9.3.17

शूगर (मधुमेह) के जड़ से इलाज के घरेलू रामबाण उपचार -डॉ॰आलोक



मधुमेह एक खतरनाक बीमारी है। जिसे अगर सही वक़्त पर रोका ना जाये तो इसका परिणाम जानलेवा भी हो सकते है। आज भारत में 4.5 करोड़ व्यक्ति डायबिटीज (मधुमेह) का शिकार हैं। इसका मुख्य कारण है असंयमित खानपान, मानसिक तनाव, मोटापा, व्यायाम की कमी। इसी कारण यह रोग हमारे देश में बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। यह बीमारी में हमारे शरीर में अग्नाशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण होती है। रक्त ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव भी असामान्य हो जाते हैं। धमनियों में बदलाव होते हैं। इन मरीजों में आँखों, गुर्दों, स्नायु, मस्तिष्क, हृदय के क्षतिग्रस्त होने से इनके गंभीर, जटिल, घातक रोग का खतरा बढ़ जाता है।

दिव्य औषधि कस्तुरी के अनुपम प्रयोग 

डायबिटीज के मुख्य कारण:
*खान-पान पर ध्यान न देने की वजह से।
* यह रोग बैठकर काम करने वाले लोगों को भी हो सकता है।
* मिठाईयों का अधिक मात्रा में सेवन करना।
*अधिक मात्रा में नशीले पदार्थों का सेवन करने से।
*अनुवांशिक प्रभाव से भी यह रोग हो सकता है।
*चिंता और मानसिक रोग से भी मधुमेह हो सकता है।डायबिटीज के लक्षण:
* इस रोग में रोगी को भूख-प्यास ज्यादा लगती रहती है।
* आंखों से धुंधला दिखना।
* इस रोग के रोगी के घाव आसानी से नहीं भरते।
* शरीर में सूजन आना।
* थोड़ीसी मेहनत करने में शरीर का थक जाना।
* बार-बार मूत्र जाने की शिकायत होना।
* ब्लडप्रेशर का बढ़ना।
* शरीर की त्वचा का रूखा होना और फिर खुजलाहट का बढ़ना, स्त्रियों में योनि में खुजलाहट होना और पुरूषों में लिंग में खुजलाहट का होना।

हाइड्रोसील(अंडकोष वृद्धि) के  घरेलू  और होम्योपैथिक उपचार

*नीम का रस का पौधा मधुमेह रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
* स्टीविया बहुत मीठा होता है लेकिन शुगर फ्री होता है। स्टीविया खाने से पैंक्रियाज से इंसुलिन आसानी से मुक्त होता है।
*डायबिटीज के मरीजों को शतावर का रस और दूध का सेवन करना चाहिए। शतावर का रस और दूध को एक समान मात्रा में लेकर रात में सोने से पहले मधुमेह के रोगियों को सेवन करना चाहिए। इससे मधुमेह नियंत्रण में रहता है।
*
नीम का रस-
मधुमेह मरीजो को नियमित रूप से दो चम्मच नीम का रस और चार चम्मच केले के पत्ते के रस को मिलाकर पीना चाहिए।
*चार चम्‍मच आंवले का रस, गुड़मार की पत्ती मिलाकर काढ़ बनाकर पीने मधुमेह नियंत्रण में रहता है।
*गेहूं के पौधों में रोगनाशक गुण होते हैं। गेहूं के छोटे-छोटे पौधों से रस निकालकर सेवन करने से मुधमेह नियंत्रण में रहता है।
*मधुमेह के रोगियों को खाने को अच्छे से चबाकर खाना चाहिए। अच्छे से चबाकर खाने से भी मधुमेह को नियंत्रण में किया जा सकता है।
*10 मिग्रा आंवले के जूस को 2 ग्राम हल्दी के पाउडर में मिला लीजिए। इस घोल को दिन में दो बार लीजिए। इसको लेने से खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित होती है।


शीघ्रपतन का होमियोपैथिक इलाज 

*
करेला
औसत आकार का एक टमाटर, एक खीरा और एक करेला को लीजिए। इन तीनों को मिलाकर जूस निकाल लीजिए। इस जूस को हर रोज सुबह-सुबह खाली पेट लीजिए। इससे डायबिटीज में फायदा होता है।
* सौंफ
डायबिटीज के मरीजों के लिए सौंफ बहुत फायदेमंद होता है। सौंफ खाने से डायबिटीज नियंत्रण में रहता है। हर रोज खाने के बाद सौंफ खाना चाहिए।
* जामुन
मधुमेह के रोगियों को जामुन खाना चाहिए। काले जामुन डायबिटीज के मरीजों के लिए अचूक औषधि मानी जाती है। जामुन को काले नमक के साथ खाने से खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित होती 
दालचीनी-
  • दालचीनी के नाम से भी जाना जाने वाला यह पदार्थ इन्सुलिन की संवेदनशीलता को बढ़ाता है तथा रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर को कम करता है। प्रतिदिन आधा टी स्पून दालचीनी का सेवन करने से इन्सुलिन की संवेदनशीलता बढ़ती है तथा वज़न नियंत्रित होता है, जिससे हृदय रोग की संभावना कम होती है।
    ब्लड शुगर के स्तर को कम रखने के लिए एक महीने तक अपने प्रतिदिन के आहार में 1 ग्राम दालचीनी शामिल करें

  • सहवास अवधि  बढ़ाने के नुस्खे

  • *.हृदय स्‍वास्‍थ्‍य मधुमेह की शुरुवात के साथ सबसे पहले हृदय पर बुरा प्रभाव पढ़ता है। इसलिए डायबिटीज को चेक करने साथ साथ अपने कोलेस्ट्रॉल के स्तर पर नजर रखने की जरूरत है।
    *ग्रीन टी-




  •  ग्रीन टी रोजाना एक कप बिना शक्कर की हरी चाय पीने से ये शरीर की गंदगी साफ होती है। और इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट आपके ब्लड शुगर को भी नार्मल रखता है।
    धूम्रपान ना करे







  • लम्बे समय तक धूम्रपान करने से हृदय रोग और हार्मोन प्रभावित होने शुरू हो जाते है। धूम्रपान की आदत छोड़ देने से आपका स्वास्थ्य तो अच्छा रहेगा ही साथ ही डायबिटीज भी कंट्रोल रहेगी।
    ताज़ी सब्जियां खाए -
    ताज़ा सब्जियों में आयरन, जिंक, पोटेशियम, कैल्शियम और अन्य आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते है। जो हमारे शरीर को पोषक तत्व प्रदान करते है। जिसे हमारा हृदय और नर्वस सिस्टम भी स्वस्थ रहता है। इससे आपका शरीर आवश्यक इंसुलिन बनाता है।
    रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट ना खाए -
    यदि आप अपने ब्लड शुगर को नियंत्रित करना चाहते हैं तो, सफेद चावल, पास्ता, पॉपकॉर्न,राइस पफ और वाइट फ्लौर से बचें। मधुमेह के दौरान शरीर कार्बोहाइड्रेट्स को पचा नहीं पता है। जिस की वजह से शुगर आपके शरीर में तेज़ी से जमा होने लगती है।
    एक्सरसाइज -
    उचित व्यायाम अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है। अध्ययन बताते है की रोज़ एक्सरसाइज करने से हमारा मटैबलिज़म भी अच्छा रहता है जो की डायबिटीज के रिस्क को भी कम करता है।

    प्रोस्टेट वृद्धि से मूत्र समस्या का 100% अचूक ईलाज

    अलसी के बीज
    अलसी में फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिसके कारण यह फैट और शुगर का उचित अवशोषण करने में सहायक होता है। अलसी के बीज डाइबिटीज़ के मरीज़ की भोजन के बाद की शुगर को लगभग 28 प्रतिशत तक कम कर देते हैं।






  • प्रतिदिन सुबह खाली पेट अलसी का चूर्ण गरम पानी के साथ लें।
    फाइबर -
    फाइबर युक्त आहार ब्लड शुगर को कंट्रोल करता है। अवशोषित फाइबर ब्लड में शुगर की अधिक मात्रा को अब्ज़ोर्ब कर लेता है और इन्सुलिन को नार्मल करके मधुमेह को नियंत्रित करता है।
    लाल मांस से बचें -
    लाल मांस में फोलिफेनोल्स पाया जाता है जो की ब्लड में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ा देता है। लाल मांस में जटिल प्रोटीन पाया जाता है, जो बहुत धीरे से पचता है इसलिए लाल मांस मेताबोलिसिम को धीमा करता है जिसकी वजह से इंसुलिन के बहाव पर असर पढ़ता है।

    भटकटैया (कंटकारी)के गुण,लाभ,उपचार

    सौंफ -
    डायबिटीज के मरीजों के लिए सौंफ बहुत फायदेमंद होता है। सौंफ खाने से डायबिटीज नियंत्रण में रहता है। हर रोज खाने के बाद सौंफ खाना चाहिए।






  • जामुन -
    मधुमेह के रोगियों को जामुन खाना चाहिए। काले जामुन डायबिटीज के मरीजों के लिए अचूक औषधि मानी जाती है। जामुन को काले नमक के साथ खाने से खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित होती है|



  • पुरुष ग्रंथि (प्रोस्टेट) बढ़ने से मूत्र - बाधा का अचूक इलाज 

    *किडनी फेल(गुर्दे खराब ) रोग की जानकारी और उपचार*

    गठिया ,घुटनों का दर्द,कमर दर्द ,सायटिका के अचूक उपचार 

    गुर्दे की पथरी कितनी भी बड़ी हो ,अचूक हर्बल औषधि

    पित्त पथरी (gallstone) की अचूक औषधि














  • 8.3.17

    उच्च रक्तचाप (High blood pressure) के कारण, लक्षण और उपचार





       आज पूरी दुनियाँ मे उच्च रक्त चाप यानि की hypertension एक गंभीर समस्या बनी हुई है। आम भाषा में हम इसे High Blood Pressure (BP) कहते है। यह एक जानलेवा बीमारी है। High Blood Pressure एक शांत ज्वालामुखी की तरह है जिसमे बाहर से कोई लक्षण या खतरा नहीं दिखाई नहीं देता पर जब यह ज्वालामुखी फटता है तो हमारे शरीर पर लकवा और हार्ट अटैक जैसे गम्भीर परिणाम हो सकते है। पहले यह माना जाता था की यह समस्या उम्रदराज लोगो की समस्या है लेकिन बदलते माहौल मे hypertension की समस्या बच्चो और युवाओ मे भी फैलती जा रही है।
    क्यों होता है ब्लड प्रेशर
       चिंता, क्रोध, ईर्ष्या, भय आदि मानसिक विकार। अनियमित खानपान। कई बार आवश्यकता से अधिक खाना। मैदा से बने खाद्य पदार्थ, चीनी, मसाले, तेल, घी, अचार, मिठाइयां, मांस, चाय, सिगरेट व शराब आदि का सेवन।
        रक्त चाप बढने से तेज सिर दर्द,थकावट,टांगों में दर्द ,उल्टी होने की शिकायत और चिडचिडापन होने के लक्छण मालूम पडते हैं। यह रोग जीवन शैली और खान-पान की आदतों से जुडा होने के कारण केवल दवाओं से इस रोग को समूल नष्ट करना संभव नहीं है। जीवन चर्या एवं खान-पान में अपेक्षित बदलाव कर इस रोग को पूरी तरह नियंत्रित किया सकता है।Hypertension का ज़्यादातर लोगो में कोई खास लक्षण नहीं होते है। कुछ लोगो में ज्यादा Blood Pressure बढ़ जाने पर सरदर्द होना, ज़्यादा तनाव, सीने में दर्द या भारीपन, सांस लेने में परेशानी, अचानक घबराहट, समझने या बोलने में कठिनाई, चहरे, बांह या पैरो में अचानक सुन्नपन, झुनझुनी या कमजोरी महसूस होना या धुंदला दिखाई देना जैसे लक्षण दिखाई देते है
       हाई ब्लड प्रेशर यानी उच्च रक्तचाप शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचाता है। जैसे- दिमाग, आंख, दिल, गुर्दा और शरीर की धमनियां। अगर हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है तो आपको हार्ट-अटैक, नस फटने और किडनी फेल होने की ज्यादा संभावना होती है। हाई ब्लड प्रेशर के रोगी को नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। नियमित व्यायाम रक्त-संचार को स्थिर करता है और हार्ट-अटैक की संभावना को कम करता है।


    हाई ब्लड प्रेशर के मुख्य कारण--

    १) मोटापा
    २) तनाव(टेंशन)
    ३) महिलाओं में हार्मोन परिवर्तन
    ४) ज्यादा नमक उपयोग करना
    अब यहां ऐसे सरल घरेलू उपचारों की चर्चा की जायेगी जिनके सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करने से बिना गोली केप्सुल लिये इस भयंकर बीमारी पर पूर्णत: नियंत्रण पाया जा सकता है-
    १) सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रोगी को नमक का प्रयोग बिल्कुल कम कर देना चाहिये। नमक ब्लड प्रेशर बढाने वाला प्रमुख कारक है।
    २) उच्च रक्तचाप का एक प्रमुख कारण है रक्त का गाढा होना। रक्त गाढा होने से उसका प्रवाह धीमा हो जाता है।
    सोडियम, सोडियम क्लोराइड) कम खाएं या खाने से बचें | आपको अपनी डाइट में निश्चित रूप से नमक की कम मात्रा की ज़रूरत होती है | सोडियम मांसपेशियों और नर्व (nerves) में इलेक्ट्रिक प्रोसेस (electric process) का नियमन करने में मदद करता है लेकिन इसकी अधिक मात्रा लेने से अतिरिक्त तरल इकठ्ठा होने लगता है जिससे आपके रक्त का तरल आयतन बढ़ जाता है | जब आपके रक्त का आयतन अधिक हो जाता है तब इस अतिरिक्त आयतन या वॉल्यूम को पूरे शरीर में गति कराने के लिए ह्रदय को पंप करने में कठिनाई होती है | इस कारण ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है | याद रखें, यह सिर्फ नमक नहीं है जिसे आप अपने भोजन में पकाते समय या खाते समय डालते हैं बल्कि यह सोडियम की मात्रा भी है जो आपके ख़रीदे गये तैयार भोजन में पायी जाती है | कई तैयार, पैकेज्ड भोज्य पदार्थों में सोडियम बेंजोएट (sodium benzoate) एक परिरक्षक (preservative) के रूप में पाया जाता है | आपको “लेबल पर ध्यान देने वाला” और “कम नमक/सोडियम” या ‘बिना नमक वाले” भोज्य पदार्थ खरीदने वाला व्यक्ति बनना चाहिए और बिना नमक का भोजन पकाना चाहिए | परन्तु, ऐसे प्रोडक्ट्स से सावधान रहें जो सोडियम के स्थान पर पोटैशियम को लेकर प्रोडक्ट में “कम सोडियम” होने का दावा करते हैं क्योंकि ये और अधिक हानिकारक हो सकते हैं |
    उच्च रक्त चाप के घरेलू उपचार -
    *नमक और अन्य योजकों के साथ साधारण प्रसंस्कृत (processed) खाद्य पदार्थों, तैयार, डिब्बाबंद और बोतलबंद भोज्य पदार्थों जैसे मीट, अचार, ऑलिव, सूप, मिर्च, सॉसेज, बेकरी प्रोडक्ट्स और मोनो सोडियमग्लूटामेट (monosodium glutamate) या एमएसजी और पानी मिला हुआ मीट (जिसमे सोडियम की उच्च मात्रा पाई जाती है) लेने से बचें: मसालों से भी बचें जैसे तैयार मस्टर्ड या सरसों का सॉस, चिली सॉस, सोया सॉस, केचप, और अन्य सौसेस | प्रतिदिन 2 ग्राम (2000 मिलीग्राम) के कम सोडियम गृहण करने की कोशिश करें |
    इससे धमनियों और शिराओं में दवाब बढ जाता है।लहसुन ब्लड प्रेशर ठीक करने में बहुत मददगार घरेलू वस्तु है।यह रक्त का थक्का नहीं जमने देती है। धमनी की कठोरता में लाभदायक है। रक्त में ज्यादा कोलेस्ट्ररोल होने की स्थिति का समाधान करती है।
    *एक बडा चम्मच आंवला का रस और इतना ही शहद मिलाकर सुबह -शाम लेने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है।

    * जब ब्लड प्रेशर बढा हुआ हो तो आधा गिलास मामूली गरम पानी में काली मिर्च पावडर एक चम्मच घोलकर २-२ घंटे के फ़ासले से पीते रहें। ब्लड प्रेशर सही मुकाम पर लाने का बढिया उपचार है।
    * तरबूज का मगज और पोस्त दाना दोनों बराबर मात्रा में लेकर पीसकर मिला लें। एक चम्मच सुबह-शाम खाली पेट पानी से लें।३-४ हफ़्ते तक या जरूरत मुताबिक लेते रहें।
    * बढे हुए ब्लड प्रेशर को जल्दी कंट्रोल करने के लिये आधा गिलास पानी में आधा निंबू निचोडकर २-२ घंटे के अंतर से पीते रहें। हितकारी उपचार है।
    * तुलसी की १० पती और नीम की ३ पत्ती पानी के साथ खाली पेट ७ दिवस तक लें।
    कई शोधों में यह माना जा चुका है कि ब्लड प्रेशर सर्दियों में अधिक होता है जबकि गर्मियों में कम। ऐसे में इस मौसम की कड़कती ठंड में हाई बीपी के मरीजों को दिल के दौरे या स्ट्रोक की समस्या सबसे अधिक होने की आशंका होती है।

    *अदरक:-

    प्याज और लहसून की तरह अदरक भी काफी फायदेमंद होता है। बुरा कोलेस्ट्रोल धमनियों की दीवारों पर प्लेक यानी कि कैलसियम युक्त मैल पैदा करता है जिससे रक्त के प्रवाह में अवरोध खड़ा हो जाता है और नतीजा उच्च रक्तचाप के रूप में सामने आता है। अदरक में बहुत हीं ताकतवर एंटीओक्सीडेट्स होते हैं जो कि बुरे कोलेस्ट्रोल को नीचे लाने में काफी असरदार होते हैं। अदरक से आपके रक्तसंचार में भी सुधार होता है, धमनियों के आसपास की मांसपेशियों को भी आराम मिलता है जिससे कि उच्च रक्तचाप नीचे आ जाता है।


    *लालमिर्च:-

    धमनियों के सख्त होने के कारण या उनमे प्लेक जमा होने की वजह से रक्त वाहिकाएं और नसें संकरी हो जाती हैं जिससे कि रक्त प्रवाह में रुकावटें पैदा होती हैं। लेकिन लाल मिर्च से नसें और रक्त वाहिकाएं चौड़ी हो जाती हैं, फलस्वरूप रक्त प्रवाह सहज हो जाता है और रक्तचाप नीचे आ जाता है।
    *उच्च रक्तचाप के रोगी को सबसे पहले अनुलोम-विलोम का अभ्यास करना चाहिए। उसके बाद सुखासन ( आराम की मुद्रा ) में बैठकर जीभ को बाहर निकालकर नलीनुमा बनाइए और मुंह से सांस को आराम से अंदर खींचिए। सांस अंदर खीचने के बाद जीभ अंदर करके मुंह बंद करें और फिर नाक से धीरे-धीरे सांस बाहर निकालें। शुरूआत में यह क्रिया 5 बार कीजिए उसके बाद इसे बढाकर 50-60 कर दीजिए।
    *अधिकतर चिकित्सा विशेषज्ञ “कम सोडियम वाली डाइट” लेने कि सलाह देते हैं जिसमे सोडियम की मात्रा प्रतिदिन 1100 से 1500 मिलीग्राम के बीच हो | अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार वास्तव में मनुष्य का शरीर प्रतिदिन 200 मिलीग्राम से कम सोडियम खाने पर भी अपना काम सुचारू रूप से कर सकता है |
    *अच्छे स्वाद के लिए कई ब्रांड्स बिना नमक के मसाले बनाते हैं जिनमे मसालों और हर्ब्स के पाउडर और ठोस संयोजन आते हैं | साथ ही, नकली नमक वाले प्रोडक्ट्स सिर्फ कम या “लाइट” साल्ट वाले प्रोडक्ट्स नहीं हैं बल्कि ये “नमक के विकल्प” होते हैं (जैसे पोटैशियम पर आधारित पोटैशियम क्लोराइड) और इनका “सोडियम युक्त नमक से भिन्न” स्वाद के रूप में संयम से उपयोग किया जाना चाहिए |

    *चावल:-(भूरा) उपयोग में लावें। इसमें नमक ,कोलेस्टरोल,और चर्बी नाम मात्र की होती है। यह उच्च रक्त चाप रोगी के लिये बहुत ही लाभदायक भोजन है। इसमें पाये जाने वाले केल्शियम से नाडी मंडल की भी सुरक्षा हो जाती है।

    मध्यम और बिना चर्बी वाला आहार खाएं और उत्तेजकों से बचें: 

    कैफीन, ज्यादा मात्रा में चॉकलेट, चीनी, सफ़ेद कार्ब्स (carbs) (हालाँकि ब्रेड, पेस्ट्रीज और केक्स की तरह पास्ता तुरंत शर्करा में परिवर्तित नहीं होता), कैंडी, चीनीयुक्त पेय और आहर में उपस्थित अतिरिक्त फैट से बचें | बहुर अधिक मांस, दूध के उत्पाद और अंडे खाने की अपेक्षा शाकाहारी आहार अधिक लेने की कोशिश करें |कैफीन (caffeine) का उपयोग कम करें: कॉफ़ी और अन्य कैफीनयुक्त पेय पदार्थों को लेना बंद करने से ब्लड प्रेशर कम हो जायेगा | लेकिन सिर्फ एक या दो कप कॉफ़ी आपके ब्लड प्रेशर को “अस्वस्थ स्टेज के पहले स्तर” पर पहुंचा सकती है | अगर कोई व्यक्ति पहले से ही हाइपरटेंशन की पहली स्टेज में हो तो कॉफी सामान्यतः और गंभीर परेशानियाँ उत्पन्न कर सकती है क्योंकि कैफीन एक तंत्रिका तंत्र उत्तेजक (nervous system stimulant) है | इस प्रकार, उत्तेजित तंत्रिकाओं के कारण ह्रदय तेज़ी से स्पंदन करता है जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है | अगर आप ऐसे व्यक्ति हैं जो बहुत ज्यादा कॉफ़ी पीते हैं (प्रतिदिन 4 कैफीन युक्त पेय से अधिक) तो आपको खुद को कॉफ़ी को छोड़ने के बाद होने वाले लक्षणों जैसे सिरदर्द से बचाने की ज़रूरत हो सकती है |

    आनुवंशिकता(heredity)-

     आनुवंशिकता Hypertension का मुख्य कारण है। अगर किसी परिवार मे उच्च रक्त चाप की समस्या होती है तो उनकी अगली पीड़ी भी इस समस्या से ग्रस्त हो जाती है। यह व्यक्तियों के जींस का एक पीड़ी से दूसरी पीड़ी मे स्थानान्तर होने की वजह से होता है
    मोटापा(obesity)- शोध एवं अनुसंधानो से स्पष्ट हो चुका है की मोटापा उच्च रक्त चाप का बहुत बढ़ा कारण है। एक मोटे व्यक्ति मे उच्च रक्त चाप का खतरा एक समान्य व्यक्ति की तुलना मे बहुत बढ़ जाता है।
    व्यायाम की कमी- खेल-कूद, व्यायाम, एवं शारीरिक क्रियाओ मे भाग न लेने से भी उच्च रक्त चाप का खतरा बढ़ जाता है।

    आयु- 

    जैसे जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है रक्त वाहिकाओ मे दिवारे कमजोर होती जाती है जिससे उच्च रक्त चाप की समस्या पैदा हो जाती है।

    विभिन्न बीमारियां- 

    हृदयघात, हृदय की बीमारियाँ, गुर्दो का फ़ेल होना, रक्त वाहिकाओ का कमजोर होना आदि बीमारियो के कारण उच्च रक्त चाप हो जाता है।

    अंग संचालन

    इसे सूक्ष्म व्यायाम भी कहा जाता है जिसका बहुत महत्व है। इस क्रिया का पूरी तरह से अभ्यास कर लेने के बाद ही योगासन करना चाहिए। अंग संचालन के अंतर्गत आंख, गर्दन, कंधे, हाथ-पैर, घुटने, एडी-पंजे, कूल्हों आदि अंगों की एक्सरसाइज की जाती है। जैसे कि पैरों की अंगुलियों को मोडना-खोलना, पंजे को आगे-पीछे करना, गोल-गोल घुमाना, कलाई मोडना, कंधों को घुमाना, गर्दन को क्लॉकवाइज-एंटीक्लाअकवाइज घुमाना और मुटि्ठयों को कसकर बांधना-खोलना आदि किया जाता है। इस क्रिया को सीखकर प्रतिदिन 10-10 बार रोज करें।

    फाइबर (fiber) बढ़ाएं:

     फाइबर आपके सिस्टम को साफ़ करते हैं और पाचन को नियमित करके ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखने में मदद करते हैं | कई फलों, नट्स और फलियों जैसे बीन्स और मटर में समग्र अनाज के उत्पादों के समान फाइबर की भरपूर मात्रा पाई जाती है |

    कुछ प्राकृतिक उपचारों का प्रयोग करें: 

    अपने डॉक्टर से जाँच कराएँ कि आपके लिए इलाज़ के लिए प्राकृतिक औषधियां एक सुरक्षित विकल्प हो सकती हैं | कई प्राकृतिक उपचार
    * वैज्ञानिक प्रमाणों के द्वारा दर्शाते हैं कि उनसे उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर कम किया जा सकता है |
    *ब्लड प्रेशर कम करें के लिए सबसे अच्छे सप्लीमेंट हैं- कोएंजाइम Q10, ओमेगा-3, मछली का तेल, लहसुन, कर्कुमिन (curcumin जो हल्दी से मिलता है), अदरक, कैयेंन (cayenne), नागफनी, मैग्नीशियम और क्रोमियम (chromium) |
    *दिन में तीन बार एक छोटी चम्मच सेव का सिरका (apple cider vinegar) लें | इसे एक कप पानी डालकर पतला करें | यह तुरंत और प्रभावी रूप से काम करता हैं |
    *दिन में एक बार एक लहसुन की टेबलेट या लहसुन की एक कच्ची कली खाएं |
    *
    उच्च रक्त चाप से बचने के लिए भोजन का बहुत महत्व है अगर उचित भोजन लिया जाए तो इससे बचा जा सकता है। भोजन मे नमक की मात्रा कम हो। पोटैशियम को उचित मात्रा मे लेने से उच्च रक्त चाप का स्तर अच्छा हो जाता है। इसके अलावा आहार मे फल जैसे केला, संतरा, नाशपाती, टमाटर, सूखे मटर, बादाम और आलू अवश्य शामिल करे क्योकि इनमे पोटैशियम की मात्रा अधिक होती है। चिकनाई या fat वाला खाना कम मात्रा मे खाये|
    *
    धूम्रपान करने से ऐथिरोस्केलेरोसिस, मधुमेह, दिल का दौरा और मस्तिष्क आघात होने की सँभावना ज़्यादा होती है। इसलिए धूम्रपान और हाई ब्लड प्रेशर एक-दूसरे के बहुत बड़े दुश्मन हैं और अगर ये दोनों मिल जाएँ तो कई तरह के हृदय रोग हो सकते हैं। हालाँकि सबूतों से बिलकुल उल्टा साबित हुआ है मगर कॉफी, चाय और कोला में रहनेवाले कैफिन से, साथ में मन और शरीर के तनाव से भी ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है। इसके अलावा वैज्ञानिकों को पता चला है कि हद-से-ज़्यादा और लंबे समय से शराब पीने और बहुत ज़्यादा आलसीपन से भी ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है।
    *ओमेगा-3 से संपन्न भोज्य पदार्थ खाएं जैसे पोटैशियम: टमाटर/टमाटर का जूस, आलू, बीन्स, प्याज, संतरे, फल और सूखे मेवे: सप्ताह में दो बार या इससे ज्यादा मछली का उपभोग करें | मछली में प्रोटीन की उच्च मात्रा होती है और कई प्रकार की मछलियों में जैसे सालमन (salmon), मैकरील (mackerel) और हेरिंग (herring) भी ओमेगा-3 फैटी एसिड के उच्च स्तर से युक्त होती हैं जिनमे ट्राइग्लिसराइड नामक अपेक्षाकृत कम वसा होता है और पूरे ह्रदय के स्वस्थ को बढाती हैं |

    अधिक वज़न होने के कारण आपके ह्रदय को हर समय अधिक कठिनाई से काम करना पड़ता है और इससे ब्लड प्रेशर बढ़ता है। मान लें, अगर आपका वज़न 9 किलोग्राम तक अतिरिक्त रूप से बढ़ जाएँ तो यह उसी प्रकार होगा जैसे आप लगभग 9 किलोग्राम का सामान उठाये हुए हों | जब आपका यह अतिरिक्त वज़न उठाये हो तब अपनी कॉलोनी के चारों ओर रोज़ टहलें | जल्दी ही, आपका ह्रदय तेज़ी से और कठिनाई से धड़कना शुरू कर देगा, आपकी सांस फूलने लगेगी और आप बहुत थकान अनुभव करने लगेंगे | अंततः, एक समय पर ऐसा बिंदु आयेगा जब आप सामान को नीचे रखने के लिए और इंतज़ार नहीं कर पाएंगे |
    *सोचें कि पूरे समय यह अतिरिक्त वज़न को वहन करना आपके शरीर के लिए कितना मुश्किल भरा होता है! दुर्भाग्यवश, हममे से कई लोग 9 किलोग्राम से भी ज्यादा वज़न का वहन करते रहते हैं | इस अतिरिक्त वज़न को कम करने से आपके ह्रदय को धड़कने में मुश्किल नहीं होगी और आपका ब्लड प्रेशर कम हो जायेगा |
    *तनाव कम करने के लिए अपने शरीर को आराम दें: कई लोगों को तनाव होने पर अस्थायी रूप से ब्लडप्रेशर बढ़ता है | अगर आपको अधिक वज़न या फैमिली हिस्ट्री की वज़ह से हाई ब्लडप्रेशर है तो तनाव होने पर यह और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि एड्रेनल ग्लैंड (adrenal gland) स्ट्रेस हार्मोन निकालती हैं जिसके कारण आपका कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम अधिक काम करने के लिए प्रवृत्त होता है |
    *अगर आप चिरकारी तनाव से जूझ रहे हैं जिसमे प्रतिदिन तनाव के हार्मोन उत्पन्न होते हैं तो आपका कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम (cardiovascular system) स्वाभाविक रूप से एक ऐसी स्थिति में आ जायेगा जहाँ उसे अधिक काम करना पड़ेगा | अधिकतर ऐसा होने के कारण स्ट्रेस हार्मोन (stress hormone) “लड़ो या भागो” की तैयारी के रूप में आपकी नाडी, श्वसन और ह्रदय गति को बढ़ा देते हैं | आपके शरीर को लगता है कि आपको लड़ने या भागने की ज़रूरत आ पड़ी है इसलिए स्वाभाविक रूप से आपका शरीर इनमें से किसी एक स्थिति के लिए तैयार होता है | लम्बे समय तक रहने वाले तनाव के बाद सोचिये की आपका ह्रदय किस प्रकार काम करता है | इसलिए कुछ विश्राम या शिथिलीकरण की तकनीकें आजमायें:
    *सोने जाने से पहले एक लम्बे तनाव भरे दिन के तनाव कम करने के लिए लम्बी दूरी तक टहलने की कोशिश करें | प्रतिदिन तनाव कम करने के थोड़ा लिए समय निकालें |
    *एक गर्म पानी के बाथटब में 15 मिनट के लिए बैठें या गर्म पानी का शावर लें जो वास्तव में कई घंटो के लिए ब्लड प्रेशर को कम कर सकता है: सोने से ठीक पहले गर्म पानी से नहाने से शरीर को पूरी रात या घंटों तक ब्लड प्रेशर कम रखने में मदद मिल सकती है |व्यायाम: लगभग 3 किलोमीटर प्रति घंटे की मध्यम गति से कम से *कम 20 से 30 मिनट तक प्रतिदिन टहलें | कई अध्ययनों के बाद यह पाया गया कि टहलने की क्रिया से हाइपरटेंशन पर सप्रेशन इफ़ेक्ट (suppression effect) पड़ता है |अगर आप बाहर जाकर नहीं टहल सकते तो एक ट्रेडमिल खरीदकर उपयोग कर सकते हैं | इसके लाभ हैं; आप बाहर बारिश होने या बर्फ गिरने पर भी इसका उपयोग कर सकते हैं | आप अपने घर के कपड़ों में भी टहल सकते हैं और पड़ोसियों की नज़रों से भी बाख सकते हैं! लेकिन खुद से ये वादा करें कि आप प्रतिदिन 30 मिनट तक बिना इस नियम को तोड़े टहलेंगे |

    लो ब्लड प्रेशर के उपचार -

    लो ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए पैदल चलना, साइकिल चलाना और तैरना जैसी कसरतें फायदेमंद साबित होती हैं।
     इन सबके अलावा सबसे जरूरी यह है कि व्यक्ति तनाव और काम की अधिकता से बचें।
    प्रोटीन, विटामिन बी और सी लो ब्लड प्रेशर को ठीक रखने में मददगार साबित होते हैं। ये पोषक तत्व एड्रीनल ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोनों के स्राव में वृद्धि कर लो ब्लड प्रेशर को तेजी से सामान्य करते हैं।
    लो ब्लड प्रेशर को दूर करने के लिए ताजे फलों का सेवन करें। दिन में करीब तीन से चार बार जूस का सेवन करना फायदेमंद रहेगा। जितना संभव हो सके, लो ब्लड प्रेशर के मरीज दूध का सेवन करें।


     लो ब्लड प्रेशर को सामान्य रखने में चुकंदर का जूस काफी कारगर होता है। जिन्हें लो ब्लड प्रेशर की समस्या है उन्हें रोजाना दो बार चुकंदर का जूस पीना चाहिए। हफ्ते भर में आप अपने ब्लड प्रेशर में सुधार पाएंगे।
    *50 ग्राम देशी चने व 10 ग्राम किशमिश को रात में 100 ग्राम पानी में किसी भी कांच के बर्तन में रख दें। सुबह चनों को किशमिश के साथ अच्छी तरह से चबा-चबाकर खाएं और पानी को पी लें। यदि देशी चने न मिल पाएं तो सिर्फ किशमिश ही लें। इस विधि से कुछ ही सप्ताह में ब्लेड प्रेशर सामान्य हो सकता है। 
    *रात को बादाम की 3-4 गिरी पानी में भिगों दें और सुबह उनका छिलका उतारकर कर 15 ग्राम मक्खन और मिश्री के साथ मिलाकर बादाम-गिरी को खाने से लो ब्लड प्रेशर नष्ट होता है। प्रतिदिन आंवले या सेब के मुरब्बे का सेवन लो ब्लेड प्रेशर में बहुत उपयोगी होता है।


    6.3.17

    पान का पत्ता के औषधीय गुण,घरेलू नुस्खे -डॉ॰आलोक




       पान भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। खाना खाने के बाद मुंह का जायका बनाए रखने के लिए पान बहुत ही कारगर है। वहीं हर शुभ काम में पान के पत्ते का उपयोग पूजन में जरूर किया जाता है। इसका एक कारण पान के पत्ते का शुभता का प्रतीक होना है, वहीं इसमें छुपे औषधीय गुण भी इसे पूजन में रखे जाने का एक बड़ा कारण है। आइए जानते हैं पान में छुपे ऐसे ही कुछ औषधीय गुणों के बारे में….
    पान के 15 पत्तों को 3 गिलास पानी में डाल लें। इसके बाद, इसे तब तक उबालें, जब तक यह उबलकर एक तिहाई नहीं रह जाता है। इसे दिन में तीन बार पिएं।
    * ब्रोनकाईटिस
    पान के सात पत्तों को दो कप पानी में रॉक शुगर के साथ उबाल लें। जब पानी एक गिलास रह जाए तो उसे दिन में तीन बार पिएं। ब्रोनकाईटिस में लाभ होगा।
    पान के पत्ते एंटी-बैक्टेरियल (anti-bacterial) गुण से युक्त होते है जो मुंह में मौजूद सभी जर्म्स (germs) को खत्म करते है जिससे आपके मुंह से बदबू आती है। इसी के साथ पान के पत्ते आपके मुंह में एसिड लेवल (acid level) पर भी नियंत्रण रखता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि पान के पत्ते चबाने के बाद पानी की मदद से अपने मुंह को साफ कर लें अन्यथा ये आपके दातों पर दाग छोड़ सकता है। आप हफ्ते में 2 से 3 बार पान के पत्तों का सेवन कर सकते है।

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    मस्से का भी उपचार है पान के पत्तें (Betel leaves for treating warts)
    पान के पत्तें सिर्फ फोडें और छालों में ही मददगार नहीं होते है बल्कि आप इससे अपने शरीर पर मस्सें भी हटा सकते है। इन पत्तों से आप आसनी से मस्सों से निजात पा सकते है वो भी बिना किसी दुष्प्रभाव से.. आप पान के पत्तों या फिर उसके अर्क को सीधी उन मस्सों पर लगा सकते है। इस उपचार कि खास बात ये है कि ये त्वाच पर कोई दाग नहीं छोड़ता है। पान के पत्तों का पेस्ट रोजाना मस्से पर लगाएं इससे धीरे धीरे मस्सा सुकड़ कर खत्म हो जाएगा।
    खांसी
    पान के पत्तों से खांसी ठीक हो जाती है। इसके लिए करीब 15 पान के पत्तों को तीन गिलास पानी में डाल दीजिए। इसके बाद इस पानी को उबालें इसे तब तक उबालें जब तक कि यह एक तिहाई न रह जाए। अब इस मिश्रण को एक दिन में तीन बार पिएं इससे खांसी जल्द ही ठीक हो जाती है।
    * शरीर की दुर्गंधपांच पान के पत्तों को दो कप पानी में उबालें। जब पानी एक गिलास रह जाए तो उसे दोपहर के समय पी लें। शरीर की दुर्गंध दूर हो जाएगी।



    पाचन में सहायक

    पान खाना पाचन क्रिया के लिए फायदेमंद है. ये सैलिवरी ग्लैंड को सक्रिय करके लार बनाने का काम करता है जोकि खाने को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने का काम करता है. कब्ज की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए भी पान की पत्ती चबाना काफी फायदेमंद है. गैस्ट्र‍िक अल्सर को ठीक करने में भी पान खाना काफी फायदेमंद है.
    * जलना
    पान के पत्ते को पीसकर जले हुए स्थान पर लगाएं।
    खाना खाने के बाद पान की पत्ते (paan ke patte) को खाने से पाचन क्रिया सुचारु रुप से काम करती है। आपको बात दें कि पान का पत्ता सलाइवा (saliva) के उत्पादन को उत्तेजित करता है जिससे सलाइवा (saliva) में मौजूद डाइजेस्टिव एन्जाइम्स (enzymes) खाने को जल्दी पचाता है। पान के पत्ते आपके पूरे पाचन प्रणाली को भी उत्तेजित करता है जिसका सीधर आपके स्वास्थ पर पड़ता है।
    शरीर की बदबू-
    गर्मियों के आते ही पसीन आना शुरू हो जाता हैं। पसीने की दुर्गंध से हमारे आस पास के लोग बड़े ही परेशान हो जाते है। साथ ही पसीने की दुर्गंध से हमें भी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। इस समस्या से बचने के लिए पाने के पत्तों को दो कप पानी में उबाल कर पीने से शरीर की दुर्गंध ठीक होती है।
    * नकसीर
    गर्मियों के दिनों में नाक से खून आने पर पान के पत्ते को मसलकर सूंघे। इससे बहुत आराम मिलेगा।
    * छाले
    मुंह में छाले होने पर पान को चबाएं और बाद में पानी से कुल्ला कर लें। ऐसा दिन में दो बार करें। राहत मिलेगी।
    *. लाल और जलन करती आंखें5-6 छोटे पान के पत्तों को लें और उन्हें एक गिलास पानी में उबालें। इस पानी से आंखों पर छींटे मारें। आंखों को काफी आराम मिलेगा।
    पायरिया ( Pyorrhea ) : 
    ऐसे बहुत से लोग है जिन्हें दाँतों में पायरिया की शिकायत होती है और जिसके लिए वे अनेक तरह की दवाइयां खाते है और अनेक तरह के परहेज करने पर विवश हो जाते है किन्तु अगर वे पान में 10 ग्रामS कपूर मिलाकर दिन में 3 से 4 बार पान का सेवन करते है तो जल्द ही इनकी पायरिया की शिकायत दूर हो जाती है. बस उनको एक बात की सावधानी ये रखनी पड़ती है कि वे कपूर मिले पान के रस को पेट में ना सटके बल्कि बाहर निकालते रहें
    . मुंह के कैंसर से दिलाता है छुटकारा (Betel leaves can be helpful to prevent oral cancer)
    पान के पत्ते के स्वास्थ्य लाभ, कैंसर शरीर के किसी भी हिस्से में हो इससे व्यक्ति की जान जोखिम में तो पड़ ही जाती है। लेकिन अगर आपके मुंह में कैंसर है तो आपको पान के पत्ते बचा सकते है। पान के पत्ते सलाइवा (saliva) में मौजूद एसकॉर्बिक एसिड (ascorbic acid) को बनाए रखता है। दरअसल एसकॉर्बिक एसिड (ascorbic acid) एंटी-ऑक्सीडेंट (anti- oxidant) के रूप में काम करता है जो कि आपको कैंसर से बचाने में मदद करता है।



    एक्ने की समस्या को करता है दूर (Betel leaves for treating acne)

    इस बात का हम दावा कर सकते है कि पान के पत्तों का ये फायदा (paan khane ke fayde) सुनकर हर लड़की खुश हो जाएगी। क्योंकि पान के पत्ते से चेहरे की एक्ने (acne) की समस्या से निजात पा सकते है। जब आप पान के पत्तों के अर्क ऐक्ने पर इस्तेमाल करते है जब समय के साथ ये समस्या कम हो जाती है। पान के पत्तों में माइल्ड एंटी-सेप्टिक (mild anti-septic) गुण होते है जो स्किन (skin) पर मौजूद दानों को खत्म कर देते है।
    *खुजली या दानेपान के 20 पत्तों को पानी में उबाल लें। अच्छी तरह उबलने के बाद इस पानी से नहा लें। खुजली की समस्या खत्म हो जाएगी।
    * मसूडों से खून आना
    दो कप पानी में चार पान के पत्तों को उबाल लें। इस पानी से गरारा करें। मसूड़ों से खून आना बंद हो जाएगा
    सांस की समस्या
    सांस की समस्या में पान को पत्ते बेहद ही लाभकारी होते है। इस समस्या के दौरान करीब सात पान के पत्तों को लेकर दो गिलास पानी में डाल दे। अब इस पानी में रॉक शुगर को मिला कर उबाल लें। जब पानी का करीब एक गिलास रह जाए तो उसे एक दिन में करीब तीन बार पीना चाहिए इससे काफी लाभ मिलता है।
    पान के पत्ते सरदर्द करें गायब (Betel leaves for headache)
    कई लोगों का मानना है कि पान के पत्ते या फिर उसके अर्क सर दर्द को खत्म करने के लिए बेहद प्रभावी होते है। हालांकि किसी भी वैज्ञानिक ने अभी तक इस बात को साबित नहीं किया है। सरदर्द को कम करने के लिए आप पान के पत्तों का पेस्ट बनाकर माथे पर लगाने से आपको सरदर्द से छुटकारा मिल सकता है।
    पान के पत्तें घाव भरने में करते है मदद (Betel leaves for wound healing)
    आजकल लोग इतनी भागा-दौड़ी में लगे रहते है कि वो चोट का शिकार हो जाते है। पान के पत्ते के गुण, ऐसे में आपको डॉक्टर के पास जाने की जरुरत नहीं है। क्योंकि पान के पत्ते घाव भरने के लिए वरदान माने गए है। इसके लिए पहले घाव को साफ करें और उस पान के पत्तों का पेस्ट बनाकर घाव पर लगाकर पट्टी बांध लें। इसी के साथ पान के पत्तों का पेस्ट लगाने से घाव से पहता खून भी कुछ ही सेकंड में रुक जाता है। पान के पत्तों की खास बात ये भी है कि आप इसको किसी किड़े के काट जाने पर भी लगा सकते है। इसके लिए आप बस पत्तों का पेस्ट बनाएं और प्रभावी हिस्से पर लगा लें। इससे वो दर्द और घाव दोनों जल्द ठीक हो जाते है



    फोड़े को भी जल्द ठीक करता है पान के पत्ता (Betel leaves for treating boils)

    आयुर्वेद में फोड़े के उपचार के रूप में संतरे का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन आप पान के पत्तों से फोड़े को जल्द ठीक कर सकते है। पान के पत्तों को फोड़े पर लगाने के लिए उन पत्तों को गरम करें और फिर उस पर कैस्टर ऑयल (castor oil) लगा लें। इसके बाद उन पत्तों को फोड़े के ऊपर आराम से लगाकर पट्टी बांध दें। फोड़े में मौजूद पस पान के पत्तों की मदद से सूख जाता है। इसी के साथ कुछ दिनों में फोड़ा भी जल्द ठीक हो जाता है।
    पान के पत्ते डायबिटिज का है उपचार (Betel leaves can treat diabetes)
    आप शायाद ये जानकर हैरान हो कि पान के पत्ते (paan ke patte) डायबिटिज (diabeties) जैसी गंभीर बीमारी का भी उपचार माना जाता है। आपको बता दें कि एक अध्ययन के तहत पान के पत्तों में सक्रिय यौगिक पाए जाते है जो ब्लड शुगर लेवल (sugar level) पर नियंत्रण करके डायबिटिज रोगियों को मुक्ति दिला सकता है। पान के पत्तों की एंटी-डायबिटिक (anti-diabetic) गुण ने एक अध्य्यन में साबित किया है कि नियमित रुप से इसका सेवन करने से ब्लड शुगर (sugar level) नियंत्रित रहता है।
    जलने में
      अक्सर हमारें घर की महिलाएं खाना बनाते समय जल जाती है। ऐसी स्थिति में पान के पत्तों को पीसकर जले हुए स्थान पर लगाने से जली हुई जगह तेजी से ठीक हो जाती है साथ ही उस जगह पर ठंडक का अहसास भी होता है।
        क्या कभी आपने चिड़चिड़ा और झगड़ालू पानवाला कहीं देखा है? नहीं न। सदियों से पान वाले मुस्करा कर ही पान बेचते देखे गए हैं। पान सभ्यता और संस्कृति की निशानी तो है ही, यह दोस्ती की भी निशानी है। क्या हिंदू और क्या मुस्लिम, हिंदुस्तान में सभी धर्मों के लोग इसका सेवन करते हैं। एक पान खाने वाला दूसरे पान खाने वाले से नि:संकोच ही दोस्ती कर लेता है।
         इस आर्टिकल में दी गयी जानकारी आपको अच्छी और लाभकारी लगी हो तो कृपया लाईक ,कमेन्ट और शेयर जरूर कीजियेगा । आपके एक शेयर से किसी जरूरतमंद तक सही जानकारी पहुँच सकती है और हमको भी आपके लिये और अच्छे लेख लिखने की प्रेरणा मिलती है|

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    4.3.17

    नपुंसकता,शीघ्र पतन नामर्दी को जड़ से मिटाएँ: Namardi ,Shighra patan



       

        मैथुन के योग्य ना रहना, नपुंसकता का मुख्य लक्षण है। थोड़े समय के लिए कामोत्तेजना होना, या थोड़े समय के लिए ही लिंगोत्थान होना, इसका दूसरा लक्षण है। मैथुन अथवा बहुमैथुन के कारण उत्पन्न ध्वजभंग नपुंसकता में शिशन पतला, टेढ़ा और छोटा भी हो जाता है। अधिक अमचूर खाने से धातु दुर्बल होकर नपुंसकता आ जाती है।
    */नपुंसकता के दो कारण होते हैं। शारीरिक और मानसिक। चिन्ता और तनाव से ज्यादा घिरे रहने से मानसिक रोग होता है। नपुंसकता शरीर की कमजोरी के कारण होती है। ज्यादा मेहनत करने वाले व्यक्ति को जब पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता, तो कमजोरी बढ़ती जाती है और नपुंसकता पैदा हो सकती है। हस्तमैथुन, ज्यादा काम-वासना में लगे रहने वाले नवयुवक नपुंसक के शिकार होते हैं। ऐसे नवयुवकों की सहवास की इच्छा कम हो जाती है।
     /*कुछ लोग शारीरिक रूप से नपुंसक नहीं होते, लेकिन कुछ प्रचलित अंधविश्वासों के चक्कर में फसकर, सेक्स के शिकार होकर मानसिक रूप से नपुंसक हो जाते हैं। मानसिक नपुंसकता के रोगी अपनी पत्नी के पास जाने से डर जाते हैं। सहवास भी नहीं कर पाते और मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है।

       *इस रोग में रोगी अपनी यह परेशानी, किसी दूसरे को नहीं बता पाता या सही उपचार नहीं करा पाता, मगर जब वह पत्नी को संभोग के दौरान पूरी सन्तुष्टि नहीं दे पाता, तो रोगी की पत्नी को पता चल ही जाता है कि वह नंपुसकता के शिकार हैं। इससे पति-पत्नी के बीच में लड़ाई-झगड़े होते हैं और कई तरह के पारिवारिक मन मुटाव हो जाते हैं। बात यहां तक भी बढ़ जाती है कि आखिरी में उन्हें अलग होना पड़ता है। 
        *नपुंसकता से परेशान रोगी को औषधियों खाने के साथ कुछ और बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे सुबह शाम किसी पार्क में घूमना चाहिए, खुले मैदान में, किसी नदी या झील के किनारे घूमना चाहिए। सुबह सूर्य उगने से पहले घूमना ज्यादा लाभदायक है। सुबह साफ पानी और हवा शरीर में पहुंचकर शक्ति और स्फूर्ति पैदा करती है। इससे खून भी साफ होता है।
     *नपुंसकता के रोगी को अपने खाने (आहार) पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। आहार में पौष्टिक खाद्य पदार्थों घी, दूध, मक्खन के साथ सलाद भी ज़रूर खाना चाहिए। फ़ल और फ़लों के रस के सेवन से शारीरिक क्षमता बढ़ती है। नपुंसकता की चिकित्सा के चलते रोगी को अश्लील वातावरण और फिल्मों से दूर रहना चाहिए, क्योंकि इसका मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इससे बुरे सपने भी आते हैं, जिसमें वीर्यस्खलन होता है।

    *बड़ी गोखरू का फांट या घोल सुबह - शाम लेने से काम शक्ति यानी संभोग की वृद्धि दूर होती है। 250 मिलीलीटर को खुराक के रूप में सुबह और शाम सेवन करें।



      *बड़ा गोखरू और काले तिल, इन दोनों को 14 ग्राम की मात्रा में कूट - पीस लें। फिर इस को 1 किलो गाय के दूध में पकाकर खोआ बना लें। यह एक मात्रा है। इस खोयें को खाकर ऊपर से 250 मिली लीटर गाय के निकाले दूध के साथ पी लें। 40 दिन तक इसको खाने से नपुंसकता दूर हो जाती है।
    *25 ग्राम बड़ी गोखरू के फल का चूर्ण, 250 मिली लीटर उबले पानी में डालकर रखें। इसमें से थोड़ा - थोड़ा बार - बार पिलाने से कामोत्तेजना बढ़ती है।
    *बड़ी गोखरू के फल का चूर्ण 2 ग्राम को चीनी और घी के साथ सेवन करें तथा ऊपर से मिस्री मिले दूध का सेवन करने से कामोत्तेजना बढ़ती है।
    *हस्तमैथुन की बुरी लत से पैदा हुई नपुंसकता को दूर करने के लिए 1 - 1 चम्मच, गोखरू के फ़ल का चूर्ण और *काले तिल को मिलाकर शहद के साथ दिन में 3 बार नियमित रूप से कुछ हफ्तों तक सेवन करें। इससे नपुंसकता में लाभ होता है।
    *गाजर का हलवा, रोज़ 100 ग्राम खाने से सेक्स की क्षमता बढ़ती है।
    *कौंच के बीज के चूर्ण में तालमखाना और मिश्री का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर 3 - 3 ग्राम की मात्रा में खाने और दूध के साथ पीने से नपुंसकता (नामर्दी) ख़त्म होती है।
    *कौंच के बीजों की गिरी तथा राल ताल मखाने के बीज। दोनों को 25 - 25 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर छान लें, फिर इसमें 50 ग्राम मिस्री मिला लें। इसमें 2 चम्मच चूर्ण रोज़ दूध के साथ खाने से लाभ होता है।
    *गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला सभी बराबर मात्रा में लेकर कूट पीसकर चूर्ण बना लें। 5 ग्राम चूर्ण रोज़ मिस्री और घी के साथ खाने से प्रबल मैथुन शक्ति विकसित होती है।
    *जायफल का चूर्ण लगभग आधा ग्राम शाम को पानी के साथ खाने से 6 हफ्ते में ही धातु (वीर्य) की कमी और मैथुन में कमजोरी दूर होगी।
    *जायफल का चूर्ण एक चौथाई चम्मच सुबह - शाम शहद के साथ खाऐं और इसका तेल सरसों के तेल के मिलाकर शिश्न (लिंग) पर मलें।
    *बेल के पत्तों का रस 20 मिली लीटर निकालकर, उसमें सफेद जीरे का चूर्ण 5 ग्राम, मिस्री का चूर्ण 10 ग्राम के साथ खाने और दूध पीने से शरीर की कमजोरी ख़त्म होती है।
    *बेल के पत्तों का रस लेकर, उसमें थोड़ा सा शहद मिलाकर शिश्नि पर 40 दिन तक लेप करने से नपुंसकता में लाभ होगा।
    *सफेद मूसली और मिस्री, बराबर मिलाकर, पीसकर चूर्ण बना कर रखें और चूर्ण बनाकर 5 ग्राम सुबह - शाम दूध के साथ खाने से शरीर की शक्ति और खोई हुई मैथुन शक्ति, वापस मिल जाती है।
    *सफेद मूसली 250 ग्राम बारीक चूर्ण बना लें। उसे 2 लीटर दूध में मिलाकर खोया बना लें। फिर 250 ग्राम घी में डालकर इस खोए को भून लें। ठंडा हो जाने पर आधा किलो पीसकर शक्कर (चीनी) मिलाकर पलेट या थाली में जमा लें। सुबह - शाम 20 ग्राम खाने से काम शक्ति बढ़ती है।



      *गोखरू, कौंच के बीज, सफेद मूसली, सफेद सेमर की कोमल जड़, आंवला, गिलोय का सत और मिस्री, बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। 10 ग्राम से लगभग 20 ग्राम तक चूर्ण दूध के साथ खाने से नपुंसकता और वीर्य की कमजोरी दूर होती है।
    *सिरस के थोड़े से बीज सुखाकर पीस लें। इसमें 3 ग्राम चूर्ण सुबह - शाम दूध के साथ खाने से लाभ होता है।
    नपुंसक व्यक्ति को मुनक्का खाने से वीर्य की वृद्धि होती है।
    नपुंसकता में अंबर आधा से एक ग्राम सुबह - शाम मिस्री मिले दूध के साथ खाने से लाभ होता है।
    *उटंगन के बीज, जो चपटे और रोमाच्छादित होते हैं, पानी में भिगोनें पर काफी लुआबदार हो जाते हैं। इनको शतावरी, कौंच बीच चूर्ण आदि के साथ सुबह शाम मिस्री मिले गर्म - गर्म दूध के साथ सेवन करने से काफी लाभ होता है।
    *बहमन सफेद या बहमन सुर्ख की जड़ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम सुबह और शाम मिस्री को मिलाकर गर्म - गर्म दूध से खाने से कामोद्दीपन होता है।
    *पिप्पली, उड़द, लाल चावल, जौ, गेहूं। सब को 100 - 100 ग्राम की मात्रा में लेकर आटा पीसकर फिर इसको देशी घी में पूरियां बनाकर, रोज़ 3 पूरियां 40 दिन तक खाऐं। ऊपर से दूध पी लें। इससे नपुंसकता दूर हो जाती है।
    *आंवलों का रस निकाल कर एक चम्मच आंवले के चूर्ण में मिलाकर लें। उसमें थोड़ी सी शक्कर (चीनी) और शहद मिलाकर घी के साथ सुबह - शाम खाऐं।
    *अरण्ड के बीज 5 ग्राम, पुराना गुड़ 10 ग्राम, तिल 5 ग्राम, बिनौले की गिरी 5 ग्राम, कूट 2 ग्राम, जायफल 2 ग्राम, जावित्री 2 ग्राम तथा अकरकरा 2 ग्राम। इन सबको कूट - पीसकर एक साफ कपड़े में रखकर, पोटली बना लें और इस पोटली को बकरी के दूध में उबालें। दूध जब अच्छी तरह पक जायें, तो इसे ठंड़ा करके 5 दिन तक पियें तथा पोटली से शिश्न की सिंकाई करें।
    *मुलेठी, विदारीकन्द, तज, लौग, गोखरू, गिलोय और मूसली। सब चीजे 10 - 10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण रोज 40 दिन तक सेवन करें।
    *नागौरी असगंध और विधारा। दोनों 250 - 250 ग्राम की मात्रा में लेकर इसे पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 2 चम्मच चूर्ण देसी घी या शहद के साथ लें।
    *सालम मिस्री, तोदरी सफेद, कौंच के बीजों की मींगी, ताल मखाना, सखाली के बीज, सफेद व काली मूसली, शतावर तथा बहमन लाल। इन सबका 10 - 10 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट पीस लें और चूर्ण बना लें। 2 चम्मच रोज़ दूध से 40 दिन तक बराबर खाने से पूरा लाभ होता है।
    *नारियल कामोत्तेजक है। वीर्य को गाढ़ा करता है।
    *15 चिलगोजे रोज़ खाने से नपुंसकता दूर होती है।

    *अंकुरित गेहूंओं को बिना पकायें ही खाऐं। स्वाद के लिए गुड़ या किशमिश मिलाकर खा सकते हैं। इन अंकुरित गेहूंओं में विटामिन ´ई` मिलता है। यह नपुंसकता और बांझपन में लाभकारी है।
    पिस्ता में विटामिन `ई´ बहुत होता है। विटामिन `ई´ से वीर्य बढ़ता है।



      *सफेद कनेर की जड़ की छाल बारीक पीसकर भटकटैया के रस में खरल करके 21 दिन इन्द्री की सुपारी छोड़कर लेप करने से तेजी आ जाती है।
    *किसी कपड़े को आक के दूध में चौबीस घंटे तक भिगोकर रखा रहने दें, उसके बाद निकालकर सुखा लें। फिर उस पर घी लपेट कर 2 बत्तियां बना लें और उसको लोहे की सलाई पर रखे। नीचे एक कांसे की थाली रख दे और बत्तियां जला दें, जो तेल नीचे थाली पर गिरेगा। उसे लिंग पर सुपारी छोड़ कर पूरे पर मलते रहें। आधा घंटे तक, उसके बाद एरण्ड का पत्ता लपेट कर ऊपर से कच्चा धागा बांध दें। इससे हस्तमैथुन का दोष दूर हो जाता है।
    *लौंग 8 ग्राम, जायफल 12 ग्राम, अफीम शुद्ध 16 ग्राम, कस्तूरी लगभग आधा ग्राम, इनको कूट पीसकर शहद में मिलाकर आधे आधे ग्राम की गोलियां बनाकर रख लें। 1 गोली बंगला पान में रखकर खाने से स्तम्भन होता है। अगर स्तम्भन ज्यादा हो जाऐ, तो खटाई खा ले। स्खलन हो जायेगा।
    *चमेली के पत्तों का रस तिल के तेल की बराबर की मात्रा में मिलाकर आग पर पकाएं। जब पानी उड़ जाए और *केवल तेल शेष रह जाए, तो इस तेल की मालिश शिश्न पर सुबह - शाम प्रतिदिन करना चाहिए। इससे नपुंसकता और शीघ्रपतन नष्ट हो जाता है।
    *ढाक की जड़ का काढ़ा आधा कप की मात्रा दिन में 2 बार पीने से, बीज का तेल शिश्न पर मुण्ड छोड़कर मालिश करते रहने से कुछ ही दिनों में लाभ मिलता है।
    *हींग को शहद के साथ पीसकर शिश्न या लिंग पर लेप करने से वीर्य ज्यादा देर तक रुकता है और संभोग करने में आंनद मिलता है।
    *मालकांगनी के तेल को पान के पत्ते पर लगा कर रात में शिश्न (लिंग) पर लपेटकर सो जाऐं और 2 ग्राम बीजों को दूध की खीर के साथ सुबह - शाम सेवन करने से लाभ मिलता है।



    *छुआरों के अन्दर की गुठली निकाल कर उनमें आक का दूध भर दे, फिर इनके ऊपर आटा लपेट कर पकायें, ऊपर का आटा जल जाने पर छुआरों को पीसकर मटर जैसी गोलियां बना लें, रात्रि के समय 1 - 2 गोली खाकर तथा दूध पीने से स्तम्भन होता है।
    *आक की छाया सूखी जड़ के 20 ग्राम चूर्ण को 500 मिली लीटर दूध में उबालकर दही जमाकर घी तैयार करें, इसके सेवन से नामर्दी दूर होती है।

    *शहद और दूध को मिलाकर पीने से धातु (वीर्य) की कमी दूर होती है। शरीर बलवान होता है।
    *अंकुरित गेहूंओं को बिना पकायें ही खाऐं। स्वाद के लिए गुड़ या किशमिश मिलाकर खा सकते हैं। इन अंकुरित गेहूंओं में विटामिन ´ई` मिलता है। यह नपुंसकता और बांझपन में लाभकारी है।
    *ब्रहमदण्डी का रस 10 से 20 मिलीलीटर सुबह शाम शहद के साथ सुबह - शाम खाने से पुरुषत्व शक्ति बढ़ती है।
    *सालव मिस्री का चूर्ण 3 से 6 ग्राम सुबह - शाम खाने से नपुंसकता दूर होती है।
    *हरमल के बीज का चूर्ण 2 से 4 ग्राम मिस्री को मिलाकर गर्म - गर्म दूध के साथ सुबह - शाम लेने से लाभ होता है।
    *आम की मंजरी 5 ग्राम की मात्रा में सुखाकर दूध के साथ लेने से काम शक्ति बढ़ती है।
    2 - 3 महीने आम का रस पीने से ताक़त आती है। शरीर की कमजोरी दूर होती है और शरीर मोटा होता है। इससे वात संस्थान (नर्वस सिस्टम) भी ठीक हो जाता है।
    *रोज़ मीठे अनार के 100 ग्राम दानों को दोपहर के समय खाने से संभोग शक्ति बढ़ाती है।

    उपयोगी सूचना-

    टाई और बादीयुक्त समान ना खाऐं। औषधि खाने के साथ दूध और घी का प्रयोग ज्यादा करें।
        इस आर्टिकल में दी गयी जानकारी आपको अच्छी और लाभकारी लगी हो तो कृपया लाईक ,कमेन्ट और शेयर जरूर कीजियेगा । आपके एक शेयर से किसी जरूरतमंद तक सही जानकारी पहुँच सकती है और हमको भी आपके लिये और अच्छे लेख लिखने की प्रेरणा मिलती है|
    विशिष्ट परामर्श-

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    24.2.17

    तेलिया कन्द एक चमत्कारी जड़ी बूटी

        

    उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र के सुदूर हिमालयी वन्य क्षेत्रों में एक चमत्कारी औषधि तेलियाकन्द का अन्वेषण हुआ है|। आचार्य बालकृष्ण जी ने बताया कि जिस वनस्पति की खोज में हम वर्षों से लगे थे उसको अनायास सामने देखकर अपार प्रसन्नता हुई। आयुर्वेद शास्त्रों मे विभिन्न चमत्कारी वनौषधियों का वर्णन है। आज कई जडी-बूटियों के सन्दर्भ में तो मात्र लोकोक्तियां ही रह गयी हैं। उन्हीं दिव्य एवं अत्यंत दुर्लभ औषधियों में से एक औषधि का नाम है तेलिया कन्द (सेरोमेटम वेनोसम) (Sauromatumsa venosum) जिसके सन्दर्भ में आयुर्वेद शास्त्र में लिखा है कि यह वनस्पति बहुत चमत्कारिक है और भाग्यशाली मनुष्यों को ही प्राप्त होती है।तेलिया कन्द दुर्गम पहाड़ों के मध्य उत्पन्न होता है । तो कुछ लोग कहते है कि, तेलिया कन्द नाम की वनस्पति पृथ्वी से नामशेष हो गई है । इस प्रकार तेलिया कन्द क्या है, उसका वास्तविक प्राप्ति स्थान कहाँ है इस सन्दर्भ में लोग अन्धेरे में भटक रहे है । 
       एक महात्मा के बताने के अनुसार तेलिया कन्द लोहे को गला सकता है । एक लोहे के सरिये को लेकर जो उसे कंद के अन्दर डालकर थोड़े समय पश्चात बाहर निकालकर उसे मोड़ने पर वह आसानी से मुड़ जायेगा और कोई इसे जोगिया कन्द भी कहते है । 
       लोग कहते है कि केन्सर के लिए यह कन्द अत्यन्त उपयोगी है । एक महात्मा के अनुसार हिमालय में साधु – महात्मा अपने शरीर की ठंड से रक्षा हेतु तेलिया कंद को चिलम में भर कर पीते है । इसके अतिरिक्त एक महात्मा ने तेलिया कन्द के द्वारा पारा एवं तांबे में से सोना (सुवर्ण) बनाया था । इसके अनेक उदाहरण हमें पढ़ने हेतु मिलते है ।     कई राज्यों में अनेक वनस्पतियों के मूल को लोग तेलिया कन्द नाम से जानते है । तो इस स्थिति में यहा निर्णय करना कठिन है कि वास्तविक तेलिया कंद कौन है । तो इस अनुसन्धान में यथोचित प्रयास किया है । मेरी जानकारी में इस कन्द के अनेक भाषाओं में नाम उल्लिखित है किन्तु गुरुदेव की अनुमति न होने से प्रकाशित नहीं कर सकता हूँ ।
    प्राप्ति स्थानः- 
    इसके प्राप्ति स्थान के विषय में किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में उल्लेख प्राप्त नहीं होता है इसके नाम और गुणधर्मों का उल्लेख प्राप्त होता है । जैसे कि राजनिघण्टु में तेलिया कन्द का उल्लेख प्राप्त होता है- अर्शारि पत्र संकाशं तिल बिन्दु समन्वितः सस्निग्धारस्थ भूमिस्थ तिल कन्दोति विस्तृत। इसी प्रकार का उल्लेख रसेन्द्र चूड़ामणी में भी दृष्टिगत होता है-
       पतंजलि योगपीठ जडी-बूटियों के ऊपर जिस व्यापक अनुसंधान एवं विश्वभेषज संहिता (World Herbal) के निर्माण कार्य के संलग्न है, वहां इस दुलर्भ जडी-बूटी की खोज इसमें मील का पत्थर बनेगा। इससे पहले भी पतंजलि योगपीठ द्वारा अनेक जडी-बूटियों-अष्टवर्ग, संजीवनी आदि अनेक दिव्य औषधियोम की खोज की जा चुकी है।
    तेलिया कन्द के लिए राज निघण्टु में लिखा है कि “तैल कन्द: देह सिद्धिं विद्यते” अर्थात तेलिया कन्द के द्वारा व्यक्ति देह सिद्घि को प्राप्त कर सकता है। दु:साध्य नपुंसक को भी पुरुषार्थ प्राप्त हो सकता है। कैन्सर जैसे रोगों के लिए यह रामबाण माना गया है। वास्तव में यह चमत्कारिक औषधि है जो आधुनिक जनसमाज के ज्ञान में छिपी हुई है, साधु सन्तों के मुँह से ही सन्दर्भ में आश्चर्यजनक बाते सुनने में आती है कि पारे की गोली बाँधते वाली तथा ताँबे के सोने के रुप में परिवर्तित करने वाली प्रभावशाली व दिव्य औषधि है।एक महात्मा के बताने के अनुसार तेलिया कन्द लोहे को गला सकता है । एक लोहे के सरिये को लेकर जो उसे कंद के अन्दर डालकर थोड़े समय पश्चात बाहर निकालकर उसे मोड़ने पर वह आसानी से मुड़ जायेगा और कोई इसे जोगिया कन्द भी कहते है । लोग कहते है कि केन्सर के लिए यह कन्द अत्यन्त उपयोगी है । एक महात्मा के अनुसार हिमालय में साधु – महात्मा अपने शरीर की ठंड से रक्षा हेतु तेलिया कंद को चिलम में भर कर पीते है । इसके अतिरिक्त एक महात्मा ने तेलिया कन्द के द्वारा पारा एवं तांबे में से सोना (सुवर्ण) बनाया था । इसके अनेक उदाहरण हमें पढ़ने हेतु मिलते है । कई राज्यों में अनेक वनस्पतियों के मूल को लोग तेलिया कन्द नाम से जानते है । तो इस स्थिति में यहा निर्णय करना कठिन है कि वास्तविक तेलिया कंद कौन है । तो इस अनुसन्धान में यथोचित प्रयास किया है ।  प्राप्ति स्थानः- इसके प्राप्ति स्थान के विषय में किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में उल्लेख प्राप्त नहीं होता है इसके नाम और गुणधर्मों का उल्लेख प्राप्त होता है । जैसे कि राजनिघण्टु में तेलिया कन्द का उल्लेख प्राप्त होता है- अर्शारि पत्र संकाशं तिल बिन्दु समन्वितः सस्निग्धारस्थ भूमिस्थ तिल कन्दोति विस्तृत। इसी प्रकार का उल्लेख रसेन्द्र चूड़ामणी में भी दृष्टिगत होता है-
        तिलकन्देति व्याख्याता तिलवत् पत्रीणी, लता क्षीरवती सुत निबंधनात्यातये खरे) । लोहद्रावीतैलकन्दं कटुष्णो वातापस्मार हारी विषारिः शोफध्नः स्याबन्धकारी रसस्य दागेवासो देहसिद्धि विद्यते । (निघण्टु भूषण) इस अतिरिक्त शब्दकल्पद्रुम के द्वितीय भाग के ८३ वें पृष्ठ पर इसका उल्लेख प्राप्त होता है । रशशास्त्र के एक ग्रन्थ सुवर्ण तंत्र (परमेश्वर परशुराम संवाद) नाम के एक ग्रन्थ में उल्लेख प्राप्त होता है कि, एक कमल कन्द जैसा कन्द होता है पानी में उत्पन्न होता है और जहाँ पर यह कन्द होता है उसमें से तेल स्रवित होकर निकटवर्ती दस फिट के घेरे में पानी के ऊपर फैला रहता है और उस कन्द के आस-पास भयंकर सर्प रहते है । इसके अतिरिक्त सामलसा गौर द्वारा लिखित जंगल की जंडी बूटी में भी पृष्ठ संख्या २२३ में भी इस कन्द का उल्लेख दृष्टिगोचर होता है। तेलिया कन्द के विषय में कहा जाता है कि यह कन्द विन्ध्याचल, आबु, गिरनार, अमरनाथ, नर्मदा नदी के किनारे, हिमालय, काश्मीर आदि स्थानों में प्राप्त होता है । मध्यभारत में छतींसगढ़, रांगाखार, भोपालपय्नम के पहाड़ों में तेलिया कन्द होतां है । उसके नाम से असके मूल बजार में बेचे जाते है । वहाँ के वृद्धों का ऐसा मत है कि जो तेलिया कन्द के रस में तांबा को गलाकर डालने पर वह(ताँबा) सोना बन जाता है । और यदि कोई व्यक्ति इस रस का सेवन करता है तो उसे बुढापा जन्दी नहीं आता है । तेलीया कंद के उपयोगः- तेलीया कंद जहरी औषधि है उसका उपयोग सावधानी पुर्वक करना, संघिवा, फोडा, जख्म दाद, भयंकर, चर्मरोग, रतवा, कंठमाल, पीडा शामक गर्भनिरोधक गर्भस्थापक शुक्रोत्पादक, शुक्रस्थंभक, धनुर अपस्मार, सर्पविष, जलोदर कफ, क्षय, श्वास खासी, किसी भी प्रकार का के´शर, पेटशुल आचकी, अस्थिभंग मसा, किल, कृमी तेलीया कंद इन तमाम बीमारीयो मे रामबाण जैसा कार्य करता है, और उसका अर्क जंतुध्न केल्शीयम कि खामी, स्वाद कडवा, स्वेदध्न सोथहर और स्फुर्ति दायक हैं तेलीया कंद को कोयले मे जला के उसकी राख को द्याव, चर्मरोग, किल वगेरे बिमारीओ मे काम करता है । अन्न नली कि सुजन मे इसके बीज को निमक के साथ मिलाकर सेवन करना, इके फूल पीले सफेद ओर खुशबु दार होते है ।
    सावधानियाः- 
      तेलीया कंद एक जहरी-औषधी है इसलिये उसका उपयोग सावधानी पूर्वक करना, तेलीया कंद के भीतर तीन प्रकार के जहरी रसायन होते है जो ज्यादा मात्रा मे लेने से गले मे सुजन आना, चककर, किडनी का फेल होना या ज्यादा मात्रा मे लेने से मृत्यु तक हो सकती है इसलिए इसका पुराने कंद का ही उपयोग करना या तो कंद को रातभर पानी मे भीगोने से या पानी मे नमक डाल के ऊबालने से उसका जहर निकल जाता है ।
    तेलीया कंद की बुआईः- 
    तेलीया कंद की खेती बीज से और कंद बोने से होती है । पहले बीज को एमरी पेपर से घिस कर रात भर पानी मे भिगोये रखे उसके बाद गमले मे या गड्डे मे बोएं । जगा हंमेशा सडी हुई गीली अनुकुल आती है । उसके उपर ज्यादा द्युप नहि होनी चाहिए । यह प्लान्ट को ग्रिन हाउस ज्यादा अनुकुल आता हैं । मीटी थोडी क्षार वाली काली मीटी रेत और चुना मिला के इसके कंद का या बीज को रोपण करना ।
    तेलीया कंद से काया कल्पः- 
    गाय के दुध मे तेलीया कंद के चुर्ण को 15 दिन तक सेवन करने से व्यक्ति का काया कल्प हो जाता है । चूर्ण को दुध मे मिलाकर सेवन करना ।
    तेलीया कंद से सुवर्ण निर्माणः- 
    तेलीया कंद के रसको हरताल मे मिलाकर इकीस दिन तक द्युटाई करने पर हरताल निद्युम हो जाती है । वो आग मे डालने पर धुआ नहि देती । कहते है फिर वो हरताल ताम्र या चाँदी को गलाकर ऊसमे डालने पर वो सोना बन जाता है, पारें को तेलीया कंद के रस मे घोटने से वो बध्ध हो जाता हैं और ताम्र और चाँदी का वेद्य करता है ।
       तेलीया कंद के द्वारा पारद भस्म निर्माणः- 
    कंद को अच्छी तरह से घोट के ऊसकी लुब्दी बनाओ और ऊसी के रसमे द्योटा हुआ पारा ऊस लुब्दी के बीच मे रख शराब संपुट कर पुट देने से भस्म हो जाती है । तेलीया कंद का सर्प के साथ संबंधः-
     ऊसके पुष्प का आकार सर्प जेसा होता है । संस्कृत नाम सर्पपुष्पी और सर्पिणी है । इसको सर्प कंद भी कहते है । तेलीया कंद का कंद सर्प विष निवारक है । ऊस कंद के निचे सर्प रहता हैं । क्युकी ऊस कंद मे बकरी के मखन जेसी गंद्य वाला रसायन कि वजह सर्प ऊसके तरफ आकर्षित रहते है । तेलीया कंद के कांड मे सर्प के शरीर जैसा निशान होता है । जैसे कोब्रा सर्प का शरीर तेल जैसा चमकता है वैसा यह पोद्या भी तेली होता है । इस प्रकार तेलीया कंद का सर्प के साथ संबंध है । किसी किसी जगह पर कंद को ऊखाडने मे सर्प अडचन भी खडी करते हैं ।
    तेलीया कंद की जातीः-
     तेलीया कंद एकलींगी औषधि है । उसके स्त्री और पुरुष जाती के कंद अलग-अलग होते है और एक काला तेलीया कंद भी होता है । तेलीया कंद की अनेक प्रजातिया होती हैं । ऊसमे यहा दर्शाई गई प्रख्यात है ।
    तेलीया कंद की दालः-
     जरुरी मटेरीयलः- ऊबाले हुई तेलीया कंद के पते ऊबाली हुई चने की दाल ,लहसुन, लाल मिर्च ,नमक ,तेल, दाल की रीत, तेल को एक फ्राय पान मे डाल के सब मसाले डालकर पानी जब,तक ऊबलने लगे तब तक ऊबाली इस दाल को भात के साथ खाने से पुरे साल भर कोई बिमारी नही लगती अगर शरीर के किसी भाग मे पिडा होती हैं तो वो,भी ठिक हो जाती है ।
    तेलीया कंद की चीप्स (वेफर)-
     तेलीया कंद कि छोटी-छोटी वेफर बनाके सुखा दो बाद मे वेफर को फ्राय करके ऊसमे थोडा निमक मिर्च डालके खाने से अच्छा स्वाद लगता है,
    गर्भनिरोधक के रूप में तेलीया कंद का उपयोगः- 
    तेलीया कंद के एक चमच चुर्ण को पानी के साथ एक बार लेने से एक सप्ताह तक गर्भ स्थापन नही होता । 
    तेलीया कंद लुप्त होने के कारण- 
    भारत वर्ष मे से तेलीया कंद लुप्त होने का एक यही कारण रहा है कि यहा के लोगो की मानसिकता अगर किसी ने यह पौधा देख लिया तो वो ऊखाड देते है ।
     दुसरा तेलीया कंद
    एकलींगी औषधि है और ऊसके स्त्री और पुरुष जाती के कंद अलग अलग होते है इस लिए उसको फलीभुत होने के लिए दोनो पोंधो का आजु बाजु होना जरुरी हो जाता है । तिशरा कारण हैं इस कंद को लाल चिटीया नष्ट कर देती है और इस कंद को छाव वाली और गीली जगह ज्यादा अनुकुल आती है वो ना मिलने पर पौधा नष्ट हो जाता है ।
    तेलीया कंद का परिक्षणः- 
    एक लोहे कि किल लेकर उस कंद के भीतर गाडदो दुसरे दिन वो किल पर अगर जंग लग जाता है तो वो सही तेलीया कंद दुसरा परिक्षण यह है कि अगर कपुर को इस कंद के ऊपर रखने पर वो गल जाता है । 
    तेलीया कंद के नाम का विश्लेषणः-
     लोह द्रावक के दो अर्थ निकलते है इसके कंद का रस धातु को गला देता है । दुसरा अर्थ है अष्ट लोह मेसे किसी भी धातु को गलाते समय ऊसमें इस कंद कि मात्रा डालने पर ऊसको वो द्रवित कर देता है वो है लोहद्रावक । दुसरा करविरकंद, तेलीया कंद की एक जाती के पत्र कनेर जेसे होते हैं इसलिए इसको करविरकंद कहते है, पत्र और कांड पर रहे तिल जैसे निशान कि वजह से इसको तिलचित्रपत्रक भी कहते है । तेल जेसा द्रव स्त्रवित करता हैं इसलीए तैलकन्द इसका कंद जहरी होने से ऊसको विषकंद भी कहते है और देहसिद्धि और लोहसिद्धि प्रदाता होने की वजह से सिद्धिकंद और विशाल कंद होने की वजह से इसको कंदसंज्ञ भी कहते है ।
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    22.2.17

    एलर्जी के कारण, लक्षण एवं घरेलू ,आयुर्वेदिक उपचार


       एलर्जी कई प्रकार की होती हैं। इस तरह के सभी रोग परेशान करने वाले होते हैं। इन रोगों का यदि ठीक समय पर इलाज न किया गया, तो परेशानी बढ़ जाती है। त्वचा के कुछ रोग ऐसे होते हैं, जो अधिक पसीना आने की जगह पर होते हैं दाद या खुजली। परंतु मुख्य रूप से दाद, खाज और कुष्ठ रोग मुख्य हैं। इनके पास दूसरे लोग बैठने से घबराते हैं। परंतु इतना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। इन रोगों में ज्यादातर साफ सफाई रखने की जरूरत होती है। वरना ये खुद आपके ही शरीर पर जल्द से जल्द फैल सकते हैं। तथा आपके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें अगर दूसरे लोग इस्तेमाल करते हैं, तो उन्हें भी यह रोग लग सकता है। ये रोग रक्त की अशुद्धि से भी होता है। एक्जिमा, दाद, खुजली हो जाये तो उस स्थान का उपचार करें। ये रोग अधिकतर बरसात में होता है। जो बिगड़ जाने पर जल्दी ठीक नहीं होता है।
    "एलर्जी" एक आम शब्द, जिसका प्रयोग हम कभी 'किसी ख़ास व्यक्ति से मुझे एलर्जी है' के रूप में करते हैं। ऐसे ही हमारा शरीर भी ख़ास रसायन उद्दीपकों के प्रति अपनी असहज प्रतिक्रया को 'एलर्जी' के रूप में दर्शाता है।
    बारिश के बाद आयी धूप तो ऐसे रोगियों क़ी स्थिति को और भी दूभर कर देती है। ऐसे लोगों को अक्सर अपने चेहरे पर रूमाल लगाए देखा जा सकता है। क्या करें छींक के मारे बुरा हाल जो हो जाता है।
    एलर्जी,! एलर्जी कई प्रकार की होने के साथ इसके कई कारण भी होते हैं। अक्सर धूल-मिट्टी या मौसम में आए बदलाव के कारण एलर्जी हो जाती है। एलर्जी किसी भी मौसम में हो सकती है, लेकिन सर्दियों के दिनों में ज्यादा परेशान करती है।
    *एलर्जी या अति संवेदनशीलता आज की लाइफ में बहुत तेजी से बढ़ती हुई सेहत की बड़ी परेशानी है कभी कभी एलर्जी गंभीर परेशानी का भी सबब बन जाती है जब हमारा शरीर किसी पदार्थ के प्रति अति संवेदनशीलता दर्शाता है तो इसे एलर्जी कहा जाता है और जिस पदार्थ के प्रति प्रतिकिर्या दर्शाई जाती है उसे एलर्जन कहा जाता है l
    मौसमी एलर्जी को आमतौर पर घास-फूस का बुखार भी कहा जाता है। साल में किसी खास समय के दौरान ही यह होता है। घास और शैवाल के पराग कण जो मौसमी होते हैं, इस तरह की एलर्जी की आम वजहें हैं।
    *नाक की बारहमासी एलर्जी के लक्षण मौसम के साथ नहीं बदलते। इसकी वजह यह होती है कि जिन चीजों के प्रति आप अलर्जिक होते हैं, वे पूरे साल रहती हैं।

    एकदम गरम से ठन्डे और ठन्डे से गरम वातावरण में ना जाएं l
    *बाइक चलाते समय मुंह और नाक पर रुमाल बांधे,आँखों पर धूप का अच्छी क़्वालिटी का चश्मा लगायें l
    *गद्दे, रजाई,तकिये के कवर एवं चद्दर आदि समय समय पर गरम पानी से धोते रहे l
    *रजाई ,गद्दे ,कम्बल आदि को समय समय पर धूप दिखाते रहे l
    *पालतू जानवरों से एलर्जी है तो उन्हें घर में ना रखें l
    *ज़िन पौधों के पराग कणों से एलर्जी है उनसे दूर रहे l
    *घर में मकड़ी वगैरह के जाले ना लगने दें समय समय पर साफ सफाई करते रहे l
    धूल मिटटी से बचें ,यदि धूल मिटटी भरे वातावरण में काम करना ही पड़ जाये तो फेस मास्क पहन कर काम करेंl

    *नाक की एलर्जी -



    "दिल की बीमारी जिन लोगों को नाक की एलर्जी बार बार होती है उन्हें सुबह भूखे पेट 1 चम्मच गिलोय और 2 चम्मच आंवले के रस में 1चम्मच शहद मिला कर कुछ समय तक लगातार लेना चाहिए इससे नाक की एलर्जी में आराम आता है ,सर्दी में घर पर बनाया हुआ या किसी अच्छी कंपनी का च्यवनप्राश खाना भी नासिका एवं साँस की एलर्जी से बचने में सहायता करता है आयुर्वेद की दवा सितोपलादि पाउडर एवं गिलोय पाउडर को 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम भूखे पेट शहद के साथ कुछ समय तक लगातार लेना भी नाक एवं श्वसन संस्थान की एलर्जी में बहुत आराम देता है
    जिन्हे बार बार त्वचा की एलर्जी होती है उन्हें मार्च अप्रेल के महीने में जब नीम के पेड़ पर कच्ची कोंपलें आ रही हों उस समय 5-7 कोंपलें 2-3 कालीमिर्च के साथ अच्छी तरह चबा चबा कर 15-20 रोज तक खाना त्वचा के रोगों से बचाता है, हल्दी से बनी आयुर्वेद की दवा हरिद्रा खंड भी त्वचा के एलर्जी जन्य रोगों में बहुत गुणकारी है
    *सभी एलर्जी जन्य रोगों में खान पान और रहन सहन का बहुत महत्व है इसलिए अपना खान पान और रहन सहन ठीक रखते हुए यदि ये उपाय अपनाएंगे तो अवश्य एलर्जी से लड़ने में सक्षम होंगे और एलर्जी जन्य रोगों से बचे रहेंगे एलर्जी जन्य रोगों में अंग्रेजी दवाएं रोकथाम तो करती हैं लेकिन बीमारी को जड़ से ख़त्म नहीं करती है जबकि आयुर्वेद की दवाएं यदि नियम पूर्वक ली जाती है तो रोगों को जड़ से ख़त्म करने की ताकत रखती हैं l
    *र्बल चाय एलर्जी की समस्या से बचने व इसे दूर करने के लिए घर में ही मौजूद अदरक, काली मिर्च, तुलसी के पत्ते, लौंग व मिश्री को मिलाकर बनायी गयी हर्बल चाय पीनी चाहिए। इस चाय से न सिर्फ एलर्जी से निजात मिलती है, बल्कि एनर्जी भी मिलती है।
    *फल या सब्जी के जूस में 5 बूंद कैस्टर ऑयल डालकर सुबह खाली पेट पिएं। चाहें तो फल व सब्जी के जूस के अलावा पानी में भी इसे ले सकते हैं। इससे आप आंतों, स्किन और नाक की एलर्जी से छुटकारा पा सकते हैं।
    *नीम चढी गिलोय के डंठल को छोटे टुकड़ों में काटकर इसका रस हरिद्रा खंड चूर्ण के साथ1.5 से तीन ग्राम नियमित प्रयोग पुरानी से पुरानी एलर्जी में रामबाण औषधि है।
    *गुनगुने निम्बू पानी का प्रातःकाल नियमित प्रयोग शरीर सें विटामिन-सी की मात्रा की पूर्ति कर एलर्जी के कारण होने वाले नजला-जुखाम जैसे लक्षणों को दूर करता है।
    *अदरख,काली मिर्च,तुलसी के चार पत्ते ,लौंग एवं मिश्री को मिलाकर बनायी गयी 'हर्बल चाय' एलर्जी से निजात दिलाती है।
    *बरसात के मौसम में होनेवाले विषाणु (वायरस)संक्रमण के कारण 'फ्लू' जनित लक्षणों को नियमित ताजे चार नीम के पत्तों को चबा कर दूर किया जा सकता है।
    *आयुर्वेदिक दवाई 'सितोपलादि चूर्ण' एलर्जी के रोगियों में चमत्कारिक प्रभाव दर्शाती है।
    *नमक पानी से 'कुंजल क्रिया' एवं ' नेती क्रिया" कफ दोष को बाहर निकालकर पुराने से पुराने एलर्जी को दूर करने में मददगार होती है।
    * पंचकर्म की प्रक्रिया 'नस्य' का चिकित्सक के परामर्श से प्रयोग 'एलर्जी' से बचाव ही नहीं इसकी सफल चिकित्सा है।
    * प्राणायाम में 'कपालभाती' का नियमित प्रयोग एलर्जी से मुक्ति का सरल उपाय है।
    कुछ सावधानियां जिन्हें अपनाकर आप एलर्जी से खुद को दूर रख सकते हैं :-
    * धूल,धुआं एवं फूलों के परागकण आदि के संपर्क से बचाव।
    * अत्यधिक ठंडी एवं गर्म चीजों के सेवन से बचना।
    * कुछ आधुनिक दवाओं जैसे: एस्पिरीन, निमासूलाइड आदि का सेवन सावधानी से करना।
    *खटाई एवं अचार के नियमित सेवन से बचना।
    आधे नींबू का रस और एक चम्मच शहद एक गिलास गुनगुने पानी में मिला दें। इसे आप रोजाना सुबह कई महीनों तक पिएं।
    *फिटकरी के पानी से प्रभावित स्थान को धोकर साफ करें। उस पर कपूर सरसों का तेल लगाते रहें। आंवले की गुली जलाकर राख कर लें उसमें एक चुटकी फिटकरी, नारियल का तेल मिलाकर इसका पेस्ट उस स्थान पर लगाते रहें। एक विकार दूर करने के लिये खट्टी चीजें, चीबी, मिर्च, मसाले से दूर रहें।

    * जब तक उपलब्ध हो गाजर का रस पियें दाद में। विटामिन ए की कमी से त्वचा शुष्क होती है। ये शुष्कता सर्दियों में अधिक बढ़ जाती है। इस कारण सर्दियों में गाजर का रस पियें ये विटामिन ए का भरपूर स्त्रोत है। चुकंदर के पत्तों का रस, नींबू का रस मिलाकर लगायें दाद ठीक होगा। गाजर व खीरे का रस बराबर-बराबर लेकर चर्म रोग पर दिन में चार बार लगायें।
     चर्म रोग कैसा भी हो उस स्थान को नींबू पानी से धोते रहें लाभ होगा। रोज सुबह नींबू पानी पियें लाभ होगा। नींबू में फिटकरी भरकर पीड़ित स्थान पर रगड़ने  से लाभ होगा। चंदन का बूरा, नींबू का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पेष्ट बनाऐं व दाद, खुजली पर लगायें। 



    * दाद होने पर नीला थोथा, फिटकरी दोनों को आग में भूनकर पीस लें फिर नींबू निचोड़कर लेप बनाऐं और दाद पर लगायें पुराना दाद भी ठीक हो जायेगा। दाद पर जायफल, गंधक, सुहागा को नींबू के रस में रगड़कर लगाने से लाभ होगा। 
    * दाद व खाज के रोगी, उबले नींबू का रस, शहद, अजवाइन के साथ रोज सुबह शाम पियें। दाद खाज में आराम होगा। नींबू के रस में इमली का बीज पीसकर लगाने से दाद मिटता है। 
    * पिसा सुहागा नींबू का रस मिलाकर लेप बनाऐं तथा दाद को खुजला कर उस पर लेप करें। दिन में चार बार दाद को खुजलाकर उस पर नींबू रगड़ें। 
    * सूखें सिंघाड़े को नींबू के रस घिसें इसे दाद पर लगायें पहले तो थोड़ी जलन होगी फिर ठंडक पड़ जायेगी इससे दाद ठीक होगा। 
    * तुलसी के पत्तों को नींबू के साथ पीसें यानी चटनी जैसा बना लें इसे 15 दिन तक लगातार लगायें। दाद ठीक होगा। प्याज का बीज नींबू के रस के साथ पीस लें फिर रोज दाद पर करीब दो माह तक लगायें दाद ठीक होगा। 
    * नहाते समय उस स्थान पर साबुन न लगायें। पानी में नींबू का रस डालकर नहायें। दाद फैलने का डर नहीं रहेगा। पत्ता गोभी, चने के आटे का सेवन करें। नीम का लेप लगायें। नीम का शर्बत पियें थोड़ी मात्रा में। प्याज पानी में उबालकर प्रभावित स्थान पर लगायें। कैसा भी रोग होगा ठीक हो जायेगा। लंम्बे समय तक लगाये। 



    * प्याज के बीज को पीसकर गोमूत्र में मिलाकर दाद वाले हिस्से पर लगायें। प्याज भी खायें। बड़ी हरड़ को सिरके में घिसकर लगाने से दाद ठीक होगा। ठीक होने तक लगायें। *चर्म रोग कोई भी हो, शहद, सिरका मिलाकर चर्म रोग पर लगाये मलहम की तरह। कुष्ठ रोग में भी शहद खायें, शहद लगायें। 
    दिल की बीमारी* सफेद दाग में नीम एक वरदान है। कुष्ठ रोग का इलाज नीम के जितने करीब होगा, उतना ही फायदा होगा। नीम लगाएं, नीम खाएं, नीम पर सोएं, नीम के नीचे बैठे, सोये यानि कुष्ठ रोग के व्यक्ति जितना संभव हो नीम के नजदीक रहें। नीम के पत्ते पर सोएं, उसकी कोमल पत्तियां, निबोली चबाते रहें। रक्त शुद्धिकरण होगा। अंदर से त्वचा ठीक होगी। कारण नीम अपने में खुद एक एंटीबायोटिक है। इसका वृक्ष अपने आसपास के वायुमंडल को शुद्ध, स्वच्छ, कीटाणुरहित रखता है। इसकी पत्तियां जलाकर पीसकर नीम के ही तेल में मिलाकर घाव पर लेप करें। नीम की फूल, पत्तियां, निबोली पीसकर इसका शर्बत चालीस दिन तक लगाताकर पियें। कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलेगी। नीम का गोंद, नीम के ही रस में पीसकर पिएं थोड़ी-थोड़ी मात्रा से शुरू करें इससे गलने वाला कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाता है 
    *त्वचा की एलर्जी के लिए नींबू के रस को आप नारियल तेल में मिलकर भी लगा सकते हैं। इसे लगा कर पूरी रात रहने दें। इसे नीम के पानी से धोएं। यह एंटी-बैक्टीरियल होता है, इसलिए यह किसी भी त्वचा संबंधी बीमारी को दूर कर सकता है।खसखस के बीज, शहद और नींबू के रस का मिश्रण बनाकर इसे प्रभावित जगह पर लगाने से त्वचा की एलर्जी का इलाज संभव है.
    जिन लोगों को एलर्जी की समस्या है, उन्हें लगातार कपालभाति का अभ्यास करना चाहिए और इसकी अवधि को जितना हो सके, उतना बढ़ाना चाहिए। तीन से चार महीने का अभ्यास आपको एलर्जी से मुक्ति दिला सकता है।

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    21.2.17

    फाइलेरिया , श्लीपद,हाथीपांव के उपचार (Elephantiasis Treatment)


     यह रोग उन स्थानों के निवासियों में ज्यादातर होता है, जिन स्थानों में जल का प्रभाव ज्यादा हो, जहां वर्षा ज्यादा समय तक ज्यादा मात्रा में होती हो, शीतलता ज्यादा रहती हो, जहां के जलाशय गन्दे हों। फाइलेरिया (Lymphatic Filariasis) एक परजीवीजन्य संक्रामक बीमारी है जो धागे जैसे कृमियों से होती है। वैश्विक स्तर पर इसे एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी (Neglected Tropical Disease) माना जाता है। फाइलेरिया दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय देशों में एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। जिसमें भारत भी शामिल है। विश्व में लगभग 1.3 अरब लोगों को इस बीमारी के संक्रमण का खतरा है और लगभग 12 करोड़ लोग इससे वर्तमान में संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से लगभग 4 करोड़ लोग इस बीमारी की वजह से किसी विकृति का शिकार हो गए हैं या अक्षम हो चुके हैं।
    *फाइलेरिया 2.5 करोड़ से ज्यादा पुरुषों को जननांग के विकार और 1.5 करोड़ से ज्यादा लोगों को सूजन से प्रभावित कर चुका है। हाथीपांव (Elephantiasis) फाइलेरिया का सबसे सामान्य लक्षण है जिसमें शोफ (Oedema) के साथ चमड़ी तथा उसके नीचे के ऊतक मोटे हो जाते हैं।
    वातज श्लीपद : 
    वात के कुपित होने पर हुए श्लीपद रोग में त्वचा रूखी, मटमैली, काली और फटी हुई हो जाती है, तीव्र पीड़ा होती है, अकारण दर्द होता रहता है एवं तेज बुखार होता है।

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    पित्तज श्लीपद :
     इसमें कुपित पित्त का प्रभाव रहता है। रोगी की त्वचा पीली व सफेद हो जाती है, नरम रहती है और मन्द-मन्द ज्वर होता रहता है।
    कफज श्लीपद : 
    इसमें कफ कुपित होने का प्रभाव होता है। त्वचा चिकनी ,पीली, सफेद हो जाती है, पैर भारी और कठोर हो जाता है। ज्वर होता भी है और नहीं भी होता।
    फाइलेरिया से बचाव (Treatment of Elephantiasis)
    *ऐसे कपड़े पहनें जिनसे पाँव और बांह पूरी तरह से ढक जाएं।
    *आवश्यकता पड़े तो पेर्मेथ्रिन युक्त (पेर्मेथ्रिन एक आम सिंथेटिक रासायनिक *कीटनाशक होता है) कपड़ों का उपयोग करें। बाजार में पेर्मेथ्रिन युक्त कपड़े मिलते हैं।
    *मच्छरों को मारने के लिए कीट स्प्रे का छिड़काव करें।
    इ*लाज बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में ही शुरू हो जाना चाहिए।



    *मच्छरों से बचाव फाइलेरिया (Hathipaon) को रोकने का एक प्रमुख उपाय है। क्यूलेक्स मच्छर जिसके कारण फाइलेरिया का संक्रमण फैलता है आम तौर पर शाम और सुबह के वक्त काटता है।

    *किसी ऐसे क्षेत्र में जहां फाइलेरिया फैला हुआ है वहां खुद को मच्छर के काटने से बचाना चाहिए।
    कैसे फैलता है फाइलेरिया?
    फाइलेरिया मच्छरों से फैलता है जो परजीवी कृमियों के लिए रोगवाहक का काम करते हैं। इस परजीवी के लिए मनुष्य मुख्य पोषक है जबकि मच्छर इसके वाहक और मध्यस्थ पोषक हैं। कृमि प्रभावित क्षेत्रों से लोगों का रोजगार की तलाश में बाहर जाना, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, अज्ञानता, आवासीय सुविधाओं की कमी और स्वच्छता की अपर्याप्त स्थिति से यह संक्रमण फैलता है। संक्रमण के बाद कृमि के लार्वा संक्रमित व्यक्ति की रक्तधारा में बहते रहते हैं जबकि वयस्क कृमि मानव लसीका तंत्र में जगह बना लेता है। एक वयस्क कृमि की आयु सात वर्ष तक हो सकती है।
    क्या हैं फाइलेरिया के लक्षण?
    इस तथ्य का अभी तक सटीक आकलन नहीं किया जा सका है कि संक्रमण के बाद फाइलेरिया के लक्षण प्रकट होने में कितना समय लगता है। हालांकि मच्छर के काटने के 16-18 महीनों के पश्चात बीमारी के लक्षण प्रकट होते हैं। फाइलेरिया के ज्यादातार लक्षण और संकेत वयस्क कृमि के लसीका तंत्र में प्रवेश के कारण पैदा होते हैं। कृमि द्वारा ऊतकों को नुकसान पहुंचाने से लसीका द्रव का बहाव बाधित होता है जिससे सूजन, घाव और संक्रमण पैदा होते हैं। पैर और पेड़ू सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले अंग हैं। फाइलेरिया का संक्रमण सामान्य शारीरिक कमजोरी, सिरदर्द, मिचली, हल्के बुखार और बार-बार खुजली के रूप में प्रकट होता है।



    कैसे फाइलेरिया का पता लगाया जाता है?

    फाइलेरिया परजीवी के माइक्रोफाइलेरि (Microfiliariae) रक्त में सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जा सकते हैं। माइक्रोफाइलेरि मध्यरात्रि के समय लिए गए रक्त के नमूनों में देखे जा सकते हैं क्योंकि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में इन परजीवियों में ‘निशाचरी आवधिकता’ (Nocturnal Periodicity) देखी जाती है जिससे रक्त में इनकी उपस्थिति मध्य रात्रि के आसपास के कुछ घंटों तक ही सीमित रहती है। यह भी देखा गया है कि रक्त में इस परजीवी की उपस्थिति मरीज के सोने की आदतों पर भी निर्भर करती है।
    फाइलेरिया की पहचान में सीरम संबंधी तकनीकें माइक्रोस्कोपिक पहचान का विकल्प हैं। सक्रिय फाइलेरिया संक्रमण के मरीजों के रक्त में फाइलेरियारोधी आईजी जी 4 (Immunoglobulin G 4) का स्तर बढ़ा हुआ रहता है जिसका सामान्य तरीकों से पता लगाया जा सकता है।
    *फाइलेरिया कभी-कभार ही जानलेवा साबित होता है, हालांकि इससे बार-बार संक्रमण, बुखार, लसीका तंत्र में गंभीर सूजन और फेफड़ों की बीमारी ‘ट्रॉपिकल पल्मोनरी इओसिनोफीलिया (Tropical Pulmonary Eosinophilia) हो जाती है। ट्रॉपिकल पल्मोनरी इओसिनोफीलिया के लक्षणों में खांसी, सांस लेने में परेशानी और सांस लेने में घरघराहट की आवाज होती है। लगभग 5 प्रतिशत मामलों में पैरों में सूजन आ जाती है जिसे फ़ीलपांव अथवा हाथीपांव कहते हैं। फाइलेरिया से गंभीर विकृति, चलने-फिरने में परेशानी और लंबी अवधि की विकलांगता हो सकती है।
    *फाइलेरिया के कारण हाइड्रोसील (Hydrocoele) भी हो सकता है। मरीज के वृषणकोष (Scrotum) में सूजन भी आ सकती है जिसे ‘फाइलेरियल स्क्रोटम’ (Filarial scrotum) कहा जाता है। कुछ मरीजों में मूत्र का रंग दूधिया हो जाता है। महिलाओं में वक्ष या बाह्य जननांग भी प्रभावित होते हैं। कुछ मामलों में पेरिकार्डियल स्पेस (हृदय और उसके झिल्लीदार आवरण के बीच की जगह) में भी द्रव जमा हो जाता है।
    घरेलू उपाय, उपचार
    *कीटाणुरोधक और मच्छरदानी का प्रयोग करें।
    *उचित स्वास्थ्यवर्धक स्थितियाँ बनाए रखें।
    *सूजे हिस्से को प्रतिदिन साबुन और पानी से सावधानीपूर्वक स्वच्छ करें।
    *लसिका प्रवाह बढ़ाने के लिए सूजे हुए हाथ या पैर को ऊपर उठा कर व्यायाम करें।
    *बैक्टीरिया रोधी और फफूंद नाशक क्रीमों के प्रयोग से घावों को संक्रमण रहित करें।
    *धतूरा, एरण्ड की जड़, सम्हालू, सफेद पुनर्नवा, सहिजन की छाल और सरसों, इन सबको समान मात्रा में पानी के साथ पीसकर गाढ़ा लेप तैयार करें। इस लेप को श्लीपद रोग से प्रभावित अंग पर प्रतिदिन लगाएं। इस लेप से धीरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है।
    *चित्रक की जड़, देवदार, सफेद सरसों, सहिजन की जड़ की छाल, इन सबको समान मात्रा में, गोमूत्र के साथ, पीसकर लेप करने से धीरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है।
    *बड़ी हरड़ को एरण्ड (अरण्डी) के तेल में भून लें। इन्हें गोमूत्र में डालकर रखें। यह 1-1 हरड़ सुबह-शाम खूब चबा-चबाकर खाने से धीेरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है।



    लेने योग्य आहार

    कम-वसा, प्रोटीन की अधिकता वाला आहार लाभकारी होता है।
    तरल पदार्थों की पर्याप्त मात्रा लें।
    प्रोबायोटिक (पाचन में सहायक लाभकारी बैक्टीरिया)।
    ओरिगानो (एक वनस्पतीय औषधि)।
    विटामिन सी युक्त भोज्य पदार्थ।
    स्थितियों के ठीक होने के लिए वसायुक्त और मसालेदार आहार ना लें।
    पथ्य : लहसुन, पुराने चावल, कुल्थी, परबल, सहिजन की फली, अरण्डी का तेल, गोमूत्र तथा सादा-सुपाच्य ताजा भोजन। उपवास, पेट साफ रखना।

    *परहेज- दूध से बने पदार्थ, गुड़, मांस, अंडे तथा भारी गरिष्ट व बासे पदार्थों का. सेवन न करें। आलस्य, देर तक सोए रहना, दिन में सोना आदि |

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