30.8.23

रीढ़ की हड्डी Back bone में गैप क्यों आता है ?कैसे करें इलाज ?

 




उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में कई परेशानियां बढ़ने लगती हैं, जिसमें से एक है रीढ़ की हड्डी में गैप आ जाना। रीढ़ की हड्डी में गैप को साइंस की भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर देता है। ये स्थिति खासकर उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती है लेकिन कुछ कारणों से ये परेशानी कम उम्र के व्यक्ति को भी हो सकती है। बहुत से लोग इस परेशानी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं लेकिन सही इलाज कभी भी आपके लिए पहले जैसा साबित नहीं हो सकता है। हालांकि अगर शुरुआत में ही इस स्थिति के लक्षणों को समझ लीजिए तो इस स्थिति को बढ़ने से रोका जा सकता है। आइए जानते हैं आप कैसे इस स्थिति से बच सकते हैं।

रीढ़ की हड्डी में गैप होने के लक्षण

1-रीढ़ की हड्डी में दर्द रहना

2-भारी-भरकम सामान उठाने पर दर्द होना

3-झुकते वक्त पीठ में दर्द

4-सीधे खड़े होने पर कमर से कट-कट की आवाज आना

5-पीठ सीधी करने में परेशानी

रीढ की हड्डी में आए गैप को कैसे कम करें? जानें आयुर्वेदिक तरीके से गैप को कम करने का तरीका

रीढ़ की हड्डी में गैप को साइंस की भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर देता है। जानें आयुर्वेदिक तरीका।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में कई परेशानियां बढ़ने लगती हैं, जिसमें से एक है रीढ़ की हड्डी में गैप आ जाना। रीढ़ की हड्डी में गैप को साइंस की भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर देता है। ये स्थिति खासकर उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती है लेकिन कुछ कारणों से ये परेशानी कम उम्र के व्यक्ति को भी हो सकती है। बहुत से लोग इस परेशानी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं लेकिन सही इलाज कभी भी आपके लिए पहले जैसा साबित नहीं हो सकता है। हालांकि अगर शुरुआत में ही इस स्थिति के लक्षणों को समझ लीजिए तो इस स्थिति को बढ़ने से रोका जा सकता है। आइए जानते हैं आप कैसे इस स्थिति से बच सकते हैं।

रीढ़ की हड्डी में गैप होने के लक्षण

1-रीढ़ की हड्डी में दर्द रहना

2-भारी-भरकम सामान उठाने पर दर्द होना

3-झुकते वक्त पीठ में दर्द

4-सीधे खड़े होने पर कमर से कट-कट की आLinks

6-सीधा लेटने में दिक्कत होना

रीढ़ की हड्डी में गैप का इलाज कैसे करें?

रीढ की हड्डी के जोड़ोंके सामान्य घिसाई को अंग्रेजी भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप जोड़ों का गैप कम हो जाता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ रीढ़ की हड्डी की डिस्क में टूट-फूट होने लगती है, जिसके कारण परेशानी बढ़ने लगती है। स्पोंडिलोसिस आम समस्या है लेकिन ये उम्र के साथ बिगड़ती जाती है। इस स्थिति का उपयोग अक्सर रीढ़ की अपक्षयी गठिया (ऑस्टियोआर्थराइटिस) का वर्णन करने के लिए किया जाता है।

आयुर्वेदिक उपाय से ठीक हो सकती है ये स्थिति

रीढ की हड्डी में गैप आ जाने पर आप एलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद का भी सहारा ले सकते हैं। आयुर्वेद में ऐसी कई औषधियां हैं, जो इस घिसाव को भरने में सफल साबित हो सकती हैं। आयुर्वेद में लिखी इन दवाओं का सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लेंः

1-त्रयोदशांग गुग्गुल

2-लाक्षादि गुग्गुल

3-मुक्ता शुक्ति भस्म

अगर किसी व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी कमजोर हो जाती है, तो इसकी वजह से कई परेशानियां हो सकती हैं। क्योंकि, रीढ़ की हड्डी शरीर का सपोर्ट सिस्टम है, इसमें कमजोरी आने से आपके शरीर का पोस्चर तो खराब होता ही है साथ ही कई गंभीर परेशानियां होती हैं। अगर आप इस समस्या से बचना चाहते हैं, तो इसके लिए अपने खाने पर पूरा ध्यान देना चाहिए। तो चलिए जानते हैं रीढ़ की हड्डी को मजबूत करने के लिए फायदेमंद फूड्स।

रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाने के लिए क्या खाएं?-

हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन - 

अगर आप रीढ़ की हड्डी को मजबूत रखना चाहते हैं, तो इसके लिए हरी पत्तेदार सब्जियों Green Vegetable का सेवन करें। इन सब्जियों से शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में बहुत फायदेमंद है। उदाहरण के लिए आप - पालक, मेथी जैसी हरी पत्तेदार सब्जी का सेवन कर सकते हैं, इनसे शरीर को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फोलेट, और विटामिन ए, विटामिन ई मिलता है।

डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन -

 अगर आप अपनी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध, दही, पनीर आदि का सेवन कर सकते हैं। इन सबके सेवन से शरीर को कैल्शियम, प्रोटीन जैसे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। अगर किसी व्यक्ति के शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाए, तो इसकी वजह से हड्डियों से जुड़ी बीमारियों का खतरा रहता है। इसलिए रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाने के लिए डाइट में दूध, दही, पनीर, छाछ आदि को जरूर शामिल करे।
नट्स और ड्राई फ्रूट्स का सेवन - कहा जाता है कि रोजाना हर किसी को ड्राई फ्रूट्स Dry Fruits का सेवन जरूर करना चाहिए। इनके सेवन से शरीर की हड्डियां मजबूत होता हैं। नट्स और ड्राई फ्रूट्स में कैल्शियम, विटामिन ई, मैग्नीशियम और फास्फोरस की पर्याप्त मात्रा पाया जाता है। हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए डाइट में बादाम, अखरोट, किशमिश, काजू, पिस्ता आदि को शामिल करना चाहिए। इनका सेवन हड्डियों को मजबूत बनाने और शरीर को बीमारियों से बचाने में फायदेमंद होता है।

बीन्स का सेवन करें - 

अगर आप अपनी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाना और बीमारियों से बचाना चाहते हैं, तो रोजाना बीन्स का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए आप फलियों वाली सब्जियों का सेवन कर सकते हैं। बीन्स में फाइबर, प्रोटीन, कैल्शियम और फोलेट जैसे तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। नियमित रूप से इनका सेवन करने से आपको बहुत फायदा मिलता है।

बुजुर्गों को होती है अधिक समस्या

बुजुर्ग लोग आम तौर पर इस समस्या से जूझते हैं। वृद्ध महिलाओं को अक्सर ऑस्टियोपोरेसिस होता है,जिसकी वजह से पीठ दर्द होता है। कभी-कभी शरीर के अन्य हिस्सों जैसे कंधे या कूल्हों में दर्द या बीमारी भी पीठ दर्द (Back Pain) का कारण बन सकती है। रीढ़ की हड्डी में दर्द (Back pain) की समस्या बुर्जुगों को अधिक होती है क्योंकि उम्र के साथ उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।डिस्क ब्रेक होना:रीढ़ में हर वर्टिब्रे के लिए डिस्क कुशन का काम करता है। यदि डिस्क फटती है तो नसों पर अधिक दबाव पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप पीठ दर्द होगा।
उभरा हुआ डिस्क: एक ही तरह से टूटे हुए डिस्क के रूप में, एक उभड़ा हुआ डिस्क एक नर्व पर अधिक दबाव डाल सकता है। बल्जिंग डिस्क की वजह से भी रीढ़ की हड्डी में दर्द (Back pain) हो सकता है।
सायटिका (Sciatica): एक तेज और तीखा दर्द बट्स के माध्यम से और पैर के पीछे से होकर, एक नस के दबने या हर्नियेटेड डिस्क के कारण होता है। इसकी वजह से लोगों को बैक में अधिक दर्द महसूस होता है।
गठिया: पुराने ऑस्टियोअर्थराइटिस कूल्हों, पीठ के निचले हिस्से और अन्य स्थानों में जोड़ों के साथ समस्याओं का कारण बन सकता है। कुछ मामलों में, रीढ़ की हड्डी के चारों ओर का स्थान संकरा हो जाता है। इसे स्पाइनल स्टेनोसिस के रूप में जाना जाता है।
रीढ़ की असामान्य वक्रता: अगर रीढ़ असामान्य तरीके से कर्व हो जाता है तो पीठ में दर्द हो सकता है। एक उदाहरण स्कोलियोसिस है, जिसमें रीढ़ एक तरफ झुकने लगता है।
ऑस्टियोपोरोसिस: रीढ़ की वर्टिब्रे सहित हड्डियां आसानी से टूटने वाली हो जाती है और छिद्रपूर्ण हो जाती हैं, जिससे जल्दी फ्रैक्चर की अधिक संभावना होती है।
किडनी की समस्या: किडनी में पथरी या किडनी में संक्रमण के कारण कमर दर्द हो सकता है।
रीढ़ की हड्डी में दर्द से परेशान हैं या इन्हें मजबूत करना चाहते हैं, तो कश्यपासन करें। कश्यपासन को अर्धबद्ध पद्म वशिष्ठासन के नाम से भी जाना जाता है। इस आसन को करने से कई लाभ होते हैं। खासकर रीढ़ की हड्डी को मजबूत करना चाहते हैं, तो इसका अभ्यास नियमित करना शुरू कर दें। इसे करने से शरीर के आंतरिक अंग सशक्त होते हैं।

कैसे करें कश्यपासन






दोनों पैरों को साथ-साथ रखते हुए खड़े हों। सांस भरते हुए शरीर का भार पंजों पर डालें और एड़ियों को ऊपर उठाएं। दोनों हाथों की उंगलियों से इंटरलॉक बनाकर हाथों को ऊपर ले जाएं और तानें। इस दौरान हथेलियों की दिशा ऊपर की ओर रहे। इस अवस्था में पेट को यथासंभव अंदर की ओर रखते हुए घुटने और जांघ की मांसपेशियों को ऊपर की ओर खींचें। अब सांस छोड़ते हुए आगे झुकें और दोनों हथेलियों को जमीन पर टिका दें। फिर अपने पैरों को पीछे ले जाकर दाएं घूम जाएं और दायीं हथेली जमीन पर टिका दें ताकि पूरे शरीर का भार दाहिने हाथ पर आ जाए।
उम्र के साथ-साथ हमारा शरीर कमजोर पड़ने लगता है, जिसे एजिंग प्रोसेस कहा जाता है और यह एक सामान्य क्रिया है। एजिंग के सबसे ज्यादा लक्षण हमारी त्वचा, मांसपेशियों और हड्डियों में होते हैं। ठीक इसी प्रकार एक निश्चित उम्र के बाद महिलाओं की हड्डियां कमजोर पड़ने लगती है और ऐसे में ऑस्टियोपोरोसिस से लेकर बोन फ्रैक्चर आदि का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा जोड़ों व हड्डियों के अन्य हिस्सों में दर्द भी होने लगता है। महिलाओं को एक खास उम्र के बाद ही हड्डियों में कमजोरी कमजोरी महसूस होने लगती है और वह उम्र आमतौर पर 50 साल के बाद होती है। दरअसल, 50 की उम्र तक आते-आते महिलाओं में मेनोपॉज खत्म होने लगता है और पोस्ट मेनोपॉज शुरू हो जाता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार पोस्ट-मेनोपॉज उम्र के दौरान हड्डियों की कमजोरी 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। चलिए इस उम्र के बाद कौन सी डाइट लेने से हड्डियां मजबूत रहती हैं
रीढ़ की हड्डी का दर्द वाकई बेहद परेशानी का सबब बन जाता है। इसकी हड्डियों की संरचना जितनी जटिल है उससे ज्यादा इसके शारीरिक महत्व भी होते हैं। रीढ़ की हड्डी के जोड़ स्पाइनल में बेहद सुरक्षित रहते हैं। इन जोड़ों का सीधा संबंध दिमाग से होता है। मष्तिष्क को सूचना आदान प्रदान करने में रीढ़ के हड्डियों की उपयोगिता जगजाहिर है। वैसे तो कई बेहद सामान्य कारण होते हैं जो इस तरह के दर्दनाक कारण बनते है। लेकिन रीढ़ की हड्डी का ट्यूमर बेहद जटिलता पैदा कर सकता है। रीढ़ के किसी भी हिस्से में हुई गांठ वैसे तो कोशिकाओं ओर ऊतकों का एक समूह होता है जो दिमाग से सीधा संबंध वाली तरंगों के वेग को रोकने का का करता है। इस समस्या से इंसान को मानसिक रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। रीढ़ की समस्याओं की कई वजहें होती हैं और इसे रोक पाने में कई तत्व अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं। 

रीढ़ की हड्डी में दर्द का कारण


एक अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक भारत जैसे विकासशील देश में रीढ़ के रोग कई कारणों से उत्पन्न होते हैं। साथ ही यह समस्या पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा देखने को मिल जाती है। इस तरह के हड्डियों से संबंधित कई प्रमुख कारण हो सकते हैं।
• चोट या फिर मोच के दौरान मांसपेशियों में खिंचाव से ऊतकों की क्षति या फिर लिगामेंट में सूजन होंने से रीढ़ का दर्द बढ़ सकता है।
• रीढ़ की हड्डी का दर्द सही से खड़े ना होने से भी हो सकता है। ज्यादा समय तक झुक कर खड़े होने से हड्डियों में झुकाव हो जाता है जिससे सही ऊर्जा और रक्तवाहिनियों में संक्रमण होने की संभावना प्रबल हो जाती है। इस वजह को भी एक मुख्य कारक माना जा सकता है।
• शरीर में अवशिष्ट पदार्थों के जमाव से भी कई तरह के हड्डी विकार सामने आते हैं। अवशिष्ट पदार्थो के जमाने से हड्डियों के जोड़ों में तेज दर्द हो सकता है इसमें रीढ़ की हड्डी भी शमिल है।
• खून में यूरिया का बढा हुआ स्तर भी रीढ़ में दर्द बढ़ा सकता है। यूरिक एसिड से हड्डियों को नुकसान तो होता ही है साथ ही किडनी समेत कई अन्य आंतरिक अंग भी प्रभावित होते हैं।
• रीढ़ की हड्डी में आंतरिक विकार जैसे टीवी सहित कुछ अन्य रोग बेहद जटिल समस्या उत्पन्न कर सकते हैं।
• पीठ के दर्द को वजह से भी कई बार रीढ़ की हड्डियां प्रभावित हो जाती हैं। कई तरह के रोगों को वजह के रीढ़ की हड्डी में दर्द हो ही जाता है।
• खानपान में त्रुटि या समझौता अक्सर हड्डियों पर भारी पड़ता है। आहार में विकार रीढ़ की हड्डियों को भारी क्षति पहुंचा सकता है।
• बदलती जीवनशैली से इंसान हमेशा परेशान रहता है। इसकी वजह से कई बार तनाव और अनिद्रा उत्पन्न हो जाती है जो रीढ़ के रोग का बड़ा कारण बन जाती है।
• कई अनुवांशिक समस्याओं की वजह से भी रीढ़ की हड्डी की समस्या का होना देखा जाता है जो गठिया या अर्थराइटिस के रूप में सामने आती रहती है।
बदलता मौसम भी रीढ़ की हड्डियों को कर सकता है प्रभावित।
मौसम का बदलाव रीढ़ की हड्डी में दर्द उत्पन्न कर सकता है। सर्दी के मौसम में जहां हड्डियों के जोड़ों की समस्या बढ़ती है तो दूसरी तरफ गर्मी और बरसात भी इसके बड़े कारण होते हैं। गर्मियों के मौसम में कई बार शरीर निर्जलीकरण की तरफ जाता है जिसके कई कारण हो सकते हैं। इस वजह से लू लगने या अन्य कारणों से हड्डियों के दर्द बढ़ जाते हैं। बरसात या गर्मी के दिनों में बहती हुई पुरवाई हवा हड्डियों के पुराने चोट उभार देती है। पुरानी चोट के उभरने की वजह से रीढ़ की समस्या तो होती ही है साथ ही कई अन्य हड्डी रोग उत्पन्न होने लगते हैं। कई बार वायुमण्डल के दबाव से मौसम का परिवर्तन कई तरह के हड्डी विकारों को उत्पन्न करने का कारण बन जाता है।

रीढ़ की हड्डी में दर्द के प्रमुख लक्षण


रीढ़ की हड्डियों में कई डिस्क होती है जो आपस में एक चैन की तरह एक दूसरे से जुड़ी होती है। हड्डियों के चेन की तरह जुड़ाव के दौरान किसी भी भाग में आये संक्रमण या अन्य कारणों से होने वाले लक्षण भिन्न- भिन्न ही सकते हैं।
• रीढ़ की हड्डियों में संकुचन होने की स्थिति में सूजन महसूस होती है और लगता है कि शरीर इधर उधर करने पर भी दर्द हो जाएगा।
• रीढ़ के निचले भाग में दर्द का अनुभव हो सकता है यह तेज या फिर धीमा हो सकता है।
• पेशाब में जलन और मलत्याग में परेशानी का अनुभव हो सकता है।
• आंतरिक रोगों की वजह से पीठ में दर्द होने से रीढ़ को इधर उधर करने में परेशानी या पीड़ा का अनुभव महसूस किया जा सकता है।
• बुखार या गर्दन में तेज दर्द का अनुभव होने की संभावना बढ़ जाती है।

महिलाओं में रीढ़ की हड्डी का दर्द

महिलाओं की काया पुरुषों की तुलना में ज्यादा कोमल होती है। कामकाजी महिलाएं जो ज्यादा देर तक खड़ी होकर दिनचर्या निपटने का काम करती हैं उनकी हड्डियों में दर्द उत्पन्न हो ही जाता है। रीढ़ में दर्द कई तरह के हार्मोन्स के परिवर्तन की वजह से भी देखा जा सकता है। गर्भवती महिलाओं में यह समस्या ज्यादा देखी जाती है। गर्भावस्था के दौरान कई बार कमर के नीचे दर्द भी रीढ़ की हड्डी के दर्द का कारण बन सकता है। बेशक यह कई वजहों से देखा जाता है। कुपोषण सहित शरीर में कैल्शियम की कमी भी कई बार इस तरह की समस्या का कारण बन जाता है। एक स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक महिलाओं में रीढ़ की समस्या 30 से 50 साल की उम्र में ज्यादा दिखाई देती है। बेशक कई बार यह समस्या अर्थराइटिस या गठिया रोग
के रूप में देखने को मिल जाती है। बढ़ता मोटापा और शुगर रोगों की वजह से कई बार रीढ़ के रोग बड़ी तेजी परेशानी की वजह बन जाते हैं।

पुरुषों में रीढ़ की हड्डी का दर्द

कई लोग जो हमेशा झुक कर खड़े होते हैं उन्हें यह समस्या हो ही जाती है। झुककर खड़े होने से रीढ़ की हड्डी में खिंचाव ओर मुड़ाव होने लगता है। झुकाव की वजह से हड्डियों को सही पोषण नही मिल पाता। कई बार यही आदत जोड़ों में गांठ या ट्यूमर का रूप धारण कर लेता है। ट्यूमर बन जाने पर इंसान के दिमाग की तरंगों का रीढ़ को हड्डी को सही निर्देश ना दे पाने से समस्या जटिल होने लगती है। इसके अलावा भी कई अन्य कारण है जिससे रीढ़ की हड्डियां कमजोर भी हो जाती हैं। भारत जैसे देश मे कुपोषण ओर प्रदूषण एक बड़े कारण हैं साथ ही तनाव और अवसाद भी कई बार पुरुषों को इस तरह की बीमारियों की चपेट में ले लेता है। बढ़ता वजन या मोटापा भी इसके बड़े कारण माने जाते हैं।

रीढ़ की हड्डी का दर्द होने से पहले रोकथाम

रीढ़ का दर्द होने से पहले इसकी रोकथाम जहां बेहद सरल है वहीं कम खर्चीला भी है। दवाओं से बचने और रीढ़ का दर्द शरीर को ना सताए यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ जरूरी एहतियात अपनाकर तकलीफ से बचा जा सकता है।
• खानपान या आहार की गुणवत्ता में सुधार की बेहद आवश्यकता होती है। आहार की गुणवत्ता में सुधार से जीवन को कई तरह के कष्टों से मुक्ति दिलाई जा सकती है।
• अनियमित जीवनशैली या दिनचर्या में सुधार लाने की जरूरत होती है। दिनचर्या नियमित कर रीढ़ के दर्द से बच सकते हैं।
• महिलाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके अंदर कैल्शियम या विटामिन डी की मात्रा की कमी न होने पाए। इस कमी से बचने पर उन्हें इस तरह की समस्या से निजात मिलेगी।
• कभी भी झुककर ना खड़े हों।
• ज्यादा देर तक एक जगह बैठकर काम करने से बचें।
• अल्कोहल से परहेज रखें
• तैलीय भोजन से करें तौबा।
रीढ़ की हड्डी का दर्द हो जाने पर रोकथाम।
रीढ़ में दर्द या रोग वास्तव में एक जटिल स्थिति है। दर्द के कारण कई बार इंसान बिस्तर पकड़ लेता है। कुछ स्थिति में इंसान को अपंगता भी हो जाती है। इस तरह के रोग ओर दर्द से बचाव के लिए आधुनिक युग में कई तरह की औषधि मौजूद है जिनके सटीक प्रयोग से काफी हद तक इससे बचाव किया जा सकता है।
रीढ़ का दर्द का यूनानी उपचार वास्तव में बेहद फायदेमंद होता है। जड़ी बूटियों के प्रयोग से निर्मित पूरी तरह से हर्बल आधारित इस उपचार माध्यम से रीढ़ के दर्द का इलाज काफी प्रचलित है। हालांकि इस उपचार माध्यम में थोड़ा समय जरूर लगता है लेकिन अक्सर समस्या जड़ से समाप्त हो जाती है। दुर्लभ जड़ी बूटियों से बनाई गई सुरंजन की दवाइयां वास्तव में हड्डियों के लिए किसी वरदान से कम नही होती। समय पर हकीम की सलाह से परहेज करने के साथ दवाओं का सेवन काफी लाभदायक साबित होता है। इस विधा में सबसे खास यह होता है कि इन दवाओं का।शरीर पर किसी भी प्रकार का साइड इफेक्ट नही होता है।

नॉन सर्जिकल ट्रीटमेंट

स्ट्रेन, स्प्रेन और न्यूरल कंप्रेशन जैसी समस्याएं कुछ दिन बेड रेस्ट करके और कम भागदौड़ करके ठीक की जा सकती हैं। अगर मोच हल्की है तो आमतौर पर एक से तीन दिन में ठीक हो जाती है। अगर दर्द ठीक हो जाए तो यह बेड रेस्ट को कम कर देना चाहिए, क्योंकि लंबे समय तक बिस्तर पर आराम करने से मांसपेशियों को नुकसान हो सकता है। इससे मांसपेशियों में जकड़न भी बढ़ सकती है, जिससे दर्द बढ़ सकता है। अगर दर्द हल्का है, तो शुरुआती इलाज में आमतौर पर नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी (Non-steroidal anti-inflammatory) दवाएं ली जा सकती हैं।
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जैसे-जैसे इंसान की जिंदगी आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे वो कई समस्याओं का भी शिकार होते चला जाता है। वहीं, आज के दौर में तो लगभग हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी समस्या से जूझ रहा है। इसके पीछे कहीं न कहीं हमारा खानपान, हमारी खराब दिनचर्या और हमारा अनुशासन का पालन न करना शामिल है। न तो लोग समय पर खाना खाते हैं और न ही छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देते हैं, जो आगे चलकर विकराल रूप ले लेती है। जैसे- जोड़ों का दर्द। सिर्फ बुजुर्ग ही नहीं, बल्कि युवा भी काफी संख्या में इस बीमारी से ग्रसित हैं। 

  आयुर्वेद में बहुत सी वात व्याधियों का वर्णन है | इनमे से एक आमवात है जिसे हम गठिया रोग भी कह सकते है | आमवात में पुरे शरीर की संधियों में तीव्र पीड़ा होती है साथ ही संधियों में सुजन भी रहती है | आमवात दो शब्दों से मिलकर बना है – आम + वात | आम अर्थात अद्पच्चा अन्न या एसिड और वात से तात्पर्य दूषित वायु | जब अधपचे अन्न से बने आम के साथ दूषित वायु मिलती है तो ये संधियों में अपना आश्रय बना लेती है और आगे चल कर संधिशोथ व शुल्युक्त व्याधि का रूप ले लेती जिसे आयुर्वेद में आमवात और बोलचाल की भाषा में गठिया रोग कहते हैं.
चरक संहिता में भी आमवात विकार की अवधारणा का वर्णन मिलता है लेकिन आमवात रोग का विस्तृत वर्णन माधव निदान में मिलता है

आमवात के कारण


आयुर्वेद में विरुद्ध आहार को इसका मुख्य कारण माना है | मन्दाग्नि का मनुष्य जब स्वाद के विवश होकर स्निग्ध आहार का सेवन करता और तुरंत बाद व्याम या कोई शारीरिक श्रम करता है तो उसे आमवात होने की सम्भावना हो जाती है | रुक्ष , शीतल विषम आहार – विहार, अपोष्ण संधियों में कोई चोट, अत्यधिक् व्यायाम, रात्रि जागरण , शोक , भय , चिंता , अधारणीय वेगो को धारण करने से आदि शारीरिक और मानसिक वातवरणजन्य कारणों के कारण आमवात होता है |

gathiyavat herbal medicine 

आमवात के लिए कोई बाहरी कारण जिम्मेदार नहीं होता इसके लिए जिम्मेदार होता है हमारा खान-पान | विरुद्ध आहार के सेवन से शारीर में आम अर्थात यूरिक एसिड की अधिकता हो जाती है | साधारनतया हमारे शरीर में यूरिक एसिड बनता रहता है लेकिन वो मूत्र के साथ बाहर भी निकलता रहता है | जब अहितकर आहार और अनियमित दिन्चरिया के कारन यह शरीर से बाहर नहीं निकलता तो शरीर में इक्कठा होते रहता है और एक मात्रा से अधिक इक्कठा होने के बाद यह संधियों में पीड़ा देना शुरू कर देता है क्योकि यूरिक एसिड मुख्यतया संधियों में ही बनता है और इक्कठा होता है | इसलिए बढ़ा हुआ यूरिक एसिड ही आमवात का कारन बनता है |

आमवात के संप्राप्ति घटक-

दोष – वात और कफ प्रधान / आमदोष | दूषित होने वाले अवयव – रस , रक्त, मांस, स्नायु और अस्थियो में संधि | अधिष्ठान – संधि प्रदेश / अस्थियो की संधि | रोग के पूर्वप्रभाव – अग्निमंध्य, आलस्य , अंग्म्रद, हृदय भारीपन, शाखाओ में स्थिलता | आचार्य माधवकर ने आमवात को चार भागो में विभक्त किया है 1. वातप्रधान आमवात 2. पितप्रधान आमवात 3. कफप्रधान आमवात 4. सन्निपताज आमवात

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 आमवात की आयुर्वेदिक औषधियां -

आमवात में मुख्या तय संतुलित आहार -विहार का ध्यान रखे और यूरिक एसिड को बढ़ाने वाले भोजन का त्याग करे | अधिक से अधिक पानी पिए ताकि शरीर में बने हुए विजातीय तत्व मूत्र के साथ शारीर से बाहर निकलते रहे | संतुलित और सुपाच्य आहार के साथ वितामिन्न इ ,सी और भरपूर कैरोटिन युक्त भोजन को ग्रहण करे | अधिक वसा युक्त और तली हुई चीजो से परहेज रखे |

अदरक

जोड़ों के दर्द में राहत पाने के लिए आप अदरक के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। वहीं, अदरक वाली चाय पीने से भी आपको लाभ मिल सकता है। इसके अलावा आप अदरक को गर्म पानी में शहद और नींबू के साथ मिलाकर पी सकते हैं। अदरक में पाया जाने वाला एंटी इंफ्लेमेटरी कंपाउंड सूजन को कम करने में मदद करता है।

धूप लेना जरूरी

जोड़ों का दर्द मांसपेशियों और हड्डियों के कमजोर होने पर होता है। ऐसे में इससे बचने के लिए आपके लिए जरूरी है कि आप धूप ले सकते हैं, क्योंकि ये विटामिन-डी का सबसे अच्छा स्त्रोत है। ऐसा करने से आपकी हड्डियां मजबूत होने में मदद मिलेगी।

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तुलसी

तुलसी में पाए जाने वाले एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी स्पास्मोडिक गुण होते हैं, जो जोड़ों के दर्द में राहत दिलाने का काम करते हैं। आपको करना ये है कि रोजाना तीन से चार बार तुलसी की चाय का सेवन करना है। ऐसा करने से आपको जरूर लाभ मिल सकता है।

इन चीजों का कर सकते हैं सेवन

आपकी डाइट एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर होनी चाहिए, जिसके लिए आप मछली, फल, जैतून का तेल, अखरोट, मेथी के दानों को पानी में भिगोकर खाएं, सब्जियां और टी का सेवन कर सकते हैं। ऐसी डाइट लेने से जोड़ों के दर्द में काफी आराम मिल सकता है।


जोड़ो के दर्द के लिए  घरेलू उपाय

गर्म और ठंडा कंप्रेशन- 

 गर्म और ठंडा दोनों कंप्रेशन एक एंटी-इंफ्लेमेटरी के रूप में काम करते हैं. गर्मी मांसपेशियों को आराम देती है. बेहतर परिणामों के लिए, आप गर्म पानी की बोतल या गर्म पैड का इस्तेमाल कर सकते हैं. घुटने की सूजन को कम करने के लिए आप बर्फ का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. आप एक आइस क्यूब को एक कपड़े में लपेट कर प्रभावित हिस्से पर लगा सकते हैं.

gathiyavat herbal medicine 

हल्दी- 

 हल्दी एक जादुई मसाला है. इसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं. इसमें एंटीसेप्टिक, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं. इसमें करक्यूमिन होता है जो हल्दी में पाया जाने वाला एक एंटी-इंफ्लेमेटरी रसायन है जिसमें बहुत सारे एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं. ये रूमेटाइड अर्थराइटिस को कम करने में मदद करती है. ये घुटने के दर्द के कारणों में से एक है. राहत के लिए आधा चम्मच पिसी हुई अदरक और हल्दी को एक कप पानी में 10 मिनट तक उबालें. छान लें, स्वादानुसार शहद डालें और इस चाय का सेवन दिन में दो बार कर सकते हैं.

 आमवात की औषध व्यवस्था 

गुगुल्ल प्रयोग –  सिंहनाद गुगुल्लू , योगराज गुगुल , कैशोर गुगुल , त्र्योंग्दशांग गुगुल्ल आदि |
भस्म प्रयोग –  गोदंती भस्म, वंग भस्म आदि |
रस प्रयोग –  महावातविध्वंसन रस, मल्लासिंदुर रस , समिर्पन्न्ग रस, वात्गुन्जकुश | संजीवनी वटी , रसोंनवटी, आम्वातादी वटी , चित्रकादी वटी , अग्नितुण्डी वटी आदि |
स्वेदन –  पत्रपिंड स्वेद, निर्गुन्द्यादी पत्र वाष्प |
सेक –  निर्गुन्डी , हरिद्रा और एरंडपत्र से पोटली बना कर सेक करे | 
लौह –  विदंगादी लौह, नवायस लौह , शिलाजीतत्वादी लौह, त्रिफलादी लौह |
अरिष्ट / आसव –  पुनर्नवा आसव , अम्रितारिष्ट , दशमूलारिष्ट आदि |
तेल / घृत ( स्थानिक प्रयोग ) –  एरंडस्नेह, सैन्धाव्स्नेह, प्रसारिणी तेल, सुष्ठी घृत आदि का स्थानिक प्रयोग क्वाथ प्रयोग   रस्नासप्तक , रास्नापंचक , दशमूल क्वाथ, पुनर्नवा कषाय आदि |
स्वरस – निर्गुन्डी, पुनर्नवा , रास्ना आदि का स्वरस |
चूर्ण प्रयोग –  अज्मोदादी चूर्ण, पंचकोल चूर्ण, शतपुष्पदी चूर्ण , चतुर्बिज चूर्ण |

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गठिया के घरेलू असरदार नुस्खे -

* अजवायन या नीम के तेल से मालिश करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलेगा.
* पानी में एक मुट्ठी अजवायन और 1 बड़ा चम्मच नमक डालकर उबालें. उस पर जाली रखकर कपड़ा निचोड़कर तह करके गरम करें और उससे सेंक करें. दर्द दूर हो जाएगा.
* राई का लेप करने से भी हर तरह का दर्द दूर होता है.
* अजवायन को पानी में डालकर पका लें और उस पानी की भाप को दर्द वाली जगह पर दें. देखते ही देखते दर्द छूमंतर हो जाएगा.
लहसुन पीसकर लगाने से बदन के हर अंग का दर्द छूमंतर हो जाता है, लेकिन इसे ज़्यादा देर तक लगाकर न रखें, वरना फफोले पड़ने का डर रहता है.
* कड़वे तेल में अजवायन और लहसुन जलाकर उस तेल की मालिश करने से हर तरह के दर्द से छुटकारा मिलता है.
* विनेगर और जैतून के तेल को मिलाकर मालिश करें.
* कपड़े में 4-5 नींबू के टुकड़े बांधकर गरम तिल के तेल में थोड़ी देर डुबोएं. फिर उसे घुटनों पर लगाएं.
* राई को पीसकर घुटनों पर उसका लेप करें. तुरंत आराम मिलेगा.
* अजवायन को पानी में उबालकर उसकी भाप घुटनों पर लेने से दर्द से राहत मिलेगी.
* सेंधा नमक को गुनगुने पानी में डालकर नहाएं.
* दालचीनी पाउडर और शहद मिलाकर पेस्ट बनाएं. इससे जोड़ों पर मालिश करें.
* जोड़ों के दर्द में नीम के तेल की मालिश लाभदायक होती है.
* लहसुन की दो कलियां कूटकर तिल के तेल में गर्म करके जोड़ों पर मालिश करें.
* सरसों के तेल में अजवायन और लहसुन गरम करके दर्दवाले भाग पर मालिश करें.
* अमरूद के पत्ते पीसकर दर्द वाले स्थान पर लगाएं. अमरूद के पत्ते पानी में उबालकर इस पानी से सिकाई करने से भी लाभ मिलता है.
* कांच की बॉटल में आधा लीटर तिल का तेल और 10 ग्राम कपूर मिलाकर धूप में रख दें. जब ये दोनों घुलकर एक हो जाएं, तो इस तेल से मालिश करें. जोड़ों के दर्द से आराम मिलेगा.
* लहसुन की दो कलियां कूटकर तिल के तेल में गरम करें और इससे जोड़ों पर मालिश करें. बहुत लाभ होगा.
* दर्द से परेशान होने पर कपड़े को गरम करके जोड़ों पर सेंक कर करें. इससे बहुत आराम मिलता है.
* कनेर की पत्ती उबालकर पीस लें और मीठे तेल में मिलाकर लेप करें.

विशिष्ट परामर्श-  

संधिवात,कमरदर्द,गठिया, साईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है| हर्बल औषधि होने के बावजूद यह तुरंत असर चिकित्सा है| सैकड़ों वात रोग पीड़ित व्यक्ति इस औषधि से आरोग्य हुए हैं|  बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं|औषधि के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं| 




हाथ पैर कम्पन के घरेलु आयुर्वेदिक उपाय

 



पार्किंसन रोग (Parkinson’s disease or PD) में शरीर में कंपन होता है। रोगी के हाथ-पैर कंपकंपाने लगते हैं। पूरे विश्व विश्व में पार्किंसन रोगियों की संख्या 60 लाख से ज़्यादा है, अकेले अमेरिका में इस रोग से प्रभावित लोगों की संख्या लगभग दस लाख है। आमतौर पर यह बीमारी 50 वर्ष की उम्र के बाद होती है। वृद्धावस्था में भी हाथ-पैर हिलने लगते हैं, लेकिन यह पता कर पाना कि यह पार्किंसन है या उम्र का असर, सामान्य व्यक्ति के लिए मुश्किल है। पार्किंसन यदि है तो शरीर की सक्रियता कम हो जाती हैं, मस्तिष्क ठीक ढंग से काम नहीं करता है।
यह बीमारी होती इसीलिए है कि मस्तिष्क में बहुत गहरे केंद्रीय भाग में स्थित सेल्स डैमेज हो जाते हैं। दिमाग़ के ख़ास हिस्से बैसल गैंग्लिया ( Basal ganglia disease) में स्ट्रायटोनायग्रल नामक सेल्स होते हैं। सब्सटेंशिया निग्रा ( Substantia nigra ) की न्यूरान कोशिकाओं की क्षति होने से उनकी संख्या कम होने लगती है। आकार छोटा हो जाता है। स्ट्राएटम तथा सब्सटेंशिया निग्रा नामक हिस्सों में स्थित इन न्यूरान कोशिकाओं द्वारा रिसने वाले रासायनिक पदार्थों (न्यूरोट्रांसमिटर) का आपसी संतुलन बिगड़ जाता है। इस वजह से शरीर का भी संतुलन बिगड़ जाता है।
कुछ शोधों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह बीमारी वंशानुगत भी हो सकती है। इस रोग को ख़त्म करने वाली दवाइयां अभी उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन दवाइयों से इसकी रोकथाम संभव है। इस बीमारी के लिए एम्स में अब डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन सर्जरी (Deep brain stimulation surgery, AIIMS, India) होने लगी है।

➡ पार्किंसन रोग के लक्षण :

पार्किंसन रोग में पूरा शरीर ख़ासतौर से हाथ-पैर तेज़ी से कंपकंपाने लगते हैं। कभी कंपन ख़त्म हो जाता है, लेकिन जब भी रोगी व्यक्ति कुछ लिखने या कोई काम करने बैठेगा तो पुन: हाथ कांपने लगते हैं। भोजन करने में भी दिक्कत होती है। कभी-कभी रोगी के जबड़े, जीभ व आंखे भी कंपकंपाने लगती हैं। इसमें शारीरिक संतुलन बिगड़ जाता है। चलने-फिरने में दिक्कत होने लगती है। रोगी सीधा नहीं खड़ा हो पाता। कप या गिलास हाथ में पकड़ नहीं पाता। ठीक से बोल नहीं पाता, हकलाने लगता है। चेहरा भाव शून्य हो जाता है। बैठे हैं तो उठने में दिक्कत होती है। चलने में बाँहों की गतिशीलता नहीं दिखती, वे स्थिर बनी रहती हैं। जब यह रोग बढ़ता है तो नींद नहीं आती है, वज़न गिरने लगता है, सांस लेने में तकलीफ़, कब्ज़, रुक-रुक कर पेशाब होना, चक्कर आना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना व सेक्स में कमी जैसी कई समस्याएं घेर लेती हैं। साथ ही मांसपेशियों में तनाव व कड़ापन, हाथ-पैरों में जकड़न होने लगती है, ऐसी अवस्था में किसी योग्य चिकित्सा से परामर्श लेना ज़रूरी होता है।
शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन एक दिमाग का रोग है जो लम्बे समय दिमाग में पल रहा होता है। इस रोग का प्रभाव धीरे-धीरे होता है। पता भी नहीं पडता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गडबड है।
जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो रोगी व्यक्ति के हाथ तथा पैर कंपकंपाने लगते हैं। कभी-कभी इस रोग के लक्षण कम होकर खत्म हो जाते हैं। इस रोग से पीड़ित बहुत से रोगियों में हाथ तथा पैरों के कंप-कंपाने के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन वह लिखने का कार्य करता है तब उसके हाथ लिखने का कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं।

कारण-

इस बीमारी का कारण हर व्यक्ति में अलग होता है। दिमाग के कुछ हिस्सों में न्यूरोट्रांसमीटर केमिकल होते हैं। यह केमिकल पूरे शरीर या किसी विशेष हिस्से की मांसपेशियों को नियंत्रित करते हैं।
जब यह केमिकल लीक होने लगते हैं तो ट्रेमरनाम की समस्या सामने आती है। मांसपेशियों के असामान्य होने के कारण भी यह समस्या पैदा होती है। यह समस्या न्यूरोडीजेनरेटीव बीमारी के कारण भी होती है। इसके अलावा अन्य कारणों जैसे अधिक मात्रा में शराब पीना, लीवर का खराब हो जाना, पार्किंसन, थाइराइड , मेंटल डिसआर्डर, कैल्शियम, पोटाशियम की भी इस समस्या का कारण बन सकती है। कई बार यह समस्या वंशानुगत भी होती है।

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन (Parkinson’s disease)

यदि रोगी व्यक्ति लिखने का कार्य करता भी है तो उसके द्वारा लिखे अक्षर टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। रोगी व्यक्ति को हाथ से कोई पदार्थ पकड़ने तथा उठाने में दिक्कत महसूस होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के जबड़े, जीभ तथा आंखे कभी-कभी कंपकंपाने लगती है।
बहुत सारे मरीज़ों में ‍कम्पन पहले कम रहता है, यदाकदा होता है, रुक रुक कर होता है। बाद में अधिक देर तक रहने लगता है व अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है। प्रायः एक ही ओर (दायें या बायें) रहता है, परन्तु अनेक मरीज़ों में, बाद में दोनों ओर होने लगता है।

hath pair kampana 

जब यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है तो रोगी की विभिन्न मांसपेशियों में कठोरता तथा कड़ापन आने लगता है। शरीर अकड़ जाता है, हाथ पैरों में जकडन होती है। मरीज़ को भारीपन का अहसास हो सकता है। परन्तु जकडन की पहचान चिकित्सक बेहतर कर पाते हैं जब से मरीज़ के हाथ पैरों को मोड कर व सीधा कर के देखते हैं बहुत प्रतिरोध मिलता है। मरीज़ जानबूझ कर नहीं कर रहा होता। जकडन वाला प्रतिरोध अपने आप बना रहता है।

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन (parkinson’s disease )के लक्षण कारण और उपचार

*शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन एक दिमाग का रोग है जो लम्बे समय दिमाग में पल रहा होता है। इस रोग का प्रभाव धीरे-धीरे होता है। पता भी नहीं पडता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गडबड है।

hath pair kampana 

*जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो रोगी व्यक्ति के हाथ तथा पैर कंपकंपाने लगते हैं। कभी-कभी इस रोग के लक्षण कम होकर खत्म हो जाते हैं। इस रोग से पीड़ित बहुत से रोगियों में हाथ तथा पैरों के कंप-कंपाने के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन वह लिखने का कार्य करता है तब उसके हाथ लिखने का कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं।
*यदि रोगी व्यक्ति लिखने का कार्य करता भी है तो उसके द्वारा लिखे अक्षर टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। रोगी व्यक्ति को हाथ से कोई पदार्थ पकड़ने तथा उठाने में दिक्कत महसूस होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के जबड़े, जीभ तथा आंखे कभी-कभी कंपकंपाने लगती है।
*बहुत सारे मरीज़ों में ‍कम्पन पहले कम रहता है, यदाकदा होता है, रुक रुक कर होता है। बाद में अधिक देर तक रहने लगता है व अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है। प्रायः एक ही ओर (दायें या बायें) रहता है, परन्तु अनेक मरीज़ों में, बाद में दोनों ओर होने लगता है।
*जब यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है तो रोगी की विभिन्न मांसपेशियों में कठोरता तथा कड़ापन आने लगता है। शरीर अकड़ जाता है, हाथ पैरों में जकडन होती है। मरीज़ को भारीपन का अहसास हो सकता है। परन्तु जकडन की पहचान चिकित्सक बेहतर कर पाते हैं जब से मरीज़ के हाथ पैरों को मोड कर व सीधा कर के देखते हैं बहुत प्रतिरोध मिलता है। मरीज़ जानबूझ कर नहीं कर रहा होता। जकडन वाला प्रतिरोध अपने आप बना रहता है।

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन पार्किन्सन रोग के लक्षण : Parkinson’s disease  Symptoms :- 

आंखें चौडी खुली रहती हैं। व्यक्ति मानों सतत घूर रहा हो या टकटकी लगाए हो ।
चेहरा भावशून्य प्रतीत होता है बातचीत करते समय चेहरे पर खिलने वाले तरह-तरह के भाव व मुद्राएं (जैसे कि मुस्कुराना, हंसना, क्रोध, दुःख, भय आदि ) प्रकट नहीं होते या कम नज़र आते हैं।
खाना खाने में तकलीफें होती है। भोजन निगलना धीमा हो जाता है। गले में अटकता है। कम्पन के कारण गिलास या कप छलकते हैं।

hath pair kampana 

हाथों से कौर टपकता है। मुंह से पानी-लार अधिक निकलने लगता है। चबाना धीमा हो जाता है। ठसका लगता है, खांसी आती है।
आवाज़ धीमी हो जाती है तथा कंपकंपाती, लड़खड़ाती, हकलाती तथा अस्पष्ट हो जाती है, सोचने-समझने की ताकत कम हो जाती है और रोगी व्यक्ति चुपचाप बैठना पसन्द करताहै।
नींद में कमी, वजन में कमी, कब्जियत, जल्दी सांस भर आना, पेशाब करने में रुकावट, चक्कर आना, खडे होने पर अंधेरा आना, सेक्स में कमज़ोरी, पसीना अधिक आता है।
उपरोक्त वर्णित अनेक लक्षणों में से कुछ, प्रायः वृद्धावस्था में बिना पार्किन्सोनिज्म के भी देखे जा सकते हैं । कभी-कभी यह भेद करना मुश्किल हो जाता है कि बूढे व्यक्तियों में होने वाले कम्पन, धीमापन, चलने की दिक्कत, डगमगापन आदि

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन (Parkinson’s disease)

यदि रोगी व्यक्ति लिखने का कार्य करता भी है तो उसके द्वारा लिखे अक्षर टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। रोगी व्यक्ति को हाथ से कोई पदार्थ पकड़ने तथा उठाने में दिक्कत महसूस होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के जबड़े, जीभ तथा आंखे कभी-कभी कंपकंपाने लगती है।
बहुत सारे मरीज़ों में ‍कम्पन पहले कम रहता है, यदाकदा होता है, रुक रुक कर होता है। बाद में अधिक देर तक रहने लगता है व अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है। 
प्रायः एक ही ओर (दायें या बायें) रहता है, परन्तु अनेक मरीज़ों में, बाद में दोनों ओर होने लगता है।
जब यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है तो रोगी की विभिन्न मांसपेशियों में कठोरता तथा कड़ापन आने लगता है। शरीर अकड़ जाता है, हाथ पैरों में जकडन होती है। मरीज़ को भारीपन का अहसास हो सकता है। परन्तु जकडन की पहचान चिकित्सक बेहतर कर पाते हैं जब से मरीज़ के हाथ पैरों को मोड कर व सीधा कर के देखते हैं बहुत प्रतिरोध मिलता है। मरीज़ जानबूझ कर नहीं कर रहा होता। जकडन वाला प्रतिरोध अपने आप बना रहता है।

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन पार्किन्सन रोग के लक्षण : Parkinson’s disease

आंखें चौडी खुली रहती हैं। व्यक्ति मानों सतत घूर रहा हो या टकटकी लगाए हो ।
चेहरा भावशून्य प्रतीत होता है बातचीत करते समय चेहरे पर खिलने वाले तरह-तरह के भाव व मुद्राएं (जैसे कि मुस्कुराना, हंसना, क्रोध, दुःख, भय आदि ) प्रकट नहीं होते या कम नज़र आते हैं।
खाना खाने में तकलीफें होती है। भोजन निगलना धीमा हो जाता है। गले में अटकता है। कम्पन के कारण गिलास या कप छलकते हैं।

hath pair kampana: 

हाथों से कौर टपकता है। मुंह से पानी-लार अधिक निकलने लगता है। चबाना धीमा हो जाता है। ठसका लगता है, खांसी आती है।
आवाज़ धीमी हो जाती है तथा कंपकंपाती, लड़खड़ाती, हकलाती तथा अस्पष्ट हो जाती है, सोचने-समझने की ताकत कम हो जाती है और रोगी व्यक्ति चुपचाप बैठना पसन्द करताहै।
नींद में कमी, वजन में कमी, कब्जियत, जल्दी सांस भर आना, पेशाब करने में रुकावट, चक्कर आना, खडे होने पर अंधेरा आना, सेक्स में कमज़ोरी, पसीना अधिक आता है।
उपरोक्त वर्णित अनेक लक्षणों में से कुछ, प्रायः वृद्धावस्था में बिना पार्किन्सोनिज्म के भी देखे जा सकते हैं । कभी-कभी यह भेद करना मुश्किल हो जाता है कि बूढे व्यक्तियों में होने वाले कम्पन, धीमापन, चलने की दिक्कत, डगमगापन आदि
*किसी प्रकार से दिमाग पर चोट लग जाने से भी पार्किन्सन रोग (Parkinson’s disease) हो सकता है। इससे मस्तिष्क के ब्रेन पोस्टर कंट्रोल करने वाले हिस्से में डैमेज हो जाता है।
*कुछ प्रकार की औषधियाँ जो मानसिक रोगों में प्रयुक्‍त होती हैं, अधिक नींद लाने वाली दवाइयों का सेवन तथा एन्टी डिप्रेसिव दवाइयों का सेवन करने से भी पार्किन्सन रोग (Parkinson’s disease) हो जाता है।
अधिक धूम्रपान करने, तम्बाकू का सेवन करने, फास्ट-फूड का सेवन करने, शराब, प्रदूषण तथा नशीली दवाईयों का सेवन करने के कारण भी पार्किन्सन रोग (Parkinson’s disease) हो जाता है।
*शरीर में विटामिन `ई´ की कमी हो जाने के कारण भी पार्किन्सन रोग (Parkinson’s disease) हो जाता है।
तरह -तरह के इन्फेक्शन — मस्तिष्क में वायरस के इन्फेक्शन (एन्सेफेलाइटिस) ।
*मस्तिष्क तक ख़ून पहुंचाने वाले नलियों का अवरुद्ध होना ।
*मैंगनीज की विषाक्तता।
हाथ पांव कापने का घरेलु उपचार
यहाँ कुछ घरेलु उपाय दिए गए हैं जो की आपके शरीर के कम्पन की समस्या को काफी हद  तक कम करने में सक्षम हो सकते हैं|*कुछ चाय जैसे chamomile, laung और lavandula आदि पीने से आपके दिमाग में शान्ति बनती है और दिमाग की तंत्रिकाओं को आराम मिलता है इसके फलसवरूप मानसिक तनाव में कमी आती है| यदि आपको मानसिक तनाव और टेंशन के कारण हाथ काम्पने की शिकायत है तो आज से ही इन चाय का सेवन करना शुरू कर दीजिये| 

*तगार की जड़ nerves और दिमाग को शांत करने वाले और अनिद्रा दूर करने वाले गुण होते हैं| तगार की जड़ की चाय रोजाना दिन में २-३ बार पीने से हाथ पांव काम्पने में काफी आराम मिलता है|
विटामिन B की कमी होने से भी कम्पन और दिमाग के कार्यों में बाधा पड़ने की समस्या हो सकती है इसलिए जरुरी सप्लीमेंट लीजिये साथ ही फल, सब्जियां, दाल, बीन्स, अंडा आदि से जरुरी विटामिन्स और मिनरल्स प्राप्त कीजिये|
   * ध्यान और योग के साथ अपने दिन की शुरुवात कीजिये क्योंकि इससे आपका दिमाग रिलैक्स होगा और मानसिक तनाव, अनिद्रा की परेशानी दूर होगी|  आप कुछ देर दिन में सुबह और शाम रनिंग या जॉगिंग करके अपने दिमाग को कण्ट्रोल में रख सकते हैं
*शराब, मैदा जैसी refined शुगर से दूर रहे क्योंकि refiend शुगर आपके खून में ग्लूकोस का स्तर असंतुलित करते हैं जिससे आपके शरीर में कम्पन की समस्या पैदा होती

25.8.23

बार बार में सांस फूलने की तकलीफ के कारण और उपचार ,frequent shortness of breath

 


सांस की समस्या बुजुर्गों के साथ कम उम्र के युवाओं में भी देखने को मिल रही है. ऐसे में यह जानना बहुत आप के लिए जरूरी है आखिर ऐसा हो क्यों रहा है?
आमतौर पर अधिक समय तक एक्सरसाइज करने से सांसे तेज हो जाती हैं, कई लोगों को सीढ़ियां चढ़ने वक्त सांस में दिक्कत की समस्या का सामना करना पड़ता है कई बार ज्यादा तनाव में रहने कारण भी ऐसी दिक्कत हो जाती है. यह देखा गया है कि ऐसी स्थितियों में जल्दी ही सब नॉर्मल भी हो जाता है. अगर आप को भी सांस लेने में परेशानी हो रही है और उपर्युक्त परेशानी हो रही है तो ध्यान देना बहुत जरूरी है. 

कहीं हृदय रोग तो नहीं

दिल की बीमारियों के चलते भी सांस लेने में तकलीफ हो सकती है. दिल के रोग मसलन, एन्जाइना, हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर, जन्मजात दिल में परेशानी या एरीथीमिया आदि में सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. दिल की मांसपेशियां कमजोर होने पर वे सामान्य गति से पंप नहीं कर पातीं, जिससे फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है और व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है. इसमें पैरों में भी सूजन और रात सोते वक्त बार-बार खांसी भी आती है.

जब वजन हो ज्यादा


मोटे लोगों को सांस फूलने की बहुत ही ज्यादा समस्या रहती है. वजन बढ़ जाने के कारण सांस के लिए मस्तिष्क से आने वाले निर्देश का पैटर्न बदल जाता है. सीढ़ियां चढ़ते-उतरते वक्त, अक्सर इन की सांसें फूलने लगती हैं. यह सब मोटापे के कारण होता है. जिसका वजन जितना ज्यादा होता है, उसे सांस लेने में उतनी ही दिक्कत होती है.

सांस की तकलीफ क्या है? 

सांस की तकलीफ या डिस्पेनिया एक असहज स्थिति है जहां लोगों को सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। हृदय और फेफड़ों के विकार हवा को पूरी तरह से फेफड़ों में जाने से रोक सकते हैं और सांस लेने में परेशानी का कारण बन सकते हैं।

डिस्पेनिया की समस्या हर व्यक्ति में अलग-अलग होती है और इस स्थिति की अवधि लगभग कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक और कभी-कभी लगभग कुछ हफ्तों तक रह सकती है। यह आमतौर पर एक गंभीर चिकित्सा स्थिति का चेतावनी संकेत है।

ज्यादातर बार सांस की तकलीफ किसी अन्य मेडिकल इमरजेंसी के साइड इफेक्ट के रूप में होती है। हृदय और फेफड़ों के विकारों के अलावा, सांस की तकलीफ एनीमिया के परिणामस्वरूप, हाइपरवेंटिलेशन के परिणामस्वरूप या धूम्रपान की आदतों या हवा में प्रदूषकों के कारण हो सकती है जो जलन पैदा करती हैं।
अक्सर आपने देखा होगा कि कई लोगों को अचानक से सांस की तकलीफ होने लगती हैं और वे ठीक से सांस भी नहीं ले पाते हैं। इसका कारण कई बार अस्थमा की परेशानी बनता हैं लेकिन इसके अलावा भी कई ऐसी बीमारियाँ है जिनसे सांस की तकलीफ जुड़ी हुई होती हैं। ऐसे में यह तकलीफ होने पर जल्द चिकित्सकीय परामर्श लेना जरूरी होता हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं उन बिमारियों के बारे में जो सांस की तकलीफ से जुड़ी हुई होती हैं। तो आइये जानते हैं।

* पल्नोमरी हाइपरटेंशन

अगर आपकी सांस फूल रही है, चक्कर आ रहे हैं, थकान या सीने में दर्द है तो यह पल्नोमरी हाइपरटेंशन का संकेत हो सकता है। इसमें फेफड़े में जाने वाली आर्टरी में ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। इस कारण आप दिल की बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।

* गुर्दे फेल होना


सांस लेने में तकलीफ हो रही है तो ये गुर्दे फेल होने का संकेत होता है। गुर्दे के फेल हो जाने के कारण रक्त में यूरिया का स्तर बढ़ जाता है। इससे मुह में अमोनिया ब्रेथ के कारण बदबू आने लगती है। मुंह का स्वाद भी खराब होने लगता है।

* फिजिकल वर्क करने में दिक्कत

मोटे लोगों को अक्सर फिजिकल वर्क करने में दिक्कत होती है। गले और छाती के आसपास जमा अतिरिक्त चर्बी के कारण सांस लेने में दिक्कत होती है। ऐसे लोगों की सांस में मेथेन और हाइड्रोजन गैस की मात्रा बढ़ जाने के कारण भी सांस लेने में समस्या आने लगती है। ऐसे में डॉक्टर को तुरंत दिखाना चाहिए।

* डायबटीज

डायबटीज के मरीज जिन ग्लूकोमीटर्स के लिए जिन स्ट्रिप्स का इस्तेमाल करते है वो एक बार इस्तेमाल करके फैंक देना चाहिए। इससे आपको डायबटीज के साथ-साथ अस्थना होने का भी डर रहता है। इसके अलावा इसके दोबारा इस्तेमाल से सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।

क्या है सीओपीडी के लक्षण

सीओपीडी एक ऐसी घातक बीमारी है जिसका शुरुआती समय में पता ही नहीं चलता. इसके लक्षण अक्सर तब तक प्रकट नहीं होते हैं जब तक कि पूरी तरह से फेफड़ों खराब ना हो जाएं. हालांकि वे आमतौर पर समय के साथ खराब हो जाते हैं, खासकर अगर धूम्रपान करना आप जारी रखते है तो. क्रोनिक ब्रोंकाइटिस के के मुख्‍य लक्षण में रोजाना की खांसी और बलगम का उत्पादन शामिल है यह लगातार दो साल तक या कम से कम तीन महीने तक होता है.
3. कैसे पहचाने सीओपीडीसांस की तकलीफ, खासकर शारीरिक गतिविधियों के दौरान
घरघराहट
सीने में जकड़न
आपके फेफड़ों में अतिरिक्त बलगम
होंठ या नाखूनों का नीलापन (सायनोसिस)
बार-बार श्वसन संबंधी संक्रमण
शक्ति की कमी
वजन में कमी (बाद के चरणों में)
टखनों, पैरों या पैरों में सूजन

 सीओपीडी के कारण

विकसित देशों में सीओपीडी का मुख्य कारण तंबाकू धूम्रपान है. विकासशील देशों में, सीओपीडी अक्सर खराब हवादार घरों में खाना पकाने और हीटिंग के लिए जलने वाले ईंधन से धुएं के संपर्क में आने वाले लोगों में होता है.
केवल 20 से 30 प्रतिशत लोग जो लंबे समय से धूम्रपान कर रहे हैं उनमें स्‍पष्‍ट रूप से सीओपीडी विकसित हो सकता है. हालांकि लंबे धूम्रपान इतिहास वाले लोगों में धूम्रपान से फेफड़ों के कार्यों में बाधा पैदा करते है.
5. किन लोगों को हो सकता है सीओपीडी रोग धूम्रपान करने वालों के संपर्क में रहने वालों को ये समस्‍या हो सकती है।
जो लोग अस्‍थमा से पीडि़त हैं और स्‍मोक करते हैं।
ऐसे लोग जो केमिकल और धुएं युक्‍त फैक्ट्रियों के आस-पास रहते हैं।
कुछ लोगों की थोड़ा सा काम करने पर, दौड़ने पर या सीढ़ियां चढ़ते हुए सांस फूलने लगती है। हल्की-फुल्की मेहनत करने पर ही सांस फूलने लगना कमजोर फेफड़ों की निशानी है। हालांकि ऐसा कई बार जुकाम या किसी वायरल इंफेक्शन के कारण भी हो सकता है। दरअसल जुकाम या इंफेक्शन होने पर श्वांसनली के अंदरूनी हिस्से मे सूजन आ सकती है, जिससे आपके फेफड़ों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है और व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ महसूस होने लगती है या सांस उखड़ने लगती है। इस तरह की समस्या अलग लंबे समय तक होती रहे, तो आपको डॉक्टर से मिलकर इसका इलाज कराना चाहिए। लेकिन अगर कभी-कभार ऐसी समस्या होती है, तो आप कुछ घरेलू उपायों को अपनाकर भी राहत पा सकते हैं।

आगे की ओर झुककर बैठें या पंखे के सामने बैठें

अगर आपको अचानक कभी सांस की तकलीफ होने लगती है या सांस की गति तेज हो जाती है, तो आपको तुरंत आसपास मौजूद किसी कुर्सी या बेंच पर बैठ जाना चाहिए और आगे की तरफ झुक कर कंफर्टेबल पोजीशन में थोड़ी देर रहना चाहिए, ताकि मसल्स रिलैक्स हो जाएं और सांस लेने में हुई तकलीफ तुरंत दूर हो जाए।
एक अध्ययन में बताया गया है कि सांस लेने में तकलीफ होने पर पंखे के सामने बैठने पर आराम मिलता है। इसका कारण यह है कि तेज चल रहे पंखे के सीधे सामने बैठने से आपके द्वारा खींची गई सांस में एक फोर्स होता है, जिससे हवा शरीर में ज्यादा मात्रा में पहुंचती है और आपकी तकलीफ दूर हो जाती है।

अदरक वाली चाय पिएं

अदरक में एंटी-इंफ्लेमेट्री, एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जिसके कारण इसका सेवन करने से आपके गले और श्वांसनली की सूजन कम होती है और जमा हुआ बलगम भी पिघलकर निकल जाता है। इसीलिए जुकाम, खांसी में अदरक की चाय बहुत फायदेमंद मानी जाती है। सांस की तकलीफ होने पर आपको अदरक की चाय पीनी चाहिए। इसे बनाने के लिए एक पैन में पानी के साथ अदरक उबालें और इसे पिएं।

ब्लैक कॉफी पिएं

सांस लेने की तकलीफ होने पर ब्लैक कॉफी पीना आपके लिए फायदेमंद होता है। कॉफी में कैफीन होता है, जो कि आपके मस्तिष्क को उत्तेजित करता है। इसके अलावा ये मसल्स को रिलैक्स भी करता है। सांस की तकलीफ श्वांसनली की मांसपेशियों में सूजन के कारण भी होती है। इसलिए अगर आपको सांस लेने में तकलीफ हो, तो गर्म-गर्म ब्लैक कॉफी पिएं। इससे आपको तुरंत राहत मिलेगी। लेकिन ध्यान रखें कि कॉफी का सेवन बहुत ज्यादा भी न करें क्योंकि इसका असर आपके हार्ट रेट पर बुरा पड़ेगा। दिनभर में 3 कप से ज्यादा ब्लैक कॉफी न पिएं।

लेट कर गहरी सांस लें

अगर आपको सांस लेने में तकलीफ महसूस हो या सांस उखड़ती हुई महसूस हो, तो जहां भी हैं वहां तुरंत जमीन पर सीधा लेट जाएं और अपना हाथ पेट पर रखें। इसके बाद नाक से जोर से इतनी जोर से सांस खींचें कि आपका पेट फूल आए। इस सांस को कुछ सेकेंड तक रोक कर रखें और फिर मुंह के रास्ते से सांस को बाहर छोड़ दें। इस तरह कई बार करने से आपके सांस की तकलीफ तुरंत दूर हो जाएगी। अगर फिर भी सांस की समस्या है, तो इमरजेंसी मेडिकल सहायता लें।
कई बार बंद नाक या अधिक बलगम जमा होने के कारण भी सांस की समस्या हो जाती है। इसलिए अगर आपको ऐसी तकलीफ बीते कुछ दिनों से हो रही है, तो आप बलगम को बाहर निकालने के लिए और एयर पैसेज को क्लियर करने के लिए स्टीम भी ले सकते हैं। स्टीम लेने के लिए एक चौड़े मुंह वाले बर्तन को ढककर पानी देर तक उबालें, ताकि इसमें पर्याप्त भाप बन जाए। इसके बाद इस पानी को जमीन पर रखें और ढक्कन हटाकर भाप को अपने नाक, गले और सीने के हिस्से में लें। अगर घर में कोई एसेंशियल ऑयल तो उसे भी इसमें डाल लें। इससे आपको तुरंत बंद नाक से राहत मिलेगी और सांस लेने में होने वाली तकलीफ दूर हो जाएगी।

प्राणायाम- 

इससे सांस की समस्याओं से निपटने में मदद मिलती है। यह गंभीर सीओपीडी मरीजों के इलाज में लाभकारी साबित हुआ है। अध्ययन का कहना है कि प्राणायाम सीओपीडी मरीजों के उपचार के लिए सहायक हो सकता है।

हंसना- 

लाफ्टर थेरेपी तनाव को कम करके जर्नल वेलनेस को बढ़ावा देती है। लेकिन सीओपीडी रोगियों में यह फेफड़ों की इलास्टिसिटी और मूड में भी सुधार कर सकता है।


गाना- 

सांस की समस्या से निपटने के लिए सीओपीडी रोगियों के लिए गाना एक बेहतर थेरेपी है। इस दौरान आपको सांस पर कंट्रोल करना पड़ता है जिससे उसकी एक्सरसाइज होती है और फेफड़े मजबूत बनते हैं।
-जो लोग बहुत अधिक तनाव में रहते हैं, उन्हें अक्सर सांस लेने में समस्या होती है। वे या तो बहुत जल्दी-जल्दी सांस लेते हैं या सीने में भारीपन का अहसास होने के कारण उनकी सांस लेने की गति बहुत धीमी होती है।
-इन दोनों ही स्थितियों में उनकी सांस बहुत छोटी होती है। इस कारण उनके फेफड़ों में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है और इससे सांस लेने में दिक्कत होती है।

अधिक वजन 

जिन लोगों का वजन बहुत अधिक होता है, उन्हें भी सांस लेने में दिक्कत होती है। क्योंकि इन लोगों का सांस बहुत अधिक फूलता है। सांस फूलने के कारण ब्रिदिंग पैटर्न डिस्टर्ब होता है और लंग्स में पूरी ऑक्सीजन सप्लाई नहीं हो पाती है
यदि आपको फेफड़ों में इंफेक्शन या सीने में भारीपन की समस्या है तो बिना समय गवाएं एक बार डॉक्टर से जरूर जांच कराएं।
-आयुर्वेदिक काढ़े और हर्बल चाय का नियमित उपयोग करें। दिन में गर्म पानी का सेवन करें। इसके आपको काफी राहत मिलेगी।
-प्राणायाम, ध्यान और योग करें। वॉकिंग और रनिंग करें। इससे आपको अपने लंग्स को मजबूत बनाने में सहायता मिलेगी।
-दिन के समय कम से कम 2 घंटे के लिए घर के सभी खिड़की और दरवाजे खोलकर रखें और एग्जॉस्ट फैन ऑन करें। इससे आपके घर की दूषित हवा बाहर जाएगी और ताजी हवा घर में आएगी। इस एयर सर्कुलेश से घर में घुटन कम होगी।

सूजन और इंफेक्शन के कारण छोटी सांसे



-सांस की नली में सूजन, किसी इंफेक्शन या किसी अन्य कारण से जब ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में शरीर के अंदर प्रवेश नहीं कर पाती है तो आपकी सांसे छोटी होने लगती हैं।
-यानी आप पहले जितनी गहरी और लंबी सांसें लेते थे, उनकी अपेक्षा आपकी सांसों की अवधि छोटी होने लगती है। यह बीमारी अगर लंबे समय से चली आ रही है तो अस्थमा, निमोनिया या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) का लक्षण हो सकती है।

23.8.23

बढती उम्र में घुटनों में ग्रीस (Greece in the knees) बढाने के उपाय

 


आजकल अधिकतर लोग जोड़ों में दर्द की शिकायत करते हैं। पहले जोड़ों में दर्द की शिकायत अधिकतर बुजुर्ग लोग किया करते थे, लेकिन आजकल वयस्कों को भी जोड़ों का दर्द परेशान कर रहा है। वैसे तो जोड़ों या घुटनों में दर्द होने के पीछे कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। लेकिन घुटनों में ग्रीस कम होना इसका सबसे मुख्य कारण माना जाता है। उम्र बढ़ने के साथ घुटनों का ग्रीस भी कम होने लगता है। घुटनों में ग्रीस कम होने के कारण चलने पर घुटनों से कट-कट की आवाज आने लगती है। जब घुटनों में ग्रीस कम होता है, तो इस दौरान व्यक्ति को चलने, उठने, बैठने और लेटने में परेशानी होने लगती है। ऐसे में लोग घुटनों का ग्रीस बढ़ाने के लिए तरह-तरह की दवाइयों का सहारा लेते हैं। लेकिन आप चाहें तो कुछ उपायों की मदद से भी घुटनों के ग्रीस को बढ़ाया जा सकता है।
घुटने में चटकने या चटकने की आवाज, जकड़न या दर्द, श्लेष द्रव में कमी का संकेत हो सकता है। यदि इसका इलाज नहीं किया गया तो यह घुटने के ऑस्टियोआर्थराइटिस का कारण बन सकता है।
श्लेष द्रव या आम तौर पर संयुक्त द्रव के रूप में जाना जाता है, इसमें मोटी और चिपचिपी स्थिरता होती है, जो घर्षण को कम करने के लिए घुटने के जोड़ में स्नेहक के रूप में कार्य करता है और एक सदमे अवशोषक के रूप में कार्य करता है, जो हमारे शरीर की गति में मदद करता है। उठना, बैठना या खड़ा होना सहजता से किया जा सकता है। सिनोवियल द्रव घुटने के जोड़ पर दबाव को भी कम करता है क्योंकि यह चलने या दौड़ने के दौरान हड्डी की सतह के सिरों को मुलायम बनाता है।
स्वाभाविक रूप से हमारा शरीर स्वयं ही श्लेष द्रव का उत्पादन करता है। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हमारा शरीर ख़राब होने लगता है और घुटनों में जोड़ों के तरल पदार्थ की मात्रा कम हो जाती है। ऐसे अन्य कारक भी हैं जिनके कारण द्रव जल्दी सूख जाता है। चाहे वह अधिक वजन हो, घुटने की चोट या आघात हो जिसने घुटने के जोड़ में द्रव उत्पादन की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित किया हो या घुटनों की गलत शारीरिक गतिविधि, जैसे कि करवट से बैठना या नियमित रूप से घुटनों को मोड़ना। कुछ पुरानी बीमारियाँ जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, या गठिया जैसे गठिया या गठिया भी श्लेष द्रव के सूखने का कारण बनने वाले कुछ कारक हैं।
वेजथानी अस्पताल में घुटने और कूल्हे की रिप्लेसमेंट सर्जरी में विशेषज्ञता रखने वाले आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. प्रेमस्टीन सिरिथानापिपट ने खुलासा किया कि सूखे सिनोवियल तरल पदार्थ के परिणामस्वरूप घुटने में दर्द और कठोरता हो सकती है। घुटने के जोड़ के ख़राब होने या चोट लगने पर घुटने की टोपी में तेज़ आवाज़ आना, ख़ासकर चलने या झुकने पर, घुटने की सतह के आसपास सूजन या लालिमा जैसे लक्षण होते हैं। यदि इसका शीघ्र उपचार न किया जाए, तो यह संभावित रूप से ऑस्टियोआर्थराइटिस का कारण बन सकता है।

"दवा के उपयोग के अलावा, घुटने के जोड़ में श्लेष द्रव को बढ़ाने के लिए, डॉक्टर दर्द को कम करने के लिए जोड़ के बीच उपास्थि और खोखले स्थान में हयालूरोनिक एसिड या कृत्रिम तरल पदार्थ को इंजेक्ट करने पर विचार करेंगे, जिसकी संरचना प्राकृतिक श्लेष द्रव के समान होती है। सूजन, सूजन, घर्षण और घुटने की गतिशीलता में सुधार होता है। परिणाम लगभग 6-12 महीनों तक प्रभावी रह सकते हैं। कृत्रिम श्लेष द्रव के अलावा, क्षतिग्रस्त ऊतकों की मरम्मत, चोट का इलाज और सूजन को कम करने के लिए एक अन्य उपचार विकल्प प्लेटलेट-समृद्ध प्लाज्मा या पीआरपी इंजेक्शन है। यह उपचार रोगी के स्वयं के रक्त का उपयोग करता है और एक सघन स्थिरता के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरता है और इसे घुटने के जोड़ में वापस इंजेक्ट करता है। प्रत्येक उपचार विकल्प रोगी की स्थिति और डॉक्टर के मूल्यांकन पर भिन्न होता है", डॉ. प्रेमस्टियन ने कहा।
सूखे श्लेष द्रव की स्थिति के निदान में इतिहास लेना और घुटने की शारीरिक विकृति की जांच शामिल है। डॉक्टर घुटने के जोड़ में तरल पदार्थ के दबाव का पता लगाने के लिए बैलेटमेंट परीक्षण करेंगे और घुटने की सतह पर पानी की लहर के दबाव को देखने के लिए बैलून साइन की तलाश करेंगे, ताकत या स्थिरता, आंतरिक घर्षण या क्रेपिटेशन की जांच करेंगे और साथ ही एक्स- प्रदर्शन करेंगे। जोड़ की क्षति की जांच करने के लिए किरण। प्रत्येक नैदानिक ​​परीक्षण डॉक्टर के मूल्यांकन पर निर्भर करता है। उन रोगियों के लिए जिनका श्लेष द्रव सूख गया है और उन्होंने चिकित्सीय सलाह नहीं ली है, जिसके परिणामस्वरूप इलाज नहीं किया गया है, जब तक कि यह घुटने के ऑस्टियोआर्थराइटिस के गंभीर चरण तक नहीं पहुंच जाता है। उपरोक्त उपचार विकल्प उतने प्रभावी नहीं हो सकते जितने होने चाहिए और डॉक्टर को सर्जिकल उपचार पर विचार करना पड़ सकता है।
अगर आपको घुटनों में दर्द, चलने-फिरने में दिक्कत हो, तो इस स्थिति में आप रंग-बिरंगी सब्जियों का सेवन कर सकते हैं। इसके साथ ही ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करना भी शुरू कर देना चाहिए। इसके लिए आप अपनी डाइट में प्याज, लहसुन, ग्रीन टी, जामुन और हल्दी को शामिल कर सकते हैं। ड्राई फ्रूट्स और सीड्स भी घुटनों का ग्रीस बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
घुटने खराब होने के लक्षण

घुटने खराब होने के कुछ निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:

घुटने वाली जगह या पैरो में सुजन आना.
चलते-फिरते समय घुटनों में दर्द होना.
घुटनों का चटकना.
घुटनों में अकडन जैसा महसूस होना.
उठते या बैठते समय भी घुटनों में दर्द होना.

रेगुलर एक्सरसाइज करें

जोड़ों के दर्द को कम करने के लिए रेगुलर एक्सरसाइज करना भी बहुत जरूरी होता है। रोजाना एक्सरसाइज करके घुटनों के ग्रीस को बढ़ाया जा सकता है। एक्सरसाइज करने से घुटनों में ग्रीस बनता है। इसके लिए आप स्ट्रेचिंग, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग, क्वाड्रिसेप, स्क्वाट्स और हील राइज आदि एक्सरसाइज कर सकते हैं। इसके अलावा आप वॉर्मअप कर सकते हैं।

सप्लीमेंट्स ले सकते हैं

जब घुटनों का ग्रीस कम होने लगता है, तो डॉक्टर आपको कुछ सप्लीमेंट लेने की सलाह दे सकते हैं। इसलिए अगर आपको भी अकसर घुटनों में दर्द रहता है, आपके घुटनों का ग्रीस खत्म हो गया है, तो आप कुछ सप्लीमेंट्स ले सकते हैं। घुटनों का ग्रीस बढ़ाने के लिए आप ओमेगा-3 फैटी एसिड, कोलेजन और अमिनो एसिड सप्लीमेंट ले सकते हैं। ये सभी सप्लीमेंट्स हड्डियों के बीच ऊतक बनाने में मदद करते हैं। इससे ग्रीस बढ़ता है और घुटने मजबूत बनते हैं। लेकिन कोई भी सप्लीमेंट बिना डॉक्टर की सलाह के बिल्कुल न लें।

नारियल पानी पिएं

नारियल पानी संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। अगर आपको घुटनों में दर्द रहता है, तो भी आप नारियल पानी का सेवन कर सकते हैं। नारियल पानी पीने से घुटनों का लचीलापन बढ़ता है। दरअसल, नारियल पानी में विटामिन्स और मिनरल्स पाए जाते हैं। नारियल पानी हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत बनाता है।

अखरोट घुटने का ग्रीस बढ़ाने में उपयोगी
घुटने का ग्रीस बढ़ाने के लिए अखरोट बहुत फायदेमंद होता हैं. अखरोट में कैल्शियम, बी-6, मिनरल, प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट, विटामिन इ, फैट आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं. जो घुटनों का ग्रीस बढ़ाने में हमारी मदद करते हैं. घुटने का ग्रीस बढ़ाने का यह सबसे सरल और आसान उपाय हैं. आपको सिर्फ रोजाना दो अखरोट का सेवन सुबह के समय करना हैं. इससे आपके घुटनों का ग्रीस बढ़ने लगेगा.

हरसिंगार के पत्ते घुटने का ग्रीस बढ़ाने में उपयोगी

घुटने की ग्रीस बढाने के लिए हरसिंगार के पत्ते बहुत ही फायदेमंद होते हैं. जिसे नाईट जैस्मीन या पारिजात के नामसे भी जाना जाता हैं. हरसिंगार के पत्तो में ग्लुकोसाइड, मैथिल सिलसिलेट तथा टेनिक एसिड प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं. जो घुटनों का ग्रीस बढ़ाने में हमारी मदद करते हैं.
इसके लिए आप ३-४ हरसिंगार के पत्तो को पीसकर पेस्ट बना लीजिए. अब एक बड़ा गिलास पानी लीजिए और पेस्ट को पानी में डालकर उबालने के लिए रख दीजिए. जब तक पानी आधा नहीं हो जाता तब तक उबालते रहिए. पानी उबालने के बाद छान लीजिए. जब पानी ठंडा हो जाए. तो इस पानी का सेवन सुबह खाली पेट रोजाना कीजिए. कुछ ही दिनों में आपको रिजल्ट दिखाई देगा.

घुटनों के दर्द के लिए तेल

अगर आपके घुटनों में दर्द है. तो सरसों का तेल, जैतून का तेल तथा नारियल का तेल घुटनों के दर्द से छुटकारा दिलवाने में मदद कर सकता हैं. इनमें से किसी भी एक तेल से घुटनों की रोजाना हल्के हाथ से मालिश करने से फायदा होता हैं.

घुटने मजबूत करने के लिए क्या खाएं

घुटनों को मजबूत करने के लिए बादाम, अखरोट, अंजीर, पालक, सलाद, रागी, दलिया आदि को अपने डायट में शामिल करना चाहिए.


घुटनों के दर्द में कौन सा फल खाना चाहिए?


पपीता एक ऐसी फल है जिसमें कई सारे पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसे खाने से शरीर के कई रोगों दूर भाग जाते हैं. पपीते को आप डेली डाइट में शामिल कर सकते हैं. इसके सेवन से घुटनों के दर्द में बहुत आराम मिलेगा
घुटनों की ताकत के लिए क्या खाना चाहिए?

हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए कैल्शियम अति आवश्यक है। कैल्शियम की कमी से घुटने ना स्रिफ कमज़ोर हो सकते हैं बल्कि उनमें दर्द भी हो सकता है। इसलिए घुटने की ताकत बढ़ाने के लिए कैल्शियमयुक्त आहार लें। दूध ,दही ,पनीर ,हरी पत्तेदार सब्जियां, पिस्ता ,बादाम जैसी चीज़ों का सेवन करें।

क्या दूध घुटने के दर्द को कम कर सकता है?

आप रोजाना दूध का सेवन कर सकते हैं। इसे पीने से आपको दर्द से आराम मिल सकता है। अदरक के सेवन से घुटने के दर्द में आराम मिल सकता है।

हल्दी दूध 

हल्दी दूध का सेवन घुटनों के दर्द में फायदेमंद (Turmeric Milk Beneficial in Knee Pain in Hindi) एक ग्लास दूध में एक चम्मच हल्दी के पाउडर को मिलाकर सुबह-शाम कम से कम दो बार पीने से घुटनों के दर्द (Ghutno ka dard) में लाभ मिलता है। यह जोड़ों का दर्द दूर करने का सबसे कारगर घरेलू इलाज है।

जोड़ों के दर्द के लिए सबसे अच्छा फल कौन सा है?

संतरा का करें सेवन

आप अपनी डाइट में संतरे का सेवन जरूर करें. सभी जानते हैं कि इसके खाने से पानी की कमी पूरी हो जाती है. इसमें काफी मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है जो जोड़ों के दर्द के लिए फायदेमंद होता है.

सोया दूध घुटने के दर्द के लिए अच्छा है?

क्या सोया मेरे जोड़ों की मदद कर सकता है? जोड़ों के दर्द के रोगियों के लिए सोया एक उत्कृष्ट आहार है । यह ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर है, जिसका अर्थ है कि यह शरीर के भीतर सूजन को कम कर सकता है। सूजन पैदा करने वाले रसायन जोड़ों के ऊतकों पर हमला करते हैं, जिससे जोड़ों में अधिक तरल पदार्थ जमा हो जाता है और उपास्थि क्षतिग्रस्त हो जाती है।
घुटने के दर्द से तुरंत राहत कैसे मिल सकती है?

घुटने के दर्द के विभिन्न हिस्सों को प्रबंधित करने के लिए गर्मी और बर्फ दोनों का उपयोग किया जा सकता है। बर्फ सूजन और सूजन को कम करने में मदद करता है और चोटों के लिए सबसे अच्छा है। गर्मी दर्द प्रबंधन में मदद कर सकती है, खासकर कठोर जोड़ों पर। यह गतिशीलता में भी मदद कर सकता है।

क्या सेब जोड़ों के दर्द में मदद करता है?

क्वेरसेटिन शरीर में सूजन को कम करने में मदद कर सकता है, जो बदले में गठिया के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। सेब को अपने आहार में शामिल करके, आप सूजन को कम करने और गठिया के लक्षणों को संभावित रूप से कम करने में मदद कर सकते हैं।
सोने से पहले 15-20 मिनट तक घुटने पर गर्माहट या ठंडक लगाने से दर्द कम हो सकता है। गर्मी घुटने में परिसंचरण में सुधार करती है और कठोर ऊतकों को नरम बनाती है। ठंड सूजन को शांत करती है और सूजन को कम करती है।
हाल ही में अपोलो अस्पताल के हड्डी रोग विभाग के डॉक्टरों ने यह अध्ययन किया। विशेषज्ञ डॉ. राजू वैश्य ने इस शोध में देश के अलग-अलग शहरों के एक हजार ऐसे मरीजों को शामिल किया जो जोड़ों के दर्द व आर्थराइटिस से जूझ रहे थे। इन सभी की जांच करवाई तो इसमें से 95 प्रतिशत मरीजों में विटामिन-डी की कमी थी। डॉ. वैश्य ने बताया कैल्शियम की कमी के कारण हड्डियों व जोड़ों में दर्द होता है। हड्डियां घिसने लगती हैं और कमजोर हो जाती हैं। जोड़ों पर यूरिक एसिड जमने लगता है।
दरअसल विटामिन (डी) का मुख्य स्रोत सूर्य की रोशनी है जो हड्डियों के अलावा पाचन क्रिया में भी बहुत उपयोगी है। व्यस्त दिनचर्या और आधुनिक संसाधनों के कारण लोग तेज धूप सहन नहीं कर पाते। सुबह से शाम तक ऑफिसों में रहते हैं। खुले मैदान में घूमना-फिरना और खेलना भी बंद हो गया। इस कारण धूप के जरिए मिलने वाला विटामिन उन तक नहीं पहुंच पाता। जब भी किसी को घुटने या जोड़ में दर्द होता है तो उसे लगता है कैल्शियम की कमी हो गई। विटामिन डी की ओर ध्यान नहीं जाता। डॉक्टर वैश्य का कहना है अगर कैल्शियम के साथ-साथ विटामिन (डी) की भी समय पर जांच करवा ली जाए तो आर्थराइटिस को बढ़ने से रोका जा सकता है।