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वसंत ऋतू में आहार -विहार और दिन चर्या | Vasant ritu Aahar Vihar





14 मार्च से 14 मई तक रहेगी वसंत ऋतु, इसे क्यों कहते हैं ऋतुराज?


वसंत ऋतु, या वसंत ऋतु, कायाकल्प, नए जन्म और नई शुरुआत का मौसम है क्योंकि पेड़ और पौधे फूलों के साथ खिलते हैं जो पृथ्वी को सुंदर और आकर्षक बनाते हैं। वसंत ऋतु में, हालांकि मौसम सुहावना होता है, हमारे शरीर और दोषों में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। चूँकि कफ दोष शिशिरा ऋतु (ठंड के मौसम) में प्रबल हो जाता है, वसंत ऋतु के दौरान यह द्रवित हो जाता है। यह पाचन अग्नि को और भी कम कर देता है और कई बीमारियों को जन्म देता है। जैसा कि आयुर्वेद सुझाव देता है, प्रत्येक ऋतु का मानव शरीर पर अपना अनूठा प्रभाव होता है, और इस प्रकार, ऋतु के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए व्यक्ति को अपने आहार और समग्र दिनचर्या में बदलाव करना चाहिए।
वसंत ऋतु, या वसंत, सबसे सुंदर और सुखद मौसमों में से एक है। कड़ाके की ठंड और कड़ाके की सर्दी के बाद प्रकृति अपने सबसे रंगीन रूप में होती है। आयुर्वेद के अनुसार, वसंत ऋतु विषहरण के लिए आदर्श समय है।
वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा गया है। यह शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के मध्य का संधिकाल होता है। इसमे मौसम समशीतोष्ण होता है, प्रकृति में सर्वत्र उल्लास और मादकता विद्यमान रहती है। इस समय नये नये कोपलों, रंग बिरंगे फूलों की सुंदरता और सुगंध के माध्यम से प्रकृति मानो अपनी प्रसन्नता प्रकट कर रही होती है। कुल मिलाकर वसंत का मौसम बहुत ही मनोरम और सुहावना होता है। लेकिन यदि समुचित आहार विहार का ध्यान न रखा जाय तो इस मौसम में स्वास्थ्य से जुड़ी अनेक प्रकार की समस्यायें भी उत्पन्न हो सकती हैं।

शरीर पर मौसम का प्रभाव

वसंत ऋतु में सूर्य की किरणें तेज होने लगती हैं जिसके कारण शीतकाल (हेमंत और शिशिर ऋतु) में संचित कफ कुपित होने लगता है। इसके कारण लोगों में सर्दी, खांसी, दमा, नजला, जुकाम, साइनोसाइटिस, टांसलाइटिस, गले में खराश, पाचन शक्ति की कमी, व जी मिचलाने जैसे अनेक प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं।
इस काल में खसरा, मीजल्स व एन्फ्लूएन्जा, जैसे कई प्रकार के वायरल इनफेक्शंस का भी प्रकोप देखने को मिलता है। इस समय वातावरण में सूर्य का बल बढ़ता है, चंद्रमा का बल क्षीण होता है, जलीय अंश और स्निग्धता की कमी होती है। इसके परिणाम स्वरूप हमारे शरीर में आलस्य और दुर्बलता की वृद्धि होती है। अतः इस मौसम में खान-पान का विशेष ध्यान रखें। बासी, गरिष्ठ और कफवर्धक पदार्थों का सेवन तो भूलकर भी न करें।
  वसंत ऋतु में आयुर्वेद ने खान-पान में संयम की बात कहकर व्यक्ति एवं समाज की नीरोगता का ध्यान रखा है। इस ऋतु में लाई, भूने हुए चने, ताजी हल्दी, ताजी मूली, अदरक, पुरानी जौ, पुराने गेहूँ की चीजें खाने के लिए कहा गया है। इसके अलावा मूँग बनाकर खाना भी उत्तम है। नागरमोथ अथवा सोंठ डालकर उबाला हुआ पानी पीने से कफ का नाश होता है। मन को प्रसन्न करें एवं हृदय के लिए हितकारी हों ऐसे आसव, अरिष्ट जैसे कि मध्वारिष्ट, द्राक्षारिष्ट, गन्ने का रस, सिरका आदि पीना लाभदायक है। वसंत ऋतु में आने वाला होली का त्यौहार इस ओर संकेत करता है कि शरीर को थोड़ा सूखा सेंक देना चाहिए जिससे कफ पिघलकर बाहर निकल जाय। 
   सुबह जल्दी उठकर थोड़ा व्यायाम करना, दौडऩा अथवा गुलाटियाँ खाने का अभ्यास लाभदायक होता है। मालिश करके सूखे द्रव्य आँवले, त्रिफला अथवा चने के आटे आदि का उबटन लगाकर गर्म पानी से स्नान करना हितकर है।
इन दिनों बबूल या नीम का दातुन अवश्य ही करना चाहिए। इस ऋतु में बड़ी हरड़ का चूर्ण 3 से 5 ग्राम मात्रा में थोड़े शहद के साथ मिलाकर प्रात: काल चाट लेना चाहिए। मौसमी फलों का सेवन करना भी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है। इसलिए इस ऋतु में फल का सेवन अवश्य ही करना चाहिए।
इस मौसम में कभी ठंडक लगती है तो कभी गर्मी का अनुभव होता है इसलिए व्यक्ति को खान-पान और रहन    सहन के मामले में सामंजस्य बनाये रखना चाहिए। इस मौसम में गले की खराश, टांसिल्स का दर्द और कफ की शिकायत आदि रहती है। घरेलू इलाज के रूप में गरारे, गले को ठंडी हवा से बचाना, गले को गरम आग से सेंकना और रात को सोते समय आधी चम्मच, पिसी हुई हल्दी दूध में घोलकर 3-5 दिन तक पीना तथा तुलसी का काढ़ा पीने से काफी हद तक लाभ मिलता है।
गले की खराश, हल्की खांसी, टांसिल्स आदि में तकलीफ होने पर 1 गिलास गरम पानी में आधा-आधा छोटा चम्मच खाने का सोडा व खाने का नमक और 1.2 ग्राम पिसी हुई फिटकरी घोलकर दिन में 4-5 बार गरारे अवश्य करने चाहिए। सुबह के समय और सोते समय गरारे करने से काफी लाभ मिलता है।
 कहावत है कि आती और जाती हुई सर्दी में सावधानी रखनी चाहिए। नहीं तो वे जकड़ सकती हैं। वसंत ऋतु को वैसे तो ऋतुओं की राजा कहा जाता है। बहुत से लोगों की यह पसंदीदा ऋतु है क्योंकि इस ऋतु में ना तो ठिठुरती ठंड होती है, ना ही बेहाल कर देने वाली गर्मी। पर इस ऋतु में जाती हुई सर्दी की वजह से विशेष सावधानी रखना जरुरी हो जाता है। क्योंकि वसंत ऋतु में दिन बड़े होने लगते है जिससे सर्दी का प्रभाव कम होने लगता है, लेकिन पश्चिमी विक्षोभ की वजह से बारिश, आंधी इत्यादि से अचानक से सर्दी बढ़ने से थोड़ी सी लापरवाही भी सेहत पर भार पड़ सकती है।

आहार का रखें विशेष ध्यान

इस मौसम में खान-पान का विशेष ध्यान रखें क्योंकि इस मौसम में जठराग्नि भी मंद रहती है। चूंकि इस मौसम में कफ कुपित हो जाता है, इसलिए बासे, गरिष्ठ और कफवर्धक पदार्थों का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। सभी तरह के फास्ट फूड यथा आइसक्रीम, केक, पिज्जा, बर्गर, चॉकलेट से परहेज करें। चिकनाई युक्त पदार्थ जैसे कि रबड़ी, मलाई, कचौरी, दही बड़ा, पूरी, उड़द, आदि का भी यथा संभव उपयोग नहीं करें तो बेहतर होगा। इमली, अमचूर इत्यादि की खटाई का उपयोग भी हानिकारक हो सकता है। ठडे पानी, शर्बत, लस्सी, कोल्ड ड्रिंक्स के सेवन से भी बचना चाहिए। वहीं खुले में सोना, धूप भ्रमण, रात जागरण व दिन में शयन भी इस मौसम में वर्जित हैं।


ये करें-

बसंत ऋतु में वमन आदि पंचकर्म करवाने चाहिए। व्यायाम, उबटन, कवल ग्रह, अंजन, सुखोष्ण जल से स्नान भी विशेष लाभकारी होता है। भोजन में जौ, गेहूं, शहद से बनी माध्वीक, सौंठ के साथ उबला पानी, नागरमोथा से सिद्ध पानी भी पीना लाभकारी है। अगर इस मौसम में शहद और गुनगुने पानी का सेवन किया जाए तो इससे भी कफ दोष बढ़ने से रोका जा सकता है और सर्दी-खांसी में राहत मिलती है। इस बात का भी ध्यान रखें कि गरिष्ठ भोजन के बजाय इस मौसम में हल्का खाना खाएं, जिसे पचाना आसान हो जैसे कि मूंगदाल, खिचड़ी, दलिया आदि। इसके अलावा पौष्टिक तत्वों से युक्त लौकी, पत्ता गोभी, गाजर, पालक, मटर जैसी सब्जियां भी अपनी डाइट में शामिल करनी चाहिए।

आयुर्वेद के अनुसार वसंत ऋतु में हमें क्या खाना चाहिए?

वसंत ऋतु के दौरान स्वस्थ भोजन करने का लक्ष्य कफ दोष को कम करना है। कोई व्यक्ति कड़वा (टिकिता), कषाय (कसैला), तीखा (कटु) रस खाकर ऐसा कर सकता है। आपको खट्टे (अमला), नमकीन (लवण), और मीठे (मधुर) रस से भी बचना चाहिए क्योंकि ये कफ दोष को बढ़ाते हैं। यहां कुछ खाद्य पदार्थ हैं जिन्हें आप अपने वसंत ऋतुचर्या में शामिल कर सकते हैं:
लहसुन
अदरक
प्याज
नीम के पत्ते
धनिया
जीरा
प्याज
हल्दी
अनाज
पुराना जौ
गेहूँ
चावल
दाल-दलहन
शहद का पानी
सोंठ का पानी
छाछ

पथ्य / लाभदायक

कटु, तीक्ष्ण, व कषाय रस युक्त ताजा हल्का और सुपाच्य भोजन। चना, मूँग, अरहर, जौ, गेहूँ, चावल, आदि अनाजों से बने भोज्य पदार्थ। सभी प्रकार की हरी सब्जियां तथा उनका सूप। करेला, लहसुन, अदरक, पालक, जमींकंद, केले के फूल व कच्चे केले की सब्जी, कच्ची मूली, गाजर व मौसमी फल। नीम की नई कोपलें, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आँवला, नीबू और शहद। इस समय भोजन बनाने में सरसों के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
कुछ खाद्य पदार्थ जिनसे आपको वसंत ऋतु (आयुर्वेद) के दौरान बचना चाहिए उनमें शामिल हैं:ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें कैलोरी अधिक होती है और पचने में अधिक समय लगता है
गहरा तला हुआ भोजन

अपथ्य / हानिकारक

पचने में भारी, ठंढे व अधिक चिकानाई युक्त भोजन, जैसे- नया अनाज, उड़द, दही बड़ा, पूरी, कचौड़ी, रबड़ी, मलाई, मिठाई, आइसक्रीम, केक, पिज्जा, बर्गर, चकलेट, गुड़, शक्कर, खजूर, व खटाई (इमली, अमचूर) आदि। शीत प्रकृति वाले पेय पदार्थ, जैसे- ठंढा पानी, ठंढी लस्सी, ठंढाई शर्बत, व कोल्डड्रिंक्स आदि। खुले आसमान में सोना, ठंढ में रहना, धूप में घूमना, रात में जागना व दिन में सोना।
बसंत ऋतु ऋतु में नियमित रूप से हल्का व्यायाम या योगासन सभी के लिए अनिवार्य है। सूर्योदय से पहले उठकर भ्रमण करें। रात्रि में देर तक जागरण और सुबह देर तक शयन हानिकारक है। दिन में तो बिल्कुल भी नहीं सोना चाहिए क्योंकि इससे कफ दोष और बढ़ेगा। शरीर में तेल मालिश करके गुनगुने पानी से स्नान करें। जो लोग यौगिक षट्कर्म जानते हों उन्हें इस समय वमनधौति और जलनेती का अभ्यास करना चाहिए।

सम्भावित रोग


श्वास, खांसी, बदनदर्द, ज्वर, वमन, अरुचि, भारीपन, भूख कम लगना, कब्ज, पेट दर्द, कृमिजन्य विकार आदि होते हैं।
प्रयोग करेंशरीर संशोधन हेतु वमन, विरेचन नस्य, कुंजल आदि।
रूखा, कड़वा तीखा, कसैले रस वाले पदार्थों का सेवन।
सुबह खाली पेट बड़ी हरड़ का 3-4 ग्राम चूर्ण शहद के साथ रसायन के समान लाभ पहुंचाता है।
शुद्ध घी, मधु और दूध की असमान मात्रा में मिश्रण का सेवन करने से शरीर में जमा कफ बाहर निकल आता है।
एक वर्ष पुराना जौ, गेहुं व चावल का उपयोग करना उचित है।
इस ऋतु में ज्वर बाजरा मक्का आदि रूखे धानों का आहार श्रेष्ठ है।
मूंग, मसूर, अरहर, चना की दाल उपयोगी है।
मूली, घीया, गाजर, बथुआ, चौलाई ,परवल, सरसों, मैथी, पत्तापालक, धनिया, अदरक आदि का सेवन करना हितकर है।
हल्दी से पीला किया गया भोजन स्वास्थ के लिए बहुत उपयोगी होता है क्योंकि हल्दी भी कफनाशक है।
सूर्योदय से पूर्व उठकर शौचादि से निवृत होकर योगासन करना चाहिए।
तेल की मालिश करना उत्तम है।

प्रयोग न करें

नए- अन्न, शीतल, चिकनाई युक्त, भारी, खट्टे एवं मीठे द्रव्य, उड़द, आलू, प्याज, गन्ना, नए गुड़, भैंस का दूध व सिंघाड़े का सेवन मना है।

दिन में सोना, एक स्थान पर लम्बे समय तक बैठे रहना उचित नहीं है।
ठंडे पेय, आइसक्रीम, बर्फ के गोले चॉकलेट, मैदे की चीजें, खमीरवाली चीजें, दही आदि पदार्थ बिल्कुल त्याग देने चाहिए।
पचने में भारी पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
चावल खाना ही हो तो दिन में खाना चाहिए, रात में नहीं।
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प्रकृति के वरदान अश्वगंधा के अनमोल फायदे




यूं तो हमारे आसपास कई दिव्य औषधि पौधे पाए जाते हैं। लेकिन इनकी पहचान व सही जानकारी न होने के कारण। हम इनके गुणों से अनजान रहते हैं। इनसे मिलने वाले लाभकारी फायदों से वंचित रह जाते हैं। ऐसी ही एक दिव्य औषधि है – अश्वगंधा।
इसको एक रसायन औषधि माना जाता है। जो बच्चों में टॉनिक का काम करती है। तो वही बड़े-बुजुर्गों को दीर्घायु प्रदान करती है। इसे सात्विक कफ रसायन भी कहा जाता है। जो हमारे नर्वस सिस्टम को मजबूत बनाती है। यह इंद्रिय दुर्बलता या लिंग कमजोरी में भी बहुत फायदेमंद है।
यह हमारे stress को कम करके, मानसिक शांति प्रदान करती है। यह कैंसर होने की दशा में, Tumor Cells को भी खत्म करती है। यह कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को भी कम करती है। अश्वगंधा दो शब्दों से मिलकर बना है। अश्व + गंधा अर्थात जिसकी जड़ों से या कच्चे मूल से, अश्व के समान गंध आती है।
इसका दूसरा अर्थ यह भी है। इसके सेवन से अश्व या घोड़े के समान ताकत व यौन शक्ति मिलती है। घोड़े जैसा stamina मिलता है। इससे उत्साह प्राप्त होता है। इसे एक शक्ति वर्धक पौधे के रूप में मान्यता मिली हुई है।
अश्वगंधा पुरुषों के लिए एक बहुत उपयुक्त और गुणकारी जड़ी बूटी है। अश्वगंधा के फायदे आयुर्वेद में कई है जिसे हम ट्राया में उपयोग करते हैं। यह प्राकृतिक वृद्धि और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है जो शारीरिक और मानसिक तनाव को कम करने में सहायक होता है। अश्वगंधा में पाये जाने वाले विशेष तत्व पुरुषों के प्रजनन स्वास्थ्य को समर्थित करते हैं और सेक्सुअल प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, अश्वगंधा पुरुषों के मानसिक तनाव को कम करके उन्हें सकारात्मक मानसिक स्थिति में रखता है और उनकी ऊर्जा स्तर को बढ़ाने में मदद करता है। इसलिए, अश्वगंधा का नियमित सेवन पुरुषों के सामान्य स्वास्थ्य और विकास के लिए बहुत लाभकारी साबित हो सकता है।

मस्तिष्क कार्य और स्मृति में मदद (Assistance in brain function and memory)

अश्वगंधा पुरुषों के लिए आपकी स्मृति को बढ़ा सकती है और एंटीऑक्सिडेंट गतिविधि को प्रोत्साहित करती है जो हानिकारक मुक्त रेडिकल से न्यूरॉन कोशिकाओं को बचाती है। अध्ययन भी सुझाव देते हैं कि यह मस्तिष्क शक्ति के अन्य पहलुओं को बढ़ाने की शक्ति रखता है। जड़ की 300 मिलीग्राम दो बार प्रतिदिन लेने से स्मृति स्वास्थ्य, कार्य दक्षता और कार्य प्रदर्शन में महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है।

शोथ को कम करता है और प्रतिरक्षा बढ़ाता है (Reduces inflammation and enhances immunity)

अश्वगंधा में शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो मुक्त रेडिकल्स के कारण हुए नुकसान को ठीक कर सकते हैं। इस जड़ी बूटी को प्रतिदिन सिर्फ 10 मिलीलीटर लेने से संक्रमण से लड़ने वाले प्रतिरक्षा कोशिकाओं के स्तर में वृद्धि होती है। हाल ही में पोर्टलैंड में आयोजित एक अध्ययन में यह जड़ी बूटी शोथ को कम करने में भी मददगार साबित हुई है।

शुक्राणु को ताकतवर बनाता है (Strengthens sperm)

अश्वगंधा पुरुषों की यौन क्षमता और इच्छाशक्ति बढ़ाने के लिए पारंपरिक रूप से उपयोग किया जाता है। इस जड़ी बूटी का प्रयोग विभिन्न अध्ययनों में फर्टिलिटी बढ़ाने वाली गुणों को बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। इसे प्रतिदिन 5 ग्राम लेने से शुक्राणु संख्या और गति बढ़ जाती है और T-लेवल में भी विशेष बढ़ोत्तरी देखी जाती है।

समय से पहले बालों का सफेद होना -

 लोगों को अपने बालों से बहुत प्यार होता है। अगर किसी के बाल समय से पहले सफेद होने लग जाते हैं तो इसके लिए लोग तरह- तरह के उपाय अपनाते रहते हैं। ऐसे में अश्वगंधा लाभकारी हो सकता है। यह आयुर्वेदिक औषधि बालों में मेलानिन के उत्पाद को बढ़ाती है। मेलेनिन एक प्रकार का पिगमेंट होता है, जो बालों के प्राकृतिक रंग को बनाए रखने में मदद करता है

बालों के झड़ने से राहत देता है

कॉर्टिसोल या तनाव स्तर में वृद्धि बाल फोलिकल के सही कामकाज पर असर डालती है, जिससे बालों का झड़ना होता है। अश्वगंधा बालों के झड़ने को रोकने में मदद करता है और शरीर के तनाव स्तर को नियंत्रित करने में उपयोगी हो सकता है।

शुक्राणु गतिशीलता में वृद्धि (Improves Sperm Mobility)

अश्वगंधा से शुक्राणु की सक्रिय गति में सुधार हो सकता है, जो कि फर्टिलिटी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। गतिशील शुक्राणु अधिक सक्षम होते हैं अंडाणु तक पहुँचने और निषेचन की प्रक्रिया को पूरा करने में। अश्वगंधा के एंटीऑक्सीडेंट गुण शुक्राणु कोशिकाओं की सुरक्षा करते हैं और उनकी गतिशीलता और जीवित रहने की क्षमता में वृद्धि होती है।

यौन इच्छा बढ़ाए - 

अश्वगंधा का सेवन करने से स्ट्रेस, चिंता जैसी मानसिक परेशानियां दूर होती हैं। साथ ही इससे टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन की कमी दूर होती है, जिससे पुरुषों में यौन इच्छाओं को बढ़ाया जा सकता है। अगर आपकी यौन इच्छाएं कम हो रही हैं, तो डॉक्टर की सलाह पर नियमित रूप से अश्वगंधा कैप्सूल और चूर्ण का सेवन कर सकते हैं। यह कामोत्तेजना को बढ़ाने में प्रभावी हो सकता है।

उच्चतर टेस्टोस्टेरोन (Increases testosterone)

अश्वगंधा बूटी टेस्टोस्टेरोन के स्तर को काफी बढ़ाती है। पुरुषों में उम्र बढ़ने के साथ-साथ इस हार्मोन की उत्पादन भी उनके शरीर में काफी कम हो जाती है। इसके अलावा, कहा जाता है कि इस हार्मोन का स्तर प्रति वर्ष 30 साल की उम्र पर पुरुषों में 0.4 से 2 प्रतिशत तक गिरना शुरू हो जाता है। पुरुषों को बालों का झडना, मांसपेशियों का नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। अश्वगंधा टेस्टोस्टेरोन उत्पादन में मदद करता है और टेस्टोस्टेरोन और लुटिनाइजिंग हार्मोन के सीरम स्तर में वृद्धि करता है। अश्वगंधा पुरुषों में सेक्सुअल हार्मोनों के प्राकृतिक संतुलन को पुनर्स्थापित कर सकती है।

घाव भरने के लिए - 

अश्वगंधा घाव में बैक्टीरिया को पनपने से रोकता है। दरअसल, इसमें मौजूद एंटीमाइक्रोबियल प्रभाव घाव में पनपने वाले जीवाणुओं को खत्म करके इंफेक्शन के खतरे को रोक सकता हैं।

चिंता और तनाव को कम करना (Reduces stress and tension)

अनुचित तनाव और तनाव विकारों "चुपचाप मारने वाले" परेशानियाँ है, जो सेहत से जुड़ी विभिन्न समस्याओं का कारण बन सकते हैं, जो आपके प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, मस्तिष्क पर असर डाल सकते हैं और आपके जीवाश्म तंत्र के प्राकृतिक काम को भी अस्तव्यस्त कर सकते हैं। अश्वगंधा महिलाओं और पुरुषों के लिए अध्ययनों में इसके तनाव स्तर को कम करने के सबूत हैं। ट्राया के हेयर रस जैसे उत्पाद में अश्वगंधा है जो तनाव और नींद के दो मुख्य कारणों पर ध्यान केंद्रित करता है, जो बालों का झड़ना का प्रमुख कारण हो सकते हैं।

मांसपेशियों की ताकत और विकास को बढ़ावा देना (Increasing muscle strength and development)

अश्वगंधा में मांसपेशियों की मात्रा को बढ़ाने, शरीर की चर्बी कम करने और पुरुषोंमें ताकत बढ़ाने के साथ-साथ मदद करने के दस्तावेजों हैं। अध्ययनों के अनुसार, इस जड़ी-बूटी का सेवन ताकत और मांसपेशियों की मात्रा में एक महत्वपूर्ण वृद्धि लाता है और उनके शरीर की चर्बी की मात्रा को कम करता है। एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि उन पुरुषों को जिन्होंने एक ग्राम इस जड़ी-बूटी का सेवन प्रतिदिन किया, सिर्फ 30 दिनों में काफी मांसपेशियों की ताकत में वृद्धि हुई।

वजन कम करने के लिए - 

अश्वगंधा की जड़ के अर्क का सेवन करने से भूख और वजन में कमी पाई गई। अश्वगंधा की जड़ का अर्क तनाव के मनोवैज्ञानिक लक्षणों में सुधार कर सकता है। यह तनाव और चिंता को कम कर भोजन की तीव्र इच्छा में कमी लाकर वजन को कम करने में सहायक हो सकता है।

थायराइड के लिए:

अश्वगंधा जैसे अनुकूली औषधि के बारे में सबसे अविश्वसनीय पहलुओं में से एक यह है कि यह लोगों को हाइपो और हाइपर थाइरोइड दोनों मुद्दों के साथ मदद कर सकता है.
यह हाशिमोटोस से पीड़ित लोगों के लिए थाइरोइड की मंदगति का समर्थन करता है और अतिरक्त थायरॉयड या ग्रेव्स रोग वाले लोगों के स्वास्थ्य में भी सुधार करता है.
इसके अलावा यह बहुत से मुक्त कणों की सफाई का प्रचार करके लिपिड पेरोक्सीडेशन को कम कर देता है जिससे सेलुलर क्षति होती है.

हृदय रोग से बचाव के लिए - 

अश्वगंधा में कार्डियोप्रोटेक्टिव प्रभाव होता है, जो हृदय को स्वस्थ रखने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, अश्वगंधा में मौजूद हाइपोलिपिडेमिक प्रभाव कोलेस्ट्रॉल को कम करके हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है।

मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए -

 अश्वगंधा व्यक्ति के मस्तिष्क के विकार चिंता, अवसाद और तनाव को कम करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, यह किस तरह से याददाश्त को बेहतर रखने में सहायक हो सकता है। इतना ही नहीं, मस्तिष्क के संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अश्वगंधा लाभकारी है।

एजिंग से बचाने में - 

अश्वगंधा में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते है। इस लिहाज से यह त्वचा के लिए भी लाभकारी हो सकता है। एंटीऑक्सीडेंट गुण शरीर में बनने वाले फ्री रेडिकल्स से लड़कर बढ़ती उम्र (एजिंग) के लक्षणों जैसे झुर्रियां व ढीली त्वचा से बचा सकता है।

संक्रमण से बचाव के लिए - 

अश्वगंधा संक्रमण से भी निपटने में मदद कर सकता है। अश्वगंधा में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। यह गुण रोग जनक बैक्टीरिया के खिलाफ लड़ने में मदद कर सकता है। अश्वगंधा की जड़ और पत्तों का रस साल्मोनेला (Salmonella) और ई.कॉली (Escherichia coli) नामक बैक्टीरिया के प्रभाव को कम कर सकता है।

कैंसर के लिए:

कुछ अध्ययनों में यह पाया गया कि अश्वगंधा में शक्तिशाली विरोधी ट्यूमर प्रभाव है.
यह भी पाया गया है की इसका रस कैंसर कोशिकाओं के प्रसार को रोकता है - विशेष रूप से स्तन, फेफड़े, पेट और पेट के कैंसर कोशिकाएँ.
ऐसा माना जाता है कि मुख्य रूप से इसकी प्रतिरक्षा बूस्टिंग और एंटीऑक्सीडेंट क्षमता कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकने में मदद करती करती है.
मौजूदा कैंसर के इलाज में कीमोथेरेपी के अतिरिक्त अश्वगंधा एक बहुत उपयोगी हो सकता है. इसका रस कीमोथेरेपी के दौरान प्रतिरक्षा प्रणाली पे दबाव पड़ने से रोकता है.
अश्वगंधा, कीमोथेरेपी से जुड़ी सबसे बड़ी चिंताओं में से एक- शरीर में सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या में कमी, का सामना करने में सक्षम है.

अश्वगंधा के दुष्प्रभाव - Side Effects of Ashwagandha in Hindi

अश्वगंधा के स्वास्थ्य लाभ अनन्त हैं, लेकिन अगर अतिरिक्त या लंबे समय तक उपयोग किया जाता है तो आपके शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है.थायरॉयड दवाओं के साथ लेने से अतिरिक्त थायरॉयड हार्मोन पैदा हो सकता है, जो रोगी के लिए समस्या पैदा कर सकता है.
गर्भधारण के दौरान अश्वगंधा का उपयोग गर्भपात का कारण बन सकता है. यह भ्रूण को भी नुकसान पहुंचा सकता है इसलिए, गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को अश्वगंधा लेने से बचना चाहिए.
पेट में जलन होना इसका सबसे आम साइड इफेक्ट है.
पेट मे अल्सर हैं तो इसका उपयोग ना करें.
अतिरिक्त सेवन पर यह नींद और उनींदापन का कारण हो सकता है.
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28.2.24

मधुमेह रोगी क्या खाएं क्या न खाएं |Benificial foods for diabetic patients

 



ब्लड प्रेशर व डायबिटीज ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति और महिला का जीवन पूरी तरह से बदल देती है। शुगर का रोग होने पर शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है। Type 1 और 2 शुगर कंट्रोल करने व इसका ट्रीटमेंट करने के लिए कुछ लोग अंग्रेजी दवा लेते है पर आप शुगर की आयुर्वेदिक दवा, देसी उपाय और घरेलू नुस्खे से घर पर भी इलाज कर सकते है। मधुमेह कम करने के उपचार के साथ साथ इस बात की जानकारी होना जरुरी है की शुगर में क्या खाएं और क्या न खाए l
शुगर जिसे मधुमेह के नाम से भी जाना जाता है, आमतौर पर ख़राब लाइफस्टाइल के कारण होने वाली बीमारी है। अगर आपकी जीवन शैली सही नहीं है, खान पान स्वास्थ्यकर नहीं है और व्यायाम इत्यादि की कमी है तो आपको शुगर होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए सबसे पहले तो हमें खान पान की आदतों और शारीरिक श्रम आदि का ध्यान रखना जरुरी है।
मधुमेह के रोगियों के लिए अपने भोजन पर नियंत्रण रखना अत्यंत आश्यक है। कई बार इन्सुलिन लेने वाले मधुमेह के रोगियों को जो भोजन तालिका चिकित्सा द्वारा बतायी जाती है उसमें चाय एवं काफी का भी उल्लेख होता है। उन्हें सिर्फ क्रीम और शर्करा न लेने के लिए कहा जाता है। चाय और काफी का प्रयोग मधुमेह से ग्रस्त किसी भी व्यक्ति के लिए न करना ही श्रेयस्कर है, चाहे वह इन्सुलिन पर निर्भर हो अथवा नहीं। ये पदार्थ अच्छे स्वास्थ के निर्माण में सहायक नहीं होते हैं। ऐसे रोगियों को कई बार चिकित्सकों द्वारा डबलरोटी, अचार, अंडे आदि लेने की सलाह भी दी जाती है पर हमें यह ध्यान रखना चाहिए की ये पदार्थ मधुमेह के रोगी के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थों की श्रेणी में नहीं आते हैं।
मधुमेह से ग्रस्त रोगियों को किसी भी वस्तु से अधिक ताजी, हरी सब्जियों की आवश्यकता होती है । प्रत्येक भोजन के साथ सलाद प्रचुर मात्रा में लिया जाना चाहिए । जब हम आधिक मात्रा में फल एवं सब्जियां लेते हैं तो शरीर में अधिक पानी पहूंचता है । यह गुर्दों एवं मूत्र उत्सर्जन तंत्र के लिए आवश्यक है । मधुमेह की स्थिति में हमें अपने गुर्दों एवं मूत्र उत्सर्जन तंत्र को अच्छी हालत में रखना चाहिए क्योंकी यह रोग गुर्दों पर एक प्रकार का तनाव डालता है । मधुमेह के रोगियों को मिठाई, चाय. काफी, मादक द्रव्यों तथा ध्रूमपान आदि को तुरंत बंद कर देने का प्रयास करना चाहिए । चर्बी और शर्करा दोनों में कमी आने से आश्चर्य और उत्साहवर्धक परिणाम सामने आते हैं ।
मधुमेह से ग्रस्त व्यक्ति को यह भलीभांति समझ लेना चाहिए है की यदि वह असमानता से खाना शुरू कर देगा तो शरीर उस भोजन के अनुकूल हो जाएगा । प्राय: देखा गया है कि अधिकांश व्यक्ति अपने वजन एवं शरीर के आकार-प्रकार को परिवर्तित करना नहीं चाहते । मधुमेह से ग्रस्त बहूत से व्यक्ति भोजन की अपनी आदतों के कारण ही पेट की तकलीफों, कब्ज तथा यकृत के विकारों सी पीड़ित रहते हैं ।

आहार नियंत्रण की आवश्यकता

सामान्य जीवन व्यतीत करने के लिए मधुमेह के रोगी को आहार नियंत्रण के नियमों का पालन करना चाहिए । यहाँ इस बात पर भी ध्यान रखना जरूरी है की मधुमेह के रोगी की आयु और रोग की स्थिति पर ही उसका आहार निर्भर करता है । इसलिए एक ही आहार मधुमेह के सभी रोगियों को नहीं दिया जा सकता ।

आहार नियंत्रण में उपयोगी बातें

मधुमेह के रोगियों को अपना आहार निर्धारण करते समय किन- किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए -

मधुमेह के प्रत्येक रोगी का उद्येश्य यही होना चाहिए की वह अपनी रक्त शर्करा के स्तर को यथासम्भव नियंत्रण में रखे । आहार इस उद्येश्य की पूर्ति में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसलिए मधुमेह के रोगी को अपने आहार का निर्धारण करे समय निम्नलिखित सिद्धांतों को आवश्यक रूप से ध्यान में रखना चाहिए ।
आहार संतुलित हो जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा आदि प्रदान करने वाले तत्व आवश्यक मात्रा में हों ।शरीर के लिए आवश्यक विटामिन, खनिज लवण तथा फाइबर आदि पर्याप्त मात्रा में होना
शरीर का वजन आदर्श बनाए रखने के लिए उपयुक्त कैलोरी आहार द्वारा शरीर को मिलती रहें ।
मधुमेह की जटिलताएँ उत्पन्न होने पर उनका नियमन किया जाना संभव हो ।
रोगी का आहार विविधता पूर्ण हो ताकि वह अच्छी तरह से ग्रहण किया जा सके । आहार नियंत्रण के नाम पर कड़वी चीजें खाते- खाते कई बार रोगियों को इससे आरूचि हो जाती है । अत: आहार निर्धारण में रोगियों की रुचि का ध्यान रखना भी अत्यंत आवश्यक हैं ।
रोगी के आहार की महत्वपूर्ण जानकारियां

मधुमेह के कारण

1. डायबिटीज में हमेशा समय पर खाना खाये और बार बार खाना खाने की बजाय एक ही बार अच्छे से भोजन करे।2. मिठाइयां ना खाएं और अगर मिठाई खाने की इच्छा हो तो बिना शुगर की मिठाई खाये और वह भी ज्यादा न खाएं।
3. मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को ज्यादा देर तक भूखा नहीं रहना चाहिए व उपवास भी नहीं रखना चाहिए।
4. भोजन करने से पूर्व थोड़ा सलाद खाए व खाना हमेशा धीरे धीरे और चबा चबा कर खाये।
5. शराब बियर व अन्य किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहे।
6. जो लोग जंक फ़ूड ज्यादा खाते है उनमें शुगर होने की सम्भावना ज्यादा होती है। इसका कारण ये है की खाने की ऐसी चीजों में fat अधिक होता है जिससे शरीर में जरुरत से ज्यादा कैलोरी बढ़ जाती है और मोटापा बढ़ने लगता है, शरीर में प्रयाप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बन पाता और शुगर का लेवल बढ़ने लगता है।
7. डायबिटीज एक अनुवांशिक रोग भी है मतलब अगर परिवार में माता पिता को मधुमेह है तो उनके बच्चों को भी ये रोग होने की संभावना अधिक होती है।
8. मोटापा और जरुरत से ज्यादा वजन वाले लोगों को डायबिटीज होने का खतरा अधिक होता है।
9. शारीरिक श्रम ना करना भी में से एक है। कुछ लोगों की दिनचर्या ऐसी होती है की वे एक जगह बैठ कर काम करते है और ना ही व्यायाम के लिए समय निकालते है।
10. हर समय तनाव में रहना या फिर डिप्रेशन से प्रभावित होना।
11. धूम्रपान, तंबाकू या कोई दूसरा नशा करने से भी शुगर हो सकती है।
12. दवाइयों का ज्यादा सेवन करना भी हो सकता है। अक्सर कोई रोग होने पर हम बिना डॉक्टर की सलाह के दवा लेने लगते है। कोई भी अंग्रेजी दवा बिना सलाह के लंबे समय तक खाना भी नुकसान कर सकता है।
13. ज्यादा चाय, कोल्ड ड्रिंक्स, मीठा और चीनी का सेवन करना।

मधुमेह के लक्षण

शुगर के अनेक लक्षण है जिनमें से प्रमुख लक्षण यहां बताये जा रहे है। अगर किसी भी व्यक्ति को इनमें से ज्यादातर सिम्पटम्स दिखाई दे तो तुरंत डॉक्टर के पास जा कर टेस्ट करवाये।

ज्यादा भूख लगना

किडनी ख़राब होना

पेशाब बार बार आना।

पानी की प्यास ज्यादा लगना

आँखों की रौशनी कम लगना

रोगी के वजन में गिरावट आना

शरीर में कमजोरी महसूस करना

चोट और जख्म जल्दी ठीक ना होना

हाथों पैरों और गुप्तांग पर खुजली वाले जख्म होना

स्किन इंफेक्शन होना और बार बार त्वचा पर फोड़े फुंसी निकलना

 अति भोजन तथा मोटापे के कारण मधुमेह के प्रत्येक चार में से तीन रोगियों का वजन अधिक होता है । इसलिए ऐसे रोगियों को केवल चीनी एवं परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट ही नहीं बल्कि अति प्रोटीन एवं चिकनाई से भी बचना चाहिए 
मधुमेह के रोगी का सर्वोत्तम आहार प्राकृतिक खाद्य, अंकुरित, अन्नकण, फल एवं हरी सब्जी है । यह क्षारीय आहार है । पूर्ण अन्न, कूटू एवं हरी सोया, मेथी अत्यंत लाभप्रद हैं । फलों में संतरा जामुन, अनानास, आवंला, सेब तथा पपीता आदि लिए जा सकते हैं । मट्ठा विशेष रूप से उपयोगी है ।
आहार में कम से कम 90 प्रतिशत अपक्वाहार होना ही चाहिए । अपक्वाहार से अग्नाशय ग्रन्थि उद्दीप्त होकर इन्सुलिन उत्पन्न करती है । अति आहार बंद करके एक बार में अधिक भोजन करने की अपेक्षा चार बार थोड़ा-थोड़ा खाना निरापद है । मधुमेह में प्रोटीन एवं चिकनाई का चयापचय मंद होने से अम्लता बढती है । अत: क्षारीय भोजन उपयुर्क्त है । लहसून से रक्त शर्करा घटती है । जैविकीय उपचारों में पर्याप्त व्यायाम एवं संयमित आहार, खुली हवा में खेलने, दौड़ने, टहलने एवं तैरने में चयापचय क्रिया तेज होती है ।
निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए :-लंबा नहीं बल्कि दो – तीन दिन का रसोपवास सर्वोत्तम ।
शारीरिक एवं मानसिक तनाव से सदा बचना चाहिए ।
कब्ज न रहे इसका ध्यान रखना चाहिए ।
शुष्क घर्षण अवश्य करना चाहिए । इससे चयापचय उन्नत होता है ।
मैगनीज प्रधान खाद्य लेना चाहिए ।
मधुमेह के रोगियों को अजवाइन, सोया, मेथी तथा गाजर की पत्ती का रस दिया जा सकता है । खट्टे फल, लौकी, खीरा, एवं काकड़ी अग्नाशय ग्रंथि को उन्नत करते हैं । प्याज एवं लहसून का रस उपयोगी है अत: इनका रस अन्य सब्जीयों के रस में मिलाना चाहिए ।
फ्रेंचबीन, मकोय की पत्ती, बेल की पत्ती, करेला, अल्फाल्फा, चौलाई, सोया, मेथी, जामुन की पत्ती आदि लेना चाहिए। संतरे का छ्लिका बहूत ही उपयोगी है। सुबह, दोपहर एवं शाम को दिन में तीन बार इसका काढ़ा बनाकर पीना चाहिए । परिष्कृत एवं प्रक्रियागत खाद्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। रोजाना एक घंटे का शारीरिक श्रम मधुमेह के रोगियों के लिए अनिवार्य है ।
रोजाना बेल की पत्तीयों का रस 25 से 50 मि. ली. लेना चाहिए । करेला एवं कूंदरू की पत्ती का रस भी 20 मि. ली. लिया जा सकता है। मधुमेह में नेत्र ज्योति घटती है अत: विटामिन ए, बी काम्प्लेक्स तथा विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में लेना चाहिए ।
डायबिटीज चाहे ज्यादा हो या फिर बॉर्डर लाइन में हो, हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना फायदेमंद होता है. डायबिटीज के मरीजों के लिए कच्चा केला, अनार, अवोकाडो और अमरूद का सेवन भी अच्छा होता है. इसके अलावा डायबिटीज पेशेंट्स को डेयरी प्रोडक्ट का दही और दूध का भी सीमित मात्रा में ही सेवन करना चाहिए.

डायबिटीज में क्या ना खाएं

डायबिटीज के मरीजों को खाने में कुछ चीजों से परहेज करना चाहिए. जो लोग डायबिटीक पेशेंट्स होते हैं, उन्हें खाने में नमक का इस्तेमाल कम ही करना चाहिए. इसके साथ ही कोल्ड्रिंक्स, चीनी, आइसक्रीम, टॉफी जंक फ़ूड या ऑयली फ़ूड से भी शुगर लेवल के बढ़ने का काफी खतरा रहता है. ऐसे में डायबिटिक पेशेंट्स को इन सभी चीजों से परहेज करना चाहिए.तरल पदार्थ से संबंधित जानकारियां
मधुमेह का एक रोगी कितनी मात्रा में स्टार्च एवं शर्करायुक्त चीजें ले सकता है-
ग्लूकोज के अक्सिकारण के लिए इन्सुलिन की आवश्यकता होती है। आक्सिकरण की यह प्रकीया शरीर के लिए ऊर्जा उत्पन्न करती है। जब इन्सुलिन की काफी मात्रा उत्पदित नहीं होती तो उसका परिणाम मधुमेह के रूप में सामने है इसलिए स्टार्च युक्त खाद्यपदार्थ अन्य साधारण लोगों की अपेक्षा मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों के आहार का अधिक आवश्यक होते हैं।
शहद एवं कई फल जैसे अंजीर आदि तथा कुछ सब्जियाँ जैसे गाजर एवं चुकन्दर आदि में फ्रक्टोज शर्करा होती है जिसे फल शर्करा का नाम से भी जाना जाता है। फ्रक्टोज शर्करा मधुमेह से ग्रस्त लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी होती है । मधुमेह से ग्रस्त रोगी के बारे में हमें यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि शर्करा एवं स्टार्च की मात्रा किस स्तर तक शरीर ग्रहण कर सकता है । कभी-कभी स्टार्च की मात्रा किस स्तर तक शरीर ग्रहण कर सकता है। कभी – कभी स्टार्च की मात्रा एकदम से घटा दी जाती है और बहुत सारे मीठे खाद्य पदार्थ, मिठाई एवं स्टार्च जो एक सामान्य आदमी खाता है, एक साथ कम किए जा सकता हैं । यह मधुमेह की तीव्रता और ग्रहण किए जाने वाली इन्सुलिन की मात्रा पर निर्भर करता है की स्टार्च युक्त खाद्य पदार्थों की कितनी मात्रा ली जा सकती है। हम इसे रक्त शर्करा एवं मूत्र परीक्षणों से नियंत्रण कर सकते हैं।
ग्लाइसिमिक इंडेक्स,ग्लाइसिमिक लोड और ग्लाइमिक रेस्पोंस
मधुमेह के आहार के बारे में चर्चा करते समय ग्लाइसिमिक इंडेक्स ग्लाइसिमिक लोड और ग्लाइमिक रेस्पोंस का जिक्र आता है । ये क्या हैं ?
ये मधुमेह से संबंधित सूचायाकंक हैं जिनका प्रयोग चिकित्सकों द्वारा किया जाता है। ग्लाहसिमिक इंडेक्स है जो खाद्य पदार्थों में मौजूद कार्बोहाइड्रेट के ग्लूकोज में बदलने के आधार पर उन खाद्य पदार्थों को 0-100 के बीच स्थान देता है। एक अनुसंधान के अनुसार हर खाने में मौजूद शर्करा के कारण रक्त में शर्करा का स्तर नहीं बढ़ता है। ग्लाइसिमिक लोड ( जी. एल.): जी. आई. और खाने की कुल मात्रा मिलकर जी. एल. का पता लगाया जाता है। जी. एल. रक्त शर्करा में बढ़ोत्तरी मात्रा को निर्धारित करता है।
ग्लाइसिमिक रिस्पोंस ( जी.आर.) यह एक महत्वपूर्ण सूचकांक है। यह शरीर की वह रफ्तार है जिससे एह खाद्य पदार्थ के ग्लूकोज को रक्त शर्करा में बदलता है।


आप मधुमेह के एक रोगी को दिए जाने वाले दैनिक आहार का नमूना चार्ट बना सकते हैं

मधुमेह के प्रत्येक रोगी को दिया जाने वाला आहार उस रोगी की व्यक्तिगत आवश्यकताओं एवं जीवनशैली के हिसाब से निश्चित किया जाना चाहिए । आहार चार्ट बनाते समय रोगी की आयु, उसका वजन उसके कार्य की प्रकृति, दिनचर्या तथा आवश्यक कैलोरियों की मात्रा आदि को ध्यान में रखा जाना चाहिए । लगभग 1500 कैलोरी उपलब्ध कराने वाले आहार की नमूना तालिका इस प्रकार बनाया जा सकता है :-
प्रात: काल- एक गिलास गूनगूने पानी में आधा निम्बू निचोड़ कर लें या मेथी आथवा आंवले का पानी लें ।
नाश्ता (8 बजे ) – एक कटोरी दही या अंकुरित मूंग एवं मेथी या एक गिलास छाछ ।
भोजन (11 से 12 बजे) – गेहूं, जौ, चना एवं मेथी को मिला कर उस आटे की रोटियाँ2, उबली हुई सब्जी, सलाद, अंकुरित मूंग की दाल या एक कटोरी दही, आंवले की चटनी ।
सांयकाल (4 बजे) – (प्रात: काल की तरह) – सब्जी का सूप या भुने हुए चने या नींबू एवं पानी
भोजन (7 बजे) – रोटी. सब्जी एवं सलाद (दोपहर की तरह) यह एक नमूना चार्ट है । रोगी के रक्त में शर्करा की स्थिति को देखते हुए तथा चिकित्सक के निर्देशानुसार इसमें आवश्यक परिवर्तन किये जा सकते है ।

आहार पर नियंत्रण रखना काफी

मधुमेह के नियंत्रण के लिए क्या केवल आहार पर नियंत्रण रखना काफी है ?
मधुमेह के अधिकतर रोगी इन्सुलिन पर अनिर्भर श्रेणी के होते हैं । इनमें से अधिकांश में रोग पर नियंत्रण रखने के लिए आहार पर नियंत्रण रखना शायद काफी हो सकता है । किन्तु ऐसे रोगियों का आहार नियंत्रण होने के साथ-साथ पोषण की दृष्टि से संतुलित भी होना चाहिए । यही नहीं आहार का निर्धारण करते समय रोगी की आयु, व्यवसाय, शारीरिक वजन तथा रोग की स्थिति आदि को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए ।
खानपान पर नियंत्रण रखना आवश्यक

मधुमेह के नियंत्रित हो जाने के बाद भी खानपान पर नियंत्रण रखना आवश्यक है-

चिकित्सक मधुमेह को जीवन भर के रोग की संज्ञा देते हैं ।इसलिए मधुमेह को नियंत्रण में रखने के लिए हमेशा आहार संबंधी संतुलन बनाए रखना चाहिए । आहार में की गई गड़बड़ी रक्त में शर्करा की स्थिति को पुन: अनियंत्रित कर सकती है । इसलिए आहार का निर्धारण गंभीरता से सोच –विचार कर एवं विविधतापूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए। ताकि निरंतर नियंत्रित आहार लेने से रोगी में भोजन के प्रति अरूचि उत्पन्न न हो । धनिया, जीरा, काली मिर्च, नींबू तथा आँवला जैसे पदार्थों का उपयोग भोजन को स्वादिष्ट एवं रूचिकर बनाने में किया जा सकता है । मधुमेह के रोगियों को अपने खान - पान का समय निश्चित कर सदैव उसका पालन करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकी इसके बिना रक्त में शर्करा की मात्रा को सामान्य स्तर पर बनाए रखना संभव नहीं होगा ।
आहार में ‘फाइबर’ की उपयोगिता

मधुमेह के रोगी के आहार में ‘फाइबर’ के क्या उपयोगिता है ?

फाइबर का अर्थ है – मोटे रेशेदार पदार्थ । मधुमेह के रोगी के आहार में ‘फाइबर’ की मात्रा अधिक होनी चाहिए । ये भोजन के बाद रक्त में शर्करा के स्तर को बढ़ने नहीं देते । ये कब्ज को दूर करते हैं तथा रक्त में ट्राईग्लिसराइड्स तथा कोलेस्ट्रोल के स्तर को भी कम करते हैं । ये वजन कम करने में भी सहायता पहुंचाते हैं । हरी पत्ती वाली सब्जियाँ, मेथी तथा चोकर आदि से फाइबर की पूर्ति की जा सकती है । आधुनिक अध्ययनों ने भी इस बात को प्रादर्शित किया है ।
चोकर का नियमित प्रयोग मधुमेह के अलावा हृदय रोगियों के लिए भी लाभदायक है । “हिन्दुस्तान” समाचार पत्र में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट के अनुसार “मात्र 10 ग्राम चोकर आप के दिल की रक्षा कर सकता है । अगर आप अपने खाने में रोजाना 10 ग्राम फाइबर जैसे – चोकर आदि को और बढ़ा दें तो दिल की बीमारी की संभावना 27 प्रतिशत कम जो जाती है ।” यह शोध किया है अमेरिका डाक्टर मैकयोन ने ।

इस शोध के अनुसार हर व्यक्ति को कम से कम रोजाना 37 ग्राम फाइबर जरूर अपने भोजन में शामिल करना चाहिए। वैसे आम आदमी के भोजन में 15 से 20 ग्राम फाइबर शामिल रहता है। इसे 10 ग्राम और बढ़ा दें तो दिल की बीमारी से बचा जा सकता है । डॉ. मैकयोन ने अपने शोध में पाया है की ऐसी चीजें जिनसे स्टार्च बनता है, कम खानी चाहिए या एकदम ही नहीं खानी चाहिए, क्योंकी इनकी भूमिका मानव शरीर में चीनी की तरह होती है। स्टार्च युक्त चीजें रक्त में पहुँच कर धीरे-धीरे चीनी बनाती हैं । अत: आलू, शकरकंद आदि कम खानी चाहिए। अगर आप आलू खाना ही चाहते हैं तो आप मटर आलू कभी न खाएँ, क्योंकी ये स्टार्च पैदा करेंगे । आलू खाना हो तो आलू मेथी, आलू पालक आदि खाये जा सकते हैं। स्टार्च मानव शरीर में प्रवेश करके पहले मेटबालिक सिंड्रोम पैदा कराता है जो दिल को सेहत मंद रखने के लिए जरूरी है की आप रोजाना तीन फल खाएँ। उनका कहना है कि फल जूस से बेहतर होते हैं, क्योंकी इनमें रेशे होते हैं। फल सलाद से बेहतर हैं ये तीनों फल रंग बिरंगे और अलग-अलग होने चाहिए । यह नहीं की आप तीन सेब खा लें या तीन केले। ये तीनों फल अलग-अलग हों। एक सेब में 3 ग्राम, आड़ू में 5 ग्राम, केले,में 3 ग्राम फाइबर होता है । 10 ग्राम चोकर तथा ये तीन रंगबिरंगे फल आप को दिल की बीमारी से मुक्त रखने में समर्थ हैं।
इस शोध पर आगे कहा गया है की जब भी आप कुछ खाने का सामन खरीदें तो देखें की उस पर ‘होल’ लिखा है या नहीं जिसका अर्थ है की यह फाइबर युक्त है । जैसे डबलरोटी या आटा उस पर ‘होल’ लिखा होना चाहिए । जिस पर ‘एनरिच’ लिखा हूआ हो उसका अर्थ है की वह स्टार्च युक्त है और उसे खाने से परहेज करना चाहिए । कई खाद्यान्नों के ऊपर लिखा रहता है ‘एनरिच’ जो की दिल के लिए सुरक्षित नहीं माना जाता है । शोध में आगे कहा गया है की चीनी की अपेक्षा गुड़ ज्यादा अच्छा है । ब्राउन आटा सफेद आटे की तुलना में ज्यादा अच्छा है । डॉ. मैकायोन ने लोगों को मैदा कल्चर से बचने की सलाह दी है ।
उपर्युक्त स्पष्टीकरण से स्पष्ट है कि फाइबर के रूप में चोकर का प्रयोग न केवल मधुमेह के रोगियों के लिए बल्कि अन्य सभी के लिए भी अत्यंत लाभदायक है

मधुमेह और मेथी

मेथी मधुमेह को नियंत्रित करती है।
नवीन अनुसंधानों ने मधुमेह के नियंत्रण में मेथी की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया है । प्राचीन समय से ही हमारे रसोईघरों में मेथी का प्रयोग कई रूपों में होता रहा हैं । मेथी के बीजों में काफी मात्रा में फाइबर होता है । इसमें ट्राईगोनेलीन नामक एक एल्केलाएंड भी पाया गया है । जिसका कार्य रक्त में शर्करा के स्तर को कम करना है । मेथी का प्रयोग मधुमेह के दोनों वर्गो, इंसुलिन पर निर्भर एवं इंसुलिन पर अनिर्भर में किया जा सकता है । यह रक्त में कोलेस्ट्रोल एवं ट्राईग्लिसराईडस के स्तर को भी कम करने में मदद करती है ।
मधुमेह नियंत्रण में मेथी के महत्व को देखते हुए प्राय: सभी प्राकृतिक चिकित्सालयों एवं योग केन्द्रों में मधुमेह के रोगियों के आहार में मेथी का प्रयोग अंकुरित के रूप में तथा मेथी पानी के रूप में काफी लम्बे समय से किया जाता रहा है ।

औषधीय गुणों से भरपूर मेथी की पत्तियों में ट्राईगोथीन होता है । इसके सब्जी यकृत, हृदय और मस्तिष्क संबंधी विकारों के लिए एक उत्तम औषधि माना जाता है । मधुमेह की प्रारंभिक आवस्था में मेथी की ताज़ी पत्तियों का रस प्रात: काल नियमित रूप से तीन महीने तक लिया जा सकता है ।

मधुमेह के रोगी को दाना मेथी का सेवन किस प्रकार से करना चाहिए ?

मधुमेह के रोगी दाना मेथी को कई प्रकार का सेवन किस प्रकार से करना चाहिए ?दाना मेथी को उबालकर उसका क्वाथ बनाकर
दाना मेथी को भिगोकर उसका पानी पीकर
दाना मेथी को अंकुरित करके
दाना मेथी को पीसकर उसका पाउडर बनाकर
प्रकृतिक चिकित्सा केन्द्रों में मेथी को अंकुरित करके प्रयोग में लाया जाता है । यह अत्यंत सुगम एवं सुविधाजनक है । मेथी के अंकुर अत्यंत पुष्ट एवं आकर्षक होते हैं । इतना ही नहीं अंकुरित होने के पश्चात् मेथी की कडुवाहट भी काफी हद तक कम हो जाती है ।

अन्य उपयोगी फलों का उपयोग


मधुमेह के रोगियों को जामुन, करेला, नीम तथा बेलपत्र आदि के प्रयोग की सलाह भी दी जाती है । ये मधुमेह के नियंत्रण में मदद करती हैं।
ऐसा माना जाता है की एय चीजें रक्त में शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करती हैं । इसलिए प्राय: मधुमेह के रोगियों द्वारा इनका प्रयोग किया जाता है । कागजी नींबू का रस ताजे पानी में निचोड़कर दिन में एक दो बार पीना चाहिए । ताजे आंवले का रस रोज लेना इस रोग इस रोग में अत्यंत लाभकारी पाया गया है । जामुन का थोड़ा-थोड़ा रस दिन में चार बार पीना भी इस रोग में हितकारी माना जाता है । ताजे बेल पत्रों को पीसकर उनका 10 मिली रस या करेले का आधा कप रस प्रात: उठने पर लेना चाहिए । रक्त में शर्करा के स्तर को ध्यान में रखते हुए तथा चिकित्सा के निर्देशानूसर इन सभी का प्रयोग आवश्यक्तानूसार किया जा सकता है ।

करेला मधुमेह में किस प्रकार से लाभ पहुँचाता है ?

प्राचीन समय से ही करेले का प्रयोग मधुमेह की चिकित्सा के लिए किया जाता रहा है । पुस्तक के लेखक डॉ. अमन ने मधुमेह रोग पर करेला, दाना मेथी और धनिया के प्रयोग द्वारा किए गए एक अनूसंधान का संदर्भ दिया है । यह अनूसंधान कार्य 1957 से 1967 के बीच किया गया था जिसमें कुल 210 रोगियों को चिकित्सा दी गई । उनमें से 190 पुरूष तथा 20 महिलाएँ थीं । रोगियों को तीन समूहों में बाँटा गया –

-प्रथम समूह के रोगियों को एक औंस ताजा करेले का रस दिन में एक बार खाली पेट 3 महीने तक दिया गया । साथ में निम्न कार्बोहाइड्रेट आहार देते हुए मूत्र में शर्करा की नियमित जाँच की गई ।
-दूसरे समूह के रोगियों को एक औंस करेले का रस, दाना मेथी का क्वाथ तीन महीने लिए दिया गया ।
-तीसरे समूह के रोगियों को करेले का रस, दाना मेथी का क्वाथ एवं सप्तरंगी की छाल का क्वाथ तीन माह के लिए किया गया ।
औषिधीय गुणों से भरपूर करेले का प्रयोग मधुमेह के रोगियों के लिए अत्यंत लाभदायक माना जाता है । ‘ रस पीओ कायाकल्प करो’ पुस्तक के लेखक कांति भट्ट और मनहर डी.शाह ने मधुमेह के रोगियों को गाजर, पालक, गोभी, नारियल, सेलेरी तथा करेले का रस लेने का परामर्श दिया है ।

मधुमेह के नियंत्रण में सहयोगी कुछ अन्य प्राकृतिक खाद्य पदार्थों के बारे में बताएँ ।

निम्नलिखित खाद्य पदार्थ वयस्कों में डायबिटीज ( टाइप – 2) में रक्त में चीनी की मात्रा कम रखने में सहायक होते हैं ।मेथी – मेथी के बीज रक्त में चीनी की मात्रा कम करते हैं, इन्सुलिन का स्तर भी घटाते खराब कोलेस्ट्रोल कम करते हैं और अच्छा बढ़ाते हैं ।
एलोवेरा – एलोवेरा की पत्तियों के अंदर का रस प्रभावशाली है ।
प्रिकली पियर – इसमें ऐसे फाइबर होते हैं जो चीची के अणुओं के झटका देते हैं और रक्त में उनका जाना धीमा कर देते हैं ।
ग्रीन टी – इसमें कुछ तत्व बुनियादी और इन्सुलिन आधारित ग्लूकोज का उपयोग बढ़ा देता हैं ।
लहसुन – ग्लूकोज का स्तर कम करता है, फ्री इन्सुलिन की मात्रा बढ़ाता है ।
दालचीनी- इन्सुलिन के प्रभाव को तिगुना कर देती है ।
कोको – इसमें फ्लेवेनाएडस होते हैं जो शरीर में चीनी का उपापचय बढ़ा देते हैं ।
करेला – शरीर में ग्लूकोज का उपयोग बढ़ा देता हैं, रक्त में ग्लूकोज का बनना कम करता है, करेले का रस या इसके बीज उपयोगी है ।
स्टिंगीगं नेटल – इसकी जड़ें और पत्तियाँ रक्त में चीनी का स्तर कम करती हैं ।
निषेधों का पालन

मधुमेह के रोगियों को अपने आहार में क्या-क्या सम्मिलित नहीं करना चाहिए।

मधुमेह के रोगियों को भी इनसे बचना चाहिए ।तम्बाकू ( जर्दा, खैनी, गुटका, बीड़ी, सिगरेट एवं सिगार के रूप में )
काफी, चाय, चाकलेट, कहवा कोका कोला आदि।
नमक का अधिक प्रयोग किन्तु नमक न लेना सर्वोत्तम है ।
मद्यसार का उपयोग ।
हानिप्रद गरम मसाले ।
परिष्कृत सफेद चीनी, सफ़ेद मैदा एवं वनस्पति घी और इससे बनाए गए समस्त खाद्य, पावरोटी, बिस्कुट, पूड़ी, मिठाई, नमकीन एवं आइसक्रीम आदि ।
सभी प्रक्रियागत परिष्कृ, डिब्बा बंद, परिरक्षित एवं फैक्ट्री में बनाए गए खाद्य ।
सभी बासी एवं दूर्गंधित खाद्य ।
सभी रासायनिक औषिधियाँ (संभव हो तो बिल्कुल नहीं वर्ना केवल एकदम आपतीकाल् में ही लेना चाहिए ।)
10. मकान, बाग़, एवं खेत के सभी जहरीले छिडकावयुक्त खाद्य । इसके अतिरिक्त अंडा, मांस, मछली आदि का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए

शुगर की बीमारी में क्या परहेज करना चाहिए?

शुगर के इलाज में सबसे अधिक जिन बातों का ध्यान रखना है, वो है आपकी लाइफस्टाइल यानि की आपकी दैनिक दिनचर्या क्योंकि मधुमेह एक लाइफस्टाइल डिजीज है जो गलत खान पान की आदतों और एक्सरसाइज के कमी से होता है। इसलिए खाने में विशेष परहेज़ रखना होता है, आइये जानते हैं :-
भोजन करने का एक निश्चित समय रखें और भूखे ना रहें।
मीठे उत्पादों जैसे मिठाई, मीठे फल, मीठी चाय आदि को बिलकुल छोड़ दें। अगर खाना भी पड़े तो कम मात्रा में ही खाएं।
व्रत, उपवास आदि से परहेज करें।
खाने में सलाद का प्रयोग जरुर करें।
शराब व अन्य किसी भी प्रकार के नशे को तुरंत बाय बाय कर दें।
जंक फ़ूड, डिब्बा बंद प्रोडक्ट्स ये सभी अधिक कैलोरी से युक्त होते हैं जो शरीर में इन्सुलिन को घटाकर शुगर लेवल में वृद्धि कर देता है अतः इनसे यथासंभव बचें।
बिना डॉक्टर के सलाह पर दवाइयों का सेवन, लगातार अंग्रेजी दवाइयां लेना आदि भी शुगर को अनियंत्रित कर देते हैं। इसलिए लम्बी दवाई के लिए डॉक्टर की सलाह लेवें।

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29.1.24

नियमित मालिश से रहें अनगिनत रोगों से दूर -क्या है मसाज की विधि -Body massage benefits



बॉडी में कहीं पेन रहता है अकड़न फील होती है या फिर डाइजेशन खराब रहता है तो इन सारी परेशानियों को दूर करने के लिए आप नियमित रूप से तेल मालिश करवा सकते हैं। बॉडी मसाज से बॉडी के कई सारे अंग अपना काम सही तरीके से कर पाते हैं।
आजकल लोगों को तनाव, असंतुलित लाइफस्टाइल और भागदौड़ भरी जिंदगी के चलते खुलकर सांस लेना मुश्किल हो गया है। बढ़ती स्पर्धा (competition) के कारण हर समय थकान का रहना रोजमर्रा की बात हो गयी है। दैनिक जीवन से जुड़ी इन समस्याओं के लिए लोग कई प्रकार के उपाय खोज रहे हैं। ऐसे में मसाज एक ऐसा उपाय है, जो व्यक्ति को राहत प्रदान करता है। यह शरीर में ऊर्जा का संचार करती है।
शरीर की तेल से मालिश करवाते रहने से सेहत को कई सारे लाभ होते हैं। हममें से ज्यादातर लोग इसके फायदों से वाकिफ नहीं हैं, लेकिन आपको बता दें कि नियमित रूप से मालिश सेहत के साथ-साथ आपकी स्किन और बालों के लिए भी फायदेमंद है।
आयुर्वेदिक मसाज थेरेपी एक प्राचीन थेरेपी है। इसमें आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और तेल के माध्यम से शरीर की मालिश की जाती है। जो शरीर को तरोताजा रखती है। इसलिए थकान और तमाम बीमारियों के लिए यह एक बेहतर विकल्प है।

क्या है मसाज थेरेपी?

जितना महत्व आधुनिक दिनचर्या में किए जाने वाले कार्यों, व्यायाम और आहार का है। उतना ही महत्व मसाज का भी है। तेल, क्रीम या किसी अन्य चिकने पदार्थ (Greasy substance) को बॉडी पर हल्के हाथ से रगड़ना या मलना, मसाज (मालिश) कहलाता है। इस चिकित्सा में शरीर की मांशपेशियों और नरम ऊतकों को हाथों से आराम दिया जाता है। मालिश करने से मांशपेशियों के दर्द में आराम मिलता है और रक्त परिसंचरण में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त मसाज करने से त्वचा और मस्तिष्क संबंधित बीमारियां कम होती हैं।

मसाज के प्रकार;

मसाज या मालिश के निम्नलिखित प्रकार हैं-सिर की मालिश।
बालों की मालिश।
आंखों की मालिश।
गालों की मालिश।
कनपटी की मालिश।
ठोड़ी (chin) की मालिश।
हाथों की मालिश।
पैरों की मालिश।
बॉडी की मालिश।

मसाज करने की विधि;

सर्वप्रथम सिर में गुनगुना तेल लगाकर उंगलियों से धीरे-धीरे मालिश करें। मालिश करते समय कान के पीछे और ऊपरी भाग पर (कनपटी वाले स्थान) पर विशेष रूप से मालिश करें।
गर्दन की मालिश ऊपर से नीचे और पीछे से आगे की ओर करें।
चेहरे की मालिश करते समय विशेष ध्यान देना आवश्यक है। इसलिए पूरे चेहरे पर अच्छी तरह से तेल लगा लें। अब दोनों हाथों की तर्जनियों को नाक के आसपास रखकर दबाव के साथ धीरे-धीरे कान की ओर ले जाएं। कुछ समय बाद पुनः उंगलियों को घुमाते हुए कान के नीचे जबड़े की हड्डी (jaw bone) तक लाएं। इस क्रिया को दो से तीन बार दोहराएं।
गाल एवं ठोड़ी (chin) की मालिश हथेलियों के द्वारा नीचे से ऊपर की ओर करनी चाहिए। गाल और आंखों के चारों ओर पलकों पर गोलाकार मालिश करें।
इसके बाद छाती, पेट तथा पीठ की मालिश करें।
छाती एवं पेट की मालिश ऊपर से नीचे (अनुलोम दिशा) की ओर हल्के हाथों से मालिश करें।
दोनों भुजाओं (हाथों) पर ऊपर से नीचे समान गति से मालिश करें। साथ ही बाजुओं के विभिन्न भाग- जैसे कोहनी, कलाई इत्यादि परगोलाई में मालिश करें।
इसी तरह से पैरों की मालिश करें। तलवों और हथेलियों की मालिश करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है।
मसाज के फायदें;
ये भी जान लें कि महीने दो महीने या 4-5 महीने में तेल मालिश कराने से और हफ्ते में 1-2 बार मालिश कराने में काफी फर्क होता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जिस तरह से टाइम पर खाना, सोना, पर्याप्त मात्रा में पानी पीना और फिजिकल एक्टिविटी जरूरी है उतना ही जरूरी मसाज भी है। इससे आप लंबे समय तक निरोग बने रह सकते हैं।
मसाज करने से शरीर को मिलने वाले लाभ निम्नलिखित हैं-
मसाज थेरेपी से पूरे शरीर में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है।
इससेपाचन शक्ति तेज होती है और पेट साफ रहता है।
मालिश करने से शरीर के विभिन्न अंग जैसे दिल, आंते, फेफड़े और यकृत आदि शक्तिवान होते हैं।
इस चिकित्सा के प्रयोग से अपच, वायु, अनिद्रा, बवासीर, उच्च रक्तचाप और पित्त विकार जैसे रोगों में फायदा मिलता है।
मालिश करने से त्वचा के बंद रोम क्षिद्र (Hair follicle) खुलने लगतें है। साथ ही त्वचा के रक्त संचारमें भी सुधार होता है।
इस चिकित्सा से त्वचा की मृत कोशिकाएं स्वच्छ होती हैं और उन्हें जरूरी पोषण तत्व मिलता है। जिससे त्वचा में चमक आती है।

ब्लड प्रेशर पर कंट्रोल

अगर हाई ब्लड प्रेशर की परेशानी है, तो नियमित रूप से मालिश करवाते रहने से यह परेशानी भी कंट्रोल हो सकती है। इतना ही नहीं, यह कार्डिएक हेल्थ में सुधार लाने में भी मदद करती है।

पाचन रहता है सही

बॉडी मसाज में पेट की मालिश भी शामिल होती है, तो पेट की मालिश होने से नाभि की एक्टिविटी बढ़ती है। पेट के निचले भाग की मालिश से पीरियड पेन में राहत मिलती है। मालिश से बड़ी आंत, लिवर, पैंक्रियाज सभी बॉडी पार्ट्स अपना काम सही तरीके से कर पाते हैं, जिससे आंतों में गैस्ट्रिक जूस पर्याप्त मात्रा में निकलता है और लिवर का फंक्शन दुरुस्त रहता है।

बढ़ाती है इम्युनिटी

रिसर्च के मुताबिक, रेगुलर मसाज से बॉडी की इम्युनिटी बढ़ती है, जिससे शरीर कई सारी बीमारियों का सामना बिना दवाइयों के ही कर पाता है।

रिलैक्स होती है मसल्स

नियमित रूप से मालिश करवाते रहने से कार्टिसोल के लेवल में कमी आती है, जिससे मूड अच्छा रहता है। बॉडी के साथ माइंड रिलैक्स होता है। मालिश एक तरह से थेरेपी का काम करती है, जो न सिर्फ मानसिक तनाव दूर करती है, बल्कि जोड़ों के दर्द को भी कम करती है। मालिश से शरीर में ब्लड का सर्कुलेशन सही तरह से हो पाता है। यह फ्लेक्सिबिलिटी को बेहतर बनाती है। मालिश से खराब पोस्चर भी धीरे-धीरे ठीक होने लगता है।इस थेरेपी से शरीर में लचीलापन आता है। जिससे मूवमेंट बेहतर होता है।
मालिश करने से शरीर में रक्तचाप सामान्य रहता है और इंसुलिन रेजिस्टेंस अच्छा होने से मधुमेह में भी फायेदा मिलता है।
मसाज थेरेपी का प्रयोगकरने से मांसपेशियों की सिकुड़ने और फैलने की क्षमता बढ़ती है। साथ ही उनमें मेटाबॉलिज्म का कार्य निश्चित रूप से होने लगता है। जिससे शरीर में बन रहे मुक्त कण (free redicles) को भी हटाया जा सकता है।
मसाज करते वक्त ध्यान रखें यह सावधानियां;मालिश के तुरंत बाद न नहाएं। हमेशा मालिश के कम से कम आधे घंटे बाद स्नान करें।
मालिश के तुरंत बाद भोजन न करें। भोजन और मसाज के बीच लगभग तीन घंटे का अंतर होना चाहिए। इसलिए सूर्योदय के समय मालिश कराना सबसे अच्छा होता है।
सर्दियों में खुली धूप में और गर्मियों के समय छाया में मालिश कराएं।
प्रत्येक अंग पर कम से कम पांच मिनट तक मालिश अवश्य कराएं।
जिस हिस्से पर मालिश करानी है, वह हिस्सा साफ होना चाहिए।
चोट, घाव, फ्रैक्चर जैसी समस्याओं में भूलकर भी मालिश न कराएं।
बुखार इत्यादि जैसे रोगों से पीड़ित लोगों को मालिश नहीं करानी चाहिए।
प्रतिदिन संपूर्ण शरीर पर कम से कम10-20 मिनट तक ही मालिश करनी चाहिए।
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पित्ताशय की पथरी (Gall Stone) रामबाण हर्बल औषधि बताओ

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2.1.24

दुनिया में सबसे शक्तिशाली मर्दाना ताकत बढ़ाने वाली दवा कौन सी है?

 


दुनिया में सबसे शक्तिशाली मर्दाना ताकत बढ़ाने वाली दवा चाहिए तो आपको थोड़ा मेहनत करने की जरुरत है
मै आपको तरीका बता देता हूँ और आप इस दवा को खुद अपने घर में ही बना सकते हैं

आपको क्या क्या चाहिये :

मिट्टी का बर्तन (05 किलोग्राम साइज) - 01 नग
मध्यम साइज के देसी सफेद प्याज - 60 नग
देसी शहद - 2.5 किलोग्राम



आपको करना क्या है :सबसे पहले प्याजों को छील लें और किसी नुकीले सुये या सलाई की सहायता से उसमे आडे टेढ़े छेद कर ले.
अब मिटटी के बर्तन में इन प्याजों को डाल कर शहद से भर दें ताकि सभी प्याज शहद में डूब जायें.
अब इस बर्तन को ढक्कन लगा कर और मिटटी का लेप लगा कर अच्छे से हवारहित तरीके से बंद कर दें
अब आप खेत या किसी भी कच्ची जगह में कम से कम तीन फ़ीट गहरा खडडा खोद कर इस बर्तन को 60 दिन के लिए जमीन में दबा दे.
अब 60 दिन में यह नुस्खा तैयार हो जाएगा.

आपको सेवन कैसे करना है
:

सूबह के समय शौच से मुक्त होकर खाली पेट एक प्याज और थोड़ा शहद खाना है

आपको क्या फायदा मिलेंगा :

इस दवा से आपका शारीरिक और मर्दाना ताकत बढ़ जाएगी और वीर्य शहद की तरह ही गाढ़ा हो जायेगा

आपको कब तक लेना है :

आपको यह दवा केवल और केवल 60 दिन तक ही लेना है

यह दवा कौन ले सकता है :

यह दवा 15 वर्ष से लेकर 75 वर्ष तक का मर्द ले सकता है जो डायबिटीज से पीड़ित नहीं है.

विशिष्ट परामर्श-

नपुंसकता एक ऐसी समस्या है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. किसी भी पुरुष के एक पिता बनने में असमर्थ होने को पुरुष बांझपन या नपुंसकता कहा जाता है।यह तब होता है जब कोई पुरुष संभोग के लिए पर्याप्त इरेक्शन प्राप्त नहीं कर पाता या उसे मजबूत नहीं रख पाता. दामोदर चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र 
9826795656 द्वारा निर्मित "नपुंसकता नाशक हर्बल औषधि" से सैंकड़ों व्यक्ति लाभान्वित हुए हैं। स्तंभन दोष दूर करने मे यह औषधि रामबाण सिद्ध होती है।
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18.12.23

कस्तूरी की जानकारी ,उपयोग विधि ,फायदे और नुकसान





कस्तूरी, एक बहुत लोकप्रिय लेकिन दुर्लभ चीज है. दुर्लभ इसलिए क्योंकि ये मृग से प्राप्त किया जाता है और मृगों में भी सबसे नहीं. कुछ नर मृगों के गुदा क्षेत्रों में स्थित एक ग्रंथि से इसे प्राप्त किया जाता है. इसकी जानकारी प्राचीनकाल से ही है. इसका इस्तेमाल एक महत्वपूर्ण रासायनिक पदार्थ की तरह किया जाता है. आपको बता दें की इसे विश्व के सार्वाधिक कीमती पशु उत्पादों में गिना जाता है. कस्तूरी को इत्र और इसी तरह के अन्य कई सुगंधित पदार्थों के निर्माण में किया जाता है. आइए इस लेख के माध्यम से हम कस्तुरी के विभिन्न फ़ायदों को जानें ताकि इसके बारे में लोगों को भी जानकारी प्राप्त हो सके.क्या है कस्तूरी?
“कस्तूरी” का नाम संस्कृत में प्रयुक्त “के” से हुआ है. हिन्दी में इसका तात्पर्य अंडकोष से है. आपको जानकार हैरानी हो सकती है कि कस्तुरी केवल हिरण से ही नहीं बल्कि अन्य कई जानवरों और पौधों से भी प्राप्त किया जाता है. स्पष्ट है कि तब कस्तुरी के कई प्रकार हो गए. इनमें से कई प्रकारों के रंग, गंध और संरचना में भिन्नता हो सकती है. कस्तूरी के ऊपरी सतह पर बाल होते हैं. इसके अंदुरुणी हिस्से में कलोंजी या इलायची के दाने जैसे ही दाने मौजूद होते हैं. कस्तूरी वयस्क नर हिरण में ही पाई जाती है. कहते है कि जब यह कस्तूरी मृग जवान हो जाता है तो इससे भी कस्तूरी की सुगंध आती है, जिसे ढूंढने के लिए यह इधर से उधर भागा फिरता है लेकिन कस्तूरी इसे कभी प्राप्त नहीं होता क्योंकि ये बाहर न होकर इसके अंदर ही मौजूद होता है. अपने देश में इसका ज्ञान लोगों को प्राचीन काल से ही था. न सिर्फ ज्ञान था बल्कि उस दौरान इसका इस्तेमाल भी किया जाता था. तब इसका इस्तेमाल सुगंधित पदार्थों के अलावा पूजा-पाठ में भी किया जाता था. इसके अलावा कई औरषधियों के निर्माण में भी इसे इस्तेमाल किया जाता था.
कस्तूरी — वस्तुत: कस्तूरी एक जान्तव द्रव्य है जो एक विशेष प्रकार के हिरण से प्राप्त होती है | इस हिरण के नाभि के पास एक ग्रंथि होती है जो बहुत तीव्र गंध वाली होती है , इसी ग्रंथि से मृग कस्तूरी प्राप्त होती है | कस्तूरी व्यस्क नर हिरण में ही पाई जाती है | कहते है कि जब यह कस्तूरी मृग जवान हो जाता है तो इसे भी कस्तूरी की सुगंध आती है , जिसे ढूंढने के लिए यह इधर से उधर भागा फिरता है लेकिन कस्तूरी इसे कभी प्राप्त नहीं |
हिमालय में ऐसे कई जीव-जंतु हैं, जो बहुत ही दुर्लभ है। उनमें से एक दुनिया का सबसे दुर्लभ मृग है कस्तूरी मृग।
यह हिरण उत्तर पाकिस्तान, उत्तर भारत, चीन, तिब्बत, साइबेरिया, मंगोलिया में ही पाया जाता है। इस मृग की कस्तूरी बहुत ही सुगंधित और औषधीय गुणों से युक्त होती है। कस्तूरी मृग की कस्तूरी दुनिया में सबसे महंगे पशु उत्पादों में से एक है। यह कस्तूरी उसके शरीर के पिछले हिस्से की ग्रंथि में एक पदार्थ के रूप में होती है।
कस्तूरी चॉकलेटी रंग की होती है, जो एक थैली के अंदर द्रव रूप में पाई जाती है। इसे निकालकर व सुखाकर इस्तेमाल किया जाता है। कस्तूरी मृग से मिलने वाली कस्तूरी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत अनुमानित 30 लाख रुपए प्रति किलो है जिसके कारण इसका शिकार किया जाता रहा है। इसका इस्तेमाल इत्र बनाने में भी किया जाता है।

माना जाता है कि यह कस्तूरी कई चमत्कारिक धार्मिक और सांसारिक लाभ देने वाली औषधि है।

कस्तूरी के प्रकार

कस्तूरी को इसके उत्पति स्थान को देखते हुये प्रमुख रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता है.
नेपाली कस्तूरी – नेपाल के हिरणों से नील वर्ण की कस्तूरी प्राप्त की जाती है.

कामरूपी कस्तूरी –

 आसाम क्षेत्र के हिरणों से जो कस्तूरी प्राप्त की जाती है उसका रंग काला होता है और उसे कामरूपी कस्तूरी भी कहते हैं.

कश्मीरी कस्तूरी – 

भारत में कश्मीर के हिरणों से प्राप्त कस्तूरी पीले रंग की होती है. जबकि कश्मीरी कस्तूरी का रंग इससे अलग होता है.
गुणात्मक दृष्टि से इन तीनो प्रकारों में कामरूपी कस्तूरी श्रेष्ठ होती है, नेपाली कस्तूरी – माध्यम और कश्मीरी कस्तूरी सामान्य मानी जाती है.

कस्तूरी की पहचान

कस्तूरी में तीव्र गंद आती है. शुद्ध कस्तूरी को पानी में घोलकर सूंघने से सुगंध आती है और अगर नकली है तो पानी में डालने के बाद सूंघने पर कीचड़ की तरह या विकृत गंद आती है. शुद्ध कस्तूरी पानी में अविलेय होती है पानी का रंग भी मैला नही होता. अगर आप कस्तूरी को जलाएंगे तो यह चमड़े की तरह चिट – चिट की आवाज के साथ जलती है एवं गंद भी चमड़े के सामान आती है.

कस्तूरी के गुण धर्म –

 रस में यह कटु और तिक्त , गुण में – लघु , रुक्ष और तीक्ष्ण, वीर्य – उष्ण और विपाक – कटु होता है |

कस्तूरी के रोग प्रभाव – 

वात एवं कफ नाशक |

द्रव्य प्रयोग – श्वसनक ज्वर, वात श्लेष्मिक ज्वर , लकवा, सन्निपातज ज्वर और ह्रदय रोगों में इस्तेमाल की जाती है |

कस्तूरी औषध उपयोग आयुर्वेद में कस्तूरी से टीबी, मिर्गी, हृदय संबंधी बीमारियां, आर्थराइटिस जैसी कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है।

कस्तूरी के फायदे

कस्तूरी के औषध योग – इसमें म्रिग्म्दादीवरी, वृहद् कस्तूरी भैरव रस और मृगमादासव इत्यादि के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है.
गर्भाशय रोग – जिन स्त्रियॉं का गर्भाशय अपने मूल स्थान से हट जाता है उसे पुनः उस स्था पर लाने के लिए आपको कस्तूरी और केशर की एक सामान मात्रा को लेकर पानी में पिस कर छोटी-छोटी गोलियां बना लें. अब इन गोलियों को मासिक धर्म के शुरू होने से पहले योनी मुख में रखें. तीन दिन तक ऐसा करने से इसमें काफी लाभ मिलेगा.
दांत दर्द – यदि आपको दाँत दर्द की समस्या है तो आप कस्तूरी को कुठ के साथ मिलाकर दांतों पर मलें. ऐसा करने से आपको शीघ्र ही दांत दर्द में आराम मिलेगा.

काली खांसी – 

काली खांसी से परेशान व्यक्ति को सरसों के दाने के सामान कस्तूरी को मक्खन में मिश्रित करके देने से तुरंत लाभ मिलता है.

कस्तूरी की पहचान

कस्तूरी में तीव्र गंध आती है | शुद्ध कस्तूरी को पानी में घोलकर सूंघने से सुगंध आती है और अगर नकली है तो पानी में डालने के बाद सूंघने पर कीचड़ की तरह या विकृत गंध आती है | शुद्ध कस्तूरी पानी में अविलेय होती है पानी का रंग भी मैला नही होता | अगर आप कस्तूरी को जलाएंगे तो यह चमड़े की तरह चिट – चिट की आवाज के साथ जलती है एवं गंध भी चमड़े के सामान आती है |
इसकी तासीर गर्म होती है और इसका इस्तेमाल मुख्यतः वात, पित्त और कफ से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है. वह बताती हैं कि कस्तूरी को कामेच्छा बढ़ाने वाली, धातु परिवर्तक, नेत्रों को लाभ पहुंचाने वाली, मुख रोग, दुर्गंध, वात, तृषा, मूर्छा, खांसी, विष और शीत का नाश करने वाली औषधि माना जाता है.11 
कस्तूरी कैसे कहाँ मिलती है…हिरन की कई जातियाँ होती हैं किन्तु सब जाति के हिरनों से कस्तूरी नहीं निकलती। जिस हिरन से कस्तूरी निकलती है उसको संस्कृत में 'कस्तुरीमृग', यूनानी में 'हिनमुस्की' और लेटिन में मोस्कस् मोस्कीफेरस् (Moschus moschiferus; Fam. Cervidae) कहते हैं।
यह मृग उत्तरी भारत, नेपाल, आसाम, कश्मीर, मध्य एशिया, तिब्बत, भूतान, चीन एवं रूस आदि स्थानों में २४००-२७०० मी. ऊँची पहाड़ी चोटियों पर सघन जंगलों में पाया जाता है।
कस्तूरी मृग विशेषकर तिब्बत में अधिक होते हैं। यह हिरन की जाति का बहुत सुहावना और सुन्दर मृग होता है किन्तु न इसके सींग होते हैं न दुम यह मृग करीब ५० से.मी. ऊँचा, लौह के समान गहरे धूसर वर्ण का अत्यन्त सशंक स्वभाव का प्राणी होता है। इसके ऊपरी जबड़े में दो लंबे दंष्ट्र यानि दांत होते हैं, जो बाहर नीचे की ओर हुक की तरह निकले रहते हैं।
कस्तूरी मृग का मुँह लंबा, पैर पतले तथा सीधे एवं बाल रूखे और लम्बे होते हैं। इसके लिंगेन्द्रिय के मणि को ढांकने वाले चमड़े के प्रवर्धन से बनी हुई एक थैली होती है जिसके सूखे हुये साव को 'कस्तूरी' कहते हैं।
कस्तूरी केवल नर हिरन में ही यह पायी जाती है। थैली नाभि के पास, नाभि एवं शिश्नावरण के बाँच में स्थित रहती है। यह अंडाकार, ३-७.५ से.मी. लम्बी एवं २.५-५ से.मी. चौड़ी होती है। इसके अग्रभाग में केशयुक्त एक छोटा सा छिद्र होता है तथा पिछले भाग में एक सिकुड़न सी होती है जो शिश्नाप्रचर्म के मुख से मिल जाती है। इसके अन्दर के चिकने आवरण की अनियमित तहों के कारण यह कई अपूर्ण विभागों में बँटी होती है।
कस्तूरी, युवावस्था के मृगों में उनके मदकाल (Rutting season) में अधिक मात्रा में होती है तथा उसी समय उसकी शक्ति एवं गन्ध अधिक रहती है। यह काल करीब १ महीने का होता है।
राजनिघन्टु. में भी लिखा है कि
'बाले जरति च हरिणे क्षीणे रोगिणि च मन्दगन्धयुता कामातुरे च तरुणे कस्तूरी बहलपरिमला भवति।'
अर्थात-बालक, वृद्ध, क्षीण और रोगी हिरन की कस्तूरी मन्द गन्ध वाली होती है तथा कामातुर और तरुण हिरन की कस्तूरी अत्यन्त सुगन्धित होती है। जब उक्त हिरन की नाभा में कस्तूरी बन जाती है तब उसमें से कस्तूरी की गन्ध आती है और वह मृग किसी दूसरे पदार्थ की गन्ध समझकर इधर-उधर घूम-घूमकर वृक्षों को सूंघा करता है जिससे बहेलिये आसानी से पहचान कर उसको मार डालते है।
१ साल के बच्चे में कस्तूरी नहीं होती तथा २ साल के बच्चे में करीब ६-७ मा होती है जो दुधिया रहती है। वृद्ध प्राणी में भी ७ प्रा. से अधिक नहीं होती।
कस्तूरी में सुगन्ध ही एक मनोहर गुण है जो बहुत तीव्र स्वतन्त्र प्रकार की और शीघ्र फैलने वाली होती है। इसका स्वाद सुगन्ध युक्त कड़वा होता है।
कस्तूरी के प्रकार—मृग के शिकार के बाद इन नाभों को निकालकर धूप एवं हवा में सुखाते हैं। फिर इन नाभों को मृग के बालों में लपेटकर चमड़े की थैलियों में बन्द किया जाता है तथा बाद में सौलबन्द डिब्बों में या अन्दर से टीन का अस्तर लगे हुये लकड़ी के बक्सों में बन्द कर बाहर भेजा जाता है।
व्यापार की कस्तूरी ३ प्रकार की होती है।
(१) रूस की कस्तूरी- इसमें गन्ध बहुत कम होती है। (२) आसाम की कस्तूरी यह बहुत अच्छी तथा तीव्र गन्ध युक्त होती है तथा इसका रंग काला होता है। सम्भवतः प्राचीनों ने कामरूप कस्तूरी इसी को कहा है।
(३) चीन की कस्तूरी यह सबसे महगी होती हैं क्योंकि अन्य हीन श्रेणी की कस्तूरी में जो कभी-कभी अमोनिया आदि की अप्रिय गन्ध होती है वह इसमें बिलकुल नहीं होती।
यह कस्तूरी तिब्बत से ही चीन को जाती है। एक अन्य तीक्ष्ण अप्रिय गन्ध वाली कस्तूरी कॅबइन् नामक होती है जो मंगोलिया एवं मंचूरिया के उत्तरी भाग तथा पूर्वी साइबेरिया से आती है।
उत्तम कस्तूरी-रक्ताभश्याम वर्ण की, गोल बड़े दाने वाली, तीक्ष्ण गन्ध वाली, स्वाद में तिक्त, हलकी एवं मुलायम कस्तूरी उत्तम होती है। इसकी गन्ध बहुत स्थायी रहती है तथा ३००० गुना विरल (Dilute) करने पर भी गन्ध मालूम हो जाती है।
यह कहा जाता है कि शिकार के समय इसकी तीव्र गन्ध से शिकारियों के वातनाडी संस्थान, आँख एवं कान पर बुरा असर पड़ता है। चीनी व्यापारियों का कहना है कि मदकाल में जब मृग में कस्तूरी की गन्ध तीव्र हो जाती है, तब उसके प्रक्षोभ के कारण वह अपने खुरों से उसे खुरचकर निकाल देता है। ऐसी कस्तूरी मृगों के आवास स्थानों में पड़ी हुई पाई जाती है। लेकिन ऐसी कस्तूरी बहुत कठिनाई से ही मिलती है।
जगत में असली कस्तूरी की पहचान-कस्तूरी की माँग बहुत होने के कारण तथा कठिनाई से मिलने के कारण इसमें मिलावट की जाती है।
असली कस्तूरी मिलना बहुत कठिन है। व्यापारी लोग सूखा हुआ रक्त, यकृत तथा दाल, गेहूँ एवं जी के दाने आदि मिला देते हैं। केवल गन्ध से कस्तूरी की पहचान करना कठिन है क्योंकि इसके सम्पर्क में आये पदार्थ को यह सुगन्धित कर देती है।
चीन तथा तिब्बती व्यापारियों के यहाँ पहचान की कुछ पद्धतियाँ प्रचलित है जो वैज्ञानिक न होते हुये भी कुछ हद तक उपयोगी है।

बुखार का इलाज करे लता कस्तूरी

बुखार के इलाज में भी लता कस्तूरी का उपयोग किया जा सकता है। लता कस्तूरी में ज्वरनाशक गुण होते हैं, जो बुखार में लाभकारी होता है। लता कस्तूरी के ताजे पत्र-स्वरस को पिलाने से बुखार ठीक हो सकता है। लेकिन अगर बुखार किसी बीमारी की वजह से है, तो डॉक्टर की सलाह पर ही इसका सेवन करें।

आंखों के लिए उपयोगी

लता कस्तूरी का उपयोग आंखों की समस्याओं को दूर करने के लिए भी किया जा सकता है। अगर आपको आंखों से जुड़ी कोई गंभीर समस्या है, तो आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह पर इसका उपयोग किया जा सकता है।
(१) कस्तूरी के दानों को जल में डालने पर यदि दाने वैसे ही रहें तो असली और यदि वे धुल जाये तो मिलावटी रा. नि. में भी लिखा है यदप्सु न्यस्ता नैव वैवर्ण्यमीयात्कस्तूरी सा राजभोग्या प्रशस्ता जिस कस्तूरी को जल में डालने पर उसके वर्ग में परिवर्तन नहीं होता वह उत्तम होती है।
(२) जलते लकड़ों के अंगारे पर कस्तूरी के दाने डालने पर यदि वह पिघलकर उसमें से बुदबुदे निकले तो असली और यदि वह एक दम कड़ी होकर कोयला बन जाय तो नकली रा. नि. में भी लिखा है कि
'दाहं या नैति वही शिमिसिमिति चिरं धर्मगन्धा हुताशे, सा कस्तूरी प्रशस्ता वरमृगतनुजा राजते राजभोग्या
(३) असली कस्तूरी को गाड़ दें तब भी उसकी गन्ध में कोई परिवर्तन नहीं होता।
(४) असली कस्तूरी मुलायम होती है तथा मिलावट होने पर वह कड़ी होती है।
(५) पंजाब की तरफ एक परीक्षा प्रचलित है कि होंग में एक तागे को डालकर निकालते हैं फिर उसे नाभे में डालकर निकालते हैं। यदि हींग की गन्ध उस तागे में रहे तो कस्तूरी नकली मानते हैं।
(६) कागज में रखने पर इससे कागज में पीला दाग पड़ जाता है तथा जलने पर इसमें मूत्र की गन्ध आती है।
(७) कपूर, डॅलेरियन, लहसुन, हाइड्रोसाइनिक एसिड एवं अर्गट का चूर्ण आदि के सम्पर्क में आने पर कस्तूरी को गन्ध नष्ट हो जाती है।
नकली या कृत्रिम कस्तूरी (Artificial or synthetic musk) – कस्तूरी की माँग बहुत होने के कारण तथा मृग का शिकार करते करते कहीं उनकी जाति हो नष्ट न हो जाय इस डर से कृत्रिम रूप से कस्तूरी बनाने की तरफ वैज्ञानिकों का ध्यान आकृष्ट हुआ तथा रासायनिक विधि से कृत्रिम कस्तूरी अब बनाई जाने लगी है।
सरकार ने इस मृग की शिकार पर भी प्रतिबंध लगाया है। कृत्रिम कस्तूरी पीताभश्वेत रंग की तथा वेदार होती है। इनमें बहुत तीव्र तथा स्थायी गन्ध होती है जो कस्तूरी से मिलती-जुलती होते हुये भी प्राकृतिक कस्तूरी से अलग मालूम होती है।
कस्तूरी मृग का शिकार उसकी नाभी में पाई जाने वाली कस्तूरी के लिए किया जाता है। केवल नर कस्तूरा में पाई जाने वाली एक ग्राम कस्तूरी की कीमत खुले बाजार में 25 से 30 हजार रुपये बताई जाती है

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16.12.23

हल्दी और सरसों के तेल के फायदे,लिवर और किडनी को रखे सुरक्षित


भारतीय किचन में अधिकतर लोग हल्दी और सरसों के तेल का इस्तेमाल करते हैं। आमतौर पर इसका इस्तेमाल खाना तैयार करने में किया जाता है। इनमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्, एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण स्वास्थ्य के जुड़ी कई समस्याओं को दूर कर सकता है। रोजाना हल्दी और सरसों के तेल का इस्तेमाल करने से कई तरह की बीमारियों को दूर किया जा सकता है। यह स्किन संबंधी परेशानियों को दूर कर सकता है। साथ ही मोटापा भी कंट्रोल करने में प्रभावी है. इतना ही नहीं, हल्दी और सरसों तेल का इस्तेमाल करने से शरीर की सूजन को कम की जा सकती है। आज हम इस लेख में हल्दी और सरसों तेल के फायदों के बारे में जानेंगे।
हल्दी और सरसों के तेल का सेवन करने से सेहत को कई तरह के लाभ मिलते हैं। हल्दी और सरसों के तेल में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरियल और एंटीवायरल के गुण पाए जाते है, जो स्वास्थ्य के जुड़ी कई समस्याओं को दूर करते है। साथ ही नियमित रूप से हल्दी और सरसों के तेल का इस्तेमाल करने से कई तरह की बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। दर्द को कम करने के लिए हल्दी और सरसों के तेल का सेवन करना फायदेमंद होता है। साथ ही ये हार्ट को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करते हैं। तो आइए जानते हैं हल्दी और सरसों के तेल के फायदे के बारे में

हल्दी और सरसों के तेल के फायदे

हार्ट के लिए हेल्दी

हल्दी, सरसों तेल और नमक का एक साथ इस्तेमाल करने से आप हार्ट को स्वस्थ रख सकते हैं। दरअसल, हल्दी और सरसों तेल में खून को साफ करने का गुण होता है। साथ ही यह ब्लड सर्कुलेशन को भी बेहतर कर सकता है, जिसकी मदद से आप हार्ट डिजीज के खतरों को कम कर सकते हैं।
हार्ट को स्वस्थ बनाए रखने के लिए हल्दी और सरसों के तेल का एक साथ सेवन करना बहुत ही फायदेमंद माना जाता है। क्योंकि हल्दी और सरसों के तेल एक साथ मिलाकर खाने से ब्लड प्यूरीफाय होता है और क्लॉटिंग की आशंका कम होती है। जिससे ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है और हार्ट डिजीज का खतरा भी कम होता है।

लिवर और किडनी को रखे सुरक्षित 

हल्दी और सरसों के तेल का खाने से शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाला जा सकता है। इससे शरीर के संक्रमण को भी दूर कर सकते हैं। साथ ही किडनी इंफेक्शन की समस्या को दूर करने में भी हल्दी और सरसों तेल काफी फायदेमंद हो सकता है। हल्दी और सरसों तेल का सेवन आप खाने में शामिल करके कर सकते हैं।

कब्ज से राहत 

कब्ज की परेशानी को दूर करने के लिए हल्दी और सरसों तेल का इस्तेमाल करें। यह आपके पाचन के लिए हेल्दी हो सकता है। इसके सेवन से आप गैस, कब्ज जैसी परेशानियों को कम कर सकते हैं

दर्द और सूजन को कम करने में फायदेमंद

दर्द और सूजन को कम करने के लिए हल्दी और सरसों का तेल इस्तेमाल करना बहुत ही फायदेमंद माना जाता है। क्योंकि हल्दी में एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट्स के गुण पाए जाते हैं, जो शरीर की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। साथ ही हल्दी में करक्यूमिन गुण पाए जाते हैं, जो शरीर के दर्द से राहत दिलाने में मदद करते हैं। इसलिए हल्दी और सरसों के तेल का इस्तेमाल करने से शरीर में दर्द और सूजन की समस्या दूर रहती है।

दांतों की बढ़ाए चमक

हल्दी, नमक और सरसों तेल का एक साथ इस्तेमाल करने से आप अपने दांतों को स्वस्थ रख सकते हैं। यह दांतों की चमक को बढ़ाने में प्रभावी होता है। इसका प्रयोग करने के लिए 1 चम्मच सरसों तेल लें। इसमें 1 चुटकी नमक और हल्दी मिक्स करें। अब इस मिश्रण को उंगलियों की मदद से अपने दांतों को साफ करें। इससे दांतों की चमक बढ़ेगी।

स्किन को स्वस्थ बनाए रखने में फायदेमंद

स्किन को स्वस्थ बनाए रखने के लिए हल्दी और सरसों के तेल इस्तेमाल करना बहुत ही फायदेमंद माना जाता है। क्योंकि इनका इस्तेमाल करने से स्किन को स्वस्थ रखा जा सकता है। इसलिए रोजाना स्किन और चेहरे पर हल्दी और सरसों का तेल लगाने से स्किन इंफेक्शन और स्किन से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है।

मुंह की बदबू से राहत


मुंह की बदबू को कम करने के लिए आप सरसों तेल, हल्दी और नमक के मिश्रण से मंजन कर सकते हैं। यह मुंह में मौजूद बैक्टीरिया को खत्म करने में मददगार हो सकता है। सुबह ब्रश करने के बाद आप इस मिश्रण से कुछ मिनटों तक मंजन करें। इससे लाभ मिलेगा।
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