11.12.14

नसों के ब्लाकेज हटाकर हृदय की सुरक्षा पीपल के पत्ते से //Protection of the heart with leaves of Peeple tree




    धमनियों में कोलेस्ट्रोल जम जाने से रक्त परिसंचरण में रुकावट पड़ने से हार्ट अटेक| ,ब्रेन स्ट्रोक ,लकवा
जैसे रोगों में पीपल के पत्ते के प्रयोग से 85 प्रतिशत ब्लॉकेज दूर किये जा सकते हैं| .
विधि: पीपल के 10 पत्ते लें जो कोमल गुलाबी कोंपलें न हों,बल्कि पत्ते हरे, कोमल व भली प्रकार विकसित हों। प्रत्येक का ऊपर व नीचे का कुछ भाग कैंची से काटकर अलग कर दें।
पत्ते का बीच का भाग पानी से साफ कर लें। इन्हें एक गिलास पानी में धीमी आँच पर पकने दें। जब पानी
उबलकर एक तिहाई रह जाए तब ठंडा होने पर साफ कपड़े से छान लें और उसे ठंडे स्थान पर रख दें,
इस काढ़े की तीन खुराकें बनाकर प्रत्येक तीन घंटे बाद लें। हार्ट अटैक के बाद कुछ समय हो जाने के
पश्चात लगातार पंद्रह दिन तक इसे लेने से हृदय पुनः स्वस्थ हो जाता है और फिर दिल का दौरा पड़ने की
संभावना नहीं रहती।




* पीपल के पत्ते में दिल को बल और शांति देने की अद्भुत क्षमता है।
* इस पीपल के काढ़े की तीन खुराकें सवेरे 8 बजे, 11 बजे व 2 बजे ली जा सकती हैं।
* खुराक लेने से पहले पेट एक दम खाली नहीं होना चाहिए, बल्कि सुपाच्य व हल्का नाश्ता करने के बाद ही लें।
* प्रयोगकाल में तली चीजें, चावल आदि न लें। मांस, मछली, अंडे, शराब, धूम्रपान का प्रयोग बंद कर दें।
नमक, चिकनाई का प्रयोग बंद कर दें।
* अनार, पपीता, आंवला, बथुआ, लहसुन, मैथी दाना, सेब का मुरब्बा, मौसंबी, रात में भिगोए काले चने,

किशमिश, गुग्गुल, दही, छाछ आदि लें । 




23.11.13

गेहूं के जवारे हैं अच्छे स्वास्थय की कुंजी // Wheat grassThe key to good health








*गेहूं के जवारे में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स आदि वे सभी पौष्टिक तत्व है जो शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाये रखने के लिए जरूरी है |
*लंबे और गहन अनुसंधान के बाद पाया गया है कि शारीरिक कमजोरी, रक्ताल्पता, दमा, खांसी, पीलिया, मधुमेह, वात-व्याधि, बवासीर जैसे रोगों में गेहूं के छोटे-छोटे हरे पौधों के रस का सेवन खासा कारगर साबित हुआ है |यहां तक कि इसकी मानवीय कोशिकाओं को फिर से पैदा करने की विशिष्ट क्षमता और उच्चकोटि के एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण कैंसर जैसे घातक रोग की प्रारंभिक अवस्था में इसका अच्छा प्रभाव देखा गया है |




*गेहूं हमारे आहार का मुख्य घटक है | इसमें पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है | इस संदर्भ में तमाम महत्वपूर्ण खोजें हुई हैं. अमेरिका के सुप्रसिद्ध चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ. ए. विग्मोर ने गेहूं के पोषक और औषधीय गुणों पर लंबे शोध और गहन अनुसंधान के बाद पाया है कि शारीरिक कमजोरी, रक्ताल्पता, दमा, खांसी, पीलिया, मधुमेह, वात-व्याधि, बवासीर जैसे रोगों में गेहूं के छोटे-छोटे हरे पौधे के रस का सेवन खासा कारगर साबित हुआ है |

एन्टी आक्सी डेंट से भरपूर --
यहां तक कि इसकी मानव कोशिकाओं को फिर से पैदा करने की विशिष्ट क्षमता और
उच्चकोटि के एन्टीऑक्सीडेंट होने के कारण कैंसर जैसे घातक रोग की प्रारंभिक
अवस्था में इसका अच्छा असर देखा गया है | यही नहीं, फोड़े-फुंसियों और घावों पर गेहूं के छोटे हरे पौधे की पुल्टिस 'एंटीसेप्टिक'और 'एंटीइन्फ्लेमेटरी' औषधि की तरह काम करती है. डॉ. विग्मोर के अनुसार, किसी भी तरह की शारीरिक कमजोरी दूर करने में गेहूं के जवारे का रस किसी भी उत्तम टॉनिक से बेहतर साबित हुआ है |



प्राकृतिक बलवर्धक टॉनिक -
यह ऐसा प्राकृतिक बलवर्धक टॉनिक है जिसे किसी भी आयुवर्ग के स्त्री-पुरुष और
बच्चे जब तक चाहे प्रयोग कर सकते हैं, इसी गुणवत्ता के कारण इसे 'ग्रीन
ब्लड' की संज्ञा दी गयी है |
पोषक तत्वों की अधिकता के कारण गेहूं को खाद्यान्नों में सर्वोपरि माना गया
है. इसमें प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स आदि वे सभी पौष्टिक
तत्व विद्यमान रहता है जो शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाये रखने के लिए
जरूरी है |
रोग प्रतिरोधक क्षमता -
शोध वैज्ञानिकों के अनुसार, गेहूं के ताजे जवारों (गेहूं केहरे नवांकुरों) के साथ थोड़ी सी हरी दूब और चार-पांच काली मिर्च को पीसकर उसका रस निकालकर पिया जाए तो इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है |यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि दूब घास सदैव स्वच्छ स्थानों जैसे खेत, बाग-बगीचों से ही लेना चाहिए |
वैज्ञानिकों ने गेहूं के जवारे उगाने का सरल तरीका भी बताया है.
इसके लिए मिट्टी के छोटे-छोटे सात गमले लिये जाएं और उन्हें साफ जगह से
मिट्टी से भर ली जाए. मिट्टी भुरभुरी और रासायनिक खाद रहित होनी चाहिए |



अब इन गमलों में क्रम से प्रतिदिन एक-एक गमले में रात में भिगोया हुआ एक-एक
मुट्ठी गेहूं बो दें. दिन में दो बार हल्की सिंचाई कर दे. 6-7 दिन में जब
जवारे थोड़े बड़े हो जाएं तो पहले गमले से आधे गमले के कोमल जवारों को जड़
सहित उखाड़ लें |
ध्यान रखें, जवारे 7-8 इंच के हों तभी उन्हें उखाड़ें. इससे ज्यादा बड़े होने पर
उनके सेवन से अपेक्षित लाभ नहीं मिलता. जवारे का रस सुबह खाली पेट लेना हीउपयोगी होता है
ख्याल रखें कि जवारे को छाया में ही उगाएं. गमले रोज मात्र आधे घंटे के लिए
हल्की धूप में रखें. जवारों का रस निकालने के लिए 6-7 इंच के पौधे उखाड़कर
उनका जड़वाला हिस्सा काटकर अलग कर दें |

अच्छी तरह धोकर साफ करके सिल पर पीस लें. फिर मुट्ठी से दबाकर रस निकाल लें. ग्रीन ब्लड तैयार है |
इस रस के सेवन से हीमोग्लोबिन बहुत तेजी से बढ़ता है और नियमित सेवन से शरीर पुष्ट और निरोग हो जाता है.
दूर्वा घास' के बारे में आरोग्य शास्त्रों में लिखा है कि इसमें अमृत भरा है,इसके नियमित सेवन से लंबे समय तक निरोग रहा जा सकता है | आयुर्वेद के अनुसार, गेहूं के जवारे के रस के साथ 'मेथीदाने' के रस के सेवन से बुढ़ापा दूर भगाया जा सकता है |


एक चम्मच मेथी दाना  रात मे भिगो दें  सुबह छानकर  इस रस को जवारे  के रस  के साथ मिलाकर  सेवन करें|

उपरोक्त के साथ आधा नींबू का रस, आधा छोटा चम्मच सोंठ और दो चम्मच शहद मिला देने से इस पेय की गुणवत्ता कई गुना बढ़ जाती है | इस पेय में विटामिन ई, सी और कोलीन के साथ कई महत्वपूर्ण इंजाइम्स और पोषक 



3.2.12

फ़ोडे,फ़ुन्सियां,गुमडे की घरेलू ,आयुर्वेदिक चिकित्सा Fode funsiya


                                                                                                   

  

फ़ोडॆ ,गुमडॆ ,गांठ होना त्वचा का रोग है।खासकर स्टेफ़िलोकोकस जीवाणु इस रोग के लिये उत्तरदायी माना जाता है।इस रोग में त्वचा के रोम छिद्रों में संक्रमण होने से स्थानीय तौर पर पर पीडाकारक सूजन और ऊभार बन जाते हैं जिसमे पीप पड जाती है। एक या अधिक रोम छिद्र प्रभावित हो सकते हैं। स्वेद ग्रंथियों में संक्रमण होने से भी फ़ोडे-फ़ुन्सियां होती हैं। पककर फ़ूटने पर पीप स्राव होता है। साधारणतया यह रोग घरेलू ईलाज से ठीक हो जाता है। लेकिन पुराने रोग के में ईलाज कुछ लंबे समय लगता है।

नीचे फ़ोडे-फ़ुन्सियों,घुमडे- गांठ के घरेलू उपचार दिए गये हैं जिनसे रोग शीघ्र ही नियंत्रित होकर रोगी स्वस्थ्य हो जाता है--
Protected by Copyscape DMCA Copyright Detector१) करेले का रस ५० मिलि में एक निंबू का रस मिलाकर रोज सुबह खाली पेट कुछ दिन तक लेते रहने से शरीर की गुमडे-गांठ की प्रवत्ति से मुक्ति मिल जाती है।









२) जीरा पानी के साथ पीसकर पेस्ट जैसा बनाकर फ़ोडे-फ़ुंसियों पर लगाना चाहिये।


३) नागरवेल पान को मामूली तपायें फ़िर उस पर अरंडी का तेल चुपडकर सूजन वाले स्थान पर लगाकर पट्टी बांधें। २-३ घंटे में पान बदलते रहें। फ़ोडा फ़ूटकर पीप निकल जायेगा।





४) मक्का(कोर्न) का आटा का प्रयोग लाभदायक है। १००मिलि पानी उबालें उसमे मक्का का आटा घोलते जायें। जब पेस्ट जैसा गाढा हो जाये तब आंच से उतारलें। इसे फ़ोडे फ़ुंसी,गुमड गांठ पर लगाकर पट्टी बांधें। २-३ घंटे के अंतर पर यह प्रक्रिया पुन: करते रहने से फ़ोडा पक जाता है और पीप बाहर निकल जाती है।



५) २०० मिलि दूध ऊबालें। इसमें १५ ग्राम नमक धीरे-धीरे मिलाते जाएं। जल्दी मिलाने से दूध फ़ट जाएगा। अब इसे गाढा बनाने के लिये ब्रेड के टुकडे उसमें डालें।पेस्ट जैसा बनने पर आंच से उतारें। इसे फ़ोडे फ़ुंसी पर हर तीन घंटे बाद लगाकर पट्टी बांधते रहने से कच्चा फ़ोडा-गांठ पक कर फ़ूट निकलता है।यह ध्यान देने योग्य है कि पीप त्वचा के अन्य हिस्से पर न लगे अन्यथा संक्रमण फ़ैलने का खतरा रहता है। फ़ोडा-फ़ुंसी रोगी के टावेल,कपडे,दाढी का सामान आदि अन्य व्यक्ति उपयोग नहीं करें।
६) प्याज और लहसुन फ़ोडे फ़ुंसी के उत्तम उपचारों मे शुमार होते हैं।प्याज और लहसुन का रस बराबर मात्रा में मिलाकर फ़ोडे-फ़ुंसी पर लगाने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।

७) हल्दी का प्रयोग हितकारी उपाय है। ३-४ हल्दी की गांठें आग में जलाएं फ़िर बारीक पीसकर १००मिलि पानी में घोल लें। यह मिश्रण फ़ोडे-फ़ुंसी पर लगाते रहने से फ़ोडे पक कर फ़ूट जाते है। हल्दी में जीवाणु नाशक गुण होते हैं।
८) प्याज में जीवाणु नाशक गुण होते हैं। चाकू से प्याज की चीरें काट लें ।फ़ोडे फ़ुंसी पर रखकर पटी बांधें। कुछ ही बार ऐसा करने से फ़ोडा पक जाएगा। मामूली दबाकर पीप निकाल दें।






९) गरम पानी में कपडा डुबोकर निचोडकर ३-४ तह(लेयर) बनाकर यह पट्टी फ़ोडे पर रखने और ठंडा हो जाने पर फ़िर गरम पटी रखते रहने से भी फ़ोडा-गांठ शीघ्र फ़ूट जाता है।



१०) चेहरे की फ़ुंसियों को दबाकर पीप नहीं निकालना चाहिये वर्ना चेहरे पर दाग बाकी रह जाएंगे और उनको ठीक करने का अतिरिक्त उपचार करना होगा।



११) एक गिलास जल में एक चम्मच हल्दी पावडर घोलकर रोज सुबह पीने से कुछ ही रोज में खून साफ़ होकर फ़ोडे फ़ुंसियां ठीक हो जाती हैं|



















10.4.11

दन्तशूल के घरेलू उपचार //Toothache home remedies


                                             
                                              

दांत,मसूढों और जबडों में होने वाली पीडा को दंतशूल से परिभाषित किया जाता है। हममें से कई लोगों को ऐसी पीडा अकस्मात हो जाया करती है। दांत में कभी सामान्य तो कभी असहनीय दर्द उठता है। रोगी को चेन नहीं पडता। मसूडों में सूजन आ जाती है। दांतों में सूक्छम जीवाणुओं का संक्रमण हो जाने से स्थिति और बिगड जाती है। मसूढों में घाव बन जाते हैं जो अत्यंत कष्टदायी होते हैं।दांत में सडने की प्रक्रिया शुरु हो जाती है और उनमें केविटी बनने लगती है।जब सडन की वजह से दांत की नाडियां प्रभावित हो जाती हैं तो पीडा अत्यधिक बढ जाती है।

   प्राकृतिक उपचार दंत पीडा में लाभकारी होते हैं। सदियों से हमारे बडे-बूढे दांत के दर्द में घरेलू पदार्थों का उपयोग करते आये हैं। यहां हम ऐसे ही प्राकृतिक उपचारों की चर्चा कर रहे हैं।


१) बाय बिडंग १० ग्राम,सफ़ेद फ़िटकरी १० ग्राम लेकर तीन लिटर जल में उबालकर जब मिश्रण एक लिटर रह जाए तो आंच से उतारकर ठंडा करके एक बोत्तल में भर लें। दवा तैयार है। इस क्वाथ से सुबह -शाम कुल्ले करते रहने से दांत की पीडा दूर होती है और दांत भी मजबूत बनते हैं।





२) लहसुन में जीवाणुनाशक तत्व होते हैं। लहसुन की एक कली थोडे से सैंधा नमक के साथ पीसें फ़िर इसे दुखने वाले दांत पर रख कर दबाएं। तत्काल लाभ होता है। प्रतिदिन एक लहसुन कली चबाकर खाने से दांत की तकलीफ़ से छुटकारा मिलता है।





३) हींग दंतशूल में गुणकारी है। दांत की गुहा(केविटी) में थोडी सी हींग भरदें। कष्ट में राहत मिलेगी।

४) तंबाखू और नमक महीन पीसलें। इस टूथ पावडर से रोज दंतमंजन करने से दंतशूल से मुक्ति मिल जाती है।
५) बर्फ़ के प्रयोग से कई लोगों को दांत के दर्द में फ़ायदा होता है। बर्फ़ का टुकडा दुखने वाले दांत के ऊपर या पास में रखें। बर्फ़ उस जगह को सुन्न करके लाभ पहुंचाता है।









६) कुछ रोगी गरम सेक से लाभान्वित होते हैं। गरम पानी की थैली से सेक करना प्रयोजनीय है।












७) प्याज कीटाणुनाशक है। प्याज को कूटकर लुग्दी दांत पर रखना हितकर उपचार है। एक छोटा प्याज नित्य भली प्रकार चबाकर खाने की सलाह दी जाती है। इससे दांत में निवास करने वाले जीवाणु नष्ट होंगे।




८) लौंग के तैल का फ़ाया दांत की केविटी में रखने से तुरंत फ़ायदा होगा। दांत के दर्द के रोगी को दिन में ३-४ बार एक लौंग मुंह में रखकर चूसने की सलाह दी जाती है।







९) नमक मिले गरम पानी के कुल्ले करने से दंतशूल नियंत्रित होता है। करीब ३०० मिलि पानी मे एक बडा चम्मच नमक डालकर तैयार करें।दिन में तीन बार कुल्ले करना उचित है।
१०) पुदिने की सूखी पत्तियां पीडा वाले दांत के चारों ओर रखें। १०-१५ मिनिट की अवधि तक रखें। ऐसा दिन में १० बार करने से लाभ मिलेगा।
११) दो ग्राम हींग नींबू के रस में पीसकर पेस्ट जैसा बनाले। इस पेस्ट से दंत मंजन करते रहने से दंतशूल का निवारण होता है।






१२। मेरा अनुभव है कि विटामिन सी ५०० एम.जी. दिन में दो बार और केल्सियम ५००एम.जी दिन में एक बार लेते रहने से दांत के कई रोग नियंत्रित होंगे और दांत भी मजबूत बनेंगे।
१३)  मुख्य बात ये है कि  सुबह-शाम दांतों की स्वच्छता करते रहें। दांतों के बीच की जगह में अन्न कण फ़ंसे रह जाते हैं और उनमें जीवाणु पैदा होकर दंत विकार उत्पन्न करते हैं।
१४) शकर का उपयोग हानिकारक है। इससे दांतो में जीवाणु पैदा होते हैं। मीठी वसुएं हानिकारक हैं। लेकिन कडवे,ख्ट्टे,कसेले स्वाद के पदार्थ दांतों के लिये हितकर होते है। नींबू,आंवला,टमाटर ,नारंगी का नियमित उपयोग लाभकारी है। इन फ़लों मे जीवाणुनाशक तत्व होते हैं। मसूढों से अत्यधिक मात्रा में खून जाता हो तो नींबू का ताजा रस पीना लाभकारी है।
१५)    हरी सब्जियां,रसदार फ़ल भोजन में प्रचुरता से शामिल करें।




१६)  दांतों की  केविटी में दंत चिकित्सक केमिकल मसाला भरकर इलाज करते हैं। सभी प्रकार के जतन करने पर भी दांत की पीडा शांत न हो तो दांत उखडवाना ही आखिरी उपाय है।
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25.1.11

मूत्राषय प्रदाह (cystitis) के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार Mootrashay Pradah

                                                                    


     मूत्राषय   में रोग-जीवाणुओं का संक्रमण होने से मूत्राषय प्रदाह रोग उत्पन्न होता है। निम्न मूत्र पथ के अन्य अंगों किडनी, यूरेटर और प्रोस्टेट ग्रंथि और योनि में भी संक्रमण का असर देखने में आता है। इस रोग  के कई कष्टदायी लक्षण  होते हैं जैसे-तीव्र गंध वाला पेशाब होना,पेशाब का रंग बदल जाना, मूत्र त्यागने में जलन और दर्द  अनुभव होना, कमजोरी मेहसूस होना,पेट में पीडा और शरीर में बुखार की हरारत रहना। हर समय मूत्र त्यागने की ईच्छा बनी रहती है। मूत्र पथ में जलन  बनी रहती है। मूत्राषय में सूजन आ जाती है।
     यह रोग पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में ज्यादा देखने में आता है। इसका कारण यह है कि स्त्रियों की पेशाब नली (दो इंच) के बजाय पुरुषों की मूत्र नलिका ७ इंच लंबाई  की होती है। छोटी नलिका से होकर संक्रमण सरलता से मूत्राषय को आक्रांत कर लेता है। गर्भवती स्त्रियां और सेक्स-सक्रिय औरतों में मूत्राषय प्रदाह रोग अधिक पाया जाता है। ऋतू निवृत्त महिलाओं में भी यह रोग अधिक होता है।
     इस रोग में मूत्र खुलकर नहीं होता है और जलन की वजह से रोगी पूरा पेशाब नहीं कर पाता है और मूत्राषय में पेशाब बाकी रह जाता है। इस शेष रहे मूत्र में जीवाणुओं का संचार होकर रोगी की स्थिति ज्यादा खराब हो सकती है।
    आधुनिक चिकित्सक एन्टीबायोटिक दवाओं से इस रोग को काबू में करते हैं लेकिन कुदरती और घरेलू पदार्थॊं  के उपचार  इस रोग में अधिक फ़लदायी होते है।






१)  खीरा ककडी का रस इस रोग में अति लाभदायक है। २०० मिलि ककडी के रस में एक बडा चम्मच नींबू का रस  और एक चम्मच शहद मिलाकर हर तीन घंटे के फ़ासले से पीते रहें।



२) पानी और अन्य तरल पदार्थ प्रचुर मात्रा में प्रयोग करें। प्रत्येक १० -१५ मिनिट के अंतर पर एक गिलास पानी या फ़लों का रस पीयें। सिस्टाइटिज नियंत्रण का यह रामबाण उपचार है।






३)  मूली के पत्तों का रस लाभदायक है। १०० मिलि रस दिन में ३ बार प्रयोग करें।





 
४)  नींबू का रस इस रोग में उपयोगी है। वैसे तो नींबू स्वाद में खट्टा होता है लेकिन गुण क्छारीय हैं। नींबू का रस मूत्राषय में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायक होता है। मूत्र में रक्त आने की स्थिति में भी लाभ होता है।
५)  पालक रस १२५ मिलि में नारियल का पानी मिलाकर पीयें। तुरंत फ़ायदा होगा। पेशाब में जलन मिटेगी।







६)  पानी में मीठा सोडा यानी सोडा बाईकार्ब मिलाकर पीने से तुरंत लाभ प्रतीत होता है लेकिन इससे रोग नष्ट नहीं होता। लगातार लेने से स्थिति ज्यादा बिगड सकती है।
७) गरम पानी से स्नान करना चाहिये। पेट और नीचे के हिस्से में गरम पानी की बोतल से सेक करना चाहिये। गरम पानी के टब में बैठना लाभदायक है।
८)  मूत्राषय प्रदाह रोग की शुरुआत में तमाम गाढे भोजन बंद कर देना चाहिये।दो दिवस का  उपवास करें। उपवास के दौरान पर्याप्त मात्रा में तरल,पानी,दूध लेते रहें।
९)  विटामिन सी (एस्कार्बिक एसिड) ५०० एम जी दिन में ३ बार लेते रहें। मूत्राषय प्रदाह निवारण में उपयोगी है।






१०) ताजा भिंडी लें। बारीक काटॆं। दो गुने जल में उबालें। छानकर यह काढा दिन में दो बार पीने से मूत्राषय प्रदाह की वजह से होने वाले पेट दर्द में राहत मिल जाती है।





११)  आधा गिलास मट्ठा में आधा गिलास जौ का मांड मिलाएं इसमें नींबू का रस ५ मिलि मिलाएं और पी जाएं। इससे मूत्र-पथ के रोग नष्ट होते है।
१२) आधा गिलास  गाजर का रस में इतना ही पानी मिलाकर पीने से मूत्र की जलन दूर होती है। दिन में दो बार प्रयोग कर सकते हैं।












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