कस्तूरी, एक बहुत लोकप्रिय लेकिन दुर्लभ चीज है. दुर्लभ इसलिए क्योंकि ये मृग से प्राप्त किया जाता है और मृगों में भी सबसे नहीं. कुछ नर मृगों के गुदा क्षेत्रों में स्थित एक ग्रंथि से इसे प्राप्त किया जाता है. इसकी जानकारी प्राचीनकाल से ही है. इसका इस्तेमाल एक महत्वपूर्ण रासायनिक पदार्थ की तरह किया जाता है. आपको बता दें की इसे विश्व के सार्वाधिक कीमती पशु उत्पादों में गिना जाता है. कस्तूरी को इत्र और इसी तरह के अन्य कई सुगंधित पदार्थों के निर्माण में किया जाता है.
कस्तूरी के ऊपरी सतह पर बाल होते हैं. इसके अंदुरुणी हिस्से में कलोंजी या इलायची के दाने जैसे ही दाने मौजूद होते हैं. कस्तूरी वयस्क नर हिरण में ही पाई जाती है. कहते है कि जब यह कस्तूरी मृग जवान हो जाता है तो इससे भी कस्तूरी की सुगंध आती है, जिसे ढूंढने के लिए यह इधर से उधर भागा फिरता है लेकिन कस्तूरी इसे कभी प्राप्त नहीं होता क्योंकि ये बाहर न होकर इसके अंदर ही मौजूद होता है. अपने देश में इसका ज्ञान लोगों को प्राचीन काल से ही था. न सिर्फ ज्ञान था बल्कि उस दौरान इसका इस्तेमाल भी किया जाता था. तब इसका इस्तेमाल सुगंधित पदार्थों के अलावा पूजा-पाठ में भी किया जाता था. इसके अलावा कई औरषधियों के निर्माण में भी इसे इस्तेमाल किया जाता था.
हिमालय में ऐसे कई जीव-जंतु हैं, जो बहुत ही दुर्लभ है। उनमें से एक दुनिया का सबसे दुर्लभ मृग है कस्तूरी मृग।
यह हिरण उत्तर पाकिस्तान, उत्तर भारत, चीन, तिब्बत, साइबेरिया, मंगोलिया में ही पाया जाता है। इस मृग की कस्तूरी बहुत ही सुगंधित और औषधीय गुणों से युक्त होती है। कस्तूरी मृग की कस्तूरी दुनिया में सबसे महंगे पशु उत्पादों में से एक है।
माना जाता है कि यह कस्तूरी कई चमत्कारिक धार्मिक और सांसारिक लाभ देने वाली औषधि है।
कस्तूरी को इसके उत्पति स्थान को देखते हुये प्रमुख रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता है.
नेपाली कस्तूरी – नेपाल के हिरणों से नील वर्ण की कस्तूरी प्राप्त की जाती है.
कामरूपी कस्तूरी –
आसाम क्षेत्र के हिरणों से जो कस्तूरी प्राप्त की जाती है उसका रंग काला होता है और उसे कामरूपी कस्तूरी भी कहते हैं.
कश्मीरी कस्तूरी –
भारत में कश्मीर के हिरणों से प्राप्त कस्तूरी पीले रंग की होती है.
गुणात्मक दृष्टि से इन तीनो प्रकारों में कामरूपी कस्तूरी श्रेष्ठ होती है,
गुणात्मक दृष्टि से इन तीनो प्रकारों में कामरूपी कस्तूरी श्रेष्ठ होती है,
नेपाली कस्तूरी – माध्यम और कश्मीरी कस्तूरी सामान्य मानी जाती है.
कस्तूरी के गुण धर्म –
रस में यह कटु और तिक्त , गुण में – लघु , रुक्ष और तीक्ष्ण, वीर्य – उष्ण और विपाक – कटु होता है |
कस्तूरी के रोग प्रभाव –
कस्तूरी के रोग प्रभाव –
वात एवं कफ नाशक |
द्रव्य प्रयोग – श्वसनक ज्वर, वात श्लेष्मिक ज्वर , लकवा, सन्निपातज ज्वर और ह्रदय रोगों में इस्तेमाल की जाती है |
कस्तूरी औषध उपयोग आयुर्वेद में कस्तूरी से टीबी, मिर्गी, हृदय संबंधी बीमारियां, आर्थराइटिस जैसी कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है।
द्रव्य प्रयोग – श्वसनक ज्वर, वात श्लेष्मिक ज्वर , लकवा, सन्निपातज ज्वर और ह्रदय रोगों में इस्तेमाल की जाती है |
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कस्तूरी के फायदे
कस्तूरी के औषध योग – इसमें वृहद् कस्तूरी भैरव रस और मृगमादासव इत्यादि के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है.
गर्भाशय रोग – जिन स्त्रियॉं का गर्भाशय अपने मूल स्थान से हट जाता है उसे पुनः उस स्था पर लाने के लिए आपको कस्तूरी और केशर की एक सामान मात्रा को लेकर पानी में पिस कर छोटी-छोटी गोलियां बना लें. अब इन गोलियों को मासिक धर्म के शुरू होने से पहले योनी मुख में रखें. तीन दिन तक ऐसा करने से इसमें काफी लाभ मिलेगा.
दांत दर्द – यदि आपको दाँत दर्द की समस्या है तो आप कस्तूरी को कुठ के साथ मिलाकर दांतों पर मलें. ऐसा करने से आपको शीघ्र ही दांत दर्द में आराम मिलेगा.
काली खांसी –
काली खांसी से परेशान व्यक्ति को सरसों के दाने के सामान कस्तूरी को मक्खन में मिश्रित करके देने से तुरंत लाभ मिलता है.
असली कस्तूरी की पहचान-कस्तूरी की माँग बहुत होने के कारण तथा कठिनाई से मिलने के कारण इसमें मिलावट की जाती है।
असली कस्तूरी मिलना बहुत कठिन है। व्यापारी लोग सूखा हुआ रक्त, यकृत तथा दाल, गेहूँ एवं जी के दाने आदि मिला देते हैं। केवल गन्ध से कस्तूरी की पहचान करना कठिन है क्योंकि इसके सम्पर्क में आये पदार्थ को यह सुगन्धित कर देती है।
कस्तूरी के दानों को जल में डालने पर यदि दाने वैसे ही रहें तो असली और यदि वे धुल जाये तो मिलावटी.
जलते लकड़ों के अंगारे पर कस्तूरी के दाने डालने पर यदि वह पिघलकर उसमें से बुदबुदे निकले तो असली और यदि वह एक दम कड़ी होकर कोयला बन जाय तो नकली
असली कस्तूरी को जमीन में गाड़ दें तब भी उसकी गन्ध में कोई परिवर्तन नहीं होता।
असली कस्तूरी मुलायम होती है तथा मिलावट होने पर वह कड़ी होती है।
कागज में रखने पर इससे कागज में पीला दाग पड़ जाता है तथा जलने पर इसमें मूत्र की गन्ध आती है।
जलते लकड़ों के अंगारे पर कस्तूरी के दाने डालने पर यदि वह पिघलकर उसमें से बुदबुदे निकले तो असली और यदि वह एक दम कड़ी होकर कोयला बन जाय तो नकली
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