और छानकर पिए। इससे आपको उल्टी, जी मिचलाना आदि से राहत मिलेगी।
*चक्कर आने पर तुलसी के रस में चीनी मिलाकर सेवन करने से या तुलसी के पत्तों में शहद मिलाकर चाटने से चक्कर आना बंद हो जाता है।
*चक्कर आने पर धनिया पाउडर दस ग्राम तथा आंवले का पाउडर दस ग्राम लेकर एक गिलास पानी में भिगो कर रख दें। सुबह अच्छी तरह मिलाकर पी लें। इससे चक्कर आने बंद हो जाते है।
*सिर चकराने पर आधा गिलास पानी में दो लौंग डालकर उसे उबाल लें और फिर उस पानी को पी लें। इस पानी को पीने से लाभ मिलता है।
*10 ग्राम आंवला, 3 ग्राम काली मिर्च और 10 ग्राम बताशे को पीस लें। 15 दिनों तक रोजाना इसका सेवन करें चक्कर आना बंद हो जाएगा।
*जिन लोगों को चक्कर आते हैं उन्हें दोपहर के भोजन के 2 घंटे पहले और शाम के नाश्ते में फलों का जूस पीना चाहिए। रोजाना जूस पीने से चक्कर आने बंद हो जाएंगे। लेकिन ध्यान रखें कि जूस में किसी प्रकार का मीठा या मसाला नहीं डालें सादा जूस पियें। जूस की जगह चाहें तो ताजे फल भी खा सकते हैं।

शहद
चक्कर आने पर शहद काफी प्रभावी तरीके असर डालता है। आपको बता दें कि जब शरीर में ब्लड शुगर का स्तर कम होने लगता है, तो चक्कर आने लगते हैं। ऐसे में शहद का सेवन करना चाहिए, जिसमें प्राकृतिक शर्करा होती है। शहद आपको ऊर्जा प्रदान करती है। इससे ब्लड शुगर लेवल नियंत्रित रहता है
लोबान तेल
लोबान तेल कि कुछ बुँदे ले ओर अपने कंधे कि मसाज करें। इससे आपको सिर दर्द तथा अकडन से छुटकारा मिलेगा।
बादाम

बादाम पौष्टिक गुणों से भरपूर है। एक स्वस्थ शरीर के लिए नियमित रूप से बादाम का सेवन काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। बादाम में प्रचुर मात्रा में विटामिन-ई व विटामिन-बी होता है, जो आपको ऊर्जा प्रदान करता है। ऊर्जा से भरपूर बादाम चक्कर आने से राहत दिलाता है
पर्याप्त मात्रा में नींद लेना
नींद की कमी से वर्टिगो की भावनाओं को ट्रिगर किया जा सकता है। यदि आप पहली बार वर्टिगो का अनुभव कर रहे हैं, तो यह तनाव या नींद की कमी का परिणाम हो सकता है। यदि आप यह सोच रहे हैं कि आप क्या कर सकते हैं तो एक छोटी झपकी ले सकते हैं, इससे आपकी चक्कर की भावनाओं को कम किया जा सकता है।
*नारियल का पानी रोज पीने से भी चक्कर आने बंद हो जाते है।
*चाय व कॉफ़ी कम पीनी चाहिए। अधिक चाय व कॉफ़ी पीने से भी चक्कर आते हैं।
*20 ग्राम मुनक्का घी में सेंककर सेंधा नमक डालकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते है।
*खरबूजे के बीजों को पीसकर घी में भुन लें। अब इसकी थोड़ी थोड़ी मात्रा सुबह शाम लें, इससे चक्कर आने की समस्या में बहुत लाभ होता है।

आंवला
चक्कर आने पर आंवले का सेवन लंबे समय से किया जा रहा है। आंवले में विटामिन-ए और विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में होता है। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसके अलावा, इससे रक्त संचार भी दुरुस्त रहता है, जिससे चक्कर आने की समस्या से राहत मिलती है
क्या करें?
आप आंवले का पेस्ट बनाकर इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए आप 10 ग्राम आंवला लें। उसमें तीन काली मिर्च और कुछ बताशे मिलाकर पीस लें। इस पेस्ट का आप 15 दिन तक रोजाना सेवन करें। इससे आपकी चक्कर आने की समस्या धीरे-धीरे कम होगी।
इसके अलावा, आप आंवले का मुरब्बा या आंवला कैंडी का सेवन भी नियमित रूप से कर सकते हैं।
नींबू
चक्कर आने पर नींबू का सेवन करना काफी प्रभावी होता है। इसमें विटामिन-सी होता है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसके अलावा, नींबू शरीर को हाइड्रेट रखता है, जिससे चक्कर आने के दौरान राहत मिलती है
क्या करें?
चक्कर आने पर एक गिलास पानी में आधा नींबू निचोड़ लें।
इस पानी में एक चम्मच चीनी डालें और इस मिश्रण को पी लें।
सलाद में नींबू का सेवन करने से भी आपको आराम मिलेगा

पर्याप्त पानी पीना



कभी-कभी सिर का चक्कर निर्जलीकरण के कारण होता है। ऐसा होने पर सोडियम का सेवन कम करने से मदद मिल सकती है। लेकिन हाइड्रेटेड रहने का सबसे अच्छा तरीका है जिसमे कि आप बस भरपूर मात्रा में पानी पिएं। अपने पानी के सेवन पर नजर रखें और गर्म, नम स्थितियों और पसीने से तर स्थितियों के बारे में जानने की कोशिश करें जो आपको अतिरिक्त तरल पदार्थ खो सकते हैं। जब आप निर्जलित हो जाते हैं, तब अतिरिक्त पानी पीने की योजना बनाएं। बस इस बात से अवगत रहें कि आप कितना पानी पी रहे हैं, आप देखतें हैं कि यह वर्टिगो को कम करने में आपकी मदद करता है।
वर्टिगो उतना खतरनाक बीमारी नहीं है, लेकिन अगर यह होता रहता है तो यह एक अंतर्निहित स्थिति का लक्षण है। घर पर वर्टिगो का इलाज करना अल्पकालिक समाधान के रूप में काम कर सकता है। लेकिन अगर आपको लगातार चक्कर आना जारी है, तो इसका कारण पता लगाना महत्वपूर्ण है। आपका सामान्य चिकित्सक इसकी जाँच करने में सक्षम हो सकता है, या आपको आगे की जाँच के लिए एक कान, नाक और गले के विशेषज्ञ या न्यूरोलॉजिस्ट के लिए भेजा जा सकता है।
स्वस्थ आहार लें
अगर आपको चक्कर आने की समस्या है और चक्कर की दवा से बचना चाहते हैं, तो जरूरी है कि आप स्वस्थ खानपान लें। एक स्वस्थ खानपान आपको कई समस्याओं से दूर रखने में मदद करता है। खाना ऐसा खाएं, जो जरूरी पोषक तत्वों से भरपूर हो। अपने आहार में आयरन, विटामिन-ए, फाइबर व फोलेट से भरपूर खाद्य पदार्थ लें। नीचे हम बता रहे हैं कि चक्कर आने से बचने के लिए आपको अपने खानपान में क्या शामिल करना चाहिए :
विटामिन-सी : चक्कर से बचने के लिए विटामिन-सी लेना जरूरी है। इसके लिए आप संतरे, नींबू व अंगूर जैसी चीजों का सेवन करें।
आयरन : जैसा कि हमने बताया शरीर में खून की कमी होने से भी चक्कर आते हैं। ऐसे में आयरन की जरूरत होती है। आप आयरन युक्त चीजें जैसे पालक, सेब व खजूर आदि का सेवन करें।
फोलिक एसिड : फोलिक एसिड का सेवन करना भी जरूरी है। इसके लिए आप हरी सब्जियों जैसे – ब्रोकली, अनाज, मूंगफलियां व केले को अपने खानपान में शामिल करें।

14.11.19

वजन कम करने के लिए पानी कितना ,कैसे पीएं?how much water to lose weight




सेहत के लिए सबसे जरुरी है भरपूर मात्रा में पानी पीना। खासकर, अगर आप वजन कम करने का सोच रहे हैं तो पानी और भी जरुरी हो जाता है। पानी पीने से कैलोरी इनटेक कम हो जाती है क्योंकि इससे आपका पेट भरा हुआ रहता है।

 शोधकर्ता इस बात पर पूर्ण सहमत हैं कि पानी कैलोरी के सेवन को कम करता है, मेटाबोलिस्म को बढ़ाता है और पूर्णता की भावना को बनाए रखता है। इसके साथ ही पानी कोशिकाओं को हाइड्रेटेड रखने,   डिटॉक्सिफिकेशन और वजन घटाने की प्रक्रियाओं में योगदान देता है। यही कारण है कि फिटनेस विशेषज्ञ व्यक्तियों को “अधिक पानी” पीने की सलाह देते हैं। आप इस लेख में पानी और वजन कम करने के बीच संबंध को जान पायेगें। इस आर्टिकल में आप निम्न प्रश्नों के बारे में जानेगें, जैसे- पानी कैसे वजन कम करने में मदद करता है? वजन घटाने के लिए कितना पानी पीना पर्याप्त है? और वजन कम करने के लिए रोज कितना पानी पीना चाहिए।
 रिसर्च द्वारा स्पष्ट किया गया है कि, पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से वजन में कमी आती है। पानी थर्मोजेनेसिस (thermogenesis) को बढ़ाने में मदद करता है। यह प्रक्रिया शरीर में ऊष्मा के उत्पादन अर्थात चयापचय की क्रिया को बढ़ाती है। इसके अतिरिक्त भोजन से पहले पानी पीने से, पूर्णता की भावना में वृद्धि होती है जिससे पेट भरा हुआ महसूस करता है और जिससे अधिक भोजन का सेवन करने से बचा जा सकता है।

वजन घटाने के लिए कैसे पीएं पानी?

सुबह उठने के बाद - 2 गिलास सादा या नींबू पानी
वर्कआउट से 1 घंटे पहले - 2 गिलास
वर्काउट के बाद - 2 गिलास
खाने से 30 मिनट पहले - 2 गिलास
स्नैक्स टाइम - 2 गिलास पानी या डिटॉक्स वॉटर |एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन नहीं करने वाले व्यक्तियों की अपेक्षा, उन लोगों में जो पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करते थे उनमे 12 सप्ताह में 44% अधिक वजन में कमी देखी गई।
 
गर्म पानी है ज्यादा फायदेमंद?

सर्दी हो या गर्मी, एक्सपर्ट हमेशा गुनगुना पानी पीने की ही सलाह देते हैं। दरअसल, ठंडे पानी से फैट जम जाता है और जल्दी नहीं पिघलता इसलिए हमेशा गुनगुना पानी पीने की सलाह दी जाती हैं। वहीं सुबह 1 गिलास गुनगुना पानी पीने से मेटाबॉलिज्म भी बूस्ट होता है, जिससे आप दिनभर एनर्जी के साथ वजन घटाने में भी काफी मदद मिलती है। यही नहीं, शरीर को डिटॉक्सीफाई करने के लिए गुनगुना पानी पीना फायदेमंद होता है।   पानी, लिपोलिसिस (lipolysis) की क्रिया को बढ़ाता है। लिपोलिसिस एक चयापचय प्रक्रिया है जिसके माध्यम से लिपिड ट्राइग्लिसराइड्स (lipid triglycerides) को ग्लिसरॉल और फैटी एसिड में हाइड्रोलाइज किया जाता है।
ऐसे आहार जिसमे अधिक पानी हो का सेवन करने से बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) कम हो जाता है, 
 अतः पानी का अधिक मात्रा में सेवन करने से व्यक्तियों को वजन कम करने में मदद मिल सकती है। पर्याप्त पानी का सेवन भूख में कमी करने, पूर्णता में वृद्धि करने, चयापचय और इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार करने, बीएमआई को कम करने और वसा को जलाने का काम करता है। पानी विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में भी मदद करता है, जिससे शरीर में सूजन और अन्य बीमारियों का ख़तरा कम होता है।
क्या पानी कैलोरी जला सकता है
 पीने का पानी थर्मोजेनेसिस (thermogenesis) को बढ़ाने में मदद करता है। थर्मोजेनेसिस जीवों में ऊष्मा के उत्पादन की एक प्रक्रिया है, जो कैलोरी को जलाने में मदद करती है। अधिक वजन और मोटापे से ग्रस्त बच्चों के एक अध्ययन में देखा गया है कि ठंडा पानी पीनेके बाद ऊर्जा की खपत 25% तक बढ़ गई। इसी के साथ एक अध्ययन में पाया कि 0.5 लीटर पानी पीने से अतिरिक्त 23 कैलोरी बर्न हो जाती है।
 पानी प्राकृतिक रूप से कैलोरी-मुक्त (calorie-free) होता है, इसलिए इसे आमतौर पर कम कैलोरी डाइट में शामिल किया जाता है। भोजन से पहले पानी पीने से मध्यम आयु वर्ग और वृद्ध व्यक्तियों को भूख कम लगती है। जिसके फलस्वरूप कैलोरी की मात्रा घटती है, और वजन में कमी आती है।
पेयजल या पीने का पानी भूख को प्रभावित करता है और पूर्णता में सुधार होता है। अध्ययनों से पता चला है कि नियमित रूप से भोजन से कुछ समय पहले पानी पीने से भूख में कमी आती है और 12 सप्ताह की अवधि में 2 किलो वजन कम हो सकता है। अतः वजन कम करने का प्रयास करने वाले व्यक्तियों को भोजन के 20 से 30 मिनट पहले पानी पीने की सलाह दी जाती है। एक अध्ययन से पता चला है कि नाश्ते से पहले पानी का सेवन करने से भोजन के दौरान कैलोरी की खपत 13% तक कम हो जाती है।
वजन घटाने के लिए एक दिन में कितना पानी पीना चाहिए
 सामान्य स्थितियों में, जब व्यक्ति वर्कआउट नहीं करता है, तब महिलाओं के लिए प्रतिदिन 2200 मिलीलीटर (2 लीटर) और पुरुषों को 3000 मिलीलीटर (3 लीटर) पानी पीना चाहिए। लेकिन यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से 60 मिनट तक कसरत (workout) करता है, तो उसे पानी का अधिक सेवन करने पर जोर देना चाहिए। एक्सरसाइज (exercising) करते समय 900 मिलीलीटर (लगभग 1 लीटर) पानी या हर 15 से 20 मिनट में 150-300 मिलीलीटर (mL) पानी घूंट-घूंट करके पीना आवश्यक होता है। जैसे-जैसे व्यायाम में वृद्धि की जाती है, तो सम्बंधित व्यक्ति को अपने आहार में हाइड्रेटिंग खाद्य पदार्थों और नारियल पानी को शामिल करने पर विचार करना चाहिए तथा इलेक्ट्रोलाइट संतुलन पर भी ध्यान रखना चाहिए।
 पानी का सेवन, किसी विशेष क्षेत्र के मौसम पर भी निर्भर करता है। शुष्क या आर्द्र क्षेत्रों में अधिक पसीना निकलने के कारण शरीर में पानी की कमी आ सकती है। अतः इस स्थिति में व्यक्ति को हर 15 मिनट में कम से कम 150 से 200 मिलीलीटर (mL) पानी पीना चाहिए।
 जो व्यक्ति औसतन वजन घटाने का प्रयास कर रहें है, उन्हें नियमित रूप से इंटेंसिव एक्सरसाइज करने के साथ-साथ महिलाओं को 4 से 5 लीटर प्रतिदिन और पुरुषों को 6 से 7 लीटर प्रतिदिन पानी पीने पर जोर देना चाहिए।
 वजन कम करने और सेल्युलर डिटॉक्सिफिकेशन (cellular detoxification) के लिए पर्याप्त इलेक्ट्रोलाइट्स की जरूरत होती है। वजन कम करने के लिए पानी की उच्च मात्रा वाले निम्नलिखित खाद्य पदार्थों का सेवन किया जा सकता हैं, जैसे:

अजवायन

खीरा
कीवी
बेल मिर्च
खट्टे फल
गाजर
अनानास
मूली , इत्यादि।

पर्याप्त पानी पीने के फायदे

पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से व्यक्ति को निम्न फायदे होते हैं जैसे:
पानी अनेक प्रकार के रोगों को रोकने में मदद करता है।
पानी शरीर में विषाक्तता को कम करने में मदद करता है।
पर्याप्त पानी का सेवन तनाव की स्थिति को कम करने में मदद करता है।
पानी मस्तिष्क के कार्य में सुधार करके मूड को बेहतर बनाने में मदद करता है।
पानी त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करता है।
फाइबर आहार के साथ अधिक पानी का सेवन, मल त्याग को बेहतर बनाने में मदद करता है।

पानी पीने का सही तरीका

-भोजन से आधा घंटे पहले कम से कम 2 गिलास पानी पीएं।
-भोजन करने के बाद भी तुरंत पानी ना पीएं। इसके 30 मिनट बाद पानी पीएं।
-बाहर से घर आने के बाद भी तुरंत पानी नहीं पीना चाहिए।
-वर्कआउट से पहले व बाद में 1-2 गिलास पानी जरूर पीएं। 
     

13.11.19

खजूर (छुहारा) अनेक मर्ज की एक औषधि







छुहारा और खजूर एक ही पेड़ की देन है। इन दोनों की तासीर गर्म होती है और ये दोनों शरीर को स्वस्थ रखने, मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।छुहारे को खारक भी कहते हैं। यह पिण्ड खजूर का सूखा हुआ रूप होता है, जैसे अंगूर का सूखा हुआ रूप किशमिश और मुनक्का होता है। छुहारे का प्रयोग मेवा के रूप में किया जाता है। इसके मुख्य भेद दो हैं- 1. खजूर और 2. पिण्ड खजूर। इसके फल लाल, भूरे या काले बेलन आकार के होते हैं, जो 6 महीनों में पकते हैं। इसके फल में एक बीज होता है और छिलका गूदेदार होता है।एक पेड़ 50 किलो फल हर मौसम में देता है। इसकी औसत उम्र 50 वर्ष आँकी गई है। इसकी खेती मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के सूखे क्षेत्रों में की जाती है। इराक, ईरान और सऊदी अरब में इसका उत्पादन सर्वाधिक होता है। ठंड के दिनों में खाया जाने वाला यह फल बहुत पौष्टिक होता है। इसमें 75 से 80 प्रतिशत ग्लूकोज होता है।
खजूर को सर्दियों का मेवा कहा जाता है और इसे इस मौसम में खाने से खास फायदे होते हैं। खजूर या पिंडखजूर कई प्रकार के पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसमें आयरन और फ्लोरिन भरपूर मात्रा में होते हैं इसके अलावा यह कई प्रकार के विटामिंस और मिनरल्स का बहुत ही खास स्त्रोत होता है।
गर्म तासीर होने के कारण सर्दियों में तो इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। खजूर में छुहारे से ज्यादा पौष्टिकता होती है। खजूर मिलता भी सर्दी में ही है।
गुण : यह शीतल, रस तथा पाक में मधुर, स्निग्ध, रुचिकारक, हृदय को प्रिय, भारी तृप्तिदायक, ग्राही, वीर्यवर्द्धक, बलदायक और क्षत, क्षय, रक्तपित्त, कोठे की वायु, उलटी, कफ, बुखार, अतिसार, भूख, प्यास, खाँसी, श्वास, दम, मूर्च्छा, वात और पित्त और मद्य सेवन से हुए रोगों को नष्ट करने वाला होता है। यह शीतवीर्य होता है, पर सूखने के बाद छुहारा गर्म प्रकृति का हो जाता है।
परिचय : यह 30 से 50 फुट ऊँचे वृक्ष का फल होता है। खजूर, पिण्ड खजूर और गोस्तन खजूर (छुहारा) ये तीन भेद भाव प्रकाश में बताए गए हैं। खजूर के पेड़ भारत में सर्वत्र पाए जाते हैं। सिन्ध और पंजाब में इसकी खेती विशेष रूप से की जाती है। पिण्ड खजूर उत्तरी अफ्रीका, मिस्र, सीरिया और अरब देशों में पैदा होता है। इसके वृक्ष से रस निकालकर नीरा बनाई जाती है।
उपयोग
खजूर के पेड़ से रस निकालकर 'नीरा' बनाई जाती है, जो तुरन्त पी ली जाए तो बहुत पौष्टिक और बलवर्द्धक होती है और कुछ समय तक रखी जाए तो शराब बन जाती है। इसके रस से गुड़ भी बनाया जाता है। इसका उपयोग वात और पित्त का शमन करने के लिए किया जाता है। यह पौष्टिक और मूत्रल है, हृदय और स्नायविक संस्थान को बल देने वाला तथा शुक्र दौर्बल्य दूर करने वाला होने से इन व्याधियों को नष्ट करने के लिए उपयोगी है। कुछ घरेलू इलाज में उपयोगी प्रयोग इस प्रकार हैं-
दुर्बलता : 4 छुहारे एक गिलास दूध में उबालकर ठण्डा कर लें। प्रातःकाल या रात को सोते समय, गुठली अलग कर दें और छुहारें को खूब चबा-चबाकर खाएँ और दूध पी जाएँ। लगातार 3-4 माह सेवन करने से शरीर का दुबलापन दूर होता है, चेहरा भर जाता है, सुन्दरता बढ़ती है, बाल लम्बे व घने होते हैं और बलवीर्य की वृद्धि होती है। यह प्रयोग नवयुवा, प्रौढ़ और वृद्ध आयु के स्त्री-पुरुष, सबके लिए उपयोगी और लाभकारी है।
इसका इस्तेमाल नियमित तौर पर करने से आप खुद को कई प्रकार के रोगों से दूर रख सकते हैं और यह कॉलेस्ट्राल कम रखने में भी मददगार है। खजूर को इस्तेमाल करने के अनगिनत फायदे हैं क्योंकि खजूर में कॉलेस्ट्रोल नही होता है और फेट का स्तर भी काफी कम होता है। खजूर में प्रोटीन के साथ साथ डाइटरी फाइबर और विटामिन B1,B2,B3,B5,A1 और c भरपूर मात्रा में होते हैं।
घाव और गुहेरी : छुहारे की गुठली को पानी के साथ पत्थर पर घिसकर, इसका लेप घाव पर लगाने से घाव ठीक होता है। आँख की पलक पर गुहेरी हो तो उस पर यह लेप लगाने से ठीक होती है।
रात में बिस्तर गीला करने वाले बच्चों के लिए खजूर अत्यधिक लाभकारी है। यह उन लोगों के लिए भी बहुत कारगर है जिन्हें बार-बार बाथरुम जाना पडता है
शीघ्रपतन : प्रातः खाली पेट दो छुहारे टोपी सहित खूब चबा-चबाकर दो सप्ताह तक खाएँ। तीसरे सप्ताह से 3 छुहारे लेने लगें और चौथे सप्ताह से 4 चार छुहारे से ज्यादा न लें। इस प्रयोग के साथ ही रात को सोते समय दो सप्ताह तक दो छुहारे, तीसरे सप्ताह में तीन छुहारे और चौथे सप्ताह से बारहवें सप्ताह तक यानी तीन माह पूरे होने तक चार छुहारे एक गिलास दूध में उबालकर, गुठली हटाकर, खूब चबा-चबाकर खाएँ और ऊपर से दूध पी लें। यह प्रयोग स्त्री-पुरुषों को अपूर्व शक्ति देने वाला, शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाने वाला तथा पुरुषों में शीघ्रपतन रोग को नष्ट करने वाला है।
*खजूर में शरीर को एनर्जी प्रदान करने की अद्भुत क्षमता होती है क्योंकि इसमें प्राक्रतिक शुगर जैसे की ग्लूकोज़, सुक्रोज़ और फ्रुक्टोज़ पाए जाते हैं। खजूर का भरपूर फायदा इसे दूध में मिलाकर इस्तेमाल करने से मिलता है।
दमा : दमा के रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाम 2-2 छुहारे खूब चबाकर खाना चाहिए। इससे फेफड़ों को शक्ति मिलती है और कफ व सर्दी का प्रकोप कम होता है।
खजूर उन लोगों के लिए अत्यधिक लाभकारी है जो वजन बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इसका उपयोग शराब पीने से शरीर को होने वाले नुकसान से बचने में भी किया जाता है।अगर पाचन शक्ति अच्छी हो तो खजूर खाना ज्यादा फायदेमंद है।
*अगर आप अपने शरीर का शुगर स्तर को खजूर के उपयोग से निय़ंत्रित कर सकते हैं। खजूर को शहद के साथ इस्तेमाल करने से डायरिया में भरपूर लाभ होता है।
*छुहारे का सेवन तो सालभर किया जा सकता है, क्योंकि यह सूखा फल बाजार में सालभर मिलता है।
खजूर से पेट का कैंसर भी ठीक होता है। इसके विषय में सबसे अच्छी बात यह है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है और इसके नियमित उपयोग से रतोंधी से भी छुटकारा मिलता है।
*छुहारा यानी सूखा हुआ खजूर आमाशय को बल प्रदान करता है।
*खजूर में पाए जाने वाली पोटेशियम की भरपूर और सोडियम की कम मात्रा के कारण से शरीर के नर्वस सिस्टम के लिए बेहद लाभकारी है। शोध से साबित हुआ है कि शरीर को पोटेशियम की काफी जरुरत होती है और इससे स्ट्रोक का खतरा कम होता है। खजूर शरीर में होने वाले LDL कॉलेस्ट्रोल के स्तर को भी कम रखकर आपके दिल के स्वास्थ्य की रक्षा करता है।
*छुहारे की तासीर गर्म होने से ठंड के दिनों में इसका सेवन नाड़ी के दर्द में भी आराम देता है।
*खजूर के उपयोग से निराशा को दूर किया जा सकता है और यह स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए अत्यधिक लाभकारी है। खजूर गर्भवती महिलाओं में होने वाली कई प्रकार की समस्याओं से छुटकारा दिलाता है क्योंकि यह बच्चेदानी की दीवार को मज़बूती प्रदान करता है। इससे बच्चों के पैदा होने की प्रक्रिया आसान हो जाती है और खून का स्त्राव भी कम होता है।
*छुहारा खुश्क फलों में गिना जाता है, जिसके प्रयोग से शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है। शरीर को शक्ति देने के लिए मेवों के साथ छुहारे का प्रयोग खासतौर पर किया जाता है।
. *सेक्सुअल स्टेमिना बढाने में खजूर की अहम भूमिका होती है। खजूर को रातभर बकरी के दूध में गलाकर सुबह पीस लेना चाहिए और फिर इसमें थोड़ा शहद और इलाइची मिलाकर सेवन करने से सेक्स संबंधी समस्याओं में बहुत लाभ होता है।
*छुहारे व खजूर दिल को शक्ति प्रदान करते हैं। यह शरीर में रक्त वृद्धि करते हैं।
*खजूर में पाया जाने वाला आयरन शरीर में खून की कमी यानी की एनीमिया को ठीक करने में बहुत कारगर है। *खजूर की मात्रा बढाकर खून की कमी को दूर किया जा सकता है। ख़जूर में फ्लूरिन भी पाया जाता है जिससे दांतों के क्षय होने की प्रकिया धीमी हो जाती है।
*साइटिका रोग से पीड़ित लोगों को इससे विशेष लाभ होता है।


*खजूर के सेवन से दमे के रोगियों के फेफड़ों से बलगम आसानी से निकल जाता है।
लकवा और सीने के दर्द की शिकायत को दूर करने में भी खजूर सहायता करता है।
*भूख बढ़ाने के लिए छुहारे का गूदा निकाल कर दूध में पकाएं। उसे थोड़ी देर पकने के बाद ठंडा करके पीस लें। यह दूध बहुत पौष्टिक होता है। इससे भूख बढ़ती है और खाना भी पच जाता है।
*प्रदर रोग स्त्रियों की बड़ी बीमारी है। छुआरे की गुठलियों को कूट कर घी में तल कर, गोपी चन्दन के साथ खाने से प्रदर रोग दूर हो जाता है।
*छुहारे को पानी में भिगो दें। गल जाने पर इन्हें हाथ से मसल दें। इस पानी का कुछ दिन प्रयोग करें, शारीरिक जलन दूर होगी।
*अगर आप पतले हैं और थोड़ा मोटा होना चाहते हैं तो छुहारा आपके लिए वरदान साबित हो सकता है, लेकिन अगर मोटे हैं तो इसका सेवन सावधानीपूर्वक करें।
*जुकाम से परेशान रहते हैं तो एक गिलास दूध में पांच दाने खजूर डालें। पांच दाने काली मिर्च, एक दाना इलायची और उसे अच्छी तरह उबाल कर उसमें एक चम्मच घी डाल कर रात में पी लें। सर्दी-जुकाम बिल्कुल ठीक हो जाएगा।
*दमा की शिकायत है तो दो-दो छुहारे सुबह-शाम चबा-चबा कर खाएं। इससे कफ व सर्दी से मुक्ति मिलती है।
घाव है तो छुहारे की गुठली को पानी के साथ पत्थर पर घिस कर उसका लेप घाव पर लगाएं, घाव तुरंत भर जाएगा।
*अगर शीघ्रपतन की समस्या से परेशान हैं तो तीन महीने तक छुहारे का सेवन आपको समस्या से मुक्ति दिला देगा। इसके लिए प्रात: खाली पेट दो छुहारे टोपी समेत दो सप्ताह तक खूब चबा-चबाकर खाएं। तीसरे सप्ताह में तीन छुहारे खाएं और चौथे सप्ताह से 12वें सप्ताह तक चार-चार छुहारों का रोज सेवन करें। इस समस्या से मुक्ति मिल जाएगी।

12.11.19

नपुंसकता की होम्योपैथिक औषधियाँ





   इस रोग में व्यक्ति को भोगेच्छा होती ही नहीं है और यदि भोगेच्छ होती भी है तो उसमें इतनी शक्ति नहीं रहती कि वह स्त्री के साथ भोग् कर सके । पूर्व में अत्यधिक भोग करना, पौष्टिक पदार्थों का अभाव, काम क्रिया से घृणा आदि कारणों से यह रोग होता है । बहुत से लोग शीघ्रपतन और नपुंसकता को एक ही समझ लेते हैं जो कि गलत है- दोनों ही अलग-अलग होते हैं । इसी प्रकार बहुत से लोग यह समझ लेते हैं कि किसी पुरुष में सन्तान पैदा करने की क्षमता न होने को नपुंसकता कहते हैं- यह विचार भी गलत है क्योंकि सन्तान पैदा कर सकने की क्षमता न होने को बाँझपन कहा जाता है । वास्तव में, नपुसंकता से तात्पर्य भोग की इच्छा या भोग की शक्ति (लिंग में कड़ापन) के अभाव से है । नपुंसकता को नामर्दी भी कहा जाता है ।

नपुंसकता की अमोघ औषधि – डामियाना, एसिड फॉस, अश्वगंधा, एवेना सैटाइवा, स्टेफिसेग्रिया- 

इन पाँचों दवाओं के मूल अर्क (मदर टिंक्चर) की दो-दो ड्राम की मात्रा में लेकर अच्छी तरह मिला लें और इस सारे मिश्रण को किसी काँच की शीशी में भरकर रख लें । इस मिश्रण में से पाँच-पाँच बूंदें आधा कप पानी में मिलाकर लें । इस प्रकार प्रतिदिन तीन बार लेने से कुछ ही दिनों में सैक्स संबंधी सभी प्रकार की कमजोरी निश्चित ही समाप्त हो जाती है और रोगी को बहुत लाभ होता है। इन पाँचों दवाओं का वर्णन इस प्रकार है ।

डामियाना –

इसे टर्नेरा एफ्रोडिसियाका भी कहते हैं । इसका प्रयोग ही शुक्र-क्षय के कारण होने वाली बीमारियों में होता है। यह दवा लिंग में कड़ापन न होना, पुरुषत्व शक्ति का घट जाना, अत्यधिक मैथुन या इन्द्रिय-दोष आदि पर काम करती है ।

सेलेनियम 6, 30 – 

वीर्य पतला पड़ जाये, आँखें धैस जायें, रोगी क्रमशः कमजोर होता जाये, लिंग में कड़ापन न आये, अनैच्छिक रूप से भी वीर्यपात हो जाता हो- इन सभी लक्षणों वाली नपुंसकता में दें ।

सैबाल सेरुलेटा Q – 

प्रतिदिन पाँच से दस बूंदों को पानी में मिलाकर लेना ही पर्याप्त हैं । इस दवा से शक्ति का अभाव दूर होता है । इस दवा का सेवन करते समय रोगी को ब्रह्मचर्य से रहना चाहिये और भोग नहीं करना चाहिये । वास्तव में, इस दवा का सेवन प्रारंभ करते ही शक्ति महसूस होगी, यदि उसी समय भोग किया गया तो शक्ति नष्ट हो जायेगी । अतः कुछ दिनों तक भोग से दूर रहते हुये इस दवा का सेवन करें ।

एनाकार्डियम 30, 200 –

 हस्तमैथुन या वेश्याभोग के कारण जो व्यक्ति स्वयं की अयोग्य मान लेते हैं और इसी कारण स्त्री से दूर रहते हैं उन्हें इस दवा का सेवन कुछ दिनों तक लगातार करना चाहिये और सेवन के समय भोग से दूर रहना चाहिये ।
एसिड फॉस – इस दवा का प्रयोग धातु-दौर्बल्य तथा वीर्यक्षयजनित बीमारियों में होता है । जो व्यक्ति हस्तमैथुन या अत्यधिक इन्द्रियचालन करते हैं तथा जिन्हें स्वप्नदोष आदि होने लगता है उनके लिये यह लाभप्रद है ।
लाइकोपोडियम 1M – डॉ० नैश के अनुसार यह नपुंसकता की बहुत कारगर दवा है । अत्यधिक मैथुन, हस्तमैथुन, वृद्धावस्था आदि के कारण आई हुई नपुंसकता में यह दवा लाभप्रद है । नपुंसकता की इससे बढ़कर अन्य दवा नहीं है । यह दीर्घ क्रिया करने वाली औषधि है अतः इसकी उच्वशक्ति की एक मात्रा देकर परिणाम की प्रतीक्षा करनी चाहिये । इसे बार-बार या जल्दी-जल्दी दोहराना नहीं चाहिये अन्यथा दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं ।
अश्वगन्धा – जिस प्रकार आयुर्वेद चिकित्सा-पद्धति में इसकी जड़ के रस का बड़े ही आदर से मर्दाना  कमजोरी हेतु प्रयोग करते हैं उसी प्रकार होमियोपैथी में भी अश्वगन्धा मूल अर्क का मर्दाना कमजोरी में प्रयोग होता है । इसके प्रयोग से शक्ति प्राप्त होती हैं ।
स्टेफिसेग्रिया – इस दवा की क्रिया प्रमुख रूप से मस्तिष्क एवं जननेन्द्रिय पर होती है। जो युवक हमेशा एकान्त पाकर काम इच्छाओं की पूर्ति (हस्तमैथुन) करते हैं व जिसकी वजह से उनके मस्तिष्क में दुर्बलता आ जाती है- उनके लिये उत्तम है । इसके सेवन से कई प्रकार के गुप्त रोगों में भी यथोचित परिणाम मिलते हैं ।
एवेना सैटाइवा – यह मूलतः ओट या जाई (जो निम्न किस्म की एक घास होती है और जिसे निर्धन वर्ग के लोग खाते हैं) है परन्तु यह एक शक्तिवर्द्धक टॉनिक भी है । किसी भी प्रकार के शारीरिक क्षय, कमजोरी आदि में इसका मूल अर्क प्रयोग होता है । अनजाने में वीर्य निकल जाना, रति-शक्ति का घट जाना, वीर्यक्षय के कारण कमजोरी आदि स्थितियों में यह दवा बहुत अच्छा काम करती है। 
विशिष्ट परामर्श-

नपुंसकता एक ऐसी समस्या है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. किसी भी पुरुष के एक पिता बनने में असमर्थ होने को पुरुष बांझपन या नपुंसकता कहा जाता है।यह तब होता है जब कोई पुरुष संभोग के लिए पर्याप्त इरेक्शन प्राप्त नहीं कर पाता या उसे मजबूत नहीं रख पाता. दामोदर चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र 
9826795656 द्वारा विकसित "नपुंसकता नाशक हर्बल औषधि" से सैंकड़ों व्यक्ति लाभान्वित हुए हैं। स्तंभन दोष दूर करने मे यह औषधि रामबाण सिद्ध होती है।

3.11.19

हृदय रोगों के आयुर्वेदिक ,घरेलू उपचार

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      हृदय हमारे शरीर का अति महत्वपूर्ण अंग है। हृदय का कार्य शरीर के सभी अवयवों को आक्सीजनयुक्त रुधिर पहुंचाना है और आक्सीजनरहित दूषित रक्त को वापस फ़ेफ़डों को पहुंचाना है। फ़ेफ़डे दूषित रक्त को आक्सीजन मिलाकर शुद्ध करते हैं। हृदय के कार्य में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न होने पर हृदय के कई प्रकार के रोग जन्म लेते हैं।हृदय संबंधी अधिकांश रोग कोरोनरी धमनी से जुडे होते हैं। कोरोनरी धमनी में विकार आ जाने पर हृदय की मांसपेशियो और हृदय को आवेष्टित करने वाले ऊतकों को आवश्यक मात्रा में रक्त नहीं पहुंच पाता है।यह स्थिति भयावह है और तत्काल सही उपचार नहीं मिलने पर रोगी की शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है। इसे हृदयाघात याने हार्ट अटैक कहते हैं। दर असल हृदय को खून ले जाने वाली नलियों में खून के थक्के जम जाने की वजह से रक्त का प्रवाह बाधित हो जाने से यह रोग पैदा होता है।
धमनी काठिन्य हृदय रोग में धमनियों का लचीलापन कम हो जाता है और धमनियां की भीतरी दीवारे संकुचित होने से रक्त परिसंचरण में व्यवधान आता है। इस स्थिति में शरीर के अंगों को पर्याप्त मात्रा में खून नहीं पहुंच पाता है। हृदय की मासपेशिया धीरे-धीरे कमजोर हो जाने की स्थिति को कार्डियोमायोपेथी कहा जाता है।हृदय शूल को एन्जाईना पेक्टोरिस कहा जाता है। धमनी कठोरता से पैदा होने वाले इस रोग में ्वक्ष में हृदय के आस-पास जोर का दर्द उठता है।रोगी तडप उठता है।
महिलाओं की तुलना में पुरुषों में हृदय संबंधी रोग ज्यादा देखने में आते है।
अब हम हृदय रोग के प्रमुख कारणों पर विचार प्रस्तुत करते हैं--

मोटापा
धमनी की कठोरता
उच्च रक्त चाप
हृदय को रक्त ले जाने वाली खून की नलियों में ब्लड क्लाट याने खून का थक्का जमना
विटामिन सी और बी काम्प्लेक्स की कमी होना
खून की नलियों में कोलेस्टरोल जमने से रक्त प्रवाह में बाधा पडने लगती है। कोलेस्टरोल मोम जैसा पदार्थ होता है जो हमारे शरीर के प्रत्येक हिस्से में पाया जाता है। वांछित मात्रा में कोलेस्टरोल का होना अच्छे स्वास्थ्य के लिये बेहद जरुरी है। लेकिन अधिक वसायुक्त्र भोजन पदार्थों का उपयोग करने से खराब कोलेस्टरोल जिसे लो डॆन्सिटी लाईपोप्रोटीन कहते हैं ,खून में बढने लगता है और अच्छी क्वालिटी का कोलेस्टरोल जिसे हाई डेन्सिटी लाईपोप्रोटीन कहते हैं ,की मात्रा कम होने लगती है। कोलेस्टरोल की बढी हुई मात्रा हृदय के रोगों का अहम कारण माना गया है। वर्तमान समय में गलत खान-पान और टेन्शन भरी जिन्दगी की वजह से हृदय रोग से मरने वाले लोगों का आंकडा बढता ही जा रहा है।
माडर्न मेडीसिन में हृदय रोगों के लिये अनेकों दवाएं आविष्कृत हो चुकी हैं। लेकिन कुदरती घरेलू पदार्थों का उपयोग कर हम दिल संबधी रोगों का सरलता से समाधान कर सकते हैं।सबदे अच्छी बात है कि ये उपचार आधुनिक चिकित्सा के साथ लेने में भी कोई हानि नहीं है।
१) लहसुन में एन्टिआक्सीडेन्ट तत्व होते है और हृदय रोगों में आशातीत लाभकारी घरेलू पदार्थ है।लहसुन में खून को पतला रखने का गुण होता है । इसके नियमित उपयोग से खून की नलियों में कोलेस्टरोल नहीं जमता है। हृदय रोगों से निजात पाने में लहसुन की उपयोगिता कई वैग्यानिक शोधों में प्रमाणित हो चुकी है। लहसुन की ४ कली चाकू से बारीक काटें,इसे ७५ ग्राम दूध में उबालें। मामूली गरम हालत में पी जाएं। भोजन पदार्थों में भी लहसून प्रचुरता से इस्तेमाल करें।
२) अंगूर हृदय रोगों में उपकारी है। जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक का दौरा पड चुका हो उसे कुछ दिनों तक केवल अंगूर के रस के आहार पर रखने के अच्छे परिणाम आते हैं।इसका उपयोग हृदय की बढी हुई धडकन को नियंत्रित करने में सफ़लतापूर्वक किया जा सकता है। हृद्शूल में भी लाभकारी है।
३) शकर कंद भूनकर खाना हृदय को सुरक्षित रखने में उपयोगी है। इसमें हृदय को पोषण देने वाले तत्व पाये जाते हैं। जब तक बाजार में शकरकंद उपलब्ध रहें उचित मात्रा में उपयोग करते रहना चाहिये।
५) आंवला विटामिन सी का कुदरती स्रोत है। अत: यह सभी प्रकार के दिल के रोगों में प्रयोजनीय है।
६) सेवफ़ल कमजोर हृदय वालों के लिये बेहद लाभकारी फ़ल है। सीजन में सेवफ़ल प्रचुरता से उपयोग करें।
७) प्याज हृदय रोगों में हितकारी है। रोज सुबह ५ मि लि प्याज का रस खाली पेट सेवन करना चाहिये। इससे खून में बढे हुए कोलेस्टरोल को नियंत्रित करने भी मदद मिलती है।
८) हृदय रोगियों के लिये धूम्रपान बेहद नुकसानदेह साबित हुआ है। धूम्र पान करने वालों को हृदय रोग होने की दूगनी संभावना रहती है।
९) जेतून का तैल हृदय रोगियों में परम हितकारी सिद्ध हुआ है। भोजन बनाने में अन्य तैलों की बजाय ओलिव आईल का ही इस्तेमाल करना चाहिये। ओलिव आईल के प्रयोग से खून में अच्छी क्वालिटी का कोलेस्टरोल(हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन) बढता है।
१०) निंबू हृदय रोगों में उपकारी फ़ल है। यह रक्तवहा नलिकाओं में कोलेस्टरोल नहीं जमने देता है। एक गिलास मामूली गरम जल में एक निंबू निचोडें,इसमें दो चम्मच शहद भी मिलाएं और पी जाएं। यह प्रयोग सुबह के वक्त करना चाहिये।
११) प्राकृतिक चिकित्सा में रात को सोने से पहिले मामूली गरम जल के टब में गले तक डूबना हृदय रोगियों के लिये हितकारी बताया गया है। १०-१५ मिनिट टब में बैठना चाहिये। यह प्रयोग हफ़्ते मॆ दो बार करना कर्तव्य है।
१२) कई अनुसंधानों में यह सामने आया है कि विटामिन ई हृदय रोगों में उपकारी है। यह हार्ट अटैक से बचाने वाला विटामिन है। इससे हमारे शरीर की रक्त कोषिकाओं में पर्याप्त आक्सीजन का संचार होता है।
१५)एक कटोरी लौकी के रस में पुदीने व तुलसी के ७-८ पत्तों का रस, २-४ काली मिर्च का चूर्ण व १ चुटकी सेंधा नमक मिलाकर पियें l इससे ह्रदय को बल मिलता है और पेट की गड़बडियां भी दूर हो जाती हैं l
१६) नींबू का रस, लहसुन का रस, अदरक का रस व सेवफल का सिरका समभाग मिलाकर धीमी आंच पर उबालें l एक चौथाई शेष रहने पर नीचे उतारकर ठंडा कर लें l तीन गुना शहद मिलाकर कांच की शीशी में भरकर रखें l प्रतिदिन सुबह खाली पेट २ चम्मच लें l इससे Blockage खुलने में मदद मिलेगी l
१७) अगर सेवफल का सिरका न मिले तो पान का रस, लहसुन का रस, अदरक का रस व शहद प्रत्येक १-१ चम्मच मिलाकर लें l इससे भी रक्तवाहिनियाँ साफ़ हो जाती हैं l लहसुन गरम पड़ता हो तो रात को खट्टी छाछ में भिगोकर रखें



१८) उड़द का आटा, मक्खन, अरंडी का तेल व शुद्ध गूगल संभाग मिलाके रगड़कर मिश्रण बना लें l सुबह स्नान के बाद ह्रदय स्थान पर इसका लेप करें l २ घंटे बाद गरम पानी से धो दें l इससे रक्तवाहिनियों में रक्त का संचारण सुचारू रूप से होने लगता है l
१९) ३ ग्राम ग्राम दालचीनी चूर्ण एक कटोरी दूध में उबालकर पियें l दालचीनी गरम पड़ती हो तो १ ग्राम यष्टिमधु चूर्ण मिला दें l इससे कोलेस्ट्रोल के अतिरिक्त मात्रा घट जाती है
२०) भोजन में लहसुन, किशमिश, पुदीना व हरा धनिया की चटनी लें l आवलें का चूर्ण, रस, चटनी, मुरब्बा आदि किसी भी रूप में नियमित सेवन करें l
२१) औषधि कल्पों में स्वर्ण मालती , जवाहरमोहरा पिष्टि, साबरशृंग भस्म, अर्जुन छाल का चूर्ण, दशमूल क्वाथ आदि हृदय रोगों का निर्मूलन करने में सक्षम है l
२२)
कोलेस्ट्रोल,बी पी , हार्ट अटैक और धमनियों के ब्लाकेज का यूनानी , आयुर्वेदिक इलाज-
अदरक (ginger juice) - यह खून को पतला करता हे वह दर्द को प्राकर्तिक तरीके से 90% तक कम करता हें।
लहसुन (garlic juice) - इसमें मौजूद allicin तत्व cholesterol व BP को कम करता है वह हार्ट ब्लॉकेज को खोलता हे।
नींबू (lemon juice) - इसमें मौजूद antioxidants,vitamin C वह potassium खून को साफ़ करते हैं व रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) बढ़ाते हैं।
एप्पल साइडर सिरका ( apple cider vinegar) - इसमें 90 प्रकार के तत्व हैं जो शरीर की सारी नसों को खोलते है, पेट साफ़ करते हे वह थकान को मिटती हें।