20.4.23

लम्बी उम्र तक हड्डियों की मजबूती के उपाय ,Haddiyon ko kaise majbut banayen?




एक मजबूत शरीर के लिए, बाकी अंगों के साथ हड्डियों का मजबूत (Strong Bones) होना भी ज़रूरी होता है। हमारी हडियां कैल्शियम (Calcium), प्रोटीन (Protein), फॉस्फोरस (Phosphorus) के अलावा अन्य मिनरल (Other Minerals) से बानी हुई होती हैं। खराब लाइफस्टाइल, पोषण की कमी से यह मिनरल ख़तम होने लगते हैं और धीरे-धीरे हडियों कमजोर हो जाती हैं। इसी कारण से चोट या एक्सीडेंट होने पर फ्रैक्चर (Fracture) हो जाता है। स्‍वाभाविक है कि हमारे शरीर को पोषण और ताकत केवल आहार के माध्‍यम से ही प्राप्‍त हो सकता है। लेकिन जब हड्डीयों की बात आती है तो दो प्रमुख पोषक तत्‍व कैल्शियम और विटामिन D बहुत ही आवश्‍यक होते हैं। यदि आप अपनी हड्डियों को मजबूत रखना चाहते हैं तो कैल्शियम और विटामिन-D आधारित खाद्य पदार्थों पर ध्‍यान दें। इस लेख में बुढ़ापे तक साथ निभाने वाली हड्डियों को मजबूत कैसे बनाए रखने के उपाय बताए गए हैं।

दूध-

दूध कैल्शियम का हाई सोर्स है जिससे आपकी हड्डियों को सेहतमंद रखने में काफी मदद मिलती है। यदि आप रोज एक कप दूध (250-300 Ml) पीते हैं तो उससे रोजाना कैल्शियम की जरुरत का एक तिहाई हिस्सा मिल जाता है।
दूध में पोटेशियम (Potassium), विटामिन बी (Vitamin B), विटामिन ए (Vitamin A) और प्रोटीन (Protein) काफी मात्रा में होता है। यदि आप लो कैलोरी चाहते हैं तो लो या बिना-फैट वाले दूध (Low Or Non-Fat Milk) का उपयोग कर सकते हैं।

बाजरा (Bajra)

रोज़ाना बाजरा और तिलके तेल का उपयोग करेने से यह हड्डियों की बिमारी से बचाएगा जैसे ऑस्टियोपोरोसिस।

काजू-

काजू काफी टेस्टी और हेल्दी ड्रायफ्रूट है। इसमें मौजूद मैग्नीशियम (Magnesium) और खनिज (Minerals) हड्डियों को मजबूती प्रदान करते हैं।
साथ ही साथ इसमें हाई मात्रा में कॉपर (Copper) होता है। काजू के एक औंस (28.34 Gm) में 622 Mg कॉपर होता है। 19 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों के लिए रोजाना 900 Mg कॉपर की जरुरत होती है।(3)

कच्ची घानी तेल (Kacchi ghani ka tel)

रिफाइंड तेल का सेवन करना छोड़ दें, इसमें मौजूद लिपो केमिकल हड्डियों को शांति पहुंचता हैं। यह शरीर के कैल्शियम को मूत्र के जरिए बाहर निकालता हैं। रिफाइंड तेल के स्थान पर कच्ची घानी तेल का उपयोग करें।

टमाटर का जूस-

टमाटर का जूस मिटामिन और मिनरल्स में काफी हाई होता है। इसमें मैग्नीशियम, विटामिन ए (Vitamins A ), विटामिन सी (Vitamins C) काफी मात्रा में पाया जाता है। साथ ही साथ कैल्शियम और विटामिन के (Vitamins K) भी कुछ मात्रा में पाया जाता है।
इसलिए ताजे टमाटर का जूस पीना हड्डियों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

सूरज से मिलने वाली धुप (Having Sunlight Or Sunbathing)

विटामिन D की प्राप्ति सुबह के समय धूप में बैठने से हो सकती हैं। विटामिन D शरीर में कैल्शियम संष्लेशित करने में सहायक होता है। शरीर का 25% भाग खुला रखकर 20 मिनट धुप में बैठने की आदत डालें।

चुना (Chuna)

गेहूं के दाने के समान चुना तरल पदार्थ में मिलाकर खाए, यह कैल्शियम का अच्छा स्रोत है। (पथरी में चुना ना खाएं)

अखरोट-


अखरोट टेस्ट के साथ-साथ गुणों में भी काफी अच्छा होता है। ये कैल्शियम, प्रोटीन और मैग्नीशियममें काफी हाई होता है। साथ ही साथ ये ओमेगा-3 (Omega-3) फैटी एसिड का भी मुख्य सोर्स होता है।
ये कॉपर का अच्छा सोर्स है और ये बात तो आप जानते ही हैं कि कॉपर की कमी से बोन डेंसिटी कम होने और ऑस्टियोपोरोसिस का जोखिम बढ़ सकता है।
सभी नट्स की तरह इसमें भी अधिक कैलोरी होती है। लेकिन इसकी कुछ मात्रा खाने से आपको काफी लंबे समय तक भूख नहीं लगती।

बादाम (Almonds)

4-5 बादाम रात को पानी में भिगो के रख दें। छिलके उतारकर गाय के 240 ml दूध के साथ मिक्सर में ब्लेंड करके सेवन करे। यह अस्थि मृदुता निवारण में उपयोगी है।

गोभी (Gobhi)

गोभी में बोरोन तत्व पाया जाता है। हड्डियों की मजबूती में इसका अहम योगदान होता है। इससे खून में एस्ट्रोजीन का स्तर बढ़ता है जो महिलाओं में अस्थियों की मजबूती बढ़ता है। पत्ता गोभी की सलाद और सब्ज़ी प्रचुरता से इस्तेमाल करें।

दही -

दही में हाई मात्रा में कैल्शियम और प्रोटीन पाया जाता है। एक कप दही से आपको 450 Mg कैल्शियम और 12 Gm प्रोटीन मिल सकता है।
साथ ही साथ इसमें हड्डियों की हेल्थ के लिए कुछ महत्वपूर्ण पोषक तत्व पाए जाते हैं, जैसे: कैल्शियम (Calcium), प्रोटीन (Protein), पोटेशियम (Potassium), फॉस्फोरस (Phosphorus) और विटामिन डी (vitamin D)।

अनाज (Whole Grains)

मेंगनीज तत्व अस्थि मृदुता में अति उपयोगी है। यह तत्व साबुत गेहूं, पालक, अनानास, टिल और सूखे मेवों में पाया जाता है।

व्यायाम (Exercise)

सबसे ज़रूरी बात यह है की हड्डियों की मजबूती की मजबूती के लिए नियमित व्यायाम करें और स्वयं को घर के कामों में लगाए रखें।
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19.4.23

क्या है घरेलु आयुर्वेदिक इलाज सेफ दाग का?safed dag kaise theek karen?



 

इस रोग को सफेद दाग, शिव्त्र , किलास, फुलबहरी, वर्स तथा Lucoderma और Vitiligo आदि नामों से भी जाना जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी की त्वचा पर सफेद, गुलाबी, तांबे के रंग के समान अथवा लाल रंग के दाग (Spots) पड़ जाते हैं। शुरू शुरू में ये दाग छोटे-छोटे धब्बो के रूप में दिखाई पड़ते हैं और जब रोग बढ़ने लगता है तब वही धब्बे बड़े होकर आपस में मिल जाते हैं। इस तरह से ये दाग बड़े आकार के हो जाते हैं। जब रोग काफी बढ़ जाता है तब दाग इतना फ़ैल जाता है कि त्वचा का स्वाभाविक रंग भी चला जाता है। आखिर में दाग पर उगे हुए काले बाल भी सफेद हो जाते हैं। जहाँ तक इस रोग के इलाज का सम्बंध है, सफेद दाग के घरेलू उपचार और अन्य चिकित्सा पद्धति के उपचार दोनों ही काफी प्रभावी है |

 यह दाग शरीर के किसी भी अंग और किसी भी उम्र में स्त्री या पुरुष को हो सकता है। जहां पर भी दाग होता है, ज्यादातर उस जगह या उस अंग में किसी भी प्रकार का कोई दर्द या पानीन महसूस नहीं होती है। किसी-किसी रोगी को थोड़ी-बहुत खुजली की शिकायत होती है। जो कारण कुष्ट रोग की उत्पति के होते हैं, वही कारण सफेद दाग के भी हैं। (हालांकि आधुनिक चिकित्सक इस रोग को कुष्ठ नहीं मानते हैं और आयुर्वेद के भी किसी भी आचार्य ने इस रोग को कुष्ठ की श्रेणी में नही रखा है। हालांकि आयुर्वेदाचार्यों ने 18 तरह के कुष्ठ रोग बताए हैं, लेकिन इनमें सफेद दाग शामिल नहीं है।
कुछ खाने पीने की चीजे ऐसी होती है जो अकेले खाने से कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, लेकिन एक साथ खाने से आपस में मिलकर रिएक्शन या Food Poisoning का कारण बन जाते हैं और शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियाँ पैदा करते हैं। जैसे-खट्टे पदार्थ, नमक या नमक से बने पदार्थ, मांस-मछली, शराब, बैंगन, मूली इन पदार्थों को खाकर दूध पीना, नमकीन और मीठा एक साथ खाना, ठंडे खाने को कई बार गर्म करके खाना ये सब विरुद्ध ‘आहार’ माने जाते है | इसके आलावा आजकल तेल, घी, दूध, आटा व मसालों आदि में मिलावट हो रही है यह मिलावटी भोजन पेट में जाकर बाद में आंतों में खराबी पैदा करता है, जिससे लीवर भी खराब हो जाता है। पेट खराब होने से पित्त (बाइल) भी खराब होने लगता है ,सफेद दाग होने का यह भी एक कारण हो सकता है। कभी-कभी यह रोग अंग्रेजी दवाइयों के Reaction से भी होता है। सफेद दाग के घरेलू उपचार और आयुर्वेदिक के लिए मुख्य रूप से बावची, बकुची, आंवला, नीम, चित्रक और चंदन आदि हर्ब्स का प्रयोग किया जाता है |सफेद दाग (lukoskin) के घरेलू उपचार सिर्फ दवाइयों के भरोसे ठीक नहीं किया जा सकता है। इसके साथ खाने पीने और व्यायाम का पालन भी बहुत जरुरी होता है। 
कृपया नोट करें ये सभी उपाय एक साथ नही करने है , एक समय में इनमे से किसी एक उपाय को ही अजमाए

 सफेद दाग के उपचार

शहद या मीठे तेल में नौसादर मिलाकर लगाने से सफेद दागो से जल्द ही छुटकारा मिलता है |
सिरस के बीजों का तेल बनाकर लगाने से सफेद दाग ठीक हो जाते है।
बावची सफेद दाग को ठीक करने की सबसे अच्छी औषधि होती है और बावची का तेल भी सफेद दाग के इलाज के लिए अच्छा विकल्प होता है |
बावची, सफेद मूसली और चित्रक तीनों बराबर मात्रा में लेकर पीसकर बारीक पाउडर बनाकर, 3 ग्राम पाउडर सुबह-शाम शहद में मिलाकर लेने से सफेद दाग धीरे-धीरे ठीक हो जाता है।
नीम से सफेद दाग के घरेलू उपचार के लिए नीम के ताजे कोमल 5 पत्ते , हरा आंवला 10 ग्राम दोनों को पीसकर 50 ग्राम पानी में मिलाकर, छानकर पीने से सफेद दाग में बहुत लाभ होता है।
आंवले से सफेद दाग के घरेलू उपचार के लिए कत्था और आंवले का पाउडर (12-12 ग्राम) का 250 मि.ली. पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। जब 30 मि.ली. पानी बचे तो इसे छानकर इसमें 12 ग्राम बावची पाउडर मिलाकर (ऐसी 1-1 मात्रा) सुबह शाम पीनी चाहिए |
सफेद दाग के घरेलू उपचार के लिए लाल चंदन 10 ग्राम, अनारदाना 10 ग्राम दोनों को पीसकर सहदेवी के रस में घोंटकर गोलियां बना लें और सुखा कर रख लें | इन गोलियों को पानी में घिसकर लेप करने से सफेद दाग दूर होते है।
मूली के 10 ग्राम बीजों को 20 ग्राम खट्टे दही में डालकर रखें। 4 घंटे बाद बीजों को पीसकर लेप करने से सफेद दाग के धब्बे ठीक हो जाते हैं। यह भी
चालमोगरा, बावची और चंदन का तेल तीनों की 20-20 ग्राम लेकर एक शीशी में मिलाकर रखें, फिर इस तेल को दिन में तीन बार लगाने से लाभ होता है। यह भी सफेद दाग का अचूक इलाज होता है |
सफेद दाग के घरेलू उपचार के लिए बावची और शुद्ध गंधक को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर पाउडर बनाकर रोजाना सुबह 10 ग्राम पाउडर 50 मिली पानी में डालकर रखें और शाम को थोड़ा-सा मसलकर, छानकर रोगी को पिलाएं।
बावची से सफेद दाग के घरेलू उपचार के लिए बावची का 3 ग्राम पाउडर और तिल 3 ग्राम पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से सफेद दागमें लाभ होता है। रोगी को कई महीने सेवन करना चाहिए।
नारियल के 10 ग्राम तेल में 1 ग्राम नौसादर डालकर अच्छी तरह मिलाकर कर लेप बना लें। सोते समय इस लेप को सफेद दागों पर लगाएं।
बेल के कोमल पत्तों को बाकुची के कोमल पत्तों के साथ जल में उबालकर नहाने से श्वेत कुष्ठ की बीमारी से बचाव होता है।
बेल की गिरी (गूदे) को सुखाकर चूर्ण बनाएं। फिर उस चूर्ण में बाकुची का चूर्ण बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर रखें। सुबह-शाम 5-5 ग्राम चूर्ण जल के साथ सेवन करने से धीरे-धीरे सफेद दाग का निवारण होता है।
ज्योतिष्मती (मालकंगनी) और बावची का तेल 20-20 मि.ली लीटर शीशी में भर लें। इस मिश्रण को दिन में 3-4 बार सफेद दागों पर लगाने से सफेद दागके दाग नष्ट होने लगते हैं। सफेद दाग के घरेलू उपचार के लिए यह तेल भी रामबाण इलाज का काम करता है |
सुबह के समय अंजीर 2-3 भाग पानी में भिगो दें और रात्रि में सोते समय उन्हें खूब चबाकर प्रतिदिन सेवन करना इस रोग में बहुत ही लाभकर है।
सफेद दाग का आयुर्वेदिक उपचार :सफेद दाग के घरेलू उपचार में बाकुची का भी बहुत महत्त्व हैं इसके लिए आप बाकुची के साफ़ अच्छे बीजों को लगभग 450 ग्राम लेकर पाउडर बना लें। उसके बाद उस पाउडर के समान मात्रा में जैतून का तेल (ओलिव ऑयल) मिलाकर रात-भर रखा रहने दें और दूसरे दिन Tincture Press मशीन से तेल निकलवा लें। इस विधि से निकाला गया तेल सफेद दाग के इलाज के लिए बहुत ही उपयोगी माना गया है। इस तेल को लगाने से त्वचा में रंजक द्रव्य बनकर फैल जाता है। लेकिन यह तेल लगाकर रोगी को धूप नही जाना चाहिए क्योंकि कई बार इससे त्वचा पर दाने पड़ जाते हैं, लेकिन इसमें घबराने की कोई बात नहीं है। दाने पड़ जाने पर बाकुची का प्रयोग बंद करके इन दानो पर गाय का मक्खन और कपूर मिलाकर लगाना चाहिए।
अलसी से सफेद दाग के घरेलू उपचार के लिए हल्दी, आक, बाकुची, अलसी इन सबको समान मात्रा में लेकर पानी या सिरके के साथ बारीक पीसकर लेप करने से सफेद दागों में बहुत लाभ होता है |
बाकुची पाउडर, चित्रक मूलत्वक पाउडर, चकवड़ के बीज, नीला थोथा, कड़वा कूठ, आमलासार गंधक और पीली सरसों इन सबको एक समान मात्रा में लेकर पीसकर टिकिया बनाकर सुखा लें। इस टिकिया को थोड़े से पानी में पेस्ट बनाकर सफेद दागों पर लेप करें। लेकिन यह याद रखे की कोई भी लेप त्वचा पर 3 घंटे से अधिक न लगा रहे।
अपामार्ग भस्म और मेनसिल (प्रत्येक 12-12 ग्राम) मिलाकर पानी के साथ पीसकर दागों पर दिन में 2 बार लेप करें।
चित्रक और बावची से सफेद दाग के घरेलू उपचार के लिए चित्रक की जड़ की ताजी छाल की छाया में सुखाकर 10 ग्राम मात्रा में और बावची 100 ग्राम पीसकर पाउडर बना लें। प्रतिदिन सुबह-शाम 2 ग्राम पानी के साथ सेवन करने पर सफेद दागमें लाभ होता है। यह पोस्ट जरुर पढ़ें सफेद दाग होने के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय |

बवासीर कैसे ठीक करें? Bawasir kaise theek karen




Bawasir ka ilaaj: बवासीर बीमारी के बारे में आप सब परिचित होंगे. यह एक बहुत ही कष्ट-पीड़ा वाला गंभीर बीमारी है. जिसको बवासीर की बीमारी हो जाती है वो बहुत ही परेशान हो जाता है. उठने बैठने और टहलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. आज इस पोस्ट में बवासीर के लक्षण और बवासीर का इलाज ( Bawasir ka ilaaj ) के बारे में जानेंगे. इसके साथ ही बवासीर के कारण और इससे बचाव भी जानेंगे.
बवासीर क्या है
बवासीर एक बीमारी है जो लोगों के मल द्वार के रास्ते में मांसपेशियों के बढ़ने के कारण होता है. ये बढ़े हुए मांसपेशियां मल द्वार के रक्त वाहिकाओं और उत्तकों से जुड़े रहते हैं जिसके कारण इस बीमारी में पीड़ित व्यक्ति को मल द्वार से खून भी निकलता है और दर्द भी होता है. बहुत से लोगों को बवासीर होता है, लेकिन लक्षण हमेशा स्पष्ट नहीं होते हैं. बवासीर गुदा क्षेत्र यानी मल द्वार में ऊतक में सूजन है. इनके कई आकार हो सकते हैं, और ये गुदा के आंतरिक या बाहरी हो सकते हैं. आंतरिक बवासीर आम तौर पर गुदा के ऊपर 2 और 4 सेंटीमीटर (सेमी) के बीच स्थित होते हैं, और वे अधिक सामान्य प्रकार के होते हैं. जबकि बाहरी बवासीर गुदा के बाहरी किनारे पर होती है.

बवासीर के लक्षण

Symptoms of Piles: आपको बता दें कि ज्यादातर मामलों में, बवासीर के लक्षण गंभीर नहीं होते हैं. बवासीर से पीड़ित व्यक्ति निम्नलिखित लक्षणों का अनुभव कर सकता है…गुदा के आसपास एक कठोर दर्दनाक गांठ महसूस की जा सकती है. इसमें जमा हुआ रक्त हो सकता है. बवासीर जिसमें रक्त होता है, उसे थ्रोम्बोस्ड बाहरी बवासीर कहा जाता है.
मॉल त्यागने के बाद, बवासीर वाले व्यक्ति को अनुभव हो सकता है कि आंत्र अभी भी भरा हुआ है.
मल त्याग के बाद चमकदार लाल रक्त दिखाई देता है.
गुदा के आसपास का क्षेत्र खुजली, लाल और गिला होता है.
मल त्यागने के दौरान दर्द महसूस होता है.

बवासीर होने के कारण

Cause of Piles: बवासीर बीमारी होने के कई कारण है. दिन भर कठोर कुर्सी या बिस्तर पर बैठने या ज्यादा प्रेशर के साथ मॉल त्याग से बवासीर होता है. बवासीर के कारण ( Bawasir ke karan ) ये भी है कि जब निचले मलाशय में बढ़ते दबाव बढ़ता है तो पाइल्स होता है. गुदा के आसपास और मलाशय में रक्त वाहिकाएं दबाव में खिंचाव करेंगी और बवासीर का कारण बन सकती हैं. इसकी वजह यह हो सकती है…पुराना कब्ज
पुरानी डायरिया
भारी वजन उठाना
लम्बी देर तक कठोर वस्तुओं या बिस्तर पर बैठना
गर्भावस्था
मल त्याग करते समय तनाव
उम्र के साथ बवासीर बढ़ जाती है.

बवासीर का इलाज

आपको बता दें कि ज्यादातर मामलों में बवासीर का इलाज ( Bawasir Ka ilaaj ) की आवश्यकता नहीं होती. ये अपने आप ठीक हो सकती है. लेकिन बवासीर का घरेलु उपचार ( Bawasir ka gharelu upay ) अपना कर इसे कम किया जा सकता है. हालांकि, बवासीर के उपचार ( Bawasir ke Upchar ) से दर्द-पीड़ा और खुजली को कम करने में मदद कर सकते हैं. बवासीर को ख़त्म करने में निम्नलिखित उपचार अपना सकते हैं…

जीवन शैली में परिवर्तन:



उच्च फाइबर आहार खाने से स्थिति को रोकने और इलाज करने में मदद मिल सकती है. एक डॉक्टर शुरू में बवासीर के इलाज ( Bawasir ke ilaaj ) जीवन शैली में बदलाव की करने की हिदायत देती है.
आहार: मल त्याग के दौरान तनाव के कारण पाइल्स हो सकता है. अत्यधिक तनाव कब्ज का परिणाम है. आहार में बदलाव मल को नियमित और नरम रखने में मदद कर सकता है. इसमें अधिक फाइबर खाना शामिल है, जैसे कि फल और सब्जियां, या मुख्य रूप से चोकर आधारित नाश्ता अनाज. ज्यादा से ज्यादा पानी पीना और कैफीन से बचना बवासीर के इलाज में सहायक है.

शरीर का वजन:

अगर आपका वजन बढ़ गया है तो वजन कम करने से बवासीर की घटनाओं और गंभीरता को कम करने में मदद मिल सकती है. बवासीर को रोकने के लिए, डॉक्टर मल को पास करने के लिए व्यायाम करने और तनाव से बचने की सलाह भी देते हैं। बवासीर के लिए व्यायाम मुख्य उपचारों में से एक है।
जुलाब: यदि बवासीर से पीड़ित व्यक्ति कब्ज से पीड़ित हो तो डॉक्टर जुलाब लिख सकता है. ये व्यक्ति को अधिक आसानी से मल पास करने में मदद कर सकते हैं और निचले कोलन पर दबाव कम कर सकते हैं.

बवासीर के प्रकार

Types of Pilesग्रेड I: इस तरह की बवासीर छोटे सूजन होते हैं, आमतौर पर गुदा के अस्तर के अंदर होते हैं जो दिखाई नहीं देते हैं.
ग्रेड II: यह ग्रेड I बवासीर से बड़े होते हैं, लेकिन गुदा के अंदर भी रहते हैं. मल के गुजरने के दौरान उन्हें धक्का लग सकता है, लेकिन वे बिना रुके वापस लौट आएंगे.
ग्रेड III: इन्हें प्रोलैप्सड बवासीर के रूप में भी जाना जाता है, और गुदा के बाहर दिखाई देता है. व्यक्ति उन्हें मलाशय से लटका हुआ महसूस कर सकता है, लेकिन उन्हें आसानी से डाला जा सकता है.
ग्रेड IV: बवासीर की यह सबसे गंभीर अवस्था होती है. इन्हें वापस नहीं धकेला जा सकता है और उपचार की आवश्यकता होती है. ये बड़े होते हैं और गुदा के बाहर रहते हैं.

बवासीर के उपचार

खुनी बवासीर होने पर दही या लस्सी के साथ कच्चा प्याज खाने से फायदा मिलता है।
कैसी भी बवासीर हो कच्ची मूली खाने या उसका रस पीना चाहिए। एक बार में मूली का रस 25 से 50 ग्राम तक ही ले।
आम और जामुन की गुठली के अंदर वाले हिस्से को सुख कर पीस लें और इसका चूर्ण बना ले। रोजाना 1 चम्मच चूर्ण पानी या लस्सी के साथ लेने से खुनी बवासीर में आराम मिलता है।
शरीर में कब्ज़ रहती हो और पेट ठीक से साफ़ न होता हो तो इसबगोल की भूसी का प्रयोग करे।
50 से 60 ग्राम बड़ी इलायची तवे पर भून ले और ठंडी होने के बाद इसे पीस कर चूर्ण बना ले। रोजाना सुबह खाली पेट इस चूर्ण को पानी के साथ लेने से पाइल्स ठीक होती है।
100 ग्राम किशमिश रात को सोने से पहले पानी में भिगो कर रखे और सुबह उस पानी में किशमिश को मसल कर इस पानी का सेवन करें। कुछ दिन निरंतर इस उपाय को करने से बवासीर ठीक होने लगती है।
10 से 12 ग्राम धुले हुए काले तिल ताजा मक्खन के साथ खाने से खूनी बवासीर में खून का आना बंद होता है। एक चौथाई चम्मच दालचीनी 1 चम्मच शहद में मिला कर खाने से भी पाइल्स में राहत मिलती है।
अगर आप को बवासीर बार बार होती है तो दोपहर के खाने के बाद लस्सी (छाछ) का सेवन करे। लस्सी में थोड़ा सा सेंधा नमक और अजवाइन मिला कर पिये।

बवासीर की अचूक दवा- हल्दी

हल्दी एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसका इस्तेमाल रसोई घर में मसालों के रूप में किया जाता है. हल्दी में कईं तरह के एंटीसेप्टिक गुण मौजूद होते हैं जो जख्मों को ठीक करते हैं. ऐसे में यदि आप बवासीर से पीड़ित हैं तो हल्दी आपके लिए रामबाण साबित हो सकती है. इसके लिए आप एक चम्मच देसी घी में आधा चम्मच हल्दी मिला लें और मस्सों पर मलहम की तरह लगा लें. आप इसमें घी की जगह एलोवेरा जेल का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. हल्दी से बवासीर के मस्से की दवा के रूप मैं भी इस्तेमाल की जाती है

बवासीर की अचूक दवा- केला

केले में कईं तरह के पौषक तत्व मौजूद होते हैं जो कब्ज़ और बवासीर के लिए उपयोगी साबित होते हैं. इसके लिए आप एक पका हुआ केला लें और उसको बीच से काट लें. अब इस पर थोड़ी मात्रा में कत्था छिडकें अर रात भर इसे खुले आसमान के नीचे पड़ा रहने दें. अगली सुबह इस केले को खाने के 5 से 7 दिन तक आपको बवासीर से राहत मिलेगी.

बवासीर के मस्सों का रामबाण इलाज

80 ग्राम अरंडी के तेल को गरम कर ले फिर इसमें 10 ग्राम कपूर मिला कर रखे। मस्सों को साफ़ पानी से धो कर इसे किसी कपड़े से पोंछ ले और अरंडी के इस तेल से मस्सों पर हलके हाथों से मालिश करे। इस देसी नुस्खे को दिन में 2 बार करने से मस्सों की सूजन, दर्द, खारिश और जलन में आराम मिलता है।
थोड़ी सी हल्दी को सेहुंड के दूध में मिलाकर इसकी 1 बूंद मस्से पर लगाने से मस्सा ठीक हो जाता है। .
सहजन के पत्ते और आक के पत्तों का लेप लगाने से भी मस्सों से जल्दी छुटकारा मिलता है।
कड़वी तोरई के रस में हल्दी और नीम का तेल मिला कर एक लेप बना ले और मस्सों पर लगाये। इस उपाय के निरंतर प्रयोग से हर तरह के मस्से ख़तम हो जाते है।
खूनी और बादी बवासीर का आयुर्वेदिक उपायअंजीर का सेवन पाइल्स के इलाज में बेहद लाभकारी है। रात को सोने से पहले 2 सूखे अंजीर पानी में भिगो कर रखे और सुबह खाएं और 2 अंजीर सुबह भिगो कर रख दे जिसे आप शाम को खाये। अंजीर खाने के आधे से पौना घंटा पहले और बाद में कुछ खाये पिये नहीं। 10 से 12 दिन लगातार इस नुस्खे को करने से खुनी और बादी हर तरीके की बवासीर से राहत मिलती है।

बवासीर की अचूक दवा- लहसुन

लहसुन पेट के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है. यह भोजन पचाने में सहायक है और पेट के रोगों से राहत दिलाता है. इसके इलावा यदि आपको पाइल्स की समस्या है तो आप रात में सोने से पहले लहसुन की एक कली को चील कर गुदा के रास्ते से अंदर डाले. हालाँकि यह उपाय शुरू में आपको थोडा दर्द दे सकता है लेकिन इससे आपको जल्दी ही राहत मिलेगी.

बवासीर की अचूक दवा- छाछ

मस्सों वाली बवासीर की अचूक दवा के रूप में छाछ के सेवन का विशेष महत्व है. दरअसल, छाछ की तासीर ठंडी होती है इसलिए इसके सेवन से बवासीर के मस्से जल्दी ठीक होने लगते हैं. इसके सेवन के लिए आप दो लीटर छाछ में 50 ग्राम पिसा हुआ जीरा व नमक मिला कर रख दें और जब भी प्यास लगे तो पानी की जगह इसे पी लें. लगातार एक हफ्ते तक इसके सेवन से आपके मस्से ठीक हो जाएंगे और बवासीर से आपको हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा.

बवासीर की अचूक दवा- त्रिफला चूर्ण

आयुर्वेद ग्रंथ में त्रिफला चूर्ण को रामबाण औषधि माना गया है. त्रिफला चूर्ण कईं रोगों में असरदायक माना गया है. वहीँ बवासीर की अचूक दवा के रूप में त्रिफला चूर्ण का इस्तेमाल सदियों से किया जा रहा है. इसके लिए आप रात में सोने से पहले एक चम्मच त्रिफला चूर्ण का सेवन करें. इससे आपको बहुत जल्द बवासीर के दर्द व मस्सों से राहत मिलेगी. त्रिफला चूर्ण बवासीर के मस्से की दवा के रूप मैं इस्तेमाल किया जाता है.

बवासीर में क्या खाये

करेले का रस, लस्सी, पानी।
दलिया, दही चावल, मूंग दाल की खिचड़ी, देशी घी।
खाना खाने के बाद अमरूद खाना भी फायदेमंद है।
फलों में केला, कच्चा नारियल, आंवला, अंजीर, अनार, पपीता खाये।
सब्जियों में पालक, गाजर, चुकंदर, टमाटर, तोरई, जिमीकंद, मूली खाये।

बवासीर में परहेज क्या करे


बवासीर का उपचार में जितना जरूरी ये जानना है की क्या खाये उससे जादा जरुरी इस बात की जानकारी होना है कि क्या नहीं खाये।तेज मिर्च मसालेदार चटपटे खाने से परहेज करें।
मांस मछली, उड़द की दाल, बासी खाना, खटाई न खाएं।
डिब्बा बंद भोजन, आलू, बैंगन।
शराब, तम्बाकू।
जादा चाय और कॉफ़ी के सेवन से भी बचे।

बवासीर से बचने के उपाय

दोस्तों बहुत से लोग इस बीमारी से प्रभावित है पर हम कुछ बातों का ध्यान रख कर इससे बच सकते है।खाने पीने की बुरी आदतों से परहेज करे जैसे धूम्रपान और शराब।
खाने में मसालेदार और तेज मिर्च वाली चीजें न खाये।
पेट से जुड़ी बीमारियों से बचे।
कब्ज़ की समस्या बवासीर का प्रमुख कारण है इसलिए शरीर में कब्ज़ न होने दे।
गर्मियों के मौसम में दोपहर को पानी की टंकी का पानी गर्म हो जाता है, उसे पानी से गुदा को धोने से बचें।
चिकित्सा परामर्श-


बवासीर में मलाशय और गुदा की नसों में सूजन आ जाती है, जिसकी वजह से असुविधा होता है और खून भी बहता है।तकलीफ  खास तौर पर बैठते समय या मल त्याग के दौरान होती है|दूसरे लक्षणों में खुजली और खून बहना शामिल है।बवासीर रोग को जड़ से नष्ट करने मे हर्बल चिकित्सा सर्वोत्तम प्रभावकारी सिद्ध हुई है "दामोदर चिकित्सा एवं अनुसंधान केंद्र"  9826795656 निर्मित " दामोदर अर्श कल्याण" औषधि खूनी और बादी  दोनों तरह की बवासीर  मे आशातीत लाभकारी सिद्ध हुई है। 


18.4.23

अनिद्रा की समस्या से निजात पायें जड़ी बूटियों से :Anidra ki jadi butiyan




नींद न आना एक बीमारी है जिसे मेडिकल भाषा में अनिद्रा (Insomnia) कहा जाता है। नींद आपके सेहत के लिए बहुत जरूरी है, इसलिए जब आप डॉक्टर के पास जाते हैं इसके उपचार के लिए जाते हैं तो वह दवा देते हैं। नींद के दवा के कई साइड इफेक्ट्स होते हैं। इसलिए जहां तक हो सके नींद न आने की समस्या का आयुर्वेदिक उपाय ही करना चाहिए।

नींद न आने की गंभीर है लेकिन आज के समय में बहुत आम होते जा रही है। अनिद्रा अचानक से शुरू होने वाली समस्या नहीं होती है, यह आपके असमय सोने, खराब खान-पान, जरूरत से ज्यादा चिंता, गतिहीन दिनचर्या का परिणाम होती है।
नींद न आने या खराब नींद की घटनाओं के कारण कुछ सबसे गंभीर संभावित समस्याएं उच्च रक्तचाप (High BP), मधुमेह (Diabetes), दिल का दौरा (Heart Attack), हार्ट फेल या स्ट्रोक हो सकती है। इसके अलावा मोटापा, अवसाद, कमजोर इम्यूनिटी और कम सेक्स ड्राइव का जोखिम भी होता है। ऐसे में नींद न आने की समस्या का वक्त पर उपचार करना जरूरी होता है।
अनिद्रा को ठीक करने के लिए आयुर्वेद में आसन और असरदार जड़ी-बूटियों को बताया गया है जिसके सेवन से कुछ ही दिन में बेड पर जाते ही झट से नींद आ जाएगी। चलिए जानते हैं क्या है नींद की आयुर्वेदिक दवाएं।

अनिद्रा की आयुर्वेदिक दवा

नींद की जरूरत व्यक्ति को उम्र के अनुसार अलग-अलग होती है। ऐसे में सबसे ज्यादा नवजात को 1 साल तक 12-16 घंटे नींद की जरूरत होती है। इसके अलावा 1-2 साल के बच्चे को 11-14 घंटे नींद, 3-5 साल के बच्चे को 10-13 घंटे नींद, 6-12 साले के बच्चे को 9-12 घंटे नींद, 13-18 साल के बच्चे को 8-10 घंटे नींद, और 18 से ज्यादा उम्र के वयस्क को 7-8 घंटे की नींद की आवश्यकता होती है।

अनिद्रा में फायदेमंद है शंखपुष्पी

शंखपुष्पी अपने वात संतुलन और मेध्य गुणों के कारण मन को शांत करने का काम करता है। साथ ही इसमें अनिद्रा को ठीक करने की भी क्षमता होती है।

​नींद न आने पर करें ब्राह्मी का सेवन

ब्राह्मी को बकोपा के नाम से भी जाना जाता है। यह रात की अच्छी नींद लाने के लिए बेहतरीन जड़ी बूटी है। यह न केवल आरामदायक नींद को बढ़ावा देता है बल्कि दिमाग को शांत करने में मदद करता है और आपकी एकाग्रता, सतर्कता को बेहतर बनाने का भी काम करता है। आयुर्वेद में ब्राह्मी को ब्रेन टॉनिक माना गया है।
​अनिद्रा की आयुर्वेदिक दवाई है जटामांसी
कई अध्ययनों से पता चला है कि जटामांसी अनिद्रा के इलाज में कारगर है। यह जड़ी बूटी मन और शरीर को शांत करने का काम करती है। जिससे आपकी नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है। जटामांसी का उपयोग अवसाद के लक्षणों को कम करने के लिए भी किया जाता है।

आपको अच्छी नींद लाने में मददगार यहां कुछ प्राकृतिक सुझाव दिए गए हैं।

▪रात को सोने से पहले गर्म दूध पीना नींद आने का आसान उपाय है। बादाम का दूध कैल्शियम का एक उत्कृष्ट स्रोत है, जिससे मस्तिष्क को मेलाटोनिन (वह हार्मोन जो निद्रावस्था /जागृतवस्था चक्र को नियंत्रित करने में मदद करता है) के निर्माण में मदद मिलती है।
▪कोल्ड प्रेस्सेड कार्बनिक तिल के तेल को अपने पैरों के तलवों पर लगा कर रगड़े , इससे पहले कि आप आराम से सुखपूर्वक चादर ओड़ कर आराम करने जाएं (सूती मोज़े पैरों पर चढ़ा लें, ताकि आपकी चादर पर तेल न लगे)।
▪3 ग्राम ताजा पोदीने के पत्ते या 1.5 ग्राम पोदीने के सूखे पाउडर को 1 कप पानी में 15-20 मिनट के लिए उबालें।
रात को सोते समय 1 चम्मच शहद के साथ गुनगुना लें।
▪एक कटे हुए केले पर 1 चम्मच जीरा छिड़कें। रात को नियमित रूप से खाएं।
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कौन सी जड़ी बूटियाँ हाई ब्लड प्रेशर में उपयोगी हैं?,Herbs used in High Blood Pressure




उच्च रक्तचाप क्या है?

हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप, धमनी की दीवारों के खिलाफ रक्त प्रवाह द्वारा लगाए गए दबाव की मात्रा है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति को उच्च रक्तचाप का निदान किया जाता है, तो इसका मतलब है कि उसके संचार तंत्र (धमनियों) की दीवारों पर लगातार बहुत अधिक दबाव पड़ रहा है। हृदय एक पेशीय अंग है जो हमारे पूरे शरीर में रक्त को तब तक पंप करता रहता है जब तक हम जीवित हैं।
ऑक्सीजन की कमी वाले रक्त को हृदय की ओर पंप किया जाता है, जहां इसकी ऑक्सीजन सामग्री को फिर से भर दिया जाता है। फिर से ऑक्सीजन युक्त रक्त को पूरे शरीर में हृदय द्वारा पंप किया जाता है ताकि हमारी चयापचय गतिविधियों को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियों और कोशिकाओं को महत्वपूर्ण पोषक तत्व और ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा सके। रक्त का यह पम्पिंग बनाता है- रक्तचाप।
   निम्न जड़ी बूटियां उच्च रक्त चाप को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है-

अजवायन

अजवायन भी आमतौर पर हम सब के घरों में मौजूद होती है। अधिकतर मसालों के साथ इसका भी उपयोग भारतीय व्यंजनों में किया जाता है। यह प्राकृतिक हर्ब ना सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाती है बल्कि कई बीमारियों का अचूक उपाय भी है। अजवायन आयरन,मैग्नीशियम, मैंगनीज़, कैल्शियम और फाइबर से भरपूर होती है। जानकार मानते हैं कि अजवायन के सेवन से हाई ब्लड प्रेशर को कम किया जा सकता है।
लहसुन

लहसुन के सेवन के एक नहीं बल्कि कई फायदे हैं। इसे पाचन के लिए अच्छा माना जाता है। इसके सेवन से हाई कोल्स्ट्राल में कमी आती है।गैस की समस्या दूर हो सकती है। इसमें मौजूद विभिन्न यौगिक आपके दिल को फायदा पहुंचा सकते है। लहसुन में एलिसिन जैसे सल्फर यौगिक होते हैं, जो रक्त के प्रवाह को बढ़ाने और रक्त वाहिकाओं को आराम देने में मदद कर सकते हैं।
शोध बताते हैं कि हाई ब्लड प्रेशर वाले लोगों ने लहसुन का सेवन किया तो उनका रक्तचाप काफी हद तक नियंत्रित हो गया।

तुलसी

अधिकतर घरों में तुलसी का पौधा लगा होता है । तुलसी में अनेक लाभकारी गुण होते हैं जो कई बीमारियों को दूर भगाने के काम आ सकते हैं। यह वैकल्पिक चिकित्सा में भी काफी लोकप्रिय है क्योंकि इसमें कई शक्तिशाली तत्व होते हैं। तुलसी में यूजेनॉल की मात्रा अधिक होती है। दरअसल यूजेनॉल एक प्राकृतिक कैल्शियम चैनल ब्लॉकर के रूप में काम करके ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद कर सकता है।
कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स हृदय और धमनियों की कोशिकाओं में कैल्शियम की गति को रोकते हैं, जिससे रक्त वाहिकाओं को आराम मिलता है

थाइम

थाइम एक ऐसी स्वादिष्ट जड़ी बूटी है जिसका व्यंजनों में काफी इस्तेमाल किया जाता है। थाइम में कई ऐसे यौगिक होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। मुख्य रूप से इसमें मौजूद रोज़मैरिनिक एसिड काफी प्रभावशाली होता है।ये शरीर की सूजन और ब्लड शुगर के साथ ही रक्त प्रवाह में वृद्धि करता है। यह रक्तचाप को कम करने में भी काफी मदद कर सकता है।
थाइम के इस्तेमाल से हृदय रोग से जुड़ी समस्याएं जैसे कोलेस्ट्रॉल, एलडीएल (खराब) कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स और हाई ब्लड प्रेशर सब में कमी आती है।

अदरक

अदरक अविश्वसनीय रूप से आयुर्वेदिक गुणों की खान है।प्राचीन काल से ही इसका इस्तेमाल कई रोगों के उपचार में किया जाता रहा है। इनमें से एक है हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करना।कई शोध बताते हैं कि अदरक का सेवन रक्तचाप को कई तरह से कम करता है। यह एक प्राकृतिक कैल्शियम चैनल अवरोधक औऱ एसीई इनहिबिटर के रूप में कार्य करता है।
रक्तचाप की दवाओं में भी कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स और एसीई इनहिबिटर मौजूद होते हैं। इसलिए खाने में या चाय में अदरक का इस्तेमाल करने से काफी लाभ होता है।

अलसी

अलसी ओमेगा -3 फैटी एसिड से भरपूर होती है जो हृदय के लिए बहुत लाभदायक है। यह कई रोगों के उपचार में मदद कर सकती है। इनमें शरीर में सूजन, आंतों के रोग, गठिया ,शुगर इत्यादि शामिल हैं।जानकार बताते हैं कि ओमेगा -3 फैटी एसिड से भरपूर आहार हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों में को लिए प्रभावशाली है। अलसी कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करके एथेरोस्क्लोरोटिक हृदय रोग से बचा सकती है।
नियमित रूप से करीब 15 से 50 ग्राम तक पिसी हुई अलसी का सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल और हाई ब्लड प्रेशर को कम किया जा सकता है।

दालचीनी

भोजन में इस्तेमाल किए जाने वाले खुशबूदार मसालों में दालचीनी भी एक है। पुराने समय से ही इसका इस्तेमाल पारंपरिक चिकित्सा में उच्च रक्तचाप और हृदय रोग के इलाज के लिए किया जाता रहा है।इसके सेवन से रक्त वाहिकाओं को फैलने और आराम करने में मदद मिलती है।इसके कारण ना सिर्फ यह हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करती है बल्कि ब्लड शुगर के स्तर पर भी असरदार है।

इलायची

इलायची भी एक स्वादिष्ट मसाला है जिसमें थोड़ा मीठा, तीखा स्वाद होता है। यह विभिन्न एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होता है जो हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में कारगर है। जानकारों का मानना है कि रोजाना करीब 3 ग्राम इलायची पाउडर लेने से रक्तचाप में काफी कमी आ सकती है और रक्तचाप सामान्य सीमा तक पहुंचाया जा सकता है।
इलायची में प्राकृतिक रूप से कैल्शियम चैनल ब्लॉकर और डाईयूरेटिक के गुण होते हैं जो रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकते हैं। इलायची का इस्तेमाल व्यंजनों में कर के आप आसानी से इसका सेवन कर सकते हैं।

ब्राह्मी

ब्राह्मी एक ऐसी जड़ी बूटी है जो आपके शरीर के कई अंगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है। आयुर्वेद के जानकार मानते हैं कि हाई ब्लड प्रेशर के इलाज के लिए काफी समय से इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है।
आंवला

आंवला एक सुपरफूड माना जाता है जो रक्त वाहिकाओं को चौड़ा करके उच्च रक्तचाप को कम करने में भी मदद करता है। दिल की बीमारियों से पीड़ित लोगों को सुबह खाली पेट कच्चा आंवला खाने की सलाह दी जाती है। आप चाहे तो बाज़ार में उपलब्ध आंवले के जूस का सेवन भी कर सकते हैं।

तिल


तिल के बीज भी काफी अधिक गुणों वाले होते हैं। इनमें कैल्शियम की अत्यधिक मात्रा होती है।इसके अलाव ये विटामिन ई से भरपूर होते हैं, जो हृदय स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक माना जाता है। शोध बताते हैं कि तिल से बनी चीज़ें या तिल का तेल खाने से रक्तचाप को कम करने में मदद मिल सकती है।

कस्टर्ड एप्पल या शरीफा

शरीफा एक मौसमी फल होता है जो सर्दियों की शुरुआत में मिलता है।इसमें कई ऐसे गुण होते हैं जो हाई ब्लड प्रेशर और टाइप 2 मधुमेह के प्रबंधन के लिए अचूक तरीका माने जाते हैं।

उच्च रक्तचाप के लिए किन खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए?

हम जिन खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, वे हमारे रक्तचाप को अलग-अलग तरह से प्रभावित करते हैं। हालांकि, कुछ खाने की आदतें हैं जिनका पालन करके हम आपके रक्तचाप को कम कर सकते हैं जो इस प्रकार है:ऐसे भोजन का सेवन जिसमें वसा, नमक और कैलोरी की मात्रा कम हो।
चिकन, त्वचा रहित टर्की और दुबले मांस का सेवन।
मलाई रहित दूध, दही और ग्रीक योगर्ट को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
ताजे फल और सब्जियों का सेवन करना चाहिए।
अन्य खाद्य पदार्थ जैसे सादा चावल, पास्ता, आलू की रोटी आदि।
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12.4.23

सायटिका रोग किस औषधि से ठीक होता है?Sciatica most effective herbal medicine

 


साइटिका ( sciatica ) नाडी, जिसका उपरी सिरा लगभग 1 इंच मोटा होता है, प्रत्येक नितंब के नीचे से शुरू होकर टाँग के पिछले भाग से गुजरती हुई पाँव की एडी पेर ख़त्म होती है| इस नाडी का नाम इंग्लीश में साइटिका नर्व है| इसी नाडी में जब सूजन ओर दर्द के कारण पीड़ा होती है तो इसे वात शूल अथवा साइटिका का दर्द कहते है| इस रोग का आरंभ अचानक ओर तेज दर्द के साथ होता है| 30 से 40 साल की उम्र के लोगो में ये समस्या आम होती है |साइटिका का दर्द एक समय मे सिर्फ़ एक ही टाँग मे होता है| सर्दियों के दिनो में ये दर्द और भी बढ़ जाता है |रोगी को चलने मे कठिनाई होती है| रोगी जब सोता या बैठता है तो टाँग की पूरी नस खींच जाती है ओर बहुत तकलीफ़ होती है|

आयुर्वेद में साइटिका को गृध्रसी रोग कहा गया है। पैर में होने वाली पीड़ा के कारण व्यक्ति के चलने का तरीका गिद्ध (Vulture) के समान हो जाता है इसलिए इसे गृध्रसी कहा गया है। आयुर्वेद में इसे वात रोगों के अन्तर्गत रखा गया है। यह बढ़े हुए वातदोष एवं दूषित कफदोष के कारण होता है।अत्यधिक वातप्रकोपक आहार जैसे- बीन्स, अंकुरित अनाज, डिब्बाबंद भोजन, शुष्क एवं शीतल पदार्थ, कटु तथा कषाय रसयुक्त द्रव्यों के अधिक सेवन करने से या फिर अत्यधिक उपवास करने से, बहुत देर खड़े रहने या बैठे रहने से वातदोष की वृद्धि होती है जिस कारण गृध्रसी और अन्य तरह के वात रोग शरीर में उत्पन्न होते हैं।

जब इस नस में सूजन या दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है तो इसे सायटिका (साईटिका) या फिर वात-शूल कहते हैं।
इसकी सबसे खास बात यह है कि सायटिका का दर्द एक समय में सिर्फ एक ही पैर में होता है।
यह रोग 30 – 50 साल के उम्र वाले लोगों को होता है। जब यह रोग होता है तो व्यक्ति के पैर में तेज दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
यह दर्द अत्यंत कष्टदायक होता है जिसमें व्यक्ति उठता बैठता या फिर सोता है तो उसके पैर की नसें खिंच जाती हैं।
साइटिका में कमर से संबंधित नसों में सूजन आ जाने के कारण पूरे पैर में असहनीय दर्द होता है। यह न्यूरलजिया (तंत्रिका शूल) तंत्रिका में होने वाले दर्द का एक प्रकार है जिसमें साइटिका नर्व (गृध्रसी तंत्रिका) में कुछ कारणों से दबाव पड़ने लगता है। साइटिका में पीड़ा नितंबसंधि (Hipoint) के पीछे से प्रारम्भ होकर धीरे-धीरे बढ़ती हुई साइटिका नर्व के अंगूठे तक फैलती है। घुटने और टखने के पीछे पीड़ा अधिक रहती है और पीड़ा के साथ शून्यता भी हो सकती है। इस रोग की गम्भीर अवस्था में असहनीय पीड़ा के कारण रोगी बिस्तर पर पड़ा रहता है। रोग पुराना होने के साथ पैर में क्षीणता और सिकुड़न आ जाती है।

कारण-

ज्यादा देर तक एक ही अवस्था में बैठने या फिर खड़े रहने के कारण।
ज्यादा टाइट कपड़े पहनने के कारण।
अपनी कार्यक्षमता से अधिक परिश्रम करने के कारण।
अधिक सहवास करने के कारण।
मिर्च मसालेदार व असंतुलित भोजन का सेवन करने के कारण।
रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण।
सायटिका नस के पास दूषित द्रव इकट्ठा होने के कारण।
सायटिका नस के दब जाने के कारण।
रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में आर्थराइटिस हो जाने के कारण।
तनाव या ओवरस्ट्रेस लेने के कारण।
हाई हील्स या असहज जूते पहनने के कारण।

साईटिका रोग का घरेलू और कुदरती पदार्थों से इलाज-


साइटिका का आयुर्वेदिक उपाय 

पहला प्रयोग : मीठी सुरंजन या सहजन 20 ग्राम + सनाय 20 ग्राम + सौंफ़ 20 ग्राम + शोधित गंधक 20 ग्राम + मेदा लकड़ी 20 ग्राम + छोटी हरड़ 20 ग्राम + सेंधा नमक 20 ग्राम इन सभी को लेकर मजबूत हाथों से घोंट लें व दिन में तीन बार तीन-तीन ग्राम गर्म जल से लीजिये।
दूसरा प्रयोग : लौहभस्म 20 ग्राम + रस सिंदूर 20 ग्राम + विषतिंदुक बटी 10 ग्राम + त्रिकटु चूर्ण 20 ग्राम इन सबको अदरक के रस के साथ घोंट कर 250 मिलीग्राम के वजन की गोलियां बना लीजिये और दो दो गोली दिन में तीन बार गर्म जल से लीजिये।
तीसरा प्रयोग : 50 पत्ते परिजात या हारसिंगार व 50 पत्ते निर्गुण्डी के पत्ते लाकर एक लीटर पानी में उबालें। जब यह पानी 750 मिली हो जाए तो इसमें एक ग्राम केसर मिलाकर उसे एक बोतल में भर लें। यह पानी सुबह शाम 3/4 कप मात्रा में दोनों टाइम पीएं। साथ ही दो-दो गोली वातविध्वंसक वटी की भी लें।
चौथा प्रयोग : साइटिका रोग में 20 ग्राम निर्गुण्डी के पत्तों को 375 मिलीलीटर पानी में मन्द आग पर पकायें तथा चौथाई पानी रह जाने पर छान लें। इस काढ़े को 2 सप्ताह तक पीने से रोगी को लाभ होता है।

इसका भी रखें ख्याल :

दर्द के समय गुनगुने पानी से नहायें ।आप सन बाथ भी ले सकते हैं, अपने आपको ठंड से बचाएं। सुबह व्यायाम करें या सैर पर जायें ।अधिक समय तक एक ही स्थिति में ना बैठें या खड़े हों। अगर आप आफिस में हैं तो बैठते समय अपने पैरों को हिलाते डुलाते रहें।

लहसुन के दूध से दूर होगा साइटिका का दर्द

लहसुन का दूध भी काफी फायदेमंद होता है। ज्यादातर लोगों को लहसुन के दूध के बारे में जानकारी नहीं होती, लेकिन हम आपको बता दें कि यह बहुत ज्यादा लाभकारी है। जानते हैं कि इसका इस्तेमाल हम किस प्रकार से कर सकते हैं। इसके लिए आपको 4 लहसुन की कलियां और 200 मि. ली. दूध चाहिए।

इस तरह से बनाएं लहसुन का दूध

लहसुन का दूध बनाने के लिए सबसे पहले दूध को गर्म कर लें। फिर उसमें तीन से चार लहसुन काे कद्दूकस कर के डालें। और फिर थोड़ी देर के लिए दूध को उबालें। लीजिए आपके लिए लहसुन का दूध तैयार है। इसके बाद दूध को अपनी सुविधानुसार गर्म या थोड़ा ठंडा करके पी लें।

पोषक तत्वों से भरपूर

ये दूध पोषक तत्वों से भरपूर होता है।
इसमें विटामिन ए, मिनरल, प्रोटीन, एंजाइम्स आदि होते हैं।
ये सभी बैक्टीरिया को अप्रभावी कर देता है। ऐसे में रोज इस दूध का सेवन करें और स्वस्थ बने रहें

दूर करता है साइटिका का दर्द

साइटिका एक ऐसा दर्द है, जिसमें कमर से लेकर पैर की नसों तक में दर्द होता है। इसे ही साइटिक नर्व कहते हैं। जब इस नर्व्स में सूजन हो जाती है तो दर्द देने लगता है जिसे साइटिका का दर्द कहते हैं। कभी-कभी तो यह दर्द इतना अधिक हो जाता है कि इससे चलने तक में समस्या होती है। ऐसी स्थिति में लहसुन का दूध रामबाण इलाज माना जाता है। लेकिन साइटिका का दर्द दूर करने के लिए आपको ये दूध रेग्युलर पीना होगा। इस दूध से साइटिक को नसों में आई सूजन कम हो जाती है जिससे आऱाम मिलता है और दर्द कम हो जाता है।*100 ग्राम नेगड़ के बीजों को कूटकर पीस लें। फिर इसके 10 भाग करके 10 पुड़ियां बना लें। इसके बाद शुद्ध घी में सूजी या आटे का हलवा बना लें और जितना हलवा खा सकते हैं उसको अलग निकाल लें। इस हलवे में एक पुड़िया नेगड़ के चूर्ण की डालकर इसे खा लें और मुंह धो लें। लेकिन रोगी व्यक्ति को पानी नहीं पीना चाहिए। इस हलवे का कम से कम 10 दिनों तक सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
*20 ग्राम आंवला, 20 ग्राम मेथी दाना, 20 ग्राम काला नमक, 10 ग्राम अजवाइन और 5 ग्राम नमक को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 1 चम्मच प्रतिदिन सेवन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*प्रतिदिन 2 लहसुन की कली तथा थोड़ी-सी अदरक खाने के साथ लेने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*तुलसी की 5 पत्तियां प्रतिदिन सुबह के समय में खाने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
*इस रोग से पीड़ित रोगी को उपचार कराते समय क्रोध तथा चिंता को बिल्कुल छोड़ देना चाहिए।
*रोगी को प्रतिदिन अपने पैरों पर सरसों के तेल से नीचे से ऊपर की ओर मालिश करनी चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*इस रोग से पीड़ित रोगी को गर्म पानी में आधे घण्टे के लिए अपने पैरों को डालकर बैठ जाना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को तुरंत आराम मिल जाता है। यह क्रिया प्रतिदिन करने से यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
*साईटिका रोग को ठीक करने के लिए आधी बाल्टी पानी में 40-50 नीम की पत्तियां डाल दें और पानी को उबालें। फिर उबलते हुए पानी में थोड़े से मेथी के दाने तथा काला नमक डाल दें। फिर इस पानी को छान लें। इसके बाद गर्म पानी को बाल्टी में दुबारा डाल दें और पानी को गुनगुना होने दे। जब पानी गुनगुना हो जाए तो उस पानी में अपने दोनों पैरों को डालकर बैठ जाएं तथा अपने शरीर के चारों ओर कंबल लपेट लें। रोगी व्यक्ति को कम से कम 15 मिनट के लिए इसी अवस्था में बैठना चाहिए। इसके बाद अपने पैरों को बाहर निकालकर पोंछ लें। इस प्रकार से 1 सप्ताह तक उपचार करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
*लगभग 250 ग्राम पारिजात (हारसिंगार) के पत्तों को 1 लीटर पानी में अच्छी तरह से उबाल लें और जब उबलते-उबलते पानी 700 मिलीलीटर बच जाए तब उसे छान लें। इस पानी में 1 ग्राम केसर पीसकर डाल दें और फिर इस पानी को ठंडा करके बोतल में भर दें।इस पानी को रोजाना 50-50 मिलीलीटर सुबह तथा शाम के समय पीने से यह रोग 30 दिनों में ठीक हो जाता है। अगर यह पानी खत्म हो जाए तो दुबारा बना लें।
*5 कालीमिर्चों को तवे पर सेंककर कर सुबह के समय में खाली पेट मक्खन के साथ सेवन करना चाहिए। इस प्रयोग को प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
करेला, लौकी, टिण्डे, पालक, बथुआ तथा हरी मेथी का अधिक सेवन करने से साईटिका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
*इस रोग से पीड़ित रोगी को पपीते तथा अंगूर का अधिक सेवन करना चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*सूखे मेवों में किशमिश, अखरोट, अंजीर, मुनक्का का सेवन करने से भी यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।
*फलों का रस दिन में 3 बार तथा आंवला का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से साईटिका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को सबसे पहले एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। इसके बाद रोगी को अपने पैरों पर मिट्टी की पट्टी का लेप करना चाहिए। इसके बाद रोगी को कटिस्नान करना चाहिए और फिर इसके बाद मेहनस्नान करना चाहिए। इसके बाद कुछ समय के लिए पैरों पर गर्म सिंकाई करनी चाहिए और गर्म पाद स्नान करना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से साईटिका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*सुबह के समय में सूर्यस्नान करने तथा इसके बाद पैरों पर तेल से मालिश करने और कुछ समय के बाद रीढ़ स्नान करने तथा शरीर पर गीली चादर लपेटने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।
*सूर्यतप्त लाल रंग की बोतल के तेल की मालिश करने से तथा नारंगी रंग की बोतल का पानी कुछ दिनों तक पीने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।

कायफल साइटिका के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद

कायफल एक पेड़ की छाल है, यह देखने में गहरे लाल रंग की खुरदुरी होती है। इसे लाकर कूट-पीसकर बारीक पीस लेना चाहिए। अब एक कड़ाही में 500 ग्राम सरसों का तेल लेकर गर्म करें। तेल गर्म हो जाने पर थोड़ा-थोड़ा करके 250 ग्राम कायफल का चूर्ण मिलाएं। पाँच मिनट तक पकने के बाद इस तेल को आँच से उतार कर कपड़े से छान लें। दर्द होने पर इस तेल से हल्का गर्म करके धीरे-धीरे मालिश करें। मालिश करते समय दबाव न बनाएँ और मालिश के बाद सिकाई जरूर करें।
 *मेथी के बीज साइटिका के दर्द से निजात दिलाने में मददगार होते हैं। साइटिका का दर्द होने पर सुबह एक चम्मच मेथीदाना पानी के साथ निगल लें अथवा 1 ग्राम मेथीदाना पाउडर और सोंठ पाउडर को मिलाकर गर्म पानी के साथ दिन में 2-3 बार लेने से दर्द में आराम मिलता है।
*एरंड काढ़ा खाली पेट पिएं, एरंड का तेल रात में दूध के साथ लें, एरंड के पत्तों का लेप करें।
*तुलसी के पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
*हार-सिंगार के पत्तों का काढ़ा सुबह के समय में प्रतिदिन खाली पेट पीने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।
सहिजन साइटिका के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद
*सहिजन (मुनगा) की पत्तियाँ 100 ग्राम, अशोक की छाल 100 ग्राम और अजवायन 25 ग्राम इन सब सामग्रियों को 2 लीटर पानी में उबाले। जब यह पानी 1 लीटर बच जाए तो उसे छान कर रख लें। इस काढ़े को 50-50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम लें। इसे 3 माह तक नियमित रूप से लेने से साइटिका की समस्या दूर हो जाती है।
*सुबह तथा शाम के समय में अपने पैरों पर प्रतिदिन 2 मिनट के लिए ताली बजाने से भी यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।

अजवाइन साइटिका के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद 

अजवायन में प्राकृतिक सूजनरोधी गुण मौजूद होते हैं। 10 ग्राम अजवायन को एक गिलास पानी में डालकर अच्छे से उबाल लें, उसके बाद इसे छानकर पानी को पियें।

हल्दी साइटिका के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद 

हल्दी में एंटी-इंफ्लैमटोरी गुण पाये जाते हैं और यह साइटिका के उपचार की बेहतरीन औषधि है। सोने से पहले दूध में एक चुटकी हल्दी डालकर पिएँ।

सेंधा नमक साइटिका के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद

साइटिका के दर्द से निजात पाने के लिए गर्म पानी के एक बाथ टब में दो कप सेंधा नमक मिलाकर बैठ जाएं। लगभग 20 मिनट तक अपने पैर और पीठ के निचले हिस्सों को पानी में डुबा कर रखें। हफ्ते में तीन बार इस प्रक्रिया को करें।

सरसों का तेल साइटिका के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद 

सरसों के तेल में 2-3 तेजपत्ते और 2-3 कली लहसुन डालकर तेल को पका लें। अब इसे गुनगुना करके कमर और पैर में हल्के हाथों से मालिश करें। इससे दर्द और सूजन दोनों में लाभ मिलता है।


कटिवस्ति के फायदे

ब्लड और नसों का सर्कुलेशन सही होगा, मांसपेशियों को आराम मिलेगा, स्टिफनेस कम होगी, दर्द कम होगा।


एरंड का प्रयोग

एरंड काढ़ा खाली पेट पिएं, एरंड का तेल रात में दूध के साथ लें, एरंड के पत्तों का लेप करें।

जरूरी हैं ये काढ़े

दशमूल का काढ़ा, महारास्नादि काढ़ा, रास्नासप्तक काढ़ा।

खाने के बाद करें प्रयोग

बालारिष्ट, दशमूलारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट, खाने के बाद लें। साथ में अश्वगंधा का चूर्ण, सिंहनाद गुग्गुल, योगराज गुग्गुल दर्द कम करने के लिए लें।

क्या करें

गुनगुना पानी पिएं, धूप लें, वजन कम करें, घर का खाना खाएं, गाय का घी, गाय का दूध, ओलिव ऑयल, तिल का तेल, मछली का तेल, गेहूं, लाल चावल, अखरोट, मुनक्का, किशमिश, सेब, अनार, आम, और इमली का प्रयोग करें।

क्या न करें

तैलीय खाना, मसालेदार खाना, ठंडा खाना, बासी खाना, अधिक व्यायाम, ओवर ईटिंग, दिन में सोना, रात में जागना, जामुन, सुपारी, अरहर की दाल, मूंग की दाल आदि से दूर रहें। ये आसन तथा योगासन इस प्रकार हैं-
इस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी को पीठ के बल सीधे लेट जाना चाहिए। फिर रोगी को अपने पैरों को बिना मोड़े ऊपर की ओर उठाना चाहिए। इस क्रिया को कम से कम 20 बार दोहराएं। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक व्यायाम करने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।
*रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को मोड़कर, अपने घुटने से नाभि को दबाना चाहिए। इस क्रिया को कई बार दोहराएं। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक व्यायाम करने से साईटिका रोग में बहुत लाभ मिलता है।
  • लिपि 
    12229
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  • शब्द 
    2591
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  • वाक्य 
    3
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  • पैराग्राफ 
    0
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  • रिक्त स्थान 
    2513

विशिष्ट परामर्श-  


संधिवात,कमरदर्द,गठियासाईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है| बड़े अस्पताल के महंगे इलाज के बावजूद निराश रोगी इस औषधि से निरोग हुए हैं| बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं| 
औषधि के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं| 
 
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