20.8.17

बासी रोटी के ये फायदे नहीं जानते होने आप// You may not know the benefits of stale bread



    अक्‍सर हम सभी के घरों में हर रोज 2-4 रोटी जरूर बच जाती है और उसे हम कूड़े में डाल देते हैं। पिछले जमाने में बासी रोटी को जानवरों के लिए रखा जाता था लेकिन अब शहरों में जानवर नहीं मिलते ऐसे में बहुत सारा अनाज हर रोज बर्बाद किया जाता है। ऐसे में आज हम आपको जो बताने जा रहे है उसे सुनकर शायद आप चौंक जाएंगे।
आज भी कई सारे घरों में रात के समय ज्यादा रोटी बनाई जाती है ताकि सुबह जाने वाले लोग बची हुई बासी रोटी को खाकर जा सकें। जबकि कई लोग ऐसे भी हैं जो बासी रोटी को हानिकारक मानते हैं और बची हुई रोटी को फेंक देते हैं। जब भी कुछ घरों में बासी रोटी बच जाती थी तो सुबह उसे सेंक कर उसमें नमक तेल लगाकर खाते हैं।

हम आपको बता दें कि जो बासी रोटी हम फेंक देते है उसे खाने से बहुत ही ज्यादा फायदा होता है ये खासकर उनके लिए है जो दिन भर भागदौड़ का काम करते है और उनको ह बीपी का प्रॉब्‍लम है। ऐसे लोग अगर हर रोज सुबह गेहूं के 2 बासी रोटी को दूध में मिला कर खाएं तो उनका ब्लूड प्रेशर कंट्रोल हो जाता है और अगर आपको बीपी नहीं भी है तो कभी होने नहीं देता इसलिए आप हर रोज बसी रोटी जरूर खाएं और स्वस्थ्य रहें।
*आपको बता दें रोटी में भरपूर मात्रा में फाइबर पाया जाता है। फाइबर खाना पचाने में मदद करता है। जब कभी भी घर में रात की रोटियां बच जाती हैं तो सुबह उसे गाय या कुत्ते को खाने के लिए दे दी जाती हैं। लेकिन अगर रोज सुबह बासी रोटी दूध के साथ खायी जाए तो कई फायदे होते हैं। 

*डायबिटीज के रोगियों के लिए बासी रोटी खाना फायदेमंद हो सकता है। अगर आपको डायबिटीज है, तो सुबह के समय बासी रोटी को दूध के साथ खाना फायदेमंद हो सकता है। इससे आपके शरीर में शर्करा का स्तर संतुलित रहेगा।
*अगर आप सुबह कुछ न कुछ खा लेते हैं औ,र फिर बाजार निकलते हैं तो गैस बनने लगता है अगर आप यही घर से निकलने से पहले सुबह सुबह अगर बासी रोटी दुध के साथ खा लेते हैं तो आपको गैस की प्रॉब्‍लम नहीं होती है। इस एसिडिटी से ही आपको तनाव और शुगर जैसी बिमारी का सामना करना पड़ता है। इसलिए जो लोग बासी रोटी साथ दूध का सेवन करके बाहर निकलते हैं उनका शुगर कंट्रोल में रहता है।
*इतना ही नहीं जिन्‍हें पेट से संबंधित कोई समस्‍या है वो लोग अगर दूध के साथ बासी रोटी खाएं तो पेट की हर समस्या ठीक हो जाती है।बासी रोटी के सेवन से पेट से जुड़े रोगों को ठीक करने में मदद मिलती है। हर सुबह दूध के साथ बासी रोटी दूध के साथ खाने से एसिडिटी ठीक हो जाती है और व्यक्ति की पाचन शक्ति भी काफी मजबूत हो जाती है।

*जिन्हें उच्च रक्त चाप समस्‍या है वो अगर रोज सुबह ठंडे दूध के साथ 2 बासी रोटी खाए तो शरीर का रक्त चाप संतुलित रहता है। इसके अलावा ज्यादा गर्मी के मौसम में भी इसका सेवन करने से शरीर का तापमान सही रहता है|





18.8.17

शरीर को विषैले पदार्थ से मुक्त करने का सुपर ड्रिंक




मानव  शरीर का विषाक्त पदार्थो से मुक्त होना बहुत जरूरी है अन्यथा यह हमारे शरीर को नुकसान पहुंचा सकते है बहुत से प्राकृतिक तरीकों से शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त किया जा सकता है, इस लेख में आपको बता रहा हूँ कि शरीर को विजातीय पदार्थ (टोक्सिन) मुक्त करने का सही और प्राकृतिक तरीका क्या है यह औषधि इस्तेमाल के बाद आप इससे मिलने वाले परिणाम से दंग रह जायंगे इस विधि से आपका शरीर टोक्सिन मुक्त हो जाएगा और आपका शरीर पूरा दिन ऊर्जा से भरा रहेगा

औषधि तैयार करने की सामग्री
1. गिलास पानी
2. 4 सेब
3. 1 ताजा अदरक (3 चम्मच के बराबर पिसा हुआ )
4. 1 नींबू
यदि संभव हो तो यह सामग्री आर्गेनिक ही उपयोग की जाये
औषधि तैयार करने की विधि

नींबू का छिलका उतारकर सेब ,नींबू अदरक और पानी को एक साथ जूसर में डालकर रस निकाल ले सुबह इसका खाली पेट सेवन करें आप महसूस करेंगे कैसे विषैले तत्व आपके शरीर से बाहर निकल रहे है और अपनी सेहत में आपको सुधार नजर आएगा आप पहले से ज्यादा ऊर्जा से भरे महसूस करेंग| इससे किडनी स्वच्छ रहती है| 

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जीरा के ये फायदे जानते हैं आप ?

    

जीरा का लैटिन नाम-क्यूमिनम साइमिनम हैं। यह अपच और दर्द को खत्म करता है। जीरा एक स्वादिष्ट मसाला है और औषधियों में भी जीरे का बहुत उपयोग किया जाता है। जीरा भारत में बहुत होता है। यह 3 प्रकार का होता है- सफेद जीरा, शाह जीरा या काला जीरा और कलौंजी जीरा। इनके गुण एक जैसे ही होते हैं। तीनों ही जीरे रूखे और तीखे होते हैं। ये मलावरोध, बुद्धिवर्धक, पित्तकारक, रुचिकारक, बलप्रद, कफनाशक और नेत्रों के लिए लाभकारी हैं।
सफेद जीरा दाल-सब्जी छोंकने और मसालों के काम में आता है तथा शाह जीरे का उपयोग विशेष रूप से दवा के रूप में किया जाता है। ओथमी जीरा और शंखजीरा ये 2 वस्तुएं जीरे से एकदम भिन्न है। ओथमी जीरे को छोटा जीरा अथवा ईसबगोल कहते हैं।
जीरा एक ऐसा मसाला है जो खाना बनाने में यूज तो होता ही है साथ ही इससे बनी चाय भी वजन कम करने में इफेक्टिव है. मेडिकल डायटीशियन डॉ. अमिता सिंह के अनुसार जीरे की चाय पीने से एसिडिटी कम होती है. जीरे की चाय में मौजूद मैग्नीशियम और आयरन जैसे न्यूट्रिएंट्स भी हेल्थ के लिए इफेक्टिव हैं। मेडिकल डायटीशियन डॉ. अमिता सिंह के अनुसार जीरे की चाय पीने से एसिडिटी कम होती है. वैसे तो सादी चाय से एसिडिटी होती है. लेकिन इसे बनाते समय अगर जीरा मिला दिया जाए तो एसिडिटी की संभावना कम हो सकती है. जीरे की चाय में मौजूद मैग्नीशियम और आयरन जैसे न्यूट्रिएंट्स भी हेल्थ के लिए इफेक्टिव हैं. हम बता रहे हैं रोज जीरे वाली चाय पीने के 10 फायदे.
वजन कम :
जीरे वाली चाय पीने से बॉडी में फैट का अब्जोब्रशन कम होता है. जिससे वजन तेज़ी से कम होने लगता है.
हार्ट प्रॉब्लम :
 इस चाय को पीने से कोलेस्ट्रोल कम होता है जिससे हार्ट प्रॉब्लम से बचाव होता है.
डाइजेशन : 
जीरे की चाय में मौजूद थायमौल से डाइजेशन इम्प्रूव होता है और कब्ज़ की प्रॉब्लम से बचाव होता है.
कैंसर :
 इस चाय में क्यूमिनएलडीहाइड होते है जो कैंसर से बचाने में मदद करते है.
एनर्जी :
 इसे पीने से इलेक्ट्रोलाइट्स बैलेंस रहते है और एनर्जी बनी रहती है.
सर्दी-जुकाम : 
इसमें एंटी बैक्टीरियल गुण होते है जो सर्दी-जुकाम से बचाने में फायदेमंद है.
बीमारियों से बचाव : 
इस चाय को पीने से बॉडी की इम्युनिटी बढती है और बीमारियों से बचाव होता है.
एनीमिया : 
जीरे की चाय में आयरन की मात्रा अधिक होती है जो एनीमिया (खून की कमी) से बचाने में मदद करता है.
हार्ट प्रॉब्लम :
 इस चाय को पीने से कोलेस्ट्रोल कम होता है जिससे हार्ट प्रॉब्लम से बचाव होता है.
डाइजेशन : 
जीरे की चाय में मौजूद थायमौल से डाइजेशन इम्प्रूव होता है और कब्ज़ की प्रॉब्लम से बचाव होता है.
कैंसर : 
इस चाय में क्यूमिनएलडीहाइड होते है जो कैंसर से बचाने में मदद करते है.
एनर्जी : इसे पीने से इलेक्ट्रोलाइट्स बैलेंस रहते है और एनर्जी बनी रहती है.
बीमारियों से बचाव : 
इस चाय को पीने से बॉडी की इम्युनिटी बढती है और बीमारियों से बचाव होता है.
एनीमिया : जीरे की चाय में आयरन की मात्रा अधिक होती है जो एनीमिया (खून की कमी) से बचाने में मदद करता है.
ब्रेन पावर : 
इसमें विटामिन B6 होते है जो ब्रेन पावर बढ़ाने में मदद करते है. इसे पीने से मेमोरी तेज होती है.
खांसी : जीरे का काढ़ा या इसके कुछ दानों को चबाकर खाने से खांसी एवं कफ दूर होता है।
रतौंधी :
जीरा, आंवला और कपास के पत्तों को मिलाकर ठण्डे पानी में पीसकर लेप बना लें। कुछ दिनों तक लगातार इस लेप को सिर पर लगाकर पट्टी बांधने से रतौंधी दूर होती है।
जीरे का चूर्ण बनाकर सेवन करने से रतौंधी (रात में दिखाई न देना) में लाभ होता है।
बिच्छू का जहर : 

जीरे और नमक को पीसकर घी और शहद में मिलाकर थोड़ा-सा गर्म करके बिच्छू के डंक पर लगायें।
बुखार : 
जीरे का 5 ग्राम चूर्ण पुराने गुड़ के साथ मिलाकर गोलियां बनाकर खाने से बुखार व जीर्ण बुखार उतर जाता है
दांतों का दर्द :
काले जीरे के उबले हुए पानी से कुल्ला करने से दांतों का दर्द दूर होता है।
3 ग्राम जीरे को भूनकर चूर्ण बना लें तथा उसमें 3 ग्राम सेंधानमक मिलाकर बारीक पीसकर मंजन बना लें। इस मंजन को मसूढ़ों पर मलने से सूजन और दांतों का दर्द खत्म होता है।
पेशाब का बार-बार आना :
जीरा, जायफल और काला नमक 2-2 ग्राम की मात्रा में कूट पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इस मिश्रण को अनन्नास के 100 मिलीलीटर रस के साथ खाने से लाभ मिलता है।
मुंह की बदबू : मुंह में बदबू आती हो तो जीरे को भूनकर खाएं। इस प्रयोग से मुंह की बदबू दूर हो जाती है।
मलेरिया का बुखार :
एक चम्मच जीरे को पीसकर, 10 ग्राम गुड़ में मिला दें। इसकी 3 खुराक बनाकर बुखार चढ़ने से
पहले, सुबह, दोपहर और शाम को दें।
1 चम्मच जीरा बिना सेंका हुआ पीस लें। इसका 3 गुना गुड़ इसमें मिलाकर 3 गोलियां बना लें। निश्चित समय पर ठण्ड लगकर आने वाले मलेरिया के बुखार के आने से पहले 1-1 घण्टे के बीच गोली खाएं कुछ दिन रोज इसका प्रयोग करें। इससे मलेरिया का बुखार ठीक हो जाता है।
काला जीरा, एलुआ, सोंठ, कालीमिर्च, बकायन के पेड़ की निंबौली तथा करंजवे की मींगी को पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसे दिन में 3-3 घंटे के अन्तर से 1-1 गोली खाने से मलेरिया का बुखार दूर हो जाता है।
पुराना बुखार : 
 कच्चा पिसा हुआ जीरा 1 ग्राम इतने ही गुड़ में मिलाकर दिन में 3 बार लगातार सेवन करें। इससे पुराना से पुराना बुखार भी ठीक हो जाता है।

पाचक चूरन : 
जीरा, सोंठ, सेंधानमक, पीपल, कालीमिर्च प्रत्येक सभी को समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 1 चम्मच खाना खाने के बाद ताजा पानी के साथ खाने से भोजन जल्दी पच जाता है।
खूनी बवासीर : 
 जीरा, सौंफ, धनिया को एक-एक चम्मच लेकर 1 गिलास पानी में उबालें, जब आधा पानी बच जाये तो इसे छान लें, फिर इसमें 1 चम्मच देशी घी मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में रक्त गिरना बंद हो जाता है। यह गर्भवती स्त्रियों के बवासीर में ज्यादा फायदेमंद होता है।
चेहरा साफ करने के लिए :
 जीरे को उबालकर उस पानी से मुंह धोएं इससे चेहरे की सुन्दरता बढ़ जाती है।
खुजली और पित्ती : 
जीरे को पानी में उबालकर, उस पानी से शरीर को धोने से शरीर की खुजली और पित्ती मिट जाती है।

पथरी, सूजन व मुत्रावरोध :
 इन कष्टों में जीरा और चीनी समान मात्रा में पीसकर 1-1 चम्मच भर ताजे पानी से रोज 3 बार खाने से लाभ होता है।
स्तनों में गांठे : 
दूध पिलाने वाली महिलाओं के स्तन में गांठ पड़ जाये तो जीरे को पानी में पीसकर स्तन पर लगायें। फायदा पहुंचेगा।
स्तनों का जमा हुआ दूध निकालना :
 जीरा 50 ग्राम को गाय के घी में भून पीसकर इसमें खांड 50 ग्राम की मात्रा में मिला देते हैं। इसे 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह दूध के साथ प्रयोग करना चाहिए। इससे गर्भाशय भी शुद्ध हो जाता है और छाती में दूध भी बढ़ जाता है।
स्तनों में दूध की वृद्धि :
सफेद जीरा, सौंफ तथा मिश्री तीनों का अलग-अलग चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर रख लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ दिन में तीन बार देने से प्रसूता स्त्री के दूध में अधिक वृद्धि होती है।
सफेद जीरा तथा सांठी के चावलों को दूध में पकाकर पीने से कुछ ही दिनों में स्तनों का दूध बढ़ जाता है।
125 ग्राम जीरा सेंककर उसमें 125 ग्राम पिसी हुई मिश्री मिला लें। इसको 1 चम्मच भर रोज सुबह और शाम को सेवन करें। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।

अजीर्ण : 
3 से 6 ग्राम भुने जीरे एवं सेंधानमक के चूर्ण को गर्म पानी के साथ दिन में 3 बार जरूर लें। इससे अजीर्ण का रोग समाप्त हो जाता है।
पेचिश : 

सूखे जीरे का 1-2 ग्राम पाउडर, 250 मिलीलीटर मक्खन के साथ दिन में चार बार लें। इससे पेचिश ठीक हो जाती है।
खट्टी डकारें : 
5-10 ग्राम जीरे को घी में मिलाकर गर्म कर लें, इसे भोजन के समय चावल में मिलाकर खाने से खट्टी डकारे आना बंद हो जाती हैं।
ब्रेन पावर : 
इसमें विटामिन B6 होते है जो ब्रेन पावर बढ़ाने में मदद करते है. इसे पीने से मेमोरी तेज होती है.
दांतों का दर्द :
काले जीरे के उबले हुए पानी से कुल्ला करने से दांतों का दर्द दूर होता है।
3 ग्राम जीरे को भूनकर चूर्ण बना लें तथा उसमें 3 ग्राम सेंधानमक मिलाकर बारीक पीसकर मंजन बना लें। इस मंजन को मसूढ़ों पर मलने से सूजन और दांतों का दर्द खत्म होता है।

पेशाब का बार-बार आना :
जीरा, जायफल और काला नमक 2-2 ग्राम की मात्रा में कूट पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इस मिश्रण को अनन्नास के 100 मिलीलीटर रस के साथ खाने से लाभ मिलता है।
मुंह की बदबू : मुंह में बदबू आती हो तो जीरे को भूनकर खाएं। इस प्रयोग से मुंह की बदबू दूर हो जाती है।
मलेरिया का बुखार :
एक चम्मच जीरे को पीसकर, 10 ग्राम गुड़ में मिला दें। इसकी 3 खुराक बनाकर बुखार चढ़ने से
जिस जीरे को आप मामूली समझते है वो इन 20 समस्याओ में संजीवनी साबित होता है
जीरा का लैटिन नाम-क्यूमिनम साइमिनम हैं। यह अपच और दर्द को खत्म करता है। जीरा एक स्वादिष्ट मसाला है और औषधियों में भी जीरे का बहुत उपयोग किया जाता है। जीरा भारत में बहुत होता है। यह 3 प्रकार का होता है- सफेद जीरा, शाह जीरा या काला जीरा और कलौंजी जीरा। इनके गुण एक जैसे ही होते हैं। तीनों ही जीरे रूखे और तीखे होते हैं। ये मलावरोध, बुद्धिवर्धक, पित्तकारक, रुचिकारक, बलप्रद, कफनाशक और नेत्रों के लिए लाभकारी हैं।
सफेद जीरा दाल-सब्जी छोंकने और मसालों के काम में आता है तथा शाह जीरे का उपयोग विशेष रूप से दवा के रूप में किया जाता है। ओथमी जीरा और शंखजीरा ये 2 वस्तुएं जीरे से एकदम भिन्न है। ओथमी जीरे को छोटा जीरा अथवा ईसबगोल कहते हैं।
वजन कम : 
जीरे वाली चाय पीने से बॉडी में फैट का अब्जोब्रशन कम होता है. जिससे वजन तेज़ी से कम होने लगता है.
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  • 14.8.17

    पाचन संस्थान स्वस्थ रखने के घरेलू आयुर्वेदिक उपाय /Home remedies to Keep Digestive System Healthy


        स्वस्थ शरीर पाने लिए पाचन ठीक होना आवश्यक है। हम जो कुछ भी खाते है उसे पाचन तंत्र शरीर में पहुंचाता है। पाचन तंत्र भोजन को ऊर्जा में बदल कर शरीर को पोषण और शक्ति देता है और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है। पाचन क्रिया कमजोर हो जाने पर खाया पिया अछे से पचता नहीं और शरीर को आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिलते। खराब पाचन से शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होने लगती है जिस कारण बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है। अनहेल्थी लाइफस्टाइल और खाने पीने की बुरी आदतों का बुरा प्रभाव हमारे डाइजेशन पर पड़ता है। पाचन शक्ति मजबूत ना होने पर पेट में गैस, क़ब्ज़,अल्सर, मोटापा, दुबलापन, बदहज़मी, पेट और लिवर की बीमारियां होने का खतरा अधिक होता है, इसलिए जरुरी है की पाचन क्रिया ठीक करने के तरीके किये जाये। 
    पाचन क्रिया कमजोर होने के निम्न कारण है-
    बेवक़्त खाना
    नींद पूरी ना लेना
    तनाव अधिक लेना
    फास्ट फुड अधिक खाना
    जल्दी जल्दी भोजन खाना
    शारीरिक क्रिया कम होना
    एक ही जगह कई घंटे लगातार बैठ कर काम करना।

    प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से मूत्र बाधा की अचूक औषधि 

    पाचन शक्ति बढ़ाने के घरेलू नुस्खे
    1. एक छोटा टकड़ा अदरक ले और इस पर नींबू का रस डाल कर चूसे, इस घरेलू नुस्खे से पाचन क्रिया बढ़ती है।
    2. काला नमक, जीरा और अजवाइन बराबर मात्रा में ले और मिक्स करके इस मिश्रण का एक चम्मच पानी के ले।
    3. अजवाइन के पानी से भी पाचन मजबूत होता है।
    4. इलायची के बीजों को पीस कर चूर्ण बना ले और बराबर मात्रा में मिश्री मिला ले। तीन ग्राम मात्रा में ये देसी दवा दिन में दो से तीन बार खाए।
    5. आँवले का पाउडर, भूना हुआ जीरा, सौंठ, सेंधा नमक, हींग और काली मिर्च मिलाकर इसकी छोटी छोटी वडी बनाकर सेवन करे। इस उपाय से पाचन शक्ति मजबूत होती है और इससे भूख भी बढ़ती है।


    पाचन क्रिया ठीक करने के उपाय-

    1.पुदीने का प्रयोग पेट की कई बीमारियों के उपचार में होता है। रोजाना इसका सेवन करने से पेट की बीमारियों से छुटकारा मिलता है।
    2.  हरी सब्जियाँ पालक, मेथी पाचन सुधारने का अछा उपाय है, इनके सेवन से क़ब्ज़ का उपचार होता है और शरीर को ज़रूरी पोषण मिलता है।
    3. मूली का सेवन पेट में गैस की समस्या में रामबाण इलाज है। मूली पर काला नमक लगाये और सलाद जैसे खाये। मूली की सब्जी और रस पिने से भी फायदा होता है। इसे रात को ना खाए।
    4. संतरे का रस पीने से पाचन क्रिया दरुस्त होती है।
    5. अंकुरीत गेंहू, मूँग दाल और चने खाने से भी पाचन शक्ति ठीक रहती है।
    6. तांबे के बर्तन में रखा पानी सुबह खाली पेट पीने से पाचन शक्ति बढ़ती है।
    7.  विटामिन सी और फाइबर युक्त चीज़े खाने से डिजेस्शन की प्राब्लम से छुटकारा मिलता है।



    8.  पाचन क्रिया सुधारने के लिए सलाद अधिक खाए। सलाद में टमाटर, कला नमक और नींबू का प्रयोग करे।

    9. पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए पानी अधिक पिए। खाना खाने से आधा घंटा पहले गुनगुना पानी पीने से पाचन मजबूत होता है।
    10. खाने में फलों का इस्तेमाल अधिक करे। फलों में पपीता, अमरूद, अंजीर, संतरे और अनार खाए। इनमें फाइबर अधिक मात्रा में होता है जिससे पाचन क्रिया ठीक होती है और पेट भी साफ़ रहता है।

    विशिष्ट परामर्श-

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    13.8.17

    भगंदर (फिश्चूला)की आयुर्वेदिक चिकित्सा



    भगन्दर: भगन्दर गुदा क्षेत्र में होने वाली एक ऐसी बीमारी है जिसमें गुदा द्वार के आस पास एक फुंसी या फोड़ा जैसा बन जाता है जो एक पाइपनुमा रास्ता बनता हुआ गुदामार्ग या मलाशय में खुलता है.
    शल्य चिकित्सा के प्राचीन भारत के आचार्य सुश्रुत ने भगन्दर रोग की गणना आठ ऐसे रोगों में की है जिन्हें कठिनाई से ठीक किया जा सकता है. इन आठ रोगों को उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में 'अष्ठ महागद' कहा है.
    भगन्दर कैसे बनता है?
    गुदा नलिका जो कि एक वयस्क  मानव में लगभग ४ से.मी. लम्बी होती है, के अन्दर कुछ ग्रंथियां होती हैं व इन्ही के पास कुछ सूक्ष्म गड्ढे जैसे होते है जिन्हें एनल क्रिप्ट कहते हैं; ऐसा माना जाता है कि इन क्रिप्ट में स्थानीय संक्रमण के कारण स्थानिक शोथ हो जाता है जो धीरे धीरे बढ़कर एक फुंसी या फोड़े के रूप में गुदा द्वार के आस पास किसी भी जगह दिखाई देता है. यह अपने आप फूट जाता है. गुदा के पास की त्वचा के जिस बिंदु पर यह फूटता है, उसे भगन्दर की बाहरी ओपनिंग कहते हैं.
    भगन्दर के बारे में विशेष बात यह है कि अधिकाँश लोग इसे एक साधारण फोड़ा या बालतोड़ समझकर टालते रहते हैं, परन्तु वास्तविकता यह है कि जहाँ साधारण फुंसी या बालतोड़ पसीने की ग्रंथियों के इन्फेक्शन के कारण होता है, जो कि त्वचा में स्थित होती हैं; वहीँ भगन्दर की शुरुआत गुदा के अन्दर से होती है तथा इसका इन्फेक्शन एक पाइपनुमा रास्ता बनाता हुआ बाहर की ओर खुलता है.


    भगन्दर के लक्षण:

    गुदा के आस पास एक फुंसी या फोड़े का निकलना जिससे रुक-रुक कर मवाद (पस) निकलता है.
    प्रभावित क्षेत्र में दर्द का होना
    प्रभावित क्षेत्र में व आस पास खुजली होना
    पीड़ित रोगी के मवाद के कारण कपडे अक्सर गंदे हो जाते हैं.
    आचार्य सुश्रुत ने भगन्दर और नाड़ीव्रण (sinus) में छेदन कर्म और क्षार सूत्र का प्रयोग बताया है.
    आयुर्वेद क्षार सूत्र चिकित्सा :-
    आयुर्वेद में एक विशेष शल्य प्रक्रिया जिसे क्षार सूत्र चिकित्सा कहते हैं, के द्वारा भगन्दर पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है. इस विधि में एक औषधियुक्त सूत्र (धागे) को भगन्दर के ट्रैक में चिकित्सक द्वारा एक विशेष तकनीक से स्थापित कर दिया जाता है. क्षार सूत्र पर लगी औषधियां भगन्दर के ट्रैक को साफ़ करती हैं व एक नियंत्रित गति से इसे धीरे धीरे काटती हैं. इस विधि में चिकित्सक को प्रति सप्ताह पुराने सूत्र के स्थान पर नया सूत्र बदलना पड़ता है.
    इस विधि में रोगी को अपने दैनिक कार्यों में कोई परेशानी नहीं होती है, उसका इलाज़ चलता रहता है और वह अपने सामान्य काम पहले की भांति कर सकता है. इलाज़ के दौरान एक भी दिन अस्पताल में भर्ती होने की जरुरत नहीं होती है. क्षार सूत्र चिकित्सा सभी प्रकार के भगन्दर में पूर्ण रूप से सफल एवं सुरक्षित है. 
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    7.8.17

    हर प्रकार की गांठ का आयुर्वेदिक घरेलु उपचार //Ayurvedic home remedies for every type of lump


    गांठे (Lump)

    अक्सर हमारे शरीर के किसी भी भाग में गांठे बन जाती हैं. जिन्हें सामान्य भाषा में गठान या रसौली कहा जाता हैं. किसी भी गांठ की शुरुआत एक बेहद ही छोटे से दाने से होती हैं. लेकिन जैसे ही ये बड़ी होती जाती हैं. इन गाठों की वजह से ही गंभीर बीमारियां भी हो जाती हैं. ये गांठे टी.वी से लेकर कैंसर की बीमारी की शुरुआत के चिन्ह होती हैं. अगर किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग में कोई गाँठ हो गई हैं. जिसक कारण उस गाँठ से आंतरिक या बाह्य रक्तस्राव हो रहा हो. तो हो सकता हैं कि यह कैंसर की बीमारी के शुरुआती लक्षण हो. लेकिन इससे यह भी सुनिश्चित नहीं हो जाता कि ये कैंसर के रोग को उत्पन्न करने वाली गांठ हैं. कुछ गाँठ साधारण बिमारी उत्पन्न होने के कारण भी हो जाती हैं. किन्तु हमें किसी भी प्रकार की गांठों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए तथा उसका तुरंत ही उपचार करवाना चाहिए


    गुर्दे की पथरी (Kidney Stone) के रामबाण उपचा

    कुछ स्त्रियाँ या पुरुष नासूर या ऑपरेशन कराने के डर से जल्द गाँठ का इलाज नहीं करवाते. लेकिन ऐसे व्यक्तियों के लिए यह समझना बहुत ही आवश्यक हैं कि इन छोटी सी गांठों को यदि आप लगातार नजरअंदाज करेंगें. तो इन गांठों की ही वजह से ही आपको बाद में अधिक परेशानी का सामना करना पड सकता हैं. आज हम आपको शरीर के किसी भी भाग में होने वाली गांठ को ठीक करने के लिए कुछ आयुर्वेदिक उपचारों के बारे में बतायेंगें. जिनका वर्णन नीचे किया गया हैं.
    उपचार-


    १.  आकडे का दूध -


     गाँठ को ठीक करने के लिए आप आकडे के दूध में मिटटीमिला लें. अब इस दूध का लेप जिस स्थान पर गाँठ हुई हैं. वहाँ पर लगायें आपको आराम मिलेगा.

    २.  गेहूं का आटा –


     गेहूं का आटा लें और उसमें पानी डाल लें. अब इस आटे मेंपापड़खार मिला लें और इसका सेवन करें. आपको लाभ होगा.
    ३. . निर्गुण्डी (Nirgundi) – 




    किसी भी प्रकार की गाँठ से मुक्त होने के लिए 20 से 25 मिली काढ़ा लें और उसमें 1 से 5 मिली लीटर तक अरंडी का तेल मिला लें. इन दोनों को अच्छी तरह से मिलाने के बाद इस मिश्रण का सेवन करें. तो आपकी गांठ ठीक हो जायेगी.
    आपके शरीर मे कहीं पर भी किसी भी किस्म की गांठ हो। उसके लिए है ये चिकित्सा चाहे किसी भी कारण से हो सफल जरूर होती है। कैंसर मे भी लाभदायक है।
    आप ये दो चीज पंसारी या आयुर्वेद दवा की दुकान से ले ले:-




    कचनार की छाल
    गोरखमुंडी-
                                                                 
                                                                      गोरखमुंडी
    वैसे यह दोनों जड़ी बूटी बेचने वाले से मिल जाती हैं पर यदि कचनार की छाल ताजी ले तो अधिक लाभदायक है।

    कचनार का पेड़ हर जगह आसानी से मिल जाता है। इसकी सबसे बड़ी पहचान है - सिरे पर से काटा हुआ पत्ता । इसकी शाखा की छाल ले। तने की न ले। उस शाखा (टहनी) की छाल ले जो 1 इंच से 2 इंच तक मोटी हो । बहुत पतली या मोटी टहनी की छाल न ले|गोरखमुंडी का पौधा आसानी से नहीं मिलता इसलिए इसे जड़ी बूटी बेचने वाले से खरीदे ।



    कैसे प्रयोग करे :-


    कचनार की ताजी छाल 25-30 ग्राम (सुखी छाल 15 ग्राम ) को मोटा मोटा कूट ले। 1 गिलास पानी मे उबाले। जब 2 मिनट उबल जाए तब इसमे 1 चम्मच गोरखमुंडी (मोटी कुटी या पीसी हुई ) डाले। इसे 1 मिनट तक उबलने दे। छान ले। हल्का गरम रह जाए तब पी ले।

    ध्यान दे यह कड़वा है परंतु चमत्कारी है। गांठ कैसी ही हो, प्रोस्टेट बढ़ी हुई हो, जांघ के पास की गांठ हो, काँख की गांठ हो गले के बाहर की गांठ हो , गर्भाशय की गांठ हो, स्त्री पुरुष के स्तनो मे गांठ हो या टॉन्सिल हो, गले मे थायराइड ग्लैण्ड बढ़ गई हो (Goiter) या LIPOMA (फैट की गांठ ) हो लाभ जरूर करती है। कभी भी असफल नहीं होती। अधिक लाभ के लिए दिन मे 2 बार ले। लंबे समय तक लेने से ही लाभ होगा। 20-25 दिन तक कोई लाभ नहीं होगा निराश होकर बीच मे न छोड़े।
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    3.8.17

    खून में कोलेस्ट्रोल कम करने के असरदार उपाय , Effective remedies for reducing cholesterol in the blood



    कोलेस्ट्रोल क्या है :
    हृदय में रोग होने का मुख्य कारण खून में अधिक कोलेस्ट्रोल होना होता है। कोलेस्ट्रोल खून में छोटे-छोटे अणुओं का वह रूप है जो एक प्रकार की चिकनाई की तरह होता है। वैसे कोलेस्ट्रोल शरीर की सभी क्रियाओं को करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शरीर में कोशिकाओं का निर्माण करता है और विभिन्न हार्मोन्स के संयोजन के लिए आवश्यक होता है तथा नाड़ियों का आवरण तथा मस्तिष्क की कोशिकाओं का निर्माण करता है। कोलेस्ट्रोल पाचनक्रिया को कराने के लिए बाइल जूस का निर्माण करता है। इसी के द्वारा यह शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचता है तथा लाल रक्तकण की रक्षा करता है। ज्यादातर कोलेस्ट्रोल तो जिगर में ही बनता है। जिन व्यक्तियों के भोजन में कोलेस्ट्रोल अधिक होता है उनके खून में कोलेस्ट्रोल का स्तर अधिक हो जाता है जिसके कारण हृदय में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं।
    जब कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक हो जाती है तो यह प्रोटीन के साथ मिलकर लिपो-प्रोटीन का निर्माण करता है और यह 2 प्रकार का होता है।
    1. लो डेन्सिटी लिपो-प्रोटीन
    2. हाई डेन्सिटी लिपो-प्रोटीन



    लो डेन्सिटी लिपो-प्रोटीन-

    यह ट्राइग्लिसराईड और प्रोटीन के मिश्रण से बनता है और यह बहुत ही बुरा होता है क्योंकि यह परिहृदय धमनियों (कोरोनरी आर्टेरीज) में मेदार्बुद के बनने में सहायक होता है। इसके कारण रक्त के संचारण में अवरोध उत्पन्न होता है तथा हृदयघात होने की स्थिति पैदा हो जाती है।
    हाई डेन्सिटी लीपो प्रोटीन-
    यह एक प्रकार का अच्छा कोलेस्ट्रोल होता है क्योंकि यह मेदार्बुद को बनने से रोकता है। पूर्ण कोलेस्ट्रोल सामान्य स्तर पर होते हुए भी यदि एच डी एल की मात्रा सामान्य से कम हो या एल डी एल का अनुपात अधिक हो तो भी धमनियों में अवरोधक के बनने की संभावना रहती है।
    कोलेस्ट्रोल के लक्षण 
    इस रोग से पीड़ित रोगी के छाती में दर्द होता है, मोटापा बढ़ जाता है, मधुमेह का रोग भी हो जाता है, रोगी के रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है व यदि इस रोग से धमनियां प्रभावित हो गई हो तो नपुंसकता रोग हो जाता है। रोगी के मांसपेशियों में दर्द होता है। वैसे रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ जाने के कारण से कोई विशेष प्रकार के लक्षण नहीं दिखाई पड़ते। इस रोग के कारण से कुछ गम्भीर अवस्थाए भी पैदा हो सकती हैं जैसे- हृत्शूल, उच्चरक्तचाप, हृदय रोग या आघात होना आदि।
    अधिक कोलेस्ट्रोल होने का कारण :
    ★ अधिक तले-भुने तथा बासी भोजन का सेवन करने से, मांस अंडा तथा दूध से बने पदार्थों का अधिक उपयोग करने के कारण कोलेस्ट्रोल ज्यादा हो सकता है।
    ★ अधिक कोलेस्ट्रोल मानसिक तनाव के कारण से भी हो सकता है क्योंकि तनाव के कारण एड्रीनल ग्रंथि का अधिक स्राव होता है जो फेट मोटाबोलिस्म को प्रभावित करता है। 
    ★ अधिक शराब पीने या अधिक धूम्रपान करने के कारण भी कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ सकती है।
    कोलेस्ट्रोल का आयुर्वेदिक इलाज :
    1.  रात को सोते समय काले चनों को पानी में भिगों दें। सुबह के समय में उठकर उसके पानी को पी लें तथा चनों को खा जाएं जिसके फलस्वरूप खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा सामान्य हो जाती है।
    2.  जिस व्यक्ति के खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक हो उसके पेट पर मिट्टी की पट्टी का लेप करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है तथा इसके साथ ही व्यक्ति को कटिस्नान करना चाहिए। वैसे भाप स्नान करना भी लाभदायक होता है लेकिन उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) वालों के लिए यह ठीक नहीं होता है।
    3. व्यक्ति को नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए तथा कोलेस्ट्रोल की मात्रा को सामान्य बनाने के लिए योगासन भी करना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से कोलेस्ट्रोल की मात्रा सामान्य हो जाती है।
    4.  जिन व्यक्तियों के खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा ज्यादा हो उन्हें प्रतिदिन पानी अधिक पीना चाहिए।
    5.  खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को सामान्य करने के लिए हरे नारियल का पानी पीना काफी उत्तम होता है। इसलिए रोगी व्यक्ति को हरे नारियल का पानी प्रतिदिन पीना चाहिए।
    6. धनिये को पानी में उबालकर, उस पानी को छानकर पीने से भी ज्यादा कोलेस्ट्रोल पेशाब द्वारा बाहर निकल जाता है।
    7.  रेशेदार खाद्य पदार्थों जैसे- चोकर समेत आटे की रोटी, छिलके समेत दालें, टमाटर, गाजर, अमरूद, हरी पत्तेदार सब्जियां, पत्तागोभी आदि का अधिक सेवन करने से विटामिन `बी´ प्रधान भोजन एल डी एल कम हो जाता है जिसके फलस्वरूप कोलेस्ट्रोल की मात्रा खून में सामान्य हो जाती है।
    8.  प्रतिदिन कम से कम 50 ग्राम जई का चोकर सेवन करने से भी कोलेस्ट्रोल की मात्रा सामान्य हो जाती है।
    9. अजवायन खून में हानिकारक कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम करती है इसलिए भोजन में प्रतिदिन अजवायन का उपयोग करना चाहिए।
    10.  लेशीथीन चिकनाई वाले भोजन का सेवन करने से रक्त की नलिकाओं में कोलेस्ट्रोल नहीं जमता है तथा यह कोलेस्ट्रोल से बाईल के निर्माण को बढ़ाता है जिससे रक्त में कोलेस्ट्रोल कम हो जाता है।
    11.   खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को सामान्य करने के लिए एल डी एल को घटाना आवश्यक है। इसलिए भोजन में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को बढ़ाने वाले पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
    12.  कोलेस्ट्रोल की मात्रा को बढ़ाने वाले पशुजनित खाद्य पदार्थ (पशुओं के मांस तथा दूध से बनने वाले खाद्य पदार्थ) को नहीं खाना चाहिए।
    13.   भोजन में नारियल तथा पाम के तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि यह कोलेस्ट्रोल की मात्रा को बढ़ाते हैं।