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अड़ूसा के औषधीय गुण उपयोग Adusa ke fayde





परिचय :


   सारे भारत में अडूसा के झाड़ीदार पौधे आसानी से मिल जाते हैं। ये 120 से 240 सेमी ऊंचे होते हैं। अडूसा के पत्ते 7.5 से 20 सेमी तक लंबे और 4 से साढ़े 6 सेमी चौडे़ अमरूद के पत्तों जैसे होते हैं। ये नोकदार, तेज गंधयुक्त, कुछ खुरदरे, हरे रंग केअडूसा एक आयुर्वेदिक औषधी है जो 120 से 240 सेमी ऊंचे होते हैं। अडूसा के पत्तों, अमरूद के पत्ते के समान 7.5 से 20 सेमी तक लंबे और 4 से साढ़े 6 सेमी चौडे़ होते हैं। होते हैं। अडूसा के पत्तों को कपड़ों और पुस्तकों में रखने पर कीड़ों से नुकसान नहीं पहुंचता। इसके फूल सफेद रंग के 5 से 7.5 सेमी लंबे और हमेशा गुच्छों में लगते हैं। लगभग 2.5 सेमी लंबी इसकी फली रोम सहित कुछ चपटी होती है, जिसमें चार बीज होते हैं। तने पर पीले रंग की छाल होती है। अडूसा की लकड़ी में पानी नहीं घुसने के कारण वह सड़ती नहीं है।

अड़ूसा के विभिन्न नाम -
• संस्कृत : वासा, वासक, अडूसा, विसौटा, अरूष।
• हिंदी : अडूसा, विसौटा, अरूष।
• मराठी : अडूलसा, आडुसोगे।
• गुजराती : अरडूसों, अडूसा, अल्डुसो।
• बंगाली : वासक, बसाका, बासक।
• तेलगू : पैद्यामानु, अद्दासारामू।
• तमिल : एधाडड।
• अरबी : हूफारीन, कून।
• पंजाबी : वांसा।
• अंग्रेजी : मलाबार नट।
• लैटिन : अधाटोडा वासिका
• रंग : अडूसा के फूल का रंग सफेद तथा पत्ते हरे रंग के होते हैं।
• स्वाद : अडूसा के फूल का स्वाद कुछ-कुछ मीठा और फीका होता है। पत्ते और जड़ का स्वाद कडुवा होता है।
स्वरूप :
• पेड़ : 
अडूसा के पौधे भारतवर्ष में कंकरीली भूमि में स्वयं ही झाड़ियों के समूह में उगते हैं। अडूसा का पेड़ मनुष्य की ऊंचाई के बराबर का होता है।


• पत्ते :


 पत्ते 7.5 से 20 सेमी लम्बे रोमश, अभिमुखी, दोनों और से नोकदार होते हैं।
• फूल :

श्वेतवर्ण 5 से 7.5 सेमी लंबे लम्बी मंजरियों में फरवरी-मार्च में आते हैं।
• फली : 

लगभग 2.5 सेमी लम्बी, रोमश, प्रत्येक फली में चार बीज होते है।
 अडूसा खुश्क तथा गर्म प्रकृति का होता है। परन्तु फूल शीतल प्रकृति का होता है।
• स्वभाव :
• मात्रा : फूल और पत्तों का ताजा रस 10 से 20 मिलीलीटर (2 से 4 चम्मच), जड़ का काढ़ा 30 से 60 मिलीलीटर तक तथा पत्तों, फूलों और जड़ों का चूर्ण 10 से 20 ग्राम तक ले सकते हैं।
*आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार अडूसा पेड़ के फल, फूल, पत्ते तथा जड़ को रोग-विकारों के निवारण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अडूसा ने केवल खांसी श्वास, रक्तपित्त और कफ के लिए गुणकारी है बल्कि इसके पत्ते से बना काढ़ा कब्ज और शारीरिक निर्बलता के लिए एक दवा का काम करता है।

 अड़ूसा का गुणकारी औषधि के रूप में प्रयोग


*अडूसा का प्रयोग अधिकतर औषधि के रूप ही किया जाता है. यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा की पद्धतियों में अडूसा का उल्लेख एक प्रसिद्ध औषधि के रूप में किया गया है. अडूसा का प्रयोग खासतौर पर ख़ासी और साँस से सम्बंधित रोगों के ईलाज के लिए किया जाता है.रोगों को नष्ट करने की दृष्टि से अडूसा एक बेहद ही उपयोगी औषधि है.

टीबी रोग की खांसी 

में पचीस ग्राम अडूसा की जड़ और पचीस ग्राम गिलोय को दो सौ मिली लीटर पानी में देर तक उबालें और इसका काढ़ा बना लें। प्रतिदिन पचास ग्राम काढ़े में शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से टीबी रोग की खांसी नष्ट होती है और कफ सरलता से निकल जाता है।

Adusa ke fayde

मुंह के छाले -

अडूसा की जड़ को पानी में उबालकर, छानकर उस पानी से कुल्ले करने पर मुंह के छाले दूर होते हैं।

गुर्दे का शूल-

अडूसा के पत्तों के पांच ग्राम रस में शहद मिलाकर चाटकर खाने से गुर्दे का शूल नष्ट होता है।

*अस्थमा -

 अडूसा के सूखे पत्ते चिलम में जलाकर हुक्का पीने से अस्थमा रोगी को आराम मिलता है। इसके अलावा श्वास में होने वाली समस्या को भी दूर किया जा सकता है।

* प्रदर रोग

की समस्या में अडूसा के जड़ को कूटकर उसका रस निकालकर शहद के साथ रोजाना लेने से प्रदर रोग दूर होता है।अडूसा के स्वरस का मधु के साथ शर्बत बनाकर देने से प्रदर ठीक होता है।

*मासिक धर्म में अधिक खून निकलने की समस्या होने पर स्त्रियों को अडूसा के हरे पत्तों का दस ग्राम रस मिश्री मिलाकर सेवन करने से बहुत लाभ होता है।

*पैत्तिक ज्वर:

    यदि घर में किसी को पैत्तिक ज्वर की समस्या है तो अडूसा के पत्ते और आंवला बराबर मात्रा में लेकर पानी में डालकर रखें और सुबह दोनों को पीसकर रस निकालें तथा उसमें दस ग्राम मिश्री मिलाकर पीलाने से लाभ मिलता है।
*. अडूसा के दस ग्राम पत्तों को पानी में उबालकर काढ़ा बना लें और शहद और मिश्री मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से जुकाम के कारण उत्पन्न सिरदर्द तुरंत दूर होता है।

अस्थमा रोग:

अडूसा और शहद मिलाकर दिन में तीन-चार बार चाटने से अस्थमा रोग से उत्पन्न खांसी से निजात पाया जा सकता है। इससे कफ को रोका जा सकता है।

Adusa ke fayde

रक्तपित्त-श्वास-कास :

अडूसा के पत्ते अथवा फूलों का स्वरस 1 पाव लेकर 3 पाव चीनी की चाशनी कर शर्बत बना लें। इसके सेवन से श्वास और रक्तपित्त में लाभ होता है
*अडूसा के पत्तों को पीसकर, किसी कपड़े में बांधकर निचोड़कर रस निकालें। बीस-बीस ग्राम रस दिन में दो-तीन बार पीने से नाक, मुंह और मलद्वार से होने वाली ब्लीडिंग बंद हो जाती है।

पित्तकफ-ज्वर :

अडूसा के पत्ते और पुष्पों का स्वरस मिश्री और शहद मिलाकर देने से पित्तकफ-ज्वर तथा अम्लपित्त में लाभ करता है।

खाज-खुजली:

अडूसा के पत्तों में हल्दी मिलाकर गोमूत्र के साथ पीसकर शरीर पर लेप करने से खाज-खुजली शीघ्र नष्ट होती है।

बिच्छू का जहर : 

काले अडूसा की जड़ को पानी में घिसकर बिच्छू द्वारा काटे हुए स्थान पर लगाने से जहर बेअसर हो जाता है।

खून रोकने के लिए :

अडूसा की जड़ और फूलों का काढ़ा करके घी में पका शहद मिलाकर खाने से यदि कहीं से रक्त आता हो, तो वह बन्द हो जाता है।

*अर्श में ब्लीडिंग -

अडूसा के पत्ते और सफेद चन्दन का चूर्ण मिलाकर रखें। प्रतिदिन पानी के साथ तीन ग्राम चूर्ण सेवन करने से अर्श में ब्लीडिंग की समस्या से निजात मिलता है।

टाइफस ज्वर -

अडूसा के पत्तों का रस निकालकर उसमें तुलसी और अदरक का रस तथा मुलहठी का चूर्ण और शहद मिलाकर सेवन करने से टाइफस ज्वर से निजात मिलता है।


सिर दर्द में आराम : 

अडूसा के फूलों को सुखाकर उसे कूट-पीस लें। उसके साथ थोड़ी सी मात्रा में गुड़ मिलाकर उसकी छोटी छोटी गोलियाँ बना लें। रोजाना एक गोली के सेवन से सिर दर्द की समस्या खत्म हो जाती है।

ज्वर :

अडूसा के मूल का क्वाथ देने से ज्वर को लाभ होता है

*मासिक धर्म में अवरोध-

लड़कियों को मासिक धर्म में अवरोध होने पर अडूसा के पत्ते दस ग्राम और मूली के बीज तीन ग्राम, गाजर के बीज तीन ग्राम मिलाकर पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर छानकर कुछ दिन तक सेवन करने से बहुत लाभ होता है।

जोड़ों का दर्द : 

अडूसा के पत्तियों को गर्म करके दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द फ़ौरन चला जाता है।

गुदा के मस्सों का दर्द :

वासा के पत्तों को पुटपाक की रीति से उबालकर सेंक करने से गुदा के मस्सों का दर्द मिट जाता है।

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मुनक्का खाने के स्वास्थ्य लाभ:Munakka khane ke 12 fayde



   

सूखे मेवे बहुत शक्तिवर्द्धक होते हैं। प्रोटीन से भरपूर सूखे मेवों में फाइबर, फाइटो न्यूट्रियंट्स एवं एन्टी ऑक्सीडेण्ट्स जैसे विटामिन ई एवं सेलेनियम की बहुलता होती है। मुनक्के, बादाम, किशमिश, काजू, मूंगफली, अखरोठ आदि मेवे नॉन वेज फूड का एक अच्छा ऑप्शन भी माने जाते हैं। मुनक्का खाने में जितना स्वादिष्ट है। उतना ही सेहत के लिए फायदेमंद भी है। साथ ही ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढाता है। इसमें फाइबर के गुण अधिक पाये जाते हैं।


( Raisin )

   मुनक्का जिसको हम बड़ी दाख के नाम से भी जानते हैं. किशमिश को पानी में कुछ देर भिगोकर रखने और फिर उसे सुखाने के बाद किशमिश की स्थिति को ही मुनक्का का नाम दिया गया है. इसकी प्रकृति या तासीर गर्म होती है किन्तु ये कई रोगों की दवाई के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इसीलिए इसका औषध में विशेष स्थान माना जाता है. इसमें पाए जाने वाले अनेक गुण हमें बिमारियों से दूर रखने और शरीर को रोगमुक्त बनाने में लाभकारी सिद्ध होते है. मुन्नका के लाभ ( Benefits of Raisins ) :

सर्दी जुकाम में ( Cure Cold ) 

जिन व्यक्तियों को लगातार सर्दी और जुकाम बना रहता है, वे 3 से 4 मुनक्का ठंडे पानी में भिगोकर रख दें और सुबह उठकर अच्छे से चबाकर खायें. रोगी का पुराना जुकाम दूर हो जाएगा और इस तरह सर्दी भी नही लगती है. इस उपाय को दिन में दो से तीन बार अपनाएँ.

खून बढ़ाने में ( Increase Blood ) : 

   रात को सोने से पहले 10 मुनक्का पानी में भिगोकर रख दें. सुबह इसको दूध के साथ मुनक्का उबाल लें. हल्का ठंडा करके पियें खून बढ़ जाता है. मुनक्का को अच्छे से चबा चबाकर खायें इससे खून बढ़ने लगता है. अच्छा परिणाम पाने के लिए एक से दो हफ्ते तक खायें.
. कब्ज :
   प्रतिदिन सोने से एक घंटा पहले दूध में उबाली गई 11 मुनक्का खूब चबा-चबाकर खाएं और दूध को भी पी लें। इस प्रयोग से कब्ज की समस्या में तत्काल फायदा होता है।
शरीर पुष्ट बनाने के लिए ( For Healthy Body ) : दिन में 8 से 10 मुनक्का का सेवन रोज़ करें. ऐसा करने से शरीर हष्ट पुष्ट बना रहता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है.

शरीर बलवान, ब्लड प्रेशर :

    12 मुनक्का, 5 छुहारे, 6 फूलमखाने दूध में मिलाकर खीर बनाकर सेवन करने से शरीर पुष्ट होता है।
जिनका ब्लडप्रेशर कम रहता है, उन्हें हमेशा अपने पास नमक वाले मुनक्का रखना चाहिए। यह ब्लडप्रेशर को सामान्य करने का सबसे आसान उपाय है।

गले के लिए ( Good For Throat ) :

 8 से 10 मुनक्का रात को पानी में भिगोकर रख दें. अगले दिन सुबह भीगे हुए मुनक्का को नाश्ते में लें. इसके अलावा सुबह और शाम 5 से 6 मुनक्का खायें. इसके लगातार प्रयोग से गले की खराश और नजले से आराम मिलता है. इस उपाय को आप हफ्ते में दो से तीन दिन अवश्य अपनाएँ.

 पेट के विकार ( For Stomach Diseases 

   मुनक्का को सुबह दूध में अच्छे से उबालकर दूध को पीजिये. मुनक्का में उपस्थित फाइबर पेट में उपस्थित ज़हरीले पदार्थो को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है. इसके अलावा मुनक्का खाने से कब्ज़ की समस्या से भी छुटकारा मिलता है. एक हफ्ते तक सेवन करके देखें. जल्द ही आराम मिलेगा.

आंखों की रौशनी, नाख़ून, सफ़ेद दाग, गर्भाशय :

  आंखों की ज्योति बढाने, नाखूनों की बीमारी होने पर, सफेद दाग, महिलाओं में गर्भाशय की समस्या में मुनक्का को दूध में उबालकर थोड़ा घी व मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है।
   जितना पच सके उतने मुनक्का रोज खाने से सातों धातुओं का पोषण होता है|मुनक्का को नमक के पानी में भिगोकर रखें और फिर सुखा लें. जिनका ब्लडप्रेशर कम होता है उनको लाभ मिलेगा.
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एलर्जी ( Remove Allergy ) : 

  जो व्यक्ति जुकाम से पीड़ित रहते है, गले में खराश या खुश्की बनी रहती है और गले में खुजली होती रहती है, उन रोगियों को मुनक्का का नित्य रूप से सेवन करना चाहिए. मुनक्का खाने से गले का हर रोग दूर होता है साथ ही मुनक्का कब्ज़ भगाने में भी लाभकारी सिद्ध होता है.

बच्चों की बिस्तर गिला करने की समस्या :

जो बच्चे रात्रि में बिस्तर गीला करते हों, उन्हें दो मुनक्का बीज निकालकर रात को एक सप्ताह तक खिलाएं।

पुराना बुखार ( Fever ) :

दस मुनक्का एक अंजीर के साथ सुबह पानी में भिगोकर रख दें।रात में सोने से पहले मुनक्का और अंजीर को दूध के साथ उबालकर इसका सेवन करें। ऐसा तीन दिन करें। कितना भी पुराना बुखार हो, ठीक हो जाएगा
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पोषण ( As a Nutrition ) :

 मुनक्का के अन्दर सातों धातुओं का पोषण होता है इसलिए मुनक्का का सेवन करना चाहिए. इससे शरीर को भरपूर पोषण प्रदान होता है और शरीर रोगों से दूर रहता है.

· आँखों की रौशनी ( Improve Eyesight ) : 

मुनक्का खाने से आँखों की रौशनी तेज़ होती है. मुनक्का को पानी में भिगोकर रख दें और सुबह उठकर अच्छे से चबायें. आँखों की रौशनी को तेज़ करता है और जलन भी दूर होती है.

वीर्य, ह्रदय और आंतो के विकार, नजला एलर्जी :

250 ग्राम दूध में 10 मुनक्का उबालें फिर दूध में एक चम्मच घी व खांड मिलाकर सुबह पीएं। इससे वीर्य के विकार दूर होते हैं। इसके उपयोग से हृदय, आंतों और खून के विकार दूर हो जाते हैं। यह कब्जनाशक है।
जिन व्यक्तियों के गले में निरंतर खराश रहती है या नजला एलर्जी के कारण गले में तकलीफ बनी रहती है, उन्हें सुबह-शाम दोनों वक्त चार-पांच मुनक्का बीजों को खूब चबाकर खा ला लें, लेकिन ऊपर से पानी ना पिएं। दस दिनों तक निरंतर ऐसा करें।
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26.5.20

सफ़ेद दाग जड़ से मिटाने के रामबाण नुस्खे:safed daag white spot




सफेद दाग एक तरह का त्वचा रोग है, जो किसी एलर्जी या त्वचा की समस्या के कारण होता है। कई बार ये जेनेटिक भी होता हे। पूरी दुनिया के दो प्रतिशत लोग इस बीमारी के शिकार हैं और भारत में तो चार प्रतिशत लोग इस से पीड़ित हैं। भारतीय समाज में तो इसे छुआ-छूत की बीमारी के तौर पर माना जाता है। इसे ठीक करने के लिए काफी धैर्य की जरूरत है। इसलिए डॉक्टर को दिखाने के साथ-साथ कुछ घरेलू उपायों से इस प्रॉब्लम को जल्द दूर किया जा सकता है। 
सफेद दाग को अंग्रेजी में ल्यूकोडरमा कहा जाता है। यह एक प्रकार का त्वचा का रोग है जिसमें त्वचा के रंग में सफेद चकते पड़ जाते हैं। ल्योकोडरमा यानी की सफेद दाग। यह शरीर के जिस हिस्से में होता है उसी जगह सफेद रंग के दाग बनने लगते हैं। धीरे-धीरे यह दाग बढ़ने लगते हैं। भारत में 2 फीसदी आबादी इस समस्या से परेशान है। समाज में यह धारण बन गई है की यह कुष्ठ रोग है पर यह कुष्ठ रोग नहीं होता। यह न तो कैंसर है, न ही कोढ़ रोग है |
सफेद दाग के मुख्य कारण है-
1. अत्याधिक चिंता करना और तनाव लेना
2. पेट में गैस की समस्या
3. लीवर की समस्या
4. विपरीत भोजन की वजह से जैसे मछली के साथ दूध का सेवन करना
5. आनुवंशिक समस्या
6. जलने या चोट लगना
7. पाचन तंत्र में कीड़े होना
8. कैलिश्यम की कमी
9. खून में खराबी
10. पेट में कीड़े होना आदि

सफेद दाग होना एक आम समस्या है यह दाग हाथों, पैरों, चेहरे, होठों आदि पर छोटे रूप में होते हैं फिर ये बडे़ सफेद दाग का रूप ले लेते हैं।यह संक्रामक रोग छोटे बच्चों को भी हो सकता है। सफेद दाग का इलाज आयुर्वेद में उपल्ब्ध है। अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। आयुर्वेद के अनुसार पित्त दोष की वजह से सफेद दाग की समस्या होती है।

 सफेद दाग के कारगर रामबाण इलाज इस प्रकार है-
सफेद धब्बों  को दूर करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है अपनी जीवन शैली और खान पान में परिवर्तन लाना।


:*करेले की सब्जी का सेवन अधिक से अधिक करना-

*खट्टे पादार्थ, ज्यादा नमक, मछली और दही आदि का परहेज करें|इनकी मनाही है|

अनार का प्रयोग -

अनार त्वचा रोग से संबंधित रोगों के लिए फायदेमंद होता है। सफेद दाग की समस्या से छुटकारा पाने के लिए आप अनार की पत्तियों को तोड़कर सुखा लें और उसका चूर्ण बना लें। इसके बाद इस चूर्ण की एक फंकी एक गिलास पानी मे मिलाकर पीने से सफेद दाग से जल्द ही राहत मिलती है।

शरीर को साफ रखें-

कई बार लोग यूरीन को रोक कर रखते हैं, जो कि बहुत गलत है। इससे शरीर के अंदर गंदे पदार्थों का जमावड़ा बन जाता है जिससे शरीर को नुकसान होता है। इसलिए हमेशा शरीर के विषैले तत्व को बाहर निकालें और शरीर को शुद्ध रखें।

हरड़ -

हरड़ को घिसकर लहसुन के रस में मिलाकर इसके पेस्ट को सफेद दाग पर लगाएं। एैसा करने से सफेद दाग ठीक हो जाते हैं।

उड़द की दाल -

रात में आप उड़द की दाल को पानी में भिगों लें और उसे दरदरा पीसकर नियमित कम से कम पाच महीनों तक सफेद दाग वाले हिस्से पर लगाएं इस उपाय से आपको सफेद दाग से मुक्ति मिलेगी।

तांबे में रखा हुआ पानी-

सफेद दाग safed daag  की समस्या को ठीक करने के लिए आप रात के समय में तांबे के लोटे में साफ पानी भर दें। और सुबह के समय एकदम खाली पेट इस पानी को पीएं। इस उपाय को लगातार कुछ महीनों तक करें। आपको इससे फायदा मिलेगा।
*नदी घाटी में मिलने वाली लाल मिट्टी और अदरक लाल मिट्टी जो नदी के किनारे मिलती है इसके प्रयोग से भी सफेद दाग से मुक्ति पाई जा सकती है। लाल मिट्टी में काॅपर पाया जाता है जो शरीर से सफेद दाग को खत्म करता है।

कैसे बनाएं लाल मिट्टी का पेस्ट-

सबसे पहले आप अदरक का पेस्ट बना लें कम से  कम पचास ग्राम। अब आप इस पेस्ट में लाल मिट्टी दो चम्मच डालकर इसे अच्छी तरह से मिलाकर पुनः पेस्ट बना लें। और इस लाल मिट्टी के बने पेस्ट को सफेद दाग वाली जगह पर लगाएं।

तुलसी तेल -

तुलसी के तेल से भी सफेद दाग ठीक होता है। आप रोज तुलसी के तेल से सफेद दाग के उपर मालिश करें।

सरसों तेल-

सरसों तेल स्किन से लेकर बालों तक के लिए फायदेमंद है। इस तेल में हल्दी पाउडर मिलाकर उसे सफेद दाग पर लगाएं। सूखने के बाद ठंडे पानी से धो लें। साबुन का इस्तेमाल कम से कम करें। चिकनाहट मिटाने के लिए बेसन का इस्तेमाल करें।
*गर्म दूध में पीसी हल्दी को डालकर दिन में 2 बार पीने से 5 महीने में सफेद दाग  safed daag से मुक्ति मिल जाती है।
*1 चम्मच हल्दी पाउडर, 2 चम्मच सरसों का तेल को मिलाएं फिर इस पेस्ट को सफेद चक्तों वाली जगह पर लगाएं और 15 मिनट तक रखने के बाद उस जगह को धो लें एैसा दिन में 3 से 4 बारी करते रहें।

अदरक की पत्तियां -

अदरक की पत्तियों से बने पेस्ट को पानी के साथ मिलाकर लेप तैयार करें। और फिर इस लेप को सफेद दाग वाली जगह पर सुबह और शाम में समय लगाएं।

बथुआ

ज्यादा से ज्यादा अपने खाने में बथुआ शामिल करें। रोज बथुआ उबाल कर उसके पानी से शरीर के सफेद दाग को धोएं। कच्चे बथुआ का रस दो कप निकाल कर, उसमें आधा कप तिल का तेल मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। जब केवल तेल रह जाएं तो उसे उतार लें। अब इसे रोज दाग पर लगाएं।

नारियल का तेल -

सफेद दाग दूर करने के लिए नारियल तेल से दिन में तीन बार मालिश करें। इससे शरीर में सफेद चकते कम होने लगते हैं।
*2 चम्मच अखरोट का पाउडर उसमें थोड़ा सा पानी मिलाकर पेस्ट बनाएं और इसे 20 मिनट तक लगा कर रखें दिन में 3 से 4 बार  एैसा करें।
साबुन और डिटरजेंट का इस्तेमाल न करें।
*मूली और मांस के साथ दूध न पीएं।
* नींद पूरी लें, कम से कम 8 घंटे की नींद लें।
*गाजर, लौकी और दालें अधिक से अधिक सेवन करें। 
*एलोवेरा का जूस पीएं।
 *7 बादाम नित्य सेवन करें। 
*सफेद तिल को खाने में इस्तेमाल करें।
* पालक, गाय का घी, खजूर का इस्तेमाल करते रहें।
*नीम की पत्तीयों का पेस्ट बनाएं उसे छननी में डालकर उसका रस निकाल लें फिर उसमें 1 चम्मच शहद डालें और मिलाकर दिन में 3 बार पीएं।

टमाटर का सेवन न करें -

सफेद दाग safed daag  की समस्या से ग्रसित लोगों को टमाटर और टमाटर से संबंधित किसी भी तरह की चीज का सेवन नहीं करना चाहिए। यानि की आपको कच्चा पका टमाटर और टमाटर की चटनी से भी परहेज करना चाहिए।
सफेद दाग की समस्या कोई लाइलाज बीमारी नहीं है। आयुर्वेदिक उपायों के जरिए इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। साथ ही यह बीमारी छूने से किसी से हाथ मिलाने से, या फिर शारीरिक संबंध बनाने से भी नहीं फैलती है।
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24.5.20

लसोड़ा (गुंदी)के स्वास्थ्य लाभ


लसोड़ा को हिन्दी में ‘गोंदी’ और ‘निसोरा’ भी कहते हैं। इसके फल सुपारी के बराबर होते हैं। कच्चा लसोड़़ा का साग और आचार भी बनाया जाता है। पके हुए लसोड़े मीठे होते हैं और इसके अन्दर गोंद की तरह चिकना और मीठा रस होता है। लसोड़ा मध्यभारत के वनों में देखा जा सकता है, यह एक विशाल पेड़ होता है जिसके पत्ते चिकने होते है, आदिवासी अक्सर इसके पत्तों को पान की तरह चबाते हैं।
इसकी लकड़ी इमारती उपयोग की होती है। इसे रेठु के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि इसका वानस्पतिक नाम कार्डिया डाईकोटोमा है। आदिवासी लसोड़ा का इस्तेमाल अनेक रोगनिवारणों के लिए करते हैं।

लसोड़ा के फायदें..

👉लसोड़ा की छाल को पानी में घिसकर प्राप्त रस को अतिसार से पीड़ित व्यक्ति को पिलाया जाए तो आराम मिलता है।
👉छाल के रस को अधिक मात्रा में लेकर इसे उबाला जाए और काढ़ा बनाकर पिया जाए तो गले की तमाम समस्याएं खत्म हो जाती है।
👉लसोड़े की छाल को पानी में उबालकर छान लें| इस पानी से गरारे करने से गले की आवाज खुल जाती है|
👉इसके बीजों को पीसकर दाद-खाज और खुजली वाले अंगो पर लगाया जाए, आराम मिलता है।
👉लसोड़ा के फलों को सुखाकर चूर्ण बनाया जाता है। इस चूर्ण को मैदा, बेसन और घी के साथ मिलाकर लड्डू बनाते हैं। इस लड्डू के सेवन शरीर को ताकत और स्फूर्ती मिलती है।
लसोड़ा के पत्तों का रस प्रमेह और प्रदर दोनों रोगों के लिए कारगर होता है। लसोड़ा की छाल का काढा तैयार कर माहवारी की समस्याओं से परेशान महिला को दिया जाए तो आराम मिलता है।
👉इसकी छाल की पानी के साथ उबाला जाए और जब पानी एक चौथाई शेष रहे तो इससे कुल्ला करने से मसूड़ों की सूजन, दांतो का दर्द और मुंह के छालों में आराम मिल जाता है।
👉छाल का काढ़ा और कपूर का मिश्रण तैयार कर सूजन वाले हिस्सों में मालिश की जाए तो फायदा होता है।

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23.5.20

कनेर के पौधे के गुण और औषधीय प्रयोग:kaner poudhe ke fayde





कनेर का पौधा भारत में हर स्थान पर पाया जाता है | इसका पौधा भारत के मंदिरों में , उद्यान में और घर में उपस्थित वाटिकाओं में लगायें जाते है | कनेर के पौधे की मुख्य रूप से तीन प्रजाति पाई जाती है | जैसे :- लाल कनेर , सफेद कनेर और पीले कनेर | इन प्रजाति पर सारा साल फूल आते रहते है | जंहा पर सफेद और पीली कनेर के पौधे होते है वह स्थान हरा – भरा बसंत के मौसम की तरह लगता है |
कनेर का पौधा एक झाड़ीनुमा होता है | इसकी ऊंचाई 10 से 12 फुट की होती है | कनेर के पौधे की शखाओं पर तीन – तीन के जोड़ें में पत्ते लगे हुए होते है | ये पत्ते 6 से ९ इंच लम्बे एक इंच चौड़े और नोकदार होते है | पीले कनेर के पौधे के पत्ते हरे चिकने चमकीले और छोटे होते है | लेकिन लाल कनेर और सफेद कनेर के पौधे के पत्ते रूखे होते है
कनेर के पौधे को अलग – अलग स्थान पर अलग अलग नाम से जाना जाता है | जैसे :-
१. संस्कृत में :- अश्वमारक , शतकुम्भ , हयमार ,करवीर
२. हिंदी में :- कनेर , कनैल
३. मराठी में :- कणहेर
४. बंगाली में :- करवी
५. अरबी में :- दिफ्ली
६. पंजाबी में :- कनिर
७. तेलगु में :- कस्तूरीपिटे
आदि नमो से जाना जाता है |
कनेर के पौधे में पाए जाने वाले रासायनिक घटक :- कनेर का पौधा पूरा विषेला होता है | इस पौधे में नेरीओडोरिन और कैरोबिन स्कोपोलिन पाया जाता है | इसकी पत्तियों में हृदय पदार्थ ओलिएन्डरन पाया जाता है | पीले कनेर में पेरुबोसाइड नामक तत्व पाया जाता है | इसकी भस्म में पोटाशियम लवण की मात्रा पाई जाती है |


कनेर के पौधे के गुण :- 

इसके उपयोग से कुष्टघन , व्रण , व्रण रोपण आदि बीमारियाँ ठीक की जाती है | इसके आलावा यह कफवात का शामक होता है | इसके उपयोग से विदाही , दीपन और पेट की जुडी हुई समस्या ठीक हो जाती है | यदि कनेर को उचित मात्रा मे प्रयोग किया जाता है तो यह अमृत के समान होती है लेकिन यदि इसका प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाता है तो यह जहर बन जाता है | कनेर का उपयोग रक्त की शुद्धी के लिए भी किया जाता है | यह एक तीव्र विष है जिसका उपयोग मुत्रक्रिछ और अश्मरी आदि रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है |

का औषधि के रूप में प्रयोग:-

दूब घास(Cynodon
dactylon) के पंचाग (फल,
फूल, जड़, तना, पत्ती) तथा
कनेर के पत्तोँ को पीस कर
कपड़े मेँ रखकर रस निकालेँ
और सिर के गंजे स्थान पर
लगायेँ तो सिर्फ 15 दिनोँ मेँ
ही उस स्थान पर नये बाल
दिखाई देने शुरू हो जाते हैँ।
तथा पूरे सिर मेँ तेल की
तरह इस रस का प्रयोग करेँ
तब सफेद बाल काले होने
लगते हैँ ।

नेत्र रोग :- 

आँखों के रोग को दूर करने के लिए पीले कनेर के पौधे की जड़ को सौंफ और करंज के साथ मिलाकर बारीक़ पीसकर एक लेप बनाएं | इस लेप को आँखों पर लगाने से पलकों की मुटाई जाला फूली और नजला आदि बीमारी ठीक हो जाती है |

हृदय शूल :- 

कनेर के पौधे की जड़ की छाल की 100 से 200 मिलीग्राम की मात्रा को भोजन के बाद खाने से हृदय की वेदना कम हो जाती है |

दातुन :- 

सफेद कनेर की पौधे की डाली से दातुन करने से हिलते हुए दांत मजबूत हो जाते है | इस पौधे का दातुन करने से अधिक लाभ मिलता है |

सिर दर्द :- 

कनेर के फूल और आंवले को कांजी में पीसकर लेप बनाएं | इस लेप को अपने सिर पर लगायें | इस प्रयोग से सिर का दर्द ठीक हो जाता है |

अर्श :-

 कनेर की जड़ को ठन्डे पानी में पीसकर लेप बनाएं | दस्त होने के बाद जो अर्श बाहर निकलता है उस पर यह लेप लगा लें | अर्श रोग का प्रभाव समाप्त हो जाता है |
*कनेर के 60-70 ग्राम पत्ते (लाल या पीली दोनों में से कोई भी या दोनों ही एक साथ ) लेकर उन्हें पहले अच्छे से सूखे कपडे से साफ़ कर लें ताकि उनपे जो मिटटी है वो निकल जाये,अब एक लीटर सरसों का तेल या नारियल का तेल या जेतून का तेल ले के उसमे पत्ते काट काट के डाल दें. अब तेल को गरम करने के लिए रख दें. जब सारे पत्ते जल कर काले पड़ जाएँ तो उन्हें निकाल कर फेंक दें और तेल को ठण्डा कर के छान लें और किसी बोतल में भर के रख लें|

प्रयोग विधि :- 

रोज़ जहाँ जहाँ पर भी बाल नहीं हैं वहां वहां थोडा सा तेल लेकर बस 2 मिनट मालिश करनी है और बस फिर भूल जाएँ अगले दिन तक| ये आप रात को सोते हुए भी लगा सकते हैं और दिन में काम पे जाने से पहले भी| बस एक महीने में आपको असर दिखना शुरू हो जायेगा|सिर्फ 10 दिन के अन्दर अन्दर बाल झड़ने बंद हो जायेंगे या बहुत ही कम|और नए बाल भी एक महीने मे आने शुरू हो जायेंगे|
नोट : ये उपाय पूरी तरह से अनुभूत है| कम से कम भी 10 लोगो पर इसका सफल परीक्षण किया है| एक औरत के 14 साल से बाल झड़ने बंद नहीं हो रहे थे, इस तेल से मात्र 6 दिन में बाल झड़ने बंद हो गये. 65 साल तक के आदमियों के बाल आते देखे हैं इस प्रयोग से जिनका के हमारे पास data भी पड़ा है|आप भी लाभ उठायें और अगर किसी को फरक पड़े तो कृपया हमे जरुर बताये|
चेतावनी: कनेर के पौधे में जो रस होता है वो बहुत ज़हरीला होता है. तो ये सिर्फ बाहरी प्रयोग के लिए है 
 *सफेद कनेर के पौधे के पीले पत्तों को अच्छी तरह सुखाकर बारीक़ पीस लें | इस पिसे हुए पत्ते को नाक से सूंघे | इससे आपको छीक आने लगेगी जिससे आपका सिर का दर्द ठीक हो जायेगा |
 कनेर के ताजा फूल की ५० ग्राम की मात्रा को 100 ग्राम मीठे तेल में पीसकर कम से कम एक सप्ताह तक रख दें | एक सप्ताह के बाद इसमें 200 ग्राम जैतून का तेल मिलाकर एक अच्छा सा मिश्रण तैयार करें | इस तेल की नियमित रूप से तीन बार मालिश करने से कामेन्द्रिय पर उभरी हुई नस की कमजोरी दूर हो जाती है इसके साथ पीठ दर्द और बदन दर्द को भी राहत मिलती है |

सफेद कनेर -

सफेद कनेर की जड़ की छाल बारीक पीसकर भटकटैया के रस में खरल करके 21 दिन इन्द्री की सुपारी छोड़कर लेप करने से तेजी आ जाती है।

पक्षघात के रोग में :-

सफेद कनेर के पौधे की जड़ की छाल , सफेद गूंजा की दाल तथा काले धतूरे के पौधे के पत्ते आदि को एक समान मात्रा में लेकर इनका कल्क तैयार कर लें | इसके बाद चार गुना पानी में कल्क के बराबर तेल मिलाकर किसी बर्तन में धीमी आंच पर पकाएं | जब केवल तेल रह जाये तो किसी सूती कपड़े से छानकर मालिश करें | इससे पक्षाघात का रोग ठीक हो जाता है |

चर्म रोग :- 

सफेद कनेर के पौधे की जड़ का क्वाथ बनाकर राई के तेल में उबालकर त्वचा पर लगाने से त्वचा सम्बन्धी रोग दूर हो जाते है |

कुष्ठ रोग :-

कनेर के पौधे की छाल का लेप बनाकर लगाने से चर्म कुष्ठ रोग दूर होता है |

अफीम की आदत से छुटकारे के लिए :-

कनेर के पौधे की जड़ का बारीक़ चूर्ण तैयार कर लें | इस चूर्ण को 100 मिलीग्राम की मात्रा में दूध के साथ दें | इससे कुछ हफ्तों में ही अफीम की आदत छुट जाएगी |

कृमि की बीमारी :- 

कनेर के पत्तों को तेल में पकाकर घाव पर बांधने से घाव के कीड़े मर जाते है |
कनेर के पौधे के पत्तों का क्वाथ से नियमित रूप से नहाने से कुष्ठ रोग काफी कम हो जाता है |
कनेर के पौधे के पत्तों को बारीक़ पीस लें | अब इसमें तेल मिलाकर लेप तैयार कर लें | शरीर में जंहा पर भी जोड़ों का दर्द है उस स्थान पर लेप लगा लें | इससे दर्द कम हो जाता है |

खुजली के लिए :

कनेर के पौधे के पत्तों को तेल में पका लें | इस तेल को खुजली वाले स्थान पर लगाने से एक घंटे के अंदर खुजली का प्रभाव कम हो जाता है |
पीले कनेर के पौधे की पत्तियां या जैतून का तेल में बनाया हुआ महलम को खुजली वाले स्थान पर लगायें | इससे हर तरह की खुजली ठीक हो जाती है |

सर्पदंश के लिए :-

 कनेर की जड़ की छाल को 125 से 250 मिलीग्राम की मात्रा में रोगी को देते रहे इसके आलावा आप कनेर के पौधे की पत्ती को थोड़ी – थोड़ी देर के अंतर पे दे सकते है | इस उपयोग से उल्टी के सहारे विष उतर जाता है |

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22.5.20

त्रिफला आयुर्वेद की महा औषधि


  त्रिफला आयुर्वेद में कई रोगों का सटीक इलाज करता है। यह 3 औषधियों से बनता है। बेहड, आंवला और हरड इन तीनों के मिश्रण से बना चूर्ण त्रिफला कहा जाता है। ये प्रकृति का इंसान के लिए रोगनाशक और आरोग्य देने वाली महत्वपूर्ण दवाई है। जिसके बारे में हर इंसान को पता होना चाहिए। ये एक तरह की एन्टिबायोटिक है। त्रिफला आपको किसी भी आयुर्वेदिक दुकान पर मिल सकता है। लेकिन आपको त्रिफला का सेवन कैसे करना है और कितनी मात्रा में करना है ये भी आपको पता होना चाहिए। हाल में हुए एक नए शोध में इस बात का खुलासा हुआ है की त्रिफला के सेवन से कैंसर के सेल नहीं बढ़ते । त्रिफला के नियमित सेवन से चर्म रोग, मूत्र रोग और सिर से संबन्धित बीमारियां जड़ से ख़त्म करती है।
 *संयमित आहार-विहार के साथ त्रिफला का सेवन करने वाले व्यक्तियों को ह्रदयरोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, नेत्ररोग, पेट के विकार, मोटापा आदि होने की संभावना नहीं होती। यह कोई 20 प्रकार के प्रमेह, विविध कुष्ठरोग, विषमज्वर व सूजन को नष्ट करता है। अस्थि, केश, दाँत व पाचन- संसथान को बलवान बनाता है। इसका नियमित सेवन शरीर को निरामय, सक्षम व फुर्तीला बनाता है।  
 गर्म पानी से सोते समय एक चम्मच लेने से क़ब्ज़ नही रहता!त्रिफला के फायदे-
*.रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होती है।
*.त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होती है।
*इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।
सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी लें। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगे।
*शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।
*एक चम्मच बारीक़ त्रिफला चूर्ण, गाय का घी 10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते हैं। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।
*त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते हैं।
त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।
*चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।
*एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजे पानी में दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुंह के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी।
*त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है।
*त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढ़ा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।
*त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।
*मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले। त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।
*त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।
*त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है।
*5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।
*5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।
*टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।
त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला, घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।
*त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।
*त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।
*डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।

त्रिफला के नुकसान-
यदि आप त्रिफला का प्रयोग बिना डाक्टर के परामर्श के करते हैं तो इससे डायरिया हो सकता है। क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी करता है। और इंसान को डायरिया हो जाता है।
 
ब्लड प्रेशर-
त्रिफला का अधिक सेवन से ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव होने लगता है। और ब्लड प्रेशर के मरीजों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
कई बार कुछ लोग पेट साफ करने के लिए त्रिफला का सेवन करने लगते हैं लेकिन ऐसे में वे नियमित रूप से त्रिफला का सेवन करने लगते हैं जिस वजह से उन्हें अनिद्रा  और बेचैनी की समस्या हो सकती है।
*इसमें कोइे दो राय नहीं है कि त्रिफला सेहत के लिए बेहद असरकारी और फायदेमंद दवा है। 
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