19.1.16

घर पर ही दर्द नाशक तेल बनाएँ/ Make painkiller oil at home




शरीर के विभिन्न अंगों मे  जब तब दर्द होना गैर मामूली  बात नहीं है| दर्द होने पर लोग आम तौर पर दर्द नाशक गोलियों  का  उपयोग करते   हैं| पेन किलर  उपयोग  के कई साईड इफेक्ट होते हैं|  मेरा तोई सुझाव यह है  कि पेन किलर  खाने की गोलियों  का उपयोग न करना ही  ठीक  है|  दर्द नाशक तेल की मालिश करना ज्यादा बेहतर  विकल्प है| मैं यहाँ  एक बहुत बढ़िया  दर्द निवारक तेल बनाने की विधि लिख देता हूँ | बनाकर इस्तेमाल करें ,लाभ उठावें|




  दर्द नाशक तेल बनाने की विधि-

1) एक काँच की शीशी में 60 ग्राम  तारपीन का तेल  और  25 ग्राम  कपूर डालकर  ढक्कन बंद करें  और इसे धूप मे रख दें| समय समय पर इसे हिलाते भी रहें ताकि  कपूर  भली प्रकार घुल जाये|
2)  एक बर्तन मे  सरसों का तेल 50 ग्राम ,,लहसुन के दो गांठ  छिले  हुए का पेस्ट ,और आधा छोटा  चम्मच  सेंधा नमक   डालकर धीमी आंच पर  पकाएँ कि लहसुन काली पड जाए|  ठंडा कर छानकर एक काँच की शीशी मे भर लें|
3)  तीसरी काँच की शीशी मे अजवायन का सत एक छोटा चमच ,कपूर एक  छोटा चम्मच और पुदीने का सत एक छोटा  चम्मच डालकर रखें और जब तीनों वस्तुएँ भली प्रकार  घुल जाये तो  इसमे एक छोटा चामच नीलगिरी का तेल डालकर अच्छी  तरह हिलाएँ| 
उपरोक्तानुसार तीनों तेल अलग अलग तैयार करें फिर तीनों को एक बोतल मे भरलें | दर्द नाशक मालिश का तेल तैयार है| |यह तेल संधिवात ,कमर दर्द ,गठिया का दर्द के अलावा अन्य शारीरिक दर्दों मे परम हितकारी सिद्ध हुआ है|



5.1.16

पालक के अनेक फायदे // Health Benefits of spinach





सर्दियों में सब्जी मार्केट मे पालक की आवक बढ़ जाती है|। हर सब्जी के ठेले पर ये आपको जरूर मिलेगी। पालक मे मौजूद होता है ओमेगा 3, फैटी एसिड और फॉलिक एसिड। ये शरीर में खून का बहाव अच्छा बनाते हैं और धमनियों को बंद नहीं होने देते।
पालक में विटामिन सी और आयरन की मात्रा ज्यादा होती है जो शरीर में मेटाबॉलिजम सुधारता है और शरीर ज्यादा कैलोरी बर्न कर पाता है। यानी पालक खा कर आप वजन भी कम कर सकते हैं।
पालक में कैल्शियम होता है जो दांतों को मजबूत बनाता है। ये दांतों पर से दाग भी हटाता है।
पालक में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट त्वचा को साफ करते हैं और झुर्रियां नहीं पड़ने देते। आप लंबे समय तक जवां दिखते हैं।
यह हरी पत्तेदार सब्जी मर्दों में स्पर्म की गुणवत्ता बढ़ाती है। इसमें फॉलिक एसिड, जिंक, आयरन और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो स्पर्म के लिए फायदेमंद होते हैं और मर्दानगी भी बढ़ती है। इसलिए मर्दों को पालक जरूर खानी चाहिए।


पालक मधुमेह के मरीजों के लिए बहुत जरूरी बताई जाती है। जिन्हें मधुमेह नहीं होता वो अगर इसका नियमित सेवन करें तो मधुमेह होने का खतरा भी कम हो जाता है।
बढ़ती उम्र के साथ याद्दाश्त कमजोर होने लगती है क्योंकि दिमाग के सेल बिगड़ने लगते हैं। लेकिन अगर चाहते हैं कि याद्दादश्त मजबूत बनी रहे तो पालक का सेवन करना न छोड़ें।








पालक में जो खास एंटीऑस्किसीडेंट होते हैं वो आंखों से जुड़ी कई बीमारियों दूर करते हैं। आयरन, विटामिन ए भी इसमें मदद करते हैं। ये आंखओं की रोशनी बढ़ाते हैं।
अपच दूर करने के लिए पालक से बेहतर क्या हो सकता है। इसमें खूब सारा फाइबर होता है जो शरीर से आसानी से मल को निकलने देता है। जिन्हें कब्ज की ज्यादा शिकायत होती है उन्हें रोज एक गिलाज पालक का जूस पीना चाहिए।


पुरुष ग्रंथि (प्रोस्टेट) बढ़ने से मूत्र - बाधा का अचूक इलाज 

*किडनी फेल(गुर्दे खराब ) रोग की जानकारी और उपचार*

गठिया ,घुटनों का दर्द,कमर दर्द ,सायटिका के अचूक उपचार 

गुर्दे की पथरी कितनी भी बड़ी हो ,अचूक हर्बल औषधि

पित्त पथरी (gallstone) की अचूक औषधि



   









1.1.16

अकरकरा के गुण और लाभ



भृंगराज कुल का यह झाड़ीदार पौधा पूरे भारत वर्ष में पाया जाता है।आयुर्वेदिक ग्रंथों में खासकर मध्यकालीन ग्रंथों में इसे आकारकरभ नाम से वर्णित किया गया है जिसे हिंदी में अकरकरा भी कहा जाता है।अंग्रेजी में इसी वनस्पति का नाम पेलिटोरी है।इस वनस्पति का प्रयोग ट्रेडीशनल एवं पारंपरिक चिकित्सकों द्वारा दांतों एवं मसूड़े से सम्बंधित समस्याओं को दूर करने हेतु सदियों से किया जाता रहा है|
इस पौधे के सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाग इसके फूल एवं जडें हैं।जब इसके फूलों एवं पत्तियों को चबाया जाता है तो यह एक प्रकार से दाँतों एवं मसूड़ों में सुन्नता उत्पन्न करता है।इसके फूल इसके सबसे महत्वपूर्ण भाग हैं।यूँ तो इसे मूल रूप से ब्राजील एवं अफ्रीका से आयी वनस्पति माना जाता है लेकिन यह हर प्रकार के वातावरण चाहे वो उष्णता हो या शीतकालीन में उगने वाली वनस्पति है।इस पौधे की विशेषता इसके फूलों का विशिष्ट आकार है जो कोन यानि शंकु के आकार के होते हैं।पत्तियों का प्रयोग त्वचा रोग में भी किया जाता है।इस वनस्पति में पाया जानेवाला स्पाइलेंथनॉल अपने एनाल्जेसिक एवं एनेस्थेटिक प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए जाना जाता है।यह लालास्राव भी उत्पन्न करता है।यह मुखगुहा से ट्रांस्डर्मली अवशोषित होकर एक विशेष प्रकार के ट्रांजेएन्ट रिसेप्टर को स्टिम्युलेट करता है जिस कारण केटेकोलामीन पाथवे प्रभावित होता है और लार उत्पन्न होता है।इस वनस्पति के अन्य लाभकारी प्रभाव भी है जैसे रक्तगत पैरासाइटस को समाप्त करना साथ ही लेयुकोसाटस को बढ़ाना एवं फेगोसायटिक एक्टीविटी को बढ़ाना।इसे इम्युनोमाडुलेटर एवं मलेरिया नाशक के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है।
आयुर्वेद अनुसार यह कफवातजनित व्याधियों में प्रयुक्त होनेवाली प्रमुख औषधि है।पक्षाघात एवं नाडीदौर्बल्य में इसके मूल से तेल सिद्धित कर अभ्यंग का विधान है।इसके मूल के क्वाथ का गण्डूष दंतकृमि,दंतशूल आदि में बेहद लाभकारी होता है।विद्रधि पर इसके मूल या पत्तियों का लेप करने भर मात्र से लाभ मिलता है।
उष्ण वीर्य प्रभाव वाली यह औषधि बल प्रदान करनेवाली साथ ही प्रतिश्याय शोथ एवं वात विकारों में लाभकारी है।
नाड़ी दौर्बल्य जनित विकारों ,ध्वज भंग के साथ प्रीमेच्युर इजेकुलेशन में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
इसका प्रमुख योग आकारकरभादि चूर्ण है। उष्ण एवं उत्तेजक होने से इसे वाजीकारक तथा शुक्रस्तम्भक प्रभाव हेतु भी प्रयोग में लाया जाता है।