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पित्तपापड़ा (गाजर घास)के औषधीय गुण और उपयोग





पित्तपापड़ा को सर्दियों में गेंहू और चने आदि के खेतों में आसानी से देखा जा सकता है | हमारे देश में इसे अलग – अलग प्रान्तों में अलग – अलग नामो से पुकारा जाता है | संस्कृत में इसे पर्पट , पांशु एवं कवच वाचक आदि नामो से पुकारा जाता है |
राजस्थान , हरियाणा और पंजाब में इसे गजरा घास या गाजर घास आदि नामों से जाना जाता है | हिंदी में इसे पितपापड़ा , शाहतरा एवं धमगजरा आदि कहा जाता है |


गुण – धर्म एवं रोग प्रभाव

पित्तपापड़ा का रस कटु एवं तिक्त होता है | गुणों में यह लघु एवं इसका वीर्य शीत होता है | पचने के बाद इसका विपाक कटु प्राप्त होता है | यह कफ एवं पित का शमन करने में कारगर होता है | सीके साथ ही मूत्रल, रक्तशोधन, रक्तपित शामक, दाहशामक, यकृदूतेजक एवं कामला, मूत्रकृच्छ, भ्रम और मूर्च्छा जैसी समस्याओं में लाभकारी होता है |
दोषों के हरण के लिए इसके पंचाग का इस्तेमाल किया जाता है | आयुर्वेद में इसके प्रयोग से षडंगपानीय, पर्पटादी क्वाथ , पञ्चतिक्त घृत आदि औषधियां तैयार की जाती है |
रक्तशोधक एवं टोक्सिन नाशक
पित्तपापड़ा रक्तशोधक होता है | यह दूषित रक्त हो शुद्ध करता है एवं शरीर से टोक्सिन को बाहर निकालता है | अंग्रेजी दवाइयों के इस्तेमाल से होने वाले साइड इफेक्ट्स को दूर करने के लिए पापड़ा का प्रयोग करना चाहिए | इसके इस्तेमाल से दवाइयों के गंभीर साइड इफेक्ट्स को भी कम किया जा सकता है |
ताजे पित्तपापड़ा को कुचल कर इसका दो चम्मच रस निकाल ले और कुच्छ दिनों तक नियमित सेवन करे , इससे रक्त शुद्ध होता है एवं साथ ही शरीर से टोक्सिन भी बाहर निकलते है | दवाइयों के साइड इफेक्ट्स में भी इसके रस का सेवन करना चाहिए |
पेट के कीड़े
पेट के कीड़ों में भी यह चमत्कारिक लाभ देता है | अगर पेट में कीड़े पड़ गए हो तो पितपापड़ा के साथ वाय – विडंग को मिलाकर इनका काढ़ा तैयार कर ले | इस काढ़े के सेवन से जल्द ही पेट के कीड़े नष्ट होने लगते है |भारत में यह 2600 मी की ऊँचाई तक पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड आदि प्रान्तों में गेहूँ के खेतों में पाया जाता है। चरक-संहिता के तृष्णानिग्रहण दशेमानि में इसका उल्लेख है तथा ज्वर, रक्तपित्त, दाह, कुष्ठ, मदात्यय, ग्रहण, पाण्डु, अतिसार आदि रोगों के प्रयोगों में इसकी योजना की गई है। सुश्रुत में भी पित्त प्रधान अतिसार की चिकित्सा में इसका प्रयोग किया गया है। पर्पट के संदर्भ में कहा गया है कि – एक पर्पटक श्रेष्ठ पित्त ज्वर विनाशन। अर्थात् पर्पट पित्तज्वर की श्रेष्ठ औषधि है।
यह 5-25 सेमी ऊँचा, हरित वर्ण का, चमकीले, कोमल शाखाओं से युक्त, वर्षायु शाकीय पौधा होता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
पर्पट कटु, तिक्त, शीत, लघु; कफपित्तशामक तथा वातकारक होता है।
यह संग्राही, रुचिकारक, वर्ण्य, अग्निदीपक तथा तृष्णाशामक होता है।
पर्पट रक्तपित्त, भम, तृष्णा, ज्वर, दाह, अरुचि, ग्लानि, मद, हृद्रोग, भम, अतिसार, कुष्ठ तथा कण्डूनाशक होता है।
लाल पुष्प वाला पर्पट अतिसार तथा ज्वरशामक होता है।
पर्पट का शाक संग्राही, तिक्त, कटु, शीत, वातकारक, शूल, ज्वर, तृष्णाशामक तथा कफपित्त शामक होता है।
इसमें आक्षेपरोधी प्रभाव दृष्टिगत होता है।



प्रयोग मात्रा एवं विधि

पर्पट स्वरस का नेत्रों में अंजन करने से नेत्र के विकारों का शमन होता है।
पर्पट का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुख दौर्गन्ध्य तथा दंतशूल आदि विकारों का शमन होता है।
गण्डमाला-पर्पट पञ्चाङ्ग को पीसकर गले में लगाने से गण्डमाला (गले की गाँठ) में लाभ होता है।
कास-10-20 मिली पर्पट क्वाथ को पीने से दोषों का पाचन होकर विबन्ध, पित्तज कास तथा प्रतिश्याय (जुकाम) में लाभ होता है।
ज्वर में पितपापड़ा का उपयोग
गर्मी के कारण बुखार हो तो पित्तपापड़ा , गिलोय एवं तुलसी को मिलाकर इसका काढा बना ले | गर्मी जन्य बुखार में लाभ मिलेगा |
पितज्र में पापड़ा, आंवला और गिलोय इन तीनो का क्वाथ तैयार कर के इस्तेमा करने से लाभ मिलेगा |
अगर बुखार सर्दी के कारण है तो पित्तपापड़ा के साथ कालीमिर्च मिलकर इसका काढ़ा तैयार करे जल्द ही सर्दी के कारण आई बुखार उतर जायेगी |


तृष्णा

बार – बार प्यास लगती अर्थात तृष्णा से पीड़ित हो तो पित्तपापड़ा, रक्त चन्दन, नागरमोथा और खस इन तीनो का चूर्ण बना ले और इसमें मिश्री मिलाकर इसकी चटनी तैयार करले | इसका इस्तेमाल करने से तृष्णा खत्म होती है |
गर्भावस्था जन्य विकार
पित्तपापड़ा, अतिस, सुगंधबाला, धनिया, गिलोय, नागरमोथा, खस, जवासा, लज्जालु, रक्तचन्दन और खिरैटी – इन सबका काढ़ा बनाकर पीने से गर्भावस्था जन्य सभी विकार दूर होते है |छर्दि (उलटी)-
10-20 मिली पर्पट क्वाथ में मधु मिलाकर सेवन करने से उल्टी बंद होती है।
अतिसार-समभाग नागरमोथा तथा पित्तपापड़ा के 50 ग्राम चूर्ण को 3 लीटर जल में, आधा शेष रहने तक पका कर शीतल कर 10-20 मिली मात्रा में पीने से तथा भोजन में प्रयोग करने से आमपाचन होता है तथा अतिसार का शमन होता है।
कृमिरोग-
पित्तपापड़ा तथा विडंग का क्वाथ बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पिलाने से उदरकृमि नष्ट होते हैं।
यकृत्-विकार-
2-4 ग्राम पर्पट पञ्चाङ्ग चूर्ण के सेवन से यकृत् की कार्य क्षमता बढ़ती है तथा खून की कमी आदि व्याधियों का शमन होता है।
मूत्रकृच्छ्र-
10-20 मिली पञ्चाङ्ग क्वाथ का सेवन करने से मूत्र की वृद्धि होकर मूत्र मार्गगत विकृति तथा मूत्र त्याग के समय होने वाले कष्ट का शमन होता है।
फिरंग-
फिरंगजन्य व्रण पर पर्पट-स्वरस का लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता है।
वातरक्त-
10-20 मिली पर्पट पञ्चाङ्ग क्वाथ का सेवन करने से वातरक्त (गठिया) में लाभ होता है।
इन्फेक्शन अर्थात संक्रमण
पित्तपापड़ा सभी प्रकार के इन्फेक्शन को ठीक करता है | जैसे अगर शरीर के अन्दर कोई इन्फेक्शन है या कोई घाव है तो इसका प्रयोग क्वाथ के रूप में करे | लीवर, किडनी, फेफड़े आदि के संक्रमण एवं आंतरिक घाव को भरने में भी यह चमत्कारिक परिणाम देता है | इन सभी में पित्तपापड़ा के काढ़ेका इस्तेमाल करना चाहिए |
एसिडिटी जैसी समस्याओं में ताजे धमगजरा को दांतों से कुचल कर खाने से तुरंत आराम मिलता है , साथ ही दांतों एवं मसूड़ों के सुजन में भी आराम मिलता है |हथेली की दाह-
5 मिली पर्पट पत्र-स्वरस का सेवन करने से हथेली की जलन मिटती है।
कण्डू (खुजली)-
पित्तपापड़ा का अवलेह बनाकर 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से कण्डू का शमन होता है।
मदात्यय-
नागरमोथा तथा पित्तपापड़ा का षडङ्गपानीयविधि से बनाए गए क्वाथ को 10-20 मिली मात्रा में पीने से मदात्यय (अधिक मात्रा में मदिरापान से उत्पन्न रोग) का शमन होता है।
अपस्मार-
10-20 मिली पर्पट-क्वाथ का सेवन करने से अपस्मार जन्य आक्षेपों, प्रमेह, पित्तज्ज्वर का शमन होता है।
ज्वर-पित्तपापड़ा के 10-20 मिली क्वाथ में 500 मिग्रा सोंठ चूर्ण मिलाकर अथवा पित्तपापड़ा तथा अगस्त पुष्प के 10-20 मिली क्वाथ में 500 मिग्रा सोंठ मिला कर सेवन करने से ज्वर का शमन होता है।
समभाग नागरमोथा, पित्तपापड़ा, खस, लाल चंदन, सुंधबाला तथा सोंठ चूर्ण को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनायें, 10-20 मिली क्वाथ को पीने से ज्वर तथा ज्वर के कारण उत्पन्न तृष्णा, दाह तथा स्वेदाधिक्य का शमन होता है।


* समभाग गुडूची, आँवला तथा पित्तपापड़ा अथवा केवल पित्तपापड़ा से निर्मित 10-20 मिली क्वाथ का सेवन करने से दाह तथा भमयुक्त पित्तज्वर का शमन होता है।

*समभाग गुडूची, हरीतकी तथा पर्पट का क्वाथ बनाकर 20-30 मिली मात्रा में सेवन करने से पित्तज्वर में लाभ होता है।
* पित्तपापड़ा से निर्मित क्वाथ (10-20 मिली) अथवा पित्तपापड़ा, लाल चंदन, सुंधबाला तथा सोंठ का क्वाथ (10-20 मिली) अथवा चंदन, खस, सुंधबालायुक्त तथा पित्तपापड़ा से निर्मित क्वाथ (10-20 मिली) का सेवन करने से पित्तजज्वर का शमन होता है।
* समभाग द्राक्षा, पित्तपापड़ा, अमलतास, कुटकी, नागरमोथा तथा हरीतकी का क्वाथ बनाकर (10-30 मिली क्वाथ) सेवन करने से मल का भेदन होता है तथा शोष, स्वेदाधिक्य तृष्णा, रक्तपित्त, भान्ति एवं वेदनायुक्त पित्तज्वर में लाभ होता है।
* समभाग गुडूची, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, चिरायता तथा सोंठ का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से वात-पित्तज्वर का शमन होता है।
* जवासा, मेंहदी, चिरायता, कुटकी, वासा तथा पित्तपापड़ा के 10-20 मिली क्वाथ में शर्करा मिला कर पीने से तृष्णा, दाह तथा रक्तपित्त युक्त पित्तज्वर में लाभ प्राप्त होता है।
* समभाग खस, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, सोंठ तथा श्रीखण्ड चंदन से निर्मित क्वाथ का सेवन करने से पित्त ज्वर का शमन होता है।
*पर्पट, वासा, कुटकी, चिरायता, जवासा तथा प्रियंगु आदि द्रव्यों से निर्मित (10-20 मिली) क्वाथ में एक तोला शर्करा मिलाकर पान करने से अत्यधिक तृष्णा, दाह तथा रक्तपित्त युक्त ज्वर में लाभ होता है।
*पर्पट, नागरमोथा, गुडूची, शुण्ठी तथा चिरायता इन द्रव्यों का क्वाथ बनाकर (10-20 मिली क्वाथ) सेवन करने से वातपित्तजयुक्त ज्वर में लाभ होता है।
सर्वांग शूल-

1 ग्राम बीज चूर्ण अथवा 10-20 मिली क्वाथ को पीने से सर्वांङ्गशूल (वेदना) का शमन होता है।
पित्तपापड़ा के (10 मिली) स्वरस का शर्बत बनाकर पिलाने से दाह का शमन होता है।
*ताजे पर्पट के पत्र-स्वरस को बर्रे और मधुमक्खी के डंक स्थान पर लगाने से वेदना, दाह आदि का शमन होता है।
प्रयोज्याङ्ग : पञ्चाङ्ग।
मात्रा : क्वाथ-10-30 मिली, स्वरस-5-10 मिली, चूर्ण-1-3 ग्राम, कल्क-2-4 ग्राम या चिकित्सक के परामर्शानुसार।


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  • लंबाई ,हाईट बढ़ाने के अचूक उपाय
  • टेस्टेटरोन याने मर्दानगी बढ़ाने के उपाय




  • छाती (सीने) मे दर्द के प्रभावी उपचार


    सीने में दर्द या हम कहें छाती में होने वाला दर्द आज के समय में एक आम समस्या है। छाती में दर्द होते ही आदमी को इमरजेंसी डिपार्टमेंट में जाना पड़ता है। अक्सर सीने में दर्द शरीर में रक्त का संचार कम होने के कारणहोता है। बहुत से लोग चेस्ट में दर्द होने से इतने चिंतित रहते हैं कि उन्हें लगता है की यह हार्ट अटैक से रिलेटेड प्रॉब्लम तो नहीं है। लेकिन यह समस्या कुछ समय के लिए होती है जब तक उस जगह से गैस बाहर नहीं निकल जाती।
    सीने में दर्द की बात आते ही हम दिल के दौरे की बात सोचने लगते हैं, मगर सीने में दर्द कई कारणों से हो सकता है। फेफड़े, मांसपेशियाँ, पसली, या नसों में भी कोई समस्या उत्पन्न होने पर सीने में दर्द होता है।
    किसी-किसी परिस्थिति में यह दर्द भयानक रूप धारण कर लेता है जो मृत्यु तक का कारण बन जाता है। लेकिन एक बात ध्यान में रखें कि खुद ही रोग की पहचान न करें और सीने में दर्द को नजरअंदाज न करें, तुरन्त चिकित्सक के पास जायें।
    वैसे जैसे ही आपको सीने में दर्द का अहसास हो तो तुरंत डॉक्टर के पास जाना जरूर है। वैसे आज हम आपको सीने में दर्द होने के कारण, लक्षण और छाती में दर्द का इलाज के घरेलू उपचार और देसी आयुर्वेदिक नुस्खे बताएँगे। आयुर्वेदिक दवा को लेकर आप अपने छाती के दर्द यूँ ही दूर कर सकते हैं। पुराने समय से ही सीने में दर्द का घरेलू उपाय करते आया जा रहा है।
    कारण
    जब धमनियों में रक्त का थक्का जमने लगता है तब साँस लेने में मुश्किल होने लगती है और सीने में दर्द शुरू हो जाता है। अगर परिस्थिति को संभाला नहीं गया तो मृत्यु तक हो सकती है। एनजाइना का दर्द साधारणतः आनुवंशिकता के कारण, मधुमेह, हाई कोलेस्ट्रॉल, पहले से हृदय संबंधित रोग से ग्रस्त होने के कारण होता है।हर व्यक्ति को सीने में दर्द होने के कारण अलग-अलग हो सकते हैं। किसी को चेस्ट के लेफ्ट साइड में दर्द होता है तो किसी को चेस्ट के राइट साइड में दर्द। इसके अलावा, किसी को यह दर्द तेज और ज्यादा देर के लिए हो सकता है, तो किसी को यह दर्द हल्का और कम समय के लिए हो सकता है।


    दिल संबंधी कारण

    हार्ट अटैक।
    ह्रदय की रक्त वाहिकाओं के अवरुद्ध होने पर एनजाइना।
    पेरिकार्डिटिस, जो आपके ह्रदय के पास एक थैली में सूजन आने के कारण होता है।
    मायोकार्डिटिस, जो हृदय की मांसपेशियों में सूजन के कारण होता है।
    कार्डियोमायोपैथी, हृदय की मांसपेशी का एक रोग।
    एऑर्टिक डाइसेक्शन, जो महाधमनी में छेद होने के कारण होता है।
    फेफड़े संबंधी कारण
    ब्रोंकाइटिस
    निमोनिया
    प्लूरिसी
    न्यूमोथोरैक्स, जो फेफड़ों से हवा का रिसाव के कारण छाती में होता है।
    पल्मोनरी एम्बोलिज्म या फिर रक्त का थक्का
    ब्रोन्कोस्पाज्म या आपके वायु मार्ग में अवरोध (यह अस्थमा से पीड़ित लोगों में आम है)
    मांसपेशी या हड्डी संबंधी कारण
    घायल या टूटी हुई पसली
    थकावट के कारण मांसपेशियों में दर्द या फिर दर्द सिंड्रोम
    फ्रैक्चर के कारण आपकी नसों पर दबाव
    छाती के दर्द से राहत पाने के घरेलू उपाय
    लहसुन
    सामग्री :
    एक चम्मच लहसुन का रस
    एक कप गुनगुना पानी
    क्या करें?
    एक कप गुनगुने पानी में एक चम्मच लहसुन का रस डालें।
    इसे अच्छी तरह मिलाएं और रोजाना पिएं।
    आप रोज सुबह लहसुन के दो टुकड़े चबा भी सकते हैं।
    ऐसा कब-कब करें?
    इस प्रक्रिया को दिन में एक या दो बार दोहराएं।
    यह कैसे काम करता है?
    हृदय में रक्त प्रवाह बिगड़ने के कारण हृदय संबंधी समस्याएं हो सकती है। इस कारण सीने में दर्द का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए, रोजाना लहसुन का इस्तेमाल सीने में दर्द से बचाता है। लहसुन हृदय में रक्त प्रवाह को दुरुस्त कर हृदय रोग से बचाता है। छाती में दर्द के उपाय में यह बेहतरीन नुस्खा है।
    सेब का सिरका
    सामग्री :
    एक चम्मच सेब का सिरका
    एक गिलास पानी
    क्या करें?
    एक गिलास पानी में एक चम्मच सेब का सिरका डालकर अच्छी तरह मिला लें।
    फिर इस पानी को पी लें।
    ऐसा कब-कब करें?
    आप खाना खाने से पहले या जब भी चेस्ट पेन हो, तो इस मिश्रण को पिएं।
    यह कैसे काम करता है?
    सेब के सिरके में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होता है, जो हार्टबर्न और एसिड रिफ्लक्स से राहत दिलाने में मदद करता है। इन्हीं के कारण सीने में दर्द की शिकायत होने लगती है । छाती में दर्द के उपाय में यह जाना-माना उपचार माना जाता है।
    मेथी के दाने
    एक चम्मच मेथी के दाने
    क्या करें?
    एक रात पहले मेथी दानों को पानी में भिगोकर रख दें और अगली सुबह इन्हें खाएं।
    इसके अलावा, आप एक चम्मच मेथी दानों को पांच मिनट के लिए पानी में उबाल लें। फिर इस पानी को छानकर पिएं।
    ऐसा कब-कब करें?
    आप इस पानी को दिन में एक से दो बार पिएं।
    यह कैसे काम करता है?
    मेथी के बीज में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो हृदय के स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं और सीने में दर्द को रोकते हैं । हृदय में रक्त के प्रवाह को बढ़ावा देते हैं और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करते हैं।


    लाल मिर्च

    सामग्री :
    एक चम्मच लाल मिर्च पाउडर
    किसी भी फल का एक गिलास जूस
    क्या करें?
    फल के एक गिलास जूस में एक चम्मच लाल मिर्च पाउडर मिलाएं।
    इस जूस को पी लें।
    ऐसा कब-कब करें?
    आप इस जूस को दिन में एक बार पिएं।
    यह कैसे काम करता है?
    इस मिर्च में कैप्सैसिन होता है, जिसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होता है। यह आपके सीने में दर्द की तीव्रता को कम करने में मदद करता है । यह हृदय में रक्त के प्रवाह को दुरुस्त करने में भी मदद करता है, जिससे हृदय रोगों को रोका जा सकता है।
    एलोवेरासामग्री :
    ¼ कप एलोवेरा जूस
    क्या करें?
    एलोवेरा जूस को पी लें।
    ऐसा कब-कब करें?
    आप दिन में एक से दो बार एलोवेरा जूस पिएं।
    यह कैसे काम करता है?
    एलोवेरा एक चमत्कारी पौधा है, जो कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। यह आपके कार्डियोवस्कुलर सिस्टम को मजबूत करने, अच्छे कोलेस्ट्रॉल को नियमित करने, आपके ट्राइग्लिसराइड के स्तर को कम करने और रक्तचाप को कम करने में भी मदद कर सकता है । ये सभी छाती के दर्द से राहत दिलाने में मदद करते हैं।
    तुलसी
    सामग्री :
    आठ से दस तुलसी के पत्ते
    क्या करें?
    तुलसी के पत्तों को चबा लें।
    इसके अलावा, आप तुलसी की चाय भी पी सकते हैं।
    आप तुलसी के पत्तों का रस निकालकर इसमें शहद मिलाकर खा सकते हैं।
    ऐसा कब-कब करें?
    बेहतर परिणाम के लिए आप रोजाना इसका सेवन करें।
    यह कैसे काम करता है?
    तुलसी में प्रचुर मात्रा में विटामिन-के और मैग्नीशियम होता है। सफेद मैग्नीशियम हृदय तक रक्त प्रवाह को दुरुस्त करता है और रक्त वाहिकाओं को आराम देता है। वहीं, विटामिन-के रक्त वाहिकाओं की दीवारों पर कोलेस्ट्रॉल के निर्माण को रोकता है । यह हृदय संबंधी विकारों के साथ-साथ सीने में दर्द के उपचार में मदद करता है।


    हल्दी और दूध

    सामग्री :
    ½ चम्मच हल्दी पाउडर
    एक गिलास गर्म दूध
    क्या करें?
    एक गिलास दूध में आधा चम्मच हल्दी पाउडर मिलाएं।
    हल्दी वाले इस दूध को पी लें।
    ऐसा कब-कब करें?
    आप रोजाना रात को सोने से पहले हल्दी वाला दूध पिएं।
    यह कैसे काम करता है?
    हल्दी करक्यूमिन का बेहतरीन स्रोत है। यह कोलेस्ट्रॉल ऑक्सिडेशन, क्लोट फॉर्मेशन व धमनी में थक्के को बनने से रोकता है। ये सभी हृदय की समस्याओं और सीने में दर्द का कारण बन सकते हैं । करक्यूमिन में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होता है, जो सीने में दर्द की तीव्रता को कम करने में मदद करता है।
    विटामिन
    अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि विटामिन-डी और विटामिन-बी12 की कमी से सीने में दर्द हो सकता है। यहां तक कि इससे मायोकार्डियल इंफार्कशन या हार्ट अटैक भी हो सकता है (4), । इसलिए, अगर आप चेस्ट पेन से पीड़ित हैं, तो अपने खानपान पर ध्यान दें। आप पौष्टिक खाना खाएं, जिसमें भरपूर रूप से विटामिन हों।
    आप मछली, चीज] अंडे की जर्दी, अनाज, सोया उत्पाद और मीट अपने खानपान में शामिल करें। आप डॉक्टर की सलाह से विटामिन के जरूरी अनुपूरक भी ले सकते हैं।
    टिप्स
    अधिक परिश्रम से बचें।
    संतुलित आहार का सेवन करें।
    शराब का सेवन सीमित करें।
    तंबाकू के सेवन से बचें।
    खुद को तनाव मुक्त रखें।
    मत्स्यासन (फिश पोज), भुजंगासन (कोबरा पोज) और धनुरासन (बो पोज) जैसे योगासनों का अभ्यास करें।
    आप एक्यूप्रेशर भी करवा सकते हैं।



    6.8.19

    कुटज (इन्द्रजौ) के स्वास्थ्य लाभ और नुस्खे




    कुटज (संस्कृत), कूड़ा या कुरैया (हिन्दी), कुरजी (बंगला), कुड़ा (मराठी), कुड़ी (गुजराती), वेप्पलाई (तमिल), कछोडाइस (तेलुगु) तथा मोलेरीना एण्टी डिसेण्टीरिका (लैटिन) कहते हैं। इन्द्रजौ 5 से10 फुट ऊंचा जंगली पौधा होता है जिसके पत्ते बादाम के पत्तों की तरह लंबे होते हैं। कोंकण (महाराष्ट्र) में इन्द्रजौ ‌‌‌के पत्तों का बहुत उपयोग किया जाता है। इसके फूलों की सब्जी बनायी जाती है। इसमें फलियां पतली और लंबी होती हैं, इन फलियों का भी साग और अचार बनाया जाता है। फलियों के अंदर से जौ की तरह बीज निकलते हैं। इन्ही बीजों को इन्द्रजौ कहते हैं। सिरदर्द तथा साधारण प्रकृति वाले मनुष्यों के लिए यह नुकसानदायक है। इसके दोषों को दूर करने के लिए इसमें धनियां मिलाया जाता है। इसकी तुलना जायफल से भी की जा सकती है। इसके फूल भी कड़वे होते हैं। इनका एक पकवान भी बनाया जाता है। इन्द्रजौ के पेड़ की दो जातियां – काली ‌‌‌वसफेदइन्द्र जौ होती हैं और इन दोनों में ये कुछ अन्तर इस प्रकार होते हैं। कुटज का पेड़ मध्यम आकार का, कत्थई या पीलाई लिये कोमल छालवाला होता है। कुटज के पत्ते 6-12 इंच लम्बे, 1-1 इंच चौड़े होते हैं। कुटज के फूल सफेद, 1-1 इंच लम्बे, चमेली के फूल की तरह कुछ गन्धयुक्त होते हैं। कुटज के फल 8-16 इंच लम्बे, फली के समान होते हैं। दो फलियाँ डंठल तथा सिरों पर भी मिली-सी रहती हैं। बीज जौ (यव) के समान अनेक, पीलापन लिये कत्थई रंग के होते हैं। ऊपर से रूई चढ़ी रहती है। इसे ‘इन्द्रजौ‘ (इन्द्रयव) कहते हैं। इसकी जातियाँ दो होती हैं : (क) कृष्ण-कुटज (स्त्री-जाति का) और (ख) श्वेत-कुटज (पुरुष-जाति का) । यह हिमालय प्रदेश, बंगाल, असम, उड़ीसा, दक्षिण भारत तथा महाराष्ट्र में प्राप्त होता है।

    विभिन्न रोगों में उपचार -

    ‌‌‌जलोदर: –

     इन्द्रजौ की जड़ को पानी के साथ पीसकर 14-21 दिन नियमित लेने से जलोदर समाप्त हो जाता है।

    पीलिया: 

    पीलिया के रोग में इसका रस नियमित रूप से 3 दिन पीने से अच्छा लाभ मिलता है।

    ‌‌‌पुराना ज्वर ‌‌‌व बच्चों में दस्त: – 

    इन्द्रजौ व टीनोस्पोरा की छाल को पानी में उबाल कर काढ़ा या इन्द्रजौ की छाल को रातभर पानी में भिगो कर रखने से व पानी को छान कर लेने से पुराना ज्वर लाभ प्रदान करता है।
    ‌‌‌
    पेट में एंठन: –

     गर्म किये हुए इन्द्रजौ के बीजों को पानी में भिगो कर लेने से पेट की एंठन में लाभ मिलता है।
    ‌‌‌बवासीर: – इन्द्रजौ को पानी के साथ पीस कर बाराबर मात्रा में जामुन के साथ मिला कर छोटी-छोटी गोलींयां बना लें। सोते समय दो गोलीयां ठण्डे पानी के साथ लेने से बवासीर में लाभ मिलता है।

    पुराना बुखार
    :

    इन्द्र जौ के पेड़ की छाल और गिलोय का काढ़ा पिलायें अथवा रात को छाल को पानी में गला दें और सुबह उस पानी को छानकर पिलायें। इससे पुराना बुखार दूर हो जाता है।

    हैजा :

    इन्द्र जौ की जड़ और एरंड की जड़ को छाछ के पानी में घिसकर और उसमें थोड़ी हींग डालकर पिलाने से लाभ मिलता है।

    बच्चों के दस्त :

    छाछ के पानी में इन्द्र जौ के मूल को घिसे और उसमें थोड़ी हींग डालकर पिलायें। इससे बच्चों का दस्त आना बंद हो जाता है।

    पथरी :

    इन्द्र जौ और नौसादर का चूर्ण दूध अथवा चावल के धोये हुए पानी में डालकर पीना चाहिए। इससे पथरी गलकर निकल जाती है।
    इन्द्र जौ की छाल को दही में पीसकर पिलाना चाहिए। इससे पथरी नष्ट हो जाती है।

    फोड़े-फुंसियां :

    इन्द्र जौ की छाल और सेंधानमक को गाय के मूत्र में पीसकर लेप करने से लाभ मिलता है।

    बुखार में दस्त होना :

    10 ग्राम इन्द्र जौ को थोड़े से पानी में ड़ालकर काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलायें और पियें। इससे सभी तरह के बुखार दूर हो जाते हैं।


    मुंह के छाले :
    इन्द्र जौ और काला जीरा 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर कूटकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को छालों पर दिन में 2 बार लगाने से छाले नष्ट होते हैं।

    दस्त :

    इन्द्र-जौ को पीसकर चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में ठंडे पानी के साथ दिन में 3 बार पिलाने से अतिसार समाप्त हो जाती है।
    इन्द्र जौ की छाल का रस निकालकर पिलायें।
    इन्द्र-जौ की जड़ को छाछ में से निकले हुए पानी के साथ पीसकर थोड़ी-सी मात्रा में हींग को डालकर खाने से बच्चों को दस्त में आराम पहुंचता है।
    इन्द्रजौ की जड़ की छाल और अतीस को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बनाकर लगभग 2 ग्राम को शहद के साथ 1 दिन में 3 से 4 बार चाटने से सभी प्रकार के दस्त समाप्त हो जाते हैं।
    इन्द्रजौ की 40 ग्राम जड़ की छाल और 40 ग्राम अनार के छिलकों को अलग-अलग 320-320 ग्राम पानी में पकाएं, जब पानी थोड़ा-सा बच जाये तब छिलकों को उतारकर छान लें, फिर दोनों को 1 साथ मिलाकर दुबारा आग पर पकाने को रख दें, जब वह काढ़ा गाढ़ा हो जाये तब उतारकर रख लें, इसे लगभग 8 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पिलाने से अतिसार में लाभ पहुंचता है।

    बवासीर (अर्श) :

    कड़वे इन्द्रजौ को पानी के साथ पीसकर बेर के बराबर गोलियां बना लें। रात को सोते समय दो गोली ठंडे जल के साथ खायें। इससे बादी बवासीर ठीक होती है।

    आंवरक्त (पेचिश) :

    50 ग्राम इन्द्रजौ की छाल पीसकर उसकी 10 पुड़िया बना लें। सुबह-सुबह एक पुड़िया गाय के दूध की दही के साथ सेवन करें। भूख लगने पर दही-चावल में डालकर लें। इससे पेचिश के रोगी को लाभ मिलेगा।
    अग्निमान्द्य (हाजमे की खराबी) :
    इन्द्रजौ के चूर्ण को 2-2 ग्राम खाने से पेट का दर्द और मंदाग्नि समाप्त हो जाती है।

    कान से पीव बहना :

    इन्द्रजौ के पेड़ की छाल का चूरन कपड़छन करके कान में डालकर और इसके बाद मखमली के पत्तों का रस कान में डालना चाहिए।

    दर्द :

    इन्द्र जौ का चूर्ण गरम पानी के साथ देना चाहिए।

    वातशूल :

    इन्द्र जौ का काढ़ा बना लें और उसमें संचर तथा सेंकी हुई हींग डालकर पिलायें। इससे वातशूल नष्ट हो जाती है।

    वात ज्वर :

    इन्द्र जौ की छाल 10 ग्राम को बिलकुल बारीक कूटे और 50 ग्राम पानी में डालकर तथा कपड़े में छानकर पिलायें।

    पित्त ज्वर :

    इन्द्र जौ, पित्तपापड़ा, धनिया, पटोलपत्र और नीम की छाल को बराबर भाग में लेकर काढ़ा बनाकर पी लें। इससे पित्त-कफ दूर होता है। काढ़े में मिश्री और शहद भी मिलाकर सेवन करने से पित्त ज्वर नष्ट हो जाता है।
    जलोदर :
    इन्द्रजौ चार ग्राम, सुहागा चार ग्राम, हींग चार ग्राम और शंख भस्म चार ग्राम और छोटी पीपल 6 ग्राम को गाय के पेशाब में पीसकर पीने से जलोदर सहित सभी प्रकार के पेट की बीमारियां ठीक हो जाती हैं।

    पेट के कीड़े :

    इन्द्रजौ को पीस और छानकर 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम पीने से पेट के कीडे़ मरकर, मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।

    अश्मरी: – 

    इन्द्रजौ के पाउडर व सालमोनिक को दूध या चावल के धोवल के साथ ‌‌‌या पीसी हुई इन्द्रजौ की छाल को दही के साथ लेने से पत्थरी टूटकर बाहर आ जाती है।

    ‌‌‌गर्भ निरोधक: –

     10-10 ग्राम पीसी हुई इन्द्रजौ, सुवा सुपारी, कबाबचीनी और सौंठ को छानकर 20 ग्राम मिश्री मिला लें। मासिक धर्म के बाद, 5-5 ग्राम, दिन में दो बार लेने से गर्भधारण नही होगा।

    ‌‌‌हैजा: – 

    इन्‍द्रजौ की जड़ को अरंडी के साथ पीसकर हींग ​मिलाकर लेने से हैजे में आराम ​मिलता है।
    रक्त-पित्तातिसार : कुटज की छाल को पीसकर सोंठ के साथ देने से रक्त बन्द होता है। रक्त-पित्त में घी के साथ देने से रक्त आना रुकता है। कुटज के फल पीसकर देने से रक्तातिसार और पित्तातिसार में लाभ होता है।

    रक्तार्श :

     इसकी छाल पीसकर पानी में रात्रि को भिगोकर सुबह छानकर पीने से खूनी बवासीर में निश्चित लाभ होता है।

    प्रमेह :

     प्रमेह में उपर्युक्त विधि से फूलों को पीसकर दें।

    डायबिटीज़ का काल है इन्द्रजौ का यह नुस्खा

    इन्द्र जो कडवा या इन्द्र जो तल्ख़ 250 ग्राम
    बादाम 250 ग्राम
    भुने चने 250 ग्राम
    यह योग बिल्कुल अजूबा योग है अनेकों रोगियों पर आजमाया गया है मेरे द्वारा 100% रिजल्ट आया है आप इस नुस्खे के रिजल्ट का अंदाजा यूं लगा सकते हैं कि अगर इसको उसकी मात्रा से ज्यादा लिया जाए तो शुगर इसके सेवन से लो होने लगती है |बादाम को इस वजह से शामिल किया गया यह शुगर रोगी की दुर्बलता कमजोरी सब दूर कर देता है चने को इन्द्र जो की कड़वाहट थोड़ी कम करने के लिए मिलाया गया |

    बनाने की विधि :

    तीनों औषधियों का अलग अलग पावडर बनाए और तीनो को मिक्स कर लीजिये और कांच के जार में रख लें और खाने के बाद एक चाय वाला चम्मच एक दिन में केवल एक बार खाएं सादे जल से |
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    आलू से वजन कम करने के तरीके

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    सफ़ेद मूसली के आयुर्वेदिक उपयोग

    दामोदर चिकित्सालय शामगढ़ के आशु लाभकारी उत्पाद

    तुलसी है कई रोगों मे उपयोगी औषधि

    खिसकी हुई नाभि को सही जगह पर लाने के उपाय : Vayu gola



     नाभि को मानव शरीर का केंद्र माना जाता है। नाभि स्थान से शरीर की बहत्तर हजार नाड़ियों जुड़ी होती है। अपने स्थान से सरक जाने से पैदा हुई समस्या नाभि को पुनः अपने स्थान पर लाने पर ही ठीक होती हैं।
    नाभि खिसकने की समस्या को कुछ लोग नाभि का डिगना या धरण भी कहते हैं। कई बार कुछ कारणों से नाभि अपनी जगह से हट जाती है यानि खिसक जाती है। अक्सर झटके से उठने या फिर कोई भारी सामान उठाने के कारण नाभि अपनी जगह छोड़कर थोड़ी खिसक जाती है। इसके कारण व्यक्ति को तेज दर्द के साथ अन्य कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।ऐसे में कई तरह की परेशानयां जैसे पेट में दर्द, उल्टी, कब्ज, जी मिचलाना आदि की समस्या हो जाती है। महिलाओं में ये समस्या होने पर पीरियड्स के समय सामान्य से ज्यादा ब्लड निकलता है। नाभि के खिसकने का मुख्य कारण भारी वजन उठाना, वजन लेकर झुकना, दुर्घटना आदि में अंगों का अचानक खिंचाव आदि है।

    लक्षण दिखने पर करें नाभि की जांच

    नाभि खिसकने की पुष्टि करने के कुछ खास तरीके हैं। सबसे आसान तरीका है व्यक्ति को लेटकर नाभि के आसपास वाले स्थान पर उंगुलियों से दबाव डालें। यदि नाभि वाले स्थान के ठीक बिलकुल नीचे कोई अगर धड़कन महसूस हो तो इसका मतलब है कि नाभि अपने स्थान पर ही है। लेकिन यही धड़कन नाभि के नीचे महसूस ना होकर आसपास की जगह पर महसूस हो तो समझ जाएं कि, नाभि अपनी जगह में नहीं है।

    मालिश करवाना

    नाभि खिसकने पर ज्यादातर लोग इसे मालिश द्वारा ठीक करते हैं। हालांकि ये मालिश सामान्य मालिश की तरह नहीं होती है इसलिए इसे सब लोग नहीं कर सकते। कुछ लोगों को नाभि को मालिश के द्वारा सही जगह पर लाने का तरीका पता होता है। मालिश सिर्फ उन्हीं से करवनी चाहिए वर्ना अंजाम खतरनाक हो सकता है। नाभि के खिसकने पर ध्यान रखें कि भूलकर भी वजन ना उठायें। क्योंकि वजन उठाने से स्थिति गंभीर हो जाती है। यदि आसपास कोई नहीं है और सामान उठाना जरूरी है तो उसे झटके से ना उठाएं।


    आंवला और गिलोय से करें उपचार

    नाभि खिसकने पर एक चम्मच आंवला पाउडर में नींबू का रस मिलकर नाभि के चारों ओर इस पेस्ट को लगाएं और कुछ देर तक लेटे रहें। दिन में दो बार नाभि पर आंवले का पेस्ट लगाने से नाभि अपनी जगह पर आ जाती है। इसके अलावा नाभि खिसकने पर दर्द से राहत पाने के लिए गिलोय भी काफी लाभकारी साबित होता है।

    कूदना भी है इलाज

    कई बार बड़े-बुजुर्ग नाभि के खिसक जाने पर कूदने की सलाह देते हैं क्योंकि कूदने से भी नाभि अपनी जगह पर आ जाती है। इसके लिए आपको लगभग 2 फीट की उंचाई (बेड या कुर्सी) से 2-3 बार कूदना होता है। कूदते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि आपका पूरा वजन आपके पंजों पर पड़े बल्कि आप अलग से थोड़ा जोर लगाएं। इससे नाभि अपनी जगह पर आ जाती है।

    चाय पत्ती है फायदेमंद

    नाभि खिसकने के बाद कुछ लोगों को तेज दस्त होने लगता है। ऐसी स्थिति में एक गिलास पानी में एक चम्मच चायपत्ती मिलाकर उबाल लें और छानकर गुनगुना चाय पीएं। इससे दर्द तो कम होगा ही साथ में नाभि अपनी जगह पर आ जाएगी।

    गुड़ और सौंफ

    नाभि को जगह पर लाने के लिए सौंफ का उपाय अपनाएं। इसके लिए 50 ग्राम गुड़ में 10 ग्राम सौंफ मिलाएं और सुबह खाली पेट अच्छी तरह चबा-चबाकर खाएं। ऐसा तीन दिन तक करें। इस उपाय से दो से तीन दिन में नाभि अपनी जगह में आ जाएगी।


    सरसों का तेल

    नाभि खिसकने पर इसे वापस अपनी जगह लाने में सरसों का तेल काफी मददगार होता है। इसके अलावा यह दर्द को भी दूर कर देता है। जब आपकी नाभि खिसक जाए तो तीन से चार दिन नियमित रुप से खाली पेट सरसों के तेल की कुछ बूंदे नाभि में डालें। आपको जल्द ही फर्क दिखायी देगा और धीरे धीरे नाभि अपनी जगह पर आना शुरू हो जाएगी।
    * एक चम्मच आंवला पाउडर लें. इसमें नींबू का रस मिलाएं. नाभि के चारों ओर इस पेस्ट को लगाएं. तब तक लेटे रहें जब तक ये सूख ना जाए. दिन में दो बार नाभि पर ये पेस्‍ट लगाएं.

    सौंफ का सेवन करें-

    50 ग्राम सौंफ और 50 ग्राम गुड़ को रोजाना सुबह खाली पेट चबाने से यह समस्या दूर होती है।

    योगासन द्वारा इलाज

    नाभि के खिसक जाने पर कई योगासन भी इसे ठीक जगह ला सकते हैं जैसे- भुजंगासन, मत्स्यासन, कंधरासन, सूप्ता वज्रासन धनुरासन, मकरासन आदि। इस स्थिति में सभी तरह को योगासनों को करने से बचना चाहिए वर्ना स्थिति खतरनाक हो सकती है। केवल वही योगासन करें जिनसे गुदा के आसपास की मांसपेशियों पर दबाव पड़े। हालांकि इन योगासनों को करने से पहले भी किसी बड़े-बुजुर्ग से राय ले लें क्योंकि थोड़ी सी गलती से आपकी परेशानी बढ़ सकती है। भूल कर भी इस स्थिति में अपने शरीर के साथ कोई छेड़खानी ना करें।

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    मेथी का पानी पीने के जबर्दस्त फायदे

    च्यवनप्राश के स्वास्थ्य लाभ

    जावित्री मसाले के औषधीय उपयोग

    अनिद्रा की होम्योपैथिक औषधीयां

    तुलसी है कई रोगों मे उपयोगी औषधि

    2.8.19

    धनिये की पत्तियों के स्वास्थ्य लाभ


    भारतीय भोजन में धनिया पत्ती का इस्तेमाल मुख्यरूप से खाने को सजाने के लिए किया जाता है. कुछ इसका इस्तेमाल किसी दूसरी सब्जी के साथ मिलाकर सब्जी बनाने में भी करते हैं
    हरे धन‍िये की पत्तियां और बीज दोनों ही खाने का स्‍वाद बढ़ा देते हैं. खाने में भले ही मिर्च-मसाला न हो लेकिन अगर धनिया पत्ती से गार्निश‍िंग की जाए तो उसकी खूबसूरती और स्‍वाद में चार चांद लग जाते हैं. लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि धनिया सिर्फ खाने की खूबसूरती और स्‍वाद ही नहीं बढ़ाता बल्‍कि इसका पानी आपके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बेहद गुणकारी है. धन‍िया के पानी में पोटैश‍ियम, कैल्‍श्यिम, विटामिन सी और मैग्‍नीजियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है और ये सभी तत्‍व बीमारियों को कोसों दूर रखते हैं. धनिये का पानी पीने के ढेरों फायदे हैं जिनमें से कुछ के बारे में हम आपको यहां पर जानकारी दे रहे हैं



    मुहांसों का रामबाण इलाज

    धनिया त्वचा के लिए भी फायदेमंद है. धनिए के जूस में हल्दी पाउडर मिलाकर चेहरे पर लगाएं और कुछ देर बाद धो लें. दिन में दो बार इस लेप का इस्तेमाल करने से बहुत जल्दी मुहांसों और दाग-धब्बों से छुटकारा मिलेगा और चेहरे की सुंदरता भी बढ़ेगी. घमौरियां होने पर धनिया के पानी से नहाना चाहिए.
    जलन से राहत
    अगर आपको पेशाब में जलन होती है तो धनिया के पत्तों का पानी पीने से आराम म‍िलेगा. धनिया के बीजों को भिगोकर पीसकर उसका पानी तैयार कर लें. इस पानी को पीने से शरीर के दाह खासकर पैरों की जलन में फायदा होता है.
    पेट की बीमरियां
    अगर आपको पेट से संबंधित कोई समस्या है तो दो कप पानी में धनिये के बीज, जीरा, चाय पत्ती और शक्कर डालकर अच्छे से मिला ले. इस पानी को पीने से एसिडिटी में आराम मिलता है. पेट में दर्द होने पर आधा गिलास पानी में दो चम्मच धनिया के बीज डालकर पीने से पेट दर्द से राहत मिलती है.

    हिचकी दूर करने में सहायक
    हिचकी आने पर धनिया के बीज या दाने हमारे लिए काफी फायदेमंद होते है अगर आपको हिचकी बार-2 आ रही है तो उस स्थिति में आप धनिये के कुछ दानो को मुहं में रख कर उसे चूसे जिससे की आपकी हिचकी जल्द ही बंद हो जाती है |


    आंखों के लिए फायदेमंद

    धनिया के बीज आंखों के लिए भी फायदेमंद हैं. धनिया के थोड़े से बीज कूट कर पानी में उबालें. इस पानी को ठंडा करके मोटे कपड़े से छान लें और इसकी दो बूंदे आंखों में टपकाने से जलन, दर्द और पानी गिरना जैसी समस्याएं दूर होती हैं.
    दूर होगी पीरियड्स की प्रॉब्‍लम
    धनिया महिलाओं में पीरियड्स संबंधी समस्याओं को दूर करता है. अगर पीरियड्स साधारण से ज्यादा हो तो आधा लीटर पानी में लगभग 6 ग्राम धनिए के बीज डालकर खौलाएं. इस पानी में चीनी डालकर पीने से फायदा होगा.
    बढ़ाए डाइजेशन
    हरा धनिया पेट की समस्याओं को दूर कर पाचनशक्ति बढ़ाता है. धनिए के ताजे पत्तों को छाछ में मिलाकर पीने से बदहजमी, मतली, पेचिश और कोलाइटिस में आराम मिलता है.
    नकसीर की दवा
    हरे ताजे धनिया की लगभग 20 ग्राम पत्तियों के साथ चुटकी भर कपूर मिला कर पीस लें और रस छान लें. इस रस की दो बूंदें नाक के छेदों में दोनों तरफ टपकाने से और रस को माथे पर लगा कर हल्का-हल्का मलने से नाक से निकलने वाला खून बंद हो जाता है.


    डायबिटीज से आराम

    धनिए को मधुमेह नाशी यानी कि डायबिटीज को दूर भगाने वाला माना जाता है. इसका पानी पीने से खून में इंसुलिन की मात्रा नियंत्रित रहती है.
    वजन कम करने में असरदार
    अगर आप वजन कम करना चाहते हैं तो धनिये के बीज का इस्‍तेमाल करने से फायदा होगा. इसके लिए आप तीन बड़े चम्‍मच धनिये के बीज एक गिलास पानी में उबालें. जब पानी आधे से कम हो जाए तो इसे छान लीजिए. इस पानी को रोजाना दो बार पीने से वजन घटने लगेगा.
    कॉलेस्ट्रोल से छुटकारा
    धनिया में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो शरीर से कॉलेस्ट्रॉल कम कर उसे कंट्रोल में रखते हैं. रिसर्च के अनुसार अगर किसी को हाई कॉलेस्ट्रॉल की श‍िकायत है तो उसे धनिया के बीज उबालकर उस पानी को पीना चाहिए.


    1.8.19

    बेसन खाने के स्वास्थ्य लाभ



    बेसन भारत में प्रमुख खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग किया जाता है। चना दाल के पिसे आटे को बेसन कहते हैं। लेकिन क्‍या आप बेसन खाने के फायदे और नुकसान जानते हैं। बेसन को ग्राम फ्लौर या छोले का आटा (Gram flour or chickpea flour or besan) भी कहा जाता है। बेसन ऐसा खाद्य पदार्थ है जो आमतौर सभी रसोई धरों में उपलब्‍ध होता है। बेसन का उपयोग हम विभिन्‍न प्रकार के स्‍वादिष्‍ट व्‍यंजनों को बनाने के लिए करते हैं।
    बेसन बाजार में बिकने वाला ऐसा उत्पाद है, जो न केवल सौंदर्यता को बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है बल्कि सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद है। बेसन में फाइबर, आयरन, पोटेशियम, मैंगनीज, तांबा, जस्ता, फास्फोरस, मैग्नीशियम, फोलेट, विटामिन बी6 और थाइमिन जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो कि मधुमेह के इलाज, मोटापा कम करने, हृदय को स्‍वस्‍थ रखने, हड्डियों को मजबूत करने, एनीमिया के उपचार और कोलेरेक्‍टल कैंसर जैसी गंभीर समस्‍याओं को दूर करने में मदद करते हैं।
    बेसन के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ
    बेसन या चने की दाल का आटा बहुत ही पौष्टिक आहार है। नियमित रूप से इसका सेवन करने पर यह विभिन्‍न प्रकार की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से हमारी रक्षा कर सकता है। हालांकि स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के लिए बेसन खाने के फायदे अप्रयक्ष रूप से लाभ दिलाते हैं। इसका मतलब यह है कि बेसन का उपभोग करने पर यह किसी भी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या के लिए त्‍वरित लाभकारी नहीं है। नियमित रूप से सेवन करने पर और लंबे समय के बाद ही प्रभावी होता है।


    फायदे मधुमेह के लिए

    हम अपने आहार में बेसन का कई प्रकार से उपयोग कर सकते हैं। बेसन खाने के फायदे रक्‍त शर्करा के स्‍तर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। बेसन को बहुत ही कम ग्‍लाइसेमिक स्‍तर के लिए जाना जाता है जो उच्‍च मधुमेहवाले लोगों के लिए फायदेमंद होता है। ऐसा माना जाता है बेसन की रोटी खाने के फायदे मधुमेह रोगी के लिए बहुत अधिक होते हैं। लेकिन आप बेसन के पराठे भी खा सकते हैं। आप बेसन के कुछ आटे को भून सकते हैं और इसमें मसालों के साथ फ्राई करके उपभोग कर सकते हैं। यह आपके शरीर में रक्‍त शर्करा के स्‍तर को कम करने का सबसे अच्‍छा और पौष्टिक तरीका हो सकता है।
    खून बढ़ाने के लिए
    चने के आटे या बेसन की रोटी के फायदे एनीमिया के लक्षणों को कम करने में सहायक होते हैं। बेसन शरीर की थकान, अधिक वजन और लोहे की कमी जैसी समस्‍याओं का प्रभावी ढंग से इलाज कर सकता है। जानकारों के अनुसार नियमित रूप से बेसन की अनुशंसित मात्रा का सेवन करने से एनीमिया या खून की कमी जैसे लक्षणों को दूर किया जा सकता है। बेसन थियामिन (Thiamine) का अच्‍छा स्रोत होता है जिसके कारण यह आपको पर्याप्‍त मात्रा में ऊर्जा दिलाने में सक्षम है।
    दिल को स्‍वस्‍थ रखने के लिए
    आप अपने दिल को स्‍वस्‍थ रखने के लिए बेसन का उपयोग कर सकते हैं। बेसन में घुलनशील फाइबर होता है जो आपके हृदय स्‍वास्‍थ्‍य को लंबे समय तक बनाए रखता है। इसलिए कहा जाता है कि बेसन की रोटी बेनिफिट्स फॉर हार्ट। बेसन में ऐसे बहुत से घटक होते हैं तो रक्‍त वाहिकाओं को आराम दिलाने के साथ ही आपके हृदय की कार्य क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते हैं। बहुत से हार्ट सर्जन रोगी को बेसन का सेवन करने की सलाह भी देते हैं। हृदय रोगियों के लिए बेसन खाने के फायदे उनके जीवन को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
    वजन कम करने के लिए
    जो लोग अपना वजन कम करने का प्रयास कर रहे हैं उन्‍हें अपने आहार में बेसन को शामिल करना चाहिए। क्‍योंकि बेसन खाने के लाभ वजन कम करने में प्रभावी पाए गए हैं। चूंकि बेसन में ग्‍लाइसेमिक इंडेक्‍स कम होता है इसलिए इसमें कैलौरी की मात्रा भी कम होती है। यही कारण है कि बहुत से फिटनेस सलाहकार बेसन को प्रमुख आहार के रूप में खाने की सलाह देते हैं। भारत में बेसन का उपयोग सत्‍तू के रूप में भी किया जाता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा भी कम होती है जो प्रोटीन से भरपूर होता है। इसके अलावा बेसन में फाइबर भी अच्‍छी मात्रा में होता है जो अधिक वजन को नियंत्रित करने में सहायक होता है।


    कमजोरी दूर करे

    चने को पीसकर बेसन प्राप्‍त किया जाता है जिसमें आयरन की अच्‍छी मात्रा होती है। इस तरह से बेसन का नियमित सेवन कर शरीर में आयरन की कमी को दूर किया जा सकता है। इसके अलावा बेसन में फोलेट भी होता है जो शारीरिक कमजोरी (frailty) को दूर करने में प्रभावी होता है। यदि आप भी अपने शरीर को कमजोर महसूस कर रहे हैं तो अपने नियमित आहार में शामिल कर बेसन के फायदे प्राप्‍त कर सकते हैं।
    गर्भावस्‍था के लिए
    उन महिलाओं के लिए भी बेसन के फायदे होते हैं जो गर्भवती हैं। क्‍योंकि बेसन में फोलेट और आयरन दोनों की उच्‍च मात्रा होती है जो गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत ही आवश्‍यक हैं। गर्भावस्‍था के दौरान बेसन का सेवन करने से यह महिलाओं की कमजोरी को भी दूर करने में सहायक होता है। इसके अलावा इसमें मौजूद फोलेट बच्‍चे के तंत्रिका विकास में सहायक होता है। बेसन में कैल्शियम भी होता है जो गर्भावस्‍था के दौरान महिलाओं की हड्डियों को मजबूत रखने का अच्‍छा विकल्‍प है। इस तरह से गर्भावस्‍था के दौरान महिलाओं के लिए बेसन खाने के फायदे होते हैं।
    बेहतर नींद के लिए
    क्‍या आप अनिद्रा या नींद की समस्‍या से परेशान हैं। यदि ऐसा है तो बेसन को अपने आहार में शामिल कर लाभ प्राप्‍त किया जा सकता है। अच्‍छी नींद को बढ़ावा देने में बेसन महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है। बेसन के फायदे इसमें मौजूद 3 प्रमुख घटकों के कारण होते हैं। ये घटक हैं अमीनो एसिड, ट्रिप्टोफैन और सेरोटोनिन। ट्रिप्टोफैन आपके मस्तिष्‍क को शांत करने में सहायक होते हैं। इसके अलावा सेरोटोनिन नींद को उत्‍तेजित करने में सहायक होते हैं। इसलिए ही बेसन खाने के फायदे आपकी नींद को बेहतर बनाने और आपके मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं।
    कोलेस्‍ट्रॉल कम करे
    बेसन में अनसैचुरेटेड फैट्स मौजूद होता है जो हमारे स्वास्थ के लिए लाभकारी होता है। यह हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल का संतुलन बनाये रखता है।विभिन्‍न स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को दूर करने के लिए बेसन का उपयोग किया जाता है। बेसन के इन्‍हीं लाभों में एक रक्‍त कोलेस्‍ट्रॉल को कम करना भी शामिल है।  
    स्‍तन कैंसर से बचाये
    स्‍वास्‍थ्‍य लाभ दिलाने के लिए बेसन में विभिन्‍न प्रकार के औषधीय गुण होते हैं। इन्‍हीं गुणों में कैंसर रोधी गुण भी शामिल है। इसलिए बेसन के फायदे स्‍तन कैंसर जैसी गंभीर समस्‍या के लक्षणों को कम करने में सहायक होते हैं। हालांकि बेसन में कैंसर रोधी गुण आंशिक रूप से होते हैं। बेसन में सैपोनिन्‍स नामक फाइटोकेमिल होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकने में सहायक होते हैं। इसके अलावा यह ट्यूमर के विकास की संभावना को भी कम करते हैं। नियमित रूप से महिलाओं द्वारा बेसन का सेवन करने से यह ऑस्टियोपोरोसिस से रक्षा करता है। रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में स्‍तन कैंसर को रोकने वाले हार्मोन को उत्‍तेजित करने में भी बेसन के पोषक तत्‍व अहम भूमिका निभाते हैं।
    आंत को सुरक्षित रखता है
    यह बात सभी जानते है कि आंत की बीमारी कितनी खतरनाक हो सकती है। अगर वक्त रहते इसका इलाज ना किया जाए तो यह बीमारी जानलेवा बन सकती है। आंत में दिक्कत होने की वजह से खाए हुए खाने का ना पचना और खाते ही उल्टी हो जाना आंत की बीमारी के अहम लक्ष्ण है। आंत से जुड़ी इस बीमारी से बचने के लिए आप कुछ घरेलू उपचार भी कर सकते है। इस घरेलू उपचार में सबसे पहला नाम आता है, चने के आटे की बनी रोटियों का। जी हां, आप गेहूं की रोटी के बजाय चने की रोटियां खा सकते है। यह रोटियां आंत की बीमारी के लिए फायदेमंद होता है। चने के आटे में पोष्टिक आहार होता है जो आंत की बीमारी से आपके आंत को सुरक्षित रखता है और आंत जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने में मददगार होता है।


    बेनिफिट्स फॉर ब्रेन

    बेसन में फोलेट नामक एक महत्‍वपूर्ण विटामिन होता है। यह आपके मस्तिष्‍क स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने और मस्तिष्‍क की कार्य क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है। नियमित रूप से बेसन का सेवन करने से शरीर को आवश्‍यक मात्रा में फोलेट और अन्‍य पोषक तत्‍वों की प्राप्ति होती है। इस तरह से बेसन मस्तिष्‍क कार्य क्षमता को उत्‍तेजित करने में सक्षम होता है। आप भी अपने और परिजनों के मस्तिष्‍क स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने के लिए अपने आहार में बेसन को शामिल कर सकते हैं।
    रक्‍तचाप कम करे
    जानकारों का मानना है कि बेसन का सेवन करने के फायदे रक्‍तचाप को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि बेसन में मैग्‍नीशियम की अच्‍छी मात्रा होती है। यह आपके रक्‍तचाप को नियंत्रित करने और बहुत सी हृदय संबंधी समस्‍याओं को रोकने में प्रभावी होता है। जो लोग हृदय रोग से ग्रसित हैं उन्‍हें नियमित रूप से बेसन का सेवन करना चाहिए क्‍योंक‍ि बेसन के गुण हृदय स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देते हैं।
    सूजन को कम करे
    एक अध्‍ययन के अनुसार बेसन में सूजन रोधी गुण होते हैं। इसलिए बेसन का इस्‍तेमाल सूजन को कम करने के लिए किया जा सकता है। बेसन में सेलेनियम, पोटेशियम, विटामिन ए और और विटामिन बी भी होते हैं। ये सभी घटक सूजन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में प्रभावी होते हैं। यदि आप भी सूजन संबंधी समस्‍याओं से परेशान हैं तो सबसे पहले डॉक्‍टर से संपर्क करें साथ ही विकल्‍प के रूप से बेसन का सेवन कर सकते हैं।
    डाक्टर भी मानते है इस आटे को फायदेमंद :
    यह सिर्फ हम ही नहीं बल्कि कई विशेषज्ञ और डाक्टर भी यहीं मानते है कि चने के आटे से बनी रोटियां सचमुच फायदेमंद होती है। यह जरूरी नहीं है कि जो इंसान किसी बीमारी से जुझ रहा हो, वही इसका सेवन करें बल्कि हर कोई इसका सेवन कर सकता है। यह सभी के लिए फायदेमंद है। बड़े से लेकर बुजुर्ग तक कोई भी इसका सेवन कर सकता है। इस आटे से बनी रोटियां नुकसान नहीं करती बल्कि काफी लाभदायक होती है।
    सावधानी-
    बेसन का ज़्यादा सेवन करने से नींद आती है, और थकावट भी महसूस होती है।
    बेसन के अधिक उपयोग से दस्त, पेट में गैस बनने की समस्या हो सकती है।
    इससे एसिडिटी भी हो सकती है।
    जिन लोगो को किडनी स्टोन्स की परेशानी है, उन्हें बेसन का सेवन न करने की सलाह दी जाती है।
    बहुत से लोगों को चने के बेसन या चने से बने उत्‍पादों का सेवन करने से पाचन संबंधी समस्‍याएं हो सकती हैं। जिनमें पेट की ऐंठन, दस्‍त, आंतों की गैस आदि समस्‍या हो सकती है। इसके अलावा अधिक मात्रा में बेसन का सेवन करने से दस्‍त, कब्‍ज और पेट दर्द आदि भी हो सकता है।बहुत से लोग बेसन और चने के प्रति संवेदनशील होते हैं। ऐसे लोगों को बेसन का सेवन करने से बचना चाहिए।यदि आप किसी विशेष प्रकार की दवाओं का सेवन कर रहे हैं। साथ ही स्‍वास्‍थ्‍य लाभ लेने के लिए बेसन का उपभोग करना चाहते हैं तो पहले अपने डॉक्‍टर से सलाह लें।

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