14.11.19

वजन कम करने के लिए पानी कितना ,कैसे पीएं?how much water to lose weight




सेहत के लिए सबसे जरुरी है भरपूर मात्रा में पानी पीना। खासकर, अगर आप वजन कम करने का सोच रहे हैं तो पानी और भी जरुरी हो जाता है। पानी पीने से कैलोरी इनटेक कम हो जाती है क्योंकि इससे आपका पेट भरा हुआ रहता है।

 शोधकर्ता इस बात पर पूर्ण सहमत हैं कि पानी कैलोरी के सेवन को कम करता है, मेटाबोलिस्म को बढ़ाता है और पूर्णता की भावना को बनाए रखता है। इसके साथ ही पानी कोशिकाओं को हाइड्रेटेड रखने,   डिटॉक्सिफिकेशन और वजन घटाने की प्रक्रियाओं में योगदान देता है। यही कारण है कि फिटनेस विशेषज्ञ व्यक्तियों को “अधिक पानी” पीने की सलाह देते हैं। आप इस लेख में पानी और वजन कम करने के बीच संबंध को जान पायेगें। इस आर्टिकल में आप निम्न प्रश्नों के बारे में जानेगें, जैसे- पानी कैसे वजन कम करने में मदद करता है? वजन घटाने के लिए कितना पानी पीना पर्याप्त है? और वजन कम करने के लिए रोज कितना पानी पीना चाहिए।
 रिसर्च द्वारा स्पष्ट किया गया है कि, पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से वजन में कमी आती है। पानी थर्मोजेनेसिस (thermogenesis) को बढ़ाने में मदद करता है। यह प्रक्रिया शरीर में ऊष्मा के उत्पादन अर्थात चयापचय की क्रिया को बढ़ाती है। इसके अतिरिक्त भोजन से पहले पानी पीने से, पूर्णता की भावना में वृद्धि होती है जिससे पेट भरा हुआ महसूस करता है और जिससे अधिक भोजन का सेवन करने से बचा जा सकता है।

वजन घटाने के लिए कैसे पीएं पानी?

सुबह उठने के बाद - 2 गिलास सादा या नींबू पानी
वर्कआउट से 1 घंटे पहले - 2 गिलास
वर्काउट के बाद - 2 गिलास
खाने से 30 मिनट पहले - 2 गिलास
स्नैक्स टाइम - 2 गिलास पानी या डिटॉक्स वॉटर |एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन नहीं करने वाले व्यक्तियों की अपेक्षा, उन लोगों में जो पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करते थे उनमे 12 सप्ताह में 44% अधिक वजन में कमी देखी गई।
 
गर्म पानी है ज्यादा फायदेमंद?

सर्दी हो या गर्मी, एक्सपर्ट हमेशा गुनगुना पानी पीने की ही सलाह देते हैं। दरअसल, ठंडे पानी से फैट जम जाता है और जल्दी नहीं पिघलता इसलिए हमेशा गुनगुना पानी पीने की सलाह दी जाती हैं। वहीं सुबह 1 गिलास गुनगुना पानी पीने से मेटाबॉलिज्म भी बूस्ट होता है, जिससे आप दिनभर एनर्जी के साथ वजन घटाने में भी काफी मदद मिलती है। यही नहीं, शरीर को डिटॉक्सीफाई करने के लिए गुनगुना पानी पीना फायदेमंद होता है।   पानी, लिपोलिसिस (lipolysis) की क्रिया को बढ़ाता है। लिपोलिसिस एक चयापचय प्रक्रिया है जिसके माध्यम से लिपिड ट्राइग्लिसराइड्स (lipid triglycerides) को ग्लिसरॉल और फैटी एसिड में हाइड्रोलाइज किया जाता है।
ऐसे आहार जिसमे अधिक पानी हो का सेवन करने से बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) कम हो जाता है, 
 अतः पानी का अधिक मात्रा में सेवन करने से व्यक्तियों को वजन कम करने में मदद मिल सकती है। पर्याप्त पानी का सेवन भूख में कमी करने, पूर्णता में वृद्धि करने, चयापचय और इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार करने, बीएमआई को कम करने और वसा को जलाने का काम करता है। पानी विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में भी मदद करता है, जिससे शरीर में सूजन और अन्य बीमारियों का ख़तरा कम होता है।
क्या पानी कैलोरी जला सकता है
 पीने का पानी थर्मोजेनेसिस (thermogenesis) को बढ़ाने में मदद करता है। थर्मोजेनेसिस जीवों में ऊष्मा के उत्पादन की एक प्रक्रिया है, जो कैलोरी को जलाने में मदद करती है। अधिक वजन और मोटापे से ग्रस्त बच्चों के एक अध्ययन में देखा गया है कि ठंडा पानी पीनेके बाद ऊर्जा की खपत 25% तक बढ़ गई। इसी के साथ एक अध्ययन में पाया कि 0.5 लीटर पानी पीने से अतिरिक्त 23 कैलोरी बर्न हो जाती है।
 पानी प्राकृतिक रूप से कैलोरी-मुक्त (calorie-free) होता है, इसलिए इसे आमतौर पर कम कैलोरी डाइट में शामिल किया जाता है। भोजन से पहले पानी पीने से मध्यम आयु वर्ग और वृद्ध व्यक्तियों को भूख कम लगती है। जिसके फलस्वरूप कैलोरी की मात्रा घटती है, और वजन में कमी आती है।
पेयजल या पीने का पानी भूख को प्रभावित करता है और पूर्णता में सुधार होता है। अध्ययनों से पता चला है कि नियमित रूप से भोजन से कुछ समय पहले पानी पीने से भूख में कमी आती है और 12 सप्ताह की अवधि में 2 किलो वजन कम हो सकता है। अतः वजन कम करने का प्रयास करने वाले व्यक्तियों को भोजन के 20 से 30 मिनट पहले पानी पीने की सलाह दी जाती है। एक अध्ययन से पता चला है कि नाश्ते से पहले पानी का सेवन करने से भोजन के दौरान कैलोरी की खपत 13% तक कम हो जाती है।
वजन घटाने के लिए एक दिन में कितना पानी पीना चाहिए
 सामान्य स्थितियों में, जब व्यक्ति वर्कआउट नहीं करता है, तब महिलाओं के लिए प्रतिदिन 2200 मिलीलीटर (2 लीटर) और पुरुषों को 3000 मिलीलीटर (3 लीटर) पानी पीना चाहिए। लेकिन यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से 60 मिनट तक कसरत (workout) करता है, तो उसे पानी का अधिक सेवन करने पर जोर देना चाहिए। एक्सरसाइज (exercising) करते समय 900 मिलीलीटर (लगभग 1 लीटर) पानी या हर 15 से 20 मिनट में 150-300 मिलीलीटर (mL) पानी घूंट-घूंट करके पीना आवश्यक होता है। जैसे-जैसे व्यायाम में वृद्धि की जाती है, तो सम्बंधित व्यक्ति को अपने आहार में हाइड्रेटिंग खाद्य पदार्थों और नारियल पानी को शामिल करने पर विचार करना चाहिए तथा इलेक्ट्रोलाइट संतुलन पर भी ध्यान रखना चाहिए।
 पानी का सेवन, किसी विशेष क्षेत्र के मौसम पर भी निर्भर करता है। शुष्क या आर्द्र क्षेत्रों में अधिक पसीना निकलने के कारण शरीर में पानी की कमी आ सकती है। अतः इस स्थिति में व्यक्ति को हर 15 मिनट में कम से कम 150 से 200 मिलीलीटर (mL) पानी पीना चाहिए।
 जो व्यक्ति औसतन वजन घटाने का प्रयास कर रहें है, उन्हें नियमित रूप से इंटेंसिव एक्सरसाइज करने के साथ-साथ महिलाओं को 4 से 5 लीटर प्रतिदिन और पुरुषों को 6 से 7 लीटर प्रतिदिन पानी पीने पर जोर देना चाहिए।
 वजन कम करने और सेल्युलर डिटॉक्सिफिकेशन (cellular detoxification) के लिए पर्याप्त इलेक्ट्रोलाइट्स की जरूरत होती है। वजन कम करने के लिए पानी की उच्च मात्रा वाले निम्नलिखित खाद्य पदार्थों का सेवन किया जा सकता हैं, जैसे:

अजवायन

खीरा
कीवी
बेल मिर्च
खट्टे फल
गाजर
अनानास
मूली , इत्यादि।

पर्याप्त पानी पीने के फायदे

पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से व्यक्ति को निम्न फायदे होते हैं जैसे:
पानी अनेक प्रकार के रोगों को रोकने में मदद करता है।
पानी शरीर में विषाक्तता को कम करने में मदद करता है।
पर्याप्त पानी का सेवन तनाव की स्थिति को कम करने में मदद करता है।
पानी मस्तिष्क के कार्य में सुधार करके मूड को बेहतर बनाने में मदद करता है।
पानी त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करता है।
फाइबर आहार के साथ अधिक पानी का सेवन, मल त्याग को बेहतर बनाने में मदद करता है।

पानी पीने का सही तरीका

-भोजन से आधा घंटे पहले कम से कम 2 गिलास पानी पीएं।
-भोजन करने के बाद भी तुरंत पानी ना पीएं। इसके 30 मिनट बाद पानी पीएं।
-बाहर से घर आने के बाद भी तुरंत पानी नहीं पीना चाहिए।
-वर्कआउट से पहले व बाद में 1-2 गिलास पानी जरूर पीएं। 
     

13.11.19

खजूर (छुहारा) अनेक मर्ज की एक औषधि







छुहारा और खजूर एक ही पेड़ की देन है। इन दोनों की तासीर गर्म होती है और ये दोनों शरीर को स्वस्थ रखने, मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।छुहारे को खारक भी कहते हैं। यह पिण्ड खजूर का सूखा हुआ रूप होता है, जैसे अंगूर का सूखा हुआ रूप किशमिश और मुनक्का होता है। छुहारे का प्रयोग मेवा के रूप में किया जाता है। इसके मुख्य भेद दो हैं- 1. खजूर और 2. पिण्ड खजूर। इसके फल लाल, भूरे या काले बेलन आकार के होते हैं, जो 6 महीनों में पकते हैं। इसके फल में एक बीज होता है और छिलका गूदेदार होता है।एक पेड़ 50 किलो फल हर मौसम में देता है। इसकी औसत उम्र 50 वर्ष आँकी गई है। इसकी खेती मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के सूखे क्षेत्रों में की जाती है। इराक, ईरान और सऊदी अरब में इसका उत्पादन सर्वाधिक होता है। ठंड के दिनों में खाया जाने वाला यह फल बहुत पौष्टिक होता है। इसमें 75 से 80 प्रतिशत ग्लूकोज होता है।
खजूर को सर्दियों का मेवा कहा जाता है और इसे इस मौसम में खाने से खास फायदे होते हैं। खजूर या पिंडखजूर कई प्रकार के पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसमें आयरन और फ्लोरिन भरपूर मात्रा में होते हैं इसके अलावा यह कई प्रकार के विटामिंस और मिनरल्स का बहुत ही खास स्त्रोत होता है।
गर्म तासीर होने के कारण सर्दियों में तो इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। खजूर में छुहारे से ज्यादा पौष्टिकता होती है। खजूर मिलता भी सर्दी में ही है।
गुण : यह शीतल, रस तथा पाक में मधुर, स्निग्ध, रुचिकारक, हृदय को प्रिय, भारी तृप्तिदायक, ग्राही, वीर्यवर्द्धक, बलदायक और क्षत, क्षय, रक्तपित्त, कोठे की वायु, उलटी, कफ, बुखार, अतिसार, भूख, प्यास, खाँसी, श्वास, दम, मूर्च्छा, वात और पित्त और मद्य सेवन से हुए रोगों को नष्ट करने वाला होता है। यह शीतवीर्य होता है, पर सूखने के बाद छुहारा गर्म प्रकृति का हो जाता है।
परिचय : यह 30 से 50 फुट ऊँचे वृक्ष का फल होता है। खजूर, पिण्ड खजूर और गोस्तन खजूर (छुहारा) ये तीन भेद भाव प्रकाश में बताए गए हैं। खजूर के पेड़ भारत में सर्वत्र पाए जाते हैं। सिन्ध और पंजाब में इसकी खेती विशेष रूप से की जाती है। पिण्ड खजूर उत्तरी अफ्रीका, मिस्र, सीरिया और अरब देशों में पैदा होता है। इसके वृक्ष से रस निकालकर नीरा बनाई जाती है।
उपयोग
खजूर के पेड़ से रस निकालकर 'नीरा' बनाई जाती है, जो तुरन्त पी ली जाए तो बहुत पौष्टिक और बलवर्द्धक होती है और कुछ समय तक रखी जाए तो शराब बन जाती है। इसके रस से गुड़ भी बनाया जाता है। इसका उपयोग वात और पित्त का शमन करने के लिए किया जाता है। यह पौष्टिक और मूत्रल है, हृदय और स्नायविक संस्थान को बल देने वाला तथा शुक्र दौर्बल्य दूर करने वाला होने से इन व्याधियों को नष्ट करने के लिए उपयोगी है। कुछ घरेलू इलाज में उपयोगी प्रयोग इस प्रकार हैं-
दुर्बलता : 4 छुहारे एक गिलास दूध में उबालकर ठण्डा कर लें। प्रातःकाल या रात को सोते समय, गुठली अलग कर दें और छुहारें को खूब चबा-चबाकर खाएँ और दूध पी जाएँ। लगातार 3-4 माह सेवन करने से शरीर का दुबलापन दूर होता है, चेहरा भर जाता है, सुन्दरता बढ़ती है, बाल लम्बे व घने होते हैं और बलवीर्य की वृद्धि होती है। यह प्रयोग नवयुवा, प्रौढ़ और वृद्ध आयु के स्त्री-पुरुष, सबके लिए उपयोगी और लाभकारी है।
इसका इस्तेमाल नियमित तौर पर करने से आप खुद को कई प्रकार के रोगों से दूर रख सकते हैं और यह कॉलेस्ट्राल कम रखने में भी मददगार है। खजूर को इस्तेमाल करने के अनगिनत फायदे हैं क्योंकि खजूर में कॉलेस्ट्रोल नही होता है और फेट का स्तर भी काफी कम होता है। खजूर में प्रोटीन के साथ साथ डाइटरी फाइबर और विटामिन B1,B2,B3,B5,A1 और c भरपूर मात्रा में होते हैं।
घाव और गुहेरी : छुहारे की गुठली को पानी के साथ पत्थर पर घिसकर, इसका लेप घाव पर लगाने से घाव ठीक होता है। आँख की पलक पर गुहेरी हो तो उस पर यह लेप लगाने से ठीक होती है।
रात में बिस्तर गीला करने वाले बच्चों के लिए खजूर अत्यधिक लाभकारी है। यह उन लोगों के लिए भी बहुत कारगर है जिन्हें बार-बार बाथरुम जाना पडता है
शीघ्रपतन : प्रातः खाली पेट दो छुहारे टोपी सहित खूब चबा-चबाकर दो सप्ताह तक खाएँ। तीसरे सप्ताह से 3 छुहारे लेने लगें और चौथे सप्ताह से 4 चार छुहारे से ज्यादा न लें। इस प्रयोग के साथ ही रात को सोते समय दो सप्ताह तक दो छुहारे, तीसरे सप्ताह में तीन छुहारे और चौथे सप्ताह से बारहवें सप्ताह तक यानी तीन माह पूरे होने तक चार छुहारे एक गिलास दूध में उबालकर, गुठली हटाकर, खूब चबा-चबाकर खाएँ और ऊपर से दूध पी लें। यह प्रयोग स्त्री-पुरुषों को अपूर्व शक्ति देने वाला, शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाने वाला तथा पुरुषों में शीघ्रपतन रोग को नष्ट करने वाला है।
*खजूर में शरीर को एनर्जी प्रदान करने की अद्भुत क्षमता होती है क्योंकि इसमें प्राक्रतिक शुगर जैसे की ग्लूकोज़, सुक्रोज़ और फ्रुक्टोज़ पाए जाते हैं। खजूर का भरपूर फायदा इसे दूध में मिलाकर इस्तेमाल करने से मिलता है।
दमा : दमा के रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाम 2-2 छुहारे खूब चबाकर खाना चाहिए। इससे फेफड़ों को शक्ति मिलती है और कफ व सर्दी का प्रकोप कम होता है।
खजूर उन लोगों के लिए अत्यधिक लाभकारी है जो वजन बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इसका उपयोग शराब पीने से शरीर को होने वाले नुकसान से बचने में भी किया जाता है।अगर पाचन शक्ति अच्छी हो तो खजूर खाना ज्यादा फायदेमंद है।
*अगर आप अपने शरीर का शुगर स्तर को खजूर के उपयोग से निय़ंत्रित कर सकते हैं। खजूर को शहद के साथ इस्तेमाल करने से डायरिया में भरपूर लाभ होता है।
*छुहारे का सेवन तो सालभर किया जा सकता है, क्योंकि यह सूखा फल बाजार में सालभर मिलता है।
खजूर से पेट का कैंसर भी ठीक होता है। इसके विषय में सबसे अच्छी बात यह है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है और इसके नियमित उपयोग से रतोंधी से भी छुटकारा मिलता है।
*छुहारा यानी सूखा हुआ खजूर आमाशय को बल प्रदान करता है।
*खजूर में पाए जाने वाली पोटेशियम की भरपूर और सोडियम की कम मात्रा के कारण से शरीर के नर्वस सिस्टम के लिए बेहद लाभकारी है। शोध से साबित हुआ है कि शरीर को पोटेशियम की काफी जरुरत होती है और इससे स्ट्रोक का खतरा कम होता है। खजूर शरीर में होने वाले LDL कॉलेस्ट्रोल के स्तर को भी कम रखकर आपके दिल के स्वास्थ्य की रक्षा करता है।
*छुहारे की तासीर गर्म होने से ठंड के दिनों में इसका सेवन नाड़ी के दर्द में भी आराम देता है।
*खजूर के उपयोग से निराशा को दूर किया जा सकता है और यह स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए अत्यधिक लाभकारी है। खजूर गर्भवती महिलाओं में होने वाली कई प्रकार की समस्याओं से छुटकारा दिलाता है क्योंकि यह बच्चेदानी की दीवार को मज़बूती प्रदान करता है। इससे बच्चों के पैदा होने की प्रक्रिया आसान हो जाती है और खून का स्त्राव भी कम होता है।
*छुहारा खुश्क फलों में गिना जाता है, जिसके प्रयोग से शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है। शरीर को शक्ति देने के लिए मेवों के साथ छुहारे का प्रयोग खासतौर पर किया जाता है।
. *सेक्सुअल स्टेमिना बढाने में खजूर की अहम भूमिका होती है। खजूर को रातभर बकरी के दूध में गलाकर सुबह पीस लेना चाहिए और फिर इसमें थोड़ा शहद और इलाइची मिलाकर सेवन करने से सेक्स संबंधी समस्याओं में बहुत लाभ होता है।
*छुहारे व खजूर दिल को शक्ति प्रदान करते हैं। यह शरीर में रक्त वृद्धि करते हैं।
*खजूर में पाया जाने वाला आयरन शरीर में खून की कमी यानी की एनीमिया को ठीक करने में बहुत कारगर है। *खजूर की मात्रा बढाकर खून की कमी को दूर किया जा सकता है। ख़जूर में फ्लूरिन भी पाया जाता है जिससे दांतों के क्षय होने की प्रकिया धीमी हो जाती है।
*साइटिका रोग से पीड़ित लोगों को इससे विशेष लाभ होता है।


*खजूर के सेवन से दमे के रोगियों के फेफड़ों से बलगम आसानी से निकल जाता है।
लकवा और सीने के दर्द की शिकायत को दूर करने में भी खजूर सहायता करता है।
*भूख बढ़ाने के लिए छुहारे का गूदा निकाल कर दूध में पकाएं। उसे थोड़ी देर पकने के बाद ठंडा करके पीस लें। यह दूध बहुत पौष्टिक होता है। इससे भूख बढ़ती है और खाना भी पच जाता है।
*प्रदर रोग स्त्रियों की बड़ी बीमारी है। छुआरे की गुठलियों को कूट कर घी में तल कर, गोपी चन्दन के साथ खाने से प्रदर रोग दूर हो जाता है।
*छुहारे को पानी में भिगो दें। गल जाने पर इन्हें हाथ से मसल दें। इस पानी का कुछ दिन प्रयोग करें, शारीरिक जलन दूर होगी।
*अगर आप पतले हैं और थोड़ा मोटा होना चाहते हैं तो छुहारा आपके लिए वरदान साबित हो सकता है, लेकिन अगर मोटे हैं तो इसका सेवन सावधानीपूर्वक करें।
*जुकाम से परेशान रहते हैं तो एक गिलास दूध में पांच दाने खजूर डालें। पांच दाने काली मिर्च, एक दाना इलायची और उसे अच्छी तरह उबाल कर उसमें एक चम्मच घी डाल कर रात में पी लें। सर्दी-जुकाम बिल्कुल ठीक हो जाएगा।
*दमा की शिकायत है तो दो-दो छुहारे सुबह-शाम चबा-चबा कर खाएं। इससे कफ व सर्दी से मुक्ति मिलती है।
घाव है तो छुहारे की गुठली को पानी के साथ पत्थर पर घिस कर उसका लेप घाव पर लगाएं, घाव तुरंत भर जाएगा।
*अगर शीघ्रपतन की समस्या से परेशान हैं तो तीन महीने तक छुहारे का सेवन आपको समस्या से मुक्ति दिला देगा। इसके लिए प्रात: खाली पेट दो छुहारे टोपी समेत दो सप्ताह तक खूब चबा-चबाकर खाएं। तीसरे सप्ताह में तीन छुहारे खाएं और चौथे सप्ताह से 12वें सप्ताह तक चार-चार छुहारों का रोज सेवन करें। इस समस्या से मुक्ति मिल जाएगी।

12.11.19

नपुंसकता की होम्योपैथिक औषधियाँ





   इस रोग में व्यक्ति को भोगेच्छा होती ही नहीं है और यदि भोगेच्छ होती भी है तो उसमें इतनी शक्ति नहीं रहती कि वह स्त्री के साथ भोग् कर सके । पूर्व में अत्यधिक भोग करना, पौष्टिक पदार्थों का अभाव, काम क्रिया से घृणा आदि कारणों से यह रोग होता है । बहुत से लोग शीघ्रपतन और नपुंसकता को एक ही समझ लेते हैं जो कि गलत है- दोनों ही अलग-अलग होते हैं । इसी प्रकार बहुत से लोग यह समझ लेते हैं कि किसी पुरुष में सन्तान पैदा करने की क्षमता न होने को नपुंसकता कहते हैं- यह विचार भी गलत है क्योंकि सन्तान पैदा कर सकने की क्षमता न होने को बाँझपन कहा जाता है । वास्तव में, नपुसंकता से तात्पर्य भोग की इच्छा या भोग की शक्ति (लिंग में कड़ापन) के अभाव से है । नपुंसकता को नामर्दी भी कहा जाता है ।

नपुंसकता की अमोघ औषधि – डामियाना, एसिड फॉस, अश्वगंधा, एवेना सैटाइवा, स्टेफिसेग्रिया- 

इन पाँचों दवाओं के मूल अर्क (मदर टिंक्चर) की दो-दो ड्राम की मात्रा में लेकर अच्छी तरह मिला लें और इस सारे मिश्रण को किसी काँच की शीशी में भरकर रख लें । इस मिश्रण में से पाँच-पाँच बूंदें आधा कप पानी में मिलाकर लें । इस प्रकार प्रतिदिन तीन बार लेने से कुछ ही दिनों में सैक्स संबंधी सभी प्रकार की कमजोरी निश्चित ही समाप्त हो जाती है और रोगी को बहुत लाभ होता है। इन पाँचों दवाओं का वर्णन इस प्रकार है ।

डामियाना –

इसे टर्नेरा एफ्रोडिसियाका भी कहते हैं । इसका प्रयोग ही शुक्र-क्षय के कारण होने वाली बीमारियों में होता है। यह दवा लिंग में कड़ापन न होना, पुरुषत्व शक्ति का घट जाना, अत्यधिक मैथुन या इन्द्रिय-दोष आदि पर काम करती है ।

सेलेनियम 6, 30 – 

वीर्य पतला पड़ जाये, आँखें धैस जायें, रोगी क्रमशः कमजोर होता जाये, लिंग में कड़ापन न आये, अनैच्छिक रूप से भी वीर्यपात हो जाता हो- इन सभी लक्षणों वाली नपुंसकता में दें ।

सैबाल सेरुलेटा Q – 

प्रतिदिन पाँच से दस बूंदों को पानी में मिलाकर लेना ही पर्याप्त हैं । इस दवा से शक्ति का अभाव दूर होता है । इस दवा का सेवन करते समय रोगी को ब्रह्मचर्य से रहना चाहिये और भोग नहीं करना चाहिये । वास्तव में, इस दवा का सेवन प्रारंभ करते ही शक्ति महसूस होगी, यदि उसी समय भोग किया गया तो शक्ति नष्ट हो जायेगी । अतः कुछ दिनों तक भोग से दूर रहते हुये इस दवा का सेवन करें ।

एनाकार्डियम 30, 200 –

 हस्तमैथुन या वेश्याभोग के कारण जो व्यक्ति स्वयं की अयोग्य मान लेते हैं और इसी कारण स्त्री से दूर रहते हैं उन्हें इस दवा का सेवन कुछ दिनों तक लगातार करना चाहिये और सेवन के समय भोग से दूर रहना चाहिये ।
एसिड फॉस – इस दवा का प्रयोग धातु-दौर्बल्य तथा वीर्यक्षयजनित बीमारियों में होता है । जो व्यक्ति हस्तमैथुन या अत्यधिक इन्द्रियचालन करते हैं तथा जिन्हें स्वप्नदोष आदि होने लगता है उनके लिये यह लाभप्रद है ।
लाइकोपोडियम 1M – डॉ० नैश के अनुसार यह नपुंसकता की बहुत कारगर दवा है । अत्यधिक मैथुन, हस्तमैथुन, वृद्धावस्था आदि के कारण आई हुई नपुंसकता में यह दवा लाभप्रद है । नपुंसकता की इससे बढ़कर अन्य दवा नहीं है । यह दीर्घ क्रिया करने वाली औषधि है अतः इसकी उच्वशक्ति की एक मात्रा देकर परिणाम की प्रतीक्षा करनी चाहिये । इसे बार-बार या जल्दी-जल्दी दोहराना नहीं चाहिये अन्यथा दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं ।
अश्वगन्धा – जिस प्रकार आयुर्वेद चिकित्सा-पद्धति में इसकी जड़ के रस का बड़े ही आदर से मर्दाना  कमजोरी हेतु प्रयोग करते हैं उसी प्रकार होमियोपैथी में भी अश्वगन्धा मूल अर्क का मर्दाना कमजोरी में प्रयोग होता है । इसके प्रयोग से शक्ति प्राप्त होती हैं ।
स्टेफिसेग्रिया – इस दवा की क्रिया प्रमुख रूप से मस्तिष्क एवं जननेन्द्रिय पर होती है। जो युवक हमेशा एकान्त पाकर काम इच्छाओं की पूर्ति (हस्तमैथुन) करते हैं व जिसकी वजह से उनके मस्तिष्क में दुर्बलता आ जाती है- उनके लिये उत्तम है । इसके सेवन से कई प्रकार के गुप्त रोगों में भी यथोचित परिणाम मिलते हैं ।
एवेना सैटाइवा – यह मूलतः ओट या जाई (जो निम्न किस्म की एक घास होती है और जिसे निर्धन वर्ग के लोग खाते हैं) है परन्तु यह एक शक्तिवर्द्धक टॉनिक भी है । किसी भी प्रकार के शारीरिक क्षय, कमजोरी आदि में इसका मूल अर्क प्रयोग होता है । अनजाने में वीर्य निकल जाना, रति-शक्ति का घट जाना, वीर्यक्षय के कारण कमजोरी आदि स्थितियों में यह दवा बहुत अच्छा काम करती है। 
विशिष्ट परामर्श-

नपुंसकता एक ऐसी समस्या है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. किसी भी पुरुष के एक पिता बनने में असमर्थ होने को पुरुष बांझपन या नपुंसकता कहा जाता है।यह तब होता है जब कोई पुरुष संभोग के लिए पर्याप्त इरेक्शन प्राप्त नहीं कर पाता या उसे मजबूत नहीं रख पाता. दामोदर चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र 
9826795656 द्वारा विकसित "नपुंसकता नाशक हर्बल औषधि" से सैंकड़ों व्यक्ति लाभान्वित हुए हैं। स्तंभन दोष दूर करने मे यह औषधि रामबाण सिद्ध होती है।

3.11.19

हृदय रोगों के आयुर्वेदिक ,घरेलू उपचार

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      हृदय हमारे शरीर का अति महत्वपूर्ण अंग है। हृदय का कार्य शरीर के सभी अवयवों को आक्सीजनयुक्त रुधिर पहुंचाना है और आक्सीजनरहित दूषित रक्त को वापस फ़ेफ़डों को पहुंचाना है। फ़ेफ़डे दूषित रक्त को आक्सीजन मिलाकर शुद्ध करते हैं। हृदय के कार्य में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न होने पर हृदय के कई प्रकार के रोग जन्म लेते हैं।हृदय संबंधी अधिकांश रोग कोरोनरी धमनी से जुडे होते हैं। कोरोनरी धमनी में विकार आ जाने पर हृदय की मांसपेशियो और हृदय को आवेष्टित करने वाले ऊतकों को आवश्यक मात्रा में रक्त नहीं पहुंच पाता है।यह स्थिति भयावह है और तत्काल सही उपचार नहीं मिलने पर रोगी की शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है। इसे हृदयाघात याने हार्ट अटैक कहते हैं। दर असल हृदय को खून ले जाने वाली नलियों में खून के थक्के जम जाने की वजह से रक्त का प्रवाह बाधित हो जाने से यह रोग पैदा होता है।
धमनी काठिन्य हृदय रोग में धमनियों का लचीलापन कम हो जाता है और धमनियां की भीतरी दीवारे संकुचित होने से रक्त परिसंचरण में व्यवधान आता है। इस स्थिति में शरीर के अंगों को पर्याप्त मात्रा में खून नहीं पहुंच पाता है। हृदय की मासपेशिया धीरे-धीरे कमजोर हो जाने की स्थिति को कार्डियोमायोपेथी कहा जाता है।हृदय शूल को एन्जाईना पेक्टोरिस कहा जाता है। धमनी कठोरता से पैदा होने वाले इस रोग में ्वक्ष में हृदय के आस-पास जोर का दर्द उठता है।रोगी तडप उठता है।
महिलाओं की तुलना में पुरुषों में हृदय संबंधी रोग ज्यादा देखने में आते है।
अब हम हृदय रोग के प्रमुख कारणों पर विचार प्रस्तुत करते हैं--

मोटापा
धमनी की कठोरता
उच्च रक्त चाप
हृदय को रक्त ले जाने वाली खून की नलियों में ब्लड क्लाट याने खून का थक्का जमना
विटामिन सी और बी काम्प्लेक्स की कमी होना
खून की नलियों में कोलेस्टरोल जमने से रक्त प्रवाह में बाधा पडने लगती है। कोलेस्टरोल मोम जैसा पदार्थ होता है जो हमारे शरीर के प्रत्येक हिस्से में पाया जाता है। वांछित मात्रा में कोलेस्टरोल का होना अच्छे स्वास्थ्य के लिये बेहद जरुरी है। लेकिन अधिक वसायुक्त्र भोजन पदार्थों का उपयोग करने से खराब कोलेस्टरोल जिसे लो डॆन्सिटी लाईपोप्रोटीन कहते हैं ,खून में बढने लगता है और अच्छी क्वालिटी का कोलेस्टरोल जिसे हाई डेन्सिटी लाईपोप्रोटीन कहते हैं ,की मात्रा कम होने लगती है। कोलेस्टरोल की बढी हुई मात्रा हृदय के रोगों का अहम कारण माना गया है। वर्तमान समय में गलत खान-पान और टेन्शन भरी जिन्दगी की वजह से हृदय रोग से मरने वाले लोगों का आंकडा बढता ही जा रहा है।
माडर्न मेडीसिन में हृदय रोगों के लिये अनेकों दवाएं आविष्कृत हो चुकी हैं। लेकिन कुदरती घरेलू पदार्थों का उपयोग कर हम दिल संबधी रोगों का सरलता से समाधान कर सकते हैं।सबदे अच्छी बात है कि ये उपचार आधुनिक चिकित्सा के साथ लेने में भी कोई हानि नहीं है।
१) लहसुन में एन्टिआक्सीडेन्ट तत्व होते है और हृदय रोगों में आशातीत लाभकारी घरेलू पदार्थ है।लहसुन में खून को पतला रखने का गुण होता है । इसके नियमित उपयोग से खून की नलियों में कोलेस्टरोल नहीं जमता है। हृदय रोगों से निजात पाने में लहसुन की उपयोगिता कई वैग्यानिक शोधों में प्रमाणित हो चुकी है। लहसुन की ४ कली चाकू से बारीक काटें,इसे ७५ ग्राम दूध में उबालें। मामूली गरम हालत में पी जाएं। भोजन पदार्थों में भी लहसून प्रचुरता से इस्तेमाल करें।
२) अंगूर हृदय रोगों में उपकारी है। जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक का दौरा पड चुका हो उसे कुछ दिनों तक केवल अंगूर के रस के आहार पर रखने के अच्छे परिणाम आते हैं।इसका उपयोग हृदय की बढी हुई धडकन को नियंत्रित करने में सफ़लतापूर्वक किया जा सकता है। हृद्शूल में भी लाभकारी है।
३) शकर कंद भूनकर खाना हृदय को सुरक्षित रखने में उपयोगी है। इसमें हृदय को पोषण देने वाले तत्व पाये जाते हैं। जब तक बाजार में शकरकंद उपलब्ध रहें उचित मात्रा में उपयोग करते रहना चाहिये।
५) आंवला विटामिन सी का कुदरती स्रोत है। अत: यह सभी प्रकार के दिल के रोगों में प्रयोजनीय है।
६) सेवफ़ल कमजोर हृदय वालों के लिये बेहद लाभकारी फ़ल है। सीजन में सेवफ़ल प्रचुरता से उपयोग करें।
७) प्याज हृदय रोगों में हितकारी है। रोज सुबह ५ मि लि प्याज का रस खाली पेट सेवन करना चाहिये। इससे खून में बढे हुए कोलेस्टरोल को नियंत्रित करने भी मदद मिलती है।
८) हृदय रोगियों के लिये धूम्रपान बेहद नुकसानदेह साबित हुआ है। धूम्र पान करने वालों को हृदय रोग होने की दूगनी संभावना रहती है।
९) जेतून का तैल हृदय रोगियों में परम हितकारी सिद्ध हुआ है। भोजन बनाने में अन्य तैलों की बजाय ओलिव आईल का ही इस्तेमाल करना चाहिये। ओलिव आईल के प्रयोग से खून में अच्छी क्वालिटी का कोलेस्टरोल(हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन) बढता है।
१०) निंबू हृदय रोगों में उपकारी फ़ल है। यह रक्तवहा नलिकाओं में कोलेस्टरोल नहीं जमने देता है। एक गिलास मामूली गरम जल में एक निंबू निचोडें,इसमें दो चम्मच शहद भी मिलाएं और पी जाएं। यह प्रयोग सुबह के वक्त करना चाहिये।
११) प्राकृतिक चिकित्सा में रात को सोने से पहिले मामूली गरम जल के टब में गले तक डूबना हृदय रोगियों के लिये हितकारी बताया गया है। १०-१५ मिनिट टब में बैठना चाहिये। यह प्रयोग हफ़्ते मॆ दो बार करना कर्तव्य है।
१२) कई अनुसंधानों में यह सामने आया है कि विटामिन ई हृदय रोगों में उपकारी है। यह हार्ट अटैक से बचाने वाला विटामिन है। इससे हमारे शरीर की रक्त कोषिकाओं में पर्याप्त आक्सीजन का संचार होता है।
१५)एक कटोरी लौकी के रस में पुदीने व तुलसी के ७-८ पत्तों का रस, २-४ काली मिर्च का चूर्ण व १ चुटकी सेंधा नमक मिलाकर पियें l इससे ह्रदय को बल मिलता है और पेट की गड़बडियां भी दूर हो जाती हैं l
१६) नींबू का रस, लहसुन का रस, अदरक का रस व सेवफल का सिरका समभाग मिलाकर धीमी आंच पर उबालें l एक चौथाई शेष रहने पर नीचे उतारकर ठंडा कर लें l तीन गुना शहद मिलाकर कांच की शीशी में भरकर रखें l प्रतिदिन सुबह खाली पेट २ चम्मच लें l इससे Blockage खुलने में मदद मिलेगी l
१७) अगर सेवफल का सिरका न मिले तो पान का रस, लहसुन का रस, अदरक का रस व शहद प्रत्येक १-१ चम्मच मिलाकर लें l इससे भी रक्तवाहिनियाँ साफ़ हो जाती हैं l लहसुन गरम पड़ता हो तो रात को खट्टी छाछ में भिगोकर रखें



१८) उड़द का आटा, मक्खन, अरंडी का तेल व शुद्ध गूगल संभाग मिलाके रगड़कर मिश्रण बना लें l सुबह स्नान के बाद ह्रदय स्थान पर इसका लेप करें l २ घंटे बाद गरम पानी से धो दें l इससे रक्तवाहिनियों में रक्त का संचारण सुचारू रूप से होने लगता है l
१९) ३ ग्राम ग्राम दालचीनी चूर्ण एक कटोरी दूध में उबालकर पियें l दालचीनी गरम पड़ती हो तो १ ग्राम यष्टिमधु चूर्ण मिला दें l इससे कोलेस्ट्रोल के अतिरिक्त मात्रा घट जाती है
२०) भोजन में लहसुन, किशमिश, पुदीना व हरा धनिया की चटनी लें l आवलें का चूर्ण, रस, चटनी, मुरब्बा आदि किसी भी रूप में नियमित सेवन करें l
२१) औषधि कल्पों में स्वर्ण मालती , जवाहरमोहरा पिष्टि, साबरशृंग भस्म, अर्जुन छाल का चूर्ण, दशमूल क्वाथ आदि हृदय रोगों का निर्मूलन करने में सक्षम है l
२२)
कोलेस्ट्रोल,बी पी , हार्ट अटैक और धमनियों के ब्लाकेज का यूनानी , आयुर्वेदिक इलाज-
अदरक (ginger juice) - यह खून को पतला करता हे वह दर्द को प्राकर्तिक तरीके से 90% तक कम करता हें।
लहसुन (garlic juice) - इसमें मौजूद allicin तत्व cholesterol व BP को कम करता है वह हार्ट ब्लॉकेज को खोलता हे।
नींबू (lemon juice) - इसमें मौजूद antioxidants,vitamin C वह potassium खून को साफ़ करते हैं व रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) बढ़ाते हैं।
एप्पल साइडर सिरका ( apple cider vinegar) - इसमें 90 प्रकार के तत्व हैं जो शरीर की सारी नसों को खोलते है, पेट साफ़ करते हे वह थकान को मिटती हें।





प्रोस्टेट ग्रंथि वृद्धि से मूत्रबाधा का 100%सफल इलाज


प्रोस्टेट एक छोटी सी ग्रंथि होती है जिसका आकार अ्खरोट के बराबर होता है। यह पुरुष के मूत्राषय के नीचे और मूत्रनली के आस-पास होती है।50 % लोगो को 60 साल की उम्र में और 30 % लोगो को 40 साल की उम्र में प्रोस्टेट की समस्या होने लगती है| प्रोस्टेट ग्लैंड को पुरुषो का दूसरा दिल माना जाता है| पौरूष ग्रंथि का मुख्य कार्य प्रजनन के लिए सीमेन बनाना और यूरीन के बहाव को कंट्रोल करना है| प्रोस्टेट ग्लैंड उम्र के साथ साथ अपने आप बढ़ती जाती है| प्रोस्टेट ग्लैंड अपने आप बढ़ने के कारण अधिक लम्बी हो जाती है| अधिक लम्बी होने पर प्रोस्टेट ग्लैंड शरीर पर हानिकारक असर डालती है| इस समस्या को बीपीएच (बीनीग्न प्रोस्टेट हाइपरप्लेसिया) भी कहते है|इसमें पुरुष के सेक्स हार्मोन प्रमुख भूमिका होती है। जैसे ही प्रोस्टेट बढती है मूत्र नली पर दवाब बढता है और पेशाब में रुकावट की स्थिति बनने लगती है। पेशाब पतली धार में ,थोडी-थौडी मात्रा में लेकिन बार-बार आता है कभी-कभी पेशाब टपकता हुआ बूंद बूंद जलन के साथ भी आता है। कभी-कभी पेशाब दो फ़ाड हो जाता है। रोगी मूत्र रोक नहीं पाता है। रात को बार -बार पेशाब के लिये उठना पडता जिससे नीद में व्यवधान पडता है।
यह रोग 70 की आयु के बाद उग्र हो जाता है और पेशाब पूरी तरह रुक जाने के बाद डॉक्टर केथेटर की नली लगाकर यूरिन बेग मे मूत्र करने का इंतजाम कर देते हैं|
यह देखने मे आता है कि 60 के पार 50% पुरुषों मे इस रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं जबकि 70-80 की आयु के लोगों मे 90% पुरुषों मे यह रोग प्रबल रूप मे दिखाई देता है|

प्रोस्टेट वृद्धि के लक्षण -

1) पेशाब करने मे कठिनाई महसूस होती है|
2) थोड़ी-थोड़ी देर मे पेशाब की हाजत मालूम होती है| रात को कई बार पेशाब के लिए उठना पड़ता है
3) पेशाब की धार चालू होने मे विलंब होना|
4) मूत्राशय पूरी तरह खाली नहीं होता , मूत्र की कुछ मात्रा मूत्राशय मे शेष रह जाती है | इस शेष रहे मूत्र मे रोगाणु पनपते हैं| जो किडनी मे खराबी पैदा करते हैं|
5) ऐसा प्रतीत होता है कि पेशाब की जोरदार हाजत हो रही है लेकिन बाथरूम जाने पर पेशाब की कुछ बूंदे निकलती हैं या रूक - रूक कर पेशाब होता है |
6) पेशाब मे जलन लगती है|
7) पेशाब कर चुकने के बाद भी पेशाब की बूंदें टपकती रहती हैं| याने मूत्र पर कंट्रोल नहीं रहता |
8) अंडकोष मे दर्द उठता रहता है|
9) संभोग मे दर्द के साथ वीर्य छूटता है |




आधुनिक चिकित्सा में इस रोग को स्थाई तौर पर ठीक करने वाली कोई सफ़ल औषधि इजाद नहीं हुई है। इसलिये रोगी को आपरेशन कराने की सलाह दी जाती है। इस आपरेशन में लगभग 25-30 हजार का खर्च बैठता है। ऐसा भी देखने में आता है कि आपरेशन के कुछ साल बाद फ़िर मूत्र रूकावट के हालात बनने लगते हैं।
अपने दीर्घकालिक अनुभव के आधार पर बुजुर्गों को परेशान करने वाली इस बीमारी को नियंत्रित करने वाले कुछ घरेलू उपचार यहां प्रस्तुत कर रहा हूं जिनका समुचित प्रयोग करने से इस व्याधि से मुक्ति पाई जा सकती है।

१) दिन में ३-४ लिटर पानी पीने की आदत डालें। लेकिन शाम को ६ बजे बाद जरुरत मुताबिक ही पानी पियें ताकि रात को बार बार पेशाब के लिये न उठना पडे।.
२) अलसी को मिक्सर में चलाकर पावडर बनालें । यह पावडर 15 ग्राम की मात्रा में पानी में घोलकर दिन में दो बार पीयें। बहुत लाभदायक उपचार है।
३) कद्दू में जिन्क पाया जाता है जो इस रोग में लाभदायक है। कद्दू के बीज की गिरी निकालकर तवे पर सेक लें। इसे मिक्सर में पीसकर पावडर बनालें। यह चूर्ण २० से ३० ग्राम की मात्रा में नित्य पानी के साथ लेने से प्रोस्टेट सिकुडकर मूत्र खुलासा होने लगता है।
४) चर्बीयुक्त ,वसायुक्त पदार्थों का सेवन बंद कर दें। मांस खाने से भी परहेज करें।
५) हर साल प्रोस्टेट की जांच कराते रहें ताकि प्रोस्टेट केंसर को प्रारंभिक हालत में ही पकडा जा सके।
 6) चाय और काफ़ी में केफ़िन तत्व पाया जात है। केफ़िन मूत्राषय की ग्रीवा को कठोर करता है और प्रोस्टेट रोगी की तकलीफ़ बढा देता है। इसलिये केफ़िन तत्व वाली चीजें इस्तेमाल न करें।

७) सोयाबीन में फ़ायटोएस्टोजीन्स होते हैं जो शरीर मे टेस्टोस्टरोन का लेविल कम करते हैं। रोज ३० ग्राम सोयाबीन के बीज गलाकर खाना लाभदायक उपचार है।
८) विटामिन सी का प्रयोग रक्त नलियों के अच्छे स्वास्थ्य के लिये जरूरी है। ५०० एम जी की 2 गोली प्रतिदिन लेना हितकर माना गया है।
9) दों टमाटर प्रतिदिन या हफ्ते मे 3-4 बार खाने से प्रोस्टेट केन्सर का खतरा 50% तक कम हो जाता है| इसमे पाये जाने वाले लायकोपिन, और एंटीआक्सीडेंट्स केन्सर की रोक थाम कर सकते हैं|

विशिष्ट परामर्श-



प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने मे हर्बल औषधि सर्वाधिक कारगर साबित हुई हैं| यहाँ तक कि लंबे समय से केथेटर नली लगी हुई मरीज को भी केथेटर मुक्त होकर स्वाभाविक तौर पर खुलकर पेशाब आने लगता है| प्रोस्टेट ग्रंथि के अन्य विकारों (मूत्र    जलन , बूंद बूंद पेशाब टपकना, रात को बार -बार  पेशाब आना,पेशाब दो फाड़)  मे रामबाण औषधि है|  केंसर की नोबत  नहीं आती| आपरेशन  से बचाने वाली औषधि हेतु वैध्य श्री दामोदर से 
98267-95656
 पर संपर्क कर सकते हैं|

लकवा रोग की आयुर्वेदिक व घरेलू चिकित्सा


आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के मतानुसार लकवा मस्तिष्क के रोग के कारण प्रकाश में आता है।इसमें अक्सर शरीर का दायां अथवा बायां हिस्सा प्रभावित होता है। मस्तिषक की नस में रक्त का थक्का जम जाता है या मस्तिष्क की किसी रक्त वाहिनी से रक्तस्राव होने लगता है। शरीर के किसी एक हिस्से का स्नायुमंडल अचानक काम करना बंद कर देता है याने उस भाग पर नियंत्रण नहीं रह जाता है।दिमाग में चक्कर आने और बेहोश होकर गिर पडने से अग क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
हाईब्लड प्रेशर भी लकवा का कारण हो सकता है। सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर २२० से ज्यादा होने पर लकवा की भूमिका तैयार हो सकती है।
पक्षाघात तब लगता है जब अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे रक्त आपूर्ति रुक जाती है या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आस-पास की जगह में खून भर जाता है। जिस तरह किसी व्यक्ति के हृदय में जब रक्त आपूर्ति का आभाव होता तो कहा जाता है कि उसे दिल का दौरा पड़ गया है उसी तरह जब मस्तिष्क में रक्त प्रवाह कम हो जाता है या मस्तिष्क में अचानक रक्तस्राव होने लगता है तो कहा जाता है कि आदमी को मस्तिष्क का दौरा पड़ गया है।
शरीर की सभी मांस पेशियों का नियंत्रण केंद्रीय तंत्रिकाकेंद्र (मस्तिष्क और मेरुरज्जु) की प्रेरक तंत्रिकाओं से, जो पेशियों तक जाकर उनमें प्रविष्ट होती हैं,से होता है। अत: स्पष्ट है कि मस्तिष्क से पेशी तक के नियंत्रणकारी अक्ष के किसी भाग में, या पेशी में हो, रोग हो जाने से पक्षाघात हो सकता है। सामान्य रूप में चोट, अर्बुद की दाब और नियंत्रणकारी अक्ष के किसी भाग के अपकर्ष आदि, किसी भी कारण से उत्पन्न प्रदाह का परिणाम आंशिक या पूर्ण पक्षाघात होता है।

लकवा के कारण-
लकवा हमेशा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र जिसमें मस्तिष्क एवं स्पाइरल कार्ड शामिल हैं में गड़बड़ी अथवा पेरिफेरल नर्वस सिस्टम में गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार है जिसके कारण होता है। निम्न कारण जो तंत्रिका की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार हैं जिसके कारण पक्षाघात होता है।
1: स्ट्रोक- स्ट्रोक लकवा का मुख्य कारण है। इसमें मस्तिष्क का निश्चित स्थान कार्य करना बंद कर देता है। जिससे शरीर को उचित संकेत भेज एवं प्राप्त नहीं कर पाते हैं। स्ट्रोक हाथ व पैर में लकवा की सम्भावना ज्यादा रहती है।
ट्यूमर: विभिन्न प्रकार के ट्यूमर मस्तिष्क अथवा स्पाइनल कार्ड में पाए जाते हैं वह वहां के रक्त प्रवाह को प्रभावित करके लकवा उत्पन्न करते हैं।
ट्रामा अथवा चोट: चोट के कारण अंदरूनी रक्त प्रवाह कारण मस्तिष्क एवं स्पाइनल कार्ड में रक्त प्रवाह कम हो जाता है जिससे लकवा हो सकता है।सिरेबरल पैल्सि : ये बच्चों में जन्म के समय होती हे जिसके कारण लकवा हो सकता है। इसके अतिरिक्त निम्न स्थितियां स्पाइनल कार्ड की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार हैं।

1: स्लिप डिस्क
2: न्यूरोडिजनरेटिक डिस्क
3:स्पोन्डोलाइसिस
इसके अतिरिक्त लकवा के अन्य कारण भी हो सकते हैं।
लकवा के प्रकार -
लकवा प्रमुख रूप से इतने प्रकार का हो सकता है।
*लकवा जिस अंग को प्रभावित करता है उसके अनुसार उसका विभाजन किया जाता है।
*मोनोप्लेजिया: इसमें शरीर का एक हाथ या पैर प्रभावित होता है।
*डिप्लेजिया: जिनमें शरीर के दोनों हाथ या पैर प्रभावित होते हैं।
*पैराप्लेजिया: जिसमें शरीर के दोनों धड़ प्रभावित हो जाते हैं।
*हेमिप्लेजिया: इसमें एक तरफ के अंग प्रभावित होते हैं।
*क्वाड्रिप्लेजिया: इसमें धड़ और चारों हाथ पैर प्रभावित होते हैं।
*लकवा का आक्रमण होने पर रोगी को किसी अच्छे अस्पताल में सघन चिकित्सा कक्ष में रखना उचित रहता है।इधर उधर देवी-देवता के चक्कर में समय नष्ट करना उचित नहीं है। अगर आपकी आस्था है तो कोई बात नहीं पहिले बडे अस्पताल का ईलाज करवाएं बाद में आस्थानुसार देवी-देवता का आशीर्वाद भी प्राप्त करलें।
*लकवा पडने के बाद अगर रोगी हृष्ट-पुष्ट है तो उसे ५ दिन का उपवास कराना चाहिये। कमजोर शरीर वाले के लिये ३ दिन के उपवास करना उत्तम है। उपवास की अवधि में रोगी को सिर्फ़ पानी में शहद मिलाकर देना चाहिये। एक गिलास जल में एक चम्मच शहद मिलाकर देना चाहिये। इस प्रक्रिया से रोगी के शरीर से विजातीय पदार्थों का निष्कासन होगा, और शरीर के अन्गों पर भोजन का भार नहीं पडने से नर्वस सिस्टम(नाडी मंडल) की ताकत पुन: लौटने में मदद मिलेगी।रोगी को सीलन रहित और तेज धूप रहित कमरे मे आरामदायक बिस्तर पर लिटाना चाहिये।
*उपवास के बाद रोगी को कबूतर का सूप देना चाहिये। कबूतर न मिले तो चिकन का सूप दे सकते हैं। शाकाहारी रोगी मूंग की दाल का पानी पियें। रोगी को कब्ज हो तो एनीमा दें।
*लहसुन की ३ कली पीसकर दो चम्मच शहद में मिलाकर रोगी को चटा दें।
*१० ग्राम सूखी अदरक और १० ग्राम बच पीसलें इसे ६० ग्राम शहद मिलावें। यह मिश्रण रोगी को ६ ग्राम रोज देते रहें।
*लकवा रोगी का ब्लड प्रेशर नियमित जांचते रहें। अगर रोगी के खून में कोलेस्ट्रोल का लेविल ज्यादा हो तो ईलाज करना वाहिये।रोगी तमाम नशीली चीजों से परहेज करे। भोजन में तेल,घी,मांस,मछली का उपयोग न करे।




बरसात में निकलने वाला लाल रंग का कीडा वीरबहूटी लकवा रोग में बेहद फ़ायदेमंद है। बीरबहूटी एकत्र करलें। छाया में सूखा लें। सरसों के तेल पकावें।इस तेल से लकवा रोगी की मालिश करें। कुछ ही हफ़्तों में रोगी ठीक हो जायेगा। इस तेल को तैयार करने मे निरगुन्डी की जड भी कूटकर डाल दी जावे तो दवा और शक्तिशाली बनेगी।एक बीरबहूटी केले में मिलाकर रोजाना देने से भी लकवा में अत्यन्त लाभ होता है।
सफ़ेद कनेर की जड की छाल और काला धतूरा के पत्ते बराबर वजन में लेकर सरसों के तेल में पकावें। यह तेल लकवाग्रस्त अंगों पर मालिश करें। अवश्य लाभ होगा।
लहसुन की 4 कली दूध में उबालकर लकवा रोगी को नित्य देते रहें। इससे ब्लडप्रेशर ठीक रहेगा और खून में थक्का भी नहीं जमेगा।
लकवा रोगी के परिजन का कर्तव्य है कि रोगी को सहारा देते हुए नियमित तौर पर चलने फ़िरने का व्यायाम कराते रहें। आधा-आधा घन्टे के लिये दिन में ३-४ बार रोगी को सहारा देकर चलाना चाहिये। थकावट ज्यादा मेहसूस होते ही विश्राम करने दें।

आयुर्वेदिक मत से लकवे की चिकित्सा-

अगर शरीर का कोई अंग या शरीर दायीं तरफ से लकवाग्रस्त है तो वृहतवातचिंतामणीरस अत्यंत उपयोगी औषधि है| उसमे से एक गोली सुबह ओर एक गोली साँय को शुद्ध शहद से लेवें।
अगर कोई बायीं तरफ से लकवाग्रस्त है उसको वीर-योगेन्द्र रस (वैदनाथ फार्मेसी) की सुबह साँय एक एक गोली शहद के साथ लेनी है।
गोली को शहद से कैसे ले? उसके लिए गोली को एक चम्मच मे रखकर दूसरे चम्मच से पीस ले, उसके बाद उसमे शहद मिलकर चाट लें। ये दवा निरंतर लेते रहना है, जब तक पीड़ित स्वस्थ न हो जाए।
पीड़ित व्यक्ति को मिस्सी रोटी (चने का आटा) और शुद्ध घी (मक्खन नहीं) का प्रयोग प्रचुर मात्र मे करना है। शहद का प्रयोग भी ज्यादा से ज्यादा अच्छा रहेगा।
लाल मिर्च, गुड़-शक्कर, कोई भी अचार, दही, छाछ, कोई भी सिरका, उड़द की दाल पूर्णतया वर्जित है। फल मे सिर्फ चीकू ओर पपीता ही लेना है, अन्य सभी फल वर्जित हैं।

लकवा से होने वाली जटिलताए और होम्योपैथी-

यदि लकवा लम्बे समय तक रहता है तो यह प्रभावित अंग को गम्भीर नुकसान पहुंचा सकता है। इसके कारण शरीर मात्र अस्थि का ढांचा बन जाता है। रोगी को देखने, सुनने व बोलने में परेशानी होने लगती है।
गम्भीर लकवाग्रस्त रोगी को चिकित्सालय में भर्ती कराना चाहिए। होम्योपैथी में लकवा का उपचार सम्भव है। होम्योपैथिक उपचार में रोगी के शारीरिक, मानसिक एवं अन्य लक्षणों को दृष्टिगत रखते हुए औषधि का चयन किया जाता है। कुछ दवाएं जो ज्यादा चलनमे है उनमें रस टॉस्क नाम की औषधि है जो शरीर के निचले हिस्से का लकवा इसके अतिरिक्त यदि लकवा गीला होने या नमी स्थानों में रहने से हो, यदि लकवा टाइफाइड के बुखार के बाद हो उसमें लाभकारी होती है। इसमें शरीर अंगों में जकडऩ में हो जाती तथा ये लकवा के पुराने मरीजों को बेहद लाभ पहुंचाता है। बच्चों में होने वाले लकवा में लाभकारी होता है।
क्रास्टिकम नाम की यह होम्योपैथी दवा ठंड के कारण लकवा मारने या सर्दियों के मौसम में पैरालिसिस का अटैक पडऩे पर प्रभावी हो सकती है। इसके अलावा जीभ चेहरा या गले पर अचानक पडऩे वाले लकवा में भी कारगर साबित होता है।
बेलाडोना नाम की औषधि से शरीर के सीधी तरफ का लकवा ठीक होता है। इस प्रकार के लकवा से प्रभावित व्यक्ति विक्षिप्त तक हो जाता है। इसमें इसी प्रकार नक्सवोमिका का प्रयोग तब लाभकारी होता है। शरीर का निचला हिस्सा लकवा से प्रभावित हो और उन अंगों हिलाने डुलाने में बहुत जोर लगाना पड़ता हो ऐसे लक्षणों में नक्सवोमिका रामबाण साबित हो सकती है।
लकवा के उपचार में प्रयुक्त होने वाली अन्य औषधियों में कॉस्टिकम, जैलसिमियम, पल्म्बम,डल्कामारा, सल्फर, काकुलस, नैट्रमम्योर, कैलमिया, अर्जेटम, नाइट्रिकम, एकोमाइट, एल्युमिना आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा लकवाग्रस्त रोगी को ताजा खाना देना चाहिए। इसके अतिरिक्त चावल और गेहूं के साथ ही मौसमी फल भी फायदा करते हैं|

  • पायरिया के घरेलू इलाज
  • चेहरे के तिल और मस्से इलाज
  • लाल मिर्च के औषधीय गुण
  • लाल प्याज से थायराईड का इलाज
  • जमालगोटा के औषधीय प्रयोग
  • एसिडिटी के घरेलू उपचार
  • नींबू व जीरा से वजन घटाएँ
  • सांस फूलने के उपचार
  • कत्था के चिकित्सा लाभ
  • गांठ गलाने के उपचार
  • चौलाई ,चंदलोई,खाटीभाजी सब्जी के स्वास्थ्य लाभ
  • मसूड़ों के सूजन के घरेलू उपचार
  • अनार खाने के स्वास्थ्य लाभ
  • इसबगोल के औषधीय उपयोग
  • अश्वगंधा के फायदे
  • लकवा की चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि वृहत वात चिंतामणि रस
  • मर्द को लंबी रेस का घोडा बनाने के अद्भुत नुस्खे
  • सदाबहार पौधे के चिकित्सा लाभ
  • कान बहने की समस्या के उपचार
  • पेट की सूजन गेस्ट्राईटिस के घरेलू उपचार
  • पैर के तलवों में जलन को दूर करने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • लकवा (पक्षाघात) के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे
  • डेंगूबुखार के आयुर्वेदिक नुस्खे
  • काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
  • हर्निया, आंत उतरना ,आंत्रवृद्धि के आयुर्वेदिक उपचार
  • पाइल्स (बवासीर) के घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
  • चिकनगुनिया के घरेलू उपचार
  • चिरायता के चिकित्सा -लाभ
  • ज्यादा पसीना होने के के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • पायरिया रोग के आयुर्वेदिक उपचार
  • व्हीटग्रास (गेहूं के जवारे) के रस और पाउडर के फायदे
  • घुटनों के दर्द को दूर करने के रामबाण उपाय
  • चेहरे के तिल और मस्से हटाने के उपचार
  • अस्थमा के कारण, लक्षण, उपचार और घरेलू नुस्खे
  • वृक्क अकर्मण्यता(kidney Failure) की रामबाण हर्बल औषधि
  • शहद के इतने सारे फायदे नहीं जानते होंगे आप!
  • वजन कम करने के उपचार
  • केले के स्वास्थ्य लाभ
  • लीवर रोगों की महौषधि भुई आंवला के फायदे
  • हरड़ के गुण व फायदे
  • कान मे मेल जमने से बहरापन होने पर करें ये उपचार
  • पेट की खराबी के घरेलू उपचार
  • शिवलिंगी बीज के चिकित्सा उपयोग




  • खांसी रोगी का आहार ,क्या खाएं क्या न खाएं |


    खांसी में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। जो लोग इससे जागरूक नहीं है, वे अक्सर सर्दी-खांसी से परेशान रहते हैं। इसलिए खांसी में अपने खानपान का बेहद ख्याल रखना जरूरी है। खांसी एक बहुत आम समस्या है। परिवार में किसी न किसी को खांसी की समस्या बनी ही रहती है। किसी को मौसम बदलने पर, तो किसी को हमेशा खांसी की समस्या रहती है। लेकिन कुछ चीजें नियमित रूप से खाने से खांसी से तुरंत राहत पाई जा सकती है।
    विशेषज्ञों के अनुसार, खांसी सांस की नली के ऊपरी हिस्से में होने वाला संक्रमण होता है, जो लगभग गले के आसपास के हिस्से को प्रभावित करता है। संक्रमण की वजह से ऐसा लगता है, जैसे कि गले में कोई चीज अटक रही हो, या कभी-कभी इरीटेशन भी महसूस होता है। इसे बाहर निकालने के लिए हमारा शरीर कोशिश करता है। इसी को खांसी होना कहते हैं।
    खांसी में कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे गले में दर्द होना, बार-बार गला साफ करना, आवाज बैठ जाना आदि। बहुत ज्यादा खांसी होने पर सांस फूलने लगती है और अगर ये ज्यादा बढ़ जाएं, तो खांसी के साथ खून भी आने लगता है। कभी-कभी होने वाली खांसी प्राकृतिक है। इससे शरीर में मौजूद विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं।
    बच्चों और बड़ों में संक्रमण के कारण तो खांसी होती ही है, लेकिन खाने-पीने की गलत आदतें भी खांसी की मुख्य वजह हैं। खांसी को दवाओं से तो ठीक किया ही जा सकता है, लेकिन अगर आप अपने खान-पान को लेकर थोड़ी सावधानी बरतें, यानि खांसी हो, तो क्या खाएं क्या न खाएं, अगर ये पता हो, तो खांसी जैसी समस्या से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है। आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे, कि खांसी होने पर कौन-कौन से खाद्य पदार्थ खाने चाहिए और कौन से खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए।
    खांसी अगर एक बार शुरू हो जाए, तो बमुश्किल ठीक होती है। बेशक ही आप दवा क्यों न ले लें, लेकिन जब तक सही खाद्य पदार्थ नहीं खाएंगे, तब तक खांसी में कोई अंतर दिखाई नहीं देगा।
    अक्सर लोगों को कहते सुना है, कि खांसी हो तो केला नहीं खाना चाहिए। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार केला आपकी खांसी का बेहतर इलाज कर सकता है। इसमें भरपूर मात्रा में पोटेशियम पाया जाता है और यह शरीर में पानी की कमी को दूर करता है। एक केले में करीब 100 कैलोरी मौजूद होती है, जो हमें ऊर्जा देती है। इतना ही नहीं, केले में पर्याप्त मात्रा में इलेक्ट्रोलाइट पाए जाते हैं, जो शरीर का इम्यूनिटी लेवल बढ़ाने में मदद करते हैं। इसलिए कोई कुछ भी कहे, खांसी में केले का सेवन तो करना ही चाहिए।
    खांसी में जरूर खाएं दालचीनी
    खांसी में दालचीनी का सेवन बहुत फायदेमंद होता है। अगर शहद के साथ पिसी हुई दालचीनी खाएंगे, तो खांसी में बहुत आराम मिलेगा। अगर आप ये नहीं कर सकते, तो पहले शहद और दालचीनी को मिलाकर इनका पाउडर बना लें और फिर पानी में मिलाकर पी लें। इससे भी खांसी बहुत जल्दी सही हो जाती है।
    खांसी में खा सकते हैं दही
    खांसी हो जाए, तो कई लोग दही खाने से बचते हैं। जबकि ऐसा करना गलत है। विशेषज्ञों के अनुसार, सीजनल खांसी में दही का सेवन करना अच्छा होता है, क्योंकि इसमें मौजूद बैक्टीरिया खाना पचाने में आपकी मदद करते हैं। लेकिन जिन लोगों को हमेशा ही खांसी बनी रहती है, उन्हें दही नहीं खाना चाहिए। हां, रात में भी दही न खाएं, क्योंकि इससे आपको कफ की समस्या हो सकती है।
    खांसी में जरूर लें विटामिन सी
    विटामिन सी से भरपूर फल और सब्जियां शरीर में इम्यूनिटी लेवल को बढ़ाती हैं। इससे हड्डियों और मांसपेशियों में भी मजबूती आती है। विटामिन सी आपको टमाटर, संतरा, पपीता, अमरूद आदि से मिल जाता है।
    खांसी में खाना चाहिए कच्चा लहसुन
    लहसुन खांसी से बहुत बचाव करता है। पूरी तरह से खांसी को रोकने के लिए लहसुन जरूर खाएं। लहसुन में प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने वाले गुण होते हैं। यदि आप कर सकते हैं, तो नियमित रूप से कच्चे लहसुन का सेवन करें। आप चाहें, तो लहसुन के सप्लीमेंट भी ले सकते हैं। खांसी के लिए लहसुन सबसे अच्छा घरेलू उपाय है।
    खांसी में चबाकर खाएं तुलसी
    खांसी और सीने में जलन से तुंरत राहत पाने के लिए तुलसी बहुत फायदेमंद है। इसके लिए तुलसी के कुछ पत्तों का पेस्ट बनाकर इसे गर्म करें। अब इस पेस्ट को अपनी छाती पर लगाएं। खांसी से बहुत आराम मिलेगा। आप चाहें तो इसके पत्तों को चबाकर खा भी सकते हैं।
    खांसी में फायदेमंद लौंग
    लौंग बेशक दिखने में बहुत छोटी होती है, लेकिन खांसी जैसी समस्या में भी बहुत काम आती है। लौंग का उपयोग सदियों से जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता रहा है। इसमें एंटीफंगल, एंटीबैक्टीरियल, एंटीइंफ्लेमेट्री और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, जो खांसी से राहत दिलाने में मदद करते हैं। खांसी होने पर दो से तीन लौंग मुंह में रखें और चबाएं। इसका रस गले तक जाने दें। इससे गले में संक्रमण के साथ खांसी भी कम हो जाएगी
    खांसी में खाएं शहद
    चाय या गर्म नींबू पानी में शहद मिलाकर पीने से खांसी में काफी हद तक आराम मिलता है। शहद गले में खराश को शांत करने का अच्छा तरीका है। शहद में रोगाणुरोधी गुण होते हैं, जो गले में जलन और सूजन की समस्या से निजात दिलाने में मदद करते हैं। से छुटकारा पाने के लिए रोज एक से दो चम्मच शहद जरूर खाएं, इससे बहुत आराम मिलेगा और नींद भी अच्छी आएगी।
    खांसी ठीक करे काली मिर्च
    काली मिर्च किसी भी रेसिपी को तैयार करते समय सबसे आम और लोकप्रिय मसाला है। यह खांसी से राहत पाने का प्राकृतिक उपचार भी है। इसे आप शहद या चीनी जैसे स्वीटनर के साथ ले सकते हैं। इसके अलावा इसे लेने का एक अन्य तरीका भी है। पहले दो कप पानी लें और इसमें पिसी हुई काली मिर्च डालें। तब तक उबालें, जब तक यह उबल कर आधा न हो जाए। इसे ठंडा होने दें और रात को सोने से पहले पी लें। सुबह तक आपको खांसी में एक महत्वपूर्ण सुधार दिखाई देगा।
    खांसी होने पर खाएं गुड़
    अगर किसी को भी ज्यादा दिनों तक खांसी चल रही है, तो गुड़ खाना बहुत फायदेमंद है। खाने में भी चीनी के बजाए गुड़ का सेवन करें। इसके लिए गुड़ को अदरक के साथ गर्म करके खाने से गले की खराश और जलन में राहत मिलती है।
    प्याज में हैं खांसी रोकने के गुण
    प्याज में भी खांसी से राहत देने वाले गुण होते हैं। प्याज में नेचुरल एंटीबायोटिक और एक्सपेक्टोरेंट गुण होते हैं, जो फेफड़ों में जमे बलगम को बाहर निकालते हैं। यह सूखी और गीली खांसी में बेहद फायदेमंद है। आप चाहें, तो ताजा प्याज की स्लाइस काटकर खा सकते हैं या फिर एक छोटी प्याज को टुकड़ों में काटकर पीस लें और इसका रस निकालकर इसमें बराबर मात्रा में शहद मिलाएं। इस पेस्ट को रोजाना दिन में दो बार पीने से खांसी गायब हो जाएगी।
    खांसी से छुटकारा दिलाए हल्दी
    हल्दी प्रभावी रूप से खांसी से छुटकारा दिलाती है। हल्दी में प्रकिर्तिक चिकित्सा गुण होते हैं, जो खांसी से राहत दिलाने के लिए बहुत अच्छे हैं। एक चुटकी हल्दी में एक चम्मच शहद मिलाएं। इस पेस्ट को रोजाना दिन में दो बार लें। खांसी नियंत्रण में आ जाएगी।
    खांसी होने पर खाएं अजवाइन
    अजवाइन खांसी का अच्छा प्राकृतिक उपचार है। यह सूखी और गीली खांसी से राहत देने में बहुत उपयोगी है। थोड़े से पानी में अजवाइन को उबालकर ठंडा कर लें। इसका पानी पीएं और अजवाइन को चबा लें। खांसी से बहुत राहत मिलेगी।
    खांसी में पीएं अदरक की चाय
    खांसी होने पर अदरक की चाय पीना बहुत अच्छा होता है। इससे गले में कफ से आराम मिलता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है, जिससे संक्रमण से लड़ने की क्षमता प्रदान होती है। इसके अलावा अदरक में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं, जो श्वसन प्रणाली को संक्रमित करने वाले रोगाणुओं का नाश करने में बहुत मददगार होते हैं।
    खांसी में खाना चाहिए अनानास
    मेलीन, अनानास में स्वाभाविक रूप से पाए जाने वाले एंजाइमों का मिश्रण, जो खांसी और बलगम को दबाने में मदद कर सकता है। यदि आप खासी से जल्‍दी राहत पाना चाहते हैं तो अनानास खा सकते हैं।
    खांसी में दूध नहीं पीना चाहिए
    खांसी में दूध पीने से बचें, वो ही अच्छा है। क्योंकि दूध बलगम को बढ़ा सकता है। कोई भी डेयरी उत्पाद या दूध फेफड़े और गले सहित श्वसन पथ में बलगम का उत्पादन करता है। इसलिए खासी होने पर अपने आहार में दूध को शामिल नहीं करना चाहिए।
    खांसी होने पर खट्टे फल न खाएं
    खट्टे फल जैसे संतरा, नींबू आदि अगर आपको बेहद पसंद हैं, तो खांसी होने पर इनसे परहेज करें। क्योंकि इन फलों में साइट्रिक एसिड होता है, जो गले में जलन पैदा कर खांसी को और तेज करता है। इनकी बजाय आप उन फलों का सेवन करें, जिनमें पानी की मात्रा ज्यादा होती है, जैसे नाशपति, तरबूज, अनानास, आडू आदि खाएं।
    खांसी में कभी न पीएं जूस
    स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार खांसी होने पर भूल कर भी डिब्बाबंद जूस न पीएं। इनमें हाई शुगर इंग्रीडिएंट्स होते हैं, जो बीमारी से निपटने के लिए सफेद रक्त कोशिकाओं की क्षमता को और कम कर देते हैं। जूस में मौजूद एसिड खांसी में आपके गले को और इरीटेट कर देता है।
    खांसी में न खाएं नॉनवेज –
    अगर आपको कफ या खांसी की समस्या बढ़ गई है, तो नॉनवेज बिल्कुल न खाएं। नॉनवेज से संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। अगर लगातार खांसी हो रही है, तो जब तक यह ठीक न हो जाए, नॉनवेज से दूरी बनाए रखें।
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