15.4.17

होम्योपैथिक सचित्र मैटेरिया मेडिका/ होम्योपैथिक औषधियों की जानकारी -डॉ॰आलोक



   औषधियों की शक्ति तथा उनके देने के विषय में यह जान लेना आवश्यक है कि 30 तथा उसके नीचे की शक्तियां दोहराई जा सकती हैं क्योंकि इनका गहरा असर नहीं होता। 200 तथा इस से ऊपर की शक्तियों का गहरा असर होता है, कई दिन तक रहता है, इसलिये उन्हें दोहराना नहीं चाहिये। ‘तरुण'(Acute) रोगों में निम्न तथा ‘जीर्ण’ (Chronic) रोगों में उच्च-शक्ति दी जाती है। कई औषधियां निम्न-शक्ति में ही काम करती हैं, कई उच्च-शक्ति में ही काम करती हैं, परन्तु अनुभव सिद्ध करता है कि अधिकतर औषधियों का प्रभाव 30 तथा इस से भी उच्च-शक्ति में चिर-स्थायी होता है। औषधि की शक्ति तथा रोग की गहराई में मिलान होने से रोग जल्दी जाता है, इसलिये कभी-कभी रोगी तथा औषधि के लक्षण मिलने पर भी ठीक शक्ति न होने के कारण रोगी जल्दी नीरोग नहीं होते। साधारणत: 30 शक्ति से ही इलाज शुरू करना उचित है। जब औषधि से आराम होने लगे तो औषधि देना बन्द कर देना चाहिये, अन्यथा हानि हो सकती है। अगर औषधि से लाभ होना बन्द हो जाय तो वह दोहराई जा सकती है, या लक्षणानुसार दूसरी औषधि दी जा सकती है। होम्योपैथी का बक्सा बनाते हुए मुख्य-मुख्य औषधियों की 30, 200 तथा 1000 शक्ति का संग्रह कर लेना ठीक रहता है।
(1) Abrotanum 30 – नीचे के अंगों का सूखा-रोग पर भूख अच्छी; दस्त ठीक होने पर जोड़ों में गठिये का दर्द या दर्द ठीक हो तो बवासीर की शिकायत; बच्चों में नकसीर; बच्चों के पोते बढ़ना।
(2) Aconite 3x, 3, 30, 200 –

आँख, मूत्राशय आदि के ऑपरेशन के बाद; सूखी, ठंडी हवा लगने से यकायक कोई भी बीमारी (बुखार, आंख आना, दांत का दर्द, जुकाम, खांसी आदि); अत्यन्त गर्म मौसम में पेट में आतों की शिकायत-दस्त; किसी नई बीमारी के शुरू में; भय से उत्पन्न रोग; बुखार में 1x, 2x, 3 आदि दें, दस्त आकर बुखार उतर जायेगा; स्नायविक रोगों में 30, 200 दें। सर्दी लगने से लकवा हो जाय तो शुरू-शुरू में 30, 200 देने से ठीक हो जायेगा। नवीन अर्थात् ‘तरुण’ (एक्यूट) रोगों में इसे दोहराओ।
(3) Actaea racemosa (Cimicifuga) 3, 30 –

निम्न-शक्ति देते रहने से प्रसव आसान हो जाता है। कॉलोफाइलम 30 प्रसव के महीना भर पहले देते रहने से भी यह काम हो सकता है। यह गर्भपात की प्रवृत्ति को रोकता है; जितना मासिक जाता है उतना ही दर्द बढ़ता है जो विचित्र बात है; बच्चेदानी या डिम्ब-ग्रन्थि (ओवरी) के रोगों के कारण चलते-फिरते दर्द।

(4) Aesculus 3, 30, 1M – बवासीर; चिनका (कमर का दर्द)।


(5) Aethusa 30 – बच्चे का दूध पीते ही कय कर देना; बच्चे की दांत निकलते समय के दस्त; पढ़ने में ध्यान केन्द्रित न हो सकना। डा० क्लार्क परीक्षा के दिनों में कमजोर दिमाग के बच्चों को Funk powders नाम से इस दवा के पाउडर दिया करते थे।



(6) Agaricus 30 – दायें हाथ तथा बायें पैर या बायें हाथ और दायें पैर में दर्द (Diogonal pains); अंगों का सुन्नपन; अंगों की फड़कन जो सोने पर नहीं रहती; क्षय-रोग की प्रथमावस्था; दिमागी थकावट में 3 शक्ति; सर्दी से त्वचा के शोथ में 200 शक्ति (Chilblain).


(7) Agnus castus 6 – पुरूष में नपुंसकता (स्त्री में संभोग की अनिच्छा में ओनोस्मोडियम 30 या C.M. से लाभ होता है।


(8) Allium cepa 3, 30 – जुकाम में नाक से जलनेवाला पर आँख से न जलनेवाला पानी बहना (युफ्रेशिया से उल्टा); लेटने पर गले में नजला टपकना; खुली हवा में ठीक परन्तु बन्द गर्म कमरे में जुकाम की तकलीफ बढ़ जाना। गले में खुरखुरी होने से जब रोगी खांसना शुरू करता है तो गला इतना पका हुआ महसूस होता है मानो खांसने से फट जायेगा – डॉ. डनहम के अनुसार यह लक्षण किसी अन्य दवा में नहीं है।



(9)Aloe 3, 30 – अंगूर के गुच्छों के-से बवासीर के मस्से; आंख आना; पेट की हवा के साथ टट्टी निकल पड़ना; खाने के बाद झट टट्टी को भागना; बच्चे को अनजाने सख्त लैंड कर देना। गुदा के रोग में 3 शक्ति की कुछ मात्राएं देकर इंतजार करो।
(10) Alumen 30, 200 – सख़्त कब्ज परन्तु इसमें निम्न-शक्ति नहीं देनी चाहिये। दमे में फिटकरी (एलूमेन) का चूर्ण 10 ग्रेन जिह्वा पर रखने से दमा रुक जाता है।
(11) Alumina 6, 30, 200 – पैरों का पक्षाघात; बुढ़ापे में पेशाब या टट्टी न उतरने में 6 शक्ति दें; सब तरह की खुश्की; बुढ़ापे के रोग; पेंटरों का पेट-दर्द जो सीसे के विष से, जो पेन्ट में होता है, हो जाता है।
(12) Ammonia carb 200 – इन्फ्लुएन्ज़ा या उसके बाद की खांसी; मासिक बहुत अधिक, जल्दी-जल्दी, काला, थक्केदारा में दें।


(13) Anacardium 200 – किसी भी रोग में खाली पेट में दर्द परन्तु खाने से आराम; बवासीर में 30 या 200 शक्ति प्रति दो घंटा दोहरानी चाहिये; मानसिक थकान या स्मृति-लोप में 1M लाभप्रद है।
(14) Antim Crud 6, 30, 200 – बदहजमी में जीभ पर अत्यन्त सफेद लेप; बवासीर में मस्सों में म्यूकस रिसते रहना; पैरों के तलुवों में गट्टे; हाथ-पैरों पर मस्से; मसूड़े दांतों से अलग हो जाने और दांतों में छेद होने पर।


(15) Antim tart 30, 200 – छाती में बलगम की घड़घड़ (न्यूमोनिया, दमा आदि में); निम्न-शक्ति से कभी-कभी रोग बढ़ जाता है।


(16) Apis 3, 30 – कहीं भी सूजन; आंख की निचली पलक की सूजन (ऊपर की पलक की सूजन में कैली कार्ब); बुखार में जाड़ा लगने की हालत में प्यास होना परन्तु पसीने की हालत में प्यास न होना; गर्भावस्था में निम्न-शक्ति से गर्भपात हो जाता है। पानी भर जाने के कारण सूजन होने में टिंचर या निम्न-शक्ति दो।
(17) Argentum Nitricum 30 – मीठा खाने की उत्कट इच्छा परन्तु मीठा खाने से दस्त आ जाना; गिर्जा, नाटकघर या वक्तृता देने जाने के समय दस्त आ जाना; परीक्षा के समय की घबराहट; गले में फांस-सी चुभना


(18) Arnica montana 200, 1M – ऑपरेशन के बाद या चोट की वजह से कोई भी बीमारी; मांस-पेशियों की कुचलन। नई चोट में 1x, 2x आदि और पुरानी चोट में 30, 200,1M आदि। मात्रा दोहराई जा सकती है। चोट पर टिंचर लगाओ परन्तु अगर चोट खुली हो तो टिंचर मत लगाओ।
(19) Arsenicum Album 12, 30, 200, 1M – 2x आदि ठीक भोजन के बाद देना चाहिये; आर्स आयोडाइड पानी के साथ नहीं देना चाहिये; किसी भी रोग में थोड़ी-थोड़ी देर बाद घूंट-घूंट पानी पीना; जलन; जलन में सेंक से आराम; दिन या रात को 1 से 3 बजे रोग का बढ़ना (दमा); मानसिक बेचैनी परन्तु शारीरिक कमजोरी ज़्यादा; खांसी के बाद दमे के-से लक्षण; जुकाम में या किसी रोग में जलनेवाला स्राव बहना; उक्त किसी लक्षण में पेट के रोगों में 2x, 3x आदि और त्वचा के तथा नर्वस रोगों में 30, 200 दो; पेट के रोग में इस से लाभ न हो तो आर्स आयोडाइड 3x दो।
(20) Asafoetida 2, 6, 30 – पेट से एक गोला गले तक उठता मालूम होना; पेट में गुड़गुड़ होना।



(21) Aurum Met.30, 200 – आत्मघात की प्रबल प्रवृति; हाई ब्लड प्रेशर में उच्च-शक्ति; सिफिलिस में 2x, 3x आदि। हाई ब्लड़ प्रेशर में फैगोपाइरम 3, 12x से भी लाभ होता है। डा० बर्नेट कहते हैं कि 2x ऑरम हृदय-रोग के लिये ठीक होता है।
(22) Bacillinum (Tuberculinum), 200 – क्षय रोग, अगर परिवार में क्षय रोग का इतिहास हो; टांसिल में 1M की एक मात्रा काफी है।


(23) Baryta carb 30 – बच्चे की शारीरिक तथा मानसिक बढ़न न होना-मूर्खता; बुढ़ापे के रोग। टांसिल की प्रवृत्ति को रोकने के लिये 30 या 200 शक्ति दो ।


(24) Belladonna 3, 6, 30, 200, 1 M – तेज बुखार, सिर दर्द, प्रचंड पागलपन; ऐंठन; बच्चों के अनेक रोगों की औषधि। ‘तरुण’ (एक्यूट) रोगों में इसे एकोनाइट की तरह दोहराना चाहिये।


(25) Berberis vulgaris Tincture, 6 – पित्त पथरी, पथरी से दर्द। टिंचर से लाभ होता है। गुर्दे या मूत्राशय की पथरी में हाइड्रेन्जिया का टिंचर दो। पथरी की प्रवृत्ति रोकने लिये चायना 30 महीने भर दो।
(26) Borax 3 विचूर्ण,30 – मुंह के छाले; बच्चों के मुंह के छालों के साथ पेट-दर्द और दस्त; स्त्रियों में श्वेत प्रदर; बांझपन; बच्चों के किसी रोग मे नीचे के गति से भय, उसका पालने में डालते समय भयभीत होकर चिल्लाने लगना। गला बैठ जाय तो चने बराबर सुहागा (बोरैक्स) मुंह में घुल जाने पर जादू के तौर पर गला खुल जाता है।


(27) Bryonia alba 12, 30, 200, 1M – खुश्क खांसी; छाती में सांस लेने से भी दर्द, जोड़ों में जरा भी हिलने से दर्द, सिर में जरा भी हिलने से दर्द बढ़ना; हरकत से रोग बढ़ना; टाइफ़ॉयड जब कब्ज से शुरू हो (अगर दस्तों से शुरू हो तो रस टॉक्स); कब्ज़ में निम्न-शक्ति नहीं देनी चाहिये, 30 या 200 दें: शिकायत वाली करवट लेटने से आराम।
(29) Calcarea carb 30, 200, 1M – पांवों में ठंडी, भीगी जुराब पहने-रहने का-सा अनुभव; शीत-प्रकृति का व्यक्ति ठंडे कमरे में जाने पर भी सिर तथा पैरों में पसीजता है; थुल-थुल बच्चों में लाइम की कमी के कारण हड्डियों में कमजोरी; गर्दन आदि के ग्लैंड्स का कड़ापन; क्षय की प्रवृति। वृद्ध लोगों में कई बार दोहराना ठीक नहीं। गले में पंखे लगने के-से अनुभव से लगातार खुरखुराहट वाली खांसी।
(30) Calcarea fluor 3x, 12x – एडोनॉयड; मोतियाबिन्द; कहीं भी कड़ापन। प्रभाव प्रकट होने में समय लगता है, बहुत बार दोहराना ठीक नहीं।
(31) Calcarea phos 30, 200 – बच्चों की बढ़न के समय की दवा; बढ़न के समय के दर्द (Growing pains); दांत निकलने में 6x सहायक है।


(32) Camphora 1x, 3 – जुकाम की शुरुआत में जब ठंड लगे, छींके आयें; हैजे में जब शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ जाय; अत्यन्त लो ब्लड प्रेशर (लो ब्लड प्रेशर में थाइरोडिनम भी लाभप्रद है); संकट के समय हृदय की उत्तेजना देता है; अन्तिम अवस्था के लक्षण; टिंचर देने से बन्द पेशाब खुल जाता है। इसे दोहराना पड़ता है।


(33) Cannabis sativa 3, 30 – तुतलाने में 30 शक्ति; गोनोरिया में C.M. की मात्रा देने से लाभ होता है लेकिन 4-5 दिन बाद असर होता है। C.M. शक्ति से लाभ न हो तो टिंचर दो।


(34) Cantharis Q, 6, 30, 200 – पेशाब में सख्त जलन; प्रोस्टेट की जलन; छालों में जलन; इसे दोहराया जा सकता है। जल जाने या एग्जीमा की जलन में पानी में 1x या 2x घोल कर लगाते हैं। इस का घोल हर घर में रहना चाहिये। जलने पर पहली चीज इसी का दस-दस मिनट बाद रूई में भिगों कर उपयोग होना चाहिये, छले नहीं पड़ते, त्वचा ठीक-से आती है, दर्द तत्काल जाता रहता है।
(35) Carbo veg 30, 200 –

डकार; पेट के ऊपरी भाग में हवा; कार्बोवेज 1x और पपीते के बीजों का 1x मिलाकर 1 या 2 ग्रेन देने से बदहजमी नहीं रहती; मरने से पहले C.M. देने से बुखार आकर रोगी अच्छा हो जाता है या शान्ति से मरता है।

गठिया ,घुटनों का दर्द,कमर दर्द ,सायटिका  के अचूक उपचार 

(36) Causticum 30, 200, 1M – लकवा मार जाना; पेशाब स्वयं निकल जाना। लकवे की हालत में 200 या 1000 शक्ति सप्ताह या दो सप्ताह में एक बार दी जा सकती है। बरसात या ठंड में गठिये में आराम मिलता हो तो इस से लाभ होता है। चेहरे पर मस्से में लाभ देता है।


(37) Chamomilla 12, 30 – बच्चों के दाँत निकलते समय के रोग-मसूड़े फूलना, लार बहना, हरे-पीले दस्त, चिड़चिड़ा स्वभाव; क्रोध से होनेवाले रोग।


(38) Chelidonium Q, 3x, 30, 200 – जिगर के रोग। प्राय: निम्न-शक्ति दी जाती है। दायें अस्थि-फलक के नीचे दर्द (बायें अस्थि-फलक के नीचे के दर्द में चेनोपोडी ग्लाउसी एफिस लाभ करता है)


(39) Chelone Q – पेट में किसी प्रकार के भी कीड़ों को नष्ट करता है। टिंचर की 5 बूंद पानी में दो-तीन बार दें।
(40) China 30, 200 – रात के पसीने; खून या वीर्य जाने से कमजोरी; किसी भी रोग का 1, 2, 7 या 15 दिन बाद बढ़ना; समूचा पेट फूल उठना-सार पेट में वायु भर जाना; जीवित कृमियों की उल्टी के स्वप्न; पथरी बनने की प्रवृत्ति को रोकता है – 30 शक्ति की एक मात्रा महीना भर दें।





(41) Cicuta 200 – सिर, गर्दन रीढ़ का पीछे को मुड़ जाना (धनुष्टकार); हिचकी; कप या खींचन (Convulsions).
(42) Cina 3, 200 – पेट में केंचुए की तरह के कीड़े (सूत की तरह के कीड़ों में ट्युक्रियम); नर्वस बच्चों को 30 या 200 शक्ति की मात्रा दो।


(43) Clematis 30, 200 – सुजाक की पेट की नली में असह्य दर्द; बूंद-बूंद पेशाब होना; अण्डहोष का पत्थर की तरह कड़ा होना।


(44) Cocculus 30 – गाडी आदि की यात्रा की गति से मतली या जी कच्चा-कच्चा होना, नींद की कमी से रोग-चक्कर आदि।


(45) Coffea cruda 200 – शुभ-समाचार से अनिद्रा; दांतो-कमर-प्रसव आदि का दर्द (मुंह में ठंडा पानी रखने से दांत के दर्द में कमी हो जाती तो कॉफिया लाभप्रद है)


(46) Colchicum 30 – किसी भी रोग में रोगी रसोईघर की गंध बर्दाश्त नहीं कर सकता; अफारा-मनुष्य या पशु के पेट में गैस इतनी भर जाती है कि मानो फूट पड़ेगा इसमें 3x उपयोगी है, 200 भी।


(47) Colocynth 6, 30, 200 – पेट-दर्द में सामने की ओर झुकने या पेट दबाने से आराम होना (डायोस्कोरिया में उल्टा है, उस में पीछे की ओर मुड़ने से आराम होता है).


(48) Conium 30, 200 – बुढ़ापे के रोग; टांगों से पक्षाघात शुरू होकर ऊपर को जाना; सिर इधर-उधर घुमाते ही चक्कर आना; आंख बन्द करते ही पसीना आना किसी भी रोग में क्यों न हो; यकायक विधुर या विधवा होने पर सेक्स-संबंधों के छूट जाने पर होने वाले स्नायविक रोग उन्हें जिन्हें सेक्स की आदत हो; नपुंसकता।





(49)Croton tiglium 30 – पानी की तरह पतला दस्त जो गोली के-से वेग के समान एकदम सारा निकल आता है; भोजन के बाद दौड़ कर दस्त के लिये भागना; अण्डकोषों की थैली में बेहद खुजली।
(50) Cuprum met 30 – अकड़न जो हाथ-पैर की अंगुलियों से चलकर सारे शरीर में फैल जाय; अकड़न में अंगुलियां अन्दर की ओर मुड़ती हैं (सिकेल कोर में अंगुलियां बाहर की ओर फैलती हैं); हैजे की प्रतिरोधक है; किसी दबे हुए त्वचा के रोग में जिस के दब जाने से नया रोग उत्पन्न हो गया हो यह त्वचा-रोग को बाहर ले आता है।


(51) Dioscorea 3 – नाभि से दर्द उठकर सारे शरीर में फैल जाता है; पेट-दर्द सामने की ओर झुकने से बढ़ता है, पीछे की ओर होने से घटता है (कौलोसिन्थ से उल्टा); किसी भी दर्द में यह लक्षण हो तो यह दवा दो।


(52) Drosera 12, 30, 200 – हूप खांसी की दवा है, मात्रा दोहरानी नहीं चाहिये; व्याख्याताओं का स्वर-भंग; दमा; टी. बी.।


(53) Dulcamara 30 – तर हवा से, भीजने से दर्द, जुकाम, दमा, दस्त, लकवा आदि कोई भी रोग होने पर दें।





(54) Eupatorium perf Q, 3, 30 – मलेरिया, फ्लु, डेंगू आदि ज्वर में हड्डयों में दर्द मानो वे चूर-चूर हो गई हों।


(55) Euphrasia Q, 6, 30 – आंख के रोग में दो-चार बूंद टिंचर 1 औंस डिस्टिल्ड वाटर (आंख धोने के लिये); जुकाम में आँख से जलनेवाले आंसू पर, नाक से न जलनेवाला पानी (एलियम सीपा से उल्टा); मूल अर्क का बा;

(56) Fagopyrum 12x –

आंखों में भयंकर खुजली; पढ़ने से सिर दर्द; हाई ब्लड प्रेशर 12x दो।
(57) Ferrum phos12 – रुधिर में रक्त-कण कम हों तो 3x देना चाहिये, रोगी कमजोर पर चेहरे पर झूठी लालिमा; ज्वर की प्रथम अवस्था जिस में एकोनाइट की-सी तेजी न हो।
(58) Fluoric acid 6, 30 – भगन्दर; आंखों का या दांतों का नासूर; बाल झड़ना; वेरीकोज वेन्ज।
(59) Gelsemium 3, 30, 200 –

सिर की गुद्दी में दर्द, ज्वर में निंदासा पड़े रहना; निद्रालुता; चक्कर; कंपन: लकवा; थकावट या नर्वस होने से नींद न आना; भय या बुरे समाचार से दस्त लगना 3 शक्ति का अधिक प्रयोग होता है। जिन रोगों के साथ दिमागी रोग मिले रहें उनमें उपयोगी है। 10-11 बजे रोग बढ़कर शाम तक ढलना।
(60) Glonoine 30 –

लू लगना; सिर-दर्द का सूर्योदय के साथ बढ़ना, सूर्यास्त के साथ घटता है। (नैट्रम म्यूर में भी ऐसा है); हाई ब्लड प्रेशर (ऑरम, फैगोपाइरम और ऑरम म्युरियेटिकम नैट्रोनेटम में भी यह है).
(61) Graphites 30, 200, 1M, 10M – एग्जीमा में शहद के समान चिपचिपा निकलना; (पेट्रोलियम में पनीला स्राव); कान के पीछे गीली फुन्सियां, मुंह पर लाल-लाल धब्बे (Red bloches).
(62) Hamamelis 6 –

नाक, फफडे, पेट, मूत्राशय, जरायु, मल-द्वार आदि से जमा हुआ और काला (Veinous) खून निकलना; बवासीर में नीले मस्से।
(63) Hepar sulph 6, 200, 1M – फोड़े में पीप हो तो निम्न-शक्ति उसे पका कर फोड़ देती है, पीप पड़ने से पहले उच्च-शक्ति दी जाय तो पीप को सुखा देती है; अगर बच्चे से खट्टी बू आती हो तो कान बहने में दो; गर्म मौसम में भी ठंड अनुभव होना मानो जिस्म पर ठंडी हवा लग रही है, कपड़े से लिपटे हुए भी ठंड अनुभव होना।
(64) Hydrastis Q, 30 –

गला, पेट, जरायु, मूत्र-नली-कहीं से भी गाढ़ा, पीला, लेसदार, सूत की तरह स्राव; गले में रेशा गिरना; पेट का अल्सर या कैंसर; श्वेत-प्रदर; सुज़ाक (उक्त सब रोगों में गाढ़ा लेसदार स्राव इसका विशेष लक्षण है)। कैलि बाईक्रोम में भी – जिस में सूतदारपना बहुत अधिक होता है-ये लक्षण हैं।
(65) Hyoscyamus 30, 200 –

सन्देहशीलता, पागलपन, प्रसूता का उन्माद; टेटुए के बढ़ने से लेटने से खांसी बढ़ना तथा उठ बैठने से दब जाना।
(66) Hypericum Q, 3, 1M –

स्नायुओं की चोट जिस में अंगुली, नख आदि में कांटा, आलपिन आदि गड़ जाय।
(67) Ignatia 30, 200, 1M –

चित्त-वृत्ति की दवा (हिस्टीरिया); शोक, भय, क्रोध से उत्पन्न रोग; अनिद्रा; कांच निकलना; गले में गोला उठना; परस्पर-विरोधी लक्षण-वृत्ति जैसे दर्द वाली करवट लेटने से दर्द घटना; भोजन करने पर पेट खाली लगना; खांसने पर खांसी बढ़ना; घूमने पर बवासीर का कष्ट घटना; ज्वर में शीतावस्था में प्यास; गाने-बजाने से कर्णनाद घट जाना आदि। 200 शक्ति लाभप्रद है।
(68) Iodum 1M – राक्षसी-भूख के साथ शरीर दुबला होते जाना; प्रदर इतना तेज कि जहां स्राव लगे वहां जख़्म हो जाय; ठंड से बार-बार जुकाम होने की शिकायत।
(69) Ipecac 3, 30, 200 –

लगातार मिचली और कय; टाइफ़ॉयड के बाद थोड़ा-थोड़ा बुख़ार बने रहना; दमा जो हर साल एक ही समय उभरे; जरायु से रुधिर रिसते रहने के साथ समय-समय पर उसमें से खून की ‘फुहार’ (Gush) छूटे और मिचली हो।
(70) Kali bichromicum 30, 200, 1M – लेसदार, सूत की तरह लटकने और चिपटने वाला श्लेष्मा।

(71) Kali carb 200 – आंख के ऊपर की पलक सूज जाना (एपिस से उल्टा); प्रसव के समय अत्यन्त तेज दर्द, सूई बेधने या कतरने की तरह का दर्द। गठिये, टी० बी० या बाइटस डिजीज में देते हुए सावधानी बरतनी चाहिये। कई बार नहीं देना चाहिये। कोई भी शिकायत सवेरे 3 बजे बढ़ जाती है। कूल्हे से घुटने तक जाने वाला शियाटिका का दर्द या किसी भी रोग में ऐसा दर्द।
(72) Kali hydriodide 30, 200 – न्यूमोनिया के बाद बच रहनेवाली, तंग करने वाली सूखी या तर खांसी।
(73) Kali mur 12 – श्वेत प्रदर; जुकाम; मध्य-कर्ण की शोथ; कान में कड़क का-सा शब्द होना; कर्णनाद; कर्णनाद में थियोसिनेमाइन 2x.
(74) Kali phos 30, 200, 1M – स्नायु-रोग; कमजोरी; चक्कर आना।
(75) Kali sulph 12 – फोड़े, जुकाम, कान का पकना, प्रदर आदि में स्राव का पीलापन इसका मुख्य लक्षण है।

(76) Kalmia latifolia 6 – वात-रोग (रुमेटिज्म); वात-रोग का ऊपर से नीचे को – जाना (लीडम से उल्टा)
(77) Kreosote 30, 200 – बच्चों के काले, भुरभुरे दांत; दांतों में कीड़े लगना; मसूड़ों से खून आना।
(78) Lachesis 8, 30, 200, 1M –

स्त्रियों के मासिक बन्द होने के समय के रोग; वाचालता; गले पर स्पर्श जैसे बटन लगाने, टाई बांधने आदि से सांस रुकने लगना; कमर में भी कुछ बांध न सकना; नींद से जागने पर सब तकलीफ़ों का बढ़ जाना; बाईं तरफ से तकलीफ का दाईं तरफ जाना, जैसे टांसिल आदि बाईं तरफ़ से शुरू हो दाईं को जाय (लाइको से उल्टा); कड़ी वस्तु निगल सकना परन्तु तरल के निगलने में कष्ट होना; मुर्दे जैसा नीला पड़ जाना।(79) Ledum pal 30, 200 – गठिये में ठंड से आराम (यह विलक्षण-लक्षण है); वात-रोग का पैर से शुरू होकर ऊपर को जाना (कैलमिया से उल्टा); पैर फर्श पर रख कर न चल सकना।
(80) Lycopodium 30, 200, 1M –

पेट फूलना, पेट की गड़गड़ाहट, नाभि से नीचे वायु; रोग का दायें से बायें को जाना (लैकेसिस से उल्टा); टांसिल का दायीं तरफ होना या पहले दायीं तरफ होकर बायीं को जाना; दाहिनी ओर का हर्निया; नपुंसकता; बुखार आदि किसी रोग का 4 से 8 सायंकाल बढ़ना; बच्चा दिनभर रोता रातभर सोता है (जैलेपा और सोरिनम से उल्टा); पसीना बिल्कुल न आना।
(81) Magnesia carb 30 – बच्चों के हरे, काई-जैसे, लेई के-से दस्त; खट्टी बू आना; मासिक सिर्फ सोने या लेटने पर होता है, चलने-फिरने से बन्द हो जाता है।
(82) Magnesia phos 6, 30, 200, 1M – दर्द का एकदम आना और एकदम चले जाना (बैलेडोना में भी ऐसा है); यह दर्द की दवाओं का राजा कहा जाता है। गर्म पानी में 6x देने से अच्छा काम करता है।
(83) Medorrhinum, 200, 1M – सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोग रहना (सिफिलीनम से उल्टा); दबे हुए गोनोरिया की वजह से कोई रोग।
(84) Merc Cor 30, 200 – डिसेन्ट्री में खून ज्यादा आंव कम; डिसेन्ट्री में पाखाना होने पर भी ऐंठन-के कारण टट्टी करते बैठे रहना। (नक्स मे जरा-सी टट्टी से आराम लगना)
(85) Merc Sol 6, 30, 200, 1M – सफेद डायरिया; डिसेन्ट्री में आंव ज़्यादा खून कम; पाखाने में बस न होना-‘Never get gone feeling’; रात को हड्डियों में दर्द, जीभ तर परन्तु प्यास अधिक; स्टैफ़िसैग्रिया की तरह दांत की जड़ ठीक परन्तु अगला भाग खुरता जाता है (थूजा और मैजेरियम से उल्टा)
(86) Mezereum 6, 30, 200 –

थूजा की तरह दांत ठीक परन्तु जड़ गल जाती है (मर्क सौल से उल्टा); पैर की लम्बी हड्डियों में दर्द।
(87) Moschus 1, 3 – हिस्टीरिया।
(88) Muriatic acid, 3, 200 – गर्भावस्था की बवासीर; रोगी पेशाब तभी कर सकता है अगर टट्टी भी साथ ही करे।
(89) Natrum carb 6 – दूध हज़्म नहीं होता, उस से पतले दस्त आने लगते हैं; चलने पर पैर टेढ़े हो जाते हैं, चलने से घुटने की खोल में दर्द होता है; निपट बन्ध्यापन को दूर करता है।
(90) Natrum Mur 30, 200, 1M – स्कूली बच्चों का सिर-दर्द, दिन के 9 से 11 बजे बुखार आना; क्रोध, भय आदि से रोग; शोक से नींद न आना; किसी विचार को छोड़ न सकना; खाने-पीने पर भी खासकर गला दुबला होना; छींकों से जुकाम की शुरुआत में 30 शक्ति दो; रोगी की नमक के लिये ज़्यादा इच्छा; बुखार को दूर करने वाली औषधियों की इसे राजा कहा जाता है। अनीमिया कुनीन अधिक लेने के बाद होने वाले रोग; डॉ० बर्नेट का कहना है कि इसके 6x से उन्होंने गठिये के अनेक रोगी ठीक किये हैं, प्रति 2-3 घंटे के बाद दो, पेशाब गाढ़ा हो जायेगा, गठिया ठीक हो जायेगा। रोगी दूसरों के सामने पेशाब नहीं कर सकता-यह इसका विलक्षण-लक्षण है; सीपिया की तरह सहानुभूति पसन्द न करना।
(91) Natrum phos 3, 30 – एसिडिटी; खट्टे डकार; खट्टे डकारों के साथ पेट में वायु; पीलिया; पीली जी;: आंखों में पीली गीध। पीलिया में 1x लाभप्रद है।
(92) Natrum sulph 30 – पेट में हर समय हवा भरी रहना और रात को डायरिया की सख्त शिकायत होना।
(93) Nitric acid 6 – फांस की चुभन का-सा दर्द-गले में, गुदा में-जैसे फट गये हो ऐसा महसूस करना।
(94) Nux vomica 1, 30, 200, 1 M – पतले-दुबले, शारीरिक श्रम न करने वालों, मिर्च-मसाले आदि खाने वालों के बदहज़मी आदि रोग; बार-बार पाखाने जाना, रात को नाक बन्द होना; कमर-दर्द में बिस्तर से उठकर बैठने पर ही कमर बदली जा सकती है; 3 बजे के बाद न सो सकना।
(95) Opium 30, 200 – सख़्त कब्ज या गोल, कठोर, काला, गेंद-सा मल; प्रसव के बाद पेशाब रुक जाना।
(96) Petroleum 30, 200, 1M – प्रत्येक सर्दी में हाथ-पैर-मुंह फट जाते हैं, उन से खून निकलता है; दस्त केवल दिन को आता है, रात को नहीं; एग्जीमा आदि के ठीक होने के बाद त्वचा के बदरंगपने को हटा देता है। एग्ज़ीमा में पनीला स्राव; चिपचिपे स्राव में ग्रैफ़ाइटिस दो।
(97) Phosphoric acid 18,30 – स्वप्न-दोष में 18 शक्ति; शोक, भग्नप्रेम, मानसिक आघात से रोग; भारी दस्त परन्तु कमजोरी नहीं।
(98) Phosphorus, 30, 200 – ऑपरेशन के पहले या बाद इस के 200 शक्ति के दो-चार डोज देने से बाद के कष्ट नहीं होते; मेरु-दंड तथा पीठ की जलन; बुढ़ापे में चक्कर और अनिद्रा; पानी की तरह पतला, पिचकारीनुमा दस्त का वेग से निकलना; बच्चा जनने के बाद सब कुछ ठीक होने पर भी ज़्यादा रक्त-स्राव होना जो जमे नहीं। टी० बी० में बहुत नीचे की शक्ति न दें, न लगातार दें-रोगी के मर जाने का डर रहता है, बहुत ऊंची शक्ति भी न दें। इसके मानसिक लक्षण मुख्य हैं, रोगी निराश होता है।
(99) Phytolacca 3 – ग्रन्थि-शोथ (टांसिल, स्तन आदि सूज जाना)
(100) Picric acid 6, 30, 200 – दिमागी थकावट; मेरु-दंड की जलन; विद्यार्थियों का परीक्षा में फेल होने का डर (इथूज़ा में भी यह है).
(101) Plumbum 30 – सख़्त कब्ज कम्पोजीटरों का पेट-दर्द, उनकी कब्ज़ तथा उनका लकवा; आंतों का एक-दूसरे में घुस जाना।
(102) Podophyllum 3, 30, 200 – पानी की तरह हरे, बदबूदार, बहुत भारी दस्त का प्रातः 7 से 10 बजे तक आना, फिर दोपहर बाद स्वाभाविक टट्टी आना, और अगले दिन फिर वैसे ही दस्त आना। बच्चों के हैजे जैसे दस्तों में 200 या 1000 शक्ति से लाभ होता है।
(103) Psorinum 200, 1M – त्वचा के खुजली आदि रोग (एक्यूट में सल्फर, क्रौनिक में सोरिनम); पतली टट्टी भी कठिनाई से आती है; जैलापा की तरह बच्चा दिनभर खेलता रातभर सोता है (लाइको से उल्टा); मैथुन की शक्ति होने पर भी उस में आनन्द न आना। लगभग 9 दिन बाद इसका असर दीखने लगता है।

(104) Pulsatilla 3, 30, 200, 1M – तेल तथा घी की गरिष्ठ वस्तुओं से बदहजमी (नक्स इन्हें पचा लेता है); मासिक में देरी या कष्ट; दर्द के समय ठंड की सिहरन तथा दर्द का स्थान बदलते रहना; प्यास न लगना; ठंड से दांत दर्द हट जाना; जुकाम, खांसी, प्रदर में गाढ़ा, पीला स्राव; सहानुभूति का भूखा होना, (नैट्रम म्यूर तथा सीपिया से उल्टा); शरीर के केवल एक हिस्से में पसीना आना।

(105) Rheum 3, 6 – बच्चों की दवा; सिर, नाक, मुंह से लगातार पसीना, पसीने में खट्टी बू आना-इन लक्षणों में दस्त आने पर या दूध न पचा सकने पर उपयोगी है; ऐसा डायरिया जो हरकत न होने पर न आये, हरकत होने पर आयें।
(106) Rhus tox 6, 30, 200, 1M – ऑपरेशन के बाद की बेचैनी; जोड़ों में दर्द जब चलने-फिरने से आराम मिले; बैठी हालत से उठने पर जब शुरू में दर्द हो पर हरकत के बाद बन्द हो जाय; तर हवा या सीलन से कोई भी रोग होना; मांसपेशियों में दर्द, मिचकोड़; टाइफ़ॉयड में जब दस्तों से रोग की शुरुआत हो (टाइफॉयड की कब्ज से शुरुआत हो तो ब्रायोनिया); जीभी के प्रारंभ में तिकोना।
(107) Ruta 30, 200, 1M – हड्डी के आवरण पर चोट; पढ़ने-लिखने, घड़ीसाजी, सीने आदि के बारीक काम से आंखों पर जोर पड़ना; कांच निकलना; शियाटिका का दर्द।
(108) Sabadilla 30 – देर तक रहने वाला जुकाम; हर समय खखार की आवाज़ करते रहना।
(109) Sabina 3, 30 – तीसरे महीने गर्भपात होने की प्रवृत्ति को रोकता है। जिन्हें गर्भपात हो जाया करता है उन्हें-‘सिमिसिफ़्यूगा’-एक्टिया रेसिमासा-की 30 शक्ति की गर्भपात की आशंका के दिनों से 15-20 दिन पहले से प्रतिदिन 3 मात्राएं देनी चाहियें। मस्सों पर इस का टिंचर लगाओ।
(110) Sanguinaria 6, 200 – सिर की गुद्दी से उठकर हर सातवें दिन दाईं आंख पर आ ठहरने वाला सिर-दर्द, लगातार बहने वाला रुधिर-अग्रेजी में Sanguine का अर्थ ही ‘full of blood’ है। यह औषधि जोंक से बनी है जिसके काटने से रुधिर बहने लगता है।
(111) Sarsaparilla 6 – मूत्र में पथरी के सफेद कण; पेशाब के अन्त में अत्यन्त पीड़ा; लाल कण हों तो लाइको उपयोगी है; त्वचा पर गर्मी के छोटे-छोटे दाने (मरोरी).
(112) Secale cor. (Ergot) 30 – तीसरे महीने गर्भपात (सैबाइना की तरह); ऐंठन जिसमें अंगुलियां पीछे को मुड़ती हैं (क्यूप्रम से उल्टा); रोगी के अंग छूने से ठंडे महसूस होते हैं परन्तु रोगी उनका ढकना बर्दाश्त नहीं कर सकता; जरायु से रक्त-स्राव।
(113) Selenium 200 – बाल झड़ना; प्रोस्टेट की सूजन (प्रोस्टेट में सबल सेरुलेटा के टिंचर के 10 से 30 बूंद तक देना चाहियें); पुरुष के जननांगों की कमजोरी।
(114) Sepia 1x twice a day or 30, 200, 1M – सहानुभूति न सह सकना (पल्स से उल्टा); कपड़े धोने आदि से देर तक पानी में खड़े रहने से रोग (धोबियों की दवा); स्त्री का पति-पुत्र से प्रेम न रहना; गर्भपात की प्रवृत्ति; रजो-निवृत्ति के समय गर्मी की झलें; जननांगों से जरायु निकल पड़ेगा-यह सोच कर स्त्री का टांग से टांग दबाकर बैठना; बच्चे का पहली नींद में पेशाब कर देना।
(115) Silicea 6, 12, 30, 200, 1M – फोड़े से मवाद निकलने के बाद उसे भरने के लिये; नासूर, भगंदर में C.M. की एक मात्रा; व्यापारियों, वकीलों, विद्यार्थियों के मस्तिष्क की थकावट में; बड़े पेट वाला बच्चा जिसकी सिर की हड्डी नहीं जुड़ती; सिर तथा चेहरे पर पसीना परन्तु शेष शरीर पर नहीं; सोने पर सिर-माथे से पसीना (थूजा में शरीर से); शवों या मृत-व्यक्तियों के सपने आना।
(116) Spigelia 30, 200, 1M – गुद्दी से दर्द का उठ कर बाईं आंख पर रुक जाना (सैंग्विनेरिया से उल्टा); हृदय का दर्द (ऐसा लगना कि हिलने-डुलने से दिल बन्द हो जायेगा).
(117) Spongia tosta 30, 200, 1M – क्रुप खांसी में एकोनाइट 200, स्पंजिया 200, हिपर 200 एक दूसरे के बाद दो, परन्तु अगर एकोनाइट से ठीक हो जाय तो आगे न बढ़ो।
(118) Stannum met 30 – टी- बी० की खांसी; मीठा कफ; छाती में खाली-खाली अनुभव होना।
(119) Staphysagria 30, 200 – मर्क सौल की तरह दांतों के अगले भाग का भुर जाना; ऊपरी पलक पर बार-बार गुहौरी या मस्से होना।
(120) Stramonium 3, 6, 30 – बच्चों में तुतलाना (कैनेबिस सैटाइवा); पागलपना में हंसना, गाना, मुंह चिढ़ाना, प्रार्थना करने लगना।


(121) Sulphur 30, 200, 1M, 10M – जलन; हाथ-पैरों की जलन; मुख तथा सिर की तरफ़ रजोरोध की-सी झलें; प्रात:काल का डायरिया; 11 बजे दोपहर असह्य भूख, जी डूबता-सा होना; कुत्ते की नींद सोना; सवेरे 3 बजे के बाद न सो सकना; खुजली; चुनी हुई दवा से लाभ न होना; देर तक एक जगह खड़े न रह सकना; त्वचा के किसी दबे हुए रोग को जिस से दमा आदि कोई रोग हो गया हो फिर से त्वचा पर बाहर लाना।
(122) Symphytum 200 – हड्डी पर चोट; हड्डी टूटने को जोड़ देती है; आंख पर चोट।
(123) Syphilinum 1M – रात को रोग बढ़ना (मैडोरिनम से उल्टा); अत्यधिक प्रदर-स्राव।
(124) Tellurium 6, 30 – कान से बदबूदार और जख्म करने वाला पीप बहना; दाद।
(125) Terebinthina 6 – किडनी (मूत्र-ग्रन्थि) की बीमारी; पेशाब में खून आना; पेशाब रुकना।

(126) Teucrium marum 6 – पुराना जुकाम जो कभी बहे, कभी न बहे; पेट में सूत के-से कीड़े; चिलूड़ें।
(127) Thiosinaminum 2x – कान में आवाजें (चेनोपोडियम); आंख में जाला; डॉ हार्ड के अनुसार बुढ़ापे को रोकता है।

(128) Thlaspi Q, 6 – जरायु संबंधी दबे हुए रोग में फायदेमंद।

(129) Thuja Q, 30, 200, 1M – मुख, आंख, हाथ, गुदा, जननांग आदि पर फूल-गोभी की तरह के मस्से (बाहर मूल अर्क लगाओ, खाने को 200 शक्ति दो); माथे के अलावा सारे शरीर पर पसीना आना (साइलीशिया से उल्टा); दांतों की जड़ का क्षय या दांत-दर्द, नाखून टूटना या टेढ़े-मेढ़े होना: सवेरे के दस्त; सुजाक; ट्यूमर।

(130) Trillium 30 – जरायु में पिंड (Uterine fibroids) के कारण रक्त-स्राव।
(131) Thyroidinum 6, 30 – लो ब्लड प्रेशर में उपयोगी (कैम्फोरा भी लाभप्रद है)

(132) Urtica urens 3x – माता के दूध कम होना; गठिये में टिंचर दो।

(133) Ustilago 3 – हस्त-मथुन की बीमारी में लाभप्रद है।
(134) Vaccinium or Variolin or Malandrinum, 200 – टीके के दुष्परिणाम, स्नायु-शूल; फुन्सियां जो ठीक होने में न आयें; अजीर्ण, पेट फूलना आदि।

(135) Veratrum album 30 – हैजे में शरीर का ठंडा पड़ जाना; माथे पर ठंडा पसीना आना; वमन; ऐंठन।
(136) Viburnum opulus 6 – स्त्रियों की औषधि; गर्भपात की रोकती है; मासिक देर में, थोड़ा और कुछ ही घंटे रहता है।
(137) Viscum album Q, 3, 6 – शियाटिका में फायदेमंद।
(138) X-ray 12, 30 – डिम्बाशय अण्डकोष आदि ग्रन्थियों का कैंसर।
(139) zincum metallicum 6, 30 – दिमागी थकावट।

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11.4.17

अशोकारिष्ट के लाभ



अशोक का वृक्ष आम के पेड़ के बराबर होता है। यह दो प्रकार का होता है, एक तो असली अशोक वृक्ष और दूसरा उससे मिलता-जुलता नकली अशोक वृक्ष।
भाषा भेद से नाम भेद : संस्कृत- अशोक। हिन्दी- अशोक। मराठी- अशोपक। गुजराती- आसोपालव। बंगाली- अस्पाल, अशोक। तेलुगू- अशोकम्‌। तमिल- अशोघम। लैटिन- जोनेसिया अशोका।
गुण : यह शीतल, कड़वा, ग्राही, वर्ण को उत्तम करने वाला, कसैला और वात-पित्त आदि दोष, अपच, तृषा, दाह, कृमि, शोथ, विष तथा रक्त विकार नष्ट करने वाला है। यह रसायन और उत्तेजक है। इसका क्वाथ गर्भाशय के रोगों का नाश करता है, विशेषकर रजोविकार को नष्ट करता है। इसकी छाल रक्त प्रदर रोग को नष्ट करने में उपयोगी होती है।
परिचय : असली अशोक के वृक्ष को लैटिन भाषा में 'जोनेसिया अशोका' कहते हैं। यह आम के पेड़ जैसा छायादार वृक्ष होता है। इसके पत्ते 8-9 इंच लम्बे और दो-ढाई इंच चौड़े होते हैं। इसके पत्ते शुरू में तांबे जैसे.. रंग के होते हैं, इसीलिए इसे 'ताम्रपल्लव' भी कहते हैं। इसके नारंगी रंग के फूल वसन्त ऋतु में आते हैं जो बाद में लाल रंग के हो जाते हैं। सुनहरी लाल रंग के फूलों वाला होने से इसे 'हेमपुष्पा' भी कहा जाता है|
दूसरा नकली वृक्ष आम के पत्तों जैसे पत्तों वाला होता है। इसके फूल सफेद पीले रंग के और फल लाल रंग के होते हैं। यह देवदार जाति का वृक्ष होता है, यह दवाई के काम का नहीं होता।
रासायनिक संघटन : इसकी छाल में हीमैटाक्सिलिन, टेनिन, केटोस्टेरॉल, ग्लाइकोसाइड, सैपोनिन, कार्बनिक कैल्शियम तथा लौह के यौगिक पाए गए हैं पर अल्कलॉइड और एसेन्शियल ऑइल की मात्रा बिलकुल नहीं पाई गई। टेनिनएसिड के कारण इसकी छाल सख्त ग्राही होती है, बहुत तेज और संकोचक प्रभाव करने वाली होती है अतः रक्त प्रदर में होने वाले अत्यधिक रजस्राव पर बहुत अच्छा नियन्त्रण होता है।
अशोकारिष्ट
अशोक वृक्ष की छाल का मुख्य रूप से उपयोग कर प्रसिद्ध आयुर्वेदिक योग 'अशोकारिष्ट' बनाया जाता है। देश के अनेक आयुर्वेदिक निर्माता संस्थान 'अशोकारिष्ट' बनाते हैं जो सर्वत्र दुकानों पर उपलब्ध रहता है। यह अशोकारिष्ट रक्त प्रदर, ज्वर, रक्तपित्त, रक्तार्श (खूनी बवासीर) मन्दाग्नि, अरुचि, प्रमेह, शोथ आदि रोगों को नष्ट करता है।
अशोकारिष्ट श्वेत प्रदर, अधिक मात्रा में रक्त स्राव होना, कष्टार्तव, गर्भाशय व योनि-भ्रंश, डिम्बकोष प्रदाह, हिस्टीरिया, बन्ध्यापन तथा अन्य रोग जैसे पाण्डु, ज्वर, रक्त पित्त, अर्श, मन्दाग्नि, शोथ (सूजन). और अरुचि आदि को नष्ट करता है तथा गर्भाशय को बलवान बनाता है।
सेवन विधि : भोजन के तुरन्त बाद पाव कप पानी में दो बड़े चम्मच (लगभग 20-25 मिली) भर अशोकारिष्ट डालकर दोनों वक्त पीना चाहिए। लाभ होने तक सेवन करना उचित है

14.3.17

होम्योपैथी के बारे मे प्रचलित भ्रांतियाँ और निवारण -डॉ॰आलोक



होम्योपैथी के लाभ

   होम्योपैथी के ज़रिए कोई व्यक्ति धीरे धीरे और स्थायी रूप से दीर्घकालिक या जीवन भर चलने वाली शारिरिक मनोवैज्ञानिक परेशानियों के साथ साथ उन बाधाओं को भी दूर कर सकता है जो किसी अन्य उपचारात्मक पद्धति से दूर नही हो पाई हैं। इस तरह,होम्योपैथी चिकिस्तकीय प्रयास में सिर्फ एक सहायक या स्थानापन्न से कही ज्यादा है।होमयोपैथी उच्च सामर्थ्यवान (potentised)तत्वों की बेहद छोटी खुराकों की मदद से शरीर द्वारा सव्यं को ठीक करने की शक्ति बड़ाने का काम करती है। होम्योपैथी की सही औषधि शरीर की स्वभाविक उपचार प्रवृत्ति को बेहद धीमे धीमे प्रोत्साहित करती है।
होम्योपैथी अक्सर वहां ज्यादा प्रभावी होती है, जहां सामान्य प्रक्टिस बेअसर हो जाति है। मोडिकामेंट (उपचारी तत्व ),को यदि कुशलता के साथ लिया जाए, तो यह रोग के बड़े हिस्सी को ठीक कर देता है जेसकी संपर्क में मानव आता है।
    वास्तव में होम्योपैथी में समय की बिल्कूल बर्बादी नही होती। बीमारी का लक्षन दिखते ही होम्योपैथिक औषधि का सुझाव देना संभव है, हम उन लक्षणों को प्रूवर (व्यक्ति जिस पर औषदि का परीक्षण किया जाता है )पर किसी औषधि के ज्ञात प्रभाव से मिलाने में सक्षम होते हैं। औषधि के बारे में संपूर्ण जानकारी और उसकी रोगाणु वृद्धि क्षमता जानने के लिए स्वस्थ मानवों पर होम्योपैथी की सभी दवाओं को प्रमाणित किया जाता है।

थायरायड रोग के आयुर्वेदिक उपचार 

औषधि के स्रोत –

होम्योपथिक दवाओं को लेना एकदम सुरक्षित है। किसी भी तत्व का होम्योपैथिक ढ़ंग से इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन इनमें से ज्यादा दवाईयाँ सब्जियों पशुओं और अन्य चेज़ों के अलावा खनिज स्रोतों से प्राप्त प्राणातिक तत्व से बनाई जाती है। लगभग 3000 होम्योपैथिक दवाएं मौजूद हैं। इसकी अतिरिक्त्त, आधुनिकीकरण के नतीजे के तौर पर पैदा हो रही समस्याओं का सामना करने के लिए रोज़ाना नई दवाएं जोड़ी जा रही हैं।

होम्योपैथी की शक्ति –


   होम्योपैथी के खाते में औषधीय तत्व बनाने का विशिष्ट तरीका और बाद में निदानकरी शक्ति बढ़ाते जबकि अपरिषणत औषधीय तत्व को घटाते हुए उनमें सामर्थ्य पैदा करने की उपलब्धि है। यह दुष्प्रभाव होने के अवसर कम करता है और जीवन सिद्धांत को पर्याप्त रूप से उत्प्रेरित करने लायक न्यूनतम खुराक से रोगी को ठीक करता है ताकि यह रोग की शक्ति का प्रतिरोध करे और स्वास्थ्य लौटाए।

होम्योपैथी कंपनीयों में शोध –

होम्योपैथी के इन बुनियादी सिद्धांतों को लागू करते हुए और पिछले कई वर्षों में लाखों लोगों के उपचार के बहुमूल्य अनुभव के साथ एस.बी.एल, बैक्सन, डा. रेकवेग जैसे होम्योपैथी कंपनीयों ने होम्योपैथी की दुनिया में अप्रतिम योगदान दिया है। इस उपचारात्मक पद्धति के पहलुओं पर गहराई से शोध किया है, अपने रोगियों पर होम्योपैथिक दवाओं के प्रभाव का ध्यानपुर्वक निरिक्षण किया और न केवल परेशानी करने के लिए बल्कि संदेह को कम करने और ज्यादा शक्तिशाली पीढ़ियाँ करने के उद्देश्य से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए कई वर्षों तक निरंतर उनके आगे की कार्यवाही की गयी।
होम्योपैथी सुरक्षित है, इसके दुष्प्रभाव नही है, यह इसे लेने की आदत न डालने वाली है, संपूर्णता में उपचार करती है और सपोक्षिक रूप से सस्ती है
कई निदान और उपचारात्मक पध्दतियाँ आई और बिना कोई प्रभाव छोड़े चली गई लेकिन होम्योपैथी समय की परीक्षा पर खरी उतरी है और यही वजह है कि इसे नजरंदाज करना मुश्किल है। यहां तक कि पारंपरिक चिकित्सा में भी, ज़्यादातर उपचार और औषधीय पद्धतियों कुछ वर्षों में ही अप्रचलित हो जाती है। जबकि होम्योपैथी विकसित और परिष्कृत हुई है, लेकिन इसे संचालित करने वाले सिध्दांत और शोध आज भी उतने ही महत्वपूर्ण और मूल्यवान हैं जितने कि वे इसके आरंभ होने के समय थे। यह कई तरह के रोगों को ठीक करने की अतुलनीय प्रभाविता के साथ इस विज्ञान की दृढता को प्रमाणित करता है।

होम्योपैथी के बारे में भ्रांतियाँ

भ्रांति 1 -

होम्योपैथी एक “धीमे काम करने वाली पध्दति” है
दावा का प्रभाव इस पर निर्भर करता है कि क्या रोग तीव्र है या दीर्घकालिक। तीव्र रोग हाल ही में पैदा होते हैं,जैसे ज़ुखाम, बुखार, सिरदर्द जो बेहद तेज़ी से बढ़ते हैं और यदि सही ढंग से चुनी हुई दवा रोगी को दी जाति ही, तो ये बेहद तेजी से परिणाम देती हैं। दीर्घकाल रोग वे रोग हैं जिनका लंबा इतिहास है, जैसे श्वासनीशोथ, दमा , दाद, जोडों का प्रदाह आदि। ये अन्य चिकित्सकीय प्रणलियों द्वारा निरंतर दबाए जाने के फलस्वरूप होते हैं। इस प्रकार के दीर्घकालिक रोगों के ठीक होने के लिए निशिचत रूप से कुछ समय चाहिए। यह रोग की जटिलता, अवधि और लक्षण\दबाए जाने के कारण है कि उपचार में ज्यादा समय लग जाता है नाकि होम्योपैथी के धीमें प्रभाव के कारण, जो कि अक्सर माना जात है।

भ्रांति 2  -

होम्योपैथिक दवाएं लेते समय एलोपैथिक या अन्य उपचार नही कराए जा सकते
यदि कोई व्यक्ति लंबे समय से जारी एलोपैथिक उपचार, खासतौर पर स्टेरॉयड या “जीवन-रक्षक औषधियों” पर है , तो अचानक दवाइयों को रोक देने से उसके लक्षणों का प्रभाव बढ़ सकता है। इसलिए बेहतर तरीका है कि सुधार आरंभ होने पर धीरे धीरे एलोपैथिक दवाइयों की’ खुराक कम की जाए और फिर रोक दी जाए।


भ्रांति 3

 होम्योपैथिक दवाओं के साथ प्याज, लहसुन, चाय, कॉफी, आदि पर पाबंदी होती है
शोधों ने दिखा दिया है कि इन चीजों का दवा की प्रभावशीलता पर कोई असर नहीं  पड़ता है यदि इन्हें संयम के साथ इस्तेमाल किया जाए और इनके व दवाओं के बीच पर्याप्त अंतर बनाए रखा जाए। होम्योपैथिक दवाईयाँ आदतन कॉफ़ी पिने और पान खाने वाले रोगियों पर अच्छा काम करती हैं।

भ्रांति 4

उपचार लेने के बाद रोग बढ़ता है-
प्रत्येक व्यक्ति जानता है ‘कि होम्योपैथिक दवाइयों को लक्षणों की समानता के आधार पर दिया जाता है. दवा का पहला प्रभाव रोगी को उसका रोग बढ़ने के तौर पर महसूस हो सकता है लेकिन वास्तव में यह केवल होम्योपैथिक उद्दीपन (aggravation) है जो कि उपचारात्मक प्रक्रिया का अंग है।

मिथक 5-

होम्योपैथिक दवाओं को छूना नही चाहिए

कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के हाथ से दवा ले सकता है बशर्ते कि उसके हाथ साफ हों।

भ्रांति 6 -

होम्योपैथी केवल बच्चों के लिए अच्छी है|
होम्योपैथिक दवाईयाँ बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए समान रूप से अच्छे हैं। यदि बच्चों को शुरुआत से होम्योपैथिक उपचार दिया जाता है, तो यह न केवल रोग को पूरी तरह से ख़त्म करने में मदद करता है बल्कि उनकी प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाता है और रोग को दीर्घकालिक बनने से रोकता है, और इस प्रकार ज्यादा शक्तिशाली पीढ़ियों का विकास करता है।

भ्रांति 7 
-

होम्योपैथी में रोग विज्ञान संबंधी जांच की जरूरत नही होती है
हालांकि आरंभिक होम्योपैथिक सुझाव के लिए जांच की जरूरत नही होती लेकिन रोग को सम्पूर्णता में ठीक करने और इसके रोगनिदानों को जानने के लिए उपयुक्त्त जांच कराना आवश्यक होता है। ये मामले का समुचित प्रबंधन करने और इसके फॉलो अप में भी मदद करती है।

भ्रांति 8  -

एक दवा ही दी जानी चाहिए
होम्योपैथिक सिंध्दातों के अनुसार एक दवा ही पहला विकल्प होना चाहिए लेकिन रोगी द्वारा प्रस्तुत लक्षणों की जटिल रूपरेखा एक समय में एकसमान (सिमिलिमम ) दवा का सुझाव देना कठिन बना देती है। इसलिए, दवाओं का संयोजन देना सामान्य बात हो गयी है।

भ्रांति 9– 

सभी होम्योपैथिक दवाईयाँ एक जैसी होती है
ऐसा लगता है कि सभी होम्योपैथिक दवाईयाँ एक जैसी हैं क्योंकि उन्हें बूंदों में दिया जाता है। वास्तव में सभी तैयार द्रवो में वाहक समान रहता है लेकिन इसे विभिन्न होम्योपैथिक सामर्थ्यवान घोलों द्वारा चिकिस्कीय रूप दिया जाता है।

भ्रांति 10  -

होम्योपैथी स्वयं पढ़े जाने वाला विज्ञान है
होम्योपैथी एक वैज्ञानिक पध्दति है और कोई ऐसी चीज नही है जिसे , किताबों से पढ़ा जा सके। होम्योपैथ बनने के लिए किसी व्यक्ति को एक वर्ष की इंटर्नशिप सहित 5 ½ वर्ष का डिग्री पाठ्यक्रम होम्योपैथी में पूरा करना पड़ता है। पाठ्यक्रम के दैरान छात्रों को शरीर रचना विज्ञान (एनाटॉमी), शरीर क्रिया विज्ञान (फिजियोलॉजी), रोगनिदान विज्ञान (पैथोलॉजी), विधिशास्त्र (ज्यूरिस्प्रूडेंस), शल्यचिकिस्त (सर्जरी ), चिकित्सा पध्दति (मेडिसिन), स्त्रीरोग विज्ञान (गायनेकॉलॉजी) व प्रसूति – विज्ञान (ऑब्सटेट्रिक्स) पढाया जाता है। कानून के अनुसार मान्यताप्राप्त डिग्री के बिना होम्योपैथी की प्रैक्टिस करना दंडनीय अपराध है। भारत में कई कॉलेज भी कई विषयों में होम्योपैथी , एम. डी। (होम ) की स्नातकोत्तर डिग्री प्रदान करते हैं।


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