22.10.21

जुनूनी बाध्यकारी विकार के लक्षण और होम्योपैथिक उपचार|Obsessive-Compulsive Disorder






   कुछ लोगों को किसी काम या आदत की धुन इस कदर सवार होती है कि वह सनक बन जाती है और बीमारी का रूप ले लेती है। इससे उनकी लाइफ पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे लोग ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसॉर्डर (ओसीडी) से पीड़ित होते हैं। दिक्कत यह है कि ज्यादातर लोग यह मानने को तैयार नहीं होते कि उन्हें ऐसी कोई समस्या है। हालांकि अगर वे वास्तविकता को स्वीकार कर लें, तो इलाज काफी आसान हो जाता है।

क्या है ओसीडी

  यह एक चिंता करने वाली बीमारी है, जिसमें पीड़ित शख्स किसी बात की जरूरत-से-ज्यादा चिंता करने लगता है। एक ही जैसे अनचाहे ख्याल उसे बार- बार आते हैं और एक ही काम को बार-बार दोहराना चाहता है। ऐसे लोगों को सनक वाले ख्याल आते हैं और अपने बिहेवियर पर कोई कंट्रोल नहीं होता। ऐसे मरीज न खुद को रोक पाते हैं, न ही बेफिक्र रह पाते हैं। जैसे कोई सूई पुराने रेकॉर्ड पर अटक जाती है, वैसे ही ओसीडी से दिमाग किसी एक ख्याल या काम पर अटक जाता है। मसलन, यह कन्फर्म करने के लिए कि गैस बंद है या नहीं, आप 20 बार स्टोव की नॉब चेक करते हैं। तब तक हाथ धोते रहते हैं, जब तक कि वह छिल न जाए या आप तब तक गाड़ी भगाते रहते हैं, जब तक कि आपको यह संतुष्टि न हो जाए कि जिस शख्स ने पीछे से हॉर्न दिया था, वह पीछा तो नहीं कर रहा।

ओसीडी के दौरान नजर आने वाले कुछ आम ऑब्सेशन

गंदगी: इसमें व्यक्ति एचआईवी जैसी बीमारियों से डरता है या उसे एनवायरमेंट को खराब करने वाली चीजें, जैसे- रेडिएशन और घर में मौजूद कैमिकल्स और धूल को लेकर चिंता बनी रहती है।
नियंत्रण खोना: खुद को या किसी दूसरे व्यक्ति को चोट पहुंचाना, चोरी और हिंसा का डर जैसी चीजें शामिल होती हैं।
नुकसान: व्यक्ति को डर बना रहता है कि वो चोरी या आगजनी जैसी किसी गंभीर घटना का जिम्मेदार है या उसकी लापरवाही के कारण किसी और को नुकसान पहुंचा है।
पर्फेक्शन से जुड़े ऑब्सेशन्स: किसी भी चीज को पूरी या सही तरीके से करने की चिंता या कुछ याद रखने की चिंता रहती है। किसी भी चीज को फेकते वक्त जरूरी जानकारी के बारे में भूल जाने का डर रहता है। चीजों को फेकने या रखने को लेकर फैसला नहीं कर पाते हैं या किसी भी चीज को खोने का डर।
दूसरे ऑब्सेशन्स: किसी भी गंभीर बीमारी की चपेट में आने का डर बना रहता है। इसके अलावा लकी या अनलकी नंबर और रंगों लेकर अंधविश्वास वाले आइडिया आते हैं।
कंपल्शन
ये कुछ ऐसे व्यवहार होते हैं जहां व्यक्ति अपने ऑब्सेशन को खत्म करने के प्रयास करता है। ओसीडी से जूझ रहे लोगों को यह पता होता है कि यह केवल अस्थाई उपाय है, लेकिन इससे बचने का सही तरीका खोजने के बजाए वे कंपल्शन पर निर्भर रहते हैं।

ओसीडी के दौरान नजर आने वाले कुछ आम कंपल्शन

धुलाई और सफाई: इसमें एक ही तरीके से बार-बार हाथों को धोना, हद से ज्यादा देर तक नहाना, दांत साफ करना या सफाई से जुड़ी चीजों को करते रहना शामिल है।
चैकिंग: यह जानने के लिए कि आप खुद को या किसी और को नुकसान तो नहीं पहुंचा रहे। बार-बार किसी चीज की जांच करना। यह पता करते रहना कि कुछ बुरा तो नहीं हुआ या आपसे कोई गलती तो नहीं हुई। शरीर के कुछ हिस्सों को बार-बार चैक करना।
दोहराना: बार-बार किसी चीज को पढ़ना-लिखना या किसी भी बॉडी मूवमेंट्स को दोहराते रहना।

OCD के क्या सिम्पटम्स होते हैं?

किसी भी चीज को बार-बार दोहराना, मूड पर असर पड़ना, प्रोडक्टिविटी कम होना। डॉ. छिब्बर ने बताया कि अगर किसी भी इंसान को मेंटल हेल्थ बीमारी है तो वह काफी तनाव में नजर आएगा। ओसीडी से जूझ रहे व्यक्ति को डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए।

OCD से कैसे उबर सकते हैं?

अगर आपको लक्षण नजर आ रहे हैं तो, सबसे पहले हेल्थ को मॉनिटर करें। साइकेट्रिस्ट या थैरेपिस्ट जैसे एक्सपर्ट्स की सलाह लें। क्योंकि, आपके विचार या व्यवहार को जानने के तरीके सीखने की जरूरत है। यह तरीके आपको एक्सपर्ट्स बता सकते हैं, क्योंकि वे आपकी स्थिति को देखकर उपाय तैयार करेंगे, ताकि आप असहज न हों।
अगर आप अपने स्तर पर इस बीमारी पर काम करना चाहते हैं तो ऐसी छोटी सोच जो आपको तकलीफ न दें, उन्हें नजरअंदाज करें। व्यवहार में बदलाव लाने पर चिंता कम करें। बार-बार आ रहे विचारों से बचने की कोशिश करें और खुद को टेस्ट करें कि क्या आप ऐसा कर पा रहे हैं या नहीं। धीरे-धीरे इसका स्तर बढ़ाएं।
इसे खुद ट्रीट करना मुश्किल होता है। क्योंकि, यह एक बीमारी है और यह डर, भय और घबराहट की वजह बनती है। ऐसे में एक्सपर्ट्स से बात करना जरूरी है। लक्षण नजर आ रहे हैं तो परिवार या दोस्तों से इसके बारे में बात करें। इसमें फैमिली सपोर्ट बहुत जरूरी होता है।

आम तरह के ओसीडी


ओसीडी के ज्यादातर मरीज इनमें से किसी कैटिगरी में आते हैं :
- बार-बार सफाई करने वाले गंदगी से डरते हैं। उन्हें आमतौर पर सफाई और बार-बार हाथ धोने का कंपल्शन होता है।
- कुछ लोग बार-बार चीजों की जांच करते हैं (अवन बंद किया या नहीं, दरवाजा बंद किया या नहीं आदि)। उनके मन में इनके खतरे का डर होता है।
- शंकालु और पाप से डरने वाले लोग यह सोचते हैं कि अगर सब कुछ ठीक ढंग से नहीं हुआ तो कुछ बुरा हो जाएगा या वे सजा के भागी बन जाएंगे।
- गिनती करने वाले और चीजों को व्यवस्थित करने वाले क्रम और समानता से ऑब्सेस्ड होते हैं। उनमें से कुछ निश्चित संख्याओं, रंगों और अरेंजमेंट को लेकर अंधविश्वास हो सकता है।
- चीजों को संभालकर रखने वाले इस बात से डरे होते हैं कि अगर उन्होंने कुछ बाहर फेंका तो कुछ बुरा होगा। अपने इसी डर की वजह से वे गैरजरूरी चीजों को भी संभालकर रखते हैं।
नोट: लेकिन सिर्फ ऑब्सेसिव विचार और कंपल्शन की आदत होने का यह मतलब नहीं कि आपको ओसीडी है। ओसीडी में ये विचार और बिहेवियर गंभीर तनाव की वजह बन जाते हैं। व्यक्ति इसमें अपना ज्यादा-से-ज्यादा समय लगाने लगता है और ये काम उसके रुटीन और पारिवारिक संबंधों पर भी असर करने लगते हैं।
कैसे पहचानें- इस समस्या से पीड़ित ज्यादातर लोगों में ऑब्सेशन और कंपल्शन दोनों देखा जाता है, लेकिन कुछ लोगों में सिर्फ एक ही समस्या भी हो सकती है।

लक्षण और पहचान


सिमेट्री – किसी चीज को बार-बार सही लाइन में रखना या ठीक क्रम में रहने के बावजूद उसको बार-बार ठीक करने की आदत। इनमें शामिल है:
बार-बार किसी चीज को जांचना-
अपने सामान या अन्य वस्तुओं को तब तक व्यवस्थित करने की मजबूरी जब तक वे बिल्कुल सही हैं ऐसा महसूस न करें।
बार-बार किसी वस्तु की गिनती करना।
बार-बार चेक करना कि दरवाजा ठीक तरह से बंद है या नहीं।
सामग्री का खुद के अनुसार व्यवस्थित नहीं होने पर मन को ठेस पहुंचना। क्लिनिंग और कंटामिनेशन – बार-बार साफ सफाई करना या साफ चीजों को भी बार-बार गंदा समझकर साफ करना। ये लक्षण कुछ इस प्रकार हैं:

बीमारी के बारे में लगातार चिंता

शारीरिक या मानसिक रूप से खुद को गंदा महसूस करने का विचार।

विषाक्त पदार्थों, वायरस या गंदगी के संपर्क में आने की लगातार चिंता।
उन वस्तुओं से छुटकारा पाने की मजबूरी जिन्हें मन में गंदा मानते हैं भले ही वे गंदे न हों।
दूषित वस्तुओं को धोने या साफ करने की मजबूरी महसूस होना।
अपने हाथों और अन्य सामग्री को बार-बार साफ करना।
होर्डिंग – ऐसी वस्तुओं को जमा करने की आदत जिसकी जरूरत न हो (5)। इसके अलावा, अपनी चीजों को खोने का डर या यह मानना कि अगर कोई चीज खो जाए तो कुछ बुरा हो सकता है। इनमें शामिल है
लगातार चिंता करना कि कुछ फेंकने से खुद को या किसी और को नुकसान हो सकता है।
अपने आप को या किसी और को नुकसान से बचाने के लिए एक निश्चित संख्या में वस्तुओं को इकट्ठा करने की आवश्यकता।
दुर्घटनावश किसी महत्वपूर्ण या आवश्यक वस्तु को फेंकने का अत्यधिक भय, जैसे- संवेदनशील या आवश्यक जानकारी वाला मेल।
एक ही वस्तु को बार-बार खरीदने की मजबूरी, जबकि उस वस्तु की आवश्यकता भी न हो।
चीजों को फेंकने में कठिनाई क्योंकि उन्हें छूने से दूसरों को संक्रमण हो सकता है इस प्रकर से विचार आना।
अपनी संपत्ति की बार-बार जांच करने की बाध्यता।
अपनी मदद खुद करें

1. ओसीडी के ख्यालों को नजरअंदाज करने के लिए अपना ध्यान कहीं और लगाएं। मसलन एक्सरसाइज, जॉगिंग, वॉकिंग, स्टडी, म्यूजिक सुनना, इंटरनेट सर्फिंग, विडियोगेम खेलना, किसी को फोन करना आदि। इसका मकसद है खुद को कम-से-कम 15 मिनट तक किसी ऐसे काम में बिजी रखना, जिससे आपको खुशी मिलती हो। ऐसा करने से आप कंपल्सिव बिहेवियर करने से खुद को रोक सकते हैं। यह देखा गया है कि आप जितनी ज्यादा देर तक खुद को ऐसा करने से रोक पाते हैं, उतनी जल्दी आपकी आदतों में बदलाव आता है।

2. जब भी ऑब्सेसिव ख्याल आएं और कंप्लसिव बिहेवियर का मन कहे, आप इसे डायरी में नोट कर लें। ऐसा करने से आपको यह पता लगेगा कि आप इन बेकार की बातों में अपना कितना समय गंवा रहे हैं। एक ही बात बार-बार लिखने से आपकी नजरों में उसकी अहमियत कम होने लगेगी। चूंकि कोर्इ भी बात लिखना उस बारे में सोचने से ज्यादा मुश्किल काम है। ऐसे में थककर आप उसके बारे में सोचने से ही बचेंगे और धीरे-धीरे ये ख्याल आपके दिमाग में आने कम हो जाएंगे।
3. ओसीडी की चिंता का समय तय करें। इसके लिए 10 मिनट का समय और जगह तय करें और अपने सारे ऑब्सेसिव ख्यालों को उस पीरियड के लिए टालें। उदाहरण के तौर पर शाम 8 बजे से 8:10 मिनट तक के समय को वरी पीरियड तय करें और इसके लिए लिविंग रूम की जगह तय करें। इस पीरियड में शांति से बैठें और सिर्फ अपने नेगेटिव विचारों पर ध्यान लगाएं। इन्हें ठीक करने की चिंता बिल्कुल न करें। वरी पीरियड के आखिर में कुछ गहरी सांस लें। ऑब्सेसिव ख्यालों को अपने मन से निकल जाने दें और अपने सामान्य कामों में लग जाएं। ऐसा करके आप दिन के बाकी समय और रात को नींद के दौरान अपने आप को नेगेटिव विचारों से बचा सकते हैं।
4. अपने ओसीडी ऑब्सेशन का टेप बनाएं। इसे टेप रिकॉर्डर, लैपटॉप या स्मार्ट फोन में टेप करें। आपके दिमाग में आने वाले ऑब्सेसिव ख्यालों, लाइनों या कहानियों की गिनती करें। इस टेप को रोजाना 45 मिनट के लिए सुनें। बार-बार एक ही तरह के ऑब्सेशन के बारे में सुनकर आपको यह बात समझ आ जाएगी कि इसकी वजह ओसीडी है और कुछ ही दिनों में आपको ये बातें परेशान करना बंद कर देंगी।
5. अपना ध्यान रखें। एक स्वस्थ और संतुलित लाइफस्टाइल आपको ओसीडी बिहेवियर, डर और चिंताओं से दूर रखने में सहायक साबित होगी। इसके लिए रिलैक्सेशन तकनीक सीखें। ध्यान, योग और डीप ब्रीदिंग तकनीक अपनाएं। ऐसा दिन में कम-से-कम 30 मिनट के लिए करें।
6. बेहतर खान-पान की आदत डालें। खाने में साबुत अनाज, फल, सब्जियां आदि शामिल करें। इससे न सिर्फ आपका ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहेगा, बल्कि आपके शरीर में सेरोटोनिन बढ़ेगा, जो एक न्यूरोट्रांसमीटर है और दिमाग को शांत करता है।
7. रेग्युलर एक्सरसाइज करें। एरोबिक एक्सरसाइज से तनाव कम होता है और शारीरिक व मानसिक एनर्जी बढ़ती है। एंडॉर्फिन आपके दिमाग को खुशी का अहसास कराता है। रोजाना 30 मिनट एक्सरसाइज करें।
8. अल्कोहल और निकोटिन से दूर रहें और भरपूर नींद लें। 
9. परिवार और दोस्तों के कॉन्टैक्ट में रहें।

जुनूनी बाध्यकारी विकार के लिए शीर्ष  होम्योपैथिक उपचार

1. आर्सेनिकम एल्बम: मौत के लगातार विचारों के लिए

आर्सेनिकम एल्बम मृत्यु के लगातार विचारों के साथ जुनूनी बाध्यकारी विकार के लिए शीर्ष प्राकृतिक दवा है। आर्सेनिकम एल्बम ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के रोगियों के लिए बहुत मददगार है, जिनके पास मौत के लगातार विचार हैं और इस तरह कोई दवा नहीं लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी मृत्यु बहुत निकट है और इस स्तर पर कोई भी दवा लेने का कोई फायदा नहीं है। ऐसे रोगियों को अपने आस-पास के लोगों की आवश्यकता होती है और वे अकेले नहीं रह सकते क्योंकि वे अकेले होने पर बुरा महसूस करते हैं। मृत्यु के विचार साथअत्यधिक बेचैनी, जहां रोगी बिस्तर से कूद जाता है और चिंता के साथ इधर-उधर चला जाता है, प्राकृतिक होम्योपैथिक दवा आर्सेनम एल्बम के साथ भी इलाज किया जा सकता है।

2. अर्जेंटीना नाइट्रिकम: इंपल्सिव विचार के लिए

अर्जेन्टम नाइट्रिकम ओब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर के रोगियों के इलाज के लिए सबसे अच्छी प्राकृतिक दवा है, जो लगातार आवेगी विचार रखते हैं। इन आवेगी विचारों में अलग-अलग लक्षण प्रस्तुतियां हो सकती हैं जैसे ट्रेन में यात्रा करते समय लगातार आवेगी विचार खिड़की से बाहर कूदना है; एक नदी पर एक पुल को पार करते समय, निरंतर विचार नदी में कूदना है या ऊंची इमारतों पर खड़े होने पर नीचे कूदने का भयावह विचार है। जुनूनी बाध्यकारी विकार के रोगियों के लिए प्राकृतिक होम्योपैथी उपाय Argentum Nitricum की सिफारिश करने के लिए एक और उल्लेखनीय विशेषता यह है कि आवेगी विचार रोगी को बहुत चिंतित और बेचैन करते हैं। इससे ऐसे आवेगपूर्ण विचारों से छुटकारा पाने के लिए अत्यधिक और निरंतर चलना पड़ता है और व्यक्ति तब तक चलता है जब तक कि शरीर की सारी ताकत खो नहीं जाती।

3. जहां हर चीज को ऑर्डर देने की प्रवृत्ति हो

तीनोजुनूनी बाध्यकारी विकार के लिए सबसे अच्छा उपचारउन रोगियों को प्राकृतिक उपचार प्रदान करते हैं जिनके पास सब कुछ डालने की मजबूरी है, नक्स वोमिका, आर्सेनिकम एल्बम औरCarcinosinum। जिन रोगियों को प्राकृतिक चिकित्सा नक्स वोमिका की आवश्यकता होती है, वे सतर्क और गुस्सैल स्वभाव के होते हैं, जो आदेश के अनुसार सभी चीजों की मांग करते हैं और आसानी से क्रोधित हो जाते हैं यदि आदेश का पालन नहीं किया जाता है। आर्सेनिकम एल्बम जुनूनी बाध्यकारी विकार के उन रोगियों के लिए बहुत लाभ का एक प्राकृतिक होम्योपैथिक उपाय है जो चीजों के क्रम के बारे में बहुत सचेत हैं और अगर चीजें उनके उचित स्थान पर नहीं हैं तो वे आराम नहीं कर सकते हैं। यह मजबूरी इस हद तक जा सकती है कि भले ही दीवार पर लटकी हुई कोई पेंटिंग थोड़ी झुकी हो, मन तब तक आराम नहीं करता जब तक कि उसे ठीक से रखा न जाए और मरीज इसके लिए हर दूसरे काम को छोड़ दे। ऐसे मरीज कपड़ों में भी साफ-सफाई की मांग करते हैं। कार्सिनोसिनम जुनूनी बाध्यकारी विकार के रोगियों के लिए प्राकृतिक होम्योपैथिक उपाय है जो स्वच्छता के बारे में बहुत चिंतित हैं और चाहते हैं कि न केवल चीजों को रखने में, बल्कि उनकी ड्रेसिंग शैली में भी एक विशिष्ट पैटर्न का पालन किया जाए। उदाहरण के लिए, वे हमेशा ड्रेस अप करते समय रंग मिलान पसंद करते हैं और कमरे को सजाते समय भी। वे इस हद तक किए गए हर काम में पूर्णता की मांग करते हैं कि यह सामान्य प्रतीत नहीं होता है या नहीं दिखता है।

4. नेट्रम मुरीआटिकम – बार-बार बंद दरवाजों की जांच करने की मजबूरी

नैट्रम म्युरेटिकम ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के उन रोगियों के लिए सबसे अच्छा प्राकृतिक उपचार है जो इस विचार से ग्रस्त हैं कि चोर हड़ताल कर सकते हैं और बार-बार दरवाजों के ताले की जांच कर सकते हैं। जुनून इतना लगातार है कि रोगी घर में भी चोरों के सपने देखता है और बार-बार दरवाजे की जांच करने के लिए उठता है।

5. सिफलिनम और मेदोरिन्हिनम – जहाँ हाथ धोने की मजबूरी है

जुनूनी बाध्यकारी विकार के रोगियों के लिए सिफलिनम और मेडोरिनिनम बहुत अच्छी प्राकृतिक दवाएं हैं जो किसी भी वस्तु को छूने से अपने हाथों को दूषित या गंदा होने के लगातार विचार के कारण बार-बार अपने हाथों को धोने की मजबूरी महसूस करते हैं। ऐसे रोगियों को लगता है कि कीटाणु हर एक वस्तु पर मौजूद होते हैं और बहुत कम अंतराल पर हाथ धोने की आदत डाल लेते हैं, बिना अपने जीवन के अन्य महत्वपूर्ण काम पर ध्यान दिए बिना।

6. कैल्केरिया कार्बोनिका – पागल या पागल होने के लगातार विचार के लिए

कैल्केरिया कार्बोनिका, जुनूनी बाध्यकारी विकार के रोगियों के लिए बड़ी मदद की एक प्राकृतिक दवा है, जो मानसिक रूप से थक चुके हैं और लगातार पागल या पागल होने के बारे में सोचते हैं। पागल होने की यह सोच दिन-रात रोगी के मन में बनी रहती है और वह नींद के दौरान भी इसे नहीं लगा पाता है। पागल हो जाने के इस डर से बड़ी तकलीफ होती है और इसे दूर करने के लिए, रोगी सभी लंबित कामों को एक तरफ छोड़ देता है और खुद को या खुद को लाठी तोड़ने या झुकने में व्यस्त रखता है।

7. लगातार धार्मिक विचारों के साथ

प्राकृतिक दवाएँ स्ट्रैमोनियम और पल्सेटिला ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर के रोगियों में लगातार धार्मिक विचारों से निपटने में समान रूप से अच्छी हैं जहाँ मरीज लगातार धर्म के बारे में सोचता है और हर समय पवित्र पुस्तकों को पढ़ता है और लगभग हमेशा प्रार्थना करता है।

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19.10.21

तिल्ली बढ़ जाने पर आयुर्वेदिक उपाय :tilli badhne ke upay


   


 प्लीहा को हिंदी में “तिल्ली” भी कहा जाता है, और अंग्रेजी में इसे “स्प्लीन” (spleen) कहा जाता है। यह हमारे बॉडी का महत्वपूर्ण अंग हैं, इसके तीन मुख्य काम हैं। लाल रक्त कोशिकाओं की गुणवत्ता बनाए रखना, खराब रक्त कोशिकाएं नष्ट करना व बैक्टीरिया आदि से लडऩे के लिए एंटीबॉडी बनाना। रोग से ग्रस्त होने पर तिल्ली इम्यूनिटी भी बढ़ाती है। लेकिन सामान्य से बड़ा होने पर खतरा भी हो सकती हैं। यह इन्फेक्शन, लिवर की बीमारी और कुछ प्रकार के कैंसर जैसी कई स्वास्थ्य समस्याओं से स्प्लीन बढ़ने की समस्या हो सकती है जिसे “स्प्लेनोमेगली” (splenomegaly) भी कहा जाता है।

तिल्ली पेट की सभी ग्रंथियों में बड़ी और नलिकारहित है इसका स्वरूप अंडाकार तथा लम्बाई लगभग तीन से पांच इंच होती है। यह पेट के निचले भाग में पीछे बाईं ओर स्थित होती है। तिल्ली शरीर के कोमल और भुर-भुरे 
ऊतकों का समूह है। यह मनुष्य के शरीर का एक बहुत ही खास अंग है जिसका हर समय स्वस्थ रहना बहुत जरूरी होता है।
 तिल्ली (Spleen) पेट के निचले भाग में पीछे बाईं ओर स्थित होती है | यह पेट की सभी ग्रंथियों में बड़ी और नलिकारहित है | इसका स्वरूप अंडाकार तथा लम्बाई लगभग तीन से पांच इंच होती है | तिल्ली शरीर के कोमल और भुरभुरे ऊतकों का समूह है | इसका रंग लाल होता है |
तिल्ली का मुख्य रोग इसका आकार बढ़ जाना है | विशेष रूप से टॉयफाइड और मलेरिया आदि बुखारों में इसके बढ़ जाने का भय रहता है |
शुरू में इस रोग का उपचार करना आसान होता है, परंतु बाद में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह 
रोग मनुष्य को बेचैनी एवं कष्ट प्रदान करता है। तिल्ली में वृद्धि (स्प्लेनोमेगाली) होने से पेट के विकार, खून में कमी तथा धातुक्षय की शिकायत शुरू हो जाती है।
इस रोग की उत्पत्ति मलेरिया के कारण होती है। मलेरिया रोग में शरीर के रक्तकणों की अत्यधिक हानि होने से तिल्ली पर अधिक जोर पड़ता है। ऐसी स्थिति में जब रक्तकण तिल्ली में एकत्र होते हैं तो तिल्ली बढ़ जाती है।तिल्ली वृद्धि में स्पर्श से उक्त भाग ठोस और उभरा हुआ दिखाई देता है।
इसमें पीड़ा नहीं होती, परंतु यथा समय उपचार न करने पर आमाशय प्रभावित हो जाता है। ऐसे में पेट फूलने लगता है। इसके साथ ही हल्का ज्वर, खांसी, अरुचि, पेट में कब्ज, वायु प्रकोप, अग्निमांद्य, रक्ताल्पता और धातुक्षय आदि विकार उत्पन्न होने लगते हैं। अधिक लापरवाही से इस रोग के साथ-साथ जलोदर भी हो जाता है।

तिल्ली की खराबी में अजवायन और सेंधा नमक : 

 अजवायन का चूर्ण दो ग्राम, सेंधा नमक आधा ग्राम मिलाकर (अथवा अजवायन का चूर्ण अकेला ही) दोनों समय भोजन के पश्चात गर्म पानी के साथ लेने से प्लीहा (तिल्ली spleen) की विकृति दूर होती है।
इससे उदर-शूल बंद होता है। पाचन समय भोजन क्रिया ठीक होती है। कृमिजन्य सभी विकार तथा अजीर्णादि रोग दो-तीन दिन में ही दूर हो जाते है। पतले दस्त होते है तो वे भी बंद हो जाते है। जुकाम में भी लाभ होता है।

तिल्ली अथवा जिगर या फिर तिल्ली और जिगर दोनों के बढ़ने पर :

  पुराना गुड डेढ़ ग्राम और बड़ी पीली हरड़ के छिलके का चूर्ण बराबर वजन मिलाकर एक गोली बनाये और ऐसी दिन में दो बार प्रात: सायं हल्के गर्म पानी के साथ एक महीने तक ले। इससे यकृत और प्लीहा यदि दोनों ही बढे हुए हो, तो भी ठीक हो जाते है। इस प्रयोग को तीन दिन तक प्रयोग करने से अम्लपित्त का भी नाश होता हैं।

प्लीहा वृद्धि (बढ़ी हुई तिल्ली) :

अपराजिता की जड़ बहुत दस्तावर है। इसकी जड़ को दूसरी दस्तावर और मूत्रजनक औषधियों के साथ देने से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक हो जाती है|

अन्य घरेलु उपयोग :

गिलोय के दो चम्मच रस में 3 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण और एक-दो चम्मच शहद मिलाकर चाटने से तिल्ली का विकार दूर होता है।
बड़ी हरड़, सेंधा नमक और पीपल का चूर्ण पुराने गुड़ के साथ खाने से तिल्ली में आराम होता है।

त्रिफला, सोंठ, 

*कालीमिर्च, पीपल, सहिजन की छाल, दारुहल्दी, कुटकी, गिलोय एवं पुनर्नवा के समभाग का काढ़ा बनाकर पी जाएं।
*1/2 ग्राम नौसादर को गरम पानी के साथ सुबह के वक्त लेने से रोगी को शीघ्र लाभ होता है।
*दो अंजीर को जामुन के सिरके में डुबोकर नित्य प्रात:काल खाएं| तिल्ली का रोग ठीक हो जाएगा। 
* कच्चे बथुए का रस निकालकर अथवा बथुए को उबालकर उसका पानी पीने से तिल्ली ठीक हो जाती है | इसमें स्वादानुसार नमक भी मिला सकते हैं |
* आम का रस भी तिल्ली की सूजन और उसके घाव को ठीक करता है | 70 ग्राम आम के रस में 15 ग्राम शहद मिलाकर, प्रात:काल सेवन करते रहने से दो-तीन सप्ताह में तिल्ली ठीक हो जाती है | निरंतर इसका प्रयोग करते समय खटाई से बचे |
*. पेट पर लगातार एक माह तक चिकनी गीली मिट्टी लगाते रहने से भी तिल्ली रोग में लाभ होता है |
*. तिल्ली के विकार में नियमित रूप से पपीते का सेवन लाभदायक है |
* गाजर में राई आदि मिलाकर बनाया गया अचार खिलाने से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक हो जाती है |
* 25 ग्राम करेले के रस में थोड़ा सा पानी मिलाकर दिन में दो-तीन बार पीने से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक हो जाती है |
* लम्बे बैंगनों की सब्जी नियमित खाने से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक होती है |
*पहाड़ी नीबू दो भागों में काटकर उसमें थोड़ा काला नमक मिश्रित कर हीटर या अंगीठी की आंच पर हल्का गर्म करके चूसने से लाभ होता है |
* छोटे कागजी नीबू को चार भागों में काट लें | एक भाग में काली मिर्च, दूसरे भाग में काला नमक, तीसरे में सोंठ और चौथे हिस्से में मिश्री अथवा चीनी भर दें | रातभर के लिए ढककर रखें | प्रातःकाल जलपान से एक घंटा पहले, हल्की आंच पर गरम करके चूसने से लाभ होता है |
*. तिल्ली के विकार में नियमित रूप से पपीते का सेवन लाभदायक है |
*सेंधा नमक और अजवायन ( Rock Salt and Parsley ) : आप प्रतिदिन 2 ग्राम अजवायन में ½ ग्राम सेंधा नमक मिलाएं और उन्हें अच्छी तरह पीसकर पाउडर तैयार करें. इस पाउडर को आप गर्म पानी के साथ लें आपको तिल्ली की वृद्धि में अवश्य लाभ मिलेगा. 


*त्रिफला और काली मिर्च ( Triphala and Black Pepper ) :

 आपको एक काढ़ा तैयार करना है जिसके लिए आपको कुछ जरूरी सामग्री की आवश्यकता पड़ेगी जो इस प्रकार है. आप सौंठ, दारुहल्दी, गियोल, सहिजन की छल, पीपल, त्रिफला, काली मिर्च और पुनर्नवा. इस सामग्री के मिश्रण से आप एक काढ़ा तैयार कर लें और उसे पी जायें. शीघ्र ही आपको प्लीहा रोग से मुक्ति मिलेगी.

गिलोय और शहद : 


3 ग्राम पीपल लेकर उसका पाउडर बना लें और उसमे 2 चम्मच गियोल के रस के मिलाएं. इसके ऊपर से आप 2 चम्मच शहद के भी डाल लें और इस मिश्रण को चाटें. इससे भी आपको तिल्ली विकार से आराम मिलता है.

विशिष्ट परामर्श-



यकृत,प्लीहा (स्प्लेनोमेगाली),आंतों के रोगों मे अचूक असर हर्बल औषधि "उदर रोग हर्बल " चिकित्सकीय  गुणों  के लिए प्रसिद्ध है|पेट के रोग,लीवर ,तिल्ली की बीमारियाँ ,पीलिया रोग,कब्ज  और गैस होना,सायटिका रोग ,मोटापा,भूख न लगना,मिचली होना ,जी घबराना ज्यादा शराब पीने से लीवर खराब होना इत्यादि रोगों मे प्रभावशाली  है|
बड़े अस्पतालों के महंगे इलाज के बाद भी  निराश रोगी  इस औषधि से ठीक हुए हैं| औषधि के लिए वैध्य दामोदर से 9826795656 पर संपर्क करें|

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    फेफड़ों में पानी भर जाने(pleural effusion ) के कारण लक्षण और घरेलू उपचार:fefadon me pani ke upchar



     



    छाती के अन्दर फेफड़े के चारों ओर पानी के जमाव को मेडिकल भाषा में 'प्ल्यूरल इफ्यूजन' या 'हाइड्रोथोरेक्स' कहते हैं। जब लिम्फ नामक के लिक्विड पदार्थ का जमाव होता है तो इसे 'काइलोथोरेक्स' कहते हैं। लंग्स के ऊपरी भाग से रिसते पानी को सोखने की क्षमता होती है। इस वजह से पानी रिसने सोखने के बीच एक बैलेंस बना रहता है। पर जब कभी फेफड़े के ऊपरी भाग में पानी की अधिक मात्रा हो जाती है तो यह बैलेंस बिगड़ जाता है। जिसके कारण फेफड़ों के चारों ओर पानी इकट्ठा हो जाता है।

    फेफड़ों के चारों ओर पानी जमा होने के कई कारण हो सकते हैं। जिसमें सबसे बड़ा कारण टीबी माना जाता है। टीबी इंफेक्शन के इस पानी को अगगर समय रहते नहीं रोका गया तो यह आपके लंग्स को डैमेज कर सकते हैं। टीबी के अलावा निमोनिया के कारण भी इस समस्या का सामना करना पड़ता है।
    क्या आपको सांस लेने में परेशानी हो रही है या आपकी छाती में तेज दर्द होता है या आपको खांसी के साथ खून आता है, तो ये सभी लक्षण पल्मोनरी एडिमा के हो सकते हैं। इस बीमारी में फेफड़ों के अंदर अतिरिक्त पानी इकट्ठा हो जाता है जिससे फेफड़ों में सूजन पैदा हो जाती है। ऐसे में रोगी को साँस लेने में परिशानी होती है। फेफड़ों में पानी कई कारणों से एकत्र हो जाता है। जैसे कई बार छाती में सामान्य सी चोट लगने से भी निमेनिया से, कुछ टॉक्सिन या दवाईयों के संपर्क में आने से या कई बार तो गलत व्यायाम करने से भी फेफड़ों में पानी भर जाता है। वहीं फेफड़ों में पानी भरने के अलावा पल्मोनरी एडिमा बहुत से मामलों में, हृदय में किसी भी प्रकार की समस्या के कारण हो जाता है। अगर आपको पल्मोनरी एडिमा की शिकायत है औऱ आप बहुत अधिक ऊंचाई पर रहते हैं तो आपकी बीमारी की गंभीरता बढ़ सकती है।

    इन कारणों से होता है पल्मोनरी एडिमा


    सबसे पहले हम आपको बता दें कि छाती में सामान्य-सी चोट लगने, निमेनिया, कुछ टॉक्सिन, दवाईयों के सेवन, गलत व्यायाम से फेफड़ों में पानी भर जाता है। इसके अलावा और भी कई कारण है जो इस बीमारी का कारण बन सकता है जैसे...
    -ड्रग्स जैसे- हेरोइन और कोकीन लेने से
    -ऊंचाई पर जाने से भी यह समस्या हो सकती है।
    -वायरल इंफेक्शन जैसे हन्टावायरस और डेंगू के कारण
    -फेफड़ों में चोट लगने के कारण
    पल्मोनरी एडिमा के कारण होती हैं ये समस्याएं
    -हाथ-पैरों के निचले भागों और पेट में सूजन
    -फेफड़ों के चारों तरह की झिल्लियों में लिक्विड भर जाना
    -लिवर में असामान्य तरीके से सूजन
    -खून का असाधारण जमाव होना
    पल्मोनरी एडिमा में दिखते हैं ये लक्षण...
    -सांस लेने में तकलीफ और बलगम में खून आना
    -सीने में दर्द और अचानक ही बहुत तेजी से सांस लेना
    -सांस लेने पर घरघराहट की आवाज आना।
    -हल्का काम करने में तुरंत हांफ जाना।
    -बहुत ज्यादा पसीना आना।
    -त्वचा का रंग नीला या हल्का भूरा होना।
    -ब्लड प्रेशर कम होना और चक्कर आना।
    -कमजोरी महसूस होना।

    फेफड़ों में पानी भरने के
    नुस्खे

    1) नमक का सेवन कम करना क्योंकि आपके शरीर मे नमक का ज्यादा लेना
    आपके शरीर में अधिक तरल पदार्थ बनने लगता है उसके लिए खाने में नमक का सेवन कम करने की कोशिश करें
    उसकी जगह नींबू, काली मिर्च, लहसुन या अन्य कोई जड़ी बूटियों का सेवन करें ।
    2) तुलसी और लहसुन का सेवन करना तुलसी एक सबसे प्राकृतिक जड़ी बूटी है
    जिसके एवं रोज खाली पेट करने से रोगों से छुटकारा मिलता है साथ ही लहसुन का इसमें लगा फायदा है
    जो फेफड़ो को मजबूत बनाता है यदि तुलसी का रस थोड़ा सा निकाल कर और
    लहसुन का रस निकालकर सही मात्रा में लेने से रोजाना सुबह खाली पेट लेने से इस समस्या का निजात मिल सकता है।
    3 ) जैतून का नमक आप यही सोच रहे है कि जैतून का तो तेल होता है
    लेकिन जैतून का नमक भी बहुत फायदेमंद होता है जैतून के नमक से अपच, गैस्ट्रिक से संबंधित या
    फिर पेट मे दर्द जैसी बीमारी को भी दूर करता है।
    रोजाना आधा ग्राम जैतून का नमक और साथ मे गर्म पानी लें इससे आपको आराम मिल सकता है।
    4) स्मोकिंग से और शराब से दूर रहें क्योंकि आधे से ज्यादा परेशानी इन दो चीजों से होती है
    इसकी वजह से उनके कण फेफड़ों तक आ जाते हों और पानी भरने लगता है।
    5) प्रणायाम को सही तरह से आराम से करें जल्द बाजी में यह व्यायाम ना करें अगर हो सकें
    तो किसी से सीख कर ही प्रणायाम करें साथ ही खान पान का सेवन सही उचित मात्रा में लें और
    पौष्टिक लें ज्यादा तला हुआ खाना भी हानिकारक हो सकता है।

    इन तरीकों से बचें


    पल्मोनरी एडिमा के इलाज के दौरान चिकित्सकीय सेवा लेने के अलावा जीवनशैली में भी डॉक्टर बदलाव करने की सलाह देते हैं- रोगी को निम्नलिखित बदलाव की सलाह दे सकते हैं-

    रक्तचाप पर रखें नियंत्रण


    यदि मरीज को उच्च रक्तचाप की समस्या है तो पल्मोनरी एडिमा होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में डॉक्टर से संपर्क कर और रक्तचाप कम करने वाली दवाइयों का सेवन करें।

    ग्लूकोज नियंत्रण में रखें

    यदि मरीज को डायबिटीज जैसी बीमारी है तो ग्लूकोज़ लेवल को नियंत्रण में रखें। अन्य दूसरी तरह की बीमारियों में ऐसी चीजें करने से बचें, जिससे आपकी दशा खराब हो सकती है। ऊंचाई पर जाने से या किसी भी तरह की चीज की एलर्जी से बचें जिससे साँस की तकलीफ बढ़ सकती है। फेफड़ों को किसी भी तरह का नुकसान मत पहुंचाइए।
    धूम्रपान न करे- धूम्रपान करने से पल्मोनरी एडिमा की सम्भावना बढ़ जाती है क्योंकि ध्रुमपान से सबसे ज्यादा नुकसान फेफड़ों को ही होता है। यदि पहले से किसी व्यक्ति को फेफड़ों की समस्या है तो उसकी स्थिति और गंभीर हो सकती है। इसलिए धूम्रपान जितना जल्दी हो सके छोड़ दें।
    स्वस्थ आहार लें - खान-पान पर ध्यान दें और स्वस्थ आहार लें। इसके अलावा खूब सारे फल खाएं और अफने खाने में सब्जियों और सम्पूर्ण आनाज को शामिल करें।

    वजन नियंत्रण में रखें -



    स्वास्थ्य की सबसे जरूरी पहचान हेल्दी वजन से होती है। वजन हमेशा नियंत्रण में रखें और रोजाना कम से कम 30 मिनट तक व्यायाम करें। यदि आप व्यायाम नहीं करना चाहते हैं तो रोज आधे घंटे टहल लें।

    कैसे करें बचाव?

    डॉक्टरी इलाज के साथ-साथ आप कुछ टिप्स अपना इस बीमारी को दूर भगा सकते हैं जैसे...

    ब्लड प्रेशर कंट्रोल करें

    हाई ब्लड प्रेशर के कारण इसका खतरा बढ़ जाता है इसलिए रक्तचाप पर कंट्रोल करें। इसके लिए आप दवाइयों के साथ घरेलू नुस्खे भी अपना सकते हैं।

    फेफड़ो का पानी हटाने के लिए आयुर्वेदिक उपाय

    रोजाना स्वाहारि और पंचकोल का काढ़ा पिएं।
    स्वाहारी प्रवाही, स्वाहारि वटी या स्वाहारि गोल्ड की 1-1 गोली सुबह-दोपहर और शाम को खाएं।
    दूध में हल्दी और शीलाजीत डालकर पिएं।
    खाने के बाद लक्ष्मी विलास और संजीवनी वटी का सेवन करें।
    दिनभर दिव्यपेय का ही पानी पिएं। इसके लिए 1 लीटर पानी में 4 चम्मच दिव्य पे डाले।
    ठंडा दूध या पानी बिल्कुल भी ना पिएं।
    ******************
    खिसकी हुई नाभि को सही जगह पर लाने के उपाय

    घबराहट दूर करने के आयुर्वेदिक उपाय

    खून में कोलेस्ट्रोल कम करने के असरदार उपाय

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    सायटिका रोग की रामबाण हर्बल औषधि

    18.10.21

    छाती मे दर्द (chest pain) के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार

     


    जब भी किसी को अचानक सीने में दर्द होता, तो उसे हार्ट अटैक का डर सताने लगता है। यकीनन, कभी-कभी यह चिंता का विषय हो सकता है, लेकिन जरूरी नहीं कि हर बार छाती में दर्द होना हर्ट अटैक ही हो। यह सामान्य दर्द भी हो सकता है, जिसके कई कारण हो सकते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर चेस्ट पेन किन-किन कारणों से होता है और इसका इलाज क्या है।
     सीने में दर्द की बात आते ही हम दिल के दौरे की बात सोचने लगते हैं, मगर सीने में दर्द कई कारणों से हो सकता है। फेफड़े, मांसपेशियाँ, पसली, या नसों में भी कोई समस्या उत्पन्न होने पर सीने में दर्द होता है।सीने में हार्ट यानी हृदय के अलावा भी कई अंग हैं जैसे- फेफड़े, आहार नली आदि। इसलिए जरूरी नहीं है कि सीने में उठने वाला दर्द हमेशा हार्ट अटैक ही हो। कई बार ये दूसरी किसी बीमारी का भी संकेत हो सकता है।
     किसी-किसी परिस्थिति में यह दर्द भयानक रूप धारण कर लेता है जो मृत्यु तक का कारण बन जाता है। लेकिन एक बात ध्यान में रखें कि खुद ही रोग की पहचान न करें और सीने में दर्द को नजरअंदाज न करें, तुरन्त चिकित्सक के पास जायें।

    कारण

    पेप्टिक अल्सर

    आमतौर पर, पेट की परत में घाव को ही पेप्टिक अल्सर कहा जाता है। हालांकि इससे तीव्र दर्द नहीं होता लेकिन फिर भी यह छाती में दर्द पैदा कर सकते हैं। दरअसल, पेट में अल्सर और गैस्टिक जब ऊपर छाती की तरफ जाती है तो इससे छाती में दर्द होता है। इससे निजात पाने के लिए दवाइयों का सहारा लिया जा सकता है।

    एसोफैगल सकुंचन विकार

    एसोफैगल संकुचन विकार वास्तव में भोजन नली में ऐंठन या सूजन को कहा जाता है। इन विकारों के चलते भी व्यक्ति को सीने में दर्द होता है। एसोफैगसे वह नली है जो गले से पेट तक जाती है। एसोफैगस जहां पेट से जुड़ती है, वहां पर इसकी परत की एक अलग प्रकार की कोशिकीय बनावट होती है और उसमें विभिन्न केमिकल्स का रिसाव करने वाली अन्य कई तरह की संरचनाएं होती हैं। कभी−कभी जब इनमें समस्या होती है तो व्यक्ति को छाती में दर्द का अनुभव होता है।

    निमोनिया

    निमोनिया जैसे फेफड़ों के संक्रमण से सीने में तेज दर्द होता है। निमोनिया होने पर व्यक्ति को सीने में दर्द तो होता है ही, साथ ही बुखार, ठंड लगना और बलगम वाली खांसी की शिकायत भी होती है।

    अस्थमा

    सर्दी का मौसम अस्थमा रोगियों के लिए तकलीफदेह माना जाता है क्योंकि इस मौसम में उनकी समस्या बढ़ जाती है। इतना ही नहीं, अस्थमा के चलते सीने में दर्द की शिकायत का भी व्यक्ति को सामना करना पड़ सकता है। अगर आपको सीने में दर्द के साथ−साथ सांस लेने में तकलीफ, खांसी, आवाज में घरघराहट हो तो यह अस्थमा के कारण हो सकता है।

    फेफड़ों में परेशानी

    जब फेफड़ों और पसलियों के बीच की जगह में हवा बनती है तो फेफड़ों में समस्या उत्पन्न होती है और जिससे सांस लेते समय अचानक सीने में दर्द होने लगता है। इतना ही नहीं, इस स्थिति में व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ, थकान व हृदय गति के बढ़ने का भी अनुभव होगा।

    मांसपेशियों में खिंचाव

    हर बार छाती में दर्द का संबंध हृदय से नहीं जुड़ा होता। कई बार मांसपेशियों में सूजन व पसलियों के आसपास टेंडन्स के कारण भी सीने में दर्द की समस्या हो सकती है। वहीं अगर यह दर्द काफी हद तक बढ़ जाए तो यह मांसपेशियों में खिंचाव का भी लक्षण हो सकता है।

    पसली का चोटिल होना

    पसलियों में चोट जैसे खरोंच आना, टूटना या फिर फ्रैक्चर होने पर भी व्यक्ति छाती में दर्द का अनुभव करता है। दरअसल, जब व्यक्ति की पसली चोटिल होती है तो उसके कारण व्यक्ति को असहनीय दर्द व पीड़ा का अनुभव होता है और कभी−कभी इससे छाती में भी दर्द होता है।जब धमनियों में रक्त का थक्का जमने लगता है तब साँस लेने में मुश्किल होने लगती है और सीने में दर्द शुरू हो जाता है। अगर परिस्थिति को संभाला नहीं गया तो मृत्यु तक हो सकती है। एनजाइना का दर्द साधारणतः आनुवंशिकता के कारण, मधुमेह, हाई कोलेस्ट्रॉल, पहले से हृदय संबंधित रोग से ग्रस्त होने के कारण होता है।

    उच्च रक्तचाप: 

    जो धमनियाँ रक्त को फेफड़ों तक ले जाती है उसमें जब रक्त का चाप बढ़ जाता है तब सीने में दर्द होता है।

    दिल संबंधी कारण

    हार्ट अटैक।
    ह्रदय की रक्त वाहिकाओं के अवरुद्ध होने पर एनजाइना।
    पेरिकार्डिटिस, जो आपके ह्रदय के पास एक थैली में सूजन आने के कारण होता है।
    मायोकार्डिटिस, जो हृदय की मांसपेशियों में सूजन के कारण होता है।
    कार्डियोमायोपैथी, हृदय की मांसपेशी का एक रोग।
    एऑर्टिक डाइसेक्शन, जो महाधमनी में छेद होने के कारण होता है।
    फेफड़े संबंधी कारण
    ब्रोंकाइटिस
    निमोनिया
    प्लूरिसी
    न्यूमोथोरैक्स, जो फेफड़ों से हवा का रिसाव के कारण छाती में होता है।
    पल्मोनरी एम्बोलिज्म या फिर रक्त का थक्का
    ब्रोन्कोस्पाज्म या आपके वायु मार्ग में अवरोध (यह अस्थमा से पीड़ित लोगों में आम है)
    मांसपेशी या हड्डी संबंधी कारण
    घायल या टूटी हुई पसली
    थकावट के कारण मांसपेशियों में दर्द या फिर दर्द सिंड्रोम
    फ्रैक्चर के कारण आपकी नसों पर दबाव

    अन्य कारण

    दाद जैसी चिकित्सीय स्थिति
    पेन अटैक, जिससे तेज डर लगता है।
    हृदय संबंधी लक्षण
    सीने में जकड़न और दबाव
    जबड़े, पीठ या हाथ में दर्द
    थकान और कमजोरी
    सिर चकराना
    पेट में दर्द
    थकावट के दौरान दर्द
    सांस लेने में तकलीफ
    जी मिचलाना
    अन्य लक्षण
    मुंह में अम्लीय/खट्टा स्वाद
    निगलने या खाने पर दर्द
    निगलने में कठिनाई
    शरीर की मुद्रा बदलने पर ज्यादा दर्द होना या ठीक महसूस करना
    गहरी सांस लेने या खांसने पर दर्द
    बुखार और ठंड लगना
    घबराहट या चिंता
    छाती में दर्द होने पर सिर्फ आपको तकलीफ होती है, बल्कि आपको रोजाना के काम करने में भी कठिनाई हो सकती है। इसलिए, जरूरी है कि इसका सही समय पर इलाज करा लिया जाए। नीचे हम चेस्ट पेन से राहत दिलाने के लिए  घरेलू उपाय बता रहे हैं।

    लहसुन

    एक चम्मच लहसुन का रस
    एक कप गुनगुना पानी
    एक कप गुनगुने पानी में एक चम्मच लहसुन का रस डालें।
    इसे अच्छी तरह मिलाएं और रोजाना पिएं।
    आप रोज सुबह लहसुन के दो टुकड़े चबा भी सकते हैं।
    इस प्रक्रिया को दिन में एक या दो बार दोहराएं।
    हृदय में रक्त प्रवाह बिगड़ने के कारण हृदय संबंधी समस्याएं हो सकती है। इस कारण सीने में दर्द का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए, रोजाना लहसुन का इस्तेमाल सीने में दर्द से बचाता है। लहसुन हृदय में रक्त प्रवाह को दुरुस्त कर हृदय रोग से बचाता है । छाती में दर्द के उपाय में यह बेहतरीन नुस्खा है।

    लाल मिर्च -

    सामग्री :
    एक चम्मच लाल मिर्च पाउडर
    किसी भी फल का एक गिलास जूस
    क्या करें?
    फल के एक गिलास जूस में एक चम्मच लाल मिर्च पाउडर मिलाएं।
    इस जूस को पी लें।
    आप इस जूस को दिन में एक बार पिएं।
    इस मिर्च में कैप्सैसिन होता है, जिसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होता है। यह आपके सीने में दर्द की तीव्रता को कम करने में मदद करता है । यह हृदय में रक्त के प्रवाह को दुरुस्त करने में भी मदद करता है, जिससे हृदय रोगों को रोका जा सकता है।
    एलोवेरा
    सामग्री :
    ¼ कप एलोवेरा जूस
    क्या करें?
    एलोवेरा जूस को पी लें।
    ऐसा कब-कब करें?
    आप दिन में एक से दो बार एलोवेरा जूस पिएं।
    एलोवेरा एक चमत्कारी पौधा है, जो कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। यह आपके कार्डियोवस्कुलर सिस्टम को मजबूत करने, अच्छे कोलेस्ट्रॉल को नियमित करने, आपके ट्राइग्लिसराइड के स्तर को कम करने और रक्तचाप को कम करने में भी मदद कर सकता है। ये सभी छाती के दर्द से राहत दिलाने में मदद करते हैं।

    तुलसी के पत्ते

    सामग्री :
    आठ से दस तुलसी के पत्ते
    क्या करें?
    तुलसी के पत्तों को चबा लें।
    इसके अलावा, आप तुलसी की चाय भी पी सकते हैं।
    आप तुलसी के पत्तों का रस निकालकर इसमें शहद मिलाकर खा सकते हैं।
    बेहतर परिणाम के लिए आप रोजाना इसका सेवन करें
    तुलसी में प्रचुर मात्रा में विटामिन-के और मैग्नीशियम होता है। सफेद मैग्नीशियम हृदय तक रक्त प्रवाह को दुरुस्त करता है और रक्त वाहिकाओं को आराम देता है। वहीं, विटामिन-के रक्त वाहिकाओं की दीवारों पर कोलेस्ट्रॉल के निर्माण को रोकता है। यह हृदय संबंधी विकारों के साथ-साथ सीने में दर्द के उपचार में मदद करता है।

    सेब का सिरका

    सामग्री :
    एक चम्मच सेब का सिरका
    एक गिलास पानी
    क्या करें?
    एक गिलास पानी में एक चम्मच सेब का सिरका डालकर अच्छी तरह मिला लें।
    फिर इस पानी को पी लें।
    ऐसा कब-कब करें?
    आप खाना खाने से पहले या जब भी चेस्ट पेन हो, तो इस मिश्रण को पिएं।
    सेब के सिरके में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होता है, जो हार्टबर्न और एसिड रिफ्लक्स से राहत दिलाने में मदद करता है। इन्हीं के कारण सीने में दर्द की शिकायत होने लगती है । छाती में दर्द के उपाय में यह जाना-माना उपचार माना जाता है।

    मेथी के दाने

    एक चम्मच मेथी के दाने
    क्या करें?
    एक रात पहले मेथी दानों को पानी में भिगोकर रख दें और अगली सुबह इन्हें खाएं।
    इसके अलावा, आप एक चम्मच मेथी दानों को पांच मिनट के लिए पानी में उबाल लें। फिर इस पानी को छानकर पिएं।
    ऐसा कब-कब करें?
    आप इस पानी को दिन में एक से दो बार पिएं।
    यह कैसे काम करता है?
    मेथी के बीज में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो हृदय के स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं और सीने में दर्द को रोकते हैं (। हृदय में रक्त के प्रवाह को बढ़ावा देते हैं और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करते हैं।

    बादाम

    सामग्री :
    मुट्ठी भर बादाम
    क्या करें?
    कुछ घंटों के लिए बादाम को पानी में भिगो दें।
    फिर इसके छिल्के हटाकर बादाम खा लें।
    आप तुरंत राहत के लिए बादाम के तेल और गुलाब के तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर अपने सीने पर लगा सकते हैं।
    ऐसा कब-कब करें?
    आप ऐसा रोजाना करें।
    यह कैसे काम करता है?
    बादाम पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड का समृद्ध स्रोत है। यह न केवल हृदय के स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है, बल्कि कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में भी मदद करता है । यह हृदय रोग और सीने में दर्द के उपचार में मदद कर सकता है।
    ये थे सीने में दर्द के घरेलू उपाय। आइए, अब इससे जुड़े कुछ टिप्स जान लेते हैं।

    टिप्स

    अधिक परिश्रम से बचें।
    संतुलित आहार का सेवन करें।
    शराब का सेवन सीमित करें।
    तंबाकू के सेवन से बचें।
    खुद को तनाव मुक्त रखें।
    मत्स्यासन (फिश पोज), भुजंगासन (कोबरा पोज) और धनुरासन (बो पोज) जैसे योगासनों का अभ्यास करें।
    आप एक्यूप्रेशर भी करवा सकते हैं।
    ************************


    डेंगू ज्वर के लक्षण व उपचार:Dengue Fever






    डेंगू एक ऐसी बीमारी हैं जो सामान्य तौर पर एडीज इजिप्टी मच्छरों के काटने से होता है। इस बीमारी में मरीज को तेज बुखार के साथ शरीर पर चकत्‍ते बनने लग जाते हैं। जिस भी स्थान पर यह महामारी के रूप मे फैलता है उस स्थान पर अनेक प्रकार के विषाणु सक्रिय हो सकते है। डेंगू बुखार बहुत ही दर्दनाक और खतरनाक बीमारी है। इसमें रोगी के शरीर में दर्द बहुत ज्‍यादा होता है, इसलिए इसे हड्डी तोड़ बुखार कहना गलत नहीं होगा।
    यह बीमारी सामान्य तौर पर बारिश के सीजन में होती है। क्‍योंकि इस मौसम में ज्यादा गंदगी होने की वजह से मछर उत्पन हो जाते हैं। विषाणु से फैलने वाले इस रोग को एंटीबायोटिक दवाइयों से ठीक नहीं किया जा सकता है। इसी कारण कई बार यह बीमारी एक भयंकर रूप भी धारण कर लेती है।

    लक्षण-

    dengue fever के कई सारे अलग अलग लक्षण होते हैं जिससे की आप इसकी पहचान कर सकते है
    आंखों का पिछला हिस्सा, जोड़ो, पीठ, पेट, मांसपेशी, एवं हड्डियों आदि मे दर्द होना
    पूरे शरीर में ठंड लगना, थकान, बुखार आदि की शिकायत रहना
    उल्टी मतली व भुख ना लगना
    त्वचा पर लाल चकते‌ व धब्बे होना
    शरीर पर खरोंच के‌ निशान व सिरदर्द की समस्या होना
    साधारणतः डेंगू बुखार के लक्षण संक्रमण होने के 3 से 14 दिनों के बाद ही दिखता हैं और इस बात पर भी निर्भर करता हैं कि बुख़ार किस प्रकार है।
    ब्लड प्रेशर का सामान्य से बहुत कम हो जाना।
    खून में प्लेटलेटस की संख्या कम होना।
    अचानक ठंड व कपकंपी के साथ तेज बुखार आ जाना।
    मिचली, उल्टी जैसा महसूस होना और शरीर पर लाल-गुलाबी चकत्ते आ जाना।
    भूख न लगना, कुछ भी खाने की इच्छा न होना, मुंह का स्वाद या पेट खराब हो जाना, अचानक नींद न आना या नींद में कमी महसूस होना।
    सामान्य तौर पर रोगी को हॉस्पिटल में दाखिल करवाने की जरुरत नहीं होती परन्तु अगर स्थिति ज्यादा गंभीर है तो तुरंत उसे चिकित्सक के पास लेकर जाए हालांकि डेंगू की गंभीरता न होने की स्थिति में घर पर रह कर ही उपचार किया जा सकता है। और सामान्य पीडि़त व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं होती। इस रोग में रोगी को तरल पदार्थ का सेवन कराते रहें। जैसे नींबू पानी, नारयण पानी और जूस आदि। डेंगू वाइरल इंफेक्शन है। इस रोग में कोई भी एंटीबॉयटिक देने की आवश्यकता नहीं है। बुखार आने पर रोगी को पैरासीटामॉल टैबलेट दें।
    अगर आप चाहे तो जरुरत के अनुसार ठंडे पानी की पट्टी माथे पर रख सकते हैं। मान लिजिये अगर मरीज को रक्तस्राव हो रहा है तो उसे प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरुरत पड़ सकती है। सामान्य तौर पर डेंगू होने पर बुखार 3 से 5 दिन रह सकता है। जैसे ही बुखार काम होने लगता है रोगी की प्लेटलेट्स अपने आप बढ़ने लगती है। जैसे ही डेंगू के लक्षण आपको नजर आये तुरंत डॉक्टर से संपर्क करे।

    सावधानियां-

    1. डेंगू से बचाव के लिए जितना हो सके सावधानी रखें। इसके लिए हमेशा ध्यान रखें की पानी में गंदगी न होने पाए। लंबे समय तक किसी बर्तन में पानी भरकर न रखें। इससे मच्छर पनपने का खतरा रहता है।
    2. पानी को हमेशा ढंककर रखें और हर दिन बदलते रहें, अन्यथा इसमें मच्छर आसानी से अपनी वंशवृद्ध‍ि कर सकते हैं।
    3. कूलर का पानी हर दिन बदलते रहें।
    4. खि‍ड़की और दरवाजे पर मच्छर से बचने के लिए जाली लगाएं, जिससे मच्छर अंदर न आ सकें।
    5. पूरी बांह के कपड़े पहनें या फिर शरीर को जितना हो सके ढंक कर रखें।
    इसके अलावा अगर आप डेंगू की चपेट में आ गए हैं, तो क्या करें उपाय, आइए जानते हैं-

    डेंगू का घरेलू उपचार

    तुलसी की खुशबू से डेंगू फैलने वाले मच्छर दूर भागते हैं इसलिए हो सके तो तुलसी का पौधा अपने घर में जरूर लगाकर रखे घर व घर के आसपास किसी भी जगह पर पानी इकट्ठा ना होने दें। इस बात का पूरा ध्यान रखें कि डेंगू मच्छर अधिकतर साफ पानी में ही होते है इसलिए सभी चीजो को ढककर रखे ।
    संतरे का जूस पीना मरीज के लिए हितकारी होता है। क्योंकि यह पाचन में मदद करता है और एंटीबॉडी को बढ़ने में भी मदद करता है
    पपीता के पत्तो का रस पीने से पलटलेट्स बढ़ने लग जाती है।
    गिलोय का रस मरीज को समय समय पर पिलाते रहे। यह मरीज के घटे हुए प्लेटलेट्स को बढाने में अहम भूमिका निभाता है।

    उपचार-

    1 अगर आप डेंगू बुखार की चपेट में आ गए हैं, तो जितना हो सके आराम करने पर ध्यान दें और शरीर में पानी की कमी न होने दें। समय समय पर पानी लगातार पीते रहें।
    2 मच्छरों से बचाव करना बेहद आवश्यक है। इसके लिए सोते समय मच्छरदानी लगाकर सोएं और दिन में भी पूरी बांह के कपड़े पहनें, ताकि मच्छर न काट सके।
    3 घर में पानी का किसी प्रकार जमाव न होने दें। घर के आसपास भी कहीं जलजमाव न होने दें, ऐसा होने पर मच्छर तेजी से फैलेंगे।
    4 बुखार बढ़ने पर कुछ घंटों में पैरासिटामॉल लेकर, बुखार पर नियंत्रण रखें। किसी भी स्थिति में डिस्प्रि‍न या एस्प्रिन जैसी दवाइयां बिल्कुल न लें।
    5 जल चिकित्सा के माध्यम से भी शरीर का तापमान किया जा सकता है। इससे बुखार नियंत्रण में रहेगा।

    डेंगू बुखार में प्लेटलेट्स की भूमिका

    आमतौर पर तंदुरुस्त आदमी के शरीर में डेढ़ से दो लाख प्लेटलेट्स होते हैं। प्लेटलेट्स बॉडी की ब्लीडिंग रोकने का काम करती हैं। अगर प्लेटलेट्स एक लाख से कम हो जाएं तो उसकी वजह डेंगू हो सकता है। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि जिसे डेंगू हो, उसकी प्लेटलेट्स नीचे ही जाएं। प्लेटलेट्स अगर एक लाख से कम हैं तो मरीज को फौरन हॉस्पिटल में भर्ती कराना चाहिए। अगर प्लेटलेट्स गिरकर 20 हजार तक या उससे नीचे पहुंच जाएं तो प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। 40-50 हजार प्लेटलेट्स तक ब्लीडिंग नहीं होती। डेंगू का वायरस आमतौर पर प्लेटलेट्स कम कर देता है, जिससे बॉडी में ब्लीडिंग शुरू हो जाती है। अगर प्लेटलेट्स तेजी से गिर रहे हैं, मसलन सुबह एक लाख थे और दोपहर तक 50-60 हजार हो गए तो शाम तक गिरकर 20 हजार पर पहुंच सकते हैं। ऐसे में डॉक्टर प्लेटलेट्स का इंतजाम करने लगते हैं ताकि जरूरत पड़ते ही मरीज को प्लेटलेट्स चढ़ाए जा सकें। प्लेटलेट्स निकालने में तीन-चार घंटे लगते हैं।


    डेंगू बुखार से बच्चों में खतरा ज्यादा

    बच्चों का इम्युन सिस्टम ज्यादा कमजोर होता है और वे खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए उनके प्रति सचेत होने की ज्यादा जरूरत है। पैरंट्स ध्यान दें कि बच्चे घर से बाहर पूरे कपड़े पहनकर जाएं। जहां खेलते हों, वहां आसपास गंदा पानी न जमा हो। स्कूल प्रशासन इस बात का ध्यान रखे कि स्कूलों में मच्छर न पनप पाएं। बहुत छोटे बच्चे खुलकर बीमारी के बारे में बता भी नहीं पाते इसलिए अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, लगातार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। बच्चों को डेंगू हो तो उन्हें अस्पताल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें डीहाइड्रेशन (पानी की कमी) भी जल्दी होता है।


    डेंगू बुखार का इलाज

    -अगर मरीज को साधारण डेंगू बुखार है तो उसका इलाज व देखभाल घर पर की जा सकती है।

    -डॉक्टर की सलाह लेकर पैरासिटामोल (क्रोसिन आदि) ले सकते हैं।
    -एस्प्रिन (डिस्प्रिन आदि) बिल्कुल न लें। इनसे प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं।
    -अगर बुखार 102 डिग्री फॉरेनहाइट से ज्यादा है तो मरीज के शरीर पर पानी की पट्टियां रखें।
    -सामान्य रूप से खाना देना जारी रखें। बुखार की हालत में शरीर को और ज्यादा खाने की जरूरत होती है।
    -मरीज को आराम करने दें।

    डेंगू बुखार का आयुर्वेद में इलाज

    आयुवेर्द में इसकी कोई पेटेंट दवा नहीं है। लेकिन डेंगू न हो, इसके लिए यह नुस्खा अपना सकते हैं। एक कप पानी में एक चम्मच गिलोय का रस (अगर इसकी डंडी मिलती है तो चार इंच की डंडी लें। उस बेल से लें, जो नीम के पेड़ पर चढ़ी हो), दो काली मिर्च, तुलसी के पांच पत्ते और अदरक को मिलाकर पानी में उबालकर काढ़ा बनाए और 5 दिन तक लें। अगर चाहे तो इसमें थोड़ा-सा नमक और चीनी भी मिला सकते हैं। दिन में दो बार, सुबह नाश्ते के बाद और रात में डिनर से पहले लें।

    डेंगू बुखार से बचने के लिए एहतियात बरतें

    -ठंडा पानी न पीएं, मैदा और बासी खाना न खाएं।

    -खाने में हल्दी, अजवाइन, अदरक, हींग का ज्यादा-से-ज्यादा इस्तेमाल करें।
    -इस मौसम में पत्ते वाली सब्जियां, अरबी, फूलगोभी न खाएं।
    -हल्का खाना खाएं, जो आसानी से पच सके।
    -पूरी नींद लें, खूब पानी पीएं और पानी को उबालकर पीएं।
    -मिर्च मसाले और तला हुआ खाना न खाएं, भूख से कम खाएं, पेट भर न खाएं।
    -खूब पानी पीएं। छाछ, नारियल पानी, नीबू पानी आदि खूब पिएं।

    डेंगू मच्छर से बचाव भी इलाज

    -बीमारी से बचने के लिए फिजिकली फिट, मेंटली स्ट्रॉन्ग और इमोशनली बैलेंस रहें।

    -अच्छा खाएं, अच्छा पीएं और अच्छी नींद ले।
    -नाक के अंदर की तरफ सरसों का तेल लगाकर रखें। इससे तेल की चिकनाहट बाहर से बैक्टीरिया को नाक के अंदर जाने से रोकती है।
    -खाने में हल्दी का इस्तेमाल ज्यादा करें। सुबह आधा चम्मच हल्दी पानी के साथ या रात को आधा चम्मच हल्दी एक गिलास दूध या के साथ लें। लेकिन अगर आपको -नजला, जुकाम या कफ आदि है तो दूध न लें। तब आप हल्दी को पानी के साथ ले सकते हैं।
    -आठ-दस तुलसी के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर लें या तुलसी के 10 पत्तों को पौने गिलास पानी में उबालें, जब वह आधा रह जाए तब उस पानी को पीएं।
    -विटामिन-सी से भरपूर चीजों का ज्यादा सेवन करें जैसे : एक दिन में दो आंवले, संतरे या मौसमी ले सकते हैं। यह हमारे इम्यून सिस्टम को सही रखता है।
    अपनी मर्जी से कोई भी एंटी-बायोटिक या कोई और दवा न लें। अगर बुखार ज्यादा है तो डॉक्टर के पास जाएं और उसकी सलाह से ही दवाई ले।
    इन दिनों के बुखार में सिर्फ पैरासिटामोल ले सकते हैं। एस्प्रिन बिल्कुल न लें क्योंकि अगर डेंगू है तो एस्प्रिन या ब्रूफिन आदि लेने से प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं।
    मामूली खांसी आदि होने पर भी अपने आप कोई दवाई न लें।
     Dexamethasone (जेनरिक नाम) का इंजेक्शन और टैब्लेट तो बिल्कुल न लें। 

    डेंगू बुखार का एलोपैथी में इलाज

    इसकी दवाई लक्षण देखकर और प्लेटलेट्स का ब्लड टेस्ट कराने के बाद ही दी जाती है। लेकिन किसी भी तरह के डेंगू में मरीज के शरीर में पानी की कमी नहीं आने देनी चाहिए। उसे खूब पानी और बाकी तरल पदार्थ (नीबू पानी, छाछ, नारियल पानी आदि) पिलाएं ताकि ब्लड गाढ़ा न हो और जमे नहीं। साथ ही, मरीज को पूरा आराम करना चाहिए। आराम भी डेंगू की दवा ही है।
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