21.11.21

वाटर थेरेपी के फायदे:water therapy




 

जापानी जल चिकित्सा (Japanese water therapy) जापान की एक प्रसिद्ध चिकित्सा पद्धति है, जो जापानी लोगों के बीच व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इसमें पाचन तंत्र को साफ करने और पेट के स्वास्थ्य को विनियमित करने के लिए सुबह उठने के बाद रूम टेंपरेचर के तापमान का पानी खाली पेट पीना होता है। वहीं इस नार्मल तापमान के पानी के अलावा आप गर्म पानी भी पी सकते हैं। वहीं जापानी वॉटर थेरेपी के अधिवक्ताओं की मानें, तो ठंडा पानी हर तरीके से हानिकारक है क्योंकि यह आपके भोजन में फैट और तेल को आपके पाचन तंत्र में कठोर कर सकता है। इस वजह से आपका पाचन धीमा कर हो जाता है और ये कई बीमारी का कारण बन सकता है।

क्या है वाटर थैरेपी- 

वाटर थैरेपी में कुछ खास नहीं होता है, बस इस थैरेपी में आपको अधिक से अधिक मात्रा में पानी पीना होता है। जब आप ये थैरेपी लेते हैं तो आपको 10 से 15 गिलास पानी पीना होता है। दरअसल पानी आपके शरीर के हर भाग में मौजूद होता है और यह आपको हेल्दी रखता है और कई तरीकों से आपकी मदद करता है। इस थैरेपी में आपको अधिक से अधिक पानी पीते हुए करीब 3 से चार लीटर पानी पीना होता है, क्योंकि आपके शरीर को करीब डेढ़ लीटर पानी की जरुरत होती है और अधिक मात्रा में पानी आपके शरीर से निकल जाता है।
 जापानी वॉटर थेरेपी में जागने पर और ब्रश करने से पहले आपको खाली पेट पानी पीना है। इसे करने के लिए खाली पेट कमरे के तापमान के पानी के चार से पांच गिलास पिएं यानी (160-मिलीलीटर) जितना पानी। ध्यान में रखें कि ये पानी नार्मल टेंपरेचर का या हल्का गर्म हो। इसे नाश्ता खाने से 45 मिनट पहले करें। वहीं इसमें ये भी बताया गया है कि प्रत्येक भोजन में, केवल 15 मिनट के लिए ही खाएं और कुछ भी खाने या पीने से कम में कम 2 घंटे का गैप रखें।

वॉटर थैरेपी के फायदे-

स्किन में लाता है निखार- इससे आपकी स्किन में कुछ ही दिनों में हमेशा के लिए निखार आना शुरू हो जाता है। कई उम्र के लोगों ने इसकी कोशिश की है और इस थैरेपी को आजमाया है और यह काम भी करती है। यह आपकी स्किन को हेल्दी रखता है और फ्रेश रखता है। बता दें कि यह थैरेपी एक दम से काम करना शुरू नहीं करती है और काफी समय बाद इसका असर देखने को मिलता है।
हानिकारक विषाणु होते हैं दूर- हमारे शरीर में 70 से 80 फीसदी तक पानी होता है और इसलिए शरीर में पानी की मात्रा को बरकरार रखना बहुत जरुरी होता है। नियमित रुप से पानी पीने से आपके शरीर से कई विषाक्त कण दूर होते हैं और आपकी स्किन से दाग धब्बे दूर होने लगते हैं। इससे पेट और किडनी से संबंधी दिक्कतें भी नहीं होती है और ब्लड ठीक रहता है जो कि आपकी स्किन के लिए भी ठीक है।

ड्राइनेस कम होती है- 

बीमारियों से बचने के लिए और हमेशा हेल्दी रहने के लिए आपके शरीर को हमेशा हाइड्रेट होना चाहिए। ठीक उसी तरह आपकी स्किन को भी हाइड्रेट होते रहना जरुरी है, क्योंकि इससे आपकी स्किन की ड्राईनेस कम होती है और स्किन की कई दिक्कतें दूर होनी चाहिए।

कैसे देते हैं यह थेरेपी

आथ्र्राइटिस के मरीज थोड़े-से गुनगुने पानी में कच्ची हल्दी का पेस्ट मिला लें। इस पानी को सुबह खाली पेट पिएं औैर शाम को डिनर से एक घंटा पहले पिएं। इससे जोड़ों के अंदर की अकड़न दूर होगी।
थाइरॉइड पीड़ित व्यक्ति रात को एक चम्मच साबुत धनिया एक गिलास पानी में भिगो दें। सुबह खाली पेट पानी को आधा रह जाने तक उबालें। इसे गुनगुना होने पर पी लें।
 हाइपर एसिडिटी के मरीज को दिन भर में कम से कम 6 गिलास गर्म पानी पीने के लिए कहा जाता है। गुनगुना पानी पेट में जाकर इकट्ठी एसिडिटी को घोल देता है और 30 से 45 मिनट के भीतर एसिडिटी से आराम देता है।
मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति को दिन में कम से कम 10-12 गिलास गर्म पानी पीना चाहिए। उसमें नीबू, कच्ची हल्दी का पेस्ट, आंवले का रस, शुद्ध शहद भी मिला सकते हैं। मरीज डायबिटिक है तो उसे शहद नहीं देते। किडनी के मरीजों को पानी थोड़ा-थोड़ा करके देते हैं।
 त्वचा की समस्या से पीड़ित मरीज को गुनगुने पानी में नीबू मिलाकर पीने के लिए दिया जाता है और नीम के पत्तों का पेस्ट नहाने के पानी में मिलाकर नहाने के लिए कहा जाता है।
 उल्टी, खट्टी डकार आ रही हो, भूख नहीं लग रही हो, आंतों में सूजन हो तो पीड़ित व्यक्ति को गर्म पानी पिलाया जाता है।
 पानी प्रयोग की विधि क्या है सुबह उठकर बिस्तर में बैठ जाएं और चार बड़े ग्लास भरकर (लगभग एक लीटर) पानी एक ही समय एक साथ पी जाएं। ध्यान रहे कि पानी पीने के पहले मुंह न धोएं, न ब्रश करें तथा शौचकर्म भी न करें। पानी पीने के बाद थूकें नहीं। >
 पानी पीने के पौन घंटे बाद आप ब्रश/दातून, मुंह धोना, शौचकर्म इत्यादि नित्यकर्म कर सकते हैं। जो व्यक्ति बीमार या कमजोर काया के हैं और वे एक साथ चार ग्लास पानी नहीं पी सकते तो उन्हें शुरूआत एक-दो ग्लास पानी से करना चाहिए तथा धीरे-धीरे चार ग्लास तक बढ़ाना चाहिए। साथ ही भोजन करने के बाद लगभग दो घंटे पानी न पिया जाए तो अति उत्तम रहेगा।
 चार ग्लास पानी पीने की यह विधि स्वस्थ या बीमार, सभी के लिए अति लाभदायक सिद्ध हुई है। सकनीरा एसोसिएशन के अनुभव द्वारा यह सिद्ध किया गया है कि कई बीमारियां इस प्रयोग से निम्नलिखित समय में दूर होती जाती हैं।
* मधुमेह एक माह के लगभग।
* उच्च रक्तचाप एक माह के लगभग। * गैस दो सप्ताह के लगभग।
* टी.बी. छः माह के लगभग।
* कब्जीयत- दो सप्ताह के लगभग।

बिस्‍तर से उठने के बाद सुबह - 

सुबह आप लगभग 1.5 लीटर पानी पिएं, जो कि लगभग 5 से 6 गिलास होता है। इस पानी को खाली पेट पीना होता है। इसके बाद आप अपना चेहरा धोएं। यह प्रक्रिया वॉटर थेरेपी ट्रीटमेंट कहलाती है। इस ट्रीटमेंट को करने से पहले आप समझ लें कि पानी पीने से एक घंटे पहले और पानी पीने के एक घंटे के बाद तक कुछ भी न खाएं और पीएं, ठोस आ‍हार भूल से भी न खाएं। अगर आप वाकई में कायदे से इस ट्रीटमेंट को करना चाहते हैं तो रात को सोते समय एल्‍कोहल पीना छोड़ दें।
जापानी वॉटर थेरेपी तनाव को दर करने में मदद करती है। इसके साथ ही यह वजन को नियंत्रित रखती है और पाचन तंत्र को मजबूत बनाती है। सिर्फ यही नहीं, यह थेरेपी पूरे दिन आपको एनर्जेटिक रखती है। पर्याप्त पानी पीने से मेटाबोलिज्म भी बेहतर होता है।
पानी पीने के बाद दांतों को ब्रश से साफ करें। 45 मिनट तक कुछ भी खाने या पीने से बचें। इसके बाद आप अपनी नियमित दिनचर्या शुरू कर सकते हैं।
दिन के प्रत्येक भोजन के कम से कम दो घंटे बाद तक कुछ भी खाना या पीना नहीं चाहिए।
बीमारियों से ग्रसित बूढ़े लोगों को इस थेरेपी की शुरूआत में एक गिलास पानी पीना चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे पानी की मात्रा बढ़ानी चाहिए।
यदि आप एक बार में चार गिलास पानी नहीं पी सकते हैं तो हर गिलास के बाद कुछ देर रुकें ताकि आपके पेट को आराम मिल सके।
जापानी वॉटर थेरेपी रोगों से मुक्ति देती है और शरीर को स्वस्थ रखती है। इस थेरेपी का नियमित पालन करना चाहिए।
इसके अलावा, ठंडे पानी का सेवन करने से भी बचना चाहिए। ठंडा पानी आपके गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल तापमान को कम करता है और कुछ लोगों में रक्तचाप को थोड़ा बढ़ा सकता है। इससे पहले कि आप किसी स्थिति या बीमारी के इलाज के लिए इस वॉटर थेरेपी के उपयोग करने पर विचार करें, आपको अपने डॉक्‍टर से जरूर संपर्क करना चाहिए।
स्वस्थ जीवन के लिए जापानी वॉटर थेरेपी बहुत फायदेमंद है। इसका अभ्यास करने से विभिन्न तरह की बीमारियां दूर हो जाती हैं।अगर जरूरी हो तो पानी को फिल्‍टर करके और हल्‍का गुनगुना पिएं, वॉटर थेरेपी के लिए ऐसा पानी की सबसे अच्‍छा होता है। शुरूआत में 1.5 लीटर पानी पीने में तकलीफ हो सकती है लेकिन हर दिन पानी पीने से आपकी आदत पड़ जाएगी। इसके लिए शुरूआत में ज्‍यादा से ज्‍यादा पानी पीने की कोशिश करें, लगभग 4 गिलास पानी कम से कम पी जाएं
 एकदम से पानी न पिएं, पहले दो गिलास पिएं, इसके बाद दो मिनट का रेस्‍ट लें और फिर दो गिलास पिएं। जब आप शुरूआत में पानी पीना शुरू करेंगे तो शायद आपको एक घंटे में दो से तीन बार पेशाब के लिए जाना पड़ें, लेकिन कुछ समय आपकी आदत में इतना सारा पानी पीना शामिल हो जाएगा।
 ताजगी महसूस होगी अगर आप वॉटर थेरेपी की लगातार प्रैक्टिस करते रहेगें, तो दिन भर आपको ताजगी महसूस होती रहेगी और पूरा दिन आप ताजातरीन महसूस करते रहेगें।
मोटापा घटाए वॉटर थेरेपी, वजन को घटाने में भी लाभकारी होती है।
 शरीर से विषैले पदार्थ दूर हो इस थेरेपी से पसीने व मूत्र की सहायता से शरीर के विषैले तत्‍व बाहर निकल जाते हैं।
सिर दर्द, शरीर में दर्द, गठिया दूर करे वॉटर थेरेपी से सिर दर्द, शरीर में दर्द, गठिया, दिल की धड़कन तेज बढ़ना, मिरगी, ब्रोंकाइटिस, मोटापा, दमा, टीबी, मेनि‍नजाइटिस, गुर्दे और मूत्र रोग, उल्‍टी, जठरशोथ, दस्‍त, बवासीर, डायबटीज, सभी नेत्र रोगों, मासिक धर्म संबधी विकार, कान, नाक और गले के रोगों का उपचार संभव है।
त्‍वचा चमकाए इसकी सहायता से आपके शरीर की त्‍वचा दमकदार हो जाती है।
शरीर का तापमान सामान्‍य रखे वॉटर थेरेपी, शरीर का तापमान सामान्‍य रखती है।
कॉन्‍स्‍टीपेशन, एसीडिटी, डायबटीज और कैंसर दूर हो अगर वॉटर थेरेपी को प्रतिदिन कायदे से किया जाएं, तो इससे 1 दिन में कॉन्‍स्‍टीपेशन, 
2 दिन में एसीडिटी, 
7 दिन में डायबटीज, 
4 हफ्ते में कैंसर, 
3 महीने में पल्‍मोनरी टीबी, 
10 दिनों में गैस्ट्रिक और 
4 हफ्तों में बीपी और हाइपरटेंशन दूर हो जाती है।
 ज्यादातर बीमारियां पेट की खराबी के कारण होती हैं। जापानी वॉटर थेरेपी आंत को साफ करती है और पाचन तंत्र को मजबूत रखती है। जापानी पारंपरिक चिकित्सा में सुबह जल्दी उठने के बाद पानी पीने की सलाह दी जाती है। सुबह के शुरुआती घंटों को गोल्डेन ऑवर कहा जाता है। माना जाता है कि इस अवधि के दौरान पानी पीने से न केवल आपके पाचन तंत्र ठीक रहता है और वजन घटता है, बल्कि विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज करने में भी मदद मिल सकती है।
 वास्तव में बहुत सारे रोगों के लिए की जाने वाली उपचार प्रणाली है जल चिकित्सा। इसमें शीतल और ऊष्ण पानी के प्रयोग के द्वारा इलाज़ किया जाता है। शरीर के अंदरूनी और बाहरी अंगों पर आवश्यकता के अनुसार गर्म और ठंडे पानी का उपयोग किया जाता है। इस चिकित्सा को अंग्रेज़ी में हाइड्रोथेरेपी (Hydrotherapy) कहा जाता है। इस चिकित्सा पद्धति का इतिहास बहुत अधिक पुराना है। लेकिन समय के साथ इसमें बहुत सारे बदलाव देखने को मिल रहे हैं।
 जापान जैसे देशों में तो इस तरह की चिकित्सा पद्धति काफी प्रचलित है। दुनिया में जितनी भी चिकित्सा पद्धति पाई जाती हैं उनमें सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति वॉटर थेरेपी ही है। प्राकृतिक चिकित्सा के अलावा आयुर्वेद और यूनानी उपचार विधियों में भी जल चिकित्सा को काफी महत्वपूर्ण माना गया है।
हाइड्रोथेरेपी (HYDROTHERAPY) के लाभ
• ऐसा दर्द जो लंबे समय के लिए आपके शरीर में बना हुआ है। इस दर्द को दूर करने के लिए जल चिकित्सा एक रामबाण उपचार है।
• यह पद्धति कोशिकाओं को हाइड्रेट रखती है। इसके अलावा इससे मांसपेशियों और त्वचा की रंगत में सुधार आता है।
• इस उपचार प्रणाली से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मदद मिलती है।
• इसके माध्यम से हमारे शरीर के आंतरिक अंगों में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है।
• तनावपूर्ण और अकड़ी हुई मांसपेशियों को सही करने में जल चिकित्सा से मदद मिलती है।
• इससे मेटाबोलिज्म और पाचन क्रिया को अच्छा रखा जा सकता है।
• वॉटर थेरेपी की सहायता से प्रसव पीड़ा तक को कम किया जा सकता है।
• शरीर में होने वाली किसी भी सूजन को कम करने के लिए भी वॉटर थेरेपी का सहारा लिया जा सकता है।
• बुखार दूर करने के इसके लिए वॉटर ट्रीटमेंट थेरेपी (Water Treatment Therapy) का सहारा लिया जा सकता है।
कैसे पानी वजन घटाने में करता है मदद
 अध्ययन के मुताबिक, पानी वजन घटाने (water therapy to lose weight) में आपकी कई रूप से मदद कर सकता है। वजन कम करने के लिए आपको करना ये है कि भोजन से 30 मिनट पहले 500 एमएल पानी पीना है। अध्ययन के मुताबिक, जो लोग खाना खाने से पहले ऐसा करते हैं वह अन्य लोगों की तुलना में 13 फीसदी तक कम खाते हैं। एक अन्य अध्ययन में ये पाया गया कि अगर आप खाना खाने के बाद कुछ मीठा खाने के बजाए पानी पीते हैं तो आप कैलोरी इनटेक को कम कर सकते हैं। इस बात को जान लें कि खाना खाने के बाद मीठा खाने से वजन बढ़ता है ।
 ऐसा माना जाता है कि पानी में मौजूद हाइड्रेशन कॉम्पोनेंट वजन घटाने में अहम भूमिका निभाते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पानी पेट भरने का भी काम करता है। अगर आप भोजन से पहले एक गिलास पानी पी लेते हैं तो आप ज्यादा खाने से बच सकते हैं और दूसरी अनहेल्दी चीजों के सेवन से आप बच सकते हैं। यह आपको जरूरत से ज्यादा कैलोरी इनटेक पर अंकुश लगाता है और वजन बढ़ने से रोकने में मदद कर सकता है। न सिर्फ पानी पीने से बल्कि आप खाने का एक रूटीन बनाकर भी कैलोरी इनटेक में कमी ला सकते हैं। ये सभी चीजें वजन घटाने की प्रक्रिया को तेज करती हैं और आपको सही शेप में रहने में मदद करती हैं।
 कुछ भी खाने के बीच का अंतर सिर्फ 15 मिनट तक सीमित है। इसके अलावा आपके भोजन के बीच कम से कम 2 घंटे का अंतर होना चाहिए। सबसे जरूरी बात आप जो भी चाहें खा सकते हैं। किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं है। हां, आप जो भी खाएं बस वो हेल्दी होना चाहिए।

सावधानी-

सुरक्षित होने के लिए, प्रति घंटे लगभग 4 कप (1 लीटर) से अधिक तरल नहीं पीना चाहिए, क्योंकि यह अधिकतम राशि है, जो एक स्वस्थ व्यक्ति की किडनी एक ही बार में संभाल सकती है।


20.11.21

जलोदर रोग (Ascites) के कारण, लक्षण एवं उपचार:jalodar ka ilaj

 





जलोदर शब्द ही रोग को स्पष्ट कर देता है अर्थात पेट में जल भर जाना. संक्षेप में इतना बतला देना ही काफी है के जब रोगी के पेट में पानी भर जाता है तो उस हालत को जलोदर रोग कहते हैं. पेट में जल भरने के अलावा हाथ, पाँव और मुख पर शोथ अर्थात सूजन आ जाती है. और इसमें खांसी, श्वांस के चिन्ह भी प्रकट हो जाते हैं.

                                                                                                                                                
जलोदर के कारण--

जलोदर रोग ” या पेट में पानी भरने की समस्या एक प्राणघातक विकार है | अत्याधिक मात्रा में शराब का सेवन करना लिवर में पानी भरने का प्रमुख कारण है
जलोदर मुख्यतः लिवर के पुराने रोग से उत्पन्न होता है।
खून में एल्ब्युमिन के स्तर में गिरावट होने का भी जलोदर से संबंध रहता है।
पेट या लीवर में पानी भर जाना जलोदर (Ascites) कहलाता है | यह कोई रोग नही अपितु अन्य रोगों के कारण उत्पन्न हुयी समस्या है | लिवर में इन्फेक्शन, ह्रदय एवं वृक्क में उत्पन्न हुए विकार इसका प्रमुख कारण है | अगर पेट में 25 ml से ज्यादा पानी इक्कठा हो जाये तो Ascites हो सकता है |
मिथ्या आहार विहार, मीठे तथा चिकने पदार्थों एवं शराब का अधिक सेवन, गरिष्ठ भोजन (मीट, मांस अधिक वसा वाला) करते रहना और शारीरिक परिश्रम ना करना. वायु तथा प्रकाशहीन गंदे मकानों में रहना, अत्यधिक शारीरिक या मानसिक परिश्रम करना, हर समय चिंतित रहना, बहुत समय तक पेट के रोगों तथा मलेरिया आदि रहने से प्लीहा अर्थात Spleen यकृत अर्थात liver के दूषित हो जाने के साथ मन्दाग्नि आदि हो जाने से उदर व् उदावरण के बीच में एक तरल द्रव्य एकत्र होने लगता है. इसी प्रकार यकृत दूषित हो जाने से यकृतजन्य जलोदर उत्पन्न होता है. हृदय विकार में अंत में जलोदर उत्पन्न होता है.यह रोग सभी स्त्री पुरुषों में सामन रूप से देखने में आता है.जलोदर वास्तव में कोई स्वतंत्र रोग नहीं है. Liver Heart और Kidney के दूषित होने से यह रोग उत्पन्न होता है. Liver के कारण हुए जलोदर की यह भी एक परीक्षा है के उदर में जल भरने के अतिरिक्त शरीर के अन्य अंगो पर शोथ अर्थात सूजन दिखाई नहीं देती बल्कि हाथ पाँव पतले पड़ जाते हैं. किन्तु हृदय, प्लीहा, और वृक्क दोष अर्थात किडनी रोगों से उत्पन्न होने वाले जलोदर में हाथ पाँव और मुख पर शोथ आ जाता है. हृदय दोष, जलोदर में कास अर्थात खांसी, श्वांस रोगों के चिन्ह भी प्रकट हो जाते हैं.

जलोदर के लक्षण--

पेट का फूलना
सांस में तकलीफ
टांगों की सूजन
बेचैनी और भारीपन मेहसूस होना
आयुर्वेदानुसार उदर रोग 8 प्रकार के होते हैं | त्रिदोषों में विकार आयुर्वेद में हर रोग का कारण माना जाता है | उदर रोग वात दोष में विकार के कारण होते हैं | जब वात प्रकुपित होकर पेट में त्वचा एवं मांसपेशियों के उत्तको के मध्य जमा हो जाये तो इससे सुजन आ जाती है | उत्तेजित वात के अलावा पाचन अग्नि (जठराग्नि) के मंद हो जाने से भी उदर रोग हो जाते हैं | इस प्रकार किसी रोग या विकार के कारण पेट में पानी भर जाने की समस्या जलोदर रोग कहलाती है |

जलोदर की चिकित्सा


जलोदर की उत्तम चिकित्सा आयुर्वेद में ही मिलती है, डॉक्टरी में तो यंत्र द्वारा पेट से पानी निकालते हैं. किन्तु थोड़े दिन ही लाभ प्रतीत होता है और पुनः पेट में पानी भर जाता है. इस प्रकार 3 से 4 बार पेट में पानी भरने से और निकालने की क्रिया (Tapping) अंत में सफल नहीं होती और रोगी क्रमशः क्षीण होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.
इस रोग की चिकित्सा कष्ट साध्य है. यदि रोग के आरम्भ होते ही योग्य चिकित्सक से निदान कराकर इलाज कराया जाए तो निश्चय ही आराम हो जाता है. इस रोग की चिकित्सा में दस्तों और मूत्र द्वारा जल निकालने के साथ साथ रक्त शुद्धि और रोगी के बल को स्थिर रखने का ध्यान रखना आवश्यक है. सबसे पहले रोगी के पेट की शुद्धि करनी चाहिए, और रोग का उचित निदान करके चिकित्सा करें. यथा पांडूजन्य अर्थात पीलिया से हुआ जलोदर में शोथहर लोह, यकृतजन्य अर्थात लीवर के कारण हुए जलोदर में लोह शिलाजीत युक्त चंद्रप्रभा पुनर्नवा के काढ़े के साथ उचित अनुपान से दें.

जलोदर में परहेज


जलोदर होने पर सर्वप्रथम रोगी को कुछ परहेज तुरंत करवाने चाहिए, परहेज ना करने पर ये रोग बिलकुल भी सही नहीं हो पाटा. एक तो रोगी का पानी बिलकुल बंद कर देना चाहिए, पानी की जगह पर रोगी को प्यास लगने पर आधा दूध और आधा पानी दोनों को मिलाकर अच्छे से उबाल कर ठंडा कर के रख लेना चाहिए, और यही पीने को दीजिये, अगर फिर भी प्यास ना मिटे तो अर्क मकोय (हमदर्द का मिल जाता है) थोडा थोडा देते रहें. दिन में मक्खन निकली हुई छाछ दे सकते हैं, रोगी के लिए सब प्रकार के नमक ज़हर के समान है, हरी सब्जी नहीं देनी है.

जलोदर के रोगी की छाछ

छाछ बनाने की विधि ये है के रात्रि को दूध गर्म करते समय इसमें एक चममच त्रिकटु पाउडर मिलाना है, जब यह गर्म हो जाए तो इसी में ही दही का जामण लगाना है और दही को मिटटी की हांडी में जमाना है. और इसी दही से रोगी के लिए छाछ बनानी है. छाछ बनाने के बाद इसमें से अच्छे से मथ कर मक्खन निकाल देना है. और यही छाछ देनी है.
जलोदर रोग (Ascites) का पता करने के लिए कोनसा टेस्ट किया जाता है ?
सामान्यतः रोगी के लक्षणों से इस रोग का पता चल जाता है | इसके लिए आप टेस्ट भी करा सकते है | दो तरह के टेस्ट इस रोग का पता करने के लिए किये जाते हैं |
फ्लूइड सैंपल (द्रव जांच) :- इसमें एक सुई की मदद से आप के पेट से तरल पदार्थ निकाल कर उसकी जांच होती है | इससे किसी इन्फेक्शन या कैंसर का पता चलता है |
MRI या CT scan :- अल्ट्रासाउंड, MRI या CT Scan की मदद से पेट के अन्दर की स्थिति का जायजा लेकर भी इसका पता लगाया जा सकता है |

आधुनिक विज्ञानं ने चिकित्सा क्षैत्र में बहुत उन्नति की है | बहुत से रोगों का इलाज आज आधुनिक चिकित्सा से संभव है | लेकिन ऐसा कोई उपचार या दवा एलोपथी में उपलब्ध नहीं है जिससे जलोदर का पुर्णतः इलाज संभव हो | अंग्रेजी दवाओं एवं इलाज से एक बार पानी को निकाल दिया जाता है लेकिन कुछ समय उपरांत यह पुनः भर जाता है | आयुर्वेद ग्रंथो में बताये उपचार, खान-पान एवं दवा के माध्यम से ही इस रोग का पुर्णतः इलाज संभव है |
आचार्य चरक ने चरक संहिता में उदररोगों के बहुत से कारण बताये हैं जिसमे जठराग्नि कम हो जाना, अशुद्ध आहार, प्रकुपित वात दोष एवं आंत में इन्फेक्शन हो जाना प्रमुख है | अतः इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए इसका इलाज किया जाता है | सिमित एवं शुद्ध भोजन करके एवं आयुर्वेदिक उपचार अपनाकर जलोदर का पूर्णतया इलाज किया जा सकता है | जानते है जलोदर रोग का इलाज क्या है :-

विरेचन से करें जलोदर रोग (Ascites) का इलाज :-

आयुर्वेदानुसार इस रोग का कारण प्रकुपित वातदोष है | विरेचन त्रिदोषों के संतुलन एवं पेट में द्रव को उचित मात्रा में बनाये रखने के लिए उत्तम उपाय है | यकृत रक्त के मुख्य स्थान है एवं रक्त एवं पित्त एक दुसरे पर आश्रित होते है | पित्त दोष को दूर करने के लिए विरेचन सबसे अच्छा उपाय है | इसके साथ ही विरेचन से पेट की गुहा में जमा द्रव कम होता है एवं पेट की सुजन कम होती है |
विरेचन एक आयुर्वेद चिकित्सा की प्रक्रिया है जिसमे औषधियों से रोगी के दूषित दोषों को मल के द्वारा बाहर निकाला जाता है | इस प्रक्रिया से त्वचा रोगों, सोरायसिस, मधुमेह एवं उदर रोगों में बहुत लाभ होता है | जलोदर रोग को ठीक करने के लिए विरेचन जरुरी है |

आयुर्वेदिक औषधियों से पेट में भरे द्रव को निकाल कर जलोदर का इलाज :-

जलोदर रोग का कारण पेट में द्रव का निश्चित मात्रा से ज्यादा एकत्र हो जाना है | इस द्रव को पेट से निकाल कर इस रोग का इलाज संभव है | इसके लिए सबसे पहले तो जरुरी है की रोगी को तरल पदार्थ एवं भोजन कम दिया जाये | सामान्यतः जलोदर रोग के इलाज के लिए रोगी को सिर्फ दूध पिलाया जाता है | पेट में जमा पानी को कम करने के लिए गोमूत्र का सेवन करना चाहिए | गोमूत्र में उष्ण एवं तीक्ष्ण गुण के कारण यह पेट में पानी भरने की समस्या को कम करता है |

जठराग्नि को मजबूत करके Ascites रोग का इलाज करें :-


किसी भी प्रकार के उदर रोग में मन्दाग्नि (पाचन शक्ति कमजोर होना) प्रमुख कारण होती है | पाचन अग्नि को मजबूत करके जलोदर रोग का इलाज किया जा सकता है | आयुर्वेद में त्रिकटू चूर्ण एवं शिवाक्षर पाचन चूर्ण पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए बहुत उपयोगी औषधि हैं | जलोदर रोग में इन दोनों औषधियों का सेवन करना चाहिए | इसके सेवन से जठराग्नि मजबूत होगी एवं पेट में पानी भरने की समस्या में लाभ मिलेगा |

लिवर में इन्फेक्शन को ठीक करके इस रोग का इलाज संभव है :-

अगर लिवर में इन्फेक्शन हो जाये या अन्य कोई लिवर का रोग हो तो जलोदर रोग हो सकता है | आयुर्वेद में बहुत सारी औषधियां हैं जो लिवर रोगों में अत्यंत लाभदायी हैं | आरोग्यवर्धिनी वटी एवं सर्पुन्खा स्वरस लिवर के लिए बहुत उपयोगी है | इनका सेवन करके लिवर इन्फेक्शन को कम किया जा सकता है | एवं जलोदर रोग में इनसे अत्यंत लाभ मिलता है |
मूली के पत्तों के 50 ग्राम रस में थोड़ा-सा जल मिलाकर सेवन करें।
* अनार का रस पीने से जलोदर रोग नष्ट होता है।
* प्रतिदिन दो-तीन बार खाने से, अधिक मूत्र आने पर जलोदर रोग की विकृति नष्ट होती है।
* आम खाने व आम का रस पीने से जलोदर रोग नष्ट होता है।
* लहसुन का 5 ग्राम रस 100 ग्राम जल में मिलाकर सेवन करने से जलोदर रोग नष्ट होता हैं।

पेट में पानी भरने की समस्या की आयुर्वेदिक दवा क्या है ?

चरक संहिता एवं अन्य आयुर्वेद ग्रंथो में इस रोग के निदान के लिए बहुत सी औषधियों का उल्लेख है | आइये जानते है कुछ बेहतरीन आयुर्वेदिक दवाएं जिनसे उदर रोग का इलाज हो सकता है :-
आरोग्यवर्धिनी वटी |
सर्पुन्खा स्वरस |
गौमूत्र |
पुनर्नवादी क्वाथ |
पुनर्नवादी मंडूर |
एरंडभृष्ट हरीतकी |

त्रिकटू चूर्ण |
शिवाक्षर पाचन चूर्ण |

Ascites (पेट में पानी भरना) रोग में क्या खाएं ?

इस रोग के इलाज के लिए बहुत जरुरी है की उचित खान-पान करें एवं परहेज रखें | आइये जानते है जलोदर रोग में क्या खाएं एवं क्या न खाएं ?
तरल पदार्थ कम खाएं |
ज्यादा मसाले वाला भोजन न करें |
अम्लीय खाना न खाएं |
नमकीन चीजें न खाएं |
शराब का सेवन बिलकुल भी न करें |
कम खाना खाएं |
जहाँ तक हो सके सिर्फ दूध का सेवन करें |
धुम्रपान न करें |
फलों का सेवन करें |

पेट में पानी भरने की बीमारी में उपयोगी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

आयुर्वेद में इस रोग के उपचार के लिए बहुत सी औषधियो का उल्लेख है | ऐसी जड़ी बूटियां जो जलोदर रोग में लाभदायी हैं :-
कपूर |
कुमारी |
ज्योतिष्मती |
जंगली प्याज |
दंती |
देवदारु |
कटुकी |

क्या जलोदर रोग (Ascites) प्राणघातक है ?

यह रोग व्यक्ति के लिए बहुत कष्टदायी है | जलोदर रोग में पेट में भारीपन रहना, साँस लेने में तकलीफ एवं वजन बढ़ जाना जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है | लेकिन नजरंदाज करने एवं उच्चित इलाज के अभाव में यह प्राणघातक भी हो सकता है |* 25-30 ग्राम करेले का रस जल में मिलाकर पीने से जलोदर रोग में बहुत लाभ होता है।
* बेल के पत्तों के 25-30 ग्राम रस में थोड़ा-सा छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से जलोदर रोग नष्ट हो जाता है।
* करौंदे के पत्तों का रस 10 ग्राम मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से जलोदर राग में बहुत लाभ होता है।
गोमूत्र में अजवायन को डालकर रखें। शुष्क हो जाने पर प्रतिदिन इस अजवायन का सेवन करने पर जलोदर रोग नष्ट हो जाता है।*जलोदर रोग में लहसुन का प्रयोग हितकारी है। लहसुन का रस आधा चम्मच आधा गिलास जल में मिलाकर लेना कर्तव्य है। कुछ रोज लेते रहने से फर्क नजर आएगा।

*देसी चना करीब ३० ग्राम ३०० मिली पानी में उबालें कि आधा रह जाए। ठंडा होने पर छानकर पियें। २५ दिन जारी रखें।
*करेला का जूस ३०-४० मिली आधा गिलास जल में दिन में ३ बार पियें। इससे जलोदर रोग निवारण में अच्छी मदद मिलती है।
*जलोदर रोगी को पानी की मात्रा कम कर देना चाहिये। शरीर के लिये तरल की आपूर्ति दूध से करना उचित है। लेकिन याद रहे अधिक तरल से टांगों की सूजन बढेगी।
*जलोदर की चिकित्सा में मूली के पत्ते का रस अति गुणकारी माना गया है। १०० मिली रस दिन में ३ बार पी सकते हैं।
*मैथी के बीज इस रोग में उपयोग करना लाभकारी रहता है। रात को २० ग्राम बीज पानी में गला दें। सुबह छानकर पियें।
*अपने भोजन में प्याज का उपयोग करें इससे पेट में जमा तरल मूत्र के माध्यम से निकलेगा और आराम लगेगा।
*जलोदर रोगी रोजाना तरबूज खाएं। इससे शरीर में तरल का बेलेंस ठीक रखने में सहायता मिलती है।
*छाछ और गाजर का रस उपकारी है। ये शक्ति देते हैं और जलोदर में तरल का स्तर अधिक नहीं बढाते हैं।
*अपने भोजन में चने का सूप ,पुराने चावल, ऊंटडी का दूध , सलाद ,लहसुन, हींग को समुचित स्थान देना चाहिये।
*रोग की गंभीरता पर नजर रखते हुए अपने चिकित्सक के परामर्शानुसार कार्य करें।
क्या न खाएं?
* जलोदर रोग में पीड़ित व्यक्ति को उष्ण मिर्च-मसालें व अम्लीस रसों से बने चटपटे खाद्य पदार्थो का सेवन नही करना चाहिए।
* घी, तेल, मक्खन आदि वसा युक्त खाद्य पदार्थाो का सेवन न करेें
* गरिष्ठ खाद्य पदार्थों, उड़द की दाल, अरबी, कचालू, फूलगोभी आदि का सेवन न करें।
* चाय, कॉफी व शराब का सेवन न करें।

जलोदर का प्रथम योग


पीपल बड़ी 50 ग्राम., बड़ी हर्र्ड का बक्कल अर्थात इसका उपरी छिलका 50 ग्राम, इन दोनों को यवकूट अर्थात मोटा मोटा कूट कर अष्टधारा सेंहुड (थोहर) के दूध में 24 घंटे भिगोकर फिर इसको बारीक पीसकर झडबेरी के बेर के समान गोली बना लें. (झडबेरी के बेर मोटे और बड़े होते हैं) इसकी फोटो नीचे लगा दी गयी है. बलवान आदमी को एक गोली और निर्बल को आधी गोली खिलाकर ऊपर से शरपुंखा का काढ़ा पिलादें. शरपुंखा का काढ़ा बनाने की विधि यह है के 25 ग्राम शरपुंखा को 400 मि.ली. पानी में औटावें, जब यह 1/4 रह जाए अर्थात 100 ग्राम रह जाए तो इसमें 25 ग्राम मिश्री मिला दें. यह काढ़ा ऊपर वाली गोली खिला कर पिला दें.
 यह ऊपर बताई गयी गोली दांत से नहीं लगनी चाहिए और ना ही चबाना चाहिए. यह दांतों के लिए हानिप्रद है. सीधे ही निगल लें. यदि इस गोली से दस्त ना हों तो हर तीसरे दिन ऊंटनी का दूध या भेड़ का दूध आधा पाव 125 ग्राम, ग्राम पिलाकर दस्त करा देना चाहिए, यदि ऊँटनी या भेड़ का दूध ना मिले तो इच्छा भेदी रस या किसी रेचक चूर्ण से दस्त करा देना उचित है. जलोदर रोगी का कोष्ठ बहुत क्रूर हो जाता है अतः कोई रेचक दवा पाच जाए और दस्त ना हो तो घबराएं नहीं. उसके अनुपान में बदलाव करवा कर दस्त करवा देना चाहिए.
इस प्रयोग में केवल बकरी का दूध मिश्री मिला हुआ पिलाना चाहिए, अन्न आदि कोई वस्तु कदापि खाने को न दें. नमक और पानी देना भी बंद कर दें. रोगी को जब भी प्यास या भूख लगे तो दूध ही दें. यदि दूध से प्यास शांत ना हो तो आधे गिलास पानी को अच्छे से उबाल दिला कर इसमें आधा गिलास दूध मिला कर दें. यदि बकरी का दूध ना मिले तो देसी गाय का दूध दीजिये.
थूहर या सेंहुड की कई प्रजातियाँ आती है, इसमें त्रिधारा, चार धारा इत्यादि आती है, इसकी डंडी के ऊपर कितनी डंडियाँ निकल रही हैं ये इस से पता चलता है के ये कौन सा सेंहुड है, कोशिश करे के अष्टधारा सेंहुड ही मिले अन्यथा इनको भी ले सकते हैं.

जलोदर का दूसरा योग

50 ग्राम पीपल को अष्टधारा थोहर के दूध में घोटकर चणक के जैसी गोलियां बनाकर प्रातः और सांय 2 2 गोलियां गर्म दूध के साथ सेवन करना लिखा है. और खाने में केवल गर्म दूध ही देना है. अन्न जल कुछ भी नाह देना है. अगर अधिक प्यास हो तो अर्क मकोय पिला सकते हैं. इस योग को बहुत बार का अनुभात बताया है.
यह योग बहुत उत्तम है किन्तु इसमें भी हर तीसरे दिन रेचन अर्थात दस्त कराना उचित है. और अगर गोलियों के सेवन से ही दस्त होते रहें तो फिर रेचन करवाने की ज़रूरत नहीं.

जलोदर का तीसरा प्रयोग


कुटकी 40 ग्राम यवकूट कर के 200 ग्राम जल में काढ़ा बना लें. चौथाई जल शेष रहने पर अर्थात 50 ग्राम रहने पर इसको अच्छे से मल ले पानी में ही, फिर इसको कपडे की मदद से छान लें. इसी प्रकार प्रतिदिन सुबह नया काढ़ा बनाकर 21 दिन तक रोगी को निरंतर पिलायें. इस प्रयोग में दिन में 4 से 5 दस्त आयेंगे और रोगी की शारीरिक शक्ति दिन बी दिन क्षीण होती जाएगी. तीसरे सप्ताह जलोदर से बढ़ा हुआ पेट अपने असली आकार में आ जायेगा. हाथों पांवो की सूजन मिट कर शरीर बेहद नर कंकाल जैसा दिखेगा. किन्तु चिकित्सक इसकी परवाह ना करें बल्कि धैर्य पूर्वक चिकित्सा उचित अनुपान से चालु रखें.

जलोदर में अति विशेष 

यदि हाथ, पाँव, पिंडलियों तथा चेहरे पर शोथ हो तो भैंस के दूध के मक्खन में काले तिल एवं शुष्क मकोय फल अर्थात मकोय का सूखा फल समान समान भाग में मिला कर अर्थात मक्खन काले तिल और मकोय बराबर बराबर ले कर सुबह सुबह सूजन वाली जगह पर अच्छे से लेप कर दें. और शाम को ये छुड़ा दें. इसी प्रकार ये प्रयोग कम से कम 21 दिन तक करें. और इन दिनों में गाय का दूध ही सेवन करें. इसमें देशी शक्कर मिला कर दे सकते हैं. रोगी को जब प्यास या भूख लगे तो केवल दूध ही दें. यदि दूध से प्यास शांत न हो तो आधे गिलास पानी को उबाल कर इसमें आधा दूध मिला कर ही दें. रोगी को सादा पानी और नमक बिलकुल बंद कर देना चाहिए. 21 दिन के बाद रोगी को 25 ग्राम साठी चावल का मांड तैयार करके 60 ग्राम की मात्रा में दें. (मांड चावलों को उबालने के लिए डाला गया पानी है, जो चावलों के पकने के बाद बचता है) हर रोज़ 6 – 6 ग्राम चावल का वजन बढ़ाना चाहिए, एक हफ्ते तक दिन में पहले पहर अर्थात सुबह 9 baje तक यही देना चाहए. बाकी समय जब भी भूख प्यास लगे तो सिर्फ दूध ही दें. 26 वें दिन 50 ग्राम चावलों का मांड तैयार करके इस मांड मिले हुए चावल अगर मिश्री मिला कर खाना चाहें तो मिश्री मिला कर एक हफ्ते तक खाने को दें. बाकी समय रोगी को दूध और फल दें. 36 वें दिन से मांड मिश्रित चावलों के साथ मूंग तथा मोठ का यूष बनाकर देना शुरू करें. फिर दोनों समय सुबह और शाम यह यूष और मांड वाले साठी चावल खाएं. और क्रमशः रोगी को भोजन पर लायें. इस प्रकार नियमित चिकित्सा से भयंकर जलोदर भी शमन हो जाती है. इन प्रयोग काल में जितना परहेज हो उतना ही बेस्ट है. वैसे तो इस समय दूध से उत्तम कुछ भी नहीं, अगर फिर भी रोगी को कुछ खाने को मन करें तो वो थोड़े बहुत फल ले सकता है.
1. आरोग्यवर्धनी गुटिका,
मात्रा 1- 1 गोली (3 – 6 रत्ती)
अनुपान – दूध, पुनार्नावादी कवाथ या केवल पुनर्नवा का क्वाथ, दशमूलक्वाथ, मूत्रलकषाय आदि. यह जलोदर में शोथ में पीलिया में किया जाता है.
2. पुनर्नवा मंडूर
मात्रा – 1 से 2 गोली
अनुपान – यकृत की वृद्धि तथा सूजन में पुनार्नावादिक्वाथ और क्रिमी विकार में मुस्तादिक्वाथ में
इसके अलावा पुनार्नावादी (पुनार्नावाष्टक) कषाय, मूत्रलकषाय, कुमार्यासव को रोग देखकर उचित अनुपान के साथ देना चाहिए.
उपरोक्त बताये हुए प्रयोग सिर्फ अनुभवी वैध्य के सानिध्य में करने चाहिए, इनको करने से दस्त वगैरह हो कर रोगी का शरीर कमज़ोर हो सकता है.
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