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अर्जुनारिष्ट के फायदे और उपयोग:Arjunarisht ke fayde




अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) किसी भी प्रकार के दिल के रोग से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद एक लिक्विड दवा है। इस आयुर्वेदिक दवा का उपयोग सीने में दर्द, रक्तचाप, हार्ट फेल, मायोकार्डीयल इन्फ्राकशन, दिल में ब्लोकेज, इस्केमिक कार्डियोमायोपैथी आदि से पीड़ित लोगों के लिए किया जा सकता है।

अर्जुनारिष्ट को पार्थियारदिष्ट के रूप में भी जाना जाता है और इसे नेचुरल फेर्मेंटेशन का उपयोग करके तैयार किया जाता है। इस दवा में मुख्य तत्व के रूप में अर्जुन के पेड़ की की छाल या टर्मिनलिया अर्जुन होते हैं जो एक शक्तिशाली कार्डियोप्रोटेक्टिव है।
“अर्जुनारिष्ट में फ्लेवोनोइड्स, टैनिन और खनिज होते हैं जो एंटी-ऑक्सीडेशन, एंटी-इंफ्लेमेटरी और लिपिड को कम करने वाले गुण देते हैं। पेड़ की छाल से इनोट्रोपिक और हाइपोटेंशन प्रभाव होता है जो कोरोनरी धमनी के प्रवाह को बढ़ाता है – “डॉ. श्रीधर द्वेदी, प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी ग्रुप, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली विश्वविद्यालय|
अर्जुनारिष्ट के फायदे
हर्बल कार्डियक टॉनिक होने के इलावा यह छाती की चोटों, कमजोरी, थकान, पुरानी सांस, खांसी और गले की बीमारियों का इलाज करने में मदद करता है। यह ताकत में भी सुधार करता है और आंतों को साफ करने में मदद करता है।
अर्जुनारिष्ट के स्वास्थ्य लाभ
कार्डिएक अरिथमिया
यह विभिन्न मेल में लिए जाने पर दिल की असामान्य धड़कन, तेज और धीमी गति से दिल की धड़कन को कम करता है।
उच्च और निम्न रक्तचाप की जाँच करता है
अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) कार्डियो-वैस्कुलर में सुधार करता है और रक्तचाप को सामान्य स्तर पर स्थिर करता है। अर्जुनारिष्ट में सक्रिय फाइटोकेमिकल्स और शारीरिक गुण होते हैं जो दिल के रोगों का इलाज करने में मदद करते हैं।
हार्ट अटैक को रोकता है
अर्जुनारिष्ट का उपयोग म्योकार्डिअल इन्फ्राक्शन और कंजेस्टिव हार्ट फेल के मामलों में किया जाता है। यह खून की नालियों की रुकावट को रोकता है और दिमाग को खून की उचित मात्रा देता है। यह शरीर के एक तरफ की कमजोरी या पक्षाघात, सिरदर्द, आवाज़ का धीमा होना, भ्रम, अशांति, चेतना में बदलाव और सिर में चक्कर आने का कारण बन सकता है। अर्जुनारिष्ट दिल की रुकावट को रोकने में मदद करता है।
छाती में दर्द
दौड़ते समय, सीढ़ियों पर चढ़ते समय या साइकिल चलाने पर होने वाले सीने के दर्द को अर्जुनरिष्ट के उचित सेवन से कम किया जा सकता है।
इस्केमिक कार्डियोमायोपैथी
यह कोरोनरी हृदय रोग के कारण होता है जब दिल अन्य अंगों में पर्याप्त मात्रा में खून पंप करने की स्थिति में नहीं रहता। उचित जीवनशैली में बदलाव करके और इस दवा का सेवन इसे ठीक करने में मदद मिलती है।
माइट्रल रिग्रिटेशन का इलाज करता है
जब भी बायाँ वेंट्रिकल सिकुड़ता है तो माइट्रल वाल्व से खून का रिसाव होता है। अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) इस स्थिति का इलाज करने में मदद करता है। डॉ. श्रीधर द्विवेदी, प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी ग्रुप, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, अर्जुनारिष्ट माइट्रल रिग्रिटेशन और एंजाइनल फ्रीक्वेंसी को कम करता है। इसके अलावा डायस्टोलिक डिसफंक्शन में सुधार करता है।
सांस के रोगों में मदद करता है
इसका उपयोग अस्थमा, पुरानी ब्रोंकाइटिस और सीओपीडी जैसे पुराने श्वसन रोगों के इलाज के लिए किया जाता है। यह फेफड़ों के टिश्यूओं को मजबूत करता है और फेफड़ों की क्षमता में सुधार करता है। यह एक एंटी-एलर्जी प्रतिक्रिया भी पैदा करता है और अस्थमा को रोकता है। यह धूम्रपान, फ्री-रेडिकल्स, धूल और अन्य विषाक्त पदार्थों से होने वाले नुकसान से फेफड़ों की रक्षा करके सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) की प्रगति को कम करता है।
अर्जुनारिष्ट के उपयोग
अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) में निम्न गुण इसके लाभों में बहुत योगदान देते हैं:
कार्डियोटोनिक के रूप में उपयोग किया जाता है
अर्जुनारिष्ट दिल को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है और हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करता है। यह जड़ी बूटी शरीर में स्वस्थ रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के लेवल के रखरखाव में भी उपयोगी है।
एंटी-अस्थमेटिक
अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) वायुमार्ग से बलगम को हटाने के लिए उपयोगी है और अस्थमा के इलाज़ के लिए एक प्रभावी उपाय के रूप में काम करता है।
प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है
अर्जुनारिष्ट स्पर्म के बनने को बढ़ाता है और स्पर्म की क्वालिटी में सुधार की दिशा में सक्रिय रूप से काम करता है।
अर्जुनारिष्ट का उपयोग कैसे करें?
क्या इसे भोजन से पहले या बाद में लिया जा सकता है?
भोजन के बाद अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) गुनगुने पानी के साथ दिन में दो बार लेना उचित है।
क्या इसे खाली पेट लिया जा सकता है?
हृदय के टॉनिक के रूप में इसके लाभों का अनुभव करने के लिए इसे भोजन के बाद लेना चाहिए। अर्जुनारिष्ट हृदय की असामान्य धड़कन को कम करता है, कार्डियो-वैस्कुलर में सुधार करता है और रक्तचाप को सामान्य स्तर पर स्थिर करता है।
क्या इसे पानी के साथ लेना चाहिए?
अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) एक सिरप है इसलिए इसे हमेशा दिन में दो बार गुनगुने पानी के साथ लेना चाहिए।
क्या इसे दूध के साथ लेना चाहिए?
रक्तचाप को ठीक करने के लिए अर्जुनारिष्ट को दिन में दो बार दूध के साथ लेने की सलाह दी जाती है
अर्जुनारिष्ट का सेवन करते समय क्या परहेज करना चाहिए?
अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) को किसी विशेषज्ञ की देखरेख में लेना चाहिए। मधुमेह के रोगियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान के दौरान भी इसे लेने से बचना चाहिए।
अर्जुनारिष्ट: खुराक
यह तरल रूप में मिलता है। अर्जुनारिष्ट सिरप 2 से 4 चम्मच (20 मि.ली.) दिन में दो बार बराबर मात्रा में पानी के साथ या डॉक्टर के बताये अनुसार लेना चाहिए।
अर्जुनारिष्ट के प्रभाव
इसे किसी प्रोफेशनल की सलाह से ही लिया जाना चाहिए|
मधुमेह के रोगियों को इससे बचना चाहिए|
5 वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चों के लिए यह सुरक्षित है|
गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान इसे लेने से बचें|अर्जुनारिष्ट से बचाव और चेतावनी
क्या गाड़ी चलाने से पहले इसका सेवन किया जा सकता है?
यदि अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) लेते हुए आपको उनींदापन, चक्कर आना, निम्न रक्तचाप या सिरदर्द का अनुभव होता है तो गाड़ी चलाने से बचना चाहिए।
क्या इसका सेवन शराब के साथ किया जा सकता है?
अर्जुनारिष्ट में 6 से 12% अल्कोहल होती है, इसलिए इसे शराब के साथ नहीं लेना चाहिए। इस सिरप को पानी या दूध के साथ लेने की सलाह दी जाती है।
क्या यह नशे की लत हो सकती है?
नहीं, अर्जुनारिष्ट नशे की लत नहीं है।
क्या यह मदहोश कर सकता है?
अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) लेने से होने वाले दुष्प्रभावों के रूप में नींद आना, चक्कर आना, निम्न रक्तचाप या सिरदर्द का अनुभव हो सकता है। लेकिन इस आयुर्वेदिक दवा का प्रभाव हर व्यक्ति पर अलग-अलग होता है।
क्या अर्जुनारिष्ट ज्यादा मात्रा में ले सकते हैं?
हाँ, लेकिन इसका ज्यादा मात्रा में सेवन न करें। इसे लगभग 2 से 4 चम्मच लें। इस सिरप की एक समान मात्रा में दिन में दो बार या चिकित्सक के बताये अनुसार लेनी चाहिए।
यह किस चीज़ से बना है?
अर्जुनारिष्ट बनाने के लिए प्रयोग होने वाली सामग्री निम्न है-
अर्जुन तवाक – टर्मिनलिया अर्जुन – स्टेम बार्क – 4.8 कि.ग्रा.
मृदविका – सूखे अंगूर – फल – 2.4 कि.ग्रा.
मधुका – मधुका इंडिका – फूल – 960 ग्रा.
धाताकी – वुडफोडिया फ्रुटिकोसा – फूल – 960 ग्रा.
गुड़ – गुड़ – 4.8 कि.ग्रा.
भंडारण
इसे प्रकाश और नमी से बचाकर कसकर बंद किये हुए कंटेनर या बोतल में ठंडी जगह पर रखना चाहिए।
अपनी हालत में सुधार देखने तक मुझे कितने समय तक अर्जुनारिष्ट का उपयोग करने की जरूरत है?
हर्बल हार्ट टॉनिक के रूप में इसके प्रभाव का अनुभव करने के लिए अर्जुनारिष्ट को लगभग 4 से 6 सप्ताह तक लिया जाता है।
अर्जुनारिष्ट को दिन में कितनी बार लेने की जरूरत है?
अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) सिरप को 2 से 4 चम्मच दिन में दो बार पानी के साथ ले सकते हैं। लेकिन इस दवा को लेने से पहले किसी योग्य डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
क्या इससे स्तनपान कराने पर कोई प्रभाव पड़ता है?
यदि आप स्तनपान कराने वाली माँ हैं तो आपको अर्जुनारिष्ट लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
क्या यह बच्चों के लिए सुरक्षित है?
केवल 5 वर्ष से ज्यादा आयु के बच्चों को ही चिकित्सकीय देखरेख में अर्जुनारिष्ट दी जानी चाहिए।
क्या गर्भावस्था पर इसका कोई प्रभाव पड़ता है?
गर्भावस्था के दौरान अर्जुनारिष्ट लेने से बचना उचित है।
क्या इसमें चीनी होती है?
हां, अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) में चीनी होती है और इसे मधुमेह के रोगियों को नहीं देना चाहिए। सिरप में चीनी आमतौर पर अर्जुनारिष्ट तरल के 20 मि.ली. प्रति 2 ग्रा. से कम है।
क्या अर्जुनारिष्ट और सरस्वतारिष्ट को भोजन के बाद ले सकते हैं?
हाँ, अर्जुनारिष्ट और सरस्वतारिष्ट दोनों को भोजन के बाद लगभग एक साथ लिया जा सकता है। इसके 10 से 15 मि.ली. की मात्रा आधा गिलास पानी में मिलकर पतला करें|
आयुर्वेदिक उपचार से दिल की बीमारियों को कैसे ठीक किया जाता है?
आयुर्वेदिक इलाज़ किसी भी तरह की बीमारी के लिए सबसे अच्छा और प्रभावी उपचार है। जबकि कई आयुर्वेदिक उपचार हैं जो बीमारी को ठीक कर सकते हैं और आपको अपनी ताकत वापस पाने में मदद करते हैं| आयुर्वेद को हृदय संबंधी कई बीमारियों को ठीक करने के लिए जाना जाता है। आयुर्वेद दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला कार्डियक टॉनिक, अर्जुनारिष्ट सबसे प्रभावी और कुशल आयुर्वेदिक दवाओं में से एक है जो हृदय रोगों को रोकने में मदद करता है। अक्सर ब्राह्मी, अश्वगंधा, गुग्गुल और अन्य प्रभावी उपचारों के साथ मिलाकर अर्जुनारिष्ट का उपयोग एक आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की सलाह से लिया जाना चाहिए।
रक्तचाप को सामान्य रखने के लिए सबसे अच्छा घरेलू उपाय क्या है?
दिल के रोगों के लिए अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) जैसे आयुर्वेदिक उपचारों को चुनने के साथ-साथ रोजाना लगभग 30 से 60 मिनट तक नियमित रूप से व्यायाम करके, ताजे फल और सब्जियां खाकर अपने रक्तचाप को सामान्य रख सकते हैं। इसके अलावा नमक (सोडियम) का सेवन कम रखना और स्पष्ट रूप से तनाव के लेवल को कम रख सकता है।
एचडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कैसे बढ़ा सकता है?
अर्जुनारिष्ट(Arjunarishta) हृदय को मजबूत बनाने और खून में कोलेस्ट्रॉल के ऊंचे स्तर को कम करने के लिए एक प्रभावी उपाय है| अपने सामान्य खाना पकाने के तेल को जैतून का तेल के साथ बदलकर, कम कार्ब वाले आहार का पालन करके, नियमित रूप से व्यायाम करके और नारियल के तेल का नियमित रूप से उपयोग करके बढ़ा सकते हैं।
कोरोनरी थ्री वेसल ब्लॉकेज के लिए सबसे अच्छा सलूशन क्या हैं?
इस तरह की ब्लॉकेज को ठीक करने के लिए अर्जुनारिष्ट सबसे अच्छा समाधान है। एक कार्डियक वैसोडिलेटर अर्जुनारिष्ट किसी भी जमा के बहाव को कम करके खून की नलियों को चौड़ा करने में मदद करता है। दिल की रक्षा करने और खून के दौरे को आसान बनाने के लिए प्रभावी अर्जुनारिष्ट को अक्सर आयुर्वेदिक विशेषज्ञों द्वारा लेने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा आप अपनी जीवनशैली में बदलाव भी ला सकते हैं जैसे स्वस्थ भोजन करना, नियमित रूप से व्यायाम करना और हृदय को स्वस्थ को बनाए रखने के लिए हृदय रोग विशेषज्ञ से सलाह आदि भी ले सकते हैं
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  • 31.12.20

    महारास्नादि क्वाथ के फायदे और उपयोग:Maharasnadi kwath ke fayde


    आयुर्वेद में क्वाथ कल्पना से तैयार होने वाली औषधियों का अपना एक अलग स्थान होता है | महारास्नादि काढ़ा भी क्वाथ कल्पना की एक शास्त्रोक्त औषधि है जिसका वर्णन
    आयुर्वेदिक ग्रन्थ शारंगधर संहिता के मध्यम खंड 2, 90-96 में किया गया है |
    यह सर्वांगवात, संधिवात, जोड़ों का दर्द, आमवात, अर्धान्ग्वात, एकान्ग्वात, गृध्रसी, लकवा, आँतो की व्रद्धी, वीर्य विकार एवं योनी विकार आदि में प्रयोग किया जाता है | इस काढ़े को गर्भकर माना जाता है | जिन माताओं – बहनों को गर्भ न ठहर रहा हो , उन्हें चिकित्सक अन्य आयुर्वेदिक दवाओ के साथ महारास्नादि काढ़े का प्रयोग करना बताते है | इसके सेवन से शरीर में स्थित दोषों का संतुलन होता है , बढ़ी हुई वात शांत होती है एवं इसके कारन होने वाले दर्द से छुटकारा मिलता है |
    आयुर्वेद की क्वाथ औषधियां शरीर पर जल्द ही अपना असर दिखाना शुरू कर देती है | यहाँ हमने इस काढ़े के घटक द्रव्य, स्वास्थ्य लाभ, सेवन का तरीका, बनाने की विधि एवं फायदों के बारे में शास्त्रोक्त वर्णन किया है | तो चलिए जानते है सबसे पहले इसके घटक द्रव्य अर्थात इसके निर्माण में कौन कौन सी जड़ी – बूटियां पड़ती है ?

    महारास्नादि काढ़ा के घटक द्रव्य

    इस आयुर्वेदिक क्वाथ में लगभग 27 आयुर्वेदिक जड़ी – बूटियों का सहयोग होता है | इनके संयोग से ही इसका निर्माण होता है | आप इस सारणी से इनका नाम एवं मात्रा को देख सकते है –

    महारास्नादि काढ़ा 

    आयुर्वेद में क्वाथ कल्पना से तैयार होने वाली औषधियों का अपना एक अलग स्थान होता है | महारास्नादि काढ़ा भी क्वाथ कल्पना की एक शास्त्रोक्त औषधि है जिसका वर्णन आयुर्वेदिक ग्रन्थ शारंगधर संहिता के मध्यम खंड 2, 90-96 में किया गया है |
    यह सर्वांगवात, संधिवात, जोड़ों का दर्द, आमवात, अर्धान्ग्वात, एकान्ग्वात, गृध्रसी, लकवा, आँतो की व्रद्धी, वीर्य विकार एवं योनी विकार आदि में प्रयोग किया जाता है | इस काढ़े को गर्भकर माना जाता है | जिन माताओं – बहनों को गर्भ न ठहर रहा हो , उन्हें चिकित्सक अन्य आयुर्वेदिक दवाओ के साथ महारास्नादि काढ़े का प्रयोग करना बताते है | इसके सेवन से शरीर में स्थित दोषों का संतुलन होता है , बढ़ी हुई वात शांत होती है एवं इसके कारन होने वाले दर्द से छुटकारा मिलता है |
    आयुर्वेद की क्वाथ औषधियां शरीर पर जल्द ही अपना असर दिखाना शुरू कर देती है | यहाँ हमने इस काढ़े के घटक द्रव्य, स्वास्थ्य लाभ, सेवन का तरीका, बनाने की विधि एवं फायदों के बारे में शास्त्रोक्त वर्णन किया है | तो चलिए जानते है सबसे पहले इसके घटक द्रव्य अर्थात इसके निर्माण में कौन कौन सी जड़ी – बूटियां पड़ती है ?

    महारास्नादि काढ़ा के घटक द्रव्य

    इस आयुर्वेदिक क्वाथ में लगभग 27 आयुर्वेदिक जड़ी – बूटियों का सहयोग होता है | इनके संयोग से ही इसका निर्माण होता है | आप इस सारणी से इनका नाम एवं मात्रा को देख सकते है –
    क्रमांक/ द्रव्य का नाम /मात्रा

    1. रास्ना 50 भाग
    2. धन्वयास 1 भाग
    3. बला 1 भाग
    4. एरंड मूल 1 भाग
    5. शटी 1 भाग

    6. देवदारु 1 भाग
    7. वासा 1 भाग
    8. वचा 1 भाग
    9. शुंठी 1 भाग
    10. चव्य 1 भाग
    11. हरीतकी 1 भाग
    12. मुस्ता 1 भाग
    13. लाल पुर्ननवा 1 भाग
    14. गिलोय 1 भाग
    15. वृद्धदारु 1 भाग
    16. शतपुष्पा 1 भाग
    17. गोक्षुर 1 भाग
    18. अश्वगंधा 1 भाग
    19. अतिविष 1 भाग
    20. आरग्वध 1 भाग
    21. शतावरी 1 भाग
    22. पिप्पली 1 भाग
    23. सहचर 1 भाग
    24. धान्यक 1 भाग
    25. कंटकारी 1 भाग
    26. बृहती 1 भाग
    27. जल 1200 भाग

    महारास्नादि काढ़े को बनाने की विधि

    • भगवान् ब्रह्म के निर्देशानुसार महारास्नादी काढ़ा का निर्माण किया जाना चाहिए |
    • क्वाथ कल्पना का प्रयोग संहिता काल से ही होता आया है |
    • क्वाथ निर्माण के लिए सबसे पहले इन औषधियों की बताई गई मात्रा में लेना चाहिए एवं इसके पश्चात इनका प्रथक – प्रथक यवकूट चूर्ण करके आपस में मिलादेना चाहिए |
    • निर्देशित मात्रा में जल लेकर इसमें महारास्नादि क्वाथ को डालकर गरम किया जाता है |
    • जब पानी एक चौथाई बचे तब इसे ठंडा करके छान कर प्रयोग में लिया जाता है |
    • इस प्रकार से महारास्नादि काढ़े का निर्माण होता है | सभी प्रकार के क्वाथ का निर्माण इसी प्रकार से किया जाता है | पानी को 1/4 या 1/8 भाग बचने तक उबला जाता है |

    महारास्नादि काढ़ा के फायदे 

    • सर्वांगवात अर्थात सभी प्रकार की प्रकुपित वात में इसका सेवन लाभ देता है |
    • अर्धांगवात एवं एकांगवात में इसका सेवन लाभकारी होता है |
    • यह आंतो की वृद्धि मे  भी फायदेमंद है |
    • जोड़ो के दर्द, घुटनों के दर्द एवं अन्य सभी प्रकार के वातशूल में लाभ देता है |
    • शरीर में बढे हुए आम दोष का शमन करता है |
    • वीर्य विकारों में भी इसका सेवन करवाया जाता है |
    • योनी विकारों को दूर कर के गर्भ ठहराने में फायदेमंद है |
    • लकवा एवं गठिया रोग में भी इसका सेवन फायदा पहुंचता है |
    • फेसिअल पाल्सी, आफरा एवं घुटनों के दर्द में इसका आमयिक प्रयोग किया जाता है |
    • घुटनों के दर्द में योगराज गुग्गुलु के साथ इसका अनुपान स्वरुप प्रयोग करना लाभदायक होता है |
    • बाँझपन में भी इसका सेवन करवाया जाता है |
    • कुपित वात का शमन करता है एवं शरीर में स्थित दोषों का हरण करता है |
    • महिलाओं के योनीगत विकारों में प्रयोग करवाया जाता है |

    महारास्नादि काढ़ा के स्वास्थ्य उपयोग

    यह काढ़ा / क्वाथ सभी वात जनित विकारों में अत्यंत लाभ देता है | प्रकुपित वायु के कारण शरीर में होने वाली पीडाओं में इसका विशेष महत्व है | हाथ पैरों में दर्द, कमर दर्द, गठिया, एकांगवात, सर्वांगवात आदि दर्द में आराम दिलाता है |
    आमवात अर्थात गठिया रोग में इसका सेवन करने से त्रिदोष संतुलित होते है, बढ़ी हुई वायु साम्यावस्था में आती है एवं रोग में आराम मिलता है |
    इसके अलावा महिलाओं में गर्भविकार, योनी विकार एवं पुरुषों के वीर्य विकारों में भी इसका सेवन फायदेमंद रहता है |

    क्या है महारास्नादि काढ़ा के सेवन की विधि ?

    इसका सेवन 20 से 40 मिली. तक सुबह एवं शाम दो बार चिकित्सक के परामर्शानुसार किया जाता है | अनुपान स्वरुप शुंठी, योगराज, पिप्पली, अजमोदादी चूर्ण एवं एरंड तेल आदि का सेवन किया जाता है | कड़वाहट न सहन करने वालों को इसमें शक्कर मिलाकर सेवन करना चाहिए , लेकिन मधुमेह के रोगी को इससे परहेज करना चाहिए | अगर चिकित्सक के परामर्शानुसार सेवन किया जाये तो इसके कोई नुकसान नहीं होते |

      विशिष्ट परामर्श-


      संधिवात,कमरदर्द,गठिया, साईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है| औषधि से बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं| बड़े अस्पतालों के महंगे इलाज़ के बावजूद निराश रोगी इस औषधि से आरोग्य हुए हैं| त्वरित असर औषधि के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं|



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    कुमारी आसव के फायदे और उपयोग:Kumari asav ke fayde




    आयुर्वेद की यह औषधि आसव निर्माण विधि से तैयार की जाती है | इसका मुख्य घटक द्रव्य घृतकुमारी (ग्वारपाठा) है | घृतकुमारी मुख्य द्रव होने के कारण इसे कुमारी आसव नाम से भी जाना जाता है |

    अधिकतर लोग पूछते है कि कुमारी आसव किस काम में आती है तो यह पेट के सभी विकारों, महिलाओं की मासिक समस्या, प्रमेह, पेट के कीड़े एवं रक्तपित रोग में अत्यंत काम आती है |
    यह उत्तम पाचन गुणों से युक्त होती है | यकृत के रोग एवं तिल्ली की समस्या में यह बेजोड़ आयुर्वेदिक दवा साबित होती है | इसका निर्माण लगभग 47 औषध द्रवों के सहयोग से आयुर्वेद की आसव कल्पना के तहत निर्माण किया जाता है | बाजार में यह पतंजलि कुमार्यासव, बैद्यनाथ कुमारी आसव, डाबर कुमार्यासव आदि नामो से मिल जाती है | अस्थमा, मूत्र विकार, महिलाओं के प्रजनन विकार एवं पत्थरी की समस्या में भी इसका सेवन लाभदायक होता है |
    कुमार्यासव के घटक द्रव्य
    कुमारी आसव  को बनाने के लिए निम्न द्रव्यों की आवश्यकता होती है | यहाँ हमने इन सभी द्रवों की सूचि उपलब्ध करवाई है –
    कुमार्यासव के घटक द्रव्य
    घटक द्रव्य के नाममात्राघृतकुमारी स्वरस 12.288 लीटर
    गुड 4.800 किलो
    मधु 2.400 किलो
    लौह भस्म 2.400 किलो
    शुण्ठी 24 ग्राम
    पिप्पली 24 ग्राम
    मरिच (कालीमिर्च) 24 ग्राम
    लवंग (लौंग) 24 ग्राम
    दालचीनी 24 ग्राम
    इलायची 24 ग्राम
    तेजपात 24 ग्राम
    नागकेशर 24 ग्राम
    चित्रकमूल 24 ग्राम
    पिप्पलीमूल 24 ग्राम
    विडंग 24 ग्राम
    गजपिप्पली 24 ग्राम
    चव्य 24 ग्राम
    हपुषा 24 ग्राम
    धनियाँ 24 ग्राम
    सुपारी 24 ग्राम
    कुटकी 24 ग्राम
    नागरमोथा 24 ग्राम
    आमलकी 24 ग्राम
    हरीतकी 24 ग्राम
    विभिताकी 24 ग्राम
    रास्ना 24 ग्राम
    देवदारु 24 ग्राम
    हरिद्रा 24 ग्राम
    दारु हरिद्रा 24 ग्राम
    मुर्वा 24 ग्राम
    गुडूची 24 ग्राम
    मुलेठी 24 ग्राम
    दंतीमूल 24 ग्राम
    पुष्कर्मुल 24 ग्राम
    बलामूल 24 ग्राम
    अतिबला 24 ग्राम
    कौंच बीज 24 ग्राम
    गोक्षुर 24 ग्राम
    शतपुष्पा 24 ग्राम
    हिंगूपत्री 24 ग्राम
    अकरकरा 24 ग्राम
    उटीगण बीज 24 ग्राम
    श्वेत पुनर्नवा 24 ग्राम
    लालपुनर्नवा 24 ग्राम
    लोध्र त्वक 24 ग्राम
    स्वर्णमाक्षिक भस्म 24 ग्राम
    धातकीपुष्प 384 ग्राम
    कुमार्यासव बनाने की विधि
    कुमारी आसव को बनाने के लिए सबसे पहले घृतकुमारी स्वरस के साथ गुड एवं मधु (शहद) को मिलाकर संधान पात्र में डाल दिया जाता है | संधान पात्र में इन सभी को अच्छे से मिश्रित करने के बाद इसमें लौह भस्म और स्वर्णमाक्षिक भस्म को मिलाकर अच्छे से मिश्रित कर लिया जाता है |
    अब बाकी बचे सभी औषध द्रव्यों को कूटपीसकर यवकूट कर लिया जाता है | इस बाकी बचे औषधियों के यवकूट चूर्ण को संधान पात्र में डालकर फिर से अच्छे से मिश्रित किया जाता है |
    अब अंत में धातकीपुष्प को डालकर इस संधान पात्र के मुख को अच्छी तरह बंद करके निर्वात स्थान पर महीने भर के लिए रख दिया जाता है |
    महीने भर पश्चात संधान परिक्षण विधि से इसका परिक्षण किया जाता है | उचित संधान हो जाने के पश्चात इसे छान कर कांच की शीशियो में भरकर लेबल लगा दिया जाता है |
    इस प्रकार से कुमार्यासव का निर्माण होता है | आयुर्वेद की सभी आसव कल्पनाओं की औषधियों में प्राकृत एल्कोहोल होती है अत: इनका इस्तेमाल बराबर पानी मिलाकर करना चाहिए |
    कुमार्यासव / कुमारी आसव के फायदे 
    कुमारी आसव निम्न रोगों में लाभदायक होती है –
    पाचन सम्बन्धी सभी विकारों में इसका प्रयोग किया जा सकता है ; क्योंकि यह उत्तम पाचक गुणों से युक्त होती है |
    पेट का फूलना, पेट के कीड़े और पेट दर्द में इसका प्रयोग लाभ देता है |
    महिलाओं के प्रजनन सम्बन्धी विकारों में इसका उपयोग किया जाता है |
    महिलाओं के कष्टार्तव (मासिक धर्म में रूकावट) के रोग में यह फायदेमंद औषधि साबित होती है |
    जिन महिलाओं का मासिक धर्म बिलकुल अल्प या बंद हो गया हो उनको भी इसके उपयोग से लाभ मिलता है |
    घृतकुमारी मुख्य द्रव्य होने के कारण यह उत्तम बल वर्द्धक एवं रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने वाला रसायन है |
    शरीर के अंदरूनी घावों को ठीक करने का कार्य करता है |
    कमजोर जठराग्नि को मजबूत करके अरुचि एवं अजीर्ण जैसी समस्या में लाभ देता है |
    श्वास एवं क्षय रोग में भी लाभदायक आयुर्वेदिक सिरप है |
    अपस्मार जैसे रोग को दूर करने में फायदेमंद है |
    मूत्र विकारों का शमन करती है |
    अश्मरी (पत्थरी) में उपयोगी दवा है |
    उचित सेवन से वीर्य विकारों का भी शमन करती है |
    यकृत के रोग एवं तिल्ली की  वृद्धि में भी फायदेमंद औषधि है |
    रक्तपित की समस्या में फायदेमंद है |
    कुमार्यासव सेवन की विधि
    इसका सेवन 20 से 30 ml चिकित्सक के परामर्शनुसार सुबह एवं सायं को करना चाहिए | हमेशां बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के पश्चात इसका सेवन किया जाता है |
    अगर उचित मात्रा में सेवन किया जाए तो इस आयुर्वेदिक औषधि के कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है | रोगानुसार सेवन के लिए चिकित्सक से परामर्श आवश्यक है |

    विशिष्ट परामर्श-




    यकृत,प्लीहा,आंतों के रोगों मे अचूक असर हर्बल औषधि "उदर रोग हर्बल " चिकित्सकीय  गुणों  के लिए प्रसिद्ध है|पेट के रोग,लीवर ,तिल्ली की बीमारियाँ ,पीलिया रोग,कब्ज  और गैस होना,सायटिका रोग ,मोटापा,भूख न लगना,मिचली होना ,जी घबराना ज्यादा शराब पीने से लीवर खराब होना इत्यादि रोगों मे प्रभावशाली  है|
    बड़े अस्पतालों के महंगे इलाज के बाद भी  निराश रोगी  इस औषधि से ठीक हुए हैं| औषधि के लिए वैध्य दामोदर से 9826795656 पर संपर्क करें|
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    अशोकारिष्ट के फायदे:Ashokarisht ke fayde





    अशोकारिष्ट (जिसे विथानिया सोम्निफेरा के नाम से भी जाना जाता है) एक आयुर्वेदिक दवा है जिसका उपयोग व्यापक रूप से कई स्त्री रोगों और मासिक धर्म की समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है। इसमें लगभग 5% से 10% अल्कोहल होती है जो इसका एक्टिव कंपाउंड है। अशोकारिष्ट मुख्य रूप से ओवेरी के रोगों और गर्भाशय के विकारों में फायदा करता है। यह अशोक, मुस्ता, विभिताकी, जीरका, वासा, धाताकी आदि औषधीय चीज़ों से बना है जो मासिक धर्म के समय के दर्द को कम करने में मदद करते हैं।
    अशोकारिष्ट के स्वास्थ्य लाभ
    यह महिला प्रजनन प्रणाली पर केंद्रित है। अशोकारिष्ट ओवरी के रोगों और गर्भाशय के विकारों में फायदा करता है। यह शरीर में हार्मोन के स्तर को संतुलित करता है| इसके कई अन्य लाभ हैं:
    श्रोणि की सूजन की बीमारियां
    अशोकारिष्ट  श्रोणि की सूजन संबंधी बीमारियों का प्रबंधन करने में मदद करता है। इसमें मौजूद जड़ी-बूटियां एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रभाव पैदा करती हैं जो गर्भाशय, अंडाशय और अन्य प्रजनन अंगों को नुकसान से बचाने में मदद करती है।
    मेनोरेजिया, मेट्रोरेजिया और मेनोमेट्रोरेजिया में एड्स
    मेनोरेजिया असामान्य रूप से भारी या लंबे समय तक मासिक धर्म को संदर्भित करता है।
    मेट्रोरेजिया लंबे समय तक और गर्भाशय के अत्यधिक रक्तस्राव को संदर्भित करता है जो मासिक धर्म से शुरू नहीं होता। यह आम तौर पर अन्य गर्भाशय रोगों का सूचक है।
    मेनोमेट्रोरेजिया, मेनोरेजिया और मेट्रोरेजिया का मेल है। इस मामले में, मासिक धर्म की परवाह किए बिना भारी रक्तस्राव होता है।
    दर्दनाक पीरियड्स में मदद करता है
    जब अन्य जड़ी बूटियों के साथ मिलाया जाता है तो यह गर्भाशय के कामों में सुधार करता है और गर्भाशय को ताकत देने वाले संकुचन को नियंत्रित करता है। यह प्रीमेंस्ट्रुअल सिरदर्द, कमर दर्द और मतली को भी कम करता है। इसलिए यह दर्दनाक पीरियड्स के दौरान अशोकारिष्ट लाभ करता है।
    पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम
    इस मामले में अशोकारिष्ट का उपयोग बहुत अलग है, इसलिए इसका उपयोग सावधानी से किया जाना चाहिए।
    ऑस्टियोपोरोसिस
    मेनोपाज के दौरान अशोकारिष्ट लाभ करता है। यह हड्डियों के खनिज के नुकसान को रोकने में मदद करता है जो मेनोपाज के दौरान शुरू होता है।
    स्वास्थ्य में सुधार करे
    अशोकारिष्ट स्वास्थ्य की स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अवयवों में आवश्यक तत्व होते हैं जैसे अजाजी, गुड्डा, चंदना, अमरस्थी आदि आपको सकारात्मक स्वास्थ्य प्राप्त करने में मदद करते हैं।
    फोस्टर स्टैमिना और थकान को खत्म करता है
    इसके 100% आयुर्वेदिक फार्मूला की अच्छाई महिलाओं में सहनशक्ति के स्तर को उत्तेजित करती है।
    पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है
    अशोकारिष्ट पाचन तंत्र को बढ़ाने में सहायक है। यह मेटाबोलिज्म में सुधार करता है और भूख की कमी से लड़ने में योगदान देता है।
    अशोकारिष्ट के उपयोग
    अशोकारिष्ट स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का समाधान है। सबसे अच्छे ज्ञात उपयोगों में से कुछ नीचे बताये गये हैं:
    स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का इलाज: अशोकारिष्ट मासिक धर्म के दर्द, भारी पीरियड्स, बुखार, रक्तस्राव, अपच जैसी कुछ स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों को ठीक करने में सहायक है।
    पेट दर्द से राहत दिलाये: यह महिलाओं के लिए परेशान दिनों में दर्द को दूर करने के लिए एक बेहतरीन स्रोत के रूप में काम करता है।
    महिलाओं के अनुकूल जड़ी-बूटी: अशोकारिष्ट को महिलाओं के अनुकूल जड़ी-बूटी से बनाया जाता है जिसे कई स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के लिए प्रयोग किया जाता है।
    मल त्याग में सुधार: अशोकारिष्ट फाइबर के एक महान स्रोत के रूप में काम करता है जो बदले में मल त्याग को आसान बनाता है।
    इम्युनिटी को बढ़ाता है: यह प्रतिरक्षा में सुधार करता है और मलेरिया, गठिया के दर्द, बैक्टीरियल इन्फेक्शन, मधुमेह, दस्त जैसी बीमारियों को रोकने के लिए उपयोगी है।
    अल्सर से बचाव: अशोकारिष्ट प्रकृति में एंटी-इंफ्लेमेटरी है जो अल्सर की घटना के खतरे को कम करने में मदद करता है।
    अशोकारिष्ट का उपयोग कैसे करें?
    ऐसी कई चीजें हैं जो अशोकारिष्ट के सेवन से पहले ध्यान में रखनी चाहिए। कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब नीचे दिए गए हैं:
    क्या अशोकारिष्ट का सेवन भोजन से पहले या बाद में किया जा सकता है?
    अशोकारिष्ट का सेवन हमेशा भोजन के बाद करना चाहिए। खाली पेट इसका सेवन करना प्रभावी नहीं है।
    क्या अशोकारिष्ट का सेवन खाली पेट किया जा सकता है?
    आयुर्वेदिक डॉक्टर बताते हैं कि अशोकारिष्ट का सेवन भोजन के बाद करना चाहिए। इसे खाली पेट लेने से फायदा नहीं होता।
    क्या अशोकरिष्ट को पानी के साथ लिया जा सकता है?
    हाँ, इसे लेने का यह सबसे अच्छा तरीका है। इसे प्रभावी बनाने के लिए चाशनी को बराबर मात्रा में पानी में मिलाना होगा।
    खुराक
    आयु खुराक समय
    वयस्क 5 से 10 मि.ली., दिन में एक या दो बार भोजन के बाद बराबर मात्रा में
    पानी के साथ
    बच्चे (5-10 वर्ष) कम खुराक भोजन के बाद
    बच्चे (5 वर्ष से कम) उचित नहीं –
    महत्वपूर्ण टिप: चिकित्सा की सलाह से दृढ़ता से यह सुझाव दिया जाता है क्योंकि अशोकारिष्ट सिरप की खुराक और मेल विभिन्न चिकित्सा चिंताओं में अलग होता है।
    अशोकारिष्ट के साइड इफेक्ट्स
    एसिडिटी और सीने की जलन का कारण हो सकता है:
    यह अशोकारिष्ट में अल्कोहल और शुगर की उपस्थिति के कारण होता है।
    अशोकारिष्ट का उपयोग करने से भारी मासिक रक्तस्राव होता है लेकिन कम नहीं होता।
    पीरियड्स में देरी:
    यदि गलत तरीके से इसे सेवन किया जाता है तो यह पीरियड्स में लंबे समय तक देरी हो सकती है।
    यह पीरियड्स के समय मासिक धर्म के रक्त प्रवाह को कम कर सकता है।
    अशोकरिष्ट बंद हुई फैलोपियन ट्यूब के इलाज के लिए उपयोगी नहीं है।
    मधुमेह के रोगियों के लिए उपयुक्त नहीं:
    इसमें गुड़ होता है इसलिए यह मधुमेह के रोगी के स्वास्थ्य को खतरे में डालता है|
    गर्भावस्था के दौरान नहीं लिया जाना चाहिए:
    यह ज्यादा गर्मी, निर्जलीकरण और बेहोशी का कारण बनता है जो गर्भावस्था के दौरान गंभीर परिणाम होता है।
    लंबे समय तक मासिक चक्र के अनियमित होने की स्थिति में इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
    स्तनपान कराने के दौरान कम उपयोग किया जाना चाहिए। स्तनपान के दौरान इसकी ज्यादा खुराक लेना शिशु के लिए स्वस्थ नहीं होता।
    उच्च रक्तचाप का कारण हो सकता है:
    यह दिल की धड़कन को बढ़ा सकता है और खून की नलियों को तंग कर सकता है|
    उल्टी या मतली का कारण हो सकता है:
    अनुचित मात्रा में अशोकारिष्ट का सेवन करने के कारण ऐसा हो सकता है।
    अशोकारिष्ट के साइड इफेक्ट्स
    एसिडिटी और सीने की जलन का कारण हो सकता है:
    यह अशोकारिष्ट में अल्कोहल और शुगर की उपस्थिति के कारण होता है।
    अशोकारिष्ट का उपयोग करने से भारी मासिक रक्तस्राव होता है लेकिन कम नहीं होता।
    पीरियड्स में देरी:
    यदि गलत तरीके से इसे सेवन किया जाता है तो यह पीरियड्स में लंबे समय तक देरी हो सकती है।
    यह पीरियड्स के समय मासिक धर्म के रक्त प्रवाह को कम कर सकता है।
    अशोकरिष्ट बंद हुई फैलोपियन ट्यूब के इलाज के लिए उपयोगी नहीं है।
    मधुमेह के रोगियों के लिए उपयुक्त नहीं:
    इसमें गुड़ होता है इसलिए यह मधुमेह के रोगी के स्वास्थ्य को खतरे में डालता है|
    गर्भावस्था के दौरान नहीं लिया जाना चाहिए:
    यह ज्यादा गर्मी, निर्जलीकरण और बेहोशी का कारण बनता है जो गर्भावस्था के दौरान गंभीर परिणाम होता है।
    लंबे समय तक मासिक चक्र के अनियमित होने की स्थिति में इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
    स्तनपान कराने के दौरान कम उपयोग किया जाना चाहिए। स्तनपान के दौरान इसकी ज्यादा खुराक लेना शिशु के लिए स्वस्थ नहीं होता।
    उच्च रक्तचाप का कारण हो सकता है:
    यह दिल की धड़कन को बढ़ा सकता है और खून की नलियों को तंग कर सकता है|
    उल्टी या मतली का कारण हो सकता है:
    अनुचित मात्रा में अशोकारिष्ट का सेवन करने के कारण ऐसा हो सकता है।
    अशोकारिष्ट से बचाव और चेतावनी
    क्या ड्राइविंग से पहले अशोकारिष्ट का सेवन किया जा सकता है?
    हाँ, ड्राइविंग से पहले इसका सेवन किया जा सकता है। लेकिन किसी भी नेगेटिव नतीजे को रोकने के लिए पानी के साथ इसे बराबर मात्रा में मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए।
    क्या अशोकारिष्ट का सेवन शराब के साथ किया जा सकता है?
    अशोकारिष्ट में 9% से 10% अल्कोहल होता है जो जड़ी-बूटियों के सक्रिय तत्वों को घुलने के लिए एक माध्यम के रूप में काम करता है। दवा के रूप में इसका सेवन करना काफी सुरक्षित है।
    क्या अशोकरिष्ट नशे में हो सकता है?
    नहीं, यह प्राकृतिक तत्वों द्वारा बनाई गई है और इससे आपको नशे की लत लगने की संभावना नहीं है। यह बेहद कारगर है|
    क्या अशोकरिष्ट मदहोश कर सकता है?
    नहीं, अशोकारिष्ट के सेवन का एक फायदा यह है कि यह महिला को ऊर्जावान बनाता है। यह सहनशक्ति को बढ़ावा देने और थकान को खत्म करने के लिए जाना जाता है।
    क्या अशोकारिष्ट को ज्यादा मात्रा में ले सकते हैं?
    नहीं, ज्यादा मात्रा में इसका सेवन करना समझदारी नहीं है। एक वयस्क को अच्छे परिणाम पाने के लिए भोजन के बाद 5 मि.ली. से 10 मि.ली. अशोकारिष्ट का सेवन करना चाहिए।
    अशोकारिष्ट के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
    क्या अशोकारिष्ट पीसीओडी के लक्षणों को कम कर सकता है?
    पीसीओ / पीसीओडी के लक्षणों को कम करने में अशोकारिष्ट अकेले प्रभावी नहीं है। चंद्रप्रभा वटी, सुकुमारम कषायम जैसे सहायक उपायों का उपयोग अशोकारिष्ट के साथ करके इसके प्रभाव को कम किया जाता है। यदि चन्द्रप्रभा वटी के साथ लिया जाए तो अशोकारिष्ट हार्मोन के स्तर को सामान्य करने में मदद करता है और पीसीओएस लक्षणों का इलाज करता है। इसे अपने आहार में शामिल करने से पहले हमेशा डॉक्टर से सलाह लें।
    क्या मासिक धर्म की ऐंठन के लिए कोई प्राकृतिक उपाय काम करता है?
    हां, मासिक धर्म ऐंठन के लिए कई प्राकृतिक उपचार वास्तव में चमत्कार करते हैं। जबकि आप कुछ सहायक उपायों के साथ-साथ अशोकारिष्ट का उपयोग करते हैं तो इसके प्रभावों और उपयोग के बारे में जानने के लिए हमेशा आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से सलाह लें|
    क्या आयुर्वेद में एंडोमेट्रियोसिस के लिए कोई उपाय है?
    जी हां, आयुर्वेद में एंडोमेट्रियोसिस के कई उपाय हैं। अशोकारिष्ट उन प्रभावी प्राकृतिक उपचारों में से एक है जिनका सही मेल में लिया जाए तो अन्य उपचारों के साथ सेवन किया जा सकता है।
    नियमित पीरियड के चक्र को बनाए रखने के लिए सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवाएं कौन सी हैं?
    नियमित पीरियड के चक्र को बनाए रखने वाली कुछ सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक दवाएं हैं:
    हींग (पीरियड को सुचारू करे)
    हिना (दर्दनाक माहवारी के लिए और भारी फ्लो को कम करने के लिए)
    कैस्टर ऑयल (उन लोगों के लिए प्रभावी है जो मासिक धर्म के दौरान कंजेस्टिव दर्द का अनुभव करती हैं)
    अश्वगंधा (मासिक धर्म के दौरान भारी प्रवाह को कम करने के लिए)
    शराब (मासिक धर्म के दौरान भारी प्रवाह को कम करने के लिए)
    अशोकरिष्ट सुकुमार घृतम (प्रजनन क्षमता में सुधार) जैसे सहायक उपायों के साथ|
    पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम के लिए आयुर्वेद पर आधारित सबसे अच्छा उपचार क्या है?
    आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और उनके योगों से पीसीओएस से जुड़ी समस्याओं को प्रभावी ढंग से कम किया जाता है। वे प्रजनन प्रणाली को मजबूत करने में भी मदद करते हैं। जंक फूड, शर्करा वाले उत्पाद, रेड मीट, तले हुए भोजन और आलू से बचना सबसे अच्छा है। हर दिन कम मात्रा में शिलाजीत, शतावरी, गुडूची, नीम, आंवला, लोधरा, दालचीनी, मेथी और हरितकी जैसी जड़ी-बूटियों का सेवन करें। पीसीओ के लिए अशोकारिष्ट एक प्रभावी इलाज है।
    क्या अशोकरिष्ट वजन कम करने में मदद करता है?
    इसमें आयुर्वेदिक तत्व होते हैं जो डिटॉक्सिफिकेशन को बढ़ाते हैं जिससे वजन कम करने में मदद मिलती है। लेकिन सही मात्रा में इसका सेवन करने में सावधानी बरतनी चाहिए। अच्छे परिणाम पाने के लिए उपयुक्त मात्रा की जाँच करने के लिए अपने चिकित्सक से सलाह करें।
    क्या अशोकरिष्ट वास्तव में फायदेमंद है?
    अशोकारिष्ट  एक आयुर्वेदिक दवा है जो मासिक धर्म की चिंताओं से संबंधित है। इंफ्लेमेटरी बीमारियों, कैंसर, दस्त, मलेरिया, मधुमेह, बवासीर, तेज बुखार जैसी अन्य बीमारियों को ठीक करने में इसके तत्वों की प्राकृतिक संरचना बेहद प्रभावी है।
    क्या पीरियड्स को नियमित करने के लिए अशोकरिष्ट अच्छा है?
    हाँ। डॉक्टरों का सुझाव है कि 1 से 2 महीने की अवधि के लिए अशोकारिष्ट का सेवन करने से एक महिला को अपने पीरियड्स को विनियमित करने में मदद मिलती है।
    यह किससे बना है?
    अशोकारिष्ट अशोक, धाताकी, अमलाकी, गुडा, शुंती, जेरका, चंदना, मुस्ता और कषायम से बना है। ये बहुत उपयोगी जड़ी-बूटियाँ हैं जो हमारे स्वास्थ्य को कई तरीकों से लाभ पहुँचाती हैं।
    इसके भंडारण की जरूरतें क्या हैं?
    इसे एक ठंडी और सूखी जगह पर रखना चाहिए। एक बार खोलने के बाद इसे बच्चों की पहुंच से दूर रखा जाना चाहिए।
    अपनी स्थिति में सुधार देखने से पहले मुझे कितने समय तक इसका उपयोग करने की जरूरत होगी?
    4 से 6 सप्ताह के समय के लिए अशोकारिष्ट का उपयोग करने से परिणाम दिखने शुरू हो जाते हैं| यह पूरी प्रणाली को सुव्यवस्थित करने में बहुत प्रभावी है
    दिन में कितनी बार इसका उपयोग करने की जरूरत है?
    इसे 5 मि.ली. और 10 मि.ली. के बीच की मात्रा में दिन में एक या दो बार लेना चाहिए। पानी के साथ बराबर मात्रा में इसका सेवन करना महत्वपूर्ण है।
    क्या स्तनपान कराने पर कोई प्रभाव पड़ता है?
    नहीं। इससे स्तनपान कराने पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। इसमें कैल्शियम होता है जो हड्डियों और जोड़ों के विकास को बढ़ावा देता है।
    क्या यह बच्चों के लिए सुरक्षित है?
    अशोकारिष्ट बच्चों के लिए सुरक्षित है बशर्ते इसका सेवन तय की गयी मात्रा में किया जाए। लेकिन यह 5 साल से कम उम्र के बच्चों को नहीं दिया जाना चाहिए।
    क्या गर्भावस्था पर इसका कोई प्रभाव पड़ता है?
    हाँ, यह हार्मोन के स्तर पर प्रभाव डाल सकता है जो सीधे गर्भवती महिला को प्रभावित कर सकता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।
    क्या इसमें चीनी होती है?
    इसमें चीनी और गुड़ के साथ-साथ अन्य हर्बल तत्व भी होते हैं। इसमें चीनी की उपस्थिति मस्तिष्क के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करती है।

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