30.4.20

आलू से वजन कम करने के तरीके /potato weight loss





आपने अक्सर लोगों को यह कहते सुना होगा कि अगर आप वजन घटाने की कोशिश कर रहे हैं तो आपको कार्बोहाइड्रेट्स से दूर रहना चाहिए या फिर बेहद कम मात्रा में इनका सेवन करना चाहिए। वजन घटाते वक्त ज्यादातर लोग आलू से तो सबसे पहले दूरी बना लेते हैं। लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं एक खास पटेटो डायट के बारे में जिसमें आपको 5 दिन तक सिर्फ पटेटो यानी आलू खाना है और फिर देखें कैसे घटेगा आपका वजन|


रोजाना खाएं आलू

जर्नल मॉलिक्युलर ऑफ न्यूट्रिशन एंड फूड रिसर्च में प्रकाशित एक नई स्टडी के मुताबिक, अगर पतला होना है तो रोजाना आलू खाएं। इतना ही नहीं, अगर आप केवल 5 दिन तक पटेटो डायट फॉलो कर लें, तो आपका वजन कई किलो तक कम हो जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि आलू खाने के बाद आपको भूख का एहसास नहीं होता। इससे पेट जल्दी भर जाता है और आप ओवरईटिंग से भी बच जाते हैं।

कैलरी होती है कम

इस नई स्टडी के मुताबिक आलू वजन घटाने  aloo se vajan kam में असरदार रूप से काम करता है क्योंकि यह एक ऐसा स्टार्ची फूड है जिसमें कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट ज्यादा होता है जबकी कैलरीज कम। साथ ही मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने के साथ साथ वजन को कंट्रोल करने में मदद करता है आलू।
जब हम कहते हैं कि आलू वजन कम करने में मदद करता है तो इसका मतलब फ्राइज और चिप्स खाने से नहीं होता है। जाहिर है तेल में तले खाद्य पदार्थ खाने से आपका वजन तो बढ़ेगा ही साथ ही यह आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी होता है फिर चाहे वह आलू हो या खीरा। इसलिए जब आलू की बात आती है तो इसे खाने का सही तरीका वजन कम करने में काफी सहायक होता है। हम जानते हैं कि शरीर में फैट जमा होने से तरह-तरह की बीमारियां होने लगती है। इसके कारण वजन बढ़ना, कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाना, हाई ब्लड प्रेशर और घुटनों में दर्द की शिकायत शुरू हो जाती है।

वजन घटाता है, सेहत नहीं

एक मीडियम साइज के आलू में जहां 168 कैलरी होती है वहीं उबले आलू में सिर्फ 100 कैलरीज। वैज्ञानिकों का कहना है आलू एक ऐसा फूड है जो वजन तो घटाता है लेकिन सेहत नहीं। इसे अगर आप दिनभर में 10 भी खा लेते हैं, तो भी आप दूसरे फूड से कम कैलरी इनटेक करेंगे और साथ में हेल्दी भी रहेंगे।

पोषक तत्व से भरपूर

आलू में फाइबर और प्रोटीन के अलावा विटमिन बी, सी, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीज, फॉस्फॉरस जैसे पोषक तत्व काफी तादाद में होते हैं।

उबालकर खाना फायदेमंद


यदि दो-तीन आलू उबालकर छिलके सहित थोड़े से दही के साथ खा लिए जाएं तो ये एक संपूर्ण आहार का काम करता है।

आलू नहीं, चिकनाई से मोटापा

आलू को तलकर तीखे मसाले, घी आदि लगाकर खाने से जो चिकनाई पेट में जाती है, वह चिकनाई मोटापा बढ़ाती है आलू नहीं। वहीं, अगर आप आलू को उबालकर खाते हैं तो हेल्थ को तो फायदा मिलता ही है साथ ही वजन भी कम aloo se vajan kam  होता है।

आलू के छिलके भी हैं फायदेमंद

आलू के छिलके ज्यादातर फेंक दिए जाते हैं, जबकि छिलके सहित आलू खाने से ज्यादा शक्ति मिलती है। जिस पानी में आलू उबाले गए हों, वह पानी न फेंकें, बल्कि इसी पानी से आलुओं का रसा बना लें। इस पानी में मिनरल और विटमिन बहुत होते हैं।

आवश्यक सामग्री:

उबला हुआ आलू - 2
दही - 1 मीडियम साइज कप
नमक - 1 चम्मच यदि आप इस प्राकृतिक उपाय का सही तरीके से और नियमित इस्तेमाल करते तो खासतौर पर वजन घटाने में aloo se vajan kam यह काफी सहायक है।
इस उपाय के साथ-साथ आपको नियमित कम से कम 45 मिनट व्यायाम करना चाहिए और कम ऑयली और कम फैटी खाद्य पदार्थों को खाना चाहिए। उचित भोजन और नियमित आहार के बिना यह उपाय प्रभावी तरीके से काम नहीं करता है।
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हरी मिर्च खाने के स्वास्थ्य लाभ व नुकसान//hari mirch





हरी मिर्च स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होती है। हरी मिर्च एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होती है जो कई तरह की होती है। शिमला मिर्च भी हरी मिर्च की श्रेणी में आती है जो कि स्वास्थ्य के लिए उपयोगी सुपरफूड होता है। भारतीय घरों में हरी मिर्च पाउडर और हरी मिर्च का खाना बनाने, मसालों और चटनी आदि बनाने में इस्तेमाल करते हैं साथ ही इसे कच्चा खाने का इस्तेमाल कर सकते हैं।

हरी मिर्च खाने के स्वास्थ्यवर्धक लाभ
विटामिन सी हरी मिर्च में पर्याप्त मात्रा में होता है। आपने अक्सर महसूस किया होगा की हरी मिर्च खाने से बंद नाक खुल जाती है। हरी मिर्च का सेवन करने से उसमें मौजूद विटामिन सी इम्यूनिटी बूस्ट करते हैं। जिससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

खाना पचाने के लिए लाभकारी

मिर्च में फाईबर पर्याप्त मात्रा में होता है इसलिए इसे खाने से पाचन तंत्र को मदद मिलती है। यहीं कारण है कि खाना पचाने के हेतु हरी मिर्च का सेवन लाभकारी होता है।

त्वचा के लिए लाभकारी

मिर्च में विटामिन सी के साथ विटामिन ई भी पर्याप्त मात्रा में होता है । इसका सेवन करने से त्वचा को नेचुरल ऑयल मिलता है जिससे त्वचा खूबसूरत और निखरी बनी रहती है।

ब्लड शुगर लेवल को सही रखने में

डायबिटीज के रोगियों के लिए हरी मिर्च खाना बहुत लाभदायक होता है। हरी मिर्च खाने से रक्त शर्करा का लेवल सही बना रहता है इस कारण डायबिटीज के पीड़ित लोगों के लिए हरी मिर्च खाना लाभकारी रहता है।

जुकाम और साइनस के लिए

कैप्साइसिन नामक तत्व हरी मिर्च में पाया जाता है जो कि म्यूकस को तरल बनाता है। यह नाक और साइनस के छिद्रों को खोलने में मदद करता है। इसलिए हरी मिर्च खाना सर्दी-जुकाम और साइनस इंफेक्शन के लिए फायदेमंद होता है।

खून की कमी दूर करने में

मिर्च मे पर्याप्त मात्रा में आयरन होता है। इसलिए इसे खाने से खून में हिमोग्लोबिन की कमी नहीं होती है। यहीं कारण है कि हरी मिर्च खाने से खून की कमी जैसे रोग नहीं होते हैं।

कैंसर का खतरा दूर होता है

में एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं जो मुक्त-मूलकों को खत्म करते हैं और कैंसर के खतरे को दूर करते हैं।

तनाव को कम करने में

जब आप हरी मिर्च का सेवन करते हैं तो यह एंडोर्फिन नामक एक हार्मोन के स्तर को बढ़ा देती है। एंडोर्फिन तनाव को कम करके मूड को ठीक करने वाला एक हार्मोन होता है इसलिए हरी मिर्च का सेवन करने से तनाव कम होता है।

हरी मिर्च खाने के नुकसान

वैसे तो हरी मिर्च खाना सेहत के लिए लाभकारी होता है पर अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती। ऐसे में आवश्यकता से अधिक सेवन आपकी सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है। 

ज्यादा हरी मिर्च खाने के नुकसान और हानिकारक दुष्प्रभाव

ज्यादा हरी मिर्च खाना मां बनने वाली महिलाओं के लिए हानिकारक: हरी मिर्च खाने से पेट की गर्मी बढ़ जाती है जिससे मां बनने वाली महिलाओं को ज्यादा हरी मिर्च ना खाने की सलाह दी जाती है।
हरी मिर्च खाना जीभ के लिए हानिकारक: ज्यादा हरी मिर्च खाने से मुंह में जलन लग सकती है और इसका तीखापन आपकी जीभ की त्वचा को काट सकता है। इसलिए अधिक हरी मिर्च का सेवन हानिकारक होता है।
ज्यादा हरी मिर्च खाने से मेटाबोलिज्म प्रभावित होना: हरी मिर्च में कैप्साइसिन नामक तत्व पाया जाता है जिसकी मात्रा शरीर में ज्यादा होने पर यह मेटाबोलिज्म को प्रभावित करता है इसलिए जरूरत से ज्यादा हरी मिर्च का सेवन नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा ज्यादा हरी मिर्च खाने से निम्न लक्षण भी हो सकते है
डायरिया
अल्सर
जलन
ब्लीडिंग जैसी समस्याएं भी हो सकती है।
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29.4.20

कार्बोवेज औषधि के गुण और लाभ:carboveg




व्यापक-लक्षण 

पेट के ऊपरी भाग में वायु का प्रकोप – पुराना अजीर्ण रोग, खट्टी तथा खाली डकारें आना ठंडी हवा; पंखे की हवा
किसी कठिन रोग के पश्चात उपयोगी डकार आने से कमी
सिर्फ गर्म हालत से जुकाम; अथवा गर्म से एकदम ठंडक में आने से होने वाले रोग (जैसे, जुकाम, सिर-दर्द आदि) पांव ऊँचे कर के लेटना
हवा की लगातार इच्छा (न्यूमोनिया, दमा, हैजा आदि) लक्षणों में वृद्धि
जलन, ठंडक तथा पसीना-भीतर जलन बाहर ठंडक (जैसे, हैजा आदि में) गर्मी से रोगी को परेशानी
शरीर तथा मन की शिथिलता (रुधिर का रिसते रहना, विषैला फोड़ा, सड़ने वाला वैरीकोज़ वेन्ज, थकान आदि ) वृद्धावस्था की कमजोरी
यह मृत-संजीवनी दवा कही जाती है गरिष्ट भोजन से पेट में वायु का बढ़ जाना

*पेट के ऊपरी भाग में वायु का प्रकोप – 

कार्बो वेज औषधि वानस्पतिक कोयला है। हनीमैन का कथन है कि पहले कोयले को औषधि शक्तिहीन माना जाता था, परन्तु कुछ काल के बाद श्री लोविट्स को पता चला कि इसमें कुछ रासायनिक तत्त्व हैं जिनसे यह बदबू को समाप्त कर देता है। इसी गुण के आधार पर ऐलोपैथ इसे दुर्गन्धयुक्त फोड़ों पर महीन करके छिड़कने लगे, मुख की बदबू हटाने के लिये इसके मंजन की सिफारिश करने लगे और क्योंकि यह गैस को अपने में समा लेता है इसलिये पेट में वायु की शिकायत होने पर शुद्ध कोयला खाने को देने लगे। कोयला कितना भी खाया जाय वह नुकसान नहीं पहुँचाता है। परन्तु हनीमैन का कथन था कि स्थूल कोयले का यह असर चिर-स्थायी नहीं है। मुँह की बदबू यह हटायेगा परन्तु कुछ देर बाद बदबू आ जायेगी, फोड़े की बदबू में जब तक यह लगा रहेगा तभी तक हटेगी, पेट की गैस में भी यह इलाज नहीं है। हनीमैन का कथन है कि स्थूल कोयला वह काम नहीं कर सकता जो शक्तिकृत कोयला कर सकता है। कार्बो वेज पेट की गैस को भी रोकता है, विषैले, सड़ने वाले जख्म-गैंग्रीन-को भी ठीक करता है। पेट की वायु के शमन में होम्योपैथी में तीन औषधियां मुख्य हैं – वे हैं: कार्बो वेज, चायना तथा लाइको।

कार्बो वेज, चायना तथा लाइकोपोडियम की तुलना – 

डॉ० नैश का कथन है कि पेट में गैस की शिकायत में कार्बो वेज ऊपरी भाग पर, चायना संपूर्ण पेट में गैस भर जाने पर, और लाइको पेट के निचले भाग में गैस होने पर विशेष प्रभावशाली है।

*पुराना अजीर्ण रोग, खट्टी तथा खाली डकारें आना – 

पुराने अजीर्ण रोग में यह लाभकारी है। रोगी को खट्टी डकारें आती रहती हैं, पेट का ऊपर का हिस्सा फूला रहता है, हवा पसलियों के नीचे अटकती है, चुभन पैदा करती है, खट्टी के साथ खाली डकारें भी आती हैं। डकार आने के साथ बदबूदार हवा भी खारिज होती है। डकार तथा हवा के निकास से रोगी को चैन पड़ता है। पेट इस कदर फूल जाता है कि धोती या साड़ी ढीली करनी पड़ती है। कार्बो वेज में डकार से आराम मिलता है, परन्तु चायना और लाइको में डकार से आराम नहीं मिलता।

*किसी कठिन रोग के पश्चात उपयोगी – 

अगर कोई रोग किसी पुराने कठिन रोग के बाद से चला आता हो, तब कार्बो वेज को स्मरण करना चाहिये। इस प्रकार किसी पुराने रोग के बाद किसी भी रोग के चले आने का अभिप्राय यह है कि जीवनी-शक्ति की कमजोरी दूर नहीं हुई, और यद्यपि पुराना रोग ठीक हो गया प्रतीत होता है, तो भी जीवनी शक्ति अभी अपने स्वस्थ रूप में नहीं आयी। उदाहरणार्थ, अगर कोई कहे कि जब से बचपन में कुकुर खांसी हुई तब से दमा चला आ रहा है, जब से सालों हुए शराब के दौर में भाग लिया तब से अजीर्ण रोग से पीड़ित हूँ, जब से सामर्थ्य से ज्यादा परिश्रम किया तब से तबीयत गिरी-गिरी रहती है, जब से चोट लगी तब से चोट तो ठीक हो गई किन्तु मौजूदा शिकायत की शुरूआत हो गई, ऐसी हालत में चिकित्सक को कार्बो वेज देने की सोचनी चाहिये। बहुत संभव है कि इस समय रोगी में जो लक्षण मौजूद हों वे कार्बो वेज में पाये जाते हों क्योंकि इस रोग का मुख्य कारण जीवनी-शक्ति का अस्वस्थ होना है, और इस शक्ति के कमजोर होने से ही रोग पीछा नहीं छोड़ता।
जब तक कार्बो वेज के रोगी का नाक बहता रहता है, तब तक उसे आराम रहता है, परन्तु यदि गर्मी से हो जाने वाले इस जुकाम में वह ठंड में चला जाय, तो जुकाम एकदम बंद हो जाता है और सिर-दर्द शुरू हो जाता है। बहते जुकाम में ठंड लग जाने से, नम हवा में या अन्य किसी प्रकार से जुकाम का स्राव रुक जाने से सिर के पीछे के भाग में दर्द, आँख के ऊपर दर्द, सारे सिर में दर्द, हथौड़ों के लगने के समान दर्द होने लगता है। पहले जो जुकाम गर्मी के कारण हुआ था उसमें कार्बो वेज उपयुक्त दवा थी, अब जुकाम को रुक जाने पर कार्बो वेज के अतिरिक्त कैलि बाईक्रोम, कैलि आयोडाइड, सीपिया के लक्षण हो सकते हैं।

*हवा की लगातार इच्छा (न्यूमोनिया, दमा, हैज़ा आदि) – 

कार्बो वेज गर्म-मिजाज़ की है, यद्यपि कार्बो एनीमैलिस ठंडे मिजाज़ की है। गर्म-मिजाज की होने के कारण रोगी को ठंडी और पंखे की हवा की जरूरत रहती है। कोई भी रोग क्यों न हो-बुखार, न्यूमोनिया, दमा, हैजा-अगर रोगी कहे-हवा करो, हवा करो-तो कार्बो वेज को नहीं भुलाया जा सकता। अगर रोगी कहे कि मुँह के सामने पंखे की हवा करो तो कार्बो वेज, और अगर कहे कि मुँह से दूर पंखे को रख कर हवा करो तो लैकेसिस औषधि है। कार्बो वेज में जीवनी-शक्ति अत्यन्त शिथिल हो जाती है इसलिये रोगी को हवा की बेहद इच्छा होती है। अगर न्यूमोनिया में रोगी इतना निर्बल हो जाय कि कफ जमा हो जाय, और ऐन्टिम टार्ट से भी कफ नहीं निकल रहा। उस हालत में अगर रोगी हवा के लिये भी बेताब हो, तो कार्बो वेज देने से लाभ होगा। दमे का रोगी सांस की कठिनाई से परेशान होता है। उसकी छाती में इतनी कमजोरी होती है कि वह महसूस करता है कि अगला सांस शायद ही ले सके। रोगी के हाथ-पैर ठंडे होते हैं, मृत्यु की छाया उसके चेहरे पर दीख रही होती है, छाती से सांय-सांय की आवाज आ रही होती हे, सीटी-सी बज रही होती है, रोगी हाथ पर मुंह रखे सांस लेने के लिये व्याकुल होता है और कम्बल में लिपटा खिड़की के सामने हवा के लिये बैठा होता है और पंखे की हवा में बैठा रहता है। ऐसे में कार्बो वेज दिया जाता है। न्यूमोनिया और दमे की तरह हैजे में भी कार्बो वेज के लक्षण आ जाते हैं जब रोगी हवा के लिये व्याकुल हो जाता है। हैजे में जब रोगी चरम अवस्था में पहुँच जाय, हाथ-पैरों में ऐंठन तक नहीं रहती, रोगी का शरीर बिल्कुल बर्फ के समान ठंडा पड़ गया हो, शरीर के ठंडा पसीना आने लगे, सांस ठंडी, शरीर के सब अंग ठंडे-यहां तक कि शरीर नीला पड़ने गले, रोगी मुर्दे की तरह पड़ जाय, तब भी ठंडी हवा से चैन मिले किन्तु कह कुछ भी न सके-ऐसी हालत में कार्बो वेज रोगी को मृत्यु के मुख से खींच ले आये तो कोई आश्चर्य नहीं।

*सिर्फ गर्म हालत से जुकाम; यह गर्म से एकदम ठंड में आने से होने वाले जुकाम, खांसी, सिर दर्द आदि – 

कार्बो वेज जुकाम-खांसी-सिरदर्द आदि के लिए मुख्य-औषधि है। रोगी जुकाम से पीड़ित रहा करता है। कार्बो वेज की जुकाम-खांसी-सिरदर्द कैसे शुरू होती है? – रोगी गर्म कमरे में गया है, यह सोच कर कि कुछ देर ही उसने गर्म कमरे में रहना है, वह कोट को डाले रहता है। शीघ्र ही उसे गर्मी महसूस होने लगती है, और फिर भी यह सोचकर कि अभी तो बाहर जा रहा हूँ-वह गर्म कोट को उतारता नहीं। इस प्रकार इस गर्मी का उस पर असर हो जाता है और वह छीकें मारने लगता है, जुकाम हो जाता है। नाक से पनीला पानी बहने लगता है और दिन-रात वह छींका करता है। यह तो हुआ गर्मी से जुकाम हो जाना। औषधियों का जुकाम शुरू होने का अपना-अपना ढंग है। कार्बो वेज का जुकाम नाक से शुरू होता है, फिर गले की तरफ जाता है, फिर श्वास-नलिका की तरफ जाता है और अन्त में छाती में पहुंचता है। फॉसफोरस की ठंड लगने से बीमारी पहले ही छाती में या श्वास-नलिका में अपना असर करती है।

*शरीर तथा मन की शिथिलता (रुधिर का रिसते रहना, विषैला फोड़ा, सड़ने वाला वैरीकोज़ वेन्ज, थकान आदि 

शिथिलता कार्बो वेज का चरित्रगत-लक्षण है। प्रत्येक लक्षण के आधार में शिथिलता, कमजोरी, असमर्थता बैठी होती है। इस शिथिलता का प्रभाव रुधिर पर जब पड़ता है तब हाथ-पैर फूले दिखाई देते हैं क्योंकि रुधिर की गति ही धीमी पड़ जाती है, रक्त-शिराएं उभर आती हैं, रक्त-संचार अपनी स्वाभाविक-गति से नहीं होता, वैरीकोज़ वेन्ज़ का रोग हो जाता है, रक्त का संचार सुचारु-रूप से चले इसके लिये टांगें ऊपर करके लेटना या सोना पड़ता है। रक्त-संचार की शिथिलता के कारण अंग सूकने लगते हैं, अंगों में सुन्नपन आने लगती है। अगर वह दायीं तरफ लेटता है तो दायां हाथ सुन्न हो जाता है, अगर बायीं तरफ लेटता है तो बायां हाथ सुन्न हो जाता है। रक्त-संचार इतना शिथिल हो जाता है कि अगर किसी अंग पर दबाव पड़े, तो उस जगह का रक्त-संचार रुक जाता है। रक्त-संचार की इस शिथिलता के कारण विषैले फोड़े, सड़ने वाले फोड़े, गैंग्रीन आदि हो जाते हैं जो रक्त के स्वास्थ्यकर संचार के अभाव के कारण ठीक होने में नहीं आते, जहां से रुधिर बहता है वह रक्त-संचार की शिथिलता के कारण रिसता ही रहता है।

रुधिर का नाक, जरायु, फेफड़े, मूत्राशय आदि से रिसते रहना – 

रुधिर का बहते रहना कार्बो वेज का एक लक्षण है। नाक से हफ्तों प्रतिदिन नकसीर बहा करती है। जहां शोथ हुई वहाँ से रुधिर रिसा करता है। जरायु से, फेफड़ों से, मूत्राशय से रुधिर चलता रहता है, रुधिर की कय भी होती है। यह रुधिर का प्रवाह वेगवान् प्रवाह नहीं होता जैसा एकोनाइट, बेलाडोना, इपिकाका, हैमेमेलिस या सिकेल में होता है। इन औषधियों में तो रुधिर वेग से बहता है, कार्बो वेज में वेग से बहने के स्थान में वह रिसता है, बारीक रक्त-वाहिनियों द्वारा धीमे-धीमे रिसा करता है। रोगिणी का ऋतु-स्राव के समय जो रुधिर चलना शुरू होता है वह रिसता रहता है और उसका ऋतु-काल लम्बा हो जाता है। एक ऋतु-काल से दूसरे ऋतु-काल तक रुधिर रिसता जाता है। बच्चा जनने के बाद रुधिर बन्द हो जाना चाहिये, परन्तु क्योंकि इस औषधि में रुधिर-वाहिनियां शिथिल पड़ जाती हैं, इसलिये रुधिर बन्द होने के स्थान में चलता रहता है, धीरे-धीरे रिसता रहता है। ऋतु-काल, प्रजनन आदि की इन शिकायतों को, तथा इन शिकायतों से उत्पन्न होनेवाली कमजोरी को कार्बो वेज दूर कर देता है। कभी-कभी जनने के बाद प्लेसेन्टा को बाहर धकेल देने की शक्ति नहीं होती। अगर इस हालत में रुधिर धीरे-धीरे रिस रहा हो, तो कार्बो वेज की कुछ मात्राएँ उसे बहार धकेल देंगी और चिकित्सक को शल्य-क्रिया करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

विषैला फोड़ा, सड़नेवाला ज़ख्म, गैंग्रीन – 

क्योंकि रक्त-वाहिनियां शिथिल पड़ जाती हैं इसलिये जब भी कभी कोई चोट लगती है, तब वह ठीक होने के स्थान में सड़ने लगती है। फोड़े ठीक नहीं होते, उनमें से हल्का-हल्का रुधिर रिसा करता है, वे विषैले हो जाते हैं, और जब फोड़े ठीक न होकर विषैला रूप धारण कर लेते हैं, तब गैंग्रीन बन जाती है। जब भी कोई रोग शिथिलता की अवस्था में आ जाता है, ठीक होने में नहीं आता, तब जीवनी शक्ति की सचेष्ट करने का काम कार्बो वेज करता है।

वेरीकोज़ वेन्ज – 

रुधिर की शिथिलता के कारण हदय की तरफ जाने वाला नीलिमायुक्त अशुद्ध-रक्त बहुत धीमी चाल से जाता है, इसलिये शिराओं में यह रक्त एकत्रित हो जाता है और शिराएँ फूल जाती हैं। इस रक्त के वेग को बढ़ाने के लिये रोगी को अपनी टांगें ऊपर करके लेटना या सोना पड़ता है। रक्त की इस शिथिलता को कार्बो वेज दूर कर देता है क्योंकि इसका काम रक्त-संचार की कमजोरी को दूर करना है।



शारीरिक तथा मानसिक थकान –

 शारीरिक-थकान तो इस औषधि का चरित्रगत-लक्षण है ही क्योंकि शिथिलता इसके हर रोग में पायी जाती है। शारीरिक-शिथिलता के समान रोगी मानसिक-स्तर पर भी शिथिल होता है। विचार में शिथिल, सुस्त, शारीरिक अथवा मानसिक कार्य के लिये अपने को तत्पर नहीं पाता।

*यह दवा मृत-संजीवनी कही जाती है – 

कार्बो वेज को होम्योपैथ मृत-संजीवनी कहते हैं। यह मुर्दों में जान फूक देती है। इसका यह मतलब नहीं कि मुर्दा इससे जी उठता है, इसका यही अभिप्राय है कि जब रोगी ठंडा पड़ जाता है, नब्ज़ भी कठिनाई से मिलती है, शरीर पर ठंडे पसीने आने लगते हैं, चेहरे पर मृत्यु खेलने लगती है, अगर रोगी बच सकता है तब इस औषधि से रोगी के प्राण लौट आते हैं। कार्बो वेज जैसी कमजोरी अन्य किसी औषधि में नहीं है, और इसलिये मरणासन्न-व्यक्ति की कमजोरी हालत में यह मृत-संजीवनी का काम करती है। उस समय 200 या उच्च-शक्ति की मात्रा देने से रोगी की जी उठने की आशा हो सकती है।

*जलन, ठंडक तथा पसीना-भीतर जलन बाहर ठंडा (जैसे, हैज़ा आदि में) – 

कार्बो वेज का विशेष-लक्षण यह है कि भीतर से रोगी गर्मी तथा जलन अनुभव करता है, परन्तु बाहर त्वचा पर वह शीत अनुभव करता है। कैम्फर में हमने देखा था कि भीतर-बाहर दोनों स्थानों से रोगी ठंडक अनुभव करता है परन्तु कपड़ा नहीं ओढ़ सका। जलन कार्बो वेज का व्यापक-लक्षण है – शिराओं (Veins) में जलन, बारीक-रक्त-वाहिनियों (Capillaries) में जलन, सिर में जलन, त्वचा में जलन, शोथ में जलन, सब जगह जलन क्योंकि कार्बो वेज लकड़ी का अंगारा ही तो है। परन्तु इस भीतरी जलन के साथ जीवनी-शक्ति की शिथिलता के कारण हाथ-पैर ठंडे, खुश्क या चिपचिपे, घुटने ठंडे, नाक ठंडी, कान ठंडे, जीभ ठंडी। क्योंकि शिथिलावस्था में हृदय का कार्य भी शिथिल पड़ जाता है इसलिये रक्त-संचार के शिथिल हो जाने से सारा शरीर ठंडा हो जाता है। यह शरीर की पतनावस्था है। इस समय भीतर से गर्मी अनुभव कर रहे, बाहर से ठंडे हो रहे शरीर को ठंडी हवा की जरूरत पड़ा करती है। इस प्रकार की अवस्था प्राय: हैजे आदि सांघातिक रोग में दीख पड़ती है जब यह औषधि लाभ करती है।

 अन्य-लक्षण

*ज्वर की शीतावस्था में प्यास, ऊष्णावस्था में प्यास का अभाव –

 यह एक विचित्रण-लक्षण है क्योंकि शीत में प्यास नहीं होनी चाहिये, गर्मी की हालत में प्यास होनी चाहिये। सर्दी में प्यास और गर्मी में प्यास का न होना किसी प्रकार समझ में नहीं आ सकता, परन्तु ऐसे विलक्षण-लक्षण कई औषधियों में दिखाई पड़ते है। जब ऐसा कोई विलक्षण लक्षण दीखे, तब वह चिकित्सा के लिये बहुत अधिक महत्व का होता है क्योंकि वह लक्षण रोग का न होकर रोगी का होता है, उसके समूचे अस्तित्व का होता है। होम्योपैथी का काम रोग का नहीं रोगी का इलाज करना है, रोगी ठीक हो गया तो रोग अपने-आप चला जाता है।

* तपेदिक की अन्तिम अवस्था –
 
तपेदिक की अन्तिम अवस्था में जब रोगी सूक कर कांटा हो जाता है, खांसी से परेशान रहता है, रात को पसीने से तर हो जाता है, साधारण खाना खाने पर भी पतले दस्त आते हैं, तब इस औषधि से रोगी को कुछ बल मिलता है, और रोग आगे बढ़ने के स्थान में टिक जाता है।

*वृद्धावस्था की कमजोरी – 

युवकों को जब वृद्धावस्था की लक्षण सताने लगते हैं या वृद्ध व्यक्ति जब कमजोर होने लगते हैं, हाथ-पैर ठंडे रहते हैं, नसें फूलने लगती हैं, तब यह लाभप्रद है। रोगी वृद्ध हो या युवा, जब उसके चेहरे की चमक चली जाती है, जब वह काम करने की जगह लेटे रहना चाहता है, अकेला पड़े रहना पसन्द करता है, दिन के काम से इतना थक जाता है कि किसी प्रकार का शारीरिक या मानसिक श्रम उसे भारी लगता है, तब इस औषधि से लाभ होता है।
शक्ति तथा प्रकृति – यह गहरी तथा दीर्घकालिक प्रभाव करने वाली औषधि है।
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वीर्य जल्दी निकलने की समस्या के उपचार

सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस(गर्दन का दर्द) के उपचार

वजन कम करने के लिए कितना पानी कैसे पीएं?

आलू से वजन कम करने के तरीके

प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब रुकावट की कारगर हर्बल औषधि

सेक्स का महारथी बनाने वाले आयुर्वेदिक नुस्खे

आर्थराइटिस(संधिवात),गठियावात ,सायटिका की तुरंत असर हर्बल औषधि

खीरा ककड़ी खाने के जबर्दस्त फायदे

शाबर मंत्र से रोग निवारण

उड़द की दाल के जबर्दस्त फायदे

किडनी फेल (गुर्दे खराब ) की रामबाण औषधि

किडनी फेल रोगी का डाईट चार्ट और इलाज

प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब रुकावट की कारगर हर्बल औषधि

सिर्फ आपरेशन नहीं ,किडनी की पथरी की १००% सफल हर्बल औषधि

मिश्री के सेहत के लिए कमाल के फायदे

महिलाओं मे कामेच्छा बढ़ाने के उपाय

गिलोय के जबर्दस्त फायदे

कान मे तरह तरह की आवाज आने की बीमारी

छाती मे दर्द Chest Pain के उपचार

सिर्फ आपरेशन नहीं ,किडनी की पथरी की १००% सफल हर्बल औषधि

बाहर निकले पेट को अंदर करने के उपाय

किडनी फेल रोगी का डाईट चार्ट और इलाज

थायरायड समस्या का जड़ से इलाज

तिल्ली बढ़ जाने के आयुर्वेदिक नुस्खे

यौन शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय/sex power

 कई बीमारियों से मुक्ति द‍िलाने वाला है गिलोय

किडनी स्टोन के अचूक हर्बल उपचार

स्तनों की कसावट और सुडौल बनाने के उपाय

लीवर रोगों के अचूक हर्बल इलाज

सफ़ेद मूसली के आयुर्वेदिक उपयोग

दामोदर चिकित्सालय शामगढ़ के आशु लाभकारी उत्पाद

तुलसी है कई रोगों मे उपयोगी औषधि

26.4.20

मानसिक रोगों के लक्षण और चिकित्सा:mental diseases




 

आधुनिक दवाएं किस तरह से मानसिक रोगों का उपचार करती हैं इस बारे में लोगों में बहुत ज़्यादा जानकारी नहीं है। और इस बारे में भी कि मानसिक रोगों में दी जाने वाली दवाएं कितनी असरकारी हैं। ज़्यादातर लोग मानते हैं कि इस क्षेत्र में डॉक्टर कुछ नहीं कर सकते और मानसिक बीमारियों के लिए वे केवल ओझाओं साधुओं आदि पर ही विश्वास करते हैं।

 mental diseases

 ज़्यादातर लोगों को मानसिक रोगों के इलाज के लिए बिजली के झटकों और बंद करके रखे जाने के बारे में ही पता है। इस भाग में मानसिक रोगों के उपचार के बारे में बताया जा रहा है। निरोगण के मुख्य अवयव हैं दवाएं, बातचीत, आपातकालीन स्थिति में बिजली के झटके देना, अस्पताल में रखना और पुनर्वास। हर मामले में इनमें से सब की ज़रूरत नहीं होती। साधारण बीमारी दवाइयों और सुझावों से ही ठीक हो सकती है। गंभीर बीमारियॉं जैसे विखन्डित मनस्कता तक भी केवल दवाओं से दूर हो जाती हैं।
  अस्पताल में रखे जाने और बिजली के झटकों की ज़रूरत कभी कभी ही होती है। विखन्डित मनस्कता और उन्माद अवसादी विक्षिप्ति में लंबे समय तक मानसिक रोगों mental diseases
 के इलाज की ज़रूरत होती है।इन बीमारियों में हालांकि पूरी तरह से ठीक होना मुश्किल है परन्तु इलाज से स्थिति को बिगड़ने से रोका जा सकता है। मानसिक रोगों में इलाज लगातार चलने की ज़रूरत होती है।
इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण गलत तरीके का खान-पान है। शरीर में दूषित द्रव्य जमा हो जाने के कारण मस्तिष्क के स्नायु में विकृति उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण मस्तिष्क के स्नायु अपना कार्य करना बंद कर देते हैं और मानसिक रोग हो जाता है।
• शरीर के खून में अधिक अम्लता हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता हैं क्योंकि अम्लता के कारण मस्तिष्क (नाड़ियों में सूजन) में सूजन आ जाती है जिसके कारण मस्तिष्क शरीर के किसी भाग पर नियंत्रण नहीं रख पाता है और उसे मानसिक रोग  mental diseases हो जाता है।
• अधिक चिंता, सोच-विचार करने, मानसिक कारण, गृह कलेश, लड़ाई-झगड़े तथा तनाव के कारण भी मस्तिष्क की नाड़ियों में रोग उत्पन्न हो जाता है और व्यक्ति को पागलपन का रोग हो जाता है।
• अधिक मेहनत का कार्य करने, आराम न करने, थकावट, नींद पूरी न लेने, जननेन्द्रियों की थकावट, अनुचित ढ़ग से यौनक्रिया करना, आंखों पर अधिक जोर देना, शल्यक्रिया के द्वारा शरीर के किसी अंग को निकाल देने के कारण भी मानसिक रोग हो सकता है।
• यह रोग पेट में अधिक कब्ज बनने के कारण भी हो सकता है क्योंकि कब्ज के कारण आंतों में मल सड़ने लगता है जिसके कारण दिमाग में गर्मी चढ़ जाती है और मानसिक रोग हो जाता है।

होम्योपैथी-
  होम्योपैथी मानसिक बीमारियों mental diseases  के इलाज के लिए काफी उपयोगी होती है। इसलिए आपको जहॉं भी ज़रूरी हो होम्योपैथी का इस्तेमाल करना चाहिए। मानसिक रोगों के लिए होम्योपैथिक दवाओं के बारे ध्यान से पढें।
इन्हें शायद सहायता की ज़रूरत है
जिन लोगों को मनोचिकित्सा की ज़रूरत होती है, उनकी सूची नीचे दी गई है।
जो कि बेसिरपैर की बातें करता हो और अजीबोगरीब और असामान्य व्यवहार करता हो।
जो बहुत चुप हो गया हो और औरों से मिलना जुलना और बात करना छोड़ दे।
अगर कोई ऐसी बातें सुनने या ऐसी चीज़ें देखने का दावा करे जो औरों को न सुनाई / दिखाई दे रही हों।
अगर कोई बहुत ही शक्की हो और वह हमेशा यह शिकायत करता रहे कि दूसरे लोग उसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं।
   अगर कोई ज़रूरत से ज़्यादा खुश रहने लगे, हमेशा चुटकुले सुनाता रहे या कहे कि वह बहुत अमीर है या औरों से बहुत बेहतर है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं हो।
अगर कोई बहुत दु:खी रहने लगे और बिना मतलब रोता रहे।
अगर कोई आत्महत्या की बातें करता रहे या उसने आत्महत्या की कोशिश की हो।
अगर कोई कहे कि उसमें भगवान या कोई आत्मा समा गई है। या अगर कोई कहता रहे कि उसके ऊपर जादू टोना किया जा रहा है या कोई बुरी छाया है।
अगर किसी को दौरे पड़ते हों और उसे बेहोशी आ जाती हो और वो बेहोशी में गिर जाता हो।
अगर कोई बहुत ही निष्क्रिय रहता हो, बचपन से ही धीमा हो और अपनी उम्र के हिसाब से विकसित न हुआ हो।


गुस्सा आना
कुछ लोगो को बहुत गुस्सा आता है। छोटी-छोटी बातों पर भी उन्हें इतना गुस्सा आता है कि गुस्से में सामान फेंकना, मार-पीट करना, चीखना ये सब करने लगते हैं। धीरे-धीरे उनका यह स्वाभाव बन जाता हैं। स्वाभाव ईर्ष्या करना
आज के समय में जहां हर जगह प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ रही है, वहीं लोगों में एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या की भावना भी बढती जा रही है। जब ये विचार मन में बार-बार आने लगते हैं तो मन और तन में कई प्रकार के रोग उत्पन्न होने लगते हैं। 

ईर्ष्या से बचने के लिए कुछ होम्योपैथी मेडिसिन्स हैं-

हांयसोमस (Hyos)
लेकेसिस (Lach)
एपिस-मेलिफिका (Apis-Melifica)चिड़चिड़ा हो जाता हैं।
कई बार यह विचार आता है कि लोग उसके बारे में क्या कहेंगे और इसी वजह से उसे बहुत क्रोध आता है। कभी-कभी जब कोई व्यक्ति इस गुस्से और अपमान को मन में दबा कर रखता हैं तो कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोग उत्पन्न होने लगते हैं। इस विकार की होम्योपैथिक मेडिसिन्स हैं-
केमोमिला (chamomila)
नक्स-वोमिका (Nux-Vomica)
स्टेफीसेंग्रिया (Staphy)
लायकोपोडियम (Lycopodium)

डर लगना

कुछ लोगों को हमेशा डर लगता हैं। जैसे अंधेरे से, अकेले रहने से, ऊंचाई से, मरने से, भीड़ से, एग्जाम से, रोड पार करने से और अकेलेपन से। धीरे-धीरे ये डर कई तरह के शारीरिक और मानसिक रोग पैदा कर देता हैं। डर की होम्योपैथिक मेडिसिन्स हैं-
आर्जेंटिकम-नाइट्रीकम (Arg-Nit)
एकोनाईट (Aconite)
स्ट्रामोनियम (Stramonium)
एनाकार्डियम (Anacard)

रोना

अक्सर कुछ लोग खासकर महिलाएं जरा-जरा सी बात पर रो देती हैं। किसी ने कुछ कहा नहीं कि आंसू बहने लगते हैं। छोटी-छोटी बात पर रोना आता है, जो एक प्रकार का मनोविकार हैं। इसके लिए कुछ होम्योपैथिक मेडिसिन्स हैं-
नेट्रम-म्यूर(Nat-Mur)
पल्सेटिला(Puls)
सीपिया (Sepia)

आत्महत्या करने का विचार

कई बार बहुत से लोगों को छोटी-छोटी बात पर आत्महत्या करने का विचार मन में आने लगता है। जरा सी कोई परेशानी आई नहीं, कि वो मरने का सोचने लगते हैं। लेकिन होम्योपैथिक मेडिसिन देने से इस प्रकार के विचार धीरे-धीरे कम हो जाते हैं। ऐसी ही कुछ दवाइयां हैं-
औरम-मेट (Aur-Met)
आर्स-एल्बम (Ars-Alb)

शक करना

कुछ लोगों को हर बात में शक करने की आदत होती है। छोटी-छोटी बातो में वो शक करते हैं। हर किसी को शक भरी नजर से देखते हैं। ऐसे लोगों के लिए कुछ होम्योपैथी मेडिसिन्स हैं-
हांयसोमस (Hyos)
लेकेसिस (Lach)

झूठ बोलना

बहुत से लोगों की हर बात पर झूठ बोलने की आदत होती हैं जोकि आजकल ज्यादातर लोगों में देखने को मिलती है। इसे दूर करने के लिए कुछ होम्योपैथी दवाइयां हैं-
आर्ज-नाईट्रीकम (Arg-Nit)
कौस्टिकम (Caust)

उचित मानसिक स्वास्थ्य-

अभी तक हमने मानसिक रोगों और समस्याओं के बारे में बात की है। परन्तु उचित मानसिक स्वास्थ्य भी कोई चीज़ है और हम सबको अपना मानसिक स्वास्थ्य वैसा बनाना चाहिए। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य ठीक रख पाने में दूसरों की मदद करनी चाहिए।
 यह ज़्यादातर लोगों के लिए बचपन से ही शुरू हो जाता है, परन्तु कभी भी बहुत देर नहीं हुई होती।
रोज़ कसरत करना, सैर करना और खेलना अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
टीम वाले खेल सबसे ज़्यादा अच्छे होते हैं क्योंकि इनसे दिमाग में गलत विचार नहीं आते।
योगा से मदद मिलती है। और योगा ज़रूर करना चाहिए 
  सार्थक काम करने और काम में संतुष्टी होने से भी मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
हमें अपने बारे में ध्यान से सोच कर अपनी स्वाभाव को समझना चाहिए और अपनी गलतियों को सुधारना चाहिए। किताबों और दोस्तों से सबसे ज़्यादा मदद मिलती है।

धर्म – 

सहानुभूति, वैराग्य, आदर और अच्छा इन्सान बनने के धर्म के बुनियादी सिद्धांत से मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। इससे जीवन के दु:खों और मुश्किलों से निपटने में मदद मिलती है। परन्तु उन लोगों से सावधान रहें जो कि धर्म के नाम पर लोगों के बीच फूट डालने की कोशिश करते हैं।
नाच गाने, होली, डांडिया आदि जैसी सामाजिक घटनाएं लोगों के दिमाग से गलत विचार निकलाने में मदद करती हैं। जब भी ऐसे मौके आएं तो लोगों के साथ मिलने जुलने की कोशिश करें।

देसी घरेलु उपचार व आयुर्वेदिक नुस्खे-

• अखरोट की बनावट मानव-मस्तिष्क जैसी  होती है । अतः प्रातःकाल एक अखरोट व मिश्री दूध में मिलाकर ‘ ॐ ऐं नमः’ या ‘ ॐ श्री सरस्वत्ये नमः ‘ जपते हुए पीने से मानसिक रोगों mental diseases  में लाभ होता है व यादशक्ति पुष्ट होती है ।
• मालकाँगनी का 2-2 बूँद तेल एक बताशे में डालकर सुबह-शाम खाने से मस्तिष्क के एवं मानसिक रोगों में लाभ होता है।
• स्वस्थ अवस्था में भी तुलसी के आठ-दस पत्ते, एक काली मिर्च तथा गुलाब की कुछ पंखुड़ियों को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर प्रतिदिन सुबह पीने से मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है। इसमें एक से तीन बादाम मिलाकर ठंडाई की तरह बना सकते हैं। इसके लिए पहले रात को बादाम भिगोकर सुबह छिलका उतारकर पीस लें। यह ठंडाई दिमाग को तरावट व स्फूर्ति प्रदान करती है।
• रोज सुबह आँवले का मुरब्बा खाने से भी स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। अथवा च्यवनप्राश खाने से इसके साथ कई अन्य लाभ भी होते हैं।
• गर्म दूध में एक से तीन पिसी हुई बादाम की गिरी और दो तीन केसर के रेशे डालकर पीने से मानसिक रोगों  mental diseases में लाभ होता है साथ ही स्मरणशक्ति तीव्र होती है।
• सिर पर देसी गाय के घी की मालिश करने से भी मानसिक रोगों में लाभ होता है।
• मूलबन्ध, उड्डीयान बंध, जालंधर बंध (कंठकूप पर दबाव डालकर ठोडी को छाती की तरफ करके बैठना) से भी बुद्धि विकसित होती है, मन स्थिर होता है।
  1. पायरिया के घरेलू इलाज
  2. चेहरे के तिल और मस्से इलाज
  3. लाल मिर्च के औषधीय गुण
  4. लाल प्याज से थायराईड का इलाज
  5. जमालगोटा के औषधीय प्रयोग
  6. एसिडिटी के घरेलू उपचार
  7. नींबू व जीरा से वजन घटाएँ
  8. सांस फूलने के उपचार
  9. कत्था के चिकित्सा लाभ
  10. गांठ गलाने के उपचार
  11. चौलाई ,चंदलोई,खाटीभाजी सब्जी के स्वास्थ्य लाभ
  12. मसूड़ों के सूजन के घरेलू उपचार
  13. अनार खाने के स्वास्थ्य लाभ
  14. इसबगोल के औषधीय उपयोग
  15. अश्वगंधा के फायदे
  16. लकवा की चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि वृहत वात चिंतामणि रस
  17. मर्द को लंबी रेस का घोडा बनाने के अद्भुत नुस्खे
  18. सदाबहार पौधे के चिकित्सा लाभ
  19. कान बहने की समस्या के उपचार
  20. पेट की सूजन गेस्ट्राईटिस के घरेलू उपचार
  21. पैर के तलवों में जलन को दूर करने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  22. लकवा (पक्षाघात) के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे
  23. डेंगूबुखार के आयुर्वेदिक नुस्खे
  24. काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
  25. कालमेघ जड़ी बूटी लीवर रोगों की महोषधि
  26. हर्निया, आंत उतरना ,आंत्रवृद्धि के आयुर्वेदिक उपचार
  27. पाइल्स (बवासीर) के घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
  28. चिकनगुनिया के घरेलू उपचार
  29. चिरायता के चिकित्सा -लाभ
  30. ज्यादा पसीना होने के के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  31. पायरिया रोग के आयुर्वेदिक उपचार
  32. व्हीटग्रास (गेहूं के जवारे) के रस और पाउडर के फायदे
  33. घुटनों के दर्द को दूर करने के रामबाण उपाय
  34. चेहरे के तिल और मस्से हटाने के उपचार
  35. अस्थमा के कारण, लक्षण, उपचार और घरेलू नुस्खे
  36. वृक्क अकर्मण्यता(kidney Failure) की रामबाण हर्बल औषधि
  37. शहद के इतने सारे फायदे नहीं जानते होंगे आप!
  38. वजन कम करने के उपचार
  39. केले के स्वास्थ्य लाभ
  40. लीवर रोगों की महौषधि भुई आंवला के फायदे
  41. हरड़ के गुण व फायदे
  42. कान मे मेल जमने से बहरापन होने पर करें ये उपचार
  43. पेट की खराबी के घरेलू उपचार
  44. शिवलिंगी बीज के चिकित्सा उपयोग
  45. दालचीनी के फायदे
  46. बवासीर के खास नुखे
  47. भूलने की बीमारी के उपचार
  48. आम खाने के स्वास्थ्य लाभ
  49. सोरायसीस के उपचार
  50. गुर्दे की सूजन के घरेलू उपचार



24.4.20

सुबह सुबह किशमिश का पानी पीने के फायदे




 किशमिश खाने के स्वाद को तो बढ़ाती ही है साथ ही यह आपकी सेहत का भी पूरा ध्यान रखती है. इसको पानी में डालकर अगर 20 मिनट तक उबाला जाए और पानी को रातभर रखने के बाद सुबह पीने से इसके कई लाभ होते हैं-

1. रोजाना सुबह के समय किशमिश के पानी का नियमित सेवन करने से कब्ज, एसिडि‍टी और थकान से निजात मिलती है
2॰ किशमिश का पानी  पीने से कोलेस्ट्रॉल लेवल नॉर्मल हो जाता है. यह आपके शरीर में ट्राईग्लिसेराइड्स के स्तर को कम करने में मददगार है.
3. इसमें फ्लेवेनॉइड्स एंटी ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं जो त्वचा पर होने वाली झुर्रियों को तेजी से कम करने में सहायक है.
4. प्रतिदि‍न किशमिश का पानी पीने से लीवर मजबूत रहता है और यह मेटाबॉलिज्म के स्तर को नियंत्रित करने में भी सहायक है.
5.कब्ज या पाचन संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए किशमिश का पानी बेहद लाभदायक पेय है और इसे पीने से पाचन तंत्र भी ठीक र‍हता है.
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सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस(गर्दन का दर्द) के उपचार

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आलू से वजन कम करने के तरीके

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बाहर निकले पेट को अंदर करने के उपाय

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तिल्ली बढ़ जाने के आयुर्वेदिक नुस्खे

यौन शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय/sex power

 कई बीमारियों से मुक्ति द‍िलाने वाला है गिलोय

किडनी स्टोन के अचूक हर्बल उपचार

स्तनों की कसावट और सुडौल बनाने के उपाय

लीवर रोगों के अचूक हर्बल इलाज

सफ़ेद मूसली के आयुर्वेदिक उपयोग

दामोदर चिकित्सालय शामगढ़ के आशु लाभकारी उत्पाद

तुलसी है कई रोगों मे उपयोगी औषधि

अपराजिता पौधा के औषधीय उपयोग




अंग्रेजी नाम - क्लितोरिया , हिन्दी नाम - कोयाला , संस्कृत नाम - कोकिला , बंगाली नाम - अपराजिता , गुजराती नाम - गरणी, मलयालम नाम - शंखपुष्पम, मराठी नाम - गोकर्णी, तमिल नाम - कक्कानम, तेलुगु नाम - शंखपुष्पम, यूनानी नाम – मेज़ेरिओन
अपराजिता पौधे की पत्तियां उज्ज्वल हरी और उज्ज्वल नीले रंग की होती है. इसके फूल का रंग सफेद होता है.ये कभी-कभी शंख रूप में उगता है. ये भारत, मिस्र, अफगानिस्तान, फारस, मेसोपोटामिया, इराक आदि के सभी भागों में पाया जाता है.
आयुर्वेद के ग्रंथों में बताई गई एक बहुत ही उपयोगी जड़ी बूटी अपराजिता पौधा है. ये कई औषधीय उपयोगों के साथ एक बहुत ही सुंदर घास से बनी होती है. अपराजिता पौधा का शरीर की संचार तंत्रिका और मनोवैज्ञानिक सिस्टम पर एक बहुत सुखदायक प्रभाव पड़ता है.

अपराजिता पौधे के स्वास्थ्य लाभ

मेध्या जड़ी बूटिया याददाश्त और लर्निंग जैसी चीजों को बेहतर बनाने में बहुत मदद करती है। इतना ही नहीं ये मस्तिष्क के विकास की समस्याओं और इम्पैरेड कॉग्निटिव फंक्शन जैसी समस्याओं से पीड़ित बच्चों के लिए बेहद फायदेमंद मानी जाती है। अपारिजता का प्रयोग डिटॉक्सिफिकेशन और मस्तिष्क की आल राउंड क्लीनिंग में भी काफी मदद करती है 
 ऐसा माना जाता है कि अपराजिता शरीर के अंदर मौजूद विषाक्त पदार्थों के लिए ये एक ही बहुत प्रभावी उपचार है। इसके साथ-साथ इसका प्रयोग नर्वस सिस्टम को ठीक करने के लिए के लिए भी किया जाता है।
 अपराजिता पौधे की जड़ का लेप बनाकर अक्सर त्वचा पर प्रयोग किया जाता है, जिससे चेहरे की चमक बढ़ती है। यह आंखों पर एक बहुत ठंडा प्रभाव डालती है साथ ही आंखों की रोशनी में सुधार करने में मदद करता है।
अपराजिता पौधा स्माल पॉक्स जैसी बीमारी में भी फायदेमंद माना जाता है। इसके अलावा यह स्पर्म जनरेशन,बुखार, दस्त, गेस्ट्राइटिस, मतली, उल्टी, जैसी आम स्थितियों में कारगर माना जाता है। यह हृदय और श्वसन प्रणाली को मजबूत बनाने में भी मदद करता है।
उदर, कफ विकार, ज्वर, मूत्रविकार, शोथ, नेत्ररोग, उन्माद, आमवात, कुष्ठ, विष विकार में अपराजिता का भी उपयोग होता है।
 आधासीसी जैसी समस्या से जूझ रहे लोगों को अपराजिता की जड़, फली, बीज को बराबर भाग में लेना चाहिए। सभी को पीस कर थोड़ा पानी मिलाएं और इसकी कुछ बूंदे नाक में डालें। ऐसा करने से इस रोग में फायदा होता है।
अपराजिता में मौजूद दर्द निवारक, जीवाणुरोधी गुण होते है, जो दांतों के दर्द में आराम के लिए जाने जाते हैं। इसके लिए आप अपराजिता की जड़ का पेस्‍ट और काली मिर्च का चूर्ण को मिलाकर मुंह में रख लें।
गले के रोग (गलगण्ड) में श्वेत अपराजिता की जड़ का पेस्‍ट बनाकर उसमें घी अथवा गोमूत्र मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
 अपराजिता जड़ के चूर्ण को गर्म पानी या दूध के साथ दिन में 2 से 3 बार लेने से पेशाब में होने वाली जलन दूर होती है।
 अपराजिता पौधे के सभी भागों को औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं. अपराजिता पौधा सामान्य तौर पर आयुर्वेद के पंचकर्म उपचार में प्रयोग किया जाता है. आयुर्वेद का पंचकर्म उपचार शरीर में से टॉक्सिन्स को निकालकर शरीर के संतुलन में सहायता करता है.
शरीर के आंतरिक विषहरण के लिए ये बहुत प्रभावी उपचार हैं. नर्वस सिस्टम को ठीक करने के लिए के लिए अपराजिता पौधे का उपयोग किया जाता है.
आयुर्वेद में अपराजिता जड़ी बूटी को मेध्या श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाता है. मेध्या जड़ी बूटिया याददाश्त और लर्निंग सुधारने में मदद करती हैं. ये मस्तिष्क के विकास की समस्याओं और इम्पैरेड कॉग्निटिव फंक्शन की समस्याओं से पीड़ित बच्चों के लिए बहुत मददगार है.
 अपराजिता जड़ी बूटी डिटॉक्सिफिकेशन और मस्तिष्क की आल राउंड क्लीनिंग और उससे संबंधित स्ट्रक्टर्ज़ में मदद करती है.
 अपराजिता जड़ी बूटी वॉइस क़्वालिटी और गले की समस्याओं में सुधार के लिए फायदेमंद है.
अपराजिता पौधे की जड़ को अक्सर त्वचा पर लेप बनाकर प्रयोग किया जाता है और इससे चेहरे की चमक बढ़ती है. यह आंखों पर एक बहुत कूलिंग प्रभाव डालता है. यह आँखों रोशनी में सुधार करने में मदद करता है.
अपराजिता पौधा पुरुषों में स्पर्म जनरेशन की प्रक्रिया में सुधार करने में मदद करता है. नपुंसकता मुद्दों के लिए ये बहुत अच्छा विकल्प है.
* अगर सांप के विष का असर चमड़ी के अन्दर तक हो गया हो तो अपराजिता की जड़ का पावडर 12 ग्राम की मात्रा में घी के साथ मिला कर खिला दीजिये। 
- सांप का ज़हर खून में घुस गया हो तो जड़ का पावडर 12 ग्राम दूध में मिला कर पिला दीजिये। 
- सांप का जहर मांस में फ़ैल गया हो तो कूठ का पावडर और अपराजिता का पावडर 12-12 ग्राम मिला कर पिला दीजिये।
 - अगर इस जहर की पहुँच हड्डियों तक हो गयी हो तो हल्दी का पावडर और अपराजिता का पावडर मिलाकर दे दीजिये। 
- दोनों एक एक तोला हों अगर चर्बी में विष फ़ैल गया है तो अपराजिता के साथ अश्वगंधा का पावडर मिला कर दीजिये और सांप के जहर ने आनुवंशिक पदार्थों तक को प्रभावित कर डाला हो तो - अपराजिता की जड़ का 12 ग्राम पावडर ईसरमूल कंद के 12 ग्राम पावडर के साथ दे दीजिये। इन सबका 2 बार प्रयोग करना काफी होगा। लेकिन सांप के विष की पहुँच कहाँ तक हो गयी है ये बात कोई बहुत जानकार व्यक्ति ही आपको बता पायेगा। - मेडिकल साइंस तो कहता है कि ज़हर की गति सांप की जाति पर निर्भर करती है लेकिन वे सांप जिन्हें जहरीला नहीं माना जाता जैसे पानी वाले सांप उनका जहर वीर्य तक पहुँचने में 5 दिन का समय ले लेता है और आने वाली संतान को प्रभावित करता है

* श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) :

 श्वेत कुष्ठ पर अपराजिता की जड़ 20 ग्राम, चक्रमर्द की जड़ 1 ग्राम, पानी के साथ पीसकर, लेप करने से लाभ होता है। इसके साथ ही इसके बीजों को घी में भूनकर सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से डेढ़ से 2 महीने में ही श्वेत कुष्ठ में लाभ हो जाता है।

*चेहरे की झाँइयां :

मुंह की झांईयों पर अपराजिता की जड़ की राख या भस्म को मक्खन में घिसकर लेप करने से मुंह की झांई दूर हो जाती है।

*आधाशीशी यानी आधे सिर का दर्द (माइग्रेन) :

 अपराजिता के बीजों के 4-4 बूंद रस को नाक में टपकाने से आधाशीशी का दर्द भी मिट जाता है। Note : यहाँ जिन भी औषधियों के नाम आए है ये आपको पंसारी या कंठालिया की दुकान जो जड़ी-बूटी रखते है, उनके वहाँ मिलेगी। इस लेख के माध्यम से लिखा गया यह उपचार हमारी समझ में पूरी तरह से हानिरहित हैं । फिर भी आपके आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श के बाद ही इनको प्रयोग करने की हम आपको सलाह देते हैं । ध्यान रखिये कि आपका चिकित्सक आपके शरीर और रोग के बारे में सबसे बेहतर जानता है और उसकी सलाह का कोई विकल्प नही होता है ।

* सिर दर्द : 

अपराजिता की फली के 8-10 बूंदों के रस को अथवा जड़ के रस को सुबह खाली पेट एवं सूर्योदय से पूर्व नाक में टपकाने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है। इसकी जड़ को कान में बांधने से भी लाभ होता है।

*त्चचा के रोग :

अपराजिता के पत्तों का फांट (घोल) सुबह और शाम पिलाने से त्वचा सम्बंधी सारे रोग ठीक हो जाते हैं।

*अंग्रेजी नाम - क्लितोरिया , हिन्दी नाम - कोयाला , संस्कृत नाम - कोकिला , बंगाली नाम - अपराजिता , गुजराती नाम - गरणी, मलयालम नाम - शंखपुष्पम, मराठी नाम - गोकर्णी, तमिल नाम - कक्कानम, तेलुगु नाम - शंखपुष्पम, यूनानी नाम – मेज़ेरिओन
अपराजिता पौधे की पत्तियां उज्ज्वल हरी और उज्ज्वल नीले रंग की होती है. इसके फूल का रंग सफेद होता है.ये कभी-कभी शंख रूप में उगता है. ये भारत, मिस्र, अफगानिस्तान, फारस, मेसोपोटामिया, इराक आदि के सभी भागों में पाया जाता है. : 

पीलिया, जलोदर और बालकों के डिब्बा रोग में अपराजिता के भूने हुए बीजों के आधा ग्राम के लगभग महीन चूर्ण को गर्म पानी के साथ दिन में 2 बार सेवन कराने से पीलिया ठीक हो जाती है।
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